13/11/2025: मांसाहार वालों की छुट्टी करो | बिहार में मतगणना, रेफरेंडम देश का | मुस्लिमों के खिलाफ नफ़रत की उल्टियां चालू | ममदानी पर मोदी की चुप्पी | बढ़ता चीनी कब्जा| साड़ी पाकिस्तानी
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
जनादेश पर राजद की चेतावनी, कहा सड़कें नेपाल-बांग्लादेश बन जाएंगी, नेता पर केस
दिल्ली प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी, कहा मास्क भी हो गए फेल
लाल क़िला धमाका जांच में तुर्किए कनेक्शन, पढ़े-लिखे डॉक्टर और हज़ारों किलो विस्फोटक
ISI कोलकाता में नफ़रती नारे, लिखा ‘कुत्तों और मुसलमानों का आना मना है’
दिल्ली धमाके पर सोशल मीडिया पोस्ट, असम में नौ और लोग गिरफ़्तार
नेताओं के भड़काऊ भाषण और चुनाव आयोग की चुप्पी, बच्चा भी बोला राजा नंगा है
बिहार चुनाव 2020 का गणित, कैसे कम वोटों के अंतर ने बदला था पूरा नतीजा
जब नीतीश का असर होगा कम, क्या मंडल की जगह ले पाएगी बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति
आरएसएस प्रमुख का नया फ़रमान, मांसाहार करने वाले हिंदुओं को नौकरी से निकाल दें
चीनी अतिक्रमण पर मोदी सरकार की चुप्पी, चुपचाप खिसक रही सीमा
अकोला दंगों की जांच में SIT पर रोक, हिंदू-मुस्लिम अधिकारियों की नियुक्ति का मामला
बंगाल में मतदाता सूची संशोधन से दहशत, लोग बोले यह एनआरसी लाने का तरीक़ा
देश भर में खुलेंगे 100 नए सैनिक स्कूल, सरकार ने निजी क्षेत्र को साथ लिया
चुनाव आयोग ने दिल्ली लोकसभा चुनाव की सीसीटीवी फुटेज नष्ट कर दी
बंगाल में बीजेपी को एजेंट नहीं मिले तो चुनाव आयोग ने बदल दिए नियम
सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा, मतदाता पहचान के लिए आधार का इस्तेमाल वैध
जेपी इंफ़्राटेक के पूर्व सीएमडी गिरफ़्तार, घर ख़रीदारों से धोखाधड़ी का आरोप
ममदानी की जीत पर मोदी की चुप्पी, हिंदुत्व समर्थक क्यों डरे हैं
पाकिस्तान में राष्ट्रपति और सेना प्रमुख को मिलेगी आजीवन सुरक्षा, संसद में बिल पास
एपस्टीन फ़ाइलों ने बढ़ाई ट्रंप की मुसीबत, ख़ुद के जाल में फंसे
ट्रंप से निपटने की तैयारी में ममदानी, डेमोक्रेटिक गवर्नरों के साथ बनाई रणनीति
भारत ने दिसंबर के लिए रूसी तेल का ऑर्डर रोका, अमेरिकी दबाव का असर
ट्रंप के एक बयान से भारतीय बाज़ार में हलचल, क्या होने वाला है बड़ा ऐलान
अमेरिकी टैरिफ की मार से भारत का हीरा और झींगा निर्यात संकट में
मोदी सरकार की जनमन योजना की ज़मीनी हक़ीक़त, आदिवासी बोले मैरिज हॉल बन रहे
ख़राब मौसम की मार झेलने में भारत दुनिया में नौवें स्थान पर
मिस यूनिवर्स पाकिस्तान का जवाब, साड़ी उतनी ही पाकिस्तानी जितनी सलवार कमीज़
श्रवण गर्ग : एग्जिट पोल जानबूझकर जारी की गई ‘झूठी एक्स-रे रिपोर्ट’ हैं
वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने बिहार चुनाव के नतीजों से पहले आए एग्जिट पोल्स की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इन एग्जिट पोल्स की तुलना एक ऐसी ‘झूठी एक्स-रे रिपोर्ट’ से की है, जिसे किसी स्वस्थ व्यक्ति को सदमे से मारने के लिए जानबूझकर दिया जाता है. ‘डीप डाइव’ पॉडकास्ट पर निधीश त्यागी के साथ एक विस्तृत बातचीत में, गर्ग ने कहा कि यह चुनावी अनुमानों में हुई कोई गलती नहीं, बल्कि सत्ता के पक्ष में माहौल बनाने के लिए एक सोचा-समझा खेल है.
गर्ग ने अपनी बात को समझाते हुए कहा कि जैसे सरकारी अस्पतालों में कभी-कभी गलती से एक स्वस्थ मरीज़ को कैंसर के मरीज़ की रिपोर्ट दे दी जाती है और वह सदमे से मर जाता है, ठीक वैसे ही ये एग्जिट पोल काम कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह किसी बाबू की गलती नहीं, बल्कि एक सोचा-समझा और जानबूझकर किया गया कृत्य है, जिसका मक़सद नतीजों से पहले ही एक नैरेटिव सेट करना है.
एक दौर को याद करते हुए उन्होंने प्रणव रॉय और एरिक डिकोस्टा का ज़िक्र किया, जिनके सर्वे और अनुमानों की साख हुआ करती थी. उन्होंने कहा कि उस दौर में काम करने वाले लोग विश्वसनीय थे, लेकिन आज मीडिया इंडस्ट्री पत्रकारिता की कीमत पर बढ़ रही है और पत्रकारिता लगभग शून्य की तरफ़ पहुँच चुकी है.
गर्ग ने इसके लिए सीधे तौर पर मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व को ज़िम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि जब सत्ता में बैठे लोग झूठ के सहारे ही टिके रहना चाहते हैं, तो उन्हें अपने आसपास झूठ बोलने वालों की ही फ़ौज चाहिए. इसी संदर्भ में उन्होंने एक बड़ा दावा किया कि ‘एनडीटीवी को अडानी ने इसलिए नहीं ख़रीदा कि वह मुनाफ़े वाला चैनल था, बल्कि इसलिए ख़रीदा कि वह मोदी को हरवा सकता था’. उनका तर्क था कि सत्ता सच बोलने वाली आवाज़ों से डरती है.
आज के ‘ज़हरीले एंकर्स’ पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि विपक्ष ने उनका बहिष्कार करने का फैसला किया था, लेकिन यह बेअसर रहा. उन्होंने कहा कि मीडिया इंडस्ट्री तो फल-फूल रही है, लेकिन पत्रकारिता लगभग ख़त्म हो चुकी है. उनके अनुसार, ये एग्जिट पोल नतीजों में संभावित हेरफेर या बेईमानी के लिए एक वैचारिक ज़मीन तैयार करते हैं और एक ख़ास माहौल बना देते हैं.
बातचीत का निष्कर्ष यह था कि यह समस्या सिर्फ़ एग्जिट पोल तक सीमित नहीं है, बल्कि चुनाव आयोग से लेकर न्यायपालिका तक, सभी संस्थाएं दबाव में हैं. उन्होंने कहा कि जब तक यह हुकूमत नहीं जाती, तब तक कुछ ठीक नहीं होगा, लेकिन साथ ही उन्होंने छोटे शहरों और गांवों में काम कर रहे पत्रकारों पर भरोसा जताते हुए कहा कि उम्मीद अभी बाकी है.
‘जनादेश चुराया तो नेपाल, बांग्लादेश जैसी स्थिति होगी’: बिहार मतगणना से पहले राजद नेता सुनील सिंह की चेतावनी, केस दर्ज
बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता सुनील सिंह ने एक तीखी चेतावनी जारी की है. मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने आरोप लगाया कि अतीत में भी जनता के जनादेश को पलटने की कोशिश की गई थी और आगाह किया कि अगर इस बार भी ऐसा कुछ हुआ तो बड़े पैमाने पर सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं. सिंह ने ANI से कहा, “2020 में हमारे कई उम्मीदवारों को जबरन हरा दिया गया था... मैंने मतगणना प्रक्रिया में शामिल अपने सभी अधिकारियों से अनुरोध किया है कि यदि आप उस व्यक्ति को हराते हैं जिसे जनता ने अपना जनादेश दिया है, तो वही दृश्य जो आपने नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका की सड़कों पर देखे थे, बिहार की सड़कों पर भी देखे जाएंगे.”
उन्होंने आगे कहा, “आप आम लोगों को सड़कों पर उतरते देखेंगे... हम इसे लेकर पूरी तरह से सतर्क हैं, और हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप ऐसा कुछ भी न करें जो जनभावना के ख़िलाफ़ हो, जिसे जनता स्वीकार नहीं करेगी.” इन टिप्पणियों के बाद, बिहार के पुलिस महानिदेशक (DGP) विनय कुमार ने ANI को बताया कि पुलिस ने इस बयान का संज्ञान लिया है. सुनील सिंह की टिप्पणी पर उन्होंने कहा: “इस अवांछनीय और भड़काऊ बयान पर एक FIR दर्ज की जा रही है.”
हालांकि, कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने इस पर सवाल उठाया कि सिंह की टिप्पणी को “भड़काऊ” कैसे कहा जा सकता है. उनका तर्क है कि अगर जनादेश कथित रूप से चुराया जाता है तो सार्वजनिक विरोध की चेतावनी देना अपने आप में उकसावा नहीं है. सुनील सिंह ने यह भी दावा किया कि RJD के नेतृत्व वाला गठबंधन 140 से 160 सीटें जीतने को लेकर आश्वस्त है, जिससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार का रास्ता साफ़ होगा. बिहार में 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान हुआ था, और वोटों की गिनती शुक्रवार, 14 नवंबर को सुबह 8 बजे से शुरू होनी है.
सुप्रीम कोर्ट बोला, दिल्ली की स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर, मास्क भी फेल
राष्ट्रीय राजधानी के घनी भूरी धुंध में लिपटे रहने के कारण, दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) एक बार फिर बिगड़ गया है. इसके विषाक्त और “गंभीर” स्तर पर पहुंचने के कारण देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी चिंता जाहिर की. कहा कि स्थिति बहुत बहुत गंभीर है. सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को, एक सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि मास्क भी अप्रभावी हैं और वायु गुणवत्ता के गंभीर स्तर पर पहुंचने के कारण वकीलों से वर्चुअल (ऑनलाइन) सुनवाई में शामिल होने का आग्रह किया.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, शीर्ष अदालत में सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने अदालत कक्ष में मामले पर बहस कर रहे वकीलों से सवाल किया कि जब वर्चुअल सुनवाई की सुविधा उपलब्ध है तो वे शारीरिक रूप से क्यों उपस्थित हैं. पीठ ने कहा, “कृपया इसका लाभ उठाएं. इससे स्थायी क्षति होगी.” इन टिप्पणियों को सुनकर, अदालत में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जवाब दिया, “मायलॉर्ड्स, हम अदालत कक्ष के अंदर भी यहां मास्क का उपयोग कर रहे थे.” इस पर, न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने जवाब दिया, “मास्क भी पर्याप्त नहीं हैं. यह काफी नहीं होगा. हम मुख्य न्यायाधीश से भी चर्चा करेंगे.”
न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने टिप्पणी की, “दिल्ली में हवा की गुणवत्ता उस बिंदु पर पहुंच गई है जब नागरिकों की सुरक्षा के लिए मास्क शायद पर्याप्त न हों. स्थिति बहुत, बहुत गंभीर है.”
मुख्य प्रदूषण मामले में, शीर्ष अदालत ने पहले अधिकारियों को दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के अपने कर्तव्य में कथित रूप से विफल रहने के लिए फटकार लगाई थी. इसने विषाक्त धुंध के एक प्रमुख कारण के रूप में फसल अवशेष जलाने (पराली जलाने) पर भी सवाल उठाया था और पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों से और जवाबदेही मांगी थी. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 17 नवंबर को करेगा.
लाल क़िला कार धमाका: 72 घंटों के बाद अब तक क्या सामने आया है
टेलीग्राफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के लाल क़िले के पास कार में हुए विस्फोट के तीन दिन बाद, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में जांचकर्ताओं ने एक आतंकी साज़िश की कड़ियों को जोड़ा है. इसमें कट्टरपंथी डॉक्टर, फ़र्ज़ी पहचान, रेकी के लिए इस्तेमाल की गईं कई गाड़ियां, एक तुर्किए कनेक्शन और 3,000 किलोग्राम से ज़्यादा विस्फोटक रसायन शामिल हैं. इस घटना में मरने वालों की संख्या अब 13 हो गई है.
