13/03/2025 : टैरिफ से भारत को डर, ब्रिक्स से पल्ला झाड़ा, नफ़रत के ज़हर का सरकारीकरण, बंधुआ साइबर अपराधियों की घर वापसी, 44 साल बाद नरसंहार का फैसला, स्पॉटीफाई ने रायल्टी बताई
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आज की सुर्खियां :
मंदिर में प्रवेश कर पहली बार पूजा की दलितों ने
अदालत ने श्याम मीरा सिंह को सद्गुरु पर बनाए वीडियो को हटाने का दिया आदेश
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह को अपूर्वानंद का खुला पत्र
अपहृत ट्रेन की कई सवारियाँ अब भी बंधक
कानून मंत्रालय ने अडानी को समन जारी करने को कहा
ग्रीनलैंड में डेमोक्रेट पार्टी का जलवा
टैरिफ को लेकर अब भी आगे पीछे होता अमेरिका
30 दिन के सीजफायर पर राजी हुआ यूक्रेन, रूस ने कीव पर घोषणा के बाद किया हवाई हमला
रूस का सीजफायर तोड़ने का इतिहास और पश्चिमी देशों के समन्वय की परीक्षा
उषा वेंस की डीईआई रैली में शिरकत!
स्पॉटीफ़ाई ने 2024 में कलाकारों को रिकॉर्ड 864 अरब रुपये रॉयल्टी दी
ट्रम्प के टैरिफ से डर रहा है भारत?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2 अप्रैल से "रिसिप्रोकल टैरिफ" (प्रतिदेय शुल्क) लागू करने की घोषणा की है, जिसके तहत अमेरिकी उत्पादों पर लगने वाले शुल्क के बराबर शुल्क दूसरे देशों के आयात पर लगाया जाएगा. भारत अमेरिका का नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. भारत का 2024 में अमेरिका को निर्यात 87 अरब डॉलर था, इस नीति से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट ने सिटीग्रुप के हवाले से बताया है कि ट्रम्प के टैरिफ से भारत के 7 अरब डॉलर के निर्यात को खतरा है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अनुसार, कृषि (झींगा, डेयरी), ऑटोमोबाइल और फार्मा क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. इसके साथ ही, स्टील-एल्युमिनियम पर 25% टैरिफ से भारत की आर्थिक विकास दर, जो 2024-25 में 6.5% रहने का अनुमान है, और कमजोर हो सकती है.
ट्रम्प का मानना है कि भारत "उच्च टैरिफ वाला देश" है, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए बाजार में प्रवेश को मुश्किल बनाता है. विश्व व्यापार संगठन के अनुसार, भारत का औसत टैरिफ 17% है, जबकि अमेरिका का मात्र 3.3%. कृषि क्षेत्र में यह दर 39% तक पहुंच जाती है. ट्रम्प के अनुसार, यह असंतुलन अमेरिका को "लूटने" जैसा है. 2024 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 46 अरब डॉलर था, जो पिछले वर्ष से 5% अधिक है.
भारत का संरक्षणवाद स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के "आत्मनिर्भरता" के विजन से शुरू हुआ. 1991 के भुगतान संकट ने इसमें बदलाव लाया, और टैरिफ घटाकर 2008 में 10% कर दिए गए. लेकिन मोदी सरकार के "मेक इन इंडिया" के तहत कुछ उत्पादों (जैसे मोबाइल) पर टैरिफ फिर बढ़े, जिससे औसत शुल्क 2021 में 14.3% हो गया.
टकराव से बचने के लिए भारत ने फरवरी 2025 में 8,500 उत्पादों पर टैरिफ घटाए, जिनमें हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल और बॉर्बन व्हिस्की शामिल हैं. मोदी और ट्रम्प ने 2025 के अंत तक 500 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य रखा है. अमेरिका भारत से रक्षा उपकरण (जैसे एफ 35 जेट) और प्राकृतिक गैस का आयात बढ़ाना चाहता है. 1990 के दशक तक "लाइसेंस राज" ने सरकारी उद्योगों को प्रोत्साहित किया, लेकिन उदारीकरण के बाद निजी कंपनियाँ (टाटा, रिलायंस, अडानी) उभरीं. विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च टैरिफ और सब्सिडी ने स्मार्टफोन जैसे क्षेत्रों में विदेशी निवेश आकर्षित किया. हालांकि, आरबीआई के पूर्व गवर्नर विरल आचार्य मानते हैं कि टैरिफ में कमी से घरेलू कंपनियों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार होना होगा.
ट्रम्प की धमकी के बाद ब्रिक्स में भारत की दिलचस्पी ‘अब बिल्कुल नहीं’!
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लंदन स्थित थिंक टैंक चैथम हाउस में कहा कि भारत की अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने में "बिल्कुल कोई दिलचस्पी नहीं है". उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों ने किसी वैकल्पिक भुगतान प्रणाली पर कोई एकीकृत राय नहीं बनाई है. डॉलर को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता का स्रोत बताते हुए, जयशंकर ने कहा कि भारत को डॉलर की भूमिका से "कभी कोई समस्या नहीं रही" और उसकी इसे बदलने की कोई योजना नहीं है. साऊथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की ब्रिक्स देशों द्वारा डॉलर के प्रभुत्व को कम करने वाली भुगतान प्रणाली स्थापित करने के प्रयासों के खिलाफ बार-बार दी गई चेतावनियों के बाद आया है. जयशंकर ने अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को "शायद अब तक का सबसे अच्छा" बताया.
चीन 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से युआन को डॉलर के विकल्प के रूप में बढ़ावा दे रहा है, हालांकि, युआन का वैश्विक व्यापार में उपयोग सीमित है. ब्राजील और रूस जैसी ब्रिक्स देश डॉलर पर निर्भरता कम करने की बात करते रहे है.
ट्रम्प ने ब्रिक्स देशों से वादा माँगा है कि वे न तो कोई नई ब्रिक्स मुद्रा बनाएँगे और न ही अमेरिकी डॉलर को बदलने के लिए किसी अन्य मुद्रा का समर्थन करेंगे, अन्यथा 100% टैरिफ का सामना करने की चेतावनी दी है. जयशंकर ने क्वाड (अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच सुरक्षा संवाद) को भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की नींव बताया. उन्होंने चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार का भी जिक्र किया, खासकर सीमा विवादों को सुलझाने की दिशा में हुई प्रगति के बाद. हालाँकि, ट्रांसबॉर्डर नदी मामलों सहित "अन्य मुद्दे" भी हैं जिन्हें हल किया जाना बाकी है.
