09/02/2025 : दिल्ली पर 27 साल बाद भाजपा क़ाबिज़, अप्रासंगिकता की कगार पर आप, ट्रुडो के मुताबिक़ कनाडा पर क़ब्ज़े को लेकर ट्रम्प सीरियस, पाकिस्तान में अल्लाह और पतंग, चिप से लौटी लकवे के बाद ज़िंदगी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
उम्मीद है ‘हरकारा’ आपके मेन फोल्डर में ही जा रहा है, स्पैम में नहीं. एक बार देख कर तसल्ली कर लें.
आज की सुर्खियां | 9 फरवरी 2025
…तो “आप” 36 सीटें जीत जाती! केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अब 27 साल बाद दिल्ली में भी अपनी सरकार बनाने जा रही है. शनिवार को विधानसभा की सभी 70 सीटों के नतीजे आ गए, जिसमें भाजपा ने 48 सीटों पर विजय प्राप्त कर अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को ग्यारह साल की सत्ता से बाहर कर दिया है. आप को 22 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस इस बार भी अपना खाता नहीं खोल पाई है. खुद केजरीवाल और आप के बड़े नेता मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन, सोमनाथ भारती, सौरभ भारद्वाज और दिनेश पाठक को हार का सामना करना पड़ा है. मुख्यमंत्री आतिशी और गोपाल राय जरूर अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे हैं. भाजपा को पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले लगभग 9% और कांग्रेस को 2% वोट ज्यादा मिले हैं, वहीं आप के वोट में लगभग 10% की गिरावट दर्ज की गई है. भाजपा को आप की तुलना में सिर्फ 3.6% अधिक वोट मिले, लेकिन उसकी 2020 की 8 सीटें बढ़कर 48 पर पहुंच गईं. जबकि आम आदमी पार्टी को 40 सीटों का नुकसान हुआ. कांग्रेस के वोट प्रतिशत में जरूर इजाफा हुआ है, लेकिन उसके अधिकांश उम्मीदवार जमानत तक बचा पाने में सफल नहीं हो सके. बल्कि 14 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस उम्मीदवारों के कारण आम आदमी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. इस सूची में पहला नाम अरविंद केजरीवाल का है, जो भाजपा के प्रवेश वर्मा से लगभग उतने ही वोटों के अंतर से चुनाव हार गए, जितने वोट कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित को मिले. केजरीवाल की हार 4089 वोटों से हुई, और दीक्षित को 4568 वोट प्राप्त हुए. कहा जा सकता है कि यदि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे को न उतारती तो शायद केजरीवाल को हार का सामना नहीं करना पड़ता. मनीष सिसोदिया, सोमनाथ भारती, दुर्गेश पाठक और सौरभ भारद्वाज जैसे आप के बड़े नेताओं के साथ भी ऐसा ही हुआ.
“द हिंदू” के मुताबिक आप ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में खासा अच्छा प्रदर्शन किया, जहां सबसे ज्यादा गरीब लोगों की बस्तियां हैं. ऐसे इलाकों में उसने 48.5% वोट हासिल किए. इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने "अमीर" के रूप में वर्गीकृत सीटों पर 52.6% वोट हासिल किए, जो सभी वर्ग-आधारित श्रेणियों में पार्टी के लिए सबसे अधिक वोट शेयर है.
मीडिया की नज़र में दिल्ली के नतीजे : “द इंडियन एक्सप्रेस” ने लिखा है, “आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के लिए यह सबक है कि ‘मुफ़्त की विचारधारा’ के भरोसे एक पूर्णकालिक राजनीतिक दल नहीं बन सकते.”
“द इंडियन एक्सप्रेस” ने ही बताया है कि दिल्ली में आप की चुनावी आपदा हमें बताती है कि बीजेपी ‘आम आदमी’ को फिर से परिभाषित करने में कैसे सफल रही है.
“द हिंदू” के मुताबिक इस परिणाम से सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि मुफ्तखोरी की राजनीति अभी रहने वाली है (क्योंकि भाजपा ने भी कई बड़े-बड़े वादे किए हैं) और वास्तव में अब इसने अपनी कुछ विशेषताएं भी विकसित कर ली हैं.
