10 नवंबर, 2024: मूसेवाला का भाई, उलेमा ने रखी 17 शर्तें, फिर पटरी छोड़ी रेल ने, शिंदे का वीडियो वायरल, पाकिस्तान में ब्लास्ट, रिकी केज फिर ग्रैमी की दौड़ मे, घास के गट्ठे के पीछे बावली हिरोइन
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
सुर्खिया: सिद्धू मूसेवाला के छोटे भाई के चेहरे को उनके माता-पिता ने हाल ही में सार्वजनिक किया है, जिससे बाद उनके प्रशंसकों की भावनात्मक प्रतिक्रिया सामने आयी है. फैंस इसे मूसेवाला की विरासत को जीवंत रखने का प्रतीक मान रहे हैं और इसकी तुलना सिंगर के लौट आने से कर रहे हैं. मूसेवाला की मई 2022 में पंजाब में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिसने देश-विदेश में उनके प्रशंसकों को गहरा झटका दिया. वह पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री के बड़े कलाकारों में से एक थे और अपने गानों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को उजागर करते थे.
माधबी पुरी बुच एक ऐसा नाम बन गयी हैं, चर्चाएं जिनका पीछा नहीं छोड़ रही हैं. पहले कांग्रेस उन पर हमलावर हुई और अडानी को लेकर किये गए हिंडनबर्ग के खुलासे के बाद उनकी भूमिका की मांग की जांच की गई और अब लोकपाल ने उनसे जवाब तलब कर लिया. शुक्रवार को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच को वित्तीय अनियमितताओं की शिकायतों का जवाब देने के लिए लोकपाल ने कहा है, जो तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और दो अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर की गई हैं. लोकपाल ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल एक प्रक्रियात्मक निर्देश है और इसे मामले के संबंध में कोई राय नहीं माना जाना चाहिए.
पटरी से फिर उतरी ट्रेन: शनिवार को पश्चिम बंगाल के हावड़ा के पास फिर से एक बार सिकंदराबाद-शालीमार सुपरफास्ट एक्सप्रेस के तीन डिब्बे पटरी से उतर गए. अब तक किसी के हताहत होने या गंभीर रूप से घायल होने की सूचना नहीं है. रेलों के पटरियों से उतरने का सिलसिला कुछ ऐसा हो चला है कि लोगों ने भी ध्यान देना बंद कर दिया और सरकार तो खैर बहुत पहले ही जिम्मेदारी लेना छोड़ ही चुकी..अकेले 1 अगस्त तक ही इस साल 19 घटनाएं ऐसी दर्ज हो चुकी थी.
पाकिस्तान में क्वेटा रेलवे स्टेशन पर सुसाइड अटैक: पाकिस्तान के क्वेटा रेलवे स्टेशन पर शनिवार सुबह ब्लास्ट में 26 लोगों की मौत हो गई। धमाके में 62 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। पाकिस्तान मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हमले की जिम्मेदारी मिलिटेंट ग्रुप बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली है।
ठेका मजदूर को ग्रेच्यूटी का फैसला: बॉम्बे हाई कोर्ट ने IIT-बॉम्बे के ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय दिया. गरसे, दादाराव इंगले और तनाजी लाड़ जैसे अन्य दैनिक मजदूरों ने 39, 25 और 20 वर्षों तक काम करने के बाद अपनी ग्रेच्युटी लाभ की मांग करते हुए IIT-B के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी थी. अब गरसे की मृत्यु के 5 महीने बाद, बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है. यह निर्णय देशभर में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए एक उदाहरण बन सकता है, जिससे उनके अधिकारों को कानूनी मान्यता मिल सकती है. इस फैसले का देश भर में व्यापक असर होगा.
उलेमा ने रखी शर्तें: इंडिया उलेमा बोर्ड महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) को समर्थन दे सकता है, हालांकि बोर्ड ने एमवीए के सामने 17 शर्तें रखी हैं. इन शर्तों में वक्फ बिल का विरोध और मुस्लिमों के लिए आरक्षण समेत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी है. उलेमा बोर्ड ने महाराष्ट्र वक्फ मंडल के विकास के लिए 1000 करोड़ रुपये का फंड देने की भी मांग की है. बोर्ड ने एमवीए नेताओं को पत्र लिखकर अपनी मांग रखी है. इस खबर के बाहर आते ही मीडिया एक बार फिर से अपने उस नैरेटिव पर काम करता दिखा, जिसमें सांप्रदायिक खाई खींचने की प्रबल गुंजाइश हो. एबीपी न्यूज़ ने तो अपने एक कार्यक्रम में इस खबर को पेश करते हुए हैडलाइन लगाई- 'मौलाना चलाएंगे अघाड़ी की गाड़ी'.
