12/06/2025: सरेंडर से तुक मिलाती कांग्रेस | अडानी अब चीन के रास्ते | वन नेशन वन टैंपरेचर | बीएसएफ की रेलगाड़ी | न्यूयॉर्क में हिंदी में चुनाव प्रचार | कबीर को कैसे सुनते हैं आप?
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
अमेरिका में कानूनी चुनौतियों में उलझे अडानी अब चीन के रास्ते
कांग्रेस ने सरेन्डर की तुक मिलाई है मोदी सरकार से
बीएसएफ जवानों को गंदी और टूटी-फूटी ट्रेन, भड़के लोग
जम्मू-कश्मीर केंद्र के अधीन, पर गोवंश का वध अपराध नहीं
क्या राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनावों में ईसीआई की "मैच‑फिक्सिंग" की बात सही कही थी?
अब मस्क पछता रहा है ट्रम्प को बुरा भला कहने पर
चीन पर अमरीका लगाएगा 55% टैरिफ, अमेरिका-चीन व्यापार समझौते को मिली मंज़ूरी
वन नेशन, वन टेंपरेचर | खट्टर को आया एसी के तापमान को 'सेट' करने का आइडिया
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई का ऑक्सफोर्ड यूनियन में संबोधन: "संविधान यह दिखावा नहीं करता कि सब बराबर हैं"
"अब हर कोई बोलने से डर गया है" - ग्रेट निकोबार परियोजना पर बोले पक्षी विज्ञानी असद रहमानी
न्यूयार्क मेयर चुनाव के लिए मीरा नायर के बेटे का हिंदुस्तानी में चुनाव प्रचार
अमेरिका में कानूनी चुनौतियों में उलझे अडानी अब चीन के रास्ते
भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी पिछले हफ्ते चीन गए थे, जहां उन्होंने औद्योगिक उपकरण निर्माताओं से मुलाकात की. यह नवंबर में अमेरिका द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक और दीवानी मामले दर्ज किए जाने के बाद उनकी पहली विदेशी यात्रा मानी जा रही है.
इस दौरे में उन्होंने एक सौर मॉड्यूल निर्माता कंपनी का भी दौरा किया, जो यह दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच के बीच भी अडानी नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अपनी गति बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. इस यात्रा में उनके भतीजे सागर अडानी, जो समूह के हरित ऊर्जा कारोबार की देखरेख करते हैं, भी उनके साथ थे. इसकी पुष्टि चीन की एक कंपनी द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट में की गई.
चीन की यह यात्रा अडानी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से सक्रिय होने का संकेत हो सकती है, क्योंकि वे अमेरिका में कानूनी चुनौतियों और कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर निवेशकों की चिंताओं जैसे विवादों से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. खासकर, 2023 की शुरुआत में एक शॉर्ट-सेलर रिपोर्ट के बाद यह और भी महत्वपूर्ण है.
“ब्लूमबर्ग” की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के सोलर मॉड्यूल्स के लिए भारत सबसे बड़े बाजारों में से एक है और अडानी की यात्रा दोनों देशों के बीच बेहतर व्यापारिक संबंधों की संभावना का संकेत भी हो सकती है.
कांग्रेस ने सरेन्डर की तुक मिलाई है मोदी सरकार से
'नरेंद्र ने अडानी और चीन के आगे समर्पण कर दिया': कांग्रेस ने पीएम पर नया हमला बोला
कांग्रेस नेता डॉ. अजय कुमार ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा- “गौतम अडानी और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने 'शोले' फिल्म की जय-वीरू की जोड़ी को भी पीछे छोड़ दिया है.” उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी की राजनयिक यात्राओं और अडानी समूह को मिले अंतरराष्ट्रीय ठेकों के बीच एक स्पष्ट मेल दिखाई देता है. “मोदी जहां भी जाते हैं, अडानी को वहीं का ठेका मिल जाता है. बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली, कोयला खनन और हथियारों तक – हर क्षेत्र में अडानी को मोदी की विदेश नीति से लाभ मिला है.”
कुमार ने कहा कि मोदी ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आगे भी समर्पण कर दिया था - “यह ‘नरेंद्र का सरेंडर’ कई वर्षों के अभ्यास के बाद हुआ है. ट्रम्प के इशारे पर मोदी ने 'जी हज़ूर' कह कर उनकी बात मान ली.” कांग्रेस ने दावा किया कि मोदी ने 2020 में चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ पर "क्लीन चिट" देकर देश की सुरक्षा से समझौता किया. “चीन ने खुद कहा है कि वह पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा में उसके साथ खड़ा रहेगा. चीन पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर से ज़्यादा के हथियार दे चुका है.”
अजय कुमार ने कहा कि पिछले एक दशक में अडानी समूह की विदेशों में हुई वृद्धि को मोदी सरकार की विदेश नीति का परिणाम बताया जा सकता है. “प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देशों और अन्य राष्ट्रों के साथ भारत के संबंधों को अडानी के व्यावसायिक हितों के लिए दांव पर लगा दिया है.” बता दें कि 3 जून को भोपाल में राहुल गांधी ने भी कहा था - “ट्रम्प ने फोन करके कहा, 'नरेंद्र, सरेंडर', और मोदी जी ने आदेश मान लिया.”