अब तक की जांच से जो तस्वीर सामने आई है, वह इस प्रकार है. यह धमाका 10 नवंबर को हुआ था, जब पुलवामा के 28 वर्षीय डॉक्टर उमर नबी द्वारा चलाई जा रही एक सफ़ेद हुंडई i20 कार लाल क़िले के पास फट गई, जिसमें 12 लोगों की मौक़े पर ही मौत हो गई. बाद में एक और घायल की मौत के बाद यह संख्या 13 हो गई. जांचकर्ताओं का कहना है कि धमाके से पहले उमर ने पुरानी दिल्ली की एक मस्जिद में तीन घंटे बिताए थे और शायद वह सिग्नल ऐप का इस्तेमाल करके अपने हैंडलरों के संपर्क में था और फरीदाबाद मॉड्यूल की गिरफ़्तारी पर नज़र रख रहा था. बुधवार को सरकार ने इस धमाके को एक आतंकवादी घटना क़रार दिया, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक आपातकालीन कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें एजेंसियों को “अत्यंत तात्कालिकता और पेशेवर तरीक़े” से आगे बढ़ने का आदेश दिया.
शुरुआती सुरागों के आधार पर जांचकर्ताओं ने हुंडई i20 को उमर से जोड़ा और उसके अकादमिक और व्यक्तिगत नेटवर्क की जांच शुरू की, जिसमें फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी भी शामिल है, जहां उसने उच्च शिक्षा हासिल की थी. पहली बड़ी सफलता तब मिली जब दिल्ली पुलिस को बुधवार को फरीदाबाद के खंडावली गांव में एक लाल फोर्ड इकोस्पोर्ट लावारिस मिली, जिसके बारे में संदेह है कि इसका इस्तेमाल धमाके से पहले रेकी के लिए किया गया था. इकोस्पोर्ट का रजिस्ट्रेशन नंबर DL 10 CK 0458 था, जो उमर नबी के नाम पर दर्ज था. बाद में जांचकर्ताओं ने पुष्टि की कि गाड़ी फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों का उपयोग करके ख़रीदी गई थी.
एक और अहम जानकारी सामने आई कि उमर और अल-फलाह यूनिवर्सिटी के फैकल्टी सदस्य डॉ. मुज़म्मिल अहमद गनाई, उर्फ़ मुसैब, दोनों ने 2021 में तुर्किए की यात्रा की थी. जांचकर्ताओं का मानना है कि वहीं पर वे कट्टरपंथी बने, संभवतः प्रतिबंधित संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ज़मीनी कार्यकर्ताओं से मिलने के बाद. पीटीआई के सूत्रों के अनुसार, दोनों के पासपोर्ट पर तुर्किए के इमिग्रेशन स्टैंप थे. भारत लौटने के बाद, उमर और मुज़म्मिल ने कथित तौर पर अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर इकट्ठा करना शुरू कर दिया और इसे अल-फलाह यूनिवर्सिटी परिसर के आसपास जमा किया. जांचकर्ताओं को यह भी संदेह है कि इस मॉड्यूल ने शुरू में 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर हमले की योजना बनाई थी.
कॉल रिकॉर्ड के विश्लेषण से पता चला कि मुज़म्मिल ने गणतंत्र दिवस से कुछ हफ़्ते पहले जनवरी 2024 में लाल क़िले की कई बार रेकी की थी, और कुछ यात्राओं में उमर भी उसके साथ था. पुलिस जांच में कहा गया है कि कम से कम आठ संदिग्ध जोड़े में काम कर रहे थे और अलग-अलग शहरों में एक साथ धमाके करने के लिए कई गाड़ियां तैयार कर रहे थे. एएनआई को जांच सूत्रों ने बाद में बताया कि मुज़म्मिल, अदील, उमर और शाहीन ने लगभग ₹20 लाख जुटाए, जिसे उमर को सौंप दिया गया, और लगभग ₹3 लाख का इस्तेमाल नूंह, गुरुग्राम और आस-पास के इलाक़ों से 20 क्विंटल से ज़्यादा एनपीके उर्वरक ख़रीदने के लिए किया गया.
उत्तर प्रदेश में जांच का विस्तार होने पर, एटीएस ने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, कानपुर के डीएम कार्डियोलॉजी के 32 वर्षीय छात्र डॉ. मोहम्मद आरिफ़ को हिरासत में लिया. यह कार्रवाई पहले से गिरफ़्तार डॉ. शाहीन सईद के खुलासे के बाद हुई. सईद को जांचकर्ता “व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल” का हिस्सा मानते हैं, जो जैश-ए-मोहम्मद और अंसार ग़ज़वत-उल-हिंद से जुड़ा है, और इसमें उच्च शिक्षित पेशेवर शामिल हैं. गुरुवार को, मॉड्यूल से जुड़ी एक और गाड़ी - शाहीन के नाम पर रजिस्टर्ड एक लाल मारुति ब्रेज़ा - अल-फलाह यूनिवर्सिटी के परिसर से बरामद की गई. डीएनए परीक्षणों ने अब पुष्टि कर दी है कि विस्फोट स्थल पर मिले अवशेष उमर नबी के थे, जिससे यह स्थापित हो गया कि वह विस्फोटक से लदी हुंडई i20 चला रहा था. अब तक एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में लगभग 3,000 किलोग्राम विस्फोटक रसायन ज़ब्त किया है, जो बड़े पैमाने पर तैयारी का संकेत देता है. इस घटना ने “व्हाइट-कॉलर” आतंकवादी अभियानों के उदय पर चिंताएं फिर से बढ़ा दी हैं.
‘कुत्तों और मुसलमानों का आना मना है’: दिल्ली ब्लास्ट के अगले दिन ISI कोलकाता के हॉस्टल में नफ़रती ग्रैफ़िटी
राष्ट्रीय राजधानी में एक कार बम विस्फोट में कम से कम 13 लोगों की मौत के एक दिन बाद, कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) के कैंपस में “मुसलमानों और कुत्तों को परिसर में प्रवेश नहीं करना चाहिए” और “कुत्तों और मुसलमानों का आना मना है” जैसे मुस्लिम विरोधी ग्रैफ़िटी यानी आपत्तिजनक नारे लिखे पाए गए. ऑल्ट न्यूज़ के लिए इंद्रदीप भट्टाचार्य की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार, 11 नवंबर को, हॉस्टल में रहने वाले छात्र जब सोकर उठे तो उन्होंने लड़कों के हॉस्टल ‘सीवी रमन हॉल’ के मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर यह नफ़रती नारे लिखे देखे. इस हॉस्टल में ग्रेजुएशन और पोस्ट-ग्रेजुएशन के छात्र रहते हैं. प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस द्वारा 1931 में कोलकाता में स्थापित, आईएसआई देश के प्रमुख उच्च शिक्षा केंद्रों में से एक है और 1959 से ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ है. इसकी शाखाएं दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और तेजपुर में भी हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि हॉस्टल के प्रवेश द्वार के एक तरफ़ काले रंग से “कुत्ते को परिसर में प्रवेश नहीं करना चाहिए” शब्द कुछ सालों से लिखे हुए थे. किसी ने इसके ऊपर सफ़ेद चॉक से “मुसलमान और” शब्द जोड़ दिया, जिससे यह अब “मुसलमानों और कुत्तों को परिसर में प्रवेश नहीं करना चाहिए” बन गया. वहीं, दूसरी तरफ़ “नो मुस्लिम” और “नो मुस्लिम अलाउड” जैसे शब्द लिखे थे. हॉस्टल की दूसरी मंज़िल के उत्तर-पूर्वी कोने में रखे एक कूड़ेदान पर “मुसलमानों के लिए एकमात्र जगह” शब्द लिखे पाए गए. इतना ही नहीं, हॉस्टल के पूर्वी विंग की सीढ़ियों की रेलिंग पर “नो डॉग्स एंड मुस्लिम्स” शब्द लिखे गए थे और वॉशिंग मशीन के कमरे के दरवाज़े पर भी यही बात लिखी मिली.
यह घटना 10 नवंबर को दिल्ली में लाल क़िले के पास हुए एक विस्फोट के बाद हुई, जिसमें एक विस्फोटक से लदी निजी गाड़ी में धमाका हुआ था. शुरुआती जांच के अनुसार, गाड़ी को दक्षिण कश्मीर के पुलवामा के एक डॉक्टर उमर उन-नबी चला रहे थे, जो जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी मॉड्यूल का हिस्सा हो सकते हैं. ISI हॉस्टल के छात्रों ने Alt News को बताया कि यह ग्रैफ़िटी मंगलवार सुबह 6:30 से 7:30 बजे के बीच बनाई गई होगी. छात्रों ने इस मामले की शिकायत संस्थान प्रशासन से की. संस्थान की निदेशक संघमित्रा बंद्योपाध्याय ने सार्वजनिक रूप से इस कृत्य की निंदा की. छात्रों ने सीसीटीवी फुटेज की मांग की, जिसे प्रशासन ने देने से इनकार कर दिया, हालांकि मामले की जांच का वादा किया गया.
इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए, ISI कोलकाता के पूर्व छात्र और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने इसे एक प्रतिष्ठित संगठन के पतन का परेशान करने वाला संकेत बताया. एक अन्य पूर्व छात्र सृजन सेनगुप्ता ने भी इस पर गहरा सदमा और भयावहता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि समाज में चल रही विभाजनकारी बातें युवा और प्रतिभाशाली दिमागों में घुस रही हैं. बाद में, 13 नवंबर को, ISI ने एक बयान जारी कर इस घटना की “कड़े शब्दों में” निंदा की और कहा कि संस्थान “नफ़रत, भेदभाव या वैमनस्य को बढ़ावा देने वाली भाषा के इस्तेमाल” की कड़ी निंदा करता है और दोषियों के ख़िलाफ़ क़ानून के अनुसार सख़्त कार्रवाई करेगा.
असम में नौ और गिरफ्तारियां
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली धमाके के संबंध में कथित तौर पर आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट करने के आरोप में रातोंरात नौ और लोगों को असम में गिरफ्तार किया गया है. पहले हुई पांच गिरफ्तारियों के बाद, सरमा ने कहा था कि दिल्ली धमाके के संबंध में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए असम भर में 34 अन्य लोगों की पहचान की गई है.
बच्चा भी देख सकता है, ‘राजा नंगा है’
“साउथ फर्स्ट” में एन. वेणुगोपाल ने चुनाव आयोग की भूमिका पर गहरे सवाल उठाए हैं. वह लिखते हैं- तेलंगाना में जुबली हिल्स उपचुनाव समाप्त हो गया है. परिणाम 14 नवंबर को घोषित होंगे. इस समय, हमें यह विचार करना चाहिए कि यह चुनाव कैसे आयोजित हुआ, खासकर राजनीतिक भाषणों की प्रकृति और चुनावी प्रणाली में निहित अवैधताओं पर.
भारत के संसदीय चुनावों के साढ़े सात दशकों में, शायद ही कोई चुनाव कानूनी उल्लंघन के बिना हुआ हो. वर्तमान में, जुबली हिल्स उपचुनाव के दौरान प्रचारकों द्वारा दिए गए आपत्तिजनक और अवैध भाषणों पर विशेष रूप से ध्यान देना महत्वपूर्ण है.
भाजपा नेता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बंडी संजय ने 8 नवंबर को रहमतनगर में अपने उम्मीदवार एल दीपक रेड्डी के लिए प्रचार करते हुए, चुनाव को हिंदुओं और मुसलमानों के बीच युद्ध के रूप में चित्रित किया. उन्होंने सभी हिंदुओं से भाजपा को वोट देने का आग्रह किया.
यह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123(3) का स्पष्ट उल्लंघन है, जो धार्मिक आधार पर वोट मांगने पर रोक लगाती है. धारा 125 के तहत ऐसे “भ्रष्ट आचरण” के लिए तीन साल तक की जेल हो सकती है.
बंडी संजय के भाषण के कुछ अंश: उन्होंने चुनाव को ‘मोलताडु’ (हिंदुओं का प्रतीक) पहनने वालों और न पहनने वालों के बीच, बिंदी लगाने वालों और न लगाने वालों के बीच, चूड़ियां पहनने वालों और न पहनने वालों के बीच का मुकाबला बताया. उन्होंने कहा, “यदि आप दुर्गाम्मा या लक्ष्मम्मा नाम की बिंदी लगाते हैं, तो हमें वोट दें. कांग्रेस जुबली हिल्स को खान बेगम नगर में बदल देगी— हम इसे सीताराम नगर में बदल देंगे.” उन्होंने बीआरएस नेता केटी रामा राव पर “पाकिस्तान से चालीस हजार बुर्का लाने” का अपमानजनक आरोप लगाया और कहा, “यह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक युद्ध है. क्या 80 प्रतिशत हिंदू जीतेंगे, या 20 प्रतिशत तुर्क?”
