14/06/2025: ब्लैक बॉक्स मिला, मृतकों की संख्या नहीं | 'हवा में अटका जहाज' | कारणों को लेकर अटकलें | अब ईरान - इजरायल में जंग | ट्रम्प की परेड, अमेरिका में विरोध | बांग्लादेश का मंदिर
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
‘जहाज हवा में अटका हुआ था’
ब्लैक बॉक्स मिल गया, मरने वालों की संख्या नहीं
अटकलें, कारण, जाँच, संकेत अभी सब हवा में हैं.. सब कहते हैं ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा..
विमान हादसों के विशेषज्ञ के मुताबिक इंतजार करें
‘ऑल अप वेट’ एक महत्वपूर्ण कारक, क्या वज़न ज्यादा था?
सिर्फ 787 में ही नहीं, बोइंग के और भी ड्रीमलाइनर में रही हैं समस्याएं
बोइंग हादसा ; रेगुलेटर ने एयर इंडिया को कई पत्र लिखे थे
धुबरी में तनाव, ‘देखते ही गोली मारने’ के आदेश
सिंदूर : इधर सरहद पर गोले, उधर मीडिया की मार
भारत में 2025 में 25% की दर से बढ़ेगा इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग: रिपोर्ट
इजरायल ने ईरान पर किए हमले, जवाब में ईरान ने पहले भेजे ड्रोन, फिर दागी मिसाइल
इधर ट्रम्प के बर्थडे वाली 'सैन्य परेड' के विरोध में सड़क पर उतरेगा 'अमरीका'
लोगों को बांग्लादेश और म्यांमार धकेलना गैरकानूनी!
लोकप्रिय हो रहा “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी”
‘जहाज हवा में अटका हुआ था’
ब्रिटिश नागरिक विश्वास कुमार रमेश ने डरावने दृश्यों का वर्णन किया, जिसमें लोगों को "अपनी आंखों के सामने मरते हुए" देखना शामिल था. अपने अस्पताल के बिस्तर से बोलते हुए, 40 वर्षीय रमेश ने डीडी न्यूज़ को बताया कि टेकऑफ के तुरंत बाद विमान "हवा में अटका हुआ" महसूस हो रहा था, इसके बाद लाइटें हरे और सफेद रंग में टिमटिमाने लगीं, और उन्होंने कहा: "यह अचानक एक इमारत से टकरा गया और फट गया."
"विमान ऊंचाई नहीं पकड़ पा रहा था और केवल फिसल रहा था, फिर अचानक यह एक इमारत से टकरा गया और फट गया. पहले तो मुझे लगा कि मैं मर गया हूं. बाद में मुझे एहसास हुआ कि मैं अभी भी जिंदा हूं और मैंने विमान के धड़ में एक छेद देखा... मैं अपनी सीट बेल्ट खोलने में कामयाब रहा, अपने पैर से धक्का देकर उस छेद से बाहर निकला और रेंगकर बाहर आ गया. मुझे नहीं पता कि मैं कैसे बच गया," उन्होंने कहा. "मैंने लोगों को अपनी आंखों के सामने मरते हुए देखा – एयर होस्टेसेस और दो लोग जो मेरे पास थे... मैं मलबे से बाहर निकल आया."
ब्लैक बॉक्स मिल गया, मरने वालों की संख्या नहीं
लंदन जा रहे एयर इंडिया के बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान के अहमदाबाद एयरपोर्ट के पास टेक-ऑफ के तुरंत बाद क्रैश होने के 24 घंटे से अधिक समय बीत जाने के बाद भी अधिकारियों द्वारा अंतिम मृतक संख्या की घोषणा नहीं की गई है. इस बीच दुर्घटनास्थल से ब्लैक बॉक्स बरामद कर लिया गया है. गुरुवार के दिन भी मृतकों की अलग अलग संख्या अलग अलग स्रोतों से आ रही थी जो 241 से लेकर 317 तक बताई जा रही थी. हरकारा ने एक गुजराती मीडिया के स्रोत द्वारा 317 की संख्या को कोट किया था. पर गुरूवार को खासी अफरातफरी के कारण भ्रम बना रहा जो शुक्रवार रात तक भी दूर नहीं हुआ.
एयर इंडिया ने शुक्रवार की सुबह पुष्टि की थी कि विमान में सवार 242 लोगों में से 241 की मौत हो गई है, लेकिन राज्य संचालित बी.जे. मेडिकल कॉलेज और अस्पताल पर विमान गिरने से हुई मौतों का आधिकारिक आंकड़ा अभी भी जारी नहीं किया गया है. दुर्घटना के समय छात्र कॉलेज के हॉस्टल मेस में खाना खा रहे थे.
‘द वायर’ के मुताबिक गुरुवार शाम को अहमदाबाद पुलिस ने विमान दुर्घटना में घायल हुए 25 लोगों की सूची जारी की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तथा नागरिक उड्डयन मंत्री के. राम मोहन नायडू सहित केंद्रीय मंत्रियों ने दुर्घटना के बाद अहमदाबाद का दौरा किया है, लेकिन अभी तक अंतिम मृतक संख्या का आधिकारिक विवरण नहीं दिया है.
नागरिक उड्डयन मंत्री नायडू, जिन्हें दुर्घटनास्थल से बैकग्राउंड म्यूजिक और स्लो मोशन एडिट्स के साथ वीडियो पोस्ट करने के लिए सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ा था, ने गुरुवार को जांच के आदेश दिए थे. शुक्रवार शाम को मंत्री ने कहा कि "अहमदाबाद में दुर्घटना स्थल से AAIB द्वारा 28 घंटे के भीतर फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (ब्लैक बॉक्स) बरामद कर लिया गया है", लेकिन उन्होंने मृतक संख्या नहीं बताई.
शुक्रवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद का दौरा किया और दुर्घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने सिविल अस्पताल में पीड़ितों से मुलाकात की, जिसमें दुर्भाग्यशाली विमान का एकमात्र जीवित बचे व्यक्ति - 40 वर्षीय ब्रिटिश नागरिक विश्वास रमेश भी शामिल था. उन्होंने पूर्व गुजरात मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के परिवार से भी मुलाकात की, जो इस उड़ान में सवार थे.
गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार शाम दुर्घटनास्थल का निरीक्षण करने और अधिकारियों तथा पीड़ितों से मिलने के बाद गुजरात सरकार के राहत कार्यों की सराहना की. उन्होंने कहा कि "किसी को भी बचाने की कोई संभावना नहीं थी" क्योंकि उड़ान में 1.5 लाख टन ईंधन था. उन्होंने यह भी कहा कि "कोई भी दुर्घटना को नहीं रोक सकता".
शाह ने स्पष्ट किया कि "मृतकों की सटीक संख्या केवल डीएनए पहचान पूरी होने के बाद अधिकारियों द्वारा पुष्टि की जाएगी" लेकिन मृतक संख्या की गणना और DNA पहचान के बीच संबंध के बारे में स्पष्टीकरण नहीं दिया.
एनडीआरएफ के महानिदेशक हरि ओम गांधी ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा कि छह टीमें दुर्घटनास्थल पर काम कर रही हैं, लेकिन कोई और विवरण नहीं दिया. अहमदाबाद पुलिस कमिश्नर जी.एस. मलिक ने गुरुवार शाम एएनआई को बताया था कि विमान से केवल एक व्यक्ति बचा है, लेकिन हॉस्टल पर प्रभाव से हुई मौतों की संख्या का खुलासा नहीं किया. इस बीच अहमदाबाद की एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी विधि चौधरी ने ‘रॉयटर्स’ को बताया कि गुरुवार को 240 से अधिक लोग मारे गए थे, पहले की 294 की संख्या को संशोधित करते हुए. मृतक संख्या को लेकर अभी भी स्पष्टता का अभाव है.
बीजे मेडिकल कॉलेज के कितने प्रभावित, सरकार ने कुछ नहीं बताया
अब तक सरकार की तरफ से इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा सामने नहीं आया है कि यात्रियों और क्रू मेंबर्स के अलावा और कितने लोगों की मौत विमान हादसे में हुई है. याद रहे कि गुरुवार को एयर इंडिया का विमान उड़ान भरते ही बीजे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर गिरा था. उस समय लगभग 50 मेडिकल इंटर्न मैस में खाना खा रहे थे. कल गुरुवार को सरकार ने कुछ घायलों की सूची भी जारी की थी, लेकिन इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है कि अब उनका क्या हाल है? मृतकों की संख्या के बारे में मीडिया में अलग-अलग आंकड़े दिए गए हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया में कुल मृतक संख्या 265 बताई गई है, यद्यपि यह भी कहा गया है कि इसमें वृद्धि हो सकती है, क्योंकि प्रशासन ने 290 बॉडी बैग्स का इस्तेमाल किया था. दैनिक भास्कर ने बताया है कि 270 से ज्यादा शवों का पोस्टमार्टम हो चुका है. इनमें से 7 शवों को डीएनए टेस्ट के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है.
अटकलें, कारण, जाँच, संकेत अभी सब हवा में हैं.. सब कहते हैं ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा..
एयर इंडिया की सुरक्षा स्थिति ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के मुताबिक भारत की राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया ने पिछले 15 वर्षों में अपनी सुरक्षा स्थिति में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किए हैं. कंपनी की अंतिम बड़ी दुर्घटना 2020 में हुई थी, जब एयर इंडिया एक्सप्रेस की एक उड़ान केरल में बारिश से भीगी रनवे पर फिसलकर दो हिस्सों में टूट गई थी. इस हादसे में कम से कम 17 लोगों की मौत हुई थी. इससे पहले 2010 में एयर इंडिया एक्सप्रेस का एक विमान कर्नाटक के मंगलौर में पहाड़ी रनवे से आगे निकल गया था और आग में जल गया था, जिसमें 150 से अधिक लोगों की जान गई थी.
