14 नवम्बर 2024: 'बुलडोज़र इंसाफ' के खिलाफ़ फैसला, किराना दुकानों पर मंडराता संकट, कांग्रेस दुहरा रही पुरानी गलती, भाजपा ने बदली रणनीति, विवेक रामास्वामी पर ट्रम्प का हाथ, वायलिन के बीच नेहरू की आवाज़
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
सुर्खियाँ: अगर फैसला देने में सुप्रीम कोर्ट दो साल नही लगाता, तो न डेढ़ लाख से ज्यादा मक़ान जमींदोज होते न सात लाख अड़तीस हजार लोग बेघर. आज भारत की विभिन्न सरकारों द्वारा किया जा रहा ‘बुलडोज़र इंसाफ’ असंवैधानिक करार दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने फिर से आज जोर देकर कहा कि किसी आरोपी या अभियुक्त के किसी मक़ान में रहने के कारण उसका मक़ान नहीं ढहाया जा सकता. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन ने अपने फैसले में कहा, ‘किसी इमारत को बुलडोज़र से ढहाए जाने का भयावह नज़ारा न्याय की अनुपस्थिति के बारे में बताता है जहाँ वही सही है जिसके पास ताकत है.” कोर्ट ने कहा इस तरह की कार्रवाई दरअसल शक्तियों के अलग-अलग निकाय रखने के सिद्धांत के खिलाफ है. इस तरह की कार्रवाई से आरोपियों और अभियुक्तों के परिवारों को भी सामूहिक सज़ा दी जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इन कार्रवाइयों को अंजाम देने वाले अफसरों पर कार्यवाही करने को भी कहा. जस्टिस गवई ने इस फैसले की शुरुआत कवि प्रदीप की इन पंक्तियों से की - अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है, इंसान के दिल की ये चाहत है, कि एक घर का सपना कभी न छूटे." इस फैसले की कॉपी का पीडीएफ यहाँ से ले सकते हैं. पता नहीं किसके काम आ जाए. क्योंकि फैसला तो आ गया, अब उस पर राज्य सरकारें किस तरह से अमल करती हैं, यह देखने वाली बात होगी.
रॉयटर्स के मुताबिक गेंहू के दाम इस वक़्त रिकॉर्ड हाई पर हैं, इसके पीछे ज्यादा मांग, कमजोर सप्लाई और सरकार द्वारा इसके भंडार से स्टॉक का नहीं रिलीज करना है.
ब्रिटानिया कम्पनी के प्रमुख वरुण बेरी के हवाले से बताया है कि शहरी आमदनी में कम वृद्धि और हाउसिंग के दामों के बढ़ने के कारण भारत के फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स बाज़ार में मंदी का हाल है. ‘शहरी लोग बिस्कुट से लेकर फास्ट फूड पर होने वाले खर्चों में कटौती कर रहे हैं, क्योंकि मध्य वर्गीय बजट ख़ासे दबाव में है, जिससे भारत की तेजी से बढ़ती आर्थिक वृद्धि को खतरा होगा,’ रॉयटर्स की एक और रिपोर्ट बताती है.
देश के गृहमंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का चुनाव प्रचार करते हुए मुम्बई के बोरिवली में आज कहा कि विपक्षी पार्टियाँ पिछड़े वर्ग के समुदायों का आरक्षण ‘चुरा कर’ मुस्लिमों को देना चाहती हैं. ‘सत्ता के लालच में महा (विकास) अघाड़ी के नेता इस कदर अंधे हो गये हैं, कि वे पिछड़े, दलित और आदिवासी लोगों का आरक्षण छीन कर मुसलमानों को देना चाहते हैं. पर राज्य के लोग ऐसा नहीं होने देंगे और इस बार भी उन्हें सत्ता से बाहर रखेंगे.’ हालांकि महा विकास अघाड़ी के घोषणा पत्र में ऐसा कोई जिक्र नहीं है.
राजस्थान के टोंक जिले के देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा के समर्थकों और पुलिस के बीच तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई. नरेश मीणा ने एसडीएम को थप्पड़ जड़ दिया. देखते ही देखते मामला बढ़ गया और मीणा के समर्थकों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. कई गाड़ियां भी इस दौरान जलाई गई. मीणा के समर्थकों ने हालाँकि पुलिस पर स्थिति बिगाड़ने का आरोप लगाया है. सोशल मीडिया पर इस घटना के कई वीडियो तैर रहे हैं. नरेश मीणा कांग्रेस के बागी उम्मीदवार हैं. कांग्रेस ने इस सीट पर अपने आधिकारिक प्रत्याशी केसी मीणा को टिकट दिया था, जबकि नरेश मीणा ने बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव में उतरने का फैसला किया.
