11/05/2025 : सीज़ फायर के बाद भी धमाके | शांति का ट्रम्प कॉर्ड | पुतिन को अल्टीमेटम | चीन अमेरिका में बात शुरु | तीसरी जंग के संकेत | भारत इजराइल समान नहीं | निशिकांत ने पोस्ट हटाया
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
सीज़ फायर का एलान
भारत ने पाकिस्तान के दावों को गलत बताया
चीन बोला, वह पाकिस्तान के साथ खड़ा रहेगा
जो 17 जरूरी काम सरकार अब निपटा सकती है
निधीश त्यागी
अब जब जंग छिड़ने से पहले लड़ाई रुकने की बात हो गई है, अब थोड़ा हम रुक कर देख, सोच समझ सकते हैं वे जरूरी काम जो इस बीच बाकी रह गये थे पूरे कर लिए जाएं. बतौर एक भारतीय नागरिक ऐसी मंशा सामने रखी जा सकती है और सरकार चाहे तो इन पर विचार करके, अगर उसे काम के लगें तो उनपर अमल भी कर सकती है. जाहिर तौर पर अगर ये सुझाव उनके पास पहले से होते, उन पर विचार किया गया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. आगे न आये, उसके लिए इसे बिंदुवार पेश किया जा रहा है.
वे चार लड़के (आतंकवादी) कहां हैं, जो बंदूकें लेकर आए, लोगों को मारा और चले गये? जिनके कारण इतना बड़ा बवाल खड़ा हुआ. जिनके कारण लोग सरहद पर मारे गये. जिनके कारण पिछले चार दिन सायरन शहरों में, और उनसे भी ज्यादा हमारे दिमागों में बजता रहा? पिछले तीन हफ्तों में हम उन्हें अभी तक पकड़ क्यों नहीं पाए? उनकी धरपकड़ के लिए क्या किया गया.
इसी से जुड़ी दो नाकामयाबियों का जिम्मेदार कौन है? एक इंटेलिजेंस, दूसरी सुरक्षा. अभी तक उनपर क्या कार्रवाई की गई? उनसे इस्तीफे कब लिये जाएंगे, उनकी बर्खास्तगी कब होगी. ताकि लोगों को ये आश्वस्ति मिले कि लोगों की जानें सस्ती नहीं हैं, ताकि देश को समझ में आये कि हर पद के साथ जवाबदेही जरूरी होती है, ताकि एक मिसाल कायम हो कि आइंदा इस तरह की लापरवाही की गुंजाइश शून्य रहे. सांप के निकल जाने के बाद लकीर पीटने की अक्षम व्यवस्था खत्म हो.
इतने सारे सर्विलेंस, इंटेलिजेंस, सुरक्षा तैनाती के बाद भी अगर हम सैलानियों की आवाजाही, और आतंकवादियों की घुसपैठ न पकड़ पाए हों, तो उसकी समीक्षा जरूरी है. जिससे एक कार्ययोजना भी बननी चाहिए और देश को बताया जाना चाहिए.
दुनिया के सामने ये सबूत पेश किए जाने चाहिए कि वे चार आतंकवादी पाकिस्तान से थे या उनके सीधे तार वहां से जुड़े हुए थे. सिर्फ अवधारणा और अंदाजों से ये काम नहीं चल सकता. इजराइल के अलावा भारत के साथ दुनिया का एक भी देश खड़ा नहीं हुआ, जो पहलगाम की आतंकवादी घटना के लिए पाकिस्तान की सीधी भर्त्सना करे. यह हमारे तर्क, तथ्य, प्रमाण, कूटनीति, सूझ-बूझ और हमारे विश्वगुरुपन पर बड़ा कटाक्ष है. जबकि पाकिस्तान के पक्ष में चीन और तुर्की के अलावा भी दो-एक देश साफ खड़े हुए. इससे हमारा वैश्विक महत्व, रसूख, इकबाल, गरिमा सब पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. भारत से प्रेम करने वाले हर व्यक्ति की इसमें हेठी होती है. इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए.
कश्मीर के लोगों और वहां कारोबार करने वाले लोगों को इस आश्वस्ति की जरूरत है कि आगे ऐसा नहीं होने दिया जाएगा. सरकार अक्सर अपनी अक्षमता लोगों पर ढोल देती है, जो नकारात्मक रवैये और निकम्मेपन का सुबूत है, जिसकी कीमत लोग चुकाते हैं. उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्यटन और दूसरे भारतीयों की आवाजाही कम न हो. उसके लिए जरूरी सुरक्षा और मुकम्मल इंटेलिजेंस दुरुस्त की जाए. लोगों को तंग किये बिना.
इस तरह के एलानों पर तुरंत रोक लगानी चाहिए कि कश्मीर में सब बढ़िया चल रहा है. जैसे मणिपुर में भी. सरकार को अपनी बात, अपने शब्द, अपने दावों को थोड़ा जिम्मेदारी और गंभीरता से लेना चाहिए. वरना लोगों का भरोसा उखड़ने लगता है. जो हर लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है. अगर सरकार इस बारे में थोड़ा संयमित भाषा का इस्तेमाल करती तो इतने लोग अपने बीवी, बच्चों, बुजुर्गों के साथ कश्मीर की हवा खाने न जाते. ये आमंत्रण उन्हें किसके भरोसे से मिला था? उस पर क्या हुआ. आतंकवादियों ने सैलानियों को मारा. पर मरवाने का इंतजाम किसने किया. सरकार को इस बारे में देश को बताना चाहिए, ताकि उनका अटूट विश्वास बना रहे.
कश्मीर के लोगों ने दिलदारी दिखाते हुए सैलानियों को बचाने, उन्हें खतरे से बाहर लाने, उन्हें पनाह देने का काम किया. सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर यह दिखलाना चाहिए कि वह उनके साथ है. हम सबको मिलकर उनका शुक्रिया करना चाहिए. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार उन्हें अपनी क्रूरताओं का शिकार नहीं बना रही है. कश्मीर के बच्चे जो बाकी जगहों पर पढ़ने आए हैं, उन्हें तंग करने, उनसे नफरत करने, उनके साथ हिंसा करने वालों पर सार्वजनिक तौर पर कड़ी कार्रवाई की ही जानी चाहिए. और सरकार जानती है कि किसके कहने पर ऐसा हो सकता है.
सरहद पर गोलीबारी से जो लोग मारे गये हैं, जो इमारतें टूटी हैं, उनके मुआवजे और भरपाई जल्द करने चाहिए और देश को बताना चाहिए.
सरकार को बहुत तत्परता के साथ उन सारे मीडिया प्लेटफॉर्म्स, चैनल, सोशल मीडिया हैंडलों पर निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए, जो इस पूरे दौरान झूठी, फरेबी, नफरती, खतरनाक, बकवास खबरों की चीख-पुकार मचाते रहे. सरकार को उन्हें विज्ञापन देने बंद करने चाहिए. उन पर आपराधिक मुकदमे दायर करने चाहिए. वहां सरकार और सियासी दलों के प्रतिनिधि भेजने बंद करने चाहिए. इनकी भूमिका किस आतंकवादी से कम है, यह सरकार को लोगों से बताना चाहिए. इनके डेसिबल लेवल रेगुलेट करने चाहिए. अगर लोकतंत्र और देश को बचाना है तो इन बंदरों और बंदरियों के हाथों से उस्तरे छीन लिए जाने चाहिए. ऑपरेशन सिंदूर के ये सबसे सकारात्मक सबक हो सकते हैं. हमें सच, तथ्य, प्रामाणिकता, जनपक्षधरता की तरफ अगर लौटना है तो. अगर सरकार इस मीडिया इंडस्ट्री का इलाज नहीं कर सकती, और ऊपर से असली पत्रकारिता करने वालों पर अंकुश और दमन की कार्रवाई करती है, तो हम देख सकते हैं कि हमारी प्रतिबद्धताएं किसकी तरफ हैं.
