10/04/2025: ट्रम्प ने चाल बदली, 90 दिन की राहत | संघ को इस बार रबर स्टैम्प मंजूर नहीं | वक़्फ़ कानून का एनडीए के भीतर बढ़ता विरोध | कैसे देश को बर्बाद करें | निजी यूनिवर्सिटी में आरक्षण की बात |
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
भारत ने बांग्लादेश से ट्रांस-शिपमेंट सुविधा वापस ली
संघ इस बार “रबर स्टाम्प” नहीं चाहता, मोदी की नागपुर यात्रा भी बर्फ नहीं पिघला सकी
कांग्रेस का अहमदाबाद अधिवेशन : वही संकल्प, इरादे ; ठोस, नया कुछ नहीं
वक्फ : विरोध बढ़ा, ममता बोलीं- बंगाल में लागू नहीं होगा, एनडीए के भीतर भी आवाज़
‘क्या हमें दिन में तीन बार ढोकला खाना और जय श्री राम बोलना है?’
राम रहीम 13 वीं बार जेल से बाहर आया
सम्भल की शाही जामा मस्जिद का नाम अब “जुमा मस्जिद”
कुणाल कामरा विवाद, हैबिटैट क्लब पर हमला होते चुपचाप देखते रहे पुलिस अधिकारी
चीन ने जवाबी कार्रवाई में अमेरिका पर 84% शुल्क लगाने की घोषणा की, अमेरिका ने चीन के लिए टैरिफ़्स बढ़ाकर 125% किए
नेटवर्क बना रहे हैं दुनिया के सत्तावादी नेता
धर्म या जाति के आधार पर मकान न देने की बात ‘दुखद’: महाराष्ट्र के राज्यपाल
ग़ुलफ़िशा फातिमा: 5 साल जेल में, 3 साल से लंबित जमानत
2.16 लाख पंचायतों में से एक भी पंचायत 'उत्कृष्ट' श्रेणी में नहीं
FY26 के लिए जीडीपी वृद्धि 6.5% और महंगाई 4% रहने का अनुमान
'फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट' गिरफ्तार, 7 मौतों के दावों के बीच असली डॉ. कैम ने कहा - ‘यह धोखाधड़ी 5 साल पुरानी है’
इजरायली हवाई हमलों में 35 फिलिस्तीनियों की मौत, 80 लापता
सिवा चीन को छोड़कर अमेरिका ने बाकी दुनिया पर 90 दिन के लिए बढ़े टैरिफ लगाने पर रोक लगाई
चीन ने जवाबी कार्रवाई में अमेरिका पर 84% शुल्क लगाने की घोषणा की, अमेरिका ने चीन के लिए टैरिफ़ बढ़ाकर 125% किए
अमेरिका को टैरिफ के दम पर दोबारा 'ग्रेट' बनाने के ट्रम्प के सपने को जल्दी ही डेंट लग गया है. शेयर बाजार में गिरावट से, जिसमें ट्रम्प के स्वयं के समर्थकों ने करोड़ों डॉलर गंवाए हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति को आखिरकार मजबूर होकर वैश्विक व्यापार युद्ध में 90 दिनों के लिए एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा करनी पड़ी, जिसे उन्होंने 2 अप्रैल को बड़े शोरगुल और गाजे-बाजे के साथ शुरू किया था.
'रायटर्स' की खबर है कि चीन गुरुवार से अमेरिकी वस्तुओं पर 84% शुल्क लगाएगा, जो पहले घोषित 34% शुल्क से कहीं अधिक है. यह जानकारी चीन के वित्त मंत्रालय ने बुधवार को दी. यह कदम वैश्विक व्यापार युद्ध की ताज़ा कड़ी है, जिसकी शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने की थी. ट्रम्प के टैरिफ़ ने दशकों से चले आ रहे वैश्विक व्यापार व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. इससे मंदी की आशंका गहरा गई है और बड़ी कंपनियों के बाजार मूल्य से ट्रिलियनों डॉलर की पूंजी मिट गई है.
ट्रम्प के नए टैरिफ़ लगभग सभी अमेरिकी व्यापारिक भागीदारों पर असर डालते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 9 अप्रैल को घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका अधिकांश देशों के लिए नई 'रिसिप्रोकल' और 10% टैरिफ़्स को 90 दिनों के लिए स्थगित कर रहा है. हालांकि, चीन के लिए टैरिफ़्स बढ़ाकर 125% कर दिए गए हैं, जो तत्काल प्रभाव से लागू होंगे. ट्रम्प ने कहा कि 75 से अधिक देशों ने अमेरिका से संपर्क किया है और प्रतिशोधी उपायों से बचते हुए बातचीत की इच्छा व्यक्त की है, जिससे यह अस्थायी स्थगन संभव हुआ है. हालांकि, एक पहलू यह भी है कि ट्रम्प के समर्थक भी उनकी नीतियों से खफा होकर विरोध दर्ज करने लगे थे और हाल ही में अमेरिका ने एक बड़ा प्रदर्शन भी ट्रम्प के खिलाफ देखा. चीन के लिए टैरिफ़्स में वृद्धि का कारण बताते हुए ट्रम्प ने कहा कि चीन ने वैश्विक बाजारों के प्रति 'सम्मान की कमी' दिखाई है और अनुचित व्यापार प्रथाओं में लिप्त है. इस घोषणा के बाद, अमेरिकी शेयर बाजारों में तेजी देखी गई, हालांकि विश्लेषकों ने दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंता व्यक्त की है. अमेरिका और चीन के बीच सालाना व्यापार $585 अरब डॉलर का है, लेकिन अमेरिका को घाटा है. बहरहाल, यह सिर्फ दो महाशक्तियों का झगड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया की जेब और रोज़गार पर असर डाल सकता है.
ट्रम्प ने कल यह चेतावनी भी दी कि फार्मा आयातों पर भारी-भरकम टैरिफ लगाए जाएंगे. अगर उन्होंने 90 दिनों के विराम के बाद ऐसा किया, तो यह भारतीय बल्क ड्रग निर्यातकों के लिए बुरी खबर होगी. अमेरिकी टैरिफ के बाद भारतीय रुपया 0.4% गिरकर 86.65 पर पहुंच गया, जिससे चीनी युआन और कई एशियाई मुद्राएं भी प्रभावित हुईं.