बीएसएफ जवानों को गंदी और टूटी-फूटी ट्रेन, भड़के लोग
पहलगाम आतंकी हमले के बाद अमरनाथ यात्रा के लिए “विशेष इंतज़ाम” के सरकारी दावों की हक़ीक़त उस वक्त सबके सामने आ गई, जब सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने जवानों के लिए “गंदी और जर्जर” ट्रेन भेजने के लिए भारतीय रेलवे के साथ कड़ा विरोध दर्ज कराया. दरअसल, जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा ड्यूटी के लिए पूर्वोत्तर से 1,200 से अधिक जवानों को जाना था. रेलवे ने जो विशेष ट्रेन भेजी, उसके खिड़की-दरवाजे टूटे हुए थे, टॉयलेट खराब थे, लाइट नहीं थी, सीटों की हालत बुरी थी, फर्श पर कॉकरोच दिखाई पड़ रहे थे. बहरहाल, जवानों ने जाने से इनकार कर दिया. इसके बाद, बीएसएफ अधिकारियों ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाया, जिससे भारतीय रेलवे ने बेहतर स्थिति में एक दूसरी ट्रेन भेजी.
“द टेलीग्राफ” के अनुसार, एक कमांडेंट-स्तरीय अधिकारी ने नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे द्वारा विशेष ट्रेन आवंटित करने में हुई देरी को "अक्षम्य" बताया, यह कहते हुए कि जिन जवानों को 12 जून तक जम्मू-कश्मीर में रिपोर्ट करना था, वे मंगलवार शाम को अपनी यात्रा शुरू कर सके. हालांकि, इस बारे में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से पूछा गया तो उन्होंने सवाल पूरा होने से पहले ही जवाब देना शुरू कर दिया और कहा, “उस ट्रेन के रैक रेक को कल ही बदल दिया गया था और जो चार अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार थे, उन्हें भी निलंबित कर दिया गया है.”
इधर, सोशल मीडिया पर कोचों की हालत दिखाने वाला एक वीडियो वायरल होने के बाद यह मामला राष्ट्रीय मुद्दा बन गया. यह घटना सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” पर तेजी से फैल गई, जहां पत्रकारों और नागरिकों ने इसे सरकार की अग्रिम पंक्ति के बलों के प्रति सतत उदासीनता बताया.
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने पोस्ट किया, “सवाल: हम अपने बहादुर जवानों के साथ बेहतर व्यवहार कब करेंगे??? हम चैन से सोते हैं क्योंकि वे दिन-रात हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं! जागो इंडिया!”
तृणमूल कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद सागरिका घोष ने भी मोदी सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए 2019 के पुलवामा हमले का हवाला दिया
"यह @narendramodi सरकार की असीम और 'हिमालयी अक्षमता' थी, जिसके कारण सीआरपीएफ जवानों को बस से यात्रा करने के लिए मजबूर किया गया (जबकि उन्हें हवाई यात्रा कराई जानी चाहिए थी), जिससे वे 2019 के पुलवामा आतंकवादी हमले के शिकार बने. अब उसी 'हिमालयी अक्षमता' के कारण मोदी सरकार ने बीएसएफ जवानों को गंदी और टूटी हुई ट्रेन दी है.”
“यह ट्रेन नहीं, अपमान है”
“नेट बिरादरी” ने सवाल उठाया कि आईपीएल खिलाड़ियों के लिए शानदार इंतज़ाम किए जाते हैं, जबकि जवानों को गंदगी में सफर करना पड़ता है. पिछले महीने ही, जब धर्मशाला में पंजाब किंग्स और दिल्ली कैपिटल्स के बीच आईपीएल 2025 का मैच बारिश के कारण प्रभावित हुआ था, तब रेल मंत्रालय ने खिलाड़ियों, कमेंटेटर्स और क्रू को दिल्ली ले जाने के लिए विशेष वंदे भारत ट्रेन की व्यवस्था की थी. आईपीएल ने उनकी यात्रा का प्रमोशनल वीडियो भी साझा किया था.
एक यूज़र ने “एक्स” पर लिखा: “हमारे सैनिकों के लिए वंदे भारत ट्रेन क्यों नहीं! यह ट्रेन नहीं, यह हमारे सैनिकों का अपमान है. राजनेता सेना की वर्दी पहनते हैं, तस्वीरें खिंचवाते हैं और होर्डिंग्स लगाते हैं! लेकिन, बहादुर जवानों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं... यह तो पाखंड की पराकाष्ठा है!”
एक अन्य ने पोस्ट किया, “बधाई हो! भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, रक्षा बजट $80 बिलियन है. फिर भी, सैनिकों को ठीक से ट्रेन में सफर करने के लिए भी विरोध करना पड़ता है.”
इस बीच बीएसएफ ने सफाई देते हुए कहा कि जवानों ने चिंता जरूर जताई थी, लेकिन कोई अनुशासनहीनता या हंगामा नहीं हुआ. लेकिन, यह घटना सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बनी हुई है, जो लगातार आंतरिक सुरक्षा में बीएसएफ की अहम भूमिका की सराहना करती रही है. कुछ हफ्ते पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “मैं वायुसेना, नौसेना, सेना और बीएसएफ के हर व्यक्ति को सलाम करता हूं. उनकी बहादुरी, हमारी संप्रभुता की ढाल है.”
जम्मू-कश्मीर केंद्र के अधीन, पर गोवंश का वध अपराध नहीं
कश्मीरी पंडित घाटी में बीफ सेवन के खिलाफ आवाज़ उठाकर गोवंश के वध को अपराध मानने वाले एक ऐसे कानून की ओर इशारा कर रहे हैं, जिसे रद्द किया जा चुका है. दिलचस्प यह है कि केंद्रशासित प्रदेश होने के नाते राज्य अब भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार के अधीन है.
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के संजय टिकू ने कहा कि बीफ व्यापार के बारे में चुप्पी सही मायनों में परेशान करने वाली है. पिछले 35 वर्षों में बीफ की दुकानें अनियंत्रित रूप से फैली हैं. इन दुकानों पर मृत जानवरों के शव खुलेआम प्रदर्शित किए जाते हैं, जो न केवल स्थानीय हिंदुओं, बल्कि उन भारतीय हिंदू पर्यटकों को भी असहज बनाते हैं, जिनका इस क्षेत्र की पर्यटन अर्थव्यवस्था में 95 प्रतिशत से अधिक का योगदान है. उन्होंने कहा, “यह असुविधा वास्तविक है, सवाल जायज़ हैं, लेकिन फिर भी प्रशासन मौन है.” टिकू ने उन कानूनों की तारीफ की, जिन्होंने मवेशियों की हत्या को अपराध बना दिया और सख्त सजाएं लगाईं, जिनका अतीत में मुसलमानों ने विरोध किया था.
