10/07/2025| गुजरात में पुल गिरा, 11 मरे| वायुसेना का जगुआर दुर्घटनाग्रस्त, दोनों पायलटों की मौत| गांधी का ‘पटना मार्च’| ‘कृपया मुझे असम ले चलिए’| ब्राज़ील ने सम्मान दिया धंधा नहीं| हसीना का लीक ऑडियो
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
गुजरात : गम्भीर पुल गिरा, 11 मरे, 10 घायल
वायुसेना का जगुआर दुर्घटनाग्रस्त, दोनों पायलटों की मौत
राहुल गांधी ने ‘पटना मार्च’ में चुनाव आयोग को चेताया, “कानून के लिए काम करें, भाजपा के लिए नहीं”
बिहार : विशेष पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, 10 याचिकाएं
मांगे गए 11 दस्तावेजों में से पांच जन्म तिथि या जन्म स्थान नहीं दर्शाते
लालू की सजा बढ़ाई जाए, हाईकोर्ट ने सीबीआई की अपील स्वीकार की
अब ‘टिस’ मोदी सरकार के निशाने पर : कांग्रेस
मणिपुर जातीय हिंसा : हाईकोर्ट ने एनआईए से प्रगति रिपोर्ट मांगी
मिजोरम : चकमा जिला परिषद में राज्यपाल का शासन
‘कृपया मुझे असम ले चलिए’: बांग्लादेश से आई एक बेबस पुकार ने क्या उजागर किया!
एयर इंडिया विमान हादसा: ईंधन कंट्रोल स्विच जांच के दायरे में, प्रारंभिक रिपोर्ट शुक्रवार तक संभावित
CBFC ने ‘जेएसके : जानकी वर्सेज स्टेट ऑफ केरल’ से मांगे अब सिर्फ दो संशोधन, हाईकोर्ट को दी जानकारी
नजीब अहमद : सीबीआई ने बंद की जांच, लेकिन मां की उम्मीद अब भी ज़िंदा
यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा ने बीजेपी नेताओं के साथ वंदे भारत ट्रेन में यात्रा की थी, केरल में विवाद
श्रवण गर्ग | चंद्रचूड़ बंगला विवाद : सुप्रीम कोर्ट का पत्र क्या सरकार को चेतावनी है ?
यूरोपीय संघ की 'सुरक्षित देशों' की सूची में भारत शामिल, शरणार्थियों की दलील सुने बिना खारिज होंगे मामले
भारतीय नर्स को 16 जुलाई को फांसी दी जाएगी, पर परिवार को कोई सूचना नहीं
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की 'हिंदूफोबिया' रिपोर्ट, 75% घटनाएं खुद की परिभाषा पर भी खरी नहीं उतरीं
ब्राज़ील ने भारत के ‘आकाश’ मिसाइल सिस्टम की खरीद पर लगाई रोक, मोदी को मिला सर्वोच्च नागरिक सम्मान, लेकिन रक्षा सौदे में झटका
लीक ऑडियो से खुलासा: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों पर 'जहाँ दिखें, वहीं गोली मारो' का दिया था आदेश
गाज़ा में खाद्य वितरण केंद्रों पर 'जनसंहार' से मददकर्मी पस्त, 1500 से ज्यादा डॉक्टर मारे गए
ऋषि सुनक एक बार फिर वॉल स्ट्रीट बैंक लौटे, गोल्डमैन सैक्स ने बनाया सीनियर सलाहकार
एक्स (X) की सीईओ ने दिया इस्तीफा
गुजरात : गम्भीर पुल गिरा, 11 मरे, 10 घायल
गुजरात के वडोदरा जिले में महिसागर नदी पर बना गम्भीर पुल बुधवार सुबह ढह गया, जिससे कई वाहन नदी में गिर गए. रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हादसे में 11 लोगों की मौत हो गई और 10 लोग घायल हो गए. यह पुल 1985 में बना था और वडोदरा तथा आणंद जिलों को जोड़ता था, जो मध्य गुजरात और सौराष्ट्र के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क मार्ग है. दुर्घटना के समय पुल पर ट्रक, ईको वैन, पिकअप वैन और ऑटो-रिक्शा सहित कई वाहन थे. ज्यादातर नदी में गिर गए. पुल के गिरने से वडोदरा और आणंद के बीच का महत्वपूर्ण संपर्क टूट गया है.
पुल के गिरने का कारण उसकी उम्र और रखरखाव की कमी को बताया जा रहा है. हादसे के बाद इस मार्ग पर यातायात को डायवर्ट कर दिया गया. स्थानीय लोगों का आरोप है कि मरम्मत की मांगें अनसुनी की गई थीं.
इसी वर्ष और भी पुल गिर चुके हैं : “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार भारत में पुलों का गिरना, चाहे वे निर्माणाधीन हों या पूरी तरह बन चुके हों, दुर्भाग्यवश आम बात है. इसी वर्ष छह महीनों में देशभर में कई बड़े पुल गिर चुके हैं. पिछले साल, बिहार में केवल 20 दिनों के भीतर लगभग 12 पुल गिर गए थे. इन घटनाओं के पीछे के सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं कि क्या यह खराब रखरखाव, घटिया निर्माण सामग्री या अन्य संरचनात्मक समस्याओं के कारण हुआ?
वडोदरा के गम्भीर पुल के पहले 15 जून को, पुणे के पास इंद्रायणी नदी पर बने पुराने लोहे के पैदल पुल के गिरने से चार लोगों की मौत हो गई थी और 18 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए थे. 23 मार्च को अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन लाइन पर खंभों के बीच कंक्रीट गर्डर लगाने के लिए इस्तेमाल की जा रही एक विशाल गैंट्री अपनी जगह से फिसलकर गिर गई थी.
वायुसेना का जगुआर दुर्घटनाग्रस्त, दोनों पायलटों की मौत
राजस्थान के चूरू जिले के भानुड़ा गांव के पास भारतीय वायुसेना का एक जगुआर लड़ाकू विमान बुधवार को दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इस हादसे में वायुसेना के दोनों पायलटों की मौत हो गई. यह घटना रतनगढ़ क्षेत्र में एक नियमित प्रशिक्षण मिशन के दौरान हुई. विमान का मलबा एक खेत में पाया गया और घटनास्थल पर मानव अवशेष भी मिले हैं.
