09/01/2025: फेसबुक ने फैक्ट्स से मुँह मोड़ा, तालिबान से बढ़ता याराना, हसीना का पासपोर्ट रद्द, कुकियों को चाहिये अलग प्रशासन, तिरुपति में भगदड़ से 6 मरे, जज़ों की तनख्वाह पर फिक़्र
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
‘तथ्य मुक्त दुनिया’ की तरफ बढ़ता फेसबुक : मेटा (Meta) के संस्थापक मार्क जकरबर्ग ने घोषणा की है कि कंपनी अपने प्लेटफार्मों, जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स पर फैक्ट चेकर्स (तथ्य जांचकर्ताओं) को हटा देगी, "सेंसरशिप की मात्रा में नाटकीय रूप से कमी करेगी" और राजनीतिक सामग्री को अधिक बढ़ावा देगी. जकरबर्ग. ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता देंगे और अमेरिका से शुरू होकर, फैक्ट-चेकर्स की जगह एक्स (X) के समान सामुदायिक नोट्स का उपयोग करेंगे.
जकरबर्ग ने कहा कि मेटा के फैक्ट-चेकर्स "राजनीतिक रूप से बहुत पक्षपाती थे और उन्होंने जितना विश्वास बनाया है, उससे कहीं ज़्यादा नष्ट कर दिया है." उन्होंने यह भी कहा कि मेटा की कंटेंट मॉडरेशन टीमें अब कैलिफ़ॉर्निया से टेक्सास में स्थानांतरित होंगी, "जहाँ हमारी टीमों के पूर्वाग्रह के बारे में कम चिंता है." उन्होंने माना कि मेटा द्वारा कंटेंट को फिल्टर करने के तरीके में बदलाव का मतलब है कि "हम कम गलत चीजों को पकड़ पाएंगे".
मेटा के दुनिया भर में 3 अरब से अधिक उपयोगकर्ता हैं. जकरबर्ग ने यह भी कहा कि मेटा "अप्रवासन और लिंग जैसे विषयों पर कई प्रतिबंधों को हटा देगा" और "राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ मिलकर उन सरकारों पर दबाव डालेगा जो अमेरिकी कंपनियों के पीछे पड़ रही हैं और अधिक सेंसर करने के लिए दबाव डाल रही हैं." जकरबर्ग ने फैक्ट-चेकर्स को हटाने के निर्णय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में एक तर्क बताया. उन्होंने कहा कि हाल के अमेरिकी चुनाव "एक बार फिर भाषण को प्राथमिकता देने की दिशा में एक सांस्कृतिक बदलाव" की तरह महसूस होते हैं.
‘तानाशाह के लिए मुआफिक दुनिया’
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मारिया रेसा ने कहा है कि मेटा का अपने प्लेटफार्मों पर फैक्ट-चेकिंग को खत्म करने और कुछ विषयों पर प्रतिबंध हटाने का निर्णय पत्रकारिता, लोकतंत्र और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिए "अत्यंत खतरनाक समय" लेकर आएगा. अमेरिकी-फिलिपिनो पत्रकार ने कहा कि मार्क जकरबर्ग का फेसबुक और इंस्टाग्राम प्लेटफार्मों पर कंटेंट मॉडरेशन को कम करने का कदम "तथ्य मुक्त दुनिया" की ओर ले जाएगा और यह " किसी भी तानाशाह के लिए मुआफिक दुनिया" होगी.
एक साल पहले 31 जनवरी 2024 को मार्क जकरबर्ग ने अमेरिकी सीनेट में खड़े होकर उन बच्चों के परिवारों से माफी मांगी थी, जिन्हें सोशल मीडिया के कारण नुक्सान हुआ था. जकरबर्ग सीनेट समिति के सामने बच्चों के शोषण और सुरक्षा को लेकर पेश हुए थे.
