10/06/2025 : जी 7 का न्यौता निशर्त नहीं | एक साल में मोदी के कितने यू टर्न | आर्य और संस्कृत बाहर से आये | बस्तर में एएसपी की मौत | बेला के असंगत इंसाफ | सीवेज सफाईकर्मी की मौतें | टाइगर पटौदी का नाम
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
कुछ शर्तों के साथ मिला है जी-7 का न्यौता
पाकिस्तान ने माना रुबियो ने रुकवाई थी जंग
5 यू-टर्न मोदी के एक साल में
सुकमा में IED ब्लास्ट में एएसपी की मौत
मैला ढोने के कारण होने वाली मौतों पर डासम ने की तत्काल कार्रवाई की मांग
सोनम 3 दिन की रिमांड पर, मेघालय ले गई पुलिस: इंदौर से 4 आरोपी फ्लाइट से भेजे जाएंगे
सुप्रीम कोर्ट ने पत्र आते ही हाईकोर्ट जज के खिलाफ जांच रोकी
रिपब्लिक, न्यूज़18 ने गलत खबर दी, बाद में कहानी में बदलाव किया
जस्टिस बेला त्रिवेदी : गिने-चुने लोगों के लिए 'न्याय का उपहार' और अदालत में असंगतियां
गाजा की नाकेबंदी तोड़ने निकले जहाज को इजरायल ने दबोचा
पटौदी ट्रॉफी का नाम बदलने से क्रिकेट जगत में खासा विवाद
कुछ शर्तों के साथ मिला है जी-7 का न्यौता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कनाडा में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन की आउटरीच बैठक का निमंत्रण कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ एक महत्वपूर्ण समझौते के बाद आया है. कनाडाई मीडिया की रिपोर्ट्स के हवाले से “द वायर” ने बताया है कि समझौते में कानून प्रवर्तन सहयोग की प्रतिबद्धता और हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर जारी तनाव भी शामिल है. इस कदम को मोदी की दिन भर चलने वाली आउटरीच बैठक में भागीदारी के लिए एक पूर्व शर्त माना जा रहा है. एक सूत्र ने “टोरंटो स्टार” को बताया कि कार्नी ने भारतीय प्रधानमंत्री को दिए गए निमंत्रण पर "शर्तें" रखी थीं और मोदी ने शर्तें स्वीकार करने के लिए समय मांगा था, लेकिन सूत्र को उनकी बातचीत का विवरण नहीं पता था.
कार्नी, जो कि आरसीएमपी द्वारा निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों की संलिप्तता के आरोप के बाद मोदी को इतनी जल्दी निमंत्रण देने के लिए घरेलू आलोचना का सामना कर रहे थे, ने खुलासा किया कि निमंत्रण "महत्वपूर्ण" द्विपक्षीय प्रगति के बाद दिया गया था. "हमने अब, महत्वपूर्ण रूप से, कानून प्रवर्तन संवाद जारी रखने पर सहमति व्यक्त की है, इसलिए इस पर कुछ प्रगति हुई है जो जवाबदेही के मुद्दों को पहचानती है," कार्नी ने कहा, यह जोर देते हुए कि यह मोदी को निमंत्रण देने की एक वजह थी. मोदी ने हालांकि, कार्नी के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत के अपने सार्वजनिक बयान में कानून प्रवर्तन संवाद का उल्लेख नहीं किया.

कार्नी के अनुसार, 15-17 जून को कनानास्किस, अल्बर्टा में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन का मुख्य फोकस “शांति और सुरक्षा को मजबूत करना, विदेशी हस्तक्षेप और अंतरराष्ट्रीय अपराध का मुकाबला करना और जंगल की आग पर संयुक्त प्रतिक्रिया में सुधार करना” होगा. ये वही तीन प्राथमिकताएं हैं, जिन्हें कार्नी ने शिखर सम्मेलन के लिए निर्धारित किया है और इसमें पहली प्राथमिकता सीधे उस चिंता को संबोधित करती है, जो कनाडा ने निज्जर हत्या के बाद मोदी सरकार को लेकर जताई है.
कनाडा की विदेश मंत्री अनिता आनंद ने पेरिस से ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ को बताया कि मोदी को दिया गया निमंत्रण “उस स्वतंत्र जांच की महत्ता को कम नहीं करता और न ही करना चाहिए, जो (निज्जर की हत्या की) जांच तथा कानून के शासन के मुद्दों पर चल रही है, जो पूरी तरह सर्वोपरि हैं.” इससे स्पष्ट होता है कि भारत के साथ कूटनीतिक संवाद के बावजूद, कनाडा निज्जर मामले में जवाबदेही की अपनी मांग से पीछे नहीं हट रहा है.
दोनों देशों के संबंध तब गंभीर रूप से बिगड़ गए थे, जब कनाडा ने सार्वजनिक रूप से मोदी सरकार पर निज्जर की हत्या में संलिप्तता का आरोप लगाया था. कानून प्रवर्तन संवाद की पुनः शुरुआत को संबंधों को सुधारने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन कनाडाई अधिकारी जोर देते हैं कि न्याय और चल रही जांच उनके एजेंडे के केंद्र में बनी हुई है.
पाकिस्तान ने माना रुबियो ने रुकवाई थी जंग
भारत-पाकिस्तान युद्धविराम को लेकर बना रहस्य, जिसमें अमेरिकी मध्यस्थता और मार्को रुबियो के बातचीत के दावे शामिल थे, अब सुलझता दिख रहा है. यूनाइटेड किंगडम का दौरा कर रहे पाकिस्तानी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा है कि "पाकिस्तान ने युद्धविराम पर सहमति जताई क्योंकि रुबियो ने कहा था कि इसके बाद बातचीत होगी और इसलिए लड़ाई रुक गई". आयशा सिद्दीका के अनुसार, प्रतिनिधिमंडल ने यह भी कहा कि "अमेरिका ने पाकिस्तान को भारत को बातचीत के लिए मनाने की प्रतिबद्धता दी". हालांकि, भारतीय पक्ष ने किसी भी वार्ता प्रक्रिया पर सहमत होने से इनकार किया है.
5 यू-टर्न मोदी के एक साल में
सोमवार, 9 जून को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल का एक साल पूरा किया है और भाजपा “11 साल” के शासन की ओर ध्यान केंद्रित करने की तैयारी कर रही है, तो “द वायर” में श्रावस्ती दासगुप्ता ने पिछले एक साल में उनकी सरकार द्वारा लिए गए पांच ऐसे प्रमुख यू-टर्न का विवरण दिया है, जो उनके पिछले दो कार्यकालों के एकदलीय प्रभुत्व से अलग हैं.
जाति जनगणना : 30 अप्रैल को केंद्र सरकार ने घोषणा की कि जाति गणना डेटा दशकीय जनगणना के साथ शामिल किया जाएगा. यह फैसला 2024 उसके चुनाव अभियान के रुख से उलट है. तब उसने जाति जनगणना की मांग को समाज को बांटने की कोशिश बताया था.
लैटरल एंट्री : अगस्त में, केंद्र सरकार ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को 45 प्रमुख पदों के लिए लैटरल भर्ती के विज्ञापन को वापस लेने के लिए कहा, जो विपक्ष और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के अपने सहयोगियों के दबाव के बीच कुछ दिन पहले ही जारी हुआ था. यह यू-टर्न तब आया जब सरकार ने पहले इस कदम का बचाव किया था, लेकिन बाद में इसे वापस लेना पड़ा.