भारतीय वायुसेना ने अपने बयान में इस घटना की पुष्टि की और बताया कि दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित की गई है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, विमान हवा में असंतुलित हो गया था और फिर खेत में गिर गया. इस साल जगुआर विमान का तीसरा हादसा है, पहला मार्च, दूसरा अप्रैल और अब तीसरा जुलाई में हुआ है.
राहुल गांधी ने ‘पटना मार्च’ में चुनाव आयोग को चेताया, “कानून के लिए काम करें, भाजपा के लिए नहीं”

चुनाव आयोग से "कानून के लिए काम करें, भाजपा के लिए नहीं" की अपील करते हुए विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बुधवार को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को "महाराष्ट्र मॉडल के तहत वोटरों की संख्या बढ़ाने की कोशिश" के खिलाफ चेतावनी दी.
राहुल गांधी ने खुले ट्रक पर राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एमएल-लिबरेशन) के दीपांकर भट्टाचार्य, सीपीआई के डी. राजा और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी के साथ मार्च किया. यह मार्च इनकम टैक्स राउंडअबाउट से शुरू होकर विधान सभा से 500 मीटर दूर बिहार मुख्य निर्वाचन कार्यालय तक जाना था, लेकिन प्रदर्शनकारियों को विधान सभा के पास रोक दिया गया, जिससे मार्च वहीं समाप्त हो गया.
राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा, "चुनाव आयोग, आपका काम भाजपा के लिए नहीं, कानून के लिए काम करना है. आपको अपना काम करना चाहिए, वर्ना, कानून हम सबको पकड़ लेगा."
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पक्षपात कर रही है और "लोगों के वोट चुराने" की कोशिश कर रही है. तेजस्वी यादव ने भी चुनाव आयोग पर "मोदी आयोग" बनने का आरोप लगाया और कहा कि बिहार में लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश हो रही है. मुकेश सहनी ने विशेष गहन पुनरीक्षण को "काला कानून" कहा और इसे रद्द करने की मांग की.
बिहार : विशेष पुनरीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, 10 याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की बेंच 10 जुलाई को उन दलीलों पर सुनवाई करेगी, जो बिहार में चुनाव से पहले चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के पक्ष और विपक्ष में हैं. यह पुनरीक्षण चुनाव आयोग द्वारा शुरू किया गया है, और अदालत यह तय करेगी कि फिलहाल इस प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए या नहीं. विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, एनजीओ और वकीलों द्वारा दायर 10 से अधिक याचिकाएं इस बेंच के समक्ष सूचीबद्ध की गई हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यदि पुनरीक्षण प्रक्रिया को रद्द नहीं किया गया, तो बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को उनके अधिकार से वंचित किया जा सकता है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित होंगे. वहीं, कुछ याचिकाएं इसके समर्थन में भी दायर की गई हैं.
मांगे गए 11 दस्तावेजों में से पांच जन्म तिथि या जन्म स्थान नहीं दर्शाते
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान जिन 11 दस्तावेजों की मांग की जा रही है, उनमें कम से कम 5 दस्तावेज ऐसे हैं, जो आवेदक की जन्म तिथि या जन्म स्थान नहीं दर्शाते, जबकि यह मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए अनिवार्य शर्त है.
“द हिंदू” के अनुसार, आधार कार्ड, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र या पैन कार्ड को 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया है. हालांकि, अक्सर लोग इन्हीं दस्तावेजों का उपयोग करके वे 11 आवश्यक दस्तावेज बनवाते हैं, जिनकी जरूरत बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान नाम जोड़ने के लिए पड़ रही है.
चुनाव आयोग के निर्देशानुसार, 11 दस्तावेजों की सूची केवल संकेतात्मक है, न कि अंतिम. लेकिन इनमें से कई दस्तावेज़ आवेदक की जन्म तिथि या जन्म स्थान नहीं दर्शाते. इसका अर्थ है कि दस्तावेज़ी प्रक्रिया में जन्म तिथि/स्थान प्रमाणित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि जो दस्तावेज़ आमतौर पर लोगों के पास होते हैं (जैसे आधार, पैन, मतदाता पहचान पत्र), वे सूची में नहीं हैं और जिनकी जरूरत है, उनको बनवाना बिहार जैसे राज्य में आसान नहीं है.
लालू की सजा बढ़ाई जाए, हाईकोर्ट ने सीबीआई की अपील स्वीकार की
झारखंड हाईकोर्ट ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की देवघर कोषागार घोटाले में सजा बढ़ाने के लिए सीबीआई की अपील को स्वीकार कर लिया है. सीबीआई ने निचली अदालत द्वारा लालू प्रसाद को दी गई साढ़े तीन साल की सजा को कम बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग की थी, क्योंकि इस अपराध के लिए अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान है. लालू यादव स्वास्थ्य कारणों से फिलहाल जमानत पर हैं. सीबीआई ने दलील दी कि लालू यादव इस घोटाले के मुख्य आरोपी और साजिशकर्ता हैं, इसलिए उनकी सजा को जगदीश शर्मा (जो इसी मामले में सात साल की सजा काट रहे हैं) के बराबर किया जाए.
अब ‘टिस’ मोदी सरकार के निशाने पर : कांग्रेस
कांग्रेस ने मंगलवार को आरोप लगाया कि अब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) नरेंद्र मोदी सरकार के निशाने पर है. पार्टी का दावा है कि शिक्षा मंत्रालय ने इस संस्थान को केवल दिशाहीन छोड़ने और भ्रष्ट लोगों को वहां तबाही मचाने दी है. पार्टी ने यह आरोप के टिस के चांसलर डी. पी. सिंह का नाम सीबीआई की एफआईआर में आने के बाद लगाया और उनकी तत्काल बर्खास्तगी की मांग की.
