11/03/2025 : तमिलनाडु-दिल्ली में टकराव, कुकी यूएन पहुंचे, भगवंत के खिलाफ किसान, शर्जील की चार्जशीट, क्रिकेट का जुलूस सांप्रदायिक झड़प में बदला,ट्रम्प पर आकार पटेल, भूपेश के घर ईडी, नींद ठीक है आपकी?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ:
मणिपुर में सरकारी दमन की शिकायतें लेकर कुकी-ज़ो यूएन पहुंचा
केंद्र और तमिलनाडु टकराव की तरफ
भगवंत का मान, किसानों का अपमान?
शर्जील को जामिया दंगों का 'मास्टरमाइंड' बताया
तो अल्पसंख्यक क्या करें?
क्रिकेट की जीत का जुलूस सांप्रदायिक झड़प में बदला, 13 गिरफ्तार
कनाडा में यौनाचार करता पंडत गिरफ्तार
डोनल्ड ट्रम्प के समाधान, दुनिया की समस्या
बासमती ने चूस लिया पंजाब का पानी
अंबानी के वंतारा पर दक्षिण अफ्रीका से उठे सवाल
मेज़बान पाकिस्तान को ही नहीं बुलाया मंच पर
मोदी को वानुअतु से भी देशनिकाला
त्रिभाषा और डिलिमिटेशन : केंद्र और तमिलनाडु टकराव की तरफ
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिल नेताओं को असभ्य और बेईमान कहा, संसद में हंगामा, स्टालिन का जवाब-“अहंकारी राजा, अपनी ज़ुबान पर काबू रखो”
त्रिभाषा और डिलिमिटेशन के मुद्दे पर केंद्र और तमिलनाडु के सत्तारूढ़ दल डीएमके के बीच टकराव बढ़ रहा है. संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में सोमवार को यह दिखाई भी दिया, जब इन मुद्दों पर हंगामे के साथ सत्र की शुरुआत हुई. लोकसभा में हंगामे का कारण केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की एक टिप्पणी बनी, जिसे हालांकि उन्होंने बाद में वापस ले लिया और स्पीकर ओम बिरला ने भी कार्यवाही से हटा दिया. लेकिन प्रधान, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल त्रिभाषा से जुड़े एक सवाल के जवाब में ऐसी बात बोल गए कि डीएमके के नाराज सदस्य उखड़ पड़े. प्रधान ने कहा कि तमिलनाडु की सरकार पहले पीएमश्री योजना को लागू करने के लिए सहमत थी, लेकिन अब उसने यू-टर्न ले लिया है. अब ये लोग (डीएमके) राजनीति कर रहे हैं. ये बेईमान हैं. तमिलनाडु के छात्रों के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं और उनका भविष्य बर्बाद कर रहे हैं. इनका एकमात्र काम भाषा की बाधाओं को खड़ा करना है. ये लोग शैतानी कर रहे हैं. ये अलोकतांत्रिक और असभ्य लोग हैं. प्रधान की टिप्पणी से गुस्साए डीएमके सदस्य हंगामा करने लगे, लिहाजा सदन की कार्यवाही आधे घंटे के लिए स्थगित कर दी गई. दोबारा बैठक शुरू हुई तो सांसद कनिमोझी ने कहा कि प्रधान की टिप्पणी से मैं आहत हूं और मुझे काफी तकलीफ हुई है. मंत्री महोदय ने सांसदों और तमिलनाडु के लोगों को असभ्य कहा है. प्रधान पर असत्य बयानी का आरोप लगाते हुए कनिमोझी ने कहा कि हमने हमेशा कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर हमारी कुछ आपत्तियां हैं. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री और शिक्षा मंत्री को भी बताया है कि हम इस नीति को समग्र रूप से स्वीकार नहीं कर सकते. विशेषकर त्रिभाषा नीति राज्य के लोगों को मंजूर नहीं है. संसद के बाहर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने भी प्रधान को “अहंकारी राजा” बताकर तीखे लहजे में जवाब दिया. “एक्स” पर लिखा, “आप, जो तमिलनाडु को पैसा नहीं देकर हमें धोखा देते आ रहे हैं, कह रहे हैं कि तमिलनाडु के सांसद असभ्य हैं. आप एक अहंकारी राजा की तरह बोल रहे हैं. आपने तमिलनाडु के लोगों का अपमान किया है. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसको स्वीकार कर रहे हैं? प्रधान को अनुशासित करने की जरूरत है. उन्हें अपनी जुबान पर काबू रखना चाहिए.” इस बीच डीएमके सांसद कनिमोझी ने लोकसभा सचिवालय को धर्मेन्द्र प्रधान के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दे दिया है. उधर, राज्यसभा में भी डिलिमिटेशन और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर विपक्षी सदस्यों ने वाकआउट किया.
भगवंत का मान, किसानों का अपमान?
पंजाब में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (आप) के विधायकों के आवास व कार्यालयों के बाहर धरना दिया. यह विरोध पंजाब सरकार द्वारा 5 मार्च के प्रदर्शन रोकने के लिए किसान नेताओं को हिरासत में लेने के खिलाफ है. एसकेएम के आह्वान पर 70 से अधिक स्थानों पर किसान जुटे. किसान मुख्यमंत्री भगवंत मान के उन बयानों से नाराज हैं, जिनमें उन पर "समानांतर सरकार" चलाने और विकास बाधित करने का आरोप लगाया गया. अखिल भारतीय किसान संगठन के प्रेम सिंह भंगू ने आप पर "जाट बनाम गैर-जाट" विभाजन फैलाने का आरोप लगाया. भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उग्राहन, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया था, ने कहा, "पिछली सरकारों ने भी विरोध दबाए, लेकिन आप ने हद पार कर दी. मान ने बैठक से इनकार कर पहले का समर्थक रुख बदल दिया." उन्होंने याद दिलाया कि मान 2020-21 के किसान आंदोलन में शामिल हुए थे, जब दिल्ली में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ धरना चल रहा था. उग्राहन के अनुसार, 17 मांगें राज्य सरकार से जुड़ी हैं, जैसे छह फसलों (बासमती, मक्का, मूंग आदि) को एमएसपी, कृषि नीति लागू करना, और आंदोलन में मरे किसानों के लिए स्मारक. एक मांग केंद्र से जुड़ी है, जिस पर दिसंबर 2021 में सहमति बनी थी. उन्होंने कहा, "हमारी लड़ाई कॉरपोरेट के खिलाफ है, जो छोटे किसान-व्यापारियों को नष्ट कर रहा है." किसान नेता आप की "धरना राजनीति" को भी कोस रहे हैं, क्योंकि पार्टी का उदय ही 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था. उग्राहन ने कहा, "जनता के संघर्षों को दबाने की कोशिश आप की दोहरी नीति है."
