12/08/2025: वोटचोरी के फैलते रायते | हिंदुओं के नाम ज्यादा कटे | और भ्रामक होता केंचुआ | मुनीर की धमकी | ट्रम्प का टैरिफ हमला | कश्मीर में किताबें |इजरायल ने ग़ाज़ा में 5 पत्रकारों की हत्या की |
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
चुनाव आयोग “चुराओ आयोग” नहीं हो सकता, विपक्ष के 300 सांसदों का विरोध मार्च
बिहार मतदाता सूची विवाद मुसलमानों से ज़्यादा हिंदुओं के नाम हटने का दावा
मतदाता बाढ़ से जूझे या दावा-आपत्ति के लिए चुनाव आयोग के पास जाए
ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल में बड़ा खुलासा : राहुल गांधी के 'वोट चोरी' के दावों पर यूपी चुनाव आयोग का जवाब भ्रामक
आसिम मुनीर की भारत को लेकर धमकी
जो चीन के ख़िलाफ एक मजबूत साथी था, उसी भारत पर ट्रम्प ने टैरिफ का हमला कर दिया
2,06,378 : पिछले साल भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोग
आदिवासियों के लिए काम कर रहे युवा समूह पर हिंदुत्ववादी भीड़ का हमला, 'धर्मांतरण' के झूठे आरोप में संस्थापक गिरफ्तार
सरकार के 'झूठे नैरेटिव' के दावे पर लेखिका ने उठाए सवाल, कहा - यह ज्ञान पर हमला है
गाज़ा में इजरायली हवाई हमले में अल जज़ीरा के पत्रकार समेत 6 की निशाना लगाकर हत्या
सजी-धजी बनी-ठनी सड़क पर उतरती सवारियां
चुनाव आयोग “चुराओ आयोग” नहीं हो सकता, विपक्ष के 300 सांसदों का विरोध मार्च
विपक्ष “इंडिया ब्लॉक” के करीब 300 सांसदों ने सोमवार को संसद भवन से चुनाव आयोग तक बिहार में मतदाता सूची के संशोधन और कथित "वोट चोरी" के खिलाफ एक विरोध मार्च निकाला. लेकिन पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में रोककर गिरफ्तार कर लिया. हालांकि, दो घंटे बाद सबको रिहा कर दिया गया. इस विरोध मार्च में लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता क्रमशः राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा एनसीपी (एसपी) के शरद पवार, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, आरजेडी और अन्य विपक्षी दलों के सांसद व नेता शामिल थे. पुलिस ने 30 सांसदों के डेलिगेशन को अनुमति देने का ऐलान किया, पर सांसद चाहते थे कि सबको चुनाव आयोग जाने दिया जाए. लिहाजा मौके पर हाई ड्रामा देखने को मिला. टीएमसी की महुआ मोइत्रा, और कांग्रेस की संजना जाटव व जोथिमणि तो बैरिकेड पर चढ़ गईं. जबकि, अखिलेश यादव तो बैरिकेड फांदने में कामयाब हो गए.
गिरफ्तारी के दौरान बस में बैठते हुए राहुल गांधी ने कहा, "यह लड़ाई राजनीतिक नहीं है, बल्कि संविधान को बचाने के लिए है. यह लड़ाई ‘वन मैन, वन वोट’ की है और हम एक साफ-सुथरी, पवित्र मतदाता सूची चाहते हैं. हमने जो सबूत दिए हैं, वो चुनाव आयोग का ही डेटा है.वे कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि सच पूरे देश के सामने है."प्रदर्शन के दौरान टीएमसी की महुआ मोइत्रा और मिताली बाग बेहोश हो गईं, जिन्हें राहुल गांधी ने संभाला. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "‘वोट चोरी’ और एसआईआर के खिलाफ यह प्रदर्शन लोगों के मताधिकार की रक्षा करने और लोकतंत्र को बचाने का संघर्ष है. इंडिया ब्लॉक इस बीजेपी की साजिश को उजागर करेगा.बीजेपी की कायर तानाशाही नहीं चलेगी."कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा, "चुनाव आयोग चुनाव आयोग है, यह 'चुराओ आयोग' नहीं हो सकता."
विपक्ष का आरोप है कि बिहार में चल रहा विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) वोटरों को मतदाता सूची से हटाने की साजिश है, ताकि विधानसभा चुनावों में उनके अधिकार सीमित किए जा सकें. सांसदों ने बैनर और प्लेकार्ड भी ले रखे थे, जिनमें लिखा था "SIR + वोट चोरी = लोकतंत्र की हत्या" और "SIR - लोकतंत्र पर वार." विपक्ष का यह भी आरोप है कि चुनाव आयोग और सरकार के बीच साठगांठ है, जो मताधिकार की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रही है. इस विरोध मार्च से पहले जयराम रमेश ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर विपक्ष के सभी सांसदों को एक साथ मिलकर ज्ञापन सौंपने की अनुमति मांगी थी और आशा जताई थी कि यह बैठक पारंपरिक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का हिस्सा होगी.
इस बीच तृणमूल कांग्रेस ने मतदाता सूची में कथित धांधली के लिए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. विरोध मार्च को दिल्ली पुलिस द्वारा बीच में ही रोक दिए जाने के बाद,तृणमूल कांग्रेस ने ‘एक्स’ पर चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बहाल करने के लिए कई मांगें रखीं. पार्टी ने ‘एक्स’ पर लिखा-
एकजुट विपक्ष. भाजपा-चुनाव आयोग की चुनावी तोड़फोड़ के प्रति शून्य सहिष्णुता. पूर्व सीईसी राजीव कुमार के खिलाफ तुरंत एफआईआर, मतदाता सूची में हेराफेरी की साजिश के लिए कार्रवाई, मतदाता सूची के डिजिटल मसौदे को सार्वजनिक करना, चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों से बीएलए-2 (बूथ स्तर कार्यकर्ता) का विवरण मांगना बंद करना और एसआईआर को समाप्त करना शामिल है. तृणमूल ने कहा,"बैरिकेड, लाठी या फर्जी गिरफ्तारियां, इनमें से कोई भी भाजपा की धांधली मशीनरी को नहीं बचा पाएगा. हम उनके चुनाव-हेराफेरी के प्लेबुक को उधेड़कर रख देंगे.”
