10/10/2025: 9 साल बाद बहनजी की चुप्पी टूटी, भाजपा की तरफ़दारी? | जूता फेंकने की मोदी जी ने तो निंदा की, पर उनके ट्रोल्स हमलावर को हीरो बता रहे हैं | बिहार में अब ड्रामा सीटों के बंटवारे को लेकर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
9 साल बाद मायावती की महारैली, बीजेपी की तारीफ और सपा-कांग्रेस की आलोचना की
मायावती ने स्मारकों के रखरखाव के लिए योगी सरकार को धन्यवाद दिया
अखिलेश यादव का पलटवार: बसपा का बीजेपी के साथ ‘गुप्त समझौता’ है
CJI पर जूते से हमले की पीएम मोदी ने निंदा की, पर हिंदुत्व समर्थकों ने हमलावर को ‘हीरो’ बताया
CJI गवई ने कहा: जूता फेंकने की घटना हमारे लिए “भूला हुआ अध्याय” है
मतदाता सूची पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा, “बिहार के अनुभव ने आपको समझदार बनाया होगा”
सीटों के बंटवारे पर कांग्रेस के बड़े नेता सीधे लालू यादव से बातचीत करने पटना पहुंचे
NDA में सीटों पर खींचतान जारी, चिराग और मांझी ने ज्यादा सीटें मांगीं
तेजस्वी यादव का वादा: सरकार बनी तो हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देंगे
बिहार में दलित शिक्षा, नौकरी और ज़मीन के मामले में पीछे हैं
उमर खालिद के वकील ने कहा: ‘उन्हें व्हाट्सएप चैट के लिए आरोपी बनाया गया, जबकि ग्रुप एडमिन आज़ाद हैं’
IPS अधिकारी की आत्महत्या: पत्नी की मांग- सुसाइड नोट में लिखे नामों को गिरफ्तार करें, तभी पोस्टमार्टम होगा
जहरीला कफ सिरप: मध्य प्रदेश में मरने वाले बच्चों की संख्या 25 हुई, दवा कंपनी का मालिक गिरफ्तार
अडानी ‘गैग ऑर्डर’ मामला: अदालत ने पत्रकारों के खिलाफ एकतरफा आदेश हटाया, प्रेस की स्वतंत्रता की जीत हुई
गाजा में युद्धविराम: इज़राइल और हमास बंधकों की रिहाई के सौदे पर सहमत हुए
भारत ने तालिबान के साथ संपर्क बढ़ाया, अफगान विदेश मंत्री दिल्ली के दौरे पर
हंगरी के लेखक लास्लो क्रास्नाहोर्काई को साहित्य का नोबेल पुरस्कार 2025 मिला
9 साल बाद महारैली में मायावती ने अपने पत्ते खोले : बीजेपी की तारीफ तो सपा-कांग्रेस की बुराई
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने नौ साल के अंतराल के बाद लखनऊ के राजनीतिक परिदृश्य पर एक विशाल रैली के साथ जोरदार दस्तक दी. बसपा के संस्थापक अध्यक्ष और उनके गुरु कांशीराम की पुण्यतिथि पर गुरुवार को उन्होंने अपनी पार्टी के पुनरुद्धार का प्रदर्शन किया और अपने राजनीतिक विमर्श को तेज किया.
रमाबाई रैली स्थल पर चार से पांच लाख लोगों की अनुमानित भीड़ को संबोधित करते हुए, जिसमें बिहार, पंजाब और हरियाणा सहित पांच राज्यों के बसपा समर्थक शामिल थे, मायावती ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की प्रशंसा की, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस की जमकर आलोचना की. उन्होंने अपने समर्थकों से “2027 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार” बनाने का आव्हान किया.
वर्तमान सरकार के प्रति उदारता दिखाते हुए, मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान बनाए गए दलित विचारकों और प्रतीकों को समर्पित स्मारकों और पार्कों के रखरखाव के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार की सराहना की. उन्होंने कहा, “मैंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि इन स्थलों के आगंतुकों से मिलने वाली टिकट की आय का उपयोग उनके रखरखाव के लिए किया जाए. भाजपा सरकार ने सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया और रखरखाव का खर्च वहन किया. इसके लिए मैं उनका धन्यवाद करती हूं.” इसके उलट, समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव पर तीखा हमला बोला और उन पर पाखंड व “दोहरे मापदंड” का आरोप लगाया. कहा- “जब वे सत्ता में होते हैं, तो कांशीराम जी और पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) एजेंडे को भूल जाते हैं. लेकिन सत्ता से बाहर होते ही उन्हें दोनों याद आते हैं. ऐसे दोहरे चरित्र वाले लोगों से दूर रहना चाहिए.”
मायावती ने कहा कि अगर समाजवादियों ने कांशीराम जी का इतना सम्मान किया, तो अलीगढ़ मंडल में जिस जिले का नाम हमने उनके नाम पर रखा था, उसे सपा सरकार ने क्यों बदल दिया?” उन्होंने सपा पर कांशीराम के नाम पर बनाई गई संस्थाओं और कल्याणकारी योजनाओं को खत्म करने का आरोप लगाया, इसे उनकी “दलित-विरोधी और जातिवादी मानसिकता” का प्रमाण बताया।
मायावती ने कांग्रेस को भी नहीं बख्शा, उसे “नौटंकी” करने वाली पार्टी करार दिया जिसने ऐतिहासिक रूप से दलितों के हितों की अनदेखी की है.
आजम खान और नगीना सांसद चंद्रशेखर आज़ाद का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए, मायावती ने संभावित गठबंधनों की अटकलों को खारिज करने की कोशिश की. उन्होंने बसपा में आजम खान के शामिल होने की अफवाहों को खारिज करते हुए कहा, “मैं किसी से छिपकर नहीं मिलती. जब भी मैं किसी से मिलती हूं, खुलेआम मिलती हूं.”
