11/12/2025: आरएसएस का दुनिया भर में फैलारा | 2500 से ज्यादा संगठन | मोहन भागवत सबको ब्राह्मण क्यों नहीं बना देते? | इधर बाबरी की नींव, उधर गीता पाठ के तेवर | रुपया फिर लुढ़का | बांग्लादेश में चुनाव
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आज की सुर्खियां
आरएसएस का असली फैलाव: 36 नहीं, 2500 से ज्यादा संगठन; ‘सीइंग द संघ’ ने खोला दुनिया के सबसे बड़े धुर दक्षिणपंथी नेटवर्क का राज
सत्या सागर का सवाल: भागवत जी, अगर हर हिंदुस्तानी हिंदू है, तो सबको ब्राह्मण घोषित क्यों नहीं कर देते?
बंगाल में ‘एसआईआर’ पर भाजपा का ‘मिनी पाकिस्तान’ वाला वीडियो और ममता का पलटवार- शाह की आंखों में दुर्योधन दिखता है
चुनाव से पहले बंगाल में सांप्रदायिक लामबंदी: एक तरफ ‘नई बाबरी’ की नींव, दूसरी तरफ लाखों कंठों से गीता पाठ
डिजिटल तख्तापलट और ‘ब्रो-लिगार्की’: 2025 के सबसे चर्चित टेड टॉक में निगरानी फासीवाद की चेतावनी
लुढ़कता रुपया: डॉलर के मुकाबले 90.47 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंची भारतीय करेंसी
पाकिस्तान: कभी सेना प्रमुख की दौड़ में थे, अब पूर्व ISI चीफ फैज हमीद को मिली 14 साल की जेल
हसीना के जाने के बाद पहली बार: बांग्लादेश में 12 फरवरी को होंगे आम चुनाव
उमर खालिद को राहत: बहन की शादी के लिए मिली अंतरिम जमानत, लेकिन शर्तें लागू
मद्रास हाईकोर्ट के जज पर पक्षपात के आरोप: इंडिया गठबंधन के सांसदों ने राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी
आनंद पटवर्धन को लाइफटाइम अचीवमेंट: कहा- नफरत के दौर में इंसानियत की लड़ाई मुश्किल, पर जरूरी
सीईंग द संघ
आरएसएस का पूरा फैलारा जानने, समझने के लिए यहां क्लिक करें
कैरवेन और साइंस पो की नई जांच में सामने आई इतिहास के सबसे बड़े धुर दक्षिणपंथी नेटवर्क, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े 2,500 से ज़्यादा संगठनों की पहचान
कैरेवन और साइंसेज पो के सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्टडीज़ (सीईआरआई) ने मिलकर एक बड़ा खुलासा किया है. उनकी नई रिसर्च “सीइंग द संघ: मैपिंग द आरएसएस ट्रांसनेशनल नेटवर्क” में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के ग्लोबल नेटवर्क का दुनिया का पहला व्यापक नक्शा तैयार किया गया है. इस डेटासेट में आरएसएस से जुड़े 2,500 से ज़्यादा संगठनों की पहचान की गई है, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा ‘फ़ार-राइट’ (चरम दक्षिणपंथी) नेटवर्क बनाता है.
11 दिसंबर 2025 को लॉन्च किए गए इस प्रोजेक्ट में एक पब्लिक वेबसाइट शामिल है, जिसे कैरेवन प्रकाशित और होस्ट कर रहा है. इसमें एक इंटरैक्टिव डैशबोर्ड है जो आरएसएस के नेटवर्क को बारीकी से दिखाता है. यह रिसर्च बताती है कि जहां आरएसएस औपचारिक रूप से सिर्फ़ तीन दर्जन (करीब 36) संगठनों—जिसे ‘संघ परिवार’ कहा जाता है—के साथ ही अपना रिश्ता मानता है, वहीं असलियत में यह नेटवर्क कहीं ज़्यादा विशाल है.
शोधकर्ताओं ने छह साल की कड़ी मेहनत और डेटा कलेक्शन के बाद यह साबित किया है कि आरएसएस कम से कम 2,500 अलग-अलग संगठनों से जुड़ा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक़, “इनमें से कई संगठनों में एक ही जैसे लोग काम करते हैं, ये एक ही पते (एड्रेस) से चलते हैं, अक्सर मिलकर कार्यक्रम आयोजित करते हैं और इनके बीच पैसों का लेन-देन (घरेलू और विदेशी दोनों) भी जुड़ा हुआ है.” यह सबूत इशारा करते हैं कि यह कोई बिखरा हुआ ‘परिवार’ नहीं, बल्कि एक मज़बूती से जुड़ा हुआ और केंद्र से निर्देशित नेटवर्क है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के फ़ेलिक्स पाल कहते हैं, “संघ इतिहास का सबसे पुराना, सबसे अमीर और सबसे बड़ा फ़ार-राइट नेटवर्क है. हमने पाया कि इसमें कई ऐसे संगठन शामिल हैं जो ऊपर से सीधे-सादे लगते हैं—जैसे सर्विस प्रोवाइडर्स, पब्लिशिंग हाउस और गौशालाएं—लेकिन ये संघ की वैधता और संसाधनों के लिए अहम ज़रिया हैं.”
साइंसेज पो-सीईआरआई के रिसर्च डायरेक्टर क्रिस्टोफ़ जैफ़रलो ने बताया कि हिंदुत्व को अक्सर सिर्फ़ बीजेपी से जोड़ा जाता है, लेकिन 1925 में आरएसएस के गठन के बाद से इसकी जड़ें सिविल सोसायटी में गहरी हो चुकी हैं. यह नेटवर्क सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि डायस्पोरा (प्रवासी भारतीयों) की मदद से पूरी दुनिया में फैल रहा है. “द कैरेवेन” (कारवां) के एग्जीक्यूटिव एडिटर हरतोष सिंह बल ने इस पर कहा, “आरएसएस देश का सबसे शक्तिशाली संगठन है, फिर भी इसके आकार और पहुंच को लेकर पारदर्शिता की कमी रही है. यह इंटरैक्टिव डेटाबेस उस कमी को पूरा करता है. जो लोग इसके सहयोगियों के साथ जुड़ते हैं—चाहे भारत में या विदेश में—उन्हें इन कनेक्शंस के बारे में जानने का हक़ है.” आम लोग भी इस वेबसाइट के ज़रिए जानकारी और सबूत भेज सकते हैं, जिसे वेरीफिकेशन के बाद मैप में जोड़ा जाएगा.
‘सीइंग द संघ’: दुनिया का सबसे बड़ा फ़ार-राइट नेटवर्क और आरएसएस के 2,500 से ज़्यादा संगठनों का नक्शा ‘कैरेवन’ पत्रिका ने एक महत्वपूर्ण शोध प्रोजेक्ट के तहत बनाया है. आप इस नक्शे के साथ खेल खेल में यह समझ सकते हैं कि आरएसएस का खेल कितना बड़ा है. यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इर्द-गिर्द मौजूद संगठनों का दुनिया का पहला व्यापक नक्शा है. यह नेटवर्क मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा चरम दक्षिणपंथी नेटवर्क बनाता है. इस इंटरैक्टिव डेटासेट में फ़िलहाल दो हज़ार पांच सौ (2,500) से ज़्यादा संगठनों का विस्तृत गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा (qualitative and quantitative data) मौजूद है.
यह प्रोजेक्ट हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के ढांचे को लेकर लंबे समय से चली आ रही धुंध को साफ़ करने की कोशिश है. रिपोर्ट के मुताबिक़, आरएसएस औपचारिक रूप से सिर्फ़ तीन दर्जन (करीब 36) संगठनों को ही अपना सहयोगी मानता है, जबकि यह सर्वविदित है कि वह एक बहुत विशाल नेटवर्क को कोर्डिनेट करता है. अंदरूनी तौर पर, संघ के प्रकाशन और नेता इस पूरे ढांचे को एक ‘इकाई’ बताते हैं, लेकिन बाहरी दुनिया के सामने वे लगातार इनमें से कई संगठनों के साथ अपने रिश्तों को छुपाते हैं, कमतर बताते हैं या सीधे इनकार करते हैं.
नतीजतन, हमारे पास कभी भी इस इकोसिस्टम के काम करने के तरीक़े की पूरी तस्वीर नहीं थी—कि संसाधन कैसे इधर-उधर होते हैं, असली ताक़त किसके पास है, और आरएसएस का प्रभाव कहां शुरू होकर कहां ख़त्म होता है. इस कमी को पूरा करने के लिए ‘सीइंग द संघ’ के शोधकर्ताओं ने छह साल बिताकर संघ के अपने दस्तावेज़ों के ज़रिए इस नेटवर्क को खंगाला है. सारे सबूत सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सामग्री से लिए गए हैं, जिसके केंद्र में संघ के अपने प्रकाशन हैं, और फिर उनकी पुष्टि अकादमिक साहित्य, वित्तीय फ़ाइलिंग और सरकारी दस्तावेज़ों से की गई है. नतीजा एक ऐसा सार्वजनिक संसाधन है जो पहली बार यह दिखाता है कि यह इकोसिस्टम कैसे काम करता है.
यह एक डायनामिक डेटाबेस है और इस पर काम जारी है. अगर आपको इसमें कोई ग़लती मिले या आपके पास अतिरिक्त संगठनों की जानकारी हो, तो आप इसे साझा कर सकते हैं. इस हस्तक्षेप की ज़रूरत क्यों थी, इस पर गहरी समझ के लिए आप फ़ेलिक्स पाल का निबंध “Exposing the largest far-right network in history” पढ़ सकते हैं.
विश्लेषण
सत्या सागर: मोहन भागवत सारे भारतीयों को ब्राह्मण क्यों नहीं घोषित कर देते?
सत्या सागर एक पत्रकार और जन स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जिनसे sagarnama@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है. यह लेख काउंटर करंट्स में यहां प्रकाशित हुआ.