बिहार मतदाता सूची विवाद
मुसलमानों से ज़्यादा हिंदुओं के नाम हटने का दावा
बिहार में मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया एक बड़े राजनीतिक विवाद के केंद्र में आ गई है. जहाँ एक ओर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी इसे चुनावी सूचियों को साफ़ करने की एक ज़रूरी कवायद बता रही है, वहीं दूसरी ओर स्क्रोल में आयुष तिवारी और आर्यन माहटा द्वारा किए गए एक विस्तृत डेटा विश्लेषण ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. यह विश्लेषण केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उन दावों के ठीक विपरीत तस्वीर पेश करता है, जिनमें उन्होंने इस प्रक्रिया को "घुसपैठियों" को मतदाता सूची से हटाने का एक ज़रिया बताया था. स्क्रोल की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि बिहार की ड्राफ़्ट मतदाता सूची से बाहर किए गए लोगों में मुसलमानों की तुलना में हिंदू मतदाताओं की संख्या अनुपातहीन रूप से कहीं ज़्यादा है.
इस विवाद की राजनीतिक पृष्ठभूमि 8 अगस्त को बिहार में हुई अमित शाह की एक रैली से तैयार हुई थी. अपने भाषण में उन्होंने जनता से पूछा था, "क्या घुसपैठियों को वोटर लिस्ट से हटाया जाना चाहिए या नहीं? क्या चुनाव आयोग को सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए या नहीं?" उनके इन बयानों का सीधा इशारा बांग्लादेश से आए कथित घुसपैठियों की ओर था, जिसे राज्य के मुस्लिम मतदाताओं पर एक सांकेतिक हमले के तौर पर देखा गया. उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद के लालू प्रसाद यादव पर निशाना साधते हुए कहा था, "आप किसे बचाना चाहते हैं? घुसपैठिए आपका वोट बैंक हैं, इसीलिए आप इसका (मतदाता सूची संशोधन का) विरोध करते हैं."
लेकिन स्क्रोल द्वारा 1 अगस्त को चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के विश्लेषण से जो तथ्य सामने आए हैं, वे इस राजनीतिक नैरेटिव को पूरी तरह से पलट देते हैं. विश्लेषण के अनुसार, पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र, जिसमें अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जैसे मुस्लिम बहुल आबादी वाले ज़िले शामिल हैं, में हिंदू मतदाताओं को उनकी आबादी के हिस्से की तुलना में कहीं ज़्यादा बाहर रखा गया है. इन ज़िलों में मुसलमानों की आबादी 38% से 68% के बीच है, लेकिन यहाँ हिंदू मतदाताओं का निष्कासन उनकी आबादी के अनुपात से 6% से 9% तक ज़्यादा है. उदाहरण के तौर पर, अररिया ज़िले में 57% आबादी हिंदुओं की है, लेकिन ज़िले की ड्राफ़्ट सूची से बाहर किए गए मतदाताओं में 65.4% हिंदू हैं, जो कि 8.34% का एक बड़ा अंतर है.
यह विश्लेषण एक और महत्वपूर्ण राजनीतिक पहलू को उजागर करता है. सीमांचल क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों में हिंदुओं का सबसे ज़्यादा निष्कासन उन सीटों पर हुआ है, जिन्हें 2020 के विधानसभा चुनावों में विपक्षी दलों (राजद, कांग्रेस और अन्य) ने जीता था. वहीं, जिन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं, वहाँ यह अनुपात काफ़ी कम है. यह पैटर्न इस प्रक्रिया के पीछे किसी राजनीतिक मंशा की आशंका को गहरा करता है.
पूरे बिहार के स्तर पर देखें तो ड्राफ़्ट सूची से बाहर किए गए कुल क़रीब 65 लाख मतदाताओं में से 83.7% ग़ैर-मुस्लिम और 16.3% मुस्लिम हैं. यह आँकड़ा पहली नज़र में 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की आबादी (82.7% हिंदू और 16.9% मुस्लिम) के अनुपात में लग सकता है, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त क्षेत्रीय असमानताओं में छिपी है. जहाँ सीमांचल में हिंदू बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं, वहीं राज्य के अन्य 18 ज़िलों में मुस्लिम आबादी को अनुपातहीन रूप से बाहर किया गया है, लेकिन यह दर हिंदुओं की तुलना में बहुत कम है. शिवहर, औरंगाबाद और जहानाबाद जैसे ज़िलों में यह आंकड़ा महज़ 1.8% के शिखर पर है.
विश्लेषण की कार्यप्रणाली : स्क्रोल ने इस निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए एक विश्वसनीय और दो-चरणीय प्रक्रिया का इस्तेमाल किया. पहले चरण में, चुनाव आयोग द्वारा जारी दो अलग-अलग सूचियों की तुलना की गई. 16 जुलाई को आयोग ने उन 1.49 करोड़ मतदाताओं की सूची जारी की थी, जिन्होंने अपना गणना फ़ॉर्म जमा नहीं किया था. इसके बाद, 1 अगस्त को 7.24 करोड़ नामों वाली ड्राफ़्ट मतदाता सूची प्रकाशित की गई. एक कंप्यूटर प्रोग्राम के ज़रिए दोनों सूचियों में मौजूद EPIC नंबरों का मिलान किया गया. जिन लोगों के EPIC नंबर पहली सूची में थे, लेकिन दूसरी (ड्राफ़्ट) सूची में नहीं, उन्हें बाहर किया गया माना गया. इस तरह क़रीब 64.85 लाख बाहर हुए मतदाताओं की सूची तैयार हुई.