बसपा-भाजपा के बीच गुप्त समझौता : अखिलेश
मायावती के आरोपों के जवाब में अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि बहुजन समाज पार्टी का भाजपा के साथ ‘गुप्त समझौता’ है, और कहा कि मायावती अपने लाभ के लिए ‘उत्पीड़कों के प्रति कृतज्ञ’ हैं. लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यादव ने कहा, “चूंकि ‘उनकी’ आंतरिक मिलीभगत जारी है, इसीलिए वे अपने उत्पीड़कों के प्रति कृतज्ञ हैं.” उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सपा और पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम को इटावा से सांसद बनने में समर्थन दिया था.
पीएम ने कहा सीजेआई पर हमले से ‘हर भारतीय नाराज़’, हिंदुत्व ब्रिगेड ने हमलावर को ‘हीरो’ बताया
ऑल्ट न्यूज़ में अंकिता महालनोबिश की रिपोर्ट के अनुसार, भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई पर हुए हमले की निंदा की है, लेकिन दक्षिणपंथी सोशल मीडिया ब्रिगेड ने 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर को एक नए नायक के रूप में प्रस्तुत किया है. राकेश किशोर ने 6 अक्टूबर को सीजेआई पर उनकी अदालत में जूता फेंका था.
बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा अब निलंबित किए जा चुके किशोर ने घटना के बाद कई इंटरव्यू दिए हैं, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है. उन्होंने मीडिया को बताया कि सीजेआई पर उनका हमला 16 सितंबर को खजुराहो परिसर में एक मंदिर में हिंदू देवता विष्णु की क्षतिग्रस्त 7 फुट की मूर्ति को बहाल करने के निर्देशों की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए की गई टिप्पणी “जाओ और देवता से पूछो” की प्रतिक्रिया में था.
घटना के लगभग 10 घंटे बाद एक्स पर एक पोस्ट में पीएम मोदी ने इस कृत्य की निंदा की और कहा कि इससे हर भारतीय नाराज हुआ है. हालांकि, हिंदुत्व ब्रिगेड ने राकेश किशोर के ‘बहादुरी’ का जश्न मनाना शुरू कर दिया. इस प्रक्रिया में, उन्होंने सीजेआई गवई पर भी एक ठोस हमला किया, जिसमें कई पोस्टों में उनकी दलित जाति की पहचान का उल्लेख था.
यूट्यूबर अजीत भारती ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि यह तो बस शुरुआत है. उन्होंने लिखा, “ऐसे ही पतित, हिंदू-विरोधी और कायर जजों का यही हश्र सड़कों पर होगा.” अजीत भारती ने एक वीडियो क्लिप भी साझा किया, जिसमें सीजेआई गवई की दलित पहचान का बार-बार मजाक उड़ाया गया और जातिवादी गालियों और कटाक्षों का इस्तेमाल किया गया. एक अन्य एक्स यूजर ने एक एआई-जनरेटेड वीडियो साझा किया जिसमें सीजेआई गवई को नीली त्वचा के साथ दिखाया गया और उन्हें जूते से थप्पड़ मारते हुए दर्शाया गया.
यह हमला सीजेआई के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक लंबे समय से चल रहे घृणा अभियान के बाद हुआ है. अजीत भारती द्वारा होस्ट किए गए एक पॉडकास्ट में, कौशलेश राय ने कहा था कि वह चाहते हैं कि “कम से कम एक हिंदू वकील गवईजी का सिर पकड़कर दीवार से जोर से मारे.” इस तरह के घृणास्पद अभियान और हमले का जश्न पीएम मोदी की प्रतिक्रिया को खोखला और औपचारिक बना देता है. यह यह भी दर्शाता है कि वर्तमान शासन में धुर-दक्षिणपंथी हिंदुत्व ब्रिगेड को पूरी तरह से छूट मिली हुई है.
जूता प्रकरण पर सीजेआई गवई : “हमारे लिए यह एक भूला हुआ अध्याय है”
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई ने गुरुवार को कहा कि 6 अक्टूबर को जब एक वकील ने उन पर जूता फेंकने की कोशिश की, तो वह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन स्तब्ध रह गए थे, लेकिन अब यह मुद्दा “एक भूला हुआ अध्याय” है.
एक अभूतपूर्व और निंदनीय घटना में, 71 वर्षीय वकील, राकेश किशोर, ने सोमवार को अपने हाथ में जूता लिया और सीजेआई पर फेंकने की कोशिश की. इस कृत्य की चारों ओर से निंदा हुई.
पीटीआई के हवाले से “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है की सीजेआई ने यह टिप्पणी वनशक्ति फैसले की समीक्षा और संशोधन की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान की. इस फैसले में केंद्र सरकार को उन परियोजनाओं को पिछली तारीख से पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया गया था, जिनमें पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन पाया गया था.
बेंच साझा कर रहे न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने दोषी वकील के खिलाफ अपनाए गए कार्रवाई के तरीके से असहमति जताई और कहा, “इस पर मेरे अपने विचार हैं, वह सीजेआई हैं, यह कोई मज़ाक की बात नहीं है!” न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि यह हमला “सर्वोच्च न्यायालय का अपमान” था और उचित कार्रवाई की जानी चाहिए थी.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस कृत्य को अक्षम्य बताया, इसे गलत सूचना और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का प्रयास करार दिया. उन्होंने सीजेआई की महानता और “गरिमा” की सराहना की. कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन से मामले को आगे बढ़ाने और इस चौंकाने वाली घटना पर और अधिक चर्चा न करने को कहा. सीजेआई ने अपनी बात दोहराई, “हमारे लिए यह एक भूला हुआ अध्याय है,” और सुनवाई आगे बढ़ाई.