मणिपुर में सरकारी दमन की शिकायतें लेकर कुकी-ज़ो यूएन पहुंचा
कुकी-ज़ो संगठन ने शनिवार को कांगपोकपी में हुए "क्रैकडाउन" के बाद संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त से मणिपुर में समुदाय के खिलाफ भेदभाव पर ध्यान देने की अपील की है, जिसमें एक व्यक्ति की गोलीबारी में मौत हो गई थी. कांगपोकपी में कुकी-ज़ो बहुल इलाके में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष हुआ था. प्रदर्शनकारी केंद्र सरकार के "मुक्त आवागमन" की पहल का विरोध कर रहे थे, जिसके तहत मणिपुर में बस सेवाएं फिर से शुरू की जा रही थीं, लेकिन यह राजनीतिक समाधान के बिना, खासकर मैतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच संघर्ष को हल किए बिना किया जा रहा था. कुकी संगठन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट ने शनिवार रात एक बयान में कहा, “हम संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त, वोल्कर टर्क से अपील करते हैं कि वे मणिपुर में कुकी-ज़ो समुदाय के खिलाफ धार्मिक और जातीय भेदभाव और मानवाधिकारों का उल्लंघन नोट करें.” टर्क, जो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त हैं, उन्होंने 3 मार्च को 58वीं मानवाधिकार परिषद की बैठक में कश्मीर और मणिपुर का जिक्र किया था. हालांकि, दिल्ली ने टर्क के बयान को "निराधार" बताया था. भारत के स्थायी प्रतिनिधि अरिंदम बागची ने कहा था कि "भारत और हमारे विविधता और उदारता से युक्त सभ्यतागत मूल्यों को समझने की आवश्यकता है." इधर कांगपोकपी और अन्य कुकी-ज़ो इलाकों जैसे चुराचांदपुर और तेंगनौपाल में रविवार को कुकी-ज़ो काउंसिल द्वारा आहूत अनिश्चितकालीन बंद के कारण आम जनजीवन ठप हो गया. प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया. कुकी-ज़ो संगठन इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि केंद्र सरकार की "मुक्त आवागमन" नीति बिना किसी राजनीतिक समाधान के जारी करने का इरादा हिंसा को बढ़ावा दे सकता है. कुकी-ज़ो संगठन "मुक्त आवागमन" शुरू करने से पहले अपनी क्षेत्रीय मांगों के अनुसार उन्हें संघ राज्य क्षेत्र का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. मणिपुर में प्रदर्शन जारी हैं. महिला प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर के कांगपोकपी जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग-2 को रविवार (9 मार्च 2025) को ब्लॉक कर दिया. चुराचंदपुर के पहाड़ी जिले में भी बंद देखा गया, जिसने वाहनों की आवाजाही को प्रभावित किया. कुकी-जो क्षेत्रों में वालंटियर समूहों द्वारा अनिश्चितकालीन बंद की घोषणा की गई थी.
अदालत ने शर्जील को जामिया दंगों का 'मास्टरमाइंड' बताया
नई दिल्ली में साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने सोमवार को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों के दौरान 15 दिसंबर 2019 को जामिया नगर में हुए हिंसक दंगों में एक्टिविस्ट शर्जील इमाम की कथित भूमिका पर आरोप तय किए. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने इमाम को सिर्फ एक प्रदर्शनकारी नहीं, बल्कि दंगों, आगजनी और हिंसा का "मास्टरमाइंड" करार दिया. आदेश में कहा गया कि इमाम के भाषण सिर्फ उत्तेजक नहीं, बल्कि "ज़हरीले" थे, जिनका मकसद सांप्रदायिक तनाव भड़काना और जनता को हिंसा के लिए उकसाना था. कोर्ट ने कहा, "उनके भाषणों से समुदायों के बीच नफ़रत फैली, जिसका नतीजा हिंसा के रूप में सामने आया. यह घृणा भाषण था." इमाम पर आरोप है कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय को भड़काकर कई राज्यों में सड़कें जाम करवाईं, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ. कोर्ट ने इमाम के इस दावे को खारिज कर दिया कि वह शांतिपूर्ण प्रदर्शन के पक्षधर थे. न्यायाधीश ने कहा, "दिल्ली जैसे शहर में मास स्केल चक्काजाम लगाना आपराधिक लापरवाही है. अगर किसी मरीज की मौत देरी से इलाज मिलने पर होती, तो यह गैर इरादतन हत्या का मामला होता."
इमाम के अलावा, आशु खान, चंदन कुमार और आसिफ इकबाल तन्हा पर भी आरोप तय किए गए. मोबाइल लोकेशन डेटा और मीडिया इंटरव्यू को उनकी भूमिका का प्रमाण बताया गया.
