13/04/2025: कस्बे का अकेला बचा मुसलमान | क्या करें क्रूरता का | वक़्फ़ कानून को लेकर हिंसा | नेशनल हेराल्ड की संपत्ति जब्त | वरिष्ठ नागरिकों की रियायत काटकर रेलवे ने कमाए 8913 करोड़
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
वक्फ कानून के विरोध में हिंसा, मुर्शिदाबाद में 3 मरे, हाईकोर्ट ने दखल दिया
इस माह तीसरी बार यूपीआई सर्विस बैठी, डिजिटल पेमेंट ठप रहा
युद्धविराम की अपील के बाद मुठभेड़, तीन माओवादी मारे गए
नेशनल हेराल्ड केस: 661 करोड़ की संपत्ति जब्त करेगा ईडी
सुखबीर बादल फिर बने अकाली दल के प्रधान
जम्मू-कश्मीर : फौजी शहीद, आतंकी गतिविधियों में उछाल, घुसपैठ-मुठभेड़ में इजाफा
अब अपने पास रोक कर बैठ नहीं सकते विधेयक, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए भी 3 माह की टाइम लाइन तय की
उत्तर प्रदेश में असमानता : उच्च जातियों को बेहतर नौकरियां, दलितों को कम वेतन वाले काम
8,913 करोड़ रुपये : वरिष्ठ नागरिकों की रियायत काटकर रेलवे ने कमाए
“तुम हिंदू लड़के के साथ क्यों बैठी हो?”
गर्लफ्रेंड को ट्रॉली बैग में छिपा कर बॉयज हॉस्टल ले जा रहा था
मछलियां चली जाएंगी क्लाईमेट चेंज के कारण ?
यूक्रेन का दावा, रूस की मिसाइल ने भारतीय कंपनी को टारगेट किया
नंदानगर में अकेला बचा मुसलमान
'अलजजीरा' के लिए कौशिक राज और श्रृष्टि जायसवाल ने हिन्दुत्व के नफरती अभियान की चपेट में आए सुदूर हिमालयी कस्बे नंदानगर में लौटे उस इकलौते मुसलमान अहमद हसन का हाल जाना है, जो कहता है कि अब तो ड्राई क्लीनिंग का भी धर्म होता है. हर सुबह 8 बजे, अहमद हसन अपनी ड्राई क्लीनिंग की दुकान का भूरा शटर उठाते हैं, वे सावधानीपूर्वक प्लास्टिक कवर में लपेटे सूखे साफ कपड़े अपनी दुकान की गुलाबी दीवारों पर टांगते हैं. फिर 49 वर्षीय हसन ग्राहकों का इंतज़ार करते हैं. सितंबर 2024 से पहले, दोपहर तक उनके पास 20-25 ग्राहक आ जाते थे. कुछ शेरवानी, सूट, कोट और सर्दी के कपड़े देकर जाते, तो कुछ चाय पीते हुए राजनीति, चुटकुले और जीवन के दुख-सुख साझा करते. ज़्यादातर ग्राहक हिंदू होते, कुछ मुस्लिम. लेकिन आज, दोपहर तक पांच से भी कम हिंदू ग्राहक आते हैं और उन्हें पता है कि किसी मुस्लिम ग्राहक के आने का सवाल ही नहीं उठता. हसन अब इस कस्बे में बचे अंतिम मुस्लिम व्यक्ति हैं.
पीढ़ियों से 15 मुस्लिम परिवार नंदा नगर में रहते आए थे. यही वो जगह है जहां हसन का जन्म और पालन-पोषण हुआ, जहां उनके परिवार को हिंदू त्योहारों में बुलाया जाता था और वे ईद पर अपने पड़ोसियों की मेज़बानी करते थे. उन्होंने हिंदू अंतिम संस्कारों के लिए लकड़ियां इकट्ठा की हैं और अपने हिंदू दोस्तों की अर्थी को कंधा भी दिया है, लेकिन सब कुछ सितंबर 2024 में बदल गया. एक हिंदू लड़की द्वारा एक मुस्लिम नाई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बाद फैले दंगे में मुस्लिमों पर हमले हुए. इस हिंसा की जड़ें दरअसल कोविड-19 के बाद से मुस्लिमों के प्रति बढ़ती नफरत में थीं.
नफरत भरे नारे, मार्च और फिर शारीरिक हमले हुए. मुस्लिमों की दुकानों को तोड़ा गया. जान बचाने के लिए कस्बे के सारे मुस्लिम परिवार रातों-रात भाग गए. केवल हसन लौटे. अपनी पत्नी, दो बेटियों और दो बेटों के साथ. उन्होंने ठान लिया कि वे इस जगह को नहीं छोड़ेंगे, लेकिन अब उनका परिवार भय में जीता है. उनके हिंदू पड़ोसी अब उनसे बात नहीं करते. वे अब शाम को नदी किनारे टहलने नहीं जाते. वे अपने बच्चों और पत्नी को किसी से मिलने नहीं देते. उन्हें डर है कि फिर से हिंसा हो सकती है.
“अब तो मैं सिर्फ दुकान जाता हूं और वापस घर लौट आता हूं. यही ज़िंदगी है अब,” हसन कहते हैं. “मैंने पूरी ज़िंदगी इस कस्बे में बिताई और अब लगता है जैसे मैं एक भूत हूं. कोई मुझे देखता तक नहीं. कोई बात भी नहीं करता.”
“मुल्लों के दलालों को जूते मारो”
2021 तक हसन का जीवन शांतिपूर्ण था, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान मुस्लिमों के खिलाफ फैलाई गई साजिशों ने माहौल बदल दिया, उन्हें “कोरोना जिहाद” का दोषी बताया गया. साल 2024 में जब एक नाई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा, तब मुस्लिमों ने भी विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, ताकि यह न लगे कि वे अपराध का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन प्रदर्शन के दौरान नफरत भरे नारे लगे- “मुल्लों के दलालों को जूते मारो”.
इसके बाद एक मुस्लिम युवक हारून अंसारी को पीटा गया. फिर सैकड़ों लोगों की भीड़ ने मुस्लिम घरों पर पत्थर फेंके, दुकानों को लूटा और मस्जिद को क्षति पहुंचाई. पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. हसन की दुकान भी तोड़ी गई, 4.6 लाख रुपये लूट लिए गए, जो उन्होंने अपनी बेटियों की शादी के लिए बचाए थे. “मैं यह दिन कभी नहीं भूलूंगा,” वे कहते हैं.
