11/09/2025: कुकी-ज़ो नहीं नाचेगा | नेपाल में हालात सुधरे, फौज़ के हवाले | बाढ़ राहत के मांगे 20,000 करोड़, मिले 1600.. | पोलैंड पर रूसी ड्रोन हमले | फ्रांस में हिंसक प्रदर्शन| नोबेल और मोदी जी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
पीएम मोदी के स्वागत समारोह का कुकी-ज़ो समूहों ने किया विरोध
काठमांडू में सेना तैनात: हिंसा के बाद हालात आंशिक रूप से सुधरे, काठमांडू हवाई अड्डा फिर से शुरू.
अंतरिम पीएम की तलाश: प्रदर्शनकारियों ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम आगे बढ़ाया.
"देश में हमारा कुछ नहीं बचा": भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी से उपजे गुस्से ने नेपाल के युवाओं को हिंसक बनाया.
"पड़ोस में देखें क्या हो रहा है": सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने नेपाल, बांग्लादेश की अस्थिरता का ज़िक्र किया.
ट्रंप-मोदी में जल्द होगी बात: अमेरिका-भारत के बीच व्यापार बाधाओं को दूर करने पर होगी चर्चा.
दिल्ली में हेट क्राइम: उमरा से लौट रहे मुस्लिम बुजुर्गों को मंदिर में जबरन झुकाया, टोपी छीनी.
उमर खालिद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे: दिल्ली दंगों के मामले में हाईकोर्ट से जमानत खारिज होने को चुनौती दी.
असम में नया नियम: अब डीसी 10 दिन के नोटिस पर 'संदिग्ध विदेशियों' को देश से निकाल सकेंगे.
"हब्बा" पर हंगामा: मैसूर दशहरा का उद्घाटन मुस्लिम लेखिका से कराने पर बीजेपी और सहयोगी दल नाराज़.
बिहार वोटर लिस्ट: विश्लेषण में मुस्लिमों के नाम असंतुलित रूप से हटाने का कोई सबूत नहीं मिला.
"वोट चोर, गद्दी छोड़": रायबरेली में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर फिर साधा निशाना.
पंजाब बाढ़ राहत पर सियासत: केंद्र ने मांगे 20,000 करोड़, मिले 1600 करोड़, 'आप' ने बताया "मजाक".
सरकारी फरमान: कार और बाइक डीलरशिप पर पीएम मोदी की तस्वीर वाला पोस्टर लगाना हुआ अनिवार्य.
बीजेपी का प्रभुत्व: अजेय छवि बरकरार, पर आर्थिक मुद्दों और एकजुट विपक्ष से बढ़ी चुनौती.
बीजेपी-अन्नाद्रमुक में फिर दरार: AIADMK ने दिल्ली पर पार्टी को कमजोर करने का आरोप लगाया.
नाटो-रूस तनाव चरम पर: पोलैंड ने अपने हवाई क्षेत्र में रूसी ड्रोन मार गिराए, इसे 'आक्रामकता' बताया.
फ्रांस सुलग रहा: राष्ट्रपति मैक्रों और बजट कटौती के खिलाफ देश भर में हिंसक प्रदर्शन, सैकड़ों गिरफ्तार.
बोल्सोनारो को राहत?: तख्तापलट के मुकदमे में एक जज ने अधिकार क्षेत्र की कमी बताकर मामला रद्द करने के पक्ष में वोट दिया.
अब तक का सबसे पतला आईफोन: एपल ने नए डिजाइन के साथ 'आईफोन एयर' लॉन्च किया.
नोबेल समिति के सदस्य द्वारा पीएम मोदी को शांति पुरस्कार का "सबसे बड़ा दावेदार" बताने वाली खबर झूठी है.
'आंखों में आंसू लेकर नाच नहीं सकते'
मोदी के स्वागत समारोह का कुकी-ज़ो समूहों ने किया विरोध
मणिपुर में कुकी-ज़ो समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले कई संगठनों ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत समारोह के हिस्से के रूप में नियोजित एक नृत्य कार्यक्रम की निंदा की है. पीएम मोदी के 13 सितंबर को जातीय हिंसा प्रभावित राज्य का दौरा करने की संभावना है. यह मई 2023 में संघर्ष शुरू होने के बाद से उनका पहला दौरा होगा. यह विरोध मणिपुर में जातीय संघर्ष से उपजे गहरे दर्द और अविश्वास को उजागर करता है. कुकी-ज़ो समुदाय का मानना है कि जब तक उनके घाव भरे नहीं हैं और न्याय नहीं मिला है, तब तक उत्सव या भव्य स्वागत का कोई मतलब नहीं है. यह घटना केंद्र सरकार के लिए एक सीधी चुनौती है कि वह ज़मीनी हक़ीक़त को समझे और दिखावटी कार्यक्रमों के बजाय वास्तविक मुद्दों का समाधान करे.
इंफाल हमार विस्थापित समिति ने कहा कि पीएम को एक भव्य स्वागत समारोह में भाग लेने के बजाय जातीय हिंसा से प्रभावित लोगों के साथ बातचीत करनी चाहिए जो राहत शिविरों में रह रहे हैं. चुराचांदपुर जिले में गैंगटे छात्र संगठन ने कहा कि वे पीएम की संभावित यात्रा का स्वागत करेंगे, लेकिन "हम अपनी आंखों में आंसू लेकर नाच नहीं सकते!". समिति ने एक बयान में कहा, "हमारा शोक अभी खत्म नहीं हुआ है, हमारे आंसू अभी सूखे नहीं हैं, हमारे घाव अभी भरे नहीं हैं, हम खुशी से नहीं नाच सकते."
कुकी समुदाय के शीर्ष निकाय, कुकी इंपी मणिपुर ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य में प्रधानमंत्री का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन इस यात्रा से "न्याय और कुकी-ज़ो लोगों की सामूहिक आकांक्षाओं को मान्यता" भी मिलनी चाहिए. संगठन ने दावा किया कि एक स्थायी समाधान के लिए राजनीतिक हल की मांग "स्पष्ट और दृढ़" है और अस्थायी राहत उपायों से स्थायी समाधान नहीं हो सकता है.
यह नृत्य कार्यक्रम का विरोध केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का विरोध नहीं है. यह केंद्र सरकार की मणिपुर नीति के खिलाफ एक प्रतीकात्मक प्रतिरोध है. कुकी-ज़ो समूहों को लगता है कि सरकार सामान्य स्थिति का दिखावा करने की कोशिश कर रही है, जबकि उनकी पीड़ा को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. दूसरी ओर, मैतेई-बहुल इंफाल घाटी में कुछ लोग पीएम की यात्रा को अपनी शिकायतों को व्यक्त करने के एक अवसर के रूप में देख रहे हैं. 'इमागी मेरा' नामक एक महिला संगठन ने मांग की है कि पीएम को मैतेई लोगों को राष्ट्रीय राजमार्गों पर सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने का निर्देश देना चाहिए.
मई 2023 से मैतेई और कुकी-ज़ो समूहों के बीच जातीय हिंसा में 260 से अधिक लोग मारे गए हैं और हजारों बेघर हो गए हैं. मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद केंद्र ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था और 2027 तक कार्यकाल वाली राज्य विधानसभा को निलंबित अवस्था में रखा गया है. पीएम की यात्रा से उम्मीद है कि वह दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली के लिए कुछ ठोस कदम उठाएंगे. हालांकि, कुकी-ज़ो समूहों के विरोध से यह स्पष्ट है कि यह राह आसान नहीं होगी.
नेपाल
हालात में आंशिक सुधार, सेना ने जिम्मेदारी संभाली, काठमांडू हवाई अड्डा फिर शुरू
“द हिंदू” के अनुसार, नेपाल की राजधानी काठमांडू में बुधवार (10 सितंबर 2025) को स्थिति में आंशिक रूप से सुधार हुआ. सुरक्षा की जिम्मेदारी नेपाल की सेना ने संभाल ली है और राजधानी भर में सैन्य जवान तैनात किए गए हैं. काठमांडू के त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा फिर से शुरू हो गया है. दो दिन की हिंसा में 30 लोगों की मौत हो चुकी है.
अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए सुशीला कार्की का नाम उभरा
“द इंडियन एक्सप्रेस” की खबर है कि जनरेशन-ज़ी प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया जाए. यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव ने दी, जिनसे प्रदर्शनकारियों ने परामर्श किया था. युबराज घिमिरे ने भी लिखा है कि प्रख्यात नेपाली न्यायविद सुशीला कार्की, अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के संभावित चेहरे के रूप में उभरी हैं. वे भ्रष्टाचार-विरोधी कड़े रुख के लिए जानी जाती हैं. हालांकि, उनके पास राजनीतिक या कार्यकारी अनुभव नहीं है, लेकिन उनकी इसी भ्रष्टाचार-विरोधी छवि ने प्रदर्शनकारियों को उनका नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में आगे रखने के लिए प्रेरित किया है.
युवाओं को लगा इस देश में हमारा हिस्सा नहीं बचा, इसलिए सब फूंक दिया
नेपाल में युवाओं के हिंसक और अराजक प्रदर्शन के पीछे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध तो तात्कालिक वजह था. दरअसल, युवाओं के गुस्से के कई कारण हैं, जो पहले से पनप रहे थे. “स्क्रॉल” में नचिकेत देउसकर ने लिखा है कि जनता के दबाव में ओली सरकार ने सोशल मीडिया पर लगाया गया प्रतिबंध तो सोमवार रात ही हटा दिया था, लेकिन नाराज़ युवाओं ने अगले दिन मंगलवार को सबकुछ फूंक दिया. सरकारी इमारतों में तोड़फोड़ की और संसद परिसर तथा मंत्रियों के घरों, यहां तक कि ओली के निजी आवास तक में आग लगा दी.
नेपाल इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी रिसर्च के सह-संस्थापक संतोष शर्मा पौडेल ने “स्क्रॉल” को बताया कि 2006 में राजशाही खत्म होने और फिर 2015 में नया संविधान बनने पर नेपाली नागरिकों को ‘सुशासन’ की बड़ी उम्मीदें थीं. लेकिन भ्रष्टाचार और बढ़ा है तथा रोज़गार के लिए अधिक लोगों को देश छोड़ना पड़ा है. “जिन्हें साधन मिले, वे पश्चिमी देशों में चले गए, और जिनके पास साधन नहीं थे, वे खाड़ी देशों की ओर गए.”
पौडेल ने कहा, सामान्य सोच ये बन गई कि नेपाल में कोई उम्मीद नहीं है. 2008 में गणराज्य बनने और फिर संविधान लागू होने के बाद व्यवस्था तो बदली लेकिन लोग वही रहे. मतलब, शासन व्यवस्था वही रही और भ्रष्टाचार और बढ़ गया.
उन्होंने कहा, “नेताओं पर हमले होना इस बात का प्रतीक है कि युवाओं में कितना गुस्सा है.” उन्होंने आगे कहा, “संस्थानों को जलाना इस भावना को दिखाता है कि युवाओं को लगता है अब देश में उनका कोई हिस्सा ही नहीं बचा. फिर इन अवशेषों को बचाकर क्या करेंगे? इसी कारण संसद, सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक दलों के दफ़्तर सब नष्ट कर दिए गए. भावना यह है कि हमें राजनीतिक दलों की ज़रूरत नहीं, न सरकार की, और न ही वर्तमान न्यायपालिका की.”
अब आगे क्या होगा?
इस आंदोलन और इसकी तीव्रता ने पर्यवेक्षकों को चौंका दिया. जो बात पक्की लगती है, वह यह है कि यह युवाओं द्वारा संचालित आंदोलन है. पौडेल ने कहा कि इस आंदोलन के प्रमुख नेता मुख्यतः 35 वर्षीय रैपर व काठमांडू के मेयर बालेन शाह, और 49 वर्षीय राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के प्रमुख रवि लामिछाने हैं, जो मार्च से जुलाई 2024 के बीच उपप्रधानमंत्री रह चुके हैं. दोनों नेता अपेक्षाकृत युवा हैं और बुजुर्ग लोग केवल आगे से नेतृत्व कर रहे युवाओं को सहारा दे रहे हैं.
अब आगे क्या होगा, यह स्पष्ट नहीं है.
पौडेल ने कहा, “हमें नहीं पता कि नया सामान्य कैसा होगा? व्यवस्था ढह चुकी है. यह अपने पुराने रूप में लौटेगी, संशोधित रूप में आएगी, या कुछ बिल्कुल नया सामने आएगा – इसका इंतजार करना होगा.”
उन्होंने जोड़ा कि समाधान को आंदोलन के नेताओं की स्वीकृति मिलनी ही होगी. पौडेल ने कहा कि सुरक्षा बलों ने भी अब समझ लिया लगता है कि समाधान के लिए उन्हें पीछे हटकर बातचीत करनी पड़ेगी.
दक्षिण एशिया में एक पैटर्न?
सोमवार को जैसे-जैसे विरोध-प्रदर्शन बढ़े, कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने दावा किया कि नेपाल में जो हो रहा है, वह दक्षिण एशिया में सरकारों के गिरने के व्यापक पैटर्न का हिस्सा है. उन्होंने अगस्त 2024 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की विदाई और 2022 में श्रीलंका से राजपक्षे परिवार को हटाए जाने का उदाहरण दिया. लेकिन पौडेल ने कहा कि यह सिद्ध करना कठिन है कि इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की भूमिका थी.
उन्होंने कहा, “जिस तरीके से यह आंदोलन हुआ और फैला है, मुझे नहीं लगता कि कोई बाहरी दखल इसे इस हद तक ला सकता था. माओवादी क्रांति (या 1996 से 2006 तक चले नेपाली गृहयुद्ध) के दौरान बाहरी हस्तक्षेप हुआ था और वैसे मामलों में आमतौर पर यह धीमी प्रक्रिया होती है जो लंबे समय तक चलती है.” उन्होंने आगे कहा: “क्या पर्दे के पीछे से (प्रदर्शनकारियों के लिए) कुछ नैतिक समर्थन मिला? संभव है. लेकिन फिलहाल मैं पूरा श्रेय प्रदर्शनकारियों को ही दूंगा.”
‘हमें अपने संविधान पर गर्व’ : राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल, बांग्लादेश का ज़िक्र किया
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय संविधान की रूपरेखा की स्थिरता की सराहना की और इस बात पर जोर दिया कि यह कितना महत्वपूर्ण है, खासकर उस समय जब पड़ोसी देशों जैसे नेपाल और बांग्लादेश में हिंसक राजनीतिक उथल-पुथल देखी जा रही है.
सीजेआई बी. आर. गवई ने कहा, “हमें अपने संविधान पर गर्व है… जब हम देखते हैं कि पड़ोसी देशों में क्या-क्या हो रहा है, जैसे कल नेपाल में हुआ.” सीजेआई की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा किए गए उस संदर्भ पर सुनवाई कर रही है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं से भेजे गए विधेयकों पर कार्रवाई करने की समयसीमा तय करने से जुड़ा है. यह टिप्पणी उस समय आई जब पीठ इस पर चर्चा कर रही थी कि क्या दलों को उन विधेयकों से संबंधित तथ्यों और आंकड़ों पर निर्भर रहने की अनुमति दी जानी चाहिए, जिन्हें राज्यपालों के पास भेजा गया था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई की इस टिप्पणी का समर्थन किया.
ट्रम्प की मोदी से बातचीत की तैयारी
अमेरिका और भारत के बीच व्यापार संबंधों को नई दिशा देने के लिए बातचीत फिर से शुरू हो रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि उनका प्रशासन भारत के साथ व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए सक्रिय रूप से चर्चा कर रहा है, और वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आने वाले हफ्तों में बातचीत करने की योजना बना रहे हैं. ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मुझे पूरा विश्वास है कि दोनों महान देशों के लिए एक सफल समाधान प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं आएगी.”
