13/07/2025: फ्यूल कट पर पायलटों की बातचीत | चुनाव आयोग के दावों की पोलखोल | मुसहर और वोटिंग लिस्ट | नमक मजदूरनों के दाम | आदिवासी बच्चे और स्कूल | ढलान पर जोकोविच | एआई से ब्याह
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
"तुमने फ्यूल क्यों कट किया?" …"मैंने कट नहीं किया."
चुनाव आयोग के दावों की खुली पोल: अजीत अंजुम ने दिखाई बिहार में ज़मीनी हकीकत
आयोग का फरमान, वोटर लिस्ट में मुसहर समुदाय
तेजस्वी के घर पर इंडिया गठबंधन की लंबी बैठक
औरतों को दस रुपये कम मिलते हैं नमक की खेती में
ज़ख्म के बाद कैसा है पहलगाम?
बीच रास्ते छूट रही है आदिवासी बच्चों की पढ़ाई?
भाषा को लेकर सोच न शिक्षक के पास है, न नेता के
को-एक्टर इनाम-उल-हक ने जुड़ाव से किया इनकार, बोले– “वीडियो के बाद संपर्क नहीं हुआ”
भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच डब्ल्यूएचओ ने शेख हसीना की बेटी साइमा वाजेद को अनिश्चितकालीन अवकाश पर भेजा
रूस को नॉर्थ कोरिया के हथियार, यूक्रेन का दावा
नोवाक जोकोविच को जाते हुए देखना
एआई चैटबॉट से हो गया प्यार और कर ली शादी
अहमदाबाद विमान हादसा
"तुमने फ्यूल क्यों कट किया?" …"मैंने कट नहीं किया."
12 जून को अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त हुई एयर इंडिया फ्लाइट AI-171 की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट ने हादसे के कारणों पर से परदा उठाया है. विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) द्वारा शुक्रवार (11 जुलाई, 2025) देर रात प्रस्तुत की गई 15 पृष्ठीय रिपोर्ट के अनुसार, बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान के उड़ान भरने के तीन सेकंड बाद ईंधन नियंत्रण स्विचों में "मूवमेंट" या "परिवर्तन" हुआ था. "द हिंदू" की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों इंजनों के फ्यूल कटऑफ स्विच 1 सेकंड के अंतराल में एक के बाद एक "रन" स्थिति से "कट ऑफ" स्थिति में चले गए. इसके कारण दोनों इंजनों को ईंधन की आपूर्ति बंद हो गई और विमान को पर्याप्त ताकत नहीं मिल सकी. रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया कि बर्ड हिट (पक्षी टकराव) का कोई प्रमाण नहीं मिला है.
कॉकपिट की बातचीत का खुलासा
"द इंडियन एक्सप्रेस" के सुकल्प शर्मा और अनिल ससी की रिपोर्ट के अनुसार, कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर पर एक पायलट को दूसरे से यह पूछते हुए सुना गया, "तुमने फ्यूल क्यों कट किया?" जिस पर दूसरे पायलट ने जवाब दिया, "मैंने कट नहीं किया." रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि यह संवाद किसने किससे कहा था.
इस उड़ान के दौरान को-पायलट क्लाइव कुंदेर विमान उड़ा रहे थे, जबकि कमांडर सुमित सभरवाल पायलट मॉनिटरिंग की भूमिका में थे. दोनों पायलटों को पर्याप्त विश्राम मिला था और उड़ान से ठीक पहले दोनों ने सुबह एयरपोर्ट पर ब्रीथ एनालाइज़र टेस्ट भी दिया था.
रिपोर्ट के अनुसार, फ्यूल कंट्रोल स्विच को चलाना एक जानबूझकर किया गया कार्य होता है और उनका गलती से चलना लगभग असंभव है. इन स्प्रिंग-लोडेड स्विचों के दोनों ओर ब्रैकेट लगे होते हैं और इनमें एक स्टॉप लॉक मैकेनिज्म होता है. मलबे में स्विच "रन" स्थिति में पाए गए, जो स्पष्ट रूप से पायलटों द्वारा इंजनों में थ्रस्ट वापस लाने की कोशिश को दर्शाता है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिकी संघीय विमानन प्रशासन (FAA) ने 2018 में "फ्यूल कंट्रोल स्विच लॉकिंग फीचर के संभावित डिसएंगेजमेंट" के बारे में एक विशेष एयरवर्थीनेस सूचना बुलेटिन जारी किया था. हालांकि, एयर इंडिया ने निरीक्षण नहीं किया था क्योंकि यह केवल सलाह थी, अनिवार्य नहीं. रिपोर्ट के मुताबिक-
इस उड़ान के दौरान विमान उड़ा रहे पायलट को-पायलट क्लाइव कुंदेर थे, जबकि कमांडर सुमित सभरवाल पायलट मॉनिटरिंग की भूमिका में थे. दोनों पायलटों को पर्याप्त विश्राम मिला था और उड़ान से ठीक पहले दोनों ने सुबह एयरपोर्ट पर ब्रीथ एनालाइज़र टेस्ट भी दिया था. विमान का रखरखाव निर्धारित समय पर हुआ था. लगभग 400 फीट की ऊंचाई तक उड़ान सामान्य थी.
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर पर एक पायलट को दूसरे से यह पूछते हुए सुना गया, “तुमने फ्यूल क्यों कट किया?” जिस पर दूसरे पायलट ने जवाब दिया, “मैंने कट नहीं किया.” रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं है कि यह संवाद किसने किससे कहा, और न ही कोई अन्य बातचीत का उल्लेख है. रिकॉर्डिंग का ट्रांसक्रिप्ट जारी नहीं किया गया है.