12 और 13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया में दिए गए भाषणों को हिंसा भड़काने का प्रयास बताया गया. कोर्ट ने कहा, "इमाम ने मुसलमानों में डर फैलाया कि सरकार उन्हें डिटेंशन कैंप में रख रही है." धारा 124A (राजद्रोह) के आरोप सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक रोक दिए गए हैं, जब तक कानून की संवैधानिकता पर फैसला नहीं होता. 15 अन्य आरोपियों को मोबाइल लोकेशन डेटा को अकेले प्रमाण न मानते हुए बरी कर दिया गया. कोर्ट ने कहा, "मोबाइल लोकेशन किसी की मौजूदगी का पुख्ता सबूत नहीं."
ईडी का छापा भूपेश बघेल के घर
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोमवार को छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में 14 स्थानों पर छापेमारी की, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके बेटे के आवास भी शामिल थे, यह छापेमारी एक कथित शराब घोटाले के संबंध में की गई. 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि ईडी को जानकारी मिली है कि चैतन्य बघेल ने कथित तौर पर शराब घोटाले के अपराध से अर्जित आय प्राप्त की थी. कांग्रेस ने बघेल के आवास पर छापे को "सुर्खियाँ बदलने की रणनीति" बताया. ईडी ने बघेल के बेटे चैतन्य, उनके सहयोगी पप्पू बंसल व अन्य के परिसरों पर मनी लॉन्ड्रिंग जांच में छापेमारी की. बघेल ने बताया कि ईडी ने उनके घर से ₹32-33 लाख जब्त किए, जो कृषि आय का हिस्सा हैं. साथ ही, एक पेन ड्राइव भी लिया गया, जिसमें डॉ. रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता और मंतू पवार के बीच करोड़ों के लेन-देन का रिकॉर्ड है. उन्होंने ईडी पर "सेलेक्टिव जांच" का आरोप लगाते हुए कहा कि एजेंसी ने डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक की कंपनी 'शैलेट' के कागज़ात नहीं लिए, जिस पर कोर्ट ने जांच के आदेश दिए हैं. ईडी का दावा है कि 2019-2022 के बीच शराब घोटाले में ₹2,161 करोड़ की अवैध कमाई हुई. सिंडिकेट ने कांग्रेस नेता एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर और सेवानिवृत्त आईएएस अनिल टुटेजा के नेतृत्व में समानांतर शराब व्यवस्था बनाई. छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (CSMCL) ने केवल उन विक्रेताओं से शराब खरीदी, जो सिंडिकेट को कमीशन देते थे. कथित तौर पर 75% रकम कांग्रेस नेताओं को दी जाती थी. अवैध कच्ची शराब बेचने के लिए डिस्टिलरों को सिंडिकेट से बोतलें और होलोग्राम मिलते थे.
कनाडा में यौनाचार करता पंडत गिरफ्तार : कनाडा के ओंटारियो प्रांत की पील पुलिस ने 69 वर्षीय एक धार्मिक नेता अशोक कुमार (जो अशोक शर्मा के नाम से भी जाना जाता है) को यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया है. पील पुलिस का कहना है कि एक महिला 3 मार्च को धार्मिक अनुष्ठान के लिए आरोपी के आवास पर गई थी, जहाँ उसने दावा किया कि उसका यौन उत्पीड़न किया गया. अशोक कुमार को 7 मार्च 2025 को गिरफ्तार किया गया. पुलिस का मानना है कि आरोपी ने ब्रैम्पटन में कई वर्षों तक धार्मिक नेता के रूप में कार्य किया है, हो सकता है कि कुछ और अन्य भी यौन उत्पीड़न के शिकार हुए हों. पुलिस ने मामले की जानकारी रखने वाले लोगों से अनुरोध किया है कि वे इस जांच में मदद करें.
क्रिकेट की जीत का जुलूस सांप्रदायिक झड़प में बदला, 13 गिरफ्तार
मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के महू कस्बे में रविवार (10 मार्च 2025) को भारतीय क्रिकेट टीम की चैंपियंस ट्रॉफी की फाइनल जीत की खुशी में आयोजित एक रैली के बाद हिंसा भड़क उठी. रैली पर कथित रूप से पथराव किया गया. पुलिस के अनुसार, अब तक 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि रैली के दौरान दो पक्षों के बीच विवाद हुआ, जो पथराव और आगजनी में बदल गया. क्रिकेट प्रेमियों ने भारत के चैंपियंस ट्रॉफी जीतने पर एक रैली निकाली थी. जब वे जामा मस्जिद क्षेत्र के पास पहुंचे तो एक समूह ने उन पर पथराव किया. इससे अफरा-तफरी मच गई और उन्हें अपनी मोटरसाइकिलें छोड़कर भागना पड़ा. इसके बाद कुछ लोगों ने छोड़ दी गई मोटरसाइकिलों में आग लगा दी, जिससे स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई.
वहीं जामा मस्जिद के इमाम ने बताया, “रविवार रात को मस्जिद में जब तरावीह की नमाज चल रही थी, उसी समय एक जुलूस शोर मचाता गुजरा. जैसे ही नमाज खत्म हुई और लोग मस्जिद से बाहर निकल रहे थे, तभी किसी ने मस्जिद के अंदर सुतली बम फेंका, जिससे चारों तरफ धुआं फैल गया. इससे लोगों में दहशत फैल गई, जिसके कारण झड़प हुई.” इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इमाम ने यह भी सवाल उठाया, “जुलूस इस सड़क पर कैसे आया? इसकी उन्हें अनुमति किसने दी? अगर पुलिस से इजाजत मिली थी तो कितने लोगों और वाहनों को अनुमति दी गई थी?”
वहीं अधिकारियों ने शांत रहने और सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों पर विश्वास न करने का आग्रह किया है.
