09/09/2025: आधार को ओके | चीन के सामने ढीले पड़े मोदी? | आरएसएस एसआईआर की तरफ़, भाजपा काशी-मथुरा की | नेपाल में छात्र आंदोलन हिंसक हुआ, 19 मौतें | निकोबार पर सोनिया गांधी | कितने पिंडदान?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बिहार वोटर लिस्ट में आधार: सुप्रीम कोर्ट के दखल से 65 लाख मतदाताओं को मिली बड़ी राहत, अब आधार कार्ड भी पहचान का सबूत माना जाएगा.
संघ का एजेंडा, भाजपा का एक्शन: आरएसएस ने मतदाता सूची संशोधन और घुसपैठ पर चिंता जताई, तो भाजपा ने "अब मथुरा-वृंदावन की बारी है" का नारा बुलंद किया.
चीन के आगे भारत का समर्पण?: सीमा पर बफर ज़ोन, व्यापार घाटा और CPEC पर चुप्पी, क्या मोदी सरकार ने चीन के सामने घुटने टेक दिए हैं?
नेपाल में सोशल मीडिया पर बवाल: जेन-ज़ी का हिंसक प्रदर्शन, 19 की मौत, सेना तैनात; एक बैन ने देश को हिला दिया.
केरल का कमाल, अमेरिका को पछाड़ा: शिशु मृत्यु दर में ऐतिहासिक गिरावट, भारत के इस राज्य ने दुनिया के लिए मिसाल कायम की.
40 साल का संघर्ष, ज़मीन डूबी पर नाम नहीं: सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों की दर्दभरी कहानी, जो सरकारी रिकॉर्ड में आज भी 'अप्रभावित' हैं.
पिंडदान पर सियासत: बनारस के बाद अब गया में पीएम मोदी क्यों कर रहे हैं मां का पिंडदान? क्या यह श्रद्धा है या चुनावी रणनीति?
न्याय का इंतज़ार या सज़ा?: उमर खालिद मामले में अदालत की प्रक्रिया पर उठे सवाल, "जेल अपवाद है" का नियम क्यों भुला दिया गया?
अदालत की दीवार पर बैंक्सी का 'हथौड़ा': गुमनाम कलाकार ने जज को प्रदर्शनकारी पर वार करते दिखाया, न्याय व्यवस्था पर तीखा प्रहार.
गुरुग्राम की बाढ़, नोएडा की बहार: एक बारिश ने गुरुग्राम के रियल एस्टेट बाज़ार को डुबोया, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के दम पर नोएडा बना पहली पसंद.
बिहार मतदाता सूची
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आधार को ओके
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 8 सितंबर को भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को निर्देश दिया है कि वह बिहार में संशोधित मतदाता सूची में नाम शामिल करने के उद्देश्य से पहचान के प्रमाण के तौर पर आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज़ के रूप में शामिल करे. ईसीआई ने अदालत के सामने यह स्वीकार किया कि बिहार की संशोधित मतदाता सूची में किसी मतदाता को शामिल करने या बाहर करने के उद्देश्य से व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिए आधार कार्ड पर भी विचार किया जाएगा. यह आदेश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्य बागची की पीठ ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और स्वराज पार्टी के सदस्य और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया.
ईसीआई ने 1 अगस्त को एक मसौदा सूची प्रकाशित की थी जिसमें कुल 65 लाख मतदाताओं को बाहर कर दिया गया था, और उनके नाम भी जारी नहीं किए गए थे. इससे बिहार में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम कटने की आशंका पैदा हो गई थी. पहचान के लिए ईसीआई द्वारा अनुमत 11 दस्तावेज़ों की सूची से आधार कार्ड को बाहर रखा गया था, जबकि बिहार में 94% लोगों के पास आधार कवरेज है. ग़रीब और हाशिए पर मौजूद कई लोगों के पास आधार के अलावा कोई और पहचान पत्र नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से ऐसे लाखों लोगों को राहत मिली है जो मतदाता सूची से बाहर हो जाने का जोखिम झेल रहे थे.
याचिकाकर्ताओं ने ईसीआई के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को मनमाना और असंवैधानिक बताया था. शुरुआत में, ईसीआई बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं की सूची सार्वजनिक करने का विरोध कर रहा था. हालांकि, 14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को यह सूची वेबसाइट पर और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, बल्कि पहचान का प्रमाण है. अदालत ने ईसीआई को निर्देश दिया कि वह अपने अधिकारियों को आधार कार्ड स्वीकार करने के संबंध में निर्देश जारी करे. ईसीआई अधिकारियों को मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए आधार कार्ड की प्रामाणिकता और वास्तविकता को सत्यापित करने का अधिकार होगा.
ईसीआई का आधार कार्ड को स्वीकार करने से हिचकिचाना पहचान दस्तावेज़ों को लेकर उसके अपने भ्रम को उजागर करता है. याचिकाकर्ताओं ने अदालत में तर्क दिया कि जब ईसीआई द्वारा स्वीकार किए गए 11 दस्तावेज़ों में से नौ नागरिकता का रिकॉर्ड नहीं हैं, तो आधार को क्यों बाहर रखा जाए. कुछ वकीलों ने यह भी दावा किया कि जो बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) आधार स्वीकार कर रहे थे, उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी गई थी. यह मामला सिर्फ़ एक दस्तावेज़ को शामिल करने का नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने का है कि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और समावेशी हो.
इस आदेश के बाद, ईसीआई को तुरंत अपने ज़मीनी अधिकारियों को आधार कार्ड को पहचान के 12वें प्रमाण के रूप में स्वीकार करने के लिए निर्देश जारी करने होंगे. मतदाताओं को दावों और आपत्तियों को दर्ज करने के लिए अब ज़्यादा समय और एक आसान विकल्प मिलेगा. मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी, जिसमें आगे की प्रगति पर विचार किया जाएगा. इससे बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची को सही और अद्यतन करने की प्रक्रिया में तेज़ी आने की उम्मीद है.
आरएसएस भी एसआईआर का तरफ़दार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने शुक्रवार को चुनाव आयोग के मतदाता सूची संशोधन (एसआईआर) का "पारदर्शी और निष्पक्ष" अभ्यास के रूप में समर्थन किया. इसके साथ ही संघ ने बंगाल जैसे राज्यों में घुसपैठ को एक "गंभीर चिंता" बताया, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का समर्थन किया और पूर्वोत्तर में जबरन धर्मांतरण और पंजाब में बढ़ते नशे के ख़तरे पर भी चिंता व्यक्त की. आरएसएस का रुख़ अक्सर भाजपा की नीतिगत दिशा और राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करता है. बिहार, बंगाल और असम जैसे सीमावर्ती राज्यों में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, ऐसे में संघ द्वारा उठाए गए ये मुद्दे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. यह दर्शाता है कि संघ आने वाले चुनावों के लिए वैचारिक ज़मीन तैयार कर रहा है.
जोधपुर में तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक के अंत में, आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि संघ चुनाव आयोग के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) का स्वागत करता है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए सटीक मतदाता सूची आवश्यक है. आंबेकर ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रगति की सराहना की और प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं को केंद्रीय बनाने पर ज़ोर दिया. उन्होंने बंगाल में अवैध प्रवासियों द्वारा क़ानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करने और हिंदुओं की सुरक्षा पर चिंता जताई. साथ ही, उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ काशी या मथुरा पर कोई आंदोलन नहीं करेगा.
एजेंडा सेट कर रहा है, जो आने वाले राज्य चुनावों में भाजपा के लिए प्रमुख अभियान के मुद्दे बन सकते हैं. काशी और मथुरा पर आंदोलन न करने का बयान एक रणनीतिक क़दम हो सकता है, ताकि संगठन अपनी ऊर्जा को अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित कर सके. यह बैठक संघ से जुड़े 32 संगठनों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाई, जिससे एक समन्वित रणनीति का संकेत मिलता है.
