14/03/2025 : रुपये का निशान तमिल किया, होली पर मस्जिदों पर तिरपाल, बांकेबिहारी के कपड़े, नीट के लिए सरकार ने छात्रों को दोषी बताया, कुकी बातचीत विफल, पुतिन को ऐतराज, अब चीनी सुपर कंप्यूटर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
होली के अवकाश के चलते 15 मार्च को आपका लोकप्रिय हिंदी न्यूजलेटर 'हरकारा' उपलब्ध नहीं हो सकेगा. आप तमाम पाठकों/श्रोताओं को होली की शुभकामनाएं.. बुल्ले शाह की इन पंक्तियों के साथ…
होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह / नाम नबी की रतन चढ़ी बूँद पड़ी अल्लाह अल्लाह
रंग-रंगीली ओही खिलावे जो सखी होवे फ़ना-फ़िल्लाह /होरी खेलुँगी कह कर बिस्मिल्लाह
आज की सुर्खियाँ
नीट परीक्षा लीक के लिए 45 छात्र जिम्मेदार
ग्रेट निकोबार के आदिवासियों पर विस्थापन की गाज और मंत्री की टालमटोल
अमेरिका में भारतीय प्रवासी
कैलाश खेर को कोर्ट से राहत
महाराष्ट्र में किसानों का प्रदर्शन
कैसे हटाई गईं वंतारा से जुड़ी खबरें
इस साल दार्जिलिंग चाय का सबसे कम उत्पादन
तुषार गांधी का किया घेराव
डीप सीक के बाद सुपर कंप्यूटर में चीनी धमाका!
ब्लड मून और पूरा ग्रहण आज
त्रिभाषा विवाद
रुपये के निशान “₹” की जगह तमिल अक्षर “ரூ” ?
त्रिभाषा फार्मूले को लेकर केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच तनाव-तकरार जारी है. तमिलनाडु सरकार ने राज्य के बजट लोगो में आधिकारिक भारतीय रुपये के प्रतीक चिन्ह “₹” को तमिल अक्षर “ரூ” से बदल दिया है. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने यह कदम क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग के बारे में चल रही बहस के दौरान उठाया है. स्टालिन ने केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति को “भगवाकरण नीति” कहते हुए इसकी आलोचना की है. भारत में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं और तमिल उनमें से एक है, लेकिन एक मानक प्रथा के रूप में भारतीय रुपये (INR) के लिए केवल एक ही प्रतीक होता है. यह प्रतीक देवनागरी अक्षर “र” (जिसे “रा” पढ़ा जाता है) और रोमन अक्षर “R” से प्रेरित है. स्टालिन 14 मार्च को वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए राज्य का बजट पेश करेंगे. उन्होंने अपने “एक्स” हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें बजट दस्तावेज़ का लोगो दिखाया गया. इस पर प्रतीक चिन्ह के स्थान पर तमिल अक्षर “ரூ” के साथ “तमिलनाडु बजट 2025-26 : सबके लिए सब कुछ” लिखा हुआ था. इस बदलाव ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, क्योंकि यह पहली बार है जब किसी राज्य ने आधिकारिक राष्ट्रीय मुद्रा प्रतीक को सरकारी प्रकाशन में हटा दिया है. डीएमके नेताओं का कहना है कि यह कदम तमिल भाषा को प्राथमिकता देने के लिए उठाया गया है, जबकि बीजेपी ने यह कहकर इसे स्टालिन का “मूर्खतापूर्ण कदम” बताया है कि रुपये के प्रतीक चिन्ह “₹”, डीएमके के पूर्व विधायक के पुत्र थिरु उदयकुमार का डिजाइन किया हुआ है. तमिलनाडु सरकार ने इस बदलाव पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह कदम हिंदी थोपने के आरोपों और त्रि-भाषा नीति के विरोध की पृष्ठभूमि में आया है.
दिल्ली में ब्रिटिश युवती से गैंग रेप : दिल्ली के एक होटल में ब्रिटिश युवती के साथ गैंग रेप का मामला सामने आया है. पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है और ब्रिटिश उच्च आयोग को घटना की जानकारी दे दी गई है. घटना 11 मार्च की महिपालपुर इलाके की है. पीड़ित युवती भारत घूमने के लिए आई थी.
यूपी में कई मस्जिदें तिरपाल से ढंकी गईं, देश में कई जगह जुमे की नमाज़ का समय बदला

इस बार होली रमज़ान के पवित्र माह में जुमे के दिन पड़ रही है, कुछ भाजपा नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मुसलमानों को रंगों से समस्या होने पर घर के अंदर रहने की सलाह दी जा रही है, लिहाजा उत्तरप्रदेश के विभिन्न जिलों में बुधवार को मस्जिदों को तिरपाल से ढंक दिया गया. राज्य के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी जुमे की नमाज़ का समय बदलकर अब दोपहर 2 बजे के बाद कर दिया है. शांति बनाए रखने के लिए डीजीपी प्रशांत कुमार ने सभी जिला पुलिस प्रमुखों, कमिश्नरेट्स और पुलिस जोन व रेंज प्रमुखों को 20 बिंदुओं के निर्देश भेजे हैं, जिनमें संवेदनशील क्षेत्रों में भारी पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात करने का आदेश दिया गया है.
"अति संवेदनशील" संभल जिले, जो पिछले कुछ महीनों से शाही जामा मस्जिद के न्यायालय द्वारा आदेशित सर्वेक्षण को लेकर खबरों में रहा है, में बुधवार को कई मस्जिदों को तिरपाल से ढंक दिया गया. संभल की शाही जामा मस्जिद के अध्यक्ष जफर अली ने घोषणा की कि होली के कारण 14 मार्च को जुमे की नमाज़ दोपहर 2:30 बजे होगी. प्रशासन द्वारा मस्जिदों को तिरपाल से ढंकने का स्वागत करते हुए अली ने इसे एक सकारात्मक कदम बताया.
