11/06/2025: भूखे देश को खुशहाली के झुनझुने, विपक्ष के पंचर | असम में निशाने पर मुसलमान | योगी का 37 झूठ निकला | 2 एंकर गिरफ्तार | आतंकवाद से निपटना आसान नहीं | भारतीय युवक अमेरिकी हथकड़ी में
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर भारतीय युवक को ज़मीन पर गिराकर हथकड़ी में जकड़ा गया, एनआरआई की अपील पर हरकत में आया भारतीय दूतावास
भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा दो वक्त का पूरा भोजन भी नहीं जुटा सकता : रिपोर्ट
जो 11 साल की उपलब्धियां सरकार गिना रही है
और विपक्ष है कि मानता नहीं मोदी के दावों को
असम के “पुशबैक” अभियान में मुस्लिम ही टारगेट
महाकुंभ की भगदड़ में योगी का 37 झूठ निकला, बीबीसी ने 82 मृतकों की जानकारी जुटाई
अरुणाचल : 1978 के कानून से पहचान का संकट
पाकिस्तान से आते आतंकवाद से निपटना इतना सीधा और आसान नहीं, जितना सरकार बताती है
65 करोड़ की रंगदारी मांगने पर 2 एंकर गिरफ्तार
ऐसे कैसे दे दिया इलोन मस्क की स्टारलिंक को सैटेलाइट स्पेक्ट्रम!
लॉस एंजिल्स में नेशनल गार्ड की तैनाती
न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर भारतीय युवक को ज़मीन पर गिराकर हथकड़ी में जकड़ा गया, एनआरआई की अपील पर हरकत में आया भारतीय दूतावास
'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि अमेरिका के न्यू जर्सी स्थित नेवार्क एयरपोर्ट पर एक भारतीय युवक के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार का वीडियो वायरल होने के बाद भारतीय वाणिज्य दूतावास हरकत में आ गया है. वीडियो में युवक को अमेरिकी पोर्ट अथॉरिटी अधिकारियों द्वारा ज़मीन पर हथकड़ी लगाए रोते हुए देखा जा सकता है. वीडियो को अमेरिका में रहने वाले एनआरआई कुणाल जैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया. उन्होंने बताया कि युवक हरियाणवी लहजे में बात कर रहा था और अधिकारियों से बार-बार गुहार लगा रहा था कि उसे मानसिक रूप से अस्थिर घोषित न किया जाए.
कुणाल जैन ने अपने पोस्ट में भारतीय दूतावास वॉशिंगटन डीसी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर को टैग करते हुए लिखा- "एक एनआरआई के तौर पर खुद को बेहद असहाय और टूट चुका महसूस कर रहा हूँ." इस घटना के सामने आते ही न्यूयॉर्क स्थित भारतीय दूतावास ने कहा है कि उन्होंने अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क किया है और पूरे मामले पर नज़र बनाए हुए हैं. दूतावास के एक प्रवक्ता ने बयान में कहा - "हमने वीडियो संज्ञान में लिया है और संबंधित अमेरिकी एजेंसियों से तत्काल संपर्क साधा है. युवक की पहचान और उसकी वर्तमान स्थिति जानने का प्रयास किया जा रहा है." फिलहाल युवक की पहचान सार्वजनिक नहीं की गई है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि उसे किन परिस्थितियों में पकड़ा गया था. वीडियो में उसका यह कहना सुनाई देता है कि "वे जबरन मुझे मानसिक रोगी घोषित करना चाहते हैं. मैं बस अपने घर जाना चाहता हूँ."
भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा दो वक्त का पूरा भोजन भी नहीं जुटा सकता : रिपोर्ट
एक अकादमिक पेपर ने दावा किया है कि भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा दो वक्त का पूरा भोजन भी नहीं जुटा सकता, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने और ‘अत्यधिक गरीबी’ में 80 प्रतिशत की गिरावट को उपलब्धि के रूप में बता रही है.
भाजपा ने सोमवार को जारी एक दस्तावेज़ में “नीति आयोग और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंचों” के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के पिछले 11 वर्षों के कार्यकाल में भारत ने गरीबी उन्मूलन और जनकल्याण के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन देखे हैं, जो पार्टी के अनुसार “स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं.” हाल ही में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में अत्यधिक गरीबी दर 2011-12 में 27.1 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में केवल 5.3 प्रतिशत रह गई है और इसी अवधि में अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 344.47 मिलियन (35 करोड़) से घटकर सिर्फ 75.24 मिलियन (7.5 करोड़) रह गई है.