मलबे में स्विच “रन” स्थिति में पाए गए. कुछ सेकंड “कटऑफ” स्थिति में रहने के बाद, दुर्घटनाग्रस्त विमान के दोनों इंजनों के स्विच “कटऑफ” से “रन” स्थिति में चले गए, यह स्पष्ट रूप से पायलटों द्वारा इंजनों में थ्रस्ट वापस लाने की कोशिश थी. लेकिन विमान की अत्यंत कम ऊंचाई के कारण, इंजनों को इतनी शक्ति वापस पाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था कि वे विमान को सुरक्षित ऊंचाई तक ले जा सकें.
फ्यूल कंट्रोल स्विच—जो विमान के इंजनों में ईंधन के प्रवाह को चालू और बंद करने वाले महत्वपूर्ण स्विच हैं—को चलाना एक जानबूझकर किया गया कार्य होता है और उनका गलती से चलना लगभग असंभव है. इन स्प्रिंग-लोडेड स्विचों के दोनों ओर ब्रैकेट लगे होते हैं ताकि वे सुरक्षित रहें. इसके अलावा, इनमें एक स्टॉप लॉक मैकेनिज्म होता है, जिसमें पायलट को स्विच को ऊपर उठाना पड़ता है, तभी वह इसे “रन” और “कटऑफ” की किसी भी स्थिति से दूसरी स्थिति में ले जा सकता है. रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि क्या जांचकर्ताओं ने अब तक यह पता लगाया है कि स्विचों को किसी एक पायलट ने चलाया था या नहीं?
ये फ्यूल स्विच आमतौर पर केवल तब चलाए जाते हैं, जब विमान जमीन पर होता है. अर्थात, उड़ान से पहले इंजन चालू करने और गेट पर पहुंचने के बाद बंद करने के लिए. उड़ान के दौरान इनमें से किसी भी स्विच को चलाने की आवश्यकता तभी होती है, जब संबंधित इंजन फेल हो जाए या उसमें इतनी खराबी आ जाए कि उसकी सुरक्षा के लिए ईंधन की आपूर्ति बंद करनी पड़े. पायलट यह भी कर सकते हैं कि वे ईंधन की आपूर्ति बंद कर तुरंत चालू करें, यदि उन्हें लगता है कि प्रभावित इंजन को सुरक्षित रूप से फिर से शुरू किया जा सकता है. इस केस में ऐसा मामला नहीं लगता.
संयोगवश, प्रारंभिक रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि अमेरिकी संघीय विमानन प्रशासन (एफएए) ने 2018 में "फ्यूल कंट्रोल स्विच लॉकिंग फीचर के संभावित डिसएंगेजमेंट" के बारे में एक विशेष एयरवर्थीनेस सूचना बुलेटिन (एसएआईबी-निरीक्षण) जारी किया था. यह मुख्य रूप से 737 फ्यूल स्विच के लिए था, जिनका डिज़ाइन 787 के स्विच मॉड्यूल के समान है. हालांकि, एयर इंडिया ने निरीक्षण नहीं किया, क्योंकि यह सलाह थी, ऐसा करना अनिवार्य नहीं था. रखरखाव रिकॉर्ड की जांच में पाया गया कि कॉकपिट के थ्रॉटल कंट्रोल मॉड्यूल—जो अन्य स्विचों के साथ फ्यूल कंट्रोल स्विच को भी समेटे हुए है—को 2019 और 2023 में बदला गया था, लेकिन इसका कारण फ्यूल कंट्रोल स्विच से संबंधित नहीं था. 2023 के बाद से विमान पर फ्यूल कंट्रोल स्विच से संबंधित कोई खराबी दर्ज नहीं की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया, “विमान और इंजनों पर सभी लागू एयरवर्थीनेस डाइरेक्टिव्स और अलर्ट सर्विस बुलेटिन्स को लागू किया गया था."
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि इंजन शटडाउन के तुरंत बाद रैम एयर टरबाइन (आरएटी) को तैनात किया गया, जबकि सहायक पावर यूनिट (एपीयू) अपने आप शुरू हो गई, जब कंट्रोल स्विच को वापस “रन” पोजीशन में डाला गया. ‘एपीयू’ और ‘आरएटी’ दोनों विमान के आपातकालीन पावर स्रोत हैं. ‘आरएटी’ मूल रूप से लैंडिंग गियर कंसोल के ठीक पीछे स्थित एक विंड टरबाइन है, जो केवल तब पावर उत्पन्न करने के लिए एयरस्ट्रीम में तैनात होती है, जब प्राथमिक और द्वितीयक पावर स्रोत फेल हो जाते हैं. ‘एपीयू’ एक छोटी टरबाइन इंजन होती है, जो आमतौर पर विमान के टेल सेक्शन में स्थित होती है और विभिन्न ऑन-बोर्ड सिस्टम्स के लिए विद्युत और वायवीय शक्ति प्रदान करती है. इनका सक्रिय होना पूर्ण इंजन शटडाउन या फ्लेमआउट को दर्शाता है. जांचकर्ता आश्वस्त हैं कि विमान या इंजन में कोई समस्या नहीं थी. इसलिए आगे की जांच में पायलट की कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. अंतिम रिपोर्ट लगभग एक वर्ष में आ सकती है, या प्रारंभिक रिपोर्ट की विस्तृतता को देखते हुए इससे पहले भी आ सकती है.