एकीकृत पेंशन योजना : अगस्त में ही, केंद्रीय कैबिनेट ने एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) को मंजूरी दी, जिससे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा लाई गई 21 साल पुरानी राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) के फैसले को पलट दिया गया. एनपीएस में गारंटीड पेंशन समाप्त कर दी गई थी, जिसे अब यूपीएस के तहत फिर से लाया गया है. यह फैसला विपक्षी दलों के दबाव के बीच आया, जो पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग कर रहे थे. कई विपक्ष शासित राज्यों ने पहले ही पुरानी योजना को लागू कर दिया था.
कूटनीतिक प्रयासों में विपक्ष का समर्थन मांगना : पिछले दो कार्यकालों के विपरीत, पिछले साल मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का समर्थन मांगा. ऑपरेशन सिंदूर, पहलगाम आतंकी हमला और पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के बाद, सरकार ने भारत की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने के लिए विपक्षी सांसदों और सहयोगी दलों को भी शामिल किया. पहली बार, मोदी सरकार ने “सामूहिक संकल्प” के साथ विदेश में प्रतिनिधिमंडल भेजे, जबकि पहले वे विपक्ष को अलग-थलग करने की नीति अपनाते थे.
संसद में बदलाव : पहले दो कार्यकालों में मोदी सरकार पर संसद में महत्वपूर्ण विधेयकों को बिना बहस के पारित कराने का आरोप लगता रहा, लेकिन पिछले एक साल में मजबूत विपक्ष के कारण बदलाव देखने को मिला. 2024 के चुनाव के बाद लाया गया पहला बड़ा विधेयक, वक्फ संशोधन विधेयक था, जिसे विरोध के बाद संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया. अंततः यह विधेयक अप्रैल में मामूली बहुमत से पारित हुआ.
सरकार ने प्रसारण विधेयक को भी फिलहाल रोक दिया है और रियल एस्टेट बिक्री पर टैक्स की गणना के तरीके में बदलाव के फैसले पर भी संसद में बहस के बाद संशोधन किया गया.
सुकमा में IED ब्लास्ट में एएसपी की मौत
'हैशटैग यू' की रिपोर्ट है कि नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कोन्टा डिवीजन में तैनात अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) आकाश राव गिरीपुंजे की एक आईईडी विस्फोट में मौत हो गई है. जानकारी के अनुसार, एएसपी गिरीपुंजे कोन्टा-गोलापल्ली मार्ग पर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में एक नया सुरक्षा कैंप स्थापित कर लौट रहे थे. इसी दौरान यह हादसा हुआ. वह उस समय क्षेत्र में पैदल गश्त पर थे, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) द्वारा 10 जून को घोषित भारत बंद के मद्देनजर किसी प्रकार की नक्सली गतिविधि न हो. प्रेशर IED ब्लास्ट की चपेट में आने से एएसपी गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें तुरंत अन्य घायल अधिकारियों और जवानों के साथ कोन्टा अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकीह मृत्यु हो गई. इस हादसे में घायल अन्य अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों की स्थिति अब स्थिर बताई जा रही है. यह राज्य में 2009 के बाद किसी उच्च अधिकारी की पहली मौत है.
मैला ढोने के कारण होने वाली मौतों पर डासम ने की तत्काल कार्रवाई की मांग
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (डासम) ने देश में मैला ढोने के दौरान होने वाली मौतों पर गहरी चिंता जताते हुए तत्काल एफआईआर दर्ज करने और स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की है. डासम ने इन मौतों को सामाजिक विफलता बताते हुए पर्याप्त मुआवजे, पुनर्वास और जिम्मेदार ठेकेदारों के लाइसेंस रद्द करने की भी मांग की. डासम ने कहा कि सरकार के दावों के विपरीत, ये मौतें जारी हैं और जातिगत भेदभाव व लापरवाही दिखाती हैं. डासम के अनुसार, 2024 में 116 और 2025 में अब तक 42 श्रमिकों की मृत्यु हुई है, कुल 158. कानून होने के बावजूद मौतें नहीं रुक रही हैं. डासम ने मृतक परिवारों के लिए 30 लाख रुपये मुआवजे और पूर्ण पुनर्वास, तथा विकलांगता के लिए 20 लाख रुपये मांगे हैं. साथ ही, देशव्यापी ऑडिट और उप-ठेकेदारी पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया. मंच ने प्रत्येक मौत की गहन जांच और संबंधित कानूनों के तहत एफआईआर दर्ज करने पर जोर दिया, और स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट ने पत्र आते ही हाईकोर्ट जज के खिलाफ जांच रोकी
सुप्रीम कोर्ट जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव द्वारा विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यक्रम में दिए गए विवादास्पद बयान की आंतरिक जांच शुरू करने की तैयारी कर ही रहा था, कि तभी राज्यसभा सचिवालय से आए एक पत्र के बाद उसने इस प्रक्रिया को रोक दिया. पत्र में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि यह मामला राज्यसभा के विशेष अधिकार क्षेत्र में आता है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च में राज्यसभा से आए पत्र में यह स्पष्ट किया गया कि ऐसी किसी भी कार्यवाही का संवैधानिक अधिकार केवल राज्यसभा के चेयरमैन के पास है, और अंततः संसद और राष्ट्रपति के पास. इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की प्रतिकूल रिपोर्ट के बाद, भारत के सीजेआई संजीव खन्ना ने यह प्रक्रिया शुरू की थी.
सोनम 3 दिन की रिमांड पर, मेघालय ले गई पुलिस: इंदौर से 4 आरोपी फ्लाइट से भेजे जाएंगे
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा बटोर रहे इंदौर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी राजा रघुवंशी की हत्या के मामले में नया मोड़ आया है. पहले जहां इस मामले में सोनम की हत्या के बाद उसकी पत्नी की किडनैपिंग और मेघालय में पुरुष पर्यटकों को मारकर महिलाओं को ले जाने वाली गैंग की कहानियों ने सोशल मीडिया पर लोगों का मनोरंजन किया और अब मामले में नया ही मोड़ आ गया है. सोनम की हत्या के आरोप में उसकी पत्नी सोनम रघुवंशी को यूपी के गाजीपुर की कोर्ट में पेश किया गया. तीन घंटे चली कार्यवाही के बाद कोर्ट ने सोनम को मेघालय पुलिस को 3 दिन की ट्रांजिट रिमांड पर सौंप दिया है. पुलिस की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने यह रिमांड मंजूर की. सोनम ने 10 मई को इंदौर के व्यापारी राजा रघुवंशी से शादी की थी और 21 मई को वे हनीमून के लिए मेघालय गए थे. दोनों के लापता होने की खबर के बाद शुरू हुई तलाश में एक सप्ताह पहले राजा का शव चेरापूंजी के पास एक गहरी खाई में मिला था. शव की स्थिति को देखते हुए शिलांग पुलिस ने हादसे की संभावना को खारिज करते हुए हत्या की आशंका जताई थी. सोनम ने सोमवार सुबह गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में आत्मसमर्पण किया. पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि उसने राजा की हत्या के लिए सुपारी किलर (भाड़े के हत्यारे) लगाए थे. इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें राज कुशवाहा भी शामिल है, जिसके साथ सोनम के कथित प्रेम संबंध थे. अन्य गिरफ्तार आरोपियों की पहचान आकाश राजपूत, विकास उर्फ विक्की और आनंद के रूप में हुई है.