विदेशी सैलानी से बलात्कार हत्या के बाद पर्यटकों ने हम्पी छोड़ा : पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों विदेशी पर्यटक दक्षिणी भारत स्थित यूनेस्को विरासत स्थल हम्पी को छोड़कर चले गए हैं. पिछले दिनों दो महिलाओं - एक इजरायली पर्यटक और एक भारतीय होमस्टे मालिक - के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी. हमलावरों ने महिलाओं के साथ बलात्कार करने से पहले तीनों पुरुषों को पास की नदी में धकेल दिया था. जिले के पुलिस अधीक्षक राम अरसिद्दी ने बताया, इनमें से दो तैरकर सुरक्षित निकल गए, जबकि तीसरा ओडिशा का था, वह डूब गया. पुलिस ने तीनों आरोपियों को हालांकि गिरफ्तार कर लिया गया है. वैश्विक स्तर पर सुर्खियां बटोरने वाली इस घटना ने पर्यटकों में भय पैदा कर दिया और पूरे भारत में सनसनी फैला दी. पुलिस ने तीनों आरोपियों को हालांकि गिरफ्तार कर लिया गया है. वैश्विक स्तर पर सुर्खियां बटोरने वाली इस घटना ने पर्यटकों में भय पैदा कर दिया और पूरे भारत में सनसनी फैला दी. कभी हिंदू विजयनगर साम्राज्य की राजधानी रहे हम्पी को 1986 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था. कर्नाटक टूरिस्ट गाइड्स एसोसिएशन के महासचिव विरुपाक्ष वी हम्पी के अनुसार, इस इलाके में हर साल एक लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटक आते हैं, मगर हमले की खबर के बाद से ज़्यादातर पर्यटकों ने या तो बुकिंग रद्द कर दी है या फिर वापस चले गए हैं.
फिच रेटिंग्स ने अडानी की कंपनी को दिया नेगेटिव आउटलुक 'रायटर्स' की खबर है कि फिच रेटिंग्स ने भारतीय ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस लिमिटेड को नकारात्मक आउटलुक दिया है, जिसका कारण कॉर्पोरेट गवर्नेंस और चल रही अमेरिकी जांचों से संभावित जोखिम हैं. यह कार्रवाई उस समय हुई है, जब अमेरिकी अधिकारियों ने अरबपति गौतम अडानी और अडानी समूह के शीर्ष अधिकारियों पर भारतीय पावर कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए करीब 22 सौ करोड़ की रिश्वत देने और अमेरिकी निवेशकों को फंडिंग के दौरान गुमराह करने का आरोप लगाया था.
बासमती ने चूस लिया पंजाब का पानी
पंजाब के अमृतसर के किसान हरवंत सिंह और ईरान के अमीर घफूरीमनेश के बीच एक विरोधाभासी रिश्ता है. हरवंत बासमती उगाते हैं, जबकि अमीर जैसे लोग उस चावल का सेवन करते हैं. दोनों ही जल संकट वाले क्षेत्रों में रहते हैं, लेकिन पंजाब पानी की कमी झेलते हुए भी बासमती निर्यात करता है. यह चावल मोटे तौर पर ईरान, सऊदी अरब, इराक जैसे देशों को जाता है, जो स्वयं पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं. भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती निर्यातक है, जो 2013-2023 में 170 से ज्यादा देशों को आपूर्ति कर चुका है. पर यही व्यापार अब पंजाब के लिए संकट बन गया है. 'इंडियास्पेंड' ने पंजाब के जल संकट और चावल की खेती पर एक विस्तृत रिपोर्ट की है.
पंजाब में बासमती उत्पादन का विस्तार 1991 के बाद हुआ, और निर्यात 37 गुना बढ़ा. लेकिन इसकी खेती के लिए भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है. अमृतसर, तरनतारन और संगरूर जैसे जिलों में जलस्तर प्रतिवर्ष 1 मीटर गिर रहा है. 1960-61 में चावल की खेती महज 6.6% क्षेत्र में होती थी, जो 2008-09 तक 65.57% तक पहुँच गई. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि यही हाल रहा, तो अगले 15-30 वर्षों में पंजाब में पीने का पानी भी नहीं बचेगा.
1997 से किसानों को मुफ्त बिजली मिल रही है, जिससे वे ट्यूबवेल के जरिए भूजल का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं. कुदरती तौर पर पानी जिस रफ्तार से वापस उसी स्तर तक आता है, यह दोहन उससे तीन गुना तेज़ है. सरकार ने "पर ड्रॉप मोर क्रॉप" जैसी योजनाओं में ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा दिया, लेकिन पंजाब में ये प्रयास नाकाफ़ी रहे. मुफ्त बिजली के कारण किसान पारंपरिक सिंचाई पद्धतियों पर निर्भर हैं.
सरकारी नीतियाँ जल संरक्षण में विफल रही हैं. किसान मानते हैं कि वे तभी नई तकनीक अपनाएंगे जब पानी पूरी तरह खत्म हो जाएगा. फिलहाल, चावल और गेहूं जैसी जल-गहन फसलों का रकबा बढ़ रहा है, और पंजाब का भूजल भंडार तेजी से सिकुड़ रहा है. यह संकट न केवल पंजाब, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी चिंताजनक है.
विश्लेषण
आकार पटेल : जो ट्रम्प के लिए समाधान हैं, वही दुनिया के लिए मुसीबत
अगर डोनाल्ड ट्रम्प का कहना सही है कि दूसरे देश अमेरिका को 'लूट' रहे हैं, तो यह लूट उन्हीं देशों के नुकसान के लिए ज्यादा है.
कुछ समस्याएं मानवता ने मिलकर पैदा की हैं और उन्हें मिलकर ही सुलझाना होगा. कुछ समस्याएं स्थानीय स्तर पर बनती हैं. जलवायु परिवर्तन, उदाहरण के लिए, एक ऐसा मुद्दा है जिसे पूरी दुनिया को मिलकर हल करना होगा. अगर आधी दुनिया अपने उत्सर्जन कम करे और बाकी आधी बढ़ाए, तो समस्या हल नहीं होगी. पृथ्वी का वायुमंडल और महासागर सभी को जोड़ते हैं.