कार्टून | राजेंद्र धोडपकर
नफ़रत के ज़हर का सरकारीकरण और बड़बोले नेताओं के सामने बेबस कानून
पिछले साल (2024) भारत में हेट स्पीच के मामलों में 74% का इजाफा देखा गया था, बावजूद इसके कि सुप्रीम कोर्ट नफरती बोलों पर लगातार सख्त रुख दिखाता रहा है. वर्ष 2023 में, देश की सबसे बड़ी अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था, “देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित करने वाले नफरत से भरे भाषणों को ‘गंभीर अपराध’ माना जाए. अगर किसी ने इनके खिलाफ शिकायत न भी की हो, तो भी खुद संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर लिया जाए.” सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म को राजनीति से मिलाना ही हेट स्पीच का स्रोत है. जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि क्या सरकारें नपुंसक हो गई हैं, जो खामोशी से सब कुछ देख रही हैं? आखिर इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही? हमारी चिंता की वजह है कि राजनेता सत्ता के लिए धर्म के इस्तेमाल को चिंता का विषय बनाते हैं. इसके साथ ही जस्टिस नागरत्ना ने कहा था कि जुलूस निकालने का अधिकार अलग बात है और उस जुलूस में क्या किया या कहा जाता है, ये बिलकुल अलग बात है. पीठ ने कहा कि इस असहिष्णुता और बौद्धिकता की कमी से हम दुनिया में नंबर एक नहीं बन सकते. अगर आप सुपर पावर बनना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको कानून के शासन की जरूरत है. लेकिन, सबसे बड़ा सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट की इस सुस्पष्ट व्यवस्था को शिरोधार्य कितना किया गया है? रूलिंग की परवाह कर उस पर अमल करने में कितनी गंभीरता दिखाई जा रही है? कुछ ताज़ा टिप्पणियों, बयानों और भाषणों पर नज़र डालने से असलियत सामने आ जाती है. पता चलता है कि जो कानून बनाने वाले (लॉ मेकर्स) कहलाते हैं और शासन व्यवस्था को चला रहे हैं, वे ही हेट स्पीच के मामले में सबसे आगे हैं. सुप्रीम कोर्ट साफ-साफ कहता है कि कोई अगर शिकायत न भी करे, तो भी आप (राज्य) खुद संज्ञान लेकर एक्शन लें या मामला दर्ज करें-करवाएं, लेकिन असलियत में व्यावहारिक तौर पर क्या इसके उलट नहीं हो रहा है? हर तरफ से विवादित और नफ़रती बयान सुनाई पड़ रहे हैं. इसमें कोई पीछे नहीं है. विधायक से लेकर सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री सब. मसलन, उत्तरप्रदेश (जहां 2027 में विधानसभा के चुनाव हैं और लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पिछड़ने के बाद भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने के लिए अपनी राजनीतिक जमीन संभालने में लगी है) के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को संभल के इतिहास को खोदते हुए कहा, “इस्लाम लगभग 1,400 साल पहले अस्तित्व में आया, जबकि मैं ऐसी चीज़ों की बात कर रहा हूं जो इस्लाम से कम से कम 2,000 साल पहले की हैं." उन्होंने यह भी दावा किया कि 1526 में संभल में विष्णु मंदिर को तोड़ा गया और दो साल बाद, 1528 में अयोध्या में राम मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया. आगे कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, लेकिन धार्मिक स्थलों पर जबरन कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने यह भी बताया कि संभल में पहले 68 तीर्थ स्थल थे, लेकिन अब तक केवल 18 की पहचान हो पाई है. तो, क्या यह समझा जाए कि योगी परोक्ष रूप से यह कह रहे हैं कि शेष 50 स्थानों की पहचान का काम भी किया जाएगा? जबकि सर्वविदित है कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को लेकर याचिकाएं विचाराधीन हैं और अगले माह अप्रैल में वह इस पर सुनवाई करने वाला है. लेकिन, बगैर किसी लिहाज के गड़े मुर्दों को उखाड़ने का काम किया जा रहा है.
चूंकि इस बार होली शुक्रवार को है और रमज़ान भी चल रहे हैं, लिहाजा इन दिनों हेट स्पीच के लिए “होली-जुमे” का एक नया विषय भी उपलब्ध है. बिहार में दरभंगा की मेयर अंजुम आरा ने कहा कि दो घंटे के लिए होली खेलने ब्रेक लगे, ताकि मुस्लिम समुदाय बिना किसी परेशानी के अपनी नमाज़ अदा कर सके. उन्होंने यह भी अपील की कि इस दौरान होली खेलने वाले लोग मस्जिदों और प्रार्थना स्थलों से दूरी बनाए रखें. उनका कहना था कि होली साल में एक बार आती है, लेकिन रमज़ान के महीने में जुमे की नमाज का समय बदला नहीं जा सकता. इस बयान पर बीजेपी विधायक हरिभूषण ठाकुर बाचौल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और मेयर को "ग़ज़वा-ए-हिंद मानसिकता" और "आतंकी सोच" वाली महिला कहा.
यही हेट स्पीच पश्चिम बंगाल में भी सुनाई दी. मंगलवार को राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेन्दु अधिकारी ने कहा कि 2026 में उनकी पार्टी की सरकार बनने पर भाजपा मुस्लिम विधायकों को विधानसभा के बाहर निकाल देगी. जाहिर है, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुवेन्दु को जवाब देते हुए कहा, “हम एक धर्मनिरपेक्ष, बहुलवादी राष्ट्र हैं. हर किसी को अपना धर्म मानने का अधिकार है. बहुसंख्यक का कर्तव्य है कि वह अल्पसंख्यक की रक्षा करे. आपका आयातित हिंदू धर्म हमारे वेदों या ऋषियों द्वारा समर्थित नहीं है. आप मुसलमानों के नागरिक अधिकारों को कैसे नकार सकते हैं? यह एक धोखा है. आप नकली हिंदुत्व ला रहे हैं. मुझे हिंदू धर्म की रक्षा करने का अधिकार है, लेकिन आपके संस्करण का नहीं. कृपया हिंदू कार्ड मत खेलिए.”
