13/12/2025: बीमा बाजार में 100% एफडीआई | मोदी सरकार को अडानी मिल नहीं पा रहे | अमेरिकी सुरक्षा रणनीति में भारत अप्रसांगिक? | मेसी को लेकर कलकत्ते में भसड़ |
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
बीमा बाज़ार में अब विदेशी कंपनियों को पूरी छूट...
अडानी को समन: अमेरिका भेज रहा, भारत को मिल नहीं रहा...
नवादा में पहले नाम पूछा, फिर मज़हब... और ले ली जान
मोदी के ‘दोस्त’ ट्रंप ने भारत को दिखाया आईना?
हज़ारों का टिकट ख़रीदा, पर मेसी की एक झलक नहीं...
अपनी सीट हार गए, पर थरूर दे रहे बीजेपी को बधाई?
गुजरात बीजेपी में ‘गृहयुद्ध’, 75 लाख की घूस का शोर
सीतामढ़ी में यह क्या हो रहा? 400 से ज़्यादा बच्चे संक्रमित
बहराइच फ़ैसला: फांसी की सज़ा और मनुस्मृति का ज़िक्र...
पटियाला में जब बन गया ‘पाकिस्तान’, फंस गए दिलजीत
बीमा क्षेत्र में 100% विदेशी निवेश: केंद्रीय कैबिनेट ने दी बिल को मंज़ूरी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को बीमा क़ानून (संशोधन) विधेयक को मंज़ूरी दे दी है. इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को बढ़ाना है. ‘द वायर’ ने ‘द हिंदू बिज़नेस लाइन’ की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि अब बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% कर दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक़, इस बिल के ज़रिए विदेशी निवेश से जुड़े मौजूदा नियमों और शर्तों की समीक्षा की जाएगी और उन्हें सरल बनाया जाएगा.
लोकसभा बुलेटिन के अनुसार, इस विधेयक को आधिकारिक तौर पर ‘सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा क़ानून संशोधन) विधेयक, 2025’ नाम दिया गया है. इसका मक़सद बीमा की पहुंच को गहरा करना, विकास में तेज़ी लाना और ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ (कारोबार में सुगमता) को बढ़ाना है. ‘बिज़नेस लाइन’ के मुताबिक़, कनाडा, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया और चीन जैसे देशों में पहले से ही बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई की अनुमति है.
‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए ख़बर में कहा गया है कि भारत के इस क़दम से भारी विदेशी पूंजी आकर्षित हो सकती है, बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है और ग्राहकों को बेहतर सुविधाएं मिल सकती हैं. भारत में फ़िलहाल क़रीब 70 बीमा कंपनियां हैं, जबकि दुनिया भर में इनकी संख्या लगभग 10,000 है. अगर इनमें से कुछ भी भारत आती हैं, तो बड़ा निवेश आएगा.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ शरद माथुर के हवाले से लिखा कि 100% एफडीआई बीमा क्षेत्र के लिए एक बड़ा उत्प्रेरक साबित होगा. इससे बीमा कंपनियों को अपना कारोबार फ़ैलाने और आधुनिक रिस्क-असेसमेंट मॉडल में निवेश करने में मदद मिलेगी.
यह विधेयक बीमा अधिनियम, 1938 में व्यापक बदलाव लाएगा. साथ ही जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 और इरडा (IRDAI) अधिनियम, 1999 में भी सुधार किए जाएंगे. इसका उद्देश्य आधुनिकीकरण और मज़बूत नियामक निगरानी है. उदाहरण के लिए, इरडा को यह अधिकार दिया जाएगा कि वह विशेष मामलों में प्रवेश पूंजी (entry capital) को 50 करोड़ रुपये तक कम कर सके.
इसके अलावा, सांसद भारती पारधी द्वारा प्रस्तावित संशोधनों में वरिष्ठ नागरिकों के स्वास्थ्य बीमा को विनियमित करने और बढ़ते प्रीमियम के बोझ को कम करने पर ज़ोर दिया गया है. कैबिनेट ने इसके साथ ही परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र को अनुमति देने और ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (नरेगा) का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ करने वाले बिलों को भी मंज़ूरी दी है.
अडानी मामले में 8 महीने बाद भी नहीं तामील हो सके समन: अमेरिकी SEC की रिपोर्ट
अमेरिका के प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) ने एक बार फिर अदालत को बताया है कि वह भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी और सागर अडानी को क़ानूनी नोटिस (समन) तामील कराने में अब तक नाक़ाम रहा है. ‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले आठ महीनों में यह पांचवीं बार है जब एसईसी ने ‘ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ न्यूयॉर्क’ की अदालत में स्टेटस रिपोर्ट दाख़िल कर यह जानकारी दी है.
12 दिसंबर को दाख़िल दो पन्नों की चिट्ठी में एसईसी के वकील क्रिस्टोफर एम. कोलोराडो ने जज जेम्स आर. चो को बताया कि भारत के क़ानून और न्याय मंत्रालय (MOLJ) ने अभी तक प्रतिवादियों को समन नहीं पहुंचाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एसईसी लगातार भारतीय अधिकारियों के संपर्क में है, लेकिन कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है. यह मामला नवंबर 2024 में दर्ज किया गया था, और चूंकि अडानी भारत में रहते हैं, इसलिए हेग कन्वेंशन (Hague Convention) के राजनयिक चैनलों के ज़रिए समन भेजा जाना ज़रूरी है.
एसईसी ने फ़रवरी 2025 में भारतीय अधिकारियों से संपर्क किया था. फ़रवरी में एसईसी ने अदालत को बताया था कि उसने प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन इसके तुरंत बाद भारत सरकार के विधि विभाग ने एक आरटीआई (RTI) के जवाब में कहा कि उन्हें 21 फ़रवरी, 2025 तक ऐसा कोई अनुरोध नहीं मिला था. हालांकि, अप्रैल में एसईसी ने बताया कि भारत सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया है, लेकिन उसके बाद से मामला अटका हुआ है. जून, अगस्त, अक्टूबर और अब दिसंबर की रिपोर्ट में यही कहा गया है कि समन तामील नहीं हुआ है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, एसईसी ने राजनयिक रास्ते से हटकर सीधे अडानी की क़ानूनी टीम से भी संपर्क किया और समन स्वीकार करने का अनुरोध किया, लेकिन अडानी के वकीलों ने इसे ख़ारिज कर दिया.
