12 दिसंबर 2024: अडानी, धनखड़ और जॉर्ज सोरोस पर संसद में गतिरोध, किसान फिर आएंगे दिल्ली, कितना जानते हैं सोरोस को, हाथियों का रास्ता रोकते रिजॉर्ट, कश्मीर की परफार्मेंस आर्ट, कॉमेडियन फिर किडनैप
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल’
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सुर्खियां : बुधवार को भी हंगामे के चलते संसद नहीं चल पाई. अडानी, धनखड़ और जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है. विपक्ष ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस देने के बाद अपने हमलों की धार और तेज कर दी है. धनखड़ की भूमिका पर सवाल उठाते हुए विपक्षी दलों ने कहा है कि उनके पास अविश्वास प्रस्ताव के अलावा कोई विकल्प नहीं था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि धनखड़ का आचरण उनके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं रहा है. वह सरकार के प्रवक्ता की तरह काम करते हैं. विपक्ष के नेताओं को निशाना बनाते हैं और अकसर सरकार की प्रशंसा करते हैं. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने स्पीकर ओम बिरला से मुलाकात की और कहा कि भाजपा अडानी मुद्दे पर बहस को अनदेखा करना चाहती है. राहुल ने बिरला से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा उनके खिलाफ की गईं अपमानजनक टिप्पणियों को लोकसभा की कार्यवाही से हटाने की मांग की. इंडिया ब्लॉक के सदस्यों ने अडानी समेत अन्य सभी मुद्दों पर सदन में चर्चा नहीं कराने के विरोध में गुलाब के फूल और तिरंगे के साथ प्रदर्शन किया. इस बीच इंडिया ब्लॉक के सदस्य इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे हैं. कोई 36 सांसदों ने प्रस्ताव पर दस्तखत कर दिए हैं.
(साभार : सतीश आचार्य)
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को हटाए जाने की विपक्ष की मांग के बीच एक गैर सरकारी संगठन माध्यम ने राज्यसभा के सभापति के कुर्सी पर उनके प्रदर्शन को लेकर एक रिपोर्ट कार्ड तैयार किया है. रिपोर्ट में उनकी धौंस पट्टी, सेंसरशिप, भाषणों के हिस्से हटाने और बिना बहस के बिल पास करवाने जैसे कारनामों का जिक्र है. धनखड़ पर मंजुल का कार्टून.

आज के अडानी अलर्ट:
खरबपति गौतम अडानी ने अमेरिकी अतंरराष्ट्रीय डेवलपमेंट फाइनेंस कारपोरेशन (डीएफसी) से कोलम्बो श्रीलंका में बंदरगाह बनाने के लिए 4589.9 करोड़ रुपये का कर्ज करार किया था. मंगलवार को उससे अडानी ने हाथ खींच लिया. यह गौतम और अडानी समूह के दूसरे लोगों पर घूस देने के आरोप आने की रौशनी में देखा जा रहा. पिछले साल यह करार हुआ था और तब चीन को किनारे करने के लिए यह अमेरिका भारत सहयोग की मिसाल बताई जा रही थी. डीएफसी का एशिया में ये सबसे बड़ा निवेश था. समूह अब बिना अमरीकियों के ही श्रीलंका में अपने पोर्ट का काम चालू करने जा रहा है.
इधर पूर्वी भारत में कोयला बिजली संयत्र को चलाने के लिए केंद्र सरकार से अडानी ने ताज़ा रियायतें मांगी हैं. बांग्लादेश से भुगतान न ले पाने और इस संयंत्र को चलाने में आई मुश्किलों के बाद अडानी ने कर कानूनों में छूट की मांग की है. कंपनी चाहती है कि आयातित कोयले पर आयात शुल्क कम किया जाए और अभी लागू एसईजेड विनियमों में छूट दी जाए.