जस्टिस बेला त्रिवेदी : गिने-चुने लोगों के लिए 'न्याय का उपहार' और अदालत में असंगतियां
'द क्विंट' में मेखला सरन ने अपने लेख में लिखा है कि जस्टिस बेला त्रिवेदी, जो भारत की सुप्रीम कोर्ट में सेवा देने वाली गिनी-चुनी महिला न्यायाधीशों में से एक थीं, तेजी से उभरीं, लेकिन जमानत और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में उनके कड़े और असंगत रुख के कारण विवादों में रहीं. उनकी सेवा समाप्ति बिना पारंपरिक विदाई के हुई, जिससे उनके कार्यकाल की विरासत पर बहस छिड़ गई. मेखला सरन सवाल करती हैं — क्या न्याय केवल कुछ गिने-चुने लोगों के लिए था?
एक असाधारण न्यायिक यात्रा : 9 जून, सामान्यत: जस्टिस बेला त्रिवेदी की सेवानिवृत्ति का दिन होता. वह कोई साधारण न्यायाधीश नहीं थीं. एसएससी ऑनलाइन के अनुसार, वह गुजरात हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने वाली पहली महिला न्यायाधीश थीं. वह उन कुछ न्यायाधीशों में से थीं जिन्होंने अधीनस्थ न्यायपालिका से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक का सफर तय किया, लेकिन जब 2021 में उन्हें नौ न्यायाधीशों की एक सूची में सुप्रीम कोर्ट के लिए चुना गया, तो यह चयन कई वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके किया गया था. जस्टिस अकील कुरैशी और एस मुरलीधर उन लोगों में थे जिन्हें दरकिनार किया गया. कुरैशी वही हैं जिन्होंने 2010 में अमित शाह को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में पुलिस हिरासत में भेजा था. (2014 में शाह बरी हुए.)
बेला त्रिवेदी को पहले गुजरात सरकार में कानून सचिव (2004–06, जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे), सीबीआई विशेष अदालत की न्यायाधीश और बाद में रजिस्ट्रार (विजिलेंस) जैसे कई प्रशासनिक पदों पर भी नियुक्त किया गया.
एक विवादास्पद न्यायिक दर्शन : उनकी न्यायिक कार्यशैली अक्सर कठोर रही. उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मामलों में जमानत नहीं दी, फिर भी कुछ मामलों में राहत दी. खासकर उन मामलों में जहां आरोपी सत्तारूढ़ दल से संबंधित थे. मसलन उन्होंने जीएन साईबाबा की रिहाई रद्द की, जिन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था. उमर खालिद की जमानत याचिका बार-बार टालती रहीं, जब तक उन्होंने खुद याचिका वापस नहीं ली. सत्येंद्र जैन (AAP) और सेंथिल बालाजी (DMK) की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं, भले ही वे स्वास्थ्य कारणों से थीं, लेकिन दूसरी ओर निसीथ प्रमाणिक (BJP) को गिरफ्तारी से संरक्षण दिया, जबकि हाईकोर्ट ने इनकार किया था. अजय मिश्रा टेनी (BJP मंत्री) की हत्या मामले में बरी होने के निर्णय को बनाए रखा. गौरी लंकेश हत्याकांड में आरोपी मोहन नायक की जमानत रद्द करने की याचिका खारिज कर दी. यह चयनात्मक सहानुभूति, न्याय में समानता के सिद्धांत से टकराती है.
न्यायपालिका और वकालत बिरादरी से संबंध : सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने उनके लिए पारंपरिक विदाई समारोह आयोजित करने से इनकार कर दिया. यह बार और बेंच के बीच एक असामान्य और सार्वजनिक दूरी का संकेत था. एक वकील ने निजी बातचीत में कहा: “बेला त्रिवेदी के लिए, जमानत अपवाद थी, नियम नहीं.” उनकी कठोर टिप्पणियां - जैसे कि “बाईपास आजकल अपेंडिक्स निकालने जैसा है” ने कई लोगों को झकझोर दिया, खासकर तब जब वे बीमार आरोपियों को राहत देने से मना करती रहीं. लेकिन जब नवाब मलिक (राष्ट्रवादी कांग्रेस) की बारी आई, तो उन्हें चिकित्सा आधार पर जमानत दी गई, जबकि इसी आधार पर बालाजी और जैन को इनकार किया गया.
बहरहाल, भारत की सर्वोच्च अदालत ने कहा है- "स्वतंत्रता कुछ गिने-चुने लोगों के लिए उपहार नहीं है." तो फिर जस्टिस त्रिवेदी ने इसे कुछ के लिए क्यों सुरक्षित रखा?
| फेक न्यूज अलर्ट
रिपब्लिक, न्यूज़18 ने गलत खबर दी, बाद में कहानी में बदलाव किया
‘ऑल्ट न्यूज़’ के लिए अंकिता महालनोबिश की रिपोर्ट है कि एक एआई वीडियो को रिपब्लिक और न्यूज़18 ने असली बताकर चला दिया. असल में देर रात के सीसीटीवी फुटेज में एक शेरनी को सड़क पर घूमते और एक सोते हुए व्यक्ति को सूंघकर फिर दूर चले जाने का दृश्य दिखाने वाला वीडियो इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को चौंका रहा है. 7 जून, 2025 को, रिपब्लिक ने एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था: ‘शेर सड़क पर घूमता है, व्यक्ति को सूंघता है और…: डरावना वीडियो कोई फिल्म का दृश्य नहीं है’. लेख में कहा गया, “सोशल मीडिया पर एक रोंगटे खड़े कर देने वाला वीडियो सामने आया है, जिसमें एक पूर्ण विकसित जंगली शेर सड़क पर घूमता हुआ दिखाई दे रहा है और फुटपाथ पर सो रहे एक व्यक्ति को सूंघ रहा है.” “हालांकि घटना का स्थान स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह वीडियो निश्चित रूप से हमें रोंगटे खड़े कर देता है. वायरल वीडियो प्रकृति के सबसे भयानक शिकारियों के सामने जीवित रहने और खतरे के बीच की पतली रेखा को भी दिखाता है,” रिपोर्ट में जोड़ा गया. उसी दिन, न्यूज़18 ने भी एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका शीर्षक था: ‘शेर ने सड़क पर सो रहे व्यक्ति की जान बख्शी, विचित्र मुलाकात में’. स्थानीय समाचार आउटलेट महाराष्ट्रटीवी24 ने भी अपने यूट्यूब चैनल पर इस वीडियो को साझा किया. एक्स अकाउंट अपडेट न्यूज़ (@UpdateNews724), जो अपनी बायो में दावा करता है कि यह वैश्विक समाचार और रीयल-टाइम अपडेट प्रदान करता है, ने भी इस वीडियो को साझा और प्रचारित किया, जिसमें दावा किया गया कि भारत में सड़क पर सो रहे एक व्यक्ति ने शेर के हमले से बचाव किया. इस लेख के लिखे जाने तक इस पोस्ट को 2.25 करोड़ से अधिक बार देखा जा चुका था. कई अन्य सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने भी समान दावों के साथ इस वीडियो को साझा किया, लेकिन तथ्य जांच में ये वायरल वीडियो एआई निर्मित मिला है.