इधर, चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की जीत पर मध्यप्रदेश के महू (इंदौर) में हुई हिंसा से सबक लेते हुए देवास में एक पुलिस निरीक्षक ने कथित हुड़दंगी युवकों के खिलाफ कार्रवाई की तो भाजपा विधायक के दबाव में उनके खिलाफ कार्रवाई कर दी गई. जबकि देवास के एसपी ने कहा था कि हुड़दंगी युवकों ने खुद ही अपने सिर मुंडवाए थे.
घुसपैठ और अवैध इमिग्रेशन पर सरकार का नया बिल : लोकसभा में मंगलवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय द्वारा इमिग्रेशन एंड फॉरेनर्स बिल-2025 पेश किया गया. यह बिल विदेशी और इमिग्रेशन से संबंधित प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाए गए चार अधिनियमों को निरस्त करते हुए उनकी जगह लेगा. इसमें वायु, जमीन या जल माध्यमों से अवैध रूप से भारत में घुसपैठ करने और वीजा अवधि खत्म होने के बावजूद भी भारत में रहने वाले विदेशियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया है. इसके बाद विदेशियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर वीजा देने से इनकार किया जा सकता है, उनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है और प्रवेश और निकासी नियमों का उल्लंघन करने पर दंडित किया जा सकता है. इस विधेयक के अनुसार इमिग्रेशन अधिकारी का निर्णय "अंतिम और बाध्यकारी" होगा, जिसके खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकेगी. हालांकि, विपक्ष में कांग्रेस के मनीष तिवारी और तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत रॉय ने इसका विरोध किया.
549 बंधुआ साइबर अपराधियों की घर वापसी : म्यांमार-थाईलैंड सीमा पर साइबर-स्कैम कॉल सेंटरों पर काम करने के लिए मजबूर किए गए 539 भारतीय नागरिकों को सोमवार और मंगलवार को भारतीय वायुसेना के विमानों से वापस लाया गया. विदेश मंत्रालय ने बताया कि 283 नागरिकों को लेकर पहली उड़ान सोमवार को थाईलैंड के माई सोत से पहुंची. 266 नागरिकों के साथ दूसरा समूह मंगलवार को दिल्ली पहुंचा.
मंदिर में प्रवेश कर पहली बार पूजा की दलितों ने : बुधवार को पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्धमान जिले के कटवा उपखंड के तहत गिधाग्राम के दलितों ने गिधेश्वर मंदिर में पहली बार प्रवेश किया. प्रशासन ने प्रतीकात्मक रूप से पांच दलितों को मंदिर में पूजा की इजाजत दी थी. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इस दौरान गांव के चप्पे-चप्पे में रैपिड एक्शन फोर्स तैनात थी. इससे पहले इस मंदिर में जाने की अनुमति दलितों को नहीं थी. कार्यक्रम के बाद मंदिर जाने वाली पांच लोगों में शामिल ममता दास ने कहा, “मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने के लिए हमने जो 16 सीढ़ियां चढ़ीं, उससे पीढ़ियों से चला आ रहा भेदभाव खत्म हो गया.” वहीं षष्ठी दास कहती हैं, “हमारे लिए, यह एक ऐतिहासिक दिन है. इससे पहले जब भी हम मंदिर के पास जाते थे, भगा दिया जाता था. पिछले साल भी, मैं प्रार्थना करने आई थी, लेकिन सीढ़ियाँ चढ़ने की भी अनुमति नहीं मिली थी.”
मंदिर में प्रवेश के बाद पूजा दास ने उम्मीद जताई कि गांव के दलित अब मंदिर में पूजा-अर्चना करना जारी रख सकेंगे. हम मंदिर में प्रवेश का अधिकार दशकों से मांग रहे थे.
अदालत ने श्याम मीरा सिंह को सद्गुरु पर बनाए वीडियो को हटाने का दिया आदेश : दिल्ली हाईकोर्ट ने यू-ट्यूबर श्याम मीरा सिंह के हाल ही में सद्गुरु और ईशा फाउंडेशन पर बनाए गए वीडियो को हटाने का अंतरिम आदेश दिया है. न्यायालय ने वीडियो को आगे प्रकाशित करने और साझा करने पर भी रोक लगाई है. यह आदेश ईशा फाउंडेशन द्वारा दायर मानहानि के मुकदमे के जवाब में आया है. जिस वीडियो को हटाने का आदेश दिया गया है, उसका शीर्षक है- ‘सद्गुरु का खुलासा : जग्गी वासुदेव के आश्रम में क्या हो रहा है.”
दलित नरसंहार के मामले में 44 साल बाद आया फैसला : उत्तर प्रदेश में फिरोज़ाबाद ज़िले के दिहुली गांव में 1981 में 24 दलितों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस घटना के 44 साल बाद मैनपुरी की एक अदालत ने मामले में तीन लोगों कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को दोषी क़रार दिया है. 18 मार्च को दोषियों को सुनाई जाएगी. एक अन्य अभियुक्त ज्ञानचंद्र को भगोड़ा घोषित किया गया है. घटना में कुल 17 अभियुक्त थे. इनमें से 13 की मौत हो चुकी है. पुलिस की चार्जशीट के अनुसार, सामूहिक नरसंहार को अंजाम देने वाले अधिकतर अभियुक्त अगड़ी जाति से थे.
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह को अपूर्वानंद का खुला पत्र
इससे तो विश्वविद्यालयों की धीमी मौत होगी..
अपूर्वानंद एक साहित्यिक-सांस्कृतिक आलोचक, राजनीतिक विश्लेषक और दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय, हिंदी विभाग के प्रोफेसर हैं. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह को यह खुला पत्र लिखा है. उस पत्र का हिंदी अनुवाद.
प्रिय प्रो. योगेश सिंह जी,
आशा है यह ईमेल आपको कुशलतापूर्वक प्राप्त होगा.