आरोप है कि हमलावर मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर में भगवान विष्णु की मूर्ति की बहाली की मांग करने वाली एक जनहित याचिका के दौरान सीजेआई द्वारा की गई हालिया टिप्पणियों से नाखुश था.
इस बीच सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने गुरुवार को राकेश किशोर की सदस्यता समाप्त कर दी. एसोसिएशन ने उनके कार्यों को “गंभीर कदाचार” का कृत्य बताया. घटना के बाद, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी किशोर के लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था.
बिहार
इस अनुभव ने आपको पूरे भारत में एसआईआर से पहले समझदार बनाया होगा: सुप्रीम कोर्ट की चुनाव आयोग से टिप्पणी
नई दिल्ली: द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 अक्टूबर, 2025) को कहा कि बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण अभ्यास में हुई कानूनी प्रक्रिया ने भारत के चुनाव आयोग को “समझदार” बनाया होगा. इसके साथ ही, अदालत ने बिहार में अंतिम मतदाता सूची से हटाए गए 3.66 लाख लोगों को बिना देरी के अपील दायर करने में मदद करने के लिए पैरालीगल स्वयंसेवकों और कानूनी सहायता वकीलों को सक्रिय कर दिया.
जस्टिस सूर्यकांत, जो जस्टिस जॉयमाल्या बागची के साथ बेंच की अध्यक्षता कर रहे थे, ने से मौखिक रूप से कहा, “आपने पूरे भारत में एसआईआर करने का फैसला किया है. इसलिए इस [बिहार के] अनुभव ने आपको अब समझदार बनाया होगा... अगली बार जब आप एसआईआर मॉड्यूल लाएंगे, तो जो आपने अब अनुभव किया है, उसके कारण आप कुछ सुधार भी लाएंगे.”
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने प्रतिक्रिया दी कि “ज़ाहिर है चुनाव आयोग ने सीखा है, आलोचनाएं भी मदद करती हैं.” वहीं, गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के लिए वकील प्रशांत भूषण और नेहा राठी ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल यह कह रहे हैं कि आयोग अपने नियमों और मैनुअल का पालन करे और पारदर्शी रहे.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अंतिम मतदाता सूची से लगभग 3.66 लाख व्यक्तियों के नाम हटा दिए गए थे. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनमें से कई को उनके नाम हटाने के कारणों की जानकारी देते हुए कोई व्यक्तिगत सूचना नहीं दी गई. अदालत ने बिहार राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष को निर्देश दिया कि वे राज्य के हर गांव में पैरालीगल स्वयंसेवकों और कानूनी सहायता वकीलों को सक्रिय करें. वे बूथ लेवल अधिकारियों से संपर्क करेंगे, हटाए गए लोगों की जानकारी एकत्र करेंगे और उनकी अपील का मसौदा तैयार करने तथा लड़ने में मदद करेंगे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सुनवाई के दौरान, अदालत ने यह भी कहा कि अतीत में बिहार में मतदाताओं की कुल संख्या का वयस्क आबादी से 107% अधिक होना यह दर्शाता है कि एसआईआर “उचित” था और यह “निश्चित रूप से एक समस्या थी जिसमें सुधार की आवश्यकता थी.” कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अदालत को बताया कि एसआईआर अभ्यास के बाद मतदाताओं की कुल संख्या में 47 लाख की कमी आई है. उन्होंने तर्क दिया कि इस प्रक्रिया ने “प्रणालीगत बहिष्कार, संरचनात्मक बहिष्कार और लक्षित बहिष्कार” को हथियार बनाया है. उन्होंने मतदाता सूची में भारी विसंगतियों की ओर भी ध्यान दिलाया, जिसमें 100 साल के लोगों को नए मतदाता के रूप में दर्ज करना, नाम और विवरण खाली छोड़ना और नाम कन्नड़ और तमिल में लिखे होना शामिल हैं. अदालत ने कहा कि वह बाद में इस पर विचार करेगी कि क्या अपीलीय अधिकारियों को निर्दिष्ट समय के भीतर इन अपीलों पर विचार करने और तर्कपूर्ण आदेश पारित करने का निर्देश दिया जाए.
सीट-बंटवारे पर लालू यादव से सीधी बातचीत के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेता पटना पहुंचे
नई दिल्ली: न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रीथा नायर की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति द्वारा आगामी बिहार चुनावों के लिए 25 उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप दिए जाने के एक दिन बाद, पार्टी के शीर्ष नेता सीट-बंटवारे के फ़ॉर्मूले पर राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव के साथ सीधी बातचीत करने के लिए गुरुवार को पटना पहुंचे.
सूत्रों के मुताबिक, लालू यादव के साथ बातचीत करने का निर्देश वरिष्ठ नेता राहुल गांधी की ओर से आया है, जो वर्तमान में दक्षिण अमेरिका के चार देशों के दौरे पर हैं. इस नई बातचीत का उद्देश्य अधिक सीटों के लिए मोलभाव करना है, हालांकि कांग्रेस पहले 57-58 सीटों पर सहमत हो गई थी. विकास से अवगत नेताओं ने कहा कि पार्टी अब 10 और सीटों की मांग कर रही है.
लालू यादव से मिलने वाले नेताओं में कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और भूपेश बघेल, और लोकसभा में कांग्रेस के पूर्व नेता अधीर रंजन चौधरी शामिल हैं. पार्टी ने गहलोत, बघेल और चौधरी को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस ने अपना रुख तब और कड़ा करने का फैसला किया जब RJD ने कथित तौर पर मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को 28 सीटें आवंटित कर दीं. हालांकि VIP लगभग 30 सीटों के लिए बातचीत कर रही थी, लेकिन वह 28 सीटों पर मान गई है और RJD के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस नेताओं को डर है कि इससे चुनाव के बाद के परिदृश्य में उनकी संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं. बातचीत में शामिल एक नेता ने कहा, “VIP को पिछले चुनाव में केवल चार सीटें मिली थीं. अगर VIP 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, तो हमारे नेताओं को लगता है कि कांग्रेस को 60-65 सीटें आवंटित की जानी चाहिए.”