इसी बीच, चीन ने अमेरिका द्वारा टैरिफ के "दुरुपयोग" के खिलाफ खड़ा होने के लिए भारत से समर्थन मांगा है. नई दिल्ली में चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा - “चीन-भारत आर्थिक और व्यापारिक संबंध पूरकता और पारस्परिक लाभ पर आधारित हैं. अमेरिका के टैरिफ दुरुपयोग का सामना करते हुए, जो विशेष रूप से ग्लोबल साउथ के देशों के विकास के अधिकार को छीनता है, दोनों सबसे बड़े विकासशील देशों को साथ आकर इन कठिनाइयों से लड़ना चाहिए.”
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने फॉक्स बिज़नेस नेटवर्क को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि चीन द्वारा लगाए गए नए टैरिफ दुर्भाग्यपूर्ण हैं. "उनकी अर्थव्यवस्था आधुनिक इतिहास की सबसे असंतुलित अर्थव्यवस्था है और मैं आपको बता सकता हूं कि यह टकराव उनके लिए नुकसानदेह साबित होगा," उन्होंने कहा.
इस सप्ताह पहले ही बाज़ारों में संकट जैसी अस्थिरता देखने को मिली है, जिससे स्टॉक्स के मूल्य में ट्रिलियन डॉलर की गिरावट आई है और कमोडिटी व उभरते बाज़ारों को गहरी चोट लगी है. बड़े अमेरिकी बैंकों के शेयरों में प्री-मार्केट गिरावट देखने को मिली, जो चीन द्वारा 84% टैरिफ की घोषणा के बाद और गहरा गई. तेल की कीमतें चार साल के निचले स्तर तक गिर गईं. नोमुरा बैंक के मुख्य चीन अर्थशास्त्री टिंग लू ने कहा, "अमेरिका और चीन एक अभूतपूर्व और महंगे टकराव के खेल में फंसे हुए हैं, और ऐसा लगता है कि दोनों ही पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं हैं." बीते सप्ताह बीजिंग द्वारा लगाए गए जवाबी टैरिफ के बाद, ट्रम्प ने चीनी आयात पर शुल्क को 104% से बढ़ाकर 125% कर दिया.
असर क्या होगा?
अमेरिका में चीन से आने वाला सामान (जैसे मोबाइल, बैटरी, खिलौने) अब बहुत महंगा हो जाएगा.
चीन में अमेरिकी उत्पाद (सोयाबीन, दवाइयां, पेट्रोलियम) की कीमतें बढ़ेंगी.
एप्पल जैसी कंपनियां पहले से नुकसान में हैं, उनके शेयर गिर रहे हैं.
चीन के कुछ प्रोडक्ट अब दूसरे देशों से घुमा कर अमेरिका भेजे जा रहे थे (जैसे मलेशिया, वियतनाम से), अब उन पर भी टैक्स लगेगा.
चीन महत्वपूर्ण धातुएं (जैसे जर्मेनियम, गैलियम) अमेरिका को देना बंद कर सकता है.
अमेरिका एआई और चिप तकनीक पर चीन की पकड़ रोकने की कोशिश करेगा.
अमेरिका और चीन मिलकर दुनिया की 43% अर्थव्यवस्था हैं. अगर दोनों मंदी में गए, तो पूरी दुनिया को झटका लगेगा.
चीन अगर अपना सस्ता सामान (जैसे स्टील) बाकी देशों में डंप करेगा, तो वहां के स्थानीय उद्योग बर्बाद हो सकते हैं.
मोदी की नागपुर यात्रा के बावज़ूद संघ इस बार “रबर स्टाम्प” नहीं चाहता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले माह आरएसएस मुख्यालय की यात्रा भी संघ और भाजपा के बीच नए पार्टी अध्यक्ष को लेकर जमी बर्फ अब तक पिघला नहीं सकी है. मोदी ने 30 मार्च को नागपुर में संघ मुख्यालय का दौरा किया था, जो बतौर प्रधानमंत्री 11 वर्षों में पहली बार हुआ था. इस पहल का उद्देश्य संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ संबंध सुधारना और मोदी द्वारा चुने गए नए भाजपा अध्यक्ष के लिए उनकी स्वीकृति प्राप्त करना था.
“द टेलीग्राफ” में जेपी यादव ने लिखा है कि आरएसएस नेतृत्व ने बीजेपी द्वारा प्रस्तावित नामों को समर्थन देने से इनकार कर दिया है. आरएसएस इस बात पर अडिग है कि अगला पार्टी अध्यक्ष एक "मजबूत संगठनात्मक नेता" होना चाहिए, न कि केवल एक "रबर स्टैंप”. आरएसएस अब मोदी-अमित शाह की जोड़ी को बिना शर्त समर्थन देने के लिए तैयार नहीं है. 2014 से यह जोड़ी पार्टी संगठन और सरकारी मामलों पर छाई हुई है. संघ का मानना है कि मोदी के तहत भाजपा में जिस प्रकार का व्यक्तित्व प्रभुत्व देखा गया, वह संगठनात्मक ताकत को कमजोर कर देगा. मोदी की नागपुर यात्रा के बाद से भाजपा ने केंद्र सरकार के कुछ वरिष्ठ मंत्रियों सहित कई नाम आगे बढ़ाए हैं, लेकिन वह आरएसएस नेतृत्व को मनाने में विफल रही है.
मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान आरएसएस की जमकर तारीफ की और इसे भारत की "अमर संस्कृति" का "अक्षय वट" (शाश्वत संरक्षक) बताया. मोदी और भागवत के बीच बातचीत और हंसी-मजाक की जो तस्वीर सामने आई, उससे भाजपा नेताओं को उम्मीद थी कि पार्टी के अगले अध्यक्ष का नाम जल्द ही तय हो जाएगा. कई नामों पर चर्चा हुई है, लेकिन अभी तक किसी को अंतिम रूप नहीं दिया गया है. हालांकि, उम्मीद है कि यह मुद्दा जल्द ही सुलझ जाएगा,” आरएसएस के एक नेता ने कहा.
