10/02/2025 : 31 नक्सली मारे, बीरेन सिंह का इस्तीफा, किसान नेता बहुत बीमार, फिर मस्जिद पर बुलडोज़र, केजरीवाल की हार का आप के लिए मतलब, मध्य वर्ग और गरीब, भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा है भी?
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम रोशनी ज़्यादा!
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
उम्मीद है ‘हरकारा’ आपके मेन फोल्डर में ही जा रहा है, स्पैम में नहीं. एक बार देख कर तसल्ली कर लें.
पाठकों से अपील
आज की सुर्खियां | 10 फरवरी 2025
सुरक्षा बलों ने 31 नक्सली मारे : छत्तीसगढ़ से बड़ी खबर सामने आई है. 'द टेलीग्राफ' की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुरक्षा बलों से हुई मुठभेड़ में 31 नक्सली मारे गए हैं. दो सुरक्षाकर्मियों के भी मारे जाने की खबर है. नक्सलियों के खिलाफ इस अभियान में जिला रिजर्व गार्ड , विशेष कार्य बल और बस्तर फाइटर्स, राज्य पुलिस की सभी इकाइयां शामिल थीं. छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि 650 से अधिक सुरक्षा कर्मियों ने इंद्रावती नेशनल पार्क क्षेत्र में विभिन्न दिशाओं से प्रवेश किया और नक्सलियों के ठिकाने में 31 नक्सलियों को मारा गिराया. भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी राज्य में मार्च 2026 तक नक्सलवाद से मुक्ति पाने की बात दोहराता आया है. अकेले इसी साल अब तक छत्तीसगढ़ में 81 नक्सलियों को मारा गया है. एक अधिकारी के हवाले से टेलीग्राफ ने लिखा है- "अब तक, मुठभेड़ स्थल से 'वर्दी' पहने 31 नक्सलियों के शव बरामद किए गए हैं."
मणिपुर सीएम बीरेन सिंह का इस्तीफा : मणिपुर में दो साल से जारी जातीय हिंसा के कारण भाजपा के भीतर असंतोष और नेतृत्व परिवर्तन की मांग के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने आखिरकार रविवार शाम को अपना इस्तीफा राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को सौंप दिया. राज्यपाल ने मंत्रीपरिषद सहित उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और वैकल्पिक व्यवस्था होने तक अपने पद पर काम करने के लिए कहा है. इसके पहले बीरेन सिंह ने रविवार सुबह नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ चर्चा की. इसके बाद वह दिल्ली से सीधे इम्फाल गए और राजभवन जाकर इस्तीफा दे दिया. 'द टेलीग्राफ' ने पीटीआई के हवाले से यह जानकारी दी है. बीरेन के इस्तीफे के दो और कारण भी बताए जा रहे हैं. एक तो यह कि सोमवार 10 फरवरी से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा के सत्र में कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी की है और दूसरा, मुख्यमंत्री के लीक ऑडियो टेप का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के अधीन पेंडिंग है. ट्रुथ लैब की जांच रिपोर्ट के अनुसार ऑडियो क्लिप से उनकी आवाज़ 93 फीसदी मेल खाती है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने सीएफएसएल से छह हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है. गौरतलब है कि मणिपुर में मई 2023 में शुरू हुई जातीय हिंसा में अब तक 250 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा है.
डल्लेवाल की नसें नहीं ढूंढ़ पा रहे डॉक्टर : दो प्रमुख किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) ने रविवार को एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की पिछले छह दिनों से चिकित्सा सहायता रोक दी गई है, क्योंकि डॉक्टर ड्रिप लगाने के लिए उनकी नसें नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं. एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के संयोजक डल्लेवाल पिछले साल 26 नवंबर से खनौरी सीमा बिंदु पर आमरण अनशन पर हैं. वे फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी और अन्य मांगों की मांग कर रहे हैं. 18 जनवरी को संयुक्त सचिव (कृषि) प्रिय रंजन के नेतृत्व में केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और केएमएम को 14 फरवरी को चंडीगढ़ में अपनी मांगों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित करने के बाद डल्लेवाल चिकित्सा सहायता लेने को राजी हुए थे, हालांकि उन्होंने अपना आमरण अनशन समाप्त नहीं किया है. उन्हें नसों के जरिये तरल पदार्थ दिया जा रहा था. डल्लेवाल ने कहा है कि आमरण अनशन वह तभी समाप्त करेंगे, जब फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी केंद्र सरकार देगी. इस बीच, दोनों ही संगठनों ने राजस्थान के रतनपुरा (11 फरवरी), खनौरी सीमा (12 फरवरी) और शंभू सीमा (13 फरवरी) पर चल रहे विरोध प्रदर्शन के एक साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 'किसान महापंचायत' आयोजित करने की तैयारी की है. किसान पिछले साल 13 फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमा बिंदुओं पर तब से डेरा डाले हुए हैं, जब सुरक्षा बलों ने उन्हें अपनी विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली मार्च की अनुमति नहीं दी थी.