बोइंग ड्रीमलाइनर का सुरक्षा रिकॉर्ड एविएशन सेफ्टी नेटवर्क डेटाबेस के अनुसार, बोइंग ड्रीमलाइनर (787) में अब तक कोई घातक दुर्घटना दर्ज नहीं हुई है. बोइंग की अप्रैल 2025 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, किसी भी ड्रीमलाइनर का "हल लॉस" - यानी पूर्ण नुकसान या आर्थिक मरम्मत से परे क्षति - नहीं हुआ है. हालांकि, ड्रीमलाइनर में कुछ समस्याएं हुई हैं जिनसे यात्रियों को चोटें आई हैं. नवंबर में चिली की लाताम एयरलाइंस की 787 उड़ान में "अचानक गिरावट" के कारण दो गंभीर चोटें आई थीं. कंपनी को व्हिसल-ब्लोअर्स द्वारा उठाई गई गंभीर सुरक्षा चिंताओं का सामना करना पड़ा है. फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन ने अप्रैल 2024 में बोइंग इंजीनियर सैम सालेहपुर के दावों की जांच की घोषणा की थी, जिन्होंने कहा था कि 787 ड्रीमलाइनर के फ्यूसलेज हिस्से गलत तरीके से जोड़े गए हैं और हजारों उड़ानों के बाद मध्य हवा में टूट सकते हैं. बोइंग ने कहा है कि उसने ड्रीमलाइनर पर व्यापक परीक्षण किए हैं और विमान पर "पूर्ण विश्वास" है. गुरुवार को बोइंग ने कहा कि वह एयर इंडिया दुर्घटना के बारे में "अधिक जानकारी इकट्ठा करने पर काम कर रहा है." इंजन निर्माता जीई एयरोस्पेस ने कहा है कि वह जांच में मदद के लिए भारत एक टीम भेज रहा है, जबकि बोइंग ने कहा है कि वह एयरलाइन को पूरा सहयोग दे रहा है. आने वाले दिनों में ब्लैक बॉक्स डेटा और मलबे की विस्तृत जांच से दुर्घटना के वास्तविक कारणों का पता चलेगा.
डबल इंजन फेलियर की अटकलें बीबीसी के मुताबिक आने वाले दिनों में ब्लैक बॉक्स के डेटा और मलबे की जांच के साथ एक जटिल जांच शुरू होगी. उपलब्ध वीडियो में विमान जमीन से उठने में संघर्ष करता दिखाई दे रहा है, जो थ्रस्ट या पावर की कमी का संकेत देता है. कुछ विशेषज्ञों ने अत्यंत दुर्लभ डबल इंजन फेलियर की संभावना पर अटकलें लगाई हैं. सवाल यह भी उठाया गया है कि क्या विमान में राम एयर टर्बाइन (RAT) तैनात था, जो मुख्य इंजन के फेल होने पर आवश्यक सिस्टम के लिए पावर उत्पन्न करता है. डबल इंजन फेलियर लगभग अनसुना है. इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण 2009 का "मिरेकल ऑन द हडसन" है, जब यूएस एयरवेज के एयरबस A320 के दोनों इंजन न्यूयॉर्क के लागार्डिया एयरपोर्ट से टेक-ऑफ के तुरंत बाद पक्षी टकराने से बंद हो गए थे, लेकिन विमान सुरक्षित रूप से पानी में उतरा था.
एक वरिष्ठ पायलट ने ‘बीबीसी’ को बताया कि ईंधन संदूषण या रुकावट से भी दोहरा इंजन फेलियर हो सकता है. विमान के इंजन सटीक ईंधन मीटरिंग सिस्टम पर निर्भर करते हैं - अगर यह सिस्टम बंद हो जाए, तो ईंधन की कमी और इंजन शटडाउन हो सकता है. पूर्व पायलट मार्को चान ने ‘बीबीसी’ वेरिफाई को बताया कि उपलब्ध फुटेज के आधार पर डबल इंजन फेलियर का कोई सबूत नहीं है. विमानन विशेषज्ञ मोहन रंगनाथन ने कहा कि डबल इंजन फेलियर "बेहद, बेहद दुर्लभ घटना" होगी.
बर्ड स्ट्राइक की संभावना भारत के कुछ विशेषज्ञों द्वारा बर्ड स्ट्राइक की संभावना भी जताई गई है. जब विमान किसी पक्षी से टकराता है तो यह बेहद खतरनाक हो सकता है. गंभीर मामलों में, इंजन पक्षी को अंदर खींच लेने पर पावर खो सकते हैं, जैसा कि दक्षिण कोरिया की जेजू एयर दुर्घटना में हुआ था जिसमें पिछले साल 179 लोग मारे गए थे. अहमदाबाद एयरपोर्ट से परिचित विशेषज्ञों और पायलटों ने ‘बीबीसी’ को बताया कि यह एयरपोर्ट "पक्षियों के लिए कुख्यात" है. रंगनाथन ने कहा, "वे हमेशा आसपास रहते हैं." गुजरात राज्य में पांच वर्षों में 462 बर्ड स्ट्राइक की घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें से अधिकतर अहमदाबाद एयरपोर्ट पर हुईं. टाइम्स ऑफ इंडिया की सितंबर 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, अहमदाबाद में 2022-23 में 38 बर्ड स्ट्राइक हुए, जो पिछले 12 महीनों की तुलना में 35% की वृद्धि थी. 2009 के मामले में, समुद्री गुल्लों का झुंड 2,700 फीट की ऊंचाई पर इंजन में चला गया था - जो एयर इंडिया उड़ान की ऊंचाई से चार गुना अधिक था. इस मामले में भारतीय पायलटों के पास न तो पर्याप्त ऊंचाई थी और न ही पैंतरेबाजी का समय. हालांकि, एक वरिष्ठ पायलट ने कहा कि बर्ड हिट शायद ही कभी विनाशकारी होता है "जब तक कि यह दोनों इंजन को प्रभावित न करे."
फ्लैप्स की भूमिका बीबीसी वेरिफाई से बात करने वाले तीन विशेषज्ञों ने सुझाया कि दुर्घटना इसलिए हुई हो सकती है क्योंकि टेक-ऑफ के दौरान विमान के फ्लैप्स विस्तारित नहीं थे - हालांकि अन्य पायलटों और विश्लेषकों ने इसे चुनौती दी है. फ्लैप्स टेक-ऑफ के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, कम गति पर अधिकतम लिफ्ट उत्पन्न करने में मदद करते हैं. अगर वे सही तरीके से विस्तारित नहीं हैं, तो यात्रियों से भरा, लंबी उड़ान के लिए भारी ईंधन ले जाने वाला और गर्म परिस्थितियों से जूझने वाला विमान उड़ने में संघर्ष करेगा. अहमदाबाद में, जहां गुरुवार को तापमान 40°C (104F) के करीब पहुंच गया था, पतली हवा में अधिक फ्लैप सेटिंग और अधिक इंजन थ्रस्ट की मांग होती है. ऐसी स्थितियों में, एक छोटी कॉन्फ़िगरेशन त्रुटि भी विनाशकारी परिणाम दे सकती है. गुरुवार दोपहर के बाद सामने आए सीसीटीवी फुटेज में विमान अहमदाबाद से उड़ान भरने, ऊंचाई हासिल करने में संघर्ष करने, और फिर धीरे-धीरे नीचे उतरने से पहले दुर्घटनाग्रस्त होने का दृश्य दिखाई दिया. लेकिन वापस लिए गए फ्लैप्स के साथ टेक-ऑफ रोल 787 के टेक-ऑफ कॉन्फ़िगरेशन वार्निंग सिस्टम से चेतावनी ट्रिगर करेगा, जो फ्लाइट क्रू को असुरक्षित कॉन्फ़िगरेशन के बारे में सचेत करता है. पूर्व पायलट चान ने बीबीसी वेरिफाई को बताया कि अब तक सामने आया फुटेज यह निश्चित रूप से स्थापित करने के लिए बहुत विकृत है कि फ्लैप्स विस्तारित थे या नहीं, लेकिन कहा कि ऐसी त्रुटि "अत्यधिक असामान्य" होगी. चान ने कहा, "फ्लैप्स पायलट खुद सेट करते हैं, टेक-ऑफ से पहले, और सेटिंग को सत्यापित करने के लिए कई चेकलिस्ट और प्रक्रियाएं हैं. अगर फ्लैप्स सही तरीके से सेट नहीं हैं तो यह संभावित मानवीय त्रुटि की ओर इशारा करेगा."
विमान हादसों के विशेषज्ञ के मुताबिक इंतजार करें
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रितिका चोपड़ा ने अतंरराष्ट्रीय स्तर के हवाई सुरक्षा विशेषज्ञ ग्रेग फीथ से बात की है. ग्रेग फीथ (67) जो स्वयं एनटीएसबी के पूर्व वरिष्ठ हवाई सुरक्षा जाँचकर्ता रह चुके हैं. उन्होंने दुर्घटना के वीडियो फुटेज और अपने दशकों के अनुभव के आधार पर एआई 171 की घटना पर विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि विमान के टेकऑफ के तुरंत बाद क्या गलत हुआ होगा. जाँचकर्ता किन सवालों पर ध्यान देंगे. और दुर्घटना के बाद के घंटों व दिनों में अटकलों से बचना क्यों जरूरी है.