कांग्रेस के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों पर कब्जा करने का हर संभव कोशिश की है. पहले, जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय और विश्वभारती विश्वविद्यालय निशाने पर थे और अब टाटा इंस्टीट्यूट पर हमला हो रहा है. उन्होंने “एक्स” पर पोस्ट किया, “पहले यह संस्थान स्वतंत्र रूप से संचालित होता था, लेकिन जुलाई 2023 में, यूजीसी ने यह कहते हुए संस्थान के नेतृत्व की नियुक्ति का अधिकार अपने हाथ में ले लिया कि इसकी अधिकांश फंडिंग केंद्र सरकार से आती है.”
मणिपुर जातीय हिंसा : हाईकोर्ट ने एनआईए से प्रगति रिपोर्ट मांगी
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मणिपुर के जिरीबाम जिले में नवंबर में हुई जातीय हिंसा की जांच की प्रगति रिपोर्ट अभी तक प्रस्तुत नहीं की है, जबकि वहां छह महिलाओं और बच्चों के अपहरण के बाद उनकी हत्या को सात महीने बीत चुके हैं. इस मामले में मणिपुर हाईकोर्ट ने एजेंसी को संबंधित अदालत के समक्ष प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. “अगर चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है, तो इस मामले को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, “द हिंदू” में अभिनय लक्ष्मण ने विस्तार से इस बारे में जानकारी दी है.
मिजोरम : चकमा जिला परिषद में राज्यपाल का शासन
“द वायर” में संगीता बरुआ की रिपोर्ट है कि मिज़ोरम में चकमा स्वायत्त जिला परिषद पर से भाजपा का नियंत्रण छिन जाने के एक महीने से भी कम समय बाद, राज्यपाल और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी.के. सिंह ने लगातार राजनीतिक अस्थिरता के आधार पर इस परिषद में राज्यपाल शासन लागू कर दिया है. इस साल की शुरुआत में परिषद पर बीजेपी का नियंत्रण स्थापित होना एक बड़ी जीत मानी गई थी, क्योंकि इससे पहले पार्टी मिज़ोरम के मुख्य रूप से चकमा बहुल इलाकों में अपनी एकमात्र विधानसभा सीट हार चुकी थी.
‘कृपया मुझे असम ले चलिए’: बांग्लादेश से आई एक बेबस पुकार ने क्या उजागर किया!
'स्क्रोल' के लिए रोकिबुज़ ज़मां और राघव कक्कड़ ने असम से लगातार बंदूक की नोंक पर निर्वासित किए जा रहे लोगों का हाल जाना है. उन्होंने लिखा— ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान ‘स्क्रोल’ को बांग्लादेश से एक फोन कॉल आया. “मेरा यहाँ कोई नहीं है. कृपया मुझे असम ले चलिए,” कॉलर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा. ये पुकार सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं थी, बल्कि उस डर, अन्याय और टूटे हुए जीवन का प्रतिनिधित्व थी, जो आज असम के गांवों में फैल रहे हैं. एक ऐसे राज्य में जहाँ लोग दशकों से रह रहे हैं, कोर्ट के आदेश उनके पक्ष में हैं, वहां भी उन्हें अचानक विदेशी घोषित कर दिया जाना और सीमा पार फेंक देना - ये अब सच्चाई बन चुकी है.
भारत के सबसे बड़े डिटेंशन सेंटर मटिया कैंप की खिड़कियों के पीछे परछाइयां घूम रही थीं. ये चार मंज़िला सख़्त और भयावह इमारतें अब तक उन लोगों के लिए सबसे बुरा मुक़द्दर थीं जिन्हें असम में विदेशी घोषित किया गया था, लेकिन इस साल मई 2025 में हालात तब बदल गए जब असम सरकार ने सैकड़ों लोगों को जबरन बंदूक की नोक पर बांग्लादेश भेजना शुरू कर दिया. ‘स्क्रोल’ ने उन लोगो से मुलाकात की, जिनकी जिंदगियां इस नीति से उखड़ गईं. एक युवा लड़का जो अपने लापता पिता की तलाश कर रहा है, एक परिवार जिसका सदस्य कोर्ट से निर्वासन पर रोक का आदेश होने के बावजूद बांग्लादेश धकेल दिया गया और एक आदमी जो डर के मारे अब हर रात अपने घर से दूर सोता है ताकि गिरफ़्तारी से बच सके.
एयर इंडिया विमान हादसा: ईंधन कंट्रोल स्विच जांच के दायरे में, प्रारंभिक रिपोर्ट शुक्रवार तक संभावित
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि अहमदाबाद में 12 जून को हुए एयर इंडिया बोइंग 787 ड्रीमलाइनर हादसे की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट शुक्रवार तक जारी हो सकती है. जांच अब विमान के इंजन के फ्यूल कंट्रोल स्विचेस पर केंद्रित हो गई है, जो विमान के टेक-ऑफ के तुरंत बाद क्रैश का अहम कारण हो सकते हैं. हादसे में 241 यात्रियों सहित 270 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. यह पिछले दस वर्षों में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा विमान हादसा माना जा रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, ब्लैक बॉक्स से मिले डेटा और बोइंग द्वारा कराए गए सिमुलेशन से संकेत मिले हैं कि इंजन की थ्रस्ट (गति) अचानक बंद हुई, जिसकी वजह से विमान 650 फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद गिर गया. हालांकि अब तक किसी तकनीकी खराबी या मैन्युफैक्चरिंग दोष की पुष्टि नहीं हुई है. एक वरिष्ठ अमेरिकी एविएशन विशेषज्ञ जॉन कॉक्स ने कहा कि "ईंधन स्विच को गलती से बंद करना संभव नहीं है और अगर किया जाए तो उसका असर तत्काल इंजन बंद होने के रूप में दिखता है."
इस दुर्घटना को लेकर संसदीय समिति बुधवार को नागरिक उड्डयन क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा करेगी, जिसमें मंत्रालय और विमानन कंपनियों के अधिकारी भी जवाब देंगे.
रिपोर्ट से पहले भारत सरकार ने बदला रुख: जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को लेकर आलोचना के बीच भारत सरकार ने यूएन की अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संस्था (ICAO) के विशेषज्ञ को पर्यवेक्षक का दर्जा देने का फैसला किया है. इससे पहले भारत ने यूएन की भागीदारी से इनकार किया था.