2020 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल 19 सीटें ही जीत सकी थी, जिससे पार्टी के भीतर और उसके सहयोगियों की ओर से तीखी आलोचना हुई थी.
बिहार चुनाव: एनडीए में खींचतान, जन सुराज के 51 उम्मीदवार, कांग्रेस की सूची फाइनल, तेजस्वी - हर परिवार को एक सरकारी नौकरी
बिहार में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुक्रवार को पहले चरण के लिए अधिसूचना जारी होने के साथ औपचारिक रूप से शुरू हो जाएगी. लेकिन, सत्तारूढ़ गठबंधन ‘एनडीए’ में सीटों के बंटवारे को लेकर आपस में खींचतान शुरू हो गई है. बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) दोनों ही सीट-बंटवारे के समझौते पर चर्चा करने के लिए अलग-अलग बैठकें कर रहे हैं. जबकि दोनों दल एनडीए के सदस्य हैं. सूत्रों का दावा है कि चिराग 36 सीटों की मांग कर रहे हैं, जबकि भाजपा उनकी पार्टी को केवल 22 सीटें देने को तैयार है. इस बारे में चिराग का कहना है कि पार्टी की चुनावी रणनीतियों पर बैठक में चर्चा की जाएगी और केंद्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा. “द इंडियन एक्सप्रेस” ने लिखा है कि चिराग 40 सीटों की मांग कर रहे थे, लेकिन अब वे 35 पर आ गए हैं. वहीं “हम” के नेता और केन्द्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने भी कहा है कि उन्हें अगर 15 सीटें नहीं मिलीं तो उनकी पार्टी चुनाव ही नहीं लड़ेगी. रमाशंकर के अनुसार, जद (यू) ने अपने वर्तमान विधायकों के कब्ज़े वाली कई मौजूदा विधानसभा सीटों को बनाए रखने पर कड़ा रुख अपनाया है. मगर, चिराग पासवान की पार्टी वैशाली में मन्हार, बेगूसराय में मटिहानी, और जमुई में चकाई जैसी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जिनका प्रतिनिधित्व वर्तमान में जद(यू) के विधायक कर रहे हैं.
इधर, सीट बंटवारे की बातचीत के बीच, “हम” नेता बी.के. सिंह ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष मांझी के समर्थन का दावा करते हुए 13 अक्टूबर को समस्तीपुर जिले की मोरवा विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल करेंगे. सिंह ने पूर्व जद (यू) नेता विद्यासागर सिंह निषाद पर असंतुलित संपत्ति जमा करने का गंभीर आरोप भी लगाया.
इस चुनाव में नई एंट्री जन सुराज पार्टी ने 51 उम्मीदवारों की सूची जारी करके टिकट वितरण में लीड ले ली है. हालांकि, पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इस बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है.
इस बीच, विपक्षी ‘इंडिया गठबंधन’ की प्रमुख सहयोगी कांग्रेस ने आगामी 25 उम्मीदवारों के नाम साफ कर दिए हैं. इन सीटों को पार्टी का पारंपरिक गढ़ माना जाता है. उम्मीदवारों के नामों को नई दिल्ली में आयोजित कांग्रेस पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में मंजूरी दी गई. बिहार कांग्रेस ईकाई के अध्यक्ष राजेश कुमार ने भी कहा कि गठबंधन के अन्य दलों की सहमति से सूची तैयार कर ली है.
इन्हीं खबरों के बीच आरजेडी नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने गुरुवार को घोषणा की कि यदि महागठबंधन की सरकार बनी तो 20 दिनों के भीतर एक एक्ट लाकर राज्य के हर परिवार में एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी सुनिश्चित की जाएगी. उन्होंने आरोप लगाया कि एनडीए सरकार 20 सालों के शासन में नौकरी नहीं दे पाई.
2025 चुनाव से पहले नैक्डोर की रिपोर्ट: बिहार में दलित शिक्षा, नौकरी और ज़मीन से वंचित
नई दिल्ली: द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले एक नागरिक समाज संगठन द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में दलित समुदाय शिक्षा, रोजगार और संसाधनों तक खराब पहुंच से पीड़ित है.
राष्ट्रीय दलित और आदिवासी संगठन परिसंघ (NACDOR) द्वारा जारी “बिहार: दलित क्या चाहते हैं” शीर्षक वाली रिपोर्ट में राजनीतिक दलों के लिए आगामी चुनावों के घोषणापत्र में शामिल करने के लिए 20 मांगों का एक चार्टर भी शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में अनुसूचित जातियों (SC) के लिए साक्षरता दर 56 प्रतिशत थी, जबकि समुदाय के लिए राष्ट्रीय दर 66 प्रतिशत थी. स्थिति विशेष रूप से मुसहरों के बीच गंभीर है, जिनकी साक्षरता दर 20 प्रतिशत से कम है - जो देश में किसी भी जाति समूह में सबसे कम है.
भले ही बिहार की आबादी में दलितों की हिस्सेदारी 19.65 प्रतिशत है, लेकिन उच्च शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी और छात्रों में वे केवल 5.6 प्रतिशत हैं. सरकारी नौकरियों में, दलित कुल कर्मचारियों का केवल 1.3 प्रतिशत हैं, जो उनके 15 प्रतिशत के हकदार कोटे से बहुत कम है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 और 2021 के बीच बिहार में दलितों के लिए शिशु मृत्यु दर 55 प्रति 1,000 जीवित जन्म थी, जबकि राज्य की पूरी आबादी के लिए यह 47 और राष्ट्र के लिए 37 थी. दलितों के लिए मातृ मृत्यु दर 130 प्रति 1 लाख जीवित जन्म थी.