रेसा ने एएफपी समाचार सेवा को बताया, "मार्क जकरबर्ग कहते हैं कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा है - यह पूरी तरह से गलत है." "केवल यदि आप लाभ-संचालित हैं, तो आप ऐसा दावा कर सकते हैं; केवल यदि आप शक्ति और पैसा चाहते हैं, तो आप ऐसा दावा कर सकते हैं. यह सुरक्षा के बारे में है." रेसा, रैपलर न्यूज़ साइट की सह-संस्थापक हैं, जिन्होंने 2021 में "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपनी साहसी लड़ाई" की मान्यता में नोबेल शांति पुरस्कार जीता था. फिलीपींस के पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे की आलोचना करने वाली कहानियों को प्रकाशित करने के बाद उन्होंने कई आपराधिक आरोपों और जांचों का सामना किया. रेसा ने जकरबर्ग के इस दावे को खारिज कर दिया कि फैक्ट-चेकर "बहुत अधिक राजनीतिक रूप से पक्षपाती" थे और उन्होंने "जितना विश्वास बनाया उससे ज्यादा नष्ट कर दिया है". रेसा ने कहा, "पत्रकारों के पास मानकों और नैतिकता का एक समूह होता है." "फेसबुक जो करने जा रहा है वह है उसे खत्म कर देना और फिर झूठ, क्रोध, डर और नफरत को मंच पर हर एक व्यक्ति को संक्रमित करने की अनुमति देना."उन्होंने कहा कि इस फैसले का मतलब पत्रकारिता, लोकतंत्र और सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के लिए "अत्यंत खतरनाक समय आगे" है.
अक्टूबर में, मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया कि फिलीपींस में अधिकारी फेसबुक का उपयोग युवा कार्यकर्ताओं को "रेड-टैग" करने के लिए कर रहे हैं, यह एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को कथित "कम्युनिस्ट विद्रोहियों" और "आतंकवादियों" के रूप में लेबल करने के लिए किया जाता है.
2021 में, मेटा की एक व्हिसलब्लोअर फ्रांसिस हौगेन ने दावा किया कि अफ्रीका और मध्य पूर्व जैसे गैर-अंग्रेजी भाषी बाजारों में सुरक्षा नियंत्रण की कमी थी, और इथियोपिया में मानव तस्करों और सशस्त्र समूहों द्वारा फेसबुक का इस्तेमाल किया जा रहा था. उन्होंने ऑब्जर्वर को बताया, "मैंने वही किया जो मुझे लोगों, खासकर ग्लोबल साउथ के लोगों की जान बचाने के लिए जरूरी लगा, जो मुझे लगता है कि फेसबुक द्वारा लोगों की बजाय मुनाफे को प्राथमिकता देने के कारण खतरे में हैं."
उस समय, मेटा, जो तब फेसबुक के कॉरपोरेट ब्रांड के तहत काम कर रही थी, ने कहा था कि लाभ को सुरक्षा से ऊपर रखने का आधार "झूठा" था और उसने उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के लिए 13 बिलियन डॉलर (11 बिलियन पाउंड) का निवेश किया था. 2018 में, म्यांमार में सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के बाद, फेसबुक ने स्वीकार किया कि मंच का उपयोग "विभाजन को बढ़ावा देने और ऑफ़लाइन हिंसा को भड़काने" के लिए किया गया था. तीन साल बाद, मानवाधिकार समूह ग्लोबल विटनेस ने दावा किया कि फेसबुक म्यांमार में राजनीतिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा भड़काने वाली सामग्री को बढ़ावा दे रहा था. फेसबुक ने कहा कि उसने देश में मंच से हटाई गई नफरत भरी भाषण सामग्री का 99% सक्रिय रूप से पता लगाया था.