उन्होंने ये भी कहा, "वीडियो फुटेज या ऑनलाइन अटकलों पर आधारित निष्कर्ष न निकालें. क्योंकि ये गलत जानकारी फैला सकते हैं. एनटीएसबी और भारत के एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो की टीम अगले 48-72 घंटों में और स्पष्ट जानकारी देगी. तब तक धैर्य बनाए रखें".
अमेरिकी राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड (एनटीएसबी) की टीम भी भारत आ रही है.फीथ के मुताबिक वीडियो फुटेज से जो प्रारंभिक संकेत मिलते हैं, उनके मुताबिक -
फ्लैप्स की गलत सेटिंग: विंग के पिछले हिस्से पर लगे फ्लैप्स (जो विमान की लिफ्ट बढ़ाते हैं) उचित स्थिति में नहीं दिखाई देते. जिससे विमान को पर्याप्त लिफ्ट नहीं मिल पाई. गर्म मौसम (अहमदाबाद में उच्च तापमान) में यह समस्या और गंभीर हो जाती है. क्योंकि इंजन और विमान का प्रदर्शन प्रभावित होता है .
लैंडिंग गियर न हटना: सामान्यतः टेकऑफ के बाद 600 फीट की ऊँचाई पर लैंडिंग गियर को हटा लिया जाता है. पर वीडियो में यह अब भी नीचे दिखाई देता है. इसके पीछे हाइड्रोलिक खराबी, इलेक्ट्रिकल समस्या या पायलट की अन्य समस्याओं में उलझे होने जैसे कारण हो सकते हैं .
नाक ऊँची पर विमान नीचे गिरा: विमान का पिच अटीट्यूड (नाक ऊपर उठी हुई स्थिति) सामान्य था. पर वह जमीन की तरफ बढ़ रहा था. इससे संकेत मिलता है कि इंजन पर्याप्त थ्रस्ट नहीं दे पा रहे थे. या तो इंजन रोलबैक की स्थिति में थे या ईंधन की समस्या के कारण बंद हो गए थे .
उनके मुताबिक जाँच के प्रमुख केंद्र बिंदु ये होंगे.
ब्लैक बॉक्स डेटा क्या बताएगा: फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (एफडीआर) और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (सीवीआर) से मिलने वाला डेटा सबसे विश्वसनीय जानकारी देगा. यह बताएगा कि विमान में खराबी थी या पायलट की प्रक्रियाओं में कोई गड़बड़ी हुई. अहमदाबाद दुर्घटना स्थल से दोनों ब्लैक बॉक्स बरामद हो चुके हैं.
फोरेंसिक जाँच के सूक्ष्म साक्ष्य: विमान का मलबा पूरी तरह नष्ट हो गया है. फिर भी फ्लैप्स के जैक स्क्रू जैसे यंत्रों की स्थिति बता सकती है कि वे किस डिग्री पर सेट थे. कॉकपिट में थ्रस्ट लीवर. फ्लैप हैंडल और लैंडिंग गियर हैंडल की भौतिक स्थिति भी महत्वपूर्ण सुराग देगी .
एयरपोर्ट सुरक्षा फुटेज की समीक्षा : गेट पर खड़े समय, टैक्सी करते समय या टेकऑफ रोल के दौरान विमान की कॉन्फ़िगरेशन कैसी थी? इसका पता सिक्योरिटी कैमरों के फुटेज से लगाया जा सकता है. जो यह समझने में मदद करेगा कि समस्या यांत्रिक थी या पायलट प्रक्रियाओं में कोई कमी थी .
फीथ पायलट्स के लिए चुनौतियों को कैसे देखते हैं?
कम ऊँचाई पर प्रतिक्रिया का समय: टेकऑफ के तुरंत बाद 600 फीट जैसी कम ऊंचाई पर आपातकाल का सामना करने पर पायलट्स के पास प्रतिक्रिया देने के लिए सेकंड्स भर का समय होता है. ऐसे में इंजन खराबी, विद्युत व्यवस्था बंद होना या अन्य समस्याओं से निपटना अत्यंत कठिन होता है .
अनुभव के बावजूद दुर्घटना कप्तान 8000 घंटे से अधिक उड़ान का अनुभव रखते थे. पर अगर विमान में अचानक कोई गंभीर तकनीकी खराबी आई हो (जैसे दोनों इंजन बंद होना), तो कम ऊंचाई पर उसका समाधान करना किसी भी पायलट के लिए चुनौतीपूर्ण होता .
अगले चरण और समयसीमा
प्रारंभिक निष्कर्ष यदि सीवीआर और एफडीआर का डेटा स्पष्ट मिलता है. तो जांच टीम एक सप्ताह के भीतर उड़ान सुरक्षा से जुड़े कोई तत्काल जोखिम पहचान सकती है. ताकि अन्य विमानों के लिए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें .
पूर्ण जाँच की अवधि इस दुर्घटना की पूरी जांच में 18 से 24 महीने लग सकते हैं. क्योंकि इसमें विमान, एयरलाइन की नीतियों, प्रशिक्षण प्रणाली और नियामक ढांचे जैसे सभी पहलुओं की गहन समीक्षा शामिल होगी . इस बातचीत का वीडियो भी है.
‘ऑल अप वेट’ एक महत्वपूर्ण कारक, क्या वज़न ज्यादा था?
वायुसेना के सेवानिवृत्त विंग कमांडर और फ्लाइट इंजीनियर के रूप में अपने दशकों के अनुभव के आधार पर ए. महेश ने फ्लाइट AI-171 दुर्घटना के संभावित कारणों पर कुछ अनुमान लगाए हैं. विशेष रूप से विमान का वज़न, पर्यावरणीय मापदंड, इंजन प्रदर्शन और रखरखाव की प्रक्रियाएं.
उनका कहना है कि एक महत्वपूर्ण कारक जिसे फ्लाइट AI-171 की दुर्घटना की जांच करते समय आंका जाना चाहिए, वह है “ऑल अप वेट” (AUW). AUW विमान का कुल वजन होता है, जिसमें ईंधन, माल और यात्री शामिल होते हैं. हर उड़ान से पहले इसकी गणना की जाती है. प्रत्येक उड़ान के समय AUW को सुरक्षित सीमा के भीतर रहना चाहिए. AUW की सीमाएं उस हवाई अड्डे की ऊंचाई और बाहरी वायु तापमान (ओएटी) के अनुसार बदलती हैं. उदाहरण के लिए बारिश AUW की उचित सीमा को प्रभावित कर सकती है.
स्थान भी महत्वपूर्ण होता है. एक विमान जो तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे से 100 टन AUW के साथ उड़ान भर सकता है, वही विमान लेह से केवल 75 टन ही ले जा सकता है, भले ही दोनों जगहों का तापमान समान हो. इसका कारण ऊंचाई में बदलाव के कारण वायु घनत्व में अंतर है. इसके अलावा, उच्च वायुमंडलीय तापमान पर, विमान के इंजन अपनी अधिकतम सीमा पर काम करते हैं. इंजन को सर्वोत्तम प्रदर्शन और अधिकतम शक्ति के लिए हमेशा उच्च घनत्व वाली हवा चाहिए होती है. लेकिन जब तापमान अधिक होता है, तो हवा का घनत्व कम हो जाता है, जिससे इंजन का प्रदर्शन सीमाओं में बंध जाता है.
AI-171 के उपलब्ध वीडियो से स्पष्ट है कि विमान ने शुरुआत में गति पकड़ी और उड़ान भरी. फ्लैप्स और लीडिंग एज स्लैट्स ने शुरुआती लिफ्ट में मदद की, जिसे नोज-अप एटीट्यूड ने और समर्थन दिया. इसके बाद, विमान ऊंचाई बनाए नहीं रख सका. अहमदाबाद में 13:18 बजे तापमान 40 डिग्री सेल्सियस था. संभावना है कि विमान के टेकऑफ के दूसरे चरण में, वायुमंडलीय परिस्थितियों ने AUW की गणना को गड़बड़ा दिया और इंजन व कम घनत्व वाली हवा अधिक वजन वाले विमान को पर्याप्त समर्थन नहीं दे सके.
इसके अलावा, ध्यान देने वाली बात है कि हैंडबैग का वजन शायद ही कभी तौला जाता है. औसतन, यदि प्रत्येक यात्री अपने हैंडबैग में 5 किलो अतिरिक्त सामान ले जाता है, तो कुल मिलाकर विमान के AUW में 1 टन जुड़ जाता है, और ये आंकड़े आमतौर पर चालक दल की गणना में शामिल नहीं होते. विंग कमांडर महेश ने कहा, “लगता है कि कप्तान को विमान के अधिक वजन के बारे में कुछ अंदाजा था. मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि AI-171 ने अहमदाबाद हवाई अड्डे के रनवे 23 की पूरी लंबाई का उपयोग करते हुए उड़ान भरी.” “यह ध्यान देने योग्य है कि रनवे 23 की लंबाई 11,499 फीट है। विमान ने रनवे के किनारे तक बैकट्रैक किया, फिर टेकऑफ रोल शुरू किया. आमतौर पर इस श्रेणी के विमान के लिए पूरी लंबाई की रनवे की आवश्यकता नहीं होती. लेकिन कैप्टन सुमित सभरवाल द्वारा रनवे के हर इंच का इस्तेमाल सुनिश्चित करना, अब पीछे मुड़कर देखने पर बहुत कुछ कहता है,” विंग कमांडर ए. महेश ने “द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में लिखा है. इसके अलावा उन्होंने जो लिखा है, यहां पढ़ा जा सकता है.