उन्होंने दावा किया कि “भाजपा हिंदुओं के साथ खड़ी है... हम तेलंगाना को एक हिंदू राज्य में बदल देंगे. यदि कांग्रेस जीतती है, तो यह तेलंगाना को एक इस्लामिक राज्य में बदल देगी.” उन्होंने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर “वोट मांगने के लिए मुस्लिम टोपी पहनने” का आरोप लगाया, और दावा किया कि कांग्रेस/एमआईएम की जीत से पार्क कब्रिस्तान और ईदगाह में बदल जाएंगे. उन्होंने यहां तक कहा, “अन्य उम्मीदवारों से बीस हजार रुपये ले लो, लेकिन भाजपा उम्मीदवार को वोट दो!” यह धन के प्रलोभन के निषेध का सीधा उल्लंघन है.
चुनाव आयोग की चौंकाने वाली निष्क्रियता
इनमें से किसी भी टिप्पणी पर, केंद्रीय या राज्य चुनाव आयोग या जिला अधिकारियों द्वारा तुरंत कार्रवाई की जा सकती थी. लेकिन, किसी भी कार्रवाई की कमी यह दर्शाती है कि अधिकारी भ्रष्टाचार और अवैधता पर आँखें मूंद लेने के आदी हो गए हैं.
विरोधी दलों द्वारा औपचारिक शिकायतें दर्ज करने पर भी, अधिकारी तुरंत जवाब नहीं देते हैं या जांच शुरू नहीं करते हैं. शिकायतें अंतहीन निम्न-स्तरीय जांचों और रिपोर्ट-सीकिंग की प्रक्रिया में दफन हो जाती हैं.
केंद्रीय मंत्री द्वारा खुलेआम उल्लंघन करने और नियामक संस्थाओं के चुप रहने से वे अपराध में भागीदार बन जाते हैं. इस भाषण का प्रत्येक कथन अवैध, घृणित और भड़काऊ था, जिसे समुदायों के बीच दुश्मनी भड़काने के लिए डिज़ाइन किया गया था. तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बंडी संजय के खिलाफ धार्मिक आधार पर वोट मांगने और नफरत भड़काने की शिकायत दर्ज की, जिसका पूरा वीडियो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है. फिर भी, कानून जहां सख्त सजा का प्रावधान करता है, वहां आयोग ने हल्की फटकार भी जारी नहीं की.
मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी और विपक्षी नेता केटी रामा राव सहित अन्य नेताओं ने भी आपत्तिजनक और गैरकानूनी टिप्पणियां की हैं. बीआरएस ने मुख्यमंत्री पर फिल्म उद्योग श्रमिकों से वादे करके चुनाव संहिता का उल्लंघन करने की शिकायत दर्ज की थी, लेकिन उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
पिछले सात दशकों में— विशेष रूप से पिछले दो-तीन दशकों में — धन, शक्ति, धर्म और जाति के अहंकार ने चुनावी प्रक्रिया को विकृत कर दिया है. चुनाव आयोग — एक संवैधानिक संस्था जिसका उद्देश्य नियमन और दंडित करना है— भयानक गैर-जिम्मेदारी में डूब गया है.
यदि आयोग में ईमानदारी होती, तो उसे ये टिप्पणियां करने वाले सभी लोगों को अयोग्य घोषित करना होता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत दंड की मांग करनी होती.
आयोग अपनी पहल पर कार्रवाई करने में विफल रहा है, यहां तक कि शिकायतें दर्ज होने पर भी. ऐसा लगता है कि अधिकारी गांधी के सिद्धांत, “बुरा न देखो, बुरा न सुनो”, को शाब्दिक रूप से ले रहे हैं.
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, चुनाव की अखंडता सुनिश्चित करने के लिए जाति, धर्म या समुदाय के मतभेदों का शोषण करने के खिलाफ निषेध सूचीबद्ध करता है, लेकिन प्रचारक खुले तौर पर इसका उल्लंघन करते हैं, और आयोग कुछ नहीं करता है.
वास्तव में, चुनाव आयोग, जो पहले से ही अवैधता का अड्डा था, अब मोदी द्वारा उनकी व्यक्तिगत पॉकेट संस्था में बदल दिया गया है. इसकी गरिमा के अंतिम अवशेष छीन लिए गए हैं, जिससे यह पूरी तरह से उजागर हो गया है.
पुरानी कहानी की तरह, अब तो एक बच्चा भी देख सकता है कि “राजा नंगा है.”लेकिन हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी और विचारक — जो बोल और लिख सकते हैं — अभी भी इसे स्वीकार करने में विफल हैं. वे अभी भी भारत के संसदीय चुनावों की “पवित्रता”पर उपदेश देते रहते हैं!
बिहार चुनाव 2025:
2020 के नतीजों को समझने के लिए एक निश्चित गाइड
द वायर में पवन कोराडा की एक रिपोर्ट के अनुसार, जैसे ही 18वीं बिहार विधानसभा के लिए वोटों की गिनती शुरू होने वाली है, 2020 के चुनाव की सटीक समझ महत्वपूर्ण है. पांच साल पहले का जनादेश कोई साधारण जीत या हार नहीं था; यह एक जटिल परिणाम था जिसे एक उच्च असमानता सूचकांक (disproportionality index) द्वारा परिभाषित किया गया था, जहां लोकप्रिय इच्छा और अंतिम सीट संख्या के बीच एक बड़ा अंतर था.
2020 से सात प्रमुख जानकारियां और सबक़ यहां दिए गए हैं:
लोकप्रिय वोटों में बराबरी के बावजूद, बहुत कम अंतर वाली दर्जनों सीटों ने 15 सीटों की जीत में बदल दिया: 2020 का बिहार चुनाव हाल के इतिहास के सबसे करीबी नतीजों में से एक था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 125 सीटें जीतीं, जो 243 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के आंकड़े से सिर्फ़ तीन ज़्यादा थीं. विपक्षी महागठबंधन (एमजीबी) 110 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रहा. हालांकि, लोकप्रिय वोट लगभग बराबर थे: एनडीए को 37.26% और एमजीबी को 36.58% वोट मिले. वोट शेयर में इतनी कम बढ़त के बावजूद 15 सीटों का अंतर एक उच्च असमानता सूचकांक को दर्शाता है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) 75 सीटों और 23.11% वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि बीजेपी 74 सीटों और 19.46% वोट के साथ दूसरे स्थान पर रही. कुल 20 सीटें 1% से कम के अंतर से तय हुईं, और 11 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत का अंतर 1,000 वोटों से भी कम था. हिलसा में जीत का अंतर महज़ 12 वोटों का था.
उच्च महिला मतदान, खंडित मैदान और महत्वपूर्ण विरोध वोटों ने निर्णायक रूप से परिणाम को प्रभावित किया: कुल मतदान 57.29% रहा, जिसमें महिलाओं की भागीदारी (59.69%) पुरुषों (54.45%) से ज़्यादा थी. 213 पंजीकृत दलों और 3,976 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. 7 लाख से ज़्यादा मतदाताओं ने ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) का बटन दबाया, जो कुल वोटों का 1.68% था. भोरय और मटिहानी जैसी सीटों पर नोटा वोटों की संख्या जीत के अंतर से कहीं ज़्यादा थी.
बीजेपी की उच्च स्ट्राइक रेट ने एनडीए को बढ़त दी: एनडीए के भीतर, बीजेपी ने अपनी 110 सीटों में से 74 सीटें जीतकर 67.3% की शानदार स्ट्राइक रेट हासिल की. वहीं, जद(यू) ने 115 में से सिर्फ़ 43 सीटें जीतीं (37.4% स्ट्राइक रेट). एमजीबी में, आरजेडी ने 144 में से 75 सीटें (52.1% स्ट्राइक रेट) जीतीं, लेकिन कांग्रेस ने 70 में से केवल 19 सीटें (27.1% स्ट्राइक रेट) जीतकर गठबंधन को कमज़ोर कर दिया.
केंद्र सरकार के लिए उच्च अनुमोदन ने राज्य सरकार के प्रति गहरी असंतोष को दूर किया: सीएसडीएस सर्वेक्षण के अनुसार, मतदाताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे विकास (29%), बेरोज़गारी (20%) और महंगाई (11%) थे. राज्य की नीतीश कुमार सरकार से केवल 42% मतदाता संतुष्ट थे, जबकि 55% असंतुष्ट थे. इसके विपरीत, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को 69% संतुष्टि रेटिंग मिली.
मतदाताओं के अंतिम समय के झुकाव ने एनडीए को महिलाओं और एकजुट जाति ब्लॉकों का विजयी गठबंधन दिया: एनडीए ने उन मतदाताओं के बीच 11 अंकों की बढ़त हासिल की जिन्होंने मतदान के दिन ही अपना मन बनाया. पुरुषों ने एमजीबी को थोड़ी प्राथमिकता दी, लेकिन महिलाओं ने एनडीए का 7-पॉइंट के अंतर से समर्थन किया. एमजीबी को यादव (80%) और मुसलमानों (77%) का भारी समर्थन मिला, जबकि एनडीए को सवर्णों (63%), कुर्मी/कोइरी (52%) और अति पिछड़ा वर्ग (49%) का समर्थन मिला.
आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व में प्राथमिक बाधा मतदाता नहीं, बल्कि राजनीतिक दल हैं: लगभग 4,000 उम्मीदवारों में से केवल 370 महिलाएं थीं. विधानसभा में 217 पुरुषों की तुलना में केवल 26 महिलाएं जीतीं, जो दर्शाता है कि पार्टियां जीतने योग्य सीटों पर महिलाओं को नामांकित करने में विफल रहती हैं.
एनडीए ने अंतिम दो चरणों में हावी होकर पहले चरण के भारी घाटे को पार किया: एमजीबी ने पहले चरण में 67.6% सीटें जीतीं, लेकिन एनडीए ने दूसरे चरण में 52.1% और तीसरे चरण में 66.7% सीटें जीतकर वापसी की.
संक्षेप में, एनडीए की 2020 की जीत एक दक्षता की कहानी थी. बीजेपी के कुशल वोट वितरण और दर्जनों करीबी मुक़ाबलों में बढ़त ने लोकप्रिय वोटों में लगभग बराबरी को विधानसभा में एक स्पष्ट, यद्यपि संकीर्ण, बहुमत में बदल दिया.
जैसे ही नीतीश का असर फीका पड़ रहा है, बीजेपी इंतज़ार में है, लेकिन उसकी हिंदुत्व राजनीति उनकी मंडल वाली जगह नहीं भर सकती
द वायर के लिए अजय आशीर्वाद महाप्रशस्त लिखते हैं कि 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों में, पटना के बड़े पैमाने पर सवर्ण-वर्चस्व वाले न्यूज़रूम ने नीतीश कुमार को लालू प्रसाद यादव के सर्वश्रेष्ठ विकल्प के रूप में पेश किया था. लेकिन उनकी पार्टी तब संयुक्त बिहार में केवल सात सीटें ही जीत सकी. नीतीश ने समझा कि बिहार में सामाजिक न्याय के सबसे बड़े पैरोकारों में से एक का विकल्प बनने के लिए, उन्हें एक मज़बूत सामाजिक गठबंधन की ज़रूरत है. 2005 में, उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करके लालू को सत्ता से बेदख़ल कर दिया.
एक प्रभावी चुनौती के रूप में, नीतीश ने अपने परिवार को सत्ता से दूर रखा, शासन पर ध्यान केंद्रित किया, और वंचित समुदायों के नेताओं को सशक्त बनाया. अपने कार्यकाल के दौरान, नीतीश ने अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और महादलितों के अलग-अलग प्रशासनिक वर्ग बनाकर अपना एक जन आधार बनाया, जो एक साथ मिलकर सबसे बड़ा मतदाता समूह भी थे. इस एक क़दम से, नीतीश न केवल बिहार में ग़ैर-प्रमुख समुदायों के सबसे बड़े नेता के रूप में स्थापित हुए, बल्कि उन्होंने भाजपा पर भी बढ़त हासिल कर ली.
जिन सभी राज्यों में भाजपा सत्ता में है, बिहार में उसे मुसलमानों के ख़िलाफ़ पूरी तरह से आक्रामक होने की सबसे कम स्वतंत्रता है; इसका एकमात्र कारण नीतीश हैं. उन्होंने भले ही एनडीए में रहते हुए भाजपा नेताओं के सांप्रदायिक बयानों की अनदेखी की हो, लेकिन उन्होंने हिंदुत्व को उस बिंदु से आगे कभी नहीं बढ़ने दिया, जहां उनकी अपनी मंडल राजनीति प्रभावित हो. ठीक इसी वजह से, बिहार में लगभग 15-20% मुसलमान आज भी नीतीश को वोट देते हैं.