यही कार्रवाई सोशल मीडिया पर गाली-गलौज करने, ट्रोल करने वालों पर करनी चाहिए. चाहे वह कश्मीरियों के खिलाफ हो, भारत के मुसलमानों के या शांति की अपील करने वाली हिमांशी नरवाल के. बलात्कारी और हत्यारे बाबाओं को पैरोल दिलवाने में सर खपाने की बजाय सरकार को समाज में फैल रही प्रायोजित और स्वत:स्फूर्त नफरती जहर को काटने के लिए कुछ निर्णायक करता हुआ दिखलाई पड़ना चाहिए.
अपनी असफलताएं छिपाने के लिए कमजोर और मजबूर लोगों को शिकार बनाना सरकार को बंद करना चाहिए. बहुत सारे लोगों को भारत से निकाला गया, उनके परिवारों से दूर किया गया. जो सालों से भारत में सारे कागज़ों और अनुमतियों के साथ रह रहे थे. फिल्में, गाने, संस्कृति को आज के डिजिटल समय में रोकने से सिर्फ खबर बनती है, लागू नहीं होता. युद्धविराम से एक ही दिन पहले आईपीएल बंद करना कुछ समझ नहीं आया. क्या हमें पता नहीं था कि युद्ध विराम होने वाला है? जो दोनों देशों के बीच कारोबार चल रहा था, उसे रोक कर हम दरअसल किसे सजा दे रहे हैं. रोकना फिर भी ठीक है, पर तुरंत और तत्काल? किसका नुक्सान हुआ? कौन भरपाई करेगा? सरकार?
पिछले चार दिनों में विदेश सचिव विक्रम मिसरी के बयान दरअसल संविधान को मानने वाले हर उस भारतीय के दिल को राहत देने वाले हैं, जिसमें वे भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की दुहाई देते हुए आतंकवादियों और पाकिस्तान को कोस रहे थे. मैंने भी लिखा था और बहुत से लोग मानते हैं कि इस ताने-बाने को तहस-नहस करने के लिए पाकिस्तान और आतंकवादियों की जरूरत नहीं है, खुद सरकार और सत्तारूढ़ दल काफी है. अगर सरकार खुद अपने भीतर और अपने सत्तारूढ़ दल और अपनी मातृसंस्था के लोगों से मिसरी के बयानों पर सर्वेक्षण करवाये और सहमति ले, तो भारत का नक्शा ही बदल जाएगा. सरकार चाहे तो यह कर सकती है. संविधान भी तो यही कहता है. अब सीज़ फायर हो चुका है तो सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि देश और उसके नागरिक विदेश सचिव विक्रम मिसरी के दमदार प्रदर्शन को सही मानें या फिर सरकार के मंत्रियों और सत्तारूढ़ दल के नेताओं को.
सीज़ फायर हो जाने से वे तमाम गुत्थियां नहीं सुलझती, जिनके कारण संघर्ष शुरू हुआ था. उसका समाधान भी नहीं निकला है. अब हम सिंधु नदी समझौते और शिमला समझौते का क्या करेंगे. क्या वह भी डोलन भाई के दखल के बाद ठीक होगा. सिर्फ ऑप्टिक्स के चक्कर में हम हकीकत पर कितना पर्दा डाल सकते हैं. उनका अब क्या होगा? उनकी कीमत और भरपाई कहां से आएगी.
अब सीज़ फायर हो गया है तो शायद सरकार उन जहाजों के बारे में बता सकती है, जिनके गिराये जाने के बारे में कई विदेशी चैनल और विशेषज्ञ बात कर रहे हैं. उसमें जान माल की अगर हानि हुई है, उसके बारे में बताया जा सकता है. जहाजों के गिरने या बाकी मोर्चों पर जो फौजी शहीद और घायल हुए हों उनके सम्मान में सरकार कुछ कह सकती है. उनके परिवारों को सांत्वना दे सकती है.
हम उन हथियारों और उपकरणों (जैसे रफाल) की भी समीक्षा कर सकते हैं, जिनके लिए सरकार ने देश के पैसे से उन्हें खरीदा. उनका प्रभाव कैसा रहा. ऐसा कैसे हुआ कि इन चार दिनों की सर फुटव्वल के बाद चीनी जहाज कंपनी के स्टॉक बढ़े और रफाल बनाने वाली के घटे. क्या भारत (और पाकिस्तान के भी) के जान माल हथियार कंपनियों के परीक्षण के लिए हैं? इजराइली टेक्नोलॉजी, जो भारत ने खरीदी और इस्तेमाल की, उनका भी क्या हुआ.
सरकार लोगों की तरफ से लगातार बड़े, महंगे और निर्णायक फैसले करती रही है बिना पारदर्शिता और जवाबदेही अपनाए. बिना उन्हें भरोसे में लिये. सीज़ फायर के बाद अब जब तापमान थोड़ा घटेगा तो उसे इस बारे में सोचना चाहिए कि हर बार इस तरह के फैसलों से मास्टर स्ट्रोक शब्द को भी बुरा लगता होगा. सरकार और जनता के बीच संवाद का एक तरह से ब्रेक डाउन है. जिसमें सरकार को जो करना होता है, वह बिना बताये भी कर सकती है. कहना होता है, कह देती है. लोगों की कहां सुनती है. सरकार को वह चैनल भी खोलना चाहिए.
सरकार के मुखिया 18 घंटे काम करते हैं, लेकिन जब वह सर्वदलीय बैठकों में शामिल नहीं होते, तो यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें ‘काम के घंटे’ बढ़ाकर ‘19’ नहीं कर देना चाहिए? देश जब भी चुनौती का सामना कर रहा हो, सबको साथ लेकर चलना ही चाहिए. विपक्ष भी आतंकवाद के विरोध में सैन्य कार्रवाई के पक्ष में ही था. पर मोदी जी सर्वदलीय बैठक में नहीं दिखे. वह दिल्ली की सुरंग को देर रात कैमरामैन के साथ देखने जा सकते हैं, किसी भी प्लेटफॉर्म पर वंदेभारत को झंडी दिखा सकते हैं, 26 लोगों की जघन्य हत्या के बाद चुनावी रैली में नीतीश कुमार के हाथ में हाथ मारते हुए हंसी-ठठ्ठा करते हुए दिखलाई दे सकते हैं, केरल जाकर शशि थरूर के बहाने अडानी की परियोजना के उद्घाटन समारोह में विपक्ष की खिल्ली उड़ा सकते हैं, लेकिन इतने गंभीर मसले पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर उसमें शामिल नहीं हो सकते? शायद यह एक गंभीर रोचक, रोमांचक रहस्य है. पहेलियां तो सुलझ जाती हैं. रहस्य कभी नहीं. सर्वदलीय बैठक अब फिर बुलाई जा सकती है. प्रधानमंत्री हो सकता है इस बार आ जाएं. सीज़ फायर तो हो ही चुका है. पर बहुत सारे दूसरे सवाल हैं, जिनके जवाब देने का श्रेय किसी और को नहीं मिलना चाहिए.
देश, जनता और लोकतंत्र के जिंदाबाद के लिए शायद सरकार इन पर विचार करना चाहे.
भारत पाकिस्तान संघर्ष
सीज़ फायर का एलान
फिलीस्तीन और यूक्रेन में ट्रम्प जो न करवा पाए, भारत- पाकिस्तान का संघर्ष चार दिन में रुकवाया
शुक्रवार को भारत के जमाई और अमेरिका के उपराष्ट्रपति जे डी वांस जहाँ भारत-पाकिस्तान संघर्ष को ‘नन ऑफ आवर बिजनेस’ बता रहे थे, आज उन्हीं के बॉस डोनल्ड ट्रम्प ने युद्ध विराम की घोषणा सबसे पहले की. ट्रम्प को दुबारा राष्ट्रपति बने सौ दिन ही हुए हैं और वे यह कहकर सत्ता में आये थे कि आते ही रूस और यूक्रेन के साथ साथ इजराइल और फिलीस्तीन की जंग रुकवा देंगे. वहां तो जंग जारी है, पर यहाँ उन्होंने चार दिनों में ही सीज़ फायर के लिए दोनों देशों को तैयार कर लिया. इस सीज़ फायर के पीछे अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो की सक्रिय भूमिका बताई जा रही है.