बचाव, फिर वापसी
भीड़ के हमले के बाद पुलिस ने मुस्लिम परिवारों को पास के कस्बों में छोड़ दिया. ज़्यादातर लोग वहीं रुक गए. लेकिन हसन ने वापसी का फैसला किया. उनकी पत्नी उनसे पहले लौट आईं - बच्चों को लेकर. उन्होंने कहा, “अगर हम वापस नहीं गए तो हमारी रोज़ी-रोटी छिन जाएगी.” अक्टूबर 16 को हसन लौटे, लेकिन देखा कि उनके सामने एक हिंदू व्यक्ति ने भी ड्राई-क्लीनिंग की दुकान खोल ली है. “कोई हिंदू कारीगर मेरी दुकान की मरम्मत करने को तैयार नहीं था. उन्होंने कहा कि उन्हें ‘हिंदुत्व’ संगठनों से निर्देश मिला है कि मुस्लिमों की मदद न करें.”
हसन ने खुद मरम्मत की, लेकिन ग्राहक नहीं लौटे. जिन्होंने लौटने की कोशिश की, उन्हें धमकाया गया. “उस दिन मुझे समझ आया कि अब ड्राई-क्लीनिंग का भी धर्म होता है.”
फरवरी 19 को एक हिंदू व्यक्ति, जो विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे था, उनकी दुकान पर आया. हसन की पत्नी ने पूछा, “आप हमें बहन कहते थे, फिर क्यों चाहते थे कि हम चले जाएं?” उसने जवाब दिया - “जो हुआ, उसे भूल जाओ. तुम्हारा काम बहुत अच्छा है, इसलिए आया हूं.”
हसन मुस्कराते हैं, “मैंने वह दिन इसलिए देखा क्योंकि मैं नहीं गया. मैंने डटकर सामना किया.” पर टूटी दोस्तियों का दर्द अब भी है. “जब दूसरे मुस्लिम अपने सामान लेने लौटे, तो जिनके साथ हम हंसते-बैठते थे, वे हमें ताने दे रहे थे. बोले, वापस क्यों आए? दिल टूट गया.” हसन हार मानने को तैयार नहीं हैं. न अपने भविष्य से, न नंदा नगर से. वो जमे हुए हैं...उम्मीद लेकर, एक दिन सबकुछ ठीक हो जाने की.
सरोकार
क्या इन क्रूरताओं से निपटा जा सकता है?
निधीश त्यागी
वे हम में से ही होते हैं. हमारे ही लोग. हमारी ही बिरादरी से. हमारी ही सरकारें. हमारी ही पुलिस. हमारी ही अदालतें. जो क्रूरता दिखलाने लगते हैं. हम ही में से कुछ लोगों से. कई बार हमारे बीच के ही समुदायों से. हमारे ही परिवारों में. हमारे ही वोट से. तर्क और युक्ति, मनुष्यता और नागरिकता, अधिकार और न्याय, सबको ताक पर रख कर. ये क्रूरता हममें कहां से आती है, जो हम दूसरे इंसानों और कई बार औरतों, बच्चों, बूढ़ों और कई बार तो जानवरों के साथ दिखलाते हैं. हमारी क्रूरता हमें कहां ले जाती है. और ऐसा क्या रस और आनंद है क्रूरता में जो हमें इतनी सारी मिसालों और सबकों के बाद भी पलट-पलट कर आती है. ख़ास तौर पर दुनिया के उन हिस्सों में जिन्हें हम लोकतंत्र का नाम देना चाहते हैं.
जब हमारी सामूहिक सूझ सटक जाती है और हम उस क्रूरता के लिए अक्सर काल्पनिक शत्रु बनाते हैं, बदले की असली आग जलाने के लिए और आहत आस्थाओं के नाम पर उनका शिकार करने निकल पड़ते हैं. जो काल्पनिक शत्रु था वह हमारा पड़ोसी, पास के मुहल्ले, हमारे शहर का हिस्सा ही निकलता है.. असली का हाड़मांस वाला इंसान. एक के बाद हमारी क्रूरता अपना गुस्से का इजहार करती चलती है. कम नहीं होती.
समाज और मनोविज्ञान में शायद इसकी कई व्याख्याएं हो सकती हैं, पर जब लोकतांत्रिक तौर पर चुनी गई सरकारें अपने तंत्र का इस्तेमाल प्रजा के खिलाफ करने लगती हैं, तो उसको हम किस तरह से देखते हैं. एक झटके में अमेरिका के राष्ट्रपति ने न सिर्फ अपने देश, बल्कि दुनिया के ही सारे महीन तानेबाने झटक दिये हैं. उन्होंने दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला दिया, अमेरिका के साथियों से पल्ला झटक लिया, दुनिया में अमेरिका की विश्वसनीयता को संदिग्ध बना दिया, उसकी साख को कम किया और वहां की आमफहम जिंदगियों को तहस-नहस कर दिया. चाहे सरकारी नौकर हो, या विश्वविद्यालय के नौजवान, रिटायर्ड फौजी हो या शोध करता वैज्ञानिक, या शेयर बाजार का निवेशक, सबको एक ऐसी अनिश्चितता और परेशानी से भर दिया, जिसकी न तो उन्हें उम्मीद थी और न ही तैयारी. उसने चीन को शेर बना दिया, यूरोप को एक कर दिया और रूसी राष्ट्रपति और केजीबी के पूर्व प्रधान व्लादिमीर पुतिन को अकेले में ठहाके लगाने के लिए मजबूर भी किया.
ट्रम्प के जीवनीकार टिम ओब्रायन का कहना है, ‘बदला वह इकलौता ऑक्सीजन है, जो ट्रम्प को जिंदा रखता है.’ और ये भी कि ‘ये सारी गैरजरूरी और सुनियोजित शंका, असहमति और विनाश वह खुद के मज़े के लिए कर रहे हैं. वह गैरेज में गैसोलिन के टैंक की बगल में खड़े उस बच्चे की तरह हैं, जिसके हाथ में दियासलाइयां हैं.” डोनल्ड ट्रम्प जब से व्हाइट हाउस में लौटे हैं उनके एक भी बयान या कृत्य ऐसे नहीं हैं जहां पर वे दूसरों को नीचा दिखाने, उनकी हंसी उड़ाने या फिर उन पर बदले की कार्रवाई की धमकियां देना शामिल नहीं हुआ हो.