'द गार्डियन' ने X पर को अलविदा कह दिया है और अपने आधिकारिक अकाउंट्स से पोस्ट करना बंद कर दिया है. इसके पीछे मीडिया हाउस ने X प्लेटफॉर्म पर गलत सूचना, विशेषकर अमेरिका चुनाव के संदर्भ में होने पर चिंता जाहिर की है. 'द गार्डियन' ने एलोन मस्क के ट्विटर के अधिग्रहण के बाद X पर हेट स्पीच और गलत जानकारी की समस्याओं को लेकर पहले से ही चिंताएं जताई थीं.
मणिपुर पर चुप गृह मंत्रालय ने कहा 2023 में नार्थ ईस्ट में केवल 38 मरे
'द हिन्दू' के लिए अपने लेख में शोभना के नायर लिखती हैं कि गृह मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि 2023 में पूर्वोत्तर भारत में केवल 38 नागरिकों की मृत्यु हुई, लेकिन मणिपुर में हुई हाल की घटनाओं का उल्लेख नहीं किया है. विपक्षी सांसदों ने इस चुप्पी पर सवाल उठाया है, विशेषकर मणिपुर में हाल ही में दो महिलाओं की हत्या के संदर्भ में. मणिपुर में मई 2023 से जातीय हिंसा जारी है, जिसमें कई निर्दोष नागरिकों की जान गई है. ऐसे में गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में मणिपुर की घटनाओं का उल्लेख न मिलने पर विपक्षी नेता सवाल उठा रहे हैं.
‘मुझे अपना काम करने की सज़ा दी गई’
910 दिन जेल में रहने के बाद जुलाई को छूटे कश्मीरी पत्रकार सजाद गुल ने वैकल्पिक मीडिया प्लेटफॉर्म आर्टिकल 14 को दिये गये इंटरव्यू में बताया गया कि उन्हें जेल में पीटा गया, पासवर्ड बताने के लिए जबरदस्ती की गई, परिवार से बातचीत करने नहीं दी गई और रिपोर्टिंग करने के कारण उन पर झूठे आरोप लगाये गये. गुल पर पीएसए लगाकर जनवरी 2022 में तब गिरफ्तार किया गया था, जब कथित लश्करे तैयबा के कमांडर की हत्या पर विरोध जता रहे परिवार का वीडियो उन्होंने पोस्ट किया था.
संख्यात्मक: 1000 से ज्यादा
बुधवार को दिल्ली ने लाहौर को पछाड़ते हुए दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर होने का तमगा फिर से पहन लिया. स्विस कंपनी आईक्यूएयर की लाइव रैंकिंग के हिसाब से दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 1000 से ज्यादा था (खतरनाक), पर भारतीय प्रदूषण प्राधिकरण ने इस एक्यूआई को 350 बताया.
क्या कांग्रेस महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में फिर से झांसे में फंस रही है?
प्रेम पणिक्कर
जिन चुनावी सर्वेक्षणों की दुहाई देकर कांग्रेस ने हरियाणा में जलेबी बाँटने की दुहाई दी थी, अब उन्हीं की फिर से दुहाई दे रही है. और भाजपा ने चुनाव लड़ने का स्टाइल बदल लिया है.
कांग्रेस पार्टी के मीडिया और प्रचार विंग प्रमुख पवन खेड़ा ने ट्विटर पर एक पोस्ट साझा की कि पार्टी सर्वेक्षणों में संकेत मिला है कि 20 नवंबर को होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महा विकास अघाड़ी को 165-170 सीट मिलेगी.
यह सही है कि विभिन्न सर्वेक्षणों ने तीन दलों वाले एमवीए को 150 से अधिक सीट जीतने की बात कही है. महाराष्ट्र में साधारण बहुमत के लिए 145 सीटों की आवश्यकता है. दूसरी तरफ भाजपा के सर्वे में भी नेतृत्व वाले गठबंधन के हार की आशंका जताई गई है.
साल की शुरुआत में हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी पार्टियों के आंतरिक सर्वेक्षण और सभी पोलस्टर्स एकमत थे कि कांग्रेस आसानी से बहुमत हासिल कर लेगी. और नतीजा देखिए- क्या निकला.
जिस दिन पवन खेड़ा ने पोस्ट किया, उसी दिन मैंने देखा कि एक ब्लू-टिक कांग्रेस समर्थक ने भी राज्य में अमित शाह की रैली में भीड़ की कमी को इंगित करते हुए ट्विटर पर एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी पोस्ट की है. और इसी बात को समझने की जरूरत है.