स्थानीय समस्याएं सत्ता के असंतुलन और उपद्रव भड़काने की इच्छा से पैदा होती हैं. यूक्रेन एक उदाहरण है, गाजा दूसरा. यह समझना मुश्किल है कि 2025 की दुनिया में रंगभेद, जातीय सफाया और नरसंहार कैसे स्वीकार्य हो गए हैं.
फिर कुछ ऐसी "समस्याएं" भी हैं जिन्हें समस्या माना ही नहीं जाता, लेकिन उनके नाम पर दुनिया को दंडित किया जाता है. अमेरिका के व्यापार घाटे को टैरिफ के जरिए संतुलित करने की कोशिश ऐसी ही एक 'सज़ा' है.
अमेरिकी राष्ट्रपति के मुताबिक, यह जरूरी है, क्योंकि वर्तमान व्यवस्था अमेरिका के साथ "भारी अन्याय" करती है और दूसरे देश "हमें लूट रहे हैं". क्या सच में? अगर हां, तो यह "लूट" उन देशों के लिए ज्यादा घातक साबित हुई है.
विश्व बैंक के अनुसार, दुनिया की प्रति व्यक्ति औसत जीडीपी $13,000 है. ज्यादातर देश इससे काफी नीचे हैं : भारत ($2,500), इंडोनेशिया ($4,800), ईरान ($4,400), इराक ($5,500), थाईलैंड ($7,100), वियतनाम ($4,200). सब-सहारा अफ्रीका (जनसंख्या भारत के लगभग बराबर) की प्रति व्यक्ति जीडीपी $1,600 है. ब्रिक्स सदस्यों में ब्राज़ील ($10,200), रूस ($13,800), दक्षिण अफ्रीका ($6,000), और चीन ($12,600) हैं. कुछ देश वैश्विक औसत से कहीं आगे हैं : यूरो क्षेत्र का औसत $45,000 (जर्मनी $54,000, फ्रांस $44,000, इटली $39,000). ब्रिटेन फ्रांस के आसपास ही है.
अमेरिका $82,000 के साथ वैश्विक औसत से छह गुना और भारत से 30 गुना आगे है.
यह अमेरिका को दुनिया का सबसे अमीर बड़ा देश बनाता है. इसी वजह से डॉलर वैश्विक रिज़र्व करेंसी है और अमेरिका प्रतिभाशाली लोगों की पहली पसंद बना हुआ है. प्रवासन से उसकी जनसंख्या बढ़ रही है, और उसके कॉर्पोरेट और अकादमिक क्षेत्र में विदेशी मूल के लोगों का दबदबा है. यही उसके भविष्य की गारंटी है.
2004 से अमेरिकी प्रति व्यक्ति जीडीपी दोगुनी हो गई है, जबकि यूरोप का आंकड़ा ठहरा हुआ है. अमेरिका में असमानता की समस्या है, लेकिन यह उसका आंतरिक मुद्दा है, न कि दुनिया पर थोपने लायक, जो औसत अमेरिकी से कहीं गरीब है.
हाल ही में ट्रम्प ने भारत के बारे में कहा : "भारत हम पर भारी टैरिफ लगाता है. कोई चीज़ बेचना भी मुश्किल है... अब वे टैरिफ कम करने को राजी हुए हैं, क्योंकि कोई उनकी पोल खोल रहा है."
मुक्त व्यापार पर चाहे जो राय हो, भारत को अपने लोगों के हितों की रक्षा और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता. एक ऐसे देश में, जहां एक अरब लोग गैर-जरूरी चीज़ें खरीदने में असमर्थ हैं और सिर्फ जिंदगी घसीटने पर ही खर्च करते हैं, विकसित देशों से खरीदने के लिए क्या बचता है?
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, अमेरिका का व्यापार घाटा उसके बजट घाटे का प्रतिबिंब है. 2024 में यह घाटा $1.8 ट्रिलियन था. यह उधारी डॉलर की मांग बढ़ाती है, जिससे निर्यात मुश्किल और आयात आसान हो जाता है. "ट्विन डेफिसिट" सिद्धांत कहता है कि बजट संतुलित करने पर व्यापार घाटा कम होगा, लेकिन ट्रम्प के टैक्स कट से यह संभव नहीं.
मेक्सिको की प्रति व्यक्ति जीडीपी ($13,790) वैश्विक औसत के आसपास है, कनाडा ($53,000) अमेरिका से $30,000 पीछे. ट्रम्प का यह कहना कि ये देश "बुरी नीयत" से व्यापार कर रहे हैं, आंकड़ों से मेल नहीं खाता.
दुनिया के बाजारों में जो उथल-पुथल दिख रही है, वह एक शक्तिशाली देश के एक व्यक्ति द्वारा जानबूझकर पैदा की गई है.
कुछ समस्याएं ऐसी हैं, जिनसे मानवता को जूझना ही होगा, और ये इतनी जटिल हैं कि हमारा पूरा ध्यान चाहिए. फिर भी, कुछ ऐसी "समस्याएं" भी थोपी जा रही हैं, जो कुछ हफ्ते पहले तक अस्तित्व में भी नहीं थीं, लेकिन अब दुनिया का बड़ा हिस्सा उन्हीं में उलझा है.
लेखक स्तंभकार हैं और एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारत प्रमुख हैं.
तो अल्पसंख्यक क्या करें?
