12/10/2025: कफ़ सिरप से मरते बच्चों की फिक्र किसे? | अमित शाह का घुसपैठिया कार्ड | सुसाइड से पहले संघ कार्यकर्ताओं पर यौन शोषण का आरोप | सनातनी रोष पर अपूर्वानंद | ट्रंप और चीन
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
एमपी में ज़हरीले कफ़ सिरप से 24 बच्चों की मौत, जवाबदेही पर सवालिया निशान
अमित शाह: मुस्लिम आबादी बच्चों से नहीं, घुसपैठियों से बढ़ी
RSS कार्यकर्ताओं पर यौन शोषण का आरोप लगाकर युवक ने की आत्महत्या
ईडी ने अनिल अंबानी के करीबी सहयोगी को किया गिरफ़्तार
मेडिकल कॉलेज के बाहर एमबीबीएस छात्रा से सामूहिक बलात्कार, कोई गिरफ़्तारी नहीं
डिजिटल युग में लड़कियां ज़्यादा असुरक्षित, विशेष कानून की ज़रूरत: सीजेआई
अपूर्वानंद : CJI पर हमला उसी ‘सनातनी रोष’ का नतीजा जिसे सत्ता ने वैधता दी
आईपीएस की मौत पर सोनिया गांधी: सत्ता का पूर्वाग्रह सामाजिक न्याय से वंचित कर रहा है
उत्तराखंड पेपर लीक: स्नातक स्तरीय परीक्षा रद्द, तीन महीने के भीतर दोबारा होगी
तालिबान मंत्री की प्रेस वार्ता से महिला पत्रकार बाहर, विदेश मंत्रालय ने झाड़ा पल्ला
मस्जिद परिसर में इमाम की पत्नी और दो मासूम बेटियों की धारदार हथियार से हत्या
पुलिस की पिटाई से इंजीनियरिंग छात्र की मौत, दो कांस्टेबल निलंबित
ट्रंप ने चीन पर 100% टैरिफ़ लगाने की दी धमकी, शी के साथ बैठक भी कर सकते हैं रद्द
नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो छोड़ेंगे अमेरिका, ज्यूरिख में संभालेंगे कमान
कफ़ सिरप को लेकर एमपी में 24 बच्चों के मरने के बाद भी सवाल ज़्यादा जवाब कम
मध्य प्रदेश में एक मिलावटी कफ सिरप पीने के बाद 24 बच्चों की मौत हो गई है और तीन अन्य की हालत गंभीर है. प्रयोगशाला जांच में पता चला है कि सिरप में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की उच्च मात्रा थी, जो एक औद्योगिक विलायक (industrial solvent) है और जिसका इस्तेमाल दवा में कभी नहीं किया जाता.
कोल्ड्रिफ नामक खांसी की सिरप की 60 मिलीलीटर की बोतल को मध्यप्रदेश में सामने आई एक त्रासदी से जोड़ा गया है. सितंबर से, राज्य के 24 बच्चों की मौत हो चुकी है. उनमें से अधिकांश छिंदवाड़ा से थे, जबकि कुछ पड़ोसी बैतूल और पांढुर्णा जिलों से थे. नागपुर में तीन और बच्चे गंभीर हालत में हैं. प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला है कि सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकॉल की उच्च सांद्रता थी, जो एक औद्योगिक विलयन (सॉलवेंट) है और जिसका उपयोग दवाओं में कभी नहीं किया जाता है. बिंदु शाजन पेराप्पादान और मेहुल मालपानी उस भयावहता पर रिपोर्ट करते हैं जो भारत की कमज़ोर नियामक प्रणाली के खतरों को उजागर करती है.
अफ़साना ख़ान ने अपने बेटे उसैद से जो आख़िरी शब्द सुने, वे एक नर्सरी कविता की पंक्तियाँ थीं - “अनार का मीठा दाना”. नागपुर के एक अस्पताल में बिस्तर पर लेटे कमज़ोर उसैद ने यह कविता सुनाने की कोशिश की थी. अफ़साना मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा ज़िले के परासिया कस्बे में अपने दो कमरों के घर में बैठकर बताती हैं, “वह इन पंक्तियों को कहने के बाद बेहोश हो गया और फिर कभी नहीं उठा.” 13 सितंबर, 2025 को तीन बार डायलिसिस के बाद किडनी फेल होने से उसैद की मौत हो गई.
सितंबर से अब तक राज्य में 24 बच्चों की मौत हो चुकी है. ज़्यादातर छिंदवाड़ा के थे, जबकि कुछ पड़ोसी ज़िलों बैतूल और पांढुर्ना से थे. सभी 24 बच्चों में एक बात समान थी - उन्हें बुखार और सर्दी हुई थी और उनका इलाज परासिया में हुआ था. कई माता-पिताओं के अनुसार, इलाके के एक लोकप्रिय बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी ने कई बीमार बच्चों को ‘कोल्ड्रिफ़’ (Coldrif) नामक कफ सिरप दिया था.
सिरप पीने के बाद बच्चों ने पेट दर्द की शिकायत की. जल्द ही, वे उल्टियां करने लगे, सुस्त हो गए और उनके शरीर में सूजन आ गई. अंत में, पेशाब न कर पाने के कारण, बच्चों की किडनी बुरी तरह ख़राब हो गई और उनकी मौत हो गई. परासिया के सेथिया गांव के एक किसान सुरेश पिपरी अपनी 5 साल की बेटी ऋषिका के आख़िरी दिनों को याद करते हैं. “उसे दिन में दो बार 5 मिलीलीटर सिरप दिया गया. पहली ख़ुराक देते ही वह हरी उल्टी करने लगी. अगली सुबह तक उसने बात करना और किसी को पहचानना बंद कर दिया.” नागपुर में नौ बार डायलिसिस के बाद, 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई.
शुरुआत में स्थानीय स्वास्थ्य विभाग को इन मौतों की भनक तक नहीं लगी क्योंकि बच्चे निजी अस्पतालों में भेजे गए थे. 16 सितंबर को जब नागपुर के स्वास्थ्य अधिकारियों ने छिंदवाड़ा ज़िला अस्पताल को सूचित किया, तब जांच शुरू हुई. 22 सितंबर को नागपुर के डॉक्टरों ने शक जताया कि किडनी को नुकसान किसी दवा की वजह से हुआ हो सकता है. जांच के बाद दो कफ सिरप - कोल्ड्रिफ़ और नास्त्रो-डीएस - शक के दायरे में आए. 24 सितंबर को, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की टीमों ने जांच शुरू की.
