09/08/2025: तो मोदी की वोट चोरी साबित कर देंगे | मुख्यधारा के अखबारों की टांगों में दुम | तेजस्वी का वोटर कार्ड 'फर्जी' करार | ट्रम्प ने फिर धमकाया | हिंदू आतंकवाद की असलियत
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
अगर डेटा मिल जाए तो साबित कर देंगे, वोटों की चोरी से मोदी प्रधानमंत्री बने : राहुल गांधी
चुनाव आयोग खुद कुछ नहीं कह रहा, "सूत्रों" के हवाले से कहलवा रहा है
मैंने संसद में संविधान की शपथ ली है, चुनाव आयोग ने वेबसाइट ही बंद कर दी
चुनाव आयोग के बचाव में भाजपा नेता बोल रहे हैं, और आयोग मौन है
मतदाता सूची का डिजिटल डेटा क्यों नहीं देता चुनाव आयोग?
जब टांगों में दुम दबा ली मुख्यधारा के अखबारों ने सिवा हिंदू और भास्कर के
तेजस्वी का वोटर कार्ड 'फर्जी' करार , 16 अगस्त तक जमा करने का निर्देश
भारत से तनाव के बीच ट्रम्प को भाया पाकिस्तान
टैरिफ ! ट्रम्प ने फिर धमकाया
भारत-पाक शांति का श्रेय ट्रम्प को: मार्को रूबियो का दावा
उत्तराखंड: नौ वर्षों में 18,464 आपदाएं
‘हम वित्त मंत्री का तबादला नहीं कर सकते. हमें... आपका तबादला करना होगा’
डेटा मिल जाए तो साबित कर देंगे, वोटों की चोरी से मोदी प्रधानमंत्री बने : राहुल ने फिर चुनौती दी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में आयोजित कांग्रेस की 'वोट अधिकार रैली' में कहा कि नरेंद्र मोदी तीसरी बार 25 सीट के मार्जिन से प्रधानमंत्री बने हैं. 25 सीट ऐसी हैं, जिन्हें भाजपा ने 35 हजार या कम वोट से जीता. उन्होंने दावा किया, “अगर हमें इलेक्ट्रानिक डेटा मिल जाए तो हम साबित कर देंगे कि मोदी वोटों की चोरी से प्रधानमंत्री बने हैं.”
लोकसभा में विपक्ष के नेता ने कहा- चुनाव आयोग को पिछले 10 साल की देश की सारी इलेक्ट्रॉनिक वोटर लिस्ट और वीडियोग्राफी देनी चाहिए. ये सब नहीं देगा तो मतलब यह अपराध है और वह भाजपा को चुनाव चोरी करने दे रहा है. पूरे देश को चुनाव आयोग से मतदाताओं का डेटा मांगना चाहिए. उनके साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी रैली में शामिल हुए.
राहुल ने कहा कि कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 1,00,250 फर्जी वोट बनाए गए, जिससे भाजपा को फायदा हुआ. भाजपा-चुनाव आयोग की मिलीभगत से यह धांधली हुई, जिसने मोदी को तीसरी बार सत्ता में पहुंचाया. कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा में 6.50 लाख वोट हैं. उसमें से 1 लाख 250 वोट चोरी किए गए, मतलब 6 में से 1 वोट चोरी किया. पांच तरीके से चोरी की गई. डुप्लीकेट वोटर मतलब एक मतदाता ने कई बार वोट किया और 5-6 पोलिंग बूथ में वोट डाला. इन लोगों का कोई पता भी नहीं है. करीब 40 हजार ऐसे वोट हैं. एक पते पर कई मतदाता हैं. एक बेडरूम के घर में 40-50 वोटर दिखा दिए. जब हम उन्हें ढूंढने गए तो वहां कोई नहीं था. उस घर का मालिक बीजेपी नेता निकला. उन्होंने कर्नाटक सरकार से महादेवपुरा में हुए फर्जीवाड़े की जांच कराने के लिए कहा.
उन्होंने कहा कि मेरे पास सबूत है कि लोकसभा में भी चोरी की गई. कर्नाटक का डेटा निकालने में हमें 6 महीने लगे, 1 वोट को लाखों वोटर से चेक किया. हर एक नाम को चेक किया, चुनाव आयोग का पूरा डेटा हमारे लिए सबूत है. जहां फार्म 6 का दुरुपयोग किया गया. फार्म-6 नए वोटर्स के लिए होता है, लेकिन 34 हजार ऐसे मतदाता हैं, जिनकी उम्र 60, 70 और 80 साल है. डुप्लीकेट वोटर्स ने पहले कर्नाटक में वोट दिया. इसके बाद महाराष्ट्र और यूपी में भी वोट दिया.
चुनाव आयोग खुद कुछ नहीं कह रहा, "सूत्रों" के हवाले से कहलवा रहा है
इधर, इस मामले में चुनाव आयोग का रवैया भी सवालों के घेरे में है. वह राहुल गांधी के आरोपों के बारे में खुद आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कह रहा है, बल्कि मीडिया के जरिये "सूत्रों" के हवाले से अपनी बात कहलवा रहा है. मसलन, शुक्रवार को न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने "सूत्रों" के हवाले से यह बताया कि "राहुल के आरोपों पर चुनाव आयोग क्या कह रहा है?" एजेंसी के अनुसार, "आयोग का कहना है कि राहुल गांधी अगर वोट चोरी के अपने दावे को सही मानते हैं तो हलफनामे पर हस्ताक्षर करके दें. और, यदि उन्हें अपने दावों पर भरोसा नहीं है तो देश से माफी मांगें."