नवंबर 2024 में दर्ज एसईसी की 39 पन्नों की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि गौतम अडानी और सागर अडानी ने भारत में एक सौर ऊर्जा परियोजना के ठेके हासिल करने के लिए रिश्वत की साज़िश रची और 2021 में अमेरिकी निवेशकों को गुमराह किया. अडानी समूह ने इन आरोपों को “बेबुनियाद” बताते हुए इनका खंडन किया है. इसी मामले में एक समानांतर आपराधिक मुक़दमे में अमेरिकी अटॉर्नी ने अडानी और अन्य पर लगभग 265 मिलियन डॉलर (क़रीब 2200 करोड़ रुपये) की रिश्वत देने की साज़िश का आरोप लगाया है.
रिपोर्ट में यह भी ज़िक्र है कि फ़रवरी 2025 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने FCPA जांचों पर 180 दिनों की रोक लगाई थी, जिसे जून 2025 में हटा लिया गया था. हालांकि, एसईसी के पास अभी भी दीवानी (civil) मामलों में कार्रवाई का अधिकार है.
बिहार: मज़हबी पहचान पूछकर नवादा में शख़्स की लिंचिंग, 4 गिरफ़्तार
बिहार के नवादा ज़िले में भीड़ द्वारा एक 40 वर्षीय व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या करने का मामला सामने आया है. ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक़, भीड़ ने पहले उस व्यक्ति की मज़हबी पहचान की पुष्टि की और फिर उसे मौत के घाट उतार दिया. मृतक का नाम मोहम्मद अतहर हुसैन था, जो नालंदा ज़िले का रहने वाला था.
रिपोर्ट के अनुसार, हुसैन शुक्रवार रात को इलाज़ के दौरान ज़ख़्मों की ताब न लाते हुए चल बसे. यह घटना 5 दिसंबर को नवादा के रोह थाना क्षेत्र में हुई थी. मरने से पहले हुसैन ने आरोप लगाया था कि उन्हें सिर्फ़ उनकी मज़हबी पहचान की वजह से निशाना बनाया गया. हुसैन नवादा के ग्रामीण इलाक़ों में कपड़े बेचने का काम करते थे.
हुसैन ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया था कि चार-पांच लोगों के एक समूह ने उन्हें जबरन रोका, उनकी जेबें चेक कीं और एक कमरे में घसीटकर ले गए. उन्होंने कहा, “मुझसे मेरी धार्मिक पहचान पूछी गई. फिर उन्होंने मुझे लोहे की छड़ों से पीटा, मेरी उंगलियां तोड़ दीं और मेरी छाती पर चढ़ गए.” हुसैन ने वीडियो में यह भी बताया कि हमलावरों ने उनके शरीर पर पेट्रोल डाला और उन्हें जलाने की कोशिश की. प्लास (pliers) से उनके पैर, उंगलियां और कान कुचले गए और ईंटों से मारा गया.
मृतक की पत्नी शबनम परवीन ने मीडिया को बताया कि हुसैन परिवार के इकलौते कमाने वाले सदस्य थे और पिछले 20 सालों से यह काम कर रहे थे. पुलिस ने शबनम की शिकायत पर 10 नामज़द और 15 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया है.
रोह पुलिस स्टेशन के एसएचओ रंजन कुमार ने ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि पुलिस ने अब तक चार आरोपियों—सोनू कुमार, रंजन कुमार, सचिन कुमार और श्री कुमार—को गिरफ़्तार कर लिया है. बाक़ी आरोपियों की तलाश जारी है. पुलिस ने भरोसा दिलाया है कि दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी. ग़ौरतलब है कि नवादा में 2025 में मॉब लिंचिंग की यह कोई पहली घटना नहीं है; इससे पहले भी फ़रवरी और अगस्त में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं.
ट्रंप की नई सुरक्षा नीति में भारत महज़ एक ‘फुटनोट’, मोदी सरकार की ख़ुशफ़हमी हुई उजागर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पिछले एक दशक में दुनिया के सामने ख़ुद को इंडो-पैसिफिक की एक निर्णायक शक्ति और चीन को चुनौती देने वाले ‘सभ्यतागत राज्य’ (civilisational state) के रूप में पेश किया है. लेकिन नवंबर में जारी हुई अमेरिका की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति’ (National Security Strategy) ने इस दावे की हवा निकाल दी है. स्क्रोल में प्रोफ़ेसर अशोक स्वैन ने लिखा है कि ट्रंप की नई सुरक्षा दृष्टि में भारत महज़ एक ‘फुटनोट’ (हाशिये पर) बनकर रह गया है, जिसने मोदी सरकार की ख़ुशफ़हमी को उजागर कर दिया है.
लेखक अशोक स्वैन, जो स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी में ‘पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रिसर्च’ के प्रोफ़ेसर हैं, लिखते हैं कि मोदी सरकार ने यह दिखाने के लिए भारी राजनीतिक पूंजी निवेश की कि अमेरिका के साथ भारत का नया गठबंधन ऐतिहासिक और अनिवार्य है. लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि अमेरिका की नई रणनीति में भारत को अमेरिकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण नहीं माना गया है. इस दस्तावेज़ में यूरोप को एक ‘सभ्यतागत सहयोगी’, पश्चिम एशिया को कूटनीतिक जीत का मंच और चीन को मुख्य विरोधी बताया गया है. वहीं, भारत का ज़िक्र बमुश्किल किया गया है, और वह भी कभी-कभी एक समस्या के रूप में जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति को सुलझाना है.