पिछले महीने बेंगलुरु में, आरएसएस (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने अपने प्रशंसकों की भीड़ के सामने खड़े होकर एक भाषण दिया, जिसे उन्होंने शायद अपनी बयानबाज़ी (रेटोरिक) का मास्टरस्ट्रोक समझा होगा. उन्होंने ऐलान किया कि मुसलमान और ईसाई आरएसएस में आ सकते हैं—शर्त यह है कि वो अपना “अलग-पन” छोड़ दें और “हिंदू” बनकर आएं, “भारत माता के सपूत” बनकर आएं, और “हिंदू समाज” के सदस्य के तौर पर आएं. इस एक फ़ॉर्मूले के ज़रिए, भागवत ने हाथ की सफ़ाई दिखाने की कोशिश की: दिखने में सबको साथ लेने वाला (इन्क्लूसिव) बनना, लेकिन असल में पूरी तरह झुकने की मांग करना; हाथ बढ़ाना लेकिन उसके पीछे छुपी हुई ज़ंजीरों को छुपाना.
यह एकता नहीं है. यह सिंथेसिस या मेल-जोल नहीं है. यह वही पुरानी ऊंच-नीच की लॉजिक है जिसे ‘कल्चरल नेशनलिज़्म’ (सांस्कृतिक राष्ट्रवाद) के उधार लिए हुए कपड़े पहना दिए गए हैं—भारत की विविधता को एक ही रंग में रंगने की चालाक कोशिश, जहां सारे रंग भगवा में घुल जाएं या उन पर पूरी तरह पेंट फेर दिया जाए.
“हिंदू” शब्द का ज़हरीला प्याला
चलिए देखते हैं भागवत क्या ऑफ़र कर रहे हैं. वह हमें बताते हैं कि “हिंदू” कोई धार्मिक शब्द नहीं बल्कि एक कल्चरल और नेशनलिस्ट शब्द है—कि इसमें वो सब शामिल हैं जिनके पूर्वज इस धरती से जुड़े हैं. इस डेफ़िनिशन की चालाकी से, एक इंडियन मुस्लिम “हिंदू मुस्लिम” बन जाता है, एक इंडियन क्रिश्चियन “हिंदू क्रिश्चियन” बन जाता है, और भारत की शानदार विविधता सिमट कर एक अकेली, पत्थर जैसी (मोनोलिथ) कैटेगरी बन जाती है. (सिख, जैन, बौद्ध और अलग-अलग आदिवासी धर्मों की अलग पहचान को तो हिंदुत्व के विचारक या आइडियोलॉग्स बहुत पहले ही निगल कर पचा चुके हैं).
यह भाषाई धौंसपट्टी (लिंग्विस्टिक इम्पीरियलिज़्म) का बेहतरीन नमूना है. “हिंदू” शब्द का मतलब “इंडियन” बनाकर, आरएसएस एक साथ कई मक़सद हासिल करना चाहती है: बहुसंख्यकवाद के आरोपों से बचना (हम एंटी-माइनॉरिटी कैसे हो सकते हैं जब हम कह रहे हैं कि सब हिंदू हैं?) और धार्मिक अल्पसंख्यकों की अलग पहचान को ख़त्म करना (तुम असल में मुस्लिम या क्रिश्चियन नहीं हो, बस कुछ अलग आदतों वाले हिंदू हो).
सबसे ख़तरनाक बात यह है कि इसका मक़सद उस पुरानी हाइरार्की (ऊंच-नीच) को मज़बूत करना है जहां “असली” हिंदू धर्म मानने वाले—जिसे सवर्ण ब्राह्मणवादी परंपरा तय करती हैं—सबसे ऊपर बैठते हैं, और बाक़ी सबको नीचे के दर्जे पर बस बर्दाश्त किया जाता है.
जब भागवत कहते हैं कि मुसलमानों और ईसाइयों को अपना “अलग-पन” शाखा के बाहर छोड़ना होगा, तो आख़िर उन्हें क्या छोड़ना है? अपनी जुमे की नमाज़ और संडे की प्रार्थना? अपने खाने-पीने के तरीक़े और शादी के रिवाज़? अपने पैग़ंबर और अपने संत? अपना पूरा ब्रह्मांड और धार्मिक ढांचा? और अपनी पहचान के इस पूरे ख़ात्मे के बदले उन्हें क्या मिलता है? “हिंदू” कहलाए जाने का प्रिविलेज—एक ऐसा शब्द जो भागवत के इनकार के बावजूद, भारतीय संदर्भ में साफ़ तौर पर धार्मिक और जातिवादी मतलब रखता है.
हिंदू राष्ट्र का ढांचा
आरएसएस का “हिंदू राष्ट्र” का सपना कोई बराबरी वाला स्वर्ग (एगलिटेरियन यूटोपिया) नहीं है जहां सभी भारतीय, चाहे वो किसी भी धर्म के हों, बराबर खड़े हों. यह एक रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट है—उस पुराने वर्ण सिस्टम को ज़िंदा करने और पवित्र बनाने की कोशिश जिसने हज़ारों सालों से इंडियन सोसायटी को स्ट्रक्चर किया है.
इस काल्पनिक व्यवस्था में, मुसलमान और ईसाई—दलित और आदिवासियों के साथ—हाशिये पर (किनारे) होंगे, उन्हें जगह तभी मिलेगी जब वो अपना नीचा दर्जा क़बूल करें और सवर्ण हिंदू धर्म की कल्चरल और धार्मिक सर्वोच्चता के आगे सर झुकाएं. असल में, वो नए “अछूत” होंगे इस नए कास्ट सिस्टम के, जहां उनके धर्म सिर्फ़ “डिनॉमिनेशन्स” या संप्रदाय (भागवत का शब्द) बनकर रह जाएंगे हिंदू सिविलाइज़ेशन की बड़ी कहानी के अंदर.
यह आज के ज़माने में दबदबा (डोमिनेशन) बनाए रखने के लिए इतिहास को बदलने (रिविज़निज़्म) जैसा है, जिसमें आरएसएस हमेशा से माहिर रही है.
सिर्फ़ हिंदू पर क्यों रुकें? सबको ब्राह्मण क्यों नहीं घोषित करते?
लेकिन यहां भागवत साहब से एक सवाल पूछना बनता है: अगर वो पहचान की इस नई परिभाषा के लिए इतने ही कमिटेड हैं, तो “हिंदू” पर ही क्यों रुकें? इस लॉजिक को उसके अंजाम तक ले जाएं और सारे भारतीयों को ब्राह्मण घोषित क्यों नहीं कर देते?
आख़िरकार, अगर मुसलमान और ईसाई सिर्फ़ भारत में रहने और यहां के कल्चर को शेयर करने की वजह से “हिंदू” कैटेगरी में आ सकते हैं, तो इसी तर्क से दलित, शूद्र और ओबीसी को ब्राह्मण का दर्जा क्यों नहीं दिया जा सकता? भागवत की अपनी भौगोलिक और सांस्कृतिक एकता की लॉजिक से, उन्हें कौन रोकता है यह ऐलान करने से कि हर भारतीय, दलित से लेकर आदिवासी और मुसलमान तक, सब ब्राह्मण हैं?
कोई भी कल्पना कर सकता है कि इसका जवाब क्या होगा: घबराहट भरी हंसी, शायद, और उसके बाद वर्ण और धर्म के बारे में लंबी-चौड़ी धार्मिक व्याख्या, पवित्र रिवाज़ों और ज्ञान के बारे में बातें. लेकिन उनकी हिचकिचाहट की असली वजह बहुत सीधी और साफ़ है: मोहन भागवत ख़ुद एक ब्राह्मण हैं, और ब्राह्मण पहचान की सारी ताक़त और मतलब उसकी ‘एक्सक्लूसिविटी’ (सबसे अलग और ख़ास होने) से आती है. अगर सबको ब्राह्मण बना दिया, तो यह ख़ास क्लब इतना डायल्यूट हो जाएगा कि वो हायरार्की ही ख़त्म हो जाएगी जो इस कैटेगरी को सोशल और पोलिटिकल कैपिटल देती है.
यहां ये खेल खुलकर सामने आता है. “हिंदू” की परिभाषा बढ़ाने से आरएसएस का कुछ नहीं जाता—बल्कि उन्हें सब कुछ मिलता है, वो सारे भारतीयों पर अपना हक़ (हेजेमनी) जता सकते हैं बिना अपनी अंदरूनी ऊंच-नीच को छेड़े. लेकिन यही लॉजिक अगर जाति (कास्ट) पर लगाई जाए, तो उन्हें अपनी सबसे ऊपर वाली जगह छोड़नी पड़ेगी, ब्राह्मणिकल स्टेटस के प्रिविलेज छोड़ने पड़ेंगे, और सिर्फ़ ‘थिएटर ऑफ़ इन्क्लूज़न’ (दिखावे) के बजाए सच में बराबरी को अपनाना पड़ेगा.
इसलिए लकीरें वहां खींची गई हैं जहां अपना फ़ायदा है: रिलिजन या धर्म को फैलाया (पोरस बनाया) जा सकता है, लेकिन जाति को सख़्त (रिजिड) और ऊपर-नीचे ही रहना है. मुसलमानों और ईसाइयों को कहा जा सकता है कि वो असल में हिंदू हैं, लेकिन दलितों और शूद्रों को यह नहीं कहा जा सकता कि वो असल में ब्राह्मण हैं. एकता की बातें (रेटोरिक) वहीं तक चलती हैं जहां तक वो उन लोगों के फ़ायदे में हों जो पहले से ऊपर बैठे हैं.
अगर सब हिंदू हैं, तो क्या सब हिंदू भी मुसलमान और ईसाई हैं?
चलिए भागवत का खेल खेलते हैं और उनकी लॉजिक को उसके अंजाम तक ले जाते हैं. अगर मुसलमान और ईसाई हिंदू कहलाए जा सकते हैं क्योंकि वो इंडियन एंसेस्ट्री (वंश) और कल्चर शेयर करते हैं, तो इसी टोकन से, सारे हिंदुओं को भी मुसलमान और ईसाई होना चाहिए.