संसद के बाहर औऱ भीतर जहाँ मोदी अडानी भाई भाई के नारे लग रहे थे, गौतम अडानी मंगलवार को जयपुर में उसी मंच पर थे, जहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राइजिंग राजस्थान में बोलने गये थे. मोदी ने जहाँ भारत की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की बात कही, अडानी ने राजस्थान में निवेश करने की.
युनूस को तालिबानी बताया : भारतीय जनता पार्टी नेता शुभेंदु अधिकारी ने आज बांग्लादेश सीमा के पास प्रदर्शन करते हुए मोहम्मद युनूस को ‘अतिवादी, रूढ़़िवादी, मानव विरोधी और तालीबान की तरह के’ करार दिया. बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक की स्थापना करने वाले मोहम्मद युनूस नोबेल पुरस्कार विजेता हैं और शेख हसीना के भागने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. भारत के विदेश सचिव उनसे हाल ही में हाथ मिला कर आये हैं. अधिकारी ने ये घुड़की भी दी, ‘हासीमारा में 40 रफाल जहाज रखे हैं. सिर्फ दो भेजने से काम हो जाएगा.’
उमर खालिद की अदालत में चौथी दफा दस्तक : 'आर्टिकल 14' के लिए बेतवा शर्मा ने साल 2020 से जेल में बिना मुकदमे के बंद उमर खालिद के मामले की पड़ताल की है. गिरफ्तार होने के चार साल और तीन महीने बाद, उमर खालिद ने 6 दिसंबर 2024 को जमानत के लिए अपनी चौथी अपील कोर्ट में पेश की है. उमर ने ये अपील दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दूसरी बार पेश की है. इससे पहले कोर्ट ने अक्टूबर 2022 में जमानत खारिज कर दी थी. खालिद के वकील, वरिष्ठ वकील त्रिदीप पेस ने उन मामलों का उल्लेख किया जहां सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों में जमानत दी थी, जहां भारत के आतंकवाद विरोधी कानून को लागू किया गया था. अदालत ने जमानत को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपील को खारिज कर दिया है. खालिद के तीन सह-अभियुक्तों को मिले अनुदान से उमर खालिद को भी बेल मिलने की आस जगी है. उमर को बिना मुकदमे के सलाखों के पीछे वक्त बिताते हुए ही 4 साल बीत चुके हैं और ये मामला वैकल्पिक मीडिया में भी अक्सर चर्चाओं में रहता है. उमर को बेल न मिल पाना तब और गंभीर सवाल पैदा करता है जब सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि 'जमानत नियम है, जेल अपवाद'.
इंटरनेट बैन पर ढील नहीं : दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेट शटडाउन भारत में होता है. सरकार इसमें ढील देना नहीं चाहती. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में इंटरनेट जब चाहे बंद कर देने के बारे में राष्ट्रव्यापी दिशानिर्देश जारी करने की याचिका पर सुनवाई चल रही थी. सरकार ने कहा इस पर पहले से किया गया फैसला अव्यवहारिक है और हर बार इंटरनेट बैन करने के फैसले को अलग से चुनौती देनी पड़ेगी.
वीजा का अड़ंगा: कनाडा और भारत के बीच चल रही तक़रार को लेकर वहां के ग्लोबल न्यूज की रिपोर्ट है कि भारत आना चाहने वाले खालिस्तान का समर्थन करने वाले कनाडाई सिखों को वीजा देने से इंकार किया जा रहा है, जब तक वे साफ-साफ अलगाववाद छोड़ने की बात साफ़ न कहें. कनाडा के सिख आरोप लगा रहे हैं कि वीजा कनाडा के आंतरिक मामलों में दखल देने का खास औजार बन गया है.
मणिपुर के दस कुकी विधायकों ने, जिनमें सात भारतीय जनता पार्टी के हैं, प्रधानमंत्री को लिख कर कहा है कि पहाड़ी जिलों के लिए सरकारी पैसे चुने गये नेताओं की सिफारिश पर भेजे जाएं, न कि राज्य सरकार के. उनका कहना है, ‘एन बीरेन सिंह सरकार व्यवहारिक स्तर पर मौजूद ही नहीं है.’
