10 दिसंबर 2024 : संसद में सोरोस और बाहर अडानी से मॉक इंटरव्यू, धनखड़ के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी, सीरिया का नया नेता, ढाका की साड़ियों पर भारत में गुस्सा, हाईकोर्ट जज के खिलाफ़ वकील लामबंद
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
एक बार देख कर तसल्ली कर लें कि हरकारा आपके मेन फोल्डर में ही जा रहा है. स्पैम फोल्डर में नहीं.
आज की सुर्खियां : अडानी पर कांग्रेस का स्वर धीमा करने के लिए अमेरिकी व्यावसाई जॉर्ज सोरोस को फिर ले आई भाजपा! संसद में हंगामे की पुनर्वापसी हो गई है. सोमवार को सत्तारूढ़ बीजेपी के सांसदों ने शीर्ष कांग्रेस नेताओं पर अरबपति निवेशक जॉर्ज सोरोस के साथ मिलकर देश को अस्थिर करने का आरोप लगाया, जबकि विपक्ष में खासतौर पर कांग्रेस ने अडानी और किसानों के मुद्दे उठाने की कोशिश की. याद रहे कि शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू हुआ है, मगर अब तक राज्यसभा में केवल तीन दिन और लोकसभा में सिर्फ दो दिन ही कार्यवाही चली है. यह भी इसलिए क्योंकि दोनों पक्ष पिछले सप्ताह ही “संविधान पर बहस” के लिए संसद चलाने के लिए राजी हुए थे. चूंकि कांग्रेस इंडिया ब्लॉक के कुछ सदस्यों के साथ अडानी मुद्दा सदन के बाहर लगातार उठा रही है, लिहाजा भाजपा के रणनीतिकारों ने कांग्रेस के स्वरों को धीमा करने के लिए अरबपति निवेशक जॉर्ज सोरोस के साथ कांग्रेस नेताओं के कथित रिश्तों का अपना पुराना आरोप आक्रामक शैली में रखने की नीति अपनाई है. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में लिज़ मैथ्यू की रिपोर्ट के मुताबिक यह नई रणनीति भाजपा के एक कोर समूह ने तय की, लेकिन इसमें कई सांसद और एनडीए के घटक दल टीडीपी तथा जेडीयू के नेता शामिल नहीं थे. सोरोस मुद्दे पर फिर से दांव लगाने का निर्णय चौंकाने वाला है, क्योंकि भाजपा ने पिछली लोकसभा (2023) में भी इसे उठाया था. इतना ही नहीं, इसी साल लोकसभा चुनावों के पहले भी भाजपा ने अपने वरिष्ठ प्रवक्ताओं को मैदान में उतारकर गांधी पर उन लोगों का समर्थन लेने का आरोप लगाया था, जो या तो सोरोस के करीब थे या जिनको सोरोस से वित्तीय मदद मिलती थी. इस बार भाजपा ने सोरोस को ओसीसीआरपी से जोड़ा है, जिसने गौतम अडानी समूह के खिलाफ एक रिपोर्ट जारी की थी. ऐसा लगता है कि अडानी के मुद्दे पर कांग्रेस की आक्रामकता के सामने भाजपा रक्षात्मक नहीं होने वाली है. उसे लग रहा है कि अडानी का मुद्दा उठाने से कांग्रेस को महाराष्ट्र चुनावों में कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. यद्यपि कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि असली साजिश यह है कि सरकार अडानी को बचाने के लिए भारत के अमेरिका के साथ संबंधों को भी दांव पर लगाने को तैयार है. उधर सोमवार को भी सदन के बाहर कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के कुछ अन्य सदस्यों ने अडानी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उद्योगपति गौतम अडानी का मुखौटा लगाए, दो सांसदों का इंटरव्यू लिया.
जिस मीडिया पार्ट की रिपोर्ट को लेकर भाजपा ने अमेरिकी सरकार, राहुल गाँधी और जॉर्ज सोरोस को लपेटे में लेने की कोशिश शनिवार को की थी, उसी खोजी पत्रकारिता के प्लेटफॉर्म की प्रकाशक केरीन फूतो ने भाजपा की कॉन्सपिरेसी थियोरी और दावों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि तथ्य इसकी तस्दीक नहीं करते. मीडियापार्ट ने अपना सियासी उल्लू सीधा करने और प्रेस की आजादी पर हमला करने के लिए उसकी रिपोर्ट का इस्तेमाल करने के लिए भाजपा की निंदा की है. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कहा था कि जॉर्ज सोरोस की मदद से राहुल गाँधी भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिकी सरकार पहले ही भाजपा की प्रतिक्रिया पर निराशा जता चुकी है.
इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने बाद में जंतरमंतर पर मणिपुर की स्थिति को लेकर भी प्रदर्शन किया. मणिपुर में राज्य सरकार ने 9 जिलों से इंटरनेट पाबंदियां हटा ली हैं.
जगदीप धनखड़ के खिलाफ फिर अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी
विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी में है. प्रस्ताव पर विभिन्न दलों के 70 सांसदों के हस्ताक्षर हो चुके हैं. इससे पहले भी विपक्ष ने मानसून सत्र में धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करवाए थे, मगर तब कार्रवाई न करने का फैसला लिया गया था.
मिस्री ने हिंदुओं पर हमलों का मुद्दा उठाया : विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बांग्लादेश के विदेश सचिव मोहम्मद जशिम उद्दीन के साथ बातचीत में हिंदुओं पर हमलों के मुद्दे को उठाया है. सोमवार को 12 घंटे की ढाका यात्रा के दौरान उन्होंने सांस्कृतिक, धार्मिक और कूटनीतिक संपत्तियों पर हमलों की कुछ दुखद घटनाओं पर चर्चा की. मिस्री ने कहा कि हम बांग्लादेश की सरकार से इन सभी मुद्दों पर एक सकारात्मक दृष्टिकोण की अपेक्षा करते हैं और संबंधों को रचनात्मक दिशा में बढ़ाने की उम्मीद करते हैं. मिस्री ने एक लोकतांत्रिक, स्थिर, शांतिपूर्ण, प्रगतिशील और समावेशी बांग्लादेश के लिए भारत के समर्थन को जाहिर किया है. उधर ढाका ट्रिब्यून के अनुसार बांग्लादेश ने भारत को याद दिलाया है कि आंतरिक मामलों पर विदेशी टिप्पणियां अनुचित हैं. बांग्लादेश के विदेश सचिव मोहम्मद जसीम उद्दीन ने कहा, "हमने जोर दिया कि यह बांग्लादेश का आंतरिक मामला है और हमारे आंतरिक मुद्दों पर विदेशी टिप्पणियां अनुचित हैं. बांग्लादेश अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचता है.” इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुछ बांग्लादेशी नेताओं द्वारा यह कहे जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी कि बांग्लादेश कुछ ही दिनों में बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर कब्जा कर सकता है. उन्होंने कहा, "जब आप हमारी भूमि पर कब्जा करने आएंगे, तो क्या हम लॉलीपॉप खा रहे होंगे? इस बारे में सोचना भी मत." कोलकाता में बंगाली हिंदू सुरक्षा समिति ने ढाकाई जामदानी साड़ियों को जलाकर अपना विरोध दर्ज करवाया. उधर दुर्गापुर में एक मेले में स्थानीय भाजपा विधायक ने बांग्लादेश का सामान बेचने वाले पर दबाव डालकर उसकी दुकान बंद करवा दी.
धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के 77 समुदायों को आरक्षण का लाभ देने के लिए ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने के फैसले को रद्द कर दिया था. इनमें अधिकतर मुस्लिम जातियां थीं.
संजय मल्होत्रा होंगे आरबीआई के नए गवर्नर : भारतीय रिजर्व बैंक के नए गवर्नर (26वें) संजय मल्होत्रा होंगे. वह आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की जगह लेंगे, जिनका दूसरा कार्यकाल 10 दिसंबर को समाप्त हो रहा है. मल्होत्रा 11 दिसंबर से तीन साल के लिए कार्यभार संभालेंगे. भारतीय प्रशासनिक सेवा (1990 बैच) अधिकारी मल्होत्रा फिलहाल वित्त मंत्रालय में बतौर राजस्व सचिव कार्यरत हैं.