आज की सुर्खियाँ
तालिबान के साथ मिलकर भारत अफ़गानिस्तान में विकास करेगा : भारत और अफ़गानिस्तान में तालिबान शासन के बीच अब तक के उच्चतम स्तर के राजनयिक संपर्क में, विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आज दुबई में कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की. विदेश मंत्रालय के वक्तव्य में कहा गया: "विकास गतिविधियों की वर्तमान आवश्यकता को देखते हुए, यह निर्णय लिया गया कि भारत चल रहे मानवीय सहायता कार्यक्रम के अलावा, निकट भविष्य में विकास परियोजनाओं में शामिल होने पर विचार करेगा." "दोनों पक्षों ने खेल (क्रिकेट) सहयोग को मजबूत करने पर भी चर्चा की, जिसे अफ़गानिस्तान की युवा पीढ़ी बहुत महत्व देती है. यह भी सहमति हुई कि अफ़गानिस्तान के लिए मानवीय सहायता के उद्देश्य सहित व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों के समर्थन के लिए चाबहार बंदरगाह के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा. अफगान पक्ष ने भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता को रेखांकित किया." भारत ने जून 2022 में काबुल में अपना राजनयिक मिशन फिर से खोला था, लेकिन वास्तविक शासन के साथ अपने संपर्कों को मध्य-स्तरीय अधिकारियों तक ही सीमित रखा था. मिस्री की यह बैठक तालिबान और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते संबंधों के बीच हुई है.
तिरुपति मंदिर में भगदड़, 6 मरे : बुधवार रात तिरुपति मंदिर में टिकट काउंटर पर मची भगदड़ में कम से कम 6 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए. 10 जनवरी से शुरू होने वाले वैकुंठ द्वार दर्शन के लिए देश भर से हजारों श्रद्धालु टिकट काउंटर के पास जमा थे, तभी भगदड़ मच गई. घायलों की संख्या 28 बताई जा रही है और उनका इलाज किया जा रहा है.
शीशमहल जाने से पुलिस ने रोका : दिल्ली में विधानसभा चुनाव 5 फरवरी को होने हैं और आम आदमी पार्टी ने आज बीजेपी के इस आरोप को चुनौती दी कि अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के भव्य पुनर्सज्जा पर सार्वजनिक धन बर्बाद किया है. आप नेता संजय सिंह ने पत्रकारों को मुख्यमंत्री के आवास में ले जाने की कोशिश की ताकि वे खुद देख सकें कि क्या संपत्ति पर एक स्विमिंग पूल और सोने के सामान हैं जैसा कि बीजेपी ने दावा किया है. लेकिन पुलिस ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया.
सम्भल मामले में कार्यवाही पर रोक लगाई : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को मस्जिद की देखभाल करने वाली समिति द्वारा दायर एक दीवानी संशोधन याचिका पर सम्भल जामा मस्जिद मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत में कार्यवाही पर रोक लगा दी. यह याचिका सिविल कोर्ट द्वारा मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश के जवाब में दायर की गई थी. हिंदू वादियों ने दावा किया है कि मस्जिद एक बार कल्कि को समर्पित एक प्रमुख मंदिर का स्थल है. नवंबर में मस्जिद में हुए दूसरे सर्वेक्षण से हिंसा भड़क उठी, जिसमें कम से कम चार मुस्लिम पुरुषों की मौत हो गई. दिसंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पूजा स्थलों की प्रकृति से संबंधित मामलों में अदालतें किसी भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश को तब तक पारित नहीं कर सकतीं जब तक कि आगे कोई सूचना न हो.
कुकी परिषद ने अलग प्रशासन की मांग की : मणिपुर के नए राज्यपाल, अजय भल्ला ने कुकी-ज़ो परिषद के प्रतिनिधिमंडल के साथ एक बैठक में उनसे शांति सुनिश्चित करने का आग्रह किया ताकि जातीय संकट का समाधान मिल सके. हालांकि, परिषद ने जोर दिया कि सरकार के साथ युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले समूहों के साथ "राजनीतिक बातचीत में तेज़ी लाई जानी चाहिए" और उनके लोगों के लिए एक अलग प्रशासन बनाया जाना चाहिए, परिषद ने भल्ला को एक ज्ञापन में कहा, "अलगाव पूरा होने के बाद ही शांति होगी."
सूचना आयोग में रिक्तियां भरने का आदेश : संघ और राज्य सूचना आयोगों में लगातार रिक्तियों को लेकर, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कल पूछा कि इन संस्थानों का क्या मतलब होगा "यदि आपके पास कानून के तहत कर्तव्यों का पालन करने वाले व्यक्ति नहीं हैं". उन्होंने यह भी कहा कि सेवानिवृत्त नौकरशाह सूचना आयुक्तों का बहुमत थे; कृष्णदास राजगोपाल को याद है कि 2019 के शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया था कि विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को सूचना आयोगों में शामिल होना चाहिए. अदालत ने कल संघ और राज्य सरकारों को अपने संबंधित आयोगों को भरने की दिशा में प्रगति करने के निर्देश दिए.
