12/04/2025: ईवीएम पर तुलसी की चिंता | पेगासस का दूसरा सबसे बड़ा निशाना भारतीय | शी जिनपिंग के सामने कोविड के बाद सबसे बड़ी परीक्षा | यूरोप ढूंढता आपदा में अवसर | हर साल 300 एसिड अटैक
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां:
तुलसी गबार्ड को ईवीएम से छेड़छाड़ पर ऐसे समझाया भारतीय चुनाव आयोग ने
मणिपुर में फिर से तनाव की चिंगारियां
“बाहरियों” के स्वागत से कश्मीरी पंडित नाखुश
सर्वेलेंस बढ़ेगा दिल्ली में
अंतरधार्मिक अविवाहित जोड़ा साथ रह सकता है
सोना ऑलटाइम हाई, प्रति 10 ग्राम ₹93,887
शादी की साइट, इंस्टा का फोटो, अमेरिका में बसे भारतीय आईटी पेशेवर को लगाया इंदौर की बरखा ने करोड़ों का चूना
छत्तीसगढ़ में दलित युवक को नंगा करके दो बार पीटा
अडाणी की धारावी परियोजना के तहत 50,000 से अधिक लोगों को डंपिंग ग्राउंड में बसाएंगे
ईरानी तेल व्यापार में शामिल होने के आरोप में अमेरिका ने यूएई में बसे एक भारतीय नागरिक और उसकी चार कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए
चीन को संघर्ष के लिए तैयार कर रहे शी जिनपिंग के सामने कोविड के बाद सबसे बड़ी परीक्षा
शी क्यों ज्यादा जिद कर सकते हैं?
टैरिफ के शतरंज में यूरोप की बिसात, आपदा में अवसर की तलाश
वैश्विक बाजार में दिन भर उठापटक चली है
‘माई फेवरेट केक’ के फिल्मकारों को ईरान में सज़ा
पेगासस स्पाइवेयर से निशाना बनाए गए व्हाट्सएप शिकारों की संख्या में भारत दूसरे स्थान पर
‘इंडिया केबल’ के मुताबिक छह साल पहले व्हाट्सएप ने भारत सरकार को बताया था कि 121 भारतीय उपयोगकर्ताओं को इज़राइली स्पाइवेयर पेगासस द्वारा लक्षित किया गया था. अब मालवेयर निर्माता एनएसओ ग्रुप के खिलाफ उसके मुकदमे में प्रस्तुत किए गए नए दस्तावेज कहते हैं कि 100 भारतीय प्रभावित हुए थे. दस्तावेज में पाया गया है कि विश्व स्तर पर पेगासस से प्रभावित लोगों में भारतीय संख्या में दूसरे स्थान पर हैं. व्हाट्सएप हैकिंग पीड़ितों की सबसे अधिक संख्या वाला देश मेक्सिको है, जहां 456 ऐसे लोग हैं.
2021 में, ’द वायर’, समाचार आउटलेट्स के एक अंतरराष्ट्रीय संघ का हिस्सा था, जिसने संभावित लक्ष्यों की लीक हुई सूची की मदद से पेगासस के उपयोग का खुलासा किया था. एनएसओ ग्रुप, जैसा कि इस संघ ने तब रिपोर्ट किया था, कहता है कि वह अपना स्पाइवेयर केवल "जांची गई सरकारों" को प्रदान करता है. 2021 की समाचार जांच के दौरान, कंपनी ने अपने ग्राहकों की सूची सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था.
व्हाट्सएप का मुकदमा अपने उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाने वाले हैकिंग अभियान पर प्रकाश डालता है, जो केवल दो महीने की अवधि में, "अप्रैल 2019 और मई 2019 के आसपास" हुआ था. यह दिखाता है कि सिर्फ दो महीनों में, एनएसओ ग्रुप के जांचे गए सरकारी ग्राहकों ने विश्व स्तर पर एक हजार से अधिक व्हाट्सएप उपयोगकर्ताओं को लक्षित किया. इज़राइली टेक साइट सीटेक, जिसने पहली बार व्हाट्सएप के देश-वार आंकड़ों की रिपोर्ट दी थी, ने यह भी कहा कि सूची में किसी देश का शामिल होना जरूरी नहीं है कि वह एनएसओ का ग्राहक था.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय अभी भी एक विशेषज्ञ समूह से प्राप्त रिपोर्ट पर बैठा है, जो इसे सौंपे जाने के दो साल से अधिक समय बाद भी, अभी तक मोदी सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सका है, जिसने पैनल के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया था.
मध्य वर्ग पर बढ़ता जा रहा है आर्थिक दबाव
भारत का मध्यम वर्ग आगे बढ़ने के लिए तेजी से दौड़ रहा है, लेकिन दरअसल वह अपनी जगह पर ही खड़ा है. किराया बढ़ता जा रहा है, ईंधन के बिल बढ़ते जा रहे हैं, स्कूल की फीस चुपचाप बढ़ती जा रही है और महीने के अंत तक, बचत का वह एक बार भरोसेमंद बफर लगभग गायब हो चुका है.
निवेश बैंकर कनिष्क कर इसे सीधे शब्दों में कहते हैं: "आय महंगाई के साथ बढ़ नहीं पाई है." 2016 से, उपभोक्ता मुद्रास्फीति औसतन लगभग 6% रही है. लेकिन कई व्हाइट-कॉलर नौकरियों के लिए वेतन वृद्धि? केवल 3-4%.
यह दबाव शांत है लेकिन निरंतर है.
"वास्तविक क्रय शक्ति? होस्टल के रसोईघर में मैगी के पैकेट की तरह चुपचाप गायब हो रही है," कर लिंक्डइन पर लिखते हैं - ‘और लाखों मध्यम वर्गीय भारतीयों के लिए, यह एक ऐसा रूपक है जो परिचितता के साथ चुभता है’.
कर का तर्क है कि वित्तीय दबाव सिर्फ अधिक बिलों के बारे में नहीं है. यह प्रयास पर घटते प्रतिफल के बारे में है. "परिणाम? मध्यम वर्ग बिल का भुगतान कर रहा है, लेकिन उसे बहुत कुछ वापस नहीं मिल रहा है."
आकांक्षी सीढ़ी का हर पायदान अब अधिक कीमत पर आता है. "घर खरीदना चाहते हैं? ईएमआई बढ़ गए हैं. घर की कीमतें बढ़ गई हैं. किराया बढ़ गया है. यहां तक कि टियर-2 शहरों में 1बीएचके का किराया भी लोगों की कमर तोड़ रहा है," वे लिखते हैं.
और यह सिर्फ घरों के बारे में नहीं है. "अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में भेजना चाहते हैं? बधाई हो. आप अब 'गतिविधि शुल्क' के लिए अपने पूरे एमबीए से अधिक भुगतान कर रहे हैं."
कर उस वर्ग की भावना को पकड़ते हैं, जो ऐसे सपनों का पीछा कर रहा है, जो लगातार दूर होते जा रहे हैं: "ऊपर की ओर गतिशीलता का सपना अभी भी है - बस एक पे-वॉल के पीछे छिपा हुआ है."
मध्यम वर्गीय भारतीयों को अपने वित्तीय भविष्य का नियंत्रण लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है, थोड़ी सी मदद के साथ.
