13/05/2025 : विराट का टेस्ट से संन्यास | ट्रम्प की चौधराहट पर मोदी चुप | मोदी के भाषण में जो बातें रह गईं | घुटन में जम्मू-कश्मीर | फैक्ट चैक का चैम्पियन ज़ुबैर | चीन, अमेरिका में टैरिफ समझौता
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
पाकिस्तान ने माना : टकराव में एक विमान को थोड़ा नुक्सान
हमने परमाणु संघर्ष को रोका, नहीं तो लाखों मर जाते : ट्रम्प
दोनों ने युद्धविराम को अपनी जीत बताया
सीज़ फायर से क्यों मोदी समर्थकों को लगी ठेस
सुशांत सिंह: आतंकवाद भारत के लिए अस्तित्व का ख़तरा नहीं
कराची बेकरी पर हमला करने वाले 10 भाजपा कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज
ट्रम्प की चौधराहट पर मोदी चुप
देश में कइयों को यह उम्मीद रही होगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (सोमवार 12 मई 2025) रात राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे पर कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे कि- “भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने के लिए उन्होंने (ट्रम्प) दोनों देशों को व्यापार बंद करने की धमकी दी थी. और, उनके हस्तक्षेप से ही दोनों देशों के बीच परमाणु संघर्ष को टालने में मदद मिली, अन्यथा यह बढ़ सकता था.” मोदी ने 22 मिनट के अपने संबोधन में ट्रम्प के दावों पर एक शब्द नहीं कहा. न तो खंडन किया और न ही कोई स्पष्टीकरण दिया. जबकि ट्रम्प उनके रात 8 बजे के संबोधन से पहले ही व्हाइट हाउस में पत्रकारों से चर्चा में अपने इन दावों को दोहरा चुके थे. परसों शनिवार की शाम सबसे पहले ट्रम्प ने ही अपने ट्वीट के जरिए पूरी दुनिया को सीजफायर के बारे में भी सूचित किया था और कहा था कि उनके कारण ही दोनों देशों ने युद्धविराम का फैसला लेने की समझदारी दिखाई. मोदी ने इस बारे में भी सफाई नहीं दी. प्रधानमंत्री ने अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो के इस आधिकारिक बयान को लेकर भी कोई टिप्पणी नहीं की कि-“भारत और पाकिस्तान की सरकारें सीज़ फायर के साथ ही तटस्थ स्थल पर व्यापक मुद्दों पर वार्ता शुरू करने पर भी सहमत हुई हैं.” इसके उलट पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ ने शनिवार को सीजफायर के बाद ही उनकी शान में कहा था- “मैं राष्ट्रपति ट्रम्प के अग्रणी नेतृत्व और वैश्विक शांति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता व दक्षिण एशिया में स्थायी शांति लाने में बड़ी भूमिका निभाने के उनके मूल्यवान प्रस्ताव के लिए उनका बहुत आभारी हूं.”
कुलमिलाकर, मोदी चाहते तो इस मामले में अमेरिका की ‘चौधराहट’ पर दो टूक शब्दों में स्थिति साफ कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं. वह चुप हैं. लेकिन, कहीं ऐसा न हो कि उनकी चुप्पी ट्रम्प को हर बात में चौधरी बनने का हौसला देने लगे, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह भी कहा है कि वह भारत- पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर के मुद्दे का हजार साल बाद हल निकालने की कोशिश करेंगे. पाकिस्तान ने ट्रम्प की मध्यस्थता की इस पेशकश का भी स्वागत किया है.
इस बीच मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा कि हमने आज प्रधानमंत्री के बयान से कुछ ही मिनट पहले अमेरिकी राष्ट्रपति का बयान भी सुना, जो बेहद चिंताजनक था. अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को रोकवाने के लिए व्यापार को एक धमकी के तौर पर इस्तेमाल किया. जो लोग हमारी संस्कृति में सिंदूर के महत्व को समझते हैं, उनके लिए यह अस्वीकार्य है. पार्टी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने कहा, ‘हमें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री इस पर प्रतिक्रिया देंगे. दुर्भाग्य से, उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. ट्रम्प कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए तैयार हैं. हमें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अमेरिकी राष्ट्रपति को बहुत प्रभावी ढंग से जवाब देंगे. मुझे नहीं पता कि प्रधानमंत्री ने क्यों जवाब नहीं दिया.’
हमने परमाणु संघर्ष को रोका, नहीं तो लाखों मर जाते : ट्रम्प
ट्रम्प ने सोमवार को कहा, "मेरे प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच तुरंत युद्धविराम कराने में मदद की, जिससे दोनों देशों के बीच सभी सैन्य कार्रवाई तुरंत रुक गई. मैंने दोनों देशों से कहा कि अगर वे युद्ध नहीं रोकते, तो अमेरिका उनके साथ कोई व्यापार नहीं करेगा. अगर वे युद्ध रोकते हैं, तो हम व्यापार करेंगे. लोगों ने व्यापार को कभी इस तरह हथियार की तरह इस्तेमाल नहीं किया, जैसा मैंने किया." उन्होंने आगे कहा, "हमने एक परमाणु संघर्ष को रोका. मुझे लगता है कि यह एक भयानक परमाणु युद्ध हो सकता था, जिसमें लाखों लोग मारे जा सकते थे. इसलिए मुझे इस बात पर बहुत गर्व है." व्हाइट हाउस में पत्रकारों से उनकी बातचीत का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह कह रहे हैं, "मैंने कहा, देखो, हम तुम लोगों के साथ बहुत व्यापार करने वाले हैं. इसे रोक दो. इसे रोक दो. अगर तुम इसे रोकते हो, तो हम व्यापार करेंगे. अगर नहीं रोकोगे, तो हम कोई व्यापार नहीं करेंगे.”
टिप्पणी
जो 15 बातें मोदी के भाषण में आने से रह गईं
निधीश त्यागी
भारत के प्रधानमंत्री ने आज जब राष्ट्र के नाम हिंदी में संदेश जारी किया, तो उसमें अपेक्षित था कि इतने दिनों बाद जब वह कुछ बोलने आ रहे हैं तो बतौर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे जिम्मेदार पद पर बैठ कर वे कुछ जरूरी सवालों के जवाब देंगे, जो पहलगाम मसले, उसके बाद छिड़े भारत- पाक संघर्ष और फिर संघर्ष विराम को लेकर लगातार जनता के जहन में उठते रहे हैं. जो बातें कहने से रह गईं वे कुछ इस तरह से हैं.
आतंकवादी कौन थे, कहां से आए थे, कैसे आ गये, कैसे चले गये. कुछ पता चला?