शाहजहांपुर जिले में 75 से अधिक मस्जिदों और दरगाहों को तिरपाल या कपड़ों से ढंका गया है. यह जिला ‘जूता मार होली’ की परंपरा के लिए जाना जाता है, जिसमें जूते-चप्पलों का उपयोग करके होली खेली जाती है. “जूता मार होली”, जो स्वतंत्रता-पूर्व ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विरोध स्वरूप शुरू हुई थी, में लोग “लाट साहब” (ब्रिटिश अधिकारियों को लाट साहब कहा जाता था) का पुतला निकालते हैं. इस पुतले के गले में जूते-चप्पलों की माला डाली जाती है और शोभायात्रा के दौरान लोग उस पर जूते-चप्पल फेंकते हैं. वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “जूते और चप्पल फेंकने से कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा होने से बचने के लिए सभी मस्जिदों और दरगाहों को ठीक से ढक दिया गया है.” इसी तरह, मथुरा, अयोध्या, वाराणसी, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, आगरा, कानपुर, गोंडा, बहराइच और सिद्धार्थनगर जैसे जिलों में अतिरिक्त अर्धसैनिक बल तैनात किए गए हैं.
खबर है कि 64 साल बाद होली और रमज़ान का जुमा एक साथ पड़ रहे हैं. सिर्फ यूपी ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी सुरक्षा की दृष्टि से कदम उठाए गए हैं और प्रशासन अलर्ट पर है. कई राज्यों में मुस्लिम धार्मिक गुरुओं ने जुमे की नमाज़ के वक्त में बदलाव किया है. इस बीच पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य का माहौल खराब किया है. वह वही कर रहे हैं, जो जिया उल हक ने पाकिस्तान में किया था. ये लोग यहां भी वही जहर बो रहे हैं. आने वाले समय में देश के लिए इसके परिणाम खतरनाक होंगे.
नीट परीक्षा लीक के लिए 45 छात्र जिम्मेदार
“द टेलीग्राफ” की खबर के अनुसार मोदी सरकार ने परीक्षा केंद्र के अधिकारियों की संलिप्तता पर चर्चा से बचते हुए 2024 नीट पेपर लीक का दोष 45 छात्रों पर मढ़ा है. बुधवार को राज्यसभा में इस संबंध में एक सवाल के जवाब में शिक्षा राज्यमंत्री सुकांत मजूमदार ने बताया कि सीबीआई जांच चल रही है और पांच चार्जशीट दाखिल की गई हैं. हालांकि, जब कांग्रेस सांसद नीरज डांगी ने उनसे पूछा कि क्या किसी अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया गया है, तो मजूमदार ने इस सवाल को टाल दिया. इसके बजाय उन्होंने एम्स (2006) और क्लैट (2009) जैसी पुरानी परीक्षा लीक का हवाला देकर यह जताने की कोशिश की परीक्षा लीक की घटनाएं नई नहीं हैं.
मणिपुर : स्वतंत्र आवाजाही को लेकर केंद्र की कुकी संगठनों से बातचीत विफल
मणिपुर में केंद्रीय गृह मंत्रालय और कुकी-जो संगठनों प्रमुख सड़कों पर ‘स्वतंत्र आवाजाही’ फिर से शुरू करने पर बने गतिरोध का हल निकालने में विफल रहे हैं. चुराचांदपुर में आयोजित बैठक में कोई नतीजा नहीं निकल पाया, क्योंकि कुकी प्रतिनिधियों ने एक प्रदर्शनकारी की मौत के बाद कांगपोकपी जिले में एसपी को निलंबित करने पर जोर दिया. इसके साथ ही मैतेई के साथ चल रहे संघर्षों के कारण अपने लिए एक अलग प्रशासन की मांग की.
कुकी संगठनों ने एनएच-2 और एनएच-37 पर अपनी नाकाबंदी जारी रखी है. इससे इंफाल से बसों को प्रतिबंधित कर दिया गया है, जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने मुक्त आवाजाही की अनुमति देने का आदेश दिया था. फ्री मूवमेंट व्यवस्था को समाप्त करने का केंद्र का फैसला म्यांमार से अवैध प्रवास और सीमा पार अपराध को रोकने के उद्देश्य से था, लेकिन इसने क्षेत्र में तनाव बढ़ा दिया है. इसकी वजह यह है कि कुकी-जो समूहों ने इसे सीमा पार अपने सह-जातीय निवासियों से बातचीत रोकने के संदर्भ में देखा.
वहीं सुशांत सिंह ने हिंसा को रोकने में भाजपा सरकार की अक्षमता पर लिखा है, “मणिपुर में हिंसा का जारी रहना भारत की राष्ट्रीय एकता और स्थिरता को कमजोर करने का खतरा पैदा करता है. मणिपुर का म्यांमार और बांग्लादेश की सीमा से सटा होना इसे एक महत्वपूर्ण गलियारा बनाता है.”
ग्रेट निकोबार के आदिवासियों पर विस्थापन की गाज और मंत्री की टालमटोल
राज्यसभा में उस समय हंगामा मच गया जब जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने विवादास्पद ग्रेट निकोबार परियोजना के कारण आदिवासियों के संभावित विस्थापन पर लिखित जवाब देने से बचने की कोशिश की. विपक्षी नेताओं ने मंत्री पर पर्यावरण और जनजातीय चिंताओं से जुड़े सवालों को टालने का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया. टीएमसी के साकेत गोखले और कांग्रेस के जयराम रमेश ने ओराम को घेरते हुए एनजीटी और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा परियोजना को लेकर दी गई चेतावनियों पर जवाब मांगा. लेकिन, पारदर्शिता दिखाने की बजाय ओराम ने श्रीलंका में चीन की उपस्थिति का हवाला देकर परियोजना को सही ठहराने की कोशिश की. उनके टालमटोल वाले इस रवैये से विपक्षी दलों के सदस्य गुस्से से और भड़क उठे. 'हरकारा' के 9 नवंबर के अंक में हमने ‘ग्रेट निकोबार मसले’ पर विस्तार से लिखा है.
सुधा ने फिर बयान दिया : अपने पति की संवेदनहीन टिप्पणियों के नक्शेकदम पर चलते हुए, व्यवसायिक महारथी नारायण मूर्ति की पत्नी और मनोनीत राज्यसभा सांसद ने एक बार फिर विवाद में कदम रखा है. उन्होंने हिंदुत्व प्रतिष्ठान की त्रिभाषा नीति का समर्थन किया है, जिसका तमिलनाडु ने विरोध किया है. उनका तर्क है : "मैं आठ भाषाएं जानती हूँ." पर मूर्ति की बात पर किसी ने तंज कसा, "क्या फायदा जब आप उन आठ भाषाओं में भी समझदारी की बात नहीं कर सकतीं?"