“द टेलीग्राफ” ने बताया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सोशल मीडिया पर मीम की बाढ़ ला दी है, और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं लग रहा है. मसलन, बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव ने राहुल गांधी पर कटाक्ष करते हुए शुरुआत की. उन्होंने “X” पर पोस्ट किया, “राहुल गांधी को फिर से बीजेपी के लिए चुनाव जीतने पर बधाई! बहुत अच्छे.” एक यूज़र ने अंग्रेजी अभिनेता विल पोल्टर की भ्रमित दिखती हुई फोटो पोस्ट की, जिसके कैप्शन में लिखा था, “कांग्रेस, ‘भाजपा-आप’ से : क्या आप लोगों को सीटें मिल रही हैं?” ऐसा लगता है कि कांग्रेस को भी इतनी अदृश्यता की उम्मीद नहीं थी. अरविंद केजरीवाल और पीएम मोदी की एक तस्वीर खूब वायरल हुई. केजरीवाल कहते हैं, “देश में मोदी की कोई हवा नहीं है!” इस पर मोदी जवाब देते हैं, “अबे हवा है, मफलर उतार के देख तो पता चलेगा!” यूज़र ने इसे कैप्शन दिया, “ठंड का माहौल है. #दिल्लीइलेक्शन रिजल्ट्स.” एक मीम में मनीष सिसोदिया और आतिशी कहते हुए दिख रहे हैं, “हम दुखी थे”. इसके बाद केजरीवाल और ध्रुव राठी की एक फोटो है, जिसमें लिखा है, “लेकिन हमसे ज़्यादा दुखी दो और लोग थे.” चुनाव नतीजे को एक फोटो में समेटते हुए एक यूज़र ने इंडिया गेट के सामने ऑक्सीजन मास्क पहने, कमल के फूल लिए लोगों की तस्वीर पोस्ट की. कैप्शन? “#दिल्ली चुनाव परिणामों का सार. लोगों ने गैस चैंबर के खिलाफ वोट दिया. सिम्पल.”
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के नतीजों के बाद ‘आप’ को “सबसे बेईमान पार्टी” बताया, और यमुना को साफ करने, बुनियादी ढांचे में सुधार करने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के वादे के साथ दिल्ली को ‘आधुनिक शहर’ बनाने का संकल्प लिया. उधर दिल्ली के नतीजों को लेकर कांग्रेस की भूमिका पर सवाल उठाए जाने लगे हैं. कहा जा रहा है कि भाजपा की जीत में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ने अहम रोल अदा किया है. इससे इंडिया ब्लॉक और कांग्रेस के समक्ष नई चुनौतियां खड़ी होंगी.
मिल्कीपुर में भाजपा और इरोड में डीएमके जीती : दिल्ली विधानसभा के साथ ही शनिवार को दो अन्य उपचुनावों के परिणाम भी आए. इनमें यूपी की मिल्कीपुर विधानसभा सीट भाजपा ने जीत ली है. अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को भाजपा के चंद्रभानु पासवान ने 61 हजार वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया. वहीं तमिलनाडु की इरोड (पूर्व) सीट पर डीएमके के वीसी चंदिराकुमार ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी एनटीके की सीतालक्ष्मी को 91 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया.
कार्टून
विश्लेषण | राकेश कायस्थ
9 बिंदुओं में दिल्ली चुनावों का अर्थात
दिल्ली के नतीजों का विस्तृत विश्लेषण बाद में. फिलहाल समझने लायक कुछ मोटी बातें-
बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सिर्फ 2.5 से 3 प्रतिशत वोट का अंतर है- फिर सीटों का अंतर आधे से ज्यादा क्यों है. ये बात समझने के लिए इस चुनाव में कांग्रेस की भूमिका पर गौर करना ज़रूरी है.
कांग्रेस पिछले चुनाव में वेंटिलर पर थी. इस बार वेंटिलेटर हटा, लेकिन आईसीयू में अब भी है. यह कहा जा रहा था कि कांग्रेस दिल्ली के नतीजों पर उसी स्थिति में असर डाल पाएगी, जब कम से कम 10 फीसदी वोट ले. लेकिन सिर्फ साढ़े छह परसेंट वोट लेकर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया.
कांग्रेस ने सीधे-सीधे 19 सीटों के नतीजों पर असर डाला है. आम आदमी पार्टी अपनी 14 सीटें कांग्रेस की वजह से हारी है. अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, राखी बिड़लान, महेंद्र चौधरी और दुर्गेश पाठक जैसे बड़े आप नेता कांग्रेस की वजह से हार चुके हैं.
बीजेपी भी पांच सीटें कांग्रेस की वजह से हारी. इनमें कालकाजी में आतिशी के खिलाफ विधूड़ी की हार भी शामिल है. कस्तूरबा नगर और बादली जैसी सीटों को छोड़कर खुद कांग्रेस ने किसी भी सीट पर बहुत ज्यादा वोट नहीं लिये. लेकिन उसका प्रदर्शन बताता है कि अपनी सुस्ती के बावजूद वोटरों के समूह के बीच पार्टी जिंदा है और उसके लिए खोया जनाधार हासिल करने की संभावनाएं खुली हुई हैं.