कार्टून
CBFC ने ‘जेएसके : जानकी वर्सेज स्टेट ऑफ केरल’ से मांगे अब सिर्फ दो संशोधन, हाईकोर्ट को दी जानकारी
लगातार अपनी कार्यशैली के चलते फिल्ममेकर्स की आलोचना का झेल रहा केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड फिर से सुर्खियों में है. लंबे समय से अटकी पड़ी फिल्म ‘जेएसके : जानकी वर्सेज स्टेट ऑफ केरल’ को लेकर सेंसर बोर्ड (CBFC) ने अब सिर्फ दो मामूली बदलावों की मांग की है, जो उसने केरल हाईकोर्ट में दायर हलफनामे में स्पष्ट किया है. पहले बोर्ड ने फिल्म में 96 कट की सिफारिश करते हुए क्लियरेंस देने से इनकार कर दिया था. अब उसने अदालत को बताया है कि फिल्म को मंजूरी देने के लिए केवल दो शर्तें रह गई हैं.
नजीब अहमद : सीबीआई ने बंद की जांच, लेकिन मां की उम्मीद अब भी ज़िंदा
एक नौजवान छात्र, एक मां की टूटती लेकिन न झुकती उम्मीद और एक लापता चेहरा जो आज भी जेएनयू के गलियारों और देश के ज़मीर में सवाल की तरह गूंजता है. 27 वर्षीय नजीब अहमद, जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में एमएससी बायोटेक्नोलॉजी के छात्र थे, 15 अक्तूबर 2016 को अचानक लापता हो गए थे. आज करीब नौ साल बाद भी उनका कोई सुराग नहीं मिल सका है. दिल्ली पुलिस से लेकर सीबीआई तक, हर एजेंसी ने जांच की लेकिन नजीब कहां गया, ये आज भी एक रहस्य बना हुआ है. अब ताज़ा जानकारी ये है कि 30 जून 2025 को दिल्ली की राउज़ एवेन्यू कोर्ट ने सीबीआई की क्लोज़र रिपोर्ट को मंज़ूरी दे दी, जिसमें कहा गया कि जांच एजेंसी को नजीब के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल सकी.
कोर्ट ने माना कि एजेंसी ने "हर पहलू" से जांच की, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. हालांकि, उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर में रहने वाली नजीब की मां फ़ातिमा नफ़ीस के लिए ये मामला सिर्फ एक फाइल नहीं है. नजीब की मां ने आरोप लगाया था कि जांच एजेंसियां सच्चाई दबा रही हैं और दोषियों को बचाया जा रहा है. उन्होंने सीबीआई पर "राजनीतिक दबाव में काम करने" का भी आरोप लगाया था. नजीब की गुमशुदगी भारतीय छात्र राजनीति, संस्थागत जवाबदेही और न्याय प्रणाली की सीमाओं का एक भयावह उदाहरण बन गई है.
यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा ने बीजेपी नेताओं के साथ वंदे भारत ट्रेन में यात्रा की थी, केरल में विवाद
हरियाणा पुलिस ने पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में जब यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को गिरफ्तार किया तो भाजपा ने केरल सरकार की जमकर आलोचना की थी. क्योंकि केरल के पर्यटन विभाग ने ज्योति मल्होत्रा को अन्य सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के साथ राज्य के विभिन्न पर्यटन स्थलों के प्रचार के लिए आमंत्रित किया था. लेकिन, “द हिंदू” को प्राप्त एक वीडियो से पता चला है कि यही यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा केरल में दूसरी वंदे भारत ट्रेन के उद्घाटन के समय भारतीय रेलवे द्वारा भी आमंत्रित की गई थी. उस यात्रा में वह अन्य आमंत्रित अतिथियों के साथ थी, जिनमें बीजेपी नेता और उस समय के केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन और तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन भी शामिल थे. बहरहाल, यह विवाद अब राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है, जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं.
टिप्पणी
श्रवण गर्ग | चंद्रचूड़ बंगला विवाद : सुप्रीम कोर्ट का पत्र क्या सरकार को चेतावनी है ?
इस खुलासे से कि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से सरकारी आवास ख़ाली कराने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को पत्र लिखा, क्या देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की जनता में प्रतिष्ठा कम नहीं हुई होगी ? या फिर क्या ऐसा हुआ होगा कि चंद्रचूड़ साहब और उनके परिवार के प्रति जनता की सहानुभूति बढ़ गई और चर्चा या आलोचना ‘सुप्रीम कोर्ट प्रशासन’ द्वारा उठाए गए अभूतपूर्व कदम और सरकार की भूमिका पर केंद्रित हो गई ?
देश भर के अख़बारों/ टीवी चैनलों ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित/प्रसारित किया था कि सेवा-निवृत्ति के आठ महीने बाद भी चंद्रचूड़ साहब ने सुप्रीम कोर्ट के ‘आवास पूल’ में मुख्य न्यायाधीश के लिए निर्धारित बंगला ख़ाली नहीं किया.न्यायाधीशों को सेवा-निवृत्ति के बाद केवल छह माह तक ही सरकारी आवास के उपयोग की पात्रता है. सुप्रीम कोर्ट को चार वर्तमान न्यायाधीशों के लिए आवासों की आवश्यकता है.
चंद्रचूड़ साहब ने स्पष्टीकरण में जिन बातों का खुलासा किया उनमें प्रमुख यह था कि उनकी बेटियाँ गंभीर जेनेटिक और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रही हैं. उनके इलाज के लिये आवास में एक विशेष प्रकार के चिकित्सीय सेट-अप की ज़रूरत पड़ती है. उन्होंने सरकार से किराए पर वैकल्पिक आवास उपलब्ध करवाने की प्रार्थना की थी जिसे स्वीकार कर लिया गया था.