दूसरे चरण में, इन मतदाताओं की धार्मिक पहचान का अनुमान लगाने के लिए एक और उन्नत प्रोग्राम का उपयोग किया गया. 'इट्स ऑल इन द नेम' नामक यह प्रोग्राम हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा होस्ट किए गए एक डेटा रिपॉजिटरी, हार्वर्ड डेटावर्स पर प्रकाशित है. यह प्रोग्राम किसी व्यक्ति और उसके पिता/पति के नाम का विश्लेषण करके उसे एक 'मुस्लिम स्कोर' देता है, जिससे उसकी धार्मिक पहचान का पता चलता है. इस प्रोग्राम ने बाहर हुए 64.9 लाख मतदाताओं में से 10.6 लाख को मुस्लिम और 54.3 लाख को ग़ैर-मुस्लिम के रूप में वर्गीकृत किया (चूंकि बिहार की ग़ैर-मुस्लिम आबादी में 99.48% हिंदू हैं, इसलिए इस विश्लेषण में दोनों शब्दों का इस्तेमाल एक दूसरे के स्थान पर किया गया है).
आगे की राह और बड़ी चिंता : यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह केवल एक ड्राफ़्ट सूची है, अंतिम नहीं. जिन 65 लाख लोगों के नाम इस सूची से बाहर हैं, उनके सामने अब एक बड़ी चुनौती है. उन्हें 30 सितंबर तक अपनी नागरिकता और निवास का प्रमाण देकर अपना नाम अंतिम सूची में शामिल कराने के लिए दावा पेश करना होगा. यह विश्लेषण इस चिंता को जन्म देता है कि क्या यह प्रक्रिया वास्तव में मतदाता सूची को साफ़ करने के लिए है या यह लाखों नागरिकों, विशेष रूप से कुछ ख़ास क्षेत्रों के हिंदुओं को उनके मताधिकार से वंचित करने का एक तरीक़ा बन सकती है. इस खुलासे ने बिहार में SIR प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, और अब यह बहस 'घुसपैठियों' से हटकर नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों के संभावित हनन पर केंद्रित हो गई है.
मतदाता बाढ़ से जूझे या दावा-आपत्ति के लिए चुनाव आयोग के पास जाए
कई जिले बाढ़ से प्रभावित, 30 से अधिक नदियां खतरे के निशान से ऊपर
बिहार में एक तरफ चुनाव आयोग मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान चला रहा है, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय लोग बाढ़ से पैदा होने वाली दिक्कतों से जूझ रहे हैं. एसआईआर की प्रक्रिया के तहत ड्राफ्ट मतदाता सूची, जिसमें से 65 लाख मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं, पर 31 अगस्त तक दावे-आपत्ति प्रस्तुत करना है. राज्य के सात जिले बाढ़ से प्रभावित हैं और 16 लाख लोग फंसे हुए हैं, जिनका रेस्क्यू किया जा रहा है. सवाल है कि लोग बाढ़ से बचें या चुनाव आयोग के "एसआईआर" के लिए वक्त निकालें और ड्राफ्ट सूची पर दावा-आपत्ति करने चुनाव आयोग की मशीनरी के पास जाएं?
"हिंदुस्तान टाइम्स" के अनुसार, भोजपुर, पटना, भागलपुर, वैशाली, लखीसराय, सारण, मुंगेर, खगड़िया और बेगूसराय सहित कई ज़िलों में लगातार बारिश से नदियां और नाले उफान पर हैं. इसके अलावा, नेपाल के जलग्रहण क्षेत्रों में हुई भारी बारिश के कारण भी कई स्थानों पर नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. पिछले कुछ दिनों में हुई बारिश से राज्य में गंगा, कोसी, बागमती, बूढ़ी गंडक, पुनपुन और घाघरा नदियों के जलस्तर में वृद्धि हुई है और ये नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. अंकिता तिवारी ने केंद्रीय जल आयोग के हवाले से बताया है कि बिहार में 30 से अधिक नदी मॉनिटरिंग स्टेशन गंभीर बाढ़ की श्रेणी में हैं. कई नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर बना हुआ है, जिसके कारण कई जिलों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है. गंगा और इसकी सहायक नदियों में जलप्रवाह तेज बना हुआ है. राज्य प्रशासन अलर्ट पर है.
"एनडीटीवी" की रिपोर्ट में कहा गया है कि गंभीर बाढ़ की स्थिति से जूझ रहे बिहार के नवगछिया (नौगछिया) क्षेत्र में प्रभावित निवासी अपनी परेशानियां और नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं, और समय पर मदद न मिलने की शिकायत कर रहे हैं. घरों में पानी भर जाने और रोज़मर्रा की ज़िंदगी बाधित होने के बीच, स्थानीय लोग अपने संघर्षों की भावुक कहानियां साझा कर रहे हैं और तुरंत मदद व राहत कार्य की गुहार लगा रहे हैं. नवगछिया में एक पीड़ित ने वीडियो शेयर करते हुए कहा, "कोई हमारी मदद के लिए नहीं आया."
फैक्ट चेक: ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल में बड़ा खुलासा
'वोट चोरी' पर चुनाव आयोग का जवाब भ्रामक
कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा 7 अगस्त, 2025 को की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस ने भारत की चुनावी प्रक्रिया की शुचिता पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कर्नाटक के एक विधानसभा क्षेत्र में 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर हेरफेर के आरोप लगाए थे और चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' और 'आपराधिक धोखाधड़ी' का इल्ज़ाम लगाया था. अपने दावों के समर्थन में उन्होंने कुछ ऐसे मतदाताओं के उदाहरण पेश किए, जिनके नाम एक ही EPIC नंबर के साथ कई राज्यों की मतदाता सूचियों में मौजूद थे. इन आरोपों के जवाब में उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने एक खंडन जारी किया, लेकिन ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल में पाया गया है कि यूपी सीईओ का यह जवाब ख़ुद कई तथ्यात्मक ग़लतियों से भरा और भ्रामक है. ऑल्ट न्यूज़ के लिए अभिषेक कुमार ने राहुल गांधी के दावों और भारतीय चुनाव आयोग द्वारा उठाए गये सवालों पर फैक्ट चैक किया है.