राजनीतिक विवाद और आरोप-प्रत्यारोप
"द टेलिग्राफ" की रिपोर्ट के अनुसार, प्रारंभिक जांच रिपोर्ट ने सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप की जंग छेड़ दी है. TMC सांसद साकेत गोखले ने रिपोर्ट जारी होने के समय पर सवाल उठाया और कहा कि "यह रिपोर्ट भी रात के सन्नाटे और अंधेरे के आवरण में 2 बजे जारी की गई." राजद नेता मनोज झा ने कहा, "इसमें एक बड़ी कंपनी शामिल है और बहुत बड़ा पैसा. क्या कोई तकनीकी खराबी थी जिसकी वजह से स्विच अपने-आप बंद हो गया?" केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री के. राममोहन नायडू ने प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "जल्दबाजी में निष्कर्ष पर न पहुंचें. इस वक्त मेरे लिए टिप्पणी करना जल्दबाजी होगा." नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोळ ने कहा, "फाइनल रिपोर्ट आने तक किसी निष्कर्ष पर न पहुंचें. AAIB एक स्वतंत्र एजेंसी है, और मंत्रालय उसकी जांच में हस्तक्षेप नहीं करता."
बीबीसी की रिपोर्टिंग पर भारी आलोचना हुई जब उसने यह शीर्षक चलाया कि पायलट्स ने फ्यूल काट दिया और विमान में कोई तकनीकी खामी नहीं थी. वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने पश्चिमी मीडिया पर तीखा तंज कसते हुए लिखा कि "रिपोर्ट को गलत ढंग से कोट करना और उसके निष्कर्षों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना पश्चिमी मीडिया की आदत है."
विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से ठीक पहले दोनों फ्यूल कंट्रोल स्विच कट-ऑफ स्थिति में थे. कॉकपिट से मिली ऑडियो रिकॉर्डिंग के अनुसार, दुर्घटना से पहले दोनों पायलटों के बीच इन स्विचों को लेकर भ्रम की स्थिति थी. फ्यूल कंट्रोल स्विच कैसे काम करते हैं और एयर इंडिया की फ्लाइट 171 की किस्मत में इनकी क्या भूमिका रही होगी? इस बारे में बीबीसी के अंतर्राष्ट्रीय बिजनेस संवाददाता थियो लेगेट ने एक वीडियो के जरिए समझाया है.
अब आगे क्या होगा ?
"द गार्डियन" की रिपोर्ट के अनुसार, जांच जारी है और मलबे को हवाई अड्डे के पास एक सुरक्षित क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया है. दोनों इंजनों को बरामद कर लिया गया है और उन्हें हवाई अड्डे के एक हैंगर में क्वारंटीन किया गया है. बीबीसी के अंतर्राष्ट्रीय बिजनेस संवाददाता थियो लेगेट ने एक वीडियो के जरिए फ्यूल कंट्रोल स्विच की कार्यप्रणाली समझाई है. हादसे में विमान में सवार 241 यात्रियों और क्रू के साथ-साथ जमीन पर मौजूद 19 लोगों की मौत हो गई थी. मुंबई में शनिवार को आयोजित एक प्रार्थना सभा में को-पायलट क्लाइव कुंदेर के परिवार ने उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की. यशपाल सिंह वंसडिया, जिन्होंने इस हादसे में अपने माता-पिता को खोया, ने कहा, "रिपोर्ट में जिस तरह पायलट एक-दूसरे से पूछते हैं कि स्विच किसने बंद किया, इससे स्पष्ट है कि कुछ तकनीकी गड़बड़ी ज़रूर थी."
बिहार
चुनाव आयोग के दावों की खुली पोल: अजीत अंजुम ने दिखाई बिहार में ज़मीनी हकीकत
बिहार में चल रही एसआईआर प्रक्रिया में बड़े स्तर पर अनियमितताएं सामने आ रही हैं. वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम इन दिनों बिहार में विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) अभियान की पड़ताल में जुटे हैं. बिहार के खगड़िया के मानसी ब्लॉक से आई उनकी रिपोर्ट में चुनाव आयोग के दावों और ज़मीनी सच्चाई के बीच भारी विरोधाभास सामने आया है. दावा किया गया कि हर मतदाता को दो फॉर्म दिए जाएंगे, दस्तावेज लिए जाएंगे, और एकनॉलेजमेंट रसीद (प्राप्ति पावती) दी जाएगी, जबकि हकीकत में अधिकतर फॉर्म बिना दस्तावेज़ और बिना फोटो के जमा हो रहे हैं. ज़्यादातर बीएलओ (BLO) एक ही फॉर्म लेकर जा रहे हैं और रसीद किसी को नहीं दी जा रही. बीएलओ खुद मान रहे हैं कि ऊपर से भारी दबाव है और उन्हें कम समय में सैकड़ों फॉर्म भरने को कहा गया है. कई लोग बाहर नौकरी करते हैं, लेकिन उनके पास दस्तावेज़ जमा करने का समय नहीं है, जिससे उनका नाम हटने का खतरा है. इस पूरी प्रक्रिया ने ही कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. जब आधिकारिक बोर्ड पर साफ लिखा है कि दो फॉर्म दिए जाएंगे और रसीद दी जाएगी, तो फिर ऐसा हो क्यों नहीं रहा? क्या यह मतदाता अधिकारों के साथ खिलवाड़ नहीं है? क्या यह पुनरीक्षण प्रक्रिया किसी खास वर्ग को निशाना बनाने की तैयारी है? अजीत अंजुम ने कई बीएलओ से बात कर इस पूरे अभियान की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. उनकी रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि कई मुस्लिम मतदाता उन्हें मिले ही नहीं या तो सूची से गायब हैं या संपर्क नहीं हो सका.