अमेरिका में भारतीय प्रवासी : माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने अमेरिका में प्रवासियों और आव्रजन से जुड़े अक्सर मांगे जाने वाले आँकड़ों का नवीनतम अपडेट जारी किया है. 2023 में अमेरिका में जन्मे 109 लाख मैक्सिकन निवासी सबसे बड़े प्रवासी समूह थे, जबकि भारत से 29 लाख प्रवासी थे. 2023 तक, पिछले एक वर्ष में अमेरिका पहुँचने वाले प्रवासियों के शीर्ष मूल देश मैक्सिको, भारत और क्यूबा थे. 2010 से 2023 के बीच, भारत से अमेरिका के प्रवासी आबादी में 11 लाख से अधिक की वृद्धि हुई.
चीनी पहियों पर चलती आपकी रेलगाड़ी : पिछले पाँच वर्षों में, पहियों और एक्सल के आयात में पाँच गुना वृद्धि हुई. संभवतः वंदे भारत और अन्य प्रीमियम ट्रेनों के लिए. 2023-24 में इनका आयात 1,600 करोड़ रुपये से अधिक रहा, जिसमें से 90% से अधिक चीन से आए.
कैलाश खेर को कोर्ट से राहत : लीगल न्यूज वेबसाइट ‘लाइव लॉ’ की खबर है कि बॉम्बे हाईकोर्ट ने गायक कैलाश खेर के खिलाफ भगवान शिव पर गाए गए गीत को लेकर धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में दर्ज शिकायत को खारिज करते हुए कहा कि असहिष्णुता और रूढ़िवाद से असहमति भारतीय समाज के लिए अभिशाप रही है. कोर्ट ने लेखक ए. जी. नूरानी का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की. न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति एस. सी. चंदक की खंडपीठ ने कहा कि खेर ने केवल 'बम बम' गीत गाया था और उनका किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादा नहीं था.
महाराष्ट्र में किसानों का प्रदर्शन : 12 जिलों के किसान मुंबई के आजाद मैदान में इकट्ठा हुए, ताकि प्रस्तावित नागपुर-गोवा शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे के खिलाफ प्रदर्शन कर सकें, जिसकी अनुमानित लागत ₹86,300 करोड़ है. उनकी मुख्य चिंता इस परियोजना के भूमि अधिग्रहण की आवश्यकताओं के कारण कृषि भूमि के संभावित नुकसान को लेकर है. पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने बढ़ी हुई लागतों की आलोचना करते हुए परियोजना की आवश्यकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है. विपक्षी नेताओं ने इस विरोध में हिस्सा लिया, जबकि मुख्यमंत्री फडणवीस ने परियोजना का बचाव करते हुए इसके मराठवाड़ा के लिए संभावित फायदों का बखान किया है.
पाठकों से अपील
बांकेबिहारी पहनते रहेंगे मुस्लिम हाथों से बनी पोशाक!
नफ़रती बयानों-टिप्पणियों के बीच वृंदावन से यह एक अच्छी खबर आई है कि बांके बिहारी मंदिर ने भगवान कृष्ण की पोशाक के लिए मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाए गए वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. मंदिर ने स्पष्ट किया कि ठाकुरजी के प्रति श्रद्धा रखने वाले किसी भी व्यक्ति से वस्त्र स्वीकार किए जाते हैं. यह प्रस्ताव श्री कृष्ण जन्मभूमि संघर्ष न्यास के दिनेश फलाहारी द्वारा एक ज्ञापन में प्रस्तुत किया गया था. फलाहारी ने मांग की थी कि गैर-हिंदुओं द्वारा अर्पित किये जाने वाले वस्त्रों को अस्वीकार्य किया जाना चाहिए.
उधर, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने शिवाजी महाराज की सेना में मुसलमानों की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा है कि भारतीय मुसलमान देशभक्त हैं. पवार ने राजनेताओं से ऐसे बयान देने से बचने की अपील की, जो सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकते हैं.
अपूर्वानंद : सांप्रदायिक रंगों से होली खेलते आदित्यनाथ और नौकरशाह
होली आ गई है. हमने इसे तब महसूस किया जब पुलिस अधिकारियों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने घृणा कीचड़ और पत्थर हर तरफ फेंकने शुरू कर दिए. बचपन से ही हमने देखा है कि होली मनाने वाले सिर्फ रंग लगाने या फेंकने के आनंद से संतुष्ट नहीं होते. दूसरों को कीचड़ और पत्थर से चोट पहुँचाने में एक अलग किस्म का उन्माद होता है. होली में जबरदस्ती का तत्व इसे अन्य हिंदू त्योहारों से अलग करता है. होली के नाम पर गुंडागर्दी को वैध मान लिया जाता है. अश्लीलता और हिंसा के लिए रियायत माँगी जाती है कि "बुरा न मानो, होली है". आपत्ति करने वालों का मजाक उड़ाया जाता है. क्या होली के दौरान इतना भी सह नहीं सकते? होली को पारंपरिक रूप से एक ऐसा अवसर माना जाता रहा है, जब यौन विकृतियों को प्रदर्शित किया जा सके और अशिष्टता व हिंसा के लिए सहनशीलता की माँग की जा सके.
होली के इस स्वभाव का फायदा उठाकर भाजपा नेता और उनके समर्थक मुसलमानों के प्रति अपनी इस्लाम विरोधी घृणा का कीचड़ उछाल रहे हैं. हालाँकि, हम जानते हैं कि उन्हें ऐसा करने के लिए होली का बहाना नहीं चाहिए. साल भर, हर दिन, वे किसी न किसी बहाने से अपनी नफरत फेंकते रहते हैं. हिंदू त्योहारों के समय यह और तीव्र हो जाता है. चाहे राम नवमी हो, दुर्गा पूजा, शिवरात्रि या दिवाली, मुसलमानों को विभिन्न बहानों से मौखिक और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है.
अब यह सिर्फ भाजपा कार्यकर्ता ही नहीं कर रहे. राज्य के अधिकारी भी उनकी नफरत भरी पंक्तियों में शामिल हो रहे हैं. इसमें उनके बीच एक प्रतिस्पर्धा सी दिखती है. सम्भल के सर्कल अधिकारी अनुज चौधरी ने हाल ही में मुसलमानों को उपदेश दिया, "जुमा (शुक्रवार) साल में 52 बार आता है, लेकिन होली साल में एक बार. जिन्हें होली के रंगों से समस्या है, वे घर के अंदर रहें और वहीं नमाज अदा करें."
