12/02/2025: मणिपुर अनिश्चय में, दिल्ली भी, फेक न्यूज फैलाने में दक्षिणपंथी आगे, बेरोजगारों को फंसाकर साइबर अपराधी बनाया, 805 ऐप्स ब्लॉक, तालिबान से भाग कर क्रिकेट के मैदान तक
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
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आज की सुर्खियां | 12 फरवरी 2025
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की आशंका : बीजेपी के मणिपुर में नए मुख्यमंत्री का फैसला नहीं कर पाने के कारण हिंसाग्रस्त राज्य में राष्ट्रपति शासन की आशंका व्यक्त की जा रही है. बिरेन सिंह ने रविवार को मंत्रिपरिषद के साथ अपने पद से इस्तीफा दिया था, लेकिन पार्टी के भीतर किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाने के कारण मंगलवार को राष्ट्रपति शासन की चर्चा और तेज हो गई. पार्टी के मणिपुर प्रभारी संबित पात्रा इम्फाल में एक के बाद एक बैठक जरूर कर रहे हैं, लेकिन किसी एक नाम पर अपने और समर्थक दलों के विधायकों को राजी करने में उन्हें कामयाबी नहीं मिली है. उधर संविधान के अनुच्छेद 174 के तहत विधानसभा के दो सत्रों के बीच अधिकतम 6 माह का अंतर हो सकता है. विधानसभा का पिछला सत्र चूंकि 12 अगस्त को समाप्त हुआ था, इस लिहाज से 6 माह की अवधि कल बुधवार 12 फरवरी को समाप्त हो रही है.
दिल्ली में भी बना हुआ है सस्पेंस! देश की राजधानी दिल्ली का भी यही हाल है. चुनाव नतीजों के चार दिन बाद भी इस बात का सस्पेंस बना हुआ है कि कौन होगा दिल्ली का मुख्यमंत्री? पार्टी में कोई एक नाम तय नहीं किया जा सका है. यह भी निश्चित नहीं है कि विधायक दल की बैठक कब बुलाई जाएगी. पदाधिकारी और नेता जरूर नव निर्वाचित विधायकों से मुलाकात कर रहे हैं. मंगलवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से कई विधायकों ने मुलाकात की. कहा जा रहा है कि नए नेता का चुनाव केंद्रीय नेतृत्व ही करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी फ्रांस और अमेरिका की यात्रा पर हैं. जाहिर है, उनके स्वदेश लौटने के बाद ही मुख्यमंत्री पद की शपथ होगी और तब ही सीएम पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान होगा.
चुनाव आयोग को निर्देश ; ईवीएम से न डेटा हटाएं, न रीलोड करें : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ‘एडीआर’ की याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि ईवीएम का सत्यापन करते समय उनमें से मतदान डेटा को न तो हटाया जाए और न ही उनमें डाला जाए . ‘एडीआर’ की याचिका में आरोप लगाया गया है कि ईवीएम के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के अप्रैल 2024 के आदेश के अनुसार नहीं थी. दरअसल, 26 अप्रैल 2024 के अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने नंबर 2 और नंबर 3 के उम्मीदवारों को चुनाव नतीजों के बाद प्रति विधानसभा क्षेत्र में 5 प्रतिशत ईवीएम की जांच और सत्यापन कराने का विकल्प दिया था. एडीआर की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि आयोग ईवीएम के सत्यापन के लिए सिर्फ मॉक पोल करता है, लेकिन हम चाहते हैं कि कोई ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करे, ताकि यह देखा जा सके कि उनमें हेरफेर का कोई तत्व है या नहीं. यह चिंता भी व्यक्त की गई कि रीलोडिंग के दौरान पिछला डेटा मिट जाता है. सीजेआई संजीव खन्ना ने स्पष्ट किया कि कोर्ट ने जो कहा वह यह था कि यदि किसी को संदेह है तो सत्यापन हो सकता है. अप्रैल 2024 के फैसले का जिक्र करते हुए सीजेआई ने कहा कि आदेश के पीछे का इरादा यह था कि गिनती में कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए, मशीन की जांच ईवीएम निर्माता के एक इंजीनियर द्वारा की जानी चाहिए, और मशीनों में मतदान डेटा को मिटाया या रीलोड नहीं किया जाना चाहिए. कोर्ट ने आयोग से दो सप्ताह में जवाब मांगा है.