यह वह पत्र नहीं है, जिसे लिखना मैं चाहूँगा. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि जिस मुद्दे पर लिख रहा हूँ, वह स्वयं मेरे बारे में प्रतीत होगा. परंतु, मेरा नैतिक बोध मुझे यह हिचकिचाहट पार करने और आपको अपनी निराशा दर्ज कराने एवं हिंदी विभाग के अध्यक्ष की नियुक्ति के निर्णय के विरोध में लिखने के लिए प्रेरित कर रहा है. यह निर्णय वरिष्ठता के स्थापित सिद्धांत की पूर्ण अवहेलना करते हुए लिया गया है. वरिष्ठता का सिद्धांत विश्वविद्यालयों में एक परंपरा रहा है और यह सभी वर्षों में मनमानी के विरोध में कार्य करते हुए सफल रहा है. यह विश्वविद्यालय में सहयोगिता की भावना भी पैदा करता है, क्योंकि शिक्षकों को प्रतिस्पर्धियों की तरह नहीं देखा जाता. साथ ही, यह प्रशासन को पक्षपात और चाटुकारिता के आरोपों से बचाता है. परंतु, हिंदी विभाग के अध्यक्ष की यह नियुक्ति इस सिद्धांत से भटक गई है.
10 मार्च को शाम 6 बजे हमें सूचित किया गया कि हमारे नए अध्यक्ष ने पदभार संभाल लिया है. यह एक अजीब समय था. पद तीन दिनों से खाली था, क्योंकि हमारी पूर्व अध्यक्ष महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति बनने चली गई थीं. विश्वविद्यालय यह तर्क दे सकता है कि यह अचानक घटना से आश्चर्यचकित हो गया था, इसलिए यह अंतराल हुआ. परंतु, विश्वविद्यालय को पूर्ण रूप से ज्ञात था कि पूर्व अध्यक्ष इस महीने के अंत में सेवानिवृत्त होने वाली थीं. इसलिए, यह अपेक्षित था कि विश्वविद्यालय उनके उत्तराधिकारी के नाम के साथ तैयार होता.
यह निर्णय अत्यंत कठिन नहीं है. यह लगभग एक यांत्रिक प्रक्रिया है, क्योंकि सामान्यतः वरिष्ठता क्रम में अगले व्यक्ति को ही अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी जाती है. विश्वविद्यालय के नियम स्पष्ट हैं:
"विभागाध्यक्ष की नियुक्ति कुलपति द्वारा, यथासंभव आवर्तन (रोटेशन) के सिद्धांत का पालन करते हुए की जाएगी. ऐसी नियुक्तियाँ कार्यकारी परिषद को सूचित की जाएँगी.
खंड 1 में निहित किसी भी बात के होते हुए भी, यदि किसी कारण से उस व्यक्ति को विभागाध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जा सका है जो उस व्यक्ति (या व्यक्तियों) से वरिष्ठ है जो पहले से ही विभागाध्यक्ष रह चुका है या है, तो कुलपति के लिए यह उचित होगा कि अगली रिक्ति होने पर उस व्यक्ति को विभागाध्यक्ष नियुक्त करें, यदि वह अन्यथा नियुक्त किया जा सकता है."
परंतु, इस विभाग के मामले में अजीब यह था कि इन नियमों के होते हुए भी पिछले एक साल से मेरे सहयोगी अटकलें लगा रहे थे कि विश्वविद्यालय द्वारा अगला अध्यक्ष किसे चुना जाएगा. कुछ नाम चर्चा में थे, और मेरे सहयोगी यह समझने का प्रयास कर रहे थे कि प्राधिकारियों की कृपादृष्टि किस पर पड़ेगी. यह रोचक था कि वे लगभग निश्चित थे कि उनके बाद वरिष्ठतम व्यक्ति को दरकिनार कर दिया जाएगा.
मेरे सहयोगी सही थे. इस मामले में, वरिष्ठता क्रम में अगले व्यक्ति, यानी मुझे, छोड़कर मेरे बाद वाले व्यक्ति को एचओडी बनाया गया. अच्छा है कि तीन दिन लेने के बाद भी अनिश्चितता समाप्त हुई. इसने कम से कम उन अस्वस्थ अफवाहों को विराम दे दिया है कि प्राधिकारियों की कृपा किस पर बरसेगी.
मैं स्पष्ट कर दूँ कि नियुक्त व्यक्ति के ख़िलाफ मैं बिल्कुल नहीं हूँ. वह पिछले 20 वर्षों से मेरी सहयोगी रही हैं. यह मामला उनके बारे में नहीं है. वास्तव में, जब मैंने उनकी नियुक्ति के बारे में जानकर उन्हें फ़ोन किया, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया कि यह नियुक्ति वरिष्ठता के सिद्धांत के अनुसार नहीं हुई. अतः यह मामला उनसे संबंधित नहीं है. परंतु, ऐसे मामलों में यह एक स्वस्थ परंपरा स्थापित करने वाला निर्णय नहीं है.
यह मनमाना निर्णय निश्चित रूप से चिंताजनक है. मेरे कुछ सहयोगियों ने मुझे अपनी बेचैनी साझा करने के लिए फोन किया. वे चाहते थे कि मैं इस निर्णय को अदालत में चुनौती दूँ. पिछले 25 वर्षों में, हमने कम से कम एक ऐसा मामला देखा है जहाँ इस सिद्धांत का उल्लंघन हुआ था, और प्रभावित व्यक्ति ने न्यायालय से निर्णय पलटवा दिया था.
मैं निजी रूप से विश्वविद्यालय के मामलों को अदालत में ले जाने के विचार से सहज नहीं हूँ, खासकर जब यह एक व्यक्तिगत शिकायत जैसा प्रतीत हो. यह अच्छा दृश्य नहीं होता जब न्यायालय विश्वविद्यालयों को फटकार लगाते हैं और उनके निर्णयों को निरस्त करते हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के साथ ऐसे अनेक मामले हुए हैं और कुछ में दिल्ली विश्वविद्यालय भी प्रतिवादी रहा है. जेएनयू में, वरिष्ठता के सिद्धांत और नियम पुस्तिका का उल्लंघन लगभग आदर्श बन गया है. वरिष्ठ शिक्षकों को दरकिनार कर केंद्रों के अध्यक्ष और डीन नियुक्त किए जाते हैं. प्राधिकारी शिक्षकों को अवकाश, शैक्षणिक या विशेष, देने से इनकार करते हैं. उन्हें न्याय के लिए अदालत जाने को मजबूर होना पड़ता है. दंडित होने पर छात्रों को भी अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है. अधिकतर मामलों में, विश्वविद्यालयों को फटकार लगती है. न्यायालय विश्वविद्यालयों से नियमों का पालन करने और मनमाने व पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्य न करने को कहते हैं.