कांग्रेस ने पहले न तो हरियाणा में और न ही अब महाराष्ट्र में भाजपा की प्रचार रणनीति में हुए भारी बदलाव को समझा है. प्रधानमंत्री भाजपा ने अब मोदी के नेतृत्व में स्टार प्रचारकों की लंबी फौज के जरिये राज्य में रैलियां कर ताकत दिखाने के लिए पैसे लेकर बड़ी संख्या में भीड़ जुटाने के पुराने मॉडल को खत्म कर दिया है. इसका एक बड़ा कारण यह है कि भाजपा को अहसास हो गया है कि मोदी के नेतृत्व में प्रचार अब चुनावी लाभ सुनिश्चित करने का हथियार नहीं रहा. उसकी जगह अब कई अन्य तत्वों से बने जमीनी खेल ने ले ली है. इसमें सबसे उल्लेखनीय है- भाजपा की फंडिंग पर ’स्वतंत्र’ उम्मीदवार उतरना. ऐसे ’स्वतंत्र’ उम्मीदवार उन निर्वाचन क्षेत्रों में बढ़ रहे हैं, जहां साल की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनावों में वोटिंग के आधार पर कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. इसका उद्देश्य एमवीए से वोट छीनना है.
इसी से संबंधित दूसरी रणनीति यह है कि एमवीए के आधिकारिक उम्मीदवारों के समान नाम वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारना है. दर्जनों उदाहरणों में से एक है- तासगांव-कवठे महाकाल निर्वाचन क्षेत्र में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शरद पवार गुट ने पूर्व गृह मंत्री दिवंगत आर आर पाटिल के बेटे रोहित राव साहेब पाटिल को मैदान में उतारा है. वहीं एनसीपी, अजित पवार गुट ने उनके सामने संजय काका पाटिल को उतारा है, लेकिन मैदान में रोहित रावसाहेब पाटिल, रोहित राजगोंडा पाटिल और रोहित राजेंद्र पाटिल भी हैं. सभी निर्दलीय हैं और इनके नाम वरिष्ठ पवार के उम्मीदवार के नाम से मिलते-जुलते हैं. इसके पीछे मतदाताओं को भ्रमित करने का विचार है. पर्दे के पीछे की कानाफूसी को मानें तो इन निर्दलीय उम्मीदवारों की फंडिंग भाजपा कर रही है.
इतना ही नहीं, भाजपा राज ठाकरे और उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को भी अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही है, इसलिए नहीं कि उद्धव के चचेरे भाई के नेतृत्व वाली यह पार्टी का खेल में गंभीर हाथ है, बल्कि इसलिए कि मनसे कई निर्वाचन क्षेत्रों में वोटों को विभाजित कर सकती है, खासकर मुंबई (जहां अकेले 36 सीटें हैं) और पुणे में.
भाजपा अमित शाह की इन रणनीतियों के साथ-साथ, आरएसएस के समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर है. उसके पास अकेले ही उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से मुकाबला करने के लिए पर्याप्त कैडर है. इस बार, आरएसएस दो वजहों से महायुति गठबंधन के पीछे मजबूती से खड़ा है. पहला- आरएसएस जानता है कि महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को जीत दिलाने में मदद करने से हिंदूवादी संगठन अपनी मांगों की एक लंबी सूची को लेकर अच्छी सौदेबाजी की स्थिति में आ जाएगा. दूसरा- आरएसएस यह बात अच्छे से जानती है कि भारत के सबसे अधिक समृद्ध राज्य पर भाजपा के नियंत्रण के क्या फायदे हो सकते हैं.
अगर देखें तो एमवीए पूरी तरह से मजबूत नजर आ रहा है. गठबंधन ने सीटों के बंटवारे की बातचीत बिना किसी गंभीर टकराव के हल कर लिया है. पवार की एनसीपी और कांग्रेस उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार हो गई है, लेकिन एमवीए की किस्मत का फैसला इस बात पर भी निर्भर है कि एक पार्टी के वोट दूसरी दो पार्टियों में कितने मिलते हैं.
हालांकि महायुति गठबंधन में भी तनाव बना हुआ है. यही वजह है कि देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार महायुति गठबंधन के लिए बिना किसी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के चुनाव में उतरे हैं. अमित शाह और केंद्रीय नेतृत्व ने ऐसे मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. इन्हें 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद सुलझाया जाएगा। फिलहाल, प्रत्येक क्षत्रपों को ध्यान केंद्रित करने के लिए विशिष्ट क्षेत्र दिए गए हैं और मतदान के लिए मशीनरी को स्थापित करने पर जोर दिया गया है.
खेड़ा और उनकी पार्टी के पोलस्टर्स के प्रति उचित सम्मान के साथ, आगामी महाराष्ट्र चुनाव अभी तक किसी भी तरफ झुका नहीं है. और यह विचार मतदाताओं के दमन और अपरिहार्य ईवीएम हेरफेर (जिससे ईसीआई चाहे जितना भी इनकार करे, यह एक बहुत बड़ी बात है.) को ध्यान में रखे बिना है.
(प्रेम पणिक्कर क्रिकेट और राजनीति पर लिखते हैं और और उन्हें सब्सटैक पर ही यहाँ पढ़ा जा सकता है. पहले याहू इंडिया के मैनेजिंग एडिटर, इंडिया अब्रॉड मे संपादक और रेडिफ शुरू करने वालों में से रहे हैं. अब बंगलुरु में रहते हैं.)