संसद में संविधान की शपथ ली है, चुनाव आयोग ने वेबसाइट ही बंद कर दी
राहुल ने कर्नाटक रैली में ही चुनाव आयोग की "सूत्रों" के हवाले से आई मांग का जवाब दिया. कहा- चुनाव आयोग मुझसे हलफनामा मांगता है. वो कहता है कि मुझे शपथ लेनी होगी. मैंने संसद में संविधान की शपथ ली है. राहुल ने यह भी कहा- आज जब देश की जनता हमारे डेटा को लेकर सवाल पूछ रही है तो चुनाव आयोग ने वेबसाइट ही बंद कर दी. चुनाव आयोग जानता है कि जनता उनसे सवाल पूछने लगी तो उनका पूरा ढांचा ढह जाएगा. हालांकि, चुनाव आयोग ने राहुल के वेबसाइट बंद करने के दावे को खारिज कर दिया.
प्रियंका बोलीं- चुनाव आयोग जांच के बजाय हलफनामा मांग रहा
प्रियंका गांधी ने कहा- राहुल गांधी ने वोट चोरी पर बड़ा खुलासा किया है, जिसकी जांच होनी चाहिए. लेकिन, जांच करने के बजाय, वो हलफनामा मांग रहा है. प्रियंका गांधी ने कहा, "समझिए, जो शपथपत्र वे मांग रहे हैं, वो एक ऐसे कानून के तहत है जिसमें आपको 30 दिनों के भीतर याचिका देनी होती है, वरना कुछ नहीं होता. तो वे शपथपत्र क्यों मांग रहे हैं? इतना बड़ा खुलासा हुआ है. अगर यह अनजाने में हुआ है तो इसकी जांच होनी चाहिए." भाजपा की सरकार विपक्ष पर ईडी, सीबीआई लगाकर तमाम जांच कर रही है तो यहां नाक के नीचे हुए पूरे कांड की जांच क्यों नहीं हो रही? इस पूरे मामले में भाजपा और चुनाव आयोग के जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि गड़बड़ी है.
चुनाव आयोग के बचाव में भाजपा नेता बोल रहे हैं, और आयोग मौन है
यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि एक तरफ चुनाव आयोग स्वयं आधिकारिक तौर पर राहुल गांधी के "वोट चोरी" के आरोप पर मौन है, वहीं भाजपा के नेता उसके बचाव में खुल कर बोल रहे हैं और राहुल गांधी पर पलटवार कर रहे हैं. इसीलिए प्रियंका गांधी को इस मामले में "गड़बड़" दिखाई दे रही है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल गांधी के "वोट चोरी" के आरोपों के बजाय बिहार में किये जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष पर निशाना साधा. कहा-कांग्रेस और राजद, वोट बैंक की राजनीति के लिए "घुसपैठियों का बचाव" कर रहे हैं. शाह ने कहा, “राहुल गांधी को यह वोट बैंक की राजनीति बंद कर देनी चाहिए.” उन्होंने दावा किया, “मतदाता सूची का शुद्धिकरण पहली बार नहीं हो रहा है, आपके परनाना (पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू) ने इसकी शुरुआत की थी. चूंकि आप बार-बार चुनाव हार रहे हैं, इसलिए बिहार चुनाव में हार को लेकर आप पहले से ही बहाने बना रहे हैं.” शाह ने आगे कहा, “चुनाव आयोग ने मसौदा सूची जारी की, लेकिन कांग्रेस या राजद ने एक भी आपत्ति दर्ज नहीं की. तो आखिर आप किसका बचाव कर रहे हैं? वे लोग जो बांग्लादेश से आते हैं और बिहार के युवाओं की नौकरियां ले जाते हैं?"
मतदाता सूची का डिजिटल डेटा क्यों नहीं देता चुनाव आयोग?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग से मांग की है कि वो मतदाता सूची का डिजिटल डेटा दे. लेकिन वह देना नहीं चाहता. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(एडीआर) के सह- संस्थापक जगदीप छोकर का कहना है, "जब पीडीएफ के रूप में मतदाता सूची देते वक्त मतदाताओं की निजता का उल्लंघन नहीं होता तो उसी सूची को डिजिटल फॉर्म में देने से उल्लंघन कैसे हो जाएगा? ये बात मुझे समझ नहीं आती." वे कहते हैं, इसमें प्राइवेसी की बात ही नहीं है. चुनाव आयोग बस देना नहीं चाहता."
मुख्यधारा का मीडिया
जब टांगों में दुम दबा ली मुख्यधारा के अखबारों ने सिवा हिंदू और भास्कर के
"न्यूज़ लॉन्ड्री" के मुताबिक, विपक्ष के नेता राहुल गांधी चुनाव आयोग पर "आपराधिक धोखाधड़ी" का आरोप लगाते हैं और इसके समर्थन में तथाकथित सबूत प्रस्तुत करते हैं, लेकिन चुनाव आयोग जांच करने के बजाय केवल एक हलफनामा मांगता है — और फिर भी यह कहानी अखबारों के पहले पेज पर नहीं आती है — तो यह लोकतंत्र की स्थिति के बारे में क्या बताता है? राहुल गांधी ने कहा कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर "चुनाव चोरी" कर रहा है. यह पहली बार नहीं था जब गांधी ने ऐसे आरोप लगाए, लेकिन पहली बार उन्होंने इस तरह के "सबूत" पेश किए.
सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले हिंदी अखबार “दैनिक जागरण” ने इस खबर को पहले पेज पर भी नहीं रखा. अंग्रेज़ी में केवल "द हिंदू" ने इसे अपने पहले पेज की मुख्य खबर बनाया. किसी भी हिंदी या अंग्रेज़ी अखबार की संपादकीय टीम ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. गांधी के चुनाव चोरी के आरोप लगाने के बावजूद, मीडिया का ध्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यह कहने पर था कि वह किसानों की रक्षा के लिए "व्यक्तिगत कीमत चुकाने को तैयार" हैं.
"द टाइम्स ऑफ इंडिया" ने गांधी के आरोप को अपने पहले पेज पर तीन कॉलम की तीसरी मुख्य खबर के रूप में छापा. इसके शीर्षक थे — "राहुल का 'चुनावी धोखाधड़ी का सबूत' का दावा; चुनाव आयोग ने कहा 'हलफनामा लेकर आएं'." खबर में कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा के मुख्य चुनाव अधिकारियों के पत्र का हवाला भी दिया गया था, जिसमें चेतावनी थी कि अगर गांधी के आरोप झूठे साबित होते हैं तो उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
कई अख़बारों की तरह "द इंडियन एक्सप्रेस" में भी प्रमुख खबर भारत-अमेरिका टैरिफ विवाद पर थी. गांधी के आरोप को दूसरे पेज पर दो कॉलम की दूसरी मुख्य खबर के रूप में छापा गया, जिसका शीर्षक था — "कर्नाटक के 1 विधानसभा क्षेत्र में 1 लाख वोट चोरी: राहुल का चुनाव आयोग पर आरोप." इसके साथ साथ नकली या अमान्य पते और एक पते पर भारी मात्रा में वोटों के बारे में भी जानकारी दी गई.
"द हिंदू" ने आरोप को मुख्य खबर के रूप में छापा, जिसमें विस्तृत कवरेज दी गई. सात-कॉलम के आधे पृष्ठ की इस मुख्य खबर की हेडलाइन थी—'चुनाव चुराया गया, राहुल; चुनाव आयोग ने सबूत मांगे'. तीन उपशीर्षकों में गांधी के आरोपों का विवरण था, जैसे—डुप्लीकेट मतदाता, फर्जी पते, फॉर्म-6 का दुरुपयोग और महादेवपुर विधानसभा सीट में एक लाख 'फर्जी मतदाता' बनाए जाने का आरोप. पीएम मोदी के 'किसान प्राथमिकता हैं' वाले बयान को द हिंदू ने अपनी पहले पन्ने पर तीन कॉलम की प्रमुख खबर के रूप में प्रकाशित किया.
"हिंदुस्तान टाइम्स" ने पीएम के बढ़ते अमेरिकी शुल्कों के बीच किसानों की सुरक्षा पर दिए गए बयान को प्रमुखता दी. गांधी के 'मतदाता धोखाधड़ी' के आरोप को दो कॉलम की छोटी खबर और उसके साथ दो कॉलम की तस्वीर के रूप में प्रकाशित किया, जिसकी हेडलाइन थी—'राहुल ने कर्नाटक में लोकसभा मतदाता सूची में धोखाधड़ी का आरोप लगाया.'
"द टेलीग्राफ" ने गांधी के 'मतदाता धोखाधड़ी' की खबर को अपने पहले पृष्ठ पर नहीं छापा, लेकिन इसे मुख्य पृष्ठ के मास्टहेड पर एक पॉइंटर के रूप में प्रमुखता दी. हेडलाइन थी—‘वोट एटम बम: 6.5 लाख मतदाताओं में 1 लाख फर्जी मतदाता: राहुल.’
हिंदी अखबार
दैनिक जागरण ने इस खबर को अंदर के पृष्ठ के निचले हिस्से में रखा और गांधी व चुनाव आयोग दोनों को समान महत्व दिया. अन्य अखबार जैसे दैनिक भास्कर, जनसत्ता और हिन्दुस्तान ने इस खबर को अपनी फ्रंट पेज पर जगह दी. भास्कर में यह पहली पृष्ठ की मुख्य खबर बनी, जबकि हिन्दुस्तान में इसे पृष्ठ 3 पर मुख्य खबर के रूप में प्रकाशित किया गया.
चुनाव आयोग ने तेजस्वी के वोटर कार्ड को 'फर्जी' करार दिया, 16 अगस्त तक जमा करने का निर्देश
द हिंदू की रिपोर्ट है कि भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव द्वारा 2 अगस्त को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिखाया गया EPIC कार्ड (वोटर आईडी) फर्जी था. दीघा विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) ने यादव को एक पत्र भेजकर पूरी जांच के लिए EPIC कार्ड सौंपने को कहा है. इसकी अंतिम समय सीमा 16 अगस्त शाम 5 बजे तक है.