805 मोबाइल ऐप्स और 3,266 वेबसाइट लिंक ब्लॉक : 'द हिंदू' की खबर है कि गृह मंत्री अमित शाह ने 10 फरवरी को एक संसदीय समिति को सूचित किया कि "राष्ट्रीय सुरक्षा" कारणों से अब तक 805 मोबाइल ऐप्स और 3,266 वेबसाइट लिंक ब्लॉक किए गए हैं. शाह ने कहा कि अब तक भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) पोर्टल पर कुल 1.43 लाख प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIRs) दर्ज की गई हैं और 19 करोड़ से अधिक लोग वेबसाइट का उपयोग कर चुके हैं. सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 18 ओटीटी प्लेटफार्मों और संबंधित सोशल मीडिया खातों को अश्लील सामग्री प्रकाशित करने के कारण ब्लॉक कर दिया है. शाह ने बताया कि 6 लाख से अधिक संदिग्ध डेटा पॉइंट्स को एक सामान्य प्रणाली के माध्यम से 14C, पुलिस, बैंकों और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा किया गया है और 19 लाख से अधिक मनी लॉन्ड्रिंग खातों की पहचान की गई है, जिससे ₹2,038 करोड़ के संदिग्ध लेनदेन को रोका गया है. कुल 399 बैंक और वित्तीय मध्यस्थों को इस प्लेटफॉर्म से जोड़ा गया है. सरकार ने 59 ऐप्स को प्रतिबंधित किया है, जिसमें चीन आधारित टिकटॉक और वीचैट शामिल हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठनों द्वारा उपयोग किए जाने के कारण 14 ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया है.
ट्रम्प के नये हुक्मनामे से अडानी को राहत?
कुछ माह पहले तक गौतम अडानी की साख और सम्पत्ति पर जिस तरह का बट्टा लग रहा था, अब बिसात बदल रही है. उनपर मंडराते ख़तरे के बादल छंट रहे से लगते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए. इसमें न्याय विभाग को व्यापार सौदों को सुरक्षित करने के लिए विदेशी अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोप में अमेरिकियों के खिलाफ मुकदमा चलाने को रोकने का निर्देश दिया गया है. यह आदेश प्रभावी रूप से विदेशी भ्रष्टाचार प्रथा अधिनियम (एफसीपीए) के प्रवर्तन को निलंबित कर देता है, जो 1977 का एक ऐतिहासिक कानून है जिसे विदेशों में कॉर्पोरेट रिश्वतखोरी को रोकने के लिए बनाया गया था. ट्रम्प ने अटॉर्नी जनरल पैम बॉन्डी को इस अधिनियम की समीक्षा करने और नए, संभावित रूप से अधिक नरम, प्रवर्तन दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है.
व्हाइट हाउस ने इस कदम को सही ठहराया और कहा कि एफसीपीए ने अमेरिकी कंपनियों को कम प्रतिस्पर्धी बना दिया है. यह एक ऐसा दावा है जिसे नैतिकता पर नजर रखने वाले समूहों ने व्यापक रूप से खारिज कर दिया है और इसे भ्रष्टाचार को बढ़ाने का बहाना बताया है. आलोचकों का तर्क है कि रिश्वतखोरी विरोधी सुरक्षा उपायों में यह स्पष्ट कमी ट्रम्प के कॉर्पोरेट सहयोगियों के लिए एक सीधा उपहार है, जो वैश्विक भ्रष्टाचार से लड़ने में दशकों की प्रगति को ध्वस्त कर देता है.