यह दावा किया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक अंत की उल्टी गिनती शुरु हो गई है. 44 प्रतिशत वोट लाने वाली किसी पार्टी के बारे में ऐसा दावा करना बचकाना है. इतना जरूर है कि केजरीवाल का राजयोग खत्म हो चुका है और असली इम्तिहान अब शुरू होनेवाला है. असली चुनौती ये है कि बीजेपी के साम-दाम-दंड-भेद के सामने केजरीवाल अपनी पार्टी का बिखराव किस तरह रोकेंगे.
आम आदमी पार्टी से नाराजगी के बावजूद मुसलमानों ने उसे ठीक-ठाक मात्रा में वोट दिया है. मुस्तफाबाद और ओखला जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवार को कांग्रेस से तीन गुना ज्यादा वोट मिले हैं. दिल्ली ने बता दिया है कि ओवैसी बिहार में बीजेपी के भरपूर काम आनेवाले हैं.
इस चुनाव में कांग्रेस के लिए कई सबक हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दो ऐसे राजनीतिक दल हैं जो किसी भी हिसाब से एक साथ नहीं आ सकते. उनके बीच अधिकतम सहयोग उसी तरह हो सकता है, जिस तरह केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के बीच है. केजरीवाल ने हारना पसंद किया लेकिन कांग्रेस से हाथ मिलाकर अपनी जमीन खोने को तैयार नहीं हुए. ये बात कांग्रेस को समझनी पड़ेगी कि विपक्षी एकता को मजबूत करने का ठेका सिर्फ उसका नहीं है. खुद को मजबूत किये बिना इंडिया गठबंधन की मजबूती की बातें बेमानी हैं.
आम आदमी पार्टी जैसे विरोधियों के शीर्ष नेतृत्व में दलित और ओबीसी ढूंढ़ रहे राहुल गांधी का कनफ्यूजन और बढ़ेगा. इस चुनाव ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया, जिससे कांग्रेस ये दावा कर सके कि उसकी बहुजन राजनीति को पर्याप्त समर्थन मिल रहा है. गवर्नेस की अपनी विशेषज्ञता का दावा पीछे छोड़ चुकी कांग्रेस को चुनावी राजनीति को समग्रता से समझना होगा.
हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली के नतीजों ने बीजेपी के सारे कृत्यों को वैधता दे दी है. ईडी, इलेक्शन कमीशन और सीबीआई, इन सबके इस्तेमाल से विपक्ष को रौंदने की मुहिम अब और ज्यादा तेज होगी. लोकसभा चुनाव के बाद आत्मविश्वास खो चुके नरेंद्र मोदी अब ज्यादा आक्रमक ढंग से विरोधियों पर हमलावर होंगे और बहुत संभव है, आनेवाले महीनों में बहुत कुछ ऐसा देखने को मिलेगा, जिसकी कल्पना किसी ने ना की हो.
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं. यह वाली यहां से
'ट्रम्प सचमुच में कनाडा पर कब्जा करना चाहते हैं’ : न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने नेताओं के साथ एक वार्ता के दौरान कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कनाडा को संयुक्त राज्य का 51वां राज्य बनाने की टिप्पणियों के पीछे कनाडा के महत्वपूर्ण खनिज संसाधन हैं. ट्रूडो ने कहा, “वे जानते हैं कि हमारे पास कितने महत्वपूर्ण संसाधन हैं और वे उन पर कब्जा करना चाहते हैं.” ट्रूडो ने कहा कि ट्रम्प के लिए कनाडा को 51वां राज्य बनाने का विचार सिर्फ एक मज़ाक नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर और वास्तविक खतरा है. उन्होंने कहा कि कनाडा को इस मसले पर गंभीरता से सोचना होगा. इससे पहले, ट्रम्प ने कई बार कनाडा को संयुक्त राज्य अमेरिका का हिस्सा बनाने का विचार व्यक्त किया था और इसके लिए 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की भी योजना बनाई थी. सोमवार को, ट्रूडो और ट्रम्प ने कनाडा से आयात पर टैरिफ को 30 दिनों के लिए स्थगित करने का समझौता किया है.
बिना कारण बताए किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकती : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना कारण बताए अभियुक्तों की गिरफ़्तारी की जाती है तो वह अमान्य होती है और एक बार अमान्य घोषित होने के बाद गिरफ़्तार व्यक्ति को एक सेकंड के लिए भी हिरासत में नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसा खुलासा आरोपी का मौलिक अधिकार है. अपने आदेश में पीठ ने कई निर्देश और दिशा-निर्देश जारी किए, जिनका पालन पुलिस और देश भर की सभी अदालतों को ऐसी अमान्य गिरफ़्तारियों से निपटने के दौरान करना चाहिए. जस्टिस अभय एस ओक और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि यह गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने के समान होगा. पीठ ने यह भी कहा कि यदि गिरफ्तार आरोपी अनुच्छेद 22 (1) के उल्लंघन का आरोप लगाता है तो अनुपालन साबित करने की जिम्मेदारी हमेशा जांच अधिकारी या एजेंसी पर होगी. पीठ ने यह फैसला हरियाणा बनाम विहान कुमार के केस में आरोपी को मुक्त करने का आदेश देते हुए सुनाया.