लोकतंत्र में नफरत, विभाजनवादी और सौतेलेपन की राजनीति की चुनौती और उससे पार पाने के समाधान
21वीं सदी में पापुलिज्म की राजनीति करने वाले नेता "हम बनाम वे" की राजनीति करके अल्पसंख्यकों को राष्ट्रीय पहचान के लिए ख़तरा बताते हैं. डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी जैसे नेता बहुसंख्यकों को "शुद्ध" और अल्पसंख्यकों (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग आधारित) को "खतरनाक" ठहराते हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दावा है कि भारत में मुस्लिम आबादी बढ़कर हिंदुओं को दबाएगी, हालाँकि मुस्लिम जनसंख्या 15% है, जबकि हिंदू 75% हैं. ऐसा बदलाव होने में तीन सदियाँ लग सकती हैं. फिर भी, अतार्किक भय फैलाकर ये नेता सत्ता में टिके रहते हैं. जिंदल इंस्टीट्यूट ऑफ बिहेवियरल साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर भास्कर मालू ने द वायर में उन विकल्पों के बारे में लिखा है, जिस पर अल्पसंख्यक वर्ग को संगठित और प्रभावी होने में मदद मिल सकती है.
मालू के मुताबिक लोकलुभावन नेता समाज को "भीतरी" (इनग्रुप) और "बाहरी" (आउटग्रुप) समूहों में बाँटते हैं. यह विभाजन मनुष्य की सामाजिक समझ का हिस्सा है, लेकिन इन नेताओं ने इसे अमूर्त पहचानों में बदल दिया है. उदाहरण के लिए, भारत के पूर्वोत्तर में मुख्यभूमि के लोगों को "बाहरी" बताया जाता है, भले ही वे दशकों से वहाँ बसे हों. "शुद्ध जनता" को भ्रष्ट अभिजात वर्ग और अल्पसंख्यकों के खिलाफ खड़ा किया जाता है, जो भावनाओं को भड़काकर विभाजन को गहरा करता है.
सामाजिक मनोविज्ञान के अल्पसंख्यक प्रभाव सिद्धांत (सेर्ज मोस्कोविसी) के अनुसार, अल्पसंख्यक तीन रणनीतियों से बदलाव ला सकते हैं: पहला, सुसंगतता के साथ एकजुट संदेश और समन्वित प्रयास, जैसा कि एलजीबीटीक्यू आंदोलनों ने नस्ल, लिंग और यौन पहचान के मुद्दों को जोड़कर अपनी आवाज़ मजबूत की. दूसरा, निरंतरता यानी लगातार प्रयास से दबाव बनाना जैसा अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन ने अहिंसक रुख बनाए रखकर समाज को बदला. तीसरा संवाद यानी बहुसंख्यकों के साथ सीधा संपर्क जैसा फ्रांस में मुस्लिम-गैर मुस्लिम समुदायों के बीच संवाद से इस्लामोफोबिया कम हुआ.
इसके अलावा उन्हें गठजोड़ और लचीलेपन का रास्ता भी खोजते रहना होगा. जैसा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ सफेद सहयोगियों ने बदलाव में अहम भूमिका निभाई. भारत में दलित अधिकार आंदोलन ने संवैधानिक प्रतिनिधित्व की मांग को मजबूत किया. पॉपुलिस्ट विरोध के बावजूद, साझा इतिहास और सांस्कृतिक पहचान से अल्पसंख्यक एकजुट रह सकते हैं.
मालू कहते हैं कि पॉपुलिज्म की राजनीति अल्पसंख्यकों के लिए चुनौती है, पर यह बदलाव का मौका भी है. सुसंगतता, संवाद और सहयोगियों के जरिए अल्पसंख्यक न केवल अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि समाज को समावेशी बना सकते हैं. जैसा कि मोस्कोविसी ने दिखाया, अल्पसंख्यकों के विचार, अगर स्पष्टता और साहस के साथ प्रस्तुत किए जाएँ, तो बहुसंख्यकों को पॉपुलिज्म की राजनीति का शिकार बनने से बचा सकते हैं.
अंबानी के वंतारा पर दक्षिण अफ्रीका से उठे सवाल
दक्षिण अफ्रीकी वन्यजीव संरक्षण संगठनों के एक समूह ने गुजरात में अम्बानी के ग्रीन जूलॉजिकल रेस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर वंतारा में भेजे गए जानवरों पर सवाल उठाए हैं. इनमें चीता, बाघ, तेंदुआ और शेर जैसे जानवर शामिल हैं. हाल ही में इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. दक्षिण अफ्रीका के वाइल्डलाइफ एनिमल प्रोटेक्शन फोरम ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार के वन, मत्स्य और पर्यावरण विभाग के साथ ही दक्षिण अफ्रीका के सीआईटीईएस (संविधान पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार) प्रबंधन प्राधिकरण और वैज्ञानिक प्राधिकरण दक्षिण अफ्रीका के अध्यक्ष को भी इस मसले पर एक पत्र लिखा है. यह पत्र 6 मार्च को भेजा गया था, जिसमें एक रिपोर्ट "न तो बचाव और न ही संरक्षण : भारत के वंतारा में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए जंगली जानवरों का संग्रह." नाम की भी शामिल थी.
टेलीग्राफ की खबर के अनुसार, अंबानी परिवार की ओर से वंतारा को "वन्यजीव बचाव, पुनर्वास और संरक्षण केंद्र" कहकर प्रचारित किया जाता रहा है. यहां पर 2,000 से अधिक प्रजातियों और 1.5 लाख से अधिक बचाए गए, संकटग्रस्त और खतरे में पड़े जानवरों को रखने का दावा अंबानी की ओर से किया जाता रहा है. साल 2017 में स्थापित दक्षिण अफ्रीका का वाइल्डलाइफ एनिमल प्रोटेक्शन फोरम तकरीबन 30 संगठनों का नेटवर्क है और इसे जंगली जानवरों और उनके प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण और सुरक्षा के मुद्दे पर सरकारों से संवाद करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है. संगठन ने वंतारा को 'चिड़ियाघर' कहा है. संगठन का कहना है कि वंतारा में जंगली जानवरों के आयात पर "वैध चिंताएँ" उठाई गई हैं. रिपोर्ट में वंतारा और वहां जानवरों के निर्यात पर चिंता व्यक्त की गई है. "वंतारा रिलायंस के पेट्रोकेमिकल परिसर के पास स्थापित किया गया है" दस्तावेज़ में इसका उल्लेख किया गया है. हाथी शिविर रिलायंस इंडस्ट्रीज के जामनगर रिफाइनरी के हरे इलाके में स्थित है. इस पर भी चिंता व्यक्त की गई है कि चिड़ियाघर में हाथियों और अन्य जानवरों के लिए हवा की गुणवत्ता कैसी है, क्योंकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2016 के एक सर्कुलर के अनुसार, तेल रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल निर्माण उच्च प्रदूषणकारी उद्योग हैं.