सिर्फ 787 में ही नहीं, बोइंग के और भी ड्रीमलाइनर में रही हैं समस्याएं
अहमदाबाद में 12 जून 2025 को दुर्घटनाग्रस्त हुआ 787 ड्रीमलाइनर, बोइंग का सबसे ज़्यादा बिकने वाला वाइड-बॉडी पैसेंजर जेट, दरअसल, कंपनी का दूसरा सबसे अधिक जांचा-परखा गया विमान है. पहला है-737 मैक्स, जिसे घातक दुर्घटनाओं और तकनीकी समस्याओं के बाद कई बार ग्राउंड किया गया है. फिर भी ड्रीमलाइनर का सुरक्षा रिकॉर्ड काफी हद तक अच्छा रहा, लेकिन गुरुवार को एयर इंडिया फ्लाइट 171 दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद बोइंग का प्रमुख मॉडल “787 ड्रीमलाइनर” फिर से कड़ी जांच के दायरे में आ गया है.
तब 787 ड्रीमलाइनर को भी ग्राउंड किया गया था : शुरुआत में 787 ड्रीमलाइनर के साथ भी समस्याएं हुई थीं. 2011 में पेश किए गए इस विमान को लिथियम-आयन बैटरी में आग लगने की घटनाएं सामने आने के बाद जनवरी से अप्रैल 2013 के बीच अस्थायी रूप से ग्राउंड कर दिया गया था. बोइंग ने बैटरी सिस्टम को फिर से डिज़ाइन करने के बाद ही डिलीवरी फिर से शुरू की. इसके बाद, 2019 से विमान में गंभीर गुणवत्ता नियंत्रण की समस्याएं आईं, जिससे 2021 से मार्च 2023 तक डिलीवरी रोक दी गई.
फिर, अप्रैल 2024 में अमेरिका के फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) ने जांच शुरू की, जब बोइंग के पूर्व इंजीनियर और व्हिसलब्लोअर सैम सालेहपुर ने आरोप लगाया कि 787 ड्रीमलाइनर के फ्यूज़लाज के हिस्से सही से नहीं जोड़े गए हैं, जिससे विमान समय के साथ अलग हो सकते हैं.
भारत में डिलीवर ड्रीमलाइनरनबोइंग कंपनी ने भारतीय एयरलाइनों को 27 787-8 ड्रीमलाइनर डिलीवर किए हैं. सभी एयर इंडिया को, जिनमें से आखिरी पाँच 2017 में डिलीवर हुए थे. बड़े और लंबी दूरी वाले वेरिएंट, 787-9 ड्रीमलाइनर, 2020 से 2024 के बीच विस्तारा (जो अब एयर इंडिया का हिस्सा है) को छह डिलीवर किए गए. बोइंग अब एयर इंडिया को 20 और 787-9 ड्रीमलाइनर डिलीवर करने वाला है.
लोकप्रिय विकल्प 737 MAX के साथ भी समस्याएं भारत में 737 MAX पिछले एक दशक में अधिक लोकप्रिय विकल्प रहा है, जिसमें 2018 से मई 2025 के बीच कुल 63 डिलीवरी हुई हैं. इनमें सबसे आगे एयर इंडिया (48), अकासा एयर (8) और स्पाइसजेट (7) हैं. लेकिन, एयर इंडिया के लिए 142, अकासा एयर के लिए 198 और स्पाइसजेट के लिए 129 737 MAX विमानों की बुकिंग अभी तक पूरी नहीं हुई है.
मार्च 2019 से नवंबर 2020 के बीच, दो घातक दुर्घटनाओं—लायन एयर फ्लाइट 610 और इथियोपियन एयरलाइंस फ्लाइट 302 के बाद पूरी दुनिया में 737 MAX के सभी विमानों को ग्राउंड कर दिया गया था. ये दोनों दुर्घटनाएं टेकऑफ के तुरंत बाद हुई थीं. इन हादसों में कुल 346 लोगों की मौत हुई थी, और जांच में पाया गया कि इसका कारण एक खराब उड़ान प्रणाली थी, जो गलत सेंसर डेटा पर काम कर रही थी. जनवरी 2024 में, FAA ने उस वक्त फिर से 171 बोइंग 737 MAX जेट्स को ग्राउंड कर दिया, जब अलास्का एयरलाइंस के विमान में उड़ान के दौरान एक डोर प्लग अलग हो गया. बोइंग ड्रीमलाइनर के मॉडल्स के साथ कब-क्या घटित हुआ और ताज़ा स्थिति क्या है, इस बारे में “द इंडियन एक्सप्रेस” के अगम वालिया की रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है.
बोइंग हादसा ; रेगुलेटर ने एयर इंडिया को कई पत्र लिखे थे
अहमदाबाद में AI-171 दुर्घटना की उच्च-स्तरीय जांच अभी शुरू ही हुई है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव सनत कौल ने शुक्रवार (13 जून 2025) को कहा कि नागरिक उड्डयन नियामक ने एयर इंडिया को कई पत्र लिखे थे, जिनमें अनुचित सुरक्षा जांच और अन्य चूकों की ओर इशारा किया गया था.
कौल ने संकेत दिया कि सुरक्षा जांच के लिए जिम्मेदार एयर इंडिया कर्मचारियों की संभावित लापरवाहियां या नियामकों द्वारा निरीक्षण और ऑडिट के खराब क्रियान्वयन जैसी बातें उन कारकों में शामिल हो सकती हैं, जिनकी वजह से यह हादसा हुआ और विमान में सवार 241 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई.
“गुजरात समाचार” के अनुसार, कौल ने बताया कि “डीजीसीए ने एयर इंडिया को कई बार पत्र लिखा था, जिसमें कई मुद्दों की ओर इशारा किया गया था, मुख्य रूप से सुरक्षा से जुड़े मामलों पर, जैसे कि अनुचित निरीक्षण और अन्य चूकें. तो अब सवाल उठता है कि एयर इंडिया द्वारा अपनाई गई रखरखाव प्रक्रियाएं कैसी थीं.”
पूर्व नौकरशाह ने कहा, “यह भी चिंता का विषय है कि जिसे 'लाइन मेंटेनेंस' कहा जाता है, यानी हर उड़ान से पहले निरीक्षकों द्वारा किए जाने वाले चेक. ये चेक कितने गहन और प्रभावी थे- अब इसकी जांच की जा रही है." एविएशन इंडस्ट्री में, लाइन मेंटेनेंस से तात्पर्य उन नियमित रखरखाव और मरम्मत कार्यों से है, जो उड़ानों के बीच या छोटे लेओवर के दौरान आमतौर पर एयरपोर्ट टार्मैक पर किए जाते हैं.
कौल ने कहा कि नागरिक उड्डयन सुरक्षा से जुड़े मामलों को नियामक, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) संभालता है, जो मंत्रालय के तहत काम करता है, लेकिन स्वतंत्र रूप से संचालित होता है. उन्होंने कहा, "देश में एक मजबूत और स्पष्ट रूप से परिभाषित नियामक ढांचा है. हालांकि, सवाल यह है कि 'वास्तविकता में इसका पालन कितनी अच्छी तरह से किया जा रहा है.”
धुबरी में तनाव, ‘देखते ही गोली मारने’ के आदेश
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को असम के धुबरी शहर में बढ़ते साम्प्रदायिक तनाव के चलते ‘देखते ही गोली मारने’ का आदेश जारी किया है. राज्य सरकार ने बांग्लादेश सीमा से लगे मुस्लिम-बहुल इस जिले में आरएएफ और सीआरपीएफ सहित अर्धसैनिक बलों की भी तैनाती की है. तनाव उस समय भड़क उठा जब ईद के आसपास ‘प्रो-बांग्लादेश’ पोस्टर लगाए गए और हनुमान मंदिर में गाय के सिर मिलने की घटना के बाद रात में पथराव हुआ. बढ़ती अशांति के बीच, सरमा ने शुक्रवार को धुबरी का दौरा किया और कहा, “धुबरी में एक विशेष समूह हमारे मंदिरों को क्षति पहुंचाने की नीयत से सक्रिय हो चुका है. शाम 6 बजे के बाद शूट-एट-साइट आदेश लागू होंगे.” उन्होंने कहा, “मैं अगली ईद पर यहां रहूंगा, चाहे खुद रात भर हनुमान मंदिर की रखवाली करनी पड़े.”
फैक्ट चैक
सिंदूर : इधर सरहद पर गोले, उधर मीडिया की मार
'ऑपरेशन सिंदूर' पर ऑल्ट न्यूज के लिए ओइशानी भट्टाचार्य और दिती पुजारा की यह रिपोर्ट राष्ट्रीय मीडिया द्वारा दिखाए गए महिमामंडन और सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिकों द्वारा झेली गई भयावह हकीकत के बीच के गहरे अंतर को उजागर करती है. यह रिपोर्ट राष्ट्रीय मीडिया की भूमिका और उसकी ज्यादतियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है. 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' लॉन्च किया, जिसके बाद पाकिस्तानी गोलाबारी में 21 भारतीय नागरिक मारे गए. रिपोर्ट बताती है कि जहाँ प्रमुख भारतीय टीवी चैनल इस ऑपरेशन को एक शानदार जीत और 'बदला' के रूप में पेश कर रहे थे, वहीं वे ज़मीनी स्तर पर हुए नागरिक नुकसान और प्रशासनिक विफलताओं को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर रहे थे.