इल्तिजा मुफ़्ती बोलीं- ‘मैं और मेरी मां (महबूबा) नज़रबंद : पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता इल्तिजा मुफ़्ती शनिवार को ट्वीट कर दावा किया कि उन्हें और उनकी मां महबूबा मुफ्ती को नजरबंद कर दिया गया है, क्योंकि महबूबा मुफ़्ती जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले के सोपोर का दौरा करने जा रही थीं. जहां बुधवार को सेना की गोलीबारी में एक ट्रक चालक वसीम मजीद मीर की मौत हो गई थी.
इसके आगे उन्होंने पुलिस प्रताड़ना की वजह से आत्महत्या करने वाले 25 वर्षीय युवक माखन दीन का जिक्र कर लिखा- "मैं आज माखन दीन के परिवार से मिलने के लिए कठुआ जाना चाहती थी, लेकिन मुझे बाहर निकलने की भी अनुमति नहीं दी जा रही है. चुनाव के बाद भी कश्मीर में कुछ नहीं बदला है. अब पीड़ितों के परिवारों को सांत्वना देना भी अपराध माना जा रहा है." सेना ने माखन दीन को आतंकवाद में शामिल होने के आरोप में पकड़ रखा था.
2 महीने में बांग्लादेश में हिंदुओं पर 76 हमले के मामले : विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने एक लिखित प्रश्न के उत्तर में लोकसभा को बताया कि 26 नवंबर 2024 से 25 जनवरी 2025 के बीच पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं को निशाना बनाकर कुल 76 हमले किए गए. भारत सरकार ने इस पर चिंता जताई है. सिंह ने बताया कि अगस्त 2024 से अब तक की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि 23 हिंदुओं की जान जा चुकी है और हिंसक घटनाओं में 152 मंदिरों को निशाना बनाया गया है. सिंह ने कहा, “9 दिसंबर, 2024 को विदेश सचिव की बांग्लादेश यात्रा के दौरान हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संबंध में भारत की चिंताओं से अवगत कराने के बाद बांग्लादेशी सरकार ने 10 दिसंबर, 2024 को घोषणा की कि अल्पसंख्यकों पर हमलों से संबंधित 88 मामलों के सिलसिले में 70 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा के लिए आवेदन की तिथि 18 तक बढ़ी : संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा 2025 के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि बढ़ा दी है. आयोग ने अपनी वेबसाइट पर जारी एक नोट में कहा है कि सिविल सेवा (प्रारंभिक)-2025 और भारतीय वन सेवा (प्रारंभिक)-2025 परीक्षाओं के लिए पंजीकरण की अंतिम तिथि 18.02.2025 (शाम 6 बजे) तक बढ़ा दी गई है. इससे पहले, परीक्षा के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की अंतिम तिथि 11 फरवरी, 2025 शाम 6 बजे तक थी.
ओडिशा मंत्रिमंडल ने शनिवार 8 फरवरी को राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन योजना को मंजूरी दे दी. पेंशन योजना 1 अप्रैल, 2025 से लागू होगी.
टेक्नोलॉजी
इलोन मस्क की चिप से लकवे के बाद उसका शरीर काम तो करने लगा, पर कई सवाल भी पैदा हो गये हैं
2016 में एक हादसे ने नोलैंड आर्बॉ को चारों तरफ से लकवाग्रस्त बना दिया. लेकिन आज, इलोन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक के दिमाग में लगाए गए चिप की बदौलत वह सिर्फ़ *सोचकर* कंप्यूटर चला रहा है, शतरंज खेल रहा है, और वीडियो गेम्स जीत रहा है! यह कहानी है विज्ञान और इंसानी हौसले की, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाती है: क्या यह तकनीक लाखों लोगों की ज़िंदगी बदल देगी या फिर बिलियनेयर्स हमारे दिमाग तक पहुंच बना लेंगे?