चंद्रचूड़ साहब ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से दिसंबर 2024 में निवेदन किया था कि वर्तमान आवास में 30 अप्रैल तक रहने अनुमति प्रदान की जाए. अनुमति दे दी गई थी.उन्होंने न्यायमूर्ति खन्ना से 28 अप्रैल को पुनः आवेदन किया कि चूँकि वैकल्पिक आवास प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है अनुमति की अवधि को 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया जाए. इस आवेदन का उन्हें कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ. खबरों के मुताबिक़ चंद्रचूड़ साहब ने वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के संज्ञान में भी यह बात ला दी थी कि सरकार ने वैकल्पिक आवास आवंटित कर दिया है और आवश्यक मरम्मत के बाद ठेकेदार ने उसे 30 जून तक सौंपने का वायदा किया है.
वर्तमान आवास में ही निवास जारी रखने की अवधि आगे बढ़ाने संबंधी चंद्रचूड़ साहब के आवेदनों के पीछे मुख्य कारण यही समझा जा सकता है कि सरकार ने बंगला तो आवंटित कर दिया पर आठ महीनों में भी उसकी मरम्मत करवा कर उनके शिफ्ट होने लायक़ नहीं बनवाया जा सका. चंद्रचूड़ साहब ने यह भी बताना चाहा कि चूँकि आवंटित किया गया बंगला दो वर्षों से ख़ाली पड़ा था उसमें काफ़ी मरम्मत की ज़रूरत थी. ‘सामान अब पैक्ड है और ठेकेदार का ‘ओके’ मिलते ही शिफ्ट कर देंगे.’
चंद्रचूड़ साहब के इस कथन के बाद कि जिस आवंटित बंगले में मरम्मत चल रही है, वह दो साल से ख़ाली पड़ा था नागरिक-जिज्ञासा इस सवाल पर टिक जाती है कि एक ऐसे समय जब विशिष्ठ और अति-विशिष्ठ व्यक्तियों के लिए आवासों की क़िल्लत चल रही हो (पिछले साल इन्हीं महीनों में कोई दो सौ पूर्व सांसदों को बंगले ख़ाली करने के नोटिस जारी किए गये थे ) दिल्ली के पॉश लुटियंस झोन में कोई बंगला दो साल तक ख़ाली कैसे पड़ा रह सकता है ?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने पिछले साल अक्टूबर में आरोप लगाया था कि चंद्रचूड़ साहब के पास न सिर्फ़ वह बंगला (5, कृष्ण मेनन मार्ग) है, जिसका वे मुख्य न्यायाधीश के रूप में इस्तेमाल करते हैं. कथित तौर पर उन्होंने तुगलक रोड स्थित उस बंगले का आधिपत्य सरकार को वापस नहीं सौंपा है, जिसमें वे न्यायाधीश के रूप में दो वर्षों तक रहते रहे हैं. काटजू साहब ने अपने मेल को तब (संभवतः) न्यायमूर्ति खन्ना और न्यायमूर्ति गवई सहित न्यायपालिका के अन्य व्यक्तियों के साथ भी शेयर किया था.
काटजू साहब ने अपने मेल के अंत में यह भी लिखा था कि उन्हें प्राप्त जानकारी अगर ग़लत है तो मुख्य न्यायाधीश या उनकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति सार्वजनिक तौर पर वक्तव्य जारी करके खंडन कर सकता है. काटजू साहब की उक्त चुनौती के बाद सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री या किसी अन्य के द्वारा कोई खंडन व्यक्तिशः उन्हें अथवा मीडिया को भेजा गया हो ऐसा जानकारी में नहीं आया जो कि मामले में संदेह उत्पन्न करता है ! काटजू साहब के साल भर पहले के कथन में अगर सत्यता थी तो क्या यह माना जा सकता है कि जिस बंगले में मरम्मत चल रही है वह वही होना चाहिए जिसमें चंद्रचूड़ साहब मुख्य न्यायाधीश बनने के पूर्व तक निवास करते थे ?
अपनी सेवा-निवृत्ति के पहले किसी बातचीत के दौरान इस सवाल के जवाब में कि पद छोड़ने के बाद क्या कोई सरकारी पेशकश स्वीकार करेंगे चंद्रचूड़ साहब ने जो कहा उसका आशय यह था कि वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे मुख्य न्यायाधीश के पद की प्रतिष्ठा और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुँचे ! क्या माना जा सकता है कि उनके द्वारा की गई सरकारी बंगले की माँग सरकार द्वारा उन्हें की जा सकने वाली किसी पद की पेशकश से भिन्न है ?
अनुमान लगाया जा सकता है कि ‘सुप्रीम कोर्ट प्रशासन’ को इस घटनाक्रम की पूरी जानकारी रही होगी कि चंद्रचूड़ साहब को वैकल्पिक बंगला आवंटित हो गया है और उसकी मरम्मत का काम अंतिम चरणों में है. इसके बावजूद उसके द्वारा अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सरकारी आवास ख़ाली करवाने को लेकर सरकार को पत्र लिखे जाने के नागरिक-अर्थ क्या हो सकते हैं ? क्या यह नहीं कि सुप्रीम कोर्ट का पत्र हक़ीक़त में सरकार को चेतावनी है कि न्यायपालिका के कामकाज में किसी भी तरह का प्रलोभन या हस्तक्षेप स्वीकार नहीं होगा ?
भारतीय नर्स को 16 जुलाई को फांसी दी जाएगी, पर परिवार को कोई सूचना नहीं
भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को 16 जुलाई को यमन में फांसी दी जानी है, लेकिन उसके परिवार को इस बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है. 37 वर्षीय केरल की यह नर्स जून 2018 में एक यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में दोषी पाई गई थी और स्थानीय अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी.
उसके पति टोमी थॉमस ने कहा, “हमें अब तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है. हमें सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स से ही इसके बारे में पता चला है और हम इंतजार कर रहे हैं.” इस बीच, भारतीय अधिकारी निमिषा की फांसी रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.
मामला इसलिए भी जटिल है क्योंकि भारत का हूती विद्रोहियों से कोई औपचारिक संपर्क नहीं है, और इस्लामी परंपरा के तहत “दियात” (ब्लड मनी) के जरिए निमिषा की रिहाई के प्रयास भी जटिलताओं में फंस गए हैं. “दियात” के तहत, पीड़ित के परिवार को मुआवजा देकर फांसी से बचा जा सकता है, लेकिन अब तक पीड़ित परिवार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है. निमिषा प्रिया के समर्थन में कई सामाजिक कार्यकर्ता और संगठन लगे हुए हैं, और भारत सरकार भी स्थानीय अधिकारियों और पीड़ित परिवार से संपर्क में है, ताकि उसकी जान बचाई जा सके.