इतने सैलानियों की मौजूदगी के बाद पहलगाम से सुरक्षा हटाने का फैसला किसका, क्यों, किस प्रक्रिया से हुआ.
इस भूल चूक गलती का प्रभारी कौन है. इंटेलिजेंस फेल्यर की. सुरक्षा की. उन पर क्या कार्रवाई हुई.
तपस्या में यहां जो कमी रह गई, उसकी माफी चाहे तो मांगी जा सकती थी.
प्रधानमंत्री को ऐसा क्यों लगा कि जब पहलगाम का मामला इतना गंभीर है, (जैसा उन्होंने भाषण में कहा भी), तो वे चुनावी रैली और अडानी वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेने कैसे चले गये.
साथ ही वे सर्वदलीय बैठकों में आने से क्यों कतरा रहे थे.
देश को अभी तक नहीं पता कि कितने भारतीयों की जानें गई हैं. कितने घायल हुए. पूरी दुनिया में उन महंगे जहाजों को गिराने की बात हो रही है, जिनके विवादास्पद सौदों के बारे में बात करने से उनकी सरकार बचती रही है. उन जहाजों का क्या हुआ? न वे बता रहे हैं न उनकी सरकार.
पर अपने भाषण में वे सौ आतंकवादियों के मारे जाने का एलान कर रहे थे (हालांकि राउंड फिगर के नंबर आलसी और गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग बताते हैं). हालांकि इनमें से प्रमुख अजहर मसूद बच गया, उसके परिवार के लोग और साथी मारे गये बताए गये.
इतने सारे नेताओं के गले लगने, उनके मंहगे तोहफे देने, उन्हें झूले झुलाने, उनके हथियार खरीदने के बावजूद जब भारत पर संकट की ये घड़ी आई तो वे पाकिस्तान के खिलाफ क्यों नहीं हुए.
देश को ये नहीं बताया कि हमले से क्या हासिल हुआ. और सीज़ फायर से क्या.
ये भी नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति को यकायक भारत के बारे में भ्रामक प्रचार करने की क्या पड़ी है. वह बार बार क्यों कह रहे हैं कि उन्होंने बीच बचाव कर के दोनों देशों के बीच सुलह और संघर्ष विराम करवा दिया. और ये भी कि व्यापार के लालच में दोनों देश सुलह के लिए मान गये.
भारत की कश्मीर को लेकर विदेश नीति बदल गई है, तो देश को भरोसे में लेना चाहिए था. क्या अब कश्मीर मध्यस्थता के लिए खुल गया है, ये स्पष्ट मोदी ने तो नहीं किया, पर ट्रम्प और दूसरे राजनयिक ऐसा कह रहे हैं. ट्रम्प जब कश्मीर पर मध्यस्थता की खुले आम पहल कर रहे हैं, तो प्रधानमंत्री को भारत की नीति साफ करनी चाहिए.
पूरे भाषण में सिंदूर की दुहाई तो मोदी जी ने कई बार दी, पर जिनका सिंदूर उजड़ा, उनकी जो तौहीन मोदी जी के समर्थकों ने की, उसके बारे में चुप्पी बनाए रखी. सीज़ फायर का फैसला मोदी जी के स्तर पर ही हुआ होगा, अगर ट्रम्प ने करवाया है तो, पर उसका एलान करने वाले विदेश सचिव विक्रम मिसरी की जो बिना बात सोशल मीडिया में ट्रोलिंग हुई उसके बारे में उन्होंने बोलना जरूरी और उचित नहीं समझा.
राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए मोदी जी चाहते तो दो शब्द मुख्यधारा के झूठे, मक्कार और धूर्त एंकर और उनके मालिकान के लिए भी कह सकते थे, कि तमीज़ में रहें, पर शायद वह जरूरी और उचित नहीं लगा. जो फेक न्यूज फैला रहे थे. जिनकी खिल्ली पूरी दुनिया और पाकिस्तान में उड़ रही थी.
आखिरी बात, उन्होंने कश्मीर की जनता के बारे में कुछ कहना जरूरी नहीं समझा, जो आतंकवाद के खिलाफ इतनी संख्या में पहली बार सड़कों पर उतरी, और जब बाकी भारत में जो बच्चे पढ़ने और नौजवान कारोबार करने गये, उनके साथ हिंसा और दूसरी ज्यादतियां की गईं.
ये सारे मुद्दे देश के लिए तो जरूरी थे. भले संदेश में आने से रह गये हों.
पाकिस्तान ने माना : टकराव में एक विमान को थोड़ा नुक्सान
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि पाकिस्तान की सेना ने रविवार देर रात स्वीकार किया कि भारत के साथ सैन्य टकराव में उसके कम से कम एक विमान को ‘थोड़ी क्षति’ हुई है, हालांकि विमान के बारे में कोई विस्तृत जानकारी नहीं दी गई. सेना, वायुसेना और नौसेना के अधिकारियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने कहा कि इस ब्रीफिंग का उद्देश्य ‘ऑपरेशन बुनयान-उल-मर्सूस’ की कार्रवाई और निष्कर्ष की जानकारी देना था. लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी ने कहा कि पाकिस्तान का ‘केवल एक विमान’ मामूली रूप से क्षतिग्रस्त हुआ है, लेकिन उन्होंने विमान के प्रकार या स्थान के बारे में कोई विवरण नहीं दिया. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की हिरासत में कोई भी भारतीय पायलट नहीं है और इस तरह की सभी खबरें ‘फर्जी सोशल मीडिया रिपोर्ट्स’ पर आधारित हैं. उधर 'हिन्दुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय वायुसेना (IAF) के अधिकारी, एयर मार्शल एके भारती, जो वायु अभियानों के महानिदेशक हैं, ने रविवार को कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तान वायुसेना के कुछ अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को मार गिराया. हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि भारत ने कुल कितने पाकिस्तानी विमान गिराए.
संघर्ष के दरमियान घुटन में जम्मू-कश्मीर
भारत-पाकिस्तान हमले के चार दिन दिनों में जम्मू-कश्मीर के निवासियों ने किस तरह अपने दिन गुजारे और अपने आसपास गोलाबारी को होते-गिरते देखा, लोगों को जान गंवाते देखा, खेत-मकान को जलते देखा, इस दौरान कैसे पूरे क्षेत्र के लोगों की सांस टंगी रही, जान सांसत में रही और सीज फायर के बाद कैसे उनकी जान में जान आई, इस पर आउटलुक के लिए इशफ़ाक नसीम ने लंबी जीवंत ग्राउंड रिपोर्टिंग की है.