द गार्डियन के लिए जेनी क्लीमन ने इस पर लम्बा लेख लिखा है. नोलैंड के दिमाग में लगा "एन1 चिप" उसके *न्यूरॉन्स* (दिमागी कोशिकाओं) के सिग्नल्स पकड़ता है और उन्हें कंप्यूटर को भेजता है. जनवरी 2024 में हुई सर्जरी के बाद, नोलैंड ने सिर्फ़ 2 हफ्तों में ही कर्सर को *मन से हिलाना* सीख लिया. अब वह टाइप करता है, गेम खेलता है, और यहां तक कि टेस्ला कार को कंट्रोल करने का सपना देखता है!
नोलैंड बताते हैं: *"पहले मैं मुंह में डंडा पकड़कर आईपैड चलाता था. अब सोचते ही कर्सर हिलता है! शतरंज में मैंने न्यूरालिंक के इंजीनियर्स को हरा दिया." उनकी मां मिया कहती हैं: *"यह देखकर रोमांच होता है कि वह फिर से 'जीवित' महसूस कर रहा है." नोलैंड के मुताबिक "मैंने ऐसा महसूस किया जैसे मेरे पास सुपरपावर आ गया हो!"
लेकिन सब कुछ इतना खुशनुमा भी नहीं. यह तकनीक डराती भी है! नोलैंड मानते हैं कि कोई इस चिप के डेटा से उनके विचार "चुरा" सकता है. उनकी प्राइवेसी को ख़तरा है. उधर इलोन मस्क का बड़ा सपना है कि यह चिप भविष्य में दिमाग में *जानकारी डालने* में भी सक्षम हो—जैसे, अंधों को दिखाना या याददाश्त बढ़ाना. पर क्या यह *"माइंड कंट्रोल"* की शुरुआत नहीं? अभी यह चिप ख़ासा महंगा है. क्या यह समाज में और असमानता लाएगा?
नोलैंड का कहना है, "ज़िंदगी में इतना इंसाफ नहीं है…लेकिन मैं इस तकनीक से उन लाखों लोगों की मदद करना चाहता हूं जो मेरी तरह लकवाग्रस्त हैं." 6 साल बाद जब यह प्रयोग खत्म होगा, न्यूरालिंक उनका चिप निकाल सकती है. कई सवाल बाकी है: क्या यह चिप इंसानों को "सुपरह्यूमन" बनाएगी? या फिर यह डरावने भविष्य की शुरुआत है, जहां बिलियनेयर्स हमारे दिमाग तक पहुंच सकेंगे? नोलैंड कहते हैं, "मैं इस चिप को 'ईव' नाम देता हूं—जैसे आदम और हव्वा की कहानी. शायद हम इंसानियत को नई दिशा दें...या श्राप!"
पाकिस्तान में ईशनिंदा का फैलता जाल, कसता शिकंजा
2024 में शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं का एक समूह एक चुनौतीपूर्ण मिशन पर निकला, जो था पाकिस्तान में नफरत भरे भाषण और ईशनिंदा (ब्लासफेमी) से संबंधित हिंसा के मामलों को टटोलने-खंगालने का. अब इसी रिसर्च से निकली बातों को 'द पोलिस प्रोजेक्ट' के लिए ऐना ने अपने एक लेख में लिखा है. अनुसंधान टीम के एक सदस्य ने ऐना से कहा कि उनका काम ईशनिंदा पर पोस्टरों और नारों का दस्तावेज़ीकरण करना था, न कि लोगों से बात करने का. हालांकि, जब उन्होंने लोगों से बात की, तो उन्हें यह दिखावा करना पड़ा कि वे ईशनिंदा कानूनों का समर्थन करते हैं. “मैं एक दुकान में था, और बिना अनुमति के एक पोस्टर की तस्वीर ले ली,” उन्होंने एक घटना को याद करते हुए कहा. उस पोस्टर में लिखा था कि जो कोई भी पैगंबर मुहम्मद का “अपमान” करेगा, उसे मारा या उसे सजा दी जाए. “दुकान के मालिक ने मुझे पकड़ लिया और पूछा : तुम क्या कर रहे हो? तो मुझे कहना पड़ा कि मुझे यह [पोस्टर] अच्छा लगा.”
एक और घटना में जब वे क्षेत्रीय दस्तावेज़ीकरण के दौरान एक मस्जिद में थे, तो इमाम ने उनसे पूछा कि वे क्या कर रहे थे. उन्होंने अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अहमदी समुदाय के खिलाफ झूठ बोला. “मैंने कहा कि अहमदी समुदाय इस्लाम के खिलाफ है और इसके बाद, आसपास के सभी लोग मेरी ओर से 180 डिग्री मुड़ गए. उन्होंने मुझे अपने बहुत से पेंफलेट भी दिए,” उन्होंने घटना का वर्णन किया.