राहुल गांधी ने अपनी प्रस्तुति में दो व्यक्तियों—आदित्य श्रीवास्तव (EPIC नंबर: FPP6437040) और विशाल सिंह (EPIC नंबर: INB2722288)—के मामले को प्रमुखता से उठाया था. उन्होंने 16 मार्च, 2025 को चुनाव आयोग की वेबसाइट से लिए गए स्क्रीनशॉट दिखाते हुए दावा किया कि आदित्य श्रीवास्तव का नाम कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र के दो बूथों के अलावा महाराष्ट्र के जोगेश्वरी पूर्व और उत्तर प्रदेश के लखनऊ पूर्व की मतदाता सूची में भी मौजूद था. इसी तरह, विशाल सिंह का नाम कर्नाटक के महादेवपुरा के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के वाराणसी कैंट की मतदाता सूची में भी दर्ज था. राहुल का मुख्य सवाल यह था कि एक ही व्यक्ति, एक ही EPIC नंबर के साथ, एक से ज़्यादा राज्यों में मतदाता कैसे हो सकता है.
इन गंभीर आरोपों के सामने आने के कुछ ही घंटों बाद, 7 अगस्त को ही उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय ने एक बयान जारी कर इन दावों का खंडन किया. बयान में कहा गया कि जब चुनाव आयोग की वेबसाइट पर आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह के EPIC नंबरों की खोज की गई, तो उनके नाम सिर्फ़ कर्नाटक के बेंगलुरु शहरी के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में पाए गए. यूपी सीईओ ने ज़ोर देकर कहा कि इन दोनों मतदाताओं के नाम उत्तर प्रदेश के लखनऊ पूर्व और वाराणसी कैंट की मतदाता सूचियों का हिस्सा नहीं हैं, और इस तरह राहुल गांधी के दावों को ख़ारिज कर दिया.
क्या है सच्चाई? ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल
ऑल्ट न्यूज़ ने जब इस मामले की गहराई से जाँच की, तो यूपी सीईओ के बयान और ज़मीनी हक़ीक़त के बीच एक बड़ा अंतर पाया. सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह थी कि राहुल गांधी द्वारा साझा किया गया स्क्रीनशॉट 16 मार्च, 2025 का था, जबकि यूपी सीईओ का बयान 7 अगस्त, 2025 को वेबसाइट पर की गई ताज़ा खोज पर आधारित था. इस समय अंतराल में डेटा में बदलाव संभव है.
इसकी पुष्टि के लिए, ऑल्ट न्यूज़ ने सिर्फ़ वेबसाइट पर लाइव सर्च करने के बजाय चुनाव आयोग द्वारा आधिकारिक तौर पर प्रकाशित मतदाता सूचियों के PDF दस्तावेज़ों की जाँच की. जाँच में लखनऊ पूर्व और वाराणसी कैंट के लिए 29 अक्टूबर, 2024 को प्रकाशित ड्राफ़्ट रोल-2025 और 7 जनवरी, 2025 को प्रकाशित फाइनल रोल-2025 को खंगाला गया.
पड़ताल में यह पाया गया कि आदित्य श्रीवास्तव और विशाल सिंह, दोनों के नाम राहुल गांधी द्वारा बताए गए EPIC नंबरों के साथ लखनऊ पूर्व और वाराणसी कैंट की मतदाता सूचियों (फाइनल रोल-2025) में मौजूद थे. यह तथ्य सीधे तौर पर यूपी सीईओ के बयान को ग़लत और भ्रामक साबित करता है, क्योंकि उनका बयान केवल एक तात्कालिक खोज पर आधारित था और उन्होंने आधिकारिक तौर पर प्रकाशित और संग्रहीत रिकॉर्ड को नज़रअंदाज़ कर दिया.
जल्दबाज़ी में दिए गए जवाब में और भी गड़बड़ियां
यूपी सीईओ के बयान का और बारीकी से विश्लेषण करने पर उसमें और भी कई त्रुटियां सामने आईं. उदाहरण के लिए, बयान में कहा गया है कि आदित्य श्रीवास्तव, पुत्र एस.पी. श्रीवास्तव, का नाम महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में मौजूद है. लेकिन जब ऑल्ट न्यूज़ ने उसी EPIC नंबर से कर्नाटक की सूची में खोजा, तो वहाँ पिता के नाम की जगह एक रिश्तेदार 'रितिका श्रीवास्तव' का नाम दर्ज था. यह छोटी सी ग़लती भी बताती है कि बयान बिना पूरी जाँच के जारी किया गया था.
इससे भी बड़ी विसंगति तब सामने आई, जब 'विवरण द्वारा खोजें' विकल्प के तहत आदित्य श्रीवास्तव, पुत्र एस.पी. श्रीवास्तव, को लखनऊ पूर्व विधानसभा क्षेत्र में खोजा गया. इस बार उनका नाम तो मिला, लेकिन एक अजीब मोड़ के साथ—अब उनका EPIC नंबर बदल चुका था. पुराना EPIC नंबर (FPP6437040) अब एक नए नंबर (RXM4728275) से बदल दिया गया था. जब इस नए विवरण का मिलान फाइनल रोल-2025 से किया गया, तो पोलिंग स्टेशन और सीरियल नंबर जैसे अधिकांश विवरण मेल खाते थे, सिवाय EPIC नंबर के.
यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि जनवरी 2025 में फाइनल रोल प्रकाशित होने के बाद और अगस्त 2025 तक, उस मतदाता का EPIC नंबर सिस्टम में बदल दिया गया था. यूपी सीईओ के कार्यालय को यह स्पष्ट करना चाहिए था कि पुराना EPIC नंबर अब मौजूद नहीं है और उसे बदल दिया गया है, लेकिन इसके बजाय उन्होंने एक सीधा-सपाट खंडन जारी कर दिया कि यह नाम सूची में है ही नहीं. ऑल्ट न्यूज़ का निष्कर्ष है कि यूपी सीईओ का बयान जल्दबाज़ी में, बिना पर्याप्त शोध के जारी किया गया और यह राहुल गांधी द्वारा उठाए गए मूल मुद्दे का समाधान करने के बजाय उसे और अधिक उलझाता है.
कुलगाम में मुठभेड़, दो सैनिक शहीद : दक्षिण कश्मीर के कुलगाम ज़िले के एक जंगल में पिछले हफ्ते के अंत में आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में दो सैनिक शहीद हो गए. इन सैनिकों की पहचान लांस नायक प्रीतपाल सिंह और सिपाही हरमिंदर सिंह के रूप में हुई है. सुरक्षा बल इस दुर्गम और जंगली इलाके में एक आतंकवाद विरोधी अभियान चला रहे थे. यह अभियान शनिवार को अपने नौवें दिन में प्रवेश कर इस तरह के सबसे लंबे अभियानों में से एक बन गया.