इसके पहले शनिवार (10 मई 2025) को शाम ढलते-ढलते खबर आ गई कि भारत और पाकिस्तान सीज़ फायर के लिए राजी हो गए हैं. सबसे पहले (भारतीय समय अनुसार शाम 5.33 बजे) यह खबर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने ‘एक्स’ हैंडल पर दी. उनकी पोस्ट के करीब आधा घंटा बाद भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने प्रेस ब्रीफिंग में इस खबर की पुष्टि कर दी. मिसरी ने कहा कि पाकिस्तान के डीजीएमओ ने शनिवार दोपहर 3.35 बजे भारतीय डीजीएमओ को फोन किया. सहमति बनी कि दोनों पक्ष आज (शनिवार) शाम 5 बजे से जमीन, हवा और समुद्र में सभी तरह की फायरिंग और सैन्य कार्रवाई बंद कर देंगे. इस सहमति को लागू करने के लिए दोनों पक्षों को निर्देशित किया गया है. अब दोनों पक्षों के डीजीओ 12 मई को दोपहर 12 बजे फिर से बात करेंगे.
मिसरी की प्रेस ब्रीफिंग के पहले ट्रम्प ने ‘एक्स’ पर कहा था, “अमेरिका की मध्यस्थता में रात भर चली बातचीत के बाद मैं यह बताते हुए प्रसन्न हूं कि भारत और पाकिस्तान पूर्णतः और तुरंत सीज़ फायर के लिए राजी हो गए हैं. मैं दोनों देशों को समझदारी और बुद्धिमत्ता भरा फैसला लेने के लिए बधाई देता हूं”
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने ट्रम्प की पोस्ट के लगभग 5 मिनट बाद 5.38 पर ट्वीट करते हुए लिखा, “पाकिस्तान और भारत ने तत्काल प्रभाव से सीज़ फायर पर सहमति जताई है. पाकिस्तान अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से समझौता किए बगैर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिए हमेशा प्रयासरत रहा है.
भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने भी शाम 6.10 बजे खबर की पुष्टि करते हुए ‘एक्स’ पर लिखा, “भारत और पाकिस्तान फायरिंग और सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए आज सहमत हुए हैं. भारत ने आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों के खिलाफ सतत दृढ़ और अडिग रुख अपनाया है और वह ऐसा ही आगे भी करता रहेगा.”
दोनों मुल्कों के बीच सीज़ फायर के बारे में ट्रम्प के एलान के कुछ देर बाद अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी ‘एक्स’ पर बताया, “पिछले 48 घंटे से उपराष्ट्रपति वांस और मैं भारत व पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत में व्यस्त रहे हैं, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शहबाज शरीफ, विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर, पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर और दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और असीम मलिक शामिल हैं. रुबियो ने कहा, "भारत और पाकिस्तान की सरकारें सीज़ फायर के साथ ही तटस्थ स्थल पर व्यापक मुद्दों पर वार्ता शुरू करने पर भी सहमत हुई हैं.” हालांकि, ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने भारतीय सरकारी सूत्रों के हवाले से लिखा कि गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई को रोकने का निर्णय ‘सीधे दोनों देशों के बीच’ तय किया गया. इस मामले में पहल पाकिस्तान की तरफ से हुई. पाकिस्तान के डीजीएमओ का आज दोपहर फोन आया, जिसके बाद चर्चा शुरू हुई और एक समझौता हुआ. किसी अन्य मुद्दे पर या किसी अन्य स्थान पर बातचीत करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया.
पाकिस्तान ने भारत के साथ सीज़फायर के बाद अपने हवाई क्षेत्र को सभी प्रकार की उड़ानों के लिए खोल दिया है. पाकिस्तान एयरपोर्ट अथॉरिटी ने बताया कि भारत-पाक तनाव के कारण बंद की गई हवाई सेवाओं को अब पूरी तरह बहाल कर दिया गया है, और सभी उड़ानों का संचालन सामान्य रूप से शुरू हो गया है. इससे पहले, 8 मई को जब दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव बढ़ा था, तब कराची के जिन्ना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कई यात्री फंसे रह गए थे.
भारत-पाकिस्तान 'सीज़फायर' का जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने स्वागत किया
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि शासन में मौजूद नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम का स्वागत किया और शत्रुता समाप्त करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया. एनसी अध्यक्ष ने पार्टी मुख्यालय नवा-ए-सुब्हा से जारी एक बयान में युद्धविराम का समर्थन करते हुए यह स्वीकार किया कि जम्मू-कश्मीर के लोगों और उनकी संपत्ति पर मौजूदा हालात का गंभीर प्रभाव पड़ा है. उन्होंने कहा - “हमारे लोग, जो एलओसी (नियंत्रण रेखा) और आईबी (अंतरराष्ट्रीय सीमा) के पास रहते हैं, वे दोनों देशों के बीच बिगड़ते हालात का खामियाजा भुगतते रहे हैं. यह कदम हमारे लोगों की पीड़ा को काफी हद तक कम करेगा, जो इस संघर्ष में फंसे हुए थे.” पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी अपनी पार्टी द्वारा जारी एक वीडियो में कहा, “यह जम्मू-कश्मीर के उन लोगों के लिए अच्छी खबर है जो पिछले कई दिनों से सीमा पार गोलाबारी की वजह से परेशान थे. मुझे यकीन है कि इस खबर ने सरहद के दोनों ओर राहत की सांस दी होगी.”
सीज़ फायर
लागू होते ही उल्लघंन, श्रीनगर, उधमपुर में धमाके
शनिवार को ट्रम्प, भारत और पाकिस्तान के सीज़ फायर के एलान के कुछ घंटे बाद ही जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर और उधमपुर में धमाकों और सायरन की आवाज़ें सुनाई देने लगीं. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कथित सीज़ फायर के बारे में दो पोस्ट कीं. रात 8.53 बजे पहली पोस्ट में कहा कि यह कैसा सीज़ फायर (युद्ध विराम) है? उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “यह युद्धविराम के साथ क्या हो गया? श्रीनगर में हर तरफ धमाकों की आवाज़ें!!!” सूत्रों के अनुसार, उधमपुर में भारी गोलाबारी हुई और श्रीनगर में कई धमाके हुए. ऐलान था कि शाम 5 बजे से सीज़ फायर लागू करने पर सहमति बन गई है, लेकिन रात 9 बजकर 10 मिनट पर मुख्य मंत्री उमर अब्दुल्ला ने ‘एक्स’ पर एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, “यह कोई युद्धविराम नहीं है. श्रीनगर के बीचों-बीच स्थित वायु रक्षा इकाइयों ने अभी-अभी कार्रवाई शुरू कर दी है.” इस वीडियो को एक घंटे के भीतर ही 32 लाख से ज्यादा व्यू मिल चुके थे. इसमें फायरिंग और धमाकों की आवाज़ें भी सुनाई दे रही हैं. इस बीच जम्मू के नगरोटा सैन्य अड्डे पर गोलीबारी में एक सुरक्षा जवान घायल हो गया. जम्मू-कश्मीर के नगरोटा मिलिट्री स्टेशन के पास संदिग्ध गतिविधि देखे जाने पर सतर्क जवान ने चुनौती दी, जिसके बाद संक्षिप्त गोलीबारी हुई. फिलहाल सुरक्षा बल इलाके में तलाशी अभियान चला रहे हैं और संदिग्ध घुसपैठियों की तलाश जारी है.