विशेष रूप से, इस फैसले को अडानी समूह और उसके अध्यक्ष गौतम अडानी के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा रहा है. इस नये हुक्मनामे से अडानी के खिलाफ चल रही जांच में काफी देरी हो सकती है या इसे कमजोर किया जा सकता है. अडानी के पक्ष में कुछ अमेरिकी कांग्रेसी भी लामबंदी कर रहे हैं. पिछली सरकार के दौरान अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लिए गए कथित रूप से संदिग्ध निर्णयों, जिसमें अडानी के खिलाफ अभियोग भी शामिल है, के खिलाफ ये पत्र बॉन्डी को लिखा गया है. इसमें कहा गया है कि भारत जैसे सहयोगी के साथ संबंधों को जटिल बना सकने वाले तरीके से मामले को आगे बढ़ाने का कोई ठोस कारण नहीं था. उन्होंने कहा, "यह गलत धर्मयुद्ध ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति ट्रम्प की वापसी से ठीक पहले भारत जैसे रणनीतिक भू-राजनीतिक साझेदार के साथ हमारे संबंधों को नुकसान पहुंचाने के जोखिम पर आया था... राष्ट्रपति ट्रम्प की अमेरिका की आर्थिक समृद्धि को पुनर्जीवित करने की प्रतिबद्धता को देखते हुए, भारत और विदेशों के मूल्यवान साझेदारों के साथ हमारा आर्थिक संबंध उस लक्ष्य को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में काम करता है."
जब कविता का मतलब सुप्रीम कोर्ट को समझाना पड़ा : देश की सर्वोच्च अदालत को गुजरात पुलिस और राज्य के सरकारी वकील को एक कविता का अर्थ समझाना पड़ा. यह कविता कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की है, जो उन्होंने एक वीडियो के साथ इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दी थी. इस पर गुजरात पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली, जिसे खारिज करने की प्रार्थना लेकर वह हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सोमवार को उनकी प्रार्थना को सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की, “(हाई) कोर्ट कविता का अर्थ समझ नहीं पाई. यह कविता ही है. और, किसी विशेष समुदाय, धर्म के खिलाफ नहीं है. अप्रत्यक्ष रूप से संदेश देती है कि अगर कोई हिंसा में लिप्त होता है, तो भी हम हिंसा में लिप्त नहीं होंगे. डबल बेंच के सदस्य न्यायमूर्ति एएस ओका ने सरकारी वकील से कहा, “कृपया, कविता पर अपना दिमाग लगाइए. आखिरकार, सृजनशीलता भी महत्व रखती है.”
तिरुपति मंदिर में ब्लैकलिस्टेड कंपनी ने मिलावटी घी सप्लाई किया : “द इंडियन एक्सप्रेस” ने खुलासा किया है कि उत्तराखंड की ब्लैकलिस्टेड कंपनी भोले बाबा ऑर्गैनिक डेयरी प्राइवेट लिमिटेड ने ही कथित प्रॉक्सी कंपनियों के जरिए तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर मंदिर को मिलावटी घी की आपूर्ति की थी. जबकि निविदा प्रक्रिया में भोले बाबा कंपनी को अयोग्य घोषित कर ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया था, लेकिन उसने दो प्रॉक्सी कंपनियों वैष्णवी डेयरी और एआर डेयरी के माध्यम से घी की आपूर्ति कर दी. एसआईटी ने हैदराबाद की एक कोर्ट में रविवार को रिमांड रिपोर्ट पेश की, जिससे प्रसाद के लड्डुओं में मिलावट से जुड़ी तमाम जानकारी सामने आई है. बता दें कि तिरुमला तिरुपति देवस्थानम प्रसाद के लड्डू बनाने के लिए 15 हजार किलो घी का इस्तेमाल करता है. आंध्रप्रदेश में यह मामला राजनीतिक विवाद का कारण भी बना था.