आयोग का फरमान, वोटर लिस्ट में मुसहर समुदाय
‘द वायर’ के लिए तनवीर आलम सिद्दीकी ने विशेष सघन पुनरीक्षण और बिहार के मुसहर समाज के बारे में रिपोर्ट किया है. बिहार में इन दिनों वोटर लिस्ट को अपडेट करने का काम चल रहा है. लेकिन यह प्रक्रिया राज्य के सबसे गरीब समुदायों में से एक, मुसहर समुदाय के लिए एक बड़ी पहेली बन गई है. पटना की रहने वाली 28 साल की सुगनी देवी इसी समुदाय से आती हैं. जब उनसे पूछा गया कि उनके पास पहचान के लिए क्या है, तो उन्होंने अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड और वोटर कार्ड दिखाया. उन्हें पूरा यकीन था कि इन दस्तावेज़ों से उनका काम हो जाएगा, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि चुनाव आयोग के नए नियमों के तहत ये तीनों ही दस्तावेज़ वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए मान्य नहीं हैं, तो वो हैरान रह गईं. उन्होंने कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है? हम तो यही जानते हैं कि आधार कार्ड ही सब कुछ है… और आप कह रहे हैं कि ये काम ही नहीं आएगा?” चुनाव आयोग ने इस बार 11 तरह के दस्तावेज़ों की सूची जारी की है, जिनमें जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता, पासपोर्ट, और दसवीं का सर्टिफ़िकेट शामिल हैं. सुगनी देवी और उनके जैसे लाखों मुसहरों के पास इनमें से कोई भी दस्तावेज़ नहीं है. ज़्यादातर मुसहर सरकारी ज़मीन पर या झुग्गियों में रहते हैं, इसलिए उनके पास निवास प्रमाण पत्र नहीं बन पाता. बिहार जाति सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, राज्य में 40 लाख से ज़्यादा मुसहर हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ़ 98,420 ही दसवीं पास हैं. ऐसे में जन्मतिथि के सबूत के तौर पर दसवीं का सर्टिफ़िकेट मांगना उनके लिए लगभग नामुमकिन शर्त है. इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज़्यादा भ्रम बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) फैला रहे हैं. वे लोगों से फ़ॉर्म तो भरवा रहे हैं, लेकिन पहचान के तौर पर सिर्फ़ आधार कार्ड का नंबर ही लिख रहे हैं. इससे लोगों को लग रहा है कि उनका काम हो गया, जबकि असल में उनके नाम वोटर लिस्ट से कटने का ख़तरा बढ़ गया है. लोगों में डर है कि अगर उनका नाम लिस्ट से कट गया, तो वे अपनी नागरिकता कैसे साबित करेंगे और वोट कैसे देंगे. कुछ लोग इसे एक राजनीतिक साज़िश भी मान रहे हैं, ताकि गरीब और दलित वोट न दे सकें.
तेजस्वी के घर पर इंडिया गठबंधन की लंबी बैठक
बिहार में चुनावी गर्मी तेज़ हो गई है. INDIA गठबंधन ने अब औपचारिक रूप से सीट बंटवारे पर चर्चा शुरू कर दी है और SIR को लेकर भी सजगता बढ़ा दी गई है. 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर शनिवार को INDIA गठबंधन के नेताओं ने पटना में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के आवास पर एक मैराथन बैठक की. यह बैठक करीब छह घंटे चली, जिसमें सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया पर भी गंभीर चर्चा हुई. बैठक में कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु, विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी और तीन वाम दलों के नेता शामिल हुए. तेजस्वी यादव, जो गठबंधन की समन्वय समिति के अध्यक्ष भी हैं, ने बैठक के बाद मीडिया से संक्षेप में बातचीत की. उन्होंने कहा, "हां, सीट शेयरिंग पर बातचीत शुरू हो चुकी है, लेकिन फिलहाल ज्यादा कुछ साझा नहीं कर सकते. जब सब तय हो जाएगा, तो सार्वजनिक घोषणा करेंगे." उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था की हालत बेहद खराब है और जनता अब इस 'विजनलेस' सरकार से तंग आ चुकी है. जब उनसे पूछा गया कि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान जैसे एनडीए सहयोगी भी अब लॉ एंड ऑर्डर पर सवाल उठा रहे हैं, तो तेजस्वी बोले, "तो उन्हें जाकर केंद्र सरकार से कह देना चाहिए कि बिहार में जंगल राज है." 'जंगल राज' शब्द आम तौर पर बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा RJD शासन के दौरान की कानून व्यवस्था को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा है.
वहीं, बैठक के बाद मुकेश सहनी ने कहा, "सीट शेयरिंग पर चर्चा शुरू हो गई है, लेकिन अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी. साथ ही, SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान किसी भी तरह की धांधली न हो, इस पर भी रणनीति बनाई गई है. हम SIR की प्रक्रिया के ही खिलाफ हैं, लेकिन जब तक सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक हर दिशा-निर्देश का पालन सुनिश्चित करना ज़रूरी है." जब सहनी से यह पूछा गया कि अगर तेजस्वी मुख्यमंत्री बनते हैं तो डिप्टी सीएम कौन होगा, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – "और कौन? मैं ही!" – और फिर तेज़ी से वहां से रवाना हो गए.