हालांकि, भाजपा के इस दावे के विपरीत इस महीने की शुरुआत में प्रकाशित एक अकादमिक अध्ययन में कहा गया है कि पारंपरिक गरीबी के आंकड़े गरीबी रेखा से ऊपर की श्रेणी में आने वाले अनेक भारतीयों में पोषण संबंधी नुकसान को नजरअंदाज कर देते हैं. “द टेलीग्राफ” में सौर्ज्य भौमिक की रिपोर्ट के अनुसार, अकादमिक अध्ययन पेपर सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज के पुलाप्रे बालकृष्णन और क्रेया यूनिवर्सिटी, आंध्रप्रदेश के अमन राज ने लिखा है. इसका शीर्षक है- "भोजन की कमी : एक थाली सूचकांक वो उजागर करता है, जो गरीबी के अनुमान नहीं कर पाते.” उन्होंने जीवन स्तर को “एक थाली भोजन” के आधार पर मापा है, जिसमें खाद्य अभाव को उजागर करने के साथ ही भारत में गरीबी मापने की प्रक्रिया की समीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया गया है. शीर्षक इस बात को रेखांकित करता है कि पारंपरिक गरीबी रेखा के अनुमान, अक्सर लोगों की भोजन संबंधी वास्तविक स्थिति को पूरी तरह नहीं दर्शाते, जबकि 'थाली सूचकांक' जैसी अवधारणा भोजन की उपलब्धता और सामर्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से मापती है.
अध्ययन में रेटिंग और एनालिटिक्स एजेंसी “क्रिसिल” के डेटा का उपयोग किया गया है, जो उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिमी भारत में प्रचलित इनपुट कीमतों के आधार पर घर पर थाली तैयार करने की औसत लागत बताता करता है.
2023-24 में एक शाकाहारी थाली की औसत कीमत लगभग 30 रुपये थी और एक मांसाहारी थाली तैयार करने की लागत 58 रुपये बताई गई थी. अध्ययन में एक अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) दिया गया है : "अनुमानित लागत 'घर पर बनी' थाली के लिए है. हालांकि, सभी कामगार रोजाना घर का बना खाना नहीं खा सकते. खासकर, वे प्रवासी मजदूर, जो रोजगार की तलाश में दूर-दराज के इलाकों में जाते हैं. हमारी अनौपचारिक पूछताछ में, राजस्थान, बिहार, केरल, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में व्यावसायिक स्थल पर खाई गई शाकाहारी थाली की कीमत 30 रुपये से अधिक थी. इसलिए, 30 रुपये की लागत कम आंकी गई लगती है. यही बात मांसाहारी थाली के 58 रुपये के आंकड़े पर भी लागू होती है."
थाली सूचकांक ने खाद्य गरीबी को इस रूप में परिभाषित किया है कि यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन कम से कम दो पूरी थाली—जिसमें अनाज, सब्जियां और दालें शामिल हों—का सेवन नहीं कर पाता, तो वह खाद्य गरीबी की श्रेणी में आता है.
अध्ययन में पोषण की कमी को उजागर करने का दावा किया गया है, जिसे पारंपरिक आय या खर्च आधारित गरीबी रेखाएं अक्सर नजरअंदाज कर देती हैं. "ग्रामीण भारत में, 40 प्रतिशत आबादी दो शाकाहारी थाली प्रतिदिन नहीं खरीद सकती और 80 प्रतिशत आबादी एक शाकाहारी और एक मांसाहारी थाली (कुल लागत 88 रुपये) का संयोजन भी नहीं खरीद सकती. शहरी भारत में, 10 प्रतिशत आबादी दो शाकाहारी थाली प्रतिदिन नहीं खरीद सकती और 50 प्रतिशत आबादी एक शाकाहारी और एक मांसाहारी थाली का संयोजन प्रतिदिन नहीं खरीद सकती. अध्ययन यह पाता है कि ग्रामीण भारत में खाद्य अभाव, लोगों की सोच से कहीं अधिक व्यापक है.
हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी भारत में गरीबी 5 प्रतिशत से भी कम है. यह रिपोर्ट 2011-12 के लिए तेंदुलकर गरीबी रेखा के अपडेट और उसके बाद की मुद्रास्फीति दर को लागू करके तैयार की गई थी, जिसके अनुसार 2023-24 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मासिक गरीबी रेखा 1,632 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,944 रुपये तय की गई है.
थाली सूचकांक के अनुसार, यदि केवल भोजन पर खर्च मान लिया जाए, तो इन स्तरों पर ग्रामीण आबादी के 40 प्रतिशत और शहरी आबादी के 20-30 प्रतिशत लोगों को प्रतिदिन दो शाकाहारी थाली भी उपलब्ध नहीं हो पाती हैं. बालाकृष्णन और राज के अनुसार, गरीबी के अध्ययन यह मानते हैं कि परिवार या व्यक्ति अपनी सारी आय भोजन पर खर्च करने के लिए स्वतंत्र हैं.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 की रिपोर्ट में भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है. यह रैंकिंग भारत को, जो विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, बांग्लादेश से भी पीछे रखती है.