गायों और अन्य बोवाइन जानवरों की हत्या पूर्व डोगरा शासकों द्वारा प्रतिबंधित की गई थी और यह प्रतिबंध 1947 के बाद भी जारी रहा. इन कानूनों के बावजूद, ग्रामीण कश्मीर में बीफ का व्यापक रूप से सेवन किया जाता था, लेकिन श्रीनगर के निवासी इससे दूर रहते थे. हालांकि, बीफ की खपत धीरे-धीरे शहर में भी बढ़ रही है. “ऐतिहासिक रूप से, कश्मीर में मवेशियों की हत्या न केवल सामाजिक रूप से अस्वीकार्य थी, बल्कि कानूनी रूप से भी प्रतिबंधित थी. 1989 की रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) के तहत, धारा 298-ए से 298-डी तक बोवाइन जानवरों की हत्या और उनके मांस की जब्ती को अपराध घोषित किया गया था," टिकू ने कहा.
"धारा 298-ए में गाय, बैल या बछड़े की जानबूझकर हत्या के लिए 10 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान था. उनके मांस की जब्ती (धारा 298-बी) भी दंडनीय थी," उन्होंने कहा.
मुजफ्फर रैना की रिपोर्ट के मुताबिक टिकू ने कहा कि ये कानून "क्षेत्र की बहुलवादी संवेदनशीलताओं को दर्शाते थे," लेकिन 2019 के बाद, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत, इन प्रावधानों को "कानूनी एकरूपता के बहाने रद्द कर दिया गया—विडंबना यह है कि कश्मीर को उसके पारंपरिक सुरक्षा उपायों से वंचित कर दिया गया, जो अंतरधार्मिक सद्भाव को बनाए रखते थे." वर्तमान में जम्मू और कश्मीर में बीफ की खपत पर प्रतिबंध नहीं है.
हालांकि, पंडित नेता ने दावा किया कि बीफ की दुकानें और कसाईखाने अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं और उनकी संख्या बेरोक-टोक बढ़ रही है. "यह अनियंत्रित विस्तार संयोग नहीं है. यह उन लोगों की मौन, अनौपचारिक सहमति से फल-फूल रहा है, जो सत्ता में हैं, जिनकी चुप्पी और निष्क्रियता को केवल उन्हीं कारणों से समझा जा सकता है, जो किसी भी सजग व्यक्ति के लिए स्पष्ट हैं. ऐसी मिलीभगत न केवल कानून को बल्कि धर्मनिरपेक्ष शासन के मूल विचार को भी कमजोर करती है.
उन्होंने घाटी में शराब सेवन पर प्रतिबंध लगाने की स्थानीय मुसलमानों की बढ़ती मांग का स्वागत किया और कहा कि यह सामाजिक और धार्मिक भावना के अनुरूप है. हालांकि फरवरी में, पुलिस ने एक स्थानीय व्यापारी संघ द्वारा लगाए गए एक साइनबोर्ड को हटा दिया था, जिसमें पर्यटकों से अनुरोध किया गया था कि वे स्थानीय संस्कृति का सम्मान करें और कश्मीर में शराब पीने से बचें.
क्या राहुल गांधी ने महाराष्ट्र चुनावों में ईसीआई की "मैच‑फिक्सिंग" की बात सही कही थी?
महाराष्ट्र में राहुल गांधी के “चुनावी मैच-फिक्सिंग” वाले बयान पर सीएम देवेंद्र फडणवीस की प्रतिक्रिया भले ही आई हो, जिसमें उन्होंने इसे तथ्यों की जानबूझकर तोड़-मरोड़ कहा और जनता के जनादेश को कमतर आंकने का प्रयास बताया लेकिन क्या इससे भारतीय चुनाव आयोग (ECI) की साख बच पाएगी? 'द इंडियन एक्सप्रेस' की पत्रकार शुभांगी खापरे से बातचीत में लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर ने कहा कि सच कहीं बीच में है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के छह महीने बाद भी विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच विवाद जारी है. कांग्रेस नेता और विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने फिर से आरोप लगाया है कि महाराष्ट्र चुनाव में फर्जी मतदाता थे. उन्होंने आंकड़ों के साथ अपनी बात रखी है कि 2019 से 2024 तक पांच साल में कुल मतदाताओं की संख्या में सिर्फ 31 लाख की वृद्धि हुई, जबकि मई 2024 से नवंबर 2024 तक सिर्फ छह महीने में मतदाता सूची में 41 लाख की बढ़ोतरी हुई.
लोकसत्ता के संपादक गिरीश कुबेर का कहना है कि यह वृद्धि पूरी तरह से अप्राकृतिक लगती है. पांच साल में एक निश्चित दर से बढ़ने वाली मतदाता संख्या यदि छह महीने में पिछले पांच साल से भी ज्यादा बढ़ जाए तो सवाल उठना स्वाभाविक है. हालांकि, इस मामले में अजीब बात यह है कि चुनाव आयोग पर उठाए गए सवालों का जवाब चुनाव आयोग नहीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी दे रही है.