यूरोपीय संघ की 'सुरक्षित देशों' की सूची में भारत शामिल, शरणार्थियों की दलील सुने बिना खारिज होंगे मामले
‘स्क्रोल’ की रिपोर्ट है कि यूरोपीय संघ (ईयू) ने अपने प्रवासन क़ानून में बड़े बदलाव के तहत एक "सुरक्षित मूल देश" की सूची प्रस्तावित की है, जिसका उद्देश्य ऐसे शरणार्थी आवेदनों की प्रक्रिया को तेज़ करना है, जिनके सफल होने की संभावना बहुत कम होती है. सूची में सात देश शामिल हैं. भारत, बांग्लादेश, मिस्र, मोरक्को, ट्यूनिशिया, कोलंबिया और कोसोवो जैसे देशों से जो लोग ईयू में शरण लेने के लिए आवेदन करते हैं, उनके मामलों को अब बहुत तेज़ी से खारिज किया जा सकता है. ईयू का कहना है कि इन देशों को अब "सुरक्षित" माना जाएगा, यानी वहां आम नागरिकों को उत्पीड़न, हिंसा या जान का खतरा नहीं होता. इसलिए अगर कोई इन देशों से शरण मांग रहा है, तो वह "झूठे या कमजोर" आधार पर ऐसा कर रहा है — इस सोच से तीन महीने के भीतर उनका मामला निपटा दिया जाएगा. कोलंबिया, कोसोवो, बांग्लादेश, भारत, मिस्र, मोरक्को और ट्यूनिशिया. इन देशों से आने वाले शरणार्थियों को ईयू में 20% से भी कम मामलों में संरक्षण मिलता है. यह सूची अप्रैल में पेश की गई थी. अगर इसे यूरोपीय संसद और सदस्य देश मंज़ूरी देते हैं, तो नई ईयू माइग्रेशन संधि के तहत 2026 से लागू हो जाएगी. इसके बाद इन देशों से आने वाले शरणार्थियों के आवेदन तीन महीने के भीतर निपटा दिए जाएंगे, यानी त्वरित प्रक्रिया अपनाई जाएगी.
मानवाधिकार संगठनों ने इस सूची की कड़ी आलोचना की है. एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच, डैनिश रिफ्यूजी काउंसिल सहित 52 संगठनों ने एक संयुक्त बयान में कहा है - "निर्धारित समयसीमा में आवेदनों की प्रक्रिया चलाने से जरूरतमंदों की सुरक्षा की ज़रूरतों को अनदेखा करने का जोखिम बढ़ जाता है. साथ ही इससे कानूनी सहायता तक पहुंच भी सीमित हो जाती है." उन्होंने सवाल उठाया कि जिन देशों को 'सुरक्षित' कहा जा रहा है, वहाँ खुद मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर रिकॉर्ड हैं.
किन समूहों को सबसे ज़्यादा खतरा?
बयान में कहा गया कि अगर इन देशों से आने वाले आवेदनों को बिना पूरी जांच के खारिज कर दिया गया, तो विशेष रूप से राजनीतिक असंतुष्टों, LGBTQ+ समुदाय के लोगों और अन्य संवेदनशील समूहों को खतरनाक स्थितियों में लौटने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
कोलंबिया, मिस्र, मोरक्को और बांग्लादेश ईयू में पिछले दशक में सबसे अधिक शरणार्थी आवेदन भेजने वाले टॉप 10 देशों में शामिल हैं, जबकि भारत और कोसोवो से आने वाले आवेदनों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है. ईयू का कहना है कि इन देशों में आम नागरिकों को "सामान्य रूप से" उत्पीड़न या गंभीर खतरा नहीं होता, इसलिए उन्हें सुरक्षित माना जा सकता है. फ्रीडम हाउस के मुताबिक, इस सूची में केवल कोलंबिया को राजनीतिक रूप से "फ्री" यानी स्वतंत्र देश का दर्जा मिला है. मिस्र और ट्यूनिशिया में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सख़्त प्रतिबंध, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर दमन को लेकर 16 मानवाधिकार संगठनों ने EU को खुला पत्र लिखकर आपत्ति जताई है.
EU ने भी अपनी रिपोर्ट में यह माना है कि इन देशों में कुछ वर्गों (जैसे LGBTQ+ या राजनीतिक असहमति रखने वाले) के खिलाफ उत्पीड़न होता है, लेकिन पूरे देश की आम जनता को खतरा नहीं है, इसलिए उन्हें सूची में शामिल किया गया. एसे ही बांग्लादेश, मोरक्को और ट्यूनिशिया की दंड संहिताओं में समलैंगिकता अपराध है. भारत में 2018 में धारा 377 हटाकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया, लेकिन LGBTQ+ समुदाय के लोगों का कहना है कि भेदभाव और हिंसा अब भी आम है.
ब्राज़ील ने भारत के ‘आकाश’ मिसाइल सिस्टम की खरीद पर लगाई रोक, मोदी को मिला सर्वोच्च नागरिक सम्मान, लेकिन रक्षा सौदे में झटका
'द रिओ टाइम्स' की रिपोर्ट है कि ब्राज़ील ने भारत के साथ चल रही ‘आकाश’ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर बातचीत फिलहाल रोक दी है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनेसियो लूला दा सिल्वा ने मंगलवार को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया है. भारत के बजाय ब्राज़ील ने अब इटली के साथ आधिकारिक बातचीत शुरू की है, ताकि वह इनहैंस्ड मॉड्यूलर एयर डिफेंस सॉल्यूशन सिस्टम को खरीदे, जो अब उसके वायु रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम का प्राथमिक विकल्प बन गया है.
भारत से क्यों टूटी बातचीत?