इस बारे में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने देर रात कहा कि पिछले कुछ घंटों से पाकिस्तान की ओर से सीज़ फायर समझौते का उल्लंघन हो रहा है. भारतीय सेना जवाबी कार्रवाई कर रही है और अतिक्रमण से निपट रही है. ये अतिक्रमण बेहद निंदनीय है और पाकिस्तान इसके लिए जिम्मेदार है.
विदेश सचिव ने कहा, “हम पाकिस्तान से आग्रह करते हैं कि वह इन उल्लंघनों का समाधान करने के लिए उचित कदम उठाए और स्थिति को गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ संभाले. हमारा मानना है कि पाकिस्तान इस स्थिति को ठीक से समझे और इस अतिक्रमण को रोकने के लिए तुरंत उचित कार्रवाई करे. सेना इस स्थिति पर कड़ी नजर रखे हुए है और उसे किसी भी अतिक्रमण से निपटने के लिए ठोस और सख्त कदम उठाने के आदेश दिए गए हैं. ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने शनिवार देर शाम सीमावर्ती जिले कच्छ में ‘कई ड्रोन देखे जाने’ के बाद पूर्ण ब्लैकआउट की घोषणा की.
उनकी यह पोस्ट कच्छ जिला कलेक्टर के सीज़ फायर की घोषणा के बाद लगातार तीसरी रात के लिए जिले में ब्लैकआउट के आदेश रद्द करने के दो घंटे बाद आई. संघवी ने लोगों से कहा कि कच्छ जिले में कई ड्रोन देखे गए हैं. अब पूरी तरह ब्लैकआउट लागू किया जाएगा. कृपया सुरक्षित रहें, घबराएं नहीं.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्धविराम समझौते के कुछ ही घंटों बाद नियंत्रण रेखा (एलओसी) के कुछ इलाकों में छोटे हथियारों और मोर्टार से फायरिंग की है. सूत्रों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में भी पाकिस्तानी ड्रोन देखे गए हैं, जो पिछले दो रातों की बढ़ती कार्रवाई के पैटर्न को दर्शाते हैं. एलओसी के पास जम्मू के राजौरी जिले के सुंदरबनी और नौशेरा क्षेत्रों में फिर से गोला-बारी शुरू हो गई है. राजस्थान के बाड़मेर जिले के जिला मजिस्ट्रेट ने एक आपातकालीन अलर्ट जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि हवाई हमला होने वाला है और जिले में "तत्काल ब्लैकआउट" लागू करने के लिए कहा गया है. इसके अलावा “टाइम्स ऑफ इंडिया” के अनुसार जैसलमेर, बीकानेर और श्रीगंगानगर जैसे सीमावर्ती जिलों में भी रेड अलर्ट जारी किया गया है. जिला प्रशासन और पुलिस ने लोगों से अपने घरों में रहने, बाजार बंद करने और सभी प्रकार की आवाजाही तुरंत रोकने के निर्देश दिए हैं. राजस्थान के साथ ही जम्मू-कश्मीर और पंजाब में भी सतर्कता बरतते हुए ब्लैक आउट लागू किया गया है. संपूर्ण युद्धविराम की घोषणा के बावजूद पाकिस्तानी ड्रोन भारतीय वायु सीमा में घुसपैठ कर रहे हैं. पंजाब के भी अमृतसर, फिरोजपुर, बरनाला, पठानकोट, बठिंडा और संगरूर जिलों में ब्लैक आउट लागू कर दिया गया है.
अल जज़ीरा के ओसामा बिन जावेद ने लाहौर, पाकिस्तान से रिपोर्ट करते हुए कहा, "लोग युद्धविराम का स्वागत कर रहे हैं, लेकिन हमें यह भी याद दिलाया जा रहा है कि यह कितना अस्थिर है ; नियंत्रण रेखा पर पहले ही युद्धविराम उल्लंघन हो रहे हैं."
"हमें स्थानीय सूत्रों से पता चला है कि कश्मीर क्षेत्र में कई स्थानों पर गोलीबारी का आदान-प्रदान हुआ है, और कुछ प्रक्षेप्य पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में भी प्रवेश कर गए हैं," उन्होंने कहा.
"हम श्रीनगर में तेज धमाकों की आवाज़ें भी सुन रहे हैं, जो शनिवार सुबह और दोपहर को भी सुनी गई थीं. पूरे इलाके में सायरन बज रहे हैं और बिजली काट दी गई है," पत्रकार उमर मेहराज ने श्रीनगर से अल जज़ीरा को बताया.
"मैं आसमान में उड़ते हुए गोले देख सकता हूं. यह स्पष्ट नहीं है कि वे मिसाइलें हैं या वायु रक्षा प्रणाली इन हमलों को रोक रही है. बारामूला और जम्मू में भी इसी तरह के धमाकों की खबरें आ रही हैं," मेहराज ने कहा.
कई इलाकों में बिजली काट दी गई है, जिससे भ्रम की स्थिति और बढ़ गई है. धमाकों की प्रकृति को लेकर कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं मिला है, कुछ निवासियों ने खुद को "परित्यक्त और असहाय" महसूस करने की बात कही.
"एक धमाका इतना जोरदार था कि दीवारें हिल गईं. अधिकारी यह स्पष्ट नहीं कर रहे हैं कि क्या हो रहा है; हमारे पास कोई शरण स्थल नहीं है, न ही हमने कोई सायरन सुना. हमें नहीं पता क्या करना है. सिर्फ डर है," श्रीनगर के एक निवासी ने अल जज़ीरा को बताया.
भारत ने पाकिस्तान के दावों को गलत बताया
इससे पहले युद्ध विराम के एलान के बाद रक्षा मंत्रालय ने प्रेस ब्रीफिंग की. इसमें कर्नल सोफिया कुरैशी ने पाकिस्तान की तरफ से गलत सूचनाएं फैलाने की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान का यह दावा पूरी तरह गलत है कि उसने अपने जेएफ-17 से हमारे एस400 और ब्रह्मोस मिसाइल बेस को नुकसान पहुंचाया. पाकिस्तान का यह दुष्प्रचार भी असत्य है कि हमारे एयरफील्ड्स-सिरसा, जम्मू, पठानकोट, भटिंडा, नलिया और भुज-को नुकसान पहुंचाया गया. पाकिस्तान के दुष्प्रचार के अनुसार, हमारे चंडीगढ़ और व्यास में स्थित गोला-बारूद डिपो को नुकसान पहुंचाया गया, जो पूरी तरह से गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने भारतीय सेना पर मस्जिदों को नुकसान पहुंचाने का झूठा आरोप लगाया है. "मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और हमारी सेना भारत के संवैधानिक मूल्यों का एक सुंदर प्रतिबिंब है," सोफिया ने कहा.
कमोडोर रघु आर. नायर ने बताया कि ज़मीन, हवा और समुद्र में सभी सैन्य गतिविधियों को रोकने के लिए एक समझौता हो गया है. भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना को इस समझौते का पालन करने का निर्देश दिया गया है. विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में, जैसा हमने देखा, पाकिस्तान को हमारे ठिकानों पर बिना उकसावे के हमले के बाद बहुत भारी और असहनीय नुकसान हुआ है. उसे ज़मीन और हवा दोनों में नुकसान उठाना पड़ा है. पाकिस्तान के महत्वपूर्ण एयरबेस-स्कर्दू, जैकोबाबाद और भोलारी-को व्यापक क्षति पहुंची है. भारतीय सशस्त्र बलों ने केवल चिन्हित सैन्य ठिकानों को ही निशाना बनाया और आतंकवादी शिविरों व भारत विरोधी गतिविधियों से जुड़े ढांचों पर ही हमले किए. कोई भी धार्मिक स्थल निशाने पर नहीं था. इसके अतिरिक्त, कमोडोर नायर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना पूरी तरह सतर्क और तैयार हैं, और देश की संप्रभुता व अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. भविष्य में उकसावे की किसी भी कार्रवाई का निर्णायक जवाब दिया जाएगा.