जांच में पता चला कि तमिलनाडु स्थित स्रेसन फार्मास्युटिकल्स द्वारा निर्मित कोल्ड्रिफ़ कफ सिरप में 48.6% डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) था, जो एक ज़हरीला रसायन है. यह आमतौर पर एयर कंडीशनर, फ्रिज और फ्रीज़र के लिए एंटीफ्रीज़ घोल में इस्तेमाल किया जाता है. निर्माताओं द्वारा लागत कम करने के लिए इसे ग्लिसरीन जैसे सुरक्षित पदार्थों की जगह इस्तेमाल किया जाता है. भारत में बना दूषित कफ सिरप एक बार-बार होने वाला स्वास्थ्य ख़तरा है. 2022 में, गाम्बिया, इंडोनेशिया और उज़्बेकिस्तान में 300 से ज़्यादा बच्चों की मौत भारत में बने दूषित सिरप से हुई थी, फिर भी यह समस्या बनी हुई है.
स्वास्थ्य एक राज्य का विषय है, जिसका अर्थ है कि CDSCO नई दवाओं को मंज़ूरी देता है, जबकि राज्यों के पास निर्माण, बिक्री और वितरण के लाइसेंस होते हैं. इस मामले में कोल्ड्रिफ़ को तमिलनाडु सरकार ने 2011 में लाइसेंस दिया था. तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि केंद्रीय दवा निरीक्षकों ने पिछले छह सालों में राज्य में निरीक्षण नहीं किया है, जबकि यह हर तीन साल में होना चाहिए. मध्य प्रदेश में भी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) के अधिकारियों पर लापरवाही के आरोप लगे हैं.
9 अक्टूबर को, मध्य प्रदेश की एक विशेष जांच टीम ने स्रेसन फार्मा के मालिक जी. रंगनाथन को चेन्नई में गिरफ़्तार कर लिया. परासिया पुलिस स्टेशन में डॉ. सोनी और स्रेसन फार्मा के निदेशकों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है. अधिकारी अब भी परासिया और आसपास के इलाकों में घर-घर जाकर कोल्ड्रिफ़ सिरप की बची हुई बोतलें तलाश रहे हैं.
कांग्रेस का दावा, मप्र में 150 से अधिक बच्चों की मौत हुई
एक ओर मध्यप्रदेश पुलिस का विशेष जांच दल (एसआईटी) छिंदवाड़ा और आस-पास के जिलों में जहरीले कफ सिरप के कारण किडनी फेल होने से हुई कम से कम 23 बच्चों की हालिया मौतों की जांच कर रहा है, वहीं विपक्षी कांग्रेस ने राज्य भर में दस साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों की जांच के लिए एक अलग एसआईटी जांच की मांग की है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अलग एसआईटी की मांग करते हुए दावा किया कि पिछले तीन महीनों में छिंदवाड़ा, बैतूल, पांढुर्णा, सिवनी और आस-पास के जिलों सहित दक्षिणी मध्यप्रदेश के जिलों में 500 से अधिक बच्चे बीमार पड़े, जिनमें 150 से अधिक की मृत्यु हो गई.
पटवारी ने पूरे मध्यप्रदेश में पिछले एक वर्ष के दौरान 10 साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों की सीबीआई जांच की भी मांग की. उन्होंने कहा, “यह सिरप (कोल्ड्रिफ) केवल मध्यप्रदेश में नहीं, बल्कि कई अन्य राज्यों में भी बेचा जाता है, इसलिए यह स्थापित करने के लिए एक सीबीआई जांच की आवश्यकता है कि मौतें केवल मध्यप्रदेश में ही क्यों हुईं? यह तभी स्पष्ट हो सकता है, जब जांच में पिछले एक वर्ष के दौरान राज्य भर में दस साल से कम उम्र के बच्चों की मौत को शामिल किया जाए.”
बच्चे पैदा करके नहीं, घुसपैठियों ने बढ़ाया है अमित शाह के मुताबिक मुस्लिमों का आबादी प्रतिशत
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि भारत में मुस्लिम आबादी 1951 में 9.8 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 14.2 प्रतिशत हो गई, लेकिन यह उच्च प्रजनन दर के कारण नहीं, बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से “घुसपैठ” के कारण हुआ है.
शाह ने शुक्रवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा, “मुस्लिम आबादी में 24.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि हिंदू आबादी में 4.5 प्रतिशत की कमी आई है.” उन्होंने कहा, “यह प्रजनन दर के कारण नहीं, बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ के कारण हुआ है.”
शाह ने कहा कि 1951 में भारत की आबादी में हिंदू 84 प्रतिशत थे और मुस्लिम 9.8 प्रतिशत थे. उन्होंने कहा, “2011 में (अंतिम जनसंख्या जनगणना), हिंदू 79 प्रतिशत थे, जबकि मुस्लिम 14.2 प्रतिशत थे.”
उन्होंने आगे कहा: “घुसपैठिए कौन हैं? वे लोग जिन्हें धार्मिक उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है और जो आर्थिक या अन्य कारणों से अवैध रूप से भारत आना चाहते हैं, वे घुसपैठिए हैं. अगर दुनिया में किसी को भी यहां आने की अनुमति दी जाए, तो हमारा देश ‘धर्मशाला’ बन जाएगा.
शाह ने कहा कि जिन मुसलमानों ने विभाजन के बाद स्वेच्छा से इस देश में रहना स्वीकार किया, उनकी नागरिकता पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है. “लेकिन जो लोग यहाँ अवैध रूप से आते हैं, उनके साथ घुसपैठियों जैसा व्यवहार किया जाएगा.”
11 साल से गृह मंत्री क्या कर रहे थे, किसकी सरकार है?
इस बीच, ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर ने अमित शाह के इस बयान के जवाब में “एक्स” पर लिखा, “आपके डिलीट किये गए ट्वीट में, आपने कहा था कि भारत में मुस्लिम आबादी अब 24.6% हो गई है. मतलब, जो 2014 में 15-16% थी, वह अब भाजपा सरकार के 11 साल के राज के बाद 24.6% हो गई. और इसका कारण आप “घुसपैठ” बता रहे हैं. तो भाई, सरकार किसकी थी, 11 साल तक गृह मंत्री क्या कर रहे थे?
उनकी यह टिप्पणी ‘जनसंख्या जिहाद’ के बारे में दक्षिणपंथी पारिस्थितिकी तंत्र के लंबे समय से चले आ रहे षड्यंत्र सिद्धांत के विपरीत प्रतीत हुई, जिसके तहत मुसलमानों पर हिंदुओं को पछाड़ने के इरादे से अधिक बच्चे पैदा करने का आरोप लगाया जाता है. नरेंद्र मोदी ने खुद 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, मुसलमानों में उच्च प्रजनन दर के बारे में डर पैदा किया था, और दंगे के बाद के राहत शिविरों का मज़ाक उड़ाते हुए उन्हें बच्चे पैदा करने वाली फैक्ट्रियां कहा था.
उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा था, “हम पांच, हमारे पच्चीस,” जिसका अर्थ था कि मुस्लिम पुरुष (प्रत्येक) चार महिलाओं से शादी करते हैं और 25 बच्चे पैदा करते हैं. हालांकि, इस वर्ष अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, अब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि “घुसपैठिए” जनसांख्यिकीय परिवर्तन का कारण बन रहे हैं.
इमरान अहमद सिद्दीकी के अनुसार, गृह मंत्री ने कहा कि 2011 की जनगणना में असम में मुस्लिम आबादी में 29.6 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई थी. यह घुसपैठ के बिना संभव नहीं है. पश्चिम बंगाल में, कुछ जिलों में मुसलमानों की आबादी बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई, और कुछ सीमावर्ती जिलों में यह 70 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के इस आरोप को वापस उसी पर चस्पा करने की कोशिश की कि कोई भी घुसपैठ शाह की गृह मंत्री के रूप में विफलता को दर्शाती है, क्योंकि सीमा सुरक्षा बाल (बीएसएफ़) उनके मंत्रालय के अंतर्गत है. उन्होंने कहा, “नदी किनारे की सीमा और कठिन भूभाग के कारण घुसपैठ को रोकना मुश्किल हो गया है. इन स्थानों से कोई भी घुसपैठ को रोक नहीं सकता. केंद्र अकेले घुसपैठ को नहीं रोक सकता, क्योंकि घुसपैठ को उन राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन मिलता है जो इसे वोट बैंक के रूप में देखते हैं.”
“मैं टीएमसी से पूछना चाहता हूं की सीमा पार करने के बाद ये घुसपैठिए सबसे पहले कहां जाते हैं. राजस्व विभाग का कोई अधिकारी उनके बारे में पुलिस को शिकायत क्यों नहीं करता? आधार कौन बनवाता है?”
शाह ने कहा कि न तो घुसपैठ और न ही मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को राजनीतिक चश्मे से देखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “विपक्ष इस कवायद का विरोध कर रहा है, क्योंकि उसके वोट बैंक कम हो रहे हैं. ... मतदाताओं की सूची को साफ करना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है. अगर आपको कोई समस्या है तो आप अदालत जा सकते हैं.”
आरएसएस कार्यकर्ताओं पर यौन शोषण का आरोप, केरल के युवक ने आत्महत्या की
केरल के कोट्टायम जिले के एक युवक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली. एक इंस्टाग्राम पोस्ट में, उसने कहा कि चार साल की उम्र में उसके साथ बलात्कार हुआ था और उसने आरएसएस संगठन के कई सदस्यों से यौन शोषण सहा था.
23 वर्षीय अनंतू अजी, जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत था, ने कहा, “मैं किसी लड़की, प्रेम प्रसंग, कर्ज या ऐसी किसी भी अन्य चीज़ के कारण आत्महत्या नहीं कर रहा हूं. मैं यह चिंता और अवसाद के कारण कर रहा हूं.” उसने आरोप लगाया, “बचपन में, एक व्यक्ति ने लगातार उसका शोषण किया, और बाद में, उसे आरएसएस संगठन के भीतर कई व्यक्तियों द्वारा यौन शोषण का शिकार बनाया गया.” उसने यह भी आरोप लगाया कि आरएसएस शिविरों, जिनमें आईटीसी और ओटीसी शामिल थे, में उसे यौन और शारीरिक दुर्व्यवहार दोनों का सामना करना पड़ा, जिसमें लाठियों से पिटाई भी शामिल थी.
ईडी ने अनिल अंबानी के करीबी सहयोगी को रिलायंस ग्रुप के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने रिलायंस पावर लिमिटेड (आरपीएल) के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफ़ओ) को रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह की कंपनियों से जुड़े 3,000 करोड़ रुपये के कथित बैंक ऋण धोखाधड़ी की मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया है.
महेंदर सिंह मनराल के अनुसार, गिरफ्तार सीएफओ, अशोक कुमार पाल, को दिल्ली मुख्यालय में पूछताछ के लिए बुलाया गया था और शुक्रवार देर रात ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त आधार पाए जाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.” केंद्रीय एजेंसी को पाल की दो दिन की हिरासत मिली है. पाल, उद्योगपति अनिल अंबानी के करीबी सहयोगी हैं और उन्होंने कथित तौर पर इस धोखाधड़ी में अहम भूमिका निभाई थी.
बंगाल में एमबीबीएस छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार, कोई गिरफ़्तारी नहीं
पश्चिम बंगाल के पश्चिम बर्धमान जिले में एक निजी मेडिकल कॉलेज की एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा को कथित तौर पर शुक्रवार रात को उसके कॉलेज परिसर के बाहर खींचकर ले जाया गया और बलात्कार किया गया. इस संबंध में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. मामला सामने आने के बाद मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने प्रिंसिपल के दफ्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया.
पीड़िता, ओडिशा के बालासोर की रहने वाली है. वह, एक पुरुष मित्र के साथ रात का खाना खाने के लिए कैंपस से बाहर गई थी, जब कथित तौर पर उसे कॉलेज परिसर के पीछे स्थित एक जंगल में ले जाकर यौन उत्पीड़न किया गया. सूचना मिलने पर, पुलिस तुरंत मौके पर पहुंची. पीड़िता का एक स्थानीय अस्पताल में इलाज किया गया. उसकी हालत कथित तौर पर स्थिर है, हालांकि वह गहरे सदमे में है.
तनुश्री बोस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना दुर्गापुर स्थित निजी मेडिकल कॉलेज परिसर के बाहर हुई. पीड़िता के पिता ने कॉलेज अधिकारियों पर लापरवाही तथा छात्रावास में अपर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने का आरोप लगाया. पिता ने यह भी आरोप लगाया कि जब उनकी बेटी कैंपस गेट पर पहुंची, तो लगभग चार-पांच लोगों ने उसे खींचकर एक सुनसान जगह पर ले जाकर बलात्कार किया. उन्होंने उसका मोबाइल फोन छीन लिया और उसे वापस करने के लिए 3,000 रुपये की मांग भी की. पुलिस मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों और उस पुरुष मित्र से भी पूछताछ कर रही है, जो छात्रा के साथ था.