सुप्रीम कोर्ट में मौत की एक भी सजा की पुष्टि नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में लगातार दूसरे वर्ष मौत की सजा के एक भी मामले की पुष्टि नहीं की, जबकि देश भर की निचली अदालतों ने इस दौरान 139 मौत की सजा सुनाई थीं. नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के क्रिमिनल जस्टिस प्रोग्राम प्रोजेक्ट 39ए की रिपोर्ट के अनुसार साल भर में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश 6 अपीलों में से मौत की पांच सजाओं को उसने आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया और एक को अपराध मुक्त कर दिया गया.
फ़ेक न्यूज
सोशल मीडिया में फेक न्यूज फैलाने में आगे हैं चरम दक्षिणपंथी
एक अध्ययन में पता चला है कि फार-राइट चरम दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट्स की सोशल मीडिया पर फेक न्यूज फैलाने की संभावना, मुख्यधारा या फार-लेफ्ट पार्टियों के नेताओं की तुलना में कहीं ज्यादा है. 'द गार्डियन' से बातचीत में यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम के पेटर टॉर्नबर्ग ने कहा कि रैडिकल राइट पॉपुलिस्ट्स गलत सूचना को लोकतंत्रों को अस्थिर करने और राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. पेटर टॉर्नबर्ग इस अध्ययन के सह-लेखक भी हैं. टॉर्नबर्ग ने कहा- 'यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और जनता को गलत सूचना और रैडिकल राइट पॉपुलिज्म के आपसी रिश्तों को समझने और उस पर ध्यान केंद्रित करने की तत्काल आवश्यकता है.'
यह शोध 2017 से 2022 के बीच 26 देशों के हर सांसद द्वारा किए गए प्रत्येक ट्वीट पर आधारित है, जिसमें 17 यूरोपीय संघ के सदस्य देश (ऑस्ट्रिया, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स और स्वीडन सहित) और साथ ही यूके, यूएस और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं. इसके बाद इस डेटा सेट के 32 मिलियन ट्वीट्स और 8,198 सांसदों के अंतर्राष्ट्रीय राजनीति विज्ञान डेटाबेस से तुलना की गई, जिसमें शामिल पार्टियों की जानकारी थी. मसलन उनकी स्थिति लेफ्ट-राइट स्पेक्ट्रम पर और उनका पॉपुलिज़्म का स्तर. अंत में शोधकर्ताओं ने फैक्ट चेकिंग और फेक न्यूज ट्रैकिंग सेवाओं से डेटा स्क्रैप किया और 646,058 URLs का एक डेटासेट बनाया, जिनके साथ एक "फैक्चुअलिटी रेटिंग" जुड़ी हुई थी, जो स्रोत की विश्वसनीयता पर आधारित थी और उस डेटा की उन 18 मिलियन URLs के साथ तुलना की गई जो सांसदों ने शेयर की थीं. सभी विभिन्न डेटासेट्स को जोड़ने के बाद, शोधकर्ताओं ने प्रत्येक राजनीतिज्ञ और पार्टी के लिए एक "फैक्चुअलिटी स्कोर" तैयार किया, जो उनके द्वारा ट्विटर पर साझा की गई लिंक पर आधारित था. डेटा से यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि फार-राइट पॉपुलिज़्म "गलत सूचना फैलाने की प्रवृत्ति के लिए सबसे मजबूत निर्धारक" था, उन्होंने निष्कर्ष निकाला, जबकि सेंटर-राइट, सेंटर-लेफ्ट और फार-लेफ्ट पॉपुलिस्ट पार्टियों को "इस प्रथा से नहीं जोड़ा गया".