रिपोर्ट के मुताबिक़, दस्तावेज़ में भारत को एक उभरती हुई महाशक्ति के बजाय एक ‘विवाद-ग्रस्त राज्य’ के रूप में चित्रित किया गया है जिसे अमेरिकी हस्तक्षेप की ज़रूरत है. इसमें ट्रंप द्वारा “पाकिस्तान और भारत के बीच शांति” पर बातचीत करने को एक उपलब्धि के रूप में गिनाया गया है. एशिया खंड में भी, भारत को चीन का मुक़ाबला करने के लिए सिर्फ़ एक ‘उपकरण’ (tool) के तौर पर देखा गया है, न कि एक अनिवार्य रणनीतिक स्तंभ के रूप में. मोदी के ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के सिद्धांत की सराहना नहीं की गई है, बल्कि इसे तभी तक बर्दाश्त किया गया है जब तक यह अमेरिकी हितों के आड़े नहीं आता.
स्वैन विश्लेषण करते हैं कि अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति नौसैनिक अड्डों और उच्च-स्तरीय तकनीक पर टिकी है, जिसमें भारत का योगदान नाक़ाफ़ी है. इसके अलावा, भारत अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए अभी भी रूसी सिस्टम पर निर्भर है. लेख में कहा गया है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं का कमज़ोर होना, प्रेस की आज़ादी और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दे एक साझेदार के रूप में भारत की विश्वसनीयता को कम करते हैं.
वैचारिक स्तर पर भी दोनों देशों में भारी अंतर है. ट्रंप की नीति ‘पश्चिमी सांस्कृतिक पहचान’ को बचाने पर केंद्रित है और वह आव्रजन (immigration) को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा मानते हैं. ऐसे में, बहुधार्मिक और बहुभाषी भारत, जो वीज़ा और प्रवासियों पर ज़ोर देता है, ट्रंप के ‘सभ्यतागत पश्चिम’ के खांचे में फ़िट नहीं बैठता.
अंत में, लेख निष्कर्ष निकालता है कि मोदी सरकार की यह धारणा कि वाशिंगटन की कूटनीतिक ख़ुशामद आपसी निर्भरता के बराबर है, ग़लत साबित हुई है. अमेरिका दुनिया को एक ‘सभ्यतागत पश्चिम’, चीन द्वारा परिभाषित ‘सैन्यीकृत एशिया’ और ‘लेन-देन वाले पश्चिम एशिया’ में बांट रहा है—और भारत इनमें से किसी भी श्रेणी में पूरी तरह फ़िट नहीं होता. स्वैन सलाह देते हैं कि सिर्फ़ रैलियों और अमेरिकी राष्ट्रपतियों के गले मिलने से शक्ति नहीं बनती; इसके लिए क्षमता और विश्वास की ज़रूरत होती है. यह वक़त नई दिल्ली के लिए ‘जागने’ (wake-up call) का है.
मेसी को देख नहीं पाने से नाराज़ प्रशंसक, स्टेडियम में अराजकता, आयोजक हिरासत में
शनिवार को कोलकाता के सॉल्ट लेक स्टेडियम में अराजकता फैल गई, जब अर्जेंटीना के फुटबॉल आइकन लियोनेल मेसी को देखने के लिए बड़ी रकम चुकाने वाले दर्शक दिग्गज खिलाड़ी की स्पष्ट झलक न पा सकने के कारण विरोध करने लगे, क्योंकि वह सुरक्षाकर्मियों और अन्य लोगों से घिरे रहे.
“पीटीआई” की रिपोर्ट के अनुसार, मेसी, जो अपने तीन दिवसीय, चार-शहरों के इंडिया टूर पर हैं, अपने लंबे समय के स्ट्राइक पार्टनर लुइस सुआरेज और अर्जेंटीना के टीम के साथी रोड्रिगो डी पॉल के साथ सुबह करीब 11.30 बजे स्टेडियम पहुंचे और मैदान पर कदम रखने वाले पहले खिलाड़ी थे. उन्होंने संक्षेप में चारों ओर घूमकर भीड़ का अभिवादन किया.
मेसी के प्रवेश ने स्टैंड में तीव्र भावनाएं जगा दीं, जिससे कानफोड़ू नारे लगने लगे, झंडे लहराए गए और कुछ प्रशंसक स्पष्ट रूप से भावुक होकर रो पड़े, क्योंकि सुपरस्टार ने भीड़ की गर्मजोशी को स्वीकार किया. मेसी को शानदार स्वागत मिला और उनके नाम के नारों से खचाखच भरा स्टेडियम गूंज उठा. मुस्कराते हुए और अभिवादन करते हुए जब वह मैदान के पार चल रहे थे, तो अर्जेंटीना के इस महान खिलाड़ी ने प्रशंसा को आत्मसात किया और उन्हें उनके नाम और प्रतिष्ठित नंबर 10 वाली एक विशेष मोहन बागान जर्सी भेंट की गई, जो एक ऐतिहासिक स्वागत का प्रतीक था. हालांकि, वह अपनी पूरी उपस्थिति के दौरान वीआईपी, आयोजकों और सुरक्षाकर्मियों से घिरे रहे, जिससे गैलरी से दर्शकों का नज़ारा प्रभावी रूप से बाधित हो गया.
प्रशंसकों ने दावा किया कि सुबह से इंतज़ार करने के बावजूद, वे मेसी को ठीक से नहीं देख पाए, न तो सीधे और न ही स्टेडियम की विशाल स्क्रीन पर. जैसे-जैसे “वी वांट मेसी” के नारे स्टैंड में गूंजने लगे, निराशा बढ़ती गई.
जब अर्जेंटीना के स्टार को मिनटों के भीतर स्टेडियम से बाहर निकाल लिया गया, वह भी कई आमंत्रित गणमान्य व्यक्तियों के आने से काफी पहले, तो गुस्सा भड़क उठा. निराश समर्थकों ने मैदान पर बोतलें फेंकी और गैलरी में बैनर, होर्डिंग और प्लास्टिक की कुर्सियों को क्षतिग्रस्त कर दिया. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कुछ दर्शकों ने गैलरी के बैरिकेड्स को फाड़ने और जबरन पिच पर जाने की कोशिश की, जिससे पुलिस को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुप्रबंधन को चौंकाने वाला और गहरा दुख व्यक्त किया और घटना की उच्च-स्तरीय जांच की घोषणा की. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ने भी फुटबॉल प्रेमियों की शिकायतों के बाद मेसी के कोलकाता कार्यक्रम की अव्यवस्था पर राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. राजभवन के सूत्रों ने कहा कि राज्यपाल ने सवाल किया कि आम प्रशंसक स्टार को क्यों नहीं देख पाए और कार्यक्रम के मुद्रीकरण में निजी आयोजकों की भूमिका पर स्पष्टीकरण मांगा.