वक़्फ़ कानून
विरोध बढ़ा, ममता बोलीं- बंगाल में लागू नहीं होगा, एनडीए के भीतर भी आवाज़
देश में वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 के विरोध के मामले बढ़ रहे हैं. बात हिंसा तक पहुंच गई है. और तो और एनडीए के भीतर भी इसके विरोध में आवाज़ उठ रही है. तीन दिन पहले मणिपुर में भाजपा नेता का घर फूंक दिया गया था, जबकि आज पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से हिंसा की खबर आ गई. पुलिस के अनुसार, वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध रैली के दौरान हुई हिंसा और आगजनी की घटना के बाद 22 लोगों को हिरासत में लिया गया. इलाके में इंटरनेट बंद कर दिया गया है और प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर दिए गए हैं. राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने सोशल मीडिया पर हिंसा की निंदा की है. वहीं, राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुसलमानों को भरोसा दिलाते हुए ऐलान किया है कि बंगाल में वक़्फ़ अधिनियम लागू नहीं किया जाएगा. जैन (अल्पसंख्यक) समुदाय के एक कार्यक्रम में ममता ने कहा, “हमारे यहां 33 प्रतिशत मुसलमान हैं. वे सदियों से यहां रह रहे हैं. क्या मैं उनको बाहर फेंक दूं? उनकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य है. बंगाल के मुसलमानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है.” उड़ीसा में वरिष्ठ बीजेडी नेताओं ने चार राज्यसभा सदस्यों के वक्फ अधिनियम का समर्थन करने के निर्णय के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है. ‘द टेलीग्राफ’ में शुभाशीष मोहंती की रिपोर्ट है कि मंगलवार को इस मुद्दे पर नेताओं ने ‘नवीन निवास’ में नवीन पटनायक से मुलाकात की. पार्टी के भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि राज्यसभा सदस्य कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं. पिछले 28 वर्षों में, किसी ने भी नवीन निवास पर जाकर नारे लगाने की हिम्मत नहीं की. सोमवार को, नवीन निवास "पांडियन वापस जाओ" और "बीजेडी बचाओ" के नारों से गूंज उठा. उधर, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जो वक़्फ़ एक्ट पर अब तक चुप थे और जिनकी केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के साथ एक फोटो के कारण आलोचना हो रही थी, ने भी सवाल उठाया कि "क्या आप श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड या श्री अमरनाथ जी श्राइन बोर्ड की गतिविधियों पर गैर-हिंदुओं को निगरानी रखने की अनुमति देते हैं? क्या किसी गैर-सिख को एसजीपीसी (शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी) की गतिविधियों पर निगरानी रखने की अनुमति दे सकते हैं?" जाहिर है, एक धर्म को निशाना बनाया जा रहा है. इस बीच एनडीए के सहयोगी दल नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के वरिष्ठ नेता और क्षेत्रिगाओ से विधायक शेख नूरुल हसन ने भी भाजपा पर आरोप लगाया कि यह कानून "हितधारकों से परामर्श किए बिना" जबरन लागू किया गया है. इसे उन्होंने "अन्यायपूर्ण और मुस्लिम समुदाय की भावनाओं के प्रति असंवेदनशील" बताया.
इम्फाल घाटी में, विशेष रूप से मेइती पंगल समुदाय (जो मेइती समुदाय का हिस्सा हैं) के विरोध प्रदर्शन के बीच, हसन ने इस कानून को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया है. उधर, सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को वक़्फ़ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा.
रक्षा के बारे में भारत का इतना लद्धड़ रवैया क्यों ?
मोदी सरकार ने अंततः 26 राफेल एम लड़ाकू विमानों की खरीद को मंजूरी दे दी है - आईएनएस विक्रांत के 2021 में समुद्री परीक्षण शुरू होने के चार साल बाद और सितंबर 2022 में औपचारिक रूप से कमीशन होने के दो साल बाद. यह जानते हुए भी कि पुराने, रखरखाव वाले MiG-29K विमान विमानवाहक संचालन के लिए अपर्याप्त थे, सरकार ने इस मामले में देरी की, जिससे भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक शुरू से ही अक्षम हो गया.
अब फ्रांस के साथ 63,000 करोड़ रुपये के सरकार-से-सरकार समझौते में विमान आर्डर किए गए हैं, लेकिन डिलीवरी अभी से पांच साल बाद ही शुरू होगी. इस पैकेज में रसद समर्थन, बेड़े का रखरखाव, कर्मियों का प्रशिक्षण और आफसेट खंडों के तहत कुछ स्थानीय घटक निर्माण शामिल हैं - जो 2030 में निश्चित रूप से उपयोगी होंगे. फ्रांसीसी रक्षा मंत्री सेबेस्तियन लेकोर्नू के इस महीने नई दिल्ली में आगमन के दौरान समझौतों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है.
'आत्मनिर्भर भारत' और समुद्री शक्ति के दावों के बावजूद, वास्तविकता गंभीर है. हिंद महासागर में शक्ति प्रदर्शित करने के लिए निर्मित आईएनएस विक्रांत अपने शुरुआती वर्षों में एक अल्प-सुसज्जित प्रदर्शनी बना रहा. इस बीच, चीन फुजियान जैसे अगली पीढ़ी के विमानवाहकों को तैनात कर रहा है और 2050 तक 10 से अधिक रखने का लक्ष्य रखता है. इसी समय, भारत की तीसरे विमानवाहक IAC-2 की योजनाएं नौकरशाही और रणनीतिक अनिश्चितता में फंसी हुई हैं. नौसेना विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी है कि एक और 45,000 टन का जहाज चीन के बढ़ते समुद्री प्रभुत्व का मुकाबला नहीं कर पाएगा.
कांग्रेस ने एक बार फिर संगठन को “पुनर्जीवित” करने की कसम उठाई
हमेशा की तरह कांग्रेस ने इस बार भी संगठन को “पुनर्जीवित” करने का संकल्प लिया है. पार्टी को राजनीतिक तौर पर “मोदी-शाह” की भाजपा और संघ परिवार से मुकाबला करने योग्य बनाने के “इरादे” दिखाए हैं. संगठनात्मक ढांचे में बदलाव की बात दोहराई है. वैचारिक तौर पर उसे बताना पड़ रहा है कि सरदार पटेल की विरासत पर असली हक उसका है, न कि मोदी की भाजपा का. पटेल के विचारों पर चलने का प्रस्ताव भी पारित करना पड़ा है. इसीलिए, वह अपने अधिवेशन के लिए 64 साल बाद महात्मा गांधी और पटेल के गुजरात में इकट्ठा हुई. ताकि, कथित रूप से मोदी द्वारा स्थापित इस आख्यान को मिटाया जा सके कि कांग्रेस ने नेहरू के सामने पटेल को हाशिये पर रखा और उनकी कद्र नहीं की. अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे आज बुधवार को समाप्त हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में कांग्रेस नेताओं के भाषणों और दो दिन की कार्यवाही का यही निष्कर्ष है. ठोस या नया जैसा कुछ नहीं. मसलन, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने याद दिलाया कि सरदार पटेल ने संगठन की महत्ता के बारे में क्या कहा था. “संगठन के बिना संख्या बेकार है. संख्या वास्तविक ताकत नहीं है. अलग-अलग धागों का कोई मूल्य नहीं है. लेकिन जब वे बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं, तो वे कपड़े का रूप ले लेते हैं. तब उनकी ताकत, सुंदरता और उपयोगिता अद्भुत हो जाती है," खड़गे ने पटेल के शब्दों का हिंदी में उल्लेख करते हुए कहा.