तेजस्वी यादव ने 1 अगस्त को मसौदा मतदाता सूची प्रकाशित होने के एक दिन बाद आरोप लगाया था कि उनका नाम सूची से गायब है और उन्होंने अपना EPIC कार्ड दिखाया था जिसका नंबर RAB2916120 था.हालांकि, चुनाव आयोग ने कहा था कि विपक्ष के नेता "निराधार" दावे कर रहे हैं और मसौदा सूची का उद्धरण प्रस्तुत किया था जहां उनका नाम मौजूद था. ECI सूची में उनका EPIC नंबर RAB0456228 दिखाया गया है.
ERO ने अपने पत्र में कहा, "जांच के दौरान, यह पाया गया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाया गया EPIC कार्ड नंबर RAB2916120 भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी नहीं किया गया था." पत्र में आगे कहा गया है कि "तथ्यों से यह प्रतीत होता है कि आपके द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदर्शित किया गया EPIC कार्ड नंबर ... फर्जी है. फर्जी सरकारी दस्तावेज बनाना और उनका उपयोग करना एक कानूनी अपराध है." इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, राजद ने सवाल उठाया कि एक ही व्यक्ति के नाम पर दो EPIC नंबर कैसे जारी किए गए और आरोप लगाया कि यह तेजस्वी यादव की छवि खराब करने की साजिश है.
टैरिफ !
ट्रम्प ने फिर धमकाया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर 50% टैरिफ़ लगाने की घोषणा के बाद कहा है कि जब तक यह विवाद सुलझ नहीं जाता, तब तक भारत के साथ कोई व्यापार वार्ता नहीं होगी. दूसरी ओर, अमेरिकी विदेश विभाग का कहना है कि दोनों देशों के बीच "पूरी और स्पष्ट बातचीत" जारी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ओवल ऑफिस में स्पष्ट किया कि जब तक टैरिफ़ का मुद्दा हल नहीं हो जाता, तब तक भारत के साथ व्यापार वार्ता आगे नहीं बढ़ सकती. यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता टॉमी पिगॉट ने कहा कि ट्रम्प की कार्रवाई भारत के साथ व्यापार असंतुलन और रूस से तेल खरीदने को लेकर "बहुत स्पष्ट" चिंताओं को दर्शाती है. पिगॉट ने ज़ोर देकर कहा, "भारत एक रणनीतिक साझेदार है जिसके साथ हम पूरी और स्पष्ट बातचीत में लगे हुए हैं. यह जारी रहेगा." इस बीच, द्विपक्षीय व्यापार संधि वार्ता के अगले दौर के लिए एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल 25 अगस्त को भारत आने वाला है, लेकिन अब यह स्पष्ट नहीं है कि यह यात्रा योजना के अनुसार होगी या नहीं.
विश्लेषकों का मानना है कि इस विवाद से अमेरिका और भारत के संबंधों को गंभीर नुक़सान पहुंचा है. द इकोनॉमिस्ट के इंडिया एसेंशियल न्यूज़लेटर में जेरेमी पेज लिखते हैं, "अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को पहले ही गंभीर नुक़सान हो चुका है. उनके दो दशक के रणनीतिक साझेदारी का भविष्य इतना अनिश्चित कभी नहीं दिखा." वहीं, कोडा करेंट्स न्यूज़लेटर में शौगत दासगुप्ता ने चीन के ग्लोबल टाइम्स में की गई एक टिप्पणी का हवाला देते हुए लिखा, "शायद, अमेरिका के लिए, भारत कभी भी मेज़ पर मेहमान नहीं रहा - केवल मेनू पर एक आइटम था."
भारत-पाक शांति का श्रेय ट्रम्प को: मार्को रूबियो का दावा
ईडब्ल्यूटीएन 'द वर्ल्ड ओवर' में अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने दावा किया है कि जब भारत और पाकिस्तान "युद्ध में गए", तो अमेरिका ने "सीधे तौर पर हस्तक्षेप" किया और राष्ट्रपति ट्रम्प शांति स्थापित करने में सफल रहे.रूबियो की यह टिप्पणी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा लगभग 30 बार किए गए उस दावे के बाद आई है, जिसमें उन्होंने दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष विराम कराने का श्रेय लिया था. ईडब्ल्यूटीएन के 'द वर्ल्ड ओवर' को दिए एक इंटरव्यू में रूबियो ने कहा कि ट्रम्प शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं और "शांति के राष्ट्रपति" हैं. उन्होंने कई अन्य संघर्षों का भी ज़िक्र किया जिन्हें ट्रम्प ने हल करने में मदद की, जैसे कंबोडिया और थाईलैंड, और अज़रबैजान और आर्मेनिया.नई दिल्ली ने अब तक इस दावे का खंडन किया है और कहा है कि यह मुद्दा द्विपक्षीय रूप से हल किया गया था.
विश्लेषण
ट्रम्प पीछे क्यों पड़ गया है भारत के…
डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारत को निशाना बनाने वाले हालिया बयानों और कार्रवाइयों ने भारतीय रणनीतिक समुदाय के एक बड़े हिस्से को ठगा हुआ महसूस कराया है. अमेरिका अब भारत से अपनी दूरी और दक्षिण एशिया में एक निर्णायक रणनीतिक भूमिका निभाने की अपनी आकांक्षा का स्पष्ट संकेत दे रहा है. अपनी बात मनवाने के लिए, ट्रम्प लगभग दैनिक आधार पर भारत को धमकाने और अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं और यह तब तक रुकने की संभावना नहीं है जब तक कि भारत झुक न जाए. ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली अनुराधा चेनॉय ने इसका विश्लेषण स्क्रोल में किया है.