आख़िरकार, क्या कोई भी हिंदू भारत में पिछले दस सदियों के इस्लामिक असर से ख़ुद को अलग बता सकता है? जो हिंदी/उर्दू आप बोलते हैं, जिसमें पर्शियन और अरेबिक शब्द भरे हैं, वो मुस्लिम है. वो आर्किटेक्चरल अजूबे जो दुनिया भर से लोगों को भारत खींच लाते हैं—ताज महल से लेकर चारमीनार तक—वो मुस्लिम हैं. यहां तक कि आपका एडमिनिस्ट्रेशन सिस्टम, रेवेन्यू का ढांचा, आपके दरबारी तौर-तरीक़े, सब मुग़लों और सुल्तानों से लिए गए हैं.
और ईसाइयत (क्रिश्चियनिटी)? वो कॉलेज और हॉस्पिटल जिन्होंने इंडियंस की कई पीढ़ियों को पढ़ाया और इलाज किया, वो सोशल रिफ़ॉर्म मूवमेंट्स जिन्होंने जाति के ज़ुल्म को चुनौती दी, बराबरी और इंसाफ़ के वो आइडियल्स जो हमारे कॉन्स्टिट्यूशन (संविधान) में हैं—सब पर क्रिश्चियन सोच और एक्टिविज़्म की छाप है. यहां तक कि जो शर्ट-पैंट हम पहनते हैं (आरएसएस की खाकी शॉर्ट्स समेत) या वो भाषा जिसमें मैं यह आर्टिकल लिख रहा हूँ—इंग्लिश—उसे भी सही मायनों में क्रिश्चियन ओरिजिन का कहा जा सकता है (अगर हम भागवत के सोचने के तरीक़े से चलें तो).
और इन दोनों के आगे? हिंदू कहां ख़त्म होता है और बौद्ध कहां शुरू होता है, जब ख़ुद बुद्ध एक हिंदू राजकुमार के रूप में पैदा हुए और उनकी शिक्षाएं हिंदू फिलॉसफी में रची-बसी हैं? जैन धर्म के साथ सीमा कहां है, जिसका अहिंसा का सिद्धांत हिंदू एथिक्स में घुला हुआ है? आप सिख धर्म को इस इक्वेशन से कैसे निकालेंगे, जो हिंदू और इस्लामिक मिस्टिसिज़्म (सूफीवाद) के मेल से पैदा हुआ?
और आदिवासियों का क्या—भारत के पहले निवासी—जिनकी परंपराएं, पेड़ों, पत्थरों और आत्माओं की पूजा, जिनका पर्यावरण का ज्ञान सभी संगठित धर्मों के यहां आने से पहले का है? उनका असर भारतीय सभ्यता में एक अंडरग्राउंड नदी की तरह बहता है, उन मान्यताओं को ज़िंदा रखता है जिन्हें “हिंदू” कहकर अपनाया गया है पर जो वेदों और उपनिषदों से बहुत पहले से मौजूद थे.
किस हक़ से भागवत बोलते हैं?
लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह है: मोहन भागवत को क्या हक़ है हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, या आम इंडियंस के बारे में कोई भी बड़ा ऐलान करने का?
आरएसएस का हेड होने से वो कोई भारत के वाइसराय नहीं बन जाते, जिन्होंने पहचान को दोबारा डिफाइन करने और नागरिकों के रहने की शर्तें तय करने का ठेका ले रखा हो. आरएसएस, अपने सारे दावों और पहुंच के बावजूद, अपना कोई मेंबरशिप रिकॉर्ड तक नहीं रखती—यह एक अपारदर्शी (ओपेक) संस्था है, जो किसी के प्रति जवाबदेह नहीं, किसी ने इसे चुना नहीं, और यह किसी को रिप्रेजेंट नहीं करती सिवाय ख़ुद के. (क्या पता, वही कुछ हज़ार लोग अलग-अलग अवतार में आते हों—कभी आरएसएस कैडर, कभी बजरंग दल के गुंडे, कभी वीएचपी वाले, कभी बीजेपी मंत्री—और शायद कुछ दुर्गा वाहिनी के कपड़ों में भी?)
इसके अलावा भागवत, हिंदू धर्म के बारे में इतने बड़े-बड़े दावे करने के बावजूद, कोई धार्मिक विद्वान (स्कॉलर) नहीं हैं जिन्होंने हिंदू फिलॉसफी में कोई योगदान दिया हो. वो कोई थियोलॉजीयन नहीं हैं. वो कोई रिफ़ॉर्मर नहीं हैं जिन्होंने जाति के घाव भरे हों या कम्युनिटीज़ के बीच की दूरियां मिटाई हों. वो सीधे शब्दों में, एक बड़ी ऑर्गनाइज़ेशन के एडमिनिस्ट्रेटर हैं—एक ऐसी ऑर्गनाइज़ेशन जिसने कल्चर को ग़लत तरीक़े से पेश करना, हिस्ट्री के साथ छेड़छाड़ करना और लोगों की धार्मिक भावनाओं का सियासी फ़ायदा उठाना अपना धंधा बना लिया है. उनका यह रिकॉर्ड उन्हें भारतीय राष्ट्र या हिंदू आबादी पर बोलने के क़ाबिल (क्वालिफ़ाई) बनाने के बजाए, उन्हें ऐसा करने से अयोग्य (डिस्क्वालिफ़ाई) करता है. उनकी बातों का न कोई नैतिक वज़न है, न कोई इंटेलेक्चुअल अथॉरिटी, और न कोई लोकतांत्रिक लेजिटिमेसी.
भारत के लोग, अपने धर्म, जाति, भाषा और रिवाज़ों की शानदार विविधता के साथ – जो भारतीय संविंधान द्वारा संरक्षित हैं – मोहन भागवत की न तो सुनने के लिए मजबूर हैं और न ही उनकी आज्ञा मानने के लिए.
भारत हज़ारों सालों से सिर्फ़ बचा ही नहीं बल्कि फला-फूला है, हमारी विविधता के बावजूद नहीं, बल्कि उसकी वजह से. हमने नए लोगों, नए विचारों, नए भगवानों की लहरों को अपने अंदर समाया है और हम पहले से ज़्यादा मज़बूत और अमीर होकर निकले हैं. यह हमारी जीनियस है; प्योरिटी (शुद्धता) नहीं बल्कि पोरोसिटी (सबको जज़्ब कर लेना). चलिए किसी कट्टरपंथी (बिगट) या किसी भागवत को जान-बूझ कर हमारा इतिहास बिगाड़ने और हमारे आज और कल के साथ ख़तरनाक खेल खेलने की इजाज़त न दें.
बीजेपी ने ‘एसआईआर’ के पूरे विमर्श को सांप्रदायिक बनाया
मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) ने भाजपा को अपनी नफरत की राजनीति को तेज करने का एक नया बहाना दे दिया है. ‘एसआईआर’ के बारे में लोगों को जागरूक करने की आड़ में, पार्टी के सोशल मीडिया हैंडलों ने बेशर्मी से सांप्रदायिक रूढ़िवादिता, भय पैदा करने और इस्लाम विरोधी भावनाओं का सहारा लिया है.
अंकिता महालनोबिश लिखती हैं कि ‘एसआईआर’ का उद्देश्य किसी भी तरह से अवैध अप्रवासियों की पहचान करना या अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना नहीं है, लेकिन भाजपा मुसलमानों को राक्षसी रूप में चित्रित करके ‘एसआईआर’ के पूरे विमर्श को सांप्रदायिक बनाने में सफल रही है. इसे एक ऐसी कवायद के रूप में चित्रित किया जा रहा है, जो भारतीय हिंदुओं को मुसलमानों से बचाएगा. विशेष रूप से, भाजपा पश्चिम बंगाल का आधिकारिक ‘एक्स’ अकाउंट नियमित रूप से समुदाय को बदनाम करने वाली पोस्ट साझा कर रहा है.
बंगाल भाजपा की इस्लाम विरोधी पोस्ट इस प्रकार हैं: 18 नवंबर को, पश्चिम बंगाल भाजपा ‘एक्स’ अकाउंट ने “तब” और “अब” के रूप में चिन्हित दो दृश्यों की तुलना करते हुए एक एनिमेटेड कार्टून साझा किया. “तब” फ्रेम में, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को रूढ़िवादी मुस्लिम पोशाक (टोपी पहने पुरुष और बुर्के में महिला) पहने व्यक्तियों का स्वागत करते हुए दर्शाया गया है, जिन्हें बांग्लादेश से सीमा पार करते हुए और हथियार लहराते हुए पश्चिम बंगाल में प्रवेश करते हुए दिखाया गया है. “अब” फ्रेम में, जिसका कैप्शन “पश्चिम बंगाल में एसआईआर शुरू हुआ” है, उन्हीं आकृतियों को बांग्लादेश लौटते हुए दर्शाया गया है. छवि का शीर्षक है, “अंतर स्पष्ट है.”
इस पोस्ट के साथ एक कैप्शन है, “एसआईआर - यह बांग्लादेश से जनसांख्यिकीय आक्रमण से आपकी रक्षा कैसे करता है.” पोस्ट का तात्पर्य है कि बांग्लादेश के मुसलमानों ने दुर्भावनापूर्ण इरादों के साथ भारत में प्रवेश किया है और “जनसांख्यिकीय आक्रमण” में योगदान दिया है, और एसआईआर के कार्यान्वयन से मुस्लिम घुसपैठियों की पहचान करके उन्हें बाहर निकाला जाएगा.
उर्दू और ‘मिनी पाकिस्तान’ का भय
बंगाल भाजपा द्वारा साझा किए गए एक अन्य एनिमेटेड वीडियो में गोपी और बाघा (बंगाली बाल साहित्य के लोकप्रिय पात्र) को दिखाया गया है. वीडियो में, उन्हें बंगाल के एक भविष्यवादी संस्करण में ले जाया जाता है, जहां की सड़कें टोपी और लुंगी पहने पुरुषों से भरी हैं, और दुकान के साइनबोर्ड उर्दू में लिखे हुए हैं.