क्रूरता सिर्फ एक प्रवृत्ति है. अमूमन लोकतांत्रिक देशों की सरकारी नीति और उद्देश्य नहीं. एडम सरवर अपने लेख ‘द क्रुअल्टी इज द प्वाइंट’ में तर्क देते हैं कि ट्रम्प प्रशासन और उनके समर्थकों के लिए क्रूरता केवल एक नीति का नतीजा नहीं, बल्कि एक केंद्रीय तत्व और उद्देश्य थी. वे कहते हैं कि ट्रम्प और उनके समर्थक उन लोगों की पीड़ा और अपमान में साझा आनंद लेकर एक समुदाय का निर्माण करते हैं, जिनसे वे घृणा करते हैं या डरते हैं. सरवर ऐतिहासिक उदाहरण देते हैं, जैसे अमेरिका में लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) की पुरानी तस्वीरों में गोरे लोगों की भीड़ का मुस्कुराना. ये मुस्कुराहटें सिर्फ किए गए कृत्य के कारण नहीं थीं, बल्कि इसलिए थीं कि उन्होंने यह एक साथ किया था. यह साझा क्रूरता उन्हें जोड़ती थी. वह एक क्लब बनाती है.
याद है ओवल ऑफिस में एक युद्धरत यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलाडिमीर जेलेंस्की के साथ किस तरह की क्रूरता से ट्रम्प और जेडी वांस पेश आये थे.
ट्रम्प के आने के बाद अमेरिका ने जिस लोकतांत्रिक दुनिया की झंडाबरदारी संभाल रखी थी, उसे उठा कर फेंक दिया है. मुझे अमेरिकी राष्ट्रपति का दफ्तर अब लगता है जैसे बहुत सारे नाखुश बच्चे एक साथ अपने मोबाइल पर कोई हिंसक वीडियो गेम खेल रहे हों, उनका गुस्सा और ऊब हर खेल के बाद बढ़ता जाता हो, और उसी मोबाइल या वीडियो गेम के कंसोल को पटक कर अपने जूतों से रौंदने लगते हों. ट्रम्प, इलोन मस्क, उनके सलाहकार, उनकी कैबिनेट. हर सुबह एक नया गेम खेलने.
बस ये कि वह वीडियो गेम नहीं है. ये असली दुनिया है. असली लोग हैं जो उनसे प्रभावित हो रहे हैं. असली देश, उद्योग, किसान, कारीगर हैं जिनकी असली जिंदगियों पर सीधा असर पड़ रहा है. वे इस महान बेवक़ूफी का सिर पैर समझने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी दुविधा, डर, शंका और चिंता बढ़ ही रही है. आज एक फैसला लिया जाता है, कल उस पर रोक लगा दी जाती है, पर बदला नहीं जाता. पूरी दुनिया बदहवासी के हिचकोले खा रही है. एक तरफ ऐसा सोचा जा सकता है कि यह एक ठीक-ठाक सी बनी दुनिया पर जड़मतियों का हमला है या फिर लद्धड़ों का बदला, पर दूसरी तरफ ये सवाल करने वाले भी कम नहीं कि अमेरिका को सबसे ज्यादा नुकसान अगर पंहुचाना है, तो ट्रम्प के होते हुए किसी दुश्मन की क्या जरूरत है.
आप भी गौर करेंगे कि यह सोची समझी क्रूरता केवल अमेरिका या ट्रम्प तक ही सीमित नहीं है. हम इसी तरह की प्रवृति तुर्की में देख रहे हैं, हंगरी और रोमानिया में, पोलैंड, ब्राजील जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी. इन सारे देशों में दक्षिणपंथ की तरफ मुंह किये हुए नेता अक्सर कमजोर या अल्पसंख्यक समूहों को बलि का बकरा बनाकर, उनके खिलाफ डर और नफरत भड़काकर अपनी शक्ति मजबूत करते हैं.
बड़ा सवाल ये भी कि लोकतंत्र में इस सरकारी क्रूरता से कैसे निपटा जाना चाहिए. हममें से बहुत से लोगों को ये सही लगता है और लग सकता है. कुछ को सही नहीं लगता, पर वे हाथ खड़े कर देते हैं कि हम कर ही क्या सकते हैं. और ऐसे भी लोग हम में से ही हैं, जो इसे स्वीकार नहीं करते, पर कुछ कहते हैं. मैंने ये जानने की कोशिश की कि अमेरिका में लोग ट्रम्प सरकार की क्रूरताओं से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं? मैंने यहां पर ये सुझाव पढ़े.
इंसानियत को अहमियत दें: उन लोगों की कहानियों पर ध्यान केंद्रित करें जिन्हें निशाना बनाया जा रहा है. उनकी पीड़ा के साथ-साथ उनके जीवन, सपनों और संघर्षों की सामान्य मानवीयता को उजागर करें. उदाहरण के लिए, किल्मर एब्रेगो गार्सिया (विशेष जरूरतों वाले बच्चों के पिता), एंड्री हर्नांडेज़ रोमेरो (गे मेकअप आर्टिस्ट), और नेरी जोस अल्वाराडो बोर्गेस (ऑटिज़्म जागरूकता टैटू वाले) की कहानियाँ लोगों को उनकी मानवीयता के कारण प्रभावित कर सकीं. यह अमानवीयकरण के प्रयास को कमजोर करता है.
असली इरादों को समझें और उजागर करें: स्पष्ट रूप से बताएं कि सत्तावादी गुट क्रूरता का उपयोग क्यों कर रहा है - डर, विभाजन और घृणा के माध्यम से मतदाताओं को हेरफेर करने और अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए. जब लोग समझते हैं कि उनके साथ चालाकी की जा रही है, तो रणनीति कम प्रभावी हो जाती है. इसे वैश्विक सत्तावादी पैटर्न के संदर्भ में प्रस्तुत करना उपयोगी हो सकता है.
विभाजनकारी फ्रेमवर्क को स्वीकार या दोहराएं नहीं: क्रूरता के लिए दिए जाने वाले बहानों या औचित्य (जैसे कि निशाना बनाए गए लोग अपराधी, देशद्रोही, आतंकवादी समर्थक या समाज के लिए खतरा हैं) को स्वीकार न करें. इन झूठे आरोपों का खंडन करने के लिए भी दोहराने से बचें, क्योंकि यह अनजाने में उन्हें बल देता है. सरकारी दावों पर संदेह करें और उनकी सच्चाई की पड़ताल करें.