वीडियो की सत्यता की जांच के लिए, ‘ऑल्ट न्यूज़’ ने इसे कई बार देखा. इससे कई विसंगतियां सामने आईं, जो इस बात पर संदेह पैदा करती हैं कि क्या यह फुटेज वास्तविक घटना का है. उदाहरण के लिए, हमने देखा कि सो रहे व्यक्ति के पास दुकान के बैनर पर दिखने वाले शब्द निरर्थक हैं; वे देवनागरी लिपि जैसे दिखते हैं लेकिन हिंदी या गुजराती में कोई शब्द नहीं बनाते. साथ ही, जमीन पर लेटे व्यक्ति की मुद्रा अस्वाभाविक लगती है; पैर की स्थिति अजीब है, और यह घुटने के बजाय जांघ के पास मुड़ता हुआ दिखता है. इसके बाद, ‘ऑल्ट न्यूज़’ ने वीडियो के कुछ प्रमुख फ्रेम्स पर रिवर्स इमेज सर्च किया. इससे एक यूट्यूब शॉर्ट मिला, जिसे एक ब्राजीलियाई चैनल ‘द वर्ल्ड ऑफ बीस्ट्स’ ने अपलोड किया था. वीडियो का कैप्शन मोटे तौर पर अनुवाद करने पर कहता है, ‘शेर ने गुजरात में सड़क पर सो रहे एक व्यक्ति को पाया’. वीडियो के विवरण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सामग्री में बदलाव किया गया है या यह सिंथेटिक है. इसमें लिखा है: “ध्वनि या दृश्यों में काफी संपादन किया गया है या इसे डिजिटल रूप से जनरेट किया गया है.”
यह भी ध्यान देने योग्य है कि रिपब्लिक और न्यूज़18 ने बाद में अपने लेखों को अपडेट किया. रिपब्लिक ने अपनी रिपोर्ट को अपडेट करके लिखा: ‘शेर सड़क पर घूमता है, व्यक्ति को सूंघता है और…: सोशल मीडिया पर सामने आया डरावना वीडियो एआई-जनित है?’ जबकि न्यूज़18 की संशोधित हेडलाइन अब है: ‘शेर ने सड़क पर सो रहे व्यक्ति की जान बख्शी, विचित्र मुलाकात? वीडियो वायरल हो गया.’ न्यूज़18 ने यह भी जोड़ा कि वे वीडियो की प्रामाणिकता को स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं कर सके. संक्षेप में, रात में सड़क पर घूम रही शेरनी और सड़क के किनारे सो रहे व्यक्ति को सूंघकर फिर चले जाने का व्यापक रूप से प्रसारित वीडियो एआई-जनित है. यह भारत में हुई वास्तविक घटना को नहीं दर्शाता.
किताब / इतिहास
ऑड्रे ट्रुश्के के मुताबिक संस्कृत बाहर से आर्य लेकर आये थे और वेद सुनना औरतों के लिए वर्जित था
अमेरिकी इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के की नई पुस्तक "इंडिया: 5000 इयर्स ऑफ हिस्ट्री ऑन द सबकॉन्टिनेंट" भारतीय उपमहाद्वीप के पांच हजार वर्षों के इतिहास का एक व्यापक चित्रण प्रस्तुत करती है. द हिंदू में प्रकाशित जिया उस सलाम के साथ इस साक्षात्कार में ट्रुश्के ने भारतीय इतिहास के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपने विचार साझा किए हैं. ट्रुश्के के अनुसार, पहले मानव लगभग 120,000 वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में आए थे, जबकि आधुनिक भारतीयों के पूर्वज लगभग 65,000 वर्ष पहले यहां पहुंचे. सिंधु घाटी सभ्यता भारत में शहरी जीवन की शुरुआत का प्रतीक है, हालांकि इसका लाभ केवल कुछ लोगों को ही मिला था. सिंधु सभ्यता के चरम काल में भी अधिकांश निवासी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे. ट्रुश्के स्पष्ट रूप से बताती हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता आधुनिक हिंदू धर्म की पूर्ववर्ती नहीं थी. उनके अनुसार, हिंदू धर्म की जड़ें कई स्थानों से आती हैं, लेकिन वैदिक प्रवासियों (जिन्हें आर्य भी कहा जाता है) के साथ हिंदू धर्म के शुरुआती निशान मिलते हैं. ये वैदिक प्रवासी सिंधु सभ्यता के पतन के कुछ शताब्दियों बाद उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में आए थे और अपने साथ यज्ञ, बलिदान की परंपराएं तथा संस्कृत भाषा लेकर आए थे. द हिंदू में जिया उस सलाम ने उनसे उनकी नई किताब पर बात की है.
ऑड्रे ट्रुश्के एक अमेरिकी इतिहासकार और न्यू जर्सी के रटगर्स विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास की प्रोफेसर हैं. उनके शोध का फोकस मध्यकालीन दक्षिण एशिया, विशेष रूप से मुगल साम्राज्य और भारत के बहुसांस्कृतिक इतिहास पर है. उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय से स्नातक और कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की है.
ट्रुश्के अपने शोध और लेखन के कारण भारत और अमेरिका में हिंदू दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों के निशाने पर रही हैं. उनके काम, खासकर औरंगजेब और हिंदू धर्म पर टिप्पणियों, को हिंदुत्व समूहों ने हिंदू-विरोधी और पक्षपातपूर्ण माना है. 2021 में, उन्हें सोशल मीडिया पर बलात्कार और हत्या की धमकियां मिलीं, और "@hinduoncampus" जैसे समूहों ने उनके शोध को हिंदुओं के खिलाफ बताया. रटगर्स विश्वविद्यालय ने उनकी अकादमिक स्वतंत्रता का समर्थन किया. कुछ आलोचकों, जैसे रश्मि सामंत, ने उन पर छात्रों के अभिभावकों को स्टॉक करने का आरोप लगाया. ट्रुश्के ने हिंदुत्व को नाज़ीवाद से प्रेरित बताया, जिससे विवाद और गहरा हुआ. भारत में कुछ ने उन्हें ISI से जोड़ा या भारत में प्रवेश पर प्रतिबंध की मांग की. ट्रुश्के ने "हिंदुत्व हैरेसमेंट फील्ड मैनुअल" में योगदान देकर ऐसी धमकियों का जवाब देने की कोशिश की.
इस किताब के मुताबिक प्राचीन भारत में महिलाओं को वेद सुनने से रोका जाता था और उन्हें औपचारिक शिक्षा से वंचित रखा जाता था. हालांकि, ट्रुश्के बताती हैं कि यह भेदभाव पूर्ण नहीं था और कई महिलाओं ने संस्कृत में दक्षता हासिल की थी. वैदिक परंपरा के अलावा अन्य धार्मिक समुदाय भी थे, जैसे बौद्ध धर्म, जो लैंगिक प्रतिबंधों में भाग नहीं लेते थे. सातवीं शताब्दी में ह्वेनत्सांग द्वारा नालंदा में अध्ययन के संदर्भ में ट्रुश्के बताती हैं कि नालंदा के विनाश के बारे में विरोधाभासी खाते हैं. उनके अनुसार, कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों में नालंदा को लक्षित किया गया था. यदि इसे नुकसान हुआ भी था, तो यह फिर से बन गया था. 13वीं शताब्दी के अंत तक नालंदा में बौद्ध भिक्षुओं के निवास और अध्ययन के रिकॉर्ड मिलते हैं.