किराना दुकानें ख़त्म होने की कगार पर हैं, या फिर ये ख़तरा भी झूठा साबित होगा?
परचून की जिन छोटी दुकानों को अमेज़न और वॉलमार्ट ख़त्म नहीं कर सके, पर अब वे डिलीवरी एप्स से चुनौती का सामना कर रही हैं. ‘रेस्ट ऑफ वर्ल्ड’ की इस लम्बी रपट में अनन्या भट्टाचार्य और आदनान भट का कहना है कि ब्लिंकिट और ज़ेप्टो जैसी सर्विसेज़ का अनुमान है कि 2030 तक भारत के 25% से अधिक मोहल्ले के किराना स्टोर बंद हो जाएंगे.
महादेव वाघजी पटेल ने मुंबई के एक समृद्ध इलाके में नौ साल तक चॉइस मार्ट चलाया. उनके स्थानीय ग्राहक महीने की खरीदारी के लिए इस स्टोर पर निर्भर थे और 2010 के दशक के मध्य में जब अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स कंपनियों का प्रचलन बढ़ा, तब भी वे नियमित रूप से यहां आते थे. पटेल ने अपने स्टोर से आय अर्जित की, जिससे उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया.
दो महीने पहले, पटेल ने चॉइस मार्ट बंद कर दिया और एक नए इलाके में हार्डवेयर की दुकान खोल ली. उन्होंने ‘रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड’ से कहा, "10 मिनट के भीतर फ्री डिलीवरी देना संभव नहीं है. सबसे अच्छा विकल्प है दुकान बंद कर देना और अपना काम बदल लेना."
भारत के किराना स्टोर — छोटी दुकानें जो दैनिक आवश्यक वस्तुएं बेचती हैं और लगभग हर शहर के मोहल्ले में होती हैं — ने 20 साल पहले आधुनिक व्यापार के आगमन के बावजूद देश की खुदरा अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ बनाए रखी थी, मुख्य रूप से विदेशी स्वामित्व वाले बड़े स्टोरों के खिलाफ उनके प्रतिरोध की वजह से. ये स्टोर वॉलमार्ट के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ लड़े; जब 2013 में अमेज़न ने भारत में कदम रखा, तो वे ऑनलाइन रिटेलर के साथ मिलकर अपना इन्वेंट्री स्टोर करते हुए और पिकअप पॉइंट के रूप में काम करते हुए जीवित रहे. उन्होंने घरेलू कंपनियों जैसे रिलायंस रिटेल और फ्लिपकार्ट के साथ भी ऐसे ही साझेदारी की.
लेकिन अब ज़ेप्टो, ब्लिंकिट, स्विग्गी इंस्टामार्ट और डनज़ो जैसी तेज़-व्यापार कंपनियाँ एक बड़ी चुनौती बन रही हैं. इन कंपनियों के ग्राहक अक्सर बिना किसी योजना के, अजीब समय पर और अजीब चीज़ों का ऑर्डर करते हैं — जैसे कि 10 मिनट के भीतर अंडरवियर या आईफोन डिलीवर कराना. ये ग्राहक सुविधा और गति को मूल्य से अधिक महत्व देते हैं.
कैरन तौरणी, जो एलेरा कैपिटल के शोध विश्लेषक हैं, ने रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड से कहा, "ये तेज़-व्यापार कंपनियाँ सिर्फ एक बटन क्लिक करने पर और 10 मिनट के भीतर तात्कालिक खरीदारी की सुविधा दे रही हैं और ये भारत के 15 मिलियन किराना स्टोरों में से 25% से अधिक को संकट में डाल सकती हैं." पिछले साल, ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन(एआईसीपीडीएफ) के अनुसार, 200,000 किराना स्टोर बंद हो गए हैं.
कई किराना स्टोर अपने पुराने ग्राहकों को बनाए रखने के लिए होम डिलीवरी की सेवा दे रहे हैं. राजेश गुप्ता, जो नई दिल्ली में 28 साल से एक छोटी सी दुकान चला रहे हैं, ने कहा, "इस दुकान ने मुझे मेरे दोनों बच्चों को पढ़ाने में मदद की." हाल ही में, उनके नियमित ग्राहक कम दुकान पर आने लगे हैं, लेकिन गुप्ता ने उन्हें मुफ्त डिलीवरी देकर बनाए रखा है. "हम डिलीवरी शुल्क नहीं लेते, भले ही ऑर्डर सिर्फ एक बोतल सोडा का हो," उन्होंने कहा.