इस बीच कोलकाता पुलिस ने कार्यक्रम के मुख्य आयोजक सतद्रु दत्ता को हिरासत में ले लिया है. स्टेडियम के अंदर कथित कुप्रबंधन की पुलिस द्वारा जांच शुरू किए जाने के बाद आयोजक को हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया. कोलकाता पुलिस ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मामला दर्ज किया है, और अधिकारियों ने कहा कि उचित धाराओं का निर्धारण करने के बाद एक प्राथमिकी दर्ज की जाएगी.
उस रात भी... जब पेले आए थे
अर्जेंटीना के स्टार लियोनेल मेसी का कोलकाता का दूसरा दौरा शनिवार को एक खराब अनुभव के साथ समाप्त हुआ, जो इतिहास के एक और परिचित अध्याय की याद दिलाता है, जब ‘फुटबॉल के जादूगर’ कहे जाने वाले दिग्गज ने शहर का दौरा किया था.
मेसी को देखने के लिए हजारों रुपये के टिकट खरीदने वाले प्रशंसक निराश थे, क्योंकि वे यह नहीं देख पाए कि मंत्रियों और वीआईपी की भीड़ के साथ किसे ले जाया जा रहा था. और यह तो कहना ही क्या कि जो भी मैदान में घुस सकता था, वह घुस गया.
“द टेलीग्राफ” के मुताबिक, शनिवार की इस घटना ने 48 साल पहले, 24 सितंबर, 1977 की यादें ताज़ा कर दीं, जब एडसन अरांतेस डो नैसिमेंटो, जिन्हें “पेले” के नाम से जाना जाता है और जिन्हें शायद इस सुंदर खेल को खेलने वाला अब तक का सबसे महान खिलाड़ी माना जाता है, ने कोलकाता का दौरा किया था.
तब, पेले के कॉसमॉस ने ईडन गार्डन्स में 80,000 की भीड़ के सामने एक प्रदर्शनी मैच में मोहन बागान के साथ खेला था; नतीजा 2-2 से ड्रॉ रहा. जिस दिन पेले कलकत्ता पहुंचे थे, वह दृश्य कुछ वैसा ही था जैसा आज शनिवार को कोलकाता में देखने को मिला. तब प्रशंसकों की दीवानगी कैसी थी? एक बात तो यह है कि इसका ज़िक्र बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘गोलमाल’ (1979) के एक दृश्य में भी आया था: फ़िल्म में इंटरव्यू लेने वाले उत्पल दत्त को एक इंटरव्यू देने वाला बताता है, “जब ब्लैक पर्ल यहां आया था ना, जैसे रवीन्द्रनाथ को गुरुदेव, गांधीजी को बापू कहते हैं ना सर, वैसे पेले को ब्लैक पर्ल कहते हैं, क्या खिलाड़ी है सर, क्या खिलाड़ी!” यह फ़िल्मी संस्करण था.
सौम्यजीत भौमिक, जो उस समय कलकत्ता कस्टम्स के पूर्व उपायुक्त थे और हवाई अड्डे पर ड्यूटी पर थे, ने असली पागलपन को याद किया. भौमिक ने याद करते हुए कहा, वह कलकत्ता में एक रोमांचक दिन था. पेले पहली बार शहर में आने वाले थे. सैकड़ों लोग हवाई अड्डे पर जमा हो गए थे. उस समय, हवाई अड्डे पर कोई कड़ा सुरक्षा तंत्र मौजूद नहीं था और न ही उसकी आवश्यकता थी. इसलिए रिपोर्टर, अधिकारी, समर्थक और उत्साही लोग सभी कस्टम्स और इमिग्रेशन क्षेत्र के अंदर मौजूद थे. केंद्रीय खेल मंत्री, कुछ राज्य मंत्री भी मौजूद थे. “
भौमिक ने याद किया कि मंत्री, क्लब के अधिकारी, उनके चापलूस, प्रेस और कई अन्य – जिनकी संख्या लगभग 1,000 थी – ने असली प्रशंसकों की तुलना में कहीं अधिक अराजकता पैदा की थी. पेले शाम 7 बजे के थोड़ी देर बाद उतरे, लेकिन उन्हें रात 11 बजे के आसपास ही हवाई अड्डे से बाहर निकाला जा सका. भौमिक ने याद करते हुए कहा, “रात के उस समय भी वीआईपी रोड पर लाखों लोग इंतज़ार कर रहे थे.”
उन्होंने कहा, “पुलिस को जानकारी मिली और उसने चुपके से पेले की कार को जेसोर रोड के पुराने रास्ते से मोड़ दिया. पेले को देखने का इंतज़ार कर रहे लोग भड़क गए. कई कारों और पुलिस वाहनों में तोड़फोड़ की गई.”
हवाई अड्डे पर, बहुत से लोग मोहन बागान क्लब के तत्कालीन सचिव धीरेंद्र डे के पास चिपके रहे, यह सोचकर कि उनके करीब रहने से वे पेले के करीब पहुंच जाएंगे.
भौमिक ने कहा, “मैंने देखा कि एक डीएसपी बार-बार डे से अनुरोध कर रहा था कि वह उन्हें पेले से व्यक्तिगत रूप से मिलवाना न भूलें.” जब पेले का विमान उतरा, तो भीड़ उस जगह की ओर भागी जहां विमान को खड़ा होना था. सुरक्षाकर्मी असहाय होकर खड़े थे.
“कस्टम्स और इमिग्रेशन क्षेत्र के अंदर का दृश्य और भी बुरा था. हर कोई पेले के करीब आने के लिए धक्का-मुक्की कर रहा था. वह स्पष्ट रूप से चिढ़ रहे थे. जो भी करीब आने में कामयाब हुआ, उसने अपना परिचय देना शुरू कर दिया, लेकिन पेले के चेहरे पर सिर्फ़ एक थकी हुई मुस्कान ही देखने को मिली.”