नीतीश के पास सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच वापसी करने और अपनी ज़मीन पर टिके रहने की अद्भुत क्षमता है. जब 1995 में उन्हें ख़ारिज कर दिया गया, तो उन्होंने एक स्थायी राजनीतिक फ़ॉर्मूला बनाया जिसने उन्हें बिहार में अपरिहार्य बना दिया. अब जब उन पर फिर से सवाल उठाए जा रहे हैं, तो सभी संकेत बताते हैं कि उन्होंने ज़मीन पर व्यापक सहानुभूति हासिल की है.
हालांकि, उनके गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए, उनकी पार्टी को निश्चित रूप से बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है. जद(यू) के वफ़ादार समर्थकों में यह चिंता है कि भाजपा के पास नीतीश को दरकिनार करने की योजना हो सकती है, जैसा कि उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनावों में किया था जब चिराग पासवान ने विशेष रूप से जद(यू) उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार उतारे थे. नीतीश अपनी पार्टी को वंशवादी होने से तो बचा पाए, लेकिन सत्ता को अपने हाथों में केंद्रित करने की कोशिश में, वह वर्षों से नया नेतृत्व विकसित करने में विफल रहे हैं.
जद(यू) में संकट भाजपा के लिए एक वरदान के रूप में आया है, जो एनडीए में सीटों का बेहतर हिस्सा हासिल करने में सफल रही है. 2025 में, दोनों पहली बार बराबर के भागीदार बन गए हैं, प्रत्येक के हिस्से में 101 सीटें हैं. साथ ही, भाजपा को उम्मीद हो सकती है कि नीतीश का वफ़ादार मतदाता आधार, जो एनडीए की व्यवस्था में स्वाभाविक हो गया है, नीतीश के समय के बाद राजद के बजाय उसकी ओर शिफ़्ट हो जाएगा. भाजपा बिहार में पूरा नियंत्रण हासिल करने से पहले अपने समय का इंतज़ार कर रही है. फिर भी, वह महसूस करती है कि जब तक नीतीश हैं, तब तक वह पानी से बाहर मछली की तरह रहेगी.
डॉ भागवत का नया प्रेस्क्रिप्शन, अगर हिंदू मांसाहार करते हुए मिलें तो नौकरी से निकाल दें
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भारतीय लोगों को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, इस बारे में उपदेश और सलाह देने का कोई अवसर नहीं चूकते. उनका नवीनतम उपदेश यह है कि “हिंदुओं को मांसाहार खाना बंद कर देना चाहिए और शाकाहार अपनाना चाहिए.” इसमें एक छोटी सी राहत यह है कि वह कम से कम यह स्वीकार करते हैं कि बहुसंख्यक हिंदू मांस खाते हैं और यह कोई विशिष्ट इस्लामी आदत नहीं है.
“द प्रिंट” के अनुसार, भागवत ने कहा, “शाकाहार को सरकारी नीतियों में भी पेश किया जाना चाहिए. लेकिन फिर हमें एक बहुत बड़ा बदलाव लाना होगा, क्योंकि हमारे समाज में, हिंदू समाज में, 72 प्रतिशत लोग मांस खाते हैं. रोज़ाना नहीं. और सावन के महीने में. वे पूरी तरह से मांस से परहेज करते हैं. गुरुवार को वे मांस नहीं खाते हैं. आम तौर पर वे बुधवार और रविवार को मांस खाते हैं. लेकिन वे मांस खाते हैं. इसलिए, यदि संभव हो, तो पहले हमें इसे ‘ठीक’ करना होगा.” “लेकिन इसे ‘ठीक’ कैसे किया जा सकता है? यदि वे मांस खाते हुए पाए जाते हैं तो उन्हें उनकी नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है, जैसा कि तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम ने अपने दो कर्मचारियों के साथ करने का फैसला किया,” आरएसएस प्रमुख ने कहा.
चीनी अतिक्रमणों का मुकाबला करने में असमर्थ रही मोदी सरकार, उसने सीमा पर चुपचाप बढ़त बना ली
“वाशिंगटन पोस्ट” में करिश्मा मेहरोत्रा भारत में चीन के विशेषज्ञों के हवाले से लिखती हैं कि मोदी सरकार पिछले पांच वर्षों में लद्दाख में चीनी क्षेत्रीय अतिक्रमणों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में असमर्थ रही है. अपने अन्य सहयोगियों के साथ करिश्मा इस रिपोर्ट में लिखती हैं- 2020 में, जब भारतीय और चीनी सैनिकों ने दोनों देशों की विवादित सीमा पर हिमालयी हवा में पत्थरों और कील लगी छड़ों से मारपीट की थी, तब भारत में राष्ट्रवादी आक्रोश फैल गया था. लोगों ने चीनी टेलीविजन तोड़ दिए और चीनी नेता शी जिनपिंग के पुतले जलाए. भारत सरकार ने दर्जनों चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया और कसम खाई कि जब तक सीमा मुद्दे हल नहीं हो जाते, तब तक वह अपने भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के साथ संबंध नहीं सुधारेगी. लेकिन, पांच साल बाद, भारत-चीन वाणिज्य फिर से शुरू हो गया है और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें भी फिर से शुरू हो गई हैं. चीन के तियानजिन में हाल ही में हुए एक शिखर सम्मेलन में, शी ने अपने भारतीय समकक्ष, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, और दोनों नेताओं ने संबंधों को मजबूत करने का संकल्प लिया, जिसमें भारतीय पक्ष ने “सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सद्भाव बनाए रखने” की प्रशंसा की.
हालांकि, नई दिल्ली में और उन खड़े पर्वतीय दर्रों के साथ जो दोनों देशों को विभाजित करते हैं, आलोचकों का एक समूह यह तर्क दे रहा है कि तनाव कम करने के लिए बनाए गए बफर ज़ोन ने, व्यवहार में, भारतीय सेना को उन क्षेत्रों में गश्त करने से असंतुलित रूप से प्रतिबंधित कर दिया है, जहां वे पहले नियमित रूप से पहुंचते थे. उनका आरोप है कि भारत की मौन सहमति से, चीन प्रभावी रूप से सीमा रेखाओं को अपने पक्ष में धकेलने में सक्षम रहा है.
सीमा के इन हिस्सों की देखरेख कर चुके एक सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, “बनाए गए कुछ बफर ज़ोन ज्यादातर उन क्षेत्रों में हैं जहां पहले हम गश्त करते थे और जो हमारी तरफ थे.” उन्होंने एक संवेदनशील विषय पर चर्चा करने के लिए नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमें अपने क्षेत्र को वापस पाने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन निकट भविष्य में, यह एक हवाई सपना है.”
बदलती सीमा रेखाओं के बारे में पूर्व सैन्य अधिकारियों और राजदूतों के साथ-साथ संसद के मौजूदा सदस्यों और सीमा पर रहने वालों की चेतावनी अधिक मुखर और लगातार हो गई है. दावों को साबित करना मुश्किल है, क्योंकि विदेशी पत्रकारों को उस क्षेत्र तक पहुंचने की अनुमति नहीं है. लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि ये आलोचनाएं भारतीय सरकार के लिए एक चुनौती पेश करती हैं, क्योंकि वह बीजिंग के साथ संबंधों को सुधार रही है और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चल रहे राजनयिक विवाद के बीच अपने वैश्विक संबंधों को फिर से संतुलित करने की कोशिश कर रही है. शिव नाडर विश्वविद्यालय में चीनी विदेश नीति पढ़ाने वाले एक एसोसिएट प्रोफेसर जाबिन जैकब ने कहा कि चीनी रणनीति “दो कदम आगे, एक कदम पीछे” है. उन्होंने कहा, “फिर भी एक कदम उनके कब्जे में रहता है.”
पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के जिक्र के साथ रिपोर्ट में लिखा है कि वांगचुक के कुछ समर्थकों का मानना है कि उन्हें आंशिक रूप से इसलिए निशाना बनाया गया, क्योंकि वह चरागाहों के नुकसान और सीमा के साथ चीनी अतिक्रमण के बारे में खुलकर बोलते रहे हैं. उनकी पत्नी, गीतांजलि जे. आंगमो ने कहा, “यह सरकारी बयानों के अनुरूप नहीं था कि चीन हमारी ज़मीन नहीं ले रहा है. सोनम को लंबे समय से जिस बात का डर रहा है, वह यह है कि हम एक सीमावर्ती राज्य होने के नाते, लद्दाखी लोगों की मांगों को पूरा न करने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं, जिन्होंने अब तक भारत के प्रति प्रेम और जुनून दिखाया है.” पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं.
अकोला दंगे: हिंदू-मुस्लिम अधिकारियों की एसआईटी बनाने के आदेश पर रोक
सुप्रीम कोर्ट के तीन-न्यायाधीशों की एक और बेंच, जिसका नेतृत्व सीजेआई बी.आर. गवई ने किया, ने एक डिवीजन बेंच के सितंबर के आदेश के उस हिस्से पर रोक लगा दी, जिसने महाराष्ट्र सरकार को हिंदू और मुस्लिम दोनों पुलिस अधिकारियों के बराबर संख्या वाले एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का निर्देश दिया था, ताकि 2023 के व्यापक अकोला दंगों के एक हिस्से की जांच की जा सके. “द हिंदू” में कृष्णदास राजगोपाल के अनुसार, राज्य सरकार ने तर्क दिया कि आपत्तिजनक आदेश ‘संस्थागत धर्मनिरपेक्षता’ का उल्लंघन करता है और ‘लोक सेवकों की ओर से सांप्रदायिक पूर्वाग्रह को पूर्व-निर्णित’ करता है. यह मामला एक युवा मुस्लिम व्यक्ति की शिकायत से संबंधित है, जिसने दंगों के दौरान एक ऑटो चालक की हत्या देखी थी – कथित तौर पर क्योंकि उसे गलती से मुस्लिम मान लिया गया था – और जिसने आरोप लगाया था कि हमलावरों ने उसे भी मारा था.
‘बंगाल में एसआईआर का मतलब एनआरसी है’: मतदाता सूची संशोधन ने क्यों फैलाई है दहशत
स्क्रोल के लिए रोकिबुज़ ज़मान की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल के कूचबिहार और बांग्लादेश के सीमावर्ती सैकड़ों गांवों में से एक, जीतपुर प्रथम खंड में इन दिनों मातम पसरा हुआ है. तीन दिन पहले, गांव के 63 वर्षीय किसान खैरुल शेख ने कीटनाशक पीकर अपनी जान देने की कोशिश की थी. उनके पड़ोसियों के अनुसार, उन्हें डर था कि चुनाव आयोग, जो राज्य की मतदाता सूची का विशेष गहन संशोधन (SIR) कर रहा है, एक वर्तनी की ग़लती के कारण उनका नाम मतदाता सूची से काट देगा. उनके नाम खैरुल शेख की जगह 2002 की सूची में ‘खोइरुल’ शेख लिखा हुआ था.
2002 की मतदाता सूची पश्चिम बंगाल में किए जा रहे SIR का आधार बनेगी. शेख के गांव में, अन्य निवासी भी उनकी चिंता साझा करते हैं. स्क्रॉल ने जब कूचबिहार के सीमावर्ती इलाक़ों का दौरा किया, तो पाया कि निवासी घबराहट की स्थिति में हैं क्योंकि मतदाता सूची से बाहर होने को नागरिकता खोने की दिशा में एक क़दम के रूप में देखा जा रहा है. कूचबिहार से एक घंटे की दूरी पर स्थित चिलखाना गांव के 45 वर्षीय निर्माण मज़दूर अब्दुल सबूर ने कहा, “असम में इसे एनआरसी कहा जाता था. यहां यह एसआईआर है. मुख्य उद्देश्य मुसलमानों को ढूंढना और हमें अयोग्य बनाना है.”
ममता बनर्जी सरकार ने सार्वजनिक रूप से सूची के संशोधन का विरोध किया है. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के अनुसार, 17 लोगों ने आत्महत्या कर ली है क्योंकि वे “एसआईआर प्रक्रिया के तहत उत्पीड़न से भयभीत थे.” बनर्जी ने कहा, “हम बंगाल में एनआरसी को लागू नहीं होने देंगे - न तो सामने के दरवाज़े से, न ही पीछे के दरवाज़े से. हम एक भी वैध नागरिक को ‘बाहरी’ का ठप्पा नहीं लगने देंगे.”