आशा न छोड़ें और सफल प्रतिरोध के प्रयासों को उजागर करें: क्रूरता का एक उद्देश्य विरोधियों को डराना और हतोत्साहित करना भी है. यह दिखाना महत्वपूर्ण है कि प्रतिरोध संभव है और सफल हो सकता है. उदाहरण के लिए, सैकेट्स हार्बर, न्यूयॉर्क में, जब एक अप्रवासी परिवार को हिरासत में लिया गया, तो स्थानीय समुदाय के भारी विरोध और दबाव के कारण उन्हें अंततः रिहा कर दिया गया. यह दर्शाता है कि जब समुदाय एकजुट होकर किसी समूह को बलि का बकरा बनाने से इनकार करते हैं, तो वे क्रूरता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं.
ट्रम्प प्रशासन और अन्य सत्तावादी शासनों में देखी गई क्रूरता आकस्मिक नहीं है, बल्कि शक्ति को मजबूत करने, समाज को विभाजित करने और असंतोष को दबाने के लिए एक सोची-समझी और उपयोगी रणनीति है. यह बहुलवाद, मानवाधिकारों और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए एक गंभीर खतरा है. हालाँकि इसका सामना करना भारी और निराशाजनक लग सकता है, लेकिन मानवता पर ध्यान केंद्रित करके, रणनीति को उजागर करके, विभाजनकारी भाषा को अस्वीकार करके और सामूहिक कार्रवाई व सामुदायिक एकजुटता के माध्यम से इसका मुकाबला किया जा सकता है. मानवीय सहानुभूति और संगठित प्रतिरोध अंततः क्रूरता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. इसलिए, आशा बनाए रखना और संघर्ष जारी रखना महत्वपूर्ण है.
भारत में इस प्रवृत्ति का खुला प्रदर्शन दैनिक ही है. आहत आस्था का बहाना एकदम से क्रूर कृत्य में बदल जाता है. खास तौर पर जब वह ईद हो या रामनवमी. गाय के नाम पर हो या सड़क पर नमाज़ पढ़ने के नाम पर. नफरत दिखाना अब एक असामान्य कृत्य नहीं रहा. पुलिस और अदालतों का रवैया भी साफ ही है. दुनिया भर के तमाम सूचकांकों में भारत की प्रतिष्ठा किस तरह से गिरती जा रही है, अपने आपमे काफी है. फिर वह नोटबंदी से भ्रष्टाचार और थाली बजाकर कोविड भगाने की बात कौन भूल सकता है. कई बार क्रूरता हो रही होती है और हमें पता भी नहीं चलता उसका.. सुनिये कुमार अम्बुज की कविता रामगोपाल बजाज की खुर्राट आवाज़ में.
वक्फ कानून के विरोध में हिंसा, मुर्शिदाबाद में 3 मरे, हाईकोर्ट ने दखल दिया
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के विरोध में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद इलाके में 10 अप्रैल से हिंसा जारी है. जिले में शनिवार को फिर हिंसा भड़क गई. कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल के हिंसा से प्रभावित इलाकों में केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती के आदेश दिए हैं. 17 अप्रैल तक केंद्र और राज्य सरकार से रिपोर्ट भी मांगी है.
अब तक की सबसे परेशान करने वाली घटनाओं में से एक में, एक पिता और पुत्र को उनके घर में मृत पाया गया, जो कि हिंसा प्रभावित शमशेरगंज क्षेत्र के जाफराबाद में स्थित है. परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया कि बदमाशों ने उनके घर को लूटा और फिर दोनों पर जानलेवा हमला कर भाग गए.
एक अलग घटना में, शुक्रवार को सूटी के साजुर मोड़ पर झड़पों के दौरान एक 21 वर्षीय युवक को गोली लगी, जिसने शनिवार शाम मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में दम तोड़ दिया. धुलियान, शमशेरगंज में काम पर जाते समय दो बीड़ी फैक्ट्री मजदूरों, जिनमें एक नाबालिग लड़का भी शामिल था, को गोली लगी. दोनों का इलाज मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज में चल रहा है और उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है. प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहनों को आग लगा दी, सड़कों को अवरुद्ध किया और रेलवे संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. शुक्रवार को धुलियानडांगा और निमतिता स्टेशनों के बीच पूर्वी रेलवे के न्यू फरक्का-अजीमगंज खंड में ट्रेन सेवाएं लगभग छह घंटे तक बाधित रहीं. मुर्शिदाबाद के कई हिस्सों में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है और इंटरनेट सेवाओं को आगे बढ़ने से रोकने के लिए निलंबित कर दिया गया है.
जानकारी के अनुसार लगभग 300 सीमा सुरक्षा बल के जवान पहले से ही जिले में तैनात थे और केंद्र ने केंद्रीय बलों की पांच अतिरिक्त कंपनियां भेजी हैं. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून और व्यवस्था) जावेद शमीम ने कोलकाता में पत्रकारों को बताया कि अब तक इस अशांति के संबंध में कुल 138 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
इस माह तीसरी बार यूपीआई सर्विस बैठी, डिजिटल पेमेंट ठप रहा
देश में शनिवार को डिजिटल लेनदेन बाधित हो गए, क्योंकि यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने व्यापक रुकावट का सामना किया, जिससे उपयोगकर्ता गूगल पे और पेटीएम जैसे प्लेटफार्मों पर भुगतान पूरा करने में असमर्थ रहे. यह एक महीने में तीसरी बड़ी रुकावट है. नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने बताया, 'टेक्निकल इश्यू का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते UPI ट्रांजैक्शन में दिक्कत आ रही है. हम इस समस्या को हल करने के लिए काम कर रहे हैं. आपको हुई असुविधा के लिए खेद है.'