वंतारा को आपूर्ति करने वालों के बारे में दस्तावेज़ में जिक्र है कि "एनिमल्स 24-7 एक 501 (c)(3) गैर-लाभकारी संगठन है, जिसका यूएसए के वाशिंगटन राज्य में पंजीकरण है. इस संगठन ने 2025 में वंतारा पर एक लेख प्रकाशित किया. लेख के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका के उत्तर पश्चिम प्रांत में एक आपूर्तिकर्ता के रूप में अक्वाबा लॉज है. अक्वाबा एक ज्ञात शिकार ब्रीडिंग सुविधा है जिसने पार्क में बंद शिकार शेरों के शिकार किए और यह आरोप लगाया गया है कि इसने विदेशों में जीवित बाघों और बाघ की हड्डियां बेचीं. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि जो चीते दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से भारत भेजे गए थे, वे या तो मर गए थे या जंगलों में छोड़ने के बाद पुनः पकड़ लिए गए थे. जानवरों की एक पूरी सूची भी जारी की गई है.
मेज़बान पाकिस्तान को ही नहीं बुलाया मंच पर
आईसीसी द्वारा पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के अधिकारी को चैंपियंस ट्रॉफी के समापन समारोह में मंच पर आमंत्रित न किए जाने से टूर्नामेंट के मेज़बान नाराज हैं. 'द टेलीग्राफ' की खबर है कि पीसीबी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी समैर अहमद, जो टूर्नामेंट के निदेशक भी थे, उन्हें समारोह में उपस्थिति के बावजूद नजरअंदाज कर दिया गया. पाकिस्तान 29 साल बाद आईसीसी इवेंट की मेज़बानी कर रहा था. भारत के सभी मैच दुबई में खेले गए, जो कि प्रतियोगिता के हाइब्रिड मॉडल का हिस्सा थे. पीसीबी के अध्यक्ष मोहसिन नकवी पहले से ही केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में अपनी प्रतिबद्धताओं के कारण दुबई नहीं गए थे, लेकिन पीसीबी के सीईओ को पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने के लिए फाइनल और समापन प्रस्तुति में भेजा गया था. लेकिन, पीसीबी के अधिकारी को मंच पर नहीं बुलाया गया, जबकि आईसीसी के अध्यक्ष जय शाह, बीसीसीआई के अध्यक्ष रोजर बिन्नी और सचिव देवजीत सैकिया ने खिलाड़ियों को पदक, ट्राफियां और जैकेट वितरित कीं.
बहरहाल, चैंपियंस ट्रॉफी के मेज़बान के रूप में पाकिस्तान के पास मंच पर कोई प्रतिनिधि नहीं था. पीसीबी इस सवाल को आईसीसी के सामने उठाने की उम्मीद कर रहा है कि क्यों उसके सीईओ को समापन समारोह में मंच पर नहीं बुलाया गया? इस बीच, पूर्व तेज़ गेंदबाज शोएब अख्तर ने भी फाइनल के बाद पोस्ट-मैच प्रस्तुति समारोह में पीसीबी अधिकारियों की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया. अख्तर ने 'एक्स' पर पोस्ट एक वीडियो में कहा- "भारत ने चैंपियंस ट्रॉफी जीती, लेकिन मैंने देखा कि फाइनल के बाद पीसीबी का कोई प्रतिनिधि नहीं था. पाकिस्तान चैंपियंस ट्रॉफी का मेज़बान था. मुझे यह समझ में नहीं आता. पीसीबी का कोई भी व्यक्ति ट्रॉफी देने के लिए क्यों नहीं था? यह मेरे लिए समझ से बाहर है. यह सोचने वाली बात है. यह विश्व मंच है, आपको यहां होना चाहिए था. यह देखकर बहुत निराशा हुई."
इजरायल ने काटी गाजा की बिजली, पानी का संकट : 'द गार्डियन' की खबर है कि इज़रायल ने गाजा की बिजली पूरी तरह से काट दी है. इजरायल हमास पर दबाव बढ़ा रहा है. संघर्ष विराम के लिए बढ़ते हुए और जटिल वार्ताओं के बीच यह कदम उठाया गया है. गाजा के 2.3 मिलियन निवासियों के लिए इस निर्णय के परिणाम अभी स्पष्ट नहीं हैं, क्योंकि अधिकांश लोग डीजल जनरेटरों पर निर्भर हैं. इजरायल के इस कदम के कारण गाजा में दो चालू जल शोधन संयंत्रों को बंद करना पड़ सकता है, जिससे पहले से ही कम आपूर्ति वाली पीने के पानी की स्थिति और बिगड़ सकती है. इसके अलावा, यह सीवेज उपचार संयंत्र को भी प्रभावित कर सकता है. हमास ने इस निर्णय की निंदा करते हुए इसे "सस्ता और अस्वीकार्य ब्लैकमेल" करार दिया है.
कनाडा अब बैंकर अर्थशास्त्री मार्क कार्नी के हवाले
पूर्व केंद्रीय बैंकर 59 वर्षीय मार्क कार्नी संघीय लिबरल पार्टी का नेता चुने जाने के बाद कनाडा के अगले प्रधानमंत्री होंगे. कार्नी ने यह पद ऐसे समय संभाला है, जब कनाडा अमेरिका के साथ संभावित रूप से विनाशकारी व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है, जो लंबे समय से उसका सबसे करीबी सहयोगी और सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ था.