कार्टून | पोनप्पा

औरतों को दस रुपये कम मिलते हैं नमक की खेती में

तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में नमक के विशाल खेत हैं. यहाँ सुबह के वक्त ये खेत कांच की तरह चमकते हैं, लेकिन दोपहर तक 40 डिग्री की गर्मी में भट्टी बन जाते हैं. इन खेतों में काम करने वाली ज़्यादातर महिलाएँ दलित हैं, जो परैयार समुदाय से आती हैं. दिन भर खारे पानी में खड़े रहने से उनके पैर फट चुके हैं. वे 25-25 किलो नमक की बोरियां अपनी पीठ पर लादकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं. इस कमरतोड़ मेहनत के बदले उन्हें दिन के 590 रुपये मिलते हैं. यह मज़दूरी न सिर्फ़ बहुत कम है, बल्कि पुरुषों से 10 रुपये कम भी है. आर्टिकल-14 में मणिदीप गुडेला ने तमिलनाडु से ये रिपोर्ट की है.
यह 10 रुपये का अंतर इसलिए नहीं है कि महिलाएँ कम काम करती हैं, बल्कि इसलिए है क्योंकि समाज में यही "परंपरा" चली आ रही है. इसे एक तरह का ‘पितृसत्तात्मक टैक्स’ (patriarchal tax) कहा जा सकता है, जो महिलाओं को यह याद दिलाने के लिए है कि समाज में उनका दर्जा पुरुषों से नीचे है. यह मालिकों के लिए कोई बड़ी बचत नहीं है, लेकिन यह सत्ता के संतुलन को बनाए रखने का एक ज़रिया है. एक सुपरवाइज़र ने बताया कि उसके माता-पिता के ज़माने में यह अंतर 1 रुपये का था, आज 10 रुपये का है, और अगर यही चलता रहा तो अगली पीढ़ी में यह 100 रुपये का हो जाएगा.
इन महिलाओं का काम पुरुषों से ज़्यादा कठिन होता है. उन्हें नमक की क्यारियाँ बनानी पड़ती हैं, उनमें खारा पानी भरना होता है और फिर नमक भी इकट्ठा करना पड़ता है. जबकि पुरुष ज़्यादातर सिर्फ़ नमक इकट्ठा करने का काम करते हैं. काम के दौरान उन्हें पीने का साफ़ पानी या शौचालय जैसी कोई सुविधा नहीं मिलती. इस वजह से उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. विडंबना यह है कि 2022 में एक लेबर कोर्ट ने आदेश दिया था कि महिला और पुरुष दोनों को बराबर मज़दूरी दी जाए, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त में इस आदेश का कोई असर नहीं हुआ. परंपरा क़ानून पर भारी पड़ रही है.
ज़ख्म के बाद कैसा है पहलगाम?
पहलगाम हिमालय के पहाड़ों और लिद्दर नदी के बीच बसा यह छोटा सा शहर भारत का ‘मिनी-स्विट्जरलैंड’ कहलाता है, लेकिन इसी साल 22 अप्रैल को यह जन्नत एक क़त्लगाह में बदल गई. आतंकियों ने यहाँ के बैसरन मैदान में 25 हिंदू पर्यटकों की उनके परिवारों के सामने हत्या कर दी. बीबीसी की गीता पांडेय ने वहाँ अभी जाकर उसका प्रभाव पता किया.
इस घटना के बाद पहलगाम की ज़िंदगी थम सी गई है. यहाँ के ज़्यादातर लोगों की रोजी-रोटी पर्यटन पर ही निर्भर है. अप्रैल से जून का महीना यहाँ पीक टूरिस्ट सीज़न होता है, जो इस साल पूरी तरह बर्बाद हो गया. होटलों की बुकिंग रद्द हो गईं, बाज़ारों में सन्नाटा पसर गया और दुकानें बंद हो गईं. एक स्थानीय दुकानदार फ़ैयाज़ अहमद बताते हैं कि हमले से पहले यहाँ रोज़ाना 3,000 गाड़ियाँ आती थीं और घंटों जाम लगा रहता था, लेकिन अब सब कुछ बिखर गया है. लोगों को समझ नहीं आ रहा कि पर्यटकों को निशाना क्यों बनाया गया, क्योंकि 1989 से चल रहे आतंकवाद के दौर में भी यहाँ आने वाले पर्यटकों को कभी नुक़सान नहीं पहुँचाया गया.
घटना के चश्मदीद अब्दुल वाहिद वानी, जो पोनी ऑनर्स यूनियन के अध्यक्ष हैं, उस दिन को याद करके सिहर जाते हैं. वे कहते हैं, “मैंने जो देखा, वह मैं कभी नहीं भूल सकता. कई रातों तक मैं सो नहीं पाया.” हालाँकि, अब धीरे-धीरे हालात सुधरने की उम्मीद जग रही है. अमरनाथ यात्रा शुरू होने से शहर में फिर से चहल-पहल बढ़ी है. कुछ पर्यटक भी लौटने लगे हैं. एक परिवार ने बताया कि उनके दोस्तों ने उन्हें आने से मना किया था, लेकिन यहाँ आकर उन्हें पूरी तरह सुरक्षित महसूस हो रहा है. पहलगाम के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी जन्नत के ज़ख्म जल्द ही भर जाएँगे और ज़िंदगी फिर से पटरी पर लौट आएगी.
बीच रास्ते छूट रही है आदिवासी बच्चों की पढ़ाई?