चीन बोला, वह पाकिस्तान के साथ खड़ा रहेगा
इस बीच चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने शनिवार को कहा कि उनका देश पाकिस्तान की "संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता" की रक्षा में उसके साथ खड़ा रहेगा. चीनी विदेश मंत्री ने ये टिप्पणियां पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार के साथ टेलीफोन पर बातचीत के दौरान कीं, जैसा पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने जारी बयान में कहा है. बातचीत के दौरान, डार ने वांग यी को क्षेत्रीय स्थिति और ताजा घटनाक्रम के बारे में जानकारी दी. वांग यी ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में पाकिस्तान की संयमित और जिम्मेदाराना रुख की सराहना की.
इतवारी वाचन
हम क्या तीसरी जंग की तरफ बढ़ रहे हैं या वह पहले ही शुरू हो चुकी है?
यह लेख 'द गार्डियन' से लिया गया है और इसके राजनयिक संपादक पैट्रिक विंटौर द्वारा लिखा गया है. यह वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य, संघर्षों के बढ़ते अंतरसंबंध और संभावित विश्व युद्ध की ओर दुनिया के झुकाव पर चर्चा करता है. थोड़ा से यूरोप और ब्रिटेन केंद्रित है पर इस समय की दुनिया को समझने और समझाने की ईमानदार कोशिश करता है. यह भारत - पाकिस्तान के बीच सीज़ फायर की घोषणा से पहले लिखा गया है.
पैट्रिक विंटौर द्वारा राजनयिक संपादक, द गार्डियन
एक सप्ताह में जब फिर से बंट रहे विश्व में पूर्व सहयोगी दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति की 80वीं वर्षगांठ को अलग-अलग मना रहे थे, तीसरे विश्व युद्ध की ओर एक अनियंत्रित गिरावट का एहसास लगातार करीब आता जा रहा है.
पैक्स अमेरिकाना का पतन, संघर्षों का अंतरसंबंध, अनियंत्रित राज्य-प्रायोजित हिंसा का सहारा लेने की नई इच्छा और नियम-आधारित व्यवस्था की संस्थाओं की अप्रासंगिकता ये सभी इस सप्ताह क्रूरता से प्रदर्शित हुए हैं. कश्मीर से लेकर खान यूनिस, होदेइदाह, पोर्ट सूडान और कुर्स्क तक, एकमात्र आवाज धमाकों की है, और एकमात्र सबक यह है कि पुराने नियम अब लागू नहीं होते हैं.
फियोना हिल, नीति विश्लेषक और यूके सरकार की आसन्न रणनीतिक रक्षा समीक्षा पर सलाहकार हैं. उनका तर्क है कि तीसरा विश्व युद्ध पहले ही शुरू हो चुका है, बशर्ते हम इसे पहचान लें.
एक ऐसी दुनिया का डर शायद ही नया हो, जिसमें विज्ञान या वैश्वीकरण के कारण कोई भी अब नियंत्रण में नहीं है. यह अवधारणा दो रीथ व्याख्यानों का शीर्षक (रनअवे वर्ल्ड / बेकाबू दुनिया) थी, एक 1967 में सामाजिक मानवविज्ञानी एडमंड लीच द्वारा और दूसरा 1999 में राजनीतिक दार्शनिक एंथनी गिडेंस द्वारा. लेकिन शायद ही कभी यह इतना स्पष्ट हुआ हो कि 1945 में निर्मित नियम-आधारित विश्व व्यवस्था तेज़ी से पीछे हट रही है.
पूर्व लेबर विदेश सचिव डेविड मिलिबैंड ने इस सप्ताह चैथम हाउस में इसे अच्छी तरह से रखा, “मुझे पता है कि लोग हमेशा कहते हैं कि दुनिया बदल रही है, लेकिन यह वास्तविक भू-राजनीतिक उथल-पुथल का क्षण लगता है, कम से कम उतना ही महत्वपूर्ण जितना कि 1989-90 जब दुनिया शीत युद्ध से एकध्रुवीय क्षण में प्रवेश कर रही थी, और मेरे लिए ट्रम्प प्रशासन चल रहे परिवर्तनों का लक्षण और कारण दोनों है.”
“समस्या यह है कि यह बहुत अधिक स्पष्ट है कि हम किस स्थिति से बदल रहे हैं – एक ऐसी दुनिया, जिसमें अमेरिका वैश्विक व्यवस्था का आधार था – लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि हम किस ओर बदल कर कहां की तरफ जा रहे हैं. मुझे पता है कि शक्ति संतुलन के पुनर्वितरण को दर्शाने वाले एक बहुध्रुवीय दुनिया के विचार के बारे में बहुत चर्चा है, लेकिन मुझे वह अवधारणा बहुत अधिक स्थिरता, बहुत अधिक सुरक्षा प्रदान करती हुई लगती है.” उनके एक समय के गुरु टोनी ब्लेयर ने कैलिफ़ोर्निया में एक बातचीत में तर्क दिया : “हर किसी को उनकी सहजता की स्थिति से बाहर निकाल दिया गया है. राजनीतिक हलकों से जो शोर आप सुन रहे हैं, वह विकल्पों के लिए उन्मत्त खोज है. लोग दुनिया में अपनी स्थिति और अपने रिश्तों पर फिर से विचार कर रहे हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक बड़ा झटका है. यह अमेरिका और दुनिया के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण भू-रणनीतिक घटना है जिसे मैं याद कर सकता हूँ.” पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के लिए, सहयोगियों को अलग-थलग करने के प्रति डोनाल्ड ट्रम्प की उदासीनता एक विध्वंसक काम है. उन्होंने कहा कि दुनिया भर के राजनयिक पूछ रहे थे : ‘यह चल क्या रहा है’.
ब्लिंकन ने कहा कि अमेरिका ने विश्वास बनाने, मजबूत आर्थिक साझेदारी और सैन्य तथा राजनीतिक गठबंधन बनाने में 80 साल लगाए थे, और अगर उसे फिर 100 दिनों के भीतर गिरा दिया जाए तो उसे फिर से बनाना अविश्वसनीय रूप से कठिन होगा. “इसका मतलब है कि देश हमारे इर्द-गिर्द काम करने के तरीके तलाशते हैं, साथ मिलकर काम करने के लिए लेकिन अमेरिका के बिना,” उन्होंने कहा. “यह संभावना कि आज जो कहा जाएगा, वह कल उलट दिया जाएगा, और फिर से उलट दिया जाएगा, इसका मतलब है कि वे हम पर भरोसा नहीं कर सकते. जो बाइडेन कहते थे कि अमेरिका के खिलाफ दांव लगाना कभी भी अच्छा विचार नहीं है. समस्या अब यह है कि लोग अब अमेरिका पर दांव नहीं लगा रहे हैं.”
नियमों को रौंदना
अमेरिका की वापसी के दुखद परिणाम पूरे सप्ताह दिखाई दे रहे हैं. यह विश्व युद्ध हो सकता है या नहीं भी हो सकता है लेकिन यह युद्धग्रस्त दुनिया है.
गाजा में दुनिया ने देखा है कि भोजन, सहायता और चिकित्सा आपूर्ति पर नाकाबंदी, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के बाध्यकारी आदेशों की अवहेलना करते हुए, अब अपने तीसरे महीने में प्रवेश कर गई है. इज़राइल ने सुरक्षा के नाम पर पिछले महीने यमन, लेबनान, सीरिया और गाजा पर बमबारी की है. वह प्रतिदिन अमेरिका से ईरान पर बमबारी की अनुमति का आग्रह कर रहा है.