"भारत के मध्यम वर्ग को जोर से धकेला जा रहा है: अपना बीमा खरीदने के लिए. अपना पैसा निवेश करने के लिए. अपनी सेवानिवृत्ति का प्रबंधन करने के लिए. यह सब बिना उपकरणों, शिक्षा, या इसे अच्छी तरह से करने के लिए समर्थन के." विफलता के परिणाम व्यक्तिगत और दंडात्मक हैं. "कोई सुरक्षा जाल नहीं है. केवल एक रस्सी पर चलना है. एक मेडिकल इमरजेंसी = 5 साल की बचत, समाप्त." कर का पोस्ट आप यहां लिंक्डइन पर भी देख सकते हैं.
तुलसी गबार्ड को ईवीएम से छेड़छाड़ पर ऐसे समझाया भारतीय चुनाव आयोग ने
अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड द्वारा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की हैकिंग संभावना पर चिंता जताने के बाद, भारतीय चुनाव आयोग (ECI) ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि भारत की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (EVM) पूरी तरह सुरक्षित हैं और इनसे छेड़छाड़ संभव नहीं है.
आयोग के सूत्रों ने कहा कि भारतीय ईवीएम "सरल, सही और सटीक कैलकुलेटर" की तरह काम करती हैं. ये अमेरिकी या अन्य देशों के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम से भिन्न हैं, जिनमें इंटरनेट जैसे निजी नेटवर्क का उपयोग हो सकता है. भारतीय ईवीएम पूरी तरह स्टैंड-अलोन हैं और इन्हें इंटरनेट, वाई-फाई या इंफ्रारेड से नहीं जोड़ा जा सकता.
मतदाताओं के विश्वास और संतुष्टि के लिए, भारत में वोट डालते समय वीवीपीएटी पर्ची देखने की व्यवस्था है, जिससे वे अपने वोट का सत्यापन कर सकते हैं. आयोग ने बताया कि अब तक 5 करोड़ से अधिक वीवीपैट पर्चियों का राजनीतिक दलों के सामने सफलतापूर्वक मिलान किया जा चुका है.
इन मशीनों को सुप्रीम कोर्ट की कानूनी मान्यता प्राप्त है, राजनीतिक दल विभिन्न चरणों में इनकी जांच करते हैं और इन्हें हमेशा सुरक्षित स्ट्रांग रूम या अधिकृत व्यक्ति की निगरानी में रखा जाता है. इनसे करोड़ों वोटों की गिनती भी एक दिन से कम समय में पूरी की जा सकती है.
आयोग ने यह भी बताया कि जिन देशों में नेटवर्क वाले सिस्टम हैं, वहां मतदाताओं की संख्या भारत के लगभग 100 करोड़ मतदाताओं के पांचवें हिस्से से भी कम है. यह प्रतिक्रिया गबार्ड, इलोन मस्क और भारत में विपक्षी दलों द्वारा समय-समय पर ईवीएम की सुरक्षा और विश्वसनीयता पर उठाए गए सवालों के संदर्भ में आई है.
मणिपुर में फिर से तनाव की चिंगारियां
'द हिंदू' की खबर है कि जातीय संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर में एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है. इसका कारण है मैतेई समुदाय के एक पारंपरिक पर्व चेइराओबा के तहत थांगजिंग पहाड़ी पर चढ़ाई का आयोजन, जो कुकी बहुल क्षेत्र में आता है. 9 अप्रैल को छह कुकी आदिवासी संगठनों, जिनमें कुकी स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन भी शामिल है, ने मैतेई समुदाय को चेतावनी दी कि वे "बफ़र ज़ोन" को पार न करें. यह ज़ोन इम्फाल घाटी (जहां मैतेई बहुसंख्यक हैं) और पहाड़ी क्षेत्रों (जहां कुकी-जो-हमार जनजातियां रहती हैं) के बीच स्थित है.
इन संगठनों ने एक संयुक्त बयान में कहा - “जब तक भारत सरकार संविधान के तहत कुकी-जो-हमार समुदाय के लिए कोई राजनीतिक समाधान नहीं निकालती, तब तक उनके क्षेत्र में किसी भी तरह की दोस्ताना गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जाएगी.” उन्होंने दोनों समुदायों से आग्रह किया कि वे वर्तमान स्थिति को बनाए रखें और बफ़र ज़ोन का सम्मान करें, ताकि तनाव न बढ़े. बयान में चेतावनी दी गई कि “बफ़र ज़ोन को पार करने की किसी भी कोशिश का हम डटकर विरोध करेंगे.” ज्ञात हो, थांगजिंग या थांगटिंग नामक यह पहाड़ी शृंखला इम्फाल घाटी और चुराचांदपुर ज़िले की सीमा बनाती है. यह पहाड़ी मैतेई समुदाय के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से पवित्र मानी जाती है. जनवरी 2024 में जब वहां एक बड़ा ईसाई क्रॉस स्थापित किया गया, तब यह क्षेत्र चर्चा में आया था. राज्य सरकार के अनुसार यह क्षेत्र "चुराचांदपुर-खौपुम संरक्षित वन" में आता है. कुकी संगठनों की यह चेतावनी ऐसे समय आई है जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और मई 2023 से जारी संघर्ष में अब तक 250 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 60,000 लोग बेघर हुए हैं.
बायजूस वाले को मय पत्नी ढूंढ रहे अमरीकी : 'ब्लूमबर्ग' की रिपोर्ट है कि अमेरिकी ऋणदाताओं ने भारतीय एजुकेशन-टेक कंपनी बायजूस के संस्थापक बायजू रविंद्रन और उनकी पत्नी दिव्या गोकुलनाथ के खिलाफ अमेरिका की एक दिवालियापन अदालत में कानूनी कार्रवाई शुरू की है. विल्मिंगटन, डेलावेयर में दायर इस मुकदमे में दंपति पर व्यक्तिगत रूप से 500 मिलियन डॉलर (लगभग 4,200 करोड़ रुपये) से अधिक की गुम हुई लोन राशि के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया गया है. विवाद का केंद्र एक $1.2 बिलियन (लगभग 10,000 करोड़ रुपये) के ऋण में डिफ़ॉल्ट को लेकर है, जिसे वापस पाने की कोशिशें ऋणदाता वर्षों से कर रहे हैं. बायजूस पर आरोप है कि उसने इस ऋण राशि का एक हिस्सा मायामी स्थित एक हेज फंड को धोखाधड़ीपूर्ण तरीके से ट्रांसफर किया, जिसे अमेरिकी दिवालियापन न्यायाधीश जॉन डोरसी ने फरवरी में अवैध करार दिया था.
“बाहरियों” के स्वागत से कश्मीरी पंडित नाखुश
जिन कश्मीरी पंडितों के लिए बीजेपी बड़ी-बड़ी बातें किया करती थी, वही कश्मीरी पंडित अब उस पर “अपनों पर सितम, गैरों पर करम” का आरोप लगा रहे हैं. उनका कहना है कि पिछले दो वर्षों में 83,000 से अधिक बाहरी (गैर-स्थानीय) लोगों को ‘निवास प्रमाण’ पत्र दिए जाने पर वे घाटी में बहिष्कृत महसूस कर रहे हैं. उनका आरोप है कि सरकार ‘बाहरी’ लोगों का खुले दिल से स्वागत कर रही है, लेकिन उस समुदाय के सदस्यों की अनदेखी कर रही है, जिन्होंने कभी घाटी नहीं छोड़ी. विषम परिस्थितियों में भी. “द टेलीग्राफ” में मुजफ्फर रैना की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू और कश्मीर सरकार ने बुधवार को विधानसभा में बताया कि पिछले दो वर्षों में 83,742 निवास प्रमाण पत्र बाहरी लोगों को दिए गए हैं, जिससे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया है. कभी पलायन नहीं करने वाले पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाली कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) ने अलग कारण से अपनी पीड़ा को साझा किया. समिति ने सरकार की "बिना किसी पुनर्वास न्याय के ढांचे के जनसांख्यिकीय समायोजन की नीति" को खारिज कर दिया है. समिति का कहना है कि उसकी एकमात्र चिंता कभी पलायन न करने वाले पंडितों का उचित पुनर्वास है.
वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के मुसलमान इस नीति को अपने बहुसंख्यक दर्जे पर हमला मानते हैं. केपीएसएस नेता संजय टिक्कू ने एक बयान में कहा कि जम्मू-कश्मीर में हर दिन औसतन 115 निवास प्रमाण पत्र गैर-स्थानीय लोगों को जारी किए जाते हैं. उन्होंने इसे एक ऐसा आंकड़ा बताया जो नजरअंदाज करने के लिए बहुत सटीक और नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया के रूप में खारिज करने के लिए बहुत चिंताजनक है.
उन्होंने कहा, "डेटा को यदि 2019 से ध्यान में रखा जाए तो वास्तविक संख्या काफी अधिक हो सकती है. जबकि सरकार इसे अनुच्छेद 370 के बाद ‘एकीकरण प्रक्रिया’ का हिस्सा बताती है. यह दर्दनाक है, क्योंकि एकीकरण का सिलेक्टिव रूप से उपयोग किया गया है. बाहरी लोगों का खुले दिल से स्वागत करते हुए उन लोगों की दुर्दशा की अनदेखी की गई, जिन्होंने कभी क्षेत्र नहीं छोड़ा.
टिक्कू ने कहा कि सरकार के सुरक्षा और पुनर्वास के वादों पर भरोसा करते हुए 3,445 पंडितों ने हिंसा और अशांति के बीच अपनी मातृभूमि में रहने का निर्णय लिया. लेकिन आज वह भरोसा टूट चुका है. ये परिवार शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों, अत्यधिक गरीबी, बिना नौकरी, सुरक्षा या केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत अन्य लोगों को दी गईं कल्याणकारी सुविधाओं तक पहुंच के बिना रह रहे हैं. उनका यह संकेत उन प्रवासी पंडितों की ओर था, जिन्हें नौकरियों और पुनर्वास योजनाओं के साथ लुभाया जा रहा है.
केंद्र सरकार ने प्रवासी पंडितों को वापस लाने के लिए घाटी के विभिन्न विभागों में 6,000 नौकरियां प्रदान की हैं. उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा, “क्या न्याय की नीति कुछ खास लोगों के लिए है? यदि निवास प्रमाणपत्र सशक्तिकरण और संपत्ति का उपकरण है, तो घाटी में विषम परिस्थितियों में पहले से जीवन बसर कर रहे स्थानीय समुदाय की गरिमा बहाल करने के लिए इसका उपयोग क्यों नहीं किया गया?” पंडितों के नेता ने दावा किया कि सरकार की चुप्पी असहनीय है और उसकी कथित उदासीनता संस्थागत हो चुकी है. “ऐसा लगता है जैसे राज्य ने ‘अपनों पर सितम, गैरों पर करम’ की नीति अपनाई है. हम किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकारों के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन हम नैतिक, भावनात्मक और कानूनी रूप से जिस बात का विरोध करते हैं, वह है- मूल हितधारकों को उस भूमि से सुनियोजित तरीके से बाहर रखना, जिससे वे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं,” टिक्कू ने कहा.
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से कहा, लोगों के मौलिक अधिकारों के बारे में भी सोचिए
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को लोगों के मौलिक अधिकारों के बारे में भी सोचने की नसीहत दी है. दरअसल, ईडी ने “नान” (नागरिक आपूर्ति निगम) घोटाला मामले को छत्तीसगढ़ से नई दिल्ली स्थानांतरित करने के लिए याचिका लगाई थी. इस पर शीर्ष अदालत ने नाराजगी व्यक्त की. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने एजेंसी से पूछा कि उसने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत व्यक्तियों के लिए निर्धारित रिट याचिका कैसे दायर की?
सर्वेलेंस बढ़ेगा दिल्ली में : दिल्ली पुलिस चेहरे की पहचान तकनीक (फेशियल रिकगनिशन टैक्नोलॉजी) का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर बढ़ाने की तैयारी में है. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह स्थानीय प्रयोगों से आगे बढ़कर पूर्ण-स्तरीय, केंद्रीकृत संचालन होगा, जो AI-संचालित निगरानी की ओर एक बड़ा कदम है. फिलहाल, दिल्ली के कम से कम दो जिलों में इजरायली सॉफ्टवेयर वाली वैन सड़कों पर चेहरे स्कैन कर संदिग्धों को चिह्नित कर रही हैं, हालांकि इसका आधार और उद्देश्य स्पष्ट नहीं है.
अंतरधार्मिक अविवाहित जोड़ा साथ रह सकता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है की अविवाहित माता-पिता जो वयस्कता प्राप्त कर चुके हैं, साथ रह सकते हैं. हाईकोर्ट ने पुलिस को इस अंतरधार्मिक जोड़े की सुरक्षा आवश्यकताओं पर ध्यान देने का निर्देश भी दिया है. क्योंकि यह जोड़ा धमकियों का सामना कर रहा है. इस जोड़े की नाबालिग बेटी द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने कहा, "बच्ची के जैविक माता-पिता अलग-अलग धर्मों के हैं और 2018 से साथ रह रहे हैं. " कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि बच्ची वर्तमान में एक वर्ष और चार महीने की है. उसके माता-पिता जैविक माँ के पूर्व ससुराल वालों से कुछ खतरों को लेकर चिंतित हैं. हमारे विचार में, संवैधानिक व्यवस्था के तहत माता-पिता, जो वयस्क हैं, को एक साथ रहने का अधिकार है, भले ही उन्होंने विवाह न किया हो. अपने पति की मृत्यु के बाद बच्ची की जैविक माँ ने बच्चे के जैविक पिता के साथ रहना शुरू कर दिया था.
सोना ऑलटाइम हाई, प्रति 10 ग्राम ₹93,887 : शुक्रवार को सोने की कीमतें प्रति 10 ग्राम ₹93,887 के नए रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गईं. दिन भर उतार-चढ़ाव के साथ सोने का वायदा कारोबार ₹92,463 और ₹93,887 के बीच होता रहा, जबकि पिछले कारोबारी दिन का समापन मूल्य ₹92,033 था.