पीड़ितों के परिवार मीडिया द्वारा फैलाई गई भ्रामक सूचनाओं से गहरे आहत थे. पंजाब में सुखविंदर कौर की ड्रोन हमले में मौत को मीडिया ने उनकी अपनी गलती बताया. इसी तरह, पुंछ में बच्चों को बचाते हुए मारे गए सम्मानित शिक्षक कारी मोहम्मद इकबाल को कई चैनलों ने आतंकवादी करार दिया. रिपब्लिक टीवी और आज तक जैसे चैनलों ने यह झूठा नैरेटिव चलाया कि पाकिस्तान जानबूझकर पुंछ में एक गुरुद्वारे को निशाना बना रहा था, जबकि स्थानीय लोगों के अनुसार गोले मस्जिदों और घरों सहित सभी जगहों पर गिरे थे.
सबसे दुखद पहलू यह था कि प्रशासन ने नागरिकों को कोई चेतावनी नहीं दी. पुंछ में 'मॉक ड्रिल' की झूठी सूचना के कारण कई परिवार वहीं रुके रहे और गोलाबारी का शिकार हो गए, जिसमें 12 वर्षीय जुड़वां ज़ैन और उर्वा तथा 14 वर्षीय विहान भार्गव की मौत हो गई. इस प्रशासनिक विफलता पर सवाल उठाने के बजाय, मीडिया चैनल अपनी ही दुनिया में थे. टाइम्स नाउ नवभारत पर एक एंकर ने गर्व से कहा, 'सायरन नहीं बजा, बैंड बजा', जो पीड़ितों के दर्द का मज़ाक उड़ाने जैसा था. एबीपी न्यूज़ पर यह तक कहा गया कि कुछ परिवार अपनी मर्ज़ी से रुके रहे, इसलिए हताहत हुए. कई चैनलों ने कराची पर काल्पनिक हमलों के ग्राफिक्स दिखाए और युद्ध के लिए भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल किया, जबकि ज़मीनी हकीकत को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया. प्रधानमंत्री ने भी अपने संबोधन में इन नागरिक मौतों का कोई उल्लेख नहीं किया. यह रिपोर्ट दिखाती है कि टीवी स्टूडियो में युद्ध के लिए जयकारे लगाना कितना आसान है, लेकिन इसकी असल कीमत सीमा पर रहने वाले निर्दोष लोग चुकाते हैं. परिवारों का कहना है कि अगर कोई चेतावनी सायरन बजाया जाता या समय पर निकासी के आदेश दिए जाते, तो ये जानें बचाई जा सकती थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में इन नागरिक मौतों का कोई उल्लेख नहीं किया. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि टीवी चैनलों पर युद्ध के लिए जयकारे लगाना आसान है, लेकिन सीमा पर रहने वाले लोगों के लिए इसकी कीमत बहुत बड़ी होती है. पीड़ित परिवारों को लगा कि उनके दुख को सैन्य जीत के शोर में दबा दिया गया.
भारत में 2025 में 25% की दर से बढ़ेगा इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग: रिपोर्ट
'बिजनेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट है कि भारत का इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग तेज़ी से विस्तार कर रहा है, जिसमें ब्रांडों के विश्वास, एजेंसियों के विलय एवं अधिग्रहण (M&A) और कंटेंट क्रिएटर्स के लिए सरकार की फंडिंग प्रमुख सहायक कारक बनकर उभरे हैं. अब इस उद्योग का फोकस सिर्फ फॉलोअर्स की संख्या से हटकर कंटेंट की गुणवत्ता और क्रिएटर की प्रासंगिकता पर केंद्रित हो गया है.
2024 में ₹3,600 करोड़ के स्तर पर खड़े इस उद्योग के 2025 में 25% की दर से बढ़ने की उम्मीद है. यह जानकारी ‘इंडिया इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग रिपोर्ट 2025’ में दी गई है, जिसे 'द गोट एजेंसी' (डब्ल्यूपीपी मीडिया का हिस्सा) और कांटर (मार्केटिंग डेटा और एनालिटिक्स कंपनी) ने जारी किया है. पिछले 12 महीनों में मीडिया और मार्केटिंग क्षेत्र में 20 से अधिक विलय और अधिग्रहण हुए हैं, जिनका मकसद इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग क्षमताओं को मजबूत करना रहा है. रिपोर्ट के अनुसार 70% ब्रांडों ने भरोसा और विश्वसनीयता को इन्फ्लुएंसर से जुड़ने का प्रमुख कारण बताया. भारत सरकार ने $1 अरब (लगभग ₹8,300 करोड़) का फंड लॉन्च किया है, ताकि कंटेंट क्रिएटर्स को नवाचार, निर्माण गुणवत्ता और उनकी पहुंच में मदद मिल सके.
उद्योग में हो रहे बदलाव: अब ब्रांड केवल फॉलोअर्स की संख्या नहीं, बल्कि कंटेंट की गुणवत्ता और प्रासंगिकता पर ज़ोर दे रहे हैं. विशेषकर मैन्युफैक्चरिंग ब्रांड्स में 85% कंपनियां इन्फ्लुएंसर चयन में गुणवत्ता को प्राथमिकता दे रही हैं. 72% ब्रांड लंबी अवधि के इन्फ्लुएंसर सहयोग को तरजीह दे रहे हैं. 95% ब्रांड्स मैक्रो-इन्फ्लुएंसर्स के साथ काम करना चाहते हैं ताकि कंटेंट कंट्रोल और ब्रांड सेफ्टी सुनिश्चित की जा सके. ऑटोमोटिव और कंज़्यूमर ड्यूरेबल्स जैसे क्षेत्रों में 85% मार्केटर्स 'निच माइक्रो-इन्फ्लुएंसर्स' में निवेश बढ़ाने की योजना बना रहे हैं.
डब्ल्यूपीपी मीडिया (साउथ एशिया) के सीओओ अश्विन पद्मनाभन ने कहा- “आज का उपभोक्ता केवल प्रोडक्ट नहीं, बल्कि कहानी, समुदाय और भरोसेमंद क्रिएटर में निवेश कर रहा है. भारत में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग अब परिपक्वता की ओर बढ़ रही है.” कांटर के डायरेक्टर पुनीत अवस्थी ने कहा- “यह केवल पहुंच की बात नहीं रही. अब यह प्रासंगिकता, प्रभाव और परिणामों की बात है. उपभोक्ता जितने विवेकशील होते जा रहे हैं, इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव उतना ही गहरा हो रहा है.”
लोगों को बांग्लादेश और म्यांमार धकेलना गैरकानूनी!
भारत द्वारा लोगों को बांग्लादेश और म्यांमार वापस धकेलना संभवतः गैरकानूनी है. विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की यह नीति नई नहीं है और यह घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप भी नहीं लगती. उदाहरण के तौर पर, असम के मुख्यमंत्री का यह बयान कि निर्वासन ‘कानूनी प्रक्रिया के बिना’ किया जाएगा, समानता के अधिकार का उल्लंघन है. बांग्लादेश में लोगों को एकतरफा रूप से वापस भेजना उचित प्रक्रिया का उल्लंघन है, क्योंकि सरकार को बांग्लादेशी अधिकारियों के साथ समन्वय करना चाहिए. साथ ही, रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार तट तक तैरने के लिए मजबूर करना, जहां उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, यह प्रथा अंतरराष्ट्रीय परंपरागत कानून का उल्लंघन हो सकती है. हालांकि, इस बात की संभावना कम है कि भारत को इसके कारण अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पड़े, क्योंकि इसकी भू-राजनीतिक महत्ता है और पश्चिमी सरकारें भी इस तरह की ‘पुश बैक’ नीतियां अपनाती हैं. “स्क्रॉल” में विनीत भल्ला की इस पर विस्तृत रिपोर्ट है.
डीयू में ‘मनुस्मृति’ नहीं पढ़ाई जाएगी : दिल्ली विश्वविद्यालय किसी भी रूप में मनुस्मृति का कोई भी हिस्सा नहीं पढ़ाएगा, यह बात इसके कुलपति योगेश सिंह ने “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताई है. यह बयान तब आया है जब विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग ने अपने एक पाठ्यक्रम में इस ग्रंथ को शामिल कर लिया था. सिंह ने यह भी जोड़ा कि विश्वविद्यालय द्वारा मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल न करने के निर्देश पहले ही दिए जा चुके थे, इसके बाद किसी भी विभाग को इसे अपने सिलेबस में नहीं करना चाहिए था. “टाइम्स ऑफ इंडिया” में सुगंधा झा ने विस्तार से बताया है कि संस्कृत विभाग के पाठ्यक्रम में छात्रों को क्या पढ़ाया जा रहा था.