यह स्पष्ट नहीं है कि 2008 से 2013 तक बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर और 2013 से 2020 तक बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर रहे कार्नी कब पदभार ग्रहण करेंगे. ट्रूडो और नए लिबरल नेता के आने वाले दिनों में निवर्तमान प्रधानमंत्री के पद पर अंतिम दिन निर्धारित करने के लिए बातचीत करने की उम्मीद है.
85.9% वोट के साथ कार्नी ने पूर्व वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड, पूर्व सरकारी सदन की नेता करीना गोल्ड और पूर्व संसद सदस्य फ्रैंक बेलिस को हराया. कार्नी केवल दूसरे कनाडाई प्रधान मंत्री होंगे, जिनका अपनी नियुक्ति के समय संसद से कोई ठोस संबंध नहीं है. हालांकि कोई नियम इस पर रोक भी नहीं लगाता है, लेकिन परंपरा से पता चलता है कि कार्नी को संघीय सीट के लिए चुनाव लड़ने की योजना की घोषणा जल्दी करनी होगी.
कार्नी निवर्तमान प्रधानमंत्री ट्रूडो के आर्थिक सलाहकार के रूप में लंबे समय तक काम कर चुके हैं. इस दौरान उन्होंने खुद को बाहरी व्यक्ति के रूप में पेश किया था. कार्नी की नियुक्ति ने हाल के हफ्तों में पार्टी की लोकप्रियता में आ रही राजनीतिक गिरावट को उलट दिया है. वह भी इतनी तेजी से कि अगले आम चुनाव में पहले से अपेक्षित कंजर्वेटिव बहुमत की संभावना कम होती जा रही है. सर्वे में यह बदलाव इतना नाटकीय रहा है कि सर्वेक्षणकर्ताओं को कोई ऐतिहासिक मिसाल खोजने में संघर्ष करना पड़ रहा है.
ललित मोदी को वानुअतु से भी देशनिकाला
'द टेलीग्राफ' की खबर है कि आईपीएल के पूर्व अध्यक्ष ललित मोदी ने भारत का पासपोर्ट सरेंडर कर एक छोटे से देश वानुअतु की नागरिकता ले ली थी, लेकिन अब वानुअतु के प्रधानमंत्री ने ललित मोदी को करारा झटका दिया है. वानुअतु के प्रधानमंत्री जोथम नापत ने नागरिकता आयोग से ललित मोदी का पासपोर्ट तत्काल प्रभाव से रद्द करने को कहा है. पीएम ने कहा कि मैंने नागरिकता आयोग को निर्देश दिया है कि वह ललित मोदी का वानुआतु पासपोर्ट तुरंत रद्द कर दे. पीएम ने कहा- 'वानुअतु का पासपोर्ट रखना एक विशेषाधिकार है, ना कि कोई अधिकार. ऐसे में याचिकाकर्ताओं को वैध कारणों से ही नागरिकता लेनी चाहिए.' बता दें कि ललित मोदी ने सात मार्च को लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग में अपना पासपोर्ट सरेंडर कर दिया था. आईपीएल की शुरुआत करने वाले ललित मोदी 15 साल पहले भारत से ब्रिटेन भाग गए थे. भारत लगातार उनके प्रत्यर्पण की मांग करता रहा है. मोदी भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा भारत में उनके कार्यकाल के दौरान बड़े पैमाने पर धन की गड़बड़ी करने के आरोप में वांछित हैं.
वानुअतु दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित है. यहां की अर्थव्यवस्था खास तौर पर खेती, टूरिज्म, मछली पकड़ने और विदेशी वित्तीय सेवाओं पर आधारित है. वानुअतु में निवेश आधारित नागरिकता है. पासपोर्ट की बिक्री यहां की सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है. एक रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक वानुअतु का पासपोर्ट 113 देशों में बिना वीजा के प्रवेश की अनुमति देता है. दिलचस्प बात ये है कि वानुआतु एक टैक्स हेवेन है. यहां इनकम, संपत्ति या किसी तरह का कोई कार्पोरेट टैक्स नहीं लगता है. पिछले दो सालों में 30 अमीर भारतीयों ने यहां की नागरिकता हासिल की है और यहां नागरिकता लेने वालों में चीन के लोग सबसे आगे हैं. वानुअतु, 80 से अधिक द्वीपों का एक समूह है.
चलते-चलते
आप ठीक से सो पाते हैं? ज्यादातर भारतीय नहीं..
59% भारतीय छह घंटे भी नहीं सो पाते .14 मार्च को विश्व नींद दिवस है. इस अवसर पर नोएडा स्थित एक शोध एजेंसी ने एक सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की है. इससे पता चलता है कि 59% भारतीयों को प्रतिदिन 6 घंटे से भी कम की निर्बाध नींद मिल रही है.
सर्वे में विभिन्न पृष्ठभूमि से आने वाले 15,659 उत्तरदाताओं में से 39% का कहना है कि वे महज 4-6 घंटे ही सो पाते हैं, जबकि 20% ने कहा कि वे बिना किसी रुकावट के प्रतिदिन 4 घंटे तक ही सो पाते हैं. यानी इन दोनों को मिलाने पर छह घंटे से कम निर्बाध सोने वालों की संख्या 59% है.
उत्तरदाताओं के अनुसार, निर्बाध नींद न मिलने के कारणों में शौचालय का इस्तेमाल करना पहले नंबर पर था, जबकि अन्य कारणों में घरेलू गतिविधियों के कारण देर से सोना, मच्छर, बाहरी आवाज जैसे अन्य कई कारण थे. कुछ ने तो यहाँ तक कहा कि बस लगातार 8 घंटे सो नहीं पाते.
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