यह बयान बिना किसी उकसावे के दिया गया. इस साल होली शुक्रवार, यानी जुमा के दिन पड़ रही है. उस दिन दोपहर में प्रमुख जुमा नमाज होती है. रमजान का महीना होने के कारण जुमा नमाज और भी खास है. लेकिन क्या सम्भल के मुसलमानों ने कहा है कि वे जुमा नमाज के समय होली के उत्सव को रोकना चाहते हैं? क्या प्रशासन से ऐसी माँग की गई? जवाब नहीं है. फिर एक सरकारी अधिकारी ने ऐसा बयान क्यों दिया? क्या वह उकसावा पैदा नहीं कर रहे जहाँ कोई नहीं था?
ये अधिकारी हाल ही में सरकारी अधिकारियों की बजाय भाजपा कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं. हमने चौधरी को हनुमान गदा लेकर जुलूस में मार्च करते देखा है. पुलिस अधिकारी कांवड़ियों के पैर धोते और उन पर फूल बरसाते हुए फोटो खिंचवाते हैं. सम्भल के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस प्रमुख हाल ही में खोए हुए मंदिरों की तलाश में घूमते, उनकी सफाई करते और पुनर्जीवित करने के लिए वहाँ अनुष्ठान करते देखे गए.
आम तौर पर, हम राज्य के अधिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि तनाव की स्थिति में शांति और सद्भाव के लिए काम करें. सामान्य समय में, प्रशासनिक या पुलिस अधिकारी होली से पहले जनता से अपील करते कि उत्साही लोग अपने उमंग को नियंत्रित करें और सीमाओं का सम्मान करें. वे कहते कि जिन्हें रंगों से आपत्ति है, उन पर रंग न फेंके. सामूहिक जुमा नमाज शांतिपूर्वक हो सके और होली मनाने वालों के उद्दंड व्यवहार से बाधित न हो, इसके प्रबंध करते.
हालाँकि, समय बदल गया है और हमारे राज्य के अधिकारी भी. अब हमें असामाजिक व्यवहार सहने के लिए कहा जा रहा है, क्योंकि यह होली का अभिन्न अंग है. जिन्हें आपत्ति है, उन्हें घर में रहने की सलाह दी जा रही है. लेकिन जो कहा जा रहा है, वह और भी भयावह है. हिंदुओं को बताया जा रहा है कि मुसलमानों को त्योहार मनाने के तरीके से समस्या है. इसलिए मुसलमानों को घर में रहना चाहिए.
चौधरी ने विशेष रूप से जुमा का जिक्र करके इशारा किया कि मुसलमानों को होली के रंगों से आपत्ति है. कुछ लोगों ने सही कहा कि गैर-मुस्लिमों को भी रंग और कीचड़ से आपत्ति हो सकती है. कुछ को रंगों से एलर्जी हो सकती है, कुछ को यह पसंद नहीं. ऐसे लोग जरूरी नहीं कि मुस्लिम हों. फिर जिन्हें पसंद नहीं, उन पर रंग क्यों थोपे जाएँ! लेकिन अब एक नया तर्क दिया जा रहा है : होली मनाने वालों को जो चाहे करने का अधिकार है, और जिन्हें पसंद नहीं, वे घर में रहें. संक्षेप में, जबरदस्ती और गुंडागर्दी पर रोक नहीं लगाई जाएगी. दूसरों को ऐसे व्यवहार से खुद को बचाना होगा. सड़कें, सार्वजनिक स्थान इन हिंदुओं के हैं. दूसरों को इनसे दूर रहना चाहिए. यह ऐसा ही है जैसे महिलाओं को सड़कों से दूर रहने को कहा जाए, क्योंकि पुरुषों को परेशान करने, छेड़छाड़ करने और बलात्कार करने से नहीं रोका जा सकता. यह उनकी प्रकृति है. इसका विरोध नहीं किया जा सकता.
चौधरी के बयान ने हमें झटका दिया. सामान्य सभ्य समय में मुख्यमंत्री को उन्हें फटकार लगानी चाहिए थी. ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि मुख्यमंत्री भाजपा से हैं. भाजपा से सद्भाव और शिष्टता की उम्मीद नहीं की जा सकती. इसलिए, अदित्यनाथ ने कहा, "होली साल में एक बार आती है, लेकिन जुमा की नमाज हर शुक्रवार को होती है. इसलिए, जुमा नमाज को टाला जा सकता है. अगर कोई जुमा नमाज पढ़ना चाहता है, तो वह घर पर पढ़ सकता है. मस्जिद जाना जरूरी नहीं है. या अगर जाना चाहते हैं, तो रंगों से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए." आदित्यनाथ अपने अधिकारी द्वारा मुसलमानों को दिए गए निर्देश को सही ठहरा रहे थे.
मुख्यमंत्री से प्रेरणा लेकर या अपनी सांप्रदायिकता से प्रेरित होकर, एक मंत्री ने कहा, "होली समारोह और 'जुमा नमाज' को लेकर प्रशासन सतर्क है, लेकिन कुछ लोगों को आपत्ति है. उन लोगों से मेरा अनुरोध है कि जैसे वहाँ महिलाएं (स्पष्टतः मुस्लिम महिलाओं की ओर इशारा) हिजाब पहनती हैं, और मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया जाता है, वे अपने लिए तिरपाल का हिजाब बना सकते हैं और एक जगह से दूसरी जगह जा सकते हैं. उन्हें कोई असुविधा नहीं होगी और वे आसानी से नमाज अदा कर सकेंगे."
इन बयानों को ध्यान से पढ़ें और सुनें. उनके स्वर को नोट करें. मुसलमानों का मजाक उड़ाया जा रहा है और उन्हें अपमानित किया जा रहा है. यह सब इस बेलाग अंदाज में किया जा रहा है कि मुसलमान प्रतिक्रिया नहीं कर सकते और सभी हिंदू इस नफरत का समर्थन करते हैं. यह सड़क पर कोई आम आदमी नहीं, बल्कि राज्य के अधिकारी कर रहे हैं. सत्तासीन राजनेता और पुलिस व प्रशासनिक अफसर इस मौखिक हिंसा के अपराधी हैं. संविधान ने उन्हें मुसलमानों सहित सभी लोगों की रक्षा करने का दायित्व दिया है. लेकिन वे मुसलमानों को अपने अधीनस्थ और द्वितीय श्रेणी का नागरिक समझते हैं.