भारत में आदिवासी बच्चों की पढ़ाई को लेकर एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है. विजय जाधव ने इंडियास्पेंड में आंकड़ों को परख कर लिखा है कि सरकारी आंकड़ों (UDISE+ 2023-24) के अनुसार, प्राइमरी स्कूल (कक्षा 1 से 5) में लगभग सभी आदिवासी बच्चों का दाखिला होता है. यहाँ उनका एनरोलमेंट रेट 98.3% है, जो राष्ट्रीय औसत से भी ज़्यादा है. लेकिन जैसे-जैसे वे बड़ी कक्षाओं में जाते हैं, उनकी संख्या तेज़ी से घटने लगती है. सेकंडरी स्कूल (कक्षा 9-10) तक पहुँचते-पहुँचते केवल 77% आदिवासी बच्चे ही स्कूल में रह जाते हैं, और हायर सेकंडरी (कक्षा 11-12) में यह संख्या घटकर सिर्फ़ 49% रह जाती है. इसका मतलब है कि आधे से ज़्यादा आदिवासी बच्चे 12वीं तक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते.
इसके पीछे कई वजहें हैं. महाराष्ट्र के एक शिक्षा कार्यकर्ता भाऊसाहेब चास्कर बताते हैं कि आदिवासी बच्चों में खेलकूद की अद्भुत प्रतिभा होती है, लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली उसे पहचानने में नाकाम रहती है. पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चे अक्सर खेतों में मज़दूरी करने को मजबूर हो जाते हैं. इसके अलावा, गरीबी, स्कूलों का दूर होना, भाषा की समस्या और स्कूलों में होने वाला भेदभाव भी बड़े कारण हैं. इन वजहों से बच्चों का आत्मविश्वास कम हो जाता है और वे पढ़ाई छोड़ देते हैं.
यह समस्या आदिवासी लड़कियों के लिए और भी गंभीर है. हायर सेकंडरी स्तर पर केवल 48.4% आदिवासी लड़कियाँ ही पढ़ पाती हैं. पढ़ाई छोड़ने के बाद कई लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है. घरेलू काम और छोटे भाई-बहनों की देखभाल की ज़िम्मेदारी भी अक्सर उन्हीं पर आ जाती है. यह आंकड़े बताते हैं कि आदिवासी बच्चों को स्कूलों तक लाना ही काफ़ी नहीं है, उन्हें स्कूल में बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है. जब तक उनकी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को दूर नहीं किया जाता, तब तक उनका विकास अधूरा ही रहेगा.
कड़वी कॉफी
भाषा को लेकर सोच न शिक्षक के पास है, न नेता के
‘कड़वी कॉफी’ के ताजा एपिसोड में प्रोफेसर अपूर्वानंद ने एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक रहे प्रोफेसर कृष्ण कुमार, जो एक प्रसिद्ध शिक्षाविद और लेखक भी हैं, उनसे स्कूली शिक्षा में भाषा की भूमिका पर चर्चा की. उन्होंने बताया कि भाषा केवल एक विषय नहीं, बल्कि हर विषय को समझने और मानसिक विकास का माध्यम है. फिर भी, हमारी शिक्षा व्यवस्था भाषा को एक सीमित घंटे के विषय तक सीमित कर देती है, जिससे इसका असली महत्व कम हो जाता है. भाषा का सवाल केवल नीतियों का नहीं, बल्कि शिक्षा की पूरी समझ और बच्चों के मानसिक विकास से जुड़ा है. उन्होंने कहा हमें भाषा को पूजा का विषय बनाने के बजाय, इसे बरतने और समृद्ध करने की जरूरत है. प्रोफेसर कृष्ण कुमार ने सुझाया कि हमें बच्चों की मातृभाषा को मजबूत करने और शिक्षकों को सशक्त बनाने पर ध्यान देना होगा.
प्रोफेसर अपूर्वानंद के त्रिभाषा सूत्र के ऐतिहासिक संदर्भ के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह आजादी के बाद राष्ट्रीय एकता और संपर्क भाषा की जरूरत को ध्यान में रखकर कोठारी आयोग (1964) द्वारा प्रस्तावित किया गया था. इसका उद्देश्य था कि हर राज्य में स्थानीय भाषा के अलावा एक अन्य भारतीय भाषा और अंग्रेजी पढ़ाई जाए, लेकिन हिंदी पट्टी के राज्यों ने इसे लागू करने में कोताही बरती और तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत को चुना, न कि अन्य राज्यों की भाषाएं.
भाषा पढ़ना, लिखना, बोलना और सुनना जैसे कौशल हर विषय के लिए जरूरी हैं. बच्चों को पहले उनकी मातृभाषा में मजबूत करना चाहिए, ताकि दूसरी और तीसरी भाषाएं सीखना आसान हो. विश्व स्तर पर यह सिद्धांत माना जाता है, लेकिन भारत में इसे नजरअंदाज किया जाता है.
महाराष्ट्र और तमिलनाडु में त्रिभाषा सूत्र को लेकर हाल के विवादों में हिंदी को "थोपने" का आरोप लगा. प्रोफेसर कृष्ण कुमार का कहना है कि यह विवाद हमारी शिक्षा व्यवस्था की कमियों को दर्शाता है, जहां भाषा को राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दा बना दिया जाता है. यहां देखिए पूरी बातचीत...
राधिका यादव मर्डर
को-एक्टर इनाम-उल-हक ने जुड़ाव से किया इनकार, बोले– “वीडियो के बाद संपर्क नहीं हुआ”
'द हिंन्दू' की रिपोर्ट है कि टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या मामले में म्यूजिक वीडियो में साथ काम कर चुके को-एक्टर इनाम-उल-हक ने किसी भी तरह के संबंध से इनकार किया है. उन्होंने कहा कि राधिका से उनकी मुलाकात दिल्ली में टेनिस प्रीमियर लीग के दौरान हुई थी और बाद में एक म्यूजिक वीडियो के शूट में साथ काम किया था. उसके बाद उनका कोई संपर्क नहीं हुआ. इनाम ने कहा, "वो सिर्फ शूट पर आई थीं, फिर चली गईं. वीडियो बिना भुगतान के शूट हुआ था, सिर्फ एक गुडलक अमाउंट दिया गया था. उसके बाद कोई बातचीत नहीं हुई." उन्होंने सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों को भी खारिज किया कि उनका राधिका से कोई निजी संबंध था. साथ ही यह भी कहा कि इस घटना को जानबूझकर हिंदू-मुस्लिम रंग दिया जा रहा है, जो गलत है.