जो 11 साल की उपलब्धियां सरकार गिना रही है
भाजपा और मोदी सरकार ने अपने 11 साल के कार्यकाल (2014-2025) में गरीब कल्याण, महिला सशक्तिकरण, युवा रोजगार और राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति का दावा किया है. इन दावों की तसदीक की जानी है. पर गरीब कल्याण के तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से 81 करोड़ लोगों को निःशुल्क अनाज दिया गया, स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत 12 करोड़ शौचालय बनाए गए, और मुद्रा योजना के माध्यम से 52 करोड़ ऋण खाते खोले गए. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार गरीबी दर 27.1% से घटकर 5.3% हो गई है.
गरीबी रेखा के मानक इस बीच बदल दिये गये हैं. भ्रष्टाचार के मामलों, नोटबंदी की नौटंकी, कोविड से निपटने के लिए थाली बजवाना, पहलगाम में हमला करने वाले आतंकवादियोंं को न पकड़ पाना, पर सिंदूर के नाम पर माइलेज लेने के बारे में ये दावे चुप है और मुख्यधारा का मीडिया ये सब छाप भी नहीं रहा है.
महिला सशक्तिकरण में उज्ज्वला योजना के तहत 10.28 करोड़ गैस कनेक्शन प्रदान किए गए और सुकन्या समृद्धि योजना शुरू की गई. कृषि सुधारों में ई-नाम पोर्टल और फसल बीमा योजना जैसी आधुनिक प्रणालियां लागू की गईं. युवा रोजगार के लिए डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और स्किल इंडिया योजनाओं से 17.1 करोड़ नए रोजगार पैदा होने का दावा है, जिसमें 1.61 लाख युवा स्टार्टअप्स से और 2.27 करोड़ युवाओं को स्किल डेवलपमेंट का प्रशिक्षण दिया गया.
राष्ट्रीय सुरक्षा में आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता नीति अपनाई गई. ऑपरेशन सिंधु के तहत सीमा पार 9 आतंकवादी शिविर नष्ट किए गए, अनुच्छेद 370 समाप्त किया गया और पुलवामा हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक्स की गईं. चिकित्सा शिक्षा में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 387 से बढ़कर 780 हो गई और एमबीबीएस सीटें 51,348 से 1.18 लाख हो गईं.
सांस्कृतिक विकास में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, राम मंदिर, केदारनाथ जैसे धार्मिक स्थलों का जीर्णोद्धार किया गया. आर्थिक रूप से भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया. हालांकि इन उपलब्धियों पर विवाद भी रहे हैं और आलोचक रोजगार सृजन के आंकड़ों तथा नीतियों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं.
और विपक्ष है कि मानता नहीं मोदी के दावों को
'टेलीग्राफ' के लिए फिरोज एल. विंसेंट की रिपोर्ट है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को अपनी 11वीं वर्षगांठ पर उपलब्धियों का बखान करते हुए एक प्रचार अभियान शुरू किया, लेकिन विपक्ष ने इसके जवाब में देश की कई समस्याओं को उजागर कर सरकार के दावों पर सवाल उठाए. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने सरकार की उपलब्धियों पर निशाना साधते हुए इसे "खोखले वादों" का दौर करार दिया. कांग्रेस ने सरकार के 166 पन्नों के बुकलेट “विकसित भारत का अमृत काल: सेवा, सुशासन, गरीब कल्याण के 11 साल” के जवाब में अपनी बुकलेट “11 साल, झूठे विकास के वादे” जारी की. इसमें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा का हवाला देते हुए सरकार के हर दावे का खंडन किया गया.