ट्रम्प प्रशासन का भारत विरोधी रवैया कई घटनाओं में स्पष्ट हुआ है. अवैध भारतीय प्रवासियों को अपमानजनक तरीके से निर्वासित करने से लेकर, ट्रम्प ने बार-बार यह दावा किया है कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद हुए चार दिवसीय भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद संघर्ष विराम की सफलतापूर्वक मध्यस्थता की. उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके व्यापार सौदे की धमकियों ने ही दोनों देशों को शांत किया. इस तरह, वह भारत के द्विपक्षीय मामलों में किसी भी विदेशी हस्तक्षेप से इनकार करने की लंबे समय से चली आ रही स्थिति को लगातार चुनौती दे रहे हैं. मामले को और भी बदतर बनाते हुए, ट्रम्प ने भारत की आर्थिक नीति पर हमला बोलते हुए भारत को "टैरिफ का राजा" कहा है. इसके बाद सभी भारतीय निर्यातों पर 25% टैरिफ लगा दिया गया और धमकी दी गई कि यदि भारत रूसी तेल और सैन्य हार्डवेयर का आयात बंद नहीं करता है तो अतिरिक्त दंड लगाया जाएगा. इन कार्रवाइयों के साथ अपमानजनक भाषा का भी इस्तेमाल किया गया, जैसे, "मुझे परवाह नहीं है कि भारत रूस के साथ क्या करता है. वे अपनी मृत अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ नीचे ले जा सकते हैं, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता".
इसके ठीक बाद, राष्ट्रपति ट्रम्प ने घोषणा की कि अमेरिका और पाकिस्तान ने पाकिस्तान के तेल भंडार को विकसित करने के लिए मिलकर काम करने का एक सौदा किया है. यह घटनाक्रम ठीक उस समय हुआ जब भारत पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में सूचीबद्ध कराने के लिए जोर दे रहा था. पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर का व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ दोपहर का भोजन स्पष्ट रूप से यह दिखाने के लिए था कि अमेरिका मध्य और पश्चिम एशिया में अपनी नीतियों को मजबूत करने के लिए फिर से पाकिस्तानी सेना का उपयोग करेगा. यह एक ऐसा खेल है जिसमें पाकिस्तान माहिर है. इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की कोशिशों को सफल नहीं होने देगा.
यह भारत की दशकों पुरानी उस नीति के लिए एक झटका है, जिसके तहत भारतीय नेतृत्व और उसके रणनीतिक समुदाय ने अमेरिका के साथ घनिष्ठ रणनीतिक संबंधों को बढ़ावा दिया. लेकिन अब राष्ट्रपति ट्रम्प और भी बहुत कुछ चाहते हैं. अमेरिका ने एक बार फिर पाकिस्तानी सेना को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हस्तक्षेप की अपनी नीति के लिए एक विश्वसनीय साधन के रूप में देखना शुरू कर दिया है. अमेरिका एक बार फिर भारत और पाकिस्तान को एक साथ तौल रहा है, जो भारत को पसंद नहीं है. लेकिन अमेरिका का हित स्पष्ट रूप से अपनी साम्राज्य जैसी पहुंच को पुनर्जीवित करना, विश्व स्तर पर शक्ति का प्रदर्शन करना और अपने प्रभुत्व को बनाए रखना है. यही ट्रम्प के 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' (MAGA) का सार है. इस एजेंडे में, भारत अमेरिकी उत्पादों के लिए एक बाजार हो सकता है और पाकिस्तान उसके कई रणनीतिक हथियारों में से एक. इसलिए, अमेरिका भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ खेलेगा, जिसे भारत को स्वीकार करना होगा.
यह भारत के लिए पुनर्विचार का समय है. पिछले तीन दशकों से, भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दी है, और अक्सर ग्लोबल साउथ के साथ अपने संबंधों की कीमत पर पाकिस्तान के साथ अमेरिका की निकटता से आंखें मूंद ली हैं. इस विश्लेषण से दो बातें स्पष्ट होती हैं. एक, अति-राष्ट्रवाद (hyper-nationalism) विदेश नीति में काम नहीं करेगा, खासकर जब किसी को एक अति-साम्राज्यवादी महाशक्ति (hyper-imperial superpower) का मुकाबला करना हो. दूसरा, भारत ने अपनी समय-परीक्षित विदेश नीति की कई पुरानी धारणाओं को पीछे छोड़ दिया है, जिसमें शांति और निरस्त्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करना और अपनी विदेश नीति में विविधता लाना शामिल था.
भारतीय अभिजात वर्ग अभी भी अमेरिका के प्रति प्रतिबद्ध है और उसे एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है. लेकिन अमेरिका को भी ऐसा ही करने की जरूरत है. भारतीय नेतृत्व को यह समझना होगा कि अमेरिका दक्षिण एशिया में अमेरिकी शाही हितों को बढ़ावा देना और सुगम बनाना चाहेगा और ये हित आमतौर पर भारत के हित में नहीं होते हैं.
