14/07/2025: बिहार विदेशियों से भरा पड़ा है, चुनाव आयोग के मुताबिक | नया नागरिकता तंत्र | सिब्बल ने कहा आयोग मोदी सरकार की 'कठपुतली | कांवड़ियों के क्यूआर कोड पर याचिका | ममदानी से सबक | तलाक की पार्टी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां
चुनाव आयोग ने बिना संख्या, अनुपात, प्रतिशत बताए दावा किया बिहार में विदेशियों के होने का
बिहार से बंगाल तक: कैसे बीजेपी ने तैयार किया है नागरिकता का नया तंत्र
मोदी सरकार के हाथों हमेशा ‘कठपुतली’ रही है चुनाव आयोग: कपिल सिब्बल
यूपी सरकार के क्यू आर कोड आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपूर्वानंद और अन्य की याचिका
"जहां कभी महाकुंभ की रौनक थी, आज वहां सिर्फ पानी है"
प्रेम शंकर झा: मोदी ने भारत के लोकतंत्र को कैसे तबाह किया
आकार पटेल : क्या जोहरान ममदानी लोकतांत्रिक राजनीति की बिसात बदल देंगे
जॉर्ज ऑरवेल का म्यूजियम: सपनों की राख पर बैठा मोतिहारी का एक उजड़ा सम्मान
बहुत से सवाल अभी हवा में ही हैं.. बहुत कुछ सामने आना बाकी है. क्या हम तैयार हैं?
जब छात्र को कलेक्टर साहब ने जड़ दिए थप्पड़...
ट्रम्प एपस्टीन वाले सवालों से बच क्यों रहे हैं?
डोनाल्ड ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य हैं?
कैलिफोर्निया में प्रतिबंधित संगठन बीकेआई से जुड़े वांछित भगोड़े पवित्तर सिंह बटाला की गिरफ्तारी
ऐसी महिलाएं जो तलाक के बाद पार्टी करती हैं
चुनाव आयोग ने बिना संख्या, अनुपात, प्रतिशत बताए दावा किया बिहार में विदेशियों के होने का
पूरी प्रक्रिया के संदिग्ध होने के सबूतों के बीच सवाल उठाए इंडिया गठबंधन ने
बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के दौरान बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के नागरिक पाए गए हैं. चुनाव आयोग ने एक प्रेस रिलीज में यह दावा करते हुए स्पष्ट किया है कि इन विदेशी नागरिकों के नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे. 1 अगस्त के बाद इन लोगों की नागरिकता की जांच की जाएगी और जांच के बाद ही उनका नाम मतदाता सूची में जोड़ा या हटाया जाएगा. यह अभियान 30 सितंबर 2025 तक चलेगा, जिसके बाद अंतिम वोटर लिस्ट प्रकाशित की जाएगी. हालांकि, चुनाव आयोग ने अपने इस दावे को पुख्ता बनाने के लिए ये आंकड़े नहीं दिए हैं कि पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान किस देश के कितने नागरिक पाए गए हैं. यही वजह है कि राज्य विधानसभा में विपक्ष में के नेता तेजस्वी यादव ने आयोग के दावे को निराधार और अविश्वसनीय बताया है.
बिहार में 77,000 से अधिक बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) घर-घर जाकर दस्तावेज़ों की जांच कर रहे हैं. सभी मतदाताओं से भारतीय नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं. जिन लोगों के पास आधार, वोटर आईडी या राशन कार्ड आदि दस्तावेज़ हैं, उनकी भी नागरिकता की पुष्टि की जाएगी, क्योंकि ये दस्तावेज़ नागरिकता का प्रमाण नहीं माने जाते हैं. यह अभियान बिहार के बाद पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में भी शुरू किया जाएगा.
विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया की आलोचना की है और आरोप लगाया है कि इससे कई वैध नागरिकों के नाम भी मतदाता सूची से हट सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ों को भी जांच के दौरान स्वीकार किया जाए, लेकिन अंतिम निर्णय आयोग के पास ही रहेगा.
लेकिन, बिहार में के विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तुत किए गए एन्यूमरेशन फॉर्म्स के आंकड़ों में विरोधाभास का दावा किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की वेबसाइटों पर फर्जी आंकड़े अपलोड किए जा रहे हैं. साथ ही, उन्होंने चुनाव आयोग के इन दावों की आलोचना की है, जिनमें कहा गया है कि बिहार की मतदाता सूची में अन्य देशों (जैसे नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार) के लोगों के नाम शामिल हैं. तेजस्वी ने इन दावों को निराधार और अविश्वसनीय बताया है.
बिहार से बंगाल तक: कैसे बीजेपी ने तैयार किया है नागरिकता का नया तंत्र

‘स्क्रोल’ के लिए सुप्रिया शर्मा की रिपोर्ट है कि दिसंबर 2019 में जब केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया, तो पूरे देश में भारी विरोध हुआ. यह पहली बार था जब भारतीय नागरिकता के लिए धार्मिक आधार को कानूनी रूप से जोड़ा गया. सरकार का दावा था कि यह कानून भारतीयों के लिए नहीं, बल्कि पड़ोसी देशों से "धार्मिक उत्पीड़न" के कारण आए लोगों को नागरिकता देने के लिए है. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव बीतने के बाद, बिहार, बंगाल और असम जैसे राज्यों में जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं. नया नागरिकता तंत्र धीरे‑धीरे और चुपचाप आकार ले रहा है, जहां राज्य की नजरों में कुछ नागरिक अब 'संदिग्ध' मतदाता बन गए हैं.
बिहार में हाल ही में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर विवाद छिड़ा. इस प्रक्रिया में ज़िलों को एक आंतरिक निर्देश भेजा गया था कि "संदिग्ध मतदाताओं की पहचान की जाए" - हालांकि चुनाव आयोग ने सार्वजनिक रूप से इस तरह के किसी निर्देश से इनकार किया. वैशाली जिले की तस्वीरें दिखाती हैं कि कैसे नागरिकों को दोबारा फ़ॉर्म भरने को कहा गया, जिसमें नागरिकता से जुड़े विवरण भी मांगे गए. विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह एक "छिपा हुआ एनआरसी" है, जहां गुपचुप तरीके से लोगों की नागरिकता पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
असम का सबक: 'संदिग्ध नागरिक' की कीमत क्या होती है? भारत में इस प्रक्रिया की सबसे भयावह मिसाल असम NRC है, जहां लगभग 19 लाख लोग नागरिकता रजिस्टर से बाहर कर दिए गए. उनमें से बहुतों को अब “D-Voter” यानी संदिग्ध मतदाता घोषित कर दिया गया है. इस स्थिति में व्यक्ति न तो वोट डाल सकता है, न ही कई नागरिक अधिकारों का लाभ ले सकता है और उसे विदेशी ट्रिब्यूनल में अपनी नागरिकता साबित करनी होती है.