पटना हाईकोर्ट के जज विनोद चंद्रन को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश, इसके साथ देखें जजों के स्थानांतरण, पदोन्नति पर कॉलेजियम की सिफारिश
शेख हसीना सहित 75 लोगों के पासपोर्ट रद्द
ढाका की अंतरिम सरकार ने कल घोषणा की कि शेख हसीना के साथ-साथ 74 अन्य लोगों के पासपोर्ट रद्द कर दिए गए थे. पिछले साल उनके शासन के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारियों की हत्याओं में उनकी कथित भूमिका इसकी वजह बताई गई है. सरकार ने यह भी बताया कि 22 लोगों के पासपोर्ट को उनके कथित भूमिका में किए गए जबरन गायब होने के कारण रद्द कर दिया गया है. कल्लोल भट्टाचार्य ने रिपोर्ट दी है कि बांग्लादेश की वित्तीय खुफिया इकाई ने हसीना, उनकी बहन, उनकी बेटी, उनके बेटे और अन्य लोगों द्वारा किए गए लेनदेन का विवरण प्रस्तुत करने के लिए देश के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को आदेश दिया है. इस बीच, हसीना की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी ख़ालिदा ज़िया कल स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए एयर एम्बुलेंस से लंदन के लिए रवाना हो गईं. कतर के अमीर द्वारा एम्बुलेंस उपलब्ध कराई गई थी और 79 वर्षीय ज़िया की बीमारियों में सिरोसिस, हृदय रोग और किडनी की समस्याएँ शामिल हैं.
एल्गार परिषद : रोना विल्सन, सुधीर धवले को जमानत
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को एल्गार परिषद के आरोपी एक्टिविस्ट रोना विल्सन और सुधीर धवले को बिना आरोप पत्र के लंबे समय से जेल में रखने का हवाला देकर जमानत दे दी. उन्हें 2018 में एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले में गिरफ्तार किया गया था. जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि मामले में 300 से अधिक गवाह हैं. निकट भविष्य में मुकदमा शुरू या समाप्त होने की संभावना नहीं है. अब तक मामले के 16 आरोपियों में से 7 जमानत पर बाहर हैं. एल्गार परिषद मामले में एनआईए ने 16 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था. इनमें से झारखंड के 84 वर्षीय पादरी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की जुलाई 2021 में हिरासत में मौत हो गई थी. इससे पहले वरवर राव, सुधा भारद्वाज, आनंद तेलतुम्बडे, वर्नोन गोंजाल्विस, अरुण फरेरा, शोमा सेन और गौतम नवलखा को अदालत जमानत पर पहले ही रिहा कर चुकी है.
जस्टिस अजय एस गडकरी और कमल आर खता की पीठ की पीठ विल्सन और धवले की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इसमें आरोपपत्र रद्द करने की मांग इस आधार पर की गई थी कि कि लगाए गए सारे आरोप सिर्फ उन सामग्रियों पर आधारित हैं, जो आरोपियों के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्लांट की गई थीं. न्यायाधीशों ने अभियोजन पक्ष से कहा कि यदि वे मामले की सुनवाई गुण-दोष के आधार पर करेंगे, तो वे कुछ टिप्पणियाँ करेंगे. वहीं एनआईए के वकीलों ने पीठ से कोई टिप्पणी न करने का आग्रह किया, तो पीठ ने केए नजीब मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया और उन्हें जमानत दे दी. जो लोग अब भी सलाखों के पीछे हैं उनमें वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू और सांस्कृतिक कलाकार और कार्यकर्ता सागर गोरखे, रमेश गाइचोर और ज्योति जगताप शामिल हैं.
12%
अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण मापक, ऑटो बिक्री में 12% की भारी गिरावट आई है.