डिजिटल युग में लड़कियां ज्यादा असुरक्षित, विशेष कानून की जरूरत : सीजेआई
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने शनिवार को ऑनलाइन उत्पीड़न, साइबरबुलिंग और डिजिटल पीछा करने (डिजिटल स्टॉकिंग) के साथ-साथ व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग और डीपफेक इमेजरी के कारण डिजिटल युग में लड़कियों की असुरक्षा पर चिंता व्यक्त की. सीजेआई ने कहा कि डिजिटल युग में लड़कियां ज्यादा असुरक्षित हैं. उन्होंने विशेष कानून बनाने और कानून लागू करने वालों तथा निर्णय लेने वालों के प्रशिक्षण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.
सीजेआई ने एक कार्यक्रम में कहा कि संवैधानिक और कानूनी गारंटी के बावजूद, देश भर में कई लड़कियों को दुखद रूप से उनके मौलिक अधिकारों और यहां तक कि जीवित रहने के लिए बुनियादी ज़रूरतों से भी वंचित रखा जा रहा है. यह असुरक्षा उन्हें यौन शोषण, उत्पीड़न और हानिकारक प्रथाओं, जैसे महिला जननांग विकृति, कुपोषण, लिंग-चयनात्मक गर्भपात, तस्करी और उनकी इच्छा के विरुद्ध बाल विवाह के अत्यधिक उच्च जोखिमों के सामने लाती है.
विश्लेषण
अपूर्वानंद | जिस सनातनी रोष के नाम पर मुख्य न्यायाधीश पर हुआ हमला
यह लेख दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाने वाले और साहित्यिक-सांस्कृतिक आलोचक अपूर्वानंद ने द हिंदू ग्रुप की पत्रिका फ्रंटलाइन के लिए लिखा है. इसके मुख्य अंश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर हुए हमले की निंदा की है, लेकिन इस हमले के पीछे का गुस्सा उसी राजनीति को दर्शाता है जिसे उनकी पार्टी लंबे समय से वैधता देती आ रही है.
यह घटना तब हुई जब 71 वर्षीय हिंदू वकील राकेश किशोर ने अदालत में मुख्य न्यायाधीश गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया. अदालत से बाहर निकाले जाने से पहले, किशोर ने चिल्लाकर कहा, “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान”. प्रधानमंत्री ने इस घटना पर कहा कि इस हमले ने “हर भारतीय को नाराज” किया है और “हमारे समाज में ऐसे निंदनीय कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है”.
यह घटना प्रज्ञा ठाकुर के प्रकरण की याद दिलाती है, जिन्होंने खुले तौर पर नाथूराम गोडसे की प्रशंसा की थी. उस समय श्री मोदी नाराज़ दिखे थे और कहा था कि वह उन्हें दिल से कभी माफ नहीं कर पाएंगे. फिर भी, प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली पार्टी बीजेपी ने उन्हें भोपाल से लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया. प्रधानमंत्री की नाराज़गी के बावजूद, ठाकुर ने अपनी बयानबाज़ी को और भी तीखा कर दिया. वह अन्य बीजेपी नेताओं के साथ मिलकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे भाषण देती रहती हैं, जिसमें प्रधानमंत्री खुद सबसे आगे हैं.
दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने वकील का लाइसेंस रद्द करते हुए हमले के पीछे के कारण को स्पष्ट करना ज़रूरी समझा. एसोसिएशन ने कहा: “यह घटना, जो कथित तौर पर खजुराहो विष्णु मूर्ति बहाली मामले में माननीय मुख्य न्यायाधीश की विवेकपूर्ण टिप्पणियों के खिलाफ एक गुमराह प्रतिक्रिया से उपजी है, को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. न्यायाधीश महोदय ने सभी धर्मों के सम्मान पर जोर दिया था और सोशल मीडिया पर उनकी बातों को तोड़े-मरोड़े जाने के बाद अपनी टिप्पणी को स्पष्ट भी किया था.”
इसका मतलब है कि इस हमले के पीछे एक कारण था, भले ही वह गुमराह करने वाला क्यों न हो. सभी मीडिया संस्थानों ने भी यही बताया कि खजुराहो मामले में मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणियों ने वकील के गुस्से को भड़काया.
अगर किसी कार्रवाई के पीछे कोई कारण है, तो उसकी प्रतिक्रिया भी ज़रूर होगी, भले ही कोई उसे अस्वीकार करे. यह शायद आश्चर्य की बात नहीं है कि कुछ “सनातनी” मानते हैं कि अगर मुख्य न्यायाधीश गवई जैसे जज अपनी कथित सनातन-विरोधी, हिंदू-विरोधी बयानबाज़ी जारी रखते हैं, तो उन्हें भीड़ द्वारा सबक सिखाया जाना चाहिए. वकील ने भले ही अपना लाइसेंस खो दिया हो, लेकिन उन्हें हिंदुओं के एक वर्ग का समर्थन मिला है. यहां तक कि “हिंदू हृदय सम्राट” की निंदा ने भी न तो वकील और न ही उनके समर्थकों के उत्साह को कम किया है.
यह देखना ज़रूरी है कि यह नई सनातनी आक्रामकता मुख्यधारा में कैसे आई है. खजुराहो मामले में मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणियों के बाद उन पर मौखिक हमले हुए. जो मौखिक है, वह आसानी से शारीरिक हमले में बदल सकता है. लोकप्रिय सनातनी गुस्से को श्री मोदी सहित बीजेपी के नेता संगठित कर रहे हैं. एक साधारण गूगल सर्च से पता चलता है कि श्री मोदी और अन्य बीजेपी नेता विपक्षी दलों पर सनातन धर्म का अनादर करने का आरोप लगाते हैं. वे मतदाताओं के सामने खुद को सनातन धर्म के रक्षक के रूप में पेश करते हैं. यह सरकार सनातनियों की सरकार के रूप में प्रस्तुत की जाती है. यह 2014 के बाद की घटना है, जो 2019 के बाद और तेज़ हुई है. आज कई हिंदुओं को शायद याद न हो कि सार्वजनिक बहसों में सनातन धर्म का इतना ज़िक्र होता था. हम देख रहे हैं कि बीजेपी और आरएसएस के पदाधिकारियों द्वारा एक सनातनी रोष को संगठित और उजागर किया जा रहा है. मुख्य न्यायाधीश पर हमला इसी की एक और अभिव्यक्ति मात्र है.