ईशनिंदा का विचार, जिसे उर्दू में 'गुस्ताख़ी' कहा जाता है, मुस्लिम-पाकिस्तानी पहचान और समाज में गहरे रूप से समाहित है. पाकिस्तान के कानून इसे और मजबूत करते हैं. पाकिस्तान के "धर्म से संबंधित अपराधों" के कानून, जिन्हें आमतौर पर "ईशनिंदा कानून" कहा जाता है, कई अपराधों और उनके दंड को निर्धारित करते हैं. क़ुरआन की "अपवित्रता" से लेकर "इरादतन और जानबूझकर" धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने और पैगंबर मोहम्मद के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने तक. इन कानूनों में अपवित्रता की अस्पष्ट परिभाषा एक महत्वपूर्ण चुनौती उत्पन्न करती है, यहां तक कि इन कानूनों की चर्चा या आलोचना भी ईशनिंदा के रूप में व्याख्यायित की जा सकती है. इस अस्पष्टता ने कई नागरिकों को कानून को अपने हाथ में लेने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिसके परिणामस्वरूप ईशनिंदा और कानून के आलोचकों के खिलाफ़ बढ़ती हिंसा हो रही है. हालांकि ईशनिंदा से संबंधित मामलों और हिंसा के बारे में आधिकारिक आंकड़ों की कमी है, क्योंकि कई मामले पुलिस में दर्ज नहीं होते हैं, उपलब्ध स्रोतों से संकेत मिलता है कि ये मामले केवल बढ़ रहे हैं, और इन कानूनों का उपयोग राजनीतिक और सामाजिक प्रतिशोध करने के लिए किया जा रहा है.
नफरत भरे भाषण और भड़काऊ पोस्टरों के दस्तावेज़ीकरण के दौरान, शोधकर्ताओं ने देखा कि ईशनिंदा के आरोपों ने सामाजिक नियंत्रण और उत्पीड़न के उपकरण के रूप में काम करना शुरू कर दिया है. अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने 2023 तक पाकिस्तान में कम से कम 53 लोगों को ईशनिंदा आरोपों में हिरासत में होने का उल्लेख किया. हालांकि, रिपोर्ट बताती है कि ये आंकड़े केवल सतह को छूते हैं कि ये कानून कैसे सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करते हैं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्पीड़न को कैसे बढ़ावा देते हैं. पाकिस्तान में ईशनिंदा कानूनों के तहत 1947 से 2021 तक कम से कम 89 लिचिंग घटनाओं को रिकॉर्ड किया गया था.
ईशनिंदा कानून पिछले साल अगस्त में एक केंद्रीय मुद्दे के रूप में फिर से उभरे, जब धार्मिक गुस्से ने न्यायपालिका को मुबारक सानी मामले पर पुनः विचार करने के लिए प्रेरित किया. सानी, जो अहमदी समुदाय से संबंधित हैं, उन्हें फरवरी 2024 में इस आरोप में बरी कर दिया गया था कि उन्होंने पंजाब होली क़ुरआन (प्रिंटिंग और रिकॉर्डिंग) संशोधन अधिनियम 2021 के तहत क़ुरआन और उसके अंशों की अनधिकृत प्रिंटिंग, रिकॉर्डिंग और वितरण किया था, जो शारीरिक और डिजिटल रूप से दोनों को अपराध मानता है.
पाकिस्तान में लगभग 500,000 की संख्या वाला अहमदी समुदाय एक धार्मिक अल्पसंख्यक है, जो खुद को मुस्लिम मानता है, लेकिन ईशनिंदा कानून उन्हें खुद को मुस्लिम कहने से रोकते हैं और उनके विश्वासों के कुछ पहलुओं का पालन करने से भी रोकते हैं. पाकिस्तान में सभी अल्पसंख्यक समुदायों को किसी न किसी प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ता है, अहमदी समुदाय खासतौर पर ख़तरे में रहता है, क्योंकि कई सुन्नी समूह उन्हें इस्लाम में बदलाव करने वाला मानते हैं, जिसे वे ख़तरा मानते हैं.
संविधान ने उन्हें 1974 से गैर-मुस्लिम करार दिया है और 1984 के कानून के तहत उन्हें इस्लामिक विश्वास का दावा करने से भी मना किया गया है. अन्य देशों की तुलना में वे अपनी पूजा स्थलों को मस्जिद कहने, अज़ान देने या मक्का की हज यात्रा करने का अधिकार नहीं रखते. ईशनिंदा कानून मुख्य रूप से अहमदियों को निशाना बनाते हैं, लेकिन अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ भी इसका उपयोग किया जाता है ताकि "इस्लाम" को संरक्षित किया जा सके.