“रॉयटर्स” के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने भी सकारात्मक रुख अपनाते हुए सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि वॉशिंगटन और नई दिल्ली "पक्के दोस्त और नैसर्गिक साझेदार" हैं. उन्होंने बताया कि दोनों देशों की टीमें व्यापार वार्ता को तेज़ी से आगे बढ़ाने पर काम कर रही हैं. मोदी ने लिखा, "मैं भी राष्ट्रपति ट्रम्प से बात करने को उत्सुक हूं. हम मिलकर अपने नागरिकों के लिए उज्जवल और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे.”
बीते सप्ताह ट्रम्प ने कहा था कि भारत ने अमेरिकी सामानों पर सभी टैरिफ खत्म करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इस पेशकश की समय-सीमा पर सवाल उठाया और कहा कि यह कदम कई वर्षों पहले उठना चाहिए था. फिलहाल भारत पर अमेरिकी निर्यातों पर 50% तक का टैरिफ लगाया गया है, जिसका भारत की जीडीपी में करीब आधा प्रतिशत की कमी आने की आशंका जाहिर की गई है.
इन्हीं बिंदुओं पर दोनों नेताओं की आगामी बातचीत व्यापार मसलों को सुलझाने, टैरिफ कम करने और द्विपक्षीय संबंधों को फिर मजबूत बनाने पर केंद्रित रहेगी.
जीएसटी में कटौती से थोड़ा संतुलित होगा अमेरिकी टैरिफ का असर
इस बीच, भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने बुधवार को कहा कि जीएसटी में की गई कटौती, जो 22 सितंबर से लागू होना है, से भारत की अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी टैरिफ़ का असर आंशिक रूप से संतुलित होगा. इससे घरेलू मांग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. “रॉयटर्स” के मुताबिक, उन्होंने बताया कि उच्च टैरिफ़ और कम घरेलू करों का शुद्ध प्रभाव चालू वर्ष की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमानों पर 0.2%-0.3% अंक की गिरावट के रूप में दिखेगा.
हेट क्राइम
उमरा से लौटते मुस्लिमों को मंदिर के अंदर जबरन झुकाया, टोपी छीनी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के यमुना बाजार क्षेत्र से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां उमरा करके लौट रहे मुस्लिम यात्रियों के एक समूह को कथित तौर पर एक हिंदुत्व समूह द्वारा हनुमान मंदिर के पास परेशान और अपमानित किया गया. यह घटना 22 अगस्त की है, लेकिन इसका वीडियो 7 सितंबर को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
“मकतूबमीडिया” की रिपोर्ट के अनुसार, तीर्थयात्री—जो अपनी दाढ़ी और टोपी से आसानी से पहचाने जा रहे थे—दिल्ली से अपने गृहनगर, सहारनपुर, एक मिनी बस से लौट रहे थे और रास्ते में मंदिर के पास खाना खाने के लिए रुके थे. इसी दौरान कथित तौर पर एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन से जुड़े स्थानीय युवाओं के समूह ने उन्हें घेर लिया. आरोप है कि उन्होंने गालियां दीं, उनकी टोपी जबरन उतारी और उन्हें मंदिर के प्रांगण में घसीटकर ले गए, जहां उन्हें जबरन सिर झुकाने पर मजबूर किया गया.
उमर खालिद ने जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका
कार्यकर्ता उमर खालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़ी "बड़ी साजिश" के एक मामले में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी. खालिद और मामले के आठ अन्य आरोपी पांच साल से अधिक समय से जेल में हैं. यह मामला कड़े गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत दर्ज किया गया एक हाई-प्रोफाइल केस है. बार-बार जमानत से इनकार की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा आलोचना की गई है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में एक महत्वपूर्ण नज़ीर पेश करेगा. दिल्ली उच्च न्यायालय की एक पीठ ने 2 सितंबर को खालिद, गुलफिशा फातिमा, शरजील इमाम और छह अन्य की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं. दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि ये दंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे. पुलिस ने आरोप लगाया है कि खालिद ने "व्हाट्सएप पर दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप का गठन किया" और दंगों को "रिमोट कंट्रोल" से नियंत्रित किया.
असम में पुलिस और डीसी को ‘अवैध प्रवासियों’ को निष्कासित करने का अधिकार, नागरिकता साबित करने के लिए 10 दिन
मंगलवार को असम मंत्रिमंडल ने एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को मंजूरी दी, जिसके तहत 1950 के कानून को लागू किया जाएगा. यह कानून जिला आयुक्तों (डीसी) को यह अधिकार देता है कि वे विदेशी न्यायाधिकरणों के बजाय किसी भी ‘संदिग्ध विदेशी’ को नोटिस जारी कर 10 दिनों के भीतर भारतीय नागरिकता साबित करने का अवसर दें. “मकतूबमीडिया” के मुताबिक, यदि नागरिकता साबित न की गई तो उनके खिलाफ “निष्कासन आदेश” जारी किए जाएंगे. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के अनुसार, यह कदम राज्य सरकार को मौजूदा नागरिकता निर्धारण प्रणाली को दरकिनार करने का रास्ता देगा.
कैबिनेट बैठक के बाद मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा, इससे राज्य के विदेशी न्यायाधिकरणों की भूमिका लगभग समाप्त हो जाएगी. “यदि जिला आयुक्त को सीमा पुलिस या अन्य स्रोतों से सूचना मिलती है कि कोई व्यक्ति विदेशी है, तो डीसी उस व्यक्ति को नोटिस देंगे और उसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 10 दिन का समय मिलेगा,” मुख्यमंत्री ने कहा.
बानू मुश्ताक और ‘हब्बा’ पर हंगामा
अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता बानू मुश्ताक को 22 सितंबर को मैसूर दशहरा—कर्नाटक का नाडा हब्बा (राज्य उत्सव)—का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित करने के सिद्धारमैया सरकार के फैसले से राज्य में विवाद खड़ा हो गया है.
एस. बागेश्री के अनुसार, एक मुस्लिम महिला को इस समारोह का उद्घाटन करने के लिए बुलाए जाने से बीजेपी और उसकी संबद्ध संस्थाएं नाराज़ हो गई हैं. इन नेताओं की मंशा है कि उत्सव को केवल धार्मिक रूप में देखा जाए, न कि उस रूप में, जिसमें यह वर्षों में ढल चुका है — एक ऐसा पर्व जो निस्संदेह हिंदू परंपरा में निहित है, लेकिन समय के साथ बहुआयामी चरित्र ग्रहण कर चुका है.
मैसूर वाडियार वंश के उत्तरार्द्ध काल से लेकर कर्नाटक के लोकतांत्रिक राज्य बनने तक, यह पर्व राज्य की पहचान का प्रतीक बन चुका है. यह एक रंग-बिरंगा आकर्षक आयोजन है, जो दुनिया भर से हजारों पर्यटकों को खींच लाता है, व्यापार के अवसर पैदा करता है, मंचीय कला को प्रोत्साहन देता है और बहुत कुछ विविधता समेटे हुए है.
बिहार मतदाता सूची
‘एसआईआर’ में मुस्लिम नाम अधिक हटाने का कोई सबूत नहीं
बिहार में “एसआईआर” (विशेष गहन पुनरीक्षण) की प्रक्रिया के दौरान हटाए गए मतदाताओं के विश्लेषण से पता चलता है कि मुसलमानों पर असंतुलित प्रभाव होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है. आंकड़ों के अनुसार, इस प्रक्रिया में हटाए गए नामों में से 18.4% मुस्लिम थे, जो राज्य में उनकी जनसंख्या हिस्सेदारी 17.7% (जैसा कि 2022 बिहार जाति जनगणना में दर्ज है) के आस-पास है.
यह निष्कर्ष “द हिंदू” की डेटा टीम द्वारा हटाए गए मतदाताओं की सूची में नामों के विश्लेषण पर आधारित है. मुस्लिम मतदाताओं की पहचान करने के लिए, रचना और सुगत चतुर्वेदी द्वारा 2023 में प्रकाशित शोध पत्र “सब नाम में छिपा है: धर्म का अनुमान लगाने की एक चरित्र-आधारित विधि” में बताए गए मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग किया गया. मशीन लर्निंग मॉडल के परिणामों की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए कुछ नामों की मैन्युअल जांच भी की गई.