खैर, 2014 के बाद से ये सब मुख्यधारा की मीडिया में पहली दफा नहीं हुआ है. आनंद बाज़ार पत्रिका के टीवी चैनल का अंदाज एक रहता है और उनके अखबार टेलिग्राफ का कुछ और. हिंदी के दर्शक इस शोर और कंटेंट की भाषा के आदि से हो गए हैं, ऐसा एक नहीं बल्कि कई पुरानी रिपोर्ट्स भी बताती हैं.
शिंदे ने तोते की तरह दोहराया और वीडियो वायरल
अमेरिका के नेता और मोदी जी जहाँ टेलीप्रॉम्प्टर का इस्तेमाल करते हैं, वहीं महाराष्ट्र में एक वी़डियो वायरल हो रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे बगल में खड़े आदमी के कहे को तोते की तरह दुहरा रहे हैं. महाराष्ट्र के परांडा से आये वीडियो में एक सभा के दौरान महाराष्ट्र सरकार के मंत्री तानाजी सावंत मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को वैसे ही प्रॉम्पट कर रहे हैं जैसे स्कूली बच्चों के साथ उनके शिक्षक करवाते हैं. इस वीडियो को शेयर कर अब उद्धव ठाकरे के शिव सैनिक मज़े ले रहे हैं. विपक्षी नेता अंबादास दानवे ने सावंत पर तंज कसते हुए कहा कि शिंदे को अपने दम पर बोलने दिया जाना चाहिए. उन्होंने इस वीडियो को अपने ट्विटर पर शेयर किया है. ये तानाजी वही हैं जिन्हें अजित पवार के साथ उठने - बैठने पर उल्टियाँ आने लगती हैं.
मणिपुर में 3 दिन में 2 महिलाओं की मौत
मणिपुर में हिंसा की घटनाएं जारी हैं, जिसमें तीन दिनों के भीतर दो महिलाओं की हत्या हो चुकी है. जातीय तनाव और संघर्ष इस क्षेत्र में लगभग छह महीने से चल रहा है, जिसके कारण अब तक लगभग 180 लोगों की मौत दर्ज है, जबकि वास्तविक संख्या मणिपुर के इंटरनेट की ही तरह शायद कभी किसी शोध में सामने आए. यहाँ जारी हिंसा से हजारों लोगों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है. यहां सुरक्षा व्यवस्था में कई चुनौतियाँ हैं, और हालात को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त बलों की तैनाती की गई है, लेकिन हिंसा की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं.
पशु क्रूरता का मामला दर्ज: दुनिया में क्रूरता बढ़ रही है. मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र में दो महिलाओं ने तो कम से कम अपने क्रूर कारनामे से इसी ओर इशारा किया है. आरोप है कि दोनों ने पेट्रोल डालकर पांच आवारा पिल्लों को जला दिया और इसकी वजह थी दोनों के कानों में पिल्लों की कूं-कूं का शोर में तब्दील हो जाना. बस फिर क्या था दोनों ने पाँचों पिल्लों पर पेट्रोल डाला और आग लगा दी.
ट्रम्प से ‘टैरिफ वार’ के लिए चीन तैयार
चीन ने अपनी मंद होती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए नए कदम उठाए हैं. असल में चीन डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के लिए तैयारी कर रहा है, जिससे भविष्य में उसे व्यापर युद्ध में उलझकर बड़े नुकसान न उठाने पड़ें. चीन स्थानीय सरकारों के कर्ज को 6 ट्रिलियन युआन (840 बिलियन डॉलर) से राहत देने की योजना बना रहा है, जो वर्षों से अव्यवस्थित कर्जों का बोझ उठा रही हैं. इसके अलावा, ट्रम्प के द्वारा चीन पर लगाए गए शुल्क और व्यापारिक दबाव से निपटने के लिए चीन के पास सीमित विकल्प हैं. IMF ने 2024 में चीन की वृद्धि दर को घटाकर 4.8% कर दिया है.