बंगाल में नए संकेत : बंगाल में 2025 की शुरुआत में कुछ जिलों से रिपोर्ट आई कि ग्रामीण आबादी के बीच वोटर लिस्ट पुनरीक्षण किया जा रहा है. इसमें भी पुराने दस्तावेज़ों और पहचान पत्रों की दोबारा जांच शामिल थी. तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह बीजेपी द्वारा सीएए-एनआरसी को ज़मीनी स्तर पर लागू करने की कवायद है. अब केंद्र सरकार खुलकर एनआरसी की बात नहीं करती, लेकिन रिपोर्ट बताती हैं कि यह प्रक्रिया कानून के जरिए नहीं, बल्कि प्रशासनिक आदेशों और पुनरीक्षण के नाम पर धीरे‑धीरे लागू की जा रही है यानी कि बैकडोर से..यानी बिना किसी विधायी बहस के, नागरिकों को 'संदिग्ध' ठहराया जा सकता है.
कार्टून | पोनप्पा
मोदी सरकार के हाथों हमेशा ‘कठपुतली’ रही है चुनाव आयोग: कपिल सिब्बल
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग (EC) मोदी सरकार के हाथों की एक ‘कठपुतली’ बन चुका है और बिहार में चल रहा विशेष सघन पुनरीक्षण पूरी तरह असंवैधानिक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य गरीबों, आदिवासियों और वंचित तबकों के नाम मतदाता सूची से काटकर बहुसंख्यक सरकारों को सत्ता में बनाए रखना है. पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में सिब्बल ने कहा कि "चुनाव आयोग को नागरिकता से जुड़े मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और वह भी किसी ब्लॉक स्तर के अधिकारी के ज़रिए."
सिब्बल ने यह भी आरोप लगाया कि “हर नया चुनाव आयुक्त, अपने पूर्ववर्ती की तुलना में सरकार के और ज़्यादा निकट हो जाता है.” उन्होंने कहा कि, "इस सरकार के सत्ता में आने के बाद से चुनाव आयोग की कार्यशैली पर जितना कम कहा जाए, उतना बेहतर है."
पूर्व कानून मंत्री ने आरोप लगाया कि यह पुनरीक्षण प्रक्रिया इस इरादे से चलाई जा रही है कि गरीब, आदिवासी और हाशिये के लोगों के नाम काट दिए जाएं ताकि बहुसंख्यक पार्टी की जीत सुनिश्चित की जा सके. "मैं लंबे समय से कहता रहा हूं कि मुझे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर कोई विश्वास नहीं है, क्योंकि इसने वैसी स्वतंत्रता कभी दिखाई ही नहीं जिसकी अपेक्षा एक संवैधानिक संस्था से होती है."
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को SIR के दौरान वैध माना जाए या नहीं, इस पर स्पष्ट रुख अपनाने को कहा. कोर्ट ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, इसलिए उसे उसके काम से नहीं रोका जा सकता, लेकिन वह जो नहीं कर सकता, वह भी करने नहीं दिया जाएगा.
कोर्ट ने SIR से जुड़ी 10 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 28 जुलाई की तारीख तय की है और चुनाव आयोग को एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.
सिब्बल ने कहा कि संसद का मानसून सत्र आने वाला है और SIR से जुड़ा मुद्दा इस समय देश के लोकतंत्र के लिए सबसे अहम है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि महाराष्ट्र में कुछ सीटों पर जहां भाजपा ने चुनाव जीता, वहां अचानक मतदाता बढ़ने की बात सामने आई है, जिस पर आयोग अब तक जवाब नहीं दे पाया है.
यूपी सरकार के क्यू आर कोड आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपूर्वानंद और अन्य की याचिका
‘कांवड़’ मार्ग पर ढाबों से मांगी जा रही धर्म और जाति की जानकारी पर आपत्ति
'द हिन्दू' की रिपोर्ट है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘कांवड़ यात्रा’ मार्ग पर मौजूद सभी खानपान प्रतिष्ठानों (ढाबों, होटलों, स्टॉल आदि) पर QR कोड लगाने के निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. इन QR कोड्स के जरिए मालिकों की पहचान, धर्म और जाति संबंधी विवरण सार्वजनिक हो जाते हैं. यह याचिका प्रमुख शिक्षाविद अपूर्वानंद और अन्य याचिकाकर्ताओं ने दाखिल की है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की पीठ 15 जुलाई को सुनवाई करेगी.
क्या है मामला? उत्तर प्रदेश प्रशासन ने 25 जून को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी खानपान स्थलों को QR कोड डिस्प्ले करना होगा, जिससे मालिक की पूरी पहचान सामने आ सके. याचिकाकर्ता का कहना है कि यह आदेश वही "भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग" है जिसे पहले सुप्रीम कोर्ट स्थगित कर चुका है.
सुप्रीम कोर्ट पहले भी दे चुका है रोक पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की सरकारों द्वारा दिए गए ऐसे ही निर्देशों पर रोक लगाई थी. उन आदेशों में भी ढाबों और रेस्तरां मालिकों तथा कर्मचारियों के नाम और विवरण सार्वजनिक करने की बात कही गई थी. याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार की यह पहल “कानूनी लाइसेंस शर्तों” के नाम पर धर्म और जाति की जानकारी उजागर कराती है, जो व्यक्तिगत निजता के अधिकार का उल्लंघन है. यह न सिर्फ व्यवसाय करने वालों की सुरक्षा को खतरे में डालता है, बल्कि संवैधानिक समानता और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर भी आघात करता है.
कांवड़ यात्रा और खाद्य प्रतिबंध श्रावण मास के दौरान लाखों श्रद्धालु गंगा से जल लेकर शिवलिंगों पर जलाभिषेक करने कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं. इस दौरान कई श्रद्धालु मांसाहार नहीं करते और प्याज़-लहसुन तक से परहेज करते हैं. सरकार का तर्क है कि यह आदेश भक्तों की धार्मिक भावनाओं की रक्षा के लिए है, लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने का तरीका बन गया है.