अध्ययन ने फार-राइट पॉपुलिस्ट्स और "वैकल्पिक" मीडिया के बीच "संपर्कपूर्ण संबंध" को भी उजागर किया. "रैडिकल राइट पॉपुलिस्ट्स ने वैकल्पिक मीडिया पारिस्थितिकी प्रणालियों को बनाने और उनका उपयोग करने में प्रभावी ढंग से काम किया है, जो उनके दृष्टिकोण को बढ़ावा देती हैं," टॉर्नबर्ग ने कहा.
पाठकों से अपील
कैसे बेरोजगार भारतीयों को साइबर गुलामी में फंसाया गया
'स्क्रोल' के लिए आयुष तिवारी की रिपोर्ट है कि कैसे भारतीयों को उच्च वेतन वाली नौकरियों का झांसा देकर विदेश बुलाया गया और फिर उनसे पहचान बदलकर लोगों को ठगने के लिए कहा गया. उत्तर प्रदेश के दासौली गांव के राम जनम राव ने 6 अगस्त को दूतावास से अपने 22 वर्षीय साले अजय कुमार के बारे में एक पत्र लिखा था, जो म्यांमार के म्यावाडी क्षेत्र में पांच महीने से फंसे हुआ है. इसपर दूतावास का जवाब आया- "कृपया धैर्य रखें. यह क्षेत्र अनुपलब्ध है. म्यांमार अधिकारियों के नियंत्रण से बाहर है, इसलिए दूतावास के लिए बचाव/रिहाई चुनौतीपूर्ण है."
मार्च 2024 में अजय कुमार और उनके दो दोस्त, सागर चौहान और अरुष गौतम को कुआलालंपुर, मलेशिया में एक कॉल सेंटर कंपनी में काम देने का वादा किया गया था. एक महीने बाद, तीनों म्यांमार के म्यावाडी में एक परिसर में बैठे थे, जहां उन्हें दुनिया भर से तस्करी कर लाए गए सैकड़ों अन्य लोगों के साथ धोखाधड़ी करने के लिए मजबूर किया जा रहा था. उन्हें चीनी महिलाओं के रूप में पहचान बना कर, समृद्ध पुरुषों से मिलने का नाटक करना पड़ा था. 'स्क्रोल' की यह कहानी उन धोखाधड़ी करने वालों की है, जो खुद शिकार बन गए हैं. वे लोग जिन्हें दक्षिण-पूर्व एशिया में फंसाया गया था और उन्हें साइबर गुलाम बना कर, नई साइबर पहचान लेने के लिए मजबूर किया गया और लोगों को अपनी मेहनत की कमाई देने के लिए धोखा देने के काम पर जबरन लगाया गया. पर मजबूर किया गया. मलेशिया जाने से पहले, उत्तर प्रदेश के इन तीनों युवकों को यह विश्वास था कि वे धोखाधड़ी का शिकार नहीं हो रहे हैं.
ऐसे ही केरल के कोझिकोड जिले में पांच अन्य पुरुषों को भी थाईलैंड में काम का वादा किया गया था. बाद में उन्हें उन्हें कंबोडिया ले जाकर साइबर गुलाम बना दिया गया. उत्तर प्रदेश के लड़कों की तरह, इन लड़कों को भी उनके परिचितों ने भर्ती किया था. पोइपेट में अपने पहले कामकाजी दिन पर, केरल के लड़कों को स्क्रिप्ट दी गई, जो उन्हें एसबीआई ग्राहकों पर "डिजिटल गिरफ्तारी" धोखाधड़ी करने के तरीके सिखाती थी. काम था एक "डिजिटल गिरफ्तारी" धोखाधड़ी पर काम करना.