अब मथुरा-वृंदावन की बारी है : भाजपा
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन की तरह संघ परिवार के मंदिर आंदोलनों में शामिल नहीं होने संबंधी बयान के एक सप्ताह बाद, भाजपा ने “एक्स” पर एक पोस्ट किया, जिसमें कहा गया कि "राम मंदिर का सपना पूरा हो चुका है, अब मथुरा-वृंदावन की बारी है." इस पोस्ट में भाजपा ने स्वयंभू संत बाबा बागेश्वर के एक इंटरव्यू का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि मथुरा–वृंदावन अगला कदम है. "भगवान राम भी विराजमान हुए, अब कृष्ण कन्हैया भी बैठेंगे..." यह कहते हुए बाबा बागेश्वर ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की और कहा कि आज देश में आस्था और परंपरा का सम्मान हो रहा है”, भाजपा ने कहा. भागवत ने कहा था कि "स्वयंसेवक" इन आंदोलनों में शामिल हो सकते हैं, लेकिन संघ सीधे तौर पर ऐसे आंदोलनों का हिस्सा नहीं बनेगा. उन्होंने भाईचारे की भावना में मुस्लिम नेताओं से कहा था कि "इन तीनों को छोड़ दें. यह भाईचारे के लिए एक बड़ा कदम होगा.”
“ऑपरेशन सिंदूर” के बावजूद घुसपैठ बढ़ गई
“डेक्कन हेराल्ड” की रिपोर्ट में कहा गया है कि मई में हुए “ऑपरेशन सिंदूर” के बावजूद, जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से घुसपैठ बढ़ गई है. पिछले चार महीनों में 70 से 80 आतंकियों के भारतीय क्षेत्र में दाखिल होने का संदेह है. सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि हाल के महीनों में यह रुझान तेजी से बढ़ा है. ये घुसपैठ उत्तर कश्मीर के उरी, कुपवाड़ा और गुरेज़ जैसे पारंपरिक मार्गों के अलावा जम्मू संभाग के हीरानगर (सांबा) और सुंदरबनी इलाकों से भी दर्ज की गई हैं. यहां तक कि सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भी इस वृद्धि को स्वीकार किया. उन्होंने पिछले सप्ताह कहा था, 'जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के साथ घुसपैठ के प्रयासों में कोई कमी नहीं आई है.
विश्लेषण : भारत चीन
सुशांत सिंह : तियांजिन में चीनी शर्तों के समक्ष मोदी का समर्पण
एक वायरल वीडियो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हाथ मिलाते देखा गया. यह सात साल बाद चीन की उनकी पहली यात्रा थी. तियांजिन में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में पुतिन ने तिकड़ी को "हम तीनों मित्र" कहा. मोदी की नर्वस हंसी उनकी दुविधा को छुपा नहीं पा रही थी. डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपमानित होने के बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी के व्यवहार की तुलना "त्यागे गए प्रेमी" से की. हिंदुत्व समर्थकों ने भोपाल में ट्रम्प का मॉक फ्यूनरल किया और उसे सनातन धर्म का गद्दार बताया. ट्रम्प द्वारा छोड़े जाने के बाद मोदी अब शी से संपर्क कर संदेश भेजने की कोशिश कर रहे थे. सुशांत सिंह ने कैरवन पत्रिका में इस पर विस्तार से लिखा है. पूरा लेख आप यहां पढ़ सकते हैं.
सीमा पर नई स्थिति का स्वीकार
पूर्वी लद्दाख़ में सीमा स्थिति भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. अलगाव (डिसएंगेजमेंट) का मतलब केवल यह है कि सैनिक आमने-सामने की स्थिति से हट गए हैं. बफ़र ज़ोन बनने से भारतीय सैनिक और चरवाहे उन इलाक़ों में नहीं जा सकते जहां मई 2020 तक वे जाते थे. ये बफ़र ज़ोन भारत के लिए ज़्यादा नुक़सानदायक हैं क्योंकि इसका बड़ा हिस्सा 2020 से पहले भारतीय क्षेत्र माना जाता था. विदेश मंत्री जयशंकर ने इन्हें संसद में "अस्थायी और सीमित प्रकृति के क़दम" बताया था. ये "स्थिति की मांग के अनुसार पुनर्विचार" किए जाने थे, लेकिन पिछले दस महीनों से कोई पुनर्विचार नहीं हुआ. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने नया यथास्थिति स्थापित कर दिया है और भारत ने इसे चुपचाप मान लिया है. 2017 के डोकलाम संकट में भी यही हुआ था. अलगाव की घोषणा के बाद भारतीय सैनिक वापस चले गए, लेकिन PLA डोकलाम पठार पर बना रहा और वहां व्यापक सैन्य ढांचा खड़ा किया. मोदी सरकार ने इसे भी संसद में स्वीकार कर लिया था.
पाकिस्तान को चीनी सहायता
भारत-पाकिस्तान के हालिया संघर्ष में चीन ने पाकिस्तान को "हर संभव सहायता" प्रदान की, जिसमें रियल-टाइम इंटेलिजेंस और भारत की सैन्य तैनाती के बारे में "लाइव इनपुट" शामिल थे. पिछले पांच सालों में पाकिस्तान के 81 प्रतिशत सैन्य हार्डवेयर चीन से आए हैं. 7 मई को भारतीय वायु सेना को जो नुक़सान हुआ, वह चीनी हथियार प्रणालियों, सैन्य प्लेटफ़ॉर्म, सैटेलाइट इंटेलिजेंस और प्रशिक्षण के कारण था. एससीओ शिखर सम्मेलन में मोदी ने उस संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए जो पहलगाम हमले की निंदा करता था लेकिन पाकिस्तान से आने वाले क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद का उल्लेख नहीं करता था. अगली ही पंक्ति में पाकिस्तान के दो आतंकी हमलों की निंदा की गई, जिससे समानता स्थापित हुई.
आर्थिक असंतुलन और रणनीतिक निर्भरता
भारत-चीन के बीच व्यापार असंतुलन अब सालाना 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. चीन भारत के कुल आयात में 15 प्रतिशत की भागीदारी रखता है. चीन भारत की 40 प्रतिशत इलेक्ट्रिकल मशीनरी की आपूर्ति करता है और 60-70 प्रतिशत एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स भी. चीन ने DAP फ़र्टिलाइज़र, रेयर अर्थ या बोरिंग मशीनों तक पहुंच के बारे में कोई सार्वजनिक आश्वासन नहीं दिया है. ब्रह्मपुत्र पर चीन का मेगा डैम भारत की पानी की सुरक्षा को प्रभावित करता है, लेकिन चीन ने केवल "आपातकाल की स्थिति में मानवीय विचारों के आधार पर" जल विज्ञान संबंधी जानकारी साझा करने का वादा किया है.
सीपैक और त्रिकोणीय गठबंधन
चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है. वांग यी ने दिल्ली से पाकिस्तान जाकर अफ़ग़ानिस्तान के साथ त्रिकोणीय बैठक की और सीपैक को अफ़ग़ानिस्तान तक बढ़ाने का समझौता किया. चीन पाकिस्तान-बांग्लादेश के साथ भी त्रिकोणीय संबंध बना रहा है. शेख़ हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध बिगड़े हैं. इससे सिलीगुड़ी कॉरिडोर की चिंताएं बढ़ गई हैं. यह संकीर्ण पट्टी पूर्वोत्तर भारत को बाकी देश से जोड़ती है.
रणनीतिक समर्पण
मोदी ने शी से कहा कि द्विपक्षीय संबंधों को "किसी तीसरे देश के नज़रिए से नहीं देखना चाहिए". यह ठीक वही फ़ॉर्मूला है जिसका चीन फ़ायदा उठाना चाहता है. 2024 रायसीना डायलॉग में जयशंकर ने चेतावनी दी थी कि बीजिंग "माइंड गेम्स" खेलकर यह सुझाएगा कि मसला "सिर्फ़ हम दोनों के बीच है". अमेरिकी दबाव के सामने मोदी सरकार ने चीन के साथ संतुलन बनाने के लिए बाहरी साझेदारों, ख़ासकर अमेरिका को शामिल करने की सारी रणनीतिक तर्क को चुपचाप त्याग दिया है. इससे भारत असहाय और रक्षात्मक स्थिति में पहुंच गया है.