सीमावर्ती गांवों के मुस्लिम निवासियों ने बताया कि उन्होंने भूमि रिकॉर्ड या दस्तावेज़ एकत्र किए हैं, लेकिन दस्तावेज़ होने के बावजूद उनका डर कम नहीं हुआ है. खैरुल शेख के गांव के 40 वर्षीय किसान अब्दुल लतीफ़ ने कहा कि भाजपा नेताओं की टिप्पणियों ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि एसआईआर ज़्यादातर मुसलमानों को बाहर करने के लिए बनाया गया है.
इस बीच, कूचबिहार में भारतीय जनता पार्टी के नेता हिंदुओं के डर को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं. तुफानगंज की भाजपा विधायक मालती राव रॉय ने स्क्रॉल को बताया, “जिन हिंदुओं का नाम 2002 की मतदाता सूची में नहीं है, उन्हें चिंता करने की कोई बात नहीं है क्योंकि उन्हें सीएए के माध्यम से नागरिकता दी जाएगी.”
विशेष गहन संशोधन का समर्थन करने वाला एक समूह राजबंशी हैं, जो एक जातीय समूह है जो ऐतिहासिक रूप से उत्तरी बंगाल में रहा है. वे वर्षों से नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध कर रहे हैं और बंगाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को लागू करने की मांग कर रहे हैं. ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन के महासचिव बंशी बदन बर्मन ने कहा, “यदि 1971 को कट-ऑफ़ तारीख़ मानकर एनआरसी तैयार नहीं किया गया, तो भूमि के पुत्र अल्पसंख्यक हो जाएंगे.” उन्होंने धर्म की परवाह किए बिना अवैध प्रवासियों की पहचान करने का आह्वान किया.
केंद्र सरकार पीपीपी मोड पर देश भर में 100 सैनिक स्कूल स्थापित करेगी: अमित शाह
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मोड पर देश भर में 100 सैनिक स्कूल स्थापित करने का फ़ैसला किया है. द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, श्री मोतीभाई आर चौधरी सागर सैनिक स्कूल (MRCSSS) और सागर ऑर्गेनिक प्लांट के उद्घाटन समारोह में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बोलते हुए, उन्होंने कहा कि ये स्कूल गुजरात के कई ज़िलों के बच्चों के लिए सशस्त्र बलों में सेवा करने का मार्ग खोलेंगे.
एक सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि श्री मोतीभाई आर चौधरी सागर सैनिक स्कूल (MRCSSS) 50 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है और यह स्मार्ट क्लासरूम, हॉस्टल, एक पुस्तकालय और एक कैंटीन जैसी सुविधाओं से लैस है. विज्ञप्ति में शाह के हवाले से कहा गया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, केंद्र ने पीपीपी मॉडल के तहत देश भर में 100 नए सैनिक स्कूल स्थापित करने का फ़ैसला किया है. इनमें से मोतीभाई चौधरी सैनिक स्कूल निश्चित रूप से मेहसाणा के लिए गौरव का प्रतीक बनेगा.”
उन्होंने यह भी कहा कि सागर ऑर्गेनिक प्लांट यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि अमूल ब्रांड के तहत विश्वसनीय जैविक उत्पाद देश और दुनिया भर में पहुंचें, और जैविक खेती में लगे सभी किसानों को उचित मुनाफ़ा मिले. शाह ने कहा, “लगभग 30 मीट्रिक टन की दैनिक क्षमता वाला यह प्लांट, राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) और कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) द्वारा प्रमाणित है. APEDA प्रमाणीकरण के कारण, उत्तरी गुजरात में प्राकृतिक खेती में लगे किसानों को बहुत लाभ होगा क्योंकि उनकी उपज वैश्विक बाज़ारों तक पहुंच सकती है.”
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि इस जैविक प्लांट के विस्तार से न केवल देश भर के नागरिकों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, बल्कि जैविक खेती में शामिल किसानों की आय भी बढ़ेगी. उन्होंने जैविक खेती में लगे सभी किसानों और उनके परिवारों से स्वस्थ रहने के लिए जैविक उत्पादों का उपयोग करने का आग्रह किया.
अमित शाह ने दूधसागर डेयरी की प्रगति पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, “1960 में, दूधसागर डेयरी प्रतिदिन 3,300 लीटर दूध एकत्र करती थी, जो अब बढ़कर 35 लाख लीटर प्रतिदिन हो गई है. यह डेयरी गुजरात के 1,250 गांवों के पशुपालकों और राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के 10 लाख से अधिक दूध उत्पादक समूहों से जुड़ी हुई है.” उन्होंने आगे कहा, “इसका टर्नओवर 8,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. आठ आधुनिक डेयरियों, दो मिल्क चिलिंग सेंटरों, दो पशु चारा संयंत्रों और एक सीमेंट उत्पादन इकाई के साथ, दूधसागर डेयरी आज गुजरात की श्वेत क्रांति में एक प्रमुख भूमिका निभा रही है.”
शाह ने कहा कि इस डेयरी की सर्कुलर इकोनॉमी (चक्रीय अर्थव्यवस्था) को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गई हैं, जिसमें देश भर में 75,000 नई प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों का गठन शामिल है. उन्होंने यह भी बताया कि अमूल के कुल टर्नओवर का 70 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं के योगदान से आता है. गुजरात में बेमौसम भारी बारिश से प्रभावित किसानों की मदद के लिए भूपेंद्र पटेल सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज की सराहना करते हुए शाह ने कहा, “गुजरात सरकार ने संकल्प लिया है कि वह किसानों की मदद करने से पीछे नहीं हटेगी.”
चुनाव आयोग ने दिल्ली में लोकसभा चुनाव की सीसीटीवी फुटेज नष्ट कर दी
चुनाव आयोग ने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव प्रक्रिया की सीसीटीवी फुटेज नष्ट कर दी गई है. आयोग ने हाईकोर्ट को यह जानकारी वकील महमूद प्राचा की एक याचिका के जवाब में दी है. “लाइव लॉ” के मुताबिक, प्राचा ने अपनी याचिका में फुटेज को संरक्षित रखने की मांग तो की थी, लेकिन चुनाव आयोग के 30 मई के उस निर्देश को चुनौती नहीं दी थी, जिसमें चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद याचिका दायर होने तक सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित रखने की समय सीमा को 45 दिनों तक कम कर दिया गया था. इसलिए न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने फैसला सुनाया कि इस आवेदन में अदालत द्वारा इस समय कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता. प्राचा ने अदालत में यह भी आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग ने अपने 30 मई के निर्देश “केवल याचिकाकर्ता द्वारा दायर वर्तमान रिट याचिका को हराने और सबूत नष्ट करने के लिए” जारी किए थे.
बीजेपी को बीएलए नहीं मिल रहे, इसलिए चुनाव आयोग ने नियम बदला
तृणमूल कांग्रेस के अनुसार, चुनाव आयोग ने “रातोंरात” इस आवश्यकता को संशोधित कर दिया है कि एक बूथ-स्तरीय एजेंट (बीएलए) को उसी बूथ का होना चाहिए, जिसका दायित्व उसे सौंपा गया है. लेकिन, अब आयोग ने इसमें संशोधन कर दिया है और कहा है कि उसी विधानसभा क्षेत्र के किसी भी बूथ का कोई भी व्यक्ति चलेगा. पार्टी ने “एक्स” पर कहा, “यह बदलाव क्यों? क्योंकि भाजपा को बंगाल में हर बूथ पर एजेंट भी नहीं मिल रहे हैं. ‘दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी’ को लोगों पर भरोसा नहीं है, इसलिए चुनाव आयोग उन्हें जीवनदान देने के लिए नियमों को बदल रहा है. चुनाव आयोग का मुखौटा उतर गया है. सवाल है कि आयोग की ईमानदारी अभी और कितनी बिकना शेष है?” उल्लेखनीय है कि बीएलए मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि होते हैं, जो मतदाता सूची के पुनरीक्षण के काम में मदद करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘आधार’ को पहचान का प्रमाण मानता है पीआर एक्ट
“लाइव लॉ” की रिपोर्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दूसरे चरण को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से इस बात को दोहराया है कि मतदाता सूची में शामिल होने वाले लोगों द्वारा पहचान के प्रमाण के रूप में आधार का उपयोग वास्तव में किया जा सकता है. हालांकि, याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की मांग है कि राष्ट्रव्यापी एसआईआर के साथ-साथ बिहार में एसआईआर के दौरान ‘आधार’ को पहचान के प्रमाण के रूप में अनुमति देने वाला शीर्ष अदालत का पिछला आदेश वापस लिया जाना चाहिए. उपाध्याय ने यूआईडीएआई अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि एक सरकारी अधिसूचना, प्राथमिक कानून यानी लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, को रद्द नहीं करती है. यह कानून ‘आधार’ को पहचान के प्रमाण के रूप में उपयोग करने की अनुमति देता है.
ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेपी इंफ़्राटेक के पूर्व सीएमडी को गिरफ़्तार किया
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गुरुवार को जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी और जेपी इंफ़्राटेक लिमिटेड (जेआईएल) के पूर्व अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक मनोज गौड़ को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में गिरफ़्तार कर लिया है. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, ईडी जेपी समूह के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज कई मामलों के आधार पर जांच कर रही है.
यह मामले जेपी विशटाउन और जेपी ग्रीन्स परियोजनाओं में घर ख़रीदारों द्वारा दायर शिकायतों के बाद दर्ज किए गए थे. उन्होंने कंपनी और उसके प्रमोटरों पर आपराधिक साज़िश, धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का आरोप लगाया है. ईडी ने कहा, “यह आरोप लगाया गया है कि आवासीय परियोजनाओं के निर्माण और उन्हें पूरा करने के लिए हज़ारों घर ख़रीदारों से एकत्र किए गए धन को निर्माण के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए डायवर्ट किया गया, जिससे घर ख़रीदार ठगे गए और उनकी परियोजनाएं अधूरी रह गईं.”
ईडी ने आरोप लगाया कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल द्वारा स्वीकार किए गए दावों के अनुसार, जेएएल और जेआईएल द्वारा घर ख़रीदारों से एकत्र किए गए लगभग ₹14,599 करोड़ में से, बड़ी रक़म को ग़ैर-निर्माण उद्देश्यों के लिए डायवर्ट किया गया और संबंधित समूह संस्थाओं और ट्रस्टों में भेज दिया गया. इनमें जयपी सेवा संस्थान (जेएसएस), जयपी हेल्थकेयर लिमिटेड (जेएचएल), और जयपी स्पोर्ट्स इंटरनेशनल लिमिटेड (जेएसआईएल) शामिल हैं. गौड़ कथित तौर पर जेएसएस के प्रबंध ट्रस्टी हैं, जिसे “डायवर्ट किए गए धन का एक हिस्सा मिला”. इससे पहले, 23 मई, 2025 को ईडी ने दिल्ली, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद और मुंबई में 15 स्थानों पर तलाशी ली थी, जिसमें जेएएल और जेआईएल के कार्यालय और परिसर शामिल थे.
एजेंसी ने कहा, “जांच ने जेपी समूह और उससे जुड़ी संस्थाओं के भीतर लेन-देन के एक जटिल जाल के माध्यम से धन के डायवर्जन की योजना और उसे अंजाम देने में मनोज गौड़ की केंद्रीय भूमिका स्थापित की है.”
विश्लेषण
सुशांत सिंह: ममदानी की जीत पर मोदी की ख़ामोशी से पता चलता है कि हिंदुत्व समर्थक किस बात से डरते हैं
रक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ और येल विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे सुशांत सिंह का यह विश्लेषण कैरेवन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. उसके अंश.
जून में न्यूयॉर्क सिटी के मेयर बनने की दौड़ में डेमोक्रेटिक प्राइमरी में ज़ोहरान ममदानी की ऐतिहासिक जीत के कुछ घंटों बाद ही, अभिनेत्री और भारतीय जनता पार्टी की सांसद कंगना रनौत ने सोशल मीडिया पर उन पर हमला किया. उन्होंने ज़ोहरान के ढहाई गई बाबरी मस्जिद के ऊपर राम मंदिर के निर्माण के विरोध में प्रदर्शन करते हुए का पहले का एक क्लिप दोबारा शेयर किया, और घोषणा की कि वह “हिंदू धर्म को मिटाने के लिए तैयार” हैं. रनौत ने बताया कि यह इस बात के बावजूद है कि उनकी मां मीरा नायर हैं—एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता जो “महान भारत में पली-बढ़ीं” और जिन्हें पद्म भूषण मिला—और उनके पिता प्रमुख उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांतकार महमूद ममदानी हैं—”गुजराती मूल” के. “और ज़ाहिर है बेटे का नाम ज़ोहरान है,” रनौत ने लिखा, “वह भारतीय से ज़्यादा पाकिस्तानी लगते हैं.”