मनोहर कहानियां
शादी की साइट, इंस्टा का फोटो, अमेरिका में बसे भारतीय आईटी पेशेवर को लगाया इंदौर की बरखा ने करोड़ों का चूना
अमेरिका स्थित उच्च वेतन पाने वाले भारतीय मूल के आईटी पेशेवर को इंदौर की एक युवा महिला और उसके भाई ने शादी के बहाने 2.68 करोड़ रुपये की भारी चपत लगा दी. इंदौर पुलिस के अनुसार, आंध्र प्रदेश के रहने वाले वी. कलागा, जो उत्तरी कैरोलिना की एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं, एक उपयुक्त भारतीय जीवनसाथी की तलाश में थे. उनकी तलाश उन्हें एक प्रमुख मैट्रिमोनियल पोर्टल पर ले गई, जहाँ मार्च 2023 से वे "बरखा" नामक एक महिला से जुड़े, जो खुद भी एक आदर्श जीवनसाथी ढूंढ रही थी. हालांकि, बरखा असल में इंदौर की एक विवाहित महिला सिमरन थी, जिसने अपने भाई विशाल की मदद से इंस्टाग्राम पर एक उभरती मॉडल की तस्वीर चुराकर इस काल्पनिक प्रोफाइल को बनाया था. जब आईटी पेशेवर कलागा धीरे-धीरे "बरखा" (सिमरन) से विवाह को लेकर आश्वस्त हुआ, तो उसने व्हाट्सएप के माध्यम से नियमित संपर्क बनाए रखा. बरखा (सिमरन) ने जब देखा कि कलागा उसके प्रभाव में आ चुका है तो उसने और उसके भाई विशाल ने उससे ऋण चुकाने से लेकर पिता के जीवनरक्षक उपचार तक के नाम पर बार-बार आर्थिक सहायता मांगी. बरखा और उसके भाई विशाल का पर्दाफाश कैसे हुआ, यह “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में अनुराग सिंह की रिपोर्ट में यहां पढ़ सकते हैं.
छत्तीसगढ़ में दलित युवक को नंगा करके दो बार पीटा : छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में 21 वर्षीय दलित युवक को एक नाबालिग लड़की के परिजनों द्वारा नंगा करके पीटा गया. मालखरौदा थाना क्षेत्र के बड़े रवेली गांव में 8 अप्रैल को राहुल अंचल के साथ हुई इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद पुलिस ने पांच लोगों को हिरासत में लिया है. घटना तब हुई जब दाभरा निवासी और अनुसूचित जाति सतनामी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अंचल, ओबीसी की 16 वर्षीय लड़की से मिलने गया था. लड़की के रिश्तेदारों ने उसे अपने घर पर देखा तो उसके कपड़े उतार दिए, रस्सी से बांधा और चप्पल, केबल और पाइप से पीटा. 9 अप्रैल को उसे गांव की सड़कों पर फिर से निर्वस्त्र करके पीटा गया.
एबीवीपी के विरोध पर ऐन वक्त पर वक्ताओं की सूची से हटाया : आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) द्वारा कथित "टुकड़े टुकड़े गैंग से जुड़े सदस्यों की मौजूदगी" के विरोध के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) पुणे ने बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलने के लिए आमंत्रित कई विशेषज्ञों को ऐन वक्त पर वक्ताओं की सूची से हटा दिया. संस्थान ने एक प्रेस बयान में कहा कि दीपाली साल्वे, नाज़िमा परवीन और स्मिता एम पाटिल सहित कई शिक्षाविदों को जाति, अर्थशास्त्र और लैंगिक मुद्दों पर बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था. “द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस के छात्र संगठन ने कहा कि उसको "कट्टर माओवादियों" की मौजूदगी पर आपत्ति है, क्योंकि उनके बयानों से कानून-व्यवस्था की समस्या हो सकती है और वे समाज को धर्म के आधार पर बांटने का प्रयास करेंगे.
बीजेपी-एआईएडीएमके में फिर गठबंधन, नागेंद्रन होंगे अध्यक्ष : भारतीय जनता पार्टी और एआईएडीएमके ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर गठबंधन करने का फैसला किया है. यह गठबंधन एआईएडीएमके प्रमुख ई. पलानिस्वामी के नेतृत्व में होगा. इस बीच, भगवा पार्टी के तमिलनाडु इकाई में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना है. अरुण जनार्दनन ने बताया कि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई (जो अब रेस से बाहर हैं) और पलानिस्वामी दोनों गौंडर समुदाय से हैं, और भाजपा का मानना है कि "जातीय प्रतिनिधित्व संतुलित करना राज्य में अपने वोट बेस को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है. इस लिहाज से अध्यक्ष पद के लिए थेवर समुदाय से आने वाले नैनार नागेंद्रन सबसे प्रबल उम्मीदवार हैं.
हेट स्पीच
सरे राह गाली गलौच चलेगा, लेकिन सोशल मीडिया पर पोस्ट करना गलत!
हिन्दुस्तान की सड़कों पर खुलेआम गाली गलौच सुनाई देना आम सी बात हो गई है, लेकिन आपने इस आम बात को फिल्मा कर अगर अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर डालकर इसके बारे में बात की तो यह आम बात नहीं है, बल्कि पुलिस आपके घर आ सकती है कि हटाओ भई ये समाग्री! यही हुआ है मुंबई में, जब पुलिस शहर की सड़कों पर होने वाली नफरत फैलाने वाली रैलियों को रोकने के बजाय पत्रकार कुनाल पुरोहित की एक पोस्ट को हटाने की बात कर रही है. पुलिस ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) को पत्र लिखकर दावा किया है कि ये वीडियो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का उल्लंघन करते हैं और इन्हें हटाया जाना चाहिए. (वीडियो 1 और 2; वीडियो 3; वीडियो 4; वीडियो 5).
अडाणी की धारावी परियोजना के तहत 50,000 से अधिक लोगों को डंपिंग ग्राउंड में बसाएंगे
'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर है कि महाराष्ट्र सरकार और अडाणी समूह ने मिलकर धारावी पुनर्विकास परियोजना (DRP) से प्रभावित हुए 50,000 से 1 लाख "अयोग्य" निवासियों को मुंबई के देवनार कचरा डंपिंग ग्राउंड में बसाने की योजना पर काम शुरू कर दिया है. यह क्षेत्र एक सक्रिय डंपिंग साइट है, जहां हर घंटे औसतन 6,202 किलोग्राम मीथेन गैस निकलती है. यह भारत के शीर्ष 22 मीथेन हॉटस्पॉट में शामिल है. पर्यावरण मानदंडों के अनुसार, किसी भी आवासीय योजना को लैंडफिल से कम से कम 100 मीटर की दूरी पर होना चाहिए, जबकि यहां प्रस्तावित स्थल के पास ही एक वेस्ट-टू-एनर्जी और बायो-सीएनजी प्लांट है. अभी तक परियोजना के लिए कोई पर्यावरणीय प्रभाव आकलन नहीं हुआ है, जो कि आवश्यक होता है. परियोजना की पारदर्शिता, नियोजन और मानवीय संवेदनाओं पर सवाल उठ रहे हैं.