गोपी पूछता है, “यह कैसा भविष्य है? यह कौन सी भाषा है? यहां किसकी सत्ता है? हम कहां आ गए हैं? क्या यह वास्तव में बंगाल का भविष्य है?” एक स्थानीय व्यक्ति, जो शर्ट और पैंट पहने हुए है, गोपी को जवाब देता है, “यह उर्दू भाषा है.” फिर, फिरहाद हाकिम के एक पोस्टर की ओर इशारा करते हुए, वह आदमी समझाता है, “यह जगह मेटियाब्रुज है, जिसे हाकिम ‘मिनी पाकिस्तान’ कहते हैं, जिस पर एक तानाशाह, ममता बनर्जी का शासन है.”
वीडियो के साथ एक कैप्शन है जो कहता है, “यह गोपी और बाघा के लिए एक भविष्य है, लेकिन पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए यह पहले से ही आज की वास्तविकता है!” यह वीडियो काल्पनिक बंगाली पात्रों की निराशा को दर्शाता है, क्योंकि वे बंगाल की वर्तमान स्थिति की खोज करते हैं, जहां, कथित तौर पर, कई दुकान के साइनबोर्ड उर्दू में लिखे गए हैं. गोपी विलाप करता है, “एक समय बंगाल को अपनी समृद्ध कृषि उपज और धन की प्रचुरता, कला और कलाकारों के लिए महान सम्मान के लिए ‘सोनार बांग्ला’ के नाम से जाना जाता था. और अब, चारों ओर देखो और ‘सोनार बांग्ला’ की स्थिति को देखो.”
वीडियो तृणमूल कांग्रेस सरकार की आलोचना करता रहता है, लेकिन मेटियाब्रुज को गिरावट और निराशा के स्थल के रूप में चित्रित करना सीधे बंगाली मुसलमानों को निशाना बनाता है.
एक अन्य एनिमेटेड वीडियो में, अभिषेक नामक एक चरित्र, जो स्थानीय टीएमसी सदस्य है, को लुंगी पहने हुए दिखाया गया है. उसके विभिन्न गलत कार्यों की सूची में, वह कथित तौर पर हिंदू भक्तों को स्थानीय मंदिरों में शांतिपूर्वक पूजा करने की अनुमति नहीं देता है और हिंदू देवताओं के प्रति अनादर दिखाता है. उनकी हड़ताली “कुख्यात” कार्रवाइयों में से एक वक्फ विधेयक के पारित होने के खिलाफ उनका विरोध शामिल है. वीडियो में इस बिंदु पर, वक्फ विधेयक के संशोधन के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन की एक मूल तस्वीर दिखाई जाती है. इसके अतिरिक्त, वीडियो मुस्लिम पुरुषों को बांग्लादेशी “घुसपैठिए” के रूप में चित्रित करता है, यह सुझाव देते हुए कि अभिषेक उन्हें टीएमसी के लिए अधिक वोट सुरक्षित करने के लिए नकली वोटर आईडी कार्ड प्रदान करता है.
एक अन्य पोस्ट में, भाजपा ने पश्चिम बंगाल की स्थिति की तुलना पाकिस्तान और सीरिया से की, इसे कम खतरनाक नहीं बताया, और पश्चिम बंगाल की दयनीय स्थिति को दर्शाने वाला एक एनिमेटेड वीडियो साझा किया. इस वीडियो में, एक व्यक्ति को चार पुरुषों द्वारा पीछा करते हुए दिखाया गया है. अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं है, जाहिर तौर पर ये पुरुष टोपी पहने हुए हैं और उनका नाम भी रलिब, गालिब और चालिब है. यह चित्रण रूढ़िवादी दृश्य संकेतों का उपयोग करके मुस्लिम पुरुषों को बदनाम करता है.
कैप्शन में, बंगाल भाजपा यह भी दावा करती है कि यदि तृणमूल कांग्रेस सत्ता में बनी रहती है, तो जजिया कर को फिर से लागू किया जा सकता है. जजिया ऐतिहासिक रूप से इस्लामी राज्यों द्वारा गैर-मुस्लिम प्रजा पर संरक्षण, सैन्य सेवा से छूट और अपने धर्म का पालन करने के अधिकार के बदले में लगाया गया एक कर था. इसे पारंपरिक रूप से मुस्लिम शासन के तहत रहने के लिए एक शुल्क के रूप में देखा जाता रहा है, जो अधीनस्थ स्थिति को दर्शाता है. ऐतिहासिक रूप से, मुगल सम्राट अकबर ने इस कर को समाप्त कर दिया था, जबकि औरंगजेब ने बाद में इसे फिर से लागू किया था.
बाबरी मस्जिद बनाम गीता पाठ: चुनाव से कुछ महीने पहले, बंगाल राजनीति में फिर हिंदू-मुस्लिम
“ऑल्ट न्यूज़” की लंबी रिपोर्ट के अनुसार, विधानसभा चुनाव से बस कुछ ही महीने पहले, पश्चिम बंगाल का राजनीतिक विमर्श पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग में डूब गया है. शनिवार, 6 दिसंबर को, बाबरी मस्जिद विध्वंस की 32वीं बरसी पर, तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक ने मुर्शिदाबाद में “नई” बाबरी मस्जिद की नींव रखकर राष्ट्रव्यापी विवाद खड़ा कर दिया. जबकि अगले ही दिन, ‘सनातनी’ हिंदू एकता का आव्हान करते हुए कोलकाता के बीचों-बीच भारी संख्या में एकत्र हुए और भगवद गीता का पाठ किया.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के भरतपुर से विधायक रहे हुमायूं कबीर ने एक मस्जिद के लिए शिलान्यास समारोह आयोजित किया, जिसे अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को हिंदुत्व कारसेवकों द्वारा ध्वस्त की गई बाबरी मस्जिद की तर्ज पर बनाया जाना प्रस्तावित है. मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में 25 एकड़ के भूखंड पर ईंट रखने के समारोह के लिए भारी संख्या में लोग जमा हुए, जिसे कबीर ने भारतीय मुसलमानों के लिए ‘प्रतिष्ठा की लड़ाई’ बताया. कई लोग उत्तरी दिनाजपुर और दक्षिण 24-परगना के कैनिंग, जो लगभग 240 किलोमीटर दूर स्थित हैं, जैसी दूर-दराज की जगहों से आए थे. कई लोगों को अपने सिर पर ईंटें संतुलित करते हुए स्थल की ओर चलते देखा गया, जिसे वे संरचना में उपयोग करना चाहते थे. शिलान्यास समारोह से ठीक पहले कबीर ने एक भड़काऊ भाषण दिया, जिसमें उन्होंने घोषणा की कि बंगाल की कुल आबादी का 37% मुस्लिम हिस्सा स्वेच्छा से खुद को बलिदान कर देगा, इससे पहले कि बाबरी मस्जिद की ईंटें ढीली हों.
अगले दिन, 7 दिसंबर को, भक्तों की बड़ी संख्या (भाजपा ने 6.5 लाख होने का दावा किया) कोलकाता के प्रतिष्ठित ब्रिगेड परेड ग्राउंड में ‘पंच लक्खो कोंठे गीता पाठ’ नामक भगवद गीता के सामूहिक पाठ में भाग लेने के लिए जुटी. यह आयोजन सनातन संस्कृति संसद द्वारा आयोजित किया गया था- जो विभिन्न राज्यों और संस्थानों के संतों और हिंदुत्व नेताओं का एक सामूहिक समूह है. इस आयोजन में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (’बाबा बागेश्वर’), साध्वी ऋतंभरा और बाबा रामदेव जैसे लोगों के साथ-साथ भाजपा के नेता जैसे समिक भट्टाचार्य, दिलीप घोष, सुवेंदु अधिकारी, सुकांत मजूमदार, लॉकेट चटर्जी, अग्निमित्रा पॉल और अन्य भी शामिल हुए. लोग न केवल पश्चिम बंगाल से, बल्कि बिहार, उड़ीसा, असम और यहां तक कि बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों से भी बसों, नौकाओं और ट्रकों में भारी संख्या में पहुंचे. और तो और बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने भी भीड़ को संबोधित किया. उन्होंने भगवद गीता के व्यापक उद्धरण दिए और भारतीय महाकाव्यों का उल्लेख किया. दर्शकों को याद दिलाते हुए कि पिछले दिन मुर्शिदाबाद में “कुछ हुआ था”, उन्होंने उनसे राज्य में “धार्मिक अहंकार” को समाप्त करने का आग्रह किया. उन्होंने टिप्पणी की कि बंगाल दुखद स्थिति में है और बदलाव लाने के लिए तैयार है.
मुर्शिदाबाद में कबीर और कोलकाता में शास्त्री दोनों ने एक अस्पष्ट, परेशान करने वाला सवाल खड़ा किया. पूछा कि क्या उनके अनुयायी टकराव से पीछे हटेंगे? भीड़ ने जोरदार और सर्वसम्मत “नहीं” में जवाब दिया. कोलकाता परेड ग्राउंड में, शास्त्री ने हिंदू राष्ट्र का आव्हान करते हुए पूछा: “आप डरेंगे नहीं? (नहीं) आप पीछे हटेंगे नहीं? (नहीं) आप भागेंगे नहीं? (नहीं).”
बेलडांगा में, कबीर के बगल में खड़े एक वक्ता ने इसी तरह की उकसावे वाली बात दोहराई: “आप पुलिस के डर से भागेंगे नहीं? (नहीं) क्या आप जो चाहते हैं उसे पाने के लिए पुलिस की मार खाने को तैयार हैं? (हाँ).” कबीर के एक अन्य साथी ने मंच से चिल्लाकर कहा: “लड़के लेंगे बाबरी मस्जिद.” इन टिप्पणियों का परिणाम उपस्थित लोगों के बीच आक्रामक धार्मिक मुद्रा की भावना में बदल गया. मुर्शिदाबाद में, एक उपस्थित व्यक्ति ने धमकी दी कि जो भी बाबरी मस्जिद के रास्ते में आएगा उसका सिर काट दिया जाएगा और उससे फुटबॉल खेला जाएगा.