चीन ने अपनी स्थानीय सरकारों के लिए वित्तीय सहायता पैकेज तो घोषित किया, लेकिन नए प्रोत्साहन के पैकेज की घोषणा नहीं की, ताकि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बन जाने पर अब संभावित व्यापार युद्ध का सामना किया जा सके. चीन अपनी मंद होती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए नए कदम उठा रहा है, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प के चुनावी जीत के बाद, उनकी उच्च आयात कर नीति से चीन के विकास में और रुकावट आ सकती है. ट्रम्प के संभावित दूसरे कार्यकाल से व्यापार संबंधों में तनाव और बढ़ सकता है, खासकर जब वह चीन के खिलाफ नए शुल्क लगाने की योजना बना रहे हैं, जो चीन की आर्थिक स्थिति को और चुनौतीपूर्ण बना सकता है.
हालांकि ऐसा पश्चिम और यूरोप का मीडिया रिपोर्ट कर रहा है. चीनी मीडिया तो पूरी दुनिया के लिए इस वापसी को घातक बता रहा है और खासकर यूरोप को कमजोर स्थिति में बता रहा है. चायना डेली ने फ्रांस के केंद्रीय बैंक के गवर्नर फ्रांकोइस विलेरॉय डी गाल्हाऊ के हवाले से लिखा- 'डोनाल्ड ट्रम्प की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत "वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए जोखिमों को बढ़ाती है." ट्रम्प प्रशासन से अधिक संरक्षणवाद, महंगाई और विकास में कमी आ सकती है, जिससे वैश्विक आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. यूरोप के लिए यह एक "सतर्कता का संकेत" है, क्योंकि यूरोप इस नई स्थिति से निपटने में कमजोर है'.
बांग्लादेश की बिजली का करंट कहाँ?
अडानी पावर ने बकाया राशि न देने पर बांग्लादेश को बिजली की आपूर्ति आधी कर दी, तो ढाका ने लगभग 800 मिलियन डॉलर के कर्ज को कम करने के लिए कुछ भुगतान किए ताकि बिजली की आपूर्ति जारी रहे. बांग्लादेश अडानी पावर से महंगी दरों पर ऊर्जा आयात पर निर्भर है और अब इस स्थिति को वैश्विक ऊर्जा कीमतों में बढ़ोतरी और आर्थिक संकट ने और बढ़ा दिया है. अडानी का उधार, बांग्लादेश की हरित ऊर्जा में बदलाव की योजना में भी अड़चन पैदा कर रहा है. अडानी पावर, बांग्लादेश को बिजली सप्लाई करता है, लेकिन दर भारत के अन्य निजी उत्पादकों से लगभग 27% अधिक है. बांग्लादेश पर करीब 800 मिलियन डॉलर का बकाया है और अडानी ने भुगतान न मिलने पर बिजली आपूर्ति रोकने की चेतावनी दी है.
जलवायु परिवर्तन पर पैसे का असर
जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव दुनिया भर में तेजी से बढ़ रहे हैं. नेपाल में सितंबर 2024 में भयंकर बाढ़ ने जीवन और संपत्ति का बड़ा नुकसान पहुंचाया, वहीं भारत और पाकिस्तान में अत्यधिक गर्मी ने जन-जीवन को प्रभावित किया. कनाडा में जंगलों की आग और कैरेबियन में तूफानों ने भी व्यापक तबाही मचाई. ये आपदाएं दर्शाती हैं कि जलवायु संकट अब भविष्य का नहीं बल्कि वर्तमान का खतरा है, जो मुख्य रूप से कमजोर वर्गों पर असर डाल रहा है. दुनिया के देश इस पर माथा-पच्ची करने के लिए फिर कॉप29 सम्मलेन में शामिल होने लाव लश्कर के साथ फंड्स की बात करने आ रहे हैं. हाँ ऐसा ही है कुछ देश जैसे सऊदी केवल फंड्स पर ही बैठक में चर्चा चाहता है, जबकि जापान इस बैठक से ठोस नतीजे की इच्छा रखता है. जलवायु महासम्मेलन (कॉप29) से पहले, सवाल कायम है कि क्या विकसित देश अंततः क्लाइमेट फाइनेंस पर अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे, या फिर एक बार फिर विफलता ही हाथ लगेगी, जिसका खमियाजा लाखों लोगों को अपनी जान गंवा कर भुगतना होगा? आगामी कॉप29 सम्मेलन में विकसित देशों की जलवायु वित्तीय प्रतिबद्धताओं पर सवाल बने हुए हैं और अपनी पड़ताल हृदयेश जोशी ने इसी के इर्द-गिर्द रखी है.