कुल 65 लाख हटाए गए नामों में से लगभग 52.8 लाख नामों पर यह विश्लेषण किया गया. 10 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव आयोग ने डेटा केवल इमेज पीडीएफ के रूप में जारी किया था, जिसे सटीक रूप से स्क्रैप करना संभव नहीं था. इसके अलावा, कुछ अन्य क्षेत्रों में तकनीकी कारणों के चलते विश्लेषण नहीं हो सका.
52.8 लाख नामों के विश्लेषण में मॉडल ने पाया कि उनमें से लगभग 9.7 लाख (18.4%) मुसलमान थे. साथ ही, मुसलमानों और गैर-मुसलमानों को मतदाता सूची से हटाए जाने के कारणों में कोई बड़ा अंतर नहीं मिला. उदाहरण के लिए, हटाए गए मुस्लिम मतदाताओं में से 44% को इस आधार पर हटाया गया कि वे “स्थायी रूप से स्थानांतरित” हो गए हैं, और यह प्रतिशत लगभग गैर-मुसलमानों के मामलों में भी समान था. इसी प्रकार, “मृत्यु,” “लापता” और “डुप्लीकेट पंजीकरण” जैसे अन्य कारणों के तहत हुई हटाए जाने की प्रक्रिया में भी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम मतदाताओं के बीच हिस्सेदारी लगभग समान रही. विशेष रूप से पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र के जिलों (अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार) में जहां मुस्लिम आबादी 38% से 68% के बीच है, वहां हिंदू मतदाताओं को 6% से 9% ज्यादा बाहर किया गया है.
इसके विपरीत, मुस्लिम मतदाताओं का नाम हटाने की दर अपेक्षाकृत कम और क्षेत्रीय आधार पर बंटी हुई है. पूरे राज्य में हटाए गए मतदाताओं में करीब 83.7% गैर-मुस्लिम और 16.3% मुस्लिम हैं, जो बिहार की जनसंख्या अनुपात (हिंदू 82.7%, मुस्लिम 16.9%) के अनुकूल दिखती है. इस प्रकार, बिहार में मुस्लिम मतदाताओं के नाम कटने को लेकर विशेष असंतुलन या अत्यधिक भेदभाव का कोई ठोस सबूत नहीं मिला, बल्कि गैर-मुस्लिम मतदाताओं के नाम भी समान रूप से या उनसे अधिक कटे.
'वोट चोर, गद्दी छोड़' - रायबरेली में राहुल गांधी ने दोहराया आरोप
लोकसभा में विपक्ष के नेता और रायबरेली के सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' का आरोप दोहराते हुए तीखा हमला बोला. अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मतदान प्रक्रिया में धांधली हो रही है और इसे रोकने की ज़रूरत है. राहुल गांधी का यह बयान उस समय आया है जब वह लगातार चुनावी प्रक्रिया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं. विपक्ष के एक प्रमुख नेता द्वारा चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर सीधे आरोप लगाना गंभीर है और यह देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ता है.
बुधवार को रायबरेली पहुंचने के दौरान, हरचंदपुर में समाजवादी पार्टी के नेताओं से मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा, "पहले लोगों को चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी का शक तो होता था लेकिन उनके पास सबूत नहीं होते थे. लेकिन अब हमारे पास सबूत हैं, और वोट की चोरी हो रही है. हमें इसे रोकना होगा." उन्होंने चुनाव आयोग पर तानाशाही तरीके से काम करने का आरोप भी लगाया.
हालांकि, रायबरेली में उनका स्वागत विरोध प्रदर्शनों के साथ भी हुआ. उत्तर प्रदेश के बागवानी मंत्री दिनेश प्रताप सिंह और उनके समर्थकों ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी मां के खिलाफ बिहार में एक चुनावी रैली में कथित रूप से अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने के विरोध में 'राहुल गांधी वापस जाओ' जैसे नारे लगाते हुए धरना दिया. इस विरोध के कारण राहुल गांधी के काफिले को लगभग एक किलोमीटर पहले ही रुकना पड़ा. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हल्की झड़प भी हुई, लेकिन बाद में स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया. राहुल गांधी 10 और 11 सितंबर को रायबरेली में रहेंगे. इस दौरान वह बूथ-स्तरीय पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलेंगे, जिला विकास समन्वय और निगरानी समिति (DISHA) की बैठक में विकास योजनाओं की समीक्षा करेंगे. वह प्रजापति समुदाय के लोगों से भी उनकी समस्याएं जानने के लिए मिलेंगे. साथ ही, वह गोरा बाज़ार चौराहे पर नवनिर्मित अशोक स्तंभ का उद्घाटन करेंगे और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए मुलिहामाऊ गांव में वीरा पासी जंगल में वृक्षारोपण भी करेंगे. 'वोट चोरी' के आरोपों पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया और इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस और तेज़ होने की संभावना है.
पंजाब बाढ़ राहत: मांगे 20,000 करोड़, मिले 1600.. अब सियासत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (9 सितंबर) को बाढ़ प्रभावित पंजाब के लिए 1,600 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की है. यह घोषणा उन्होंने प्रभावित जिलों का हवाई सर्वेक्षण करने और गुरदासपुर में स्थिति की समीक्षा बैठक के बाद की. मोदी ने राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) से अग्रिम राशि जारी करने, पीड़ितों के परिवारों को अनुग्रह राशि देने, पीएम आवास योजना के तहत क्षतिग्रस्त घरों का पुनर्निर्माण और आपदा में अनाथ हुए बच्चों के लिए सहायता की भी घोषणा की.
प्रधानमंत्री की यह घोषणा जल्द ही एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदल गई. पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार, जिसने केंद्र से 20,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की मांग की थी, ने इस घोषणा को अपर्याप्त बताते हुए "बकवास" करार दिया. यह विवाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच तनाव को उजागर करता है, जिसमें बाढ़ पीड़ित किसान और आम नागरिक पीस रहे हैं. 'आप' प्रवक्ता नील गर्ग ने कहा कि पंजाब को मोदी से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उन्होंने न्याय नहीं किया. उन्होंने बाढ़ से हुई भारी तबाही का हवाला देते हुए कहा कि लाखों एकड़ फसल बर्बाद हो गई है, सैकड़ों गांव प्रभावित हुए हैं, और हजारों घर ढह गए हैं, ऐसे में 1,600 करोड़ रुपये की राशि पंजाब का मजाक उड़ाने जैसा है. राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने भी केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि भाजपा वास्तविक सहायता देने के बजाय फोटो खिंचवाने में अधिक रुचि रखती है. 'आप' के पंजाब प्रमुख अमन अरोड़ा ने इसे राज्य के किसानों और लोगों का "खुला अपमान" बताया. वहीं, किसान मजदूर मोर्चा (KMM) के सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि किसान 50,000 से 70,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवजे की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने उन्हें निराश किया है.
इस विवाद का एक मुख्य केंद्र बिंदु प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान बन गया है कि 1,600 करोड़ रुपये की यह राशि राज्य के SDRF में पहले से उपलब्ध 12,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त है. शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने 'आप' सरकार से इस फंड का उपयोग न करने पर सवाल उठाया है. इसके जवाब में, 'आप' का कहना है कि SDRF फंड के उपयोग के लिए केंद्र सरकार के दिशानिर्देश इतने कड़े हैं कि उनका उपयोग करना "असंभव" है. 'आप' के अनुसार, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इन मानदंडों को बदलने के लिए केंद्र को पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए राज्य सरकार पर भारी दबाव है. केंद्र और राज्य के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहने की संभावना है. इस बीच, केंद्र सरकार की टीमें नुकसान का आकलन कर अपनी रिपोर्ट सौंपेंगी, जिसके आधार पर आगे की सहायता प्रदान की जा सकती है. हालांकि, तत्काल राहत के लिए बाढ़ पीड़ित सरकार की ओर देख रहे हैं और यह राजनीतिक खींचतान उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रही है.