कुबेर का मानना है कि चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होते हैं जो तटस्थ होना चाहिए और निष्पक्ष दिखना चाहिए. आज के युग में, जिसे 'पोस्ट-ट्रुथ' का दौर कहा जाता है, धारणाएं ही वास्तविकता बन जाती हैं. ऐसे में चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह इन धारणाओं को दूर करे और अधिक पारदर्शी बने, जो वह करने से इनकार कर रहा है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने इन आरोपों का विस्तृत जवाब दिया है, लेकिन कुबेर कहते हैं कि यह जवाब चुनाव आयोग की तरफ से आना चाहिए था, न कि भाजपा की तरफ से. राहुल गांधी ने चतुराई से सिर्फ सवाल उठाए हैं, चुनाव को फर्जी या ईवीएम में छेड़छाड़ का सीधा आरोप नहीं लगाया है. उनका मानना है कि कांग्रेस को केवल चुनाव आयोग पर सवाल उठाने से आगे बढ़कर अपनी संगठनात्मक क्षमता पर भी काम करना होगा. 1999 में कांग्रेस का वोट शेयर 27% था और वह 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी, जबकि अब यह घटकर 16 सीटें और 15-16% वोट शेयर रह गया है. उनके मुताबिक चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को वास्तव में स्वतंत्र होना चाहिए और उन्हें सत्तारूढ़ पार्टी के दबाव में काम नहीं करना चाहिए. जब तक ये संस्थाएं पूर्ण स्वतंत्रता से काम नहीं करेंगी, तब तक इस तरह के विवाद होते रहेंगे.
अब मस्क पछता रहा है ट्रम्प को बुरा भला कहने पर
‘द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि टेस्ला के प्रमुख इलोन मस्क ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को लेकर अपनी पिछली टिप्पणियों पर पछतावा जताया है. यह संकेत एक ऐसे वक्त आया है जब उनके बीच का सार्वजनिक विवाद मस्क के कारोबारी हितों को नुकसान पहुंचा सकता था. मस्क, जो ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के सबसे बड़े दाताओं में से एक रहे हैं, उन्होंने पिछले हफ्ते ट्रम्प के खिलाफ तीखे हमले किए थे, जिनमें महाभियोग की मांग और जेफ्री एपस्टीन से ट्रम्प के कथित संबंधों का मज़ाक शामिल था.
बुधवार को मस्क ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा - “पिछले हफ्ते राष्ट्रपति @realDonaldTrump को लेकर मेरी कुछ पोस्ट हद से आगे निकल गईं. मुझे उनका अफसोस है.” न्यूयॉर्क पोस्ट से बातचीत में ट्रम्प ने कहा - “मुझे यह बहुत अच्छा लगा कि उन्होंने ऐसा किया.” उन्होंने आगे कहा, “जब मस्क ने वो बातें कहीं तो मैं बहुत नाराज़ था, लेकिन अब कोई कड़वाहट नहीं है. मुझे लगता है वह अब पछता रहे हैं.” इस संभावित मेल-मिलाप के संकेतों के बाद, टेस्ला के शेयर प्री-मार्केट ट्रेडिंग में 2.6% उछल गए.
गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान दोनों ने खुद को वैचारिक सहयोगी बताया था. मस्क को ट्रमप सरकार में "डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी" का प्रमुख भी बनाया गया था, जिसे मीम के तौर पर "Doge" कहा गया था. पर विवाद तब शुरू हुआ जब मस्क ने ट्रम्प के “बिग ब्यूटीफुल बिल” को “2.4 ट्रिलियन डॉलर की उधारी बढ़ाने वाला घिनौना प्रस्ताव” कह दिया. ट्रम्प ने मस्क पर पलटवार करते हुए कहा कि “वह पागल हो गए हैं” और चेतावनी दी कि उनके बिजनेस पर असर हो सकता है.
चीन पर अमरीका लगाएगा 55% टैरिफ, अमेरिका-चीन व्यापार समझौते को मिली मंज़ूरी
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने लंदन में हुए अमेरिका-चीन व्यापार समझौते को मंज़ूरी दे दी है, जिसके तहत अमेरिका में ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए आवश्यक रेयर अर्थ मिनरल्स और मैग्नेट्स की आपूर्ति बढ़ाई जाएगी. इस समझौते के तहत चीन से आयात पर कुल मिलाकर 55% टैरिफ लगाया जाएगा. हालांकि, इस समझौते को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अंतिम मंज़ूरी अभी बाकी है. मंगलवार देर रात लंदन के लैंकेस्टर हाउस में दोनों देशों के बीच यह मसौदा तय हुआ. ट्रम्प ने बताया कि इस डील में यह भी शामिल है कि चीनी छात्रों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी. बुधवार को ट्रम्प ने अपने ट्रुथ सोशल अकाउंट पर लिखा — "हमारा चीन के साथ समझौता हो गया है, शी और मेरी अंतिम मंजूरी के अधीन... हमें कुल मिलाकर 55% टैरिफ मिल रहे हैं, जबकि चीन को 10%. संबंध बेहतरीन हैं!"
यह डील ऐसे समय में हुई जब चीन ने अप्रैल में ट्रंप की ट्रेड वॉर की प्रतिक्रिया में मैग्नेट्स की सप्लाई रोक दी थी, जिससे अमेरिकी कार उद्योग लगभग रुक गया था. इससे पहले जिनेवा में समझौते की कोशिश चीन की रेयर मिनरल्स पर पाबंदियों की वजह से अटक गई थी. जवाब में अमेरिका ने सेमीकंडक्टर सॉफ्टवेयर और अन्य उच्च तकनीक उपकरणों के निर्यात पर पाबंदी लगाई थी.
क्या वाकई टैरिफ बढ़ा है? 55% टैरिफ सुनकर लगता है कि यह एक बड़ी वृद्धि है, जबकि पिछले महीने जिनेवा में हुई सुलह में यह दर 30% पर तय हुई थी. व्हाइट हाउस के एक अधिकारी के मुताबिक, इसमें 10% वैश्विक "प्रतिस्पर्धी" बेसलाइन टैरिफ, 20% फेंटानिल ट्रैफिकिंग लेवी, और पहले से लागू 25% टैरिफ शामिल हैं. यानी टैरिफ की यह गिनती एक समग्र गणना है, नई वृद्धि नहीं.