पाकिस्तान द्वारा मोर्टार गोलाबारी के कारण युद्ध के चार दिनों में कम से कम 22 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें भारतीय सेना का एक जवान और सीमावर्ती शहर पुंछ में एक अतिरिक्त जिला विकास आयुक्त भी शामिल हैं. 6-7 मई की रात हुए हमले का असर केंद्र शासित प्रदेश की दोनों राजधानियों में महसूस किया गया. शहर के बाहरी इलाके में वुयान के एक शांत गांव में स्कूल इमारत के अंदर से आग की लपटें उठती रहीं, जहाँ लोगों ने एक विमान के मलबे की तस्वीरें लीं. 8 मई से शुरू होने वाली दो रातों तक, जम्मू के निवासियों को मिसाइल और ड्रोन हमलों के बीच बहुत मुश्किल समय का सामना करना पड़ा. उन्होंने ज़ोरदार धमाके सुने और आसमान में ‘लाल वस्तुएँ’ उड़ती देखीं. यह मंजर सिर्फ एक दिन का नहीं है, न किसी एक क्षेत्र का. पूरे राज्य का हाल ऐसा ही रहा. हर जगह जान-माल की हानि उठानी पड़ी और लोगों ने दहश्त में दिन गुजारे. गांव के गांव खाली हो गए थे.
सीएम ने कहा, घर लौट आएं, पुलिस ने कहा- अब भी खतरा
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री जहां लोगों को कह रहे हैं कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान जो लोग घर छोड़कर चले गए थे, वह घर लौट सकते हैं तो वहीं कश्मीर पुलिस ने इसके उलट एडवायजरी जारी कर सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों को न जाने की सलाह दी है.
'बिजनेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि पाकिस्तान की हालिया गोलाबारी ने राज्य में “युद्ध जैसे हालात” पैदा कर दिए थे, जिसमें पुंछ जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. हालांकि अब भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य समझौता हो गया है, इसलिए जो लोग अपने घर छोड़कर चले गए थे, वे अब लौट सकते हैं. वहीं ग्रेटर कश्मीर की खबर के मुताबिक, कश्मीर पुलिस ने एडवायजरी जारी कर कहा है कि सीमावर्ती गांवों में लोग वापस न लौटें. पाकिस्तानी गोलाबारी के बाद अज्ञात हथियार बिखरे होने के कारण लोगों की जान अब भी जोखिम में है. बम निरोधक दस्तों को इन क्षेत्रों को साफ करना है. किसी भी अज्ञात गोले को हटाना बाकी है. एडवायजरी में कहा गया है, “केवल 2023 में एलओसी के पास बचे हुए गोला-बारूद के विस्फोटों में 41 लोगों की जान चली गई थी.” पुलिस ने कहा कि सतर्क रहें और संदिग्ध वस्तु की जानकारी तुरंत पुलिस या निकटतम सुरक्षा शिविर दें. किसी भी चीज को छुएं नहीं.
सरहदी इलाकों में तीन दिनों में पहली शांत रात
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि भारतीय वायुसेना के एयर ऑपरेशन्स के महानिदेशक, एयर मार्शल एके भारती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारतीय सैन्य अड्डे और प्रणालियां पूरी तरह से संचालन में हैं और किसी भी मिशन के लिए तैयार हैं. इसी बीच, भारतीय सेना के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) और उनके पाकिस्तानी समकक्ष के बीच दोपहर 12 बजे तय की गई मीटिंग कुछ घंटे के लिए स्थगित कर दी गई. भारतीय सेना ने सोमवार को बताया कि पिछली रात जम्मू-कश्मीर और अंतरराष्ट्रीय सीमा के अन्य हिस्सों में शांति बनी रही, और कोई नई घटना दर्ज नहीं की गई. यह बीते कुछ दिनों की पहली शांत रात थी. तीन दिनों तक चले गंभीर सैन्य संघर्ष के बाद भारत और पाकिस्तान ने "सैन्य कार्रवाई और गोलीबारी रोकने" पर सहमति बनाई है, जिसकी घोषणा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार 10 मई को की थी.
दोनों ने युद्धविराम को अपनी जीत बताया

'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ने सप्ताहांत में घोषित युद्धविराम के बाद खुद को विजेता घोषित किया है. यह युद्धविराम दोनों परमाणु शक्तियों को युद्ध की कगार से वापस लाया. भारतीय सेना ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि उसने पाकिस्तान को हॉटलाइन के माध्यम से संदेश दिया है कि अगर सीमा पार से फिर से कोई उकसावे की कार्रवाई हुई तो "हमारे जवाब की मंशा स्पष्ट और दृढ़ होगी". दोनों देशों ने युद्धविराम को अपनी-अपनी जीत बताया, जिससे सीमा के दोनों ओर राष्ट्रवादी उत्साह की लहर दौड़ गई. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को कहा कि "भारतीय सेनाओं की दहाड़ रावलपिंडी तक पहुंची", जो कि पाकिस्तान की सेना का मुख्यालय है. उन्होंने कहा कि 'ऑपरेशन सिंदूर' सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं बल्कि "भारत की राजनीतिक, सामाजिक और रणनीतिक इच्छाशक्ति का प्रतीक" था.
वहीं पाकिस्तान में, सीमा के पास परेड का आयोजन कर सेना पर फूल बरसाए गए और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने 11 मई को "हालिया भारतीय आक्रामकता के जवाब में सशस्त्र बलों की कार्रवाई के सम्मान" में दिवस घोषित किया. पाकिस्तानी अखबार डॉन में लिखते हुए विश्लेषक बाक़िर सज्जाद ने इसे पाकिस्तान की "सोची-समझी जीत" कहा, जिससे उसने "एक अधिक शक्तिशाली भारत को सैन्य और कूटनीतिक बढ़त हासिल करने से रोक दिया". पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में युद्धविराम की खुशी में जश्न मनाया गया, जो हालिया हिंसा की अग्रिम पंक्ति में था. पूर्व प्रधानमंत्री राजा फारूक हैदर खान ने सीमा के पास रैली निकाली और सेना की बहादुरी की प्रशंसा की. उन्होंने ट्रम्प को संघर्ष सुलझाने में मदद के लिए धन्यवाद दिया और कहा, "इस बार हम युद्ध के इतने करीब थे कि उनका दखल स्वागत योग्य था, लेकिन जब तक कश्मीर मुद्दे का स्थायी समाधान नहीं होता, तब तक इस क्षेत्र में शांति नहीं आ सकती." नीलम घाटी की एक निवासी सहद ने कहा कि पिछले कुछ दिन उनकी जिंदगी के सबसे डरावने थे. "हम सीमा चौकियों और भारतीय फायरिंग की छाया में जीते हैं, इसलिए हमारी सामान्य जिंदगी में लौटना सबसे बड़ी खुशी है." भारतीय पक्ष में भी जश्न मनाया गया, लेकिन सीमा के पास रहने वाले लोगों ने चेताया कि युद्धविराम स्वागत योग्य है, पर यह भारत-पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चले आ रहे कश्मीर विवाद का समाधान नहीं है.