युद्धविराम की अपील के बाद मुठभेड़, तीन माओवादी मारे गए
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में सुरक्षा बलों ने शनिवार को कथित तौर पर तीन माओवादियों को गोली मार दी. यह घटना उस समय हुई जब हाल ही में माओवादियों ने "युद्धविराम" की अपील करते हुए पत्र भेजे थे. शनिवार सुबह हुई मुठभेड़ में दो माओवादियों के मारे जाने के बाद एक अन्य का शव भी बरामद हुआ. गोलीबारी का आदान-प्रदान सुबह लगभग 9 बजे इंद्रावती नदी के पार भैरमगढ़ क्षेत्र में हुआ, जो बीजापुर का एक कट्टर नक्सल इलाका है और दंतेवाड़ा जिला तथा नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ से घिरा हुआ है.
नेशनल हेराल्ड केस: 661 करोड़ की संपत्ति जब्त करेगा ईडी
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस के नेशनल हेराल्ड अखबार और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) से जुड़ी संपत्तियों को जब्त करेगा. एजेएल के 75 प्रतिशत शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पास हैं. ईडी ने शनिवार को जारी एक बयान में कहा कि उसने 661 करोड़ रुपए की अचल संपत्तियों को कब्जे में लेने के लिए नोटिस जारी किया है. ईडी ने कब्जे में लिए जाने वाले परिसर को खाली करने की मांग की है. 661 करोड़ की इन अचल संपत्तियों के अलावा एजेएल के 90.2 करोड़ रुपए के शेयरों को ईडी ने नवंबर 2023 में कुर्क किया था. दिल्ली के हेराल्ड हाउस (5A, बहादुर शाह जफर मार्ग), मुंबई के बांद्रा (ईस्ट) और लखनऊ के बिशेश्वर नाथ रोड स्थित एजेएल के भवनों पर नोटिस चिपकाए गए हैं.
सुखबीर बादल फिर बने अकाली दल के प्रधान
शिरोमणि अकाली दल ने पांच माह बाद एक बार पुनः सुखबीर सिंह बादल को अपना प्रधान (अध्यक्ष) चुन लिया है. शनिवार को अमृतसर में पार्टी की बैठक में सर्वसम्मति से यह फैसला लिया. प्रधान के पद के लिए कार्यकारी प्रधान बलविंदर सिंह भूंदड़ ने बादल के नाम का प्रस्ताव किया था. याद रहे कि पिछले साल नवंबर में अकाल तख्त द्वारा तनखैया घोषित किए जाने के बाद बादल ने पार्टी के प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया था. वह चौथी बार पार्टी के अध्यक्ष बने हैं.
जम्मू-कश्मीर : फौजी शहीद, आतंकी गतिविधियों में उछाल, घुसपैठ-मुठभेड़ में इजाफा
जम्मू-कश्मीर में पिछले 24 घंटों में सेना का एक जूनियर कमीशन अधिकारी (जेसीओ) शहीद हो गया, जबकि दो अन्य मुठभेड़ में तीन आतंकवादी मारे गए. सेना की 16 कोर ने शहीद अधिकारी की पहचान कुलदीप चंद के रूप में की है. “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार दो दिन पहले गुरुवार को ही भारत और पाकिस्तान ने ब्रिगेड कमांडर स्तर की फ्लैग मीटिंग कर एलओसी की शुचिता और दोनों पक्षों के बीच शांति बनाए रखने के उपायों पर चर्चा की थी. लेकिन, दो दिन बाद ही सीमा पार से घुसपैठ की खबरें आ गईं. दोनों पक्षों के बीच इस वर्ष यह दूसरी बैठक थी. इससे पहले वे 21 फरवरी को मिले थे और 25 फरवरी 2021 को हुए युद्धविराम समझौते को बनाए रखने पर सहमत हुए थे. मगर, पाकिस्तानी सेना ने 1 अप्रैल को पुंछ जिले के कृष्णा घाटी सेक्टर में एलओसी पर एक बारूदी सुरंग विस्फोट के बाद बिना उकसावे के गोलीबारी करके युद्धविराम का उल्लंघन किया. इससे पहले, 12 मार्च को जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में एलओसी पर फायरिंग में एक भारतीय सैनिक घायल हो गया था. उसी सुबह एलओसी पर एक विस्फोट भी हुआ, लेकिन कोई हताहत नहीं हुआ.
इस वर्ष की शुरुआत से कई बार सीमा पार घुसपैठ की कोशिशें हुई हैं. 11 फरवरी को, अखनूर सेक्टर में एलओसी पर आतंकवादियों द्वारा लगाए गए एक विस्फोट में कैप्टन करमजीत सिंह बख्शी समेत दो भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. इसके कुछ दिन पहले राजौरी और पुंछ जिलों में भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमले की घटनाएं हुई थीं.
केंद्रशासित प्रदेश में आतंकवादी गतिविधियां फिर से रफ्तार पकड़ रही हैं. हाल के महीनों में, जम्मू में आतंकी गतिविधियों में उछाल देखा गया है. विशेष रूप से कठुआ, उधमपुर, डोडा, किश्तवाड़, रियासी, राजौरी और पुंछ जिलों में. ये क्षेत्र, जिन्हें कभी अपेक्षाकृत शांत माना जाता था, अब आतंकी ऑपरेशनों के केंद्र बन गए हैं. इस इलाके में सीमा पार से घुसपैठ में वृद्धि और सुरक्षा बलों व आतंकवादियों के बीच लगातार मुठभेड़ हो रही हैं.
अब अपने पास रोक कर बैठ नहीं सकते विधेयक, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति के लिए भी 3 माह की टाइम लाइन तय की
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति के मामले में भी टाइम लाइन (समय सीमा) तय कर दी है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने पहली बार कहा है कि राज्यपाल द्वारा भेजे जाने वाले विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन माह के भीतर निर्णय लेना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "यदि इस अवधि से अधिक देरी होती है, तो उपयुक्त कारणों को रिकॉर्ड करना और संबंधित राज्य को सूचित करना अनिवार्य होगा.” सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन महीने की समयसीमा तय करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 201 में राष्ट्रपति के निर्णय के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई है.
तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा नवंबर 2023 में राष्ट्रपति के विचारार्थ 10 विधेयकों को आरक्षित करने की कार्रवाई को "अवैध और त्रुटिपूर्ण" घोषित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना 8 अप्रैल का निर्णय उपलब्ध कराया. इन विधेयकों पर राज्य विधानसभा द्वारा पहले ही पुनर्विचार किया जा चुका था. न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि ऐसे मामलों में जहां एक संवैधानिक प्राधिकरण द्वारा उचित समय सीमा में कार्य नहीं किया जा रहा है, अदालतें हस्तक्षेप करने में असमर्थ नहीं होंगी."