आसिम मुनीर की भारत को लेकर धमकी
‘यदि हमें लगा, हम डूबने वाले हैं तो हम आधी दुनिया को ले डूबेंगे’
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि भारत से उनके देश के अस्तित्व को कभी ख़तरा हुआ, तो पाकिस्तान परमाणु युद्ध छेड़ने और आधी दुनिया को तबाह करने के लिए तैयार रहेगा. फील्ड मार्शल ने यह धमकी अमेरिका के टाम्पा, फ्लोरिडा में आयोजित एक औपचारिक ब्लैक-टाई डिनर में दी. उन्होंने कहा, “हम एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं. यदि हमें लगे कि हम डूबने वाले हैं, तो हम आधी दुनिया को अपने साथ ले डूबेंगे."
"द टेलीग्राफ" में परन बालकृष्णन के मुताबिक, मुनीर ने यह धमकी देकर वैश्विक प्रलय की भयावह तस्वीर खींच दी है. मुनीर अपने छोटे से कार्यकाल में ही कई बार खुलकर और आक्रामक भाषण दे चुके हैं और अपनी बयानबाज़ी में अकसर भारत को निशाना बनाते रहे हैं. शनिवार को उन्होंने टाम्पा में पाकिस्तान के कॉन्सुल जनरल, जो कि पाकिस्तानी-अमेरिकी हैं, द्वारा आयोजित एक रात्रिभोज में भाषण दिया.
मुनीर ने सिंधु जल संधि को लेकर भी एक अलग, आक्रामक चेतावनी जारी की, और कसम खाई कि भारत अगर सिंधु नदी पर कोई बांध बनाएगा तो वे उसे नष्ट कर देंगे. उन्होंने कहा,“हम भारत के बांध बनाने का इंतजार करेंगे, और जब वह बनाएगा, हम उसे 10 मिसाइलों से तबाह कर देंगे.” उन्होंने तर्क दिया कि यह संधि पाकिस्तान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यदि इसे रद्द किया गया तो 25 करोड़ पाकिस्तानी लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है. सिंधु भारतीयों की पारिवारिक संपत्ति नहीं है. हमारे पास मिसाइलों की कोई कमी नहीं है.
मुनीर अमेरिका में सेंटकॉम (CENTCOM) प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला की विदाई पार्टी में शामिल होने गए थे. दक्षिण एशिया अमेरिकी सेना के सेंटकॉम के अधिकार क्षेत्र में आता है. सालों तक वॉशिंगटन द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद का गढ़ कहने के बाद, एक संसदीय सुनवाई में कुरिल्ला ने पाकिस्तान को “आतंकवाद-रोधी दुनिया में एक शानदार साझेदार” बताया था. उनकी यह टिप्पणी मई में हुए चार दिवसीय संघर्ष युद्ध के कुछ ही हफ्तों बाद आई थी और इसने भारत को नाराज़ कर दिया. मुनीर ने ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका को भारत और पाकिस्तान, दोनों को रणनीतिक साझेदार के रूप में देखना चाहिए.
जून में, मुनीर व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ दोपहर के भोजन में शामिल होने वाले पहले पाकिस्तानी सेना प्रमुख बने. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ इस भोजन में विशेष रूप से अनुपस्थित थे. मुनीर का सख्त रुख नया नहीं है, लेकिन इस बार उनकी टिप्पणियां अब तक की सबसे कठोर मानी जा रही हैं.
दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 'परमाणु हथियारों की धमकी देना' पाकिस्तान की पुरानी आदत है. मंत्रालय ने कहा कि सेना प्रमुख की 'गैर-ज़िम्मेदाराना' टिप्पणियां इस संदेह को पुख्ता करती हैं कि पाकिस्तान में परमाणु कमांड और कंट्रोल सुरक्षित हाथों में नहीं है, खासकर जब वहां की सेना आतंकवादी समूहों के साथ मिली हुई है. मंत्रालय ने इस बात पर भी 'खेद' जताया कि ये टिप्पणियां एक 'मित्र' देश अमेरिका की ज़मीन से की गईं.
जो चीन के ख़िलाफ एक मजबूत साथी था, उसी भारत पर ट्रम्प ने टैरिफ का हमला कर दिया
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने भारत के ख़िलाफ़ लगभग एक आर्थिक युद्ध का ऐलान कर दिया है. उन्होंने चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत को एक सहयोगी के तौर पर तैयार करने की दशकों पुरानी अमेरिकी रणनीति को दरकिनार करते हुए भारत को एक "डेड इकॉनमी" यानी मृत अर्थव्यवस्था करार दिया है. बुधवार को ट्रम्प ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर 25 प्रतिशत का दंडात्मक टैरिफ़ लगाने की धमकी दी. यह टैरिफ़ पिछले हफ़्ते घोषित किए गए 25 प्रतिशत के टैरिफ़ के अतिरिक्त होगा, जिससे भारतीय सामानों पर लगने वाला कुल अमेरिकी टैरिफ़ 50 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा.
न्यूयॉर्क टाइम्स के पहले पन्ने पर प्रकाशित इस खबर में लिखा है कि इस क़दम ने दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के बीच संबंधों में एक बड़ा संकट पैदा कर दिया है, जो अब सिर्फ़ व्यापारिक शर्तों से कहीं ज़्यादा गहरा नज़र आ रहा है.
भारत के ख़िलाफ़ यह आक्रामक रुख़ 30 जुलाई को शुरू हुआ, जब ट्रम्प ने भारत की अर्थव्यवस्था को "डेड" घोषित कर दिया था. उस समय तक, उनका प्रशासन भारत के व्यापारिक अवरोधों को कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा था और भारत द्वारा युद्ध के दौरान रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदने पर चुप था. लेकिन अब, 50 प्रतिशत टैरिफ़ की धमकी भारत को एक राजनीतिक दुश्मन के रूप में पेश करती है, और उसे ब्राज़ील जैसे देशों की श्रेणी में खड़ा कर देती है, जिनके वामपंथी राष्ट्रपति से ट्रम्प का टकराव हो चुका है.