आईपीएस की मौत पर सोनिया गांधी बोलीं- सत्ता का पूर्वाग्रह सामाजिक न्याय से वंचित कर रहा है
भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी वाई. पूरन कुमार की कथित आत्महत्या के मामले में उनकी पत्नी अम्नीत पी. कुमार के प्रति एकजुटता दिखाते हुए कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस घटना को सत्ता में बैठे लोगों के “पूर्वाग्रही और पक्षपातपूर्ण” रवैये की एक कड़वी याद बताया है. उन्होंने कहा कि ऐसा पूर्वाग्रह आज भी वरिष्ठ अधिकारियों तक को सामाजिक न्याय से वंचित कर रहा है.
10 अक्टूबर को लिखे एक पत्र में सोनिया गांधी ने अम्नीत को संबोधित करते हुए कहा, “आपके पति और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, श्री वाई. पूरन कुमार की दुखद मृत्यु की ख़बर चौंकाने वाली और अत्यंत दुखद है.” अम्नीत हरियाणा सरकार में आयुक्त और सचिव के पद पर कार्यरत एक वरिष्ठ IAS अधिकारी हैं. सोनिया गांधी ने आगे लिखा, “इस बेहद मुश्किल समय में मेरी हार्दिक संवेदनाएं आपके और आपके पूरे परिवार के साथ हैं. श्री वाई. पूरन कुमार का निधन हमें याद दिलाता है कि आज भी, सत्ता में बैठे लोगों का पूर्वाग्रही और पक्षपातपूर्ण रवैया वरिष्ठतम अधिकारियों को भी सामाजिक न्याय से वंचित कर देता है. न्याय के इस रास्ते पर मैं और देश के करोड़ों लोग आपके साथ खड़े हैं.”
52 वर्षीय वाई. पूरन कुमार, जो 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी थे और हाल ही में रोहतक के सुनारिया स्थित पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में महानिरीक्षक (Inspector General) के पद पर तैनात थे, ने कथित तौर पर खुद को गोली मारकर अपनी जान दे दी. उन्होंने अपने पीछे आठ पन्नों का एक नोट छोड़ा है, जिसमें हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों पर पिछले कुछ वर्षों से “मानसिक उत्पीड़न”, अपमान और “खुलेआम जाति-आधारित भेदभाव” का आरोप लगाया गया है.
इस मामले की जांच के लिए चंडीगढ़ पुलिस ने छह सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है. हालांकि, कुमार के परिवार ने अभी तक पोस्टमार्टम के लिए अपनी सहमति नहीं दी है. उनकी पत्नी अम्नीत ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में “अधूरी जानकारी” होने पर चिंता जताई है. उन्होंने FIR में सभी आरोपियों के नाम सीधे तौर पर शामिल करने और SC/ST अधिनियम की “कमज़ोर धाराओं” को संशोधित करने की मांग की है.
इस बीच, बढ़ते दबाव के बाद हरियाणा सरकार ने शनिवार (11 अक्टूबर, 2025) को रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया का तबादला कर दिया है. परिवार ने यह भी आरोप लगाया है कि कुमार के शव को उनसे पूछे बिना चंडीगढ़ के सरकारी अस्पताल से पीजीआईएमईआर में स्थानांतरित कर दिया गया है. मृतक अधिकारी के साले और बठिंडा ग्रामीण से AAP विधायक अमित रतन ने कहा, “हमारे साथ अन्याय हो रहा है. एक डीजीपी स्तर के अधिकारी की मौत हुए पांच दिन हो गए हैं, लेकिन हमें अभी तक न्याय नहीं मिला है.”
चंडीगढ़ के डीजीपी सागर प्रीत हुड्डा ने परिवार से मुलाकात कर जल्द से जल्द पोस्टमार्टम कराने का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा कि पोस्टमार्टम एक बोर्ड द्वारा किया जाएगा जिसमें एक मजिस्ट्रेट, फोरेंसिक विशेषज्ञ और डॉक्टर शामिल होंगे, और पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी. हालांकि, यह तभी होगा जब परिवार अपनी सहमति देगा.
‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’; गुजरात के 8 नगर निगमों में ₹2 लाख करोड़ के बजट का ऑडिट नहीं, जवाबदेही का संकट
गुजरात में जवाबदेही का एक बड़ा संकट पैदा हो गया है, क्योंकि राज्य के आठ प्रमुख नगर निगमों का कई वर्षों से ऑडिट नहीं हुआ है. इसके परिणामस्वरूप 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बजट बगैर ऑडिट का और असत्यापित पड़ा हुआ है.
एक आरटीआई जवाब के माध्यम से हुए इन खुलासों से प्रणालीगत लापरवाही, ऑडिट कानूनों का उल्लंघन, और वित्तीय पारदर्शिता में चौंकाने वाली विफलता सामने आई है. संबंधित शहरों के नागरिकों को यह जानने से अंधेरे में रखा गया है कि सार्वजनिक धन कैसे खर्च किया जा रहा है. अब, गुजरात का शहरी प्रशासन एक वित्तीय तूफान का सामना कर रहा है.
आरटीआई दस्तावेजों ने खुलासा किया है कि आठ प्रमुख नगर निगमों— अहमदाबाद, गांधीनगर, राजकोट, जामनगर, भावनगर, जूनागढ़, सूरत और वडोदरा— में कई वर्षों से एक भी ऑडिट पूरा नहीं हुआ है.
दिलीप सिंह क्षत्रिय की रिपोर्ट के मुताबिक, यह डेटा, अधिनियम की धारा 4(1) के तहत दायर आरटीआई के जवाब में स्थानीय निधि लेखा कार्यालय के निदेशक से प्राप्त हुआ है, जो दर्शाता है कि नागरिक निधियों में हजारों करोड़ रुपये बिना ऑडिट के पड़े हैं, जो गुजरात स्थानीय निधि ऑडिट अधिनियम, 1963 का उल्लंघन है. इस बैकलॉग का मतलब है कि गुजरात के सबसे बड़े शहरों में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नगरपालिका खर्च अनिवार्य वित्तीय जांच से कभी नहीं गुजरा है.
अकेले अहमदाबाद नागरिक निकाय का 2024–25 में लगभग ₹12,000 करोड़ का वार्षिक बजट है, लेकिन इसने 2017–18 के बाद से कोई ऑडिट पूरा नहीं किया है, जिसका मोटा-मोटा मतलब है कि केवल एक शहर के लिए लगभग ₹50,000 करोड़ के खाते असत्यापित हैं. सूरत और वडोदरा में भी ऐसे ही पैटर्न देखे गए हैं, जबकि अन्य निगमों का चार से छह वर्षों तक ऑडिट नहीं हुआ है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि शासन की एक गहरी विफलता है.