भारत से तनाव के बीच ट्रम्प को भाया पाकिस्तान
ब्लूमबर्ग से फसीह मांगी की रिपोर्ट है कि अमेरिका के साथ पाकिस्तान के संबंधों में एक अप्रत्याशित और सकारात्मक मोड़ आया है, जबकि भारत के साथ रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं. इस्लामाबाद इस बदलाव का जश्न मना रहा है. पाकिस्तान दुनिया के उन कुछ देशों में से है, जिसने बिना किसी बड़ी अड़चन के अमेरिका के साथ एक व्यापार समझौता किया है. यह भारत, ब्राजील और स्विट्जरलैंड जैसे देशों के लिए एक झटके की तरह है, जिन्हें ट्रम्प के कड़े रुख का सामना करना पड़ा है.
ट्रम्प प्रशासन की पाकिस्तान में दिलचस्पी कई वजहों से बढ़ी है. पाकिस्तान के पास दुनिया के सबसे बड़े अछूते सोने और तांबे के भंडार हैं. साथ ही, अमेरिका ने पाकिस्तान के विशाल तेल भंडारों को विकसित करने के लिए निवेश और मिलकर काम करने की घोषणा की है. इसके अलावा, ट्रम्प समर्थित वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल ने पाकिस्तान में डिजिटल मुद्राओं के क्षेत्र में काम करने के लिए एक समझौता किया है. इस नए संबंध का सबसे बड़ा संकेत तब मिला जब पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने व्हाइट हाउस में ट्रम्प के साथ दोपहर के भोजन पर मुलाकात की. इसके तुरंत बाद, पाकिस्तान ने घोषणा की कि वह शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए ट्रम्प को नामांकित करेगा.
यह बाइडेन प्रशासन के दौरान अमेरिका-पाकिस्तान के ठंडे रिश्तों से एक बड़ा बदलाव है. दूसरी ओर, भारत, जिसे लंबे समय से चीन के खिलाफ एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा जाता था, अब ट्रम्प प्रशासन के दबाव का सामना कर रहा है. ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य टकराव के बाद हुए संघर्ष विराम का श्रेय खुद को दिया, जिसका पाकिस्तान ने स्वागत किया लेकिन भारत ने इसका खंडन किया. इन घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि जहां भारत के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं, वहीं पाकिस्तान ट्रम्प के साथ अपने बेहतर होते रिश्तों से उत्साहित है.
अमेरिकी टैरिफ के जवाब में भारत ने डाली हथियारों की खरीद योजनाएं ठंडे बस्ते में
रॉयटर्स से शिवम पटेल रिपोर्ट करते हैं कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय निर्यातों पर भारी टैरिफ लगाने के बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई के संकेत दिए हैं. तीन भारतीय अधिकारियों के अनुसार, नई दिल्ली ने नए अमेरिकी हथियार और विमान खरीदने की अपनी योजनाओं को फिलहाल रोक दिया है. यह दशकों में दोनों देशों के संबंधों में आई सबसे बड़ी गिरावट के बीच भारत की ओर से असंतोष का पहला ठोस संकेत है.
रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आने वाले हफ्तों में कुछ खरीदों की घोषणा के लिए वाशिंगटन जाने वाले थे, लेकिन उस यात्रा को रद्द कर दिया गया है. ट्रम्प ने 6 अगस्त को रूसी तेल खरीदने के लिए भारत को दंडित करने के रूप में भारतीय सामानों पर अतिरिक्त 25% टैरिफ लगाया था, जिससे कुल शुल्क 50% हो गया. इस वजह से जनरल डायनेमिक्स लैंड सिस्टम्स द्वारा बनाए गए स्ट्राइकर लड़ाकू वाहन और रेथियॉन व लॉकहीड मार्टिन द्वारा विकसित जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइलों की खरीद पर बातचीत रुक गई है.इसके अलावा, भारतीय नौसेना के लिए छह बोइंग पी-8आई टोही विमानों की प्रस्तावित 3.6 बिलियन डॉलर की खरीद पर भी बात आगे नहीं बढ़ रही है. हालांकि, एक अधिकारी ने कहा कि खरीद को रोकने के लिए कोई लिखित निर्देश नहीं दिया गया है, जिसका मतलब है कि अगर रिश्तों में सुधार होता है तो फैसला जल्दी से बदला जा सकता है. इस बीच, रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने इन रिपोर्टों को "झूठा और मनगढ़ंत" बताते हुए कहा है कि खरीद प्रक्रिया मौजूदा प्रक्रियाओं के अनुसार आगे बढ़ रही है. यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका-भारत के रिश्ते तनावपूर्ण हैं, खासकर जब ट्रम्प ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम में मध्यस्थता का दावा किया और पाकिस्तानी सेना प्रमुख की मेजबानी की.
उत्तराखंड: नौ वर्षों में 18,464 आपदाएं
न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं की खतरनाक वृद्धि से जूझ रहा है. यहां औसतन हर साल 2,000 से अधिक आपदाएं आ रही हैं. राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले नौ वर्षों (2015 से 2024) में राज्य भर में 18,464 चौंकाने वाली घटनाएं दर्ज की गईं, जिनसे जान-माल का भारी नुकसान हुआ. इन घटनाओं में बादल फटने से लेकर बाढ़ और भूस्खलन तक शामिल हैं.