बिहार में 6.45 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि में से दलितों के पास केवल 0.57 मिलियन हेक्टेयर भूमि है, जो 10 प्रतिशत से भी कम है. 2010 और 2022 के बीच, बिहार में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 85,684 मामले दर्ज किए गए.
नैक्डोर ने मांग की है कि मुख्यमंत्री के अधीन एक समिति का गठन किया जाए जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक विकास की निगरानी करे. रिपोर्ट में यह भी मांग की गई है कि बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुरूप सभी सरकारी भर्तियों और पदोन्नति में SC/ST के लिए आनुपातिक आरक्षण सुनिश्चित किया जाए.
उमर खालिद के वकील: ‘उन्हें व्हाट्सएप चैट के लिए आरोपी बनाया गया, जबकि ग्रुप एडमिन आज़ाद हैं’
यह दलीलें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी के समक्ष खालिद के खिलाफ आरोप तय करने का विरोध करते हुए दी गईं. खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ वकील त्रिदीप पेस ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को कम से कम चार व्हाट्सएप समूहों का सदस्य होने के आधार पर आरोपी बनाया गया, जबकि किसी भी ग्रुप एडमिन पर आरोप नहीं लगाया गया है.
पेस ने कहा, “(दिल्ली) उच्च न्यायालय पहले ही कह चुका है कि आप व्हाट्सएप ग्रुप का सदस्य बनकर आरोपी नहीं बन सकते. कोई भी एडमिन आरोपी नहीं है. मेरे और अन्य आरोपियों के बीच गुणात्मक अंतर क्या है जिन्होंने ग्रुप पर संदेश भेजे हैं?” उन्होंने कहा कि एक संरक्षित गवाह के बयान के अनुसार, दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (DPSG) व्हाट्सएप ग्रुप कथित साजिश का शुरुआती बिंदु था, लेकिन ग्रुप बनाने वाले दो लोगों को आरोपी नहीं बनाया गया.
एक गवाह के बयान का हवाला देते हुए, जिसमें खालिद पर 8 दिसंबर, 2019 को जंगपुरा में एक बैठक में शामिल होने का आरोप लगाया गया था, पेस ने पूछा, “अगर यह वह साजिश है जिसके लिए आप मुझे दोषी ठहरा रहे हैं, तो बैठक में शामिल अन्य लोगों को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया. मैं आरोपी हूं, जबकि वे नहीं हैं.” एक अन्य बयान का जिक्र करते हुए, जिसमें दावा किया गया था कि खालिद ने मुस्लिम छात्रों के साथ देश भर में विरोध प्रदर्शन करने की बात की थी, वरिष्ठ वकील ने सवाल किया कि यह आतंकवाद कैसे हो सकता है.
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को तय की है. खालिद को इस मामले में 13 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था.
इजरायल और हमास ने गाज़ा में युद्धविराम और बंधकों के सौदे पर हस्ताक्षर किए
रॉयटर्स में निदाल अल-मुगराबी की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास ने गुरुवार को युद्धविराम और फिलिस्तीनी कैदियों के बदले में इजरायली बंधकों को मुक्त करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की गाज़ा में दो साल के युद्ध को समाप्त करने की पहल का पहला चरण है, जिसने मध्य पूर्व को अस्त-व्यस्त कर दिया है.
इस सौदे की घोषणा के बाद इजरायलियों और फिलिस्तीनियों दोनों ने खुशी मनाई. यह दो साल के युद्ध को समाप्त करने की दिशा में अब तक का सबसे बड़ा कदम है, जिसमें 67,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं.
समझौते के तहत, लड़ाई बंद हो जाएगी, इजरायल गाज़ा से आंशिक रूप से हट जाएगा और हमास इजरायल द्वारा रखे गए सैकड़ों कैदियों के बदले में सभी शेष बंधकों को मुक्त कर देगा. व्हाइट हाउस में, ट्रम्प ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इससे “स्थायी शांति” होगी. गाज़ा में भोजन और चिकित्सा सहायता ले जाने वाले ट्रकों के बेड़े को प्रवेश की अनुमति दी जाएगी ताकि नागरिकों को राहत मिल सके, जिनमें से लाखों लोग अपने घर नष्ट होने के बाद तंबुओं में शरण लिए हुए हैं.
हालांकि, अभी भी बहुत कुछ गलत हो सकता है. सौदे पर हस्ताक्षर होने के बाद भी, एक फिलिस्तीनी सूत्र ने कहा कि रिहा किए जाने वाले फिलिस्तीनियों की सूची को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. समूह इजरायली जेलों में बंद कुछ सबसे प्रमुख फिलिस्तीनी दोषियों की रिहाई की मांग कर रहा है. इसके अलावा, ट्रम्प की 20-सूत्रीय योजना में आगे के कदमों पर अभी चर्चा होनी बाकी है, जिसमें यह भी शामिल है कि लड़ाई समाप्त होने पर तबाह हो चुके गाज़ा पट्टी पर शासन कैसे किया जाएगा, और हमास का अंतिम भाग्य क्या होगा, जिसने अब तक इजरायल की निरस्त्रीकरण की मांगों को खारिज कर दिया है.
एक इजरायली सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि सरकार द्वारा सौदे की मंजूरी के 24 घंटे के भीतर युद्धविराम लागू हो जाएगा. उसके बाद, गाज़ा में रखे गए बंधकों को 72 घंटों के भीतर मुक्त कर दिया जाएगा. माना जाता है कि गाज़ा में अभी भी बीस इजरायली बंधक जीवित हैं.