रिपोर्ट के अनुसार, 11वें केंद्रीय वित्त आयोग (2000-05) ने सिफारिश की थी कि नगर निगमों का ऑडिट नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के मार्गदर्शन में किया जाए, जिसकी रिपोर्ट राज्य विधानसभा को प्रस्तुत की जाए. वित्त विभाग के 6 मई, 2005 के प्रस्ताव और बाद में 23 दिसंबर, 2011 के सर्कुलर ने इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दिया था. सीएजी ने भी अगस्त 2009 में इसका पालन न होने पर चिंता व्यक्त की थी और गुजरात से समय पर ऑडिट सुनिश्चित करने के लिए कहा था. 2011 में, इस दायित्व को सुदृढ़ करने के लिए गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम, 1949 में धारा 108ए जोड़ी गई थी. फिर भी, आरटीआई जवाब पुष्टि करता है कि इनमें से किसी भी निर्देश को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया है. इस विफलता का यह भी अर्थ है कि वर्षों से कोई भी ऑडिट रिपोर्ट गुजरात विधानसभा में पेश नहीं की गई, क्योंकि ऑडिट कभी हुआ ही नहीं.
आरटीआई कार्यकर्ता और प्रोफेसर हेमंत कुमार शाह ने सरकार की आलोचना करते हुए अनियमितताओं को जानबूझकर छिपाने का आरोप लगाया है. शाह ने कहा, “यदि वर्षों तक ऑडिट ही नहीं किया जाता है, तो पारदर्शिता ध्वस्त हो जाती है और अनियमितताएं दब जाती हैं.”
उन्होंने आगे आरोप लगाया, “यह गुजरात स्थानीय निधि ऑडिट अधिनियम, 1963 का स्पष्ट उल्लंघन है. राज्य विधानसभा ऑडिट रिपोर्टों की वार्षिक प्रस्तुति सुनिश्चित करने के अपने कर्तव्य में विफल रही है. पारदर्शिता लोकतंत्र का एक मौलिक सिद्धांत है. जब ₹2 लाख करोड़ का ऑडिट नहीं होता है, तो सार्वजनिक धन का उपयोग कैसे किया जाता है, यह जानने का जनता का अधिकार कुचल दिया जाता है.”
बहरहाल, इस खुलासे ने गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं. राज्य ने एक दशक से अधिक समय से अपने स्वयं के ऑडिट नियमों को क्यों लागू नहीं किया है? बार-बार कैग के हस्तक्षेप के बावजूद वित्तीय जांच को कैसे दरकिनार किया जा रहा है? ₹2 लाख करोड़ की इस पारदर्शिता शून्य के लिए कौन ज़िम्मेदार है? कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि स्थानीय स्वशासन को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है. शाह ने कहा, “यदि ऑडिट नहीं किया जाता है, तो अनियमितताएं अदृश्य रहती हैं. और जब अनियमितताएं अदृश्य रहती हैं, तो जवाबदेही समाप्त हो जाती है.”
उत्तराखंड पेपर लीक घोटाला: स्नातक-स्तरीय परीक्षा रद्द; दोबारा होगी
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) ने सितंबर में आयोजित विवादास्पद स्नातक स्तरीय परीक्षा को आधिकारिक तौर पर रद्द कर दिया है.
सरकार ने एक-सदस्यीय जांच आयोग की महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद परीक्षा रद्द करने की घोषणा की, और यह वादा किया कि अगले तीन महीनों के भीतर फिर से परीक्षा आयोजित की जाएगी.
इस निर्णय से राज्य भर के बेरोजगार युवाओं के सप्ताहों से चल रहे तीव्र आंदोलन पर अस्थायी रूप से विराम लग गया है. 21 सितंबर को आयोजित हुई इस रद्द परीक्षा में लगभग एक लाख उम्मीदवारों ने भाग लिया था.
नरेंद्र सेठी की रिपोर्ट के अनुसार, यूकेएसएसएससी ने स्पष्ट किया है कि भर्ती प्रक्रिया को अमान्य घोषित किए जाने से अन्य चल रही परीक्षाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा. उल्लेखनीय है कि पेपर लीक के गंभीर आरोपों के कारण उत्तराखंड बेरोजगार संघ के बैनर तले राज्य में व्यापक विरोध प्रदर्शन भड़के थे, जिसके बाद यह निर्णायक कार्रवाई की गई है.
विदेश मंत्रालय ने कहा, मुत्तकी की प्रेस वार्ता से महिला पत्रकारों को बाहर रखने में उसकी भूमिका नहीं, प्रियंका ने सवाल उठाया
विदेश मंत्रालय ने शनिवार (11 अक्टूबर, 2025) को स्पष्ट किया कि नई दिल्ली में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी द्वारा शुक्रवार (10 अक्टूबर) को आयोजित प्रेस वार्ता में उसकी कोई भागीदारी नहीं थी.
यह बयान उस प्रेस वार्ता के बाद आया है, जिसे महिला पत्रकारों के बहिष्कार को लेकर भारी आलोचना का सामना करना पड़ा था. “पीटीआई” के अनुसार, यह पता चला है कि मीडिया बातचीत में पत्रकारों को आमंत्रित करने का निर्णय विदेश मंत्री के साथ आए तालिबान अधिकारियों ने लिया था.
मंत्रालय ने शनिवार (11 अक्टूबर) को कहा, “कल दिल्ली में अफगान विदेश मंत्री द्वारा आयोजित प्रेस बातचीत में विदेश मंत्रालय की कोई संलिप्तता नहीं थी.” इस बीच, विपक्ष ने महिला पत्रकारों के बहिष्कार को लेकर पीएम मोदी की आलोचना की. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस घटना को “भारत की कुछ सबसे सक्षम महिलाओं का अपमान” बताया.
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री की महिलाओं के अधिकारों की पहचान सिर्फ एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक की सुविधाजनक बयानबाजी नहीं है, तो “हमारे देश में भारत की कुछ सबसे सक्षम महिलाओं का यह अपमान कैसे होने दिया गया. “
पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भी “एक्स” पर एक पोस्ट में कहा कि पुरुष पत्रकारों को अपनी महिला सहकर्मियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए बाहर चले जाना चाहिए था. उल्लेखनीय है कि काबुल में तालिबान शासन को अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन्न देशों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकायों से भी गंभीर आलोचना का सामना करना पड़ा है. शुक्रवार को, मुत्तकी ने अफगानिस्तान में महिलाओं की दुर्दशा पर एक सीधे सवाल से बचते हुए कहा था कि हर देश की अपनी व्यवस्था होती है.
दारुल उलूम भी गए मुत्तकी, “कासमी” की उपाधि भी
भारत की अपनी छह दिवसीय यात्रा के तहत मुत्तकी ने शनिवार (11 अक्टूबर, 2025) को पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले में एशिया के सबसे बड़े इस्लामिक मदरसों में से एक– दारुल उलूम, देवबंद – का दौरा किया. तालिबान नेता का देवबंद दौरा हालांकि राजनीति से परे है.