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव, विनोद कुमार सुमन ने बताया, "हम मौतों, घायलों और लापता व्यक्तियों के साथ-साथ आंशिक और पूरी तरह से क्षतिग्रस्त घरों का व्यापक डेटा एकत्र करते हैं." उन्होंने कहा, "2015 से 2024 तक हमारे आंकड़े बताते हैं कि हर साल औसतन 2,051 आपदाएं हुईं." आंकड़ों से पता चलता है कि भारी बारिश और अचानक आई बाढ़ सबसे आम खतरे हैं, जिनसे 12,758 घटनाएं हुईं. भूस्खलन भी एक बड़ी चुनौती है, जिसकी 4,000 से अधिक घटनाएं विभिन्न जिलों में हुईं. इस अवधि में बादल फटने की 67 घटनाएं दर्ज की गईं. इन प्राकृतिक आपदाओं की विनाशकारी शक्ति ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया है. आपदा प्रबंधन विभाग के सूत्रों के मुताबिक, 2015 और 2024 के बीच कुल 3,667 पक्के और कच्चे घर पूरी तरह से नष्ट हो गए. इसके अलावा, 9,556 पक्के घरों और 5,390 फूस के घरों को आंशिक रूप से नुकसान पहुंचा. सचिव सुमन ने कहा कि इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में उपचार कार्य चल रहा है और हमारी प्रतिक्रिया को बेहतर बनाने के लिए लगातार अध्ययन किए जा रहे हैं.
आयकर विधेयक 2025 लोकसभा से वापस, संशोधनों के साथ 11 अगस्त को पेश होगा
द हिंदू की रिपोर्ट है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को लोकसभा से आयकर विधेयक, 2025 वापस ले लिया. सरकार अब 11 अगस्त को इस विधेयक का एक नया और संशोधित संस्करण पेश करेगी. यह विधेयक छह दशक पुराने आयकर अधिनियम, 1961 की जगह लेने के लिए लाया गया था. इसे 13 फरवरी को लोकसभा में पेश किया गया था और बाद में जांच के लिए प्रवर समिति को भेज दिया गया था.
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि विधेयक के अद्यतन संस्करण में भाजपा सांसद बैजयंत पांडा की अध्यक्षता वाली प्रवर समिति द्वारा सुझाए गए अधिकांश बदलावों को शामिल किया जाएगा. सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि विधेयक के कई संस्करणों से होने वाले भ्रम से बचा जा सके और सदन के विचार के लिए सभी परिवर्तनों को शामिल करते हुए एक स्पष्ट और अद्यतन संस्करण प्रदान किया जा सके.
प्रवर समिति द्वारा सुझाए गए प्रमुख बदलावों में धार्मिक-सह-चैरिटेबल ट्रस्टों को दिए गए गुमनाम दान पर कर छूट जारी रखना शामिल है. हालांकि, नए बिल के अनुसार, यदि कोई धार्मिक ट्रस्ट अस्पताल या शैक्षणिक संस्थान जैसे अन्य धर्मार्थ कार्य भी करता है, तो उसे प्राप्त ऐसे गुमनाम दान पर कर लगाया जाएगा.एक और महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि करदाताओं को आयकर रिटर्न दाखिल करने की नियत तारीख के बाद भी बिना किसी दंडात्मक शुल्क के टीडीएस रिफंड का दावा करने की अनुमति दी जाए.विधेयक को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर चर्चा की मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों द्वारा लगातार व्यवधानों के बीच वापस ले लिया गया.
‘हम वित्त मंत्री का तबादला नहीं कर सकते. हमें... आपका तबादला करना होगा’
भारत की नौकरशाही के उच्चतम स्तर पर अपने कार्यकाल के एक खुलासापूर्ण वृत्तांत में, पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ अपने अत्यंत तनावपूर्ण कामकाजी संबंधों और मोदी सरकार के भीतर महत्वपूर्ण नीतिगत असहमतियों का विस्तृत विवरण दिया है. अपनी किताब "नो मिनिस्टर" के बारे में वायर के एमके वेणु को दिये साक्षात्कार में, गर्ग एक ऐसी वित्त मंत्री की तस्वीर पेश करते हैं, जिन्होंने पहले दिन से ही उनके प्रति एक "पूर्वाग्रह" बना लिया था और जिनकी शासन शैली महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णयों पर ऊपर से नीचे के निर्देशों से चिह्नित थी.
चार वित्त मंत्रियों के साथ काम कर चुके गर्ग, 2019 में सीतारमण के साथ अपने 55-दिवसीय कार्यकाल को अपने किसी भी पिछले अनुभव से "बहुत अलग" बताते हैं. उनका दावा है कि संबंध शुरू से ही "गलत पायदान पर" शुरू हुए, उन्हें लगा कि वह उनके प्रति "पक्षपात" रखती हैं. यह तनाव असामान्य तरीकों से प्रकट हुआ, विशेष रूप से केंद्रीय बजट की तैयारी के दौरान. गर्ग उस "अजीब" और "असामान्य" स्थिति को याद करते हैं, जहां बजट भाषण का मसौदा उन्हें, यानी वित्त सचिव को अंतिम संस्करण दिखाए बिना प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया गया था.