कुपोषण संकट: 35.5% बच्चे स्टंटिंग, 19.3% वेस्टिंग और 32.1% अंडरवेट से पीड़ित। SC में 20% और ST में 24% लोग शौचालय का उपयोग नहीं कर रहे।
कृषि समस्याएं: 55% कृषि परिवार कर्जदार, 19 करोड़ किसानों पर 33 लाख करोड़ रुपये का कर्ज। कृषि विभाग ने 85,000 करोड़ रुपये वापस किए।
आर्थिक मंदी: 2024-25 में सबसे धीमी GDP वृद्धि, FDI में 96% गिरावट, 31,600+ MSME बंद, 16.35 लाख करोड़ के बैड लोन राइट ऑफ।
सुरक्षा चुनौती: J&K में 2019-23 के बीच 579 आतंकी हमले, 415 मौतें।
स्वास्थ्य नाकामी: 2024 में मेघालय में पोलियो का मामला (2011 के बाद पहला), 40% बच्चे अधूरे टीकाकरण के साथ।
विपक्षी दलों का भी हमला : तृणमूल कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा कि बीजेपी सरकार के 11 सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराध, महंगाई, बेरोजगारी, विभाजनकारी कानून, रेल दुर्घटनाएं और कोविड-19 के कुप्रबंधन में वृद्धि हुई है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने "डबल इंजन विकास" के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकारों को अपने 20 साल के शासन का हिसाब देना चाहिए. उन्होंने कहा कि योजनाओं में दिल्ली और लखनऊ के बीच कोई समन्वय नहीं दिखता.
असम के “पुशबैक” अभियान में मुस्लिम ही टारगेट
“द टेलीग्राफ” ने लिखा है कि भारत ने कथित अवैध प्रवासियों को पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में धकेलना शुरू कर दिया है, लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अधिकारी मनमाने ढंग से लोगों को देश से बाहर निकाल रहे हैं. बता दें कि असम में 30 हजार लोगों को विदेशी घोषित किया गया है. और, मई से अब तक 303 विदेशियों को “पुशबैक” किया है.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि वर्षों से रह रहे लोगों और उनके परिवारों को गलत तरीके से विदेशी घोषित कर दिया जाता है और वे इतने गरीब हैं कि ट्रिब्यूनल के फैसलों को उच्च न्यायालयों में चुनौती नहीं दे सकते. कुछ कार्यकर्ताओं ने कहा कि निष्कासन अभियान में केवल मुसलमानों को ही निशाना बनाया गया है. दरअसल, असम में बंगाली भाषा बोलने वाले, जिनकी जड़ें संभवतः बांग्लादेश में हैं, स्थानीय असमिया भाषियों के साथ नौकरियों और संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. लिहाजा, राजनीतिक तौर पर सरकार का यह कदम असमिया लोगों में पसंद किया जा रहा है.
असम के वकील अमन वदूद, जो नागरिकता से जुड़े मामलों की नियमित रूप से पैरवी करते हैं और अब मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं, ने कहा कि सरकार "लोगों को मनमाने ढंग से देश से बाहर निकाल रही है. उनमें पहले से ज्यादा घबराहट है."
मुझे नहीं पता कि मेरे साथ जो थे, उनका क्या हुआ
मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि निर्वासित किए गए लोगों में से चार को वापस भारत लाया गया, क्योंकि उनकी गैर-भारतीय स्थिति को चुनौती देने वाली अपीलें अदालत में सुनी जा रही थीं. इनमें से एक थे खैरुल इस्लाम, 51 वर्षीय पूर्व सरकारी स्कूल शिक्षक, जिन्हें 2016 में एक ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था. उन्होंने असम के एक डिटेंशन सेंटर में दो साल बिताए और अगस्त 2020 में जमानत पर रिहा हुए. उन्होंने बताया कि 23 मई को पुलिस ने उन्हें उनके घर से उठाया और डिटेंशन सेंटर ले गई, जहां से उन्हें और 31 अन्य लोगों को भारतीय सीमा रक्षकों ने पकड़कर एक वैन में आंखों पर पट्टी बांधकर और हाथ बांधकर बैठा दिया. "फिर, हम में से 14 को एक अन्य ट्रक में बैठाया गया. हमें सीमा के पास एक जगह ले जाकर बांग्लादेश में धकेल दिया गया. यह डरावना था. मैंने ऐसा कभी अनुभव नहीं किया था. वह रात का समय था. एक सीधी सड़क थी, और हम सब उस पर चलने लगे," उन्होंने कहा. "कुछ दिनों बाद, मुझे अचानक भारतीय पुलिस को सौंप दिया गया. इसी तरह मैं वापस घर पहुंचा. मुझे नहीं पता कि मेरे साथ जो अन्य लोग थे, उनका क्या हुआ या वे कहां हैं," इस्लाम ने बताया.
आगे भी जारी रहेगा “पुशबैक”
इस बीच मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि असम सरकार ने अब तक 303 विदेशियों को "पुश बैक" किया है और 1950 के असम अप्रवासी निष्कासन अधिनियम के तहत यह प्रक्रिया आगे भी जारी रहेगी. उन्होंने राज्य विधानसभा में बताया, "हमारे पास अभी 35 और लोग हैं, जिन्हें बाढ़ का पानी उतरने के बाद भेजा जाएगा." सरमा ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अवैध निष्कासन अधिनियम वैध है और अगर सरकार चाहे तो वह विदेशियों को बिना फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल जाए निष्कासित कर सकती है."