रनौत के इस एक बयान ने आज भारत में हिंदू दक्षिणपंथ की रणनीति को उजागर कर दिया. ज़ोहरान को तुरंत भारत-विरोधी और ख़तरनाक क्यों माना गया? वह मुसलमान हैं, एक सीरियाई-अमेरिकी से विवाहित हैं, और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुसंख्यकवादी परियोजना के सामने झुकने से इनकार कर दिया.
भारत के दक्षिणपंथी पारिस्थितिकी तंत्र से अब ज़ोहरान पर जो ग़ुस्सा आ रहा है, वह 34 वर्षीय लोकतांत्रिक समाजवादी के बारे में कम बताता है जिन्होंने अभी-अभी अमेरिका के सबसे अधिक आबादी वाले शहर की कमान संभाली है, और मोदी सरकार के बारे में ज़्यादा बताता है. यह हिंदुत्व के केंद्र में वैचारिक कमज़ोरी को उजागर करता है—एक ऐसा आंदोलन जो भारत के अपने विज़न में इतना असुरक्षित है कि वह प्रवासी सफलता की कहानियों को भी बर्दाश्त नहीं कर सकता जो उसकी संकीर्ण पटकथा से बाहर हों. आपकी भारतीय वंशावली का जश्न तभी मनाया जा सकता है जब आप मोदी के सामने झुकें, हिंदुत्व को अपनाएं, और अयोध्या 1992 या गुजरात 2002 पर ख़ामोश रहें.
ज़ोहरान ममदानी की ऐतिहासिक जीत पर मोदी की सोची-समझी ख़ामोशी भी बहुत कुछ कहती है. प्रधानमंत्री की आमतौर पर अति सक्रिय सोशल मीडिया उपस्थिति से कोई बधाई संदेश नहीं आया है. यह आकस्मिक नहीं बल्कि रणनीतिक है. ज़ोहरान हर उस चीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसके अस्तित्व को हिंदू दक्षिणपंथ ने दशकों से नकारने की कोशिश की है.
चलिए उनकी राजनीति से शुरू करते हैं. ज़ोहरान अपने लोकतांत्रिक समाजवादी एजेंडे के बारे में बेबाक हैं: उन्होंने किराए रोकने, सार्वभौमिक बाल देखभाल प्रदान करने, बसों को मुफ़्त बनाने और अमीरों पर कर बढ़ाने का अभियान चलाया है. यह सीधे तौर पर क्रोनी कैपिटलिज़्म के विपरीत है, जो भारत में मोदी के आर्थिक मॉडल का सबसे अच्छा वर्णन है. जबकि ज़ोहरान सार्वजनिक वस्तुओं और पुनर्वितरण की वकालत करते हैं, मोदी ने गुजरात के दो व्यापारियों, गौतम अदानी और मुकेश अंबानी को देश के पूंजी खर्च के एक चौथाई हिस्से को नियंत्रित करने दिया है.
मोदी का आर्थिक विज़न मेगाप्रोजेक्ट्स और बड़े व्यवसाय को रियायतों के इर्द-गिर्द घूमता है, जबकि छोटे और मध्यम उद्यम कमज़ोर पड़ रहे हैं. इसके विपरीत, ज़ोहरान का मंच काम करने वाले लोगों के लिए जीवन को किफ़ायती बनाने और उन युवाओं को संगठित करने पर केंद्रित है जिन्हें अपने ही शहर से बाहर कर दिया गया है. उनकी ताज़ा ऊर्जा मोदी की थकी हुई नीतियों के विपरीत है—अरबपतियों की सेवा करना जो वैश्विक रूढ़िवादी सम्मेलनों में भाग लेते हैं—जिनके पास दिखाने के लिए बहुत कम है.
वैचारिक खाई और गहरी है. ज़ोहरान एक प्रतिष्ठान-विरोधी उम्मीदवार हैं जिन्होंने पूंजीवादी दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण शहर में राजनीतिक शक्तियों को उखाड़ फेंका. मोदी ने सत्ता को केंद्रीकृत किया है, संघीय संस्थानों को कमज़ोर किया है, और धर्म और राज्य के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया है. उनके तहत हिंदू दक्षिणपंथ सभी भारतीयों के लिए बोलने का दावा करता है, जबकि वास्तव में सभी हिंदुओं का मतलब है. “लोगों” का प्रतिनिधित्व करने का उनका लोकलुभावन दावा हिंदू बहुसंख्यकवादी राजनीति का कोड है जो—वी.डी. सावरकर और गोलवलकर के लेखन के अनुरूप—मुसलमानों और ईसाइयों को दोयम दर्जे की नागरिकता में धकेलता है.
फ़िलिस्तीन पर ज़ोहरान की प्रगतिशील राजनीति, ग़ाज़ा में इज़रायल के नरसंहार की उनकी आलोचना, और 2023 में मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा का विरोध करने वाले एक कार्यक्रम में जेल में बंद विद्वान उमर ख़ालिद की जेल डायरी पढ़ना—ये सभी एक ऐसे युवा को प्रकट करते हैं जो सत्ता के ख़िलाफ़ सिद्धांतवादी रुख़ अपनाने में सहज हैं. उन्होंने मोदी को 2002 के गुजरात नरसंहार के लिए—जिसमें एक हज़ार से अधिक मुसलमान मारे गए थे—”युद्ध अपराधी” कहा और उनकी तुलना इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से की, जो मोदी के मित्र हैं और पिछले साल इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट द्वारा आरोपित युद्ध अपराधी हैं.
लेकिन हिंदुत्व प्रतिष्ठान के नज़रिए से ज़ोहरान ममदानी के बारे में सबसे अक्षम्य बात उनकी मुस्लिम पहचान है. वह सिर्फ़ कोई मुसलमान नहीं हैं, बल्कि एक गुजराती मुसलमान हैं. गुजरात. हिंदुत्व प्रतिष्ठान ने दो दशकों से गुजरात के मुसलमानों और उनकी पीड़ा की स्मृति को मिटाने की कोशिश की है, या तो इसे ख़ामोशी में दबाकर या यह सुझाव देकर कि वे अपने भाग्य के हक़दार थे. ज़ोहरान का अस्तित्व, उनकी सफलता और उनकी गुजराती मुस्लिम विरासत का आत्मविश्वास से भरा दावा उस कथा को ध्वस्त कर देता है. यह वह मुसलमान नहीं है जिसे हिंदू दक्षिणपंथ भारत का या भारतीयों के एक महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हुए देखना चाहता है.
ज़ोहरान अपने विश्वास को छिपाते नहीं हैं या राजनीतिक सुविधा के लिए इसे कम नहीं करते हैं. वह एक शिया मुसलमान हैं और गर्व से. उनका मध्य नाम—क्वामे—क्वामे नक्रूमा के सम्मान में है, जो अफ़्रीकी-पैन नेता थे. उनके पिता, महमूद, ने सत्तावादी शासनों द्वारा पहचान की राजनीति के निंदनीय उपयोग के बारे में बहुत कुछ लिखा है. उनकी मां, मीरा नायर, एक फ़िल्म निर्माता हैं जिनका काम प्रवास, प्रवासी और अपनापन की खोज करता है. ज़ोहरान ने रमा दुवाजी से शादी की, जो दमिश्क़ के सीरियाई मुस्लिम माता-पिता से पैदा हुईं. उनका एक आधुनिक, बहु-धार्मिक परिवार है जो प्रगतिशील मूल्यों में निहित है—बिल्कुल वैसा जैसा हिंदू दक्षिणपंथ को अवैध ठहराना चाहता है.
ऋषि सुनक के साथ तुलना करें. मोदी के समर्थकों ने उत्साहपूर्वक सुनक के यूके प्रधानमंत्री के रूप में आरोहण का जश्न मनाया, क्योंकि वह अपनी हिंदू पहचान को प्रमुखता से बनाए रखते हैं. लेकिन ज़ोहरान को ऐसा कोई स्वागत नहीं मिला. जब उषा वांस और उनके बच्चे और पति, अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस, “काफ़ी हद तक व्यक्तिगत” यात्रा पर भारत आए, तो मोदी ने उन्हें आधिकारिक रूप से स्वागत करने के लिए रास्ते से हटकर प्रयास किया. लेकिन ज़ोहरान ममदानी? कुछ नहीं. कोई ट्वीट नहीं. दिल्ली में, “आधिकारिक सूत्रों” ने कुछ पत्रकारों को बताया कि यह संयुक्त राज्य अमेरिका का एक आंतरिक मामला था और इसलिए किसी आधिकारिक टिप्पणी के योग्य नहीं था. ज़ोहरान को स्वीकार करने का मतलब एक भारतीय विरासत को स्वीकार करना हो सकता है जिसे मोदी दफ़नाने की कोशिश कर रहे हैं.
हिंदू दक्षिणपंथ बहुत पसंद करेगा कि मुसलमानों को तालिबान के साथ पहचाना जाए—जिनके नेताओं का मोदी सरकार ने हाल ही में नई दिल्ली में लाल कालीन स्वागत किया—बजाय ज़ोहरान ममदानी जैसे किसी के साथ. अफ़ग़ान विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी की देवबंद सेमिनरी की यात्रा की मुख्यधारा की मीडिया कवरेज को मुसलमानों, विशेष रूप से भारतीय मुसलमानों की एक विशेष छवि देने के लिए हथियार बनाया गया था, जैसे कि उनके वैचारिक प्रभाव पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के साथ समान हैं. इस अर्थ में, ज़ोहरान की सफलता भी मुख्य हिंदुत्व कथा को कमज़ोर करती है कि मुसलमान पिछड़े, हिंसक और आधुनिकता के साथ असंगत हैं. वह एक वैकल्पिक राजनीतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी आदर्शों में निहित है, जिसे मोदी ने एक दशक से ध्वस्त करने की कोशिश की है.
दोनों के बीच पीढ़ीगत अंतर ख़तरे को बढ़ा देता है. 34 साल की उम्र में, ज़ोहरान ममदानी एक ऐसे भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं जो 75 वर्षीय मोदी और उनके बुढ़ाते वैचारिक तंत्र को डराता है. ज़ोहरान का अभियान युवा मतदाताओं द्वारा प्रेरित किया गया था, जिसमें 18 से 29 वर्ष की आयु के 78 प्रतिशत लोगों ने उनका समर्थन किया. सोशल मीडिया के साथ उनका आराम, उनके बॉलीवुड-प्रभावित अभियान वीडियो, हिंदी, अरबी, स्पैनिश, बांग्ला और अंग्रेज़ी के बीच कोड-स्विच करने की उनकी क्षमता, ये सभी उन्हें एक ऐसी पीढ़ी के हिस्से के रूप में चिह्नित करते हैं जो पहचान को कठोर और बहिष्कारवादी के बजाय तरल और अंतर्विभागीय के रूप में देखती है.
हिंदुत्व लोकलुभावनवाद इस दावे पर टिका है कि यह सभी भारतीयों के लिए बोलता है. लेकिन उनका मतलब है कि भारत हिंदू के बराबर है, और हिंदू उच्च-जाति ब्राह्मणवादी संस्कृति के उनके संस्करण के बराबर है. यही भारत है जिस पर मोदी शासन करते हैं—कोई लोकतंत्र नहीं बल्कि एक बहुसंख्यकवादी राज्य जहां बहुलवाद को कमज़ोरी के रूप में और असहमति को विश्वासघात के रूप में माना जाता है. ज़ोहरान की सफलता इस झूठ को उजागर करती है. वह भारतीय मतदाताओं को—या कम से कम उनमें से एक महत्वपूर्ण संख्या को—संकेत देते हैं कि युवा, प्रगतिशील, अंतर-धार्मिक, प्रतिष्ठान-विरोधी होना और मुस्लिम पहचान को सामने लाने से डरना नहीं, का स्वागत है.
ज़ोहरान की जीत की भारतीय मीडिया कवरेज ने तुच्छीकरण के माध्यम से इन चिंताओं को झुठलाया. ध्यान उनकी मां की फ़िल्मों पर, उनकी जीत की रैली में बजने वाले बॉलीवुड गीत पर, हिंदी में उनकी प्रवाहता पर और अमिताभ बच्चन के उनके संदर्भों पर था. ये सुरक्षित कथाएं हैं, जो मीडिया को भारतीय मूल के व्यक्ति की सफलता की कहानी में हिस्सा लेने की अनुमति देती हैं, बिना उस सार का सामना किए जिसके लिए वह खड़े हैं. मोदी की उनकी आलोचना के साथ मुश्किल से कोई गंभीर जुड़ाव था. इस बात का कोई हिसाब नहीं कि भारतीय मूल का एक युवा भारत के प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करने से क्यों इनकार करेगा. अपनी जीत के भाषण में जवाहरलाल नेहरू को उद्धृत करने के राजनीतिक अर्थ के बारे में कोई जिज्ञासा नहीं, आधी रात के समय का आह्वान करते हुए जब भारत “पुराने से नए की ओर” क़दम रख रहा था. यह स्पिन आज की भारतीय मीडिया की विशेषता है—यह राजनीतिक जटिलताओं को सरलीकृत पहचान चिह्नों और सांस्कृतिक तुच्छताओं में कम कर देती है.