ट्रुश्के पंचतंत्र की कहानियों के सांस्कृतिक निर्यात के महत्व पर जोर देती हैं. उन्होंने प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है, जिससे उन्हें इस परंपरा के साहित्यिक और ऐतिहासिक मूल्य की मजबूत समझ मिली है. पंचतंत्र की कहानियां फारसी भाषी दुनिया में विभिन्न अनुवादों के रूप में काफी लोकप्रिय हुईं.
चोल राजवंश ने श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की और सुमात्रा तथा मलय प्रायद्वीप में प्रभाव स्थापित किया. ट्रुश्के का मानना है कि अधिकांश दक्षिण एशियाई इतिहास की पुस्तकों में चोलों को उचित स्थान मिला है. वे इस बात पर भी जोर देती हैं कि केवल राजाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय तमिल व्यापारियों के प्रभाव और उस काल के कारीगरों की उपलब्धियों पर भी ध्यान देना चाहिए. मध्यकालीन भारत के संदर्भ में ट्रुश्के शिवाजी को एक शूद्र राजा के रूप में प्रस्तुत करती हैं जो क्षत्रिय बनना चाहते थे ताकि वे एक विशेष प्रकार की भारतीय राजशाही का दावा कर सकें. वे बताती हैं कि शिवाजी अपने युग के एकमात्र शूद्र राजा नहीं थे. दक्षिण भारत के नायक शासकों ने अलग जाति बनने की कोशिश नहीं की, बल्कि शूद्र शासकों के रूप में सत्ता की अभिव्यक्ति के अन्य तरीके अपनाए.
ट्रुश्के के अनुसार, भारतीय इतिहास मानवीय प्रयासों से भरा है जिसने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और धार्मिक संभावनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला बनाई है. वे इस बात पर खेद व्यक्त करती हैं कि आजकल कई लोग भारतीय अतीत की उत्कृष्ट विविधता पर गर्व नहीं करते. उनका मानना है कि भारतीय इतिहास दुखद कहानियों से भरा है, लेकिन यह अन्य प्रकार की कहानियों से भी भरा है. वे भारतीय इतिहास की अविश्वसनीय मानवीय अनुभवों की श्रृंखला का सम्मान करने का प्रयास करती हैं.
"इंडिया: 5000 इयर्स ऑफ हिस्ट्री ऑन द सबकॉन्टिनेंट" पुस्तक प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित की गई है और इसकी कीमत ₹1,299 है. यह पुस्तक भारतीय उपमहाद्वीप के जीवन के शुरुआती संकेतों से लेकर 21वीं सदी तक के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक घटनाओं का दस्तावेजीकरण करती है.
उत्तर प्रदेश में शादियों के लिए 'सिटी-हॉपिंग' पर रोक
‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के लिए पीयूष खंडेलवाल की रिपोर्ट है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया आदेश के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार के स्टांप और पंजीकरण विभाग ने 6 जून को निर्देश जारी किए हैं कि अब किसी भी शहर में शादी का पंजीकरण तभी किया जाएगा जब दूल्हा, दुल्हन या उनके माता-पिता में से कोई उस शहर का निवासी हो. यह फैसला उन मामलों के चलते लिया गया है जहां परिवार की मर्जी के बिना भागकर शादी करने वाले जोड़े कानूनी सुरक्षा की मांग लेकर कोर्ट पहुंचे थे. कई ऐसे जोड़े थे जिन्होंने गाजियाबाद में शादी रजिस्टर करवाई, जबकि वे वहां के निवासी नहीं थे, इससे न्यायिक अधिकार क्षेत्र से जुड़े मुद्दे सामने आए.
वैकल्पिक मीडिया
"महारों का घमंड तोड़ो..!" बीड में दलित युवक पर जातिवादी हिंसा-लोहे की रॉड से पीटा,गहने लूटे
'द मूकनायक' की खबर है कि महाराष्ट्र के बीड जिले के शिरूर कासार तहसील के शिरापूर गट गांव में जातिगत हिंसा की एक भयावह घटना सामने आई है. दलित समुदाय के युवक वैभव खांडगाले (32) और उनके परिवार पर ऊंची जाति के लोगों ने सामूहिक हमला किया. वैभव पर यह हमला सिर्फ इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने एक दलित किशोर की मदद की थी. घटना ने गांव में गहरे पैठे जातिगत भेदभाव को उजागर किया है. 4 जून की शाम करीब 6 बजे वैभव खांडगाले अपने दफ्तर से घर लौटे. उन्होंने देखा कि गांव का एक दलित किशोर की तबियत बिगड़ी है और कोई उसकी मदद नहीं कर रहा. वैभव ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया. शाम 7:30 बजे जब वे घर लौटकर बाहर बैठे थे, तभी 10-12 ऊंची जाति (मराठा) के लोगों ने कार से आकर उन पर अचानक हमला कर दिया. इनमें वैभव के कुछ पुराने सहपाठी भी शामिल थे.
चश्मदीदों के मुताबिक, हमलावरों ने जातिसूचक गालियां देते हुए कहा, "खूप जास्त पैशाचा माज आहे का तुला? महाराचे लोकं लय माजलेत..." ("क्या तुझे पैसे की मस्ती चढ़ गई है? ये महार (दलित) लोग बहुत घमंडी हो गए हैं..."). उन्होंने लोहे की रॉड से वैभव की पिटाई की, उनका बटुआ (₹8,000) लूट लिया और घर के अंदर से उनकी मां के सोने के गहने भी चुरा लिए. भीड़ ने उन्हें सड़क पर घसीटा और लगातार पीटा, जबकि 200 से ज्यादा ग्रामीण सिर्फ देखते रहे, किसी ने हस्तक्षेप नहीं किया. जब वैभव के माता-पिता वापस आए, तो उनकी मां ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी जातिसूचक गालियां दी गईं और हल्की चोटें आईं. इसी दौरान, उस दलित युवक की मां, जिसे वैभव ने अस्पताल पहुंचाया था, पर भी हमला किया. पूरे दलित समुदाय को गालियां देकर सामाजिक बहिष्कार की धमकी दी गई. मुख्य आरोपी की पत्नी ने उलटा वैभव पर ही धमकाने और चोरी का एक झूठा प्रतिकर केस दर्ज कराया. द मूकनायक से बात करते हुए वैभव के भाई धनंजय ने बताया , " जब परिवार वैभव को अस्पताल ले जाने की कोशिश कर रहा था, तो ग्रामीणों ने रास्ता रोक दिया. मैंने रात 8:17 बजे पुलिस हेल्पलाइन को फोन किया, लेकिन मदद देर से पहुंची. वैभव को आधी रात तक बीड सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया. गांव में दलित समुदाय के 4-5 ही मकान है जबकि अधिकांश घर मराठा के हैं जिसकी वजह से उनका वर्चस्व है और दलित परिवार अन्याय होने पर बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं.
हमले की गंभीरता के बावजूद, अस्पताल प्रशासन ने मेडिको-लीगल केस (MLC) दर्ज नहीं किया. पुलिस अधीक्षक (SP) का कार्यालय पास में होने के बावजूद कोई पूछताछ नहीं की गई. जब पुलिस आई भी, तो उनके अधिकारियों ने पीड़ित से असंवेदनशील तरीके से बात की. वैभव के चेहरे पर सूजन थी और वे ट्रौमा के कारण बोल भी नहीं पा रहे थे, लेकिन अगले दिन अस्पताल ने बिना जांच किए वैभव को डिस्चार्ज कर दिया—जिससे लगता है कि वे FIR से बचना चाहते थे."