वन नेशन, वन टेंपरेचर | खट्टर को आया एसी के तापमान को 'सेट' करने का आइडिया
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल ने मंगलवार (10 जून 2025) को बताया कि सरकार एयर कंडीशनरों (एसी) के डिफॉल्ट तापमान को 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के दायरे में मानकीकृत करने के लिए एक ढांचा तैयार कर रही है. इसमें वाहन एसी भी शामिल होंगे. उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस विषय पर एसी निर्माता कंपनियों और विभिन्न राज्य सरकारों से बातचीत चल रही है. “विचार-विमर्श जारी है और इसके पूरा होते ही दिशा-निर्देश अंतिम रूप से तय किए जाएंगे. कुछ राज्यों ने अनुरोध किया है कि उनके यहां की नमी (ह्यूमिडिटी) को ध्यान में रखा जाए,” उन्होंने कहा. हालांकि उन्होंने और कोई विवरण साझा नहीं किया. जब उनसे पूछा गया कि क्या यह नियम कारों के एयर कंडीशनरों पर भी लागू होगा, तो मंत्री ने बताया कि सरकार वाहन निर्माताओं से भी इस पर बात कर रही है. यह घोषणा ऐसे समय में की गई है जब भारत की पीक पावर डिमांड (अधिकतम बिजली मांग) बढ़ती जा रही है और 9 जून को 241 गीगावॉट तक पहुंच गई थी. ऊर्जा सचिव पंकज अग्रवाल ने बताया कि इस कदम का मकसद देश में ऊर्जा दक्षता (एनर्जी एफिशिएंसी) को बढ़ाना है. उन्होंने कहा — “तापमान को केवल 1 डिग्री बढ़ाने से लगभग 6% बिजली की बचत होती है. देश में करोड़ों एसी हैं और हर साल लाखों नए जोड़े जा रहे हैं, ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इससे कितनी ऊर्जा की बचत हो सकती है.” ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE), जो ऊर्जा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है, 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच डिफॉल्ट एसी तापमान को तय करने के लिए मसौदा तैयार कर रहा है.
बेंगलुरु पुलिस आयुक्त बी. दयानंद निलंबित, सीमंथ कुमार सिंह बने नए कमिश्नर
आईपीएल 2025 में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की जीत के जश्न के दौरान 4 जून को एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और 56 घायल हुए. इस घटना के बाद राज्य सरकार ने बड़ी कार्रवाई की है. 'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद को निलंबित कर दिया गया है. उनके स्थान पर सीमंथ कुमार सिंह को नया कमिश्नर नियुक्त किया गया है. पूर्व कर्नाटक हाई कोर्ट जज माइकल डी'कुन्हा की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया है. 5 जून को क्यूब्बन पार्क पुलिस ने इस मामले में गैर इरादतन हत्या सहित अन्य गंभीर धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है. इसमें आरसीबी फ्रेंचाइज़ी, डीएनए एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड (इवेंट कंपनी) और कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (KSCA) आरोपित हैं.
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई का ऑक्सफोर्ड यूनियन में संबोधन: "संविधान यह दिखावा नहीं करता कि सब बराबर हैं"
'द हिंदू' भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई ने ऑक्सफोर्ड यूनियन में दिए गए अपने प्रेरणादायक भाषण में भारतीय संविधान को एक "नम्र लेकिन क्रांतिकारी सामाजिक दस्तावेज़" बताया, जो जाति, गरीबी, बहिष्करण और अन्याय जैसे कठोर यथार्थों से आंख नहीं चुराता. उन्होंने कहा - ❝यह संविधान यह दिखावा नहीं करता कि इस गहराई से विषमता से ग्रसित भूमि में सभी बराबर हैं. बल्कि यह हस्तक्षेप करने का साहस करता है, शक्ति को पुनः संतुलित करता है, और गरिमा को बहाल करता है.❞
मुख्य न्यायाधीश गवई, जो भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं, ने कहा कि संविधान ने उन्हें नगर पालिका स्कूल से भारत की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी तक पहुंचाया. ❝कभी लाखों भारतीयों को 'अस्पृश्य' कहा गया था... आज उन्हीं लोगों में से एक, भारत की न्यायपालिका के शीर्ष पर बैठकर, यहां खुलकर बोल रहा है.❞ मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वंचित समुदायों ने कभी भीख नहीं, बल्कि सम्मानजनक पहचान, गरिमा और संरक्षण की मांग की. ❝संविधान में दिखाई देना, राष्ट्र द्वारा देखे जाने के बराबर था. इसके पाठ में शामिल होना, उसके भविष्य में शामिल होने जैसा था.❞ गवई ने जोर देकर कहा कि भारतीय संविधान के निर्माण में केवल प्रभुत्वशाली वर्ग ही नहीं, बल्कि दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दिव्यांगों, यहां तक कि 'अपराधी जाति' कहे गए समुदायों की भी सक्रिय भागीदारी थी.
"अब हर कोई बोलने से डर गया है" - ग्रेट निकोबार परियोजना पर बोले पक्षी विज्ञानी असद रहमानी
'स्क्रोल' के लिए वैष्णवी राठौर ने ग्रेट निकोबार परियोजना के बहाने पक्षी विज्ञानी असद रहमानी से बातचीत की है. वर्ष 2011 में, जब पक्षी विज्ञानी डॉ. असद रहमानी ने राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की बैठक में तीन रक्षा परियोजनाओं को देखा, जिनमें से एक लिटिल निकोबार के टिलनचांग अभयारण्य में मिसाइल परीक्षण, दूसरी ग्रेट निकोबार में सड़क निर्माण और तीसरी नारकोंडम द्वीप पर रडार स्थापित करने की योजना थी, तो उन्होंने इनका कड़ा विरोध किया.