शाह के पास मिलने का टाइम नहीं : कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में बलात्कार और हत्या की शिकार हुई प्रशिक्षु डॉक्टर के माता पिता को तब निराशा हाथ लगी जब वे शहर के दौरे पर आये गृह मंत्री अमित शाह से मिलना चाहते थे. उन्होंने जयदीप सरकार से कहा, ‘हमें उनके साथ कुछ मिनट भी नहीं मिले’ और भाजपा के प्रदेश प्रमुख सुकांत मजूमदार ने ‘हमारे साथ थोडी सी भी इंसानियत नहीं दिखाई.’ उन्होंने यह भी कहा कि उनका प्रदेश पुलिस पर यक़ीन नहीं हैं और तृणमूल कॉंग्रेस का कोई भी नेता उनके संपर्क में नहीं है. उनका कहना था कि आंदोलन का कमज़ोर पड़ना स्वाभाविक था, क्योंकि उनकी कोशिशों और लम्बी चौड़ी जाँच के बाद भी मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है.
हाईकोर्ट जज को हटाने के लिए वकीलों ने लिखी चिट्ठी
ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन ने सोमवार 9 दिसंबर, 2024 को राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यक्रम में दिए गए व्याख्यान के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. संघ ने कहा कि यह भाषण ‘मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने वाला भाषण था’. समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता पर जोर देते हुए न्यायमूर्ति यादव ने रविवार को अपने भाषण के दौरान कहा था कि भारत बहुसंख्यक समुदाय की इच्छा के अनुसार चलेगा. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के काम की भी प्रशंसा की, साथ में कहा कि बहुविवाह, ट्रिपल तलाक या हलाला जैसी प्रथाओं के लिए ‘कोई बहाना’ नहीं है.
मणिपुर पर रिपोर्टिंग के लिए पत्रकारिता का अवॉर्ड : मणिपुर जातीय हिंसा पर उनकी रिपोर्टिंग के लिए ‘द हिंदू’ की पत्रकार विजेता सिंह को शनिवार को इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट इंडिया अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म से सम्मानित किया गया.
एक नया सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इधर खूब सुर्खियां बटोर रहा है. फैम कनेक्ट (FAMM Connect) एक लिंक्डइन जैसा ही सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म है, लेकिन इसकी खास बात है कि ये विशेष रूप से LGBTQ+ समुदाय के लिए बनाया गया है. फैम कनेक्ट का उद्देश्य LGBTQ+ समुदाय के सदस्यों को एक पेशेवर और सुरक्षित मंच प्रदान करना है, जहाँ वे आपस में जुड़ सकें, अपने विचार साझा कर सकें और करियर के अवसरों की खोज कर सकें. यह फिलहाल एक इनवाइट-ओनली प्लेटफ़ॉर्म है, यानी केवल निमंत्रण के जरिए ही लोग इसका हिस्सा बन सकते हैं.
कटाक्ष : कानून अंधा या?
राकेश कायस्थ
हरिशंकर परसाई की एक छोटी सी कहानी है -
''एक बार नर्क के लोगों ने दीवार तोड़कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया. धर्मराज की अदालत में लंबा मुकदमा चला और नर्क वालों ने मुकदमा जीत लिया. कारण- सारे अच्छे वकील नर्क में थे.''
भारत की बजबजाती बदबूदार न्याय व्यस्था को समझना है, तो कचहरी तंत्र को समझिये और यहां काम कर रहे वकीलों को समझिये. राजनीतिक दल दुनिया के तमाम बड़े दावे आपके सामने रखते हैं, जैसे भारत को फिर से सोने की चिड़िया बना देंगे और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिला देंगे. कोई भूले से भी यह दावा नहीं करता कि कचहरी तंत्र को सुधार देंगे.
एकाध बार इस बात पर चर्चा शुरू भी हुई. ये बात भी उठी कि विदेशी लीगल फर्म्स को भारत में प्रैक्टिस की इजाज़त दी जाये. इस पर वकीलों ने आफत काट दिया और सरकार को पीछे हटना पड़ा. वकीलों की लॉबी देश की सबसे ताकतवर लॉबी है. कोई बड़ा सुधार तो छोड़ दीजिये, कचहरी में जज की कुर्सी के नीचे बैठकर खुलेआम रिश्वत लेने वाला पेशकार और उसके साथ जो पूरा दलाल तंत्र है, उसे भी कोई चुनौती नहीं दे सकता. अगर यकीन ना हो निचली अदालत से किसी फैसले की नकल बिना पैसे दिये निकालकर लाइये, पता चल जाएगा. संगठन और ताकत का ये आलम है कि राष्ट्रीय राजधानी तक में वकील पुलिस को दौड़ा-दौड़ाकर पीटते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता.