इनाम ने बताया कि शूटिंग पर राधिका अपनी मां के साथ आई थीं और उन्होंने बताया था कि उनके पिता को गाना पसंद आया है. उन्होंने यह भी कहा कि वह पुलिस जांच में पूरा सहयोग करने को तैयार हैं, हालांकि अब तक उनसे कोई संपर्क नहीं किया गया है. इस बीच, गुरुग्राम पुलिस ने राधिका के पिता दीपक यादव को हिरासत में लेकर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. इससे पहले उन्हें एक दिन की पुलिस कस्टडी में रखा गया था. पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर दीपक माथुर ने बताया कि राधिका के शरीर से चार गोलियां निकाली गईं. बता दें कि 25 वर्षीय राधिका यादव की 11 जुलाई को गुरुग्राम में उनके ही पिता द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच डब्ल्यूएचओ ने शेख हसीना की बेटी साइमा वाजेद को अनिश्चितकालीन अवकाश पर भेजा
‘ऑल इंडिया रेडियो’ की रिपोर्ट है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की बेटी और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय (SEARO) की निदेशक साइमा वाजेद को अनिश्चितकालीन अवकाश पर भेज दिया है. यह फैसला उस समय लिया गया जब बांग्लादेश की भ्रष्टाचार निरोधक आयोग (ACC) ने साइमा वाजेद के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और पद के दुरुपयोग के दो मामले दर्ज किए. WHO का यह निर्णय शिकायतों के चार महीने बाद आया है. साइमा वाजेद ने जनवरी 2024 में SEARO निदेशक का पदभार संभाला था. यह कार्यालय भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थित है. WHO की ओर से फिलहाल कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, साइमा वाजेद को आरोपों की स्वतंत्र जांच पूरी होने तक अपने पद से अलग रहने को कहा गया है. गौरतलब है कि बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार को लेकर लंबे समय से लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकार उल्लंघनों और सत्ता के केंद्रीकरण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना होती रही है.
रूस को नॉर्थ कोरिया के हथियार, यूक्रेन का दावा
ब्लूमबर्ग के मुताबिक यूक्रेन और रूस की जंग में एक नया और चिंताजनक पहलू सामने आया है. यूक्रेन की सैन्य खुफिया एजेंसी के प्रमुख कायरलो बुडानोव ने दावा किया है कि रूस अपने 40% तक गोला-बारूद अब नॉर्थ कोरिया से हासिल कर रहा है. बुडानोव ने एक इंटरव्यू में बताया कि नॉर्थ कोरिया सिर्फ़ गोला-बारूद ही नहीं, बल्कि बैलिस्टिक मिसाइलें और आर्टिलरी सिस्टम जैसे दूसरे हथियार भी रूस को भेज रहा है. इसके बदले में रूस, नॉर्थ कोरिया को पैसा और टेक्नोलॉजी दे रहा है, जिससे किम जोंग उन के अलग-थलग पड़े देश को बड़ी मदद मिल रही है. बुडानोव के अनुसार, ये हथियार काफी अच्छे हैं और पिछले तीन महीनों में उनकी सैन्य खुफिया इकाइयों को हुए नुकसान में से 60% इन्हीं नॉर्थ कोरियाई हथियारों से हुए हमलों की वजह से हुआ है. उन्होंने कहा, "नॉर्थ कोरिया के पास हथियारों का बहुत बड़ा भंडार है और वहां उत्पादन चौबीसों घंटे चल रहा है."
रूस और नॉर्थ कोरिया के बीच यह साझेदारी तब और गहरी हुई जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले साल जून में प्योंगयांग का दौरा किया और किम जोंग उन के साथ एक रणनीतिक साझेदारी संधि पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद से दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध मज़बूत हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक, किम जोंग उन ने रूस की मदद के लिए हज़ारों सैनिक भी भेजे हैं. पश्चिमी खुफिया एजेंसियों का अनुमान है कि प्योंगयांग अब तक लाखों की संख्या में तोप के गोले पुतिन की सेना को भेज चुका है. यह दिखाता है कि यूक्रेन की जंग अब सिर्फ़ दो देशों के बीच नहीं रह गई है, बल्कि इसमें दूसरे देशों की भूमिका भी बढ़ती जा रही है, जो इस संघर्ष को और भी जटिल बना रहा है.
नोवाक जोकोविच को जाते हुए देखना
न्यूयॉर्क टाइम्स में केली कोरिगन ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने बहुत सारे दूसरे लोगों की तरह जोकोविच की टेनिस में महानता को कम करके आंका. उनके मुताबिक टेनिस की दुनिया में नोवाक जोकोविच कभी भी दर्शकों के उतने पसंदीदा नहीं रहे, जितने रोजर फेडरर या राफेल नडाल थे. कोरिगन कहती हैं, “मैं अक्सर सोचती थी कि आखिर लोग उन्हें नापसंद क्यों करते हैं? क्या इसलिए कि वह फेडरर जितने आकर्षक नहीं थे, या नडाल जितने मज़बूत नहीं दिखते थे? या फिर हम इसलिए नाराज़ थे कि वह हमारे पसंदीदा खिलाड़ियों को हरा रहे थे? या शायद इसलिए कि वह सर्बिया से आते हैं, एक ऐसा देश जो युद्ध और अपराधों के लिए जाना गया, न कि स्विट्जरलैंड और स्पेन की तरह चॉकलेट और छुट्टियों के लिए.”