न्यायालय भी यांत्रिक होते हैं. वे चाहते हैं कि प्रभावित पक्ष ही उन तक पहुँचे, दूसरे नहीं. मैंने अपने सहयोगियों से कहा कि मैं यह नहीं मानता कि मैं इस निर्णय से प्रभावित एकमात्र 'पक्ष' हूँ, उन्हें भी मेरे जितना ही प्रभावित होना चाहिए, और मेरे व अन्य विभागों के लोगों को भी प्रभावित महसूस करना चाहिए. यह केवल मेरे विरोध करने का मामला नहीं है, क्योंकि यह एक सिद्धांत के उल्लंघन का प्रश्न है – ऐसा सिद्धांत जिसने विश्वविद्यालय को सुचारू रूप से चलाने में सहायता की है.
ऐसी घटनाएँ दुखद रूप से बताती हैं कि विश्वविद्यालय प्राधिकारी यह भूल गए हैं कि उनका उद्देश्य समाज में न्याय और औचित्य की भावना पैदा करना है. साथ ही उत्कृष्टता की खोज और योग्यता का सम्मान भी. दुर्भाग्य से, पिछले 10 वर्षों में शिक्षकों के चयन व अन्य निर्णय छात्रों और महत्वाकांक्षी शिक्षकों को यह संदेश देते हैं कि उनके ज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्टता का कोई महत्व नहीं है.
न्याय, उत्कृष्टता और योग्यता के मूल्यों के अतिरिक्त, विश्वविद्यालय सहयोगिता की संस्कृति के भी केंद्र हैं, जिसकी आदत समाज को नहीं है. इसका अर्थ समान विचारधारा वाले लोगों का समुदाय नहीं है. यह भिन्न विचारों की दुनिया में रहने और उनसे सभ्य तरीके से निपटने की क्षमता के बारे में है. यह समाज को यह भी बताता है कि संस्थानों को इस तरह चलाया जा सकता है, जहाँ प्राधिकारी केवल 'अपने लोगों' या चाटुकारों के साथ काम नहीं करते, बल्कि उन आवाज़ों का लाभ लेते हैं, जो कुछ मामलों में उनसे भिन्न हो सकती हैं. यही विश्वविद्यालय प्राधिकारियों को अन्य साहबों से अलग बनाता है.
विश्वविद्यालय ऐसे स्थान नहीं हैं जहाँ 'आधिकारिक विचारधारा' का प्रचार हो. विश्वविद्यालय प्राधिकारी राज्य की प्राधिकृत विचारधारा के वाहक और प्रचारक नहीं हैं. वे केवल संविधान से बंधे हैं. विश्वविद्यालय चाटुकारों की टोली नहीं बनाते. विश्वविद्यालय हमें सभी प्रकार के प्राधिकारों को चुनौती देना सिखाते हैं. जब विश्वविद्यालय ऐसे मानदंडों से भटकते हैं, तो वे अपने अस्तित्व के उद्देश्य को ही पराजित कर देते हैं.
जब विश्वविद्यालय प्राधिकारी नियमों का उल्लंघन करते हैं, तो यह समुदाय में भय का वातावरण बनाता है. खासकर युवा शिक्षकों को डर होता है कि उनके स्वतंत्र विचारों के कारण उन्हें दंडित किया जा सकता है. वे स्वयं को अनुशासित करेंगे और कक्षाओं में भी स्वयं को सेंसर करेंगे. यह विश्वविद्यालयों की धीमी मौत होगी, क्योंकि वे क्या हैं यदि मुक्त और निडर मन के लिए स्थान नहीं?
मुझे आशा है कि आप इस विश्वविद्यालय में मेरे शिक्षण जीवन के अंतिम चरण में भी विश्वविद्यालय की भलाई के प्रति मेरी चिंता को समझेंगे.
होली की शुभकामनाएँ स्वीकार करें. सादर,
अपूर्वानंद
हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
अपहृत ट्रेन की कई सवारियाँ अब भी बंधक
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में जाफर एक्सप्रेस से मुक्त किए गए यात्रियों ने ट्रेन पर सशस्त्र आतंकवादियों द्वारा कब्जा किए जाने के दौरान हुए घटनाक्रम की जानकारी दी है. ईशाक नूर, जो उन यात्रियों में से एक थे, ने बीबीसी से कहा- 'हम गोलीबारी के दौरान अपनी सांसें थामे हुए थे, हमें नहीं पता था कि आगे क्या होगा.' वह 400 से अधिक यात्रियों में से एक थे, जो मंगलवार को क्वेटा से पेशावर जा रहे थे, जब बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने हमला किया और कई यात्रियों को बंधक बना लिया. ट्रेन के ड्राइवर सहित कई लोगों के घायल होने की रिपोर्ट है. सैन्य सूत्रों का कहना है कि 155 यात्रियों को मुक्त कर दिया गया है और 27 आतंकवादी मारे गए हैं. हालांकि, इन आंकड़ों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है. बचाव कार्य जारी हैं. सुरक्षा बलों का कहना है कि उन्होंने शेष यात्रियों को बचाने के लिए सैकड़ों सैनिकों को तैनात किया है और हेलीकॉप्टरों और विशेष बलों के कर्मियों को भी भेजा है. बीएलए ने शेष बंधकों को मुक्त करने के प्रयासों पर "गंभीर परिणामों" की चेतावनी दी है. मंगलवार शाम को बलूचिस्तान के निवासी, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग यात्रियों को कुछ आतंकवादियों ने छोड़ दिया था. ईशाक ने कहा कि वह तब मुक्त हो गए, जब उन्होंने आतंकवादियों से कहा कि वह बलूचिस्तान के तुरबत शहर के निवासी हैं और उनके पास महिलाएं और बच्चे भी हैं. हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कितने यात्री अब भी बंधक हैं. गौरतलब है कि बीएलए स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए दशकों से संघर्ष कर रहा है और कई घातक हमलों को अंजाम दे चुका है. इनमें पुलिस स्टेशन, रेलवे लाइनों और राजमार्गों को निशाना बनाया गया है. पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा बलों द्वारा बलूचिस्तान में चलाए जा रहे काउंटर-इंसर्जेंसी अभियानों में 2000 के दशक की शुरुआत से हजारों लोग गायब हो गए हैं. सुरक्षा बलों पर अत्याचार और न्यायिक हत्याओं के आरोप हैं, जिन्हें वे नकारते हैं.