"जहां कभी महाकुंभ की रौनक थी, आज वहां सिर्फ पानी है"
पत्रकार उपमिता बाजपेयी की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने इंटरनेट पर लोगों का ध्यान खींचा है, जिसमें उन्होंने महाकुंभ मेला क्षेत्र की दो विरोधाभासी तस्वीरों के जरिए समय की ताकत और नश्वरता पर गहन टिप्पणी की है. पोस्ट की शुरुआत एक सवाल से होती है — "वक्त का सामर्थ्य देखना चाहते हैं तो ये दो तस्वीरें देखिए." बाजपेयी ने लिखा - किसी वक्त सारी दुनिया के जिक्र और ख्यालों में कब्जा कर चुका इक शहर, महाकुंभ मेला … 4000 हेक्टेयर में चारों ओर अपनी बाहें पसराए. उस पर आलीशान पांडाल और बांस की बनी कतार में खड़ी अनगिनत कुटिया, फूस के घर किसी कशीदाकारी से तुरपे हुए. ईशान से लेकर आग्नेय तक आठों दिशाएं यज्ञ, मंत्र, लोबान और आध्यात्म की खुशबू से बोरमबोर. उस पर तेजस्वी और रौबदार साधु, संत, नागा. और पंचदशनाम, निर्वाणी, जूना, निरंजनी जैसे अपनी परंपराओं के पाबंद अखाड़े. ढोल, ताशे, डमरू, मृदंग जैसे साज और वाद्य. शाही स्नान की मर्यादा, महत्व और मान.
और आंखों में गंगा सा मोह लिए आए बेहिसाब कदम. रौनकें मापने का कोई औजार होता तो शायद महाकुंभ की हैसियत के सामने नेस्तनाबूद पड़ जाता. और आज इस सारे इलाके को गंगा, यमुना, सरस्वती ने अपने आंचर में ढांप लिया है. दूर तक सिर्फ पानी है. वक्त से सीखने की तरबियत देता गंगा का पानी. हम आपको सिखाता कि बीते दिनों जो मौका, मंच और अक्स हमारी हथेलियों को हासिल हुआ, वो फानी है. रेत पानी सा जिस्म में घुस जाने वाला.
किताब
प्रेम शंकर झा: मोदी ने भारत के लोकतंत्र को कैसे तबाह किया
वरिष्ठ पत्रकार और संपादक प्रेम शंकर झा की नई किताब "द डिस्मेंटलिंग ऑफ इंंडियाज डेमोक्रेसी: 1947 टू 2025" आई है. इसके उद्धरण द वायर में प्रकाशित हुए हैं. उसके अंश हिंदी में.
उत्तर भारत के राज्यों में कुछ स्थानीय सहयोगियों द्वारा समर्थित भाजपा सरकार के मुखिया के रूप में, नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधान मंत्री रहने के दशक भर में, उन्होंने भारत को एक फासीवादी राष्ट्र-राज्य में बदलने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए लगन से काम किया है—एक प्रक्रिया जो 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान शुरू हुई थी.
इस रूपांतरण का इतिहास सैकड़ों शिक्षाविदों, पत्रकारों और नागरिक अधिकारों और लोकतंत्र के रक्षकों द्वारा अत्यंत सावधानी से विस्तार में लिखा गया है, जिनमें से कई बिना जमानत के वर्षों से जेल में बंद हैं, लेकिन बिना किसी विशिष्ट अपराध के आरोप लगाए. मोदी ने फासीवाद की यात्रा कैसे पूरी की है, इसका वर्णन नीचे व्यापक रूप से किया गया है:
मोदी ने बहुलवादी, जातीय रूप से विविध लोकतंत्र को विघटित करने की दिशा में पहला कदम उठाया, जिस पर उनके पूर्ववर्ती, अटल बिहारी वाजपेयी को बहुत गर्व था, सत्ता में आने के कुछ ही हफ्तों के भीतर. इस दिशा में उनका पहला कदम प्रतीत में निर्दोष था: यह हर मंत्रालय के प्रवेश द्वार पर टीवी कैमरे लगाना था, और पीआईबी (प्रेस सूचना ब्यूरो) कार्ड को वापस लेना था जो विशेष संवाददाताओं और अन्य वरिष्ठ पत्रकारों को मंत्रालयों में जाने और अपनी या अपने मेजबानों की पहचान प्रकट किए बिना सिविल सेवकों से बात करने की अनुमति देता था.
पीआईबी कार्ड को भारत के पहले प्रधान मंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा जानबूझकर बनाया गया था, ताकि एक शिशु लोकतंत्र के भीतर सार्वजनिक बहस को प्रोत्साहित किया जा सके, वरिष्ठ पत्रकारों को सरकार के भीतर आगामी नीतिगत निर्णयों पर विभिन्न विचारों की खोज करने की अनुमति देकर, एक समय जब संसद में कांग्रेस के लिए लगभग कोई विरोध नहीं था. मोदी सरकार ने सत्ता में आने के मुश्किल से एक पखवाड़े बाद इस स्वतंत्रता को नष्ट कर दिया. उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान एक और संशोधन, जिसमें अधिकारी को भी रिसेप्शन डेस्क पर आना और अपने आगंतुक को साइन इन करना आवश्यक था, ने सरकार और जनता के बीच सभी संचार को समाप्त कर दिया, सिवाय उनके जिन्हें मोदी चाहते थे.
सत्ता के केंद्रीकरण की दिशा में मोदी का दूसरा कदम अपने विभागीय मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों, और भाजपा के नामांकित व्यक्तियों के बीच मासिक बैठकों की एक प्रणाली बनाना था, जिसमें पार्टी मंत्रालय की कार्यप्रणाली की 'निगरानी' करेगी. इसने सरकार की निर्णय लेने की अधिकांश शक्ति को मंत्रालयों से पार्टी में स्थानांतरित कर दिया.
मोदी का अगला लक्ष्य दृश्य-श्रव्य मीडिया था, जिसे उन्होंने अपने आदेश के हर उपकरण का उपयोग करके वश में किया, चुनिंदा प्रिंट और टीवी चैनलों को विज्ञापनों से वंचित करने से लेकर, उनके प्रमोटरों के खिलाफ कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग के कभी सिद्ध नहीं होने वाले आरोप तैयार करने तक, जिसके तहत इसने उनके पासपोर्ट और उनकी सभी संपत्ति को 'संलग्न' (जब्त) कर दिया जब तक कि मामला चलता रहा. प्रणॉय और राधिका रॉय, भारत के पहले वाणिज्यिक टीवी चैनल एनडीटीवी के संस्थापक, उनके पहले लक्ष्य थे. इसके बावजूद, एनडीटीवी ने नवंबर 2022 तक अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी, लेकिन झुक गया क्योंकि तब तक सभी विज्ञापनदाताओं ने इसे छोड़ दिया था, संभवतः सरकारी दबाव के तहत. आसन्न दिवालिया होने और अपने तकनीकी कर्मचारियों की सैकड़ों नौकरियों के नुकसान का सामना करते हुए, रॉय ने नवंबर 2022 में कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया, और एनडीटीवी को अदानी समूह द्वारा खरीदे जाने की अनुमति दी, जो गुजरात में उनके दिनों से मोदी के मुख्य वित्तीय समर्थक हैं. तब से, एनडीटीवी भी मोदी के उभरते फासीवादी शासन का मुखपत्र बन गया है.