क्या हमें यह इस्लाम विरोधी नफरत का प्रचार सहना चाहिए? क्या ये सिर्फ शब्द हैं और मुसलमानों को इनकी परवाह नहीं करनी चाहिए? जैसे वे कहते हैं, "बुरा न मानो, होली है"?
हम एक समाज के रूप में इसका आनंद ले रहे हैं. हम इस नफरत की नाली को बहने देते हैं और इसके गंदगी में नहाते हैं. आदित्यनाथ ने 'इंडिया टुडे' के एक कार्यक्रम में अपनी नफरत उगल दी. वहाँ बैठे अभिजात वर्ग ने उनके साहस की तारीफ करने और दाँत दिखाने के अलावा और क्या किया? हमने कितने संपादकीय देखे हैं, जो इस्लाम विरोधी नफरत के प्रकोप की निंदा करते हों? हमने यह दिखाने के लिए कुछ नहीं किया कि यह अनुमेय नहीं है. नफरत के दैनिक अभिव्यक्ति को सहने से इसे सामान्य बनाने का नतीजा यह है कि बंगाल में भाजपा के सबसे महत्वपूर्ण पदाधिकारी ने धमकी दी है कि सभी मुस्लिम विधायकों को उनकी बारी आने पर बाहर फेंक दिया जाएगा. सभ्य समाज नफरत और अशिष्टता पर आक्रोश प्रकट करते, लेकिन हम निश्चित रूप से ऐसे नहीं हैं.
हमें चुपचाप इस नफरत को जगह नहीं देनी चाहिए. भाषण के माध्यम से व्यक्त नफरत स्वयं हिंसा है, और यह शारीरिक हिंसा का पूर्वाभ्यास है. यह नफरत का प्रचार मुसलमानों को सार्वजनिक स्थानों से हटने के लिए मजबूर कर रहा है. मुसलमानों के लिए यह जानना बहुत मुश्किल है कि कौन से हिंदू इस नफरत में विश्वास रखते हैं और कौन नहीं. यह हम हिंदुओं को शर्मिंदा करना चाहिए. जब हम उस पर गर्व करने लगें, जो हमें शर्मसार करे, तो हमारी मुक्ति कहाँ है?
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं.)
कैसे हटाई गईं वंतारा से जुड़ी खबरें
'ऑल्ट न्यूज' के लिए शिंजिनी मजूमदार और प्रतीक सिन्हा ने उन कारणों को तलाशने की कोशिश की है, जिसके चलते कई न्यूज वेबसाइट्स ने वंतारा से जुड़ी खबरों को पहले प्रकाशित किया और बाद में रहस्यमयी तरीके से हटा ली. रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के जामनगर स्थित रिलायंस के वंतारा एनिमल रिहैबिलिटेशन सेंटर से जुड़ी खबरें कई प्रमुख मीडिया आउटलेट्स ने रहस्यमयी ढंग से हटा दी हैं. दक्षिण अफ्रीकी वन्यजीव संगठन वापफसा (WAPFSA) द्वारा वंतारा में जंगली जानवरों के हस्तांतरण को लेकर उठाए गए सवालों की रिपोर्ट्स 9-11 मार्च को डेक्कन हेराल्ड, टेलीग्राफ, फाइनेंशियल एक्सप्रेस जैसे मीडिया हाउसों ने प्रकाशित कीं, लेकिन बाद में इन्हें 'एरर 404' कर दिया गया.
कुछ मीडिया संगठनों ने 'ऑल्ट न्यूज' को बताया कि उन्हें लेख हटाने के लिए धमकी भरे ईमेल और वित्तीय प्रलोभन मिले. नॉर्थईस्ट नाउ के संपादक ने बताया कि एक पीआर फर्म ने लेख हटाने के बदले पैसे की पेशकश की, जबकि वार्ता भारती को रिलायंस के प्रतिनिधि का फोन आया. फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने मूल रिपोर्ट को हटाकर उसकी जगह वंतारा का प्रचारात्मक लेख प्रकाशित किया.
6 मार्च को वापफसा (WAPFSA) ने दक्षिण अफ्रीका के पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखकर वंतारा द्वारा CITES समझौते का उल्लंघन करते हुए चीते, तेंदुए जैसे जानवरों के अवैध व्यापार की आशंका जताई. हालांकि, यह पत्र भी अब वापफसा की वेबसाइट से गायब है. यूके के 'इंडिपेंडेंट' को दिए बयान में वंतारा ने आरोपों को "झूठा और निराधार" बताया तथा कहा कि ये शिकायतें "स्वार्थी हितों" से प्रेरित हैं. उनका दावा है कि साइट्स पहले ही इन मामलों की जांच कर चुका है.
रिलायंस का वंतारा प्रोजेक्ट, जिसका उद्घाटन पीएम मोदी ने 4 मार्च को किया, अनंत अंबानी के नेतृत्व में चल रहा है. वापफसा का आरोप है कि इस परियोजना में लुप्तप्राय प्रजातियों के साथ गैरकानूनी तरीके से जानवरों का व्यापार किया जा रहा है. मीडिया पर दबाव और रिपोर्ट्स के गायब होने के बीच यह मामला पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा कर रहा है.
इस साल दार्जिलिंग चाय का सबसे कम उत्पादन
169 साल के इतिहास में इस साल दार्जिलिंग चाय का सबसे कम उत्पादन दर्ज हुआ. भारतीय चाय बोर्ड की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 में दार्जिलिंग ने सिर्फ 5.6 मिलियन (56 लाख) किलोग्राम चाय का उत्पादन किया है. उद्योग ने इस तीव्र गिरावट के लिए कार्य से अनुपस्थिति और पुराने पौधा रोपण की उच्च लागत को जिम्मेदार ठहराया है. इससे पहले उत्पादन में बड़ी गिरावट सिर्फ 2017 में देखी गई थी. तब गोरखालैंड आंदोलन के कारण 104 दिनों तक बागान बंद रहे थे. उस साल महज 3.21 मिलियन (32.1 लाख) किलोग्राम चाय का उत्पादन हो सका था. 2017 को छोड़ दें तो 6 मिलियन (60 लाख) किलोग्राम से कम चाय का उत्पादन कभी नहीं हुआ.