यह स्थिति कुछ महीने पहले के माहौल से बिल्कुल विपरीत है. इसी साल फरवरी में, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ट्रम्प से मुलाक़ात की थी, तो दोनों नेताओं की दोस्ती स्पष्ट दिख रही थी. मोदी ने भारत को दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाने की अपनी मंशा ज़ाहिर की थी, जिसमें अमेरिका को एक अहम भागीदार बताया गया था. उन्होंने कहा था, "अमेरिका की भाषा में यह 'मेक इंडिया ग्रेट अगेन' यानी MIGA है. जब अमेरिका और भारत साथ मिलकर काम करते हैं, तो यह MAGA प्लस MIGA समृद्धि के लिए एक 'मेगा पार्टनरशिप' बन जाता है." उस वक़्त ट्रम्प मुस्कुराए थे. इस मुलाक़ात में चीन का ज़िक्र भले ही न हुआ हो, लेकिन वह हमेशा से इस समीकरण का एक अहम हिस्सा रहा है. अमेरिका और भारत मिलकर चीन की बढ़ती ताक़त को नियंत्रित करने के लिए तैयार दिख रहे थे.
पिछले साल अमेरिका और भारत के बीच कुल व्यापार लगभग 130 अरब डॉलर का था. भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले प्रमुख उत्पादों में दवाएँ, ऑटो पार्ट्स, बिजली का सामान और रत्न शामिल हैं. एक चौथाई सदी से भी ज़्यादा समय से, अमेरिकी प्रशासन भारत को एक भू-राजनीतिक सहयोगी के रूप में देखता रहा है. यह तब शुरू हुआ जब भारत ने चीन के ख़िलाफ़ एक निवारक के तौर पर अपने परमाणु शस्त्रागार की घोषणा की थी. कोविड-19 महामारी और यूक्रेन में युद्ध के बाद, अमेरिकी निवेश का भारत में प्रवाह और तेज़ हो गया. बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चीन के साथ व्यापार युद्ध और ताइवान के साथ संभावित सैन्य टकराव के जोखिम को कम करने के लिए भारत में कारोबार करने को लेकर उत्साहित थीं.
वॉल स्ट्रीट ने भी भारत के भविष्य पर दाँव लगाया. भारत की युवा आबादी और राजनीतिक स्थिरता को देखते हुए यहाँ भारी निवेश किया गया. न्यूयॉर्क की निवेश फ़र्म ब्लैकस्टोन के मुख्य कार्यकारी स्टीफ़न श्वार्ज़मैन ने इस साल कहा था कि उनकी कंपनी वैश्विक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बूम को बढ़ावा देने के लिए भारतीय डेटा सेंटरों में 11 अरब डॉलर का निवेश कर रही है. ऐपल जैसी कंपनियों ने अरबों डॉलर भारत में लगाए हैं, ताकि चीन पर अपनी निर्भरता कम की जा सके. लेकिन पिछले एक हफ़्ते में ट्रम्प के हमलों ने इस साझा उद्यम की नींव हिला दी है और दोनों देशों के व्यापारिक जगत में खलबली मचा दी है.
ट्रम्प ने न केवल रूसी तेल को निशाना बनाया है, बल्कि उन दो अन्य उद्योगों पर भी हमला किया है जिन्हें चीन के विकल्प के रूप में भारत में विकसित किया जा रहा था. पहला है फ़ार्मास्यूटिकल्स, जहाँ भारत दुनिया में अग्रणी है और अमेरिका को सालाना 10 अरब डॉलर से ज़्यादा की दवाएँ बेचता है. अमेरिका में खरीदी जाने वाली लगभग 40 प्रतिशत जेनेरिक दवाएँ भारत में बनती हैं. ट्रम्प ने कहा है कि इस सेक्टर पर एक विशेष टैरिफ़ लगाया जाएगा जो 250 प्रतिशत तक पहुँच सकता है. दूसरा निशाना सेमीकंडक्टर है. ट्रम्प का तर्क है कि वह इन उद्योगों को वापस अमेरिका लाना चाहते हैं. यह फ़ैसला उन अमेरिकी और भारतीय कंपनियों के लिए एक बड़ा झटका है जिन्होंने भारत को इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए भारी निवेश किया है. उदाहरण के लिए, अमेरिकी कंपनी माइक्रोन ने मोदी के गृह राज्य गुजरात में चिप बनाने की सुविधा के लिए 2.5 अरब डॉलर का निवेश किया है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्रम्प के कार्यकारी आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह "बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अमेरिका ऐसे क़दमों के लिए भारत पर अतिरिक्त टैरिफ़ लगा रहा है जो कई अन्य देश भी अपने राष्ट्रीय हित में उठा रहे हैं." मंत्रालय ने साफ़ किया कि रूस से तेल का आयात भारत के 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा ज़रूरतों से जुड़ा है और वह इसे रोकने का इरादा नहीं रखता.
इन धमकियों ने महीनों से चल रही व्यापार वार्ता को भी सवालों के घेरे में ला दिया है. कुछ हफ़्ते पहले तक, वार्ताकार और व्यापारिक नेता आशान्वित थे कि दोनों देश एक-दूसरे के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं कि वे किसी वैश्विक व्यापार युद्ध को अपने रिश्ते को तोड़ने नहीं देंगे. लेकिन अब माहौल पूरी तरह बदल गया है. इस रिश्ते के टूटने से भारी अनिश्चितता पैदा हो गई है. एक मुंबई स्थित निवेश पेशेवर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ब्लैकस्टोन जैसे निवेश सिर्फ़ डॉलर के मूल्य से कहीं ज़्यादा हैं; ये भारत, चीन और अमेरिका के बीच व्यापार के भविष्य पर लगाए गए दाँव हैं. अब यह एक कमज़ोरी की तरह लग रहा है.