मोदी का तीसरा लक्ष्य न्यायपालिका था, जिसे उन्होंने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद आकर्षक नियुक्तियों के प्रस्ताव के माध्यम से भ्रष्ट किया. इनमें भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, पी. सत्यशिवम की केरल के राज्यपाल पद की अभूतपूर्व नियुक्ति शामिल थी, जिस पर हमने अध्याय 12 में चर्चा की थी, पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ए.एम. खानविलकर को भारत के लोकपाल, इसके मुख्य सतर्कता अधिकारी के पद पर नियुक्ति तक. सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीश जिन्हें मोदी ने इसी तरह सेवानिवृत्ति के बाद पदोन्नति और नियुक्तियों के साथ पुरस्कृत किया, वे हैं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और शरद बोबडे, और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा.
मोदी ने तीन अन्य, अधिक कपटपूर्ण और—लंबे समय में—और भी अधिक विनाशकारी कदम भी उठाए, एक जानबूझकर और दो निरंतर परिहार से परिभाषित. लेकिन सभी स्पष्ट रूप से भारत के अनंत रूप से विविध नृजातीय-राष्ट्रीय, संघीय लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए डिज़ाइन किए गए थे. पहला यह था कि सत्ता में अपने सभी वर्षों में, मोदी ने कभी भी एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की. दूसरा यह था कि उन वर्षों में, मोदी ने राष्ट्रीय विकास परिषद की भी कभी बैठक नहीं की, राज्य मुख्यमंत्रियों की एक परिषद जो 1989 में कांग्रेस के अपनी प्रभुत्वशाली पार्टी की स्थिति खोने के बाद केंद्रीय और राज्य नीतियों के समन्वय के लिए मुख्य मंच बन गई थी. मोदी के दशक के दौरान, लोगों और उनकी सरकार के बीच, और नीतिगत मुद्दों पर केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच संचार सख्ती से एक-तरफा हो गया.
लेकिन भारत की संघीय संरचना पर उनका सबसे कपटपूर्ण हमला योजना आयोग को नीति (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) आयोग से बदलना था. दिखने में, कुछ भी नहीं बदला: नीति आयोग योजना आयोग के समान भवन से काम करना जारी रखा; इसके कोई कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया गया और कोई नए कर्मचारी नहीं जोड़े गए. इसलिए नाम का बदलाव भारत को 'हिंदूकरण' करने के भाजपा के जुनून की एक और, छोटी अभिव्यक्ति से अधिक कुछ नहीं लगा.
हालांकि, उस धोखे से निर्दोष बदलाव के नीचे, मोदी ने योजना आयोग के सबसे महत्वपूर्ण कार्य को छीन लिया, और इसे अपने में निहित कर दिया. यह राज्य सरकारों को केंद्रीय योजना अनुदान का वार्षिक आवंटन था. जब तक वे सत्ता में आए, यह योजना आयोग द्वारा जनसंख्या, प्रति व्यक्ति आय, और वित्तीय प्रदर्शन जैसे कारकों के आधार पर आवंटन के लिए अक्सर संशोधित गाडगिल सूत्र के आधार पर किया जाता था, संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, जिसकी सिफारिश पांच दशक पहले डी.आर. गाडगिल ने की थी, जो तब आयोग के उपाध्यक्ष थे. मोदी ने इस आवंटन को अपना व्यक्तिगत विशेषाधिकार बना दिया, और इन अनुदानों का सिंह का हिस्सा भाजपा शासित राज्य सरकारों पर बरसाना शुरू कर दिया, उन राज्यों की कीमत पर जिनमें भाजपा अपना प्रभाव बढ़ाने में असमर्थ रही थी.
विश्लेषण
आकार पटेल : क्या जोहरान ममदानी लोकतांत्रिक राजनीति की बिसात बदल देंगे
हाल के समय के सबसे उल्लेखनीय लोकतांत्रिक घटनाओं में से एक इस महीने न्यूयॉर्क शहर में हुई. भारतीय मूल के एक 33 वर्षीय व्यक्ति ने शहर के मेयर पद के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी का नामांकन जीता. यह नामांकन एक प्रकार का सेमी-फाइनल मैच है, लेकिन क्योंकि न्यूयॉर्क मोटे तौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी-झुकाव वाला शहर है, इसलिए वही आगे है और चुनाव का संभावित विजेता भी. चुनाव इस साल बाद में होगा.
जोहरान मामदानी एक गुजराती मुस्लिम परिवार से हैं, और उनके पिता एक विश्वविद्यालय के शिक्षाविद हैं जिन्होंने 11 सितंबर, 2001 के बाद 'गुड मुस्लिम बैड मुस्लिम' शीर्षक से एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी. जोहरान की मां मीरा नायर हैं, जो 'मानसून वेडिंग' और 'सलाम बॉम्बे' जैसी फिल्मों की निर्देशक हैं. लेकिन उनकी पृष्ठभूमि जोहरान की कहानी का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं है: यह वह तरीका है जिससे उन्होंने अपनी पार्टी के एक दिग्गज एंड्रू क्यूमो के खिलाफ प्रतिस्पर्धा की और उन्हें हराया, जो न्यूयॉर्क राज्य के गवर्नर थे.
यह महत्वपूर्ण घटना है क्योंकि न्यूयॉर्क के मेयर के पास बहुत सारी शक्तियाँ हैं. वह 100 बिलियन डॉलर से अधिक के बजट की निगरानी करता है जो बहुत सारे देशों के बजट से अधिक है. वह न्यायाधीशों, पुलिस कमिश्नर, और 40 से अधिक शहर एजेंसियों के प्रमुखों और बोर्डों और आयोगों के सदस्यों की नियुक्ति करता है. रूडी गुलियानी जैसे व्यक्ति के प्रसिद्ध होने का कारण यह है कि वे इस पद पर थे.
जोहरान का मंच समाजवाद था और वह खुद को एक लोकतांत्रिक समाजवादी कहते हैं. जैसा कि कई पाठक जानते होंगे, यह एक ऐसा शब्द है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में साम्यवाद के खिलाफ अपने इतिहास के कारण लगभग अपमानजनक है. लेकिन जोहरान समाजवादी शब्द का गर्व से उपयोग करते हैं और कहते हैं कि वे मज़दूर वर्ग, नीले कॉलर और अप्रवासी न्यूयॉर्कवासियों की नुमाइंदगी करने के लिए हैं, अमीरों का नहीं. उन्होंने कहा कि वे मेयर के रूप में 20 लाख घरों का किराया फ्रीज कर देंगे; वे शहर की बसों को मुफ्त बनाएंगे; वे बाल देखभाल को मुफ्त बनाएंगे (एक प्रकार का आंगनवाड़ी कार्यक्रम); और वे राज्य-संचालित किराने की दुकानों के साथ प्रयोग करेंगे, न्यूयॉर्क के पांच बरो में से प्रत्येक में एक से शुरुआत करके. यह हमारी राशन दुकानों की तरह होगा, जो भोजन की सब्सिडी देने के लिए है. वे कहते हैं कि वे इसका भुगतान आयकर में मामूली वृद्धि करके करेंगे, लेकिन केवल उन न्यूयॉर्कवासियों पर जिनकी आय प्रति वर्ष $1 मिलियन से अधिक है (8 करोड़ रुपये से अधिक).