परिवार को अगले दिन शिरूर कासार पुलिस स्टेशन बुलाया गया, लेकिन पीएसआई और पीआई के आने तक उन्हें शाम 5 बजे तक इंतजार कराया गया. पुलिस ने शुरू में एफआईआर दर्ज करने से ही मना कर दिया, लेकिन दबाव के बाद रात 8 बजे एफआईआर लिखी गई. इस बीच, आरोपियों के परिवारों ने दलित नेताओं के साथ मिलकर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया. यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ. खांडगाले परिवार ने पुलिस पर आरोप लगाया है कि वह ऊंची जाति के आरोपियों के पक्ष में है. वे SC/ST (अत्याचार निवारण) एक्ट, 1989 के तहत त्वरित कार्रवाई और निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं.
शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष यात्रा फिर टली: अब 11 जून को होगा प्रक्षेपण, मौसम ने डाली रुकावट

'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि भारत के वायुसेना अधिकारी ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की बहुप्रतीक्षित अंतरिक्ष यात्रा एक बार फिर टल गई है. Axiom Space के Ax-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए निर्धारित यह प्रक्षेपण अब 11 जून 2025 को शाम 5:30 बजे (भारतीय समयानुसार) किया जाएगा. पहले यह मिशन 8 जून को लॉन्च होना था, लेकिन अब तक इसे तीन बार स्थगित किया जा चुका है. इसरो प्रमुख डॉ. वी. नारायणन ने बताया कि फ़्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से होने वाले इस प्रक्षेपण को मौसम की प्रतिकूल स्थितियों, विशेष रूप से प्रक्षेपण मार्ग में तेज़ हवाओं के कारण टालना पड़ा है. स्पेसएक्स ने पुष्टि की है कि यदि 11 जून को भी परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहीं, तो बैकअप विकल्प 12 जून सुबह 7:37 बजे (ET) उपलब्ध रहेगा.
Ax-4 मिशन में शुभांशु शुक्ला मिशन पायलट के रूप में शामिल हैं. उनके साथ इस मिशन का नेतृत्व करेंगी पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री और Axiom की कर्मचारी पैगी व्हिटसन, जबकि पोलैंड के स्लावोस उज्नान्स्की-विस्निएव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू भी इस मिशन का हिस्सा हैं. मिशन की लॉन्चिंग SpaceX के फाल्कन 9 रॉकेट और ड्रैगन कैप्सूल के माध्यम से की जाएगी. मिशन के तहत ये अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष स्टेशन पर 14 दिन बिताएंगे, जिसमें वे सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण से जुड़े वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी प्रदर्शन और शैक्षिक गतिविधियां संचालित करेंगे. शुक्ला का यह अभियान न केवल उनके व्यक्तिगत करियर के लिए, बल्कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भी मील का पत्थर माना जा रहा है. गौरतलब है कि भारत ने इस अंतरराष्ट्रीय मिशन में भाग लेने के लिए Axiom Space को 60 मिलियन डॉलर (लगभग 500 करोड़ रुपये) का भुगतान किया है. शुक्ला भविष्य में भारत के स्वदेशी मानव अंतरिक्ष मिशन 'गगनयान' के लिए भी संभावित उम्मीदवार हैं, जो 2027 तक लॉन्च किया जाना प्रस्तावित है.
मध्य प्रदेश में बड़े वेतन घोटाले की आशंका
मध्य प्रदेश के इतिहास के सबसे बड़े वेतन घोटालों में से एक के रूप में सामने आ सकने वाले मामले में, राज्य के लगभग 50,000 सरकारी कर्मचारियों, जो कुल कार्यबल का लगभग 9% हैं, को छह महीने से अधिक समय से वेतन नहीं मिला है. ये कर्मचारी कागजों पर नाम और आधिकारिक कोड के साथ मौजूद हैं, लेकिन उनका भुगतान रहस्यमय तरीके से लंबित है, जिससे संभावित वित्तीय अनियमितताओं और "घोस्ट" कर्मचारियों को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो रही हैं. टीएमसी सांसद सागरिका घोष ने भाजपा के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार को निशाने पर लेते हुए, इस "बड़े वेतन घोटाले" पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों की निष्क्रियता पर सवाल उठाया.
यूक्रेन ने रूस के सावस्लेका हवाई अड्डे में घुसकर तबाह किए दो लड़ाकू विमान
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि यूक्रेनी विशेष बलों ने रूस के निज़नी नोवगोरोड क्षेत्र में स्थित सावस्लेका हवाई अड्डे पर एक रात के हमले में दो रूसी लड़ाकू विमानों को नुकसान पहुंचाने का दावा किया है. यह हमला यूक्रेन के ऑपरेशन स्पाइडरवेब की शानदार सफलता के एक हफ्ते बाद हुआ, जिसमें यूक्रेनी ड्रोनों ने क्रेमलिन के परमाणु-सक्षम बमवर्षक विमानों को निशाना बनाया था. यह नवीनतम हमला रूस के युद्धक विमानों को नष्ट करने और उसकी सैन्य क्षमता को कमजोर करने की यूक्रेन की रणनीति का हिस्सा है, जबकि रूस पूर्वी यूक्रेन में अपनी गिरफ्त बढ़ा रहा है.
यूक्रेनी सेना के जनरल स्टाफ के अनुसार, विशेष संचालन बलों ने 9 जून की रात को सावस्लेका हवाई अड्डे पर हमला किया, जो यूक्रेन की सीमा से लगभग 400 मील (660 किमी) दूर है. इस हवाई अड्डे का उपयोग रूस मिग-31के लड़ाकू विमानों को तैनात करने के लिए करता है, जो किंझाल हाइपरसोनिक मिसाइलों से लैस हैं और यूक्रेनी सेना और शहरों पर हमलों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.
यूक्रेनी सेना ने दावा किया कि इस हमले में दो विमान, संभवतः एक मिग-31 और एक सु-30/34, को नुकसान पहुंचा. हालांकि, हमले की प्रकृति और नुकसान की सटीक सीमा के बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है. जनरल स्टाफ ने कहा, "लड़ाकू अभियान के परिणामों की पुष्टि की जा रही है."
चेबोक्सारी में ड्रोन हमला : सावस्लेका हमले के साथ-साथ, यूक्रेनी ड्रोन ने रूस के चुवाशिया गणराज्य में चेबोक्सारी शहर में VNIIR-प्रोग्रेस संयंत्र पर हमला किया. यह संयंत्र रूसी सेना के लिए महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरण, जैसे कोमेटा एंटेना, और इस्कंदर मिसाइल सिस्टम, लैंसेट और शाहेद कामिकाज़ ड्रोनों के लिए लक्ष्यीकरण तंत्र के घटक बनाता है. हमले के परिणामस्वरूप संयंत्र में बड़े पैमाने पर आग लग गई, और रूसी अधिकारियों ने क्षेत्र में वाणिज्यिक उड़ानों को निलंबित कर दिया.
चुवाशिया के गवर्नर ओलेग निकोलायेव ने पुष्टि की कि कम से कम दो ड्रोन संयंत्र पर गिरे, जिसके कारण उत्पादन को अस्थायी रूप से निलंबित करना पड़ा. हालांकि, उन्होंने दावा किया कि कोई हताहत नहीं हुआ. यूक्रेनी सेना ने कहा कि नुकसान की पूरी सीमा की जांच की जा रही है.