हालांकि, इस समीकरण के कुछ हिस्से अपेक्षाकृत सुरक्षित दिखते हैं. दोनों देशों के बीच वस्तुओं के व्यापार से ज़्यादा महत्वपूर्ण सेवाओं का व्यापार और लोगों के बीच का आदान-प्रदान रहा है. भारत में आईटी और अन्य पेशेवर क्षेत्रों में वैश्विक कार्यालयों का विस्तार एक उज्ज्वल पक्ष बना हुआ है, जिसका मूल्य पिछले साल 65 अरब डॉलर था. यह वस्तुओं में कुल व्यापार घाटे से भी ज़्यादा है. ज़्यादातर अमेरिकी निवेशक जिन्होंने भारत में दाँव लगाया है, वे अभी भाग नहीं रहे हैं. लेकिन उन्हें 2020 की घटना याद है, जब भारत-चीन सीमा पर झड़पों के बाद चीनी कंपनियों को रातों-रात घाटे में अपना भारतीय निवेश छोड़ना पड़ा था. शब्दों और टैरिफ़ का युद्ध बेशक अलग है, लेकिन अब कोई भी चीन के मुद्दे पर भारत और अमेरिकी सहयोग पर भरोसा नहीं कर सकता.
2,06,378 : पिछले साल भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोग
विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने लोकसभा में बताया है कि पिछले साल 2,06,378 लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी. कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने सवाल पूछा था कि क्या सरकार ने यह जानने की कोशिश की है कि लोग भारतीय नागरिकता क्यों छोड़ रहे हैं. इसके जवाब में मंत्री ने कहा कि नागरिकता छोड़ने के कारण 'निजी होते हैं और यह केवल उस व्यक्ति को ही पता होते हैं'.
आदिवासियों के लिए काम कर रहे युवा समूह पर हिंदुत्ववादी भीड़ का हमला, 'धर्मांतरण' के झूठे आरोप में संस्थापक गिरफ्तार
देवास, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश के देवास ज़िले के आदिवासी गांव शुक्रवासा में शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता के ज़रिए जीवन बेहतर बनाने का एक सामाजिक प्रयोग हिंदुत्ववादी चरमपंथियों की भीड़ की हिंसा और पुलिस की एकतरफ़ा कार्रवाई के बाद ठप पड़ गया है. 'हाउ वी ऑट टू लिव' (HOWL या हाउल) नामक एक स्व-वित्तपोषित युवा समूह अब बिखरा हुआ है, क्योंकि उसके सदस्यों को भीड़ की हिंसा, दुष्प्रचार अभियान और धर्मांतरण के झूठे आरोपों का सामना करना पड़ रहा है. आर्टिकल 14 में अदनान अली ने इस पर लंबा रिपोर्ताज लिखा है.
24 जुलाई 2025 को, हाउल के 46 वर्षीय संस्थापक और पूर्व पत्रकार सौरव बनर्जी को पुलिस ने इंदौर से हिरासत में ले लिया और वे पिछले 18 दिनों से जेल में हैं. उनके वकील जयंत विपट ने बताया कि पुलिस ने बिना वारंट के गिरफ्तारी के लिए नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 57 का इस्तेमाल किया. बनर्जी पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 299 के तहत "धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने" का आरोप है. हालांकि, पुलिस इस मामले में धर्मांतरण का एंगल भी देख रही है, जिस पर वकील ने सवाल उठाया कि "क्या वे हिंदुओं का हिंदुओं में धर्मांतरण कर रहे हैं?".
यह हमला अचानक नहीं हुआ. हाउल के सदस्यों को महीनों से डराया-धमकाया जा रहा था. मई 2025 में, 'संध्या लोकस्वामी' नामक एक स्थानीय टैब्लॉइड ने समूह पर नशीली दवाओं के सेवन से लेकर "हिंदू विरोधी गतिविधियों" और नक्सलियों से संबंध तक के बेबुनियाद आरोप लगाए थे. जब समूह ने पुलिस से शिकायत की, तो कोई कार्रवाई नहीं हुई. समूह का मानना है कि उन पर यह हमला इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने 2023 के विधानसभा चुनावों में एक स्वतंत्र आदिवासी युवा का समर्थन किया था, जिसने 18 साल से सत्ता में बैठे लोगों को हरा दिया था.
HOWL समूह पिछले चार सालों से शुक्रवासा गांव में काम कर रहा था. उन्होंने अनौपचारिक स्कूल बनाए, स्वास्थ्य शिविर लगाए और 'हमारी चक्की' व 'हमारी पोल्ट्री' जैसे आत्मनिर्भर उद्यम शुरू किए. लेकिन अब, बनर्जी की ज़मानत याचिका ख़ारिज हो चुकी है, समूह का काम रुक गया है और उसके सदस्य छिपे हुए हैं. प्रशासन ने उनके बांस और प्लाईवुड से बने ट्री-हाउस कार्यालय को भी "अवैध निर्माण" बताकर ध्वस्त कर दिया है.
जम्मू-कश्मीर में 25 किताबों पर प्रतिबंध
सरकार के 'झूठे नैरेटिव' के दावे पर लेखिका ने उठाए सवाल, कहा - यह ज्ञान पर हमला है
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने हाल ही में 25 किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें पत्रकार और लेखिका अनुराधा भसीन की किताब 'ए डिसमैंटल्ड स्टेट: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ कश्मीर आफ़्टर 370' भी शामिल है. सरकार का दावा है कि ये किताबें "झूठे नैरेटिव और अलगाववादी साहित्य का प्रसार करती हैं" और युवाओं को आतंकवाद के लिए उकसाती हैं. द वायर मे प्रकाशित अपने लेख में, अनुराधा भसीन ने इस प्रतिबंध को मनमाना, अतार्किक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है.
भसीन सवाल उठाती हैं कि सरकार ने इन किताबों को हिंसा से जोड़ने का क्या सबूत पेश किया है? उन्होंने पूछा, "क्या किसी ने इन किताबों को वास्तव में पढ़ा भी है, या यह महज़ किसी 'अनपढ़ सलाहकार' की सलाह पर लिया गया एक नौकरशाही फ़ैसला है?". उनका तर्क है कि यह प्रतिबंध इसलिए लगाया गया है क्योंकि ये किताबें सरकार के "कश्मीर में सब कुछ सामान्य है" वाले नैरेटिव को चुनौती देती हैं और उन सच्चाइयों को सामने लाती हैं जिन्हें सरकार असुविधाजनक मानती है.