ट्रम्प ने जॉर्डन के राजा से की मुलाकात, गाजा की घेराबंदी शुरू
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय से व्हाइट हाउस में मुलाकात की. इस मुलाकात के कई मायने निकल रहे हैं. एक ओर जॉर्डन पर अमरीका से दोस्ती निभाते हुए ट्रम्प की योजनाओं पर गाजा में काम करने का दबाव है, तो दूसरी ओर वैश्विक छीछालेदारी. इधर बीच इज़राइल-हमास संघर्ष विराम को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है. ट्रम्प, जॉर्डन पर गाजा से विस्थापित फिलिस्तीनियों को लेने का दबाव बना रहे हैं. वहीं हमास ने यह स्पष्ट किया कि इज़राइल के बंदी केवल तभी गाजा से वापस लाए जा सकते हैं, जब इज़राइल उस संघर्ष विराम समझौते का सम्मान करेगा, जिसे उसने हस्ताक्षरित किया है. ट्रम्प ने यह चेतावनी दी थी कि अगर शनिवार तक सभी बंदी नहीं छोड़े गए, तो समझौते को रद्द कर दिया जाना चाहिए. इसके बाद हमास ने अगले बंदियों की रिहाई को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया, यह आरोप लगाते हुए कि इज़राइल ने समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया है.
आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस
ख़बरों के मामले में एआई चैटबॉट्स में 51% गफलत
बीबीसी के एक नए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि ओपन एआई का चैटजीपीटी, माइक्रोसॉफ्ट का कोपायलट, गूगल का जेमिनाइ और परप्लेक्सिटी एआई जैसे प्रमुख चैटबॉट्स समाचारों को ग़लत ढंग से पेश कर रहे हैं. शोध के अनुसार, 51% एआई जवाबों में गंभीर त्रुटियां पाई गईं, जबकि 19% मामलों में बीबीसी की सामग्री का हवाला देते हुए भी तथ्यात्मक ग़लतियां की गईं, जैसे ग़लत तारीख़ें, आंकड़े और बयान.
दिसंबर 2024 में किए गए इस अध्ययन में बीबीसी ने 100 समाचार लेखों के आधार पर एआई चैटबॉट्स से सवाल पूछे. विषय-विशेषज्ञ पत्रकारों ने एआई के जवाबों का मूल्यांकन किया. पाया गया कि चैट जीपीटी और परप्लेक्सिटी की तुलना में माइक्रोसॉफ्ट के कोपायलट और गूगल के जेमिनाइ में अधिक गंभीर समस्याएं थीं. उदाहरण के तौर पर, जेमिनाइ ने ब्रिटेन की स्वास्थ्य सेवा के वेपिंग संबंधी दिशा-निर्देशों को ग़लत बताया. चैटजीपीटी और कोपायलट ने ऋषि सूनक और निकोला स्टरजन को अभी भी पदस्थ बताया, जबकि वे इस्तीफ़ा दे चुके हैं. परप्लेक्सिटी ने इज़राइल-ईरान संदर्भ में बीबीसी के बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया.
बीबीसी न्यूज़ की सीईओ डेबोरा टर्नेस ने चेतावनी दी कि एआई टूल बनाने वाली कंपनियां "आग से खेल" रही हैं. उन्होंने कहा, "एआई समाचारों को विकृत करके वास्तविक नुकसान पहुंचा सकता है." बीबीसी ने एपल की तरह एआई कंपनियों से समाचार सारांश को रोकने की अपील की है. साथ ही, जेनरेटिव एआई प्रोग्राम डायरेक्टर पीट आर्चर ने मांग की कि प्रकाशकों को यह नियंत्रण मिलना चाहिए कि उनकी सामग्री का एआई द्वारा कैसे उपयोग हो.
ओपन एआई के प्रवक्ता ने कहा कि वे प्रकाशकों के साथ मिलकर सटीक जवाब बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. अन्य कंपनियों की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. बीबीसी ने स्पष्ट किया कि वह सामान्यतः एआई बॉट्स को अपनी वेबसाइट एक्सेस करने से रोकती है, लेकिन शोध के दौरान इसे अस्थायी रूप से खोला गया. यह शोध एआई की सीमाओं को उजागर करता है. समाचारों में तथ्य-कल्पना का फ़र्क़ करने, संदर्भ देने और निष्पक्षता बनाए रखने में एआई की अक्षमता चिंताजनक है. बीबीसी का मानना है कि तकनीकी कंपनियों को प्रकाशकों के साथ मिलकर जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी.