खड़गे ने यह भी कहा, “जो लोग पार्टी के काम में सहयोग नहीं करते, उन्हें "आराम करना चाहिए," और जो अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं करते, उन्हें सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए. संभवतः उनका इशारा राहुल गांधी के पिछले माह गुजरात में ही दिए गए उस बयान की तरफ था, जिसमें राहुल ने कहा था कि कांग्रेस में उन लोगों की पहचान करने की जरूरत है, जो भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. अपने अध्यक्षीय भाषण में खड़गे ने बताया कि अब जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्षों की भूमिका संगठन में महत्वपूर्ण होगी और उनकी नियुक्ति एआईसीसी द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार सख्ती और निष्पक्षता से की जाएगी. हमने देशभर के जिला अध्यक्षों की तीन बैठकें भी बुलाईं. राहुल जी और मैंने उनसे बातचीत की और उनके सुझाव लिए. भविष्य में, हम जिला अध्यक्षों को उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में शामिल करने जा रहे हैं. पार्टी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल के सिद्धांतों का पालन कर रही है. "हम फिर से भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. स्वतंत्रता की इस दूसरी लड़ाई में, दुश्मन फिर से अन्याय, असमानता, भेदभाव, गरीबी और सांप्रदायिकता हैं. अंतर सिर्फ इतना है कि पहले विदेशी अन्याय, गरीबी और असमानता को बढ़ावा देते थे, अब हमारी अपनी सरकार ऐसा कर रही है. पहले विदेशी सांप्रदायिकता का फायदा उठाते थे, आज हमारी अपनी सरकार इसका फायदा उठा रही है. लेकिन, हम यह लड़ाई भी जीतेंगे,” खड़गे ने कहा. खड़गे के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले शशि थरूर ने भी कहा, “हम महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमि से यह संदेश देने आए हैं कि कांग्रेस खुद को पुनर्जीवित कर रही है और आने वाले कल की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है.”
बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस अपने संकल्पों और इरादों को जमीन पर उतारने में कितना कामयाब हो पाती है. पिछले वर्ष देश के आम चुनाव में स्कोर सुधरने से उसका उत्साहवर्धन हुआ था, लेकिन बाद में राज्यों के चुनाव नतीजे उसके लिए निराशाजनक रहे थे.
“कॉपी-पेस्ट” के कारण पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा का फैसला रद्द : सिंगापुर की सुप्रीम कोर्ट ने उस अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अवार्ड को रद्द कर दिया, जिसे पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले ट्रिब्यूनल ने पारित किया था. कोर्ट ने पाया कि अवार्ड की लगभग आधी सामग्री पहले के ही उनके द्वारा दिए गए फैसलों से हूबहू 'कॉपी-पेस्ट' की गई. लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सिंगापुर इंटरनेशनल कमर्शियल कोर्ट (जो हाई कोर्ट का हिस्सा है) के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुए, चीफ जस्टिस सुंदरश मेनन और जस्टिस स्टीवन चोंग की पीठ ने कहा, “पैरेलल अवार्ड्स को काफी हद तक इस अवार्ड को तैयार करने के लिए टेम्पलेट के रूप में इस्तेमाल किया गया. यह निर्विवाद है कि 451-पैराग्राफ के इस अवार्ड में कम से कम 212 पैराग्राफ बनाए रखे गए.
कोर्ट ने मेधा पाटकर की सजा को बदला : दिल्ली की एक अदालत ने मानहानि मामले में मेधा पाटकर को दी गई पांच महीने की जेल की सजा को परिवर्तित कर प्रोबेशन अवधि में बदल दिया है. कोर्ट ने मेधा पाटकर के अपराध की 'गंभीरता', उनकी आयु और उनका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होने को ध्यान में रखते हुए उन्हें ₹1 लाख का जुर्माना और ₹25,000 का प्रोबेशन बॉन्ड भरने का निर्देश दिया है. पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की मानहानि का दोषी ठहराया गया था.
सम्भल की शाही जामा मस्जिद का नाम अब “जुमा मस्जिद”: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सम्भल की शाही जामा मस्जिद, के बाहर एक नया साइनबोर्ड लगाने जा रहा है, जिसमें इस ऐतिहासिक मुगलकालीन मस्जिद का नाम "जुमा मस्जिद" लिखा होगा और इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया जाएगा. यह नया बोर्ड मौजूदा हरे रंग की पृष्ठभूमि वाले बोर्ड को बदलकर नीली पृष्ठभूमि पर लगाया जाएगा. एएसआई के एक अधिकारी ने बताया कि 1927 में भारत सरकार और मस्जिद समिति के बीच हुए एक समझौते में इसे "जुमा मस्जिद" कहा गया था और एएसआई के रिकॉर्ड में भी इसे इसी नाम से संदर्भित किया गया है. अधिकारी ने कहा, "हम केवल संरचना को उसके मूल नाम से बुला रहे हैं, किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.”
भारत ने बांग्लादेश से ट्रांस-शिपमेंट सुविधा वापस ली भारत ने बांग्लादेश को दी जाने वाली एक महत्वपूर्ण ट्रांस-शिपमेंट सुविधा को रद्द कर दिया है. भारत के इस निर्णय से बांग्लादेश को भारतीय भूमि सीमा शुल्क स्टेशनों के माध्यम से तीसरे देशों को अपना माल निर्यात करने में दिक्कत होगी. अब तक बांग्लादेश को भारतीय कस्टम स्टेशनों के जरिए अपने माल को तीसरे देशों में बंदरगाहों और एयरपोर्ट तक भेजने की अनुमति थी. यह निर्णय बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार, मुहम्मद यूनुस के चीन यात्रा के दौरान दिए गए बयान के बाद लिया गया है.
यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को चारों तरफ से भूमि से घिरा हुआ (लैंड लॉक्ड) बताया था और बांग्लादेश को इस क्षेत्र में "समुद्र का एकमात्र संरक्षक" कहा था. उन्होंने इसे चीन के लिए आर्थिक प्रभाव बढ़ाने का अवसर बताया. हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय बांग्लादेश के नेपाल और भूटान को होने वाले निर्यात पर प्रभाव नहीं डालेगा. मंत्रालय ने कहा कि यह कदम लॉजिस्टिक देरी और उच्च लागत के कारण उठाया गया है, जो भारत के अपने निर्यात में बाधा डाल रहे थे और बैकलॉग पैदा कर रहे थे.
योगेन्द्र यादव ने की प्राइवेट यूनिवर्सिटी में आरक्षण की वकालत 'द इंडियन एक्सप्रेस' में अपने एक लेख में योगेन्द्र यादव ने लिखा है कि निजी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया जाना चाहिए. ये कानूनी रूप से संभव है, बस राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की वैधता को पहले ही मंज़ूरी दे दी है. 2005 में संविधान संशोधन और 2014 में कोर्ट का फैसला यह साफ कर चुके हैं कि निजी संस्थानों में आरक्षण देना कानूनन संभव है. उन्होंने लिखा कि ऊंची जातियों और अमीरों का वर्चस्व निजी विश्वविद्यालयों में है. एससी/एसटी/ओबीसी और मुस्लिम छात्रों की संख्या इनमें बहुत कम है. सरकारी कॉलेजों में भीड़ ज़्यादा है, संसाधन कम हैं और वहीं पिछड़ा तबका पढ़ रहा है.
‘क्या हमें दिन में तीन बार ढोकला खाना और जय श्री राम बोलना है?’
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने दावा किया है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के चितरंजन पार्क में मछली और मांस की दुकानों को बंद करवाया जा रहा है. मोइत्रा ने अपने “एक्स” हैन्डल पर एक वीडियो शेयर करते हुए आरोप लगाया कि भाजपा के कार्यकर्ता (गुंडे) नजदीकी मंदिर का हवाला देकर मछली बेचने वालों को धमका रहे हैं. बीते 60 वर्षों में कभी ऐसा नहीं हुआ. “द इंडियन एक्सप्रेस” से उन्होंने कहा, “क्या हमें दिन में तीन बार ढोकला खाना और जय श्री राम बोलना है?” हालांकि, दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेव ने कहा कि ऐसा लगता है कि वीडियो सामुदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के उद्देश्य तैयार किया गया है. दिल्ली पुलिस को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.
बलात्कारी और हत्यारा राम रहीम 13 वीं बार जेल से बाहर आया
रेप और हत्या के मामले में सजा काट रहा डेरा सच्चा सौदा चीफ गुरमीत राम रहीम एक बार फिर जेल से बाहर आ गया है. उसे 21 दिन की फरलो मिली है. पिछले पांच साल में यह 13वां मौका है कि उसे फरलो का लाभ मिला है. इसी साल जनवरी में दिल्ली विधानसभा चुनावों के आठ दिन पहले भी वह 30 दिनों के लिए जेल से बाहर आया था.
हैबिटैट क्लब पर हमला होते चुपचाप देखते रहे पुलिस अधिकारी : “द वायर” में कुणाल पुरोहित की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मुंबई पुलिस के अधिकारी शिवसेना नेताओं की उस भीड़ के साथ थे, जिसने दो हफ्ते पहले मुंबई के “द हैबिटैट” कॉमेडी क्लब (कुणाल कामरा को मंच प्रदान करने वाला) को तहस-नहस कर दिया था. जब उपद्रवियों ने क्लब को नुकसान पहुंचाया, तो पुलिस अधिकारी वहां चुपचाप खड़े रहे और हिंसा को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया. “वायर” को घटना के समय मौके पर मौजूद दो प्रत्यक्षदर्शियों ने भी बताया कि उन्होंने क्लब के अंदर और बाहर कम से कम आठ से दस पुलिस अधिकारियों को देखा था, जो भीड़ द्वारा किए गए हमले को चुपचाप देख रहे थे.
दूसरे देशो में दखल: भारत की बढ़ती भूमिका क्या वैश्विक पैटर्न का हिस्सा है?
येल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले और कैरवन पत्रिका के सलाहकार संपादक सुशांत सिंह ने कनाडा की वेबसाइट ‘वालरस’ में रूढ़िवादी सरकारों की दूसरे देशों में बढ़ती दखलंदाजी पर लेख लिखा है.
सिंह के मुताबिक एक हालिया रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि भारतीय खुफिया एजेंसियों ने 2022 में कनाडा की कंज़र्वेटिव पार्टी के नेतृत्व चुनाव में हस्तक्षेप किया, जिसमें पियरे पोइलिवरे विजेता बने. यह घटना सिर्फ भारत-कनाडा के बीच का राजनयिक विवाद नहीं है, बल्कि दो बड़े वैश्विक बदलावों की ओर इशारा करती है: पहला, भारत द्वारा अपनी पड़ोसी देशों वाली प्रभाव डालने की रणनीति का पश्चिमी लोकतंत्रों (जैसे कनाडा) तक विस्तार, और दूसरा, एक संगठित अंतरराष्ट्रीय दक्षिणपंथी गठबंधन का उभार.
कनाडा में विदेशी हस्तक्षेप की जांच में भारत को चीन के बाद दूसरा सबसे सक्रिय हस्तक्षेपकर्ता माना गया है. आगामी कनाडाई चुनाव (28 अप्रैल) पर खतरा मंडरा रहा है. आरोप है कि पोइलिवरे के अभियान के दौरान भारतीय प्रॉक्सी ने प्रवासी समुदाय के आयोजकों को फंड दिया और उनके पक्ष में नैरेटिव को बढ़ावा दिया. भारत की यह रणनीति उसकी क्षेत्रीय नीति जैसी है: संभावित समर्थक नेताओं की पहचान करना, प्रवासी नेटवर्क का उपयोग करना और हिंदुत्व विचारधारा को बढ़ावा देना.
नई दिल्ली कनाडा जैसे खुले समाजों की कमजोरियों का फायदा इसलिए भी उठा रही है ताकि एक मित्र सरकार सिख अलगाववादियों और अन्य भारतीय असंतुष्टों को निशाना बनाने में मदद करे. इससे मोदी सरकार घरेलू स्तर पर अल्पसंख्यकों से कथित खतरे को उजागर कर हिंदू वोट (जो भारत में 80% हैं) मजबूत कर सकती है.