तुषार गांधी का किया घेराव : भाजपा-आरएसएस कार्यकर्ताओं के खिलाफ केरल पुलिस ने गुरुवार को महात्मा गांधी के प्रपौत्र का घेराव कर उनके खिलाफ उग्र तरीके से नारेबाजी करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है. कार्यकर्ता गांधी से उनकी यह टिप्पणी कि ‘आरएसएस जहर है’, वापस लेने की मांग कर रहे थे. तुषार गांधी ने बुधवार को तिरुवनंतपुरम के उपनगरीय क्षेत्र नेय्यातिनकारा में गांधीवादी गोपीनाथन नायर की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद कहा था, “हम भाजपा को हराने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन आरएसएस जहर है. हमें इसके बारे में बहुत सतर्क रहना होगा, क्योंकि अगर यह हमारे देश की संचार प्रणाली में फैल गया, तो सब कुछ खत्म हो जाएगा. आरएसएस ब्रिटिश शासन से भी ज्यादा खतरनाक है.”
इंजीनियर राशिद की संसद में उपस्थिती पर जवाब मांगा : दिल्ली हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के सांसद इंजीनियर राशिद की याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. राशिद ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आतंकी फंडिंग मामले में पैरोल देने से इनकार करने वाले ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. राशिद ने तर्क दिया कि एक निर्वाचित सांसद के रूप में, उनके लिए अपने विधायी कर्तव्यों को पूरा करने के लिए सत्र में शामिल होना आवश्यक है. राशिद संसद के मौजूदा सत्र में शामिल होने के लिए हिरासत में पैरोल मांग रहे हैं. एनआईए को नोटिस जारी करने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 18 मार्च तय की है.
यूक्रेन जंग
अब ट्रम्प के प्रस्ताव पर पुतिन को ऐतराज
गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन युद्ध में 30-दिवसीय युद्धविराम के अमेरिकी प्रस्ताव पर "आपत्तियाँ" जताईं. गुरुवार को पुतिन और रूसी प्रशासन की अमेरिकी प्रतिनिधियों से युद्ध विराम को लेकर बात हुई. उन्होंने कहा कि यदि युद्धविराम लागू होता है, तो कुर्स्क क्षेत्र और अन्य इलाकों में स्थिति कैसे विकसित होगी, यह स्पष्ट नहीं है. पुतिन ने अमेरिकी प्रस्ताव की प्रशंसा करते हुए इसे "महान और सही" बताया, लेकिन साथ ही कहा कि समझौते से पहले कई मुद्दों पर चर्चा ज़रूरी है. उन्होंने युद्धविराम के सत्यापन और "संकट के मूल कारणों" को हल करने पर ज़ोर दिया. रूस पहले भी यूक्रेन की वर्तमान सरकार को संघर्ष का "मूल कारण" बता चुका है. पुतिन ने कहा कि वे "शायद" अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से बात करेंगे, लेकिन क्रेमलिन प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने स्पष्ट किया कि गुरुवार को दोनों नेताओं के बीच कोई वार्ता नहीं होगी.
मॉस्को के अनुसार, रूसी सेना ने यूक्रेन के कब्ज़े वाले कुर्स्क क्षेत्र के सबसे बड़े शहर सुड्झा पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया है. यह कदम यूक्रेन की भौगोलिक सौदेबाज़ी की ताकत को कमजोर करने वाला माना जा रहा है.
पुतिन ने मॉस्को में बेलारूस के नेता अलेक्जेंडर लुकाशेंको के साथ बैठक की. लुकाशेंको ने कहा कि अमेरिका के पास यूक्रेन के लिए "कोई योजना नहीं" है और वह युद्धविराम प्रस्ताव के ज़रिए "पानी में पैर डालकर देख रहा है". उन्होंने ट्रम्प को लेकर चेतावनी देते हुए कहा, "डोनाल्ड की चालों में न आएं."
पुतिन से बात करने को तैयार, समाधान जल्द चाहिए
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब से पद संभाला है, अमेरिका की नीति और कार्यक्रम उनके ट्रुथ सोशल हैंडल से चल रहे हैं. इसे हम ‘ट्रम्प चाल ’ कॉलम के तहत कवर कर रहे हैं. हमारी कोशिश है कि इस कॉलम में पिछले चौबीस घंटों में ट्रम्प के सोशल मीडिया संदेशों ने उनके देश और दुनिया में क्या हड़कम्प मचाया, उसका सार बना कर आपके सामने पेश करें, ताकि एक तो आप ‘ट्रम्प चाल ’ से वाक़िफ़ रहें और ये सोचने पर मजबूर न हों कि ऐसा हो कैसे सकता है? ट्रम्प है तो मुमकिन है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन का यूक्रेन युद्धविराम प्रस्ताव पर जवाब "आशाजनक लेकिन अधूरा" है. ओवल ऑफिस में नाटो प्रमुख के साथ बैठक के दौरान उन्होंने कहा, "मैं पुतिन से बात करने को तैयार हूँ, पर समाधान जल्द चाहिए. हर दिन लोग मर रहे हैं." पुतिन ने इससे पहले युद्धविराम को "सैद्धांतिक समर्थन" दिया, लेकिन समझौते से पहले कई मुद्दे शेष बताए.
ग्रीनलैंड खरीदने की ट्रम्प की इच्छा! ट्रम्प ने डेनमार्क के ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा जताई, जिसे डेनमार्क ने स्पष्ट तौर पर ठुकरा दिया. उनका दावा था कि यह अमेरिकी "राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए फायदेमंद" होगा.
देशनिकाला योजना : ट्रम्प ने 1798 के "एलियन एनिमीज़ एक्ट" (जापानी नजरबंदी में इस्तेमाल हुए कानून) का उपयोग कर बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासियों को निकालने की योजना बनाई.
यूरोप पर टैरिफ : फ्रेंच वाइन और यूरोपीय अल्कोहल पर 200% टैरिफ की धमकी दी, ताकि EU द्वारा अमेरिकी स्पिरिट्स पर लगाए गए 50% टैरिफ का जवाब दिया जा सके.
पनामा नहर पर नियंत्रण : सेना को पनामा नहर पर कब्जे की योजना बनाने के निर्देश दिए, हालांकि बलप्रयोग अनिश्चित है.