रविवार को भारतीय सेना ने प्रेस कांफ्रेंस में अपनी कार्रवाई का ब्योरा दिया और दावा किया कि पाकिस्तान ने ही पहले युद्धविराम की पेशकश की थी. भारत ने कहा कि पाकिस्तानी गोलीबारी में उसके पांच सैनिक मारे गए और जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान के 40 सैनिक मारे गए. साथ ही, भारत ने दावा किया कि उसने पाकिस्तान में 100 आतंकवादियों को मार गिराया. इन आंकड़ों की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी. भारत ने कुछ पाकिस्तानी विमानों को मार गिराने का दावा भी किया, लेकिन विवरण नहीं दिया. वहीं पाकिस्तान का दावा है कि उसने तीन भारतीय सैन्य विमानों को गिराया, जिनमें महंगे राफेल जेट भी शामिल थे. भारत ने कहा कि "युद्ध में नुकसान होते हैं" और यह कि उसके सभी पायलट सुरक्षित लौट आए.
फैक्ट चैक
मोहम्मद ज़ुबैर : एक तरफ फेक न्यूज का तूफान, दूसरी तरफ फैक्ट चैक का चैम्पियन
'न्यूजमिनट' के लिए पूजा प्रसन्ना ने 'ऑल्ट न्यूज' के मोहम्मद जुबैर से बातचीत कर फेक न्यूज के पूरे तंत्र को समझने की कोशिश की है. युद्ध और संघर्ष के समय में एक और तरह की जंग भी लड़ी जाती है, जानकारी की जंग. नैरेटिव की जंग. और जब तनाव बढ़ता है, तो हमारा पहला इंस्टिंक्ट होता है सोशल मीडिया की ओर रुख करना. क्योंकि हम सबको रियल-टाइम अपडेट चाहिए होते हैं. हमें जानना होता है, अभी क्या हो रहा है. और इसी वजह से हमें उस गलत जानकारी से सतर्क रहना जरूरी है, जो हमारी ओर बाढ़ की तरह आती है. पहली गोली चलने से पहले, पहला झूठ फैलाया जाता है. और सोशल मीडिया की बदौलत, ये झूठ सिर्फ तेज़ नहीं फैलते - वायरल हो जाते हैं. ये हमें भ्रमित करते हैं, भड़काते हैं, और उकसाते हैं. एक मिसाइल हमले का वीडियो असल में एक वीडियो गेम का फुटेज हो सकता है. एक असली उदाहरण लीजिए, कई पाकिस्तानी सोशल मीडिया हैंडल्स ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें एक हमले को पाकिस्तान की ‘जवाबी कार्रवाई’ बताया गया. दावा किया गया कि यह इंडियन मिलिट्री कॉलोनी पर पाकिस्तानी सेना का हमला है, लेकिन यह झूठ निकला. वीडियो की असली उत्पत्ति भले स्पष्ट नहीं, लेकिन यह साफ है कि यह न तो हालिया है और न ही भारत का. संभावित तौर पर यह इंडोनेशिया का है. एक और वीडियो में आग दिखती है और दावा किया गया कि यह श्रीनगर एयर बेस पर पाकिस्तान का हमला है. पर यह वीडियो 2024 का है और PoK (पाक अधिकृत कश्मीर) से जुड़ा है.
जुबैर ने इस इंटरव्यू में बताया है कि कैसे फेक न्यूज का सिलसिला शुरू हुआ और कैसे पाठक आज के वक्त में फेक न्यूज को क्रॉस चेक कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआत में उन्होंने दो-तीन वीडियो ही अपने फॉलोवर के लिए डीबंक किए थे, लेकिन उन्होंने देखा कि पाकिस्तान की ओर से फेक वीडियोज और पोस्ट की बाढ़ आ गई तो फिर वीडियोज और इमेजेज का फैक्ट चेक शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि यूजर के हैंडल से लेकर भाषा के आधार पर ही प्रोपेगेंडा हैंडल का पता लग जाता है, क्योंकि वो अब इसके आदी हो चुके हैं. पूजा ने कहा कि जब कोई सामान्य यूजर इन सूचनाओं को देखें तो वो कैसे चेक करे, इस पर जुबैर ने कहा कि सबसे पहले तो इमोशनल मैसेज के साथ आने वाली इमेजेज पर बिल्कुल भरोसा नहीं करना चाहिए. वो फेक होती हैं. उन्होंने कहा कि आज के वक्त में न्यूज चैनल तक ऐसी तस्वीरों को बिना जांचे चला दे रहे हैं. व्हाट्सएप पर आ रही सूचनाओं को गूगल कर चेक कर लेना चाहिए कि उन्हें विश्वसनीय स्त्रोत छाप रहे हैं या नहीं. फैक्ट चेक ज्यादा लोग क्यों नहीं कर रहे हैं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि फैक्ट चेक जर्नलिज्म का काम है लेकिन वो खुद प्रोपेगेंडा परोस रहे हैं. वो फैक्ट चेक करते है, लेकिन नैरेटिव के लिए. कुछ ही न्यूज आउटलेट्स हैं, जो फैक्ट चेक कर रहे हैं. जुबैर ने ये भी कहा कि पिछले दिनों जो लोग उन्हें गाली देते थे, उन्होंने पाकिस्तान की फेक न्यूज डीबंक करने पर उनकी काफी सरहाना भी की है. जुबैर ने इस दौरान लाइव एक फेक न्यूज को डीबंक कर भी दिखाया.