जब रैंप की सीढ़ियां दरवाज़े से लगाई गईं, तो डे, दो या तीन अन्य अधिकारी और डीएसपी ऊपर गए. डीएसपी अभी भी डे को पेले से परिचय कराने के लिए उकसा रहे थे. भारी अराजकता से चिढ़कर, डे ने डीएसपी की ओर इशारा किया और कहा: “मिस्टर पेले, मेरे अंगरक्षक से मिलिए!”
भीड़ से बचने के लिए पेले को स्टेशन ड्यूटी ऑफिसर के कमरे में ले जाया गया, जहां कमरे में किसी के भी प्रवेश को रोकने के लिए दरवाज़े के सामने दो सख्त दिखने वाले सिपाही तैनात थे. राज्य मंत्री और मोहन बागान के प्रशंसक जतिन चक्रवर्ती लगातार गार्डों से बचकर कमरे में घुसने की कोशिश कर रहे थे. उन्होंने उनके हर प्रयास को विफल कर दिया. “अंत में उन्होंने कहा कि वह एक मंत्री हैं. गार्ड पहले से ही अनियंत्रित भीड़ से चिढ़े हुए थे और उन्होंने जवाब दिया: ‘पेले से मिलने के लिए, आज हर कोई मंत्री बन जाएगा. अब हमारी नज़रों से दूर हो जाओ नहीं तो हम तुम्हें बाहर फेंक देंगे!”
बहरहाल, लगभग आधी सदी बीत जाने के बाद, पेले के आगमन और मेसी के मुश्किल दौरे के बीच समानताएं फुटबॉल के प्रति कोलकाता के चिरस्थायी और कभी-कभी अनियंत्रित जुनून को रेखांकित करती हैं.
केरल स्थानीय निकाय चुनाव: यूडीएफ की बड़ी जीत, पिनाराई सरकार के खिलाफ लहर, थरूर की बीजेपी को बधाई
केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने स्थानीय निकाय चुनावों में एक बड़ी जीत हासिल की है, जो मतदाताओं के बीच बदलाव की इच्छा और पिनाराई विजयन सरकार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण लहर का संकेत देती है. भाजपा ने तिरुवनंतपुरम निगम में सबसे बड़ी एकल पार्टी के रूप में उभरकर इतिहास रचा, जिससे शहर के पहले भाजपा महापौर (मेयर) के लिए मंच तैयार हो गया.
14 जिला पंचायतों में से एलडीएफ और यूडीएफ दोनों ने सात-सात पर जीत हासिल की. 931 पंचायतों में से यूडीएफ ने 514, एलडीएफ ने 341 और एनडीए ने 26 पर जीत हासिल की. छह निगमों में से चार यूडीएफ को मिले, जबकि एलडीएफ और भाजपा को एक-एक मिला. नगर पालिकाओं में, यूडीएफ ने 54 सीटों के साथ निर्णायक जीत हासिल की, जबकि एलडीएफ ने 28 और एनडीए ने 2 सीटें जीतीं. ब्लॉक पंचायतों में, यूडीएफ ने 79 और एलडीएफ ने 63 सीटें जीतीं. निगम चुनावों को 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल के रूप में देखा जाता है. तिरुवनंतपुरम निगम को छोड़कर, भाजपा राज्य भर में उम्मीदों से कम रही, यहां तक कि पंडालम नगर पालिका भी हार गई.
गिलवेस्टर अस्सरी के अनुसार, स्थानीय निकाय चुनाव की जीत कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे के लिए राजनीतिक महत्व रखती है. 2016 और 2021 के विधानसभा चुनावों में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ की लगातार जीत, साथ ही भाजपा का उदय—जिसने पिछले लोकसभा चुनावों में लगभग 20 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था—ने कार्यकर्ताओं के मनोबल पर गहरा असर डाला था. भले ही यूडीएफ ने 2024 के लोकसभा चुनावों में 20 में से 18 सीटें जीती थीं, लेकिन परिणाम काफी हद तक राष्ट्रीय मुद्दों और राहुल गांधी के प्रभाव से प्रेरित थे. इसलिए, स्थानीय निकाय की यह जीत कांग्रेस के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाली साबित हुई है, जिससे विधानसभा चुनावों से पहले उसके कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा आ गई है.
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा कि एलडीएफ जनादेश की बारीकी से जांच करेगा, आवश्यक बदलाव करेगा और आगे बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि तिरुवनंतपुरम में एनडीए की जीत, साथ ही चुनाव अभियान में सांप्रदायिकता की भूमिका, धर्मनिरपेक्षता को महत्व देने वालों के लिए एक चिंता का विषय है. यह परिणाम इस बात की याद दिलाता है कि लोगों को सांप्रदायिक ताकतों के हानिकारक प्रचार और जोड़ तोड़ की रणनीति से गुमराह होने से बचने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है. इस बीच केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के नगर निगम चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को सबसे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाबी मिली है. उसने माकपा के नेतृत्व वाले एलडीएफ, जिसका नगर निगम पर 45 वर्षों से कब्जा था, को सत्ता से बाहर कर दिया है. लेकिन, आश्चर्यजनक यह है कि लोकसभा में तिरुवनंतपुरम की नुमाइंदगी कांग्रेस के शशि थरूर करते हैं, और उन्होंने इस जीत पर भाजपा को बधाई दी है.
सुनिए शशि थरूर...