सरमा का यह बयान विधानसभा में उस वक्त आया, जब दो दिन पहले उन्होंने दावा किया था कि घोषित विदेशी लोगों को कानूनी ढांचे के तहत बांग्लादेश "पुश बैक" किया जा रहा है. उन्होंने सप्ताहांत में संवाददाताओं से कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 1955 के नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए पर सुनवाई करते हुए कहा है कि "असम सरकार का विदेशी पहचान के लिए हमेशा न्यायपालिका का रुख करना कानूनी रूप से आवश्यक नहीं है."
फैक्ट चैक
महाकुंभ की भगदड़ में योगी का 37 झूठ निकला, बीबीसी ने 82 मृतकों की जानकारी जुटाई
“बीबीसी हिंदी” की पड़ताल में खुलासा हुआ है कि प्रयागराज में 29 जनवरी 2025 को कुंभ मेले के दौरान हुई भगदड़ों में मरने वालों की संख्या उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा जारी आंकड़ों की तुलना में काफी अधिक है. यूपी सरकार ने मौनी अमावस्या के दिन चार भगदड़ की घटनाओं में 37 लोगों की मौत की पुष्टि की थी, जबकि बीबीसी की जांच में कम से कम 82 मौतों की पुष्टि हुई है.
“बीबीसी हिंदी” की टीम ने 11 राज्यों के 50 से ज्यादा जिलों में जाकर गहन पड़ताल के दौरान 100 से अधिक परिवारों से संपर्क किया और फिर अपनी रिपोर्ट में बताया है कि उनके पास कम से कम 82 मौतों के ठोस प्रमाण हैं, और यह संख्या केवल उन्हीं मामलों की है, जिनमें परिवारों के पास पर्याप्त सबूत मौजूद थे.
रिपोर्ट में पीड़ितों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. पहली श्रेणी में वे लोग हैं, जिन्हें आधिकारिक तौर पर 25 लाख रुपये का मुआवजा मिला, दूसरी श्रेणी में वे जिन्हें 5 लाख रुपये नकद मिले और तीसरी श्रेणी में वे पीड़ित हैं, जिन्हें सरकार से कोई सहायता नहीं मिली.
रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम 19 परिवार ऐसे हैं, जिन्हें भगदड़ में अपने परिजनों की मौत के बावजूद सरकार से कोई मदद नहीं मिली. इस जांच में चश्मदीदों के बयान, तस्वीरें और प्रभावित परिवारों से बातचीत शामिल है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि "ठोस सबूतों और चश्मदीद गवाहों के आधार पर" पुष्टि की गई मौतों की संख्या 82 है, लेकिन असल आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है.
अरुणाचल : 1978 के कानून से पहचान का संकट
अरुणाचल प्रदेश में ईसाई समुदाय को डर है कि 1978 का एक कानून, जो दशकों पहले धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाया गया था, अब उनके समुदाय की “वृद्धि को दबाने” के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट (APFRA) के प्रस्तावित नियमों के अनुसार, किसी भी धर्म परिवर्तन की सूचना सरकार को देना अनिवार्य है. डोनी पोलो के अनुयायियों के लिए यह नियम ईसाई धर्म में बढ़ते रूपांतरणों का सामना करने और अपनी परंपराओं को बचाए रखने के लिए जरूरी माना जा रहा है.
“न्यूज़ लॉन्ड्री” में अंगना चक्रबर्ती ने बताया है कि मार्च की एक शाम, निरजुली टाउन बैपटिस्ट चर्च के 170 युवा सदस्य इकट्ठा हुए और इस कदम पर चर्चा की. उन्हें डर था कि लागू किए गए कानून के तहत उन्हें निशाना बनाया जा सकता है. चर्च के मंच पर बाइबिल की एक आयत प्रदर्शित की गई थी, और चर्च के नेताओं ने कानून के उन प्रावधानों को पढ़कर सुनाया, जिनमें “दिव्य नाराजगी या सामाजिक बहिष्कार” को भी जबरन धर्म परिवर्तन की श्रेणी में रखा गया है. चर्च के सदस्यों ने चिंता जताई कि धर्म परिवर्तन की सूचना न देने पर जेल और जुर्माने का खतरा है.
ईसाई समुदाय के नेताओं का मानना है कि यह कानून उनके संवैधानिक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जबकि डोनी पोलो और अन्य आदिवासी धार्मिक समूह इसे अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की रक्षा के लिए जरूरी मानते हैं. अरुणाचल प्रदेश में धार्मिक पहचान और समुदाय के अस्तित्व पर इस कानून के पुनर्जीवन ने नई बहस छेड़ दी है, जिसमें एक समुदाय को मिट जाने का डर सता रहा है.