कार और बाइक डीलरशिप पर लगाना होगा पीएम मोदी की तस्वीर वाला पोस्टर
थैंक यू मोदी जी कहने का सरकारी फरमान
केंद्र सरकार ने ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए सभी डीलरशिप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले पोस्टर लगाना अनिवार्य कर दिया है. इन पोस्टरों में वस्तु एवं सेवा कर (GST) में कटौती के बाद वाहनों की पुरानी और नई कीमतों को दर्शाया जाएगा. भारी उद्योग मंत्रालय (MHI) ने सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के माध्यम से कार और दोपहिया निर्माताओं को यह निर्देश जारी किया है.
यह पहली बार है जब किसी सरकार ने निजी व्यवसायों के लिए प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ इस तरह के पोस्टर लगाना अनिवार्य किया है. यह कदम सरकार द्वारा GST सुधारों का श्रेय लेने और इसे सीधे प्रधानमंत्री मोदी की छवि से जोड़ने के एक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. विपक्ष ने इसे राजनीतिक प्रचार का एक तरीका बताते हुए इसकी आलोचना की है.
ऑटोमोबाइल कंपनियों के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि वे पोस्टर डिजाइन कर रहे हैं और उन्हें प्रदर्शित करने से पहले मंत्रालय से मंजूरी के लिए भेज रहे हैं. एक उद्योग के कार्यकारी ने कहा, "इस गतिविधि के लिए कोई मिसाल नहीं है. इसलिए, हमें यह देखना होगा कि क्या हमें सिर्फ मुख्य पोस्टर के लिए अनुमोदन की आवश्यकता है - जो अंग्रेजी में होगा - या प्रत्येक भाषा के लिए विकसित पोस्टर के लिए." एक अन्य उद्योग स्रोत ने कहा कि इस अभ्यास में सेक्टर को 20-30 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है. हालांकि, लक्जरी कार कंपनियों को इस जनादेश से छूट दी गई है.
केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) ने एक्स पर एक पोस्ट में सरकार के इस फैसले की आलोचना की. पार्टी ने लिखा, "हम सभी कंपनियों से अनुरोध करते हैं कि वे पुरानी, उच्च GST दरों को लागू करने के लिए जिम्मेदार मोदीजी की तस्वीर बाईं ओर लगाएं. जूते-चप्पल और अंडरगारमेंट कंपनियां आदेश जारी होने का इंतजार करने से पहले अपने उत्पादों पर मोदी की तस्वीरें लगाने की फिर से योजना बना रही हैं."
यह निर्देश सरकार की उस रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत वह अपनी नीतियों और सफलताओं का व्यापक प्रचार-प्रसार करना चाहती है. प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर का उपयोग करके, सरकार GST कटौती को एक व्यक्तिगत उपलब्धि के रूप में पेश करना चाहती है, जिसका सीधा लाभ आम आदमी को मिल रहा है. यह कदम ब्रांड मोदी को और मज़बूत करने का एक प्रयास है. वहीं, विपक्ष का कटाक्ष यह दर्शाता है कि वे इसे जनता के पैसे का उपयोग करके किया जाने वाला राजनीतिक विज्ञापन मान रहे हैं. उम्मीद है कि इस सप्ताह के अंत तक पोस्टर डीलरशिप पर प्रदर्शित कर दिए जाएंगे. मारुति सुजुकी, हुंडई, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, टोयोटा और किआ जैसी वाहन निर्माता पहले ही पुष्टि कर चुके हैं कि वे GST दर में कटौती का पूरा लाभ ग्राहकों को देंगे. GST परिषद ने छोटी कारों पर टैक्स 29-31 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत और बड़ी कारों पर 50 प्रतिशत से घटाकर 40 प्रतिशत कर दिया है. केंद्र ने मुआवज़ा उपकर भी वापस ले लिया है. इस फैसले पर राजनीतिक बहस तेज़ होने की संभावना है.
भाजपा का दबदबा बरकरार, लेकिन सियासी रसूख में दरारें दिखने लगीं
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक दशक से अधिक समय से भारतीय राजनीति पर न केवल हावी रही है, बल्कि उसने इसे नया रूप दिया है. हालांकि, हाल के घटनाक्रम बताते हैं कि भाजपा के एक समय के अजेय प्रभुत्व को एक दशक में अपनी सबसे गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. पार्टी चुनावी रूप से मज़बूत बनी हुई है, लेकिन सार्वजनिक बहस की शर्तों को निर्देशित करने और विपक्ष को चुप कराने की उसकी क्षमता में दरारें दिखने लगी हैं. द हिंदू में ज़ोया हसन ने लम्बा विश्लेषण लिखा है.
यह विश्लेषण भाजपा के उस 'अजेय' आभामंडल पर सवाल उठाता है जो 2014 और 2019 के चुनावों के बाद बना था. यह इंगित करता है कि भावनात्मक और राष्ट्रवादी मुद्दों के बजाय, अब आर्थिक प्रदर्शन, बेरोज़गारी और असमानता जैसे भौतिक मुद्दे मतदाताओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं. विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ना और एकजुट होना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है.
भाजपा का राजनीतिक प्रोजेक्ट हिंदुत्व, राष्ट्रीय गौरव और बहुसंख्यकवादी पहचान के इर्द-गिर्द बनाया गया था, जिसने लंबे समय तक आर्थिक प्रदर्शन में कमी, बढ़ती असमानता और धन के अत्यधिक संकेंद्रण को छिपाने में मदद की. लेकिन अब यह समीकरण अपनी पकड़ खो रहा है. युवा बेरोज़गारी, स्थिर वेतन वृद्धि और अनौपचारिक क्षेत्र की समस्याएं लोगों के लिए प्रतीकात्मक जीतों पर भारी पड़ रही हैं.
साथ ही, एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की छवि का वर्णन भी अपनी गति खो चुका है. अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध, व्यापार वार्ता का विफल होना और सख्त वीज़ा व्यवस्था ने वैश्विक उत्थान के भ्रम को तोड़ा है. हालांकि, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) योजनाओं के माध्यम से भाजपा ग्रामीण मतदाताओं और शहरी गरीबों के बीच अपनी पकड़ बनाए हुए है, लेकिन केवल कल्याणकारी योजनाएं राजनीतिक प्रभुत्व को बनाए नहीं रख सकती हैं.
सबसे महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि विपक्षी नेता अब डरे हुए नहीं हैं. विपक्ष अब न केवल अधिक समन्वित है, बल्कि अधिक मुखर भी है. इसका नेतृत्व राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस कर रही है. 'भारत जोड़ो यात्रा' के बाद कांग्रेस ने गति पकड़ी है, और 2024 के आम चुनाव से पहले उसके बैंक खातों को फ्रीज करने का सरकार का कदम उल्टा पड़ गया. इसने सरकार की मनमानी को उजागर किया और भाजपा की अजेयता के आभामंडल को कमज़ोर किया.
चुनाव आयोग पर नियंत्रण को मज़बूत करने के शासन के प्रयास भी उसकी घटती आधिपत्य का एक révélateur संकेत है. एक सुरक्षित सरकार को नियमों को फिर से लिखने की आवश्यकता नहीं होगी. मतदाता सूचियों में हेरफेर का आरोप लगाकर कांग्रेस के नेतृत्व वाले अभियान ने शासन की अखंडता पर एक व्यापक अभियोग लगाया है. भाजपा का प्रभुत्व अक्सर कांग्रेस पार्टी के स्वतंत्रता के बाद के प्रभुत्व से तुलना की जाती है, लेकिन दोनों में एक मौलिक अंतर है. कांग्रेस का आधिपत्य भारत की विविध सामाजिक, क्षेत्रीय और वैचारिक धाराओं को समाहित करने और प्रतिबिंबित करने की क्षमता पर टिका था. इसके विपरीत, भाजपा का प्रभुत्व ध्रुवीकरण और बहिष्कार पर आधारित है. जैसे ही इसकी चुनावी मशीनरी लड़खड़ाएगी, दरारें और स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेंगी. बिहार विधानसभा चुनाव इस राजनीतिक चुनौती की अगली बड़ी परीक्षा होगी.