कानून मंत्रालय ने अडानी को समन जारी करने को कहा : 'द हिंदू' की खबर है कि केंद्रीय कानून मंत्रालय ने अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी के खिलाफ अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) के मुकदमे में सहायता के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है और अहमदाबाद की एक सत्र अदालत से अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी को समन जारी करने को कहा है. कानून मंत्रालय के अधीन विधिक मामलों के विभाग (डीएलए) ने अमेरिकी एसईसी से प्राप्त समन नोटिस को अहमदाबाद की एक सत्र अदालत को भेजा, जिसमें अदालत से गौतम अडानी को उनके अहमदाबाद पते पर समन सौंपने को कहा गया है. सरकार ने एक आंतरिक नोट में कहा, 'हेग कन्वेंशन (1965) के तहत अमेरिका के केंद्रीय प्राधिकरण से प्राप्त समन जारी करने के अनुरोध पर विचार किया जा रहा है. दस्तावेज़ों की जांच की गई है और यह हेग कन्वेंशन के अनुरूप पाए गए हैं. यदि स्वीकृत होता है, तो हम दस्तावेज़ों को अहमदाबाद, गुजरात की जिला और सत्र अदालत को प्रतिवादी को समन जारी करने के लिए भेज सकते हैं."
ग्रीनलैंड में डेमोक्रेट पार्टी का जलवा : ‘द गार्डियन’ की खबर है कि डोनाल्ड ट्रम्प के आर्कटिक द्वीप ग्रीनलैंड को हासिल करने की धमकी की पृष्ठभूमि में लड़े गए एक नाटकीय चुनाव अभियान के बाद डेमोक्रेट पार्टी ने अपनी सीटें तीन गुना अधिक कर ली हैं. डेमोक्रेट पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री म्यूट बी एगेडे की पार्टी इनुइट अटाकाटिगिट को पीछे छोड़ते हुए ग्रीनलैंड की संसद में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. नालेराक पार्टी की सीटें भी दोगुनी हो गईं और यह पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. डेमोक्रेट्स और नालेराक दोनों डेनमार्क से स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं, लेकिन वे स्वतंत्रता की गति को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं. डेमोक्रेट्स ने 29.9% वोट हासिल किए, जबकि नालेराक को 24.5% वोट मिले. चुनाव का परिणाम ग्रीनलैंड की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है.
टैरिफ को लेकर अब भी आगे पीछे होता अमेरिका
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब से पद संभाला है, अमेरिका की नीति और कार्यक्रम उनके ट्रुथ सोशल हैंडल से चल रहे हैं. आज से हम लेकर आ रहे हैं ‘ट्रम्प चाल ’. हमारी कोशिश है कि इस कॉलम में पिछले चौबीस घंटों में ट्रम्प के सोशल मीडिया संदेशों ने उनके देश और दुनिया में क्या हड़कम्प मचाया, उसका सार बना कर आपको सामने पेश करें, ताकि एक तो आप ‘ट्रम्प चाल ’ से वाक़िफ़ रहें और ये सोचने पर मजबूर न हों कि ऐसा हो कैसे सकता है? ट्रम्प है तो मुमकिन है.
'वॉशिंगटन पोस्ट' की खबर है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने कनाडाई स्टील और एल्युमिनियम पर शुल्क दोगुना करने का आदेश दिया है. ऐसा ओंटारियो के प्रीमियर डग फोर्ड द्वारा तीन अमेरिकी राज्यों को आपूर्ति की जा रही बिजली पर नया कर लगाने के जवाब में किया गया है. ट्रम्प ने कहा कि वह कनाडाई स्टील और एल्युमिनियम पर शुल्क 50% तक बढ़ा देंगे. फोर्ड की यह कार्रवाई ट्रम्प की पहले की घोषणा का जवाब था, जिसमें विदेशी स्टील और एल्युमिनियम पर शुल्क लगाने की बात कही गई थी.
'वॉशिंगटन पोस्ट' की खबर है कि कई संघीय एजेंसियों की तरह, राज्य विभाग का वित्तीय समर्थन अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. यह संदेश एक मार्च को माया प्रसाद के इनबॉक्स में आया, जो वर्जीनिया में पली-बढ़ी हैं, लेकिन अब हजारों मील दूर मॉरिशस में माइक्रो प्लास्टिक्स का अध्ययन कर रही हैं. ट्रम्प प्रशासन ने अंतरराष्ट्रीय विनिमय और अध्ययन-विदेश कार्यक्रमों के लिए राज्य विभाग का धन रोक दिया है. प्रतिभागी यह सवाल उठा रहे हैं : क्या यह फिर कभी शुरू होगा?
ट्रम्प ने अमेरिका के सबसे पुराने पर्यावरणीय कानूनों में से एक को कमजोर कर दिया है. इंटीरियर विभाग ने एक कानूनी राय को निलंबित कर दिया है, जिसमें कंपनियों को पक्षियों जैसे बत्तखों, क्रेन्स, पेलेटिकन, उल्लू और अन्य प्रजातियों की दुर्घटनावश हत्या करने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था. यह कदम तेल और गैस उद्योग के लिए जीत के रूप में देखा जा रहा है, जिनका तर्क था कि उन कंपनियों को सरकार ने अनुचित रूप से दंडित किया है, जिनका पक्षियों को नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था. हालांकि, यह कदम उन संरक्षणवादियों की चिंता बढ़ा रहा है, जो पहले से ही यह चेतावनी देते आ रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के कारण पक्षियों की संख्या लगातार घट रही है.
हालत यह है कि अमरीका में जज भी इफ एंड बट में जी रहे हैं और शक, शंका से फैसले सुना रहे हैं. एक यूएस डिस्ट्रिक्ट जज ने फैसला सुनाया कि ट्रम्प प्रशासन ने कांग्रेस द्वारा स्वीकृत विदेशी सहायता फंड में से लगभग 2 बिलियन डॉलर को रोककर ‘संभवतः’ शक्ति विभाजन का उल्लंघन किया है. जज का कहना है कि 'शायद' यूएसएड फंडिंग का 'गैरकानूनी' निलंबन संविधान का उल्लंघन करता है.