भारत ने ग़ाज़ा संघर्षविराम प्रस्ताव पर यूएन में मतदान से परहेज़ किया, छह महीने पहले किए गए समर्थन से पलटा
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में ग़ाज़ा पट्टी में युद्धविराम की मांग करने वाले प्रस्ताव पर भारत ने मतदान से परहेज़ किया, जबकि दिसंबर 2024 में भारत ने ऐसे ही एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था. यह मोदी सरकार के नीति-रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, विशेषकर ऐसे समय में जब ग़ाज़ा में इजरायली बमबारी से मरने वालों की संख्या 55,000 के पार पहुंच चुकी है. यह भारत की तीन वर्षों में चौथी बार ऐसी स्थिति में तटस्थता है, जब उसने इज़राइल के खिलाफ आलोचना वाले प्रस्तावों से खुद को दूर रखा. इस वोटिंग के बीच भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर पेरिस में फ्रांसीसी विदेश मंत्री कैथरीन बारो के साथ बैठक कर रहे थे, जहां 17-20 जून को प्रस्तावित फ्रांस-सऊदी अरब सम्मेलन के लिए भारत से उच्च स्तरीय भागीदारी की मांग की जा रही है. गाजा के पक्ष में 149 देश जबकि अमेरिका, इजरायल समेत विरोध में केवल 12 देश खड़े रहे. भारत, अल्बानिया, इक्वाडोर, डोमिनिका समेत 19 देश तटस्थ बने रहे. भारत दक्षिण एशिया, BRICS और SCO जैसे सभी समूहों का अकेला देश था जिसने मतदान से परहेज़ किया.
प्रस्ताव में क्या था? :इस प्रस्ताव में ग़ाज़ा में नागरिकों की सुरक्षा और मानवीय कानूनों के पालन की मांग की गई थी. इजरायल और हमास से अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करने को कहा गया. भोजन, पानी, दवाएं, ईंधन और आश्रय जैसे मानवीय सहायता के निर्बाध प्रवेश की तत्काल अनुमति देने की मांग की गई थी.
ग़ाज़ा में इंटरनेट पूरी तरह ठप, मानवीय राहत अभियान बंद होने की कगार पर
'रॉयटर्स' की रिपोर्ट है कि संयुक्त राष्ट्र ने गुरुवार को पुष्टि की है कि ग़ाज़ा पट्टी में पूर्ण इंटरनेट ब्लैकआउट हो गया है, जिससे आपात सेवाएं, राहत समन्वय और आम नागरिकों के लिए सूचना संपर्क पूरी तरह कट गया है. संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता फरहान हक़ ने पत्रकारों को बताया, “आपात सेवाओं, मानवीय समन्वय और नागरिकों के लिए अहम सूचना देने वाले सभी ज़रूरी संपर्क साधन अब बंद हो चुके हैं. पूरे ग़ाज़ा में इंटरनेट बंद है, और मोबाइल नेटवर्क मुश्किल से काम कर रहे हैं.” यूएन अधिकारियों के मुताबिक, यह ब्लैकआउट संभवतः अंतिम बचे इंटरनेट केबल को नुकसान पहुंचने की वजह से हुआ है, जो हालिया सैन्य गतिविधियों के दौरान क्षतिग्रस्त हो गया. हालांकि, ‘मिडिल ईस्ट आई’ की रिपोर्ट कहती है कि इसे योजनाबद्ध ढंग से बंद कर दिया गया. गौरतलब है कि ग़ाज़ा में पहले से ही मानवीय संकट चरम पर है. भोजन, पानी, दवा और ईंधन की भारी किल्लत है. अब संचार संपर्क टूट जाने से राहत एजेंसियों का कामकाज भी ठप हो गया है.
इजरायल ने ईरान पर किए हमले, जवाब में ईरान ने पहले भेजे ड्रोन, फिर दागी मिसाइल
इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले शुरू किए हैं. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि गुरुवार रात और शुक्रवार अलसुबह इजरायल ने राजधानी तेहरान, तबरेज़ और शिराज़ शहर पर हमले किए. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे "ऑपरेशन राइजिंग लायन" नाम दिया है, जिसका उद्देश्य ईरान के परमाणु हथियार कार्यक्रम को रोकना है. तबरेज़ में इजरायली हमलों में कम से कम आठ लोगों की मौत और 12 अन्य घायल हुए. स्थानीय मीडिया ने हवाई अड्डे और सैन्य ठिकानों पर हमलों की सूचना दी है. हमलों में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के कमांडर होसैन सलामी और छह परमाणु वैज्ञानिकों सहित कई लोग मारे गए हैं. नेतन्याहू ने कहा कि इजरायल ने हमले से पहले अमेरिका को सूचित किया था. उन्होंने कहा, "हमने अमेरिका को पहले से सूचना दी थी. अब अमेरिका क्या करेगा, यह राष्ट्रपति ट्रम्प पर निर्भर है."
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई ने हमलों को "युद्ध की घोषणा" करार दिया और "कठोर सजा" की चेतावनी दी है. ईरान के नए रिवोल्यूशनरी गार्ड कमांडर मोहम्मद पाकपूर ने इजरायल के खिलाफ "नरक के द्वार खोलने" की धमकी दी. ईरान ने जवाबी कार्रवाई में 100 से अधिक ड्रोन लॉन्च किए, जिन्हें इज़राइल ने रोकने का दावा किया है. ईरान ने परमाणु हथियार बनाने से हमेशा इनकार किया है, लेकिन IAEA ने कहा कि ईरान के पास नौ परमाणु बम बनाने की क्षमता हो सकती है. ईरान ने जवाबी हमले के लिए 100 से अधिक ड्रोन लॉन्च किए, हालांकि इजरायल ने इसे खारिज किया. तेहरान में हमलों से भय और अराजकता फैली हुई है.
‘रॉयटर्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, इजरायल की सेना ने कहा है कि ईरान से मिसाइलें छोड़ी जा रही हैं जो इज़राइल की ओर बढ़ रही हैं. इजरायली सैन्य बलों ने बताया कि उनके रक्षा प्रणाली सक्रिय कर दी गई है और वे इस “खतरे” को रोकने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं. साथ ही, जनता को सुरक्षित जगहों पर छिपने के निर्देश दिए गए हैं. इधर अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि अमेरिका इन हमलों में शामिल नहीं था. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इराक के हवाई क्षेत्र में मिसाइलों और ड्रोनों की चेतावनी जारी की, जिसके बाद इराक ने अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया.
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने परमाणु सुविधाओं पर हमलों की निंदा की और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है. IAEA ने सोमवार को आपात बैठक बुलाई. ईरान के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद शुक्रवार को आपात बैठक आयोजित करेगी. मिडिल ईस्ट के इन दो ताकतवर देशों के बीच शुरू हुई जंग पर यूरोप ने भी प्रतिक्रिया दी है. स्पेन की सरकार ने दोनों पक्षों से संयम और हिंसा समाप्त करने की मांग की. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने क्षेत्रीय तनाव को कम करने की अपील की है.
फ्रांस और सऊदी अरब दोनों देशों द्वारा आयोजित एक सम्मेलन, जो इजरायल-फलस्तीन दो-राज्य समाधान पर केंद्रित था, ईरान पर ताजा हमलों के कारण स्थगित कर दिया गया.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इजरायली हमलों को "उत्कृष्ट" बताया और ईरान से परमाणु समझौता करने का आग्रह किया, चेतावनी दी कि अगले हमले "और क्रूर" होंगे. फिलहाल क्षेत्रीय तनाव चरम पर है. इराक, जॉर्डन और सीरिया ने अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए हैं. ईरान ने स्विट्जरलैंड के राजदूत को बुलाकर अमेरिकी समर्थन के खिलाफ विरोध दर्ज किया. तबरेज़ में नागरिकों सहित हताहतों की खबरें हैं, हालांकि स्वतंत्र सत्यापन बाकी है.
इजरायल-ईरान संघर्ष: हाल के घटनाक्रम की संक्षिप्त समयरेखा
अक्टूबर 2024: इजरायल ने ईरान के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिसे ईरान ने "सीमित नुकसान" वाला बताया. ईरान ने जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी.
मार्च 2025: इजरायल ने गाजा में हमास के साथ दो महीने की युद्धविराम तोड़कर हमले शुरू किए, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ा.
अप्रैल 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान के साथ परमाणु समझौते के लिए बातचीत शुरू की. इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस दौरान ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की योजना बनाई, लेकिन ट्रम्प ने इसे रोक दिया, कूटनीति को प्राथमिकता दी.
मई 2025: सऊदी अरब ने ईरान को चेतावनी दी कि ट्रम्प के परमाणु समझौते को गंभीरता से लें, अन्यथा इजरायल हमला कर सकता है.
13 जून 2025: इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों, विशेष रूप से नतांज़ में यूरेनियम संवर्धन केंद्र, पर बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए. हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के कमांडर होसैन सलामी सहित कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और छह परमाणु वैज्ञानिक मारे गए. ईरान ने इसे "युद्ध की घोषणा" करार दिया और "कड़ा जवाब" देने की धमकी दी.
1992 से इजरायल, ईरान से परमाणु हथियार बनवा रहा! : प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू वर्षों से यह दावा करते रहे हैं कि ईरान जल्द ही परमाणु हथियार बना सकता है. ये 'जल्द' का दावा साल 1992 से है. उन्होंने 2012 में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रसिद्ध भाषण दिया था जिसमें उन्होंने एक बम का चित्र दिखाकर कहा था कि ईरान "रेड लाइन" के करीब है. ताजे हमले का बहाना भी यही बना है. ईरान लगातार यह कहता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है.
इजरायल में भी दहशत: इजरायल में शुक्रवार को आशंका और विजय भावना मिली-जुली दिखाई दी, जब ईरान के सैन्य और परमाणु कार्यक्रम पर हुए अभूतपूर्व हमले ने सामान्य जनजीवन को अचानक ठप कर दिया. देश के मुख्य हवाई अड्डे को "अगली सूचना तक" बंद कर दिया गया है, और अगले कुछ दिनों तक कोई उड़ान संचालित होने की उम्मीद नहीं है. अस्पतालों ने सैकड़ों कमजोर मरीजों को आपातकालीन भूमिगत सुविधाओं में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है और जिन मरीजों को छुट्टी दी जा सकती है, उन्हें घर भेजा जा रहा है.