2 जहाज भरकर अपने पिटे हुए नागरिक एम्सटर्डम से वापस लाया इजरायल
इजरायल-हमास जंग की आग ने अब यूरोप के शहरों को भी झुलसाना शुरू कर दिया है. एम्स्टर्डम में इजराइली फुटबॉल प्रशंसकों की फिलिस्तीनी समर्थकों से झड़प हुई है, जिसके बाद भीड़ ने इजराइलियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा है. एम्स्टर्डम नगर परिषद के एक सदस्य ने कहा कि इन झड़पों में 'मकाबी के हुड़दंगियों' ने हिंसा भड़काई और फिलिस्तीनी समर्थकों पर हमला किया. इजरायली नागरिकों की पिटाई के वीडियो वायरल हो रहे हैं. मामला इतना गंभीर हो गया कि इजरायल को दो यात्री विमान अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए एम्स्टर्डम भेजने पड़े. स्पैनिश मीडिया ने इस हफ्ते की शुरुआत में खबर दी थी कि इजरायल विरोधी प्रदर्शनकारी उस स्टेडियम के बाहर प्रदर्शन करेंगे जहां मैच खेला जा रहा था.
थरूर की निगाह में ट्रम्प
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने डोनल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति ऑफिस में दोबारा पहुँच जाने पर अपना नजरिया पेश किया है. इंडियन एक्सप्रेस के लिए थरूर लिखते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प एक बेहद लेन-देन करने वाले नेता हैं... वह हर एक मदद के बदले में एक बराबरी की मांग करेंगे. लेख में ट्रम्प को "लेन-देन करने वाला नेता" बताते हुए उनके नेतृत्व की प्रकृति पर चर्चा की है. थरूर का मानना है कि ट्रम्प हर सहायता या योगदान के बदले में खुद के लिए उम्मीद रखते हैं और कूटनीति में उनका तरीका काफी व्यावहारिक और स्वार्थी है. इस दृष्टिकोण में वह भारत सहित अन्य देशों के साथ भी कठोर रुख अपनाने की संभावना रखते हैं. उनका मानना है कि ट्रम्प की ऐसी नीति से अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जगह अधिक दबाव और शर्तों पर आधारित संबंध देखने को मिल सकते हैं.
इलॉन मस्क अपनी बेटी की नज़रों में “बेपरवाह, अय्याश और सनकी”
इलॉन मस्क की बेटी अपने पिता पर गुस्से से फट पड़ी है. मस्क को उसने ‘भ्रमित और अनैतिक रूप से काबू करने वाला सनकी’ कहा है, जो 15 साल के बच्चे जैसी परिपक्वता रखता है. एक बेटी की गुस्से से भरी यह प्रतिक्रिया इसलिए आई है, क्योंकि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर उसकी आलोचना की थी.
विवियन जेना विल्सन, मस्क की 20 वर्षीय ट्रांसजेंडर बेटी ने बुधवार को थ्रेड्स पर लिखा कि डोनाल्ड ट्रम्प की फिर से चुनाव जीतने की खबर ने उसे विदेश जाने के लिए मजबूर किया है, जिस पर वह पहले से विचार कर रही थी. इलॉन मस्क ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स/ ट्विटर पर इसका जवाब देते हुए लिखा, ‘वोक माइंड वायरस ने मेरे बेटे को मार डाला’. यौवन अवरोधकों के विरोध को समझाने के लिए मस्क इस एक लाइन को कई बार दोहरा चुके हैं.