पर्यावरण मंज़ूरी के बिना काम शुरू करने की योजना: धारावी परियोजना को चलाने वाली कंपनी "नवभारत मेगा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड" (NMDPL) ने अब तक कोई पर्यावरणीय मंज़ूरी नहीं ली है. महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) और स्लम पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) ने स्पष्ट किया है कि अभी तक कोई ईआईए रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है. ग्रीन क्लीयरेंस न मिलने पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) के सदस्य-सचिव अविनाश ढकणे, जो लैंडफिल के अंदर स्थापनाओं को अनुमति देने वाले प्राधिकरण हैं, ने कहा कि “उक्त परियोजना के लिए भूमि आवंटन को मंजूरी देने से पहले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कोई परामर्श नहीं लिया गया.” "सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, यदि किसी भी प्रकार के विकास या बुनियादी ढांचे के कार्य के लिए 20,000 वर्ग मीटर (लगभग 49.4 एकड़) या उससे अधिक क्षेत्र की आवश्यकता होती है, तो उसे शुरू करने से पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य होता है," उन्होंने कहा. फिर भी निर्माण कार्य 2025 की दूसरी छमाही से शुरू करने की बात कही जा रही है. डीआरपी के सीईओ एसवीआर श्रीनिवास ने कहा, "हम निर्माण शुरू करने से पहले पर्यावरणीय मंज़ूरी के लिए आवेदन करेंगे." अडानी समूह ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
ईरानी तेल व्यापार में शामिल होने के आरोप में अमेरिका ने यूएई में बसे एक भारतीय नागरिक और उसकी चार कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए
'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए सुकल्प शर्मा की खबर है कि अमेरिका ने ईरान के तेल व्यापार में कथित संलिप्तता को लेकर यूएई में स्थित एक भारतीय नागरिक और उसकी चार कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए हैं. अमेरिकी वित्त विभाग के विदेशी संपत्ति नियंत्रण कार्यालय (OFAC) के अनुसार, भारतीय नागरिक जुगविंदर सिंह बराड़ कई शिपिंग कंपनियों के मालिक हैं, जिनके पास कुल मिलाकर लगभग 30 जहाज हैं. इनमें से कई जहाज ईरान के "शैडो फ्लीट" (गुप्त बेड़े) का हिस्सा माने जाते हैं. प्रतिबंधित की गई कंपनियों में भारत स्थित ग्लोबल टैंकर्स, बी एंड पी सॉल्यूशंस व यूएई स्थित प्राइम टैंकर्स और ग्लोरी इंटरनेशनल शामिल है. ओएफएसी का दावा है कि इन जहाज़ों ने ईरानी तेल को नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी (NIOC) और ईरानी सेना के लिए ट्रांसपोर्ट किया. बराड़ पर सईद अल-जमाल (हूती विद्रोहियों के ईरानी फाइनेंसर) के "अवैध शिपिंग सहयोगियों" से संपर्क रखने का भी आरोप है. इन जहाज़ों द्वारा तेल को इराक़, ईरान, यूएई और ओमान की खाड़ी में शिप-टू-शिप ट्रांसफर कर दूसरे देशों में भेजा जाता है और कागजात में हेरफेर करके इसकी पहचान छिपाई जाती है. अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने कहा— “ईरानी शासन अपने तेल व्यापार को चलाने के लिए ऐसे धोखेबाज़ शिपिंग नेटवर्क और बिचौलियों पर निर्भर है. हम इस अवैध व्यापार को पूरी तरह से बाधित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”
चीन को संघर्ष के लिए तैयार कर रहे शी जिनपिंग के सामने कोविड के बाद सबसे बड़ी परीक्षा
(आज के इस मारक इलस्ट्रेशन को बनाने वाले का नाम ढूंढते खोजते एक हैंडल पर रैडनोट ब्लॉगर को दिया गया है, तो प्रथदृश्ट्या साभार इस तस्वीर का उन्हीं को जाता है.)
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के लिए डेविड पियर्सन की रिपोर्ट है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच जारी व्यापार युद्ध में अब यह सवाल उठ गया है कि पहले कौन झुकेगा? एक ओर हैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जिन्होंने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बदलने के लिए एक आक्रामक योजना के तहत भारी टैरिफ लगाए, लेकिन लागू होने के कुछ ही घंटों बाद उन्होंने हर देश को इससे राहत दे दी, सिवाय चीन के. दूसरी ओर हैं चीन के शीर्ष नेता शी जिनपिंग, जिनकी जिद के लिए एक सख्त छवि बनी है. उन्होंने कोविड प्रतिबंधों को तब तक लागू रखा जब तक उनका कोई असर नहीं रह गया था. उन्होंने सस्ते निर्यात को लेकर दुनिया की चिंता के बावजूद चीन को इलेक्ट्रिक वाहन और सोलर पैनलों का अग्रणी बनाने के अपने लक्ष्य पर काम जारी रखा. विश्लेषकों का मानना है कि शी शायद समझौते के लिए तैयार हो सकते हैं, बशर्ते अमेरिका चीन को सम्मान के साथ बराबरी पर माने. ट्रम्प ने भी गुरुवार को नरमी दिखाई और कहा -“शी जिनपिंग लंबे समय से मेरे मित्र रहे हैं. देखते हैं आगे क्या होता है. हम समझौता करना चाहेंगे.”
अब, जब शी महामारी के बाद सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं, तो वे फिर से अपनी जानी-पहचानी शैली में डटे हुए हैं. शुक्रवार को उनकी सरकार ने ट्रम्प के जवाब में अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 125% तक बढ़ा दिए भले ही इससे चीन की धीमी होती अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचने का खतरा हो. इससे पहले शी ने इस व्यापारिक तनाव पर पहली सार्वजनिक टिप्पणीकरते हुए कहा - “टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता और दुनिया के खिलाफ जाकर कोई खुद को अलग-थलग ही करता है,”. स्पेन के प्रधानमंत्री वहीं मौजूद थे. शी ने कहा- “70 सालों से ज्यादा वक्त से चीन ने आत्मनिर्भरता और मेहनत पर भरोसा किया है. किसी की दया पर नहीं और किसी भी अन्यायपूर्ण दमन से डरता नहीं.”
शी क्यों ज्यादा जिद कर सकते हैं? शी जिनपिंग चीन के माओ झेडोंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता बन चुके हैं. उन्होंने विरोधियों को हटा दिया है, वफादारों से सरकार भर दी है और असहमति को कुचलने के लिए कड़े सामाजिक नियंत्रण लागू किए हैं. उन्होंने खुद को एक ऐसे राष्ट्रवादी नेता के रूप में प्रस्तुत किया है जो चीन के पुनर्जागरण की दिशा में काम कर रहा है.
“शी ने अपने पूरे राजनीतिक करियर में चीन को इस तरह के समय के लिए तैयार किया है,” अमेरिका की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में चीन की राजनीति के विशेषज्ञ जोसेफ टोरीगियन कहते हैं. “उन्हें विश्वास है कि चीन की राजनीतिक व्यवस्था अमेरिका से बेहतर है क्योंकि उसमें अनुशासन और एकता ज्यादा है." शी को लंबी रणनीति अपनाने की सुविधा है. उन्हें चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता - उन्होंने 2018 में राष्ट्रपति की अवधि सीमा खत्म कर दी थी. वहीं ट्रम्प को 2029 में पद छोड़ना होगा, भले ही उन्होंने तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की बात छेड़ी हो.
प्रचार और लोगों की सहनशीलता चीन का सरकारी मीडिया जनता को लंबे संघर्ष के लिए तैयार कर रहा है. पीपल्स डेली ने अमेरिका की तुलना डाकुओं से की है और चीनी राजनयिकों को "लोहे की सेना" की तरह संगठित बताया है. चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने सोशल मीडिया पर माओ झेडोंग का कोरियाई युद्ध के समय दिया गया भाषण पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने कहा था - “चाहे यह युद्ध कितनी भी देर चले, हम कभी हार नहीं मानेंगे.” एक चुनौती हालांकि चीनी जनता के विद्रोह की भी है. कोविड के दौरान सख्त लॉकडाउन के कारण 2022 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. इससे कई अमीर और पेशेवर चीनी देश छोड़ कर चले गए. "आर्थिक झटके बहुत खतरनाक हो सकते हैं क्योंकि आप कभी नहीं जानते कि वे कितना बड़ा रूप ले सकते हैं," टोरीगियन ने कहा.