कांग्रेस पूरे केरल में जीत गई. लेकिन आपकी लोकसभा सीट— त्रिवेन्द्रम हार गई. क्यों? क्योंकि जब आपको अपने क्षेत्र में होना था, अपने कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा होना था, अपने मतदाताओं से आँख मिलानी थी— तब आप पुतिन के साथ डिनर कर रहे थे. ग्लैमर गलियारों में फोटो खिंचवा रहे थे. इसे संयोग मत कहिए. इसे प्राथमिकता कहते हैं. मैं अब तक चुप था. आपके 100 खून माफ़ थे. लेकिन जिस दिन आपका सांसद होना, आपका नेता होना, आपका ज़मीन से जुड़ा होना—सब डिनर टेबल पर छूट गया, उसी दिन मामला खत्म हो गया. आप कहेंगे… “यह अंतरराष्ट्रीय दायित्व था.” “यह भारत की सॉफ्ट पावर का सवाल था.” “इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं.” नहीं शशि. चुनाव ज़मीन से लड़ा जाता है. डिनर से नहीं. जब राहुल गांधी और खड़गे को नहीं बुलाया गया, तब यह कोई न्यूट्रल इवेंट नहीं था. यह साफ़ संदेश था— “कांग्रेस को साइड में रखो.” और आपने? आपने उस अपमान को चुनौती नहीं दी. आप उस टेबल पर बैठ गए. मुस्कुराए. फोटो खिंचवाई. और फिर पिछले 6 महीनों से मोदी के नाम के कसीदे लगातार सुनाई दे रहे हैं. आप भूल गए… यही सत्ता आपको एलीट, विदेशी, कांग्रेस का बोझ कहती थी. यही ट्रोल आर्मी आपकी दिवंगत पत्नी तक को नहीं छोड़ी. यही प्रधानमंत्री उनके नाम पर घटिया टिप्पणियाँ होने देता रहा. तब आप कांग्रेस थे. आज आप डिनर गेस्ट हैं. जिस कांग्रेस ने आपको चार बार सांसद बनाया, दो बार मंत्री बनाया, आपको वैश्विक पहचान दी— उसी कांग्रेस के लिए आप एक दिन भी ज़मीन पर नहीं रुके. और नतीजा? केरल जीता. त्रिवेन्द्रम हारा. तो सुनिए शशि—इतिहास सीट हारने वालों को नहीं, पलायन करने वालों को याद रखता है. एक दिन केरल के बच्चे पूछेंगे- “वो शशि थरूर, अपने लोगों के साथ थे या डिनर टेबल के साथ?” और जवाब शर्मनाक होगा— आख़िर में वो वहीं थे, जहां कैमरे थे...वोटर नहीं
(यह फ़ेसबुक पोस्ट अपूर्व भारद्वाज की है, जो उद्यमी, ब्लॉगर और पूर्व पत्रकार हैं)
असम में वायु सेना का पूर्व अधिकारी जासूसी में गिरफ्तार, चार कश्मीरी भी हिरासत में
असम में भारतीय वायु सेना के एक सेवानिवृत्त अधिकारी को कथित तौर पर पाकिस्तानी गुर्गों से संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, जबकि अरुणाचल पुलिस ने जासूसी के एक कथित मामले में पिछले कुछ दिनों में चार कश्मीरी निवासियों को गिरफ्तार किया है.
“एक्सप्रेस न्यूज़ सर्विस” के अनुसार, उत्तरी असम के सोनितपुर जिले के तेजपुर के पाटिया इलाके के निवासी, सेवानिवृत्त जूनियर वारंट ऑफिसर कुलेंद्र सरमा को शुक्रवार देर रात गिरफ्तार किया गया. प्रारंभिक जांच से पता चला है कि उन्होंने पाकिस्तानी गुर्गों के साथ संवेदनशील दस्तावेज़ और जानकारी साझा की थी. पुलिस ने उनके लैपटॉप और मोबाइल फोन को जब्त कर लिया है और उन्हें फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया है.
पुलिस अधीक्षक, बरुण पुरकायस्थ ने कहा कि पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या आरोपी के कोई स्थानीय सहयोगी थे. उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है. 2002 में सेवानिवृत्त हुए सरमा की अंतिम पोस्टिंग तेजपुर में वायु सेना स्टेशन पर थी. बाद में, उन्होंने कुछ समय के लिए तेजपुर विश्वविद्यालय में काम किया. भारतीय वायु सेना के तेजपुर बेस में एक सुखोई 30 स्क्वाड्रन सहित महत्वपूर्ण हवाई संपत्तियां हैं. इस बीच, सीमावर्ती राज्य अरुणाचल में गिरफ्तार किए गए चारों लोग कुपवाड़ा के हैं. 21 नवंबर को, ईटानगर पुलिस ने नज़ीर अहमद मलिक और साबिर अहमद मीर को जासूसी गतिविधियों में उनकी संभावित संलिप्तता के बारे में खुफिया जानकारी के आधार पर गिरफ्तार किया था.
गुजरात भाजपा में कलह: विधायक, सांसद के बीच जुबानी जंग, मोदी के दौरे के लिए 75 लाख मांगे थे
गुजरात भाजपा एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है, क्योंकि इसके दो सदस्यों, राजपीपला की विधायक डॉ. दर्शना देशमुख और भरूच के सांसद मनसुख वसावा के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है.
दिलीप सिंह क्षत्रिय के मुताबिक, भाजपा सांसद मनसुख वसावा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान “नर्मदा जिले के राजनीतिक नेतृत्व और प्रशासनिक व्यवस्था में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार” का आरोप लगाया. हालांकि वसावा ने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया. वहीं, डॉ. दर्शना देशमुख ने सांसद पर अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें आम आदमी पार्टी के डेडियापाड़ा विधायक चैतर वसावा से जोड़ने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि इस वजह से, मेरी छवि को नुकसान पहुंचा है. अगर भ्रष्टाचार है, तो उन्हें इसे साबित करना चाहिए. अन्यथा, मैं मानहानि का मुकदमा दर्ज करूंगी. अगर मुझे अदालत जाना पड़ा, तो मैं निश्चित रूप से जाऊंगी.” देशमुख ने कहा, “सांसद कहते हैं कि मेरी चैतर वसावा के साथ सांठगांठ है, लेकिन मनसुख वसावा ही हैं जिनका उनके साथ घरेलू संबंध है. “
देशमुख की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद, सांसद मनसुख वसावा ने शनिवार को सीधे डॉ. दर्शना देशमुख और चैतर वसावा दोनों पर पलटवार किया. वसावा ने दावा किया, “प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को लेकर एक बैठक के दौरान, आप विधायक चैतर वसावा ने खर्चों के संबंध में अधिकारियों पर दबाव डाला.” “उस समय, डॉ. दर्शना देशमुख पूरी तरह से चुप रहीं.” सांसद ने आरोप लगाया कि ‘आप’ नेता ने एक अधिकारी से ₹75 लाख की मांग की और मामले को दबाने की बात कही.