विल्सन ने पलटवार में बृहस्पतिवार को थ्रेड्स पर लिखा, आप (मस्क) अभी भी वही दुख भरी कहानी सुना रहे हो कि ’मैं कितना दुखी हूं, मेरा बच्चा किसी चीज से संक्रमित हो गया. कुलमिलाकर उनकी मुझसे नफरत की यही वजह है.’ विवियन ने लिखा कि मस्क उसके देश छोड़ने की खबर पर तमतमा गए. खासतौर पर इस खबर के बाद ही उनकी प्रतिक्रिया आई. क्योंकि उन्हें लगा कि उनका उस पर कोई नियंत्रण ही नहीं है. विवियन ने मस्क को जवाब में लिखा, “अंततः, आपके आसपास का हर शख्स यह जान जाता है कि आप एक भ्रमित और अनैतिक रूप से काबू करने वाले ऐसे सनकी हैं, जो 38 वर्षों में भी एक परिपक्व इंसान नहीं बन पाया है.
यह कोई पहली बार नहीं है कि 20 वर्षीय विवियन ने अपने पिता को अपरिपक्व और नियंत्रित करने वाला बताया है. इससे पहले भी, जब मस्क ने टेलर स्विफ्ट को कमला हैरिस का राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन करने पर “बच्चा देने” का प्रस्ताव दिया था, तो विल्सन ने इस टिप्पणी को ‘स्त्री द्वेष से भरी बहुत बड़ी बकवास’ कहा था.
विवियन विल्सन और इलॉन मस्क के बीच 2022 से ही तनाव है, जब विल्सन ने अपने पिता के साथ संबंध तोड़ लिए थे, जैसा कि वॉल्टर आइजैकसन द्वारा लिखी गई मस्क की जीवनी में बताया गया है. मस्क के तीन महिलाओं के साथ 12 बच्चे हैं, जो कोख से ईर्ष्या जैसी स्थिति को दर्शाता है. विल्सन ने मस्क को एक बेपरवाह बाप और ‘सीरियल व्यभिचारी’ कहा है. (आइजैकसन की जीवनी इस बात की पुष्टि करती है कि स्पेस X के चीफ ने सिंगर ग्रिम्स के साथ संबंध के दौरान गुप्त रूप से जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था.)
इस सप्ताह की शुरुआत में खबर आई थी कि मस्क और ग्रिम्स एक घर की तलाश कर रहे हैं जिसमें वे अपने अन्य बच्चों और उनकी माँ के साथ रह सकें. ग्रिम्स और मस्क अपने तीन छोटे बच्चों की कस्टडी के लिए 2022 से ही लड़ रहे हैं. मस्क पर आरोप है कि वह जुलाई माह से बच्चों को ग्रिम्स से अलग रखे हुए हैं. विल्सन ने कहा है कि अगर यह रिपोर्ट सच है, तो सवाल उठता है कि किसका विचार था ‘साइंटोलॉजी, द सीक्वल’ जैसी व्यवस्था करने का.
सरदार पटेल होते तो किसका पक्ष लेते, लोगों का या बाँध का
मेधा पाटकर
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुडी मशहूर सामजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने सरदार बल्लभ भाई पटेल के बहाने, मोदी की सियासत को आमने-सामने पैमाने की तरह रखकर पटेल की जन्मतिथि के मौके पर स्क्रॉल के लिए अंग्रेजी में एक लम्बा लेख लिखा है. दिलचस्प है कि जिस दिन प्रधानमंत्री 'स्टेचू ऑफ़ यूनिटी' को गुजरात की प्रगति का प्रतीक बताते हैं, ठीक उसी रोज गुजरात की जमीन पर सालों से नर्मदा पर बने सरदार सरोवर बाँध प्रभावितों की लड़ाई लड़ने वाली मेधा, प्रधानमंत्री की बातों को अपने लेख के जरिए खोखला बता देती हैं. लेख का शीर्षक है- "भारत के सबसे ऊंचे नेता ने नर्मदा परियोजना के खिलाफ संघर्ष क्यों किया होता". यह उस लेख का रूपांतरण है.
31 अक्टूबर को स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर भारत के सबसे प्रभावशाली नेता सरदार सरोवर डैम पर एक भव्य समारोह में शामिल होते हैं, जहां 182 मीटर ऊंची सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा, ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ स्थित है.
पानी से लबालब यह जलाशय गुजरात के लिए एक समृद्ध भविष्य का संकेत देता है. इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं, जिनमें अधिकांश सरकारी कर्मचारी होते हैं.