यूपी में फिर एक मस्जिद की तरफ बुलडोज़र : रविवार को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के हाटा कस्बे में भारी संख्या में सुरक्षाकर्मियों और वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में छह बुलडोजरों से यहां स्थित मदनी मस्जिद का एक हिस्सा ध्वस्त कर दिया गया. अधिकारियों का कहना है कि इसे ‘अतिक्रमित’ भूमि पर बनाया गया था. भगवा कार्यकर्ता राम बचन सिंह ने मुख्यमंत्री के पोर्टल पर इसकी शिकायत की थी. शिकायत पर कुछ महीने पहले राजस्व विभाग की टीम ने सर्वे कर अतिक्रमण की जमीन पाए जाने के बाद मस्जिद कमेटी को नोटिस जारी किया था. इसके खिलाफ मस्जिद प्रबंधन इलाहाबाद हाईकोर्ट गया था. कोर्ट ने मस्जिद के अतिक्रमण वाले हिस्से को गिराने पर रोक लगा दी थी. यह रोक शनिवार तक थी. वहीं मस्जिद के केयरटेकर का कहना है कि मुस्लिम समुदाय ने मस्जिद बनाने के लिए करीब 15 साल पहले 32 डिसमिल जमीन खरीदी थी और कोई अतिक्रमण नहीं है. मस्जिद उसी 30 डिसमिल जमीन पर बनी है. सरकारी अधिकारियों ने बताया कि मस्जिद पिछले दस सालों से वहां है और मुसलमान वहां नियमित रूप से नमाज अदा करते रहे हैं.
दिल्ली चुनाव
केजरीवाल की हार का आप के लिए मतलब
टीम ‘हरकारा ‘ ने दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी की हार के बाद राजनीति और पार्टी को नजदीक से जानने वालों की राय को क्यूरेट करने की कोशिश की है. केजरीवाल और आम आदमी पार्टी इन नतीजों के बाद किस चौराहे पर है, किन सवालों से रूबरू और यहां से किस तरफ जाने वाली है.
शेखर गुप्ता ने द प्रिंट में अपने कॉलम में लिखा है कि आप की हार विचारधारा मुक्त राजनीति का खात्मा है. गुप्ता के मुताबिक “सच तो यह है कि केजरीवाल के पास कोई सिद्धांत, दर्शन या विचारधारा का बोझ नहीं था. एक ख़ास भारतीय राजनेता की तरह. लेकिन भारतीय राजनीति में, चाहे जितने भी व्यावहारिक या नैतिकताविहीन क्यों न हों, नेताओं को किसी 'भावनात्मक ईंधन' की ज़रूरत होती है — चाहे वह विचारधारा हो, राष्ट्रवाद, जाति, धर्म, या भाषा का अस्मिता-वाद. केजरीवाल के पास यह कुछ भी नहीं था. उनकी राजनीति एकपक्षीय थी: "हम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, बाकी सब चोर हैं. हम सिस्टम बदलने आए हैं."
“उन्होंने विचारधारा के सवाल को हमेशा टाला. वे भाजपा और कांग्रेस दोनों के विरोध में खड़े होकर 'राष्ट्रीय आशा' बनना चाहते थे, लेकिन 'सिस्टम बदलने' की उनकी परिभाषा भी धुंधली रही. हाल के लोकतंत्रों में ऐसे उदाहरण मिलते हैं — जैसे अर्जेंटीना के हावियर माइलेई ने चेनसॉ लेकर चुनाव लड़ा, सरकार को आधा करने का वादा किया. या ट्रंप जो एलन मस्क को 'डीप स्टेट' के खिलाफ बुलडोजर चलाते दिखाते हैं. केजरीवाल के पास ऐसा कोई मौलिक विचार नहीं था. जन लोकपाल बिल, जो हर नेता को जेल भेजने का वादा करता था, भी कोई समाधान नहीं था.”
वे भाजपा के हिंदुत्व से अधिक 'हिंदू' नहीं बन सकते थे. और वामपंथी-केंद्र की जगह कांग्रेस के साथ होती. तो फिर, उनकी पहचान क्या थी? इस सवाल से वे चालाकी से बचते रहे, अपने दफ्तरों में अंबेडकर और भगत सिंह के चित्र लगाकर. यह चालाकी आधी अधूरी साबित हुई. यही उनकी पराजय का बड़ा कारण है. इन वर्षों में, उन्होंने विचारधारा के दोनों छोरों के साथ खेला. वामपंथी विरोधी विशेषाधिकारवाद से जुड़े, लेकिन बाद में अपने ही साथियों को निकाल बाहर किया, शायद इसलिए कि वे उनके इशारों पर नाचने को तैयार नहीं थे, या खुद मुखर हो रहे थे.