यह रणनीति पटेल के ‘चॉइस मार्ट’ के लिए काम नहीं आई. पटेल ने कहा, "ज़ेप्टो पर यह 25 रुपये में मिलेगा, और मैं इसे 20 रुपये में दे सकता हूं, लेकिन डिलीवरी करने वाले लड़के को इसे पहुंचाने में 20-25 मिनट लग सकते हैं. तब तक ग्राहक अपना ऑर्डर कैंसल कर देता है." अपने व्यापार के चरम पर, पटेल के पास 12 कर्मचारी थे, जिनमें से कुछ डिलीवरी करते थे, लेकिन मुंबई की ट्रैफिक और अस्थिर पार्किंग के कारण पटेल 10 से 15 मिनट में डिलीवरी का वादा नहीं कर सकते थे.
मूल्य निर्धारण भी एक समस्या थी. जब पटेल ने ग्राहकों को एक नया उत्पाद सुझाया, तो वे कहते थे कि वे उसे ऑनलाइन बहुत सस्ते में खरीद सकते हैं और वे सही थे. पटेल कभी-कभी खुद भी उत्पाद ऑनलाइन खरीदकर अपने स्टोर में बेचते थे — क्योंकि यह खुदरा आपूर्ति श्रृंखला के वितरकों से खरीदने से सस्ता था.
एआईसीपीडीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष धैर्यशील पटेल ने रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड से कहा कि उनका संगठन उचित प्रतिस्पर्धा के लिए लड़ रहा है. उन्होंने कहा, "ये तेज़-व्यापार कंपनियाँ जो कम कीमतें देती हैं, वे ग्राहकों में भ्रम पैदा कर रही हैं. अब बहुत से ग्राहक मानते हैं कि स्टोर मालिक उन्हें लंबे समय से धोखा दे रहे हैं. असल में, ये कंपनियां बाजार में एकाधिकार स्थापित करने के लिए पैसा जला रही हैं."
ज़ेप्टो अगस्त तक 5 बिलियन डॉलर और ब्लिंकिट अप्रैल तक 13 बिलियन डॉलर का मूल्यांकन प्राप्त कर चुका था. टाटा की बिगबास्केट और रिलायंस की जोमार्ट ने डिलीवरी समय को 2-3 घंटे से घटाकर 30 मिनट से भी कम कर दिया है. 4 साल पुरानी ज़ेप्टो ने वित्तीय वर्ष 2023 में 158 मिलियन डॉलर का शुद्ध घाटा रिपोर्ट किया, जबकि ब्लिंकिट ने इसी अवधि में 131 मिलियन डॉलर का शुद्ध घाटा रिपोर्ट किया. ज़ेप्टो और ब्लिंकिट ने इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी.
भारत में तेज़-व्यापार कंपनियाँ वर्तमान में अपनी 90% से अधिक आय देश के 10 या 12 बड़े शहरों से अर्जित करती हैं, एलेरा कैपिटल की रिपोर्ट के अनुसार. पटेल ने कहा कि छोटे शहर अगले हो सकते हैं. "हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इस असमान प्रतिस्पर्धा को अन्य शहरों में फैलने से पहले एक समान खेल का मैदान बनाया जाए," उन्होंने रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड से कहा. तेज़-व्यापार सेवाएँ पहले ही नासिक और विजयवाड़ा जैसे छोटे शहरों में संचालन शुरू कर चुकी हैं.
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से किराना स्टोरों को अभी भी एक फायदा है. एक कारण यह है कि वे उत्पादों को मुफ्त में बदलते और रिफंड करते हैं. पटेल ने कहा कि उनकी दुकान चॉइस मार्ट में अगर वे 100 पेपर प्लेट्स बेचते थे, तो अगर सिर्फ 75 प्लेट्स इस्तेमाल की जातीं, तो वह ग्राहक को बाकी 25 का रिफंड दे देते थे. इसके मुकाबले, ज़ेप्टो की रिटर्न पॉलिसी केवल कपड़े और जूतों पर लागू होती है और वह भी 10 मिनट के अंदर.
किराना स्टोर भी स्टोर क्रेडिट देते हैं. मुंबई के रेग्स जनरल स्टोर के मालिक पीपी पटेल ने रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड से कहा कि उनके कई ग्राहक घरेलू सहायिकाएं हैं, जो अपने नियोक्ता के लिए किराना खरीदती हैं और बिल महीने के अंत में चुकता करती हैं. हालांकि, यह सेवा अब कम हो रही है, क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स "बाय-नाउ-पे-लेटर" विकल्प दे रहे हैं, जो उन शॉपर्स के लिए हैं जिनके पास बैंक खाता है. "पाँच साल में, यह सब खत्म हो जाएगा," पटेल ने कहा.
आप पूरी रिपोर्ट यहाँ पढ़ सकते हैं.