उनके अनुसार, इस प्रतिबंध का मक़सद सिर्फ़ इन 25 किताबों को बाज़ार से हटाना नहीं है, बल्कि इसका एक दूरगामी और "डराने वाला प्रभाव" भी है. इससे भविष्य में कश्मीर पर लिखने वाले युवा विद्वानों और शोधकर्ताओं में भय का माहौल पैदा होगा. प्रकाशक संवेदनशील विषयों पर किताबें छापने से हिचकिचाएंगे. इसके अलावा, कश्मीर में बुकशॉप पर पड़े छापे यह दिखाते हैं कि इस प्रतिबंध का इस्तेमाल आम लोगों को परेशान करने और उनके घरों में घुसकर तलाशी लेने के हथियार के तौर पर भी किया जा सकता है.
भसीन का मानना है कि यह क़दम जम्मू-कश्मीर पर सरकार के नियंत्रण को और मज़बूत करने की एक कोशिश है. वह लिखती हैं कि जब दोस्त उनसे पूछते हैं कि "क्या अब आप लिखना बंद कर देंगी?", तो उनका जवाब है कि अब लिखने की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है.
गाज़ा में इजरायली हवाई हमले में अल जज़ीरा के पत्रकार समेत 6 की निशाना लगाकर हत्या
रॉयटर्स के लिए निदाल अल-मुग़राबी की खबर है कि गाज़ा में रविवार को एक इजरायली हवाई हमले में अल जज़ीरा के एक प्रमुख पत्रकार अनस अल शरीफ़ और उनके चार सहकर्मियों की मौत हो गई. इस हमले की पत्रकार और मानवाधिकार समूहों ने कड़ी निंदा की है. इज़राइल की सेना ने कहा कि उसने अनस अल शरीफ़ को निशाना बनाकर मार गिराया, और आरोप लगाया कि वह हमास की एक आतंकवादी सेल का नेतृत्व कर रहे थे और इज़राइल पर रॉकेट हमलों में शामिल थे.
कतर सरकार द्वारा वित्त पोषित अल जज़ीरा ने इस दावे को खारिज कर दिया है. अपनी मृत्यु से पहले, अल शरीफ़ ने भी इज़राइल द्वारा लगाए गए ऐसे दावों का खंडन किया था. अल जज़ीरा ने कहा, "अनस अल शरीफ़ और उनके सहयोगी गाज़ा में बची हुई उन आखिरी आवाज़ों में से थे जो दुनिया को दुखद हकीकत से रूबरू करा रहे थे." गाज़ा के अधिकारियों और अल जज़ीरा के अनुसार, 28 वर्षीय अल शरीफ़ उन चार अल जज़ीरा पत्रकारों और एक सहायक में शामिल थे, जिनकी मौत गाज़ा शहर के पूर्व में अल शिफ़ा अस्पताल के पास एक टेंट पर हुए हवाई हमले में हुई. एक छठे पत्रकार, स्थानीय फ्रीलांस रिपोर्टर मोहम्मद अल-खालदी की भी इस हमले में मौत हो गई.
इजरायली सेना ने एक बयान में कहा कि अल शरीफ़ हमास सेल का नेतृत्व करते थे और इजरायली नागरिकों और सैनिकों के ख़िलाफ़ रॉकेट हमलों को आगे बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार थे. सेना ने खुफिया जानकारी और गाज़ा में खोजे गए दस्तावेज़ों का हवाला दिया, लेकिन उसने इसे सार्वजनिक नहीं किया. इज़राइल ने पत्रकारों को जानबूझकर निशाना बनाने से इनकार किया है और कहा है कि हवाई हमलों में मारे गए कई लोग प्रेस की आड़ में काम कर रहे इस्लामी आतंकवादी समूहों के सदस्य थे. दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इन हत्याओं की निंदा करते हुए कहा कि इजरायली सेना की कार्रवाई "अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का गंभीर उल्लंघन" है.
यह संघर्ष पत्रकारों के लिए अब तक का सबसे घातक रहा है. हमास द्वारा संचालित गाज़ा सरकारी मीडिया कार्यालय ने कहा है कि 7 अक्टूबर, 2023 को युद्ध शुरू होने के बाद से 238 पत्रकार मारे गए हैं. कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) के अनुसार, गाज़ा संघर्ष में कम से कम 186 पत्रकार मारे गए हैं. संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत इरीन ख़ान ने पिछले महीने कहा था कि अल शरीफ़ के ख़िलाफ़ इज़राइल के दावे निराधार थे. अल जज़ीरा ने बताया कि अल शरीफ़ ने अपनी मौत की स्थिति में पोस्ट करने के लिए एक संदेश छोड़ा था जिसमें लिखा था, "...मैंने सच्चाई को बिना किसी तोड़-मरोड़ के बताने में कभी संकोच नहीं किया, उम्मीद है कि ईश्वर उन लोगों का गवाह बनेगा जो चुप रहे".
चलते चलते
सजी-धजी बनी-ठनी सड़क पर उतरती सवारियां
फोटोग्राफर क्रिस्टोफर हरविग ने दक्षिण एशिया में हज़ारों मील की यात्रा कर वहां के सजे-धजे वाहनों की तस्वीरें खींची हैं. उनकी नज़र से रंग-बिरंगे ट्रक, टैंकर और ऑटो-रिक्शा कुछ भी नहीं बचा है. इन पर बनी कलाकृतियां कई तरह की चीज़ों से प्रभावित हैं. जैसे पाकिस्तानी ट्रकों पर सिख गुरु, बांग्लादेशी ऑटो पर हवाई जहाज़ और समुद्री जहाज़, और यहां तक कि श्रीलंकाई ऑटो पर सिगरेट पीता हुआ 'द जोकर' भी नज़र आता है. जयपुर में, एक ट्रक पर बेटियों को शिक्षित करने का प्रेरक संदेश भी लिखा है.
पाठकों से अपील :
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