सानी का मामला पाकिस्तान के कई मामलों में से एक है, जहाँ अहमदियों पर पैगंबर मोहम्मद या क़ुरआन का अपमान करने का आरोप लगाया गया और उन्हें लंबी कानूनी प्रक्रिया का सामना करना पड़ा, यहां तक कि भीड़ हिंसा का सामना तक करना पड़ा.
कई एक्टिविस्ट और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक ईशनिंदा कानूनों के बढ़ते उपयोग और पाकिस्तान समाज पर इन धार्मिक नेताओं के नियंत्रण की आलोचना कर रहे हैं. बढ़ते दबाव ने विशेष रूप से अल्पसंख्यक समूहों के बीच डर पैदा कर दिया है. अमीर महमूद, पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के प्रवक्ता, ने यह बताया कि लगभग कोई भी वकील अब इन मामलों का प्रतिनिधित्व करना नहीं चाहता क्योंकि वे इसके साथ जुड़ीं परिणामों से डरते हैं. महमूद ने कहा यह सिर्फ अल्पसंख्यकों के साथ ही नहीं हो रहा है, बल्कि "अब कोई भी ख़तरे से नहीं बचा है, अब हर किसी को हर किसी से ख़तरा है."
सितंबर में, उनके शब्द सही साबित हुए, जब मुफ़्ती तारिक मसूद को यह कहने के लिए कई दिनों तक माफी मांगनी पड़ी कि क़ुरआन में व्याकरण संबंधी गलतियां हो सकती हैं. यह स्पष्ट करने के बावजूद कि वह सिर्फ धारणाओं की बात कर रहे थे, मसूद, जो एक प्रमुख मौलवी और धार्मिक नेता हैं, उन्हें गंभीर धमकियां मिल रही थीं और उन्होंने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें डर है कि उनके साथ कुछ हो सकता है.
पतंगबाजी पाकिस्तानी पंजाब में आपराधिक घोषित
पाकिस्तान के सबसे आबाद पंजाब सूबे ने वसंत महोत्सव से पहले पतंगबाजी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है, जो वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है. पंजाब प्रांत ने नए जुर्माने में अब पतंग उड़ाने वालों के साथ-साथ पतंग बनाने वालों और परिवहन करने वालों पर भी कार्रवाई की बात कही है.
कई पतंगबाजी समूहों ने इस प्रतिबंध का विरोध किया है. रावलपिंडी पतंगबाजी संघ ने 13 और 14 फरवरी को वसंत मनाने की योजना बनाई है. कुछ मीडिया संगठनों ने सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है, जैसे कि ट्रिब्यून अखबार ने इसे "सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाला एक साहसिक लेकिन आवश्यक कदम" कहा है. हालांकि, कई लोग इसे सांस्कृतिक धरोहर पर हमले के रूप में देख रहे हैं.
पंजाब विधानसभा ने पिछले महीने पंजाब पतंगबाजी प्रतिबंध (संशोधन) अधिनियम, 2024 को आधिकारिक रूप से पारित किया, जिसमें पतंग उड़ाने वालों, निर्माताओं, परिवहनकर्ताओं और विक्रेताओं के लिए अधिक सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है. यह कानून 2007 के पतंगबाजी प्रतिबंध अधिनियम में संशोधन करता है और अब पतंग उड़ाना एक गैर-जमानती अपराध बन गया है. पहले के कानून के तहत, पतंग उड़ाने वालों को तीन साल तक की सजा या 100,000 रुपये (लगभग 360 डॉलर) का जुर्माना या दोनों हो सकते थे. अब, उन पर पांच साल तक की सजा या 20 लाख रुपये (लगभग 7,200 डॉलर) का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं. अगर जुर्माना नहीं भरा जाता है, तो एक अतिरिक्त वर्ष की सजा जुड़ सकती है. पतंग बनाने वाले और परिवहन करने वालों को पांच से सात साल तक की सजा या 500,000 रुपये (लगभग 1,800 डॉलर) से लेकर पांच मिलियन रुपये (लगभग 18,000 डॉलर) तक का जुर्माना हो सकता है, और जुर्माना न भरने पर दो साल की अतिरिक्त सजा हो सकती है.
पतंगबाजी प्रतियोगिताएं, जिनमें प्रतिभागी एक-दूसरे की पतंगों को काटने की कोशिश करते हैं, अक्सर भीड़-भाड़ वाले इलाकों में होती हैं. कांच-कोटेड धागे या धातु-कोटेड धागों से पतंग उड़ाने से दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें पतंग उड़ाने वाले लोग इमारतों से गिरकर मर जाते हैं या धागे से चोट लगने से अन्य लोग मारे जाते हैं. इसके अलावा, अगर धागा बिजली के तारों से संपर्क करता है, तो इससे करंट लग सकता है, शॉर्ट सर्किट हो सकता है या आग लग सकती है.