गर्ग के अनुसार, एक और भी चिंताजनक "चूक" तब हुई जब एक औपचारिक नोट शीट जिसमें उन्होंने योगदान दिया था, को बदल दिया गया और फिर से बनाया गया. उन्होंने कहा, "अगर नोट शीट को बदलना पड़े, फाइलों को फिर से डिजाइन, पुनर्विन्यास, फिर से लिखना या पुनर्निर्मित करना पड़े... तो यह वह चीज नहीं है जिसके साथ मैं काम करने में खुश होऊंगा और यह... बिल्कुल अनुचित भी है." उन्होंने यह भी नोट किया कि उनके साथ काम करने के दौरान, सीतारमण ने किसी भी फाइल पर एक भी शब्द नहीं लिखा, केवल उन पर हस्ताक्षर करना पसंद किया, जो उनके पूर्ववर्ती, अरुण जेटली के साथ उनके अनुभव के बिल्कुल विपरीत था. जबकि जेटली अक्सर उनसे असहमत होते और उनके विचारों को खारिज कर देते थे, गर्ग ने इसे "कामकाज का एक वैध तरीका" बताया जहां मंत्री आत्मविश्वास से फाइल पर अपने विचार दर्ज करते थे.
यह टकराव आरबीआई के आर्थिक पूंजी ढांचे के संबंध में एक असहमति नोट पर चरम पर पहुंच गया, जिसे गर्ग दाखिल करने की योजना बना रहे थे. उनका आरोप है कि सीतारमण ने उनके अधिकार पर सवाल उठाया और मांग की कि वह इसे न लिखें, एक ऐसा आदेश जिसे उन्होंने मौखिक रूप से लेने से इनकार कर दिया. मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचा, और उसके तुरंत बाद, गर्ग का तबादला कर दिया गया. पीएम के प्रधान सचिव, पी.के. मिश्रा ने कथित तौर पर उनसे कहा कि वह एक "शानदार अधिकारी... मेहनती, परिश्रमी" हैं, लेकिन चूंकि वह और वित्त मंत्री साथ काम नहीं कर पा रहे थे, इसलिए एक चुनाव करना पड़ा. मिश्रा को यह कहते हुए उद्धृत किया गया, "हम वित्त मंत्री का तबादला नहीं कर सकते. हमें... आपका तबादला करना होगा."
गर्ग का कार्यकाल प्रमुख सरकारी योजनाओं पर टकरावों से भी चिह्नित था. उन्होंने खुलासा किया कि 2019 के आम चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू की गई किसानों के लिए एक विशाल आय सहायता योजना, पीएम-किसान योजना पर चर्चा से उन्हें जानबूझकर "किनारे" कर दिया गया था. जब उन्हें अंततः शामिल किया गया, तो उन्हें पीएमओ द्वारा "इससे दूर रहने" के लिए कहा गया. हालांकि, गर्ग ने बजट भाषण में एक "घोर त्रुटि" देखी: योजना में 12 करोड़ किसानों को शामिल करने की बात कही गई थी, एक आंकड़ा जिसे वह जानते थे कि बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था. उन्होंने तर्क दिया, "यह 12 करोड़ तक नहीं बढ़ सकता था. यह 50% अधिक नहीं हो सकता." मामले पर जोर देने के बाद, शब्दों को बदल दिया गया, और गर्ग का मूल्यांकन बाद में सही साबित हुआ क्योंकि लाभार्थियों की संख्या तब से औसतन लगभग 9 करोड़ रही है.
एक और महत्वपूर्ण नीतिगत लड़ाई सरकारी स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल के पुनरुद्धार को लेकर थी. गर्ग जिसे एक हारा हुआ मामला मानते थे, उसमें और धन डालने का कड़ा विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि यह "बुरे पैसे के पीछे अच्छा पैसा फेंकना" था. उनका विचार शुरू में दूरसंचार आयोग में प्रबल रहा, और प्रस्ताव को सीधे कैबिनेट में भेजे जाने के बाद भी, उनके मजबूत असहमति नोट का पहले अरुण जेटली और बाद में निर्मला सीतारमण ने समर्थन किया, जिससे उनके कार्यकाल के दौरान निर्णय रुका रहा.
शायद गर्ग द्वारा सुनाए गए सबसे विचित्र प्रसंगों में से एक यह था कि उन्हें पीएमओ द्वारा यह जांच करने का काम सौंपा गया था कि क्या पिछली यूपीए सरकार ने राजनीतिक धन के लिए अवैध रूप से अतिरिक्त मुद्रा छापी थी. दस वर्षों के बैंकनोट पेपर के उपयोग का "विशाल कार्य" ऑडिट करने के बाद, उन्हें किसी गंभीर विसंगति का कोई सबूत नहीं मिला. बाद में वह अपने रुख पर अड़े रहे और किसी बाहरी विशेषज्ञ को देश की उच्च-सुरक्षा वाली प्रिंटिंग प्रेसों तक पहुंच की अनुमति देने से इनकार कर दिया.
डीपडाइव
हिंदू आतंकवाद की असलियत
मालेगांव ब्लास्ट केस में सारी आरोपियों के छोड़े जाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने अपनी बात दुहराई है कि हिंदू आतंकवाद जैसी कोई चीज़ नहीं हैं. हरकारा डीपडाइव में निधीश त्यागी ने इस बारे में गोड़से और भगुवा स्थिति पर किताबें लिखने वाले लेखक और पत्रकार सुभाष गाताड़े से बात की है. साथ में अपूर्वानंद भी.
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