भारत दशकों से दक्षिण एशिया में आर्थिक मदद, सांस्कृतिक कूटनीति और गुप्त अभियानों से राजनीतिक प्रभाव डालता रहा है (जैसे बांग्लादेश, भूटान, नेपाल). मोदी के नेतृत्व में यह नीति रणनीतिक आवश्यकता से हटकर हिंदुत्व के प्रचार पर केंद्रित हो गई है, जिसमें लोकतंत्र को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है.
यह केवल भारत की रणनीति नहीं, बल्कि एक वैश्विक पैटर्न का हिस्सा है. इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने हाल ही में कहा कि "दुनिया भर के रूढ़िवादी अब सहयोग कर रहे हैं". मोदी, ट्रम्प, मेलोनी जैसे दक्षिणपंथी लोकलुभावन नेता अभूतपूर्व समन्वय के साथ सीमा पार सहयोग कर रहे हैं. वे संस्थागत नेटवर्क, साझा रणनीति (जैसे दुष्प्रचार) और वैचारिक संरेखण (जैसे राष्ट्रवाद, पारंपरिक मूल्यों की रक्षा) के माध्यम से काम करते हैं.
कनाडा में पोइलिवरे की कंज़र्वेटिव पार्टी ने कथित तौर पर मोदी के एजेंडे का समर्थन करने वाले हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के साथ संबंध गहरे किए हैं. यह दिखाता है कि कैसे वैश्विक दक्षिणपंथी ताकतें एक-दूसरे का समर्थन कर रही हैं.
यह स्थिति कनाडा और अन्य लोकतंत्रों के लिए एक गंभीर संकट है. विदेशी हस्तक्षेप का उद्देश्य केवल चुनाव को प्रभावित करना नहीं, बल्कि लोकतंत्र में विश्वास को ही खत्म करना है. दुनिया को यह समझना होगा कि सत्तावादी ताकतें अब नेटवर्क बना चुकी हैं और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुट होकर ठोस कदम उठाने होंगे. आगामी कनाडाई चुनाव इस वैश्विक चुनौती का एक महत्वपूर्ण परीक्षण होगा.
धर्म या जाति के आधार पर मकान न देने की बात ‘दुखद’: महाराष्ट्र के राज्यपाल
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि महाराष्ट्र के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन ने कहा है कि यह “दुखद” है कि आज भी लोगों को केवल जाति या धर्म के आधार पर मकान नहीं दिया जाता. उन्होंने कहा कि स्कूलों और कॉलेजों को सभी धर्मों के त्योहार मनाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए. उन्होंने इस प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया. ‘‘लोकमत वर्ल्ड पीस एंड हार्मनी थ्रू इंटरफेथ डायलॉग’ कार्यक्रम में बोलते हुए राज्यपाल ने कहा कि अंतरधार्मिक संवाद की अवधारणा नई नहीं है, और यह विभाजन मिटाकर पूर्वाग्रह खत्म कर सकती है. इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, महाराष्ट्र के मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा और लोकमत मीडिया समूह के अध्यक्ष तथा पूर्व राज्यसभा सांसद विजय दर्डा भी मौजूद थे.
राज्यपाल राधाकृष्णन ने कहा, “एक बहुधार्मिक और बहुसांस्कृतिक समाज में यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने नागरिकों को सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाएं. इसकी शुरुआत विद्यालयों और महाविद्यालयों से होनी चाहिए. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर, हम अपने छात्रों को विभिन्न धर्मों के त्योहार मनाने से रोक रहे हैं. माता-पिता को अपने बच्चों को विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों में ले जाना चाहिए, जिससे उनमें अन्य धर्मों के प्रति सम्मान और सहानुभूति उत्पन्न हो.” राज्यपाल ने दोहराया कि “अंतरधार्मिक संवाद विभाजन को पाट सकता है, पूर्वाग्रहों को खत्म कर सकता है, और साझा मानवता की गहरी समझ को बढ़ावा दे सकता है.”
इधर, बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि भारतीय संस्कृति भाषा, रंग या धर्म से नहीं पहचानी जाती. उन्होंने कहा - “उत्तरदायित्व भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण सिद्धांत है. हर कार्य का परिणाम होता है - जैसी करनी वैसी भरनी. हमने कभी नहीं कहा कि विविधता हमें कमजोर करती है. हम हमेशा कहते आए हैं कि विविधता और बहुलता प्रकृति का नियम है, और इसका सम्मान किया जाना चाहिए.”
संख्यात्मक
2.16 लाख पंचायतों में से एक भी 'उत्कृष्ट' नहीं
'द न्यू इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि पंचायती राज मंत्रालय द्वारा सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत देश की 2.15 लाख ग्राम पंचायतों के पहले मूल्यांकन में पाया गया कि एक भी पंचायत को 'उत्कृष्ट' श्रेणी में स्थान नहीं मिला है. इसके अतिरिक्त, केवल 0.3% पंचायतें ही 'उत्कृष्ट' के करीब मानी गई हैं, जबकि बाकी पंचायतें इस लक्ष्य से काफी पीछे हैं. यह मूल्यांकन संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित एसडीजी संकेतकों पर आधारित एक बहुआयामी सूचकांक के माध्यम से किया गया, जिसका उद्देश्य 2030 तक गरीबी उन्मूलन और एक सतत विश्व का निर्माण है. पंचायती राज मंत्रालय ने 2022 में 'पंचायत उन्नति सूचकांक' लॉन्च किया, जो ग्राम पंचायतों की स्वास्थ्य, शिक्षा, जल और स्वच्छता, गरीबी उन्मूलन, महिला एवं बाल समर्थन जैसे 9 प्रमुख विषयों पर प्रगति को आंकता है. यह सूचकांक देश के 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 2.15 लाख ग्राम पंचायतों से प्राप्त प्रमाणित डेटा पर आधारित है. इसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर डेटा-आधारित सुशासन को बढ़ावा देना है. 2022-23 के नवीनतम मूल्यांकन में, 2.16 लाख पंचायतों में से केवल 699 (0.3%) पंचायतें 'अग्रणी' श्रेणी में हैं, 77,298 (35.8%) 'प्रदर्शक' श्रेणी में, 1,32,392 (61.2%) 'आकांक्षी' श्रेणी में और 5,896 (2.7%) 'प्रारंभिक' श्रेणी में आती हैं. 'उत्कृष्ट' श्रेणी में कोई पंचायत नहीं है.