तेल, गैस और कोयला : जीवाश्म ईंधन पर दुनिया की निर्भरता बढ़ाता अमेरिका
पिछले हफ्ते अमेरिकी ऊर्जा सचिव क्रिस राइट ने कहा- 'हमने वर्षों तक पश्चिमी देशों को यह कहते हुए सुना है कि कोयला विकसित मत करो, कोयला बुरा है.' "यह बस बकवास है, 100% बकवास," राइट ने कहा. "कोयला ने हमारी दुनिया को बदल दिया और इसे बेहतर बनाया." डोनाल्ड ट्रम्प का बार-बार दोहराया गया मंत्र “ड्रिल, बेबी, ड्रिल” अमेरिका में अधिक तेल और गैस निकालने की मांग करता है, लेकिन राष्ट्रपति ने एक और व्यापक लक्ष्य निर्धारित किया है, और वह है ग्रह को गर्म करने वाले जीवाश्म ईंधन पर दुनिया को जितना संभव हो सके, उतना समय तक निर्भर रखना. जापान और यूक्रेन जैसे देशों के साथ किए जा रहे समझौतों में, ट्रम्प अमेरिका की टैरिफ और सैन्य सहायता के माध्यम से दुनिया में तेल और गैस के प्रवाह को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी दबाव का उपयोग कर रहे हैं. महाद्वीप में ऊर्जा लाने के लिए अफ्रीका में उनके प्रशासन ने कोयले के पुनर्जीवन को बढ़ावा दिया है, जो सभी जीवाश्म ईंधनों में सबसे गंदा है.
30 दिन के सीजफायर पर राजी हुआ यूक्रेन, रूस ने कीव पर घोषणा के बाद किया हवाई हमला
'द गार्डियन' की खबर है कि यूक्रेन ने रूस के साथ युद्ध में तत्काल 30 दिनों की युद्धविराम की स्वीकृति देने की घोषणा की है, जबकि अमेरिका ने सऊदी अरब में उच्चस्तरीय वार्ता के बाद अपनी सैन्य सहायता और खुफिया जानकारी साझा करने पर लगे प्रतिबंधों को तुरंत हटा लिया है. डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि अब उन्हें उम्मीद है कि व्लादिमीर पुतिन इस सीजफायर पर अपना जवाब देंगे. अगर रूस के राष्ट्रपति पुतिन युद्धविराम को स्वीकार करते हैं, तो यह 2022 में यूक्रेन पर रूस द्वारा आक्रमण शुरू करने के बाद पहली बार होगा. यह समझौता जेद्दा में अमेरिकी और यूक्रेनी अधिकारियों के बीच वार्ता के बाद संयुक्त बयान जारी कर किया गया था. इस समझौते के तहत यूक्रेन ने 30 दिनों का अस्थायी युद्धविराम स्वीकारने की सहमति दी है, जिसे दोनों पक्षों की आपसी सहमति से बढ़ाया जा सकता है. यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की ने कहा कि यूक्रेन इसे सकारात्मक कदम मानता है और स्वीकार करने को तैयार हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अब यह अमेरिका पर निर्भर करता है कि वह रूस को मनाए. इस बीच, रूस की ओर से यह स्पष्ट नहीं है कि पुतिन इसे स्वीकारेंगे या नहीं, हालांकि ट्रंप ने कहा कि वह इस सप्ताह के अंत में पुतिन से बात करेंगे. इधर, यूक्रेन की घोषणा के कुछ घंटे बाद ही रूस ने कीव पर हवाई हमला किया.
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने संवाददाताओं से कहा कि यदि अमेरिकी नेतृत्व में शांति प्रक्रिया अगले चरण तक पहुंचती है और रूस के साथ औपचारिक वार्ताएं होती हैं, तो "भविष्य में आक्रामकता से बचने के लिए पर्याप्त प्रतिकार" चर्चा का हिस्सा बनना चाहिए. रुबियो ने आयरलैंड में शैनन हवाई अड्डे पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि यूरोपीय देशों की एक भूमिका हो सकती है, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि रूस बातचीत में यूरोपीय संघ द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटाने की मांग करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि यूक्रेन और अमेरिका के बीच खनिज व्यापार सुरक्षा गारंटी नहीं होगी, लेकिन अमेरिका का "वहां एक आर्थिक हित होगा" और यदि इसे चुनौती दी जाती है या खतरे में डाला जाता है, तो अमेरिका उसे बचाने में रुचि लेगा. रुबियो ने इस बात पर भी जोर दिया कि अमेरिका ने रूस को कोई सैन्य सहायता नहीं दी है और रूस पर लगे सभी प्रतिबंध अब भी लागू हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यदि रूस "हां" कहता है तो यह अच्छी खबर होगी और बातचीत आगे बढ़ेगी, लेकिन यदि वे "नहीं" कहते हैं, तो यह अमेरिका को रूस के इरादों को समझने में मदद करेगा.
रूस का सीजफायर तोड़ने का इतिहास और पश्चिमी देशों के समन्वय की परीक्षा
'सीएनएन' के लिए निक पैटन वाल्श ने रूस-यूक्रेन युद्ध में 30 दिनों के संघर्षविराम का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि पहले तो यह अच्छी खबर की तरह प्रतीत होता है, लेकिन युद्धविराम इस दशक के लंबे संघर्ष का सबसे जटिल और क्षतिग्रस्त विचार है. इसका प्रभाव निर्धारित करेगा कि यूक्रेन को समर्थन, संप्रभुता और अस्तित्व किस दिशा में मिलेगा. अब तक सैकड़ों हजारों मृतकों के बाद, दोनों पक्षों के लिए संघर्षविराम की संभावना को अस्वीकार करना मुश्किल होगा. रूस पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शांति के लक्ष्य में अवरोधक नहीं होने का दबाव होगा. रूस, युद्ध के तीन साल बाद शायद शांति के लिए कोई कदम उठाएगा, हालांकि यह शुरुआती संघर्षविराम नहीं हो सकता और रूस पहले सैन्य लक्ष्यों को साधने के लिए इसे टाल सकता है. लेकिन इसके बाद वास्तविकता यह होगी कि रूस के साथ कोई भी शांति प्रयास सही ढंग से नहीं हो सकता, क्योंकि रूस की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल हैं. यूक्रेन की अधिकतम इच्छाएं अपने क्षेत्र को फिर से प्राप्त करने की हैं और संघर्षविराम को स्थायी रूप से भू-भाग के नुकसान के रूप में स्वीकारना उनके लिए कठिन होगा. यह संघर्षविराम, अगर वास्तविक होता है, तो बड़ी चुनौती होगी. ऐसे कई मौके हो सकते हैं, जब छोटे संघर्ष या हमले हो सकते हैं, जिन्हें स्पष्ट रूप से किसी एक पक्ष के रूप में नहीं चिह्नित किया जा सकता. रूस का इतिहास भी संघर्षविराम की धोखाधड़ी से भरा है, जहां उसने पहले भी समझौतों का उल्लंघन किया है. अंत में, ट्रम्प का विश्वास होगा कि यूक्रेन इस शांति को बर्बाद कर रहा है, जबकि वास्तव में रूस फिर से हमला कर सकता है. रूस की रणनीति में शांति के बाद भी दबाव बनाए रखना शामिल हो सकता है, जिससे पश्चिमी सहायता में कमी हो सकती है और युद्ध फिर से तेज हो सकता है. यह संघर्षविराम एक परीक्षा होगी, जिसमें रूस की सच्ची नीयत और पश्चिमी देशों के समन्वय की परीक्षा होगी.