उनका तर्क था- मिसाइल परीक्षण से निकोबार मेगापोड की जीवन-चक्र पर असर होगा. सड़क निर्माण लेदरबैक कछुओं के घोंसले पर खतरा होगा. नारकोंडम में नारकोंडम हॉर्नबिल, जो केवल वहीं पाई जाती है, की पूरी आबादी खत्म हो सकती है. इसके बाद इन परियोजनाओं पर एक निरीक्षण दल भेजा गया जिसमें रहमानी भी शामिल थे. रिपोर्ट के आधार पर 2012 में पर्यावरण मंत्रालय ने टिलनचांग और नारकोंडम परियोजनाओं को खारिज कर दिया.
साल 2021 में हुआ बड़ा बदलाव जब गैलाथेया खाड़ी को ग्रेट निकोबार ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के लिए संरक्षित क्षेत्र की सूची से हटा दिया गया. रहमानी ने कहा, “अब कुछ भी सुरक्षित नहीं है - न ही अभयार्य, न ही पक्षी, न ही तटवर्ती जीवन.” रहमानी ने कहा कि जब 1990 के दशक में ग्रेट निकोबार में बंदरगाह की योजना पहली बार सामने आई थी, तो वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों में इसके खिलाफ खुली चर्चा होती थी, लेकिन अब - “हर कोई डरता है कुछ भी कहने से. पहले हम ऐसे प्रोजेक्ट्स के खिलाफ बोल सकते थे, अब संस्थानों की स्वतंत्रता ही खत्म हो गई है.”
रहमानी ने बताया कि निकोबार मेगापोड समुद्र तट से 100–200 मीटर दूर घोंसले बनाते हैं. यदि तटवर्ती क्षेत्र पर निर्माण हुआ, तो यह उनके पारंपरिक प्रजनन स्थलों को नष्ट कर देगा. सरकार द्वारा प्रस्तावित ईआईए उपायों जैसे “प्रजनन काल (नवंबर–फरवरी) में निर्माण रोकना” या “रेडियो टैगिंग” को उन्होंने "मजाकिया और दिशाहीन" बताया. “यह वैसा ही है जैसे किसी को मारने के बाद पूछना कि मौत की वजह क्या थी.”
रहमानी ने सुझाव दिया कि ग्रेट निकोबार के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जाना चाहिए. भूटान का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा - “भूटान के संविधान में लिखा है कि कम से कम 62% भूभाग हमेशा वन रहेगा. हमें भी ऐसे ‘नो-गो ज़ोन’ की संवैधानिक गारंटी चाहिए.” रहमानी ने सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (SACON) की भूमिका पर भी सवाल उठाया. पहले SACON स्वतंत्र संस्था थी, लेकिन 2023 में इसे वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में समाहित कर दिया गया. “अब वैज्ञानिक सरकार के खिलाफ कुछ कह ही नहीं सकते. अगर डॉ. रवि संकरण होते, तो वे आख़िरी सांस तक लड़ते.”
दिग्विजय सिंह के भाई कांग्रेस से छह साल के लिए निष्कासित
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर है कि कांग्रेस ने बुधवार को मध्यप्रदेश के पूर्व विधायक लक्ष्मण सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में छह वर्षों के लिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया है. लक्ष्मण सिंह वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई हैं. कांग्रेस अनुशासनात्मक समिति के सदस्य सचिव तारिक अनवर ने एक बयान में कहा- “कांग्रेस अध्यक्ष ने मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक लक्ष्मण सिंह को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते तत्काल प्रभाव से छह वर्षों के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया है.” हालांकि, पार्टी के बयान में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि लक्ष्मण सिंह पर किस प्रकार की "पार्टी विरोधी गतिविधियों" का आरोप है. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) ने पार्टी नेतृत्व को लक्ष्मण सिंह के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश भेजी थी, जिसके बाद यह मामला अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) की अनुशासनात्मक समिति को सौंपा गया. लक्ष्मण सिंह पांच बार सांसद और तीन बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने पहली बार 1990 में मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया. वे 1994 में राजगढ़ से लोकसभा के लिए चुने गए. 2004 में वे भाजपा में शामिल हुए और एक बार फिर सांसद बने. 2013 में वे कांग्रेस में वापस लौटे.
आदिवासी समुदाय का अपने जंगल में लौटना
5 मई 2025 को कर्नाटक के जेनु कुरुबा आदिवासी समुदाय के 52 परिवारों ने नागरहोल टाइगर रिजर्व में वापसी की, जहां से उन्हें लगभग चार दशक पहले जबरन निकाला गया था. यह प्रदर्शन एक तरफ विरोध था तो दूसरी तरफ अपने पैतृक घर की वापसी. 1980 के दशक के मध्य में, नागरहोल को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने से पहले, करडिकल्लू अत्तूर कोल्ली हाडी गांव के 52 परिवारों को बिना किसी मुआवजे के जबरन विस्थापित कर दिया गया था. 1970 के दशक से लेकर अब तक लगभग 3,400 जेनु कुरुबा परिवारों को वन्यजीव संरक्षण के नाम पर अपने पैतृक घरों से बेदखल किया गया है. वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 के तहत इन परिवारों ने 2021 और 2023 में अपने भूमि अधिकारों की मान्यता के लिए आवेदन दिया था, लेकिन सरकारी अधिकारियों ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देकर इन्हें खारिज कर दिया. समुदाय का आरोप है कि यह देरी और अस्वीकृति उन्हें अवैध ठहराने का प्रयास है. विस्थापन के बाद जेनु कुरुबा समुदाय को कॉफी बागानों में मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ा, जहां कर्ज-बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याएं व्याप्त हैं. पुनर्वास कॉलोनियों में बसाए गए लोग अपने पारंपरिक जीवनशैली, धार्मिक स्थलों और वन संसाधनों से कट गए हैं. उनका कहना है कि यह संरक्षण मॉडल औपनिवेशिक भावना से प्रेरित है और स्थानीय समुदायों के ज्ञान व अधिकारों की अनदेखी करता है. समुदाय के नेता शिवु का कहना है कि वन विभाग का यह दावा गलत है कि उनके अधिकार मान्यता मिलने तक वे वहां नहीं रह सकते. उनके अनुसार FRA कोई भूमि अनुदान योजना नहीं है बल्कि पहले से मौजूद अधिकारों की औपचारिक मान्यता है. आर्टीकल 14 में कविता अय्यर ने इसपर लम्बा और दिलचस्प रिपोर्ताज लिखा है.