“मेरी अनेक बुद्धिमान और काबिल लोगों से मुलाकात हुई, पर डॉ. सिंह सबसे अलग थे”
यह लेख उस श्रद्धांजलि भाषण का हिस्सा है जो फाइनेंशियल टाइम्स के मुख्य आर्थिक टिप्पणीकार मार्टिन वोल्फ ने 4 जनवरी को एक शोकसभा में दिया था.
यह मेरे लिए एक सम्मान और खुशी की बात है कि मुझे डॉ. मनमोहन सिंह के सम्मान में इस कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया है. यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे उन जैसे सबसे महान व्यक्ति को जानने का मौका मिला. एक लोकसेवक के रूप में डॉ. सिंह की उपलब्धियां उन सभी से कहीं अधिक हैं, जिन्हें मैं जानता हूं. आज कई लोग उनकी उपलब्धियों का जिक्र करेंगे, लेकिन मैं उनके असाधारण व्यक्तित्व पर अधिक जोर देना चाहूंगा. मेरी अनेक बुद्धिमान और काबिल लोगों से मुलाकात हुई, पर डॉ. सिंह उनमें सबसे अलग थे. वह हमेशा संयत, विचारशील और विद्वान व्यक्ति थे. इस सबसे बढ़कर खास यह कि इतने बड़े पद पर आसीन होने के बाद भी निहायत ही शालीन व्यक्ति.
मेरी उनसे पहली मुलाकात 1974 के मध्य में हुई. तब वह भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे और मैं विश्व बैंक का भारत में वरिष्ठ विभागीय अर्थशास्त्री था. यह पहले तेल संकट से ठीक पहले की बात है. सिंह ने अपने महत्वपूर्ण शोध पत्र ‘भारत के निर्यात रुझान और स्वावलंबी विकास की संभावनाएं’ में पहले ही उन समस्याओं की पहचान कर ली थी, जिनका सामना भारत को ऐसे संकट के बाद करना पड़ता. 1964 में क्लेरेंडन प्रेस ने इस शोध पत्र को प्रकाशित किया था. तेल की कीमतों में भारी वृद्धि के प्रति भारत की अत्यधिक संवेदनशीलता का मुख्य कारण देश के निर्यात का अत्यंत निम्न स्तर और आयात पर आवश्यकताओं की बुनियादी सीमाएं थीं. दोनों ही भारत की नीतियों में अत्यधिक व्यापार-विरोधी पूर्वाग्रह का परिणाम थे.
इसके बाद मैंने 1982 में अपनी किताब “भारत के निर्यात” प्रकाशित की, जो उदारीकरण की अत्यंत आवश्यक परियोजना में एक छोटा सा योगदान था. संयोगवश मुझे नफील्ड कॉलेज में इयान लिटिल ने पढ़ाया था, जो सिंह के भी शोध पर्यवेक्षक थे. जब मैं पहली बार उनसे मिला, तो मुझे यह कल्पना भी नहीं थी कि वह एक दिन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के अधीन इस बिगड़ैल सिस्टम में मौलिक सुधार करने वाले वित्त मंत्री होंगे. एक कहावत है- समय आने पर एक शख्स आएगा : 1991 वह समय था ; और शख्स डॉ. सिंह थे. उन्होंने भारत को बदलकर रख दिया और अंततः दुनिया को भी. सिर्फ यही व्यक्तिगत लिंक नहीं हैं जो मेरे मनमोहन सिंह के साथ थे. मैं अपने जिंदगी भर के दोस्तों मोंटेक सिंह अहलूवालिया और शंकर आचार्य से तो 1971 में ही मिल चुका था. यह उन दिनों की बात है, जब मैं विश्व बैंक के वित्त विभाग में एक युवा प्रोफेशनल था. ये दोनों नि:संदेह पूरी दक्षता के साथ उनके लिए काम करते थे. इन दोनों के साथ मेरी दोस्ती ने मेरे और मनमोहन सिंह के संबंधों को गहरा कर दिया.