दूसरी महत्वपूर्ण बात जोहरान के कैम्पेन की गुणवत्ता थी, जो मुख्यतः सोशल मीडिया आउटलेट्स टिकटॉक और इंस्टाग्राम पर संचालित किया गया था. जोहरान के छोटे वीडियो, जो एक अत्यधिक आकर्षक व्यक्ति हैं, खुद शहर में घूमते हुए और न्यूयॉर्कवासियों से उनकी चिंताओं के बारे में बात करते हुए. ये वीडियो यूट्यूब पर भी उपलब्ध हैं और वे देखने योग्य हैं कि कम लागत वाला, प्रभावी और ताजा अभियान कैसा दिखता है.
जोहरान इन वीडियो में से कुछ में दक्षिण एशियाई और लैटिनो पृष्ठभूमि के लोगों को सीधे संबोधित करने के लिए बेहतरीन हिंदी, स्पेनिश और बंगाली बोलते हैं. उन्हें एक दक्षिण एशियाई के रूप में अपनी पहचान के साथ सहज रहने में कोई समस्या नहीं है, भारतीय मूल के अमेरिका के अन्य राजनीतिक व्यक्तियों की तुलना में. अभियान में एक बहुत ही बॉलीवुड वाला अंदाज है, जिसमें उपयोग किए गए टाइपफेस और वीडियो की संपादन शैली शामिल है.
जोहरान के बारे में तीसरी उल्लेखनीय बात यह है कि वे फिलिस्तीनियों के अधिकारों के लिए बोलते हैं और इजरायली राज्य के कार्यों की आलोचना करते हैं. यह एक अत्यंत असामान्य स्थिति है, क्योंकि इससे उन्हें उस चीज से आक्रमण का सामना करना पड़ता है जिसे जॉन मीअरशाइमर जैसे विद्वानों ने इजरायल लॉबी कहा है. जोहरान का साहस इस बात से दिखता है कि वे ऐसे उच्च दांव वाले चुनाव में दौड़ते समय भी अपने रुख से पीछे हटने या उसे नरम करने से इनकार करते हैं. राजनेता इस तरह व्यवहार नहीं करते. अमेरिका एकमात्र ऐसा देश है जहां लोकतांत्रिक उम्मीदवारों से अपेक्षा की जाती है कि वे दूसरे देश के प्रति उत्साहजनक वफादारी दिखाएं.
यह तथ्य कि न्यूयॉर्क टाइम्स सहित मीडिया द्वारा उन पर दुर्भावनापूर्ण और अनुचित हमला किए जाने के बावजूद उन्होंने जबरदस्त जीत हासिल की, यह दर्शाता है कि इस साहस का न्यूयॉर्क के निवासियों द्वारा सम्मान, प्रशंसा और पुरस्कार दिया गया. उनकी अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी ने उन्हें नामांकन जीतने के बाद भी बहुत कम समर्थन और कुछ समर्थन दिए. आज उनके साथ कोई क्लिंटन, बाइडेन या ओबामा नहीं है, जोहरान और उनकी बातों और कार्यों के साथ जुड़ाव के डर के कारण. इससे पहले, डेमोक्रेट्स जिन्होंने समाजवादी नीतियों को बढ़ावा दिया है, जैसे बर्नी सैंडर्स, को पसंदीदा लेकिन फ्रिंज वाले व्यक्ति के रूप में देखा गया है. जोहरान अलग हैं.
उनकी जीत का मतलब है कि उनकी पार्टी को उनसे सीखना होगा, क्योंकि डोनाल्ड ट्रम्प के उदय के बाद, डेमोक्रेट्स अस्त-व्यस्त हैं. वर्तमान में, रिपब्लिकन सरकार की तीनों शाखाओं को नियंत्रित करते हैं, व्हाइट हाउस, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट. डेमोक्रेट्स के पास ट्रम्प की घटना का कोई वास्तविक जवाब नहीं है और जोहरान, मजदूर वर्गीय अमेरिकियों पर लक्षित अपनी जोरदार और स्पष्ट नीतियों के साथ, उन्हें वापसी के लिए एक राष्ट्रीय मार्ग प्रदान करते हैं. यह एक तथ्य है, अन्य बातों के अलावा, कि फिलिस्तीन के मुद्दे पर अधिकांश अमेरिकियों की स्थिति गाजा में चल रहे नरसंहार के कारण बदल गई है. यह जोहरान हैं जो इस बहुमत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उनकी पार्टी में मूक है.
यदि वे इस साल बाद में आम चुनाव जीतने में सक्षम हैं और फिर अल्पावधि में अपनी नीतियों के सार को पूरा करने में सक्षम हैं, तो उनकी पार्टी उनके पास आएगी. अमेरिका अगले साल के अंत में अपने महत्वपूर्ण मध्यावधि चुनावों में जा रहा है और डेमोक्रेट्स के पास अब एक देसी हीरो है जो उन्हें सिखा सकता है कि कैसे चुनाव लड़ना है और किन मुद्दों पर.
जॉर्ज ऑरवेल का म्यूजियम: सपनों की राख पर बैठा मोतिहारी का एक उजड़ा सम्मान
मोतिहारी की सड़कों से गुजरते हुए जॉर्ज ऑरवेल के जन्मस्थल की ओर बढ़ते हैं, तो साथ में एक उम्मीद चलती है कि उस लेखक की विरासत को शायद अब सहेजा जा रहा होगा, जिसने "1984" और "एनिमल फार्म" जैसी किताबों से पूरी दुनिया के राजनीतिक विमर्श को झकझोर दिया, लेकिन ऐसा है नहीं. एक इंस्टाग्राम यूजर ने जॉर्ज ऑरवेल के म्यूजियम का वीडियो शेयर करते हुए लिखा- 'मोतिहारी बिहार में जन्मे महान लेखक ऑथर जॉर्ज ऑरवेल के म्यूजियम में बहुत एक्सपेक्टेशन के साथ आए थे, बदहाल स्तिथि देख कर मन दुखी हो गया'. टूटी दीवारें, वीरान कमरा, कचरे से भरे फर्श, उखड़ी छत और सूखे पत्तों में दबा पड़ा वह नाम - "जॉर्ज ऑरवेल". यही है वह दृश्य, जो किसी समय के महान विचारक के स्मरण-स्थल पर हमारा स्वागत करता है. मोतिहारी, जहाँ ऑरवेल का जन्म 1903 में हुआ, एक ऐतिहासिक नगर है. गांधी जी की चंपारण यात्रा की भूमि और अब एक और वैश्विक विचारक की मिट्टी लेकिन इस शहर ने क्या जॉर्ज ऑरवेल को वह मान दिया, जो वह डिज़र्व करता था? ऑरवेल से जुड़ी वस्तुएं लगभग नदारद हैं, और जो कुछ है भी वो धूल खा रही हैं. पर्यटक, जो उत्सुकता और श्रद्धा के साथ यहां आते हैं, निराश होकर लौटते हैं. आज ऑरवेल की किताबें दुनियाभर की यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ाई जाती हैं, लेकिन उनका जन्मस्थान, उनकी मिट्टी बदहाली के अंधेरे में गुम है.