हेट स्पीच
चैनल पर ईरानी मंत्री को अपशब्द कहने पर भारतीय दूतावास की सफाई
एक दक्षिणपंथी टिप्प्णीकार ने भारत की ईरान में फजीहत करवा दी है. दक्षिणपंथी टिप्पणीकार मेजर (सेवानिवृत्त) गौरव आर्या, जो अपनी कट्टरपंथी सोच के लिए जाने जाते हैं और अक्सर भारत के प्रमुख टीवी चैनलों पर दिखाई देते हैं और जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर फॉलो करते हैं, उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव को लेकर एक वायरल वीडियो में ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराक़ची को “सुअर” कहकर संबोधित किया. इस पर भारत के तेहरान स्थित दूतावास ने स्पष्ट किया कि आर्या के बयान भारत की आधिकारिक नीति से कोई संबंध नहीं रखते और जिस लहजे में यह टिप्पणी की गई, वह “अशोभनीय” थी. गौरव आर्या ने वीडियो में अराक़ची की तस्वीर को घेरते हुए उसके ऊपर ‘सुअर’ लिखा और कहा- “यह आदमी, यह सुअर का बच्चा, यह सुअर, जब पहलगाम हुआ था, तब भारत आना चाहिए था और भारत के साथ खड़ा होना चाहिए था.” दो दिन बाद, ईरान के भारत स्थित दूतावास ने एक्स पर आर्या के वीडियो का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए लिखा- “ईरानी संस्कृति में मेहमानों के लिए सम्मान की पुरानी परंपरा है. हम ईरानी अपने मेहमानों को ‘ईश्वर के प्रिय’ मानते हैं. आप क्या मानते हैं?” इसके कुछ घंटे बाद, भारत के ईरान स्थित दूतावास ने फारसी में एक्स पर एक संदेश जारी कर कहा कि आर्या “एक निजी भारतीय नागरिक” हैं और उनके बयान “भारत की आधिकारिक नीति से कोई संबंध नहीं रखते.” हालांकि, माफी मांगने के बजाय, आर्या ने अगले दिन यानी रविवार को ईरान पर “भारत आकर भारत के खिलाफ साजिश रचने” का आरोप लगाते हुए अपनी टिप्पणी पर अडिग रहते हुए हमला और तेज कर दिया.
सीज़ फायर से क्यों मोदी समर्थकों को लगी ठेस
‘स्क्रोल’ के लिए अनंत गुप्ता ने सीज़ फायर से नाराज मोदी समर्थकों पर एक रिपोर्ट लिखी है. भारत-पाकिस्तान के बीच अचानक हुए युद्धविराम ने कई मोदी समर्थकों और हिंदुत्व कार्यकर्ताओं को निराश और नाराज़ कर दिया है. वे इसे भाजपा सरकार का 'आत्मसमर्पण' और 'मजबूत नेता' प्रधानमंत्री मोदी का अपेक्षाओं पर खरा न उतरना मान रहे हैं. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई और भाजपा के आक्रामक 'याचना नहीं, अब रण होगा' वाले रुख के बाद, अमेरिकी हस्तक्षेप से अचानक युद्धविराम की घोषणा हुई, जिसने उन्हें हैरान कर दिया. विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा इसकी घोषणा ने नाराजगी बढ़ाई. समर्थकों का मानना था कि भारत मजबूत स्थिति में था और उसे आतंकवादियों (जैसे दाऊद, हाफिज) और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए थी. वे पाकिस्तान समस्या का 'अंतिम समाधान' चाहते थे, यहां तक कि कुछ ने पाकिस्तान को नक्शे से मिटाने की बात भी कही. कई लोगों ने अमेरिकी दखलंदाजी और ट्रंप के बयानों को 'हद पार करना' माना. भाजपा समर्थक, हिंदुत्व कार्यकर्ता और यहां तक कि कुछ भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी निराशा व्यक्त की. कुल मिलाकर, यह भावना थी कि 'यह दिल मांगे मोर' - वे और अधिक निर्णायक, स्वतंत्र कार्रवाई चाहते थे, न कि अमेरिकी मध्यस्थता से अचानक रुका हुआ कदम. यह घटना 'मजबूत सरकार' की उनकी उम्मीदों के विपरीत थी.
कड़वी कॉफी
‘आतंकवाद भारत के लिए अस्तित्व का ख़तरा नहीं’
'कड़वी कॉफी' पॉडकास्ट के ताज़ा एपिसोड में, निधीश त्यागी और रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सिंह ने भारत की सामरिक स्थिति और भू-राजनीतिक चुनौतियों पर चर्चा की. भारत-पाकिस्तान संबंधों पर केंद्रित यह बातचीत मीडिया के शोर से हटकर एक सूक्ष्म समझ प्रदान करने पर केंद्रित थी.
सुशांत सिंह ने जोर दिया कि भारत-पाकिस्तान संबंधों को केवल सैन्य और राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके मानवीय पहलू को समझना महत्वपूर्ण है. दोनों देश गरीब हैं और सीमा पर तनाव तथा राजनीतिक बयानबाजी का असली बोझ आम लोग झेल रहे हैं. उन्होंने युद्ध को 'स्विगी डिलीवरी' समझने जैसी सतही सोच की आलोचना की.
इतिहास का जिक्र करते हुए सिंह ने पाकिस्तान की अंतर्निहित असुरक्षा (मुसलमानों के लिए राष्ट्र के रूप में निर्माण) और भारत के सेक्युलर विकल्प के बीच मूलभूत अंतर को बताया, जिसने संघर्षों को जन्म दिया. उनकी एक प्रमुख चिंता यह थी कि भारत अब पाकिस्तान की शुरुआती गलतियों को दोहरा रहा है, खासकर धार्मिक कट्टरवाद और अल्पसंख्यकों के प्रति व्यवहार के मामले में. उन्होंने आगाह किया कि एक 'हिंदू पाकिस्तान' सेक्युलर भारत का विपरीत नहीं, बल्कि मुस्लिम पाकिस्तान का आईना होगा. इस आंतरिक बदलाव को उन्होंने वैश्विक दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद का हिस्सा बताया.
सिंह ने कहा कि भारत में लोकतंत्र पर ख़तरा काफी पहले से है और दुनिया के दूसरे देशों में यह मॉडल बाद में आया कि बहुसंख्यकों को खतरे का अहसास करवाया जाए, मीडिया पर कब्जा हो, क्रोनी कैपिटलिज्म हो और मजबूत नेता की छवि बनाई जाए. भारत में ये 1992 से शुरू हो चुका था.
सिंह ने यह भी कहा कि आतंकवाद भारत के लिए अस्तित्व का खतरा नहीं है और इस पर अत्यधिक ध्यान भुखमरी जैसी बड़ी समस्याओं से ध्यान भटकाता है. उन्होंने सुझाव दिया कि मिजोरम जैसे सफल मॉडल, जिन्होंने राजनीतिक एकीकरण के साथ हिंसा को कम किया, एक बेहतर रास्ता दिखाते हैं.
बाहरी चुनौतियों पर बात करते हुए, चीन को 'एलिफेंट इन द रूम' बताया गया. चीन पाकिस्तान का प्रमुख रणनीतिक समर्थक है और भारत को नियंत्रित करने के लिए उसका उपयोग करता है. एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए एक मुश्किल दोहरी चुनौती पेश करता है. हथियार उद्योग के मुनाफे पर भी चर्चा हुई. सिंह ने कहा कि भारत ने पड़ोसियों के साथ भी अपना नैतिक रसूख खो दिया है.