जाति
उत्तर प्रदेश में असमानता : उच्च जातियों को बेहतर नौकरियां, दलितों को कम वेतन वाले काम
‘द इंडिया फोरम’ की रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश में एक ताज़ा सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि ऊंची जातियों और अन्य सामाजिक समूहों के बीच पेशागत असमानता अब भी बरकरार है और कुछ मामलों में यह और भी गहरी हो गई है. हालांकि, दलित समुदाय में थोड़ी-बहुत तरक्की दर्ज की गई है. रुक्मी प्रदीप और श्रीनिवास गोली द्वारा किए गए इस अध्ययन में सामने आया है कि सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के साथ सभी जातियों में कुछ न कुछ गतिशीलता देखने को मिली है, लेकिन जहां अधिकांश ऊंची जातियों के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार जगत में ऊंचे ओहदों और बेहतर वेतन वाली सुरक्षित नौकरियों तक पहुंचे, वहीं निचली जातियों के लोग ज़्यादातर श्रमिक वर्ग और ग्रेड सी की शारीरिक श्रम वाली असुरक्षित नौकरियों तक ही सीमित रहे. सर्वे के अनुसार, ऊंची जातियां अब कम वेतन वाले पेशों से पीछे हट रही हैं, और उनकी खाली की गई जगहों को निचली जातियों के हिंदू और मुस्लिम समुदाय भर रहे हैं. हिंदू और मुस्लिम दलितों में पेशेवर गतिशीलता ज्यादातर निचली ओर रही, जबकि ब्राह्मणों में यह सकारात्मक (उपरी स्तर की नौकरी) थी. मुस्लिम ओबीसी और हिंदू ओबीसी में भी कुछ उन्नति देखी गई, लेकिन वह उच्चतम स्तर तक नहीं पहुंच पाई. सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि सेवा क्षेत्र की ग्रेड ए और बी नौकरियों, व्यापार और व्यापारिक क्षेत्रों में हिन्दू सवर्ण जातियों का अंतर-पीढ़ीगत प्रभुत्व अब भी बना हुआ है. यह संकेत देता है कि पिछड़ी और वंचित जातियों के मुकाबले उच्च जातियों की सामाजिक गतिशीलता में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है. इस अध्ययन से यह साफ है कि सामाजिक न्याय की नीतियों और आरक्षण के बावजूद, जातिगत आर्थिक असमानता की खाई अब भी गहरी है और इसे भरने के लिए ठोस नीतिगत प्रयासों की जरूरत है. इस अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता है ताकि उप-जातियों के बीच असमानताओं को बेहतर तरीके से समझा जा सके और उचित नीतियाँ बनाई जा सकें.
संख्यात्मक
8,913 करोड़ रुपये : वरिष्ठ नागरिकों की रियायत काटकर रेलवे ने कमाए
'इकॉनमिक टाइम्स' की रिपोर्ट है कि भारतीय रेलवे ने वरिष्ठ नागरिकों की छूट हटाकर पांच सालों में लगभग 8,913 करोड़ रुपये की कमाई की है. यह जानकारी केंद्रीय रेलवे सूचना प्रणाली (सीआरआईएस) द्वारा सूचना के अधिकार (आरटीआई) आवेदन के जवाब में प्राप्त हुई है. वरिष्ठ नागरिकों के लिए ट्रेन टिकटों पर छूट को बहाल करने का सवाल संसद में कई बार उठाया गया, हालांकि रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि रेलवे पहले ही औसतन हर यात्री को 46 प्रतिशत की छूट देता है. 60 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुष और ट्रांसजेंडर और 58 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं, जो 20 मार्च 2020 से पहले सभी वर्गों में ट्रेन टिकटों पर क्रमशः 40 प्रतिशत और 50 प्रतिशत की छूट प्राप्त करती थीं, जब रेलवे मंत्रालय ने कोविड महामारी के कारण इसे हटा लिया था. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त यात्रियों के डेटा और उनसे उत्पन्न राजस्व के अनुसार, 20 मार्च 2020 और 28 फरवरी 2025 के बीच 31.35 करोड़ वरिष्ठ नागरिक (पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर) ने छूट न मिलने के कारण अतिरिक्त 8,913 करोड़ रुपये का भुगतान करते हुए यात्रा की.
मध्य प्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता चंद्र शेखर गौड़ ने कहा, "मैंने 20 मार्च 2020 से रेलवे मंत्रालय के पास कई आवेदन दिये थे, और सबसे हालिया आवेदन मार्च 2025 में था. जब मैंने डेटा का विश्लेषण किया, तो मैंने पाया कि 20 मार्च 2020 और 28 फरवरी 2025 के बीच लगभग 18.279 करोड़ पुरुष, 13.065 करोड़ महिलाएं और 43,536 ट्रांसजेंडर यात्रियों ने यात्रा की. मंत्रालय की प्रतिक्रिया के अनुसार, पुरुष यात्रियों से लगभग 11,531 करोड़ रुपये, महिला यात्रियों से 8,599 करोड़ रुपये और ट्रांसजेंडर यात्रियों से 28.64 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ. इन सभी यात्रियों से कुल 20,133 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न हुआ. यदि पुरुष और ट्रांसजेंडर यात्रियों के लिए 40 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत छूट हटाई जाती, तो रेलवे ने 8,913 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय अर्जित की." गौड़ ने छूट की बहाली की मांग की और सवाल किया, "एक सामान्य नागरिक पूरे जीवन में विभिन्न प्रकार के करों का भुगतान करता है और जब वह वरिष्ठ नागरिक बनता है, तो क्या उसे रेलवे से टिकटों पर छूट की सुविधा नहीं मिलनी चाहिए?" उन्होंने कहा, "सरकार खुद को कल्याणकारी राज्य कैसे कह सकती है?"
हेट क्राइम
“तुम हिंदू लड़के के साथ क्यों बैठी हो?”