यरूशलम से लेकर तेल अवीव तक, शुक्रवार सुबह सप्ताहांत की शुरुआत पर आमतौर पर चहल-पहल से भरी रहने वाली सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा, अधिकांश दुकानें और कैफे बंद थे. जो कुछेक जगहें खुली थीं, वहां लंबी कतारें लग गईं, क्योंकि लोग ज़रूरी सामान, किसी के लिए डिब्बाबंद खाद्य सामग्री तो किसी के लिए एस्प्रेसो-जल्दी से खरीदने के लिए उमड़ पड़े.
भारत ने की शांति की अपील: भारत “ईरान और इजरायल के बीच हालिया घटनाक्रमों को लेकर गहराई से चिंतित” है, विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा. इस बयान में यह उल्लेख करने से परहेज़ किया गया कि इजरायल ने वास्तव में क्या किया है, यानी कि एक संप्रभु देश के कई स्थानों पर बमबारी की है. भारत ने “दोनों पक्षों से किसी भी तरह की उकसाने वाली कार्रवाई से बचने” की अपील की.
अलग से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया कि इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने उन्हें फोन किया। “उन्होंने मुझे मौजूदा हालात की जानकारी दी. मैंने भारत की चिंताओं को साझा किया और क्षेत्र में जल्द से जल्द शांति और स्थिरता की बहाली की आवश्यकता पर बल दिया.”
गौरतलब है कि खाड़ी क्षेत्र में लाखों भारतीय नागरिक काम कर रहे हैं और ईरान में भी भारतीय छात्र मौजूद हैं, जिन्होंने इजरायली बमबारी और संभावित घातक युद्ध के डर से भारत सरकार से जल्द वतन वापसी की अपील की है.
इस बीच, एशिया के पूरे क्षेत्र के लिए ईरान को खतरा दिखाने की कोशिश में इजरायली सेना द्वारा किया गया एक ट्वीट भारतीयों के बीच आक्रोश का कारण बन गया. ट्वीट में उपयोग किए गए मानचित्र में ईरान की मिसाइलों की पहुंच को दिखाया गया था, जिसमें पूरा जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा दिखाया गया है, जिससे भारतीय सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं में भारी नाराज़गी देखी गई.
इधर ट्रम्प के बर्थडे वाली 'सैन्य परेड' के विरोध में सड़क पर उतरेगा 'अमरीका'
एक ओर जब ट्रम्प प्रशासन शनिवार को भव्य सैनिक परेड के आयोजन के लिए तैयार नजर आ रहा है, वहीं दूसरी ओर ‘नो किंग्स’ आंदोलन पूरे देश भर में लोकतांत्रिक चेतना और नागरिक अधिकारों की रक्षा की मांग करते हुए जोर पकड़ रहा है. 'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ अमेरिका भर के लगभग 2,000 स्थानों पर “नो किंग्स” नाम से एक बड़े प्रदर्शन की योजना है, जिसमें लाखों लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. यह प्रदर्शन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सैन्य परेड और जन्मदिन के दिन ही आयोजित किया जा रहा है. ट्रम्प द्वारा लॉस एंजेलेस में शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाने के लिए नेशनल गार्ड और मरीन कॉर्प्स भेजे जाने के बाद से विरोध प्रदर्शनों में लोगों की सक्रियता और अधिक बढ़ गई है. ये प्रदर्शन निर्वासन के खिलाफ शुरू हुए थे. इंडिविज़िबल नामक संगठन के सह-संस्थापक एज्रा लेविन ने बताया, “सप्ताहांत के बाद से 'नो किंग्स डे' के नक्शे पर सैकड़ों नए कार्यक्रम जुड़ चुके हैं. सैकड़ों हज़ार लोग इन आयोजनों के लिए रजिस्टर कर चुके हैं.”
प्रदर्शन के लिए बनाए गए एक वेबसाइट में ट्रम्प के कामों को प्रदर्शन का कारण बताया गया है जैसे कि न्यायालयों की अवहेलना, सामूहिक निर्वासन, नागरिक अधिकारों पर हमले और जनसेवाओं में कटौती. वेबसाइट पर लिखा है- "भ्रष्टाचार बहुत आगे बढ़ चुका है. न कोई सिंहासन, न कोई मुकुट, न कोई राजा." देश के बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों तक ये विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं, जिससे यह दिखाया जा सके कि ट्रम्प के खिलाफ विरोध केवल वॉशिंगटन डीसी में नहीं, पूरे अमेरिका में है.
वॉशिंगटन डीसी में कोई आधिकारिक 'नो किंग्स' प्रदर्शन नहीं रखा गया है, ताकि ध्यान ट्रम्प की सैन्य परेड से हटे और आम जनता की शक्ति का प्रदर्शन राजधानी के बाहर हो. इसके बजाय, फिलाडेल्फिया में प्रमुख मार्च आयोजित किया जाएगा. डीसी स्थित एक संगठन "डीसी जॉय डे" मना रहा है, जिसमें वहां की संस्कृति, लोग और आपसी रिश्तों का जश्न मनाया जाएगा.
लेविन ने कहा, “हम नहीं चाहते थे कि ट्रम्प को वॉशिंगटन डीसी में काउंटर-प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई करने का बहाना मिले. न ही हम उसे यह कहने का मौका देना चाहते थे कि लोग सेना का विरोध कर रहे हैं. हम उसे छोटा और कमज़ोर दिखाना चाहते हैं और पूरे देश में विरोध करना चाहते हैं.” इससे पहले अप्रैल की शुरुआत में 'हैंड्स ऑफ' प्रदर्शनों में 1,300 से अधिक स्थानों पर लाखों लोग शामिल हुए थे. लेविन का मानना है कि 'नो किंग्स' उससे भी बड़ा आंदोलन होगा, भले ही ट्रम्प ने चेतावनी दी हो कि प्रदर्शनकारियों का सामना “बहुत बड़ी ताकत” से होगा. व्हाइट हाउस बाद में इस बयान को नरम करने की कोशिश करता रहा.
हाल में एक प्रेस कांफ्रेंस में ट्रम्प ने कहा कि “जो लोग सैन्य परेड का विरोध कर रहे हैं, वे देश से नफरत करते हैं” और उन्हें “बहुत बड़ी ताकत” से निपटा जाएगा. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें किसी प्रदर्शन की जानकारी नहीं है. प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने बाद में कहा, “राष्ट्रपति शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करते हैं.” जब गुरुवार को व्हाइट हाउस में ट्रमप से 'नो किंग्स' प्रदर्शन के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मुझे राजा जैसा महसूस नहीं होता. मुझे चीजें पास करवाने के लिए नर्क से गुजरना पड़ता है.”
ट्रम्प की कार्रवाई के बाद बढ़ी सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए, आयोजकों ने प्रदर्शन से पहले की ट्रेनिंग की क्षमता भी बढ़ा दी है. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) द्वारा आयोजित 'अपने अधिकार जानें' कॉल में मंगलवार को एक समय पर 18,000 से अधिक लोग शामिल थे. कॉल में पूछे गए सवालों में यह भी शामिल था कि क्या ग्रीन कार्ड या DACA स्टेटस वाले लोग प्रदर्शन में शामिल हो सकते हैं, यदि हिंसा हो तो क्या करें, और उपद्रवियों से कैसे निपटें.
लॉस एंजेलेस में अभी भी सैनिक तैनात हैं और वहां इमिग्रेशन की कार्रवाइयों और सैनिकों की तैनाती के खिलाफ प्रदर्शन जारी हैं. लॉस एंजेलेस सिटी हॉल के पास एक बड़े प्रदर्शन की उम्मीद है, और आयोजक सुरक्षा और चिकित्सा सहायता की तैयारियां बढ़ा रहे हैं.
सैन्य परेड में क्या होगा? 14 जून को होने वाली सैन्य परेड के दिन ही डोनाल्ड ट्रम्प अपना 79वां जन्मदिन भी मनाएंगे. सुबह 8 बजे शुरू होने वाला फेस्टिवल रात 10:00 बजे आतिशबाज़ी के साथ निपटेगा. कॉन्स्टीट्यूशन एवेन्यू से होकर 15वीं से 23वीं स्ट्रीट तक परेड चलेगी, जिसमें लगभग 6,600–7,000 सैनिक, सभी सेना डिवीजनों से हिस्सा लेंगे. करीब 150 सैन्य वाहन (टैंक, इंफैंट्री वाहन), लगभग 50 हेलीकॉप्टर भी परेड में शामिल होंगे. साथ में सात सैन्य बैंड, एयर शो, पैराशूट टीम, ऐतिहासिक वर्दियों में सैनिक परेड का माहौल बनएंगे. लगभग 200,000 लोग परेड रूट के किनारे मौजूद रहने की उम्मीद की जा रही है. यह एक राष्ट्रीय विशेष सुरक्षा कार्यक्रम घोषित किया गया है, जिसमें डीसी पुलिस, सीक्रेट सर्विस और अन्य एजेंसियां शामिल हैं. कुल मिलाकर यह परेड एक भव्य सैन्य शोकेस की तरह होगी, जिसमें टैंक, हेलीकॉप्टर, सैनिक, बैण्ड, आतिशबाज़ी और राष्ट्रवादी शोरगुल पर्याप्त मात्रा में होगा.