असल में सुधार कोई नहीं चाहता, क्योंकि कानून की भूल-भुलैया से जो रास्ता निकलता है, आखिर में वही सत्ता तक जाता है. दावा शक्ति के पृथकरण का है, लेकिन हमेशा से न्यायपालिका का सत्त्ता तंत्र के साथ गठजोड़ रहा है. दोनों एक-दूसरे की मदद करते हैं और अपने हिसाब से फलते-फूलते हैं.
आखिर जज बनने की प्रक्रिया है? दो तरह के लोग जज होते हैं. पहली श्रेणी उन लोगों की है, जो कचहरी में छल-छद्म में प्रवीणता प्राप्त करते हैं, बतौर वकील ताकतवर लोगों से रिश्ता जोड़ते हैं, उनके काम करवाते हैं और फिर नेता-न्यायधीश गठजोड़ को साधकर सीधे जज बन जाते हैं. दूसरी श्रेणी के लोग परीक्षा देकर जज बनते हैं, लेकिन दोनों ही इसी इको सिस्टम का हिस्सा हैं, इसलिए व्यवहार में कोई बुनियादी अंतर नहीं है.
मोदी राज में खुल्ला खेल फरूर्खाबादी है. संविधान का पलीता लगाने का बीड़ा यहां उच्चतम न्यायलय ने उठाया है. चीफ जस्टिस रहते हुए चंद्रचूड़ ने मौखिक निर्णय से जो असर पैदा किया है, उसके नतीजे कई गुना भयावह होंगे. उपरी अदालतों का रवैया देखकर नीचे वालों ने समझ लिया है कि उन्हें क्या करना है.
बीजेपी और सरकार को सूट करने वाला फैसला देकर प्रमोशन पाने की स्कीम धड़ल्ले से चल रही है. बहती गंगा में हाथ धोने की होड़ लोअर ज्यूडिशियरी के जजों में इस कदर मची है कि वो फास्टेस फिंगर खेलने लगे हैं.
देश बहुसंख्यकों का है, तो बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा कहने वाले जज यादव पहले नहीं है और ना ही आखिरी होंगे. मोदीजी भारत के गणतंत्र बनने की 75वीं जयंती के उपलक्ष्य में बड़ा जलसा करने वाले हैं. जगह-जगह यात्राएं निकाली जाएंगी और दूसरी तरफ न्यायपालिका संविधान के पन्नों के रॉकेट बनाकर हवा में उड़ाती रहेगी. अगर किसी ने मुँह खोला तो अवमानना और जेल की धमकी है. रामराज का ये तमाशा अभी शुरू हुआ है, आगे-आगे देखते जाइये.
90 जहाज लेकर पहुंचा चीन, तो ताइवान ने बढ़ाया अलर्ट लेवल
ताइवान ने सोमवार को अलर्ट स्तर बढ़ा दिया है, क्योंकि चीन ने संभावित सैन्य अभ्यास के बहाने 90 जहाज ताइवान की सरहद के नजदीक रिजर्व एयरस्पेस में तैनात किए हैं. इन जहाजों में नौसैनिक बेड़े और तटरक्षक जहाज शामिल हैं. चीन ने सात आरक्षित हवाई क्षेत्र बनाए हैं और ताइवान, दक्षिण जापानी द्वीपों, पूर्वी और दक्षिण चीन सागर के पास अपनी सैन्य गतिविधियां तेज कर दी हैं. ‘रायटर्स’ ने ताइवान के अधिकारियों के हवाले से बताया है कि तैनात जहाजों में से करीब दो-तिहाई नौसेना के जहाज हैं.
क्रिकेट में भारत क्या अभी भी सुपर पॉवर है?
ऑस्ट्रेलिया से दूसरा टेस्ट हारने के बाद टीम इंडिया की वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में पहुंचने की उम्मीद बेहद कम हो गई है. वहीं ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका फाइनल के मजबूत दावेदार हो गए हैं. ऐसे में भारतीय पूर्व क्रिकेटरों और फैन्स में बेहद निराशा है. कपिल देव ने तो इसके लिए रोहित शर्मा की कप्तानी और प्रदर्शन में गिरावट को जिम्मेदार ठहराया. हालांकि साथ में यह भी कहा कि वह जल्द इससे उबर जाएंगे.