मुत्तकी भारत में: नई दिल्ली अफगानिस्तान के तालिबान के साथ जुड़ाव क्यों बढ़ा रही है?
इंडियन एक्सप्रेस की एक व्याख्यात्मक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की विदेश नीति में यह एक महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि नई दिल्ली तालिबान के साथ जुड़ रही है, जबकि उसने अभी तक तालिबान शासित अफगानिस्तान को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है. बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों और भारत के सुरक्षा गणित ने इस रास्ते को आवश्यक बना दिया है, लेकिन नई दिल्ली को एक मुश्किल क्षेत्र में नेविगेट करना है, खासकर तालिबान के महिलाओं के साथ व्यवहार और अन्य प्रतिगामी नीतियों को देखते हुए.
अमीर खान मुत्तकी कौन हैं? तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री, मुत्तकी का जन्म 1970 में हेलमंद प्रांत में हुआ था. सोवियत आक्रमण के बाद 9 साल की उम्र में वह पाकिस्तान चले गए. 1994 में तालिबान आंदोलन के उभरने पर, वह समूह से जुड़े और बाद में शिक्षा मंत्री बने. 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से, वह विदेश मंत्री के रूप में कार्यरत हैं.
भारत का ‘सतर्क जुड़ाव’ 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से, भारत ने धीरे-धीरे और वृद्धिशील तरीके से तालिबान के साथ जुड़ाव बढ़ाया है. अधिकारी इसे “सतर्क जुड़ाव” का मामला कहते हैं. अगस्त 2021 में पहली आधिकारिक बैठक से लेकर, मानवीय सहायता भेजने और जून 2022 में काबुल में एक “तकनीकी टीम” तैनात करने तक, भारत ने बातचीत के दरवाजे खुले रखे हैं. भारत ने तालिबान शासन और अफगानिस्तान के लोगों के बीच अंतर करने का राजनीतिक निर्णय लिया.
अब जुड़ाव क्यों? वैश्विक स्थिति पिछले कुछ वर्षों में बदल गई है. तालिबान का संरक्षक और सहयोगी, पाकिस्तान, एक विरोधी बन गया है. ईरान काफी कमजोर हो गया है, रूस अपना युद्ध लड़ रहा है, और अमेरिका डोनाल्ड ट्रम्प 2.0 के तहत अलग तरह से व्यवहार कर रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन तालिबान के साथ राजदूतों का आदान-प्रदान करके अफगानिस्तान में अपनी पैठ बना रहा है.
भारत इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि तालिबान के साथ आधिकारिक जुड़ाव के स्तर को उन्नत करने का यह सही समय है - अन्यथा वह अफगानिस्तान में वर्षों के निवेश को खो देगा, जो भारत के सुरक्षा गणित के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, तालिबान के पिछले कार्यकाल और इस बार के बीच एक मुख्य अंतर यह है कि देश के भीतर, समूह को कोई मजबूत राजनीतिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा है.
तालिबान भारत से अफगान व्यापारियों, मरीजों और छात्रों के लिए वीजा जारी करने का आग्रह कर रहा है. यह एक कठिन मांग है, लेकिन दिल्ली अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में विकास परियोजनाओं के साथ आगे बढ़ने पर विचार करने को तैयार है, जो एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता है.
आईपीएस आत्महत्या: पत्नी ने कहा- सुसाइड नोट में नामजद लोगों को गिरफ्तार करें, अब तक पोस्टमार्टम नहीं
वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अमनीत पी. कुमार ने गुरुवार को हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी से अपने पति, वाई. पूरन कुमार, के सुसाइड नोट में नामजद व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और उन्हें गिरफ्तार करने का आग्रह किया. उन्होंने अपने परिवार के लिए सुरक्षा भी मांगी.
हरप्रीत बाजवा के मुताबिक, अमनीत ने मुख्यमंत्री को लिखे एक गोपनीय पत्र में, अपने पति की मृत्यु के 48 घंटे बाद भी “गंभीर अन्याय” और “प्रशासनिक निष्क्रियता” पर दुःख व्यक्त किया. नौ-पृष्ठों के सुसाइड नोट में कथित उत्पीड़न और मानसिक यातना के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नामजद किया गया है.
अपने पत्र में, अमनीत ने कहा कि सुसाइड नोट, जिसका शीर्षक “फाइनल नोट” है, को एक मृत्युकालीन घोषणा (डाइंग डिक्लेरेशन) माना जाए. उन्होंने एससी/एसटी अधिनियम के तहत संज्ञेय अपराधों का हवाला दिया. उन्होंने उनकी मृत्यु को उन लोगों के लिए एक बड़ी क्षति बताया, जो उन्हें सशक्तीकरण के प्रतीक के रूप में देखते थे.
इस बीच, कुमार के पार्थिव शरीर को गवर्नमेंट मेडिकल सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के शवगृह में रखा गया है. अधिकारियों ने बताया कि एक बार जब परिवार तैयार हो जाएगा और प्रक्रियात्मक मंजूरी मिल जाएगी, तो डॉक्टरों के एक बोर्ड द्वारा पोस्टमार्टम किया जाएगा. अमनीत, कार्रवाई होने तक पोस्टमार्टम कराने के लिए तैयार नहीं हैं.