यूक्रेन की ड्रोन रणनीति पिछले हफ्ते, 1 जून 2025 को शुरू हुए ऑपरेशन स्पाइडरवेब ने यूक्रेन की सैन्य रणनीति में ड्रोन युद्ध की ताकत को प्रदर्शित किया. इस ऑपरेशन में यूक्रेनी सुरक्षा सेवा (एसबीयू) ने रूस के चार प्रमुख हवाई अड्डों-बेलाया, इवानोवो, डायगिलेवो, और ओलेन्या-पर एक साथ ड्रोन हमले किए. यूक्रेनी अधिकारियों ने दावा किया कि इस ऑपरेशन में 41 रूसी विमान, जिनमें रणनीतिक बमवर्षक और निगरानी विमान शामिल थे, नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने इसे "इतिहास की किताबों में दर्ज होने वाला" ऑपरेशन करार दिया. इस हमले में एफपीवी (फर्स्ट-पर्सन व्यू) ड्रोनों का उपयोग किया गया, जिन्हें यूक्रेन ने रूस के अंदर तस्करी करके ट्रकों में छिपाकर हवाई अड्डों के पास पहुंचाया. इस ऑपरेशन की योजना 18 महीने से अधिक समय तक चली और इसे यूक्रेन के सबसे साहसी हमलों में से एक माना जा रहा है.
इन सैन्य कार्रवाइयों के बीच, यूक्रेन और रूस के बीच युद्धबंदी आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी जारी रही. इस्तांबुल में शांति वार्ता के दौरान हुए समझौते के तहत, दोनों पक्षों ने 25 वर्ष से कम आयु के और गंभीर रूप से घायल सैनिकों का आदान-प्रदान पूरा किया. यदि यह समझौता पूरी तरह लागू हुआ, तो प्रत्येक पक्ष के 1,200 युद्धबंदियों और मृत सैनिकों के शवों का आदान-प्रदान होगा, जो इस युद्ध का सबसे बड़ा आदान-प्रदान होगा. ज़ेलेंस्की ने सोशल मीडिया पर कहा, "यह प्रक्रिया बहुत जटिल और संवेदनशील है. हम अपने लोगों को घर वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं."
रूस का जवाबी हमला : रूस ने यूक्रेन पर अपने हमलों को तेज कर दिया है. 8-9 जून की रात को, रूस ने 479 ड्रोनों और 20 मिसाइलों के साथ यूक्रेन पर अब तक का सबसे बड़ा रात का ड्रोन हमला किया. इन हमलों ने यूक्रेन के पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों, विशेष रूप से रिव्ने क्षेत्र को निशाना बनाया, जहां एक व्यक्ति की मौत की पुष्टि हुई. कीव में भी विस्फोटों की खबरें आईं, जहां एक कार्यालय भवन क्षतिग्रस्त हुआ. यूक्रेनी वायु सेना ने दावा किया कि उन्होंने 277 ड्रोन और 19 मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया, जिसमें केवल 10 ड्रोन या मिसाइल अपने लक्ष्य तक पहुंचे.
सुमी और डोनेट्स्क में स्थिति : रूस ने हाल के हफ्तों में सुमी और डोनेट्स्क क्षेत्रों में अपनी प्रगति तेज की है. सुमी में रूसी सेना क्षेत्रीय राजधानी से केवल 18 मील दूर पहुंच गई है, जो तीन साल पहले यूक्रेनी जवाबी हमले के बाद रूस के लिए एक बड़ा झटका था. सुमी के गवर्नर ओलेह ह्रिहोरोव ने कहा कि स्थिति "तनावपूर्ण लेकिन रक्षा बलों के नियंत्रण में" है. हालांकि, यूक्रेनी सेना ने रूस के इस दावे का खंडन किया कि उनकी सेना डोनेट्स्क से डीनीप्रोपेट्रोव्स्क क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है. मेजर आंद्री कोवालेव ने कहा, "यह जानकारी सत्य नहीं है. डोनेट्स्क में लड़ाई जारी है."
गाजा की नाकेबंदी तोड़ने निकले जहाज को इजरायल ने दबोचा
गाजा पट्टी, भूमध्य सागर के तट पर बसी एक छोटी सी भूमि, दशकों से इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का केंद्र रही है. 2007 से इजरायल की नाकेबंदी और बार-बार होने वाले सैन्य अभियानों ने गाजा को एक मानवीय संकट के कगार पर ला खड़ा किया है. इजरायली सेना ने गाजा की ओर जा रहे मानवीय सहायता जहाज मदलीन को अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में जब्त कर लिया है. इस जहाज पर मशहूर जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग सहित 12 कार्यकर्ता सवार थे, जिन्हें अब इजरायल द्वारा हिरासत में लिया गया है. यह जहाज फ्रीडम फ्लोटिला कोएलिशन द्वारा संचालित था और इसका उद्देश्य गाजा में इजरायल की नाकेबंदी को चुनौती देना और वहां भुखमरी का सामना कर रहे फिलिस्तीनियों के लिए मानवीय सहायता पहुंचाना था.
मदलीन जहाज 1 जून 2025 को इटली के सिसिली के कटानिया बंदरगाह से रवाना हुआ था. यह जहाज गाजा के लिए प्रतीकात्मक मात्रा में सहायता सामग्री जैसे कि बेबी फॉर्मूला, चावल, आटा, चिकित्सा आपूर्ति और बच्चों के लिए कृत्रिम अंग ले जा रहा था. इसका मिशन गाजा में इजरायल की 17 साल पुरानी नाकेबंदी को तोड़ना और वहां के मानवीय संकट को वैश्विक स्तर पर उजागर करना था.
4 जून 2025 को सुबह करीब 2 बजे स्थानीय समय पर, इजरायली नौसेना ने अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में, गाजा से लगभग 100 नॉटिकल मील (185 किमी) दूर, इस जहाज को घेर लिया. कार्यकर्ताओं के अनुसार, इजरायली सेना ने जहाज पर "सफेद पेंट जैसा पदार्थ" छिड़का, संचार प्रणाली को जाम किया और रेडियो पर परेशान करने वाली आवाजें चलाईं. इसके बाद कमांडो ने जहाज पर कब्जा कर लिया और सभी 12 कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया.
ग्रेटा थनबर्ग ने एक पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो में कहा, "अगर आप यह वीडियो देख रहे हैं, तो हमें इजरायली सेना या उनके समर्थन वाली ताकतों ने अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में अपहरण कर लिया है." उन्होंने स्वीडिश सरकार पर दबाव डालने की अपील की ताकि उनकी और अन्य कार्यकर्ताओं की रिहाई सुनिश्चित की जा सके.
इजरायल ने इस कार्रवाई को अपनी नौसेना नाकेबंदी को लागू करने का हिस्सा बताया, जो 2007 से गाजा पर लागू है. इजरायल के रक्षा मंत्री इजरायल काट्ज ने कहा कि कार्यकर्ताओं को अशदोद बंदरगाह पर ले जाया जाएगा, जहां उन्हें 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले की वीडियो फुटेज दिखाई जाएगी. इजरायल ने इस मिशन को "सेल्फी यॉट" और "प्रचार स्टंट" करार देते हुए कहा कि जहाज पर मौजूद सहायता सामग्री को "वास्तविक मानवीय चैनलों" के माध्यम से गाजा पहुंचाया जाएगा.
इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं. तुर्की ने इस कार्रवाई को "अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में जघन्य हमला" करार दिया और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया. संयुक्त राष्ट्र के फ्रांसेस्का अल्बनीज ने कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग की. फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-नोएल बैरो ने कहा कि उनकी सरकार ने कार्यकर्ताओं को यात्रा के जोखिमों के बारे में पहले ही चेतावनी दी थी और इजरायल से किसी भी घटना से बचने का आग्रह किया था. स्पेन ने इजरायली दूतावास के प्रभारी को तलब कर इस घटना का विरोध दर्ज किया. स्वीडन का विदेश मंत्रालय स्थिति पर नजर रख रहा है और जरूरत पड़ने पर थनबर्ग को कांसुलर सहायता प्रदान करने की बात कर रहा है.
फिलिस्तीन के पक्ष में वैश्विक माहौल दुनियाभर में गाजा में मानवीय संकट और इजरायल की नाकेबंदी के खिलाफ आवाजें तेज हो रही हैं. गाजा में 2 मार्च 2025 से शुरू हुई पूर्ण नाकेबंदी, जिसे मई में आंशिक रूप से हटाया गया, ने वहां भुखमरी और चिकित्सा आपूर्ति की कमी को और गहरा कर दिया है. संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के आदेशों का पालन करने और गाजा में मानवीय सहायता की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करने का दबाव डाला है.
फ्रीडम फ्लोटिला कोएलिशन जैसे संगठन लंबे समय से गाजा की नाकेबंदी को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. 2010 में, एक अन्य फ्लोटिला जहाज मावी मारमारा पर इजरायली कमांडो के हमले में 9 कार्यकर्ता मारे गए थे, जिसके बाद से इस तरह के मिशनों पर खतरे बढ़ गए हैं. मई 2025 में, फ्लोटिला के एक अन्य जहाज कॉन्सियन्स पर माल्टा के तट पर ड्रोन हमला हुआ, जिसके लिए कार्यकर्ताओं ने इजरायल को जिम्मेदार ठहराया.
इज़रायली नाकेबंदी तोड़ने का एक समांतर प्रयास "ग्लोबल मार्च टू गाज़ा" है, जो ट्यूनीस से मिस्र होते हुए गाज़ा की ओर जाएगा. मक़तूब मीडिया के अनुसार, कई भारतीय भी इस मार्च में शामिल हो गए हैं. मुंबई से एक प्रतिभागी सना सैयद ने कहा, “हमने अपने स्क्रीन पर बच्चों को टुकड़ों में बँटे हुए देखा है, और मैंने तो बिना एनेस्थीसिया के बच्चों के अंग काटते हुए भी देखा है.” उन्होंने आगे कहा, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि हम उसी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ आईपीएल हो रहा है और बच्चे मर रहे हैं.”
वास्तविक स्थिति और हित गाजा में 600 दिनों से अधिक समय से चल रहे युद्ध और नाकेबंदी ने 54,927 लोगों की जान ले ली है. भुखमरी और चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण वहां के 21 लाख लोग गंभीर संकट में हैं. इजरायल का दावा है कि नाकेबंदी हमास को हथियारों की पूर्ति रोकने के लिए जरूरी है. वे इस तरह के मिशनों को प्रचार स्टंट मानते हैं और कहते हैं कि सहायता सामग्री को उनके नियंत्रित चैनलों के माध्यम से पहुंचाया जाएगा.
क्या हो रहा है फिलिस्तीन के पक्ष में? दुनियाभर में फिलिस्तीन के समर्थन में आंदोलन बढ़ रहे हैं. सोशल मीडिया पर #FreedomFlotilla और #BreakTheSiege जैसे हैशटैग ट्रेंड करते रहे. कार्यकर्ता और संगठन इजरायल की नाकेबंदी को "अवैध" और "अमानवीय" बताते हुए इसकी निंदा कर रहे हैं. कई देशों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय संगठन गाजा में मानवीय सहायता की मांग कर रहे हैं.
आगे क्या? इजरायल ने घोषणा की है कि सभी 12 कार्यकर्ताओं को उनके देशों में वापस भेजा जाएगा. हालांकि, फ्रीडम फ्लोटिला कोएलिशन ने मांग की है कि कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाए और उनकी सहायता सामग्री गाजा पहुंचाई जाए. कार्यकर्ताओं की वर्तमान स्थिति और जहाज का ठिकाना अभी स्पष्ट नहीं है, जिससे उनके समर्थकों में चिंता बढ़ रही है.
चलते-चलते
पटौदी ट्रॉफी का नाम बदलने से क्रिकेट जगत में खासा विवाद
पटौदी ट्रॉफी का नाम बदलकर तेंदुलकर-एंडरसन ट्रॉफी रखने के फैसले ने क्रिकेट जगत में खासा विवाद छेड़ दिया है. यह नाम परिवर्तन केवल एक बाहरी बदलाव नहीं है, बल्कि यह भारतीय क्रिकेट के अपने इतिहास को देखने के तरीके में एक गहरे बदलाव को दर्शाता है. इस विवाद के केंद्र में मंसूर अली खान "टाइगर" पटौदी की विरासत है, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट की भावना और पहचान को बदला. उनके प्रभाव को समझना जरूरी है, ताकि यह समझा जा सके कि क्यों कई लोग चाहते हैं कि ट्रॉफी उनके नाम पर बनी रहे. यद्यपि तेंदुलकर और एंडरसन दोनों ही महान क्रिकेटर हैं, मगर पटौदी नाम को हटाना उन जड़ों और रिश्तों की अनदेखी है, जिन्होंने पीढ़ियों से भारत-इंग्लैंड क्रिकेट को परिभाषित किया है.
पटौदी ट्रॉफी क्या थी? पटौदी ट्रॉफी 2007 में भारत की इंग्लैंड में पहली टेस्ट सीरीज के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में शुरू की गई थी. यह ट्रॉफी पाटौदी परिवार के नाम पर रखी गई थी, खासकर इफ्तिखार अली खान पाटौदी (जो इंग्लैंड और भारत दोनों के लिए टेस्ट खेल चुके खिलाड़ी थे) और उनके पुत्र मंसूर अली खान पाटौदी, जिन्हें "टाइगर" पाटौदी के नाम से जाना जाता है. यह ट्रॉफी दोनों देशों के साझा क्रिकेट इतिहास और जटिल रिश्तों का प्रतीक थी. पारंपरिक रूप से, जब भारत इंग्लैंड दौरा करता था, तो सीरीज विजेता को पाटौदी ट्रॉफी मिलती थी. भारत में इसी तरह की सीरीज के लिए एंथनी डीमेलो ट्रॉफी खेली जाती है, जो बीसीसीआई के संस्थापक के नाम पर है.
फैसला गलत क्यों है? पटौदी ट्रॉफी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि दो क्रिकेट संस्कृतियों और इतिहासों के बीच एक पुल थी. और, जिसे उपनिवेशवादी संबंधों और स्वतंत्रता के बाद के गर्व का प्रतीक समझा जाता था. इसे हटाने से वह संबंध टूट जाता है. इसके अलावा, एक ऐसी ट्रॉफी को हटाकर, जो गहरे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का सम्मान करती थी, उसकी जगह हाल के सितारों के नाम पर ट्रॉफी देना क्रिकेट की विरासत को लोकप्रियता की दौड़ या मार्केटिंग अभ्यास तक सीमित कर सकता है. पूरी रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है.
पाठकों से अपील :
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