ब्रिगेड परेड ग्राउंड में, भगवाधारी सतर्कतावादियों ने शेख रियाजुल नामक एक व्यक्ति पर चिकन पेटिस बेचने के लिए हमला कर दिया. रियाजुल के अपनी आजीविका का स्रोत होने की गुहार लगाने के बावजूद उन्होंने उसकी नमकीन की पेटी को लात मार दी और उसे कान पकड़कर उठक-बैठक करने के लिए मजबूर किया. बाद में एक दूसरी घटना सामने आई, जहां एक अन्य मुस्लिम विक्रेता पर भी स्थल के पास चिकन पफ बेचने के लिए कथित तौर पर हमला किया गया.
भाजपा नेताओं ने गीता पाठ कार्यक्रम का खुलकर समर्थन किया और मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. वहीं मौजूदा राजनीतिक हालात में तृणमूल कांग्रेस खुद को एक मुश्किल स्थिति में पाती है. पार्टी को शिलान्यास कार्यक्रम से कुछ दिन पहले कबीर को निलंबित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम ने उन्हें ‘गद्दार’ कहा, जिसका अर्थ था कि कबीर ने ‘मीर जाफ़र’ के नक्शेकदम पर चलते हुए अपनी दल-बदल (कांग्रेस से टीएमसी, फिर भाजपा, और फिर टीएमसी में वापसी) की प्रवृत्ति को दर्शाया.
इसके अलावा, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वैचारिक मतभेदों का हवाला देते हुए आमंत्रित होने के बावजूद गीता पाठ कार्यक्रमों में भाग नहीं लिया. बनर्जी ने एक बयान में कहा, “मैं भाजपा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कैसे जा सकती हूं? मैं एक अलग पार्टी से हूं, मेरी एक अलग विचारधारा है... वे (भाजपा) बंगाली विरोधी हैं.”
गीता पढ़ने के लिए जनसभा की क्या जरूरत, बीजेपी विभाजन करना चाहती है : ममता
इस मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 7 दिसंबर को हुए ‘पांच लाख कंठों से गीता पाठ’ कार्यक्रम में हुई हिंसा पर कहा है, “उन सभी (आरोपियों) को गिरफ्तार कर लिया गया है. यह पश्चिम बंगाल है, उत्तरप्रदेश नहीं. उन्होंने पैटी बेचने वालों को पीटा... हमने कल रात सभी को गिरफ्तार कर लिया.” उन्होंने भाजपा पर राज्य के सामाजिक ताने-बाने में विभाजन लाने की कोशिश करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “मैं सांप्रदायिक विभाजन में विश्वास नहीं करती. मैं सभी धर्मों के साथ चलना चाहती हूं. सिर्फ गीता पढ़ने के लिए जनसभा करने की क्या जरूरत है? जो लोग भगवान की प्रार्थना करते हैं या अल्लाह से दुआ मांगते हैं, वे अपने दिल में ऐसा करते हैं.”
धर्मग्रंथों का राजनीतिक लामबंदी के लिए आह्वान करने वालों पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा, “मैं उन लोगों से पूछना चाहती हूं जो ‘गीता, गीता’ जपते रहते हैं - श्री कृष्ण ने धर्म के बारे में क्या कहा था? धर्म का मतलब है धारण करना, विभाजित करना नहीं. वे पश्चिम बंगाल को नष्ट करना चाहते हैं. वे राज्य पर कब्जा करना चाहते हैं और लोगों को बंगाली में बोलने से रोकना चाहते हैं. हम सभी गीता पढ़ते और उसका पाठ करते हैं. उसके लिए बैठक करने की क्या जरूरत है?”
6 राज्यों में ‘एसआईआर’ की सीमा फिर बढ़ाई, लेकिन बंगाल में नहीं; ममता बोलीं- अमित शाह की एक आंख में दुर्योधन, दूसरी में दुशासन
चुनाव आयोग ने गुरुवार को छह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों के ‘एसआईआर’ के लिए समय सीमा फिर बढ़ा दी, लेकिन इस सूची में पश्चिम बंगाल का नाम नहीं है. तमिलनाडु और गुजरात के लिए गणना अवधि को 14 दिसंबर तक बढ़ा दिया गया है, और मसौदा सूचियां अब 19 दिसंबर को जारी होने वाली हैं.
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए, गणना की अंतिम तिथि 18 दिसंबर तक बढ़ा दी गई है, और मसौदा सूचियां 23 दिसंबर को प्रकाशित की जाएंगी. उत्तरप्रदेश को 26 दिसंबर तक का विस्तार दिया गया है, जिसमें मसौदा मतदाता सूचियां 31 दिसंबर को प्रकाशित होने वाली हैं.
उधर, बंगाल के कृष्णानगर में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘एसआईआर’ को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर तीखा हमला बोला. कहा, “देश का गृह मंत्री खतरनाक है. आप उनकी आंखों में देख सकते हैं - यह भयानक है. एक आंख में आपको ‘दुर्योधन’ दिखता है, और दूसरी में ‘दुशासन’.” उन्होंने भाजपा पर 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले ‘एसआईआर’ प्रक्रिया को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.
उन्होंने चेतावनी दी, “अगर एक भी योग्य मतदाता का नाम काट दिया गया, तो मैं धरने पर बैठ जाऊंगी. पश्चिम बंगाल में कोई डिटेंशन कैंप (हिरासत शिविर) नहीं होगा. वे वोटों के लिए इतने भूखे हैं कि वे चुनाव से सिर्फ दो महीने पहले एसआईआर करा रहे हैं,” और कहा कि उन्होंने खुद भी अपना गणना फॉर्म नहीं भरा है. उन्होंने सवाल किया, “क्या अब मुझे दंगाइयों की पार्टी को अपनी नागरिकता साबित करने की ज़रूरत है?”
रुपया गिरता ही जा रहा है, 90.47 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा
भारत का रुपया, जो इस वर्ष अब तक सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्रा रहा है, गुरुवार को डॉलर के मुकाबले 90.47 के नए निचले स्तर पर पहुंच गया, जिससे यह 0.5% गिर गया और 4 दिसंबर के अपने पिछले सर्वकालिक निचले स्तर 90.42 को पार कर गया.
रिज़र्व बैंक के हस्तक्षेप के कारण यह इकाई दिन के अंत में 0.4% की गिरावट के साथ 90.3675 पर बंद हुई. निरंतर विदेशी पोर्टफोलियो बहिर्वाह (आउटफ़्लो) और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में देरी के कारण, क्योंकि कड़े शुल्कों ने निर्यात को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, यह रुपया 2022 के बाद से अपनी सबसे खराब वार्षिक गिरावट की ओर बढ़ रहा है.
दर कटौती के बाद अमेरिकी डॉलर में आई कमजोरी से भी रुपये को कम राहत मिली है. व्यापारियों ने विदेशी और स्थानीय निजी ऋणदाताओं से डॉलर की मांग का हवाला दिया, जो संभवतः व्यापारी भुगतानों से जुड़ी हुई है.
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के विदेशी मुद्रा शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, “जब रुपये ने एक नया निचला स्तर छुआ तो कई स्टॉप-लॉस शुरू हो गए, और यह मुद्रा निकट भविष्य में गिरावट के रुझान में रहने की संभावना है.” उन्होंने कहा, “देखने के लिए अगला स्तर 90.70 है. “
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में बेन कोचुवीदन के मुताबिक, 2025 में डॉलर के मुकाबले रुपये में 5.5% से अधिक की गिरावट आई है, क्योंकि वस्तुओं पर 50% तक के अमेरिकी शुल्कों ने देश के सबसे बड़े बाजार में निर्यात को चोट पहुंचाई है और स्थानीय इक्विटी (शेयरों) के आकर्षण को कम कर दिया है. विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष अब तक शेयरों से लगभग $18 बिलियन (अरब) की निकासी की है, जिससे भारत पोर्टफोलियो बहिर्वाह के मामले में सबसे अधिक प्रभावित बाजारों में से एक बन गया है.
व्यापारियों ने कहा कि रिजर्व बैंक ने शायद हस्तक्षेप किया, लेकिन अधिक बड़ी गिरावट को रोकने में मदद करने के लिए हल्के हाथ से. रिज़र्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने पिछले सप्ताह कहा था कि डॉलर के मुकाबले रुपये का 90 पर कारोबार उनके लिए चिंता का विषय नहीं है और ऊपर की ओर संशोधित मुद्रास्फीति और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के पूर्वानुमानों ने रुपये की गिरावट के प्रभाव को ध्यान में रखा है.
अर्थ ग्लोबल मल्टीप्लायर फंड के नचिकेता सावरिकर ने कहा, “बाजार महीने के अंतिम सप्ताह से भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की उम्मीद कर रहा था, लेकिन अब सरकार कह रही है कि यह मार्च तक ही संभव है, जिससे अनिश्चितता बढ़ गई है. यह सब रुपये पर अतिरिक्त दबाव डाल रहा है. परिणामस्वरूप, हमें उम्मीद है कि एफआईआई प्रवाह नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा, जिससे इक्विटी मूल्यांकन पर और दबाव पड़ सकता है और ऋण बाजारों पर असर पड़ सकता है. “
गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने एक नोट में कहा, “अक्टूबर में वस्तुओं के व्यापार घाटे का रिकॉर्ड स्तर और पूंजी प्रवाह का मंद होना, साथ ही एक व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता, क्यू-4 में शुद्ध भुगतान संतुलन की स्थिति में और गिरावट का संकेत देते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “इस बीच, पिछले एक-दो सप्ताह में आरबीआई द्वारा विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप में कमी ने भी रुपये की अस्थिरता को बढ़ा दिया है.”
उमर खालिद को बहन की शादी के लिए अंतरिम जमानत मिली
दिल्ली दंगों को लेकर जेल में बंद छात्र कार्यकर्ता और जेएनयू स्कॉलर उमर खालिद को गुरुवार को दिल्ली की एक अदालत ने अपनी बहन की शादी में शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत दे दी.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने अपने आदेश में कहा, “इस तथ्य पर विचार करते हुए कि विवाह आवेदक की सगी बहन का है, आवेदन स्वीकार किया जाता है और आवेदक को 16 दिसंबर से 29 दिसंबर तक अंतरिम जमानत दी जाती है.” उमर को 20,000 रुपये का निजी मुचलका भरना होगा.