आकाश चोपड़ा और हरभजन सिंह ने भारत की हार के लिए बल्लेबाजों पर निशाना साधा. चोपड़ा ने कहा कि जब टीम इंडिया की बल्लेबाजी कोलैप्स कर रही होती है, तब कोई ऐसा नहीं है, जो खड़ा हो जाए. वहीं हरभजन सिंह ने कहा कि कोई बल्लेबाजी जोड़ी बड़ी साझेदारी नहीं कर रही है.
वहीं ऑस्ट्रेलियाई मीडिया अपनी टीम की गुणगान में लगी है. द सिडनी मॉर्निंग स्टार ने लिखा- ‘एकतरफा मुकाबले में 10 विकेट से हराकर ऑस्ट्रेलिया ने भारत के खिलाफ गुलाबी गेंद (डे-नाइट टेस्ट) में अपना दबदबा बरकरार रखा है.
हेराल्ड सन ने लिखा- भारत ने पर्थ में जीत के साथ शानदार शुरुआत की, लेकिन पिछले तीन दिनों में जो कुछ हुआ, उससे कुछ बड़े नामों पर कुछ बड़े सवाल उठते हैं. ऑस्ट्रेलियाई टीम ने विराट कोहली को वापस उनके दड़बे में धकेल दिया है.
cricket.com.au के अनुसार, भारत के स्ट्राइक गेंदबाज जसप्रीत बुमराह को और अधिक समर्थन चाहिए. इसलिए अनुभवी तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी को बचे टेस्ट के लिए बुलाया जा सकता है.
पृथ्वी शॉ के अनिश्चित भविष्य के लिए प्रसिद्धि न संभाल पाना जिम्मेदार
खेल पत्रकार अयाज मेनन ने कहा कि पिछले कई वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ कि पृथ्वी शॉ आईपीएल नीलामी में चुने नहीं गए. एक वक्त था कि उन्हें भारतीय क्रिकेट के ‘बड़े सितारे’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा था. अब उनका क्रिकेटीय भविष्य ‘अनिश्चितता में डूब’ गया है. 25 वर्षीय बल्लेबाज के करीबी लोगों ने संकेत दिया कि दुर्भाग्य उनके पतन का सिर्फ एक कारण है. वहीं शॉ के साथ दिल्ली कैपिटल्स में सहायक कोच के रूप में काम कर चुके पूर्व बल्लेबाज प्रवीण आमरे का कहना है, ‘आईपीएल की प्रसिद्धि और पैसे को संभाल नहीं पाने के कारण वह इस स्थिति में पहुंचे हैं.’
अबू अल जोलानी : अल कायदा, आईसिस या फिर सीरिया का नया मसीहा?
सीरिया में गोलान की अनाम पहाड़ियों से आकर अबू मुहम्मद अल-जोलानी ने अरब की राजनीति को नई दिशा दे दी है. अब गोलान की कई पहाड़ियों पर इजराइलियों का कब्जा है. जोलानी सीरिया से बशर अल-असद की सरकार को उखाड़कर, दुनिया के सामने बड़े नेता के तौर पर उभरा है. सीरिया में हुए घटनाक्रम के बारे में आप 'हरकारा' के 9 दिसंबर के अंक में विस्तार से पढ़ सकते हैं.
अबू जोलानी का वास्तविक नाम अहमद हुसैन अल-शरआ है. 1982 में सऊदी अरब की राजधानी रियाद में पैदा हुआ था, जहाँ जोलानी के पिता बतौर पेट्रोलियम इंजीनियर गुजर बसर कर रहे थे. जोलानी जब छोटा था, तब ही सीरिया लौटे. सीरिया में जोलानी ने दुनिया और अरब की राजनीति को करीब से दमिश्क विश्वविद्यालय में चिकित्सा की पढ़ाई करने के दौरान समझना शुरू किया. हालांकि, कई उसकी मेडिकल की पढ़ाई की बात को अफवाह भी मानते हैं. साल 2003 आते-आते अमरीकी दादागिरी और तेल की लूट के ख़िलाफ, अरब देश सुलगने लगे थे. इराक पर अमेरिकी आक्रमण के बाद, जोलानी ने मिड सेमेस्टर में यूनिवर्सिटी छोड़ दी और हजारों नौजवानों की ही तरह पहुंच गया मुक्ति तलाशने इराक में अल-कायदा की वैचारिक छत के नीचे! मुल्क में अजीब सी खदबदाहट होने लगी. कई फ्रंट बने, कई लड़ाके युद्ध में कूदे. जोलानी भी कूदा.