जब इज़राइल के अति-दक्षिणपंथी वित्त मंत्री बेज़लेल स्मोट्रिच ने मंगलवार को गाजा पट्टी के लिए अपना नजरिया साझा किया, तब ट्रम्प अब इसका क्या ही कर सकते हैं. स्मोट्रिच ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि आधे साल के भीतर इस क्षेत्र की आबादी केवल भूमि के एक संकीर्ण हिस्से तक सीमित रह जाएगी, बाकी के साथ ‘पूरी तरह से नष्ट’ हो जाएगा. स्मोट्रिच केवल ट्रम्प की गाजा को फिलीस्तीनियों से पूरी तरह खाली कराने की योजना का एक संस्करण दोहरा रहे थे. और यह योजना उसके दूत द्वारा बातचीत किए गए युद्धविराम की शर्तों के बिल्कुल विपरीत थी.
‘सेटलमेंट कॉन्फ्रेंस’ में बोलते हुए स्मोट्रिच ने यह भी घोषणा की कि इज़राइल वेस्ट बैंक में ‘संप्रभुता लागू करेगा’ वर्तमान सरकार के कार्यकाल के भीतर, जिसका कार्यकाल अक्टूबर 2026 में समाप्त होने वाला है, जब तक कि पहले चुनाव न बुलाए जाएं. “कुछ महीनों के भीतर, हम यह घोषणा करने में सक्षम होंगे कि हमने जीत हासिल कर ली है. गाजा पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा,” स्मोट्रिच ने कहा. “अगले छह महीनों में, हमास एक कार्यशील इकाई के रूप में मौजूद नहीं रहेगा.”
ट्रम्प के चुप्पी साधने पर, जवाब देना यूरोप पर छोड़ दिया गया था. “यह यूरोपीय संघ और पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए जागने का समय है,” बेल्जियम के विदेश मंत्री मैक्सिम प्रेवोट ने कहा. उन्होंने नाकाबंदी को ‘एक पूर्ण अपमान…’ कहकर निंदा की. “यह स्वीकार्य नहीं है; जानबूझकर सभी मानवीय सहायता, भोजन, स्वास्थ्य सेवा, बिजली और पानी तक सभी पहुंच को युद्ध रणनीति के रूप में बंद करना, पूरी तरह से अस्वीकार्य है.” फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा : “अगर हम यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन करने के लिए रूस की निंदा करते हैं, तो गाजा में ऐसा होने पर हम चुप नहीं रह सकते. हमास से लड़ा जाना चाहिए, हाँ, लेकिन सभी नियमों को रौंदने की कीमत पर नहीं.” उन्होंने यूरोप से एकजुट प्रतिक्रिया का आह्वान किया, फिर भी पोलैंड में विदेश मंत्रियों की बैठक में 27 मंत्री एक संयुक्त बयान पर भी सहमत नहीं हो सके. इज़राइल के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौते को निलंबित करने के लिए संयुक्त कार्रवाई तो दूर की बात है, जो एक डच प्रस्ताव था.
इस बीच पोर्ट सूडान में, सूडान में मानवीय सहायता के लिए रास्ता, रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) के ड्रोन ने बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया, ठीक उसी तरह जैसे इज़राइली बमों ने इस सप्ताह होदेइदाह में करने की कोशिश की है, जो यमन में सहायता के लिए मुख्य प्रवेश बिंदु है. सोमवार को सूडानी सरकार द्वारा संयुक्त अरब अमीरात को आईसीजे में आरएसएफ को हथियार आपूर्ति करने के लिए जवाबदेह ठहराने का प्रयास विफल हो गया. यूएई, कई अन्य देशों की तरह, नरसंहार सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता है, लेकिन इसने एक आरक्षण दर्ज किया है जिसमें जोर दिया गया है कि सम्मेलन के साथ इसका अनुपालन ICJ की कार्यवाही के अधीन नहीं है. आईसीजे ने बिना चूँ करते हुए निष्कर्ष निकाला कि अधिकार क्षेत्र की स्पष्ट कमी थी. केवल एक न्यायाधीश, सोमाली के अब्दुलकावी अहमद यूसुफ ने आपत्ति जताई.
तो यूएई सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने का श्रेय प्राप्त करता है अपनी बाध्यताओं को पूरा करने पर आंका जाने की जरूरत को पूरा किये बिना. यह यूके के विदेश सचिव डेविड लैमी पर छोड़ दिया गया है पक्षों को युद्धविराम के लिए मनाने का एक साहसी प्रयास करने के लिए, लेकिन अब तक यह विफल रहा है. इसके विपरीत, अमेरिका, RSF नेताओं को नरसंहारवादी करार देता है लेकिन व्यावहारिक राजनयिक शर्तों में कुछ नहीं करता है.
कश्मीर में, जहां दो परमाणु-सशस्त्र राज्य एक दूसरे के विमानों पर रॉकेट दाग रहे हैं, अमेरिकी हित की स्पष्ट अनुपस्थिति है. अमेरिका का भारत या पाकिस्तान में कोई राजदूत नहीं है और कोई वरिष्ठ विदेश विभाग अधिकारी नियुक्त नहीं है. यह संघर्ष अमेरिकी मीडिया में सुर्खियां नहीं बना रहा है, और ट्रम्प की शुरुआती प्रतिक्रिया थी ‘यह शर्म की बात है’ और यह कि “अगर आप इसके बारे में सोचते हैं तो वे कई, कई दशकों, और सदियों से, वास्तव में लड़ रहे हैं”.
भारत-पाकिस्तान के बीच पिछले विवादों में दोनों पक्षों को शांत करने में मदद करने के लिए एक निर्णायक अमेरिकी हस्तक्षेप लगा. जुलाई 1999 में वाशिंगटन में, बिल क्लिंटन ने व्यक्तिगत रूप से पाकिस्तान के तत्कालीन नेता नवाज शरीफ को पीछे हटने के लिए दबाव डाला, जिसे एक अधिकारी ने क्लिंटन के राष्ट्रपति पद के दौरान किसी विदेशी नेता के साथ सबसे अहम बैठक कहा.
पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने अपने संस्मरण में खुलासा किया कि फरवरी 2019 में दोनों पक्ष परमाणु युद्ध के कितने करीब आ गए थे, जिसे उन्होंने हनोई की यात्रा के दौरान एक सुरक्षित होटल के कमरे से बहुत बेचैनी के साथ रोकने में मदद की. चिंताजनक रूप से, भारत अब इस मुद्दे को आतंकवाद के रूप में पेश नहीं कर रहा है, बल्कि इसे राज्य-बनाम-राज्य विवाद के रूप में पेश कर रहा है, यह कहकर कि मूल मुद्दा पाकिस्तान का आतंकवाद के लिए ढाल के रूप में काम करना है.
एक मुकम्मल विश्वासघात
ये संघर्ष अनुपस्थित अमेरिकी नेतृत्व और स्थायी उथल-पुथल के सामान्य धागे को छोड़कर अलग-थलग हो सकते हैं. लेकिन यूक्रेन में विश्व युद्ध के संरचनात्मक तत्व एक साथ आते हैं, फियोना हिल का तर्क है. मृत्यु दर का पैमाना दूसरे विश्व युद्ध से अलग हो सकता है, लेकिन इस सप्ताह यूके सेना के अनुसार रूस को 900,000 हताहतों का सामना करना पड़ा है, चेचन्या और अफगानिस्तान में पिछले युद्धों के दौरान हुए नुकसान से कहीं अधिक.
इसके अलावा, युद्ध अब, हिल के शब्दों में, “कई देशों के बहुआयामी भार वाले सिस्टम-बदलने वाले संघर्ष हैं”, जिन पर रूसी सवार हैं चीनी-झंडे वाले ट्रॉलर्स का बाल्टिक सागर में पानी के नीचे के केबल तोड़ना व्लादिमीर पुतिन के वैश्विक युद्ध का केवल एक हिस्सा है. चीन, उत्तर कोरिया और ईरान सभी रूस का समर्थन कर रहे हैं, कुछ अधिक भौतिक तरीकों से जैसे ड्रोन फैक्ट्री बनाना या सैनिकों की आपूर्ति करना. अन्य देशों का एक समूह रूस को आर्थिक रूप से सहारा देने में खुश रहा है ऐसे तरीकों से जो उनकी तटस्थता को विवादित बनाते हैं.