राजनीति
लोकप्रिय हो रहा “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी”
बिहार चुनाव से पहले, एक पुराना मुद्दा फिर से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सामने आ गया है. 5 जून को बिहार स्टूडेंट यूनियन, जो कई छात्र संगठनों की छाता संस्था है, ने पटना में सरकारी नौकरियों में डोमिसाइल (स्थानीय निवासी) आरक्षण की मांग को लेकर प्रदर्शन किया.
नीति आयोग के ताज़ा अनुमान के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी दर 3.9% है, जो राष्ट्रीय औसत 3.2% से अधिक है. राज्य के कई युवा सरकारी नौकरियों पर निर्भर हैं, जिनमें हाल के वर्षों में कई अनियमितताएं सामने आई हैं. इसलिए, चुनाव से पहले नौकरियों का मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो गया है. स्थानीय (डोमिसाइल) आरक्षण की मांग करने वालों का कहना है कि राज्य के बाहर के उम्मीदवार बिहार के युवाओं की नौकरियां छीन रहे हैं. उनका नारा “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी” चुनाव नजदीक आते ही तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.
डोमिसाइल आरक्षण के तहत, किसी राज्य की सरकार सरकारी नौकरियों या शैक्षिक सीटों का एक हिस्सा अपने निवासियों के लिए आरक्षित करती है, ताकि स्थानीय उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा सके या ‘प्रतिस्पर्धी नौकरी बाजार’ में स्थानीय हितों की रक्षा की जा सके.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में हिमांशु हर्ष की रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल, बिहार में सरकारी नौकरियों के लिए कोई सामान्य डोमिसाइल-आधारित आरक्षण नीति नहीं है. हालांकि, एनडीए सरकार का दावा है कि हाल की सरकारी परीक्षाओं में चयनित अधिकांश अभ्यर्थी बिहार निवासी ही हैं. इसके अलावा, लगभग पंद्रह दिन पहले, बिहार सरकार ने राज्य के दिव्यांग (विकलांग) व्यक्तियों के लिए सभी सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण की घोषणा की है.
डोमिसाइल आरक्षण की मांग करने वालों का तर्क है कि बिहार के पड़ोसी राज्यों में पहले से ही स्थानीय लोगों के लिए अवसर सुरक्षित किए गए हैं, जिससे बिहार के युवाओं को सीमित अवसरों के लिए बाहरी लोगों से असमान प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, और इससे बेरोजगारी और प्रवास की समस्या बढ़ती है.
दिसंबर 2020 में, कई प्रदर्शनों के बाद राज्य सरकार ने स्कूल शिक्षक भर्ती के लिए डोमिसाइल (स्थानीय निवासी) नियम को अस्थायी रूप से लागू किया था. लेकिन जून 2023 में, सत्ता में आई अल्पकालिक महागठबंधन सरकार ने इसे वापस ले लिया, जिससे अब किसी भी भारतीय राज्य के उम्मीदवार इन शिक्षकों की नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं.
नौकरियां कहां हैं?
डोमिसाइल आरक्षण की मांग बिहार की आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से जुड़ी है. नीति आयोग की मार्च 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट ‘मैक्क्रो एंड फिस्कल लैंडस्केप ऑफ द स्टेट ऑफ बिहार’ के अनुसार, बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है, जहां 2022-23 के दौरान 49.6% कार्यबल कृषि में लगा था. राज्य में केवल 5.7% लोग विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो पूरे भारत में सबसे कम है. सेवा और निर्माण क्षेत्र में क्रमशः 26% और 18.4% लोग कार्यरत हैं.
निजी क्षेत्र की नौकरियों की कमी के कारण सरकारी नौकरियां बहुत आकर्षक मानी जाती हैं, क्योंकि इनमें स्थिरता और लाभ मिलते हैं. हालांकि सरकार ने हाल के वर्षों में भर्ती बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन मांग अभी भी आपूर्ति से कहीं अधिक है.
युवाओं की मांग
युवाओं की मांग है कि प्राथमिक शिक्षक भर्ती में बिहार के मूल निवासियों के लिए 100% आरक्षण और अन्य राज्य नौकरियों में वैध दीर्घकालिक बिहार डोमिसाइल प्रमाणपत्र वाले उम्मीदवारों के लिए कम से कम 90% आरक्षण लागू किया जाए.
प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि पड़ोसी राज्य पहले से ही अपने स्थानीय लोगों के अवसरों की रक्षा करते हैं, जबकि बिहार के युवा सीमित अवसरों के लिए बाहरी लोगों से अनुचित प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. इससे बेरोजगारी और बिहार से पलायन का दुष्चक्र बनता है.
अन्य राज्यों के उदाहरण
डोमिसाइल आरक्षण पर राज्यों की नीतियां अलग-अलग हैं.
उत्तराखंड में श्रेणी-3 और 4 की सभी नौकरियां उन्हीं को मिलती हैं, जो कम से कम 15 साल से राज्य में रह रहे हैं.
महाराष्ट्र में भी कई सरकारी पदों के लिए 15 साल का डोमिसाइल और मराठी भाषा में दक्षता जरूरी है.
नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में संविधान के विशेष प्रावधानों के तहत स्थानीय जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों का बड़ा हिस्सा आरक्षित है.
जम्मू-कश्मीर में 2019 में विशेष दर्जा हटाए जाने से पहले ऐसी ही व्यवस्था थी.
2 जून 2025 को केंद्र सरकार ने लद्दाख के निवासियों के लिए 85% आरक्षण अधिसूचित किया.
2023 में झारखंड विधानसभा ने 1932 के भूमि रिकॉर्ड के आधार पर श्रेणी-3 और 4 की सभी सरकारी नौकरियां स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित करने का विधेयक पारित किया, लेकिन राज्यपाल ने संवैधानिक मुद्दों के कारण इसे लौटा दिया और यह लागू नहीं हो सका.
चलते-चलते
मुग़लों की तरफ से मान सिंह ने पठान से जमीन छीन कर जिस भट्टाचार्य को राजा बनाया उसने मंदिरों का शहर बसाया
सैम डेलरिम्पल का अपने सब्सटैक पेज पर यह कहना है कि जब मैंने बांग्लादेश में ठीक से यात्रा करना शुरू नहीं किया था, तब मुझे इस बात का कोई अहसास नहीं था कि यहाँ की स्थापत्य विरासत कितनी समृद्ध, सुंदर और दुखद रूप से असुरक्षित है. लेकिन गाद भरी नदियों और चावल के अंतहीन खेतों के नीचे एक ऐसी भूमि छुपी है जो भुला दिए गए मस्जिदों, ध्वस्त होते मंदिरों, आधे डूबे स्तूपों और बोगनवेलिया से ढके महलों से भरी पड़ी है. इस उदासीन खंडहरों की दुनिया को मंदिर नगर पुठिया से बेहतर कोई जगह नहीं दर्शाती. राजशाही से थोड़ी दूरी पर, पद्मा नदी के पास स्थित, यह बांग्लादेश का सबसे बड़ा मंदिर नगर है. इस शांत और काफी हद तक भुला दिए गए नगर में देश की हिंदू विरासत का सबसे बड़ा केंद्र मौजूद है.सैम कहते हैं कि आज के राजनेता मुगल विजयों को धर्म प्रेरित जिहाद के रूप में चित्रित करते हैं, जिसमें मंदिरों को गिराकर उनकी जगह मस्जिदें बनाई गईं. पुठिया का मंदिर नगर इस तस्वीर को कुछ हद तक गड़बड़ा देता है. पहली बात यह कि उस समय मुगलों का प्रमुख सेनापति एक हिंदू था - मान सिंह. जब सिंह ने शाही मुगल सेनाओं के साथ उत्तर पश्चिम बंगाल पर आक्रमण किया, तो निशाना प्रांत के हिंदुओं पर नहीं, बल्कि दुश्मन बंगाल सल्तनत के मुस्लिम शासकों पर था. वास्तव में मुगल चाहते थे कि उन्हें सभी धर्मों के बंगालियों को सल्तनत के शासन से मुक्त कराने वाले के रूप में देखा जाए. पुठिया में, मान सिंह ने एक विद्रोही मुस्लिम पठान रईस की जमीनें जब्त कीं और उन्हें भट्टाचार्य नामक एक हिंदू संत को दे दीं, जिनकी स्थानीय जानकारी युद्ध में महत्वपूर्ण साबित हुई थी. भट्टाचार्य एक संत थे और उन्होंने भूमि अनुदान लेने से मना कर दिया, लेकिन उनके पुत्र ने उनकी ओर से इसे स्वीकार कर लिया. एक पीढ़ी बाद, सम्राट जहांगीर ने उनकी वफादारी और समर्थन के लिए धन्यवाद स्वरूप इस परिवार को 'राजा' की उपाधि से नवाजा. इस तरह पुठिया राजाओं का जन्म हुआ. अगली दो सदियों में, पुठिया राजाओं ने अपनी जागीर को कई टेराकोटा मंदिरों से सजाया. इनमें से शायद सबसे महान है पंच रत्न गोविंद मंदिर. पूरी तरह से टेराकोटा से बना यह मंदिर महाभारत और रामायण से लेकर गीत गोविंद तक विभिन्न महाकाव्यों की विस्तृत नक्काशी दर्शाता है, और कभी-कभार शाहनामे की कहानियां भी.
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