शीर्ष 15% वाले हो गए और अमीर, 18-35 साल के 12 करोड़ लोगों के पास काम-धंधा, न शिक्षा
रतिन रॉय ने 'द इकोनॉमिक टाइम्स' के लिए लिखे अपने लेख में भारत की आर्थिक चुनौतियों और संभावित सुधारों पर बात की है. भारत में पिछले 15 वर्षों में मध्यम वर्ग और गरीब तबके की आय में स्थिरता देखी गई है, जबकि शीर्ष 15% अमीरों की संपत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. इसके विपरीत सबसे गरीब 20% आबादी की आय कुछ हद तक सरकारी सहायता और सब्सिडी के माध्यम से बढ़ी है. आर्थिक असमानता का यह फैलाव भारत को मध्य-आय जाल में फंसाने का खतरा बन सकता है, जिसमें कई देशों की प्रगति रुक गई है. उत्तरी राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार के निवासी अभी भी प्रति व्यक्ति आय में नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से पीछे हैं. भारत में 18-35 आयु वर्ग के 12 करोड़ से अधिक लोग न तो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और न ही रोजगार की खोज में हैं, जिससे उत्पादकता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. ऐसे उत्पाद जिनकी खपत अमीरों के द्वारा बढ़ती है, जैसे कि कार, दुपहिया वाहन, फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) और स्मार्टफोन, अब सीमित हो रही है. मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति में गिरावट आई है, जो विकास दर को धीमा कर सकती है.
कई भारतीय करदाताओं का मानना है कि कर का बोझ अत्यधिक है, खासकर उनके लिए जो भारत की प्रति व्यक्ति आय का कम से कम 350% कमाते हैं. चिंता की बात यह भी है कि पहली बार स्वतंत्र भारत के इतिहास में, कई परिवारों को यह आभास हो रहा है कि उनके बच्चों का आर्थिक भविष्य, उनके अपने स्तर से कम या समान होगा. यह सब भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि अगर नीतियों और संरचनाओं में बदलाव नहीं किया गया, तो देश की आर्थिक प्रगति बाधित हो सकती है.
हंसल मेहता ने याद दिलाये वित्त मंत्री को महिलाओं के साथ हुए अपराधों के भयावह आंकड़े
एक कार्यक्रम के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक छात्र के पितृसत्ता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था, ऐसा कुछ नहीं है और ये वामपंथियों की कपोल कल्पना है. उन्होंने ही इस शब्द को गढ़ा. वित्तमंत्री की इस बयान के बाद भारत में खूब आलोचना हुई.
सीतारमण के बयान के बाद 'स्कैम', 'अलीगढ़' और 'फराज़' के फिल्ममेकर हंसल मेहता ने ट्विटर पर वित्तमंत्री पर निशाना साधा है. हंसल मेहता ने एनसीआरबी के आँकड़ों के हवाले देते हुए ट्वीट किया- ‘वामपंथियों को भूल जाइये. वे निरर्थक और अप्रासंगिक हो सकते हैं. यहां राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो डेटा की प्रारंभिक खोज से कुछ डेटा दिया गया है: ’-
दहेज मृत्यु: 2021 में 6,589 मामले दर्ज हुए, जो 2020 से 3.85% कम थे. सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश (2,222) में थे, और हरियाणा में प्रति लाख जनसंख्या पर सबसे अधिक दर दर्ज की गई.
बलात्कार: 2022 में 31,516 मामले दर्ज हुए, प्रतिदिन औसतन 86 मामले। 2012 में 24,923 मामले थे, जो 2021 तक बढ़कर 31,677 हो गए.
महिलाओं के खिलाफ अपराध: 2021 में 428,278 मामले दर्ज हुए जो 2022 में 4% बढ़कर 445,256 हो गए. प्रति लाख महिलाओं पर अपराध दर 2021 में 64.5 से बढ़कर 2022 में 66.4 हो गई.
वैवाहिक हिंसा: 32% महिलाओं ने अपने पति से शारीरिक, यौन, या भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है.
कितना जानते हैं आप अपने विवेक रामास्वामी को?
अमेरिका में इन दिनों भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी एक ऐसा नाम है, जो ट्रम्प की वापसी के साथ ही अब जोर से गूँज रहा है. अमेरिका के अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी सरकार के अहम पदों पर नियुक्तियां शुरू कर दी हैं. ट्रम्प ने एक्स, टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलोन मस्क के साथ विवेक रामास्वामी को डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी (डीओजीई) का प्रमुख बनाया है. ट्रम्प ने इसकी घोषणा करते हुए एलन मस्क को 'ग्रेट एलोन मस्क' कहा है और विवेक रामास्वामी को 'देशभक्त अमेरिकी' बताया है. यह ज़िम्मेदारी मिलने पर विवेक रामास्वामी ने लिखा है- ‘हम लोग नरमी से पेश नहीं आने वाले हैं’. रामास्वामी ने खुद को राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से खुद को दावेदार घोषित किया था, पर जल्द ही वे रेस से बाहर हो गये थे.
बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना और संघीय विभागों को बंद करने की योजना भी उन्हें चर्चित बनाती है. विवेक अमेरिका के शिक्षा विभाग, परमाणु नियामक आयोग, घरेलू राजस्व सेवा और एफ़बीआई को टैक्स की बर्बादी बताते हैं और इसे बंद करने की वकालत करते हैं.