व्यापार युद्ध ने बाज़ारों को झकझोरा : यूरोप और अमेरिका के बीच टैरिफ की आँच- बँटवारे ने शेयर बाज़ारों में उथल-पुथल मचाई. S&P 500 में 10% की गिरावट दर्ज की गई, जो तीन हफ्ते पहले के रिकॉर्ड स्तर से नीचे है.
वेनेजुएला के आपराधिक संगठन पर निशाना : ट्रम्प प्रशासन ने ट्रेन डी अरागुआ (TDA) नामक वेनेजुएलाई आपराधिक गुट को "विदेशी आतंकवादी संगठन" घोषित किया. इसके सदस्यों को जल्दी देश से निकालने के लिए एलियन एनिमीज़ एक्ट का इस्तेमाल किया जाएगा.
डीप सीक के बाद सुपर कंप्यूटर में चीनी धमाका!
'साईटेक डेली' की खबर है कि चीन के वैज्ञानिकों ने क्वांटम कंप्यूटिंग में एक बड़ी सफलता हासिल की है. यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ चाइना (USTC) की टीम ने जुचोंग्झी-3 (Zuchongzhi-3) नामक नया क्वांटम कंप्यूटर विकसित किया है, जिसमें 105 क्यूबिट्स और 182 कपलर्स हैं. यह मशीन आज के सबसे ताकतवर सुपर कंप्यूटर से 1 करोड़ अरब गुना तेज और गूगल के हाल के नतीजों से 10 लाख गुना तेज है.
जुचोंग्झी-3 ने 83 क्यूबिट और 32 लेयर वाले रैंडम सर्किट सैंपलिंग टास्क को पूरा किया, जिससे इसकी गति गूगल के हालिया क्वांटम कंप्यूटर से छह गुना अधिक पाई गई. यह प्रोटोटाइप गूगल के 2019 के साइकामोर प्रोसेसर से कई गुना आगे है, जिसने 53 क्यूबिट्स के साथ 200 सेकंड में काम किया था, जिसे तब के सुपर कंप्यूटर को 10,000 साल में पूरा करने का अनुमान था.
टीम अब क्वांटम एरर करेक्शन, क्वांटम एंटैंगलमेंट और क्वांटम केमिस्ट्री जैसे क्षेत्रों में शोध कर रही है. वे सरफेस कोड आर्किटेक्चर को अपनाकर बड़ी संख्या में क्यूबिट्स को नियंत्रित करने की दिशा में काम कर रहे हैं. इस काम को वैश्विक स्तर पर काफी सराहना मिली है. इसे "सुपर कंडक्टिंग क्वांटम कंप्यूटर में नई मिसाल" कहा गया है और यह यूएसटीसी के पिछले 66-क्यूबिट जुचोंग्झी-2 से बड़ा अपग्रेड माना जा रहा है. इस सफलता के बाद, चीन क्वांटम सुपरमेसी की दौड़ में सबसे आगे निकल गया है, जिससे भविष्य में कंप्यूटिंग की दुनिया में बड़ा बदलाव आने की संभावना है.
अमेरिका
ट्रम्प के मागा और नात्सी जर्मनी की समानताएं
लॉरी विनर एक प्रसिद्ध अमेरिकी पत्रकार, लेखिका, और समीक्षक हैं, जो नाटक और कला के क्षेत्र में अपने विश्लेषणात्मक लेखन के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स, लॉस एंजेलिस टाइम्स, और द गार्डियन जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के लिए काम किया है. ‘ऑन टिरनी’ के लेखक टिमथी स्नाइडर ने अपने सब्सटैक पेज पर उनका यह लेख छापा है. उस लेख के उद्धरण.
डोनाल्ड ट्रम्प और इलोन मस्क के अपवित्र जोड़े ने —और काश पटेल, स्टीफन मिलर, डैन बोंगिनो, एड मार्टिन जैसे उनके समर्थकों के साथ—"हबड़-तबड़ में जो फैसले किये हैं", उसने हमें कम से कम अभी के लिए, प्रतिक्रिया देने में अक्षम बना दिया है.
यह सोच कोई नई बात नहीं है. एडोल्फ हिटलर भी ऐसे ही झूठ और षड्यंत्र के सिद्धांतों के बीच सत्ता में आया था. हमें पता होना चाहिए कि यह कहाँ तक जाता है. और, मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) फासीवाद पर लिखी गई किताबों के पहाड़ों को नज़रअंदाज़ कर सकता है, हममें से बाकी लोग अंधेरे में नहीं हैं कि हमें आगे क्या होगा, इसका अंदाजा न हो.
जैसे-जैसे हम एक ऐसे मंत्रिमंडल से और कार्रवाइयों के लिए तैयार होते हैं, जो एक के बाद एक झूठ बोलते रहने वाले नेता को खुश करने की कोशिश है, यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति की अजीबो-गरीब बकवास यकायक नहीं है. इसका एक इतिहास है. एक ऐसा इतिहास जो हमें केवल एक तरफ ले जाता है—तबाही की ओर.
तो, यहाँ वे संकेत हैं जिन पर नज़र रखनी चाहिए, ये सभी थर्ड रीच (हिटलर के शासन) की कुख्यात कहानी से चेतावनियाँ हैं :
दैनिक जीवन अवास्तविक हो जाएगा : यदि हम कोई कार्रवाई नहीं करते या संगठित प्रतिरोध में शामिल नहीं होते, तो हमारी चर्चाएँ केवल नवीनतम भयावहता को दोहराने तक सीमित रह जाएँगी. सेबेस्टियन हैफ़्नर ने 1939 में लिखा : "जीवन पहले की तरह चलता रहा, हालाँकि अब यह भूतिया और अवास्तविक हो गया था... हम स्थिति का सामना करने में असमर्थ थे, यहाँ तक कि पीड़ित होने के बावजूद भी. उस समय भी, 'कई लोग जबड़े भींचकर जीने के आदी हो गए. दुर्भाग्य से, वे जर्मनी में 'विरोध' का बहुमत बनाते हैं. इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि इस विरोध ने कभी कोई लक्ष्य, योजना या अपेक्षाएँ विकसित नहीं कीं."