सलमान रुश्दी पर हमला
इस आँख में कोई नज़र नहीं बची है
उपन्यासकार सलमान रुश्दी ने मंगलवार को अदालत में अपना चश्मा उतार कर जूरी को अपनी दाहिनी आँख दिखाई, जिसपर 2022 में हमलावर हादी मातर ने चाकू घोंप दिया था. 26 साल के हादी मातर पर चौटॉक्वा काउंटी जिला अटॉर्नी द्वारा हत्या के प्रयास और हमले के आरोप लगाए गए हैं. मातर ने कहा है कि वह दोषी नहीं हैं. रुश्दी गहरे रंग के सूट, सफेद शर्ट और ग्रे टाई पहनकर अदालत कक्ष में पहुंचे. उनके चश्मे का दाहिना लेंस काला था, जो उस आँख को छिपा रहा था जिसे हमलावर की चाकू ने ऑप्टिक नर्व तक भेद दिया था. रुश्दी ने मेविल की अदालत में गवाही देते हुए कहा, "मैंने अपने दाएं तरफ से इस व्यक्ति को अपनी ओर दौड़ते हुए देखा." रुश्दी ने कहा, "उसने मुझे बहुत जोर से मारा. शुरू में मुझे लगा कि उसने मुझे मुक्का मारा है, लेकिन बहुत जल्द मैंने देखा कि मेरे कपड़ों पर खून की बहुत बड़ी मात्रा बह रही है और तब तक वह बार-बार मुझे मार रहा था. छुरा घोंप रहा था, काट रहा था." मातर, जो ढीली हल्की नीली शर्ट पहने अपने बचाव पक्ष के वकीलों के पास बैठा था, के बारे में रुश्दी ने अपनी संस्मरण में हमले पर सवाल उठाया और लिखा कि वे अदालत में उसका सामना करने के लिए उत्सुक थे.
रुश्दी को लगभग 15 बार छुरा घोंपा गया: सिर, गर्दन, धड़ और बाएं हाथ में. इससे उनकी दाहिनी आँख की दृष्टि चली गई और लीवर और आंतों को नुकसान पहुंचा. पेन्सिलवेनिया के एरी में अस्पताल पहुंचाए जाने के बाद उनका इलाज करने वाले ट्रॉमा डॉक्टरों ने कहा कि उनके शरीर से इतना खून बह गया था कि वे मौत के करीब पहुंच गए थे. रुश्दी ने कहा कि दाहिनी आँख में छुरा घोंपना सबसे खतरनाक था. उन्होंने चश्मा उतारकर जूरी की ओर मुड़ते हुए कहा, "आप देख सकते हैं कि यही बचा है. इस आँख में कोई नज़र नहीं बची है."
हमले का आरोप हेनरी रीज़ को हुई चोट के लिए भी लगाया गया है. रीज़ पिट्सबर्ग के "सिटी ऑफ़ एक्ज़ाइल" (निर्वासित लेखकों की मदद करने वाले गैर-लाभकारी समूह) के सह-संस्थापक हैं, जो उस सुबह रुश्दी के साथ बातचीत कर रहे थे. रीज़ भी गवाही देने वाले हैं. चौटॉक्वा जिला अटॉर्नी जेसन श्मिट ने अपना सवाल दोबारा पूछते हुए लेखक से पूछा कि उन्होंने हमलावर की हिंसक प्रवृत्ति के बारे में कैसे निष्कर्ष निकाला. रुश्दी ने जवाब दिया, "उसने मुझे कई बार मारा. एक पल मुझे लगा कि मैं मर रहा हूँ. यही मेरा पहला खयाल था."