अंत में, सिंह ने भारतीय लोकतंत्र और पत्रकारिता की स्थिति पर तीखी टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि मुख्यधारा का मीडिया सत्ता का दलाल बन गया है और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर सवाल पूछने में विफल रहा है, जिससे लोकतंत्र की नींव कमजोर हो रही है. एक कमजोर लोकतंत्र आंतरिक रूप से खोखला होता है. भारत की स्वतंत्रता के बाद की प्रगति उसकी लोकतांत्रिक जड़ों के कारण थी, जिसे बनाए रखना आवश्यक है.
भारत-पाक संघर्ष के पीछे की राजनीति
'द न्यूयॉर्कर' में आइज़ैक चोटीनेर ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के पीछे की राजनीति को टटोलते हुए में येल विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन के व्याख्याता और 'द कारवां' पत्रिका के परामर्श संपादक सुशांत सिंह से फोन पर बातचीत की. चोटीनेर लिखते हैं कि हमारी चर्चा में हमने मौजूदा हालात के साथ-साथ इस बात पर भी बात की कि भारत और पाकिस्तान दोनों की राजनीतिक गतिकी इस संघर्ष को कैसे और गहरा कर सकती है, भारत सरकार की कश्मीर में दीर्घकालिक विफलताओं पर क्या असर पड़ा है, और कैसे दुनिया द्वारा मोदी का आलिंगन उन्हें शांति की ओर बढ़ने से और कम इच्छुक बना देता है. चोटीनेर के इस सवाल कि इस स्थिति में क्या नया या अलग महसूस होता है - भारतियों, पाकिस्तानियों या कश्मीरियों के लिए? सुशांत सिंह ने कहा- 'इस बार जो सबसे बड़ा अंतर दिखाई दिया, वह कश्मीर में था. जब इन पर्यटकों को गोली मारी गई. लंबे समय बाद पहली बार हमने देखा कि बड़ी संख्या में कश्मीरी बाहर निकले और इन हत्याओं के खिलाफ प्रदर्शन किया. मोमबत्ती मार्च निकाले गए, विरोध हुए और लोगों ने सार्वजनिक रूप से इसकी निंदा की. पिछले तीस-पैंतीस वर्षों में यह बहुत दुर्लभ रहा है कि कश्मीरी इस तरह भारत का समर्थन करते दिखें, या उन सशस्त्र उग्रवादियों के खिलाफ बोलें जो अलगाववाद या पाकिस्तान समर्थक राजनीति का समर्थन करते हैं. यह मोदी सरकार के लिए एक बड़ी संभावना थी, लेकिन उन्होंने इसका लाभ नहीं उठाया. वे संदिग्ध उग्रवादियों के घरों को गिराने की नीति और कठोर सुरक्षा अभियानों में जुटे रहे, जिनमें बड़ी संख्या में युवकों को गिरफ्तार किया गया. यह तरीका किसी भी तरह से मददगार नहीं है. यह एक बेहतरीन मौका था जिसे उन्होंने गंवा दिया. पर्यटन कश्मीरी समाज और अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा रहा है, और पर्यटकों को हमेशा मेहमान के रूप में देखा गया है. इतने बड़े पैमाने पर पर्यटकों को चुनकर मारना उस भावना के बिल्कुल उलट है, जिसके लिए कश्मीरियत जानी जाती है. न केवल यह कश्मीरियत की भावना - जिसमें 'मेहमान नवाज़ी' शामिल है का उल्लंघन है, बल्कि इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गहरा नुकसान होता है.'
चोटीनेर ने सुशांत से पूछा कि आपने इसे मोदी के लिए एक खोया हुआ अवसर कहा. यह अवसर क्या था और भारत सरकार इसके बजाय क्या करना चाहती है? इस पर उनका जवाब था- 'यह अवसर बहुत सरल था. मोदी सरकार राजनीतिक बातचीत की शुरुआत कर सकती थी और पर्यटन को समर्थन देने के लिए कदम उठा सकती थी, क्योंकि अब भारतीय पर्यटक कश्मीर नहीं जाना चाहेंगे. बहुत सारी बुकिंग रद्द हो चुकी हैं. वे होटलों, टूरिस्ट गाइडों और पर्यटन से जुड़े लोगों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा कर सकते थे. वे इस बात को उजागर कर सकते थे कि एक कश्मीरी युवक ने भारतीय पर्यटकों को बचाने की कोशिश करते हुए अपनी जान गंवाई. वे यह भी दिखा सकते थे कि कश्मीरी टैक्सी ड्राइवरों, अस्पताल कर्मचारियों वगैरह ने इस भयानक हमले के बाद पर्यटकों की हरसंभव मदद की. उन्होंने इनमें से कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि वे इस मौके का इस्तेमाल करके जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने जैसे बड़े राजनीतिक कदम भी उठा सकते थे. छोटे प्रशासनिक कदम भी मदद कर सकते थे, लेकिन वे भी नहीं उठाए गए.' उन्होंने कहा कि हिंदुत्व विचारधारा, जिससे मोदी जुड़ते हैं, कश्मीर को 'भूमि' के रूप में देखती है, लोगों के रूप में नहीं. जबकि मेरी दलील यह है कि कश्मीर सबसे पहले और सबसे अधिक उसके लोगों के बारे में है, न कि सिर्फ उसकी ज़मीन के बारे में. हमें कश्मीरियों का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए, सिर्फ ज़मीन पर नियंत्रण पाने की नहीं.
अमेरिका - चीन में शुल्क कटौती के लिए समझौता
‘रॉयटर्स’ की रिपोर्ट है कि अमेरिका और चीन ने आपसी शुल्कों में बड़ी कटौती के लिए एक 90 दिन की अस्थायी संधि पर सहमति जताई है. अमेरिकी वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट ने जिनेवा में बातचीत के बाद घोषणा की कि टैरिफ 100% से ज्यादा घटाकर 10% तक लाए जाएंगे. यह समझौता उस व्यापार युद्ध को शिथिल करने की दिशा में एक कदम है जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था और बाज़ारों को झटका दिया था. बेसेंट ने कहा- "दोनों देशों ने अपने-अपने राष्ट्रीय हितों की अच्छी तरह से रक्षा की. हमारा लक्ष्य संतुलित व्यापार की ओर बढ़ना है." यह बातचीत डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति बनने और वैश्विक टैरिफ नीति को आक्रामक बनाने के बाद हुई पहली सीधी उच्चस्तरीय बैठक थी. ट्रम्प ने जनवरी में पद संभालने के बाद चीन से आने वाले उत्पादों पर 145% तक आयात शुल्क लगा दिया था. जवाब में चीन ने अमेरिकी सामानों पर 125% तक शुल्क बढ़ा दिया और दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर रोक लगाई. इसके चलते करीब $600 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार पर असर पड़ा था. आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुईं, मंदी और छंटनी की आशंकाएं बढ़ीं. इस समझौते से वैश्विक मंदी को टालने की उम्मीद जगी है और सोमवार को वॉल स्ट्रीट फ्यूचर्स और डॉलर में मजबूती देखी गई.