बेंगलुरू में कुछ लड़कों को इस बात पर आपत्ति हो गई कि एक मुस्लिम लड़की हिंदू लड़के के साथ क्यों बैठी है? घटना एक पार्क की है, जहां दोनों एक स्कूटी पर बैठे बात कर रहे थे. तभी वहां पांच लड़के (जिनमें एक नाबालिग है) पहुंचे और दोनों से विवाद करने लगे. लड़की बुर्का पहने थी. उससे कहा कि तुम्हें शर्म नहीं आती? बुर्का पहनकर हिंदू लड़के के साथ क्यों बैठी हो? उन्होंने नारंगी रंग की शर्ट पहने लड़के के साथ मारपीट की. आरोपियों ने इस घटनाक्रम का वीडियो भी बनाया. सोशल मीडिया में वीडियो वायरल हो गया. शुरू में पुलिस ने युवक के साथ मारपीट से इनकार किया, लेकिन बाद में एक और नया वीडियो सामने आने के बाद पांचों आरोपियों को उसे हिरासत में लेना पड़ा. मॉरल पुलिसिंग के विचलित कर देने वाले इस मामले पर राजनीति भी शुरू हो गई है. कर्नाटक सरकार के मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा कि यह यूपी, बिहार या मध्यप्रदेश नहीं, बल्कि प्रगतिशील राज्य है. यहां इस तरह की हरकत बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
गर्लफ्रेंड को ट्रॉली बैग में छिपा कर बॉयज हॉस्टल ले जा रहा था
आरोपी छात्र गर्लफ्रेंड को बॉयज हॉस्टल ले जा रहा था. लड़की का वजन ज्यादा होने से ट्रॉली बैग का पहिया टूट गया. जिससे बैग को झटका लगा और युवती की चीख निकल गई. लड़की की आवाज़ सुनकर सुरक्षाकर्मियों को शंका हुई. उन्होंने बैग की जांच की तो उसमें से लड़की निकली, जो कॉलेज की ही छात्रा है. जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ है, उसमें बैग की चेन खोलने पर लड़की बैग से बाहर निकलती दिखाई पड़ रही है. यह मामला सोनीपत की नरेला रोड स्थित ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी का है. लड़की को ट्रैवल बैग में बॉयज हॉस्टल भेजने के लिए उसके साथियों ने ही प्लानिंग की थी. वीडियो भी किसी छात्र ने ही बना लिया.
मछलियां चली जाएंगी क्लाईमेट चेंज के कारण ?
(फिश हार्बर, फाइल फोटो | सर लंपटा बासू)
‘इंड़िया स्पेंड’ के लिए निखिल गोवेस, कार्लिटो टर्नर और तन्वी देशपांडे की रिपोर्ट है कि महासागर के तापमान और लवणता में बदलाव भारत को प्रभावित करेंगे, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है. समुद्र अधिक अम्लीय हो रहा है जिससे प्रवाल और खोल बनाने वाले जीवों की जीवन प्रक्रिया प्रभावित हो रही है. समुद्री धाराएं और तापमान पैटर्न भी बदल रहे हैं. उदाहरणस्वरूप, भारतीय मैकेरल अब ठंडे जल क्षेत्रों और गहरे पानी की ओर जा रही है. यह भारत की सबसे अधिक पकड़ी जाने वाली मछली है और 2023 में कुल समुद्री मछलियों का लगभग 10% हिस्सा रही. हालांकि यह मछली अनुकूलनीय मानी जाती है, लेकिन इसके अत्यधिक दोहन के कारण यह भी संकटग्रस्त है. जलवायु परिवर्तन समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्रों की भौतिक और रासायनिक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रहा है. थ्रेडफिन ब्रीम की प्रजनन अवधि में बदलाव देखा जा रहा है.
बॉम्बे डक, जो गरीब मछुआरा समुदायों के लिए अहम है, जलवायु परिवर्तन के कारण कमजोर स्थिति में है. भारतीय ऑइल सार्डीन, जो कभी सबसे अधिक पकड़ी जाने वाली मछली थी, अब शीर्ष 10 से भी बाहर हो गई है. अगर जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित नहीं किया गया, तो तटीय मत्स्य उत्पादन में गिरावट आएगी, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि मछली भारत में पशु प्रोटीन का बड़ा स्रोत है. नेशनल फिशवर्कर्स फोरम के महासचिव ओलेंसियो सिमोएस ने कहा - "समुद्र का तापमान बढ़ रहा है. मछलियां पलायन कर रही हैं. पहले गोवा में टाइगर प्रॉन्स और सार्डीन इतनी अधिक मात्रा में मिलती थीं कि इन्हें नारियल के पेड़ों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. आज टाइगर प्रॉन्स महंगे हैं और सार्डीन दुर्लभ हो गई है. पहले एक ट्रिप में 100 टोकरी मिलती थीं, अब केवल 10 मिलती हैं, लेकिन लागत वही है."
2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है. वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की चेतावनी अब एक सच्चाई बन चुकी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि बदलती जलवायु स्थितियां भारत के मत्स्य क्षेत्र को कैसे प्रभावित करेंगी? और इस क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव मछुआरों, मत्स्य-कार्मिकों और हज़ारों करोड़ रुपये के इस उद्योग की आपूर्ति श्रृंखला को किस प्रकार नुकसान पहुंचाएंगे? शोध बताते हैं कि आने वाले दशकों में कुछ मछलियों की किस्में दुर्लभ हो सकती हैं और देश के कुछ हिस्सों में मछली पालन जलवायु परिवर्तन के लिए ज्यादा संवेदनशील हैं.
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और वैश्विक उत्पादन में लगभग 8% का योगदान देता है. देश में 3.2 मिलियन हेक्टेयर जलाशय, 5.64 लाख हेक्टेयर बाढ़ क्षेत्र, 2.4 मिलियन हेक्टेयर तालाब व टैंक, 1.2 मिलियन हेक्टेयर खारे पानी के क्षेत्र, 1.95 लाख किमी नदियां व नहरें और 8,118 किमी लंबा समुद्री तट है. भारत की संभावित मछली उत्पादन क्षमता 22.31 मिलियन टन आंकी गई है.
2013-14 में भारत का मछली उत्पादन 9.6 मिलियन टन था, जो 2022-23 में बढ़कर 17.5 मिलियन टन हो गया. 9% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ, जो कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक है. भारत में 3,288 समुद्री मछुआरा गांव और 1,511 लैंडिंग सेंटर हैं. मछली पकड़ने पर आश्रित कुल जनसंख्या लगभग 40 लाख है.
सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, जैसे "नीली क्रांति", "प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना", "किसान क्रेडिट कार्ड", और "मत्स्य एवं जलकृषि अवसंरचना विकास निधि", जिन पर हज़ारों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन भविष्य की चुनौतियां बड़ी हैं.