यह पैटर्न केवल राजनयिक हारों की श्रृंखला नहीं है, बल्कि महत्वपूर्ण मोर्चों पर भारत की रणनीतिक एजेंसी का परित्याग है. सीमा बफ़र ज़ोन, जल सहयोग, व्यापार घाटे या सिलीगुड़ी और सीपैक कॉरिडोर पर नई दिल्ली को ज़मीन छोड़ते या चुप रहते देखा जा रहा है, जबकि बीजिंग अपनी मुख्य चिंताओं पर कठोर बना हुआ है. जयशंकर का तियांजिन से अकस्मात अनुपस्थित रहना और भी शर्मनाक है, जबकि वे सोशल मीडिया पर नई दिल्ली में काम करने के अपडेट डाल रहे थे. अगर यह चीन के आग्रह पर था, तो भारत के लिए इससे अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता. मोदी की नम्र और दीनहीन आचरण ने जयशंकर के इस निदान को सही साबित कर दिया कि "चीन बिना लड़ाई जीत रहा था".
येल यूनिवर्सिटी में अध्यापन करने के साथ साथ सुशांत सिंह रक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं.
नेपाल में सोशल मीडिया पर बैन से नाराज़ जेन-ज़ी का विरोध प्रदर्शन, 19 मरे, सेना तैनात
आज की नई पीढ़ी की ज़िंदगी में या कहें जेन-ज़ी के लिए सोशल मीडिया कितना जरूरी हो गया है, इसका नज़ारा आज नेपाल में देखने को मिला, जब सोमवार को राजधानी काठमांडू में विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए. 26 वर्ष से कम आयु के युवाओं — जिन्हें जेन-ज़ी कहा जाता है — ने नए बानेश्वर इलाके में सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रतिबंध और सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया. इस अशांति से सीमा पार नई चिंताएं उभरने के बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने 1,751 किलोमीटर लंबे भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र को हाई-अलर्ट पर रखा है.
काठमांडू के उन हिस्सों में सेना तैनात कर दी गई है, जहां विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं और कर्फ्यू लागू कर दिया गया है. अधिकारियों और चश्मदीदों के अनुसार, नेपाली पुलिस ने संसद भवन में घुसने की कोशिश कर रही भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियों का इस्तेमाल किया. “हमने कर्फ्यू लागू कर दिया है, जो स्थानीय समय रात 10 बजे तक प्रभावी रहेगा, ताकि स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सके, क्योंकि प्रदर्शनकारी हिंसक होने लगे थे,” समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने काठमांडू जिला कार्यालय के प्रवक्ता मुक्तिराम रिजाल के हवाले से कहा. रिजाल के अनुसार, पुलिस को भीड़ को काबू करने के लिए वॉटर कैनन, डंडे और रबर की गोलियों के इस्तेमाल का आदेश दिया गया था.
“द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, नेपाल सरकार का कहना है कि नकली पहचान (फेक आईडी) वाले सोशल मीडिया यूज़र नफरत फैलाने वाले भाषण, फेक न्यूज़ प्रसारित करने, धोखाधड़ी और अन्य अपराधों के लिए कुछ प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस कदम के खिलाफ देशभर में विरोध हुआ, जिसमें हज़ारों युवा—कई अपने स्कूल और कॉलेज की यूनिफॉर्म में—सोमवार को राष्ट्रीय ध्वज और तख्तियां लेकर संसद की ओर मार्च करते नज़र आए. उनकी तख्तियों पर नारे लिखे थे– “भ्रष्टाचार बंद करो, सोशल मीडिया नहीं”, “सोशल मीडिया पर से प्रतिबंध हटाओ” और “युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ.” हालांकि, पुलिस ने उन्हें रोक दिया और रास्ते में कंटीले तार की बैरिकेडिंग लगा दी.
एएमयू की पहली महिला कुलपति; सुप्रीम कोर्ट का दखल से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 सितंबर 2025) को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की पहली महिला कुलपति के रूप में प्रोफेसर नायमा ख़ातून की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
“द हिंदू” के मुताबिक, जस्टिस जे.के. महेश्वरी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वह इस याचिका पर विचार करने के पक्ष में नहीं है. याचिका में यह सवाल उठाया गया था कि प्रोफेसर ख़ातून के पति, प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज़, जो उस समय कार्यवाहक कुलपति थे, ने कार्यकारी परिषद (एग्जीक्यूटिव काउंसिल) की बैठक में हिस्सा लिया था, जिसमें उनके नाम को विज़िटर की स्वीकृति के लिए सुझाया गया था.
जम्मू-कश्मीर में पीएसए के तहत पहले विधायक की गिरफ्तारी, ‘आप’ के मलिक एक साल की हिरासत में
सोमवार को जम्मू-कश्मीर में आम आदमी पार्टी के एकमात्र विधायक मेहराज मलिक को पुलिस ने सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत एक वर्ष के लिए हिरासत में ले लिया. मलिक, राज्य के ऐसे पहले मौजूदा विधायक हैं, जिन्हें पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया है. इस कानून के अंतर्गत प्रशासन, यदि यह मानता है कि किसी व्यक्ति को स्वतंत्र छोड़ना सार्वजनिक व्यवस्था व शांति भंग कर सकता है या राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है, तो उसे बिना मुकदमे के भी निरोधात्मक हिरासत में रखा जा सकता है. भद्रवाह जेल भेजे गए 37 वर्षीय डोडा विधायक के खिलाफ जिले के विभिन्न थानों में 18 प्राथमिकी और 16 डेली डायरी (डीडी) रिपोर्ट दर्ज हैं.
गुलफिशा फातिमा ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई
स्टूडेंट एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा ने भी जमानत से इनकार करने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. फातिमा को 9 अप्रैल 2020 को दिल्ली दंगों की कथित साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) के तहत हिरासत में हैं. उल्लेखनीय है कि 2 सितंबर को दिल्ली हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने फातिमा और आठ अन्य सह-आरोपियों की जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया था.
केरल में शिशु मृत्यु दर में ऐतिहासिक गिरावट, अमेरिका से भी कम हुई
केरल ने शिशु मृत्यु दर में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की है. 2023 में इसकी शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 5 हो गई है, जो भारत के बड़े राज्यों में सबसे कम और यहां तक कि अमेरिका से भी कम है, जहां 2022 में यह 5.6 थी. राष्ट्रीय औसत शिशु मृत्यु दर अभी भी 25 पर है. मणिपुर और लद्दाख छोटे क्षेत्रों में सबसे कम शिशु मृत्यु दर वाले स्थान हैं. नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 1971 में 129 से 2013 में 40 तक और अब 2023 में 25 तक शिशु मृत्यु दर कम की है, लेकिन उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अभी भी उच्च मृत्यु दर है.
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, 2023 में भारत की व्यापक जनसांख्यिकीय रिपोर्ट में जन्म दर 18.4 प्रति 1,000, मृत्यु दर 6.4 प्रति 1,000, और शिशु मृत्यु दर 25 दर्ज की गई है. छत्तीसगढ़ की मृत्यु दर सबसे अधिक 8.3 है, जबकि चंडीगढ़ 4.0 के साथ सबसे कम मृत्यु दर वाला क्षेत्र है.
टैरिफ की परवाह किए बिना शेयरों में पैसा लगाते जा रहे हैं भारतीय निवेशक
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) के बावजूद, भारत के शेयर बाजार ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया है. मुंबई के दो प्रमुख शेयर बाजार सूचकांक (स्टॉक इंडेक्स) पिछले छह महीनों में लगभग 10 प्रतिशत बढ़ गए हैं. अगस्त के अंत में ट्रम्प द्वारा टैरिफ लागू करने के बाद भी ये सूचकांक स्थिर बने रहे.
“द न्यूयॉर्क टाइम्स” की रिपोर्ट के अनुसार, मध्यमवर्गीय भारतीय अपनी बचत लगातार शेयर बाजार में लगा रहे हैं, जिससे यह टैरिफ वॉर के झटकों के प्रति कहीं अधिक मजबूत हो गया है. भारतीय निवेशकों का बढ़ता हुआ निवेश विदेशी निवेशकों के बाजार से निकलने की गति को पूरी तरह से संतुलित कर रहा है. भारतीय मध्यवर्ग के वित्तीय विश्वास और स्थानीय वित्तीय क्षेत्र की वृद्धि ने घरेलू निवेशकों को इस वर्ष बाजार के अप्रत्याशित नायकों के रूप में उभारा है.