निषेधाज्ञा के बावजूद मणिपुर में हिंसा
इम्फाल घाटी में अरंबाई तेंगोल मिलिशिया के एक शीर्ष नेता की गिरफ्तारी के खिलाफ निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद विरोध प्रदर्शन जारी रहे. प्रदर्शनकारियों ने इम्फाल ईस्ट में एक सब-डिविजनल कलेक्टर के कार्यालय में आग लगा दी, टायर जलाए और घाटी के अन्य हिस्सों में सुरक्षा बलों से भिड़ गए. वहीं, अज्ञात लोगों ने इम्फाल वेस्ट में सीआरपीएफ कर्मियों पर गोलीबारी की. अधिकारियों के हवाले से पीटीआई ने यह जानकारी दी है.
मंदिर परिसर में बीफ, धुबरी में निषेधाज्ञा
असम के धुबरी जिला मजिस्ट्रेट ने सोमवार को एक मंदिर परिसर में कथित रूप से बीफ मिलने के बाद शहर के मुख्य बाजार में भीड़ द्वारा अस्थायी दुकानों को तोड़े जाने की घटना के मद्देनजर निषेधाज्ञा लागू कर दी है. “द हिंदू” की खबर के अनुसार धुबरी के मुख्य बाजार से सटे एक अन्य क्षेत्र में कथित रूप से पशु की खाल मिलने से भी विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके जवाब में सुरक्षा बलों ने दुकानदारों और ई-रिक्शा चालकों पर हमला करने वाली भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया
शिवशंकर मेनन
पाकिस्तान से आते आतंकवाद से निपटना इतना सीधा और आसान नहीं, जितना सरकार बताती है
करण थापर ने वायर के लिए एक विशेष साक्षात्कार में भारत के एक प्रमुख राजनयिक और रणनीतिकार शिव शंकर मेनन से बात की. पूर्व विदेश सचिव और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में, मेनन ने भारत की सुरक्षा और विदेश नीति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर करीब से काम किया है. इस साक्षात्कार में, उन्होंने विशेष रूप से पुलवामा जैसे आतंकी हमलों के बाद भारत की सैन्य कार्रवाई, जिसे यहां ऑपरेशन 'सिंदूर' कहा गया है और पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद पर भारत की प्रतिक्रिया के बारे में अपने गहन विचार साझा किए.
मेनन के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान या आतंकवादी संगठनों को रोकने का काम नहीं किया है, लेकिन इसने उन पर लागत जरूर थोपी है. वे कहते हैं कि यह "इंजीनियरिंग समस्या" नहीं है जिसका कोई तत्काल समाधान हो, बल्कि एक प्रक्रिया है जिसे प्रबंधित करना होगा. उनका मानना है कि पाकिस्तान की वर्तमान संरचना को देखते हुए आतंकवाद "हार्डवायर्ड" हो गया है और इसे केवल सैन्य बल से नियंत्रित नहीं किया जा सकता.
मेनन स्पष्ट करते हैं कि 2024 की स्थिति 2008 से बिल्कुल अलग है. 2008 में पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ जैसे नेता थे जो कहते थे कि पाकिस्तान की मुख्य समस्याएं घरेलू हैं, भारत नहीं. लेकिन आज की स्थिति में पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने खुद को फील्ड मार्शल बनाया है और द्विराष्ट्र सिद्धांत तथा भारत के साथ संघर्ष की अनिवार्यता की बात करता है.
मेनन का मानना है कि आतंकवाद की समस्या का अंतिम समाधान राजनीतिक होना चाहिए और यह पाकिस्तान के भीतर ही होना चाहिए. वे इसराइली रणनीति का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यह "घास काटने" जैसा है - घास बढ़ती रहेगी और आपको बार-बार काटना होगा. यह कोई स्थायी समाधान नहीं है बल्कि एक निरंतर प्रक्रिया है. उनके अनुसार, भारत को विभिन्न उपकरणों - राजनयिक, सैन्य, इंटेलिजेंस - का मिश्रित इस्तेमाल करना होगा. परिस्थितियों के अनुसार इन विकल्पों का चुनाव करना होगा. यह "मिनिमैक्स नीति" है जहां आप नुकसान को कम से कम और फायदे को अधिकतम करने की कोशिश करते हैं.