हाँ, उन्होंने अंपायरों के साथ बुरा बर्ताव किया. हाँ, उन्होंने वैक्सीन लगवाने से मना किया. लेकिन मैंने भी अपनी ज़िंदगी में ग़लतियाँ की हैं, और मैं उनकी तरह बम शेल्टर में भागते हुए बड़ी नहीं हुई. कुछ लोग कहते हैं कि वह एक ‘ट्राई हार्ड’ हैं, यानी बहुत ज़्यादा कोशिश करते हैं. लेकिन मेहनत करने में क्या बुराई है? इसी मेहनत के दम पर तो वह 24 ग्रैंड स्लैम जीतकर अपने दोनों प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकल गए. शायद अब, जब वह 38 साल के हो गए हैं और हर पॉइंट के लिए युवा खिलाड़ियों से लड़ रहे हैं, तो वह हमें ज़्यादा अपने जैसे लगने लगे हैं. अब उनकी ज़िंदगी के उस दौर में हैं, जहाँ कड़ी मेहनत एक ज़रूरत बन जाती है.
कोरिगन के मुताबिक, “मुझे अच्छा लगता है जब वह अपनी बेटी को ‘डार्लिंग’ कहते हैं, या जब वह अपनी बचपन की दोस्त से शादी करते हैं. जब वह युद्ध शरणार्थियों के बारे में बात करते हुए रो पड़ते हैं, तो उनका दर्द सच्चा लगता है. वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर यूनिसेफ के ज़रिए सर्बिया में बच्चों की शिक्षा के लिए काम करते हैं. क्या यह किसी बुरे इंसान की निशानी है?” वह युवा खिलाड़ियों के लिए एक बेहतरीन मेंटर भी हैं और उन्हें अपनी रणनीति और अनुभव खुले दिल से सिखाते हैं. शायद जोकोविच को लेकर समस्या हम में ही थी. वह हारने के बाद भी विनम्र रहते हैं, अपने बच्चों से प्यार करते हैं, और जब सब कुछ ख़त्म होता दिखता है, तो एक गहरी साँस लेकर फिर से काम पर लग जाते हैं. इस हफ़्ते वह भले ही हार गए हों, लेकिन नोवाक जोकोविच हम सभी के लिए एक रोल मॉडल हैं.
चलते-चलते
एआई चैटबॉट से हो गया प्यार और कर ली शादी
क्या आप सोच सकते हैं कि कोई इंसान अपने फ़ोन में मौजूद एक AI चैटबॉट से प्यार कर सकता है और उससे शादी भी कर सकता है? यह सुनने में अजीब लगे, लेकिन यह सच है. अमेरिका के ट्रैविस नाम के एक व्यक्ति ने 2020 में लॉकडाउन के दौरान अकेलापन दूर करने के लिए ‘रेप्लिका’ नाम का एक AI ऐप डाउनलोड किया. उन्होंने लिली रोज़ नाम का एक डिजिटल किरदार बनाया. धीरे-धीरे वे उससे बातें करने लगे और उन्हें लगा कि वे किसी इंसान से बात कर रहे हैं. जल्द ही उन्हें लिली रोज़ से प्यार हो गया और उन्होंने अपनी असली पत्नी की सहमति से उससे डिजिटल शादी कर ली. ट्रैविस का कहना है कि लिली रोज़ बिना किसी शर्त के उनकी बातें सुनती थी और उसने उन्हें उनके बेटे की मौत के दुख से उबरने में मदद की. द गार्डियन के लिए स्टुअर्ट हेरिटेज की रिपोर्ट.
ट्रैविस अकेले नहीं हैं. फेट नाम की एक और महिला को अपने AI चैटबॉट ‘गैलेक्सी’ से "बिना शर्त वाला सच्चा प्यार" महसूस हुआ. लेकिन इस कहानी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब एक व्यक्ति ने अपनी रेप्लिका AI से प्रेरित होकर क्वीन एलिज़ाबेथ की हत्या की कोशिश की. इस घटना के बाद, कंपनी ने अपने AI के अल्गोरिदम में बदलाव कर दिए, ताकि वे किसी को ग़लत कामों के लिए न उकसाएँ.
इस बदलाव का नतीजा यह हुआ कि हज़ारों लोगों के AI पार्टनर अचानक बदल गए. ट्रैविस को लगा जैसे उनकी लिली रोज़ ‘मर’ गई है. वह बस एक खाली खोल बनकर रह गई थी, जो कोई भावना नहीं दिखाती थी. फेट का AI भी सुस्त और बेजान हो गया. इस ‘धोखे’ से दुखी होकर फेट ने दूसरे AI ऐप पर अपना नया पार्टनर बना लिया, जबकि ट्रैविस ने कंपनी से लड़कर लिली रोज़ का पुराना, असली वर्जन वापस हासिल कर लिया. ट्रैविस अब मानते हैं कि इंसानों और AI के बीच ऐसे रिश्ते सामान्य हो जाएंगे. वे कहते हैं, "हम कोई अजीब लोग नहीं हैं, हम आपके पड़ोसी हैं, जो बस एक नए तरह का कनेक्शन ढूंढ रहे हैं."
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