चुनाव आयोग ने कहा है कि हाल के चुनावों में महाराष्ट्र की हर विधानसभा सीट के चुने गये बूथों पर वीवीपैट स्लिप की गिनती और ईवीएम से मिलान में कोई विसंगति नहीं पाई गई. हालांकि विपक्षी पार्टियों को ऐसा नहीं लगता.
सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत शर्त में दी ढील: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मनीष सिसोदिया ने याचिका डाल मिली जमानत की शर्तों में ढील की मांग की थी. अदालत ने उनकी मांग स्वीकार कर ली. अब उन्हें हफ्ते में दो बार जांच अधिकारी के सामने उपस्थित नहीं होना पड़ेगा. सिसोदिया दिल्ली आबकारी नीति से संबंधित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी हैं.
101 किसान 14 दिसंबर को फिर शुरू करेंगे ‘दिल्ली चलो’: पंजाब-हरियाणा सीमा पर धरना दे रहे 101 किसानों का एक जत्था 14 दिसंबर को दिल्ली जाएगा. किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी. 2020 के किसान आंदोलन के चेहरों में से एक अमेरिका में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सवाई मान सिंह ने किसान आंदोलन के लिए एनआरआई समुदाय से समर्थन मांगा है. पिछले 15 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत दल्लेवाल का भी उन्होंने समर्थन किया. इस बीच पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक ने ‘एक्स’ पर जानकारी दी कि अनशन की वजह से दल्लेवाल की तबीयत बिगड़ गई है.
राजपरिवार को 3000 करोड़ रुपए चुकाएगी कर्नाटक सरकार: कर्नाटक सरकार को मैसूर के शाही परिवार को 3,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. मामला मैसूर पैलेस की भूमि से जुड़ा है, जिसे लेकर शाही परिवार और राज्य सरकार के बीच विवाद चल रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने फैसले में शाही परिवार के पक्ष में निर्णय दिया.
कितना जानते हैं आप जॉर्ज सोरोस को
भारत में जॉर्ज सोरोस का नाम पहले भी लिया जाता रहा है, पर शायद पहली बार इतने आक्रामक तरीके से इस नाम का इस्तेमाल संसद से लेकर मीडिया में किया जा रहा है. “हरकारा” ने कोशिश की है, जॉर्ज सोरोस के बारे में जानकारियां जुटाने की.
जॉर्ज सोरोस 1930 में हंगरी में पैदा हुए. अब वे 94 साल के हैं. यहूदी परिवार में जन्म. 1944-45 में हंगरी हिटलर के नाज़ी कब्ज़े में था. नकली कागज़ बनवाकर उनका परिवार नाज़ी दमन से बचा. इस दौरान हंगरी में 5 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतारा गया.
दूसरी जंग के बाद जब हंगरी में कम्यूनिस्ट आ गये, तो 1947 में सोरोस लंदन आ गये और लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स में पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए रेलवे में सामान उठाने और नाइट क्लबों में वेटर का काम किया. 1956 में अमेरिका आकर वित्त और निवेश की दुनिया में कदम रखा और कामयाब रहे. 1970 में अपना हेज फंड शुरू किया और वे अमेरिका के सबसे कामयाब निवेशकों में गिने जाते हैं.
कामयाबी से कमाए पैसों को सोरोस ने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन में लगाया, जो 120 से अधिक देशों में संस्थाओं, न्यासों, साझीदारों और परियोजनाओं के साथ काम करती है.