भारत, जिसके साथ यूके ने इस सप्ताह एक मुक्त व्यापार समझौता पूरा किया है, ने युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से €112bn (एक अरब 7 करोड़ 59 लाख रुपये) का तेल खरीदा है, और रूसी हथियार भी खरीदे हैं. संघर्ष को रूस और उसके सहयोगियों द्वारा अमेरिकी आधिपत्य के बारे में एक युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया गया है. ट्रम्प की स्पष्ट रूप से एक योजना थी अमेरिका को आग की चपेट से बाहर निकालने की और रूस के साथ संबंधों को एक अलग पायदान पर लाने की. यह एक ऐसी इच्छा है जिसे वह 1980 के दशक से पाले हुए हैं. ट्रम्प दुनिया को पुतिन के समान शब्दों में देखते हैं – कुछ संप्रभु शक्तियां भूमि को प्रभाव क्षेत्रों में बांट रही हैं. उनका सपना है पुतिन और संभवतः शी जिनपिंग के साथ याल्टा 1945 को फिर से दोहराना, यूरोप एक दर्शक के रूप में और यूक्रेन विखंडित हो. लेकिन इस मुकम्मल विश्वासघात का आयोजन करना अपेक्षा से अधिक कठिन साबित हुआ है.
व्हाइट हाउस में, ट्रम्प ने वलोडिमिर ज़ेलेंस्की से बहुत ताव में कहा : “आपको आभारी होना चाहिए. आपके पास पत्ते नहीं हैं.” लेकिन ट्रम्प ने अपने पत्तों को ज्यादा ही खेल दिया. और उन्हें अपनी आत्मघाती टैरिफ युद्ध से दूर फेंक दिया. और फिर पता चला कि ज़ेलेंस्की के पास वास्तव में कुछ पत्ते बचे थे, उन्हें कुशलता से उपयोग करते हुए 30-दिवसीय युद्धविराम की पेशकश कर, अमेरिका के साथ एक खनिज समझौता, और पश्चिमी सुरक्षा के लिए यूक्रेन के सैन्य मूल्य पर ध्यान केंद्रित कर.
पोप के अंतिम संस्कार में बैठक में ट्रम्प और ज़ेलेंस्की की अंतरंग तस्वीर में (एक तस्वीर जो ज़ेलेंस्की के चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमक ने ली थी) सुलह की बू आ रही थी और फिर भी, ट्रम्प के अहंकार को खुश कर रही थी. वाशिंगटन में अब माहौल में बदलाव देखा जा सकता है. यहां तक कि जेडी वेंस, उपराष्ट्रपति, जो कभी ज़ेलेंस्की के खिलाफ प्रमुख उकसावे वाले थे, ने इस सप्ताह स्वीकार किया कि रूस ‘बहुत अधिक मांग रहा था’ और कहा कि यूरोप और अमेरिका ‘एक ही टीम में थे’.
यूरोप के नेता हालांकि इसका तहे दिल से स्वागत करेंगे, लेकिन अब पूरे यूरोप को साफ पता है कि यूरोप के पास अमेरिका से स्वायत्त रूप से संचालित होने की क्षमता होनी चाहिए. और सिर्फ पेरिस में नहीं. वेंस के आश्वासन की परवाह किए बिना भी. ट्रम्प अपने आप में साफ तौर पर विश्वसनीय नहीं हैं. और पुतिन को लेकर ट्रम्प के जो मुलायम विचार हैं, उससे यूरोप के नेता सहमत नहीं हैं.
यूक्रेन में एक यूरोपीय आश्वासन बल के लिए योजना चल रही है, जैसा यूरोप पर संभावित रूसी हमले के लिए योजना भी चल रही है. फरवरी से, फ्रांस और यूके, एक संयुक्त अभियान बल के माध्यम से, ने उस योजना का केंद्र बनाया है, लेकिन यह फैल रहा है. नए राजनीतिक नेतृत्व के साथ जो तेजी से वीमर+ समूह के चार सदस्यों से आ रहा है : पोलैंड, फ्रांस, जर्मनी और यूके.
वीई दिवस के अवसर पर एक भाषण में, जर्मन राष्ट्रपति, फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर, ने यूरोप को बचाने के लिए युद्ध के लिए तैयार रहने की दोहरी आवश्यकता समझाई. रूस के आक्रमण युद्ध ने यूरोपीय सुरक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, इस शाही भ्रम के साथ कि यूक्रेन में युद्ध को महान देशभक्ति युद्ध से जोड़ा जा सकता है. फिर उन्होंने जोड़ा : “यह तथ्य कि अब अमेरिका भी, जिसने इस व्यवस्था को बनाने और आकार देने में बहुत कुछ किया, इससे मुंह मोड़ रहा है, यह पूरी तरह से एक नए पैमाने पर झटका है. इसलिए मैं एक दोहरे युगांतरकारी बदलाव की बात करता हूँ – रूस का आक्रमण युद्ध और अमेरिका का उसके मूल्यों से टूटना – यह इस लंबी 20वीं सदी के अंत का प्रतीक है.”
यूरोप को तय करना होगा कि आगे क्या होगा. उन्होंने जोर देकर कहा.
निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा के बारे में पोस्ट हटाया : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे और अधिवक्ता जय अनंत देहाद्राय ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट को बताया कि वे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ सोशल मीडिया पोस्ट हटा देंगे. बार एंड बेंच की खबर के अनुसार, मोइत्रा ने दुबे के अपमानजनक फेसबुक पोस्ट और देहाद्राय के ‘एक्स’ पोस्ट के स्क्रीनशॉट को लेकर न्यायालय का रुख किया था. जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने बताया कि दुबे ने पोस्ट हटा दिया था और देहाद्राय व्यक्तिगत रूप से पेश होकर ट्वीट हटाने के लिए सहमत हो गए. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने दोनों को फटकार लगाते हुए पोस्ट हटाने को कहा था. इस केस के बारे में विस्तार से हरकारा में आप पढ़ सकते हैं.
यूरोपीय नेताओं का पुतिन को अल्टीमेटम
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि कीव में एकजुट हुए ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड के चार प्रमुख नेताओं ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चेतावनी दी है कि वह सोमवार तक बिना शर्त युद्धविराम की घोषणा करें, अन्यथा रूस पर कड़े प्रतिबंध और यूक्रेन को और अधिक हथियारों की आपूर्ति की जाएगी. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की के साथ मिलकर इन नेताओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को फोन कर अपनी संयुक्त योजना साझा की. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा- "हम सभी अमेरिका सहित पुतिन को चुनौती दे रहे हैं. अगर वह वास्तव में शांति चाहते हैं, तो अब उन्हें यह साबित करने का मौका है." स्टारमर ने कहा कि पुतिन की शर्तों को खारिज करते हुए वे एक "बिना शर्त 30-दिवसीय युद्धविराम" की मांग कर रहे हैं. अगर पुतिन पीछे हटते हैं, तो अमेरिका और साझेदारों के साथ मिलकर रूस पर और कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे और यूक्रेन को अधिक सैन्य सहायता दी जाएगी. इमैनुएल मैक्रों, फ्रेडरिक मर्ज़ और स्टारमर शनिवार सुबह एक ही ट्रेन से कीव पहुंचे, जबकि पोलैंड के डोनाल्ड टस्क दूसरी ट्रेन से आए. मैक्रों का यह कीव का पहला दौरा है 2022 के बाद, जबकि मर्ज़ ने इस सप्ताह ही जर्मनी के चांसलर पद की शपथ ली है. इससे पहले कीव के मायदान चौक पर सभी नेताओं ने युद्ध में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी और फिर बातचीत के लिए ज़ेलेंस्की से मिले. यूक्रेन के विदेश मंत्री आंद्री साइबिहा ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर जानकारी दी- "यूक्रेन और सभी सहयोगी भूमि, वायु और समुद्र में कम-से-कम 30 दिनों के पूर्ण युद्धविराम के लिए तैयार हैं. यदि रूस सहमत होता है और निगरानी सुनिश्चित होती है, तो यह स्थायी शांति वार्ता की राह खोल सकता है." इधर रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने यूरोपीय नेताओं को भद्दे शब्दों में जवाब दिया - “मैक्रों, मर्ज़, स्टारमर और टस्क कीव में शांति की बात करने आए थे, लेकिन धमकियां दे रहे हैं… अपनी ‘शांति योजना’ को अपने पैंजेंडर पिछवाड़े में रखो.”