न्यूयार्क मेयर चुनाव के लिए मीरा नायर के बेटे का हिंदुस्तानी में चुनाव प्रचार
न्यूयार्क शहर की भीड़भाड़ और गगनचुंबी इमारतों के बीच एक ऐसी आवाज़ गूंज रही है जो सदियों से इस शहर की पहचान रही है - इमिग्रेंट्स की आवाज़. लेकिन इस बार यह आवाज़ कुछ खास है. यह हिंदी और उर्दू में गूंज रही है, और इसका नेतृत्व कर रहे हैं स्टेट असेंबलीमैन ज़ोहरान ममदानी, जो न्यूयार्क के अगले मेयर बनने का सपना देख रहे हैं. द नेशन ने ममदानी के अनोखे चुनाव प्रचार के बारे में लिखा है.
ममदानी का चुनावी अभियान अमेरिकी राजनीति में एक नया अध्याय लिख रहा है. वे न सिर्फ अंग्रेजी में, बल्कि हिंदी, उर्दू और कई अन्य भाषाओं में अपने संदेश पहुंचा रहे हैं. उनका हालिया हिंदी का विज्ञापन सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि न्यूयार्क हम सबका शहर है और यहां हर भाषा, हर संस्कृति का सम्मान होना चाहिए. उनकी यह रणनीति कोई आकस्मिक नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में हैं. ममदानी प्रसिद्ध भारतीय फिल्मकार मीरा नायर के पुत्र हैं, जो हॉलीवुड और बॉलीवुड दोनों में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं. मीरा नायर की फिल्में जैसे "सलाम बॉम्बे", "मानसून वेडिंग" और "द नेमसेक" भारतीय अनुभव को वैश्विक मंच पर लेकर आई हैं और अब उनका बेटा इसी विरासत को राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ा रहा है.

युगांडा में जन्मे ममदानी की कहानी लाखों इमिग्रेंट परिवारों से मिलती-जुलती है, लेकिन उनका कलात्मक पारिवारिक माहौल उन्हें अलग बनाता है. एक प्रगतिशील मुस्लिम इमिग्रेंट के रूप में उन्होंने अमेरिका में अपनी पहचान बनाई है और वे गर्व से कहते हैं कि वे उन चीजों के लिए लड़ते हैं, जिनमें वे विश्वास करते हैं. उनका राजनीतिक एजेंडा स्पष्ट है - किराया फ्रीज़ करना, शहर की बसों को मुफ्त बनाना और अमीरों पर 10 बिलियन डॉलर का टैक्स लगाना. यह वही दृष्टिकोण है जो उनकी मां की फिल्मों में भी दिखता है - आम लोगों की समस्याओं को केंद्र में रखना.
कांग्रेसवुमन अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कॉर्टेज़ के समर्थन ने ममदानी की राह और भी आसान बना दी है. हाल के सर्वे बताते हैं कि रैंक्ड चॉइस वोटिंग सिस्टम में ममदानी अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी एंड्रू क्यूमो के काफी करीब पहुंच गए हैं. एमर्सन कॉलेज की रिपोर्ट के अनुसार, ममदानी ने 23 अंक की बढ़त हासिल की है और द्वितीय पसंद के वोट लगभग दो-एक के अनुपात में जीत रहे हैं.
इस बढ़ती लोकप्रियता के साथ ही हमले भी तेज हो गए हैं. रिपब्लिकन काउंसिल मेंबर विकी पैलाडिनो ने तो ममदानी को देश निकाला देने की मांग तक कर दी है, जबकि वे एक अमेरिकी नागरिक हैं. लेकिन ममदानी इन हमलों से घबराए नहीं हैं और इन्हें ट्रंप तथा उसके समर्थकों की राजनीति का हिस्सा बताते हैं. दिलचस्प बात यह है कि न्यूयार्क के इतिहास में बहुभाषी अभियान कोई नई बात नहीं है. शहर के महान मेयर फिओरेलो ला गार्डिया भी इतालवी, जर्मन, सर्बो-क्रोएशियन और यिडिश में प्रचार करते थे. 1922 में उन्होंने यिडिश में बहस की चुनौती देकर अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा दिया था, जो खुद यिडिश नहीं बोल सकता था.
ममदानी की टीम जैक्सन हाइट्स से लेकर डेव रिज तक, हर इलाके में हिंदी-उर्दू बोलने वाले समुदाय से जुड़ रही है. उनके कार्यकर्ता मस्जिदों, गुरुद्वारों और मंदिरों में जाकर लोगों से मिल रहे हैं. क्वींस के एक टैक्सी ड्राइवर मोहम्मद अली कहते हैं कि पहली बार कोई उम्मीदवार उनकी भाषा में उनसे बात कर रहा है और ममदानी साहब समझते हैं कि उनकी क्या परेशानियां हैं. यह संपर्क केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक भी है. मीरा नायर की फिल्मों की तरह, ममदानी का अभियान भी विविधता को एक ताकत के रूप में प्रस्तुत करता है.