टैरिफ के शतरंज में यूरोप की बिसात, आपदा में अवसर की तलाश
डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका वैश्विक व्यापार प्रणाली को अपने तरीके से ढालने में जुटा है. टैरिफ के ज़रिए वे मौजूदा व्यवस्था को तोड़कर नए सिरे से निर्माण करना चाहते हैं. लेकिन न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक यूरोपीय संघ (ईयू) इस बदलाव के बीच खुद को अगली वैश्विक व्यवस्था का केंद्र बनाने के लिए सक्रिय है.
विश्व की सबसे बड़ी और खुली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार ईयू के लिए यह चुनौती अहम है. उसके उद्योग—कार, फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी—निर्यात पर निर्भर हैं, तो उपभोक्ता अमेरिकी टेक और ऊर्जा पर. इन्हीं हितों की रक्षा के लिए ईयू आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेर लाइन वैश्विक नेताओं से लगातार वार्ता कर रही हैं. उनका लक्ष्य स्पष्ट है: अमेरिका पर निर्भरता घटाकर ईयू को मज़बूत बनाना.
नए गठजोड़ की तलाश : ईयू ने अमेरिका के साथ समझौते की कोशिशें तेज़ की हैं. व्यापार आयुक्त मारोस सेफकोविच ने कहा, "अमेरिका वैश्विक व्यापार का 13% है. हमें बाकी 87% की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है." इसी कड़ी में ईयू कारों पर टैरिफ कम करने और अमेरिकी प्राकृतिक गैस खरीद बढ़ाने जैसे प्रस्ताव रख रहा है. साथ ही, वह मेक्सिको, भारत, दक्षिण कोरिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ नए व्यापार समझौतों पर काम कर रहा है.
चीन की चुनौती : ईयू और अमेरिका इस बात पर सहमत हैं कि चीन सब्सिडी देकर सस्ता माल विदेशों में डंप करता है, जिससे स्थानीय उद्योगों को नुकसान होता है. ट्रंप-चीन व्यापार युद्ध के बीच ईयू को डर है कि चीन अपना सस्ता धातु और रसायन यूरोप में भेजेगा. इसलिए, उसने "आयात निगरानी टीम" बनाई है. लाइन ने चीन से अमेरिका के साथ बातचीत करने और संतुलित व्यापार समाधान खोजने का आग्रह किया है.
अमेरिकी दबाव का सामना : यूरोप की रणनीति पर ट्रंप नाराज़ हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर धमकी दी कि यदि ईयू और कनाडा अमेरिका को नुकसान पहुंचाएंगे, तो उन पर "बड़े टैरिफ" लगेंगे. फिर भी, ईयू वार्ता जारी रखे हुए है. हालांकि, यूरोप को अमेरिकी सैन्य सहयोग (खासकर यूक्रेन और नाटो में) की ज़रूरत भी स्वीकार है. लाइन का कहना है, "संकट को अवसर में बदलना होगा." ईयू मान चुका है कि वैश्विक नियम बदल रहे हैं, और वह चाहता है कि इस बदलाव में उसकी भूमिका अहम रहे. सफलता अनिश्चित है, लेकिन यूरोप की कोशिशें दर्शाती हैं कि वह नए युग के लिए तैयार होने को प्रतिबद्ध है.
वैश्विक बाजार में दिन भर उठापटक चली है
चीन ने अमेरिकी नीतियों को "मज़ाक" बताते हुए टैरिफ 125% किया
चीन ने शुक्रवार को अमेरिकी वस्तुओं पर आयात शुल्क 84% से बढ़ाकर 125% कर दिया, जो राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा हाल ही में लगाए गए 145% के शुल्क का जवाब है. चीन ने अमेरिकी नीतियों को "मज़ाक" बताते हुए यह प्रतिक्रिया दी है.
इस तीव्र व्यापार युद्ध से अमेरिकी सरकारी बॉन्ड्स पर प्रतिफल में तेज़ वृद्धि हुई है, जो पिछले सप्ताह के 4% से बढ़कर अब 4.5% तक पहुंच गया है. यह संकेत है कि विश्व का अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विश्वास डगमगा रहा है. इसी बीच, जर्मन सरकारी बॉन्ड्स पर प्रतिफल गिरकर 2.54% पर आ गया है, जो निवेशकों के सुरक्षित निवेश की ओर बढ़ने का संकेत देता है.
शेयर बाज़ार में, एस&पी 500 सूचकांक दिन भर उतार-चढ़ाव के बाद अंततः सकारात्मक क्षेत्र में समाप्त हुआ. मुद्रा बाज़ारों में डॉलर की कीमत में गिरावट देखी गई. एशियाई बाज़ारों के बंद होने के बाद चीन का जवाब आया था.
जेपीमॉर्गन चेस के सीईओ जेमी डाइमन ने कहा, "अर्थव्यवस्था काफ़ी उथल-पुथल का सामना कर रही है." मिशिगन विश्वविद्यालय के नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिकी उपभोक्ताओं का आर्थिक विश्वास अप्रैल में फिर से गिर गया है. उपभोक्ता अगले वर्ष मुद्रास्फीति के 6.7% तक बढ़ने की उम्मीद करते हैं, जो 1981 के बाद का सर्वाधिक स्तर है.
बाज़ार की अस्थिरता के बावजूद, राष्ट्रपति ट्रम्प ने दावा किया कि उनका प्रशासन "टैरिफ नीति पर बहुत अच्छा काम कर रहा है." साथ ही, वियतनाम चीन के साथ कुछ व्यापारिक गतिविधियों पर कड़ी कार्रवाई की योजना बना रहा है.
सीमा शुल्क अधिकारियों ने बताया कि आयातकों को कुछ वस्तुओं पर शुल्क जमा करने में तकनीकी समस्याएं आ रही हैं, जिससे कम शुल्क दरों का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
टिप्पणी
एन एपलबॉम | यह है तानाशाही विफल होने का कारण
शक्तियों का विभाजन करने के पीछे संविधान के निर्माताओं के पास खास वजह थी.

(‘ट्वाइलाइट ऑफ डेमोक्रेसी’, ‘ऑटोक्रेसी आईएनसी’ की लेखक और ‘द एटलांटिक’ की सीनियर एडिटर एन एपलबॉम ने वाशिंगटन डीसी में तेज़ी से बदलते घटनाक्रम को देखते हुए यह लिखा है. लेखअमेरिका और डोनल्ड ट्रम्प को केंद्र में रख कर है, पर दुनिया के दूसरे कमज़ोर पड़ते लोकतंत्रों पर भी लागू होता है. यहां इस लेख के कुछ जरूरी हिस्से.)
वह पीछे हटे. लेकिन हम दरअसल नहीं जानते किन वजहों से.