183 फिलीस्तीनी रिहा : ‘अलजजीरा’ की खबर है कि इज़राइल ने 183 फिलीस्तीनियों को जेल से रिहा कर दिया है और बदले में गाजा में तीन इज़राइली बंदियों को मुक्त किया गया है. यह अदला-बदली इज़राइल और हमास के बीच युद्धविराम समझौते के तहत पांचवीं बार हुआ है. रिहा किए गए फिलीस्तीनियों में से सात को तुरंत उपचार के लिए अस्पताल भेजा गया, जबकि अन्य ने इज़राइली जेलों में भयानक परिस्थितियों का वर्णन किया है. इनमें कई के शरीर पर टॉर्चर करने के जख्म चमक रहे थे. इधर, 'द गार्डियन' की खबर है कि अमेरिका ने इजरायल को डोनाल्ड ट्रम्प और नेतन्याहू की मुलाकात के बाद 6,212 करोड़ रुपये युद्ध सामग्री के लिए दिए हैं, जो निश्चित रूप से शांति के किसी काम तो नहीं ही आने वाला है. अमेरिकी विदेश विभाग ने इज़राइल को 5,666 करोड़ रुपये के बम, गाइडेंस किट्स और फ्यूज़ की बिक्री की मंजूरी दी है. इसके अतिरिक्त इसमें 546 करोड़ रुपये के हेलफायर मिसाइल्स भी शामिल हैं.
चलते–चलते :
उर्दू की दुर्लभ क़िताबें और पांडुलिपियाँ, तुलसी के राम से रूमी की मसनवी तक
कबीकाज फाउंडेशन और डेक्कन आर्काइव्स फाउंडेशन ने कला, साहित्य, संस्कृति और इतिहास में रुचि रखने वाले पुस्तक प्रेमियों के लिए एक विरला अड्डा उपलब्ध कराया, जिसमें साहित्यिक खजानों के दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों का चुनिंदा संग्रह को इकट्ठा किया गया था.
शुक्रवार 7 फरवरी को हैदराबाद के जुबली हिल्स स्थित थ्राइवसम कैफे एंड कम्युनिटी में आयोजित प्रदर्शनी के रेंज का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कि इसमें फारसी-अरबी लिपि में 1913 में प्रकाशित तुलसी दास की ‘रामायण’, नवल किशोर प्रकाशन के 1953 में प्रकाशित भारतीय लोककथाओं का संग्रह ‘सिंहासन बत्तीसी’ तो शामिल थे ही, इसके अलावा विलुप्त हो चुकी आजम स्टीम प्रेस हैदराबाद से प्रकाशित मौलाना रूमी की 100 साल पुरानी मसनवी ‘मिरात-उल-मसनवी’ और सादी शिराज़ी की 150 साल पुरानी ‘मसनवी-ए-बुस्तान’ भी शामिल थी.
प्रदर्शनी में सभी किताबों के शुरुआती संस्करण लगाए गए थे, जो अब विलुप्त हो चुके हैं. इस प्रदर्शनी में 1893 में मिस्र में प्रकाशित ऑटोमन-युग का अरबी संस्करण अलिफ़ लैला व लैला (द अरेबियन नाइट्स) भी मौजूद था.
इस गैलरी में 1911 में हैदराबाद में प्रकाशित रुक़ात-ए-आलमगीरी (मुगल बादशाह औरंगजेब के पत्रों का एक संग्रह), जिसमें आसफ जाही वंश के पहले आसफ जाह का उल्लेख है, भी मौजूद था तो वहीं कानून के जानकारों के लिए 1893 में प्रकाशित जस्टिस सैयद महमूद का 1872 के साक्ष्य अधिनियम का उर्दू अनुवाद भी था.
एक्जीबिशन में 1900 के दशक के मध्य का एक उर्दू टाइपराइटर (रेमिंगटन पोर्टेबल 5) की दुर्लभ कलाकृति, जो टाइपराइटिंग तकनीक में उर्दू लिपि के विकास को उजागर करती है, भी रखी गई थी. इसके अलावा कई दुर्लभ उर्दू शब्दकोष समेत ऐसी ही अनमोल पांडुलिपियां, पुस्तकें आदि मौजूद थी. फाउंडेशन ने ‘दुर्लभ पुस्तकों’ से कलाकृति और शिलालेखों वाले पोस्टकार्ड की एक शृंखला भी रखी थी, जिन्हें इतिहास, संस्कृति और साहित्य के संरक्षण के जुनूनी खरीद सकते थे. यह प्रदर्शनी हैदराबाद के प्रसिद्ध कवि रियासत अली ताज (1930-1999) की जयंती के मौके पर आयोजित की गई थी.
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