यूक्रेन का दावा, रूस की मिसाइल ने भारतीय कंपनी को टारगेट किया
यूक्रेन ने शनिवार को रूस पर भारतीय व्यवसायों को 'जानबूझकर' निशाना बनाने का आरोप लगाया, जब एक मिसाइल ने यूक्रेन में भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनी कुसुम के गोदाम को क्षति पहुंचाई. भारत में यूक्रेन के दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “एक्स” पर दावा किया कि यह हमला जानबूझकर किया गया था.
दूतावास ने लिखा, "भारत के साथ 'विशेष मित्रता' का दावा करते हुए, मास्को जानबूझकर भारतीय व्यवसायों को निशाना बनाता है — बच्चों और बुजुर्गों के लिए बनाई गई दवाओं को नष्ट कर देता है. "यह गोदाम कुसुम हेल्थकेयर द्वारा संचालित था, जो मानवीय जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण चिकित्सा आपूर्ति रखता था. हालांकि, इस हमले में हुई क्षति या हताहतों की जानकारी अभी तक जारी नहीं की गई है. रूस ने इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
कुसुम क्या है? इसकी वेबसाइट के अनुसार, कुसुम भारतीय व्यवसायी राजीव गुप्ता के स्वामित्व वाला एक बहुराष्ट्रीय फार्मास्युटिकल समूह है, जो यूक्रेन, भारत, मॉल्डोवा, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, फिलीपींस, म्यांमार, मैक्सिको और केन्या में 2,000 से अधिक कर्मचारियों को रोजगार देता है. कुसुम समूह दो रिसर्च सेंटरों के साथ चार आधुनिक विनिर्माण संयंत्र संचालित करता है. भारत में तीन और यूक्रेन में एक.
लंदन आर्ट गैलरी ने लूटा गया फूलदान बिक्री से हटवाया
लंदन की एक प्राचीन वस्तुओं की गैलरी ने एक प्राचीन ग्रीक अम्फोरा (लगभग 550 ईसा पूर्व का एक कलात्मक फूलदान) की बिक्री रोक दी है. यह संदेह था कि यह वस्तु अवैध खुदाई से निकली है. प्राचीन वस्तुओं के विशेषज्ञ डॉ. क्रिस्टोस त्सिरोजियानिस ने इसकी पहचान की और पाया कि यह वस्तु शायद इटली से अवैध रूप से निकाली गई थी और इसका संबंध गियाकोमो मेडिसी नामक कुख्यात तस्कर से है, जिसे 2004 में चोरी की प्राचीन वस्तुओं की तस्करी के आरोप में दोषी ठहराया गया था. एक पुरानी पोलारॉइड तस्वीर में यह वस्तु मेडिसी के कब्जे में दिखी थी. इस अम्फोरा की कीमत लगभग £50,000 (लगभग 53 लाख रुपये) मानी जा रही है. गैलरी द्वारा ऑनलाइन दी गई संग्रहण जानकारी केवल 1986 तक ही जाती थी. इसने त्सिरोजियानिस के संदेह को जन्म दिया कि यह मटका किसी अवैध खुदाई का हिस्सा हो सकता है. उन्होंने कहा - “ये स्पष्ट चेतावनी संकेत हैं.” डॉ. त्सिरोजियानिस अब तक 1,700 से अधिक अवैध वस्तुओं की पहचान कर चुके हैं, जिनमें से कई देशों को वापस लौटाई गई हैं. इस घटना ने फिर से यह सवाल खड़ा किया है कि दुनिया की बड़ी कला गैलरियां और नीलामी घर प्राचीन विरासत की सुरक्षा को लेकर कितनी ज़िम्मेदार हैं.
चलते-चलते
“वीडियो गेम और असली दुनिया के बीच धुंधली होती रेखा!”
वीडियो गेम्स आज दुनिया का सबसे बड़ा मनोरंजन है, लेकिन कभी-कभी ये आपकी वास्तविक जिंदगी में अजीब और डरावने तरीके से घुस जाते हैं. अमेरिकी सस्टेनेबिलिटी सलाहकार क्रिश्चियन डाइन्स के हाथ अनायास ऐसे मचलने लगे, जैसे वह गेम कंट्रोलर पकड़े हों. गेम बंद होने के बाद भी उन्हें कमरे की चीजों को "इकट्ठा" करने का आभास हुआ, जैसे गेम में पावर-अप्स मिलते हैं. यह अनुभव 'गेम ट्रांसफर फेनोमेनन' का उदाहरण है, जहां गेम की दुनिया वास्तविकता में घुल जाती है.
बीबीसी के मुताबिक नॉर्वे की मनोवैज्ञानिक एंजेलिका ऑर्टिज़ डी गोर्तारी ने इसकी पहचान एक दशक पहले की थी. उनके अनुसार, जीटीपी गेमर्स की धारणा को बदल देता है. जैसे, सुपरमार्केट में उन्हें खुद को राइफल स्कोप से देखने का आभास हुआ. शोध के मुताबिक, 82-96% गेमर्स ने कभी न कभी जीटीपी महसूस किया है. इसमें स्वास्थ्य बार दिखना, रंगों का बदलना या शारीरिक क्रियाएं अनियंत्रित होना शामिल है. जीटीपी का कारण गेम्स की यथार्थवादिता और इमर्सिवनेस है. स्टॉकहोम के गेम निर्माता अली फरहा कहते हैं, "गेम और असली दुनिया के बीच की रेखा धुंधली हो रही है." अधिक समय तक गेम खेलना, नींद की कमी, या मानसिक तनाव जीटीपी को बढ़ावा दे सकते हैं. हालांकि, ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ता निक बैलू मानते हैं कि जीटीपी को लेकर अतिरंजना नहीं होनी चाहिए. अधिकांश गेमर्स के लिए यह शौक तनावमुक्ति का स्रोत है. फिर भी, ऑर्टिज़ का मानना है कि गेम डेवलपर्स को जीटीपी के प्रति जागरूकता बढ़ानी चाहिए. जैसे, मिर्गी चेतावनियों की तरह. आज भी जीटीपी का रहस्य पूरी तरह नहीं खुला. मस्तिष्क स्कैन स्टडीज़ से इसके न्यूरल प्रभावों को समझने की कोशिश हो रही है.
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