(अबू मोहम्मद अल-जोलानी ने दमिश्क में उमय्यद मस्जिद में बशर अल-असद को उखाड़ फेंकने का जश्न मनाया. क्रेडिट: अब्दुल अज़ीज़ केताज़/एएफपी)
इराक में जोलानी ने अल-कायदा के लिए काम किया. जोलानी सामान्य नौजवान लड़ाकों के मुकाबले अल-कायदा में तेजी से आगे बढ़ने लगा और बड़े नेताओं, मसलन बगदादी के साथ ही काम करने लगा. बाद में सीरिया लौटकर जोलानी ने साल 2012 में 'अल-नुसरा' फ्रंट की स्थापना की, जो अल-कायदा की ही सीरियाई शाखा थी. अल-नुसरा एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है 'मदद' या 'सहायता'. इसका पूरा नाम था 'जभात अल-नुसरा', जिसका मतलब है 'मदद का मोर्चा'.
‘अल-नुसरा फ्रंट’ ने खुद को सीरियाई विद्रोहियों की मदद के लिए एक इस्लामी समूह के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका लक्ष्य सीरिया में शरिया कानून स्थापित करना था. यह संगठन शुरू में अल-कायदा की सीरियाई शाखा के रूप में सक्रिय था, लेकिन जोलानी को दुनिया की सभ्य होती पॉलिटिक्स की समझ आने लगी थी! वो समझ गया था कि लंबा चलना है तो तालिबान या फिर अल कायदा की कट्टर छवि से तो पहले मुक्ति पानी होगी! 2016 में जोलानी के संगठन ने अल कायदा को आउट कर दिया और दुनिया के सामने उदार छवि लेकर आया! वही सब किया जो उदार छवि दिखाने भर के लिए जरूरी होता है मसलन संविधान का आदर, संसद की सीढ़ी पर मत्था टेककर लोक के ‘तंत्र’ की स्थापना का प्रलाप, देश पहले, विकास इत्यादि...
जोलानी ने अलकायदा से मुक्ति के साथ संगठन की पहचान का ‘लोगो’ भी बदल दिया और नया झंडा लड़ाकों की मोटरबाइक और प्रभाव वाले इलाकों की छतों पर लहराने लगे! "जभात फतह अल-शाम" के झंडे, लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चले और जोलानी को संगठन के नए नाम के लिए नए झंडों का ऑर्डर करना पड़ा! झंडा और बाजा युद्ध में सबसे आगे चाहिए ही होता है. सीरिया के आसमान के नीचे एक छोटे से हिस्से उत्तर-पश्चिमी इलाकों में लहराने लगे ‘हयात तहरीर अल-शाम’ (एचटीएस) के झंडे, जो तानाशाह असद के सपनों में भी अब पीछा करेंगे. जोलानी के इसी एचटीएस ने सीरिया का राजनीतिक नक्शा बदल दिया है.
वह पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका और रूस, के हस्तक्षेप को सीरिया में 'मुसलमानों के खिलाफ युद्ध' कहता है. जीत के बाद, वह अपने समर्थकों को आश्वस्त करता है कि विदेशी ताकतों और उनके 'स्थानीय सहयोगियों' को हराया जा सकता है. जोलानी दावा करता आया है कि वह सीरिया के लोगों के लिए एक स्वायत्त इस्लामी प्रशासन का मॉडल तैयार कर रहा है.
एचटीएस के प्रमुख अबू मोहम्मद अल-जोलानी पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगने शुरू हो गए. पश्चिम ने अपनी नैतिकता के पैमाने में ऐसा आंका है. हालांकि, पश्चिम की इस सीरियाई आंदोलन के नेता के प्रति संकीर्ण धारणाएं भी किसी से छिपी नहीं है. पश्चिमी मीडिया ने अरब मुल्कों के आंदोलनकारियों और जनप्रिय नेताओं को पहले भी विलेन की तरह शेष दुनिया के सामने पेश किया है और अब जोलानी पश्चिम की मीडिया में ऐसा ही खूंखार चेहरा है, लड़ाका है, विद्रोही है...लेकिन सीरिया के लिए जोलानी, नई उम्मीद है! जैसा कि उसने कहा भी है- 'यह जीत हमारे शहीदों और हमारे लोगों के धैर्य की बदौलत है.'