चाहे वह शेयर बाज़ार का तेज़ी से गिरना हो, अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड से निवेशकों का भागना हो, रिपब्लिकन दानदाताओं का व्हाइट हाउस के फोन जाम करना हो, या फिर अपने खुद के पोर्टफोलियो के लिए डर हो, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कल दोपहर अपने अधिकांश मनमाने टैरिफ़ों को अस्थायी रूप से हटाने का फैसला किया. यह उनका व्यक्तिगत निर्णय था. जैसा कि उन्होंने कहा, उनकी 'सहज प्रवृत्ति'. उनकी सनक. और उनका निर्णय, सहज प्रवृत्ति, या सनक इन टैरिफ़ों को फिर से वापस ला सकती है.
कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले रिपब्लिकन ने, इस या लगभग किसी भी अन्य मामले में, उन्हें रोकने या नियंत्रित करने के लिए विधायी शाखा की शक्ति का उपयोग करने से इनकार कर दिया है. कैबिनेट चापलूसों और वफादारों से भरी है जो परस्पर विरोधी नीतियों का बचाव करने को तैयार हैं, भले ही ऐसा करने से वे मूर्ख दिखें. अदालतों ने भी अभी तक निर्णायक रूप से हस्तक्षेप नहीं किया है. जाहिर तौर पर, एक अकेले आदमी को विश्व अर्थव्यवस्था को नष्ट करने, वित्तीय बाजारों को बर्बाद करने, इस देश और अन्य देशों को मंदी में धकेलने से रोकने के लिए कोई भी तैयार नहीं है, अगर कल सुबह उठकर उसका मन यही करने का करता है.
मनमानी से भरी ताकत ऐसी ही दिखती है. और यही कारण है कि संविधान लिखने वाले लोग कभी नहीं चाहते थे कि यह किसी के पास हो. फिलाडेल्फिया के उस मशहूर गर्म, घुटन भरे कमरे में, गोपनीयता के लिए खिड़कियां बंद करके, उन्होंने पसीना बहाया और इस पर बहस की कि अमेरिकी कार्यपालिका की शक्तियों को कैसे सीमित किया जाए. वे सरकार की विभिन्न शाखाओं के बीच शक्ति विभाजित करने के विचार पर पहुँचे. जैसा कि जेम्स मैडिसन ने "फेडरलिस्ट नंबर 47" में लिखा था: "सभी शक्तियों, विधायी, कार्यकारी और न्यायिक, का एक ही हाथों में जमा होना ... न्यायोचित रूप से अत्याचार की सही परिभाषा कहा जा सकता है."
दो शताब्दियों से अधिक समय बाद, उस पहली संवैधानिक कांग्रेस द्वारा बनाई गई व्यवस्था पूरी तरह से विफल हो गई है. जो लोग और संस्थाएं कार्यकारी शक्ति पर अंकुश लगाने वाले हैं, वे इस राष्ट्रपति को नियंत्रित करने से इनकार कर रहे हैं. अब हमारे पास एक वास्तविक तानाशाह (डी फैक्टो टायरेंट) है जो सोचता है कि वह किसी भी तथ्य या किसी भी सबूत पर विचार किए बिना, और किसी भी विपरीत विचार को सुने बिना, वास्तविकता को अपनी इच्छा के अनुसार मोड़ सकता है. और यद्यपि उनके द्वारा पहुँचाया गया आर्थिक नुकसान मापना आसान है, उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान, नागरिक स्वतंत्रता, स्वास्थ्य सेवा और सिविल सेवा को भी उसी स्तर का नुकसान पहुँचाया है.
इस व्यर्थ और विनाशकारी घटना से, एक उपयोगी सबक सीखा जा सकता है. हाल के वर्षों में, लोकतंत्रों में रहने वाले कई लोग अपनी राजनीतिक व्यवस्थाओं से, अंतहीन खींचतान से, समझौता करने की कठिनाई से, निर्णयों की धीमी गति से निराश हो गए हैं. ठीक वैसे ही जैसे 20वीं सदी के पहले भाग में हुआ था, संभावित तानाशाह यह तर्क देने लगे हैं कि हम सब इन संस्थाओं के बिना बेहतर रहेंगे. मुसोलिनी ने कहा था, "सच्चाई यह है कि लोग स्वतंत्रता से थक चुके हैं." लेनिन ने तथाकथित बुर्जुआ लोकतंत्र की विफलताओं के बारे में तिरस्कार से बात की. संयुक्त राज्य अमेरिका में, तकनीकी-सत्तावादी विचारकों का एक बिल्कुल नया समूह हमारी राजनीतिक व्यवस्था को अक्षम पाता है और इसे एक "राष्ट्रीय सीईओ" से बदलना चाहता है, जो एक अलग नाम वाला तानाशाह है.
एपलबॉम लिखती हैं, ‘लेकिन पिछले 48 घंटों में, डोनाल्ड ट्रम्प ने हमें इस बात का सटीक प्रदर्शन दिया है कि विधायिकाएं क्यों आवश्यक हैं, नियंत्रण और संतुलन क्यों उपयोगी हैं, और क्यों अधिकांश एक-व्यक्ति तानाशाही गरीब और भ्रष्ट हो जाती हैं. यदि रिपब्लिकन पार्टी कांग्रेस को उस भूमिका में वापस नहीं लाती है जिसके लिए वह बनी है और अदालतें राष्ट्रपति को नियंत्रित नहीं करती हैं, तो विनाश का यह चक्र जारी रहेगा और ग्रह पर हर किसी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.’
आरटीआई कानून को बचाने 130 से ज्यादा सांसदों ने लिखा पत्र : इंडिया गठबंधन के 130 से अधिक सांसदों ने केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) अधिनियम की धारा 44(3) को रद्द करने की मांग की है, क्योंकि उनका कहना है कि यह संशोधन सूचना का अधिकार (RTI) कानून को गंभीर रूप से कमजोर करता है. सांसदों ने उम्मीद जताई है कि सरकार इस मसले पर आवश्यक कदम उठाएगी ताकि जनता का जानकारी पाने का अधिकार खत्म न हो. आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भरद्वाज ने सांसदो का पत्र एक्स पर शेयर किया है.
खतरा अभी टला नहीं है, अनिश्चितता बरकरार : अरविंद सुब्रमणियन
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने 'द वायर' के लिए करन थापर से बातचीत में कहा कि ट्रम्प के टैरिफ़ भले ही रुके हों, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है, अनिश्चितता बनी हुई है और भारत पर इसका प्रभाव अनुमान से कहीं अधिक हो सकता है. तेजी से बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर एक प्रभावशाली विश्लेषण में, ट्रम्प द्वारा टैरिफ़ पर अचानक 90 दिनों की रोक और चीन-अमेरिका के बीच बढ़ती जवाबी कार्रवाई व व्यापार युद्ध के बीच, भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन ने कहा कि टैरिफ़ पर फिलहाल रोक लगाई गई है "लेकिन खतरा खत्म नहीं हुआ है" और उन्होंने जोड़ा कि "अनिश्चितता अभी भी बनी हुई है".
महिला अपराध
भारत में हर साल 300 लड़कियां बन रहीं एसिड अटैक का शिकार
आमिर बिन रफी और मानसी राठी की रिपोर्ट है कि भारत में एसिड बिक्री के नियमन के बावजूद हर साल लगभग 300 एसिड हमले होते हैं. 'आर्टिकल 14' के लिए उन्होंने चार एसिड हमला पीड़ितों से बात की, जिनकी आयु हमले के समय 15 से 26 वर्ष के बीच थी. ये औसतन 10 वर्षों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिनमें से एक 16 वर्षों से. वे अनगिनत सुनवाइयों में शामिल हुए हैं, क्योंकि कानूनी कार्यवाही लंबी देरी, भ्रष्टाचार, अक्षमता और उनकी दुर्दशा के प्रति संवेदनशीलता की कमी से ग्रस्त है.