बीजेपी-अन्नाद्रमुक गठबंधन में फिर दरार, दिल्ली पर ईपीएस को कमजोर करने का आरोप
अन्नाद्रमुक (AIADMK) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच सावधानी से प्रबंधित गठबंधन एक बार फिर तनाव में दिख रहा है. अन्नाद्रमुक ने पार्टी महासचिव एडप्पादी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) के नेतृत्व में बढ़ते "हस्तक्षेप" की शिकायत की है. अन्नाद्रमुक के भीतर "दिल्ली के प्रयोगों की कीमत चुकाने" के बजाय एनडीए से बाहर निकलने की मांग बढ़ रही है. तमिलनाडु की राजनीति में यह एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जहां बीजेपी अपनी पकड़ मज़बूत करने की कोशिश कर रही है. अन्नाद्रमुक के बिना एनडीए राज्य में काफी कमज़ोर हो जाएगा. ईपीएस पर बढ़ता दबाव और पार्टी के भीतर से एनडीए छोड़ने की मांग 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले राज्य के राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकती है.
हालिया तनाव तब शुरू हुआ जब अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता के. ए. सेंगोट्टैयन ने निष्कासित नेताओं को पार्टी में वापस लाने की मांग की, जिसे ईपीएस के नेतृत्व को सीधी चुनौती के रूप में देखा गया. इसके बाद ईपीएस ने सेंगोट्टैयन को सभी संगठनात्मक जिम्मेदारियों से हटा दिया. सेंगोट्टैयन की बगावत को बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, खासकर जब उन्होंने नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की. इस बीच, अन्नाद्रमुक से निष्कासित नेता ओ. पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) और अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम (एएमएमके) के प्रमुख टी. टी. वी. दिनाकरन जैसे अन्य गुट भी सक्रिय हो गए हैं, जिन्हें बीजेपी का "स्टैंडबाय" माना जाता है. दिनाकरन ने कहा कि अगर 2026 के चुनावों के लिए ईपीएस मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हैं तो वह एनडीए में वापसी पर विचार करेंगे.
बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व तमिलनाडु में एक मज़बूत एनडीए बनाने के लिए एक एकीकृत अन्नाद्रमुक चाहता है, लेकिन उनके सभी प्रयास अब तक विफल रहे हैं. सेंगोट्टैयन के माध्यम से ईपीएस पर दबाव बनाने की कोशिश भी "उल्टी पड़ती" दिख रही है क्योंकि ईपीएस ने पार्टी के भीतर अपनी पकड़ काफी मज़बूत कर ली है. अन्नाद्रमुक के एक धड़े का मानना है कि बीजेपी के साथ गठबंधन के कारण वे अल्पसंख्यक और क्षेत्रीय सहयोगियों से दूर हो रहे हैं. उनका तर्क है कि एनडीए से बाहर निकलकर ईपीएस, अन्नाद्रमुक को बीजेपी से स्वतंत्र एक ताकत के रूप में फिर से स्थापित कर सकते हैं.
अन्नाद्रमुक के नेता अब मांग कर रहे हैं कि ईपीएस एक कदम और आगे बढ़ें और सेंगोट्टैयन को पार्टी से ही बर्खास्त कर दें. ईपीएस के एक करीबी नेता ने कहा, "गठबंधन बनाते समय हमें सम्मान का वादा किया गया था. उस वादे का उल्लंघन किया जा रहा है." यदि ईपीएस दृढ़ रहते हैं, तो वे और मज़बूत होकर उभर सकते हैं. लेकिन अगर वे झुकते हैं, तो उनके नेतृत्व पर पहली बार सवाल उठाया जाएगा. यह पूरा प्रकरण तमिलनाडु में एनडीए के भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है.
पोलैंड ने रूसी ड्रोन मार गिराए, हवाई क्षेत्र के उल्लंघन को 'आक्रामकता का कार्य' बताया
बीबीसी न्यूज़ और रॉयटर्स के मुताबिक पोलैंड के सशस्त्र बलों ने बुधवार तड़के अपने हवाई क्षेत्र में रूसी ड्रोनों को मार गिराने की पुष्टि की. यह फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के बाद पहली बार है जब पोलैंड ने सीधे रूसी संपत्तियों पर हमला किया है. प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमलों के दौरान "बड़ी संख्या में ड्रोनों द्वारा" पोलिश हवाई क्षेत्र का "उल्लंघन" किया गया, जिसे पोलिश सेना ने "अभूतपूर्व" और "आक्रामकता का कार्य" कहा. यह घटना रूस-यूक्रेन युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ है. नाटो के किसी सदस्य देश द्वारा रूसी ड्रोनों को मार गिराना संघर्ष के संभावित विस्तार को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करता है. नाटो के सामूहिक रक्षा सिद्धांत के तहत, एक सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाता है, जिससे यह स्थिति और भी तनावपूर्ण हो जाती है. ड्रोनों ने पोलैंड में इतनी गहराई तक उड़ान भरी कि वारसॉ के मुख्य केंद्र चोपिन सहित चार हवाई अड्डों को बंद करना पड़ा. जवाब में नाटो ने भी लड़ाकू विमान तैनात किए. प्रधानमंत्री टस्क ने कहा कि यह पहली बार है जब किसी नाटो देश के क्षेत्र में रूसी ड्रोनों को मार गिराया गया है. उन्होंने कहा कि कोई हताहत नहीं हुआ है.
पोलैंड के सशस्त्र बलों के ऑपरेशनल कमांड ने कहा कि ड्रोनों को पोलैंड और देश में तैनात नाटो विमानों दोनों द्वारा रडार पर ट्रैक किया गया था. सेना ने कहा, "हमारे हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने वाले कुछ ड्रोनों को मार गिराया गया. इन वस्तुओं के संभावित दुर्घटना स्थलों का पता लगाने के लिए खोज और प्रयास जारी हैं." डच प्रधानमंत्री ने कहा कि डच F35 लड़ाकू जेट ने इस ऑपरेशन में सहायता प्रदान की.
यह घटना रूस द्वारा नाटो की प्रतिक्रिया का परीक्षण करने का एक प्रयास हो सकता है. यूक्रेन के विदेश मंत्री एंड्री सिबिहा ने कहा कि यह घटना दर्शाती है कि "पुतिन तनाव बढ़ाना और युद्ध का विस्तार करना जारी रखे हुए हैं." उन्होंने कहा, "अब एक कमज़ोर प्रतिक्रिया रूस को और भी अधिक उकसाएगी - और फिर रूसी मिसाइलें और ड्रोन यूरोप में और भी आगे उड़ेंगे." रूस ने अभी तक इस घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की है. प्रधानमंत्री टस्क ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और कहा कि नाटो के महासचिव को सूचित किया जा रहा है. पोलैंड ने नाटो संधि के अनुच्छेद 4 को लागू करने का अनुरोध किया है, जो सैन्य गुट के अन्य सदस्यों के साथ परामर्श शुरू करता है और संभावित रूप से नाटो की ओर से किसी प्रकार के संयुक्त निर्णय या कार्रवाई का कारण बन सकता है. यह घटना रूस और नाटो के बीच तनाव को काफी बढ़ा सकती है और यूक्रेन युद्ध को एक नए और खतरनाक चरण में ले जा सकती है.
फैक्ट चेक/ फेक़ न्यूज़
न भाई, अभी नहीं चल रहा नोबेल शांति के लिए उनका नाम!
ऑल्ट न्यूज़ में शिंजिनी मजूमदार की विस्तृत रिपोर्ट है कि नोबेल समिति फिलहाल नरेन्द्र मोदी के नाम पर विचार नहीं कर रही. कई मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने यह दावा किया कि नोबेल शांति पुरस्कार समिति के उप नेता, एस्ले टोजे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नोबेल शांति पुरस्कार का "सबसे बड़ा दावेदार" और दुनिया में "शांति का सबसे विश्वसनीय चेहरा" कहा है. हालांकि, यह दावा गलत है. एस्ले टोजे ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया.
यह घटना दिखाती है कि कैसे मीडिया संस्थान और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बिना पुष्टि के गलत सूचना फैला सकते हैं, खासकर जब यह एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती से संबंधित हो. नोबेल पुरस्कार जैसी प्रतिष्ठित संस्था के नाम का उपयोग गलत सूचना को विश्वसनीयता प्रदान करता है, जिससे जनता गुमराह हो सकती है.