रंगभेद के शिकार युवाओं के लिए फैलोशिप देने के साथ सोरोस ने 1979 में अपनी फिलेन्थ्रॉपी (लोकोपकारी पहलें) शुरू की. अस्सी के दशक में साम्यवादी हंगरी का पश्चिमी देशों के साथ विचारों का आदान प्रदान शुरू करवाया. बर्लिन की दीवार गिरने के बाद सोरोस ने सेंट्रल यूरोपीयन यूनिवर्सिटी का गठन किया. सोवियत संघ के टूटने और शीत युद्ध के खत्म होने के बाद उनके काम अफ्रीका, एशिया, लेटिन अमेरिका और अमेरिका में बढ़े, जिनकी नीयत थी जवाबदेह, पारदर्शी और लोकतांत्रिक समाज को आगे बढ़ाना. सोरोस इस सदी की शुरूआत में खुलकर समलैंगिक शादियों के समर्थक बने.
सोरोस ने अपनी निजी संपत्ति के 2700 करोड़ रुपये से ज्यादा फिलेन्थ्रॉपी में लगाए हैं जो अमेरिका में सबसे ज्यादा बताई जाती है.
सोरोस की अपनी वेबसाइट के मुताबिक उन्होंने 15 किताबें लिखीं. जिसमें ओपन सोसाइटी, डिफेंडिंग द ओपन सोसाइटी, ओपनिंग द सोवियत सिस्टम, द क्राइसिस ऑफ ग्लोबल केपिटलिज्म: ओपन सोसाइटी एंडेजर्ड शामिल हैं.
अपनी किताबों और लेखों में सोरोस मोटे तौर पर लोकतंत्र, खुलेपन, उदारवाद, मानवाधिकार समर्थन और मानवीयता की बात करते हैं.
पर जाहिर है उनके बारे में सब ऐसा नहीं कहते. अमेरिका हो या भारत या खुद सोरोस का देश, उन्हें साजिशकर्ता के बारे में पेश करने वाले कम नहीं. सोरोस पर जिन साजिशों के आरोप लगाये गये, उनमें से ख़ास हैं (हालांकि कुछ भी प्रमाणित नहीं हैं) -
साजिशों के लांछन!
ओपन सोसाइटी के माध्यम से सोरोस सिविल सोसाइटी के एजेंटों को कई देशों में स्थापित किया और उन्हें वहां की सरकारों के खिलाफ लड़ने और आवाज़ बुलंद करने के लिए उकसाया. अपने पैसों से उन्होंने इन देशों में राजनीति और जन आंदोलनों के जरिये सरकारों को अस्थिर करने की कोशिश की.
सोरोस ने कई देशों के उन मामलों में इस तरह हस्तक्षेप किया, जिन्हें वे सरकारे आंतरिक कहती हैं.
सोरोस के नाम यह भी आरोप है कि वे वैश्विक मीडिया संस्थानों, जैसे विकिपीडिया और अन्य बड़े समाचार आउटलेट्स पर अपने विचार और एजेंडे को लागू करने के लिए अपना वित्तीय प्रभाव इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं और यह दावा अक्सर एक षड्यंत्र सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.
आरोप है कि सोरोस ने अपनी ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के जरिए पूर्व सोवियत संघ, मध्य एशिया और अन्य देशों में "रंगीन क्रांतियों" को प्रोत्साहित किया है. इन क्रांतियों में सरकारों को अपदस्थ किया गया और प्रजातांत्रिक आंदोलनों को बढ़ावा दिया गया.
सोरोस को एक "ग्लोबलिस्ट" के रूप में देखा जाता है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय, वैश्विक शासन स्थापित करने के लिए काम करता है. उनके आलोचकों का मानना है कि सोरोस वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था में एक "न्यू वर्ल्ड ऑर्डर" की स्थापना का समर्थन करते हैं, जिसमें दुनिया के देशों पर संयुक्त रूप से नियंत्रण रखा जाएगा.
सिर्फ भारत में ही नहीं, सोरोस की आलोचना करने वाले, उनपर कातिलाना हमले करने और करवाने वाली ज्यादातर पार्टियां, नेता दक्षिणपंथी विचारधारा वाले हैं. चाहे ट्रम्प के समर्थक हों या फिर हंगरी के विक्टर ओरबान.
भारत और सोरोस
2020 में भारत में कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें जॉर्ज सोरोस के बयान ने विवाद पैदा किया. सोरोस ने इस आंदोलन के समर्थन में कुछ बयान दिए, जिसमें उन्होंने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत है. उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों पर चिंता जताते हुए किसान आंदोलन को लोकतांत्रिक संघर्ष के रूप में पेश किया.
सोरोस का यह विचार है कि दुनिया में अधिकतम लोकतंत्र, मानवाधिकार और समानता होनी चाहिए. उनका मानना है कि हर देश को खुले विचारों और समाज के लिए अवसर देने चाहिए. लेकिन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक परिपाटी में कुछ तत्वों को लेकर उनकी आलोचना की जाती है. खासकर, वे जब भारत के "हिंदुत्व" या धार्मिक असहिष्णुता को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं, तो उनकी आलोचना होती है.
जब से अमेरिकी सरकार ने अडानी के खिलाफ अभियोग की बात की है और कांग्रेस और विपक्ष इसे संसद और बाहर उठाना चाह रहा है, तब से भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और सोरोस के रिश्ते बताने में लगी हुई है. हालांकि कांग्रेस ने भी यह कहा है सोरोस की संस्थाओं से भारतीय जनता पार्टी के नेता और उनके परिवार न सिर्फ जुड़े रहे हैं, बल्कि एक तरह से लाभार्थी भी रहे हैं.
कर्नाटक में हिंसक प्रदर्शन : कर्नाटक में प्रभावशाली लिंगायत समुदाय का एक उपवर्ग पंचमसाली पिछले तीन साल से 2A आरक्षण श्रेणी में शामिल किए जाने की मांग कर रहा है. इसी मांग को लेकर वे फिर सड़क पर उतरे हैं. कर्नाटक के बेलगावी में यह आंदोलन हिंसक हो गया. उन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस की लाठीचार्ज में 10 से अधिक प्रदर्शनकारी घायल हो गए. पुलिस ने बताया कि प्रदर्शनकारी सुवर्ण विकास सौधा में घुसकर हंगामा कर रहे थे, जहां वर्तमान विधानसभा सत्र चल रहा है.
हंसाने बुलाया, रुला कर माने : मशहूर हास्य अभिनेता मुश्ताक खान को मेरठ एक कार्यक्रम में बुलाया गया था. वहां से उनका अपहरण कर लिया गया था और फिरौती की रकम एक करोड़ रुपये मांगी गई थी. खान के बिजनेस पार्टनर शिवम यादव ने बताया खान 12 घंटे तक अपहर्ताओं के कब्जे में थे. सुबह की वक्त भाग कर पास की मस्जिद में छिपकर अपनी जान बचाई. इस घटना की रिपोर्ट बिजनौर और मुंबई के सांताक्रूज पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई है. कार्यक्रम में बुलाकर अपहरण की यह तीसरी घटना है. इससे पहले सुनील पाल और राजेश पुरी ने भी ऐसी ही घटना साझा की थी.
दक्षिण कोरिया के पूर्व रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने बुधवार को हिरासत केंद्र में आत्महत्या की कोशिश की. उन पर राष्ट्रपति यून सूक योल के साथ मिलकर मार्शल लॉ लगाने का आरोप है. रॉयटर्स की खबर के अनुसार, पूर्व रक्षा मंत्री ने यह कदम देशद्रोह के आरोप में अपनी गिरफ्तारी के बाद उठाया.