अभी भी क्यूमो आगे हैं और उनके पास अधिक पैसा तथा राजनीतिक कनेक्शन हैं. लेकिन ममदानी का उत्साह और जमीनी स्तर पर बढ़ता समर्थन एक नई संभावना जगाता है. 24 जून के प्राइमरी तक अभी भी वक्त है और न्यूयार्क की राजनीति में कई बार छोटे उम्मीदवार बड़े चमत्कार कर चुके हैं. ज़ोहरान ममदानी का यह अभियान सिर्फ एक चुनाव नहीं है, यह अमेरिकी लोकतंत्र में बहुभाषी भविष्य का संकेत है. हिंदी-उर्दू में गूंजती उनकी आवाज़ न्यूयार्क की असली तस्वीर दिखाती है - एक ऐसा शहर जहां हर भाषा, हर संस्कृति का अपना मुकाम है. जैसा कि ममदानी खुद कहते हैं, यह अभियान सिर्फ नीतियों के बारे में नहीं है, यह एक ऐसे शहर के सपने के बारे में है जहां हर न्यूयार्कर, चाहे वो किसी भी इलाके से हो, फल-फूल सके.
चलते-चलते
आप कबीर के कौन से भजन सुनते हैं? सुनिये हमारी प्लेलिस्ट
निधीश त्यागी
जिन लोगों ने दुनिया में शोर कम किया और रोशनी ज्यादा फैलाई उनमें कबीर शायद भारत के सबसे महत्वपूर्ण चरित्र हैं. बुधवार को उनकी जयंती थी. कबीर इस समय के भारत में हमारी चेतना में थोड़े धुंधले दीखने लगे हैं. एक तरफ धर्मांधता को राजकीय और राष्ट्रीय करंसी माना जाने लगा है और दूसरी तरफ हमारे रसों में अब जो मुखर प्रचलन में है, वह वीर के खोखल में दरअसल वीभत्स है. पिछले ग्यारह सालों का हिसाब किताब जहां हो रहा है, वहां पर यह सोचना शायद मुनासिब है कि भारत अब पहले से कहीं कम सहिष्णु, कहीं ज्यादा आक्रामक, हिंसक, वैमनस्यपूर्ण, क्रूर और अमानवीय हो चला है. हमारी आध्यात्मिकता अगर थी तो पहले से कम है. यह सोचना मुश्किल है कि कबीर अगर अब होते, जैसे गांधी अगर होते, बुद्ध होते, अम्बेडकर और शायद दयानंद भी होते तो क्या सब पर यूएपीए लग रहा होता, उनकी बातों से हमारी आस्था आहत हो रही होती और हम उनकी अक्ल ठिकाने लगाने पर चालू हो जाते. उनके पीछे बेसुरे और शोर करते डीजे लग चुके होते, गुस्से वाले हनुमान के स्टिकर वाली मोटरसाइकलें और कारें उनकी घेरा बंदी कर रही होतीं, और इस बीच कोई उनके खिलाफ अपराधिक कार्रवाई करने को उकसा और सही ठहरा रहा होता. ठीक जैसा नाथूराम गोड़से ने गांधी के साथ किया था. ये लोग सारे लोग विचार लेकर आये थे. और सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया को. जहां हमारी मनुष्यताएं साबुत रह सकें अपने स्नेह, करुणा, प्रेम के साथ.
हमारा सरगम अपनी जगह से खिसक चुका है. और इसलिए ज्यादा जरूरी है कि हम उनकी तरफ बार बार लौटते चलें, जिससे हमारा स सही जगह पर लगे. कबीर इसलिए जरूरी हैं. ताकि हम इस समय के सरकारी, सामाजिक, राजनीतिक तुमुल कलह कोलाहल के बरक्स एक करघा चलाते हुए मनुष्य की मद्धम ही सही पर आवाज सुन सकें. अपने भीतर भी. और थोड़ा आसपास भी. कि हम उनके शब्द, उनकी लयात्मकता और उनके मायनों को महसूस कर सकें और उस गड्ढे से बाहर देख सकें, जहां हम सबको एक तरह से झोंका जा चुका है. बुधवार को कबीर जयंती पर मैं सोच रहा था कि बनारस में कैसे कबीर तमाम धार्मिक मठाधीशों के खिलाफ अपनी जुबान से अपनी बात कह सके थे. कैसे बनारस का मोक्ष छोड़कर मगहर चले गये थे.
तर्क की, तथ्य की, विवेचना की, सवाल की, मनुष्यता की, प्रेम की जो भाषा कबीर कह रहे थे, वह आज कैसे ली जाती. जिन कबीर के पास मैं बार बार लौटता हूँ, उनके लिंक्स नीचे दे रहा हूँ. आप के पास अपने कबीर होंगे.
उड़ जाएगा हंस अकेला | कुमार गंधर्व की आवाज़
चादर झीनी रंग दीनी | प्रहलाद सिंह टिपाण्या की आवाज़
मोरी चुनरी में पड़ी गयो | नीला भागवत की आवाज़
नैहरवा हमका न भावै | कुमार गंधर्व की आवाज़
थारा रंग महल में | प्रहलाद सिंह टिपाण्या की आवाज़
ये तन ठाट तंबूरे का | विद्या राव की आवाज़
उल्टा बान | मूरालाला मारवाड़ा
निर्भय निरगुण | कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली की आवाज
हमन हैं इस्क मस्ताना | मधुप मुद्गल और सावनी मुद्गल
हमारे राम रहीम करीमा केसव | शुभा मुद्गल
जब और अगर हम थक जाएंगे इस शोर, चौंध, झांसों और क्रूरताओं से, तो फिर लौटेंगे इस रौशनी और चैन की तरफ.
पाठकों से अपील :
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