मुत्तकी ने मदरसा के केंद्रीय पुस्तकालय के अंदर मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी के मार्गदर्शन में एक हदीस (पैगंबर की परंपरा) का अध्ययन किया. इसके बाद, मुत्तकी को प्रतिष्ठित संस्थान के साथ अपने अकादमिक संबंध को दर्शाते हुए ‘कासमी’ की उपाधि का उपयोग करने का अधिकार मिला.
अफगान विदेश मंत्री से उनके दौरे के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “देवबंद इस्लामी दुनिया के लिए एक बड़ा केंद्र है. और अफगानिस्तान और देवबंद आपस में जुड़े हुए हैं, इसलिए मैं वहां के नेताओं से मिलने जा रहा हूं. हम चाहते हैं कि हमारे आध्यात्मिक छात्र भी यहां आकर अध्ययन करें.”
इमाम की पत्नी, दो नाबालिग बेटियों की हत्या
उत्तरप्रदेश के बागपत जिले के गंगनौली स्थित मस्जिद परिसर में शनिवार को एक मस्जिद के इमाम की पत्नी और उनकी दो नाबालिग बेटियों की तेज धारदार हथियार से हत्या कर दी गई.
पुलिस के अनुसार, बागपत जिले के गंगनौली गांव की मुख्य मस्जिद के इमाम मोहम्मद इब्राहिम की पत्नी इशराना (30) और उनकी बेटियां सोफिया (5) और सुमैया (2) मस्जिद परिसर के भीतर स्थित उनके आवास के अंदर खून से लथपथ पाई गईं. दोघट थाना क्षेत्र के तहत, जहां मोहम्मद इब्राहिम इमाम के रूप में तैनात हैं, गांव की बड़ी मस्जिद परिसर के अंदर तीनों के खून से सने शव पाए गए. “टाइम्स ऑफ इंडिया” के अनुसार, घटना के समय इमाम इब्राहिम कथित तौर पर देवबंद में कुछ काम के लिए बाहर गए हुए थे.
निवासियों ने बताया कि मुजफ्फरनगर जिले के सुन्ना के रहने वाले इमाम, पिछले चार वर्षों से अपने परिवार के साथ वहीं रह रहे थे. उनकी पत्नी, 30 वर्षीय इशराना, वहां बच्चों को पढ़ाया करती थीं. स्थानीय लोगों के हत्या के विरोध में इकट्ठा होने के बाद क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात किया गया. इब्राहिम ने कहा, “मुझे कोई अंदाज़ा नहीं है कि यह किसने किया होगा. हमारे पास 24 घंटे चलने वाला सीसीटीवी लगा हुआ है. मेरी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी.”
भोपाल में इंजीनियरिंग छात्र को पुलिस ने बुरी तरह पीटा, कुछ देर बाद मौत
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में शुक्रवार तड़के पुलिस ने इंजीनियरिंग के एक छात्र की इतनी बेरहमी से पिटाई की कि कुछ देर बाद उसकी मृत्यु हो गई. वायरल हो रहे सीसीटीवी फुटेज में 22 वर्षीय बीटेक छात्र उदित गायकवाड़ को एक पुलिसकर्मी पकड़े हुए दिख रहा है, जबकि दूसरा पुलिसकर्मी उसे लाठी से पीटता हुआ दिखाई दे रहा है. बाद में, उसके दोस्त उसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), भोपाल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
भोपाल ज़ोन-2 के पुलिस उपायुक्त विवेक सिंह ने कहा कि घटना के संबंध में शुक्रवार को आरक्षक संतोष बामनिया और सौरभ आर्य को निलंबित कर दिया गया और पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मामले में आगे की कार्रवाई की जाएगी. सूत्रों ने बताया कि जब वह अपने दोस्तों के साथ आधी रात की पार्टी में शामिल हो रहा था, तभी गश्ती दल (पेट्रोलिंग पार्टी) ने उसे उठा लिया. रबींद्रनाथ चौधरी के अनुसार, मृतक छात्र मध्यप्रदेश के बालाघाट में तैनात एक पुलिस अधिकारी का करीबी रिश्तेदार था. इस घटना ने लोगों में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है.
ट्रंप ने चीन पर 100% टैरिफ़ की धमकी दी, शी के साथ बैठक भी रद्द करने के संकेत
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) की इस रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को चीन से होने वाले सभी आयातों पर पहले से लगे शुल्कों के ऊपर 100% का अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की घोषणा की. हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने इस महीने के अंत में दक्षिण कोरिया में चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के साथ बैठक की संभावनाओं को भी खुला रखा. यह व्यापारिक तनाव तब बढ़ा, जब कुछ घंटे पहले ही ट्रंप ने शी के साथ बैठक रद्द करने के संकेत दिए थे.
व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा, “मैंने बैठक रद्द नहीं की है, लेकिन मुझे नहीं पता कि हम यह करेंगे या नहीं. मैं वहां (दक्षिण कोरिया) वैसे भी रहूंगा. इसलिए मुझे लगता है कि हमारी बैठक हो सकती है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि बीजिंग ने “दुनिया को एक ऐसी चीज़ से झटका दिया है जो वाकई चौंकाने वाला था”. वह चीन द्वारा गुरुवार को घोषित दुर्लभ मृदा तत्वों (rare-earth) के निर्यात पर नए प्रतिबंधों का जिक्र कर रहे थे.
इससे कुछ घंटे पहले, ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में घोषणा की थी कि अमेरिका 1 नवंबर से चीन पर 100% का टैरिफ़ लगाएगा. उन्होंने बीजिंग पर “शत्रुतापूर्ण” व्यापार व्यवहार का आरोप लगाते हुए कहा, “1 नवंबर को ही, हम सभी महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर पर निर्यात नियंत्रण भी लागू करेंगे.”
ट्रंप ने चीन की कार्रवाई को “अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बिल्कुल अनसुना और दूसरे देशों के साथ व्यवहार में एक नैतिक अपमान” बताया. उन्होंने दावा किया कि चीन ने दुनिया भर के देशों को “पत्र” भेजे हैं, जिसमें दुर्लभ मृदा तत्वों और अन्य कई चीजों के उत्पादन से जुड़े हर पहलू पर निर्यात नियंत्रण लगाने का इरादा जताया गया है. ट्रंप ने एक लंबे सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि वह चीन के इस कदम से “हैरान” हैं, जो “बाज़ारों को जाम कर देगा” और उद्योगों में वैश्विक उत्पादन को नुकसान पहुंचाएगा.