मेनन चिंता व्यक्त करते हैं कि आज की दुनिया 2008 से कहीं अधिक कठिन है. चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता, अमेरिकी नीति में बदलाव और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के कारण पाकिस्तान को अन्य बड़ी शक्तियों के लिए उपयोगी बनने के अवसर मिल गए हैं. पाकिस्तान "रणनीतिक किराया" वसूलता रहा है और "बंदूक अपने सिर पर रखकर" बातचीत करता है. वे बताते हैं कि दुनिया के देश और संस्थाएं अपने हितों के आधार पर काम करती है, तर्क और न्याय के आधार पर नहीं. जब यह भारत-पाकिस्तान संघर्ष बन जाता है तो अन्य देश इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं.
मेनन चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं. वे बताते हैं कि पिछले 10 वर्षों से पाकिस्तानी सेना क्वेटा में अपने स्कूलों में चीनी सिद्धांत और रणनीति सिखा रही है. चीनी J10C विमान और PL-15 मिसाइलों के इस्तेमाल से पाकिस्तानी वायु सेना को महत्वपूर्ण लाभ मिला है. उनका कहना है कि भारत 2008 से ही दो-मोर्चा चुनौती की धारणा पर काम कर रहा है, यह कोई नया विचार नहीं है. चीन और पाकिस्तान के बीच इस "फ्यूजन" को समझना भविष्य की किसी भी संघर्ष स्थिति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है.
प्रधानमंत्री मोदी की नई निवारण नीति के बारे में मेनन मिश्रित प्रतिक्रिया देते हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के "आतंकवाद का हर कार्य अब युद्ध का कार्य माना जाएगा" कथन पर वे कहते हैं कि यह मुख्यतः घरेलू राजनीतिक दर्शकों के लिए दृढ़ता दिखाने का बयान है. उनकी चिंता यह है कि इससे पहल आतंकवादियों के हाथ में चली जाती है क्योंकि वे तय करते हैं कि कब संघर्ष शुरू करना है.
परमाणु ब्लैकमेल के मुद्दे पर वे स्पष्ट करते हैं कि भारत ने पहले भी परमाणु धमकियों के आगे घुटने नहीं टेके हैं और आगे भी नहीं टेकेंगे. उनका मानना है कि कोई भी पक्ष आत्मघाती नहीं है और परमाणु हथियारों का इस्तेमाल वास्तव में आत्महत्या होगी. मेनन भारतीय टेलीविजन मीडिया की तीखी आलोचना करते हैं. वे कहते हैं कि संघर्ष के दौरान मीडिया ने देश का फायदा नहीं किया बल्कि भारत को हास्यास्पद बनाया. झूठे दावे जैसे कि लाहौर और इस्लामाबाद आत्मसमर्पण कर गए हैं या सेना प्रमुख को हटा दिया गया है, जैसी बातों से देश की विश्वसनीता को नुकसान हुआ.
मेनन कह रहे है कि आतंकवाद एक जटिल समस्या है जिसका कोई तत्काल या पूर्ण समाधान नहीं है. इसे प्रबंधित करना होगा और विभिन्न उपकरणों का संयोजन इस्तेमाल करना होगा. परिस्थितियां लगातार बदलती रहती हैं और नीति निर्माताओं को इसके अनुसार अपनी रणनीति में बदलाव करना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कोई इंजीनियरिंग समस्या नहीं है जिसका सीधा समाधान हो, बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें धैर्य और रणनीतिक सोच की जरूरत है.
मीडिया
65 करोड़ की रंगदारी मांगने पर 2 एंकर गिरफ्तार
‘न्यूज़लॉन्ड्री’ की रिपोर्ट है कि नोएडा पुलिस ने भारत 24 की एंकर शाज़िया निसार और अमर उजाला डिजिटल विंग के एंकर आदर्श झा को गिरफ्तार किया है. इनके खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें रंगदारी, ब्लैकमेलिंग और धमकाने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. सूत्रों के अनुसार, दोनों पत्रकारों पर भारत 24 चैनल के शीर्ष अधिकारियों से ₹65 करोड़ की फिरौती मांगने और झूठे बलात्कार के आरोप लगाने की धमकी देने का आरोप है. एफआईआर भारत 24 के प्रबंध निदेशक जगदीश चंद्रा, कंसल्टिंग एडिटर अनीता हाडा और एचआर प्रमुख अनु श्रीधर की शिकायतों के आधार पर दर्ज की गई हैं. चैनल के सूत्रों ने बताया कि अन्य कर्मचारियों की शिकायतों के आधार पर और एफआईआर दर्ज हो सकती हैं. पुलिस ने शाज़िया निसार के घर की तलाशी के दौरान 34 लाख रुपये नकद बरामद किए हैं. इसके बाद दोनों एंकरों को गौतम बुद्ध नगर की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
भारत 24 के एमडी जगदीश चंद्रा ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “कानून अपना काम कर रहा है… वह (शाज़िया) मुझे ही नहीं बल्कि एडिटर सैय्यद उमर, कंसल्टिंग एडिटर अनीता हाडा, एचआर हेड अनु और डेस्क व असाइनमेंट टीम के कई लोगों को भी धमकाया करती थी… सभी उससे परेशान थे.” गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले ही चैनल ने शाज़िया निसार को नौकरी से बर्खास्त कर दिया. शाज़िया निसार पहले रिपब्लिक भारत में कार्यरत थीं, जहां वे रूस-यूक्रेन युद्ध की रिपोर्टिंग के दौरान अपने अतिनाटकीय अंदाज़ के लिए कुख्यात हो गई थीं. वहीं, अमर उजाला की ओर से आदर्श झा की गिरफ्तारी पर अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
ऐसे कैसे दे दिया इलोन मस्क की स्टारलिंक को सैटेलाइट स्पेक्ट्रम!