मैंने बैंक छोड़ने के बाद के वर्षों में एक पत्रकार के रूप में डॉ. सिंह से मिलना जारी रखा. फाइनेंशियल टाइम्स के पूर्व संपादक रिचर्ड लैम्बर्ट उन मुलाकातों में से एक की कहानी सुनाते हैं : “भारत के वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह 1990 के दशक की शुरुआत में मेरे और मार्टिन वोल्फ के साथ अपने सुधार कार्यक्रम पर चर्चा करने के लिए कई बार ‘एफटी’ के लंदन कार्यालयों में आए. मार्टिन ने उनसे पूछा कि उन्होंने स्पष्ट नीति परिवर्तन क्यों नहीं किया - मुझे लगता है कि सवाल पूंजी प्रवाह से संबंधित था. ‘हां, मार्टिन,’ सिंह ने शांत भाव से उत्तर दिया. “मैं अर्थशास्त्र को समझता हूं, लेकिन हम दोनों में अंतर यह है कि यदि आप गलती करते हैं, तो आप इसे अपने अगले कॉलम में सही कर सकते हैं. यदि मैं गलती करता हूं तो 20 मिलियन (2 करोड़) लोग मर जाते हैं.” एक पल के लिए, यहां तक कि मार्टिन के पास शब्द ही नहीं बचे थे. सिंह एक बहुत बड़े आदमी थे.”
जब वह प्रधानमंत्री थे, मैंने उन वर्षों के दौरान कई मौकों पर उनके निवास पर उनसे मुलाकात की. मुझे याद है कि मैंने उनसे पाकिस्तान के साथ शांति का एक रास्ता खोजने की उनकी इच्छा और अमेरिका के साथ संबंधों को एक नए आधार पर स्थापित करने की उनकी दृढ़ता के बारे में बात की. हाल ही में इस बार उनके घर पर हमने भारत में लोकतंत्र के भविष्य के बारे में बात की. इस पर वह पूरी तरह से आशावादी थे. 2023 की गर्मियों में उनसे मेरी अंतिम बातचीत में मुझे पहले चिंता थी कि वह बात करने में बहुत कठिनाई महसूस कर रहे हैं. मैं गलत था. अंततः उन्होंने यूक्रेन में युद्ध को लेकर पश्चिम और रूस के बीच संघर्ष के बारे में अपनी चिंताओं को व्यक्त किया. हम असहमत थे. फिर भी, हमेशा की तरह उनकी असहमति शिष्ट थी, उनके तर्क तर्कसंगत थे और उनकी चिंता की जड़ें मानवता से जुड़ी थीं.
मनमोहन को जानना मेरे जीवन के सबसे बड़े सौभाग्यों में से एक है. उन्होंने मुझे और सभी को दिखाया कि नेतृत्व और सेवा का असली मतलब क्या होता है. आज का आर्थिक रूप से गतिशील भारत उनकी विरासत है. यह एक ऐसे समृद्ध और लोकतांत्रिक भारत के लिए उनकी समर्पित सेवा का उदाहरण भी है, जो दुनिया के लिए खुला है. मानो, शेक्सपियर ने लिखा हो, “यहां एक सिंह था, फिर ऐसा दूसरा कब आएगा?”
‘क्या विरोध प्रदर्शन आयोजित करना यूएपीए लगाने के लिए पर्याप्त है?’
दिल्ली पुलिस के वकील अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की साजिश मामले में आरोपी छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और छह अन्य की जमानत याचिकाओं का विरोध किया. अभियोजन पक्ष ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया, ‘पड़ोसी देशों की शत्रुतापूर्ण ताकतों के माध्यम से साजिश को अंजाम देने की योजना बनाई गई थी’. आरोपियों ने मुकदमे में देरी और मामले में अन्य आरोपियों (छात्र कार्यकर्ता आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल), जिन्हें पहले जमानत मिल गई है, उनकी तरह समानता के आधार पर जमानत की मांग कर रहे थे. शर्मा ने दलील दी, ‘आरोपियों पर जो अपराध के आरोप लगाए गए हैं, उनमें आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. समानता का सवाल नहीं उठता’. जून 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने उपरोक्त तीनों को जमानत दी थी. पुलिस ने कहा, ‘वॉट्सएप चैट से पता चलता है कि विरोध प्रदर्शन की साजिश शरजील इमाम और आसिफ मुजतबा ने रची थी’. इस पर अदालत ने दिल्ली पुलिस के वकील शर्मा से पूछा कि क्या विरोध प्रदर्शन का आयोजन करना किसी व्यक्ति के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने के लिए काफी है? अदालत ने एएसजी शर्मा से यह भी कहा कि वह एक चार्ट भी बनाए, जिसमें दिखाया जाए कि कौन-सा आरोपी किसी खास वॉट्सएप ग्रुप का सदस्य था.