उषा वेंस की डीईआई रैली में शिरकत!
'द डेली बीस्ट' ने उषा वेंस की मनोस्थिति का वर्णन किया है, खासकर तब जब भारतीय मूल की इस महिला के पति ट्रम्प प्रशासन का न केवल अहम हिस्सा हैं, बल्कि वो ट्रम्प से भी दो कदम आगे जाकर दुनिया के बारे में अपना ख्याल पेश करते हों! 'द डेली बीस्ट' ने अपने आर्टिकल की शुरुआत करते हुए लिखा है, अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस की पत्नी उषा वेंस ने इटली के ट्यूरिन में आयोजित स्पेशल ओलंपिक्स वर्ल्ड विंटर गेम्स 2025 के उद्घाटन में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. 7 साल के बेटे के साथ मंच पर मुस्कुराती उषा का यह प्रदर्शन विडंबनाओं से भरा था, क्योंकि उनके पति ने “समावेश” (DEI) पर लगातार हमले किए हैं. 2024 में सीनेटर वेंस ने “डिसमांटल डीईआई एक्ट” पेश कर इसे “नफरत की विचारधारा” बताया था. इसके विपरीत, स्पेशल ओलंपिक्स का मिशन “बौद्धिक विकलांगों के खिलाफ भेदभाव खत्म करना” है. समारोह में ट्यूरिन के मेयर ने “समावेश और विकास” पर जोर दिया, जबकि उषा चुप रहीं. सवाल उठा : क्या उन्होंने सोचा कि ट्रम्प प्रशासन विकलांगों के लिए अपमानजनक भाषा (जैसे कमला हैरिस को रिटार्डेड कहना) का इस्तेमाल करता है? उषा का यहां होना उस विरासत के साथ विडंबना था. समारोह में “न्यायपूर्ण समाज” के नारे गूंजे, लेकिन उषा और उनका बेटा जल्दी चले गए. शायद वे इन संदेशों से बचना चाहते थे. यह सवाल बाकी है : क्या उषा वेंस वास्तव में समावेश में विश्वास रखती हैं, या यह सिर्फ राजनीतिक छवि संवारने का प्रयास था?
चलते चलते
स्पॉटीफ़ाई ने 2024 में कलाकारों को रिकॉर्ड 864 अरब रुपये रॉयल्टी दी
बीबीसी के अनुसार, स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म स्पॉटीफ़ाई ने 2024 में संगीत उद्योग को 10 अरब डॉलर (864 अरब रुपये )का भुगतान किया, जो किसी भी रिटेलर द्वारा अब तक का सबसे बड़ा वार्षिक भुगतान है. लेकिन यह आंकड़ा ऐसे समय आया है, जब कलाकारों और गीतकारों को मिलने वाली रॉयल्टी को लेकर बहस तेज़ है.
स्पॉटीफ़ाई के अनुसार, यह राशि सीधे रिकॉर्ड लेबल, म्यूज़िक पब्लिशर्स और कलेक्शन सोसाइटीज़ को भेजी जाती है. कलाकारों को उनके लेबल के साथ हुए अनुबंध के आधार पर भुगतान मिलता है. 2021 में ब्रिटिश संसद की एक कमेटी को बताया गया था कि एक स्ट्रीम से कलाकार को कुल रॉयल्टी का केवल 16% ही मिल पाता है. यानी अगर किसी का गाना स्पॉटीफ़ाई पर 1 लाख पाउंड कमाता है, तो कलाकार को टैक्स से पहले मात्र 16,000 पाउंड मिलेंगे. 2024 में टेलर स्विफ़्ट स्पॉटीफ़ाई पर सबसे ज़्यादा स्ट्रीम की जाने वाली कलाकार रहीं, जिनके गानों को 26 अरब बार सुना गया. इस साल उन्होंने अपना डबल एल्बम 'द टॉर्चर्ड पोएट्स डिपार्टमेंट : द एंथोलॉजी' रिलीज़ किया था. स्विफ़्ट खुद 2014 में स्पॉटीफ़ाई के बहिष्कार में शामिल रही थीं, लेकिन 2017 में प्लेटफॉर्म पर लौट आईं. इस साल ग्रैमी नामांकित कुछ गीतकारों ने स्पॉटीफ़ाई के इवेंट का बहिष्कार किया, जबकि नील यंग और जोनी मिचेल ने 2022 में जो रोगन पॉडकास्ट विवाद के बाद अपना संगीत हटा लिया था. हालांकि, यूरोप के 70% संगीतकार अब भी स्ट्रीमिंग रॉयल्टी से नाखुश हैं. कंपनी की 'लाउड एंड क्लियर' रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 से अब तक $1,000 से $10 मिलियन कमाने वाले कलाकारों की संख्या तीन गुना बढ़ी है. 2023 के मुकाबले 2024 में स्पॉटीफ़ाई ने 1 अरब डॉलर अधिक भुगतान किया. हालांकि, ब्रिटिश सांसदों ने संगीत स्ट्रीमिंग मॉडल में बड़े बदलाव की मांग की है, ताकि कलाकारों को उचित हिस्सा मिल सके.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.