एयर इंडिया 171 हादसा: एक पायलट के नोट्स
बहुत से सवाल अभी हवा में ही हैं.. बहुत कुछ सामने आना बाकी है. क्या हम तैयार हैं?
कॉकपिट में हर एक स्विच के इंजीनियरिंग डिजाइन के पीछे विज्ञान और मानवीय कारक होते हैं. स्थान, आकार, स्पर्श महसूस, गार्ड, डिटेंट आदि जैसे कई सुरक्षा उपायों का उपयोग किसी भी सुरक्षा-महत्वपूर्ण स्विच या लीवर के अनजाने या गलत संचालन को कम करने या रोकने के लिए किया जाता है. यह अकल्पनीय है कि कोई भी समझदार पायलट टेकऑफ के ऐसे बिंदु पर अनजाने में या जानबूझकर एक महत्वपूर्ण इंजन नियंत्रण को CUTOFF पर ले जाएगा. चूँकि कम अनुभवी सह-पायलट पायलट फ्लाइंग (PF) थे, इसलिए "उसने (तुमने) कटऑफ क्यों किया" का सवाल संभवतः पायलट मॉनिटरिंग (PM) से आया था. फ्यूल स्विच योक (विमान के स्टीयरिंग) के पास कहीं नहीं हैं; पीएफ के लिए टेकऑफ के उस महत्वपूर्ण बिंदु पर दो फ्यूल स्विच तक पहुंचने का कोई कारण नहीं है. उसका जवाब कि "उसने (मैंने) ऐसा नहीं किया" भी एक महत्वपूर्ण सवाल को अनुत्तरित छोड़ देता है - क्या फ्यूल स्विच का RUN से CUTOFF में "संक्रमण" कमांडेड था या अनकमांडेड था. अंतिम मिनट में फिर से इंजन चालू करने का प्रयास भी जानबूझकर बंद करने के विचार के विपरीत है. यह भी उल्लेखनीय है कि पुल-डिटेंट वाला कोई भी गार्डेड स्विच अपने आप पीछे नहीं जाएगा.
12 जून, 2025 को, एयर इंडिया द्वारा संचालित बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान, जिसका पंजीकरण VT-ANB था, अहमदाबाद से लंदन गैटविक के लिए उड़ान AI-171 पर था. यह विमान अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (VAAH) के रनवे 23 से लगभग 0809 UTC (भारतीय समयानुसार दोपहर 1339 बजे) पर उड़ान भरने के तुरंत बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया. शौकिया वीडियो, सीसीटीवी फुटेज और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों से संकेत मिलता है कि उड़ान भरने के तुरंत बाद विमान के इंजन की ताकत (थ्रस्ट) में स्पष्ट रूप से कमी आई. विमान जमीन से टकराते समय सीधा था, उसका अगला हिस्सा ऊपर की ओर था, और लैंडिंग गियर नीचे थे. यह रनवे 23 के आखिरी छोर से लगभग 0.9 नॉटिकल मील की दूरी पर स्थित बीजे मेडिकल कॉलेज हॉस्टल से टकराया. इस दुर्घटना में विमान में सवार 242 लोगों में से 241 (12 चालक दल + 229 यात्री) और जमीन पर मौजूद 19 लोगों की मौत हो गई. एक यात्री, विश्वास कुमार रमेश, चमत्कारिक रूप से मामूली चोटों के साथ बच गए और जलते हुए मलबे से बाहर निकल आए (प्रारंभिक दुर्घटना रिपोर्ट में उनकी चोटों को "गंभीर" बताया गया है).
यह बोइंग के ड्रीमलाइनर विमान का पहला घातक हादसा और विमान का पूरी तरह से नष्ट होना है, जो बोइंग कंपनी की वेबसाइट के अनुसार, "विमानन इतिहास में किसी भी अन्य वाइड-बॉडी जेट की तुलना में तेजी से एक अरब से अधिक यात्रियों को" 50 लाख से अधिक उड़ानों में ले जा चुका है. एयर इंडिया का दुर्भाग्यपूर्ण विमान VT-ANB 2013 में बना था और 41,868 घंटे की उड़ान भर चुका था.
तत्काल बाद का मंज़र
जिस समय सोशल मीडिया पर इस दुर्घटना की पहली खबरें आनी शुरू हुईं, मैं सूरत के लिए एक "डेडहेडिंग" उड़ान पर था, यानी मैं एक क्रू सदस्य के तौर पर यात्री बनकर सफर कर रहा था. सौभाग्य से, हमारा क्रू "एयरप्लेन मोड" पर था और लगभग एक घंटे बाद सूरत में उतरने तक इस भयानक दुर्घटना से पूरी तरह अनजान था. किसी भी बड़ी हवाई दुर्घटना के तुरंत बाद का समय अक्सर सदमे, भ्रम, तबाही और (बड़े पैमाने पर) हताहतों से भरा होता है. भारत जैसे 1.4 अरब की आबादी वाले देश में, जिज्ञासु तमाशबीनों और मदद या बचाव की कोशिश करने वाले स्वयंसेवकों की बाढ़ आ जाती है. ऐसे प्राथमिक उपचार के प्रयासों को जल्द ही पेशेवर बचाव और अग्निशमन प्रयासों के लिए रास्ता देना चाहिए. इसके बाद प्रारंभिक जांच के लिए दुर्घटना स्थल को सुरक्षित किया जाना चाहिए. विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) अपनी वेबसाइट पर इसे स्पष्ट रूप से बताता है: "प्रारंभिक जांच का मुख्य उद्देश्य उन सबूतों को इकट्ठा करना और संरक्षित करना है जो खराब हो सकते हैं, जो समय के साथ खो सकते हैं और देरी के बाद जांचकर्ताओं के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं".