मार्च 2023 में, भारत दौरे पर आए एस्ले टोजे के हवाले से कई समाचार चैनलों और अख़बारों ने यह खबर चलाई. टाइम्स नाउ के एक एंकर ने टोजे को यह कहते हुए उद्धृत किया कि पीएम मोदी 2024 के चुनावों से पहले "नोबेल शांति पुरस्कार के सबसे बड़े दावेदार" हैं. द टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनॉमिक टाइम्स, मिंट और कई अन्य मीडिया आउटलेट्स ने भी इसी तरह के दावे किए. कई भाजपा नेताओं ने भी इस खबर को साझा किया.
ऑल्ट न्यूज़ की जांच में पाया गया कि एस्ले टोजे ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था.वास्तव में, एएनआई को दिए एक साक्षात्कार में, टोजे ने स्पष्ट रूप से इन रिपोर्टों को "फर्जी खबर" बताया और कहा कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है. उन्होंने कहा, "एक फर्जी खबर वाला ट्वीट भेजा गया था और मुझे लगता है कि हम सभी को इसे फर्जी खबर मानना चाहिए. यह फर्जी है."
एबीपी न्यूज़ को दिए एक लंबे साक्षात्कार में भी, रिपोर्टर द्वारा बार-बार उकसाने के बावजूद, टोजे ने कहीं भी मोदी को शांति पुरस्कार का मज़बूत दावेदार नहीं बताया.उन्होंने केवल यह उम्मीद जताई कि हर देश का नेता शांति के लिए काम करने के लिए प्रेरित हो.
नोबेल समिति के नियमों के अनुसार, नामांकित व्यक्तियों के नाम और नामांकन के बारे में अन्य जानकारी 50 वर्षों तक गुप्त रखी जाती है. समिति के सदस्य सार्वजनिक रूप से नामांकित व्यक्तियों के नाम या उनके जीतने की संभावनाओं पर अटकलें नहीं लगा सकते. इसलिए, टोजे द्वारा इस तरह का बयान देना समिति के नियमों का सीधा उल्लंघन होता. यह स्पष्ट है कि मीडिया आउटलेट्स ने या तो उनके बयानों को गलत समझा या सनसनीखेज बनाने के लिए उन्हें गलत तरीके से पेश किया. ज़्यादातर मीडिया संस्थानों ने बाद में अपनी रिपोर्ट और ट्वीट हटा दिए, लेकिन तब तक यह गलत खबर वायरल हो चुकी थी.
अब तक का सबसे पतला आईफ़ोन
एपल ने अपने वार्षिक सितंबर आयोजन में नई आईफोन 17 सीरीज़ का अनावरण किया है, जिसमें कई वर्षों में सबसे बड़ा डिज़ाइन रिफ्रेश देखने को मिला है. इस लाइनअप में एक बिल्कुल नया, अविश्वसनीय रूप से पतला 'आईफोन एयर' और एक पुन: डिज़ाइन किए गए कैमरा लेआउट के साथ आईफोन 17 प्रो मॉडल शामिल हैं.
2019 में iPhone 11 के बाद से Apple मोटे तौर पर एक ही डिज़ाइन पर कायम रहा है. iPhone 17 सीरीज़ का नया डिज़ाइन, विशेष रूप से प्रो मॉडल में हॉरिजॉन्टल कैमरा बार और एकदम नए 'एयर' मॉडल का आगमन, आईफोन के विकास में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है. यह स्मार्टफोन बाजार में पतलेपन और उन्नत कैमरा क्षमताओं की बढ़ती प्रवृत्ति को भी दर्शाता है.
iPhone Air: यह अब तक का सबसे पतला आईफोन है, जिसकी मोटाई केवल 5.6-मिमी है. यह iPhone 17 Plus की जगह लेता है. इसमें 6.5-इंच की स्क्रीन, टाइटेनियम फ्रेम, और नया सिरेमिक शील्ड 2 ग्लास है. हालांकि, पतलेपन की कीमत एक कैमरे की कुर्बानी से चुकानी पड़ी है; इसमें केवल एक ही रियर कैमरा है. यह नए A19 प्रो चिप, 120Hz प्रोमोशन डिस्प्ले और 25W वायरलेस चार्जिंग से लैस है. इसकी कीमत $999 से शुरू होती है.
iPhone 17 Pro और Pro Max: इन मॉडलों में सबसे बड़ा बदलाव पीछे की तरफ एक लंबा, हॉरिजॉन्टल कैमरा बार है, जिसे एपल 'कैमरा प्लेटो' कह रहा है. दिलचस्प बात यह है कि ये महंगे मॉडल टाइटेनियम के बजाय एल्यूमीनियम चेसिस पर वापस आ गए हैं. इनमें एक नया वेपर-चेंबर कूलिंग सिस्टम है. टेलीफोटो कैमरा अब 48-मेगापिक्सल का है और 8X ऑप्टिकल-लाइक ज़ूम प्रदान करता है (डिजिटल ज़ूम 40X तक). ये भी A19 प्रो चिप द्वारा संचालित हैं और 256 GB स्टोरेज से शुरू होते हैं. इनकी कीमतें क्रमशः $1,099 और $1,199 तक बढ़ गई हैं.
iPhone 17 (बेस मॉडल): बेस मॉडल में भी कुछ महत्वपूर्ण अपग्रेड हैं. इसमें अब 6.3 इंच की बड़ी स्क्रीन और 120Hz प्रोमोशन रिफ्रेश रेट है, जो पहले केवल प्रो मॉडल तक ही सीमित था. इसमें एक उन्नत 18-मेगापिक्सल का सेल्फी कैमरा और 25W वायरलेस चार्जिंग सपोर्ट भी है. इसकी कीमत $799 से शुरू होती है.
एपल 'आईफोन एयर' के साथ पतले फोन के बाजार में सैमसंग और हॉनर जैसे प्रतिद्वंद्वियों को टक्कर दे रहा है. टाइटेनियम को केवल 'एयर' मॉडल तक सीमित करना और प्रो मॉडल में एल्यूमीनियम का उपयोग करना लागत और गर्मी प्रबंधन के बीच एक रणनीतिक संतुलन का संकेत देता है. कैमरा क्षमताओं में, विशेष रूप से ज़ूम में, निरंतर सुधार यह दर्शाता है कि एपल के लिए फोटोग्राफी एक प्रमुख विक्रय बिंदु बनी हुई है.
नई iPhone 17 सीरीज़ के लिए प्री-ऑर्डर शुक्रवार, 11 सितंबर से शुरू होंगे और आधिकारिक बिक्री 19 सितंबर से शुरू होगी. यह देखना दिलचस्प होगा कि ग्राहक, विशेष रूप से नए 'आईफोन एयर' और प्रो मॉडल की बढ़ी हुई कीमतों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं.
फ्रांस में हिंसक प्रदर्शन, सैकड़ों गिरफ्तार
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, राजनीतिक प्रतिष्ठान और नियोजित बजट कटौती के खिलाफ गुस्से के प्रदर्शन में "सब कुछ ब्लॉक करो" ('Block Everything') के आह्वान पर बुधवार को पूरे फ्रांस में प्रदर्शनकारियों ने यातायात बाधित किया, कूड़ेदान जलाए और कई बार पुलिस के साथ झड़प की. यह आंदोलन 2018 के "येलो वेस्ट" विरोध प्रदर्शनों की याद दिलाता है, जिसने मैक्रों के पहले कार्यकाल को हिलाकर रख दिया था. यह फ्रांस में सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और मितव्ययिता की उनकी नीतियों के खिलाफ गहरे और व्यापक असंतोष को दर्शाता है. यह मैक्रों के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती है, जिनकी सरकार पहले से ही संसद में विश्वास मत हारने के बाद उथल-पुथल का सामना कर रही है.