लाइफ के टर्निंग प्वाइंट क्या रहे:
मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर इराक युद्ध में शामिल होना. अमेरिकी सेना ने राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन और उनकी बाथ पार्टी को सत्ता से हटा दिया था, लेकिन उन्हें स्थानीय लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. साल 2010 में इराक़ में अमेरिकी सेना ने अल-जोलानी को गिरफ़्तार कर लिया और कुवैत के पास स्थित जेल कैंप बुका में बंदी बनाए रखा.
माना जाता है कि यहां उनकी मुलाक़ात उन जिहादियों से हुई होगी, जिन्होंने इस्लामिक स्टेट (आईएस) ग्रुप का गठन किया था. यहां इराक़ में आगे चल कर आईएस के नेता बने अबू बक्र अल-बग़दादी से भी उनकी मुलाक़ात हुई होगी.
बगदादी से मुलाकात और 2012 में सीरिया वापसी. जब 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद के ख़िलाफ़ सीरिया में हथियारबंद संघर्ष शुरू हुआ तो अल-बग़दादी ने जोलानी को ग्रुप की एक शाखा शुरू करने के लिए भेजने का इंतज़ाम किया.
इसके बाद अल-जोलानी एक हथियारबंद ग्रुप नुसरा फ़्रंट (या जबहत अल-नुसरा) के कमांडर बन गए, जिसका गोपनीय संबंध इस्लामिक स्टेट से था. जंग के मैदान में इसने काफ़ी कामयाबियां हासिल कीं.
साल 2013 में अल-जोलानी ने नुसरा फ़्रंट का संबंध आईएस से तोड़ लिया और इसे अल-क़ायदा के मातहत ला दिया.
हालांकि, साल 2016 में जोलानी ने एक रिकॉर्डेड संदेश में अल-क़ायदा से भी अलग होने का एलान किया था.
हाल के सालों में जोलानी दुनिया के सामने अपना उदारवादी चेहरा पेश करने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन अमेरिका ने उन्हें पकड़ने के लिए एक करोड़ डॉलर यानी कि तकरीबन 83 करोड़ रुपए का इनाम रखा है.
चलते चलते: 40 साल की तानाशाही के बाद के दृश्य
‘गार्डियन’ ने ये फोटो गैलरी बनाई है सीरिया के राष्ट्रपति असद के मास्को भाग जाने के बाद. सीरिया में बशर अल-असद के लंबे शासन के अंत की खबर के साथ जश्न का माहौल था, लेकिन उनके ठिकाने को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं. हालांकि, यह रहस्य ज्यादा समय तक नहीं रहा, क्योंकि रविवार रात ही रूसी सरकारी मीडिया ने घोषणा कर दी कि रूस ने असद और उनके परिवार को 'मानवीय कारणों' से शरण दी है. क्रेमलिन ने इस मामले पर चुप्पी साध ली है और असद के ठिकाने या शरण देने के फैसले पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है. रूस लंबे समय से असद का सहयोगी रहा है और उसने सीरिया में अपने सैन्य ठिकानों को मजबूत करने के लिए असद सरकार को समर्थन दिया. सीरिया का भविष्य अभी भी अधर मे है, पर तानाशाहों का जाना एक नाटकीय, रोचक, रोमांचक दृश्य होता है. तानाशाह की भव्यता, विलास और जमीनी सच से उसका कटा होना.. उस दिन तक के लिए जब जमीनी सच ही उसे जान बचा कर भागने के लिए मजबूर कर देता है. जैसे-जैसे दुनिया में खुद को ईश्वर जैसा मानने वाले सर्वसत्तात्मक लोग बढ़ रहे हैं, उनका हश्र भी देखने को मिल रहा है. जब तानाशाहों के ताज उछलते हैं, और तख्त गिरते हैं, तब लोग उन जगहों पर जाते हैं, और ड्रामा यहां है… वह सब देखना, जो कुछ वह शख्स पूरे अवाम के नाम पर कर रहा था. उस नजारें के सामने खड़े होना, उस छल को साफ देख पाना, जिसका उन्हें अंदाजा तो था. इस देखने में वह अंदाजा तयशुदा बनता है. असद का महल, असद की कालकोठरियां, असद की कारें, असद के जलवे, असद के फरेब.. एक-एक करके जल कर राख हो रहे है. और लोग अब उसे अपने ही निज़ाम से भागता हुए देख कर जान रहे हैं, वह दरअसल चालाक जितना भी रहा हो, डरपोक बहुत था.
देखिए असद के सीरिया के फोटो यहां, यहां और यहां, और वीडियो यहां, यहां और यहां..
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.