दिल्ली में बिजली उपभोक्ताओं के बिजली बिल मई-जून में 7-10% तक बढ़ेंगे : डिस्कॉम द्वारा लगाए गए पीपीएसी में संशोधन के कारण मई-जून की अवधि में दिल्ली में बिजली उपभोक्ताओं के बिजली बिलों में 7-10% की बढ़ोतरी होगी. बिजली खरीद समायोजन लागत (पीपीएसी) से तात्पर्य बिजली उत्पादन कंपनियों द्वारा वहन किए जाने वाले ईंधन (कोयला, गैस) की लागत में वृद्धि से है, जिसे डिस्कॉम उपभोक्ताओं से वसूलते हैं. दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग (डीईआरसी) ने इस महीने की शुरुआत में अपने अलग-अलग आदेशों में तीनों डिस्कॉम को मई-जून 2024 की अवधि में 2024-25 की तीसरी तिमाही के पीपीएसी की वसूली करने की अनुमति दी थी.
कराची बेकरी पर हमला करने वाले 10 भाजपा कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज : पुलिस ने शमशाबाद में कराची बेकरी आउटलेट पर हमला करने के लिए 10 भाजपा कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है. डेक्कन हेराल्ड ने आरजीआईए इंस्पेक्टर के. बालाराजू के हवाले से लिखा है, घटना शनिवार को दोपहर करीब 3 बजे हुई थी. भाजपा कार्यकर्ता ने बेकरी परिसर में घुस कर नारे लगाए और बोर्ड को हटाने की मांग की, क्योंकि उस पर पाकिस्तान के शहर का कथित संदर्भ था. कुछ कार्यकर्ताओं ने डंडे से बोर्ड तोड़ने की भी कोशिश की थी. घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर व्यापक रूप से प्रसारित किया जा रहा था. विकीपीडिया के अनुसार, इस भारतीय ब्रांड की शुरुआत सबसे पहले हैदराबाद में 1953 में खानचंद रामनानी ने की थी, जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत चले आए थे. ये नाम वहीं से आया है. वे 72 साल हो गए हैं. फिलहाल उनके पौत्र राजेश रामनानी और हरीश रामनानी के पास इसकी ऑनरशिप है.
आईपीएल 17 से दुबारा : भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने सोमवार को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) संशोधित कार्यक्रम घोषित कर दी. इसके अनुसार 17 मई से छह स्थानों पर आईपीएल सत्र को फिर से शुरू करने का फैसला किया गया है. फाइनल 3 जून को खेला जाएगा. पूरा शेड्यूल यहां देख सकते हैं.
भारत ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में छोड़ा
'मकतूब मीडिया' की रिपोर्ट है कि 8 मई को भारत सरकार पर गंभीर आरोप लगे हैं कि उसने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे, उनको म्यांमार के पास अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा में जबरन छोड़ दिया. इन शरणार्थियों को नई दिल्ली में हिरासत से निकाल कर समुद्र में छोड़ दिया गया और उन्हें केवल जीवन रक्षक जैकेट देकर तैर कर जान बचाने को मजबूर किया गया. यह घटना उसी दिन हुई जब भारत के सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया था कि किसी भी शरणार्थी को देश से निकाले जाने की प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी ढंग से होगी. सुप्रीम कोर्ट ने भी ज़ोर दिया था कि हर कार्रवाई में न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया जाए, लेकिन सरकार की यह कथित कार्रवाई अदालत की उस बात का सीधा उल्लंघन मानी जा रही है. मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना को अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय गरिमा का घोर उल्लंघन बताया है. उनका कहना है कि यह भारत की राज्य प्रायोजित क्रूरता का एक बेहद चिंताजनक उदाहरण है.
विराट कोहली
अभी भी तराशा हुआ शरीर, बोल्ट की तरह दौड़, फिर क्यों?
“द इंडियन एक्सप्रेस” में संदीप द्विवेदी की रिपोर्ट के मुताबिक रोहित शर्मा के टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने के कुछ ही दिनों बाद, विराट कोहली ने भी सोमवार को क्रिकेट के सबसे पुराने प्रारूप से संन्यास लेने की घोषणा कर दी. क्या उन्होंने रोहित की टेस्ट पारी के अचानक अंत के बाद माहौल को जल्दी भांप लिया? जब 25 साल की उम्र में शुभमन गिल के कप्तान बनने की चर्चा थी, तो क्या विराट को किसी तरह की अंदरूनी हलचल या संकेत महसूस हुआ? या फिर यह मामला था कि दो बच्चों के 36 वर्षीय पिता और बल्लेबाजी दिग्गज में अब वह जुनून नहीं बचा था, जो मसल मेमोरी को परेशान करने वाले दिमाग के भूतों से लड़ सके?
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, कोहली के हाल के वर्षों में टेस्ट में गिरते प्रदर्शन और मानसिक थकान ने भी उनके फैसले को प्रभावित किया. उन्होंने खुद भी कहा कि यह फैसला लेना आसान नहीं था, लेकिन उन्हें यह सही लगा. कोहली ने अपने सोशल मीडिया संदेश में टेस्ट क्रिकेट को खुद को गहराई से बदलने वाला और सिखाने वाला फॉर्मेट बताया, और कहा कि वह इस सफर को हमेशा मुस्कान के साथ याद करेंगे.
संदीप ने दिसंबर 2006 की एक बेहद ठंडी सुबह की याद करते हुए लिखा है कि जब कोहली अपने पिता के निधन के कुछ घंटे बाद दिल्ली रणजी ट्रॉफी की जर्सी पहनकर फिरोज शाह कोटला (अब अरुण जेटली स्टेडियम) पहुंचे, तो ड्रेसिंग रूम में वह टूट गए, लेकिन जल्दी ही आंखों में पानी डालकर खुद को संभाला और मैच बचाने वाली पारी खेली. वह जल्दी ही मैदान से निकल गए और अपने पिता की चिता को अग्नि दी. शर्मा लिखते हैं, कोहली के पास अब भी जिम में तराशा हुआ शरीर है और विकेटों के बीच वह अब भी बोल्ट की तरह दौड़ते हैं. लेकिन सबसे फिट खिलाड़ी भी थक सकते हैं, सबसे तेज दौड़ने वाले भी धीमे पड़ सकते हैं, और आखिरकार, राजाओं को भी कभी न कभी अलविदा कहना पड़ता है.