आपदा पर्यटन से जांच पर असर
AAIB की एक टीम, जिसका नेतृत्व खुद महानिदेशक (DG) कर रहे थे, उसी दिन अहमदाबाद पहुंच गई. संभावना है कि उस समय तक शाम/रात हो चुकी होगी, जिससे ब्यूरो की त्वरित प्रतिक्रिया टीम को एक ऐसे स्थल से सबूत इकट्ठा करने में संघर्ष करना पड़ा होगा जो शाब्दिक और प्रतीकात्मक रूप से अंधेरे में डूबा हुआ था. भारत में यह वह समय होता है जब ज्यादातर वीवीआईपी दुर्घटना स्थलों का दौरा करने की अपनी योजना को अंतिम रूप देते हैं. उम्मीद के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगी अगले ही दिन (13 जून) दुर्घटना स्थल पर पहुंचे.
मलबे के पहाड़, जलते हुए विमान ईंधन, बिखरे हुए शरीर के अंगों और सबूतों से भरे पड़े मलबे के टुकड़ों के बीच, मैं पाठकों पर यह अनुमान लगाने के लिए छोड़ता हूं कि इस तरह की त्रासदी के तमाशे का जांच प्रक्रिया पर, उसके सबसे महत्वपूर्ण और नाजुक चरण में, क्या प्रभाव पड़ेगा. वे सचमुच सबूतों के ऊपर चल रहे थे. राजनीतिक नेताओं द्वारा इस तरह के दौरे पार्टी से परे होते हैं और शायद सदमे में आए नागरिकों को सांत्वना देने के लिए होते हैं, लेकिन यह जांच प्रक्रिया पर बुलडोजर चलाने जैसा है. किसी भी जांच के लिए सभी सबूतों का सावधानीपूर्वक संग्रह और संरक्षण महत्वपूर्ण है. बचाव या जांच से सीधे तौर पर शामिल नहीं होने वाले किसी भी व्यक्ति, जिसमें वीआईपी भी शामिल हैं, को दुर्घटना स्थल से दूर रहना चाहिए. विकसित दुनिया के किसी भी हिस्से में ऐसा नहीं होता है. मेरी राय में इसे कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
भारत में, ICAO एनेक्स 13 के ढांचे के भीतर विमान दुर्घटना और घटना की जांच के लिए जिम्मेदार राज्य द्वारा नामित प्राधिकरण AAIB है, जिसका नेतृत्व एक महानिदेशक (DG) करते हैं. AAIB भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के एक संलग्न कार्यालय के रूप में काम करता है. महानिदेशक, AAIB नागरिक उड्डयन मंत्रालय के सचिव को रिपोर्ट करते हैं. AAIB इंडिया अपेक्षाकृत नया है, और वर्तमान महानिदेशक भी, जो भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी हैं और प्रतिनियुक्ति पर AAIB में हैं, जिन्होंने 18 दिसंबर, 2023 को पदभार संभाला था. यह जांच विमान (दुर्घटनाओं और घटनाओं की जांच) नियम, 2017 में परिभाषित ढांचे के तहत की जाती है.
समय पर जानकारी का अभाव.
इतने बड़े पैमाने पर हताहतों वाली दुर्घटना के बाद, पीड़ितों के परिवार, हवाई यात्री और सभी हितधारक इस बारे में समय पर अपडेट के हकदार हैं कि दुर्घटना की जांच कैसे आगे बढ़ रही है. कोई भी लगातार कमेंट्री की उम्मीद नहीं करता है, लेकिन अधिकारियों से समय पर तथ्यात्मक डेटा के अभाव में, साजिश के सिद्धांतों और अटकलों के फैलने का गंभीर खतरा होता है. AI-171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद ठीक यही हुआ.
दुर्घटना के ठीक दो सप्ताह बाद, 26 जून को पहली अपडेट जारी होने तक सूचना का पूरी तरह से अभाव रहा. इस समय तक, कीबोर्ड योद्धाओं और हवाई दुर्घटना पर वीडियो बनाने वालों ने अटकलों से सोशल मीडिया भर दिया था, हर वीडियो पर लाखों व्यूज बटोरे और "नैरेटिव वॉर" को हवा दी. भारतीय मीडिया द्वारा साझा की गई अधूरी जानकारी (नीचे एक नमूना) ने केवल शर्मिंदगी बढ़ाई. उदाहरण के लिए, किस देश में हवाई दुर्घटना की जांच प्रधानमंत्री के सुझाव का इंतजार करती है कि उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए. कोई ब्रीफिंग नहीं हुई, कोई अपडेट नहीं मिला. मंत्रियों द्वारा फोटो खिंचवाने के लिए दुर्घटना स्थल का उल्लंघन, परिवहन के दौरान पेड़ों में मलबे का उलझना आदि जैसी सामान्य ड्रामेबाजी ने बहुत कम विश्वास जगाया.
प्रारंभिक रिपोर्ट से क्या पता चलता है.
तकनीकी पहलू : प्रारंभिक रिपोर्ट में विस्तृत विमान के यात्रा लॉग बुक की जांच से किसी बड़ी समस्या का संकेत नहीं मिलता है. विमानों का मिनिमम इक्विपमेंट लिस्ट (MEL) के साथ उड़ान भरना असामान्य नहीं है. इसमें ऐसे उपकरण शामिल होते हैं "जो निष्क्रिय हो सकते हैं फिर भी उचित शर्तों और सीमाओं द्वारा सुरक्षा का एक स्वीकार्य स्तर बनाए रखते हैं". कंपनी की स्वीकृत MEL निर्माता की मास्टर MEL से तैयार की जाती है और नियामक (इस मामले में DGCA) द्वारा विधिवत अनुमोदित होती है.
VT-ANB चार 'कैट सी' और एक 'कैट ए' MEL के साथ उड़ान भर रहा था. उनमें से किसी का भी दुर्घटना से सीधा संबंध प्रतीत नहीं होता है. विमान और उसके सिस्टम पर सभी लागू एयरवर्दीनेस डायरेक्टिव्स (AD) और अलर्ट सर्विस बुलेटिन (ASB) का अनुपालन किया गया था. विमान में ईंधन भरने के लिए इस्तेमाल किए गए बाउचरों और टैंकों से लिए गए ईंधन के नमूनों का परीक्षण किया गया और वे संतोषजनक पाए गए. विमान उस दिन के लिए प्रदर्शन सीमाओं के भीतर, टेकऑफ के लिए पूरी तरह से तैयार था और उसने रनवे की पूरी लंबाई का उपयोग किया. इससे ईंधन में मिलावट, जल्दी फ्लैप वापस लेने आदि जैसी व्यर्थ की अटकलों पर विराम लग गया जो दुर्घटना के बाद तेजी से फैली थीं.