‘सीएनएन’ ब्राज़ील की रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक बातचीत में ब्राज़ील की सेना ने भारत के मध्यम और लंबी दूरी वाले 'आकाश' मिसाइल सिस्टम में रुचि दिखाई थी, जिसे भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने विकसित किया है, लेकिन भारतीय पक्ष ने आकाश सिस्टम का नवीनतम वर्जन देने से इनकार किया, जिसमें इज़राइली तकनीक पर आधारित उन्नयन शामिल हैं. ब्राज़ील के सैन्य सूत्रों के अनुसार, यह प्रमुख कारण बना जिससे बातचीत रुकी और अब इटली के EMADS सिस्टम को विकल्प के तौर पर प्राथमिकता दी जा रही है. प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति लूला ने हाल ही में द्विपक्षीय वार्ता में रक्षा और सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने पर सहमति जताई थी. ऐसे में इस फैसले को राजनयिक संबंधों के लिहाज़ से असमंजसपूर्ण माना जा रहा है. यह घटनाक्रम भारत के लिए एक रणनीतिक झटका माना जा रहा है, क्योंकि भारत अपनी रक्षा निर्यात क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन की 'हिंदूफोबिया' रिपोर्ट, 75% घटनाएं खुद की परिभाषा पर भी खरी नहीं उतरीं
अमेरिका में सक्रिय संगठन हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (एचएएफ) द्वारा वर्षों से 'हिंदूफोबिक' बताई जा रही घटनाओं में से तीन-चौथाई से ज़्यादा मामलों में हिंदू-विरोध का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है. यह चौंकाने वाला खुलासा पत्रकार मुक्ता जोशी ने अपनी ज्यूइश करंट्स में प्रकाशित जांच रिपोर्ट और एक विस्तृत एक्स (पूर्व ट्विटर) थ्रेड के ज़रिए किया है.
एचएएफ खुद कहता है कि 'हिंदूफोबिया' उन घटनाओं को कहा जाएगा जिनमें किसी व्यक्ति को उसके हिंदू धर्म या पहचान के आधार पर लक्षित किया गया हो. हालांकि, मुक्ता जोशी की रिपोर्ट बताती है कि एचएएफ द्वारा चिन्हित की गई 75% घटनाएं उसकी खुद की 'हिंदूफोबिया' की परिभाषा के दायरे में नहीं आतीं. कई घटनाएं असल में मुस्लिम-विरोधी या अरब-विरोधी थीं, लेकिन उन्हें 'हिंदूफोबिया' के रूप में दर्ज कर लिया गया. कुछ घटनाएं भारत सरकार, प्रधानमंत्री मोदी या हिंदुत्व विचारधारा की आलोचना से जुड़ी थीं, लेकिन उन्हें भी 'हिंदूफोबिक' बताकर सूची में जोड़ा गया. एचएएफ की रिपोर्ट में दर्ज अधिकांश घटनाएं धार्मिक हिंसा के बजाय राजनीतिक असहमति या आलोचना पर आधारित थीं. कई मामलों में एचएएफ ने ऐसे वाकयों को भी 'हिंदूफोबिया' बताया जो दरअसल धार्मिक नहीं, नस्लीय या फॉरेनर-विरोधी थे, जिससे यह संदेश फैलता है कि हिंदुओं को पूरे अमेरिका में निशाना बनाया जा रहा है.
शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों पर 'जहाँ दिखें, वहीं गोली मारो' का दिया था आदेश
'बीबीसी' की रिपोर्ट है कि बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व वाले लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सुरक्षा बलों को घातक हथियारों के इस्तेमाल और प्रदर्शनकारियों को “जहाँ दिखें, वहीं गोली मारने” का आदेश दिया था. यह दावा बीबीसी की स्वतंत्र जांच और एक लीक ऑडियो टेप के सत्यापन के बाद सामने आया है. बीबीसी के अनुसार, यह ऑडियो एक गुप्त फोन कॉल का है जिसमें शेख हसीना एक अज्ञात अधिकारी से बात करते हुए सुरक्षा बलों को सख्त निर्देश दे रही हैं. ब्रॉडकास्टर द्वारा देखे गए पुलिस दस्तावेज़ों से भी यह पुष्टि होती है कि फोन कॉल के बाद के दिनों में ढाका में सैन्य-स्तर के हथियार जैसे कि राइफल्स और असॉल्ट गन तैनात और इस्तेमाल किए गए. इस ऑडियो टेप की वैधता की पुष्टि स्वतंत्र ऑडियो विशेषज्ञों ने की है.
‘हसीना की भूमिका साबित करने में अहम साक्ष्य’
ब्रिटिश मानवाधिकार वकील टोबी कैडमैन, जो बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्राइब्यूनल में शेख हसीना और अन्य के खिलाफ चल रहे मामलों में सलाहकार हैं, ने कहा - "ऐसे लीक रिकॉर्डिंग्स हसीना की भूमिका साबित करने के लिए बेहद अहम हैं." कैडमैन ने कहा कि यह प्रत्यक्ष प्रमाण है जो यह दिखाता है कि हिंसा की नीतिगत मंजूरी खुद शीर्ष नेतृत्व से मिली थी.
बता दें कि 2024 में बांग्लादेश में चुनावी धांधली और सत्तावाद के आरोपों के खिलाफ छात्र और नागरिक समाज के बड़े हिस्से ने सड़क पर उतरकर आंदोलन शुरू किया था. इन प्रदर्शनों पर सरकार की कार्रवाई अत्यधिक दमनात्मक और हिंसक रही, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी आलोचना हुई.
गाज़ा में खाद्य वितरण केंद्रों पर 'जनसंहार' से मददकर्मी पस्त, 1500 से ज्यादा डॉक्टर मारे गए
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि गाज़ा में मेडिकल अधिकारी, मानवीय सहायता कार्यकर्ता और डॉक्टर लगातार हो रही 'जनसंहार जैसी घटनाओं' से पस्त हैं. उनका कहना है कि वे उन घायलों का इलाज करने में बुरी तरह जूझ रहे हैं, जो इज़रायली गोलियों से उस समय घायल हुए जब वे सहायता प्राप्त करने की कोशिश कर रहे थे. डॉक्टरों ने बताया कि ज़्यादातर घायल यह बताते हैं कि जब वे गाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF) के वितरण केंद्रों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, तभी उन्हें गोली लगी. यह संस्था अमेरिका और इज़राइल समर्थित है और इसने मई के अंत में गाज़ा में खाद्य वितरण शुरू किया था. कुछ अन्य लोग उस समय घायल हुए जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा भेजे गए काफिलों के आसपास भारी भीड़ जमा हो गई – कई बार ये काफिले लूट लिए जाते हैं.