कई महान खिलाड़ी गए, कोई फ़र्क पड़ा?
यही वजह है कि विराट कोहली के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की खबर के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कहा जाने लगा कि "विराट के बिना टेस्ट क्रिकेट कभी पहले जैसा नहीं रहेगा." लेकिन क्या यह भावुकता को दर्शाने वाली टिप्पणी है, या फिर सचमुच ऐसा होने वाला है? पूरा सच क्या है, इस बारे में “द टेलीग्राफ” में सुभरूप दास शर्मा ने विश्लेषण किया है. उन्होंने बताया है कि क्या किसी एक महान खिलाड़ी के संन्यास लेने से टेस्ट क्रिकेट की सेहत या भविष्य पर वास्तव में कोई फ़र्क पड़ता है. क्रिकेट के 145 साल पुराने इस प्रारूप को पहले भी डॉन ब्रैडमेन, गारफील्ड सोबर्स और सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ियों ने अलविदा कहा, लेकिन क्या इससे कोई अंतर आया. क्या टेस्ट क्रिकेट की आयु पर कोई असर पड़ा? या, कोहली जैसे महान खिलाड़ियों के जाने के बाद भी यह फॉर्मेट क्यों कायम रहा. और, आगे भी बरकरार रहेगा. तो भारत के संदर्भ में जो दांव पर लगा है, वो ज्यादा खास है.
कोहली को कैसे देखते थे प्रतिद्वंद्वी गेंदबाज फिन
‘बीबीसी’ के लिए कॉलम में इंग्लैंड के तेज गेंदबाज स्टीवन फिन कहते हैं कि विराट कोहली के बिना भारतीय टेस्ट टीम को देखने का अभ्यस्त होने में उन्हें कुछ समय लगेगा. वह अंडर-19 के जमाने से उनके प्रतिद्वंद्वी हैं और उनका मानना है कि जिस उम्र में खिलाड़ी सिर्फ कुछ रन बनाना चाहता है, ताकि उसका करियर आगे बढ़ सके, तब भी विराट कोहली जीतने के लिए थे. तब भी उनकी विशेषता उनके पूरे करियर की तरह प्रतिस्पर्धा और जोश से भरी थी. यही वह गुण था, जिसने कोहली को अपने साथियों से ऊपर उठाया. उस उम्र में भी भारतीय टीम में सबसे कीमती विकेट वही थे, जिसे बताने के लिए आप अपने माता-पिता को घर पर फोन करते थे. कोहली ने अपने टेस्ट करियर की शुरुआत गोल्डन बॉय, अगले सुपरस्टार और भारत की नई पीढ़ी के चेहरे के रूप में की और कुछ ही समय में उन्होंने खुद को एक निर्दयी रन मशीन और दुनिया के सबसे खौफनाक खिलाड़ी में बदल दिया. कोहली को गेंदबाजी करना मुश्किल था. आप कभी भी उनसे बहुत ज़्यादा उलझना नहीं चाहते थे, क्योंकि आप जानते थे कि इससे उनका सर्वश्रेष्ठ सामने आएगा. साथ ही, आप कभी भी इतना पीछे नहीं हटना चाहते थे कि वह आपका सम्मान न करें.
मैदान के बाहर दो चीजें अन्य खिलाड़ियों से अलग थीं. सबसे पहले, अगर कोहली होटल की लॉबी में कदम भी रखते, तो वहां अफरा-तफरी मच जाती. लोग बस अपने हीरो की एक झलक पाने की कोशिश कर रहे थे. दूसरा उनका फिटनेस को लेकर दृष्टिकोण.
मुझे नहीं लगता कि यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि कोहली ने आधुनिक युग में किसी भी अन्य खिलाड़ी की तुलना में टेस्ट क्रिकेट की प्रधानता बनाए रखने के लिए अधिक काम किया है.
क्या कहते हैं खिलाड़ी : कोहली के टेस्ट क्रिकेट से रिटायरमेंट पर दुनिया भर से खिलाड़ियों टिप्पणियां आ रही है. इनमें से कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया के कोच रहे रवि शास्त्री समेत दुनिया के सभी दिग्गज खिलाड़ी हैं. कोहली और शास्त्री की जोड़ी ने टीम इंडिया को अपराजेय बना दिया था. इसी जोड़ी ने विदेशों में भारत को लगातार जीतने वाली टीम के रूप में बदला था. शास्त्री कहते हैं, “यकीन नहीं होता कि आप खेल चुके हैं. आप आधुनिक समय के दिग्गज हैं और आपने जिस तरह से खेला और कप्तानी की, हर तरह से टेस्ट मैच क्रिकेट के लिए एक शानदार राजदूत रहे. आपने सभी को और खास तौर पर मुझे जो यादें दी हैं, उसके लिए आपका धन्यवाद. यह ऐसी चीज है जिसे मैं जीवन भर संजो कर रखूंगा. अच्छा करो, चैंप.
बतौर कप्तान जो कोहली ने किया, उसकी बराबरी भी असंभव हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि बल्लेबाज और कप्तान दोनों के रूप में विराट कोहली ने जो किया है, अगली पीढ़ी के लिए उस विरासत की बराबरी करना आसान नहीं होगा. 36 वर्षीय कोहली ने रेड-बॉल क्रिकेट में देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, उन्हें विदेशी परिस्थितियों में हावी होने में मदद की, जिसमें 2018 और 2019 के दौरे के दौरान ऑस्ट्रेलियाई धरती पर भारत पहली सीरीज जीत भी शामिल है. उनके नेतृत्व में, भारत ने इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में कुछ ऐतिहासिक टेस्ट जीते. उन्होंने 2022 में टेस्ट कप्तानी छोड़ दी और भारतीय क्रिकेट इतिहास में सबसे सफल टेस्ट कप्तान के रूप में अपना कप्तानी करियर समाप्त किया. उनकी कप्तानी में 68 टेस्ट में भारत ने 58.82 जीत प्रतिशत के साथ उनमें से 40 जीते. इसे तोड़ना किसी भी भारतीय कप्तान के लिए आसान नहीं होने जा रहा है.
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