ट्रंप ने यह भी कहा था कि वह दो सप्ताह में दक्षिण कोरिया में APEC शिखर सम्मेलन में शी से मिलने वाले थे, लेकिन अब बातचीत का कोई कारण नहीं दिखता. ट्रंप की धमकियों पर वॉल स्ट्रीट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिससे बाज़ार बुरी तरह गिर गए. S&P 500 में 2.7% की गिरावट आई, जो अप्रैल के बाद का सबसे ख़राब दिन था.
ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन के चाइना सेंटर के निदेशक रयान हैस ने कहा कि पर्दे के पीछे दोनों देश एक-दूसरे पर निर्भरता कम करने और खुद को बचाने की रणनीति अपना रहे हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि दक्षिण कोरिया में अगर दोनों नेताओं की मुलाकात होती भी है तो कोई बड़ा समझौता नहीं होगा, बल्कि भविष्य की प्रतिस्पर्धा के लिए सीमाएं तय की जाएंगी. येल लॉ स्कूल के प्रोफेसर ताइसु झांग ने तर्क दिया कि दोनों देशों के बीच तकनीकी आपसी निर्भरता के आधार पर एक व्यापारिक समझौता अभी भी सबसे संभावित परिणाम है. इस बीच, चीन ने इस सीज़न में अमेरिका से कोई सोयाबीन नहीं खरीदा है और अपने ऑर्डर ब्राज़ील और अर्जेंटीना को दे दिए हैं.
नोबेल विजेता एस्थर डुफ्लो और अभिजीत बनर्जी अमेरिका छोड़ेंगे
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री एस्थर डुफ्लो और अभिजीत बनर्जी अगले साल मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) छोड़कर ज्यूरिख विश्वविद्यालय (UZH) में शामिल होने जा रहे हैं. द टेलीग्राफ़ इंडिया के वेब डेस्क की रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब अमेरिकी विश्वविद्यालय संघीय अनुसंधान फंडिंग से जुड़ी पाबंदियों को लेकर व्हाइट हाउस के साथ टकराव की स्थिति में हैं. बताया जा रहा है कि वे स्विस विश्वविद्यालय में विकास अर्थशास्त्र के लिए एक नया केंद्र स्थापित करेंगे.
ज्यूरिख विश्वविद्यालय ने शुक्रवार को घोषणा की कि यह जोड़ा, जिसने माइकल क्रेमर के साथ “वैश्विक गरीबी को कम करने के लिए उनके प्रयोगात्मक दृष्टिकोण” के लिए 2019 में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार जीता था, 1 जुलाई, 2026 को इसके अर्थशास्त्र विभाग में ‘लेमन फाउंडेशन प्रोफ़ेसर ऑफ़ इकोनॉमिक्स’ के रूप में शामिल होगा. अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष फ्लोरियन शेउर ने एक्स पर एक पोस्ट में उनके आगमन को विश्वविद्यालय के लिए “एक सच्ची क्वांटम लीप” बताया. उन्होंने इसे विश्व स्तरीय आर्थिक अनुसंधान के केंद्र के रूप में ज्यूरिख की बढ़ती प्रतिष्ठा के लिए एक मील का पत्थर कहा.
UZH में, डुफ्लो और बनर्जी ‘लेमन सेंटर फॉर डेवलपमेंट, एजुकेशन एंड पब्लिक पॉलिसी’ का सह-नेतृत्व करेंगे. यह एक बड़ी पहल है जिसे ब्राजील के लेमन फाउंडेशन से 2.6 करोड़ CHF (3.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर) का दान मिला है. इस केंद्र का उद्देश्य नीति-प्रासंगिक अनुसंधान को बढ़ावा देना और दुनिया भर में, विशेष रूप से स्विट्जरलैंड और ब्राजील के बीच शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को जोड़ना है. विश्वविद्यालय के अध्यक्ष माइकल शेपमैन ने कहा, “हमें खुशी है कि दुनिया के दो सबसे प्रभावशाली अर्थशास्त्री UZH में शामिल हो रहे हैं. वे वैज्ञानिक सिद्धांत को सामाजिक प्रभाव के साथ जोड़ते हैं - जो हमारे लिए एक प्रमुख चिंता है.”
डुफ्लो ने ज्यूरिख विश्वविद्यालय को बताया कि नया लेमन सेंटर उन्हें “अपने काम को आगे बढ़ाने और विस्तार करने की अनुमति देगा, जो अकादमिक अनुसंधान, छात्र परामर्श और वास्तविक दुनिया की नीति पर प्रभाव को जोड़ता है.” बनर्जी ने भी कहा, “हमें कोई संदेह नहीं है कि ज्यूरिख विश्वविद्यालय आने वाले वर्षों में हमारे शोध और नीतिगत कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक उत्कृष्ट वातावरण होगा.” यह जोड़ी MIT में अंशकालिक पद बनाए रखेगी और अपने शोध नेटवर्क, अब्दुल लतीफ़ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब (J-PAL) का नेतृत्व करना जारी रखेगी.
उनका यह कदम तब आया है जब MIT — उनका लंबे समय से अकादमिक घर — ट्रंप प्रशासन द्वारा निर्धारित नई संघीय फंडिंग शर्तों को अस्वीकार करने वाला पहला प्रमुख अमेरिकी विश्वविद्यालय बन गया है. अमेरिकी शिक्षा सचिव लिंडा मैकमोहन को लिखे एक पत्र में, MIT की अध्यक्ष सैली कोर्नब्लूथ ने कहा कि वह व्हाइट हाउस के उस मेमो का “समर्थन नहीं कर सकती” जो अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकन, विविधता उपायों और लिंग परिभाषाओं को सीमित करने वाली नीतियों के अनुपालन के लिए फंडिंग को प्राथमिकता देने की बात करता है. कोर्नब्लूथ ने कहा, “दस्तावेज़ का आधार हमारे मूल विश्वास के साथ असंगत है कि वैज्ञानिक फंडिंग केवल वैज्ञानिक योग्यता पर आधारित होनी चाहिए,” जैसा कि रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया.
इस मेमो में अंतरराष्ट्रीय स्नातक नामांकन को 15 प्रतिशत पर सीमित करना और भर्ती व प्रवेश में नस्ल या लिंग के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना शामिल है. संघीय आंकड़ों के अनुसार, अगस्त में संयुक्त राज्य अमेरिका पहुंचने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आई है. विशेषज्ञों ने इस गिरावट का श्रेय ट्रंप प्रशासन के तहत कड़ी वीजा जांच पर बढ़ती चिंताओं को दिया है.
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