विवेक रामास्वामी चाहते हैं कि एच-1बी वीज़ा प्रोग्राम ख़त्म हो. अमेरिका में विदेशी कुशल कर्मचारियों को भर्ती करने के लिए नियोक्ताओं द्वारा इस प्रोग्राम का इस्तेमाल किया जाता है. अगर ये ख़त्म होता है तो भारतीयों को भी नुक़सान होगा.
रामास्वामी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और उनके प्रोडक्ट को ‘लत लगाने वाला’ बताते हुए आलोचना की थी. हाल ही में उन्होंने टिक टॉक को ‘डिजिटल फेंटानिल’ तक कहा. उन्होंने कहा था, ‘इन्हें इस्तेमाल करने वाले 12-13 साल के बच्चों पर क्या असर होता होगा, इसे लेकर मैं चिंतित हूं.’ रिपब्लिकन डिबेट के दूसरे चरण में उन्होंने बच्चों द्वारा सोशल मीडिया इस्तेमाल पर बैन लगाने की बात कही थी .
रामास्वामी का कहना है कि वोट देने की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 25 साल किया जाना चाहिए. उनका प्रस्ताव है कि 18 साल तक के लोगों को भी वोट का अधिकार तभी मिले जब वो ‘राष्ट्रीय सेवा ज़रूरतों’ की शर्त पूरा करते हों. यानी या तो वो इमरजेंसी में मददगार हुए हों या सेना में छह महीने की सेवा दे चुके हों.
‘वोक’ किताब के लेखक, करोड़ों के मालिक और उद्यमी विवेक रामास्वामी ने हाल ही के वर्षों में अमेरिकी राजनीति में अपना नाम बनाया है. विवेक रामास्वामी के परिवार की जड़ें केरल से जुडी हैं.
वो रिपब्लिकन पार्टी के लिए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार की दौड़ में शामिल थे, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी. वो एक भी प्राइमरी नहीं जीत पाए थे और इस दौड़ से बाहर होना पड़ा था. विवेक ने खुद को ट्रैम्प के उत्तराधिकारी के रूप में भी पेश करने की कोशिश की है.
39 साल के रामास्वामी का जन्म ओहायो में हुआ था और उन्होंने हार्वर्ड और येल से पढ़ाई की.
विवेक रामास्वामी ने बायो टेक्नॉलजी के क्षेत्र में करोड़ों रुपये कमाए. इसके बाद उन्होंने एसेट मैनेजमेंट फर्म बनाई. उन्होंने बायोटेक कंपी रोयवेंट साइंसेज की स्थापना की जो अब सात अरब डॉलर की हो चुकी है. वो एक इन्वेस्टमेंट फर्म के भी सह-संस्थापक हैं. फोर्ब्स के मुताबिक़ विवेक रामास्वामी की कुल संपत्ति 63 करोड़ डॉलर है. उनकी प्रमुख कंपनी "एविडियो" ने कैंसर, त्वचा रोग, और अन्य गंभीर बीमारियों के लिए नई चिकित्सा पद्धतियों का शोध किया. 2021 में, उन्होंने कंपनी को 7.2 बिलियन डॉलर में बेच दिया, जिससे उनकी संपत्ति में भारी वृद्धि हुई.
विवेक की शादी अपूर्वा तिवारी से हुई है और वो ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी वेक्सनर मेडिकल सेंटर में सर्जन और असिस्टेंट में प्रोफ़ेसर हैं. विवेक अपने परिवार के साथ कोलंबस में रहते हैं. उनके दो बेटे हैं.
उनके पिता वी गणपति रामास्वामी ने कालीकट के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (तब वे रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज कहलाते थे) से ग्रेजुएशन के बाद अमेरिका में इंजीनियर के तौर पर काम किया. उनकी मां ने अमेरिका में एक मनोचिकित्सक के तौर पर काम किया. 2023 में अयोवा स्टेट फेयर में विवेक ने बताया था कि उनकी मां ने अमेरिकी नागरिकता ली है, जबकि उनके पिता के पास अब भी भारतीय पासपोर्ट है.
विवेक रामास्वामी का परिवार 1970 के दशक में भारत से अमेरिका आया था. विवेक का जन्म अमेरिका के ओहायो राज्य के सिनसिनाटी में हुआ था.