टैरिफ को लेकर अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता शुरू
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि जिनेवा में अमेरिका और चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच बातचीत हुई है जो कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को झकझोर रहे व्यापार युद्ध को शांत करने की दिशा में एक शुरुआती लेकिन महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. यह जानकारी चीन की सरकारी समाचार एजेंसी और वार्ता से जुड़े सूत्रों ने दी है. चीन के उप-प्रधानमंत्री हू लिफेंग और अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के बीच यह मुलाकात तब हुई है, जब दोनों देशों के बीच आयात शुल्क 100% से ऊपर पहुंच चुके हैं. पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा दर्जनों अन्य देशों पर भी शुल्क लगाने के फैसले से वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं टूट रही हैं, वित्तीय बाजार अस्थिर हो गए हैं और वैश्विक मंदी का डर गहराया है. शुक्रवार को ट्रम्प ने कहा था कि चीन से आयातित वस्तुओं पर 80% शुल्क ‘उचित’ लगता है, जिससे यह पहली बार स्पष्ट हुआ कि वह 145% टैरिफ के बजाय कुछ नया विकल्प सोच रहे हैं. बीजिंग का कहना है कि पहले अमेरिका को टैरिफ हटाने होंगे, तभी बातचीत आगे बढ़ेगी. वहीं स्कॉट बेसेंट ने साफ किया कि जिनेवा की वार्ता का उद्देश्य किसी “बड़े व्यापार समझौते” पर नहीं, बल्कि तनाव घटाने पर केंद्रित है. विश्व व्यापार संगठन (WTO) की प्रमुख न्गोज़ी ओकोंजो-इवेआला ने शुक्रवार को इन वार्ताओं का स्वागत किया और इसे एक ‘सकारात्मक और रचनात्मक कदम’ बताया.
‘इजरायल का समर्थन उसकी हिंसा और गैरजवाबदेही के कारण करते हैं दुनिया के सबसे बुरे लोग’
यह विश्लेषण मरियम फ़्रांस्वा और पंकज मिश्रा के बीच एक बातचीत पर आधारित है, जो वैश्विक राजनीति, राष्ट्रवाद, खासकर भारत, पाकिस्तान, मुस्लिम समुदाय, फ़िलिस्तीन और इज़राइल के संदर्भ में गहरे मुद्दों की पड़ताल करता है. इस चर्चा में, पंकज मिश्रा और मरियम फ़्रांस्वा ने दिखाया कि कैसे आज के मजबूत नेता इज़राइल की प्रशंसा उसकी हिंसा के बावजूद नहीं, बल्कि उसी के कारण करते हैं.
पंकज मिश्रा रूढ़िवादी, उच्च जाति के हिंदू परिवार में पले-बढ़े. वे अपने बचपन में भारतीय राष्ट्रवाद और यहूदी राष्ट्रवाद दोनों की प्रशंसा करते थे. उन्हें यहूदी राष्ट्रवाद इसलिए आकर्षक लगता था क्योंकि यह हिंदू राष्ट्रवाद की तुलना में अधिक मजबूत और समझौताहीन था, विशेषकर मुसलमानों के प्रति अपने व्यवहार में. उनका मानना था कि हिंदू राष्ट्रवाद गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों और नेहरू के उदारवाद से कमजोर हुआ है.
पंकज मिश्रा के अनुसार राष्ट्रवाद अपमान के अनुभव से उभरता है और इसे दूर करने का प्रयास है. उनके विचार में हिंदू राष्ट्रवाद और यहूदी राष्ट्रवाद में समानताएं हैं, दोनों अपमान को दूर करने और मजबूत बनने के प्रयास पर आधारित हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि शिक्षा और अन्य लोगों के संपर्क से उनके इन विचारों में परिवर्तन आया.
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर उनका मानना है कि दोनों देश आंतरिक रूप से कमजोर हैं और वर्तमान में उनके लिए युद्ध वास्तविक विकल्प नहीं है. कश्मीर और फिलीस्तीन के बीच उन्होंने कुछ समानताएं भी स्वीकार की, लेकिन जोर देकर कहा कि इज़राइल का फिलीस्तीनियों के साथ व्यवहार भारत के कश्मीर व्यवहार से बिल्कुल अलग स्तर का है. दोनों स्थितियों को उन्होंने ‘जन्म दोष’ कहा, जो ब्रिटिश साम्राज्य की विरासत से उत्पन्न हुए हैं और जिन्हें सुलझाने में देश असमर्थ रहे हैं.
पंकज मिश्रा के अनुसार हिंदू राष्ट्रवाद मुस्लिम योगदान को मिटाने पर आधारित है, जबकि ऐतिहासिक रूप से लोग हज़ार साल पहले खुद को हिंदू या मुस्लिम के रूप में पहचान नहीं करते थे. उन्होंने कहा कि इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखना भारत में हिंदू राष्ट्रवादियों का प्रयास है. उनके अनुसार, भारत में अब भी सह-अस्तित्व की परंपराएं हैं जो सदियों से लोगों को एक साथ रखती आई हैं.
पंकज मिश्रा ने नेहरू के फिलीस्तीन के प्रति समर्थन से मोदी के इज़राइल के सबसे कट्टर सहयोगी बनने के परिवर्तन पर टिप्पणी की. उनके अनुसार, यह बदलाव शासकों द्वारा धन और शक्ति के साथ संबंधों को प्राथमिकता देने के कारण हुआ है. उन्होंने कहा कि भारत में जनमत पारंपरिक रूप से फिलीस्तीन समर्थक रहा है, लेकिन सोशल मीडिया पर मुखर आवाजें इस प्रवृत्ति को छिपा सकती हैं.
इस्लामोफोबिया के बारे में पंकज मिश्रा का कहना है कि यह एक ऐसा गोंद है, जो विभिन्न अति-दक्षिणपंथी समूहों को एकजुट करता है. उन्होंने कहा कि दुनिया के कुछ सबसे बुरे लोग आज इज़राइल के साथ हैं, क्योंकि वे इज़राइल को एक ऐसे उदाहरण के रूप में देखते हैं, जिसमें दंडमुक्ति के साथ हिंसा का प्रयोग किया जाता है. उन्होंने मुसलमानों को समस्याग्रस्त समुदाय के रूप में देखने के लंबे इतिहास का उल्लेख किया, जो पश्चिमी साम्राज्यवाद के विरोध से उत्पन्न हुआ.
मीडिया की भूमिका पर पंकज मिश्रा ने इसे "गैर-जिम्मेदार" और "अपमानजनक" बताया. उनका कहना है कि मीडिया कर्मी अक्सर जटिल इतिहास को समझने की जहमत नहीं उठाते. वर्तमान वैश्विक स्थिति को उन्होंने "अत्यंत भयावह" बताया और चिंता व्यक्त की कि मौजूदा भ्रष्ट प्रणालियों का स्थान क्या लेगा. उनका मानना है कि एक युवा पीढ़ी उभर रही है, जो दुनिया के बारे में एक अलग और अधिक आशावादी आख्यान प्रस्तुत कर सकती है.
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