देश भर में तैनात हजारों सुरक्षा बलों ने जल्द से जल्द अवरोधों को हटा दिया, लेकिन फिर भी व्यापक व्यवधान हुए. देश भर में लगभग 300 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया. प्रदर्शनकारियों ने मैक्रों के खिलाफ अपना गुस्सा निकाला. पेरिस में, पुलिस ने एक हाई स्कूल के प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर रहे युवाओं पर आंसू गैस के गोले छोड़े. प्रदर्शनकारियों ने पश्चिमी शहर रेन में एक बस में आग लगा दी. "सब कुछ ब्लॉक करो" आंदोलन का कोई केंद्रीकृत नेतृत्व नहीं है और यह सोशल मीडिया पर संगठित हुआ है. यह मई में दक्षिणपंथी समूहों के बीच ऑनलाइन शुरू हुआ, लेकिन तब से वामपंथी और धुर-वामपंथी समूहों ने इसे अपना लिया है.
यह आंदोलन सिर्फ बजट कटौती के बारे में नहीं है, बल्कि एक ऐसे राजनीतिक तंत्र के खिलाफ निराशा का प्रतीक है जिसे प्रदर्शनकारी टूटा हुआ मानते हैं. सोमवार को प्रधानमंत्री फ्रेंकोइस बायरो को विश्वास मत में हार का सामना करना पड़ा और मैक्रों ने अपने करीबी सहयोगी, सेबेस्टियन लेकोर्नू को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया. ल्यों में एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि मैक्रों का यह निर्णय "मुंह पर एक तमाचा" है. "हम उनकी लगातार सरकारों से थक चुके हैं; हमें बदलाव की ज़रूरत है."
गृह मंत्री ब्रूनो रिटेल्यू ने चेतावनी दी है कि दिन में बाद में होने वाली विरोध रैलियों में कट्टरपंथी, अति-वामपंथी समूह घुसपैठ कर सकते हैं और वे हिंसक हो सकती हैं. सरकार ने देश भर में 80,000 सुरक्षा बल तैनात किए हैं. यह विरोध प्रदर्शन मैक्रों की सरकार पर दबाव बढ़ाएगा और यह देखना होगा कि क्या यह "येलो वेस्ट" आंदोलन की तरह एक लंबे समय तक चलने वाले राष्ट्रव्यापी संकट में बदल जाता है.
पोलैंड के हवाई क्षेत्र में रूसी ड्रोन, नाटो ने मार गिराया; तनाव चरम पर, अनुच्छेद 4 लागू
नाटो के लड़ाकू विमानों ने बुधवार तड़के पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमले के दौरान पोलैंड के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करने वाले कई रूसी ड्रोनों को मार गिराया. इस सैन्य कार्रवाई के बाद गठबंधन ने मास्को के इस व्यवहार को "पूरी तरह से खतरनाक" बताया है. यह ऑपरेशन यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार है जब नाटो द्वारा गोलियां चलाई गई हैं. यह घटना एक बहुत बड़ी सैन्य वृद्धि है, क्योंकि इसमें नाटो का एक सदस्य देश सीधे तौर पर रूसी सैन्य संपत्ति के साथ टकराव में शामिल हुआ है. इसके जवाब में, पोलैंड ने नाटो के अनुच्छेद 4 को लागू कर दिया है, जिसका अर्थ है कि गठबंधन का मुख्य राजनीतिक निर्णय लेने वाला निकाय अब स्थिति और अगले कदमों पर चर्चा करने के लिए बैठक करेगा. इससे क्षेत्र में तनाव एक नए स्तर पर पहुंच गया है. पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क ने कहा कि उनके देश के हवाई क्षेत्र में 19 बार घुसपैठ हुई, और पोलिश और सहयोगी विमानों ने उनमें से कई ड्रोनों को मार गिराया. उन्होंने कहा कि देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से किसी भी समय की तुलना में संघर्ष के ज्यादा करीब है. इस ऑपरेशन में पोलिश एफ-16, डच एफ-35 जेट, एक इतालवी पूर्व चेतावनी विमान और जर्मन पैट्रियट सिस्टम शामिल थे. दूसरी ओर, रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसने यूक्रेन के खिलाफ रात में हमला किया था और "पोलैंड के क्षेत्र में किसी भी लक्ष्य को नष्ट करने की योजना नहीं थी".
इस घटना को यूक्रेन में शांति समझौते के प्रयासों के रुकने और चीन तथा उत्तर कोरिया के नेताओं के साथ पुतिन की हालिया मुलाकात के बाद ताकत के प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है. कई विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन नाटो के संकल्प का परीक्षण कर रहे हैं. पोलैंड के उप प्रधानमंत्री राडोस्लाव सिकोरस्की ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में ड्रोनों का पोलैंड में प्रवेश करना यह स्पष्ट करता है कि यह रूस द्वारा एक जानबूझकर किया गया कार्य था.नाटो के सहयोगी देश पोलैंड के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं और यूरोप में मजबूत रक्षा उपायों का आह्वान कर रहे हैं. नाटो प्रमुख मार्क रूट ने कहा कि गठबंधन अपने क्षेत्र के "हर इंच" की रक्षा करेगा.ब्रिटेन के रक्षा मंत्री ने कहा है कि उन्होंने अपनी सशस्त्र सेनाओं से पोलैंड पर नाटो की वायु रक्षा को "बढ़ाने के विकल्पों पर विचार" करने को कहा है. अमेरिका ने भी स्थिति पर नजर रखी हुई है और राष्ट्रपति ट्रंप पोलिश राष्ट्रपति से बात करने की योजना बना रहे हैं. यह घटना नाटो के पूर्वी किनारे पर सैन्य तैयारी को और बढ़ा सकती है.
बोल्सोनारो के मुकदमे में नाटकीय मोड़, जज ने अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए मामला रद्द करने के पक्ष में वोट दिया
ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के खिलाफ चल रहे तख्तापलट की साजिश के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस लुइज़ फक्स ने मामले को रद्द करने के लिए वोट दिया है. उन्होंने अपने वोट का कारण बताते हुए कहा कि मामले की सुनवाई कर रही पांच-न्यायाधीशों की पीठ के पास "अधिकार क्षेत्र का पूर्ण अभाव" है. हालांकि बोल्सोनारो को दोषी ठहराए जाने की संभावना अभी भी अधिक है, लेकिन जस्टिस फक्स का वोट कार्यवाही के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी चुनौती पेश करता है. यह फैसला अंतिम निर्णय की वैधता पर सवाल उठा सकता है और ब्राजील की पहले से ही ध्रुवीकृत राजनीति में और तनाव पैदा कर सकता है. जस्टिस फक्स ने बुधवार को अंतिम विचार-विमर्श के दौरान तर्क दिया कि इस मामले की सुनवाई निचली अदालतों में होनी चाहिए थी क्योंकि बोल्सोनारो पद छोड़ चुके थे. उन्होंने यह भी कहा कि मामले की सुनवाई पांच-न्यायाधीशों की पीठ के बजाय पूरे सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जानी चाहिए थी, क्योंकि इसमें बोल्सोनारो के राष्ट्रपति रहते हुए किए गए अपराध शामिल हैं. फक्स ने यह भी कहा कि बचाव पक्ष को अपना मामला तैयार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया. बोल्सोनारो पर एक सशस्त्र आपराधिक संगठन में भाग लेने, हिंसक रूप से लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश करने और तख्तापलट का आयोजन करने का आरोप है. यह मुकदमा अत्यधिक राजनीतिक है. बोल्सोनारो और उनके समर्थक, जिनमें अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे करीबी सहयोगी शामिल हैं, इस मुकदमे की "विच हंट" (राजनीतिक बदले की कार्रवाई) के रूप में निंदा करते रहे हैं. इस मामले में दोषसिद्धि के फैसले से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू होने की आशंका है, जैसा कि 2022 के चुनाव हारने के बाद उनके समर्थकों ने किया था. इस मामले में पांच में से तीन जजों ने वोट डाल दिया है, जिसमें दो ने दोषसिद्धि के पक्ष में और एक ने रद्द करने के पक्ष में वोट दिया है. शेष दो न्यायाधीशों को बोल्सोनारो के प्रतिद्वंद्वी, राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा द्वारा नियुक्त किया गया था, इसलिए दोषसिद्धि की संभावना बनी हुई है. यदि दोषी पाए जाते हैं, तो 70 वर्षीय बोल्सोनारो को 43 साल तक की जेल हो सकती है. इस फैसले का ब्राजील की राजनीतिक स्थिरता पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.
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