सीतामढ़ी में एचआईवी के मामले बढ़े, 7,400 से ज़्यादा मरीज़, 400 से अधिक बच्चे संक्रमित
बिहार के सीतामढ़ी जिले से एचआईवी को लेकर चिंता बढ़ाने वाली खबर सामने आई है. ख़बर लेहरिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि जिले में एचआईवी पॉज़िटिव मरीज़ो की संख्या क़रीब 7,400 तक पहुंच गई है. सबसे गंभीर बात यह है कि हर महीने 40 से 60 नए मरीज़ इलाज के लिए सामने आ रहे हैं. यह जानकारी एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) सेंटर से मिली है.
रिपोर्ट के मुताबिक, संक्रमित लोगों में 400 से ज़्यादा बच्चे भी शामिल हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इनमें से अधिकतर बच्चों को यह संक्रमण जन्मजात मिला है. एआरटी सेंटर के डॉक्टर मोहम्मद हसीन अख़्तर ने बताया कि बार-बार जागरूकता अभियान चलाने के बावजूद लोगों में बीमारी को लेकर समझ अभी भी बहुत कम है.
राज्य स्तर पर भी स्थिति गंभीर है. बिहार राज्य एड्स कंट्रोल सोसायटी के अनुसार, पूरे बिहार में इस समय क़रीब 97,046 एचआईवी मरीज़ हैं. सीतामढ़ी में लगभग 5,000 मरीज़ नियमित दवा ले रहे हैं, जिनमें 15 साल से कम उम्र के 341 बच्चे शामिल हैं. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा है कि सरकार एचआईवी को रोकने और जागरूकता बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रही है.
डॉक्टरों का कहना है कि समय पर जांच, सही सलाह और इलाज से बच्चों को एचआईवी से बचाया जा सकता है. लेकिन जागरूकता की कमी, सामाजिक झिझक और देर से इलाज के कारण मामले लगातार बढ़ रहे हैं. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग के सामने यह बड़ी चुनौती बनी हुई है कि सरकारी योजनाओं और सुविधाओं के बावजूद संक्रमण को कैसे रोका जाए.
बहराइच हिंसा: हत्या केस में एक को फांसी, नौ को उम्रकैद; मनुस्मृति के जिक्र पर विवाद
मकतूब मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ बहराइच हिंसा को लेकर उत्तरप्रदेश की एक अदालत के हालिया फ़ैसले ने विवाद खड़ा कर दिया है. साल 2024 की सांप्रदायिक हिंसा के एक मामले में सज़ा सुनाते हुए जज ने मनुस्मृति के एक श्लोक का हवाला दिया, जिसके बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि आधुनिक संवैधानिक न्याय व्यवस्था में धार्मिक या प्राचीन ग्रंथों की क्या भूमिका होनी चाहिए.
9 दिसंबर को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पवन कुमार शर्मा ने महाराजगंज कस्बे में हुई हिंसा के दौरान राम गोपाल मिश्रा की हत्या के मामले में 10 लोगों को सज़ा सुनाई. “इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, अदालत ने मुख्य आरोपी को फांसी और बाकी नौ आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा दी. यह घटना दुर्गा प्रतिमा विसर्जन से जुड़े जुलूस के दौरान हुई थी.
22 वर्षीय राम गोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. घटना से ठीक पहले वह एक मुस्लिम परिवार के घर की छत पर चढ़कर तोड़फोड़ करता हुआ और हरे झंडे को हटाकर केसरिया झंडा लहराता दिखा था. वह उसी जुलूस का हिस्सा था, जिसमें मुख्य सड़क पर एक मस्जिद के सामने तेज़ आवाज़ में इस्लामोफोबिक गाने बजाए जा रहे थे.
इसके बाद हालात बिगड़ गए और उसी शाम व अगले दिन मुस्लिम इलाकों में एक भीड़ ने हिंसा शुरू कर दी. कई मुस्लिम लोगों के साथ मारपीट की गई और हत्या के आरोपियों की तलाश में पुलिस ने रात में छापेमारी कर कई लोगों को हिरासत में लिया.
अपने 142 पन्नों के आदेश में अदालत ने इस अपराध को “बेहद जघन्य” बताया. सज़ा की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए जज ने दंड के निवारक प्रभाव को समझाने के लिए मनुस्मृति के एक श्लोक का उल्लेख किया. इसी बात को लेकर सोशल मीडिया और क़ानूनी हलक़ों में बहस शुरू हो गई. कुछ कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसे ग्रंथों का उल्लेख, जो ऐतिहासिक रूप से भेदभाव से जुड़े रहे हैं, एक धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में गलत संदेश देता है. वहीं, समर्थकों का तर्क है कि जब तक निर्णय क़ानूनी प्रावधानों पर आधारित हो, तब तक ऐतिहासिक या दार्शनिक उद्धरणों को ज़रुरत से ज़्यादा तूल नहीं देना चाहिए.
इस मामले में अपील की संभावना है और माना जा रहा है कि अब यह सिर्फ सज़ा का नहीं, बल्कि न्यायिक सोच और धर्मनिरपेक्षता से जुड़े संवैधानिक सवालों का भी मुद्दा बन सकता है.
तीन साल में महाराष्ट्र के सात जिलों में 14,526 बच्चों की मौत
“पीटीआई” के अनुसार, महाराष्ट्र के लोक स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश आबिटकर ने विधानसभा में सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि पिछले तीन वर्षों में राज्य के सात जिलों में कुल 14,526 बच्चों की मौतें दर्ज की गई हैं. यह संख्या सरकारी सुविधाओं में भर्ती कराए गए शिशुओं और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौतों, साथ ही गंभीर कुपोषण से संबंधित मामलों को शामिल करती है.