मुंबई स्थित कोटक महिंद्रा एसेट मैनेजमेंट के एक विशेषज्ञ के अनुसार, पिछले दशक की तुलना में अब विदेशी निवेशकों की बाजार हिस्सेदारी घटकर 24% से 16% रह गई है. इस बदलाव ने बाजार प्रवाह और निवेश निर्णयों में घरेलू निवेशकों के दृष्टिकोण को अधिक महत्व दिया है.
इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के निवेशक अब बाजार के उतार-चढ़ाव के दौरान अधिक भरोसेमंद स्तंभ बन गए हैं, जिससे भारत की आर्थिक स्थिरता को एक नए स्तर की मजबूती मिली है, खासकर व्यापार संघर्ष और टैरिफ के दबाव के बीच.
आरएसएस के 27 कार्यकर्ताओं पर केस
“द इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है कि केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 27 कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने कोल्लम ज़िले के एक मंदिर के पास ओणम पर पारंपरिक रूप से बनाए जाने वाले फूलों की सजावट (पूक्कलम) को संगठन के भगवा झंडे के आकार में बनाया.
पुलिस का कहना है कि यह सजावट श्री पार्थसारथी मंदिर के मुख्य मार्ग पर बनाई गई थी, ठीक उसी स्थान के पास जहां एक और पूक्कलम में "ऑपरेशन सिंदूर" लिखा हुआ था. मंदिर समिति की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई. समिति का आरोप है कि यह पूक्कलम 2023 केरल हाईकोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन करता है, जिसमें मंदिर के पास राजनीतिक दलों और संगठनों के झंडे तथा उनके प्रतीकों को लगाने पर रोक लगाई गई थी.
अंजना ओम कश्यप के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का आदेश
“लाइव लॉ” की खबर है कि लखनऊ की एक अदालत ने “आज तक” की एंकर अंजना ओम कश्यप के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया है. यह मामला 14 अगस्त को प्रसारित उनके टेलीविजन शो से जुड़ा है.
14 अगस्त के इस शो “ब्लैक एंड व्हाइट” की कड़ी का शीर्षक था – “भारत विभाजन का मकसद पूरा क्यों नहीं हुआ?” मामले के याचिकाकर्ता, पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने दावा किया कि यह एपिसोड चैनल के सोशल मीडिया अकाउंट्स – एक्स और यूट्यूब – पर इस हिंदी कैप्शन के साथ पोस्ट किया गया था- “4 करोड़ मुसलमानों में से सिर्फ 96 लाख पाकिस्तान गए! भारत विभाजन का उद्देश्य पूरा क्यों नहीं हुआ?” ठाकुर का आरोप है कि यह एपिसोड केवल दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच दरार पैदा करने के मकसद से बनाया गया था.
भारत का बेल्जियम को आश्वासन, चोकसी को साफ-मोटा सूती गद्दा, तकिया, चादर, कंबल, पलंग, रोशनी, वेंटिलेशन देंगे
भारत में 13,000 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ऋण घोटाले के आरोप में वांछित भगोड़ा हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी के चार महीने बाद, भारत ने वहां की सरकार को एक आश्वासन पत्र भेजा है. इसमें कहा गया है कि यदि चोकसी प्रत्यर्पित किया जाता है, तो उसे मुंबई की आर्थर रोड जेल परिसर की बैरक नंबर 12 में रखा जाएगा. उसे अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए (फर्नीचर को छोड़कर) कम से कम तीन वर्गमीटर जगह मिलेगी. वहां साफ और मोटा सूती गद्दा, तकिया, बिस्तर की चादर और कंबल की व्यवस्था होगी. जरूरत पड़ने पर चिकित्सकीय कारणों से धातु के फ्रेम/लकड़ी का पलंग भी दिया जा सकता है. पर्याप्त रोशनी, वेंटिलेशन और स्वीकृत निजी सामान रखने की जगह भी उपलब्ध कराई जाएगी. 4 सितंबर को बेल्जियम के अधिकारियों को भेजे गए एक पत्र में गृह मंत्रालय (एमएचए) के संयुक्त सचिव राकेश कुमार पांडेय ने कहा कि भारतीय सरकार ने चोकसी का प्रत्यर्पण बेल्जियम से मांगा है ताकि वह भारत में मुकदमे का सामना कर सके.
40 साल का संघर्ष; सरदार सरोवर बांध ने डुबो दिया, पर सरकारी रिकॉर्ड में ‘अप्रभावित’
महाराष्ट्र के नर्मदा किनारे बसे 85 वर्षीय दगडू मंडलोई बताते हैं कि कैसे उनका खेत और घर, बांध के पानी में डूब गया, लेकिन सरकारी रिकार्ड में उन्हें अब भी “अप्रभावित” घोषित किया गया है. लगभग 40 साल से वे और उनके साथी ग्रामीण न्याय की मांग में धरना, प्रदर्शन करने के अलावा अदालत के चक्कर लगा रहे हैं. यह कहानी सिर्फ दगडू मंडलोई की नहीं, हजारों की है. “आर्टिकल-14” में अंबिका सुभाष ने विस्तृत रिपोर्ट के जरिए बताया है कि पिछले चार दशकों से मध्यप्रदेश के धार ज़िले के कटनेरा गांव के आदिवासी बाढ़ और अधूरे वादों का सामना कर रहे हैं. 2023 में बारिश के दौरान बांध का बैकवाटर बढ़ने से घर डूब गए और फसलें नष्ट हो गईं. सरदार सरोवर बांध के बैकवाटर स्तर की विवादित पुनर्गणना के कारण 16,000 परिवारों का नाम आधिकारिक प्रभावितों की सूची से हटा दिया गया. अब 2025 में मानसून लौटने पर इन परिवारों के दिलों में गहरी आशंका घर कर गई है.
सरदार सरोवर परियोजना से महाराष्ट्र के 33 गांव पूरी तरह या आंशिक तौर पर डूब क्षेत्र में आए. हजारों किसान, आदिवासी और मज़दूर प्रभावित हुए. लेकिन सरकारी सर्वे रिपोर्टों में बड़ी संख्या में परिवारों को प्रभावित माना ही नहीं गया. खेतों में लगी फ़सल, आम-नींबू के पेड़, और पक्के मकान कई बार पानी में समा गए. फिर भी, पुनर्वास नीति से वंचित रखकर उन्हें मुआवज़ा नहीं मिला. आदिवासी परिवारों ने बताया, “गिनती करते समय गांव छोड़ दिए गए या सर्वेक्षण अधिकारी बताए बिना लौट गए.”
1980 के दशक में बांध का विरोध शुरू हुआ. मेधा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विस्थापितों की आवाज़ बुलंद की. 1990 और 2000 के बीच सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं. कोर्ट ने पुनर्वास नीति पर ज़ोर दिया, लेकिन ज़मीन पर पालन अधूरा रहा.
एनवीडीए (नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण) का दावा था कि सभी प्रभावित परिवारों का पुनर्वास हो गया, लेकिन गांव वालों के अनुभव इसके उलट हैं. स्थानीय किसान कहते हैं, “जब हर साल बारिश में बांध का पानी बढ़ता है, गांव और खेत डूब जाते हैं. बाढ़ के बाद कीचड़ और मलबा रह जाता है, लेकिन सरकारी सूची में गांव को “अप्रभावित” लिख दिया जाता है. ऐसे परिवार मुआवज़े से बाहर रह जाते हैं और तंगी में जीते हैं.
सरदार सरोवर बांध गुजरात के लिए सिंचाई व बिजली का बड़ा स्रोत है. गुजरात को सबसे ज्यादा लाभ मिलता है. लेकिन महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के विस्थापित परिवार शिकायत करते हैं कि उन्हें बलिदान करने के बावजूद उचित अधिकार नहीं मिला. 40 साल गुजर जाने के बाद भी प्रभावित परिवार धरनों और अदालतों के जरिए आवाज़ उठा रहे हैं. गांव-गांव में विस्थापित किसान कहते हैं, “हमारे खेत पानी में हैं, लेकिन सरकार की आंखों में नहीं दिखते.” आंदोलन अब नई पीढ़ी ने भी संभाला है, ताकि विस्थापितों के अधिकार सुरक्षित रहें.
बनारस में हो चुका अब गया में क्यों हो रहा है मोदी की माँ का पिंडदान, गुजरात में उठते सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मां हीराबा का पिंडदान गया (बिहार) में करेंगे. 17 सितंबर को अपने जन्मदिन पर वे गया में रहेंगे. पत्रकार दीपल त्रिवेदी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट “एक्स” पर लिखा है- “ पिंडदान किसी परिजन के निधन के बाद केवल एक बार किया जाता है. परंपरागत रूप से यह पहली बरसी यानी निधन के लगभग एक साल बाद किया जाता है. मोदी जी की मां का देहांत 2022 में हुआ था. उनका पिंडदान 2023 में वाराणसी में कर दिया गया था. तब यह संस्कार मोदी जी के छोटे भाई ने करवाया था, क्योंकि उस समय मोदी जी कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार-सभाओं में व्यस्त थे.”
त्रिवेदी लिखती हैं- जब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने ऐतिहासिक सिद्धपुर (गुजरात) के विकास के लिए करोड़ों रुपये मंजूर किए थे. सिद्धपुर को मृत्युपश्चात धार्मिक संस्कारों के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. दिलचस्प बात यह है कि इसी स्थान को मोदी सरकार ने "मातृ गया" का नाम दिया था. सिद्धपुर, मोदी जी के जन्मस्थान वडनगर से केवल करीब 1.15 घंटे की दूरी पर है.
ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि मोदी जी अब 17 सितंबर को अपनी मां का पिंडदान गया (बिहार) में दोबारा क्यों करने जा रहे हैं? क्या यह वास्तव में मां के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम का मामला है, जिसमें परंपरा को तोड़कर दूसरी बार पिंडदान किया जा रहा है? या फिर इसका संबंध बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से है? दीपल त्रिवेदी कहती हैं : सब कुछ!.
निशिकांत दुबे अहंकारी हैं और संसद को अकेले नियंत्रित करना चाहते हैं, सरकार से बढ़कर खुद एक सरकार हैं : रूडी
भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार से पार्टी के सांसद राजीव प्रताप रूडी ने एक इंटरव्यू में अपने साथी बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे पर भी आक्रामक टिप्पणी की है. रूडी ने उन्हें अहंकारी बताया और कहा कि दुबे संसद को अकेले नियंत्रित करना चाहते हैं और सरकार से अलग खुद को एक सरकार मानते हैं. हाल ही के दिल्ली कांस्टीट्यूशन क्लब चुनाव में दुबे ने रूडी के प्रतिद्वंदी का समर्थन किया था. पत्रकार श्रीनिवासन जैन को दिए इंटरव्यू में रूडी ने कहा, “1200 वोटर में से 700 ने दिल्ली में वोट दिया. सबने कहा—रूडी ने अच्छा किया.” दुबे के बारे में रूडी ने कहा कि उनके साथ समस्या है कि वह सबकुछ चलाना चाहते हैं, सरकार से बढ़कर खुद एक सरकार हैं और मैं उनकी सरकार का हिस्सा नहीं हूं. इस इंटरव्यू में उनसे विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ उनकी कथित केमिस्ट्री और कांस्टीट्यूशन क्लब के चुनावों को लेकर भाजपा की अंदरूनी सियासत के बारे में भी सवाल किए गए.
बीजेपी सांसद रूडी ने बिहार में वोटर लिस्ट से 65 लाख नामों को हटाने की चुनाव आयोग की कार्रवाई पर सफाई दी, जिसे विपक्ष “वोट चोरी” बता रहा है. उन्होंने प्रधानमंत्री के इस दावे का बचाव किया कि बिहार में घुसपैठियों की संख्या बढ़ी है, हालांकि सरकार या आयोग की तरफ से इसका कोई सबूत नहीं दिया गया है. रूडी ने भाजपा की बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात दोहराते हुए कहा कि देश में ऐसे लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं जो खुद को बंगाल का बताते हैं, लेकिन उनके पूर्वज वहां के नहीं हैं. राज्य सरकारें भी मजदूरों की कमी या अन्य कारणों से इन लोगों को बसने दे रही हैं.
रूडी ने चुनाव आयोग की कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा कि हटाए गए 25 लाख वोटर मृत घोषित हुए हैं और बाकी या तो पलायन कर चुके हैं या उन्हें ट्रेस नहीं किया जा सका. बिहार में एनडीए सरकार की उपलब्धि बताते हुए उन्होंने दावा किया कि उनके आंकड़ों के मुताबिक करीब एक करोड़ लोगों को रोजगार मिला है—चाहे वो प्रत्यक्ष, सरकारी, स्वरोजगार या बैंकिंग सेक्टर में हो—हालांकि इस आंकड़े का समर्थन करने वाला कोई प्रमाण उनके पास नहीं था.
हज़रतबल दरगाह मामला: हिरासत में लोगों की रिहाई की मांग
जम्मू और कश्मीर की श्रीनगर लोकसभा सीट से सांसद और नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने रविवार को अधिकारियों से हज़रतबल दरगाह में पिछले हफ़्ते हुई तोड़फोड़ के मामले में हिरासत में लिए गए संदिग्धों को रिहा करने की मांग की. उन्होंने "लगभग 30 व्यक्तियों" की हिरासत को "परिचालन प्रतिशोध" की कार्रवाई बताया. मेहदी का बयान इस घटना को प्रशासनिक विफलता के रूप में पेश करता है, न कि केवल एक भीड़ की कार्रवाई के रूप में, जिससे यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है. पिछले हफ़्ते हज़रतबल दरगाह के अंदर एक पट्टिका पर उकेरे गए राष्ट्रीय प्रतीक को की भीड़ ने विरूपित कर दिया था. रूहुल्लाह ने कहा कि यह घटना "प्रशासनिक असंवेदनशीलता, यदि जानबूझकर उकसावे की नहीं, तो" के कारण हुई. यह बयान तब आया जब सत्ताधारी पार्टी के एक प्रवक्ता ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर बताया कि भाजपा की वरिष्ठ नेता दरख्शां अंद्राबी की अध्यक्षता वाले वक्फ़ बोर्ड ने 4 सितंबर को श्रीनगर के खिम्बर गांव में एक और दरगाह पर एक विकास परियोजना की पट्टिका पर राष्ट्रीय प्रतीक नहीं दर्शाया था. यह घटना अब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच एक राजनीतिक टकराव का केंद्र बन गई है. विपक्ष प्रशासन पर दोहरे मापदंड और लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगा रहा है. वहीं, प्रशासन इसे राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान के रूप में देख रहा है, जिससे यह मुद्दा "राष्ट्रवाद की ग़लत परीक्षा" के रूप में पेश किया जा रहा है.
'सहयोग' पोर्टल के ज़रिए 3,000 से ज़्यादा यूआरएल हटाने के अनुरोध
यशराज शर्मा की रिपोर्ट है कि सरकारी निकायों ने पिछले साल अक्टूबर में लॉन्च होने के बाद से इस साल जून तक केंद्रीय गृह मंत्रालय के 'सहयोग' पोर्टल के माध्यम से 3,000 से अधिक यूआरएल को हटाने के लिए 294 अनुरोध जारी किए हैं. यह ख़बर ऑनलाइन सामग्री को हटाने के लिए सरकार द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे एक कम चर्चित लेकिन शक्तिशाली तंत्र को उजागर करती है. यह पोर्टल आईटी अधिनियम की धारा 79(3)(बी) के तहत काम करता है, जिसकी अदालतों द्वारा उतनी समीक्षा नहीं की गई है जितनी कि धारा 69ए की. इससे चिंता पैदा होती है कि इसका इस्तेमाल बिना उचित प्रक्रिया के सेंसरशिप के लिए किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत जारी किए गए ब्लॉकिंग आदेशों को संकीर्ण रूप से तैयार किया जाना चाहिए. हालांकि, सहयोग पोर्टल धारा 79(3)(बी) के तहत काम करता है, जो कहता है कि अगर मध्यस्थ (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म) सरकार द्वारा अवैध मानी गई सामग्री को नहीं हटाते हैं, तो वे अपनी क़ानूनी सुरक्षा खो देंगे. रिपोर्ट में यह भी याद दिलाया गया है कि केवल भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारों ने ही सहयोग का संदिग्ध उपयोग नहीं किया है: पश्चिम बंगाल सरकार ने इस साल की शुरुआत में ममता बनर्जी की स्पेस सूट में एक तस्वीर को हटाने के लिए इसका इस्तेमाल करने की कोशिश की थी. 'सहयोग' पोर्टल सरकार को कम क़ानूनी जांच के साथ ऑनलाइन सामग्री को हटाने के लिए एक सुव्यवस्थित तरीक़ा प्रदान करता है. जबकि इसका उद्देश्य अवैध गतिविधियों से निपटना है, इसकी अस्पष्ट प्रक्रियाएं और न्यायिक निगरानी की कमी इसे राजनीतिक आलोचना को दबाने के लिए एक संभावित उपकरण बनाती है, जिसका उपयोग किसी भी राजनीतिक दल की सरकार कर सकती है. एक्स कॉर्प (पूर्व में ट्विटर) ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में सहयोग पोर्टल को चुनौती दी है, इसे "सेंसरशिप पोर्टल" कहा है. इस मामले के नतीजे और सामग्री हटाने के लिए धारा 79(3)(बी) के उपयोग पर बढ़ती सार्वजनिक बहस यह तय करेगी कि भारत में ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भविष्य क्या होगा.
गुरुग्राम में बाढ़ का असर: रियल एस्टेट बाज़ार में मंदी, नोएडा को फ़ायदा
गुरुग्राम में भारी बारिश और उसके बाद आई बाढ़ के कारण ग्राहकों की दिलचस्पी कम हो रही है, जिससे वहां का रियल एस्टेट बाज़ार धीमा पड़ गया है. एक अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, "डेवलपर्स और ब्रोकरेज फ़र्में ग्राहकों द्वारा साइट विज़िट में भारी गिरावट" देख रही हैं. ख़राब नागरिक बुनियादी ढांचा एक उच्च-मूल्य वाले और "प्रचारित" रियल एस्टेट बाज़ार को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है. यह शहरी योजनाकारों और डेवलपर्स के लिए एक चेतावनी है कि केवल ऊंची इमारतें बनाना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि मजबूत बुनियादी ढांचा भी उतना ही ज़रूरी है. गुरुग्राम हमेशा से एक चर्चित बाज़ार रहा है, जहां प्रतिष्ठित गोल्फ कोर्स रोड पर अपार्टमेंट 7-15 करोड़ रुपये में बिकते थे और एक पेंटहाउस कथित तौर पर 190 करोड़ रुपये की भारी क़ीमत पर बिका था. लेकिन नागरिक बुनियादी ढांचा हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है. हाल ही में हुई कुछ बारिशों ने दिखा दिया कि गुरुग्राम इसका सामना नहीं कर सकता. लोग 6 घंटे या उससे ज़्यादा समय तक अपनी गाड़ियों में फंसे रहे. गुरुग्राम की हानि नोएडा का लाभ बन रही है. बेहतर बुनियादी ढांचा और एक आगामी हवाई अड्डा नोएडा को घर ख़रीदारों के लिए एक आकर्षक विकल्प बना रहे हैं. ख़रीदार अब केवल प्रीमियम पते के बजाय पानी की निकासी और यातायात प्रबंधन जैसी बुनियादी सुविधाओं को प्राथमिकता दे रहे हैं, जो उनकी जीवनशैली को सीधे प्रभावित करती हैं. यदि गुरुग्राम में बुनियादी ढांचे के मुद्दों को संबोधित नहीं किया गया, तो संपत्ति की क़ीमतों में सुधार या वृद्धि की धीमी गति देखी जा सकती है. इसके विपरीत, नोएडा के रियल एस्टेट बाज़ार में मांग और निवेश दोनों में तेज़ी आने की संभावना है, क्योंकि निवेशक और अंतिम उपयोगकर्ता अधिक विश्वसनीय और बेहतर नियोजित क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं.
बीसीसीआई का ख़ज़ाना भरा: 5 साल में 14,627 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी
क्रिकबज़ के मुताबिक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने पिछले पांच वर्षों में अपने ख़ज़ाने में 14,627 करोड़ रुपये की मज़बूती लाई है, जिसमें से अकेले पिछले वित्तीय वर्ष में 4,193 करोड़ रुपये जोड़े गए. एक रिपोर्ट के अनुसार, इससे बोर्ड का नक़द और बैंक बैलेंस 20,686 करोड़ रुपये हो गया है.
ये आंकड़े बीसीसीआई की अपार वित्तीय शक्ति को दर्शाते हैं, जो इसे दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बनाता है. यह वित्तीय ताक़त बीसीसीआई को वैश्विक क्रिकेट में महत्वपूर्ण प्रभाव डालने और भारतीय क्रिकेट के व्यावसायिक सफलता को रेखांकित करने की क्षमता देती है. यह वृद्धि राज्य इकाइयों को सभी बकाए का भुगतान करने के बाद दर्ज की गई है. राज्य संघों के साथ साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, सामान्य फंड 2019 में 3,906 करोड़ रुपये से लगभग दोगुना होकर 2024 में 7,988 करोड़ रुपये हो गया है. बीसीसीआई की भारी कमाई मुख्य रूप से इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) और आईसीसी से मिलने वाले हिस्से से होती है. यह वित्तीय ताक़त बोर्ड को घरेलू बुनियादी ढांचे में भारी निवेश करने की अनुमति देती है, लेकिन साथ ही इसके शासन और वित्तीय पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करती है. इस भारी धनराशि के साथ, बीसीसीआई से देश भर में ज़मीनी स्तर पर क्रिकेट, खिलाड़ियों के कल्याण और बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश जारी रखने की उम्मीदें बढ़ेंगी. बोर्ड की वित्तीय सफलता पर भविष्य में भी कड़ी नज़र रखी जाएगी, साथ ही यह भी देखा जाएगा कि इस पैसे का उपयोग भारतीय क्रिकेट को और बेहतर बनाने के लिए कैसे किया जाता है.
सोनिया गांधी ने निकोबार में आदिवासी अधिकारों और पर्यावरण के लिए आवाज़ उठाई
ग्रेट निकोबार में ₹72,000 करोड़ की एक विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है, जो द्वीप के स्वदेशी आदिवासी समुदायों के लिए एक अस्तित्व का संकट पैदा कर रही है. यह परियोजना दुनिया के सबसे अनोखे वनस्पतियों और जीवों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर ख़तरा है और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील है. कांग्रेस संसदीय दल की सोनिया गांधी ने हिंदू में एक बड़े लेख में कहा कि इसके बावजूद, इसे असंवेदनशील तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है, जो सभी कानूनी और विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मज़ाक उड़ाता है.
यह परियोजना विकास और संरक्षण के बीच एक बड़े टकराव का प्रतीक है. यह शोम्पेन और निकोबारी जैसे कमज़ोर जनजातीय समूहों के अस्तित्व को ख़तरे में डालती है, जो सदियों से वहां रह रहे हैं. इसके अलावा, यह एक अद्वितीय वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर देगी, जो न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के लिए भी महत्वपूर्ण है. यह परियोजना एक ऐसे क्षेत्र में प्रस्तावित है जो भूकंप और सुनामी के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील है, जिससे यह एक मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदा का केंद्र बन सकती है.
यह परियोजना शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों को उनकी पैतृक भूमि से विस्थापित कर देगी. शोम्पेन जनजाति, जो एक विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) है, के रिज़र्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डिनोटिफ़ाई कर दिया जाएगा. इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और निकोबार की जनजातीय परिषद जैसे संवैधानिक निकायों को दरकिनार किया गया है. परियोजना के लिए द्वीप की 15% भूमि पर लगे लगभग 8.5 लाख से 58 लाख पेड़ों को काटने का अनुमान है. इसकी भरपाई के लिए हरियाणा में 'क्षतिपूरक वनीकरण' की योजना है, जो पारिस्थितिक रूप से एक मज़ाक है. यह परियोजना कछुओं के प्रजनन स्थलों और मूंगा चट्टानों वाले क्षेत्र में भी आती है.
यह लेख सरकार पर वन अधिकार अधिनियम (2006) और भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2013) जैसे क़ानूनों का मखौल उड़ाने का आरोप लगाता है. ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी प्रक्रिया को जल्दबाज़ी में और बिना पारदर्शिता के आगे बढ़ाया जा रहा है. विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्टों और जैव विविधता आकलनों पर भी सवाल उठाए गए हैं, जिनमें पद्धतिगत खामियां बताई गई हैं. यह एक ऐसे विकास मॉडल की ओर इशारा करता है जो लोगों और पर्यावरण पर बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देता है, चाहे उसकी मानवीय और पर्यावरणीय लागत कितनी भी ज़्यादा क्यों न हो.
सोनिया गांधी ने इस "न्याय के उपहास" और राष्ट्रीय मूल्यों के साथ "विश्वासघात" के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का आह्वान किया है. उनका कहना है कि हमारी सामूहिक चेतना को चुप नहीं रहना चाहिए जब शोम्पेन और निकोबारी जनजातियों का अस्तित्व दांव पर लगा हो. इसका उद्देश्य जनता और राजनीतिक दबाव बनाना है ताकि इस परियोजना को रोका जा सके या इसका पुनर्मूल्यांकन किया जा सके, इससे पहले कि कोई अपरिवर्तनीय क्षति हो.
ज़ेलेंस्की ने रूस से व्यापार करने वाले देशों पर ट्रम्प के टैरिफ़ का किया समर्थन, मोदी के दौरे का ज़िक्र
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस फ़ैसले का समर्थन किया है जिसमें रूस के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखने वाले देशों, जिसमें भारत भी शामिल है, पर टैरिफ़ लगाने की बात कही गई है. एबीसी न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में ज़ेलेंस्की ने कहा, "मेरा मानना है कि उस देश पर टैरिफ़ लगाने का विचार... जो रूस के साथ सौदे करना जारी रखे हुए है, एक सही विचार है." यह बयान यूक्रेन के रुख को भारत की विदेश और आर्थिक नीति के सीधे विरोध में खड़ा करता है. भारत ने यूक्रेन संघर्ष में एक संतुलित रुख बनाए रखने की कोशिश की है और रूस से ऊर्जा आयात जारी रखा है. ज़ेलेंस्की का यह बयान भारत जैसे देशों पर कूटनीतिक दबाव डालता है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस के साथ अपने आर्थिक संबंधों को बनाए हुए हैं. यह दिखाता है कि यूक्रेन चाहता है कि दुनिया के देश रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के लिए और कड़े क़दम उठाएं.
ज़ेलेंस्की से यह सवाल तब पूछा गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए चीन का दौरा किया, जहां उनकी मुलाक़ात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई थी. ज़ेलेंस्की ने कहा, "हमें रूस से किसी भी तरह की ऊर्जा खरीदना बंद करना होगा." उन्होंने रूस के साथ किसी भी तरह के सौदे को रोकने की वकालत की. ज़ेलेंस्की ने पुतिन के मॉस्को में बातचीत के निमंत्रण को भी यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि "जब मेरे देश पर मिसाइलें बरस रही हों तो मैं मॉस्को नहीं जा सकता."
ज़ेलेंस्की इस अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग उन देशों पर सार्वजनिक रूप से दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं जो रूस की अर्थव्यवस्था को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचाने में मदद कर रहे हैं. ट्रम्प के टैरिफ़ का समर्थन करके, वह एक टकराव वाली आर्थिक रणनीति का पक्ष ले रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का विशेष रूप से ज़िक्र करना नई दिल्ली के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि यूक्रेन भारत के रुख से ख़ुश नहीं है. भारत, जिसने पहले ही अमेरिकी टैरिफ़ को "अनुचित और अन्यायपूर्ण" बताया है, को अमेरिका और यूक्रेन दोनों से निरंतर कूटनीतिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि भारत ने अभी तक ज़ेलेंस्की की टिप्पणियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उसे रूस के साथ अपने पुराने संबंधों, अपनी आर्थिक ज़रूरतों और पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्तों के बीच संतुलन बनाना जारी रखना होगा. यह बयान भारत के लिए कूटनीतिक चुनौती को और बढ़ा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार और 'द टेलीग्राफ़' के संपादक संकर्षण ठाकुर का निधन
'द टेलीग्राफ़' के संपादक और प्रसिद्ध पत्रकार संकर्षण ठाकुर का सोमवार को गुरुग्राम के एक अस्पताल में 63 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वे हाल ही में हुई एक सर्जरी के बाद से बीमार थे. संकर्षण ठाकुर के निधन से भारतीय पत्रकारिता ने एक निडर और प्रमुख आवाज़ खो दी है. वे अपनी तीक्ष्ण राजनीतिक अंतर्दृष्टि और सत्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे, ख़ासकर ऐसे समय में जब प्रेस के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं. ठाकुर ने "लोगों, देश और संविधान के साथ विश्वास बनाए रखा". बिहार और कश्मीर पर उनकी कवरेज ने समकालीन पत्रकारिता पर एक अमिट छाप छोड़ी. एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि में "अजेय" और "प्रसिद्ध" कहा, जबकि प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने "पत्रकारिता में एक निडर आवाज़" के खोने पर शोक व्यक्त किया. उनकी सहयोगी सीमा चिश्ती ने "2014 के बाद के भारत की घटनाओं को हमेशा संदर्भ में रखने की उनकी क्षमता" को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी. संकर्षण ठाकुर का काम और उनकी लेखनी पत्रकारों के लिए एक संदर्भ बिंदु बनी रहेगी. भारतीय राजनीतिक टिप्पणी के परिदृश्य में उनकी कमी हमेशा महसूस की जाएगी.
यरुशलम में बस स्टॉप पर हमला, 6 की मौत
यरुशलम के बाहरी इलाके में सोमवार को एक बस स्टॉप पर दो फ़लस्तीनी बंदूक़धारियों ने गोलीबारी कर दी, जिसमें एक स्पेनिश नागरिक समेत छह लोगों की मौत हो गई और 20 से ज़्यादा लोग घायल हो गए. इज़रायली पुलिस ने इसे "आतंकवादी हमला" बताया है, जो हाल के वर्षों में शहर के सबसे घातक हमलों में से एक है. एक सैनिक और एक सशस्त्र नागरिक ने मौक़े पर ही दोनों हमलावरों को मार गिराया. यह हमला यरुशलम में लगभग दो साल से चल रहे गाज़ा युद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ है, जिससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है. इस घटना ने इज़रायल और वेस्ट बैंक में इज़रायली नागरिकों और सैनिकों को निशाना बनाकर किए जाने वाले हमलों की श्रृंखला को आगे बढ़ाया है, जिससे हिंसा का एक नया दौर शुरू होने का ख़तरा पैदा हो गया है. हमलावरों की पहचान वेस्ट बैंक के फ़लस्तीनी बंदूक़धारियों के रूप में हुई है. वे कार से रामोत जंक्शन पर एक बस स्टॉप पर पहुंचे और भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी. घटनास्थल से कई बंदूकें, गोला-बारूद और एक चाकू बरामद किया गया है. फ़लस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने "फ़लस्तीनी और इज़रायली नागरिकों को निशाना बनाने वाली किसी भी कार्रवाई" की निंदा की है, जबकि हमास और इस्लामिक जिहाद जैसे आतंकवादी समूहों ने हमले की प्रशंसा की है, हालांकि किसी ने भी ज़िम्मेदारी नहीं ली है.
यह हमला इज़रायल-फ़लस्तीन संघर्ष के एक बड़े और अधिक हिंसक पैटर्न का हिस्सा है. गाज़ा में इज़रायली सैन्य अभियान और वेस्ट बैंक में यहूदियों द्वारा फ़लस्तीनियों पर बढ़ते हमलों ने तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है. इस तरह के हमले अक्सर जवाबी कार्रवाई को जन्म देते हैं, जिससे हिंसा का चक्र समाप्त नहीं हो पाता. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमलावरों की मदद करने वाले संदिग्धों का पता लगाने का संकल्प लिया है. इज़रायली सेना ने हमलावरों के गांव की पूरी घेराबंदी कर दी है और वेस्ट बैंक के अन्य इलाक़ों में भी अभियान चला रही है. इस घटना के बाद क्षेत्र में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और आने वाले दिनों में और सैन्य कार्रवाइयों की आशंका है.
विश्लेषण
न्यायपालिका को ऐसा दिल चाहिए, जो धड़कता हो
“उमर खालिद मामले में अदालत ने अपने ही फैसलों का उल्लंघन किया, प्रक्रिया को ही सज़ा बनने दिया, इसे अमानवीकरण का हथियार बना दिया. अब समय आ गया है कि न्याय का उपभोक्ता अपना झंडा उठाए. मिट्टी या पत्थर से बनी उस न्याय की प्रतिमा के भीतर एक धड़कता हुआ दिल होना चाहिए,” कुछ सवालों के साथ ये टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश रेखा शर्मा ने “द इंडियन एक्सप्रेस” में प्रकाशित अपने एक लेख में की है.
शर्मा लिखती हैं- लगभग 50 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था, “जमानत नियम है और जेल अपवाद.” ऐसे भी मामले रहे हैं, जब सुप्रीम कोर्ट ने देर रात तक जमानत आदेश जारी किए. लेकिन समय बदल गया है. वह अनुकरणीय नियम अब अधिकतर उल्लंघन में देखा जाता है न कि पालन में. यही कारण था कि जब दिल्ली हाईकोर्ट ने 2 सितंबर को उमर खालिद और नौ अन्य व्यक्तियों को, जो लगभग पांच साल से जेल में बंद हैं, जमानत देने से मना कर दिया, तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं हुआ.
अगर कोई सॉलिसिटर जनरल की दलील से सहमत हो तो आरोपी को पूरे मुकदमे और अपील पूरी होने तक जेल में रहना होगा, और पांच साल बीत जाने के बाद भी ट्रायल शुरू नहीं हुआ, तो फिर सवाल उठता है: अगर उमर खालिद ने पांच साल जेल में काट दिए और उसकी जमानत खारिज कर दी गई—तो क्या सुप्रीम कोर्ट का यह लगातार कहना कि त्वरित सुनवाई अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है, आज बेमानी हो गया है? क्या ट्रायल में देरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं है? क्या सुप्रीम कोर्ट वास्तव में यह संदेश दे रहा है कि जेल का एक भी दिन बहुत बड़ा नहीं, क्योंकि उसे बाद में बरी किया जा सकता है?
हाल ही में, 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 आरोपियों को बरी कर दिया, और यह साफ कर दिया कि अभियोजन पक्ष उनका अपराध साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा. उन 16 वर्षों की जेल और बर्बाद ज़िंदगी का क्या होगा? खालिद का मामला अलग है: उनके खिलाफ लगाए गए आरोप अभी तक साबित नहीं हुए हैं, लेकिन फिर भी उन्हें जमानत का अधिकार नहीं मिल रहा. तो हमें बार-बार यही क्यों सुनाया जाता है—“जमानत अधिकार है, जेल अपवाद”?
उमर खालिद और उनके जैसे कई लोगों को याद दिला दिया गया है कि वे पुणे के बिजनेसमैन नहीं हैं, जिसने कथित तौर पर शराब पीकर पोर्शे कार से मोटरसाइकिल सवार दो लोगों को कुचल दिया और मज़ाक़ उड़ाने लायक जमानत की शर्तों पर छूट गया—हादसों पर निबंध लिखना और ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करना.
लोग यह न भूलें कि आसाराम बापू और गुरमीत राम रहीम जैसे लोग भी, हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में दोषी पाए जाने के बावजूद, समय-समय पर जेल से बाहर आते-जाते रहते हैं. अल्फ्रेड लॉर्ड टेनिसन के शब्दों में, भले ही अलग संदर्भ में कहा गया, "उनका काम वजह पूछना नहीं, उनका काम है मरना और मारना."
दुख उमर खालिद के बारे में नहीं है. उनके साथ कोई खड़ा नहीं है और अगर उन्होंने कोई अपराध किया है तो उन्हें क़ानून के मुताबिक़ सज़ा दी जानी चाहिए—कठोर या हल्की, जैसा कि क़ानून में है. लेकिन जब तक अपराध सिद्ध नहीं हो जाता, तब तक उन्हें जेल में रखने की यह प्रक्रिया खुद ही सज़ा बन जाती है. इसे अमानवीकरण का हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए. यह पूरे समाज में संवेदनहीनता की एक प्रवृत्ति पैदा कर रहा है.
दुर्भाग्य से, यह सिर्फ़ आम नागरिक ही नहीं हैं जो असंवेदनशील बन रहे हैं; न्यायिक व्यवस्था भी न्याय को ठोस और जीवंत रूप में लागू करने में असफल रही है. न्यायिक व्यवस्था को शासक के लिए नहीं बल्कि जनता के लिए दिल की ज़रूरत है. आज जब न्याय को कठिन होते देखना भी आम हो चला है, तब भी यह अब भी सामूहिक स्मृति में जीवित है कि न्याय में दया और संवेदनशीलता होनी चाहिए.
न्यायपालिका के कई फैसले इस बात की गवाही देते हैं कि जब वह संकीर्ण तकनीकी मसलों में उलझती है और संवेदनशील मानवीय दृष्टिकोण छोड़ देती है, तो न्याय तंत्र कमजोर हो जाता है. इंसाफ पाने की राह में खड़े याचक—आम आदमी—बार-बार निराश होते हैं और उनकी उम्मीदें टूट जाती हैं.
“न्यायपालिका को अपनी कठोरता से बाहर आना होगा. जो लोग बिना अपराध सिद्ध हुए लंबे समय तक जेल में कैद हैं, उनके लिए तुरंत सहानुभूतिपूर्ण कदम उठाने का समय है. न्यायपालिका को एक धड़कता हुआ दिल चाहिए. आगे बढ़ना होगा और कार्रवाई करनी होगी”, शर्मा ने लिखा है.
चलते चलते
अदालत की दीवार पर जजों के ख़िलाफ बैंक्सी का नया आर्टवर्क
बैंक्सी एक विश्व प्रसिद्ध कलाकार हैं जिनका काम अक्सर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर तीखा कटाक्ष करता है. उनका कोई भी नया काम एक बड़ी सांस्कृतिक घटना माना जाता है. इस बार उनकी कलाकृति का रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस जैसी प्रतिष्ठित कानूनी इमारत पर दिखना और उसका विषय (एक जज द्वारा प्रदर्शनकारी पर हमला) न्याय, शक्ति और विरोध के अधिकार पर एक शक्तिशाली टिप्पणी है. यह कलाकृति ऐसे समय में सामने आई है जब विरोध प्रदर्शनों पर सरकारी सख़्ती बढ़ रही है.
यह कलाकृति किसी विशेष घटना का ज़िक्र नहीं करती, लेकिन यह फ़िलिस्तीन एक्शन पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ लंदन में हुए एक विरोध प्रदर्शन के दो दिन बाद सामने आई है, जिसमें लगभग 900 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. सोशल मीडिया पर आई तस्वीरों से पता चलता है कि कलाकृति को सामने आने के कुछ ही समय बाद प्लास्टिक की बड़ी शीटों और धातु की रेलिंग से ढक दिया गया. कलाकृति की सुरक्षा के लिए सुरक्षा अधिकारी तैनात हैं और यह एक सीसीटीवी कैमरे के नीचे स्थित है. बैंक्सी ने इंस्टाग्राम पर तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा: "रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस. लंदन." यह आर्टवर्क न्याय प्रणाली और प्रदर्शनकारियों के साथ उसके व्यवहार की स्पष्ट आलोचना है. हालांकि यह सीधे तौर पर किसी एक विरोध से नहीं जुड़ा है, लेकिन इसकी टाइमिंग बहुत महत्वपूर्ण है. इसे तुरंत ढक दिया जाना और सुरक्षा में रखना इस बात का संकेत है कि यह कितना विवादास्पद है और अधिकारी इस पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. बैंक्सी की कला अक्सर सरकारी नीतियों, युद्ध और पूंजीवाद की आलोचना करती है, और यह काम भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाता है.
फिलहाल कलाकृति को ढंक दिया गया है और इसका भविष्य अनिश्चित है. इसे संरक्षित किया जा सकता है, हटाया जा सकता है, या यह सार्वजनिक बहस का केंद्र बन सकता है. बैंक्सी के काम की भारी क़ीमत और उसके सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए, यह कुछ समय के लिए चर्चा का विषय बना रहेगा और इस पर बहस जारी रहेगी कि इसे संरक्षित किया जाना चाहिए या नहीं.
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