चलते चलते
तालिबान से भागकर अफ़गान क्रिकेट की नई पारी

"मेरे वापस आने तक कुछ मत करना!" ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर मेल जोन्स टीवी कमेंट्री के बीच तालिबान से अफ़ग़ान महिला क्रिकेट टीम को बचाने की योजना बना रही थीं. यह कहानी है उन 19 खिलाड़ियों की, जिन्होंने 2021 में अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर मेलबर्न के 'जंक्शन ओवल' में पहला मैच खेलते हुए इतिहास रचा. बीबीसी ने इस पर एक लम्बा फ़ीचर लिखा है.
फ़िरोज़ा अमीरी आज भी सिहर उठती है, जब उसे याद आता है कि कैसे तालिबान के 8 चेकपॉइंट्स पर "मां का इलाज" और "शादी में शामिल होने" के झूठ ने उनकी जान बचाई. "यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा चमत्कार था," वह बीबीसी को बताती हैं. तालिबान के आते ही उन्होंने अपने सारे मेडल और सर्टिफ़िकेट जला दिए. साथी खिलाड़ी नाहिदा सपन को तालिबान ने घर तलाशा, "हम तुम्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे," के धमकी भरे संदेशों ने उन्हें ऑस्ट्रेलिया भागने पर मजबूर किया.
कोविड क्वारंटीन में बैठी मेल जोन्स को जब पता चला कि अफ़ग़ान खिलाड़ी मदद के लिए तरस रही हैं, तो उन्होंने एम्मा स्टेपल्स और डॉ. कैथरीन ऑर्डवे के साथ मिलकर 120 लोगों को निकालने का जुगाड़ शुरू किया. पासपोर्ट, वीज़ा, पैसे के ट्रांसफर—यह सब "बैकयार्ड इमिग्रेशन सर्विस" के ज़रिए हुआ. "गूगल ट्रांसलेट ने भाषा की दीवार तोड़ दी," एम्मा हंसते हुए याद करती हैं. एक खिलाड़ी को सही गाड़ी ढूंढने में मदद करते हुए मेल को टीवी कमेंट्री भी जारी रखनी पड़ी—"लगा जैसे 'जेसन बॉर्न' फ़िल्म में हूं!"
3 साल बाद, मेलबर्न के मैदान पर जब खिलाड़ियों ने कस्टम डिज़ाइन जर्सी पहनी—जिस पर अफ़ग़ानिस्तान के लाल ट्यूलिप और ऑस्ट्रेलिया के गोल्डन वॉटल फूलों ने क्रिकेट बॉल को घेर रखा था—तो यह उनकी नई पहचान का प्रतीक बन गया. हार के बावजूद, यह मैच उनकी जीत थी. "यह अफ़ग़ान महिलाओं के लिए संदेश है: हार मत मानो," कप्तान नाहिदा ने कहा. पर मुसीबतें कम नहीं हुईं. आईसीसी ने उन्हें अब तक मान्यता नहीं दी. "हमें गुस्सा आता है. आईसीसी समानता की बात करता है, पर अफ़ग़ानिस्तान की पुरुष टीम को फंड मिलता है, हमें नहीं," फ़िरोज़ा आवाज़ भरती हैं. 14 साल की शबनम आसन पूछती हैं, "हमारी मेहनत को क्यों नज़रअंदाज़ किया जा रहा है?" अब 'पिच आवर फ्यूचर' जैसे फंड्स से उन्हें उम्मीद की किरण दिखी है. मेल जोन्स कहती हैं, "लड़ाई जारी है." जब तक अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं पर पाबंदियां हैं, यह टीम अपनी आवाज़ बुलंद करती रहेगी—एक ऐसी आवाज़ जो सिर्फ़ क्रिकेट नहीं, बल्कि आज़ादी की पुकार है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.