इसके अतिरिक्त, मंत्री ने बताया कि महत्वपूर्ण आदिवासी आबादी वाले पालघर जिले में इस अवधि के दौरान 138 शिशु मौतें दर्ज की गईं. नवंबर 2025 तक राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों का हवाला देते हुए, आबिटकर ने कहा कि 203 बच्चों को गंभीर तीव्र कुपोषण से पीड़ित और 2,666 बच्चों को मध्यम तीव्र कुपोषण से पीड़ित के रूप में पहचाना गया. कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 0.23 प्रतिशत दर्ज किया गया, जबकि 1.48 प्रतिशत बच्चे मध्यम रूप से कम वजन की श्रेणी में आते थे.
उन्होंने भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2022 का भी उल्लेख किया, जिसने महाराष्ट्र की नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 11 होने का अनुमान लगाया, जो राष्ट्रीय औसत 23 से कम है. आबिटकर ने उन योजनाओं को भी गिनाया, जो राज्य सरकार द्वारा कुपोषण को कम करने के लिए चलाई जा रही हैं.
चिकित्साकर्मियों को बीमा कवर देना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मरने वाले निजी डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों के परिवारों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत बीमा कवर देने से केवल इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनकी सेवाओं को सरकार द्वारा अधिग्रहित नहीं किया गया था. यह निर्णय बॉम्बे हाई कोर्ट के विपरीत फैसले को रद्द करता है.
क्यूआर कोड पर काम कर रहा यूआईडीएआई
यूआईडीएआई (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ) एक क्यूआर कोड की सुविधा का परीक्षण कर रहा है, जिसमें लोगों का आधार डेटा, उनकी फोटो सहित, शामिल होगा. प्राधिकरण के सीईओ भुवनेश कुमार ने अरुण दीप को बताया कि इसका उद्देश्य “होटल रिसेप्शन जैसे सार्वजनिक स्थानों को आधार की भौतिक प्रतियां मांगने से हतोत्साहित करना” है और यह उपयोगकर्ताओं को चुनिंदा रूप से डेटा साझा करने की अनुमति देगा.
यूके के भारतीयों में लिंग परीक्षण से जुड़े गर्भपात के केस बढ़े
यूके सरकार की एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2017 और 2021 के बीच जिन जातीय भारतीय बच्चों का जन्म क्रम तीन या उससे अधिक था, उनमें लिंग अनुपात 100 लड़कियों पर 113 लड़के था. नोओमी कैंटन की रिपोर्ट के अनुसार, यह असमानता “संकेत दे सकती है कि लिंग-चयनात्मक गर्भपात हो रहे हैं” और यदि ऐसा है तो लगभग 400 ऐसे गर्भपात हुए होंगे.
नार्को-एनालिसिस के लिए सहमति आवश्यक
पटना हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि नार्को-एनालिसिस के लिए सुरक्षा उपायों के साथ स्वतंत्र, सूचित सहमति की आवश्यकता होती है, जिसमें अनैच्छिक परीक्षण को असंवैधानिक और साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं करने वाला बताया गया है. “द हिंदू” की खबर है कि यह फैसला आत्म-दोषारोपण के खिलाफ सुरक्षा को मजबूत करता है और आपराधिक जांच में गोपनीयता और उचित प्रक्रिया को पुष्ट करता है.
खाड़ी के देशों में फिल्म ‘धुरंधर’ पर प्रतिबंध
रणवीर सिंह और अक्षय खन्ना अभिनीत फिल्म ‘धुरंधर’ को खाड़ी के छह देशों - यूएई, सऊदी अरब, कतर, बहरीन, कुवैत और ओमान - में प्रतिबंधित कर दिया गया है. अधिकारियों ने कथित तौर पर इसके ‘पाकिस्तान विरोधी’ राजनीतिक ढांचे को लेकर प्रमाणन देने से इनकार कर दिया है, भले ही फिल्म की बॉक्स-ऑफिस कमाई सप्ताह के अंत में ₹300 करोड़ के करीब पहुंच रही है. बॉक्स-ऑफिस की बात करें तो, “द हॉलीवुड रिपोर्टर” इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे “अकार्बनिक संग्रह” बॉलीवुड को जांच के दायरे में ला रहे हैं. कुछ निर्माताओं द्वारा संख्या में हेराफेरी करने के कारण, व्यापार जगत सतर्क है, और उद्योग की दीर्घकालिक विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं.
दिलजीत दोसांझ की फिल्म शूटिंग पर तनाव
पंजाबी गायक-अभिनेता दिलजीत दोसांझ की आगामी फिल्म की शूटिंग ने कथित तौर पर दुकानदारों की सहमति के बिना, “पाकिस्तानी बाज़ार सेटअप” को दर्शाते हुए फारसी-लिपि वाले होर्डिंग लगाने के बाद पटियाला के पुराने बाज़ार में अप्रत्याशित तनाव पैदा कर दिया.
मोहित खन्ना की खबर है कि प्रोडक्शन टीम ने फिल्म के लिए “पाकिस्तानी बाजार सेटअप” को दर्शाने वाले दृश्यों की शूटिंग के लिए अनुमति मांगी थी. इसी तरह की शूटिंग, जिसमें समान सेटिंग को फिर से बनाया गया था, मलेरकोटला और संगरूर के बाजारों में की गई थी, जहां मामूली विरोध हुआ था.
हालांकि, पटियाला में फ़ारसी-लिपि के बोर्ड दिखाई देने पर स्थानीय दुकानदारों ने तुरंत आपत्ति जताई, जिन्होंने नारे लगाने शुरू कर दिए और होर्डिंग्स को हटाने की मांग की. बढ़ते गुस्से को भांपते हुए, क्रू ने जल्दी से शॉट्स पूरे किए और जल्दबाजी में शूटिंग का काम समेट लिया.
मौके पर मौजूद पुलिस कर्मियों ने कहा कि स्थिति अब नियंत्रण में है और इलाके में सामान्य स्थिति बहाल कर दी गई है. इस बीच, शूटिंग के लिए शहर में मौजूद दिलजीत दोसांझ ने भी बुजुर्ग महिलाओं के एक समूह से मुलाकात की और जाने से पहले उनका आशीर्वाद लिया.
अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.