इसी समय, पुलिस और सुरक्षा बल आदिवासी नेताओं, नागरिकों और समाजसेवियों को इस आयोजन से दूर रखते हैं – कुछ को तो समारोह के खत्म होने तक नजरबंद भी कर दिया जाता है.
इस विशाल और महंगे प्रोजेक्ट ने तीन राज्यों में लोगों को विस्थापित किया है, जिनमें से कई आदिवासी हैं; इसने कई जिंदगियों को प्रभावित किया है, जंगलों को डुबो दिया है और यहां तक कि "मां नर्मदा" को भी नुकसान पहुंचाया है – जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नर्मदा नदी को संबोधित करते हैं.''
सरदार पटेल के जीवन के मूल सिद्धांतों से प्रेरित होकर, जिन्होंने किसानों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, यह विडंबना है कि आज उनकी प्रतिमा उसी भूमि पर खड़ी है, जहां के आदिवासियों के अधिकारों का हनन हुआ है. गुजरात के केवड़िया में बने इस पर्यटन स्थल में लाखों पर्यटक आते हैं, लेकिन वहां के आदिवासियों को अपने पारंपरिक अधिकार खोने पड़े हैं. इन आदिवासियों को मामूली मुआवजा देकर उनकी भूमि को मॉल, वीआईपी शहर, और पांच सितारा होटलों के लिए ले लिया गया है. जिनकी भूमि नहीं छिनी गई, वे भी पर्यटन प्रोजेक्ट्स के चलते अपनी आजीविका से वंचित हो गए हैं.
सरदार सरोवर बांध परियोजना का उद्देश्य सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पानी पहुंचाना था, लेकिन आज भी कच्छ और सौराष्ट्र के किसानों को पानी नहीं मिल रहा है क्योंकि सिंचाई के लिए बनाई जाने वाली माइक्रो-कैनाल्स का निर्माण अधूरा है. बांध से जुड़ा पानी बड़े शहरों और निजी उद्योगों की ओर मोड़ा गया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों को इसका फायदा नहीं मिल रहा. सौराष्ट्र में कई किसान अब क्षतिग्रस्त और बंद पड़ी नहरों के कारण सिंचाई के अभाव से जूझ रहे हैं, जबकि “सौनी योजना” की प्रशंसा होती है.
बांध से नर्मदा नदी के पानी का खारापन 60 किमी तक बढ़ गया है, जिससे न केवल जल प्रदूषण बढ़ा है बल्कि मछुआरों और स्थानीय समुदायों की आजीविका भी प्रभावित हुई है. समुद्री जल के प्रवेश के कारण कई इलाकों में पेयजल भी खारा हो गया है और नदियों में अवैध बालू खनन भी इस समस्या को और बढ़ा रहा है. इसके बावजूद, "विकास" के नाम पर पर्यावरणीय चिंताओं को नजरअंदाज कर पर्यटन और औद्योगिक परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है.
सरदार पटेल के सम्मान में बने इस क्षेत्र में सरकार के पर्यावरणीय वादों और वास्तविकता में बड़ा अंतर है. सरकारी विज्ञापनों में “जल और प्रकृति की रक्षा” का वादा किया जाता है, लेकिन वहीं दूसरी ओर, जंगलों और पुराने पेड़ों को काटकर सड़कों और पर्यटन के लिए जगह बनाई जा रही है. छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगलों में खनन के लिए पेड़ों की कटाई और विरोध कर रहे आदिवासियों पर बल प्रयोग किया जा रहा है. इसी तरह, पश्चिमी घाट और हिमालय क्षेत्र में भी जंगलों की कटाई के कारण गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हुई हैं.
पर्यावरण संरक्षण के बजाय अब वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर वन क्षेत्रों को उद्योगों के लिए खोल दिया गया है. जैविक विविधता अधिनियम को भी जुलाई 2023 में संशोधित किया गया, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का समान उपयोग बाधित हो गया. स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास स्थित बटरफ्लाई गार्डन को जैव विविधता का प्रतीक बताने के बावजूद हजारों हेक्टेयर वनभूमि को बांध परियोजना के लिए जलमग्न कर दिया गया है, जिससे यह "प्रकृति संरक्षण" एक दिखावा मात्र लगता है.