“द टेलीग्राफ” के अनुसार, न्यायाधीश ने जमानत इन शर्तों पर दी है कि वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करेगा और केवल अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलेगा. अदालत ने कहा, “इसके अलावा, वह अपने घर पर या उन स्थानों पर रहेगा जहां उसके द्वारा बताए गए विवाह समारोह होंगे. “ उमर की बहन की शादी 27 दिसंबर को होगी.
उमर तिहाड़ की उच्च सुरक्षा वाली जेल में पांच साल से अधिक समय बिता चुका है. उसे सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और उस पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आपराधिक साजिश, दंगा, गैरकानूनी जमावड़ा, साथ ही कई अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया था. पिछले साल दिसंबर में भी, उमर को अपने चचेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत दी गई थी.
आनंद पटवर्धन को लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड:‘नफ़रत के मौजूदा दौर में इंसानियत की लड़ाई और मुश्किल
देश-दुनिया के सच को कैमरे की नज़र से दिखाने वाले फ़िल्मकार आनंद पटवर्धन, जिनकी राम के नाम और नर्मदा डायरी जैसी डॉक्यूमेंट्री ने हमेशा कठिन सवाल उठाए, को उदयपुर में प्रतिष्ठित डॉ. असगर अली इंजीनियर लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला. यह अवार्ड ग्रहण करते हुए उन्होंने एक गहन और भावनात्मक भाषण दिया. उन्होंने कहा कि यह सम्मान स्वीकार करते हुए उन्हें संकोच हुआ, क्योंकि देश में ऐसे कई सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो उनसे कहीं अधिक इसके हक़दार हैं. लेकिन यह पुरस्कार डॉ. असगर अली की स्मृति में होने के कारण उन्होंने इसे विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया.
अपने भाषण में पटवर्धन ने आज के भारत की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि 1992-93 के दंगों के बाद जिस तरह डॉ. इंजीनियर ने शांति और सद्भाव के लिए नेतृत्व किया था, आज की परिस्थितियाँ उससे कहीं अधिक कठिन हैं. अब नफ़रत का नैरेटिव मज़बूती से सत्ता, मीडिया और तकनीक के सहारे खड़ा कर दिया गया है. सोशल मीडिया, फेक न्यूज़, पूँजी की केंद्रीकृत ताक़त और कमज़ोर होती न्यायपालिका ने स्थिति को और जटिल बना दिया है.
पटवर्धन ने कहा कि वह “हम” उन लोगों को मानते हैं जिन्होंने अभी तक स्वतंत्र रूप से सोचने की क्षमता नहीं खोई है, वे लोग जो खुद को सबसे पहले इंसान मानते हैं, ऐसे समय में जब युद्ध और लालच के कारण पूरी धरती संकट में है. उन्होंने कहा कि असली लड़ाई इंसानियत और न्याय की रक्षा की है, और इसे वे अपनी फ़िल्मों के माध्यम से आगे भी दर्ज करते रहेंगे.
भाषण के अंत में पटवर्धन ने कहा कि किसी भी महान व्यक्ति की असली महानता इस बात में होती है कि वह पीछे एक ऐसी टीम छोड़ जाए जो उसकी विरासत को आगे बढ़ा सके. उन्होंने इरफान इंजीनियर, डॉ. राम पुनियानी और पूरी टीम का धन्यवाद करते हुए कहा कि वे सभी मिलकर डॉ. इंजीनियर की विरासत को जीवित रखे हुए हैं. उनकी राम के नाम यहां देख सकते हैं और नर्मदा डायरी डॉक्यूमेंटरी यहां है.
इंडिया गठबंधन के सांसदों ने राष्ट्रपति और सीजीआई को लिखा पत्र, मद्रास हाईकोर्ट के जज पर जातीय और वैचारिक पक्षपात के आरोप
चार महीने पहले थिरुप्परंकुंद्रम विवाद सामने आने से भी पहले, इंडिया ब्लॉक के सांसदों ने 11 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई को एक जैसे अलग-अलग पत्र लिखकर मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए थे. मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ सांसदों ने आरोप लगाया कि जज स्वामीनाथन ब्राह्मण समुदाय के वकीलों और हिंदू दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े अधिवक्ताओं को विशेष तरजीह देते हैं.
इन पत्रों के बाद ही विपक्ष ने संसद में उन्हें मदुरै बेंच से हटाने संबंधी प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू की. सांसदों ने आरोप लगाया कि जज का यह आचरण “सिद्ध दुराचार और गंभीर कदाचार” की श्रेणी में आता है, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और उसके धर्मनिरपेक्ष चरित्र को प्रभावित करता है.
सांसदों का कहना था कि एकल-पीठ जज के रूप में अपने कार्यकाल में जस्टिस स्वामीनाथन कुछ चुनिंदा वकीलों, विशेषकर ब्राह्मण समुदाय या दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों, के मामलों को प्राथमिकता से सूचीबद्ध करते थे. पत्र में कहा गया कि इससे न्यायिक प्रक्रिया में जातिगत पक्षपात का माहौल बन गया.
विवाद तब और बढ़ गया जब हाल ही में उन्होंने मदुरै के थिरुप्परंकुंद्रम स्थित सुब्रमण्य स्वामी मंदिर को निर्देश दिया कि कार्तिगई दीपम का दीपक एक ऐसे दीपस्तंभ पर जलाया जाए जो पहाड़ी पर स्थित एक दरगाह के पास है. सांसदों का कहना है कि यह आदेश और कुछ अन्य फैसले उनके “दक्षिणपंथी वैचारिक झुकाव” को दर्शाते हैं.
उन्होंने लिखा कि जजों के निजी विचार हो सकते हैं, लेकिन वे न्यायिक फैसलों को प्रभावित नहीं कर सकते, विशेषकर तब जब मामला मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से जुड़ा हो.
पत्रों में कुछ ऐसे मामलों का भी उल्लेख किया गया जिनसे वैचारिक पक्षपात की आशंका और मज़बूत होती है. इनमें से एक मामला करूर स्थित मंदिर में अन्नदानम (भक्तों को मुफ्त भोजन) और अंगप्रदक्षिणम (भोजन के बाद केले के पत्तों पर लोटकर पूजा) की अनुमति का था. जस्टिस स्वामीनाथन ने यह अनुमति दी थी, जबकि इससे पहले डिवीजन बेंच ने इन प्रथाओं को “अमानवीय” बताते हुए प्रतिबंधित किया था.
सांसदों ने कहा कि ऐसे निर्णय न्यायपालिका की निष्पक्षता पर जनता का भरोसा कमज़ोर करते हैं और यह चिंता पैदा करते हैं कि कहीं राजनीतिक या सामाजिक पक्षपात न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित तो नहीं कर रहा.
रूस के खिलाफ ऊर्जा युद्ध में यूक्रेन ने कड़े किए तेवर, कैस्पियन सागर में तेल प्लेटफॉर्म पर ड्रोन हमला
रूस के साथ जारी युद्ध में यूक्रेन ने अपने हमलों को और तेज करते हुए पहली बार कैस्पियन सागर में एक महत्वपूर्ण ऑफशोर तेल प्लेटफॉर्म को निशाना बनाया है. यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (SBU) के एक सूत्र ने सीएनएन को बताया कि लंबी दूरी के ड्रोन्स ने इस हफ्ते एक “अघोषित मिशन” के तहत यह हमला किया.
यह हमला रूस की ऊर्जा आय को काटने के यूक्रेन के बढ़ते अभियान का एक बड़ा संकेत है. यूक्रेन का कहना है कि यह कैस्पियन सागर में रूसी तेल बुनियादी ढांचे पर उसका पहला हमला है. निशाना बनाया गया ‘फिलानाव्स्की’ (Filanovsky) तेल प्लेटफॉर्म रूसी कंपनी ‘लुकोइल’ (Lukoil) का है, जो कैस्पियन सागर के रूसी क्षेत्र में सबसे बड़ा तेल क्षेत्र होने का दावा करता है.
यूक्रेन का यह कदम साफ संदेश है कि युद्ध के लिए काम करने वाले रूसी उद्यम उसके “वैध निशाने” हैं. 2024 की शुरुआत में रूस की ऊर्जा सुविधाओं पर हमले शुरू करने के बाद से कीव ने अगस्त से अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया है. यूक्रेन के प्रतिबंध आयुक्त व्लादिस्लाव व्लासियुक इसे “लंबी दूरी के प्रतिबंध” (long-range sanctions) कहते हैं. अब यूक्रेन न केवल रिफाइनरियों को, बल्कि तेल-गैस निर्यात बुनियादी ढांचे, पाइपलाइनों, टैंकरों और अब ऑफशोर ड्रिलिंग साइट्स को भी निशाना बना रहा है.
सीएनएन के विश्लेषण और ‘आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डेटा’ (ACLED) के अनुसार, नवंबर महीने में ऐसे हमलों की संख्या अब तक सबसे अधिक रही है. अगस्त से नवंबर के अंत तक, यूक्रेन ने कम से कम 77 रूसी ऊर्जा सुविधाओं पर हमला किया, जो साल के पहले सात महीनों की तुलना में लगभग दोगुना है.
यह आक्रामकता ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की वापसी और वैश्विक तेल आपूर्ति में अधिकता (glut) ने पश्चिमी सहयोगियों का रुख बदला है. आरबीसी कैपिटल मार्केट्स की हेलिमा क्रॉफ्ट कहती हैं कि रणनीति अब यह है कि रूस को अपनी “ऊर्जा एटीएम” (Energy ATM) का उपयोग कर भारी संख्या में सैनिकों की भर्ती के लिए पैसा न बनाने दिया जाए.
पश्चिमी खुफिया सूत्रों का कहना है कि वैश्विक तेल बाजार इन हमलों के झटकों को सहने में सक्षम है, जिससे यूक्रेन को इस अभियान में सहयोगियों का समर्थन मिल रहा है. वहीं, रूस के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं. उसकी रिफाइनरियां पिछले साल के मुकाबले 6% कम तेल प्रोसेस कर रही हैं और तेल-गैस राजस्व में लगभग 34% की गिरावट आई है.