भारत सरकार के पूर्व सचिव ई.ए.एस. सरमा ने एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक को सीधे सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन के फैसले के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज की है. उन्होंने कैबिनेट सचिव टी.वी. सोमनाथन को एक तीखा पत्र लिखकर इस फैसले पर तत्काल, स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग की है. सरमा ने पत्र में आरोप लगाया है कि यह कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा भी पैदा करता है. उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि सरकार ने स्टारलिंक को एक "असाधारण छूट" दी है, जिससे कंपनी को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पास उपकरण स्थापित करने की निगरानी से छूट मिल गई है. आमतौर पर ऐसा कोई भी लाइसेंसी सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी के अधीन होता है, लेकिन स्टारलिंक को इससे छूट दी गई है. सरमा ने आरोप लगाया कि “डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DOT) ने इलोन मस्क और स्टारलिंक को विशेष रियायत देने के लिए नियमों और कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी की है, जिससे इस सौदे की नैतिकता और वैधता पर गंभीर सवाल उठते हैं.” उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह की सीधी स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया न केवल अवैध है, बल्कि इससे सार्वजनिक संसाधनों का नुकसान और संप्रभुता पर खतरा भी हो सकता है.
लॉस एंजिल्स में नेशनल गार्ड की तैनाती
ट्रम्प प्रशासन ने लॉस एंजिल्स में आप्रवासन छापों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के जवाब में लगभग 4,000 नेशनल गार्ड सैनिकों को तैनात किया है. कैलिफोर्निया के नेताओं ने इसे तानाशाही करार दिया है और राज्य ने ट्रम्प के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. गार्मेंट डिस्ट्रिक्ट के श्रमिकों और रेस्तरां कर्मचारियों पर छापे पड़े हैं, जबकि एक यूनियन अध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया गया है.
ग्रेटा थनबर्ग को फ्रांस भेजा गया
जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को इज़राइल से फ्रांस भेजे जाने की प्रक्रिया के तहत विमान में सवार देखा गया. उन्होंने निर्वासन स्वीकार कर लिया है. उनके साथ गाज़ा गए कई अन्य शांति कार्यकर्ता वर्तमान में हिरासत में हैं क्योंकि उन्होंने निर्वासन मानने से इनकार कर दिया है.
ब्रिटेन ने इजरायली मंत्रियों पर लगाए प्रतिबंध
ब्रिटेन ने इजरायली राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-गवीर और वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मोटरिच पर व्यक्तिगत प्रतिबंध लगाए हैं. डाउनिंग स्ट्रीट ने स्पष्ट किया कि ये प्रतिबंध उनकी व्यक्तिगत हैसियत में हैं, मंत्रालयों पर नहीं. बेन-गवीर ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर से भी बच जाएंगे.
ऑस्ट्रिया के स्कूल में गोलीबारी
ऑस्ट्रिया के ग्राज़ शहर में एक 21 वर्षीय युवक ने अपने पुराने स्कूल में गोली चलाकर आठ छात्रों और एक शिक्षक की हत्या कर दी और फिर खुद को गोली मार ली. घटना में एक दर्जन लोग घायल हुए हैं. चांसलर क्रिश्चियन स्टॉकर ने इसे देश के इतिहास का अंधकारमय दिन बताते हुए तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है.
रूस के हमलों के बाद ज़ेलेंस्की की मांग
यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने रूस द्वारा कीव पर जबरदस्त हमले के बाद अमेरिका और पश्चिमी सहयोगियों से खामोशी नहीं बल्कि ठोस कार्रवाई की मांग की है. रूस ने राजधानी के 10 में से 7 जिलों को निशाना बनाया और 316 ड्रोन तथा 7 मिसाइलें दागीं. यूक्रेनी वायु रक्षा ने 213 ड्रोन और 7 मिसाइलें मार गिराईं.
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