सरदार पटेल के समय में, जब उन्होंने ब्रिटिश शासन के करों के खिलाफ किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी, उनका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को एकजुट करना था. अगर आज सरदार पटेल होते, तो शायद इस प्रकार के अव्यवस्थित विकास का समर्थन नहीं करते, जिससे लाखों लोगों का विस्थापन और पर्यावरणीय नुकसान हुआ है.
नर्मदा बांध से संबंधित पर्यावरणीय प्रभावों को नजरअंदाज कर केवड़िया को "एकता नगर" के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, जबकि इसकी हकीकत आदिवासी समुदायों के दर्द को बयान करती है. 2023 में, जब प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में बांध के द्वार खोलने में देरी की गई, तो मध्य प्रदेश और गुजरात के कई गांवों में बाढ़ आ गई. इस दुर्घटना में मध्य प्रदेश में कई लोगों की जान भी गई और हजारों लोग बेघर हुए. यह दर्शाता है कि किस प्रकार सुरक्षा मानकों और पर्यावरणीय चिंताओं की अनदेखी कर राजनीतिक समारोहों को प्राथमिकता दी जा रही है.
इस तरह के विकास मॉडल में सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को गहरा कर दिया है. आदिवासी समुदायों की परंपरागत आजीविका और संस्कृति का हनन हो रहा है. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बनाए गए नए मंदिरों और महाआरती जैसे आयोजन भले ही उनकी धार्मिक आस्था को दर्शाते हों, लेकिन असली मुद्दा उन हजारों लोगों का विस्थापन है जो पहले इन स्थलों के वास्तविक रक्षक थे.
सरदार पटेल की वास्तविक श्रद्धांजलि यही होगी कि देश में एक ऐसा विकास मॉडल अपनाया जाए जो वंचित समुदायों, पर्यावरण और आर्थिक संतुलन का ख्याल रखे. उनके सिद्धांतों पर आधारित एक भारत तभी संभव है, जब सभी वर्गों को बराबरी का हक मिले और पर्यावरण संरक्षण को केवल प्रचार का हिस्सा न बनाया जाए.
(मेधा पाटकर का लेख आप लिंक पर जाकर अंग्रेजी में पूरा पढ़ सकते हैं.)
बियोंसे और टेलर स्विफ्ट की बगल में इस ग्रैमी की होड़ में रिकी केज फिर से
प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार और तीन बार ग्रैमी विजेता रिकी केज को उनके एल्बम 'ब्रेक ऑफ़ डॉन' के लिए 2025 ग्रैमी पुरस्कार में नामांकित किया गया है. यह उन्हें पंडित रवि शंकर के बाद पहला भारतीय कलाकार बनाता है जो इस सम्मान के लिए चुने गए हैं. यह एल्बम मानसिक स्वास्थ्य के प्रचार के लिए भारतीय रागों का उपयोग करता है और स्टैनफोर्ड ग्लोबल हेल्थ द्वारा इसकी सराहना की गई है. चलते-चलते आप यहाँ रिकी केज की कुछ शानदार कृतियों का लुत्फ़ ले सकते हैं यहाँ, यहाँ और यहाँ .
घास का गट्ठा
सेट पर घास की चिंता में डूबी रहने वाली पहाड़ की अभिनेत्री पहुँची ब्लैक नाइट्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल
अशोक पांडे
‘’पैंसठ पार की हीरा देवी विनोद कापड़ी की नई फिल्म ‘पायर’ की हीरोइन हैं. उत्तराखण्ड के सुदूर कस्बे बेरीनाग से कोई दस किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव गढ़तिर की रहने वाली हीरा देवी ने फिल्म के लिए चुने जाने से पहले अपना ज़्यादातर जीवन पहाड़ की अधिकतर निर्धन महिलाओं की तरह अपने परिवार और मवेशियों की देखरेख करते हुए बिताया था. सिनेमा और कैमरा छोड़िये, बड़ी स्क्रीन वाले फोन जैसी चीजें भी उनके लिए किसी दूसरे संसार की चीजें थीं.
दो बेटों और एक बेटी की शादी-परिवार वगैरह निबटा चुकीं हीरा देवी कुछ वर्ष पहले पति के न रहने के बाद से एकाकी जीवन बिता रही थीं जब नज़दीक के ही गाँव उखड़ से वास्ता रखने वाले पत्रकार-फिल्म निर्देशक विनोद कापड़ी ने उनके जीवन में दस्तक दी और अपनी फिल्म में काम करने का प्रस्ताव दिया.