इधर, कई राजनीतिक नेताओं ने सरकार से वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की मौत की निष्पक्ष जांच कराने की मांग करते हुए कहा कि न्याय सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आरोप लगाया कि एक दलित आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या सत्तारूढ़ भाजपा की “मनुवादी” व्यवस्था के तहत “सामाजिक अन्याय, अमानवीयता और असंवेदनशीलता” का एक “भयावह प्रमाण” है. खड़गे ने “एक्स” पर एक पोस्ट में कहा, “भाजपा की ‘मनुवादी’ व्यवस्था इस देश के एससी, एसटी, ओबीसी और कमजोर वर्गों के लिए एक अभिशाप बन गई है.” सुप्रीम कोर्ट के वकील द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई पर हाल ही में हुए हमले की ओर इशारा करते हुए, खड़गे ने कहा कि भाजपा ने पिछले 11 वर्षों में इस देश में “मनुवादी मानसिकता को गहराई से मजबूत” कर दिया है. उल्लेखनीय है कि अपने सुसाइड नोट में, आईपीएस कुमार ने लगातार खुलेआम जाति-आधारित भेदभाव, लक्षित मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान के लिए 13 वरिष्ठ अधिकारियों को नामजद किया था, जिनमें 10 आईपीएस और तीन आईएएस अधिकारी शामिल थे.
जहरीला कफ सिरप : एमपी में बच्चों की मौत की संख्या 25 हुई, चेन्नई में दवा कंपनी का मालिक गिरफ्तार, सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई
मध्यप्रदेश में जहरीले कफ सिरप से अब तक 25 बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने देशभर में सिरप बनाने वाली फार्मा कंपनियों की जांच और सैंपल टेस्टिंग करने का फैसला किया है.
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से सिरप बनाने वाली कंपनियों की लिस्ट मांगी है, ताकि उनकी क्वालिटी और सुरक्षा की जांच की जा सके. सीडीएससीओ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) को बताया कि तीन सिरप कोल्ड्रिफ, रेस्पिफ्रेश-टीआर और रिलाइफ पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. वहीं, भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि दवा बनाने से पहले कच्चे माल और तैयार दवाओं की टेस्टिंग जरूर की जाए. जांच में पाया गया है कि कई दवा कंपनियां हर बैच की सही तरीके से जांच नहीं कर रहीं, जिससे दवाओं की क्वालिटी खराब हो रही है.
इससे पहले मध्यप्रदेश की एसआईटी टीम ने बुधवार रात चेन्नई में कोल्ड्रिफ सिरप बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मा के डायरेक्टर गोविंदन रंगनाथन को गिरफ्तार कर लिया. एसआईटी ने कंपनी से महत्वपूर्ण दस्तावेज, दवाओं के नमूने और अन्य रिकॉर्ड भी जब्त किए हैं. इस बीच, इस मामले की सीबीआई जांच और भारत के दवा सुरक्षा ढांचे में व्यापक सुधार की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार 10 अक्टूबर को सुनवाई करेगा.
द हिंदू में मेहुल मालपानी की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने आरोप लगाया कि तमिलनाडु के अधिकारी जांच में “सहयोग नहीं कर रहे हैं”. उन्होंने कहा, “हमारी पुलिस ने जहां दवा का निर्माण हुआ था, वहां गिरफ्तारियां की हैं, लेकिन तमिलनाडु सरकार उस तरह से सहयोग नहीं कर रही है जैसा उसे करना चाहिए. तमिलनाडु के ड्रग कंट्रोलर को फार्मास्युटिकल कंपनी की नियामक जांच करनी चाहिए.”
छिंदवाड़ा के अतिरिक्त कलेक्टर धीरेंद्र सिंह ने बताया कि पारसिया ब्लॉक के दो बच्चों की मौत गुर्दे फेल होने के संदेह में हुई. 22 पीड़ितों में से दो बैतूल से, एक पांढुर्ना से और 19 छिंदवाड़ा से थे. तीन बच्चे अभी भी गंभीर हैं और नागपुर में उनका इलाज चल रहा है.
मुख्यमंत्री यादव ने नागपुर में बच्चों से मुलाकात के बाद तमिलनाडु में दवा कंपनियों की लाइसेंसिंग प्रक्रिया पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा, “इस कंपनी को ड्रग लाइसेंस देने के लिए कौन लोग जिम्मेदार थे? इतनी छोटी सी जगह में फैक्ट्री कैसे चल रही थी? बिना निरीक्षण के लाइसेंस का नवीनीकरण कैसे किया गया?”
छिंदवाड़ा के पुलिस अधीक्षक (SP) अजय पांडे ने द हिंदू को बताया कि श्रेसन फार्मास्यूटिकल्स के मालिक जी. रंगनाथन को मध्य प्रदेश पुलिस की एक एसआईटी ने चेन्नई में उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. पांडे ने कहा, “हम वर्तमान में उनसे पूछताछ कर रहे हैं और निष्कर्षों के आधार पर हम और लोगों पर शिकंजा कसेंगे.”
प्रेस फ्रीडम
भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर ‘लॉफेयर’ और अडानी समूह के ‘गैग ऑर्डर’ का खतरा
मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गंभीर खतरे में है, क्योंकि हाल के अदालती आदेशों ने उद्योगपति गौतम अडानी और उनके समूह को अपने आलोचकों पर सेंसरशिप की व्यापक शक्तियां दे दी हैं. इस तरह के कानूनी दाँव-पेंचों को ‘लॉफेयर’ यानी कानून को हथियार बनाकर युद्ध करना कहा जा रहा है, जिसका इस्तेमाल शक्तिशाली लोग आलोचना को दबाने के लिए कर रहे हैं.
हाल ही में, 6 सितंबर, 2025 को दिल्ली की एक सिविल कोर्ट ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के पक्ष में ‘एकतरफा’ निषेधाज्ञा जारी की. प्रतिवादी पत्रकारों का पक्ष सुने बिना ही जारी इस आदेश ने अडानी समूह को स्वतंत्र पत्रकारों और अन्य लोगों को समूह के खिलाफ “असत्यापित, निराधार और प्रथम दृष्टया मानहानिकारक” रिपोर्ट प्रकाशित करने से रोक दिया.