ग़ुलफ़िशा फातिमा: 5 साल जेल में, 3 साल से लंबित जमानत
2020 के दिल्ली दंगों के "बड़े षड्यंत्र" मामले में अभियुक्त कार्यकर्ता ग़ुलफ़िशा फातिमा को पिछले 5 साल से बिना सुनवाई या जमानत के जेल में रखा गया है. मार्च 2025 की सुनवाई में, उनके वकील सरिम नवेद ने पुलिस के गंभीर आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि दंगों में लाल मिर्च पाउडर, एसिड या हथियारों के इस्तेमाल का कोई सबूत नहीं है. केवल "सुरक्षित गवाहों" के बयानों पर निर्भर इस मामले में ग़ुलफ़िशा समेत 18 आरोपियों में से 16 मुस्लिम हैं. आर्टीकल 14 में बेतवा शर्मा ने ग़ुलफ़िशा पर एक लम्बा रिपोर्ताज़ लिखा है.
ग़ुलफ़िशा की जमानत याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में मई 2022 से लंबित है. तीन बेंचों द्वारा सुनवाई के बावजूद न्यायाधीशों के स्थानांतरण के कारण फैसला टलता रहा. अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी. वकील हर्ष बोरा के अनुसार, "5 साल की कैद के बाद भी जमानत पर निर्णय न होना न्याय प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है." ग़ुलफ़िशा के भाई हुसैन ने बताया कि परिवार मानसिक रूप से परेशान है, पर उम्मीद नहीं छोड़ी.
दंगों का आरोप और विवाद : ग़ुलफ़िशा को 9 अप्रैल 2020 को जफराबाद मेट्रो के पास सड़क जाम करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. पुलिस का दावा है कि उन्होंने सीएए विरोधी प्रदर्शनों को हिंसक बनाया, हालाँकि प्रदर्शन स्थल शांत रहा. दिल्ली पुलिस ने आरोप पत्र में यूएपीए की 4 धाराएँ जोड़ीं, जबकि हाईकोर्ट ने जून 2021 में तीन सह-आरोपियों को जमानत देते हुए कहा था कि "प्रदर्शन करना आतंकवाद नहीं है."
सबूतों की कमी, गवाहों पर सवाल : आरोपों का आधार ज्यादातर गुमनाम गवाहों के बयान हैं, जो दंगों के महीनों बाद दर्ज किए गए. कुछ गवाहों के एकाधिक बयान "कहानी को फिट करने" के लिए संशोधित किए गए. ग़ुलफ़िशा के वकील नवेद ने कोर्ट में कहा, "सड़क जाम करना, चाहे लाल मिर्च पाउडर का इस्तेमाल हुआ हो, आतंकवाद नहीं है. सरकारी नीतियों का विरोध लोकतांत्रिक अधिकार है."
राजनीतिक पक्षपात का आरोप : दंगों के दौरान भाजपा नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ भाषण के बावजूद, पुलिस ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. मार्च 2025 में एक अदालत ने मिश्रा के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया, पर पुलिस उच्च न्यायालय का रुख कर सकती है.
32 वर्षीय ग़ुलफ़िशा ने जेल में पढ़ाई और पेंटिंग से समय बिताया. परिवार को उम्मीद है कि न्याय मिलेगा, पर प्रशासनिक देरी और सबूतों के अभाव ने उनकी मुश्किलें बढ़ाई हैं. यह मामला भारतीय न्यायिक प्रक्रिया और यूएपीए के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल उठाता है.
जीडीपी वृद्धि और मंहगाई ने अनुमान आरबीआई ने बदले
वैश्विक व्यापार तनाव और नीति अनिश्चितताओं के बीच भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने 2025–26 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान घटाकर 6.5% कर दिया है, जो कि पहले के 6.7% अनुमान से 20 आधार अंकों की कटौती है. आरबीआई ने FY26 के लिए खुदरा मुद्रास्फीति (रेटेल इनफ्लेशन) का अनुमान 4% रखा है, बशर्ते मानसून सामान्य रहे. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत ब्याज दर (पॉलिसी रेट) में 25 आधार अंकों की कटौती की घोषणा की, जिससे यह दर घटकर 6% हो गई है. हालांकि, इस कटौती से शेयर बाजार उत्साहित नहीं हुआ और नीति की घोषणा के तुरंत बाद निफ्टी में गिरावट देखी गई. निफ्टी 22,383 पर ट्रेड कर रहा था, जो पिछले दिन के बंद स्तर से 0.7% नीचे था. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन से आयात पर 104% की भारी टैरिफ लगाकर प्रतिशोधात्मक शुल्क लागू किए हैं. आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने अपनी नीति वक्तव्य में कहा कि वैश्विक अनिश्चितता के कारण निवेश और उपभोक्ता खर्च में वैश्विक और घरेलू दोनों स्तरों पर गिरावट आई है. व्यापारिक टकराव, अधिक शुल्क और निर्यात-आयात लोच की अनिश्चितताओं के चलते वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव का सटीक अनुमान लगाना मुश्किल हो गया है.
हालांकि, घरेलू संकेतक अब भी मजबूत हैं. कृषि क्षेत्र जलाशयों के अच्छे स्तर और रबी फसल की मजबूती के चलते बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहा है. विनिर्माण क्षेत्र में सुधार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं और सेवाएं अब भी सुदृढ़ हैं. मांग के मोर्चे पर, ग्रामीण खपत स्वस्थ बनी हुई है और शहरी खर्च धीरे-धीरे बढ़ रहा है. निवेश गतिविधियां रफ्तार पकड़ रही हैं, जिसे कॉर्पोरेट और बैंक बैलेंस शीट्स के सुधार, इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च और अनुकूल वित्तीय परिस्थितियों से समर्थन मिल रहा है. त्रैमासिक वृद्धि अनुमान देते हुए, गवर्नर ने कहा कि Q1 में जीडीपी वृद्धि 6.5%, Q2 में 6.7%, Q3 में 6.6%, और Q4 में 6.3% रहने का अनुमान है.
मुंबई से बुधवार, 9 अप्रैल 2025 को पोस्ट किए गए एक वीडियो में, आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा पहले द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए दिखाई दिए. “मैं संजय हूँ, लेकिन महाभारत के संजय की तरह नहीं जो भविष्यवाणी कर सकें,” ऐसा कहकर उन्होंने दरों में कटौती को लेकर भविष्यवाणी से परहेज़ जताया. 4 अप्रैल 2025 तक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $676.3 अरब था, जो लगभग 11 महीनों के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है.