किसी भी प्रमुख भारतीय समाचार मंच ने नहीं पूछा कि मोदी ने ज़ोहरान को बधाई क्यों नहीं दी है. उस सवाल का जवाब एक ऐसे हिसाब को मजबूर कर सकता है कि उनके भारत के विज़न में एक ज़ोहरान ममदानी के लिए कोई जगह नहीं है. वह जिस “नए भारत” का वादा करते हैं, वह वास्तव में धार्मिक विभाजन और सामाजिक बहिष्करण का एक पुराना, औपनिवेशिक भारत है.
ज़ोहरान की जीत हिंदू दक्षिणपंथ को डराती है क्योंकि यह साबित करती है कि उनका विश्वदृष्टिकोण न तो अपरिहार्य है और न ही सार्वभौमिक है. यह दिखाता है कि भारतीय विरासत का एक युवा वैश्विक मंच पर शानदार तरीक़े से सफल हो सकता है, जबकि एक प्रगतिशील राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ा रहा है, मुस्लिम पहचान का जश्न मना रहा है और हाशिए पर पड़े लोगों की वकालत कर रहा है. हिंदुत्व परियोजना के लिए आवश्यक है कि भारतीय मुसलमान हाशिए पर रहें, कि प्रगतिशील राजनीति को राष्ट्र-विरोधी के रूप में खारिज किया जाए, कि जो कोई भी मोदी के अधिकार को चुनौती देता है उसे देशद्रोही करार दिया जाए.
मोदी की ख़ामोशी कुछ नया नहीं है—हम जानते हैं कि उनका भारत सबके लिए नहीं है. यह उन लोगों के लिए है जो हिंदू सर्वोच्चता को स्वीकार करते हैं, क्रोनी कैपिटलिज़्म पर सवाल नहीं उठाते हैं, और सामाजिक अन्याय पर ख़ामोश रहते हैं. ज़ोहरान ममदानी ने दुनिया को भारत का एक अलग पक्ष दिखाया है, बस वह होकर जो वह हैं और जैसे वह जीते. हालांकि मोदी और उनके समर्थक बेताबी से इनकार करना चाहते हैं कि यह भारत मौजूद है, लेकिन है. और यह अभी-अभी न्यूयॉर्क सिटी का मेयर बन गया है.
पाकिस्तान ने राष्ट्रपति और वर्तमान सेना प्रमुख को आजीवन प्रतिरक्षा प्रदान की
पाकिस्तान की संसद ने गुरुवार को एक व्यापक संवैधानिक संशोधन को मंजूरी दे दी, जिसके तहत राष्ट्रपति और वर्तमान सेना प्रमुख को आजीवन प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) प्रदान की गई है. हालांकि, आलोचकों ने चेतावनी दी है कि यह कदम लोकतांत्रिक नियंत्रण और न्यायिक स्वतंत्रता को कमज़ोर करेगा.
“एएफपी” के अनुसार, दो-तिहाई बहुमत से पारित हुआ 27वां संशोधन, रक्षा बलों के प्रमुख की नई भूमिका के तहत सैन्य शक्ति को भी मजबूत करता है और एक संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना करता है. इन परिवर्तनों से सेना प्रमुख आसिम मुनीर, जिन्हें मई में भारत के साथ पाकिस्तान के टकराव के बाद हाल ही में फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था, को सेना, वायु सेना और नौसेना पर कमान मिलेगी. मुनीर, अन्य शीर्ष सैन्य अधिकारियों की तरह, आजीवन सुरक्षा का आनंद लेंगे.
फील्ड मार्शल, एयर फ़ोर्स मार्शल, या फ्लीट एडमिरल के पद पर पदोन्नत कोई भी अधिकारी अब आजीवन रैंक और विशेषाधिकार बरकरार रखेगा, वर्दी में बना रहेगा, और आपराधिक कार्यवाही से प्रतिरक्षा का आनंद लेगा – ये सुरक्षाएं पहले केवल राष्ट्राध्यक्ष के लिए आरक्षित थीं.
इस्लामाबाद स्थित वकील ओसामा मलिक ने कहा, “यह संवैधानिक संशोधन अधिनायकवाद को बढ़ाएगा और इस देश में लोकतंत्र का जो थोड़ा सा भी आभास मौजूद था, वह खत्म हो जाएगा.” उन्होंने एएफपी को बताया, “यह न केवल सेना की गतिविधियों से नागरिक पर्यवेक्षण को हटाएगा, बल्कि यह सैन्य पदानुक्रम को भी पूरी तरह से नष्ट कर देगा, जहां संयुक्त प्रमुख प्रणाली के तहत सभी सेवा प्रमुखों को समान माना जाता था.”
यह संशोधन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के लिए भी प्रतिरक्षा सुनिश्चित करता है, उन्हें किसी भी आपराधिक अभियोजन से बचाता है. हालांकि, बिल निर्दिष्ट करता है कि यदि कोई पूर्व राष्ट्रपति बाद में कोई अन्य सार्वजनिक पद धारण करता है तो यह सुरक्षा लागू नहीं होगी. जरदारी भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना कर चुके हैं, हालांकि कार्यवाही पहले रुकी हुई थी. नवीनतम संशोधन उन्हें तब तक अछूत बनाता है जब तक कि वह कोई अन्य सार्वजनिक पद नहीं लेते हैं.
एपस्टीन फ़ाइलें बनीं ट्रंप के लिए मुसीबत, ख़ुद के बनाए जाल में फंसे
चार महीने पहले, राष्ट्रपति ट्रंप ने जेफ़री एपस्टीन फ़ाइलों को जारी होने से रोक दिया था. एक्सियोस में मार्क कैपुटो की रिपोर्ट के मुताबिक़, बुधवार को हज़ारों एपस्टीन ईमेल के खुलासे ने दिखाया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया था. इन ईमेल में कोई बड़ा “स्मोकिंग गन” यानी पुख्ता सबूत तो नहीं था, लेकिन उन्होंने दोनों व्यक्तियों के बीच के संबंधों पर नई रोशनी डाली, जिसमें एपस्टीन द्वारा ट्रंप के बारे में की गई गपशप और अपमानजनक बातें शामिल थीं. इस ख़बर के सामने आते ही ट्रंप रक्षात्मक मुद्रा में आ गए और यह मामला कैपिटल हिल, टेलीविज़न और सोशल मीडिया पर छाया रहा.
ट्रंप की एपस्टीन कांड पर प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि वह उन बड़े विवादों को कैसे संभालते हैं जो उनके नेतृत्व की आलोचना करते हैं. वह अक्सर हमलों का जवाब उन्हें डेमोक्रेटिक साज़िश या धोखाधड़ी बताकर देते हैं, जैसा कि उन्होंने रूस जांच के मामले में किया था. अब वह हालिया हमलों को “एपस्टीन होक्स” कहने लगे हैं. यह मुद्दा इसलिए भी बड़ा है क्योंकि ट्रंप और उनके सहयोगियों ने 2024 का चुनाव जीतने से पहले इन जांच फ़ाइलों को जारी करने का वादा किया था. इस वादे ने ट्रंप के MAGA बेस को उत्साहित कर दिया था, लेकिन पद संभालने के छह महीने बाद जुलाई में ट्रंप ने अपना वादा तोड़ दिया और फ़ाइलों को जारी करने से मना कर दिया.
बुधवार को जारी किए गए कुछ ईमेल में, एपस्टीन ने ट्रंप को “गंदा,” “पागल,” “बॉर्डरलाइन पागल” और “बिल्कुल सनकी” कहा था. हालांकि, कोई भी ईमेल ट्रंप और एपस्टीन के बीच का नहीं था क्योंकि ट्रंप ईमेल का इस्तेमाल करने के लिए नहीं जाने जाते थे. इस मामले की तुलना 2016 के विकीलीक्स ईमेल रिलीज़ से की जा रही है, जिसने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के अभियान को नुक़सान पहुंचाया था. जैसा कि इस मामले में है, ईमेल में लक्ष्य व्यक्ति द्वारा किसी स्पष्ट ग़लत काम का कोई संकेत नहीं दिखा, लेकिन पर्दे के पीछे की इतनी बड़ी मात्रा में जानकारी ने यह सुनिश्चित किया कि कहानी मीडिया कवरेज पर हावी हो जाए, जिससे एक घोटाले का आभास पैदा हो.
डेमोक्रेट्स का कहना है कि पूरी जांच फ़ाइलें जारी करने की ज़रूरत है, जबकि व्हाइट हाउस के अधिकारियों का कहना है कि अगर ट्रंप के ख़िलाफ़ कोई विश्वसनीय सबूत होता, तो अब तक उनका नाम सार्वजनिक रूप से एक संदिग्ध के रूप में आ गया होता. बुधवार को, ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि डेमोक्रेट्स “अपनी बड़ी विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए जेफ़री एपस्टीन होक्स का इस्तेमाल कर रहे हैं.” उम्मीद है कि हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में कई रिपब्लिकन अगले हफ़्ते फ़ाइलों को जारी करने के पक्ष में मतदान कर सकते हैं, लेकिन यह प्रस्ताव सीनेट में अटक सकता है.
ट्रंप का मुक़ाबला करने की तैयारी: न्यूयॉर्क के मेयर ज़ोहरान ममदानी ने डेमोक्रेटिक गवर्नरों के साथ बनाई रणनीति
न्यूयॉर्क शहर के नवनिर्वाचित मेयर ज़ोहरान ममदानी ने राष्ट्रपति ट्रंप का सामना करने और अन्य प्राथमिकताओं से निपटने के तरीक़ों पर कई डेमोक्रेटिक गवर्नरों के साथ निजी तौर पर बात की है. एक्सिओस के लिए हॉली ओटरबीन की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट है कि इन बैठकों से यह संकेत मिलता है कि एक डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट ममदानी, पार्टी के अलग-अलग विचारधारा वाले डेमोक्रेट्स से शासन पर सलाह ले रहे हैं. ममदानी ने इलिनॉय के गवर्नर जेबी प्रित्ज़कर, मैरीलैंड के गवर्नर वेस मूर और पेंसिल्वेनिया के गवर्नर जोश शापिरो से बात की है. ये तीनों 2028 में राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार माने जाते हैं.
यह कोई संयोग नहीं है कि ममदानी ने उन राज्यों के गवर्नरों से संपर्क किया है जिनके बड़े शहरों को ट्रंप ने आप्रवासन छापों और नेशनल गार्ड की तैनाती के लिए निशाना बनाया है. सूत्रों के अनुसार, ममदानी ने प्रित्ज़कर के साथ इस पर रणनीति बनाई कि राष्ट्रपति से कैसे निपटा जाए. ट्रंप ने ममदानी को “कम्युनिस्ट” कहा है और चुनाव से पहले न्यूयॉर्क शहर की संघीय फ़ंडिंग रोकने की धमकी दी थी. ममदानी और प्रित्ज़कर ने ट्रंप द्वारा शिकागो क्षेत्र में सैनिकों को तैनात करने के प्रयासों और न्यूयॉर्क शहर में सेना भेजने की तैयारी के बारे में बात की.
बातचीत सिर्फ़ ट्रंप तक ही सीमित नहीं रही. ममदानी ने मूर के साथ सरकार में नवाचार पर चर्चा की और छोटे व्यवसायों की मदद के लिए उनके प्रयासों की सराहना की. वहीं, शापिरो ने बताया कि उन्होंने ममदानी के साथ यहूदी-विरोध (antisemitism) और इज़राइल पर बात की. जिन गवर्नरों से ममदानी ने बात की है, वे पार्टी के राजनीतिक विभाजन के दोनों छोर पर हैं - उदारवादी प्रित्ज़कर से लेकर नरमपंथी शापिरो तक. इन गवर्नरों ने ट्रंप से निपटने के लिए अलग-अलग तरीक़े अपनाए हैं. प्रित्ज़कर ने ख़ुद को एक मज़बूत विरोधी के रूप में पेश किया है, जबकि मूर ने ट्रंप प्रशासन के साथ काम करने की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन उन्होंने बाल्टीमोर में नेशनल गार्ड की तैनाती का विरोध भी किया.