हालांकि, बर्लिन स्थित कार्नेगी रशिया यूरेशिया सेंटर के सर्गेई वाकुलेंको का मानना है कि इन हमलों से होने वाला आर्थिक नुकसान अभी इतना बड़ा नहीं है कि रूस झुक जाए, लेकिन लंबी अवधि में आग और बार-बार के हमलों से होने वाला ढांचागत नुकसान गंभीर हो सकता है.
व्यापार वार्ता और रूसी तेल आयात में कमी के बीच मोदी-ट्रम्प ने ‘बहुत गर्मजोशी भरी’ फोन कॉल की
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा के एक सप्ताह बाद और उनकी पिछली बातचीत के दो महीने बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार (11 दिसंबर) को कहा कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ “बहुत गर्मजोशी भरी और आकर्षक” फोन कॉल की. यह बातचीत तब हुई, जब भारत ने रूसी कच्चे तेल के आयात में कटौती की है और दिल्ली में एक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल द्विपक्षीय समझौते पर लंबी चर्चा जारी रखे हुए है.
“द वायर’ के अनुसार, मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि दोनों नेताओं ने “क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों” पर चर्चा की. हालांकि, इस बारे में व्हाइट हाउस या ट्रम्प की ओर से तत्काल कोई पुष्टि या आधिकारिक विवरण नहीं आया.
मोदी ने गुरुवार को “एक्स” पर पोस्ट किया, “राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ बहुत गर्मजोशी भरी और आकर्षक बातचीत हुई.” “हमने अपने द्विपक्षीय संबंधों में हुई प्रगति की समीक्षा की... भारत और अमेरिका वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए मिलकर काम करना जारी रखेंगे.”
यह नवीनतम कॉल लगभग दो महीने बाद हुई है, जब मोदी और ट्रम्प ने पिछली बार 9 अक्टूबर को बात की थी. उस बातचीत के दौरान, मोदी ने गाजा शांति प्रयासों की प्रगति पर ट्रम्प को बधाई दी थी और नेताओं ने अपने दोनों देशों के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं पर चर्चा की थी.
उस फोन कॉल के कुछ दिनों बाद, ट्रम्प ने भारत में एक राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया था जब उन्होंने दावा किया था कि मोदी ने उन्हें “आश्वासन” दिया था कि भारत रूसी कच्चे तेल की खरीद को कम करेगा.
भारत के विदेश मंत्रालय ने एक सावधानीपूर्वक बयान के साथ जवाब दिया, जिसमें ट्रम्प के दावे का कोई सीधा संदर्भ नहीं था, लेकिन ऊर्जा नीति के प्रति भारत के संप्रभु दृष्टिकोण पर जोर दिया गया.
ट्रम्प प्रशासन ने इस साल की शुरुआत में भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को 25% से दोगुना कर 50% कर दिया था, जो नई दिल्ली के मॉस्को के साथ जारी ऊर्जा संबंधों के खिलाफ एक दंडात्मक उपाय था. वाशिंगटन ने तर्क दिया है कि ये खरीद रूस के यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने में मदद करती हैं, एक आरोप जिसे भारत “दोहरे मापदंड” के रूप में खारिज करता है, और यूरोप के रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों की ओर इशारा करता है.
पिछले सप्ताह पुतिन की भारत यात्रा से पहले, एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने दोहराया था कि ऊर्जा सोर्सिंग वाणिज्यिक कारकों द्वारा निर्देशित होती है. उन्होंने स्वीकार किया कि पश्चिमी प्रतिबंध अब वैश्विक बाजार को आकार दे रहे हैं और भारतीय रिफाइनर के फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे रूसी कच्चे तेल की खरीद में गिरावट आ रही है. राज्य के दौरे के दौरान, पुतिन ने भारत को “बाधा रहित” ईंधन शिपमेंट का आश्वासन दिया था.
केपलर और रॉयटर्स के नए विश्लेषणों के अनुसार, रूसी कच्चे तेल के भारतीय खरीदारों की संरचना में बदलाव आ रहा है.
जबकि भारत के सरकारी और निजी रिफाइनरों ने संभावित रूप से प्रतिबंधों के जोखिम के जवाब में अपनी खरीद कम कर दी है, नायरा एनर्जी, जो आंशिक रूप से रोसनेफ्ट के स्वामित्व वाली है और पहले से ही यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के अधीन है, ने अपने रूसी कच्चे तेल की खरीद में तेजी से वृद्धि की है. केपलर का अनुमान है कि नायरा की वाडिनार सुविधा को दिसंबर में लगभग 658,000 बैरल प्रति दिन प्राप्त हुआ, जो नवंबर में 561,000 बैरल प्रति दिन से अधिक है और 2025 के औसत 431,000 बैरल प्रति दिन से काफी ऊपर है. रिफाइनरी की क्षमता 405,000 बैरल प्रतिदिन है, जो दर्शाता है कि नायरा स्टॉक जमा कर रही है.
रूसी आपूर्ति में कमी की भरपाई के लिए, भारतीय रिफाइनरों ने मध्य पूर्व, लैटिन अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका, कनाडा और अमेरिका से खरीद बढ़ा दी है. अमेरिका से भारत को कच्चे तेल की डिलीवरी अक्टूबर में 568,000 बैरल प्रति दिन तक पहुंच गई - जो मार्च 2021 के बाद का उच्चतम स्तर है.
मोदी और ट्रम्प के बीच नवीनतम कॉल ऐसे समय में आई है, जब एक उच्च-स्तरीय अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधिमंडल एक संभावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत के लिए भारत में है. प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व उप अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि रिक स्विट्जर कर रहे हैं.
बुधवार को अमेरिकी सीनेट विनियोजन समिति की एक सुनवाई में, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमिसन ग्रीर ने कहा कि भारत बातचीत में “एक कठिन नट” बना हुआ है, लेकिन उन्होंने कहा कि वाशिंगटन को नई दिल्ली से “अब तक का सबसे अच्छा प्रस्ताव” प्राप्त हुआ है.
ग्रीर ने सांसदों से कहा, “भारत में कुछ पंक्ति फसलों और अन्य मांस और उत्पादों के प्रति प्रतिरोध है. जैसा कि आपने कहा, वे एक बहुत ही मुश्किल नट हैं. मैं इससे 100% सहमत हूं. लेकिन वे काफी आगे बढ़कर काम कर रहे हैं. जिस तरह के प्रस्तावों पर वे हमसे बात कर रहे हैं, वे देश के रूप में हमें अब तक मिले सबसे अच्छे प्रस्ताव हैं.”
बांग्लादेश में 12 फ़रवरी को होंगे आम चुनाव, हसीना के देश छोड़ने के बाद पहली वोटिंग
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने गुरुवार को ऐलान किया है कि देश में नई संसद चुनने के लिए 12 फ़रवरी को मतदान होगा. पिछले साल एक हिंसक छात्र आंदोलन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत भाग जाने के बाद यह बांग्लादेश का पहला राष्ट्रीय चुनाव होगा.
हसीना के जाने के बाद से नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाला अंतरिम प्रशासन 17.3 करोड़ की आबादी वाले इस मुस्लिम-बहुल दक्षिण एशियाई देश को चला रहा है. हालांकि, यह प्रशासन वादे के मुताबिक़ सुधारों में देरी को लेकर बढ़ते असंतोष और ताज़ा विरोध-प्रदर्शनों का सामना कर रहा है. मुख्य चुनाव आयुक्त एएमएम नासिर उद्दीन ने राष्ट्र के नाम एक प्रसारण में बताया कि तथाकथित ‘जुलाई चार्टर’ (July Charter) को लागू करने पर एक राष्ट्रीय जनमत संग्रह (referendum) भी उसी दिन (12 फ़रवरी) आयोजित किया जाएगा. यह चार्टर अशांति के बाद तैयार किया गया एक राज्य सुधार प्लान है.
जुलाई चार्टर में सरकारी संस्थानों में बड़े बदलावों का प्रस्ताव है, जिसमें कार्यकारी शक्तियों (executive powers) पर लगाम लगाना, न्यायपालिका और चुनाव अधिकारियों की स्वतंत्रता को मज़बूत करना, और क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों के दुरुपयोग को रोकना शामिल है.
आगामी चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) को सबसे आगे माना जा रहा है. उनके साथ जमात-ए- इस्लामी पार्टी भी मैदान में है, जो अंतरिम सरकार द्वारा प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद चुनावी राजनीति में लौटी है. ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी ‘जमात’ 2013 के कोर्ट के फ़ैसले के बाद चुनाव नहीं लड़ सकती थी, क्योंकि उसका रजिस्ट्रेशन देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के ख़िलाफ़ माना गया था.
वहीं, 2024 के विद्रोह के बाद छात्र नेताओं द्वारा बनाई गई ‘नेशनल सिटिज़न पार्टी’ अभी भी सड़कों की ताक़त को चुनावी ताक़त में बदलने के लिए संघर्ष कर रही है और बीएनपी व जमात से पीछे दिख रही है. शेख हसीना की अवामी लीग, जिसे चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है, उसने चेतावनी दी है कि अगर प्रतिबंध नहीं हटाया गया तो अशांति फैलेगी. मतदाताओं के लिए प्रमुख मुद्दों में लोकतांत्रिक शासन की बहाली, बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था (ख़ासकर गारमेंट इंडस्ट्री) को पटरी पर लाना, पड़ोसी देश भारत के साथ रिश्तों को सुधारना (जो हसीना को पनाह देने से तनावपूर्ण हैं), भ्रष्टाचार से निपटना और मीडिया की आज़ादी सुनिश्चित करना शामिल है.
पाकिस्तान के पूर्व जासूस प्रमुख फ़ैज़ हमीद को 14 साल की जेल, सेना ने दी सज़ा
हिंदू ने पाकिस्तानी सेना के बयान के हवाले से रिपोर्ट दी है कि पाकिस्तान की शक्तिशाली ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के पूर्व प्रमुख जनरल फ़ैज़ हमीद को एक सैन्य अदालत ने 14 साल क़ैद की सज़ा सुनाई है. गुरुवार (11 दिसंबर, 2025) को सेना ने बताया कि उन पर सरकारी गोपनीयता के उल्लंघन और अधिकार के दुरुपयोग समेत कई आरोप साबित हुए हैं.
जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के कार्यकाल में सेवा देने वाले फ़ैज़ हमीद को “राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने” और “लोगों को ग़लत तरीक़े से नुक़सान पहुंचाने” का भी दोषी पाया गया. 2023 में प्रकाशित सुप्रीम कोर्ट के दस्तावेज़ों के अनुसार, फ़ैज़ हमीद पर सत्ता के दुरुपयोग और एक निजी रियल एस्टेट डेवलपर के कारोबार पर छापा मारने का आरोप है. बता दें कि आईएसआई प्रमुख का पद पाकिस्तानी सेना में दूसरा सबसे शक्तिशाली पद माना जाता है.
सेना के बयान में कहा गया, “लंबी और श्रमसाध्य क़ानूनी कार्यवाही के बाद, आरोपी को सभी आरोपों में दोषी पाया गया है और 11 दिसंबर 2025 को कोर्ट द्वारा 14 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई है.” विशेषज्ञों के मुताबिक़, फ़ैज़ हमीद इमरान ख़ान के कट्टर समर्थक थे, जिन्हें सेना के कुछ शीर्ष अधिकारियों का समर्थन खोने के बाद अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए सत्ता से बेदख़ल कर दिया गया था.
एक समय सेना प्रमुख के प्रतिष्ठित पद के दावेदार माने जाने वाले फ़ैज़ हमीद ने ख़ान के सत्ता खोने के कुछ महीनों बाद ही समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया था. बाद में उन पर पाकिस्तान आर्मी एक्ट के उल्लंघन के “कई मामलों” का आरोप लगाया गया और उनके सभी रैंक छीन लिए गए. फ़ैज़ हमीद को अफ़गान तालिबान का करीबी माना जाता था और अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने कहा था कि उनकी सत्ता में वापसी “सब ठीक कर देगी.”
इंडिया गठबंधन के सांसदों ने राष्ट्रपति और सीजीआई को लिखा पत्र, मद्रास हाईकोर्ट के जज पर जातीय और वैचारिक पक्षपात के आरोप
चार महीने पहले थिरुप्परंकुंद्रम विवाद सामने आने से भी पहले, इंडिया ब्लॉक के सांसदों ने 11 अगस्त को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई को एक जैसे अलग-अलग पत्र लिखकर मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए थे. मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ सांसदों ने आरोप लगाया कि जज स्वामीनाथन ब्राह्मण समुदाय के वकीलों और हिंदू दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े अधिवक्ताओं को विशेष तरजीह देते हैं.
इन पत्रों के बाद ही विपक्ष ने संसद में उन्हें मदुरै बेंच से हटाने संबंधी प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू की. सांसदों ने आरोप लगाया कि जज का यह आचरण “सिद्ध दुराचार और गंभीर कदाचार” की श्रेणी में आता है, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और उसके धर्मनिरपेक्ष चरित्र को प्रभावित करता है.
सांसदों का कहना था कि एकल-पीठ जज के रूप में अपने कार्यकाल में जस्टिस स्वामीनाथन कुछ चुनिंदा वकीलों, विशेषकर ब्राह्मण समुदाय या दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों, के मामलों को प्राथमिकता से सूचीबद्ध करते थे. पत्र में कहा गया कि इससे न्यायिक प्रक्रिया में जातिगत पक्षपात का माहौल बन गया.
विवाद तब और बढ़ गया जब हाल ही में उन्होंने मदुरै के थिरुप्परंकुंद्रम स्थित सुब्रमण्य स्वामी मंदिर को निर्देश दिया कि कार्तिगई दीपम का दीपक एक ऐसे दीपस्तंभ पर जलाया जाए जो पहाड़ी पर स्थित एक दरगाह के पास है. सांसदों का कहना है कि यह आदेश और कुछ अन्य फैसले उनके “दक्षिणपंथी वैचारिक झुकाव” को दर्शाते हैं.
उन्होंने लिखा कि जजों के निजी विचार हो सकते हैं, लेकिन वे न्यायिक फैसलों को प्रभावित नहीं कर सकते, विशेषकर तब जब मामला मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से जुड़ा हो.
पत्रों में कुछ ऐसे मामलों का भी उल्लेख किया गया जिनसे वैचारिक पक्षपात की आशंका और मज़बूत होती है. इनमें से एक मामला करूर स्थित मंदिर में अन्नदानम (भक्तों को मुफ्त भोजन) और अंगप्रदक्षिणम (भोजन के बाद केले के पत्तों पर लोटकर पूजा) की अनुमति का था. जस्टिस स्वामीनाथन ने यह अनुमति दी थी, जबकि इससे पहले डिवीजन बेंच ने इन प्रथाओं को “अमानवीय” बताते हुए प्रतिबंधित किया था.
सांसदों ने कहा कि ऐसे निर्णय न्यायपालिका की निष्पक्षता पर जनता का भरोसा कमज़ोर करते हैं और यह चिंता पैदा करते हैं कि कहीं राजनीतिक या सामाजिक पक्षपात न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित तो नहीं कर रहा.
2025 का सबसे ज्यादा देखे गये टेड टॉक: ‘डिजिटल तख्तापलट’ और ‘ब्रोलिगार्की’ का खतरा
आज खोजी पत्रकार (Investigative Journalist) कैरोल कैडवालडर ने सोशल मीडिया पर घोषणा की कि उनका टॉक, ‘दिस इज़ व्हाट ए डिजिटल कूप लुक्स लाइक’ (This is What a Digital Coup Looks Like), इस साल TED पर सबसे ज्यादा देखा जाने वाला टॉक बन गया है.
कैरोल ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि यह एक ही समय में “अद्भुत और भयानक” (Amazing & terrifying) दोनों है. भयानक इसलिए, क्योंकि जिस ‘डिजिटल तख्तापलट’ की उन्होंने चेतावनी दी थी, वह महज एक आशंका नहीं बल्कि एक हकीकत है जिसे हम अपनी आंखों के सामने घटते हुए देख रहे हैं.
‘ब्रोलिगार्की’ (Broligarchy) का उदय : अपने इस चर्चित भाषण में, कैरोल ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पतन और एक नई तरह की तानाशाही के उदय पर बात की है. उन्होंने इसके लिए एक नया शब्द गढ़ा है - ‘ब्रोलिगार्की’. यह ‘टेक ब्रोज़’ (Tech Bros) और ‘ओलिगार्की’ (कुलीनतंत्र) का मिश्रण है.
उनका तर्क है कि सिलिकॉन वैली के शक्तिशाली टेक एग्जीक्यूटिव्स (जैसे एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग आदि) अब केवल व्यापारी नहीं रहे, बल्कि वे अपनी वैश्विक डिजिटल शक्ति का उपयोग अभूतपूर्व भू-राजनीतिक (geopolitical) ताकत हासिल करने के लिए कर रहे हैं. कैरोल का कहना है कि यह ट्रम्प प्रशासन और बिग टेक का एक खतरनाक गठजोड़ है, जहाँ तकनीक का इस्तेमाल लोकतंत्र को खत्म करने और सत्तावादी नियंत्रण को सक्षम करने के लिए किया जा रहा है.
TED के प्रमुख क्रिस एंडरसन के साथ अपनी बातचीत में, कैरोल ने समझाया कि यह एक पारंपरिक तख्तापलट जैसा नहीं है जहाँ टैंक सड़कों पर उतरते हैं, बल्कि यह संचार के साधनों (Communication platforms) पर कब्जा करने जैसा है.
डेटा ही नया हथियार है : कैरोल चेतावनी देती हैं कि हम अब “निगरानी पूंजीवाद” (Surveillance capitalism) से आगे बढ़कर “निगरानी फासीवाद” की ओर बढ़ रहे हैं. जिस तरह पूर्वी जर्मनी की खुफिया पुलिस ‘स्टासी’ (Stasi) अपने नागरिकों की जासूसी करती थी, आज गूगल और अन्य टेक कंपनियां उससे कहीं बड़े पैमाने पर हमारे जीवन का डेटा जमा कर रही हैं.
उन्होंने अपने संबोधन में कहा, “हमें अब यह मानकर चलना होगा कि हम पूर्वी जर्मनी में रह रहे हैं और इंस्टाग्राम ही स्टासी है.”
“मैं अपनी सहमति नहीं देती” : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के मुद्दे पर कैरोल ने बेहद कड़ा रुख अपनाया. उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने चैटजीपीटी (ChatGPT) से उनकी शैली में एक TED टॉक लिखने को कहा, और उसने वह कर दिखाया—क्योंकि एआई मॉडल उनके लेखों और मेहनत पर प्रशिक्षित किए गए हैं.
उन्होंने मंच से ही ओपनएआई (OpenAI) और अन्य टेक दिग्गजों को चुनौती देते हुए कहा: “यह डेटा आपका नहीं है. चैटजीपीटी को मेरी बौद्धिक संपदा (IP), मेरे श्रम और मेरे व्यक्तिगत डेटा पर ट्रेन किया गया है. और मैंने इसके लिए अपनी सहमति नहीं दी है.”
डिजिटल सविनय अवज्ञा : इतनी गंभीर चेतावनी के बावजूद, कैरोल का संदेश निराशा का नहीं, बल्कि प्रतिरोध का है. उन्होंने लोगों से ‘डिजिटल सविनय अवज्ञा’ (Digital Disobedience) का आह्वान किया है. उनका कहना है कि:
डेटा हार्वेस्टिंग का विरोध करें.
कुकीज़ (Cookies) को स्वीकार न करें.
सिग्नल (Signal) जैसे एन्क्रिप्टेड ऐप्स का उपयोग करें.
और उन लोगों का समर्थन करें जो इस सत्ता के खिलाफ लड़ रहे हैं.
उनका अंतिम संदेश साफ है: “गोपनीयता ही शक्ति है (Privacy is power). और आपके पास उससे कहीं ज्यादा ताकत है जितना आप सोचते हैं.” उनकी टेडटाक आप यहां देख सकते हैं.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.