जजों की पेंशन, वेतन पर सुप्रीम कोर्ट को फिक़्र
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्यों के पास उन लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त धन है, जो कोई काम नहीं करते हैं, लेकिन जब न्यायाधीशों को वेतन और पेंशन देने की बात आती है तो वे वित्तीय बाधाओं का दावा करते हैं. सरकार को इस पर विचार करना होगा. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब सुप्रीम कोर्ट 2015 में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को पेंशन के संबंध में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि यह ‘दयनीय’ है कि कुछ सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के जजों को ₹10,000 से ₹15,000 के बीच पेंशन मिल रही है.
स्कूल क्यों नहीं जा रहे 1.22 करोड़ बच्चे ?
आंकड़ों के मुताबिक, 2023 से 24 में भारतीय स्कूलों में नामांकित छात्रों की संख्या 2018 से 19 की तुलना में 1.22 करोड़ की गिरावट दर्ज की गई है. हालांकि अधिकारी यह तर्क दे रहे हैं कि शैक्षणिक योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करने के लिए आधार संख्या और विशिष्ट छात्र आईडी का उपयोग किया गया है. इस प्रक्रिया में डुप्लिकेट और घोस्ट इंट्री को हटा दिया गया है. इसका बुरा असर मान्यता प्राप्त और गैर मान्यता प्राप्त मदरसों पर भी पड़ा है. मान्यता प्राप्त मदरसा की बात करें तो छात्रों के नामांकन में तेज गिरावट दर्ज की गई है, मगर मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या और उनमें काम करने वाले शिक्षकों की संख्या में वृद्धि हुई है. सरकारी स्कूलों में छात्र नामांकन 13.1 करोड़ से घटकर 12.7 करोड़ हो गया. सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 2.7 करोड़ से घटकर 2.5 करोड़ हो गया, जबकि निजी स्कूलों में 9.2 करोड़ से घटकर 9 करोड़ हो गया है. वहीं मान्यता प्राप्त मदरसों में नामांकन 30 लाख से घटकर 25 लाख, गैर-मान्यता प्राप्त में नामांकन 6.1 लाख से घटकर 78,283 तथा अन्य गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों में नामांकन 53 लाख से घटकर 23.5 लाख रह गया है.
कवि, संपादक, फिल्मकार प्रीतीश नंदी का निधन
पत्रकार, संपादक, फिल्म निर्माता, लेखक और कवि प्रीतीश नंदी का बुधवार को निधन हो गया. वह 73 वर्ष के थे. उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में कई फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें उनकी कंपनी प्रीतीश नंदी कम्युनिकेशन्स के तहत सुर, कांटे, झंकार बीट्स, चमेली, हजारों ख्वाहिशें ऐसी और प्यार के साइड इफेक्ट्स जैसी फिल्में शामिल हैं. प्रीतीश नंदी एक पत्रकार और मानवतावादी भी थे। उन्होंने 1990 के दशक में दूरदर्शन पर 'द प्रीतीश नंदी शो' नामक एक टॉक शो की मेजबानी भी की थी, जिसमें वे मशहूर हस्तियों का साक्षात्कार लेते थे. उनकी कंपनी ने हाल ही में वेब सीरीज 'फोर मोर शॉट्स प्लीज' और एंथोलॉजी सीरीज 'मॉडर्न लव मुंबई' का निर्माण किया था. वह टाइम्स ग्रुप में इलस्ट्रेटड वीकली पत्रिका के लम्बे समय तक और आखिरी संपादक रहे थे और इंडिपेंडेंट अखबार के भी. वह संडे ऑब्जर्वर के एडिटर भी रहे थे. और शिव सेना की तरफ से राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
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