खान यूनिस के नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स के नर्सिंग निदेशक डॉ. मोहम्मद साक़र ने कहा, "ये दृश्य प्रलय जैसे हैं. कभी-कभी सिर्फ आधे घंटे में हमारे पास 100 से 150 मरीज आ जाते हैं – कुछ बुरी तरह घायल, कुछ मृत. लगभग 95% घायल और मृत वे लोग हैं जो इन्हीं ‘अमेरिकी खाद्य वितरण केंद्रों’ से संबंधित हैं." 27 मई से 2 जुलाई के बीच गाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 640 लोगों की मौत और 4,500 से अधिक घायल हुए, जिससे पहले से ही चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह टूटने की कगार पर है.
साक़र ने कहा— "हर बिस्तर पर मरीज है और नई चोटें हमारे लिए अकल्पनीय बोझ बन गई हैं. हमें मरीजों को ज़मीन पर ही इलाज देना पड़ रहा है. ज़्यादातर घाव सीने और सिर में गोली लगने से हैं. कई मरीज कटी हुई टांगों और बाहों के साथ पहुंचते हैं." अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति (ICRC) ने मंगलवार को कहा कि उसके डॉक्टरों ने पिछले एक महीने में खाद्य वितरण केंद्रों से जुड़ी घटनाओं में घायल लोगों की संख्या में तेज़ बढ़ोतरी देखी है.
आईसीआरसी ने कहा- "कर्मचारी गोलीबारी से घायल लगातार बढ़ते मरीजों को संभालने की दौड़ में लगे हैं. यह सब गाज़ा की चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर चुका है." चिकित्सकों ने बताया कि अब दवाओं की कमी पहले से कहीं ज़्यादा है, ईंधन की किल्लत के कारण अस्पताल बंद होने के कगार पर हैं क्योंकि बिजली जेनरेटर ही एकमात्र ऊर्जा स्रोत हैं. पहले जहां एक दिन में 8 से 10 सर्जरी हो रही थी अब अचानक से उसकी संख्या बढ़कर 30 से 40 हो गई है. गाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अब तक 1,580 डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ की भी मौत हो चुकी है.
ऋषि सुनक एक बार फिर वॉल स्ट्रीट बैंक लौटे, गोल्डमैन सैक्स ने बनाया सीनियर सलाहकार
'फाइनेंशियल टाइम्स' की रिपोर्ट है कि ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने एक बार फिर अपनी पेशेवर यात्रा की शुरुआत करने वाले संस्थान गोल्डमैन सैक्स में वापसी की है. इस बार वे एक सीनियर एडवाइज़र (वरिष्ठ सलाहकार) के रूप में इस वैश्विक निवेश बैंक से जुड़े हैं. गोल्डमैन सैक्स ने सुनक की नियुक्ति ऐसे समय में की है जब बैंकिंग क्षेत्र को भू-राजनीतिक अस्थिरता और कड़े नियामकीय माहौल का सामना करना पड़ रहा है. सुनक को एक अनुभवी नीति-निर्माता के रूप में बैंक की सलाहकार टीम में शामिल किया गया है.
पुराना नाता, नई भूमिका : ऋषि सुनक ने 2000 के दशक की शुरुआत में गोल्डमैन सैक्स में एक एनालिस्ट (विश्लेषक) के रूप में काम किया था. इसके बाद वे कई हेज फंड्स से जुड़े और फिर राजनीति में आए. उन्होंने जुलाई 2024 में कंज़र्वेटिव पार्टी के ऐतिहासिक रूप से सबसे बुरे चुनावी प्रदर्शन के बाद पार्टी के नेता पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. उसके बाद से सुनक सार्वजनिक रूप से बेहद शांत और पृष्ठभूमि में रहे हैं, लेकिन वे अब भी उत्तर इंग्लैंड की एक सीट से सांसद हैं.
एक्स (X) की सीईओ ने दिया इस्तीफा
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि इलोन मस्क के सोशल नेटवर्क एक्स (X) की सीईओ लिंडा याकरिनो ने बुधवार को घोषणा की कि वह दो साल के कार्यकाल के बाद पद से इस्तीफा दे रही हैं. लिंडा याकरिनो ने लिखा— "जब इलोन मस्क और मैंने पहली बार एक्स के उनके विज़न पर बात की थी, तभी मुझे एहसास हो गया था कि यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा अवसर होगा - इस कंपनी के असाधारण मिशन को आगे बढ़ाने का. मैं उन्हें बेहद आभारी हूं कि उन्होंने मुझ पर भरोसा किया - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने, कंपनी को नई दिशा देने और एक्स को ‘एवरीथिंग ऐप’ में बदलने की ज़िम्मेदारी सौंपी.” हालांकि, इलोन मस्क द्वारा प्लेटफॉर्म पर चरम दक्षिणपंथी विचारों, गलत सूचना और हेट स्पीच को बढ़ावा देने को लेकर लगातार आलोचना होती रही है. याकरिनो की जिम्मेदारी थी ब्रांड्स को आश्वस्त करना कि X विज्ञापन के लिए सुरक्षित है, मगर विज्ञापनदाताओं ने मंच छोड़ना शुरू कर दिया, जिससे राजस्व में बड़ी गिरावट आई. याकरिनो का सीएनबीसी और कोड कॉन्फ्रेंस 2023 में इंटरव्यू बहुत चर्चित रहा. उनसे जब यह पूछा गया कि क्या उन्हें असल में CEO की भूमिका मिली है या सब कुछ मस्क ही चला रहे हैं, तो उनके जवाबों को टालमटोल भरा माना गया. इससे यह धारणा बनी कि वह महज़ एक "फिगरहेड" (नाममात्र की प्रमुख) हैं और असली कंट्रोल मस्क के पास है.
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