पायलट : दोनों पायलट योग्य थे और नियमित उड़ान अभ्यास में थे. कॉकपिट में उनका कुल अनुभव 19000 घंटों का ठोस था (इस विमान प्रकार पर 9700 घंटे). पायलट-इन-कमांड B787, B777 और A310 सहित कई विमानों पर अनुभव के साथ अत्यधिक अनुभवी थे. वह पायलट मॉनिटरिंग (PM) थे, जबकि लगभग 3400 घंटे (इस प्रकार पर 1128 घंटे) के अनुभव वाले सह-पायलट, पायलट फ्लाइंग (PF) थे. दोनों पायलटों को उनकी ड्यूटी से पहले पर्याप्त आराम मिला था और उन्होंने उड़ान-पूर्व ब्रीथएनालाइजर टेस्ट पास कर लिया था. चालक दल की पोस्टमॉर्टम जांच के नतीजों का विश्लेषण किया जा रहा है "ताकि एयरोमेडिकल निष्कर्षों को इंजीनियरिंग मूल्यांकन के साथ मिलाया जा सके". यह किसी भी दुर्घटना जांच में एक सामान्य प्रक्रिया है.
EAFR (उन्नत उड़ान रिकॉर्डर)
VT-ANB में दो एन्हांस्ड एयरबोर्न फ्लाइट रिकॉर्डर (EAFR) थे जो दो अलग-अलग स्थानों, आगे और पीछे, लगे थे. प्रारंभिक रिपोर्ट के विश्लेषण संभवतः आगे के EAFR से प्राप्त डेटा पर आधारित हैं, जो अपने स्वतंत्र पावर स्रोत के कारण कुल बिजली गुल होने की स्थिति में भी डिजिटल उड़ान डेटा और कॉकपिट आवाज रिकॉर्ड करना जारी रखता है. यह दोहरे इंजन के रोलबैक से पहले और तुरंत बाद की घटनाओं के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण होगा. रिपोर्ट के अनुसार, पिछला EAFR बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और उसे डाउनलोड नहीं किया जा सका.
अंतिम क्षण : विमान ने सामान्य प्रक्रिया के अनुसार स्टार्ट-अप किया, टैक्सी किया, और रनवे 23 पर लाइन-अप किया. टेकऑफ रोल 08:07:37 UTC पर शुरू हुआ और लगभग एक मिनट बाद 08:08:39 UTC पर विमान हवा में उठा. रिपोर्ट में टेकऑफ रोल के दौरान प्राप्त महत्वपूर्ण गतियों (V1, Vr, V2) का टाइम-स्टैम्प डेटा है. जब तक विमान "ग्राउंड" मोड में था, तब तक कुछ भी असामान्य नहीं लगता. दुर्घटना का क्रम उड़ान भरने के लगभग 3 सेकंड बाद शुरू हुआ, जब विमान के एयर/ग्राउंड सेंसर "एयर" मोड में बदल गए. नीचे दी गई AAIB रिपोर्ट का हाइलाइट किया गया पैरा आगे की जांच का केंद्र बिंदु होने की संभावना है:
विमान ने लगभग 08:08:42 UTC पर 180 नॉट्स IAS की अधिकतम दर्ज की गई एयरस्पीड हासिल की और उसके तुरंत बाद, इंजन 1 और इंजन 2 के फ्यूल कटऑफ स्विच एक के बाद एक 01 सेकंड के अंतराल के साथ RUN से CUTOFF स्थिति में चले गए. जैसे ही इंजनों को ईंधन की आपूर्ति बंद हुई, इंजन N1 और N2 के मान अपने टेक-ऑफ मान से घटने लगे.
उस बिंदु से, AI-171 का अंत निश्चित था : बिना कमांड के इंजन बंद होने के बाद कॉकपिट में हुई पहली बातचीत भी बहुत असामान्य है, यह देखते हुए कि दोनों पायलट कॉकपिट के अंदर और बाहर उन क्षेत्रों को देख रहे होंगे जिनमें थ्रस्ट लीवर क्वाड्रेंट शामिल नहीं है. भले ही फ्यूल स्विच RUN से CUTOFF में चले जाएं, इससे कई विफलता चेतावनियां, ऑडियो वॉयस चेतावनियां और थ्रस्ट की कमी होती, जिसके लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती, न कि उस सवाल की जो रिपोर्ट में दर्ज है:
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग में, एक पायलट दूसरे से पूछते हुए सुनाई देता है कि उसने कटऑफ क्यों किया. दूसरे पायलट ने जवाब दिया कि उसने ऐसा नहीं किया. टकराव तक थ्रस्ट लीवर और फ्यूल स्विच की गति इंजन को फिर से चालू करने के अंतिम प्रयास का संकेत देती है, जिसमें फ्यूल स्विच को CUTOFF से RUN पर वापस लाना शामिल है. तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कोई भी वाइड-बॉडी विमान इतनी कम ऊंचाई पर दोहरे इंजन की विफलता से सुरक्षित रूप से उबर नहीं सकता. टक्कर, मौत और विनाश निश्चित थे, लेकिन विमान के रुख में कोई तेज बदलाव या पंख गिरने का कोई संकेत नहीं था. एक पायलट ने टक्कर से 5 सेकंड पहले MAYDAY कॉल प्रसारित की. चालक दल ने संभवतः विमान को टक्कर तक उड़ाया. किसी भी तरह की घबराहट या पायलट के अक्षम होने का कोई संकेत नहीं है.
फ्यूल कंट्रोल स्विच पीछे कैसे/क्यों गए : कॉकपिट में हर एक स्विच के इंजीनियरिंग डिजाइन के पीछे विज्ञान और मानवीय कारक होते हैं. स्थान, आकार, स्पर्श महसूस, गार्ड, डिटेंट आदि जैसे कई सुरक्षा उपायों का उपयोग किसी भी सुरक्षा-महत्वपूर्ण स्विच या लीवर के अनजाने या गलत संचालन को कम करने या रोकने के लिए किया जाता है. यह अकल्पनीय है कि कोई भी समझदार पायलट टेकऑफ के ऐसे बिंदु पर अनजाने में या जानबूझकर एक महत्वपूर्ण इंजन नियंत्रण को CUTOFF पर ले जाएगा. चूँकि कम अनुभवी सह-पायलट पायलट फ्लाइंग (PF) थे, इसलिए "उसने (तुमने) कटऑफ क्यों किया" का सवाल संभवतः पायलट मॉनिटरिंग (PM) से आया था. फ्यूल स्विच योक (विमान के स्टीयरिंग) के पास कहीं नहीं हैं; पीएफ के लिए टेकऑफ के उस महत्वपूर्ण बिंदