कार्ति पर नया सीबीआई केस, गंदी ज़ुबान से मिलती तरक्की, दिल्ली में इंडिया ब्लॉक आप के साथ, भाजपा से फिसलता दलित वोट, लोकतंत्र के कुँएं में घुलती हुई भांग, भारतीय पासपोर्ट का रुआब घटा
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ : 10/01/ 2025
निज्जर की हत्या के आरोपियों को जमानत : कनाडा की एक अदालत ने उन चार भारतीय नागरिकों को जमानत दे दी है, जिन्हें खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोप में मई 2024 में गिरफ्तार किया गया था. 45 वर्षीय निज्जर की जून 2023 में हुई हत्या ने भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव पैदा कर दिया था. कनाडा ने हत्या में भारत की भूमिका पर संदेह व्यक्त किया था, जबकि भारत ने इन आरोपों को "बेतुका" करार दिया था.
सोशल मीडिया से कंटेंट हटवाने के लिए दिल्ली पुलिस अधिकृत : दिल्ली के उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने कम से कम 23 वरिष्ठ दिल्ली पुलिस अधिकारियों को सोशल मीडिया कंपनियों और अन्य माध्यमों से अवैध सामग्री हटाने का आदेश जारी करने का अधिकार दे दिया है. अफसरों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अधिकृत किया गया है और 26 दिसंबर की गजट अधिसूचना में इसे प्रकाशित भी कर दिया गया है. दिल्ली पुलिस को इन कार्यों को करने के लिए एनसीटी दिल्ली की "नोडल एजेंसी" के रूप में नामित किया गया है. आईटी अधिनियम की धारा 79 (3) (बी) कहती है कि मध्यस्थ (जैसे फेसबुक, यूट्यूब, जियो, क्लाउडफ्लेयर) यदि "उचित" सरकार या "उसकी एजेंसी" द्वारा सूचित किए जाने के बावजूद सामग्री हटाने में विफल रहते हैं, तो वे तीसरे पक्ष की सामग्री के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.
सीबीआई ने कार्ति चिदंबरम पर भ्रष्टाचार का नया मामला दर्ज किया : पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम पर शराब बनाने वाली कंपनी को राहत देने का मामला दर्ज किया गया है. जांच एजेंसी सीबीआई ने आरोप लगाया है कि कि डियाजियो स्कॉटलैंड, यूके ड्यूटी-फ्री जॉनी वॉकर व्हिस्की का आयात करता था. अप्रैल 2005 में, भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) ने भारत में डियाजियो समूह के ड्यूटी-फ्री उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके परिणामस्वरूप डियाजियो स्कॉटलैंड को भारी नुकसान हुआ, क्योंकि भारत में इसका 70% कारोबार जॉनी वॉकर व्हिस्की की बिक्री से संबंधित था. सीबीआई की एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि डियाजियो स्कॉटलैंड ने प्रतिबंध हटाने में मदद के लिए कार्ति चिदंबरम से संपर्क किया और एडवांटेज स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग को बतौर परामर्श शुल्क 15,000 डॉलर (करीब 12 लाख 88 हजार रुपये) का भुगतान किया.
मेरी सरकार ने मुझे छोड़ दिया : निखिल गुप्ता, जिस पर खालिस्तान समर्थक नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में भारतीय सरकारी अधिकारी के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का आरोप है, ने कहा है कि उनके परिवार द्वारा कई बार अनुरोध करने के बावजूद भारत सरकार से किसी ने भी उनसे संपर्क नहीं किया है. गुप्ता, जिन्हें सात महीने पहले चेक गणराज्य से प्रत्यर्पित किया गया था, को न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन में मेट्रोपॉलिटन डिटेंशन सेंटर में रखा गया है. गुप्ता ने द इंडियन एक्सप्रेस को एक साक्षात्कार में बताया, “जब से मुझे 14 जून को प्राग से अमेरिका प्रत्यर्पित किया गया है, मुझे कोई काउंसुलेर एक्सेस नहीं मिला है. भारतीय दूतावास से कोई भी मुझसे मिलने नहीं आया है. मेरे परिवार ने इसके लिए कई अनुरोध किए, लेकिन आज तक कोई मुझसे मिलने नहीं आया है.” उन्होंने आगे कहा कि लंबी कानूनी लड़ाई के कारण उनके परिवार पर वित्तीय बोझ पड़ने के कारण उन्हें निजी वकील की सेवाएं बंद करने और अमेरिका में सरकार द्वारा नियुक्त वकील का अनुरोध करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. भारत सरकार ने पहले पन्नू के खिलाफ कथित हत्या की साजिश में किसी भी भूमिका से इनकार किया था.
भारतीय पासपोर्ट का रुआब थोड़ा और घटा : हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025 के अनुसार, दुनिया के सबसे रौबदार पासपोर्ट की सूची में भारत की रैंकिंग पांच स्थान गिरकर 80वें से 85वें स्थान पर आ गई है. अभी के हालात के मुताबिक भारतीय पासपोर्ट धारक 57 गंतव्यों पर वीजा-मुक्त यात्रा कर सकता है. भारत की रैंक इक्वेटोरियल गिनी और नाइजर के साथ साझा है. सिंगापुर ने 2025 में भी शीर्ष रैंक हासिल करते हुए दुनिया के सबसे मजबूत पासपोर्ट की सूची में अपना दबदबा बनाए रखा है. हेनले पासपोर्ट इंडेक्स के अनुसार, सिंगापुर पासपोर्ट वाला व्यक्ति दुनिया भर के 195 गंतव्यों पर वीजा-मुक्त यात्रा कर सकता है.
जितनी गंदी ज़ुबान, उतनी तरक्की की गारंटी: महाराष्ट्र में तीन बार के भाजपा विधायक नीतेश राणे ने मुसलमानों को निशाना बनाते हुए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके अपनी विरासत बनाई है, वह अक्सर उन्हें "हरे सूअर" और "हरे सांप" कहते हैं, और मस्जिदों और मुस्लिम समुदायों पर हमलों को भड़काकर हिंसा को उकसाते हैं. पिछले दो वर्षों में अपनी भड़काऊ बयानबाजी के लिए 20 एफआईआर का सामना करने के बावजूद, राणे को हाल ही में महाराष्ट्र की नव निर्वाचित सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया था. कुणाल पुरोहित ने आर्टिकल 14 में अभद्र भाषा के लिए ईनाम के पैटर्न पर लंबी रिपोर्ट लिखी है. राणे की तरक्की एक बड़े रुझान का प्रतीक है. अब सार्वजनिक जीवन और राजनीति में जो जितनी गंदी ज़ुबान से बोलता है, उसे उतना अधिक भाव मिलता है. सिर्फ नितेश राणे ही क्यों, दिल्ली भारतीय जनता पार्टी के नेता रमेश बिधूड़ी को ही ले लीजिये. साध्वी प्रज्ञा भी ऐसी ही थीं.
राज्यों से छीना गया कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार, स्टालिन और दूसरे नेताओं का विरोध
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से जारी नए नियमों को ‘संघवाद और राज्य के अधिकारों पर हमला’ करार दिया. मंगलवार को उन्होंने कहा कि राज्य कानूनी और राजनीतिक रूप से ‘अस्वीकार्य अतिक्रमण’ से लड़ेगा. इसी तरह का प्रतिरोध केरल, तेलंघाना और पश्चिम बंगाल में भी हो रहा है. जिन राज्यों में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनातनी का माहौल है, वहाँ इस नयी व्यवस्था को लेकर खासा बवाल खड़ा हो रहा है.
सोमवार 6 जनवरी को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यताएं और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के उपाय) विनियम, 2025 के मसौदे को जारी किया. इसमें कुलपतियों की चयन प्रक्रिया को संशोधित किया गया है. यूजीसी के मसौदे ने कुलपतियों की नियुक्ति के लिए तीन सदस्यीय ‘खोज-सह-चयन समिति’ गठित करने के लिए कुलाधिपति (गवर्नर) या विजिटर टू कॉन्टीट्यूट को अधिकार दिए हैं. दिशा-निर्देशों में यह चेतावनी भी दी गई है कि इसका कार्यान्वयन न करने पर किसी संस्थान को यूजीसी की योजनाओं में भाग लेने या डिग्री कार्यक्रम पेश करने से रोका जा सकता है. यूजीसी ने हितधारकों और जनता को मसौदे पर टिप्पणी देने के लिए 30 दिन का समय दिया है.
स्टालिन का नए नियमों का विरोध चेन्नई में राजभवन के साथ चल रही लड़ाई से उपजा है, जिसमें उच्च शिक्षा से जुड़े मामलों सहित कई मुद्दों पर राज्य सरकार और राज्यपाल की तनातनी बनी हुई है. राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव के कारण पिछले एक साल से छह राज्य वित्तपोषित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में देरी हो रही है. स्टालिन ने कहा, ‘चूंकि शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, इसलिए तमिलनाडु सरकार यूजीसी की ओर से इस अधिसूचना को एकतरफा जारी करने के कदम को असंवैधानिक मानती है’. स्टालिन ने कहा, ‘तमिलनाडु देश में सबसे अधिक शीर्ष रैंकिंग वाले उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ अग्रणी है. हमारे संस्थानों की स्वायत्तता छीने जाने पर चुप नहीं बैठेगा’.
चीन और भारत के बीच फंसता श्रीलंका : कोलंबो चीन पर आर्थिक निर्भरता के दबाव से जूझ रहा है, विशेष रूप से श्रीलंकाई बंदरगाहों पर चीनी अनुसंधान जहाजों के डॉकिंग के विवाद के कारण. चीन और भारत के बीच रस्साकशी में श्रीलंका फंस रहा है. दिसंबर 2024 में राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके की नई दिल्ली यात्रा ने इस नाजुक स्थिति को उजागर किया. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को एक सार्वजनिक आश्वासन में, दिसानायके ने साफ कह तो दिया कि श्रीलंका अपनी सुरक्षा के लिए भारत के लिए हानिकारक हो सकने वाली गतिविधियों के लिए अपने क्षेत्र का उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा. फिर भी, चीन जो जहाज़ वहां खड़े कर रहा है, उनमें मिसाइलों और उपग्रहों के लिए उन्नत ट्रैकिंग क्षमताएं बताई जाती हैं.
दिल्ली में कांग्रेस अकेली पड़ी, इंडिया ब्लॉक आप के साथ
मज़्कूर आलम
जैसे-जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव करीब आ रहा है, वैसे-वैसे इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दल एक-एक कर आम आदमी पार्टी के समर्थन में आते जा रहे हैं. वहीं दिल्ली चुनाव के मद्देनजर इंडिया ब्लॉक की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस अकेली खड़ी नजर आ रही है तो इंडिया ब्लॉक को लेकर भी भीतर से ही सवाल उठने लगे हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस में एक असमंजस यह भी है कि आप का विरोध किस स्तर पर करना है, क्योंकि इस मुद्दे पर राज्य और केंद्रीय नेतृत्व में हरियाणा विधानसभा चुनाव की ही तरह एका नहीं दिख रही है.
दिल्ली कांग्रेस के नेता जहां आप का पुरजोर विरोध कर रहे हैं, वहीं पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए अब भी बीच का रास्ता अपनाने की वकालत कर रहा है. एआईसीसी के कोषाध्यक्ष अजय माकन ने कुछ दिन पहले अरविंद केजरीवाल को ‘राष्ट्रविरोधी’ बताया था. इसे ‘और स्पष्ट’ करने के लिए वह दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करने वाले थे, जिसे ‘स्थगित’ कर दिया गया. सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी और शीर्ष नेतृत्व माकन से इतने सख्त लहजे में हमले की उम्मीद नहीं कर रहा था. इसके बाद मामला असहज हो गया. इस वजह से माकन को दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से रोक दिया गया.
इंडिया ब्लॉक में सहयोगी होने के अलावा, कांग्रेस और आप चुनावी सहयोगी बनने पर विचार पर भी विचार कर रहे थे. इसलिए 2022 के विधानसभा चुनावों में पंजाब में आप से हारने के बाद भी कांग्रेस ने आगे बढ़कर लोकसभा चुनावों में दिल्ली और हरियाणा में गठबंधन किया. लेकिन नवंबर में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हरियाणा ईकाई ने केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा के बावजूद आप से गठबंधन के प्रस्ताव को नकार दिया. दिल्ली में भी यही दोहराया जा रहा है. आप के गठबंधन से मना करने के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व आप के खिलाफ ज्यादा हमलावर नहीं होना चाहता, तो राज्य के नेता ऐसा इसके उलट विचार रखते हैं.
दिल्ली में भाजपा को रोकने वाली एकमात्र ताकत के रूप में आप को देखा जा रहा है. यही वजह है कि इंडिया ब्लॉक सहयोगियों ने आप के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कांग्रेस को छोड़ दिया है. टीएमसी, समाजवादी पार्टी ने खुलकर आप का समर्थन किया है. शिवसेना (यूबीटी) ने तो यहां तक कह दिया कि भाजपा का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस नहीं, आप बेहतर स्थिति में है. माना यह भी जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के समर्थन में शिवसेना (यूबीटी) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे प्रचार के लिए आ सकते हैं.
वहीं आरजेडी के तेजस्वी यादव ने कहा कि इंडिया ब्लॉक केवल लोकसभा चुनाव के लिए बना था. इस पर गुरुवार को नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहा कि अगर इंडिया ब्लॉक का मतलब सिर्फ संसदीय चुनाव है तो इसे खत्म कर देना चाहिए. हम अलग-अलग काम करेंगे. उमर ने कहा, ‘दिल्ली में विधानसभा चुनाव के बाद गठबंधन के सभी सदस्यों को बैठक बुलानी चाहिए. अगर यह विधानसभा चुनाव के लिए भी है तो साथ बैठकर मिलकर काम करना होगा…’
हालांकि कांग्रेस आप के तकरार के बीच कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व की तरह आप सांसद संजय सिंह ने भी नरम रुख दिखाया. गुरुवार को उन्होंने कहा कि हर किसी का लक्ष्य भाजपा को हराना है. दिल्ली में आप ही एकमात्र पार्टी है, जो भाजपा को हरा सकती है. यही कारण है कि अन्य पार्टियां हमारा समर्थन करने के लिए आगे आ रही हैं और हम इसके लिए उनका धन्यवाद करते हैं. संजय सिंह के इस बयान से यह माना जा रहा है कि आप विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से सहयोग का रास्ता खुला रखना चाहती है.
कांग्रेस समर्थकों और इंडिया ब्लॉक के दलों के बीच भी यह धारणा काम कर रही है कि कांग्रेस दिल्ली चुनावों को लेकर गंभीर नहीं है. पार्टियों के लिए हर चुनाव से पहले अभियान समिति और कई चुनाव-संबंधी पैनल गठित करना सहज प्रक्रिया है. मगर दिल्ली में, जहाँ अब चुनाव एक महीने से भी कम समय रह गया है, पार्टी ने अब तक कुछ भी ऐसा नहीं किया है. यहां तक कि कोई वरिष्ठ केंद्रीय पर्यवेक्षक भी अब तक नियुक्त नहीं किया हैं.
इंडिया ब्लॉक के सहयोगी दलों के आप के समर्थन में नित प्रतिदिन उतरने से कांग्रेस पर और दबाव बढ़ गया है, जो पहले से ही राजधानी में अपने सबसे निचले स्तर पर है. दिल्ली में पिछले दो विधानसभा और राज्यसभा चुनावों में उसे एक भी सीट नहीं मिली है. इसका वोट शेयर भी हर चुनाव के बाद लगातार कम होता जा रहा है. 2008 में 40.31% से घटकर 2013 में 24.55%, 2015 में लगभग 9% और 2020 में मात्र 4.26% रह गया.
“रविवार को घर पर बैठकर करोगे भी क्या.. पत्नी को भी कितनी देर तक ताक सकते हो ?”
एक वायरल वीडियो में, लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन एस.एन. सुब्रमण्यन ने कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करने का सुझाव देकर विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें रविवार भी शामिल है. उन्होंने एक कर्मचारी संवाद के दौरान पहले इस बात पर पीड़ा जाहिर की कि वे कर्मचारियों से सातों दिन काम नहीं करवा पाते, और फिर मजाकिया लहजे में सवाल किया, “आखिर आप लोग घर बैठे करते क्या हो? अपनी पत्नी को भी कितनी देर तक ताक सकते हो? अरे, ऑफिस आइए और काम शुरू करिए.” उन्होंने यह भी कहा कि अगर वे कर्मचारियों से रविवार को भी काम करवा सकें तो उन्हें खुशी होगी, क्योंकि वे खुद भी रविवार को काम करते हैं. सुब्रमण्यन की टिप्पणियों की तुलना नारायण मूर्ति के 70-घंटे काम करने वाले विवादित बयान से की जा रही है, जिससे भारत के निजी क्षेत्र में कार्य-जीवन संतुलन पर पहले से बहस जारी है. ऑनलाइन उपयोगकर्ताओं ने उनकी आलोचना करते हुए कहा कि कर्मचारी स्क्रीन और मोटे मैनेजरों को कितनी देर तक देखते रहेंगे. कुछ ने उन्हें पाखंडी भी कहा. एलएंडटी की कॉर्पोरेट संस्कृति पर भी सवाल उठाए गए, जिसमें कहा गया कि वे कम वेतन पर स्नातकों को भर्ती करते हैं और उनसे सप्ताह में साढ़े छह दिन काम करवाते हैं, और साल में सिर्फ सात आकस्मिक छुट्टियाँ देते हैं.
उमर खालिद जमानत मामला : कोर्ट ने पुलिस से कहा, दलीलें छोटी रखें : दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली पुलिस से कहा कि वह दिल्ली दंगों की साजिश मामले में आरोपियों की जमानत के विरोध में अपनी दलीलें संक्षिप्त में रखे. जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की पीठ ने विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद को बीच में रोकते हुए कहा कि वह मामले की सुनवाई नहीं कर रही है. हम सिर्फ सबूतों पर नज़र डालना चाहते हैं, न कि आप हर चीज़ पर इस तरह टिप्पणी करें. जमानत आवेदन और अंतिम सुनवाई के बीच के अंतर को ध्यान में रखते हुए सबूतों पर एक संक्षिप्त चार्ट तैयार किया जाए. अगर हमें हर चीज़ से निपटना पड़ा, तो हमें जमानत आवेदन में 1000 से ज़्यादा पन्ने भरने पड़ेंगे. जस्टिस कौर ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा, ‘आपके अनुसार साजिश क्या है और साजिशकर्ताओं ने किस तरह काम किया, बस इतना ही’. अदालत बिना आरोप पत्र के जेल में बंद उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, खालिद सैफी और अन्य आरोपियों की ओर से दायर जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.
गोल्डन ऑवर के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार शुरू करने का निर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को कानून के तहत अनिवार्य "गोल्डन ऑवर" अवधि में मोटर दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस चिकित्सा उपचार की योजना बनाने का निर्देश दिया. गोल्डन ऑवर दुर्घटना में गंभीर चोट के बाद का पहला 60 मिनट होता है, जब चिकित्सा उपचार सबसे प्रभावी होता है. अदालत ने कहा, ‘यदि गोल्डन ऑवर में आवश्यक चिकित्सा उपचार प्रदान नहीं किया जाता है, तो कई मामलों में घायलों की जान जा सकती है. जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा, ‘मोटर वाहन अधिनियम की धारा 162 केंद्र सरकार पर गोल्डन ऑवर के दौरान दुर्घटनाओं के पीड़ितों के कैशलेस उपचार के लिए योजना बनाने का दायित्व डालती है’. आदेश में कहा गया है, ‘एक बार जब योजना तैयार हो जाएगी और इसका कार्यान्वयन शुरू हो जाएगा, तो यह कई घायल व्यक्तियों जान बचाएगी जा सकेगी, जो केवल इसलिए दम तोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें स्वर्णिम समय के दौरान अपेक्षित चिकित्सा उपचार नहीं मिल पाता है’. शीर्ष अदालत ने सख्ती से कहा कि कैशलेस उपचार योजना 14 मार्च तक अधिसूचित की जाए. अब और समय विस्तार नहीं दिया जाएगा.
भाजपा के हाथ से फिसलते दलित वोट
द हिंदू में प्रकाशित एक विश्लेषण में सीएसडीएस के संजय कुमार और देवेश कुमार ने आँकड़ों के हवाले से बताया है कि किस तरह दलित वोट बैंक पर से भारतीय जनता पार्टी की पकड़ कमज़ोर होती जा रही है.
अमित शाह की टिप्पणी और दलित वोट बैंक में बदलाव
17 दिसंबर को, गृह मंत्री अमित शाह ने बी.आर. अंबेडकर पर कुछ विवादित टिप्पणियां कीं, जिससे न केवल संसद में बहस छिड़ गई, बल्कि हाथापाई भी हुई. देश के कुछ हिस्सों में उनकी टिप्पणियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई प्रवक्ताओं ने कहा कि उनकी बातों को गलत संदर्भ में लिया गया, वहीं विपक्ष ने इस मुद्दे को जिंदा रखा है. महत्वपूर्ण बात यह है कि यह घटना एक बदलते चुनावी माहौल के साथ मेल खाती है, जो बताती है कि भाजपा का दलित वोट बैंक, खासकर राष्ट्रीय चुनावों के दौरान, कम हो रहा है. यह देखना बाकी है कि क्या यह भाजपा द्वारा जानबूझकर इस सामाजिक समूह से दूरी बनाने की सूक्ष्म कोशिश थी या एक अभूतपूर्व चूक. इस संदर्भ में, पिछले दो दशकों में दलितों के मतदान व्यवहार को देखना चाहिए.
कांग्रेस और दलित समर्थन
2000 के दशक में, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसे कई क्षेत्रीय दलों ने सामाजिक न्याय, व्यवस्थित भेदभाव और बहिष्कार से निपटने के लिए नीतियां बनाकर और बड़े दलित कारण में योगदान करके दलित वोटों का अधिकांश हिस्सा हासिल किया. इसके विपरीत, भाजपा उच्च जातियों और अन्य समृद्ध सामाजिक समूहों जैसे कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच अपेक्षाकृत लोकप्रिय थी. इस तरह का समूह-आधारित समर्थन राज्य स्तर पर पार्टी की प्रतिस्पर्धा की प्रकृति पर भी निर्भर है. लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन के आंकड़ों से एक पैटर्न का पता चलता है. जहां 2000 के दशक में कांग्रेस के अच्छे दिनों से पार्टी के समर्थन में काफी गिरावट आई, वहीं 2010 और 2020 के दशक में भाजपा के प्रभुत्व के युग में भी कांग्रेस ने भाजपा की तुलना में दलितों के बीच पैठ बनाए रखी. कांग्रेस ने संभवतः अन्य समूहों की तुलना में दलितों के बीच अधिक पकड़ बनाकर रखी. मतदाता समर्थन के मामले में, दलितों के बीच भाजपा का समर्थन 2004 और 2009 की तुलना में बढ़ा, जब यह क्रमशः 13% और 11% था.
2014 में, भाजपा लोकसभा में बहुमत के साथ चुनी गई. 2009 की तुलना में 2014 में दोगुने दलितों ने भाजपा के लिए मतदान किया (2009 में 11% की तुलना में 2014 में 22%). कोई यह तर्क दे सकता है कि यह बढ़े हुए वोट शेयर के कारण था, लेकिन मतदाताओं को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व ने प्रभावित किया था. क्योंकि लोग व्यापक भ्रष्टाचार से परेशान थे और पिछली सरकार, मूल्य वृद्धि और अल्पविकास से असंतुष्ट थे, भाजपा एक अधिक आशाजनक विकल्प के रूप में सामने आई.
2019 में, दलितों के बीच पार्टी का वोट शेयर 32% तक बढ़ गया. ऐसा इसलिए था क्योंकि भाजपा ने दलित नेतृत्व को बढ़ावा दिया, विशिष्ट समूहों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को तैयार किया, बेहतर भविष्य का वादा किया और सामाजिक इंजीनियरिंग की एक रणनीति तैयार की जिसका उद्देश्य सूक्ष्म उप-जाति विभाजन का लाभ उठाना था.
हालांकि, 2019 में शिखर के बाद, 2024 के लोकसभा चुनावों में समर्थन में गिरावट आई. न केवल भाजपा ने बड़ी संख्या में सीटें गंवाईं, बल्कि उसे दलितों के बीच तीन अंकों से कम वोट शेयर भी मिला (हालांकि 2024 में भाजपा का कुल वोट शेयर 2019 के समान था). इस बीच, कांग्रेस ने 2014 में दलित समर्थन में गिरावट का अनुभव किया. लेकिन तब से, दलितों के बीच इसका समर्थन स्थिर बना हुआ है.
हालांकि भाजपा के लिए गिरावट नाममात्र लग सकती है, लेकिन गिरावट उन राज्यों में असमान थी जहां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने वोट हासिल किए और उन राज्यों में जहां उसने वोट गंवाए. शीर्ष तीन राज्यों में जहां भाजपा (एक एनडीए गठबंधन के साथ) ने खराब प्रदर्शन किया, इंडिया ब्लॉक ने प्रभावी ढंग से एनडीए से वोट छीन लिए, यह प्रवृत्ति विशेष रूप से महाराष्ट्र में दिखाई दी. उत्तर प्रदेश और राजस्थान में दोनों गठबंधनों के लिए दलित वोटों के बीच का अंतर क्रमशः 12 और 10 अंक था.
उन राज्यों में भी दलित वोटों का नुकसान हुआ जहां भाजपा ने अपने 2019 के वोट शेयर से बेहतर प्रदर्शन किया. उदाहरण के लिए, एनडीए ने तेलंगाना में 15.74 अंक प्राप्त किए, लेकिन यहां भी इंडिया ब्लॉक ने अधिक दलित वोट (एनडीए के 23% की तुलना में 46%) हासिल किए. हालांकि, ओडिशा में, एनडीए के लिए दलित वोट काफी अधिक थे. कहा जा सकता है कि ओडिशा में मुकाबला एनडीए और बीजू जनता दल के बीच था और इंडिया ब्लॉक महत्वपूर्ण नहीं था.
2019 में भाजपा का वोट शेयर में शिखर पर पहुंचना उसके बाद दलित समर्थन के मामले में गिरावट के साथ और अधिक स्पष्ट था, इस पैटर्न से इंडिया ब्लॉक को फायदा हुआ.
जस्टिस शेखर यादव के बर्ताव पर सीजेआई ने कार्रवाई आगे बढ़ाई
द इंडियन एक्सप्रेस में अपूर्व विश्वनाथ की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव को विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में मुसलमानों को लक्ष्य कर की गई टिप्पणियों के मामले में तीन सप्ताह पहले तलब किया था, लेकिन जस्टिस यादव अपने रुख पर अडिग हैं. न तो उन्होंने माफी मांगी है और न ही कोई स्पष्टीकरण दिया है. लिहाजा भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर नई रिपोर्ट मांगी है. कुल मिलाकर, सीजेआई ने इस मामले को आगे बढ़ाया है. दरअसल, 17 दिसंबर को कॉलेजियम, जिसमें सीजेआई खन्ना भी शामिल थे, ने जस्टिस यादव से मुलाकात कर उनसे स्पष्टीकरण मांगा था. हालांकि कॉलेजियम की बैठक के बाद से इस मामले में स्थिति यथावत है. बैठक के कुछ दिनों बाद सीजेआई खन्ना ने इस मुद्दे से सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ को भी अवगत कराया था. बहरहाल, सीजेआई का यह नया कदम एक न्यायाधीश के कथित कदाचरण पर आंतरिक जांच शुरू करने की प्रक्रिया में पहला कदम माना जा रहा है. सी रविचंद्रन अय्यर विरुद्ध जस्टिस एएम भट्टाचार्जी के केस में 1995 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार जब मामला हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत से संबंधित होता है, तो उस हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश जांच के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करता है. इस मामले में तत्कालीन बंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एएम भट्टाचार्जी के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं का आरोप था, जिसमें अदालत को “खराब व्यवहार और महाभियोग योग्य दुर्व्यवहार” के बीच के अंतर पर विचार करना था. यद्यपि जस्टिस भट्टाचार्जी ने आरोपों के सामने आने के बाद इस्तीफा दे दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कानून विकसित किया और कहा कि यह “भविष्य के लिए एक उदाहरण बनेगा.” वह उदाहरण बनाने का समय अब शायद आ गया है.
कैसे घुल रही है लोकतंत्र के कुएं में भांग
विज्ञान-विरोधी रहस्यवाद दुनिया भर में निरंकुशता को सक्षम कर रहा है. एन एपलबॉम ने इस बार के एटलांटिक में एक लम्बा लेख ‘न्यू रस्पुटिन’ शीर्षक से लिखा है जिसमें उन्होंने दुनिया के उन राजनेताओं की लिस्ट बनाई है, जो अपनी तुनकमिजाजी, सटके दिमागों, षडयंत्र की थ्योरियों, धर्म, रहस्य का इस्तेमाल कर और विज्ञान और संविधान का विरोध कर लोकतंत्र को तोड़ मरोड़ रहे हैं और सत्ता भी हासिल कर ले रहे हैं. एपलबॉम के मुताबिक यह सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, बल्कि यूरोप और दुनिया के दूसरे देशों में भी देखा जा रहा है. इसमें फेक न्यूज, सोशल मीडिया, अफवाहों का इस्तेमाल खुल कर हो रहा है और लोकतंत्र के साथ जुड़ी सरंचना और संतुलित करने के रास्ते कुछ नहीं कर पा रहे.
लेख में कैलिन जार्जस्कू का उदाहरण दिया गया है, जिन्होंने रोमानिया में राष्ट्रपति चुनाव का पहला दौर जीता था. जार्जस्कू एक रहस्यवादी हैं जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आधुनिकता का विरोध करते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने विचारों को फैलाया और लोगों से "अपनी आत्मा से वोट करने" का आग्रह किया. उन्होंने युद्धकालीन तानाशाहों की प्रशंसा की और रूस के साथ संबंध बनाए. वह यह भी दावा करते हैं कि पानी में "स्मृति" होती है और कार्बोनेटेड पेय पदार्थों में नैनोचिप होते हैं.
एपलबॉम का कहना है कि जार्जस्कू जैसे नेता पारंपरिक राजनीतिक श्रेणियों में फिट नहीं होते हैं. वे न तो वामपंथी हैं और न ही दक्षिणपंथी. वे एक नई राजनीतिक प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो तर्क, विज्ञान और सबूतों पर आधारित तथ्यों को खारिज करती है. इस प्रवृत्ति में रहस्यवाद, अंधविश्वास, डर और षड्यंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया जाता है.
एपलबॉम का कहना है कि अमेरिकियों के लिए, छद्म-आध्यात्मिकता का राजनीति के साथ विलय हमारे कुछ गहरे सिद्धांतों से एक प्रस्थान का प्रतिनिधित्व करता है: कि तर्क और कारण अच्छी सरकार की ओर ले जाते हैं; कि तथ्य-आधारित बहस अच्छी नीति की ओर ले जाती है; कि शासन धूप में पनपता है; और यह कि राजनीतिक व्यवस्था नियमों, कानूनों और प्रक्रियाओं में निहित है, न कि रहस्यमय करिश्मे में. नए अंधकारवाद के समर्थकों ने अमेरिका के संस्थापकों के आदर्शों को भी तोड़ दिया है, जिनमें से सभी ने खुद को ज्ञान की रौशनी का आदमी माना. बेंजामिन फ्रैंकलिन न केवल एक राजनीतिक विचारक थे, बल्कि एक वैज्ञानिक और चेचक के टीकाकरण के एक बहादुर समर्थक भी थे. जॉर्ज वाशिंगटन राजशाही को खारिज करने, कार्यपालिका की शक्ति को सीमित करने और कानून का शासन स्थापित करने के बारे में बहुत सतर्क थे. बाद के अमेरिकी नेताओं - लिंकन, रूजवेल्ट, किंग - ने अपने तर्कों को मजबूत करने के लिए संविधान और उसके लेखकों का हवाला दिया. इसके विपरीत, यह उभरता हुआ अंतर्राष्ट्रीय अभिजात वर्ग बहुत कुछ अलग बना रहा है: एक ऐसा समाज जिसमें अंधविश्वास कारण और तर्क को हरा देता है, पारदर्शिता गायब हो जाती है, और राजनीतिक नेताओं की कुटिल कार्रवाइयों को बकवास और व्याकुलता के बादल के पीछे छिपा दिया जाता है. एक ऐसी दुनिया में कोई जाँच और संतुलन नहीं है जहाँ केवल करिश्मा मायने रखता है, एक ऐसी दुनिया में कानून का कोई शासन नहीं है जहाँ भावना कारण को हरा देती है - केवल एक शून्य जिसे कोई भी चौंकाने वाली और सम्मोहक कहानी से भर सकता है.
एपलबॉम का तर्क है कि यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है. जब लोग तर्क और विज्ञान पर भरोसा करना छोड़ देते हैं, तो वे आसानी से उन नेताओं द्वारा गुमराह किए जा सकते हैं जो अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए डर और अविश्वास का उपयोग करते हैं. सोशल मीडिया के जरिए यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से फैल रही है.
लेखक कहती हैं कि यह प्रवृत्ति सिर्फ यूरोप तक ही सीमित नहीं है. अमेरिका में भी, कुछ नेता और प्रभावशाली लोग इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं. डोनाल्ड ट्रम्प, तुलसी गबार्ड, काश पटेल और रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर जैसे लोगों ने रहस्यवाद, षड्यंत्र के सिद्धांतों और विज्ञान-विरोधी विचारों को बढ़ावा दिया है.
एपलबॉम इतिहास में ऐसे उदाहरण खोजती हैं जहां इस तरह के अंधविश्वासों ने राजनीतिक अराजकता और निरंकुशता को जन्म दिया है. 16वीं शताब्दी में वेनिस में, और रूसी साम्राज्य के पतन के दौरान रहस्यवाद और जादू की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ा था, जिसके परिणामस्वरूप समाज में अराजकता फैल गई थी.
बेकाबू आग में फंसे 1 लाख 80 हजार लोगों को निकालने का आदेश : लॉस एंजिल्स में जंगल में लगी आग बेकाबू हो गई है. अब तक 5 लोगों की मौत की खबर आई है और हजारों लोगों ने घर छोड़ दिया है. राज्य भर से अग्निशमन कर्मी राहत पहुँचा रहे हैं, लेकिन ख़तरा अभी टला नहीं है. 20,000 से अधिक इमारतें, जिनमें अधिकतर रिहायशी घर नष्ट हो गई हैं. महानगरीय क्षेत्र में 179,000 से अधिक लोगों को क्षेत्र से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के आदेश दिए गए हैं. आग की लपटें कैलाबास और सांता मोनिका सहित अत्यधिक आबादी वाले और समृद्ध इलाकों की ओर बढ़ रही हैं. मार्क हैमिल, मैंडी मूर, जेम्स वुड्स सहित कई हॉलीवुड सितारों को भी घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा.
चलते- चलते : सूरज को ज़ुनूनी नज़र से देखना
द गार्डियन में एंड्रयू मैकार्थी, एक शौकिया खगोल-फ़ोटोग्राफ़र, ने एक दिलचस्प कहानी साझा की है जो शौक से जुनून और फिर कला तक का सफर दर्शाती है. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे उन्होंने 2017 में एक दूरबीन खरीदी, जिससे उन्हें अपने बचपन की यादें ताज़ा हो गईं, जब उनके पिता उन्हें बृहस्पति और शनि ग्रह दिखाते थे. शुरुआत में, उन्होंने सिर्फ अपनी खुशी के लिए फ़ोटो लीं, लेकिन जल्द ही, उन्होंने इस शौक को एक व्यवसाय में बदलने का फैसला किया. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक खास टेलीस्कोप बनाया जिससे सूर्य की हाई रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें लेना संभव हुआ. उन्होंने चेतावनी भी दी कि गलत दूरबीन का उपयोग करने से गंभीर नुकसान हो सकता है, यहाँ तक कि घर में आग भी लग सकती है. मैकार्थी का कहना है कि उन्होंने 90,000 तस्वीरों को मिलाकर सूर्य की एक आश्चर्यजनक 140-मेगापिक्सेल की कंपोजिट छवि बनाई. इस छवि में 14 पृथ्वी के बराबर ऊँचा एक प्लाज्मा बवंडर भी दिखाई देता है. उनका काम वैज्ञानिक समुदाय में नहीं, बल्कि आम लोगों में चर्चा का विषय बना है, जो अंतरिक्ष और विज्ञान पर ध्यान नहीं देते हैं. वे कहते हैं कि उनकी तस्वीरें लोगों को अंतरिक्ष के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती हैं. मैकार्थी न केवल सूर्य बल्कि अन्य ग्रहों, चंद्रमा, धूमकेतु और आकाशगंगाओं की तस्वीरें भी लेते हैं. उनकी तस्वीरें ऑनलाइन वायरल होती हैं, क्योंकि वे अंतरिक्ष को एक नए और कलात्मक तरीके से दिखाते हैं. उनका मानना है कि युवा लोगों को अंतरिक्ष और विज्ञान के बारे में प्रेरित करने की आवश्यकता है ताकि वे ब्रह्मांड में अपनी भूमिका के बारे में सोच सकें. अंत में, मैकार्थी का कहना है कि वे एक वैज्ञानिक नहीं, बल्कि एक कलाकार हैं जो लोगों को हमारे ब्रह्मांड की सुंदरता का अनुभव कराना चाहते हैं. उनके काम से साबित होता है कि शौक को जुनून में बदला जा सकता है, और फिर उससे दूसरों को प्रेरित किया जा सकता है. एंड्रयू सूर्य का कैलेंडर बनाते हैं और आप चाहें तो यहां देख सकते हैं.
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