रामास्वामी का विचार है कि अमेरिकी सरकार को ‘वैश्विकवादी’ समझौतों से बाहर निकलकर अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए. वह बेरोजगारी, आय असमानता और स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दों पर अपनी विचारधारा प्रस्तुत करते हुए सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा सुधारों और एक नई आर्थिक नीति की वकालत करते हैं. रामास्वामी का मानना है कि ट्रम्प ने अमेरिकी राजनीति में एक नए दृष्टिकोण को जन्म दिया है और उन्होंने राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया है. विवेक रामास्वामी ने कई विवादों को जन्म दिया है, खासकर उनके विचारों और राजनीतिक घोषणाओं के कारण. सबसे बड़ा विवाद 2023 में उस समय उठा जब उन्होंने भारतीय अमेरिकियों के खिलाफ कथित रूप से असंवेदनशील टिप्पणियाँ की. इसके अलावा, उनका ‘ऑक्सीजन की कमी’ के संबंध में दिया गया एक बयान भी मीडिया में चर्चित रहा था. रामास्वामी का मानना है कि रूस यूक्रेन युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से ख़त्म करने के लिए रूस को कुछ बड़ी छूट देनी चाहिए. उन्होंने जून में एसीबी न्यूज़ से कहा था कि कोरियाई युद्ध की तरह एक ऐसा समझौता होना चाहिए जिसमें दोनों पक्षों को अपने अपने नियंत्रण वाले इलाक़ों पर वैधता दे दी जाए. उनका मानना है कि अमेरिकी सेना के लिए सबसे बड़ा ख़तरा चीन-रूस गठबंधन और नेटो में यूक्रेन के न शामिल होने का स्थायी आश्वासन है लेकिन इसके बदले रूस को अपने गठबंधन और चीन के साथ सैन्य समझौते से पीछे हटना होगा. उनके अनुसार, रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन को अधिक हथियार देना, रूस को चीन के हाथों में धकेलने जैसा है.
सामंथा हार्वी की 'ऑर्बिटल' ने जीता 2024 का बुकर प्राइज
सामंथा हार्वी की किताब 'ऑर्बिटल' ने 2024 का बुकर प्राइज जीत लिया है. हार्वी की किताब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर छह काल्पनिक अंतरिक्ष यात्रियों की कहानी कहती है. बुकर के चयनकर्ताओं ने हार्वी की कृति को "सौंदर्य और महत्वाकांक्षा" के कारण सर्वसम्मति से विजेता के रूप में चुना. हार्वी ने इस मौके पर अपने भाषण में कहा- ‘मैं उम्मीद नहीं कर रही थी कि ऐसा होगा’. हार्वी ने अपनी जीत को उन लोगों को समर्पित किया जो "धरती, मानवता और शांति के लिए बोलते हैं."
पिछले नवंबर में प्रकाशित 'ऑर्बिटल' ने इस साल की शॉर्टलिस्ट की सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब का खिताब भी जीता, जिसकी ब्रिटेन में 29,000 प्रतियाँ बिकीं. यह किताब एक दिन के भीतर छह सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुभव करते हुए इसके पात्रों के जीवन का चित्रण करती है.
कर्नाटक में 1000 करोड़ का कोविड स्कैम
कर्नाटक से कोविड-19 के दौरान हुई गड़बड़ियों और घोटालों की एक जांच रिपोर्ट सामने आई है. यह रिपोर्ट न्यायमूर्ति माइकल डी कुन्हा की अध्यक्षता वाली एक आयोग द्वारा तैयार की गई है, जिसमें कोविड-19 प्रबंधन के दौरान आपूर्ति और प्रोक्योरमेंट (खरीदारी) में भारी अनियमितताओं का खुलासा किया गया है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1000 करोड़ रुपये की राशि का गबन हुआ है और इस दौरान कई महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब हो गए थे. रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं, उपकरणों और ऑक्सीजन की खरीदारी में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था.
चलते-चलते : वायलिन के बीच नेहरू की आवाज़
वायलिन बजते - बजते ठिठकती है और फिर नेहरू की आवाज़ आने लगती है. गाँधी की हत्या पर वे कह रहे हैं कि रोशनी चली गई है.. यह नेहरू के मशहूर भाषण का हिस्सा है. यह रिकार्डिंग प्रगति मैदान में आज के दिन 1988 मे हुए नेहरू जन्मशती समारोह के दौरान हुई थी. जिसका कैसेट बना कर इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर बाज़ार में लाया था. उसकी कीमत 39 रुपये थी. हम में से कुछ ने डॉ एल सुब्रमण्यम का यह वादन दूरदर्शन पर देखा था और कैसेट भी खरीदा था. नेहरू के लिए आज बहुत सारे भाषण दिये जाएंगे, बहुत सारे लोग बात करेंगे, पर यह श्रृद्धांजलि इसलिए अनूठी है कि इसमें खुद जवाहर लाल की आवाज़ हैं. और बस वायलिन की. वायलिन फिर चलने लगती है. पेशे से डॉक्टरी पढ़े सुब्रमण्यम कर्नाटिक संगीत के सबसे मशहूर संगीतज्ञों में से एक हैं और साथ ही वेस्टर्न क्लासिकल के बड़े सितारों के साथ भी उन्होंने परफॉर्म किया हुआ है. नोट कीजिए इसमें शोर कितना कम है, और उजास कितनी ज्यादा. …और तसल्ली भी.
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