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को कैलिफोर्निया की वकील और हरमीत कौर ढिल्लन को अमेरिकी न्याय विभाग के सिविल राइट्स प्रखंड का प्रमुख नियुक्त किया. ढिल्लन को सहायक अटॉर्नी जनरल नामित करते हुए ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा- ‘ढिल्लन ने नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए लगातार आवाज उठाई है. इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सेंसर करने का विरोध भी शामिल है’. ट्रंप ने यह भी कहा कि वह ‘सिख धार्मिक समुदाय की सम्मानित सदस्य हैं’. वहीं कुछ भारत समर्थकों ने हरमीत कौर पर भारत विरोधी होने का आरोप लगाया. उनका कहना है कि वह खालिस्तान समर्थक हैं और ‘सरकार विरोधी किसान आंदोलन’ का समर्थन करती हैं.
एलिफेंट कॉरिडोर में बने 38 रिसॉर्ट्स सील : तमिलनाडु सरकार ने नीलगिरी जिले में सूगुर एलिफेंट कॉरिडोर के भीतर बने 38 रिसॉर्ट्स को सील कर दिया है. केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों के वन विभाग के साथ मिलकर देशभर के 15 राज्यों में 150 एलिफेंठ कॉरिडोर के सर्वेक्षण के बाद ये फैसला लिया है. राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों को इन गलियारों की रक्षा और संरक्षण के लिए कदम उठाने की सलाह दी गई है.
चलते-चलते : परफॉर्मेंस आर्ट में जब कहना पड़ जाए तक़लीफ को
वह हकलाता है, लेकिन उसकी राजनीतिक समझ स्पष्ट है. वो पूरे आत्मविश्वास से 'कांरवा' से बातचीत में कहता है- 'कश्मीर में हर जगह आर्ट है. इतना बड़ा लैंडस्केप है.. लेकिन ये जगह पॉलिटिकली डिस्टर्ब जगह है!' वे दो आर्टिस्ट हैं. श्रीनगर के कलाकार खुर्शीद अली और नासिर हसन अपनी परफॉर्मेंस आर्ट के माध्यम से कश्मीर के संघर्ष, मौत, दर्द और दमन के इतिहास को सामने लाने का काम कर रहे हैं. वे लाल स्याही और सफेद कपड़े का उपयोग करके खून-खराबे और मौत की छवियां रचते हैं. उनकी प्रस्तुतियों में चेन, फिरन जैसे साधारण प्रॉप्स के साथ-साथ आसपास के तत्वों- जैसे कांटेदार तार और जंगली फूलों का भी उपयोग होता है. इन वस्तुओं और परिदृश्यों से कश्मीरी लोगों के ऐतिहासिक और भावनात्मक संबंध उनके कार्य का मुख्य केंद्र है.
मसलन श्रीनगर में एक प्रदर्शन के दौरान, हसन ने अपना चेहरा लाल रंग में रंगा और मोटी घास पर लेट गए. उनके हाथ में एक जर्मन कैमोमाइल (जंगली फूल) था, जो कभी कश्मीर में आम था, लेकिन अब ज्यादातर कब्रिस्तानों में ही देखा जाता है. यह फूल, उनकी परफॉर्मेंस में, कश्मीर की अनदेखी और गुम होती हुई सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का प्रतीक बना.
ऐसे ही एक रोज रात के समय किए गए एक प्रदर्शन में, इन दोनों कलाकारों ने एक महिला और बेटे का रूप धारण कर आग के चारों ओर परफॉर्म किया. आग, 1990 के दशक में सोपोर जैसे गांवों में हुई घटनाओं का प्रतीक थी, जहां मुठभेड़ों के दौरान पूरे गांव जला दिए गए थे. यह परफॉर्मेंस उन घटनाओं की ओर भी इशारा करती है, जब युवा पुरुषों को गायब कर दिया गया था और उनकी खोज में माताएं, बहनें और पत्नियां भटकती रहीं थी. खुर्शीद अली और नासिर हसन की परफॉर्मेंस सिर्फ कला नहीं है, बल्कि एक जिंदा दस्तावेज है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.