घर में अकेली हीरा देवी का साथ देने को एक पालतू भैंस थी जो इत्तफाक से उन्हीं दिनों ब्याई थी. सो सारी दिनचर्या भैंस और उसके नवजात के लिए घास वगैरह का इतंजाम करने के इर्दगिर्द घूमा करती. जब फिल्म में काम करने की बात चली तो पहला सरोकार भी वही था. दूसरी चिंता यह हुई कि अड़ोसी-पड़ोसी क्या कहेंगे. कुछ परिचितों ने उन्हें चेताया भी कि पिक्चर वालों का कोई भरोसा नहीं होता, कब कौन सी चीज की फिल्म खींच लें!
बहरहाल सारी परेशानियों का तोड़ निकाला गया और शूटिंग शुरू हो गई. हीरादेवी का घर मुख्य लोकेशन से कोई 6 किलोमीटर दूर था. शूटिंग सुबह साढ़े छः पर शुरू होती और अक्सर रात के आठ बजे तक चलती. प्रोडक्शन वाले हीरादेवी को वैसी ही इज्जत बख्शते जैसी बॉलीवुड की किसी ऐक्ट्रेस को मिलती होगी. उन्हें अभिनय सिखाने के लिए बाकायदा एक प्रशिक्षक तैनात थे. हर रोज़ लाने-छोड़ने जाने को एक गाड़ी हमेशा खड़ी रहती. वे तड़के उठकर ही जंगल जाकर गाड़ी के आने से पहले भैंस के लिए दिन भर की घास की व्यवस्था कर लेतीं.
शूटिंग का एक बेहद दिलचस्प वाकया है.
एक सीन में उन्हें घास का गठ्ठर उठाए नायक के साथ कहीं जाते हुए दिखाया जाना था. सुबह का सीन था. हीरा देवी के आने से पहले ही प्रोडक्शन की टीम ने कहीं से एक गट्ठर घास का इंतजाम किया हुआ था. सेट पर पहुँचते ही हीरा देवी की निगाह सबसे पहले उसी पर पड़ी. उनकी आँखों में चमक आई.
सीन शुरू हुआ लेकिन उस दिन हीरादेवी के अभिनय में कोई जान नहीं आ रही थी. उनकी निगाह बार-बार उसी गट्ठर की तरफ चली जाती. डायरेक्टर झुंझलाने लगता उसके पहले ही सीन रुकवा कर उन्होंने विनोद से पूछा –
“इस घास का क्या करोगे?”
“यहीं फेंक देंगे. और क्या!”
उनके मन में टीस जैसी उठी. उन्होंने देर तक विनोद से बात की और यह बात सुनिश्चित करवाई कि शूटिंग ख़त्म होने पर फेंकने के बजाय घास उन्हें घर ले जाने को दे दी जाएगी. इस निश्छलता से अन्दर तक भीग गए विनोद ने प्रोडक्शन टीम को एक और गट्ठर की व्यवस्था कर लाने को कहा. उसके बाद सब कुछ अच्छी तरह हुआ.
उस शाम घर जाते हुए उनकी जीप में दो गट्ठर घास भी भरी हुई थी. हीरादेवी के चेहरे पर उस दिन कैसा संतोष रहा होगा इसकी कल्पना वही कर सकता है जिसने हर सुबह जान की बाजी लगाकर चारे-लकड़ी की खोज में पहाड़ की महिलाओं को बाघों से भरे जंगलों में जाते हुए देखा है.
अब जब कोई हफ्ते भर बाद वे फिल्म के प्रीमियर के लिए एस्टोनिया की राजधानी एस्टोनिया की राजधानी टालिन में होने वाले ब्लैक नाइट्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जाने की तैयारी कर रही हैं, मुझे पक्का भरोसा है, वहां रेड कारपेट पर चलते हुए भी उनके मन में यही चल रहा होगा कि उनके बगैर उनकी भैंस क्या खा रही होगी, कैसे रह रही होगी!”
(अशोक पांडे के फेसबुक पोस्ट और उनकी इज़ाजत से)
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