आपके आसपास के लोग भूल जाएँगे कि वे कभी ट्रम्प-विरोधी थे : क्रिस्टोफ़र इसरवुड ने 1933 में अपनी बर्लिन की मकान मालकिन के बारे में लिखा : "वह पहले से ही नए राज के अनुकूल हो रही है... अगर कोई उसे याद दिलाए कि नवंबर के चुनाव में उसने कम्युनिस्टों को वोट दिया था, तो वह तमक कर इनकार कर देगी. वह सिर्फ़ प्राकृतिक नियम के अनुसार ढल रही है, जैसे कोई जानवर सर्दियों के लिए अपना कोट बदलता है."
प्रशासन विरोधियों के खिलाफ़ बेतुके आरोप लगाएगा, जिनकी विशेषज्ञता की ज़रूरत है. हिटलर के चांसलर बनने के दिन अल्बर्ट आइंस्टीन पासाडेना में थे और उन्होंने कभी जर्मनी वापस नहीं जाने का फैसला किया. नाज़ियों ने उन पर "हिटलर के खिलाफ़ झूठी अत्याचार प्रचार" का आरोप लगाया. 1933 में गोएबल्स ने एक पर्चा जारी किया, जिसमें आइंस्टीन की तस्वीर के नीचे लिखा था : "अभी तक फाँसी नहीं दी गई (bis jetzt ungehaengt)."
जुलूस और शायद प्रशासन के लिए अनिवार्य सार्वजनिक समर्थन : ट्रम्प ने 2019 में "द सैल्यूट टू अमेरिका" परेड की माँग की, जिसमें उनके मंत्रियों की उपस्थिति अनिवार्य थी. हिटलर भी भीड़ के आकार पर ऐसे ही टिका था. उसने नूर्नबर्ग रैली को "इतिहास की सबसे बड़ी सभा" बताया. 1933 के बाद बर्लिन की हर गली स्वस्तिकों से भर गई—"उन्हें न दिखाना मूर्खता थी," इसरवुड ने लिखा.
समाचार स्रोत गायब या विकृत हो जाएँगे : जैसे हिटलर के पहले वर्ष में अख़बारों ने अपना चेहरा बदल लिया, वैसे ही व्हाइट हाउस ने एपी को प्रेस पूल से निकाला और वाशिंगटन पोस्ट ने "मुक्त बाज़ार" की नीति अपनाई. म्यूनिख पोस्ट के पत्रकार दचाऊ में खत्म हुए या "गायब" कर दिए गए.
आपदा के कगार तक नेता के झूठ पर विश्वास करता रहेगा : 1939 में, हिटलर के चेकोस्लोवाकिया पर कब्ज़े के बाद भी जर्मनों को विश्वास था कि "चेक सरकार ने खुद हिटलर की सुरक्षा माँगी थी."
हिटलर या नाज़ीवाद को आज की राजनीति से जोड़ने की बहस अब पुरानी हो चुकी है. अब यह ज़रूरी है कि हम उन चेतावनियों को गंभीरता से लें जो इतिहास ने हमें दी हैं. जब आप किसी यहूदी की तस्वीर देखें, जो गिरफ़्तारी या गोली का इंतज़ार कर रहा है और वह सीधे कैमरे में देख रहा है—याद रखें : वह आपको ही देख रहा है.
ब्लड मून और पूरा ग्रहण आज
पश्चिमी गोलार्ध में रहने वाले लोग इस सप्ताह पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा को लाल (ब्लड मून) देख सकेंगे. यह ग्रहण गुरुवार शाम से शुक्रवार सुबह तक अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और रूस आदि क्षेत्रों में दिखेगा. चंद्रग्रहण तब होता है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आते हैं. पृथ्वी की छाया (अंब्रा) में चंद्रमा प्रवेश करता है और सूर्य की किरणें वायुमंडल से छनकर उसे लाल रंग देती हैं. ग्रहण का चरम शुक्रवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 11:57 से लेकर 12:29 तक रहेगा और भारत से दिखलाई नहीं देगा. 2:26 AM ET से 1 घंटे तक रहेगा. यह 2022 के बाद पहला पूर्ण चंद्रग्रहण है. मार्च के पूर्ण चंद्रमा को "वर्म मून" (वसंत में दिखने वाले कीड़ों के नाम) भी कहा जाता है. अगला ग्रहण 29 मार्च को आंशिक सूर्यग्रहण और सितंबर में फिर चंद्र-सूर्यग्रहण की जोड़ी देखी जाएगी.
चलते-चलते
कुत्ते बिल्लियों को भा रही है फ़िल्म 'फ़्लो'?
लातवियाई एनिमेटेड फ़िल्म "फ़्लो", जिसने बिना डायलॉग के ऑस्कर जीता, पालतू जानवरों को मंत्रमुग्ध कर रही है. यह कहानी एक काली बिल्ली की है, जो बाढ़ के दौरान अजीबो-गरीब जानवरों के साथ जीवन बचाती है. टिकटॉक पर कुत्ते-बिल्लियों के फ़िल्म देखने के वीडियल वायरल हो रहे हैं, जहाँ वे स्क्रीन से चिपके नज़र आते हैं. निर्माता मातिस कज़ा के अनुसार, असली जानवरों की आवाज़ें इसकी खासियत हो सकतीं. फ़िल्म में पानी की आवाज़ें और प्राकृतिक ध्वनियाँ पालतूों का ध्यान खींचती हैं. कई मालिकों ने बताया कि उनके जानवरों ने पहली बार टीवी में दिलचस्पी दिखाई. चेज़ ओरियन की बिल्ली "फ़िशबोन" तो पूरी फ़िल्म में डूब गई, जबकि डैनियल गाओ की बिल्ली "कर्मा" डरकर भागती रही. हालाँकि यह स्पष्ट नहीं कि पालतू कहानी समझते हैं या सिर्फ़ आवाज़ों से आकर्षित होते हैं, पर यह फ़िल्म मनुष्य और जानवरों के बीच साझा अनुभव का पुल बन गई है. सेलीन ओरोस्को के गोल्डन रिट्रीवर "सैमसन" ने फ़िल्म के लैब्राडोर किरदार को देखकर ख़ुशी जताई. "फ़्लो" ने न सिर्फ़ ऑस्कर जीता, बल्कि यह पालतू मालिकों को अपने जानवरों की संवेदनशीलता समझने का मौका दे रही है. हो सकता है, यह फ़िल्म हमें याद दिलाए कि सहानुभूति और साझा अनुभवों की भाषा सभी प्राणियों में समान है.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.