कई डेमोक्रेटिक पदाधिकारी ममदानी के न्यूयॉर्क शहर में कार्यकाल को क़रीब से देख रहे हैं, क्योंकि कुछ का मानना है कि उनकी सफलता या विफलता पूरी पार्टी को प्रभावित कर सकती है. रिपोर्ट के अंत में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि ममदानी ट्रंप के साथ लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं और वह राष्ट्रपति से निपटने का अनुभव रखने वाले साथी डेमोक्रेट्स से सलाह चाहते हैं.
भारतीय रिफाइनरियों ने दिसंबर के लिए रूसी तेल का ऑर्डर नहीं दिया
“ब्लूमबर्ग” में राकेश शर्मा की रिपोर्ट है कि भारत ने दिसंबर के लिए रूसी कच्चे तेल की खरीद को कथित तौर पर कम कर दिया है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों और अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ता का प्रभाव प्रतीत होता है. रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम पांच बड़े भारतीय रिफाइनर– रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, भारत पेट्रोलियम कॉर्प लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्प लिमिटेड, मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड और एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड– ने अगले महीने के लिए रूसी तेल का कोई ऑर्डर नहीं दिया है, जो आम तौर पर मौजूदा नवंबर महीने की 10 तारीख तक हो जाना चाहिए था. “ब्लूमबर्ग” ने केपलर डेटा के हवाले से बताया है कि पांच रिफाइनरों ने इस साल अब तक भारत के रूसी कच्चे तेल के आयात का दो-तिहाई हिस्सा लिया था. यह अमेरिका के साथ चल रही बातचीत के बीच आया है. राष्ट्रपति ट्रम्प ने हाल ही में यह भी संकेत दिया था कि वाशिंगटन भारत के साथ “निष्पक्ष व्यापार समझौता करने के काफी करीब है. यद्यपि ट्रम्प ने यह भी कहा था कि नई दिल्ली ने रूसी तेल की खरीदी बंद कर दी है.
ट्रम्प की टिप्पणियों से भारतीय बाज़ार में हलचल
“ब्लूमबर्ग” की ही एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रम्प के व्यापार समझौतों के संकेत से भारतीय बाजार में हलचल है. हालांकि, यह आगे कहती है, “यदि आपका भारतीय पोर्टफोलियो अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, तो इसमें भाग्य का बहुत बड़ा हाथ हो सकता है. नितिन चंदुका और पैगी लिम द्वारा किए गए “ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस” के एक अध्ययन में पाया गया कि एनएसई 200 इंडेक्स से बनाए गए 1,000 आकस्मिक पोर्टफोलियो – जिनमें से प्रत्येक में 30 समान रूप से भारित स्टॉक थे – ने पिछले 14वर्षों में 14% का औसत वार्षिक रिटर्न दिया. यह उसी अवधि में इंडेक्स के 12% के वार्षिक रिटर्न से अधिक है. भारत एकमात्र प्रमुख उभरता बाजार है, जहां आकस्मिक पोर्टफोलियो ने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन किया है. जैसा कि नसीम निकोलस तालेब कहते हैं, लोग कौशल के प्रभाव को अधिक आंकते हैं, और यह विश्लेषण बताता है कि यह भारत में सच है.”
टैरिफ की मार: अमेरिका में खुले हीरों की बिक्री को कम कर दिया
‘डेक्कन क्रॉनिकल’ में संगीता जी. की रिपोर्ट है कि अमेरिका में आभूषणों की बिक्री में वृद्धि के बावजूद, भारत पर अमेरिकी टैरिफ ने अमेरिका में खुले हीरों की बिक्री को कम कर दिया है. बाज़ार की रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि भारतीय हीरा निर्यात के लिए आगे कठिन समय है. बाजार विश्लेषण फर्म टेनोरिस एलएलसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर में अमेरिकी विशेष खुदरा विक्रेताओं द्वारा तैयार आभूषणों की बिक्री साल-दर-साल 11.6% बढ़ी, जबकि तैयार आभूषणों से राजस्व में 14% की वृद्धि हुई. डायमंड-सेट आभूषणों में भी सकारात्मक रुझान देखा गया, राजस्व में 9% की वृद्धि हुई और प्रति आइटम औसत खर्च पिछले साल की तुलना में 15% से अधिक बढ़ गया.
भारत-अमेरिका के बीच हवाई कार्गो में भारी गिरावट, 9 साल में सबसे ज्यादा
इस बीच “टाइम्स ऑफ इंडिया” में सनी बसकी की खबर है कि डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन द्वारा की गई टैरिफ वृद्धि के कारण भारत और अमेरिका के बीच हवाई कार्गो की आवाजाही में भारी गिरावट आई है, जो नौ साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है. इस साल जनवरी से जून के बीच भारत से अमेरिका तक का माल ढुलाई भी कोरोना महामारी के स्तर से भी नीचे गिरकर 4,319 टन हो गया. पिछले साल इसी अवधि के दौरान दोनों देशों के बीच हवाई कार्गो आवाजाही 7,152 टन थी. यहां तक कि कोरोना काल में भी यह आंकड़ा 5000 से 9000 टन के बीच रहा था.
मार झींगा निर्यात पर भी, लाखों किसान चपेट में
“अलजजीरा” में गुरविंदर सिंह लिखते हैं, बड़े टैरिफ ने भारतीय झींगा उद्योग – दुनिया के दूसरे सबसे बड़े झींगा उत्पादक – को भी एक घातक झटका दिया है, जो मुख्य रूप से निर्यात पर निर्भर करता है. रिपोर्ट के अनुसार, खराब मौसम, बीमारियों (जैसे सफेद मल रोग), और उच्च फ़ीड लागत के कारण झींगा उत्पादन प्रभावित हुआ है. लेकिन, अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापारिक बाधाओं ने भारतीय झींगा निर्यात को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. अमेरिका, भारतीय झींगा का सबसे बड़ा बाजार है, और टैरिफ ने निर्यात को महंगा कर दिया है, जिससे उद्योग पर दबाव बढ़ रहा है. भारत को वियतनाम और इक्वाडोर जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. इस संकट का सीधा असर लाखों किसानों और श्रमिकों की आजीविका पर पड़ रहा है, जो झींगा पालन और प्रसंस्करण से जुड़े हुए हैं.
मोदी के दावों की हकीकत; कई आदिवासी मानते हैं सरकार मैरिज हॉल बनवा रही है
केंद्र सरकार के अनुसार, पीएम-जनमन योजना के तहत झारखंड में विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों की सेवा के लिए 2023 से 113 ‘बहुउद्देशीय केंद्र’ स्वीकृत किए गए हैं. दो जिलों में दस का निर्माण किया गया है और जब “स्क्रॉल” में नोलीना मिंज ने उनके प्रभाव को समझने के लिए उनका दौरा किया, तो उन्होंने “योजना की सफलता के बारे में सरकारी दावों के विपरीत एक बड़ा अंतर” पाया. वह लिखती हैं, “कई लोगों ने इस योजना के बारे में सुना भी नहीं था. जिन्होंने सुना था, और अपने गांव में इसके तहत हुए काम से अवगत थे, उन्होंने कहा कि काम अप्रभावी था. स्वास्थ्य और शिक्षा सहित सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में, उनके जीवन में कुछ नहीं बदला.”
कुछ मामलों में बहुउद्देशीय केंद्र लक्षित बस्तियों से बहुत दूर हैं, उनमें बिजली नहीं है, बिजली है लेकिन बल्ब नहीं हैं, या वे खुले में हैं. एक केंद्र एक साल से अधिक समय से कार्यरत है, लेकिन उसने कभी भी जनमन योजनाओं द्वारा परिकल्पित कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित नहीं किए हैं. स्थानीय लोग अक्सर इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि उनके बहुउद्देशीय केंद्र का उद्देश्य क्या है? कई मानते हैं कि मोदी सरकार उनके लिए मैरिज हॉल स्थापित कर रही है.
खराब मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित देशों में भारत 9वें स्थान पर
जर्मनवॉच द्वारा ब्राजील के बेलेम में जारी एक नई रिपोर्ट – क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स – के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में लू, तूफान और बाढ़ जैसी खराब मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होने वाले दुनिया के देशों में भारत नौवें स्थान पर है. रिपोर्ट भारत की उच्च पूर्ण मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान के साथ-साथ पूर्ण संख्या और प्रति 100,000 आबादी पर प्रभावित लोगों की संख्या को भी उजागर करती है. यह पाती है कि जांच किए गए तीन दशकों में खराब मौसम की लगभग 430 घटनाएं हुईं, जिससे लगभग 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर (मुद्रास्फीति समायोजित) का आर्थिक नुकसान हुआ, लगभग 1.3 बिलियन (अरब) लोग प्रभावित हुए, और 80,000 से अधिक मौतें हुईं. रिपोर्ट के मुताबिक, बिगड़े मानसून के परिणामस्वरूप आई बाढ़ और भूस्खलन ने लाखों लोगों को विस्थापित किया है और कृषि को नुकसान पहुंचाया है, और चक्रवातों ने तटीय क्षेत्रों को तबाह कर दिया है, जो भारत के विविध जलवायु जोखिमों को रेखांकित करता है.
मिस यूनिवर्स पाकिस्तान ने बताया कि साड़ी उतनी ही पाकिस्तानी है जितनी सलवार कमीज़
जब रोमा रियाज़ इस हफ़्ते फुकेत में मूनलाइट स्काई गाला वेलकम डिनर के रेड कार्पेट पर उतरीं, तो उन्होंने सिल्वर-बेज रंग की साड़ी पहनी थी, जिसके बाद उम्मीद के मुताबिक़ आलोचनात्मक टिप्पणियां आने लगीं. 74वीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर रहीं रियाज़, डिज़ाइनर कंवल मलिक की हाथ से बनी साड़ी में पहुंची थीं. हालांकि, चूंकि इस परिधान को अक्सर “भारतीय पोशाक” के रूप में देखा जाता है, इसलिए कुछ दर्शकों ने उनकी पसंद पर सवाल उठाया. डॉन इमेजेज़ की रिपोर्ट के अनुसार, रियाज़ ने इन सवालों का जवाब दिया और साड़ी को एक साझा दक्षिण एशियाई सांस्कृतिक विरासत के रूप में प्रस्तुत किया.
उन्होंने इंस्टाग्राम पर साझा किए एक नोट में लिखा, “मैंने कुछ टिप्पणियां देखी हैं, जिनमें पूछा गया है कि मैंने, मिस यूनिवर्स पाकिस्तान के तौर पर, साड़ी क्यों पहनी. साड़ी पर किसी सीमा का अधिकार नहीं है. यह हमारी साझा विरासत का हिस्सा है, जो हमारे बीच की रेखाएं खींचने से बहुत पहले बुनी गई थी. इसका जन्म सिंधु घाटी की मिट्टी से हुआ था - वही भूमि जिसे हमारे पूर्वजों ने घर कहा था. साड़ी उतनी ही पाकिस्तानी है जितनी सलवार कमीज़.” रियाज़ ने कहा कि उन्होंने अपनी विरासत को फिर से लिखे जाने या मिटाए जाने से इनकार कर दिया है और वह हर उस धागे पर अपना हक़ जताएंगी जो उनकी कहानी कहता है.
इस संदेश के साथ पाकिस्तान की सांस्कृतिक स्मृति से कुछ तस्वीरें भी साझा की गईं: 1969 के एक अख़बार की कतरन जिसका शीर्षक था ‘पाकिस्तानी महिलाएं अभी भी पश्चिमी पोशाक की तुलना में साड़ी पसंद करती हैं’, एक उर्दू पत्रिका से साड़ियों में महिलाओं का एक चित्र, और नुसरत भुट्टो तथा पार्श्व गायिका माला बेगम की तस्वीरें - दोनों ही इस परिधान को पहनने के लिए जानी जाती थीं. एक अन्य पोस्ट में, रियाज़ ने लिखा कि यह साड़ी कवियों, कलाकारों और सिनेमा के स्वर्ण युग की हस्तियों द्वारा पहनी जाती थी. उन्होंने अपनी पसंद को ‘उधार’ नहीं, बल्कि एक ‘श्रद्धांजलि’ बताया. उन्होंने कहा, “आज, मैं यह कंवल मलिक साड़ी उस विरासत को श्रद्धांजलि के रूप में पहन रही हूं, पाकिस्तानी शिल्प कौशल की सुंदरता, हमारे डिजाइनरों की कलात्मकता और उन महिलाओं को जो गर्व के साथ परंपरा को फिर से परिभाषित करती हैं.”
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