"मेरे चेहरे को बर्बाद करने के तीन साल बाद, मेरा चाचा एक लाठी लेकर सीधे मेरे घर में घुस आया, मुझे तब तक पीटा जब तक मेरी हड्डियां नहीं टूट गईं, और मुझे गला घोंटने की कोशिश की," 24 वर्षीय रीमा ने कहा, जिन्होंने केवल अपने पहले नाम से पहचाने जाने का अनुरोध किया. "सब मुझे चुप कराने के लिए. सब इसलिए क्योंकि पहली बार किसी ने उसे गिरफ्तार करने की परवाह नहीं की." रीमा का दावा है कि 9 अक्टूबर 2020 को हुए इस हमले में उनके चाचा, जो जमानत पर बाहर था और उनके विस्तारित परिवार के अन्य लोगों ने दूसरी बार उन पर हमला किया था. पहली बार, 2018 में, उनके चाचा ने उन पर एसिड फेंका था. "मैं सिर्फ 18 साल की थी जब एसिड मेरे चेहरे पर पड़ा, लेकिन जो मेरे दिल को तोड़ता है वह सिर्फ मेरे निशान नहीं हैं. यह है कि व्यवस्था ने मेरे हमलावर को इतना लंबा समय आजाद छोड़ दिया कि वह फिर से मेरे पास आ सका." रीमा ने कहा. रीमा ने कहा "यहां तक कि पुलिस अधिकारियों ने भी मुझ पर अपना केस वापस लेने का दबाव डाला." इस मामले में बिहार में लगभग 20 सुनवाइयां हुईं, इससे पहले कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2022 में दिल्ली के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित कर दिया. तब से 2024 में इसकी पांच सुनवाइयां हो चुकी हैं. अब यह दिल्ली की साकेत अदालत में सुनवाई के लिए है.
फिर भी इतनी देरी क्यों?
देरी के कारणों में अपराध की रिपोर्टिंग में देरी, पीड़ितों के अस्पताल में भर्ती होने के कारण चार्जशीट दाखिल करने में देरी, धीमी जांच, गवाहों की अनुपलब्धता, राजनीतिक प्रभाव, भ्रष्टाचार और अदालतों में मामलों का बैकलॉग शामिल है. अपराधियों में रिश्तेदार, चार में से दो मामले परिवार की संपत्ति विवादों से जुड़े थे.
एसिड की बिक्री को नियंत्रित करने के कानूनों के बावजूद, एसिड हमले निरंतर जारी हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2016 में 283 मामलों से यह संख्या 2017 में 309, 2018 में 297 और 2019 में 300 हो गई. जबकि महामारी के वर्षों 2020 और 2021 (क्रमशः 142 और 155) के दौरान मामले कम हुए, 2022 में वे फिर से बढ़कर 296 हो गए, जो अपराध की लगातार प्रकृति को दर्शाता है.
यूके स्थित चैरिटी एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के आंकड़ों के आधार पर, विधिक कुमार द्वारा प्रकाशित 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, एक वर्ष में रिपोर्ट किए गए एसिड हमले के 90% मामले अगले वर्ष तक मुकदमे तक नहीं पहुंचते हैं और अदालतों द्वारा निपटाने में औसतन पांच से 10 साल लगते हैं. जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित 2024 के 'भारत में विट्रियोलेज का स्पेक्ट्रम: एक पूर्वव्यापी डेटा रिकॉर्ड-आधारित अध्ययन' के अनुसार, मुकदमे के लिए मामलों की बढ़ती संख्या के बावजूद, अदालतों द्वारा निपटाए गए मामलों की संख्या कम रहती है, 2021 में केवल 15 मामले हल हुए.
अध्ययन से पता चला है कि दोषसिद्धि दर 2020 में 71.4% से काफी गिरकर 2021 में 20% हो गई - पूरे किए गए 15 मामलों में से केवल तीन ही दोष सिद्धि की ओर ले गए - जबकि 2020 में 14 में से 10 मामलों में दोष सिद्धि हुई थी.
अध्ययन में यह भी पाया गया कि महिलाओं के खिलाफ एसिड हमले के मामलों में लंबितता प्रतिशत में भी वृद्धि देखी गई है, 2017 में 88.6% - वर्ष के अंत में 359 मुकदमा मामलों में से 318 मामले लंबित थे - से बढ़कर 2021 में 97.5% - 600 मामलों में से 585 लंबित थे - जो न्यायिक प्रक्रिया में बैकलॉग को उजागर करता है.
2017 से 2021 तक प्रत्येक वर्ष के अंत में लंबित मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई. साल 2017 में 318, 2018 में 390, 2019 में 394, 2020 में 503 और साल 2021 में 585 मामले.
चलते-चलते
‘माई फेवरेट केक’ के फिल्मकारों को ईरान में सज़ा
तेहरान की एक अदालत ने दो ईरानी फिल्म निर्देशकों, मरयम मोगाद्दम और बेहताश सनाईहा को उनकी फिल्म ‘माई फेवरेट केक’ के लिए निलंबित जेल की सजा सुनाई. यह फिल्म, जिसने यूरोप - अमेरिका में सम्मान जीता, तेहरान की एक महिला के 'निषिद्ध' रोमांस और उसके हिजाब-रहित जीवन को दिखाती है. ईरान में, यह सब 'कानून तोड़ने' जैसा था.
न्यायाधीश ने उन पर "जनता को भ्रमित करने" और "अश्लील सामग्री बनाने" के आरोप लगाए. 14 महीने की सजा और जुर्माना... पर पाँच साल के लिए टाल दिया गया. फिल्म की शूटिंग का सारा सामान जब्त कर लिया गया. मरयम ने कहा था, "हमने उन चीज़ों की कहानी दिखाई जो घर में होती हैं — गाना, नाचना, बिना हिजाब के रहना. पर यहाँ तो घर की आज़ादी भी अपराध है."
पिछले साल, बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को प्रदर्शित होना था, लेकिन निर्देशकों का पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. यूरोप में रिलीज़ के दौरान भी वे प्रचार न कर सकें. अब कान्स फिल्म फेस्टिवल ने ऐलान किया है कि एक और प्रतिबंधित निर्देशक जाफर पनाही की फिल्म 2025 में दिखाई जाएगी. यह ईरानी कलाकारों के संघर्ष का नया अध्याय है. इसी साल, मोहम्मद रसूलोफ की फिल्म ‘द सीड ऑफ द सेक्रेड फिग’ ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दिखाया, तो उन्हें और अभिनेताओं को देश छोड़ना पड़ा. जो रुके, उन पर मुकदमे चल रहे हैं. "यहाँ कला डरती है," न्यूयॉर्क के एक मानवाधिकार संगठन ने कहा, "पर दुनिया देख रही है." मरयम और बेहताश की कहानी सिर्फ एक फिल्म की नहीं — उन लाखों आवाज़ों की है, जो ईरान की सख़्त सेंसरशिप के खिलाफ सिनेमा के परदे पर जीवित हैं.
पाठकों से अपील
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