असली डॉ. कैम ने कहा, ‘ये धोखाधड़ी 5 साल पुरानी ’
ब्रिटेन के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. जॉन कैम की पहचान चुराने वाला शख्स, जो खुद को "डॉ. नरेंद्र जॉन कैम" कहता था, अब पुलिस की गिरफ्त में है. यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के दमोह ज़िले के मिशन अस्पताल में काम करने वाले इस कथित डॉक्टर की जांच शुरू हुई. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने संकेत दिए हैं कि इस व्यक्ति की देखरेख में कम से कम 7 मरीजों की मौत हुई हो सकती है. पुलिस जांच कर रही है कि क्या यह फर्जी डॉक्टर वास्तव में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जिसने यूके के प्रोफेसर डॉ. जॉन कैम की पहचान चुराई थी और नकली मेडिकल प्रमाणपत्रों के ज़रिए नौकरी हासिल की. डॉ. जॉन कैम, जो कि लंदन के सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर हैं, ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा - "पहली बार मैंने करीब 5 साल पहले इस पहचान की चोरी के बारे में सुना था. यह बहुत परेशान करने वाला अनुभव था. उस व्यक्ति ने कभी-कभी खुद को मेरे रूप में पेश किया और कभी-कभी यह दावा किया कि उसने मुझसे लंदन के सेंट जॉर्ज अस्पताल में प्रशिक्षण लिया है." उस समय, यादव ने डॉ. कैम के नाम से एक ट्विटर अकाउंट भी बनाया था, और वहां से एक पोस्ट किया जिसमें भारत से आग्रह किया गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फ्रांस भेजा जाए ताकि वे वहां के दंगों को नियंत्रित करें. यह ट्वीट बाद में वायरल हो गया क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आधिकारिक अकाउंट ने उसे रीट्वीट करते हुए लिखा - "जब भी कट्टरवाद दंगों को जन्म देता है, अराजकता फैलती है और क़ानून व्यवस्था संकट में पड़ती है, तब दुनिया उत्तर प्रदेश में महाराज जी द्वारा स्थापित 'योगी मॉडल' की ओर आशा की नज़रों से देखती है." बहरहाल, अब नकली डॉक्टर गिरफ्त में है और दुनिया न सही कुछ मरीजों की जान जरूर बची रह सकेगी.
इजरायली हवाई हमलों में 35 फिलिस्तीनियों की मौत, 80 लापता : 'अलजजीरा' की खबर है कि उत्तरी ग़ाज़ा सिटी के शुजायिया इलाक़े में इज़रायल ने ज़बरदस्त हवाई हमले किए हैं, जिनमें कम से कम 35 फिलिस्तीनियों के मारे जाने की रिपोर्ट्स हैं. 55 लोग घायल बताए जा रहे हैं, जबकि 80 लोग लापता हैं. चिकित्सा संस्था "डॉक्टर्स विदआउट बॉर्डर्स" ने कहा है कि इज़रायली हमला दक्षिणी ग़ाज़ा के अल-मवासी इलाके में स्थित उसके क्लिनिक के क़रीब हुआ, जबकि यह इलाका "सुरक्षित क्षेत्र" घोषित किया गया था.
चलते-चलते
एक देश को कैसे बर्बाद करें
अमेरिकी विदेश नीति के विनाश का चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका
फॉरेन पॉलिसी वेबसाइट पर हारवर्ड यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफसर स्टीफन एम वाल्ट ने यह लेख लिखा है. उसी लेख के कुछ अंश. अगर आपको यह पढ़कर किसी और देश या नेता की याद आ रही है, तो वह संयोग मात्र मानिये.
डोनाल्ड ट्रम्प और उनके प्रशासन ने मात्र तीन महीनों में अमेरिकी विदेश नीति को अभूतपूर्व रूप से नुकसान पहुंचाया है. यहां वे पांच कदम हैं जिनसे वे अमेरिका को कमज़ोर कर रहे हैं:
1. चापलूसों और वफादारों की नियुक्ति करना ट्रम्प ने ऐसे लोगों को नियुक्त किया है जो अयोग्य, अंधे वफादार, या सिद्धांतहीन हैं. वे विरोधी आवाज़ों को नज़रअंदाज़ करते हैं, जिससे अच्छी नीतियां बनाना असंभव हो जाता है. जैसा कि वाल्टर लिपमैन ने कहा था, "जब सभी एक जैसा सोचते हैं, तो कोई भी बहुत अधिक नहीं सोचता."
2. अधिक से अधिक देशों से झगड़ा मोल लेना सफल विदेश नीति का अर्थ है मित्रों की संख्या बढ़ाना और शत्रुओं की संख्या कम करना. परंतु ट्रम्प प्रशासन ने यूरोपीय सहयोगियों का अपमान किया है, कोलंबिया, मैक्सिको और कनाडा से अनावश्यक विवाद छेड़े हैं, और यूक्रेन पर दबाव डाला है. उन्होंने यूएसएड को विघटित किया और डबल्यूएचओ से हटने का फैसला किया है.
3. राष्ट्रवाद की शक्ति की अनदेखी करना ट्रम्प अन्य देशों के राष्ट्रीय भावनाओं को नज़रअंदाज़ करते हैं. जब वे अन्य देशों के नेताओं का अपमान करते हैं, तो वहां राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया पैदा होती है. इसका एक उदाहरण कनाडा है, जहां अब अमेरिका-विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं.
4. नियमों का उल्लंघन करना और अप्रत्याशित होना बुद्धिमान नेता जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मानदंड और संस्थाएं उपयोगी होती हैं. लेकिन ट्रम्प इन्हें केवल बाधाएं मानते हैं. वे अप्रत्याशित होने को एक रणनीति के रूप में देखते हैं, यह नहीं समझते कि यह व्यापार और सहयोग के लिए हानिकारक है.
5. अमेरिकी शक्ति की नींव को कमज़ोर करना आधुनिक दुनिया में, आर्थिक और सैन्य क्षमता ज्ञान पर निर्भर करती है. लेकिन ट्रम्प ने वैज्ञानिक अनपढ़ों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया है, शांति संस्थानों को बंद किया है, और अरबों डॉलर के चिकित्सा अनुसंधान धन को रोक दिया है. इसका परिणाम यह होगा कि अमेरिका में शोध कार्यक्रम बंद हो जाएंगे और विदेशी वैज्ञानिक अन्य देशों में जाने लगेंगे.
इन त्रुटियों के कारण अमेरिका गरीब, कम शक्तिशाली और दुनिया भर में कम सम्मानित होगा.
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