“फिर, टीवी इंटरव्यू में हनुमान चालिसा पढ़ना, दिल्ली में अस्थायी राम मंदिर बनवाना, आतिशी का केजरीवाल की जेलयात्रा को 'राम के वनवास' से जोड़ना और खुद को 'भरत' बताना... यह सब किया जा सकता है. लेकिन, जैसे राहुल गांधी को मंदिरों के दर्शन, जनेऊ और शिवभक्ति के बावजूद एहसास हुआ — भाजपा और मोदी के मुकाबले आप 'हिंदुत्व' की होड़ में नहीं जीत सकते.”
योगेन्द्र यादव : वैकल्पिक राजनीति का सपना टूटा
आम आदमी पार्टी की दिल्ली हार को स्वराज इंडिया पार्टी के सह-संस्थापक और चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव और सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता प्रशांत भूषण आप के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिन्हें 2015 में पार्टी की दिशा और नेतृत्व शैली को लेकर आंतरिक संघर्ष और मतभेदों के कारण पार्टी से निकाल दिया गया था. योगेंद्र यादव ने कहा, “आप की हार न केवल पार्टी के लिए, बल्कि उन सभी के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने 10-12 साल पहले इस देश में वैकल्पिक राजनीति का सपना देखा था. यादव ने कहा, “यह आप का समर्थन करने वाली सभी पार्टियों और पूरे विपक्ष के लिए झटका है.” उन्होंने दावा किया, “पार्टी ने सत्ता में आने के तुरंत बाद वैकल्पिक राजनीति को ‘छोड़ दिया’ और कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित हो गई, जो संतृप्ति बिंदु पर पहुंच गई.
प्रशांत भूषण : आप के अंत की शुरुआत
वहीं प्रशांत भूषण ने कहा, “दिल्ली में आप की हार के लिए काफी हद तक केजरीवाल जिम्मेदार हैं. वैकल्पिक राजनीति के लिए बनाई गई पार्टी जिसे पारदर्शी, जवाबदेह और लोकतांत्रिक माना जाता था, उसे अरविंद ने जल्दी ही एक सुप्रीमो के वर्चस्व वाली, गैर-पारदर्शी और भ्रष्ट पार्टी में बदल दिया. इसने लोकपाल की मांग नहीं की और अपने खुद के लोकपाल को हटा दिया.” प्रशांत भूषण ने कहा, ‘उन्होंने अपने लिए 45 करोड़ रुपये का 'शीश महल' बनवाया और लग्जरी कारों में घूमना शुरू कर दिया. केजरीवाल ने आप की ओर से गठित विशेषज्ञ समितियों की 33 विस्तृत नीति रिपोर्टों को यह कहते हुए रद्दी में डाल दिया कि पार्टी समय आने पर उचित नीतियां अपनाएगी.” प्रशांत भूषण ने कहा, “केजरीवाल को लगता था कि राजनीति केवल ढिंढ़ोरा पीटकर और दुष्प्रचार करके की जा सकती है. यह आप के अंत की शुरुआत है.
आशुतोष ने गिनाए हार के 5 बड़े कारण
आम आदमी पार्टी में पहले रह चुके पत्रकार और संपादक आशुतोष का कहना है कि आम आदमी पार्टी पर स्मृतिलेख रचना अभी जल्दबाजी होगी. जो लोग देश की राजनीति बदलने निकले थे, उसी राजनीति ने केजरीवाल को बदल दिया. सत्ता के बारह सालों ने उन्हें एक और ऐसे नेता में बदल दिया, जिसके पास कोई नैतिक ओज और करिश्मा नहीं बचा.
1. 'नैतिकता' का तमगा छिना : आप की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही कि अब उसे 'अलग' पार्टी नहीं माना जाता. पहले इसकी नैतिक छवि इसकी ताकत थी, लेकिन समय के साथ यह मूल्यों से समझौता करने लगी. भाजपा ने भी 1984 में अपने मूल विचारधारा (हिंदुत्व) को छोड़कर 'धर्मनिरपेक्ष' बनने की कोशिश की थी, जिसके चलते उसे सिर्फ 2 सीटें मिली थीं. आप भी नैतिक विश्वास खोकर अपने वफादार वोटर्स से दूर हो गई.
2. भ्रष्टाचार के आरोपों का बोझ : केजरीवाल पर शराब घोटाले और 'शीश महल' विवाद ने उनकी छवि को गंभीर नुकसान पहुंचाया. जेल जाना और करोड़ों के घर का खुलासा उनके 'आम आदमी' इमेज के खिलाफ गया. मध्यम वर्ग, जो आप का मुख्य आधार था, नाराज़ होकर पार्टी छोड़ गया.
3. सरकारी कामकाज में ठहराव : 2020-25 के कार्यकाल में आप सरकार ने कोई नई योजनाएं नहीं चलाईं. पहले मुफ्त बिजली-पानी, स्कूलों का सुधार और मोहल्ला क्लिनिक जैसे कदमों की वजह से दिल्ली को वैश्विक प्रशंसा मिली थी. लेकिन तीसरे कार्यकाल में एलजी और केंद्र सरकार से लड़ाई में शासन ठप्प रहा. सड़कें टूटी रहीं, नालों का पानी उफनता रहा.
4. 10 साल की 'एंटी-इनकंबेंसी' : किसी भी सरकार के खिलाफ 10 साल बाद जनता में असंतोष पनपना स्वाभाविक है. 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार भी इससे बच नहीं पाई. आप ने भी वोटर्स की नाराजगी को दूर करने की बजाय 'नाटकबाजी' (जैसे इस्तीफे का ड्रामा) पर फोकस किया, जो विफल रहा.
5. वॉलंटियरों का मोहभंग : आप की सबसे बड़ी ताकत—स्वयंसेवक—उपेक्षित होकर दूर हो गए. पार्टी ने दिल्ली में संगठन मजबूत नहीं किया. भाजपा के पास मजबूत संगठन है, लेकिन केजरीवाल को संगठनात्मक काम में यकीन नहीं. नतीजा : कई स्वयंसेवकों ने पार्टी छोड़ दी या भुगतान किए कार्यकर्ताओं पर निर्भर होना पड़ा.
'निजी स्वार्थ के लिए लोकतंत्र की बलि'
रोहित कुमार ने ‘द वायर’ में अरविंद केजरीवाल को खुली चिट्ठी लिखकर कई बातें याद दिलाई है और तीन सवाल पूछे हैं. उन्होंने कहा कि जिस नैतिक आधार पर केजरीवाल सत्ता में आये थे, वह कहीं खो गया. उन्होंने कहा कि जब केजरीवाल को जेल हुई तो सारा विपक्ष उनके साथ खड़ा था. कांग्रेस भी. जहां उनके और हेमंत सोरेन के लिए खाली कुर्सियां रखी गईं थी. फिर वह कहते हैं कि “क्या आपने अपने निजी स्वार्थ को सार्वजनिक हित के लिए त्याग दिया, केजरीवाल? मैंने तीन सवाल पूछने की हिम्मत की है, जो भारतीय लोकतंत्र को लेकर चिंतित हर व्यक्ति के मन में घूम रहे होंगे, चाहे उन्होंने इन चुनावों में आपको वोट दिया हो या नहीं :”
1. आप और कांग्रेस ने ये चुनाव साथ क्यों नहीं लड़ा? अगर आप गठबंधन करते, तो शायद भाजपा को हरा सकते थे. कम से कम यह सवाल नहीं उठता कि आपने "साझा विरोधी" से लड़ने की पूरी कोशिश नहीं की. "कांग्रेस का अहंकार" कहकर दोष देना आसान है, पर आपकी मंशा और भूमिका पर सवाल क्यों नहीं?
2. आपने अपने घर के नवीनीकरण से भाजपा को हथियार क्यों दिए? आपके घर का अंदरूनी हाल तो पता नहीं, पर आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री होने के नाते, करोड़ों रुपये अपने घर पर खर्च करना क्या आत्मघाती गोल नहीं था? जबकि आपके वोटर गरीबी में जी रहे हैं. (आपकी पुरानी नीली वैगन-आर याद आ ही जाती है...)
3.आपने पार्टी के लिए स्पष्ट, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा क्यों नहीं बनाई? सुंदरकांड पाठ और हनुमान मंदिर के दौरों से साफ था कि आप *नरम हिंदुत्व* का खेल खेल रहे थे. जैसा कि रवीश कुमार ने 8 फरवरी के अपने शो में कहा : क्या आप दिल्ली के मतदाताओं को सिर्फ हिंदू समझने लगे? उन हिंदू और गैर-हिंदू मतदाताओं को भूल गए, जो मानते हैं कि धर्म और राजनीति मिलनी नहीं चाहिए? एक सबक तो अब साफ हो गया : भाजपा को उसके ही खेल में हराना असंभव है.
रोहित ने इस ख़त के साथ अपने दो यूट्यूब वीडियो भी साझा किये हैं. जिसमें वह उन मसलों को रेखांकित करते हैं, जो लोकतंत्र, सेक्यूलरिज्म के लिए ख़तरे बन रहे हैं.
दिल्ली : चार साल में 4.16 लाख वोटर जुड़े, लेकिन अकेले आखिरी 7 महीनों में जुड़ गए 3.99 मतदाता
इस वक्त जब आम आदमी पार्टी के दिल्ली की सत्ता से बाहर जाने को लेकर कई किस्म का आंकलन जारी है, 'द क्विंट' के लिए हिमानी दहिया ने वोटर लिस्ट की गडबड़ी की ओर इशारा किया है. ECI के डेटा के अनुसार, 2020 से 2024 के बीच दिल्ली में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में 4.16 लाख का इजाफा हुआ, जबकि जुलाई 2024 से फरवरी 2025 के बीच केवल 7 महीनों में अनुमानित 3.99 लाख मतदाता बढ़े. अरविंद केजरीवाल के निर्वाचन क्षेत्र, नई दिल्ली में 2020 में योग्य मतदाता होने वाले हर 4 में से 1 व्यक्ति को 2024 तक मतदाता सूची से हटा दिया गया था. 2020 से 2025 के बीच, कुल 37,548 मतदाताओं की कमी आई, जबकि 2020 में जीत का मार्जिन 21,517 वोट था. देखिए द क्विंट की ये रिपेार्ट...
विश्लेषण
क्या भ्रष्टाचार मुकम्मल चुनावी मुद्दा है?
'स्क्रॉल' के लिए शोएब दानियाल ने 'आम आदमी पार्टी' की हार के बहाने इस बात की तह तक जाने की कोशिश की है कि चुनाव में वोट पाने के लिए क्या भ्रष्टाचार एक प्रभावी मुद्दा है.
2015 और 2020 के दिल्ली चुनावों में आप ने जबरदस्त जनादेश हासिल किया. इस बार उसने भ्रष्टाचार विरोधी छवि के बजाय आर्थिक जनवादी ताकत के रूप में खुद को पेश किया, जिसमें दिल्ली के मजदूर वर्ग के लिए विकास कार्य और कल्याणकारी योजनाएँ प्रमुख थीं.
यही रणनीति 2025 के विधानसभा चुनाव में भी अपनाई गई, जिसके नतीजे शनिवार को घोषित हुए. आप ने भ्रष्टाचार विरोध के बजाय अपने कल्याणकारी रिकॉर्ड पर चुनाव लड़ा. असल में, यह चुनाव आप पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की पृष्ठभूमि में हुए, जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कई वरिष्ठ नेता जेल भी गए.
लेकिन, आप की हार में इन आरोपों की बड़ी भूमिका नहीं दिखी. अंततः, कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में असंतोष ने मजदूर वर्ग के एक हिस्से को भाजपा की ओर मोड़ दिया. हालाँकि, यह संख्या बहुत बड़ी नहीं थी: आप को 44% वोट मिले, जो BJP से महज 2% कम था. आप का दिल्ली सफर भारतीय राजनीति के लिए एक दिलचस्प सबक देता है: बड़े भ्रष्टाचार के मामले भारत के मध्यम वर्ग और मीडिया के लिए गर्म मुद्दे हैं, लेकिन चुनावों में अधिकांश मतदाता सीधे भ्रष्टाचार के आधार पर वोट नहीं करते. यही वजह है कि आप को दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोध के बजाय कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा.
यह कोई नई बात नहीं है. 2013 के शोध से पता चलता है कि जब मीडिया कांग्रेस पर बड़े घोटालों की खिलाफत कर रहा था, तब भी अधिकांश मतदाताओं ने इन घोटालों के नाम तक नहीं सुने थे. और हैरानी की बात यह कि घोटालों की जानकारी होने के बावजूद यह मतदान को प्रभावित नहीं कर पाई. कांग्रेस की 2014 की हार को भ्रष्टाचार से जोड़ना, शायद सहसंबंध और कारण में भ्रम पैदा करता है.
इसी सिद्धांत को समझने का एक और तरीका है. मोदी सरकार पर राफेल विमान खरीद या अडानी समूह के पक्ष में होने के आरोपों के बावजूद, भारत का मध्यम वर्ग—जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है—मोदी और भाजपा का मजबूत समर्थक बना हुआ है. इसीलिए, 2014 के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार का मुद्दा गौण हो गया है, क्योंकि मध्यम वर्ग अपने राजनीतिक चुनाव पर उंगली उठाने से हिचकिचाता है. हाल के कर छूट निर्णयों से पता चलता है कि मोदी सरकार पर मध्यम वर्ग का असली दबाव केवल आर्थिक मुद्दों (जैसे मज़दूरी, महंगाई) पर रहा है. ये समस्याएँ मध्यम वर्ग का गुस्सा मोदी के खिलाफ लगातार बढ़ाती रही हैं, जबकि अडानी के साथ निकटता जैसे आरोपों ने कभी ऐसा प्रभाव नहीं डाला.
भारतीय मतदाता चुनावों में भ्रष्टाचार को क्यों नज़रअंदाज़ कर देता है? इसकी वजह है तात्कालिक प्रभाव की कमी: बड़े भ्रष्टाचार और जीवन स्तर के बीच सीधा संबंध समझना मुश्किल है. जो मतदाता नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं से खुश है, वह अडानी से जुड़े आरोपों पर मोदी को नहीं छेड़ेगा. और दूसरी है व्यवस्थागत समस्या. छोटे-बड़े भ्रष्टाचार इतने गहरे हैं कि किसी भी पार्टी के लिए इन्हें जड़ से खत्म करना असंभव लगता है.
आप, जिसका जन्म ही भ्रष्टाचार विरोधी मंच से हुआ, अब खुद पर दिल्ली के शराब घोटाले से गोवा चुनाव में फंडिंग का आरोप झेल रही है. हालाँकि ये आरोप अभी साबित नहीं हुए हैं, पर चुनाव लड़ने के लिए ज़रूरी भारी फंडिंग भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है. इसके अलावा, छोटे स्तर का भ्रष्टाचार (जैसे निचले अधिकारियों को रिश्वत) इतना आम है कि मतदाता का इस आधार पर वोट बदलना बेमानी लगता है. इसीलिए, भारतीय चुनावों में भ्रष्टाचार अन्य मुद्दों के आगे फीका पड़ जाता है.
श्रीलंका ने 14 भारतीय मछुआरे पकड़े : श्रीलंकाई नौसेना ने रविवार को जानकारी दी कि उसने मन्नार के उत्तर में समुद्र में चलाए गए विशेष अभियान में कथित रूप से अपने जलक्षेत्र में शिकार करने आए 14 भारतीय मछुआरों को गिरफ़्तार कर लिया है. मछुआरों का मुद्दा भारत और श्रीलंका के संबंधों में लंबे समय से विवादास्पद बना हुआ है. 2024 में भी श्रीलंका की नौसेना ने 529 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया था.
आयकर कटौतियों पर सवाल
‘अगर करदाता मध्य वर्ग है तो 90% भारत गरीब है’
हाल ही में वित्त मंत्री द्वारा घोषित आयकर राहत पर 'द वायर' के लिए करण थापर के साथ साक्षात्कार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य डॉ. रतिन रॉय ने कहा कि 3.1 करोड़ (31 मिलियन) लाभार्थियों को "मध्यम वर्ग" कहना किसी भी अर्थशास्त्री के लिए उचित नहीं होगा. डॉ. रॉय ने कहा कि ये लोग देश के टॉप 10% में आते हैं, और यदि इन्हें मध्यम वर्ग माना जाए तो इसका मतलब होगा कि बाकी 90% लोग गरीब हैं, जो भारत के लिए एक बेहद दुखद और निराशाजनक स्थिति होगी. डॉ. रॉय ने आयकर कटौतियों के जीडीपी वृद्धि पर प्रभाव के बारे में भी बात की और कहा कि इसका प्रभाव “कोई खास नाटकीय नहीं होगा.” दरअसल, डॉ. रॉय ने यह बताया कि बजट में 10.1% की नाममात्र वृद्धि का अनुमान है, लेकिन यदि महंगाई 4.5% के आसपास रहती है, तो अगले साल की वृद्धि दर 5.5% के आसपास हो सकती है, जो इस साल के अनुमान से एक प्रतिशत कम है. उन्होंने कहा कि यह संभावना है कि आयकर कटौतियां अगले वर्ष (2025-26) में वृद्धि की दर को इस साल के स्तर पर बनाए रखने में मदद करेंगी, और इससे वृद्धि में कोई नाटकीय सुधार नहीं होगा. साक्षात्कार में डॉ. रॉय ने आयकर कटौतियों के बारे में अन्य महत्वपूर्ण सवाल भी उठाए. न केवल उन्होंने लाभार्थियों की वर्गीकरण और जीडीपी वृद्धि पर प्रभाव के बारे में सवाल उठाए, बल्कि उन्होंने इन आयकर कटौतियों की लागत और उनके न्यायसंगतता पर भी प्रश्न उठाए.
गोरों के खिलाफ भेदभाव के आरोप लगा ट्रम्प ने रोकी मस्क के मुल्क को अमेरिकी मदद
‘द गार्डियन’ की खबर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दक्षिण अफ्रीका को मिलने वाली वित्तीय सहायता में कटौती करने का आदेश दिया है. एक आदेश में कहा गया है कि देश की सरकार ने श्वेत अफ्रीकी के खिलाफ "अन्यायपूर्ण जातीय भेदभाव" किया है और उन्हें अमेरिका में शरण देने की पेशकश की है. इस आदेश में उस कानून की आलोचना की गई है, जिसे पिछले महीने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने साइन किया था, जो सीमित परिस्थितियों में "शून्य मुआवजा" के साथ भूमि का अधिग्रहण करने की अनुमति देता है. इलोन मस्क मूल रूप से दक्षिण अफ्रीकी है.
पूर्व में दक्षिण अफ्रीका पर श्वेत अफ्रीकियों का शासन था और उस दौरान अश्वेत अफ्रीकियों को क्रूरता का सामना करना पड़ा था. वाइट माइनॉरिटी शासन खत्म होने के तीन दशक बाद भी, दक्षिण अफ्रीका अभी भी भारी असमानताओं से जूझ रहा है, जहां भूमि और संपत्ति अब भी मुख्य रूप से श्वेत लोगों के पास केंद्रित है. ये जनसंख्या का 7% हिस्सा है, जिनमें से आधे से अधिक मूल अफ्रीकी बोलने वाले हैं, जबकि अश्वेत 81% हैं. हालांकि, कुछ श्वेत दक्षिण अफ्रीकी दावा करते हैं कि उनके साथ भेदभाव हो रहा है, अक्सर देश के सकारात्मक कार्रवाई कानूनों का हवाला देते हुए.
ट्रम्प ने जो आदेश जारी किया है, उसमें लिखा गया है- "इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है, जिसमें इजराइल को नहीं, हमास को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में नरसंहार का आरोपित करना, और ईरान के साथ अपने संबंधों को फिर से जीवित करना शामिल है ताकि वाणिज्यिक, सैन्य, और परमाणु समझौतों को विकसित किया जा सके." दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ऐसा लगता है कि "गलत जानकारी और प्रचार का एक अभियान चलाया जा रहा है."
बजट तो बढ़ाया, पर हुनर क्यों नहीं चमकता
'द वायर' की एक रिपोर्ट कहती है कि हाल के कुछ वर्षों में भारत में कौशल और अप्रेंटिसशिप के लिए बजट में वृद्धि हुई है, लेकिन 'क्वालिटी' के बजाय खानापूर्ति ही यहां ज्यादा नजर आ रही है. श्रम और कौशल विकास मंत्रालय को इस साल बढ़ा हुआ बजट मिला है, जिसमें ₹38,746.3 करोड़ का आवंटन किया गया. यह पिछले साल के ₹21,608 करोड़ से तकरीबन 80% की वृद्धि है.
विभिन्न योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (2015 से वर्तमान), दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (2014 से वर्तमान) और राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप प्रचार योजना (2016 से वर्तमान) के बावजूद, इन योजनाओं की कार्यान्वयन और दक्षता पर निगरानी और मूल्यांकन के लिए प्लेसमेंट डेटा उपलब्ध नहीं है. सरकार का ध्यान प्रशिक्षण की गुणवत्ता को सुधारने की बजाय प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ाने पर ज्यादा है.
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0, जो 2024 में ₹12,000 करोड़ के साथ लॉन्च की गई थी, कई चुनौतियों का सामना कर रही है. योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन अभी भी कम गुणवत्ता वाले और शॉर्ट-टर्म कोर्स पर आधारित है, जिनका उद्योग की वास्तविक आवश्यकताओं से कोई मेल नहीं है. पीएमकेवीवाई के तहत प्लेसमेंट दर में गिरावट आई है, जो योजना की प्रभावशीलता पर सवाल उठाता है. ऐसे ही सरकार ने 1961 के अप्रेंटिसशिप एक्ट में बदलाव करके अप्रेंटिसशिप की संख्या बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन प्रभाव बहुत सीमित रहा है. केवल 780,000 अप्रेंटिस ही 570 मिलियन की कार्यबल में हैं, जो भारत की पूरी श्रमिक शक्ति का एक छोटा सा हिस्सा है. इसके बावजूद, सरकार ने अगले पांच वर्षों में 1 करोड़ इंटर्न्स को प्रशिक्षित करने के लिए 500 कंपनियों को वित्तीय सहायता देने का वादा किया है. हालांकि, इस परियोजना की वास्तविक प्रगति में बहुत देरी हो रही है.
सऊदी ने की नेतन्याहू के प्रस्ताव की निंदा : ‘द टेलीग्राफ’ की खबर है कि सऊदी अरब ने इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के उस बयान की कड़ी निंदा की है, जिसमें उन्होंने फिलीस्तीनियों को उनकी भूमि से विस्थापित करने की बात की थी. इजराइली अधिकारियों ने सऊदी सीमा पर एक फिलीस्तीनी राज्य स्थापित करने का सुझाव दिया है. नेतन्याहू ने गुरुवार को चैनल 14 पर एक साक्षात्कारकर्ता की गलती से "सऊदी राज्य" की बजाय "फिलीस्तीनी राज्य" कहने पर मजाक किया, और बाद में अपनी गलती सुधारी. इसके अलावा, मिस्र और जोर्डन ने भी इजरायली सुझावों की निंदा की है, जबकि काहिरा ने इस विचार को सऊदी संप्रभुता का "सीधा उल्लंघन" बताया है. सऊदी अरब ने कहा कि वह "भाईचारे" वाले देशों द्वारा नेतन्याहू के बयान की निंदा की सराहना करता है. सऊदी मंत्रालय ने अपने बयान में कहा- "यह कब्जे वाली चरमपंथी मानसिकता यह नहीं समझती कि फिलीस्तीनी लोगों के लिए फिलीस्तीनी क्षेत्र का क्या अर्थ है, और इस भूमि से उनका ऐतिहासिक और कानूनी जुड़ाव क्या है". गाजा में फिलीस्तीनियों के भविष्य को लेकर बहस मंगलवार को उस चौंकाने वाले प्रस्ताव से पलट गई, जिसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका "गाजा पट्टी" को इजराइल से ले लेगा और वहां से फिलीस्तीनियों को कहीं और पुनः बसाकर "मिडल ईस्ट का रिवियेरा" बनाएगा.
जंग रोकने पर पुतिन से बात हुई : ट्रम्प | ‘द गार्डियन’ की खबर है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत की है. हालांकि, क्रेमलिन ने इसकी पुष्टि नहीं की है. ट्रम्प ने इशारा किया है कि कि रूसी वार्ताकारों ने अमेरिकी समकक्षों से मिलने की इच्छा जताई है. ट्रम्प ने न्यूयॉर्क पोस्ट को बताया कि उन्होंने पुतिन से बात की है, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया- "मैं यह नहीं कह सकता कि कितनी बार!".
राष्ट्रपति की कुर्सी पर मस्क, भड़के ट्रम्प : अमेरिका की “टाइम” मैगजीन के कवर पेज से जुड़े एक प्रश्न पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इतना ज्यादा भड़क उठे कि उन्होंने प्रश्नकर्ता पत्रकार से ही तंज़ के लहजे में पूछ लिया, “क्या यह मैगजीन अभी भी निकल रही है? मैंने अभी ताज़ा अंक देखा नहीं है.” दरअसल टाइम मैगजीन के ताज़ा अंक के कवर पेज पर जो फोटो छपी है, उसमें दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क को अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में रेसोल्यूट डेस्क के पीछे बैठे हुए दिखाया गया है.
लीबिया : क्या है सामूहिक कब्रों का रहस्य, फिर मिली 50 लाशें : ‘मार्निंग स्टार’ की खबर है कि लीबिया के दक्षिण-पूर्वी रेगिस्तान में दो सामूहिक कब्रों से लगभग 50 शवों बरामद किए गए हैं. यह एक और त्रासदी की कहानी बयां करती है, जिसमें यूरोप पहुंचने के लिए उत्तर अफ्रीकी देश से गुजरने वाले लोग शामिल हैं. लीबिया के सुरक्षा निदेशालय ने रविवार को एक बयान में कहा कि शुक्रवार को कूफरा शहर में एक खेत में पाए गए एक सामूहिक कब्र में 19 शव मिले. शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है. कुफरा में सुरक्षा कक्ष के प्रमुख मोहम्मद अल-फदील ने कहा कि अधिकारियों द्वारा एक प्रवासी निरोध केंद्र पर छापेमारी के बाद शहर में कम से कम 30 शवों से भरी दूसरी सामूहिक कब्र भी पाई गई. उन्होंने यह भी बताया कि जीवित बचे लोगों के अनुसार, उस स्थल पर लगभग 70 लोगों को दफनाया गया था और अधिकारी अभी भी क्षेत्र में तलाश कर रहे हैं.
पूर्वी और दक्षिणी लीबिया में शरणार्थियों और प्रवासियों की मदद करने वाली एक संस्था अल-अब्रिन ने कहा कि सामूहिक कब्रों में पाए गए कुछ लोगों को गोली मारकर मारा गया था, और फिर उन्हें दफनाया गया. लीबिया में पहले भी सामूहिक कब्रें मिली हैं, जिनमें अफ्रीका और मध्य पूर्व से यूरोप पहुंचने के लिए यात्रा करने वाले शरणार्थियों के शव पाए गए हैं. पिछले साल, अधिकारियों ने राजधानी त्रिपोली के दक्षिण में शुआयरीफ क्षेत्र में कम से कम 65 प्रवासियों के शवों को बाहर निकाला था.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.