“नीमन रिपोर्ट्स” में विद्या कृष्णन लिखती हैं कि यह अदालती आदेश कई मायनों में अभूतपूर्व और चिंताजनक था. इसने अडानी समूह को लगभग एक न्यायाधीश के बराबर की शक्तियां दे दीं, जिससे वे इंटरनेट से अपनी आलोचना वाली सामग्री को हटाने का आदेश दे सकते थे, और यह सब बिना किसी और न्यायिक जांच के, जब तक कि कोर्ट खुद कोई फैसला न दे.
यह आदेश विशेष रूप से कठोर था क्योंकि यह न केवल खोजी पत्रकारों, बल्कि पॉडकास्टर्स, व्यंग्यकारों और यहां तक कि सोशल मीडिया पर निजी व्यक्तियों द्वारा किए गए उल्लेखों पर भी लागू होता था. इसे भारत में मुक्त प्रेस को चुप कराने के लिए जन भागीदारी के खिलाफ रणनीतिक मुकदमे के एक उत्कृष्ट उदाहरण के रूप में देखा गया.
इसके बाद, केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस अदालती आदेश का हवाला देते हुए दो मीडिया आउटलेट्स और कई यूट्यूब चैनलों को 138 वीडियो और 83 सोशल मीडिया पोस्ट को हटाने का निर्देश दिया, जिनमें अडानी समूह का उल्लेख था. सरकार द्वारा यह त्वरित कार्रवाई, बिना किसी विशिष्ट न्यायिक निर्देश के, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए गंभीर सवाल खड़े करती है.
हालांकि, पत्रकारों ने इस आदेश को चुनौती दी. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया जैसे प्रेस स्वतंत्रता निकायों ने इस ‘गैग ऑर्डर’ की कड़ी निंदा की और इसे वैध रिपोर्टिंग और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया.
18 सितंबर, 2025 को दिल्ली की रोहिणी कोर्ट के जिला न्यायाधीश आशीष अग्रवाल ने चार पत्रकारों— रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयस्कान्त दास और आयुष जोशी— के खिलाफ दिए गए एकतरफा आदेश को हटाने का आदेश दिया. न्यायाधीश ने मूल निषेधाज्ञा आदेश को “अस्थिर” बताया, यह कहते हुए कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है क्योंकि पत्रकारों को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था.
न्यायालय का यह निर्णय प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थी, जिसने इस बात पर ज़ोर दिया कि कानूनी तंत्रों का इस्तेमाल आलोचनात्मक पत्रकारिता को चुप कराने के लिए हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए.
यह घटनाक्रम दर्शाता है कि भारत में शक्तिशाली हस्तियां, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले अडानी जैसे उद्योगपति शामिल हैं, मीडिया को नियंत्रित करने के लिए कानूनी साधनों का सहारा ले रहे हैं. अडानी समूह ने हाल ही में एनडीटीवी (जो आलोचनात्मक पत्रकारिता का गढ़ माना जाता था) पर भी कब्ज़ा कर लिया था.
विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘लॉफेयर’ की प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए घातक है. अगर व्यवस्थागत विफलताओं या शक्तिशाली व्यावसायिक हितों पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों को चुप कराया जाता रहा, तो यह भारत में स्वतंत्र और निडर पत्रकारिता के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा.
लास्लो क्रास्नाहोर्काई ने साहित्य में 2025 का नोबेल पुरस्कार जीता
द गार्डियन में एम्मा लॉफेगन की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार हंगेरियन लेखक लास्लो क्रास्नाहोर्काई को प्रदान किया गया है. स्वीडिश अकादमी ने यह घोषणा की.
अकादमी ने 71 वर्षीय लेखक के “सम्मोहक और दूरदर्शी कार्य” का हवाला दिया, जो “प्रलयंकारी आतंक के बीच, कला की शक्ति की पुष्टि करता है”.
क्रास्नाहोर्काई अपने डायस्टोपियन (दुःस्वप्नलोक) और उदासी भरे उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं, जिन्होंने 2019 में अनुवादित साहित्य के लिए राष्ट्रीय पुस्तक पुरस्कार और 2015 में अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार सहित कई पुरस्कार जीते हैं. उनके कई कार्यों, जिनमें उनके उपन्यास ‘सैतानटांगो’ और ‘द मेलान्कली ऑफ रेसिस्टेंस’ शामिल हैं, को फीचर फिल्मों में रूपांतरित किया गया है.
क्रास्नाहोर्काई ने कहा, “मैं बहुत खुश हूं कि मुझे नोबेल पुरस्कार मिला है - सबसे बढ़कर क्योंकि यह पुरस्कार साबित करता है कि साहित्य अपने आप में मौजूद है, विभिन्न गैर-साहित्यिक अपेक्षाओं से परे, और यह अभी भी पढ़ा जा रहा है.”
1954 में हंगरी के ग्युला में जन्मे, क्रास्नाहोर्काई ने अपने 1985 के पहले उपन्यास ‘सैतानटांगो’ से अपनी पहचान बनाई, जो एक ढहते ग्रामीण समुदाय का एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला चित्रण है. अक्सर पोस्टमॉडर्न कहे जाने वाले क्रास्नाहोर्काई अपने लंबे, घुमावदार वाक्यों के लिए जाने जाते हैं. समीक्षकों ने उनकी तुलना गोगोल, मेलविले और काफ्का से की है.
नोबेल समिति के अध्यक्ष एंडर्स ओल्सन ने क्रास्नाहोर्काई को “मध्य यूरोपीय परंपरा का एक महान महाकाव्य लेखक” बताया. क्रास्नाहोर्काई की कुछ ही रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है. क्रास्नाहोर्काई को दिसंबर में स्टॉकहोम में एक समारोह में औपचारिक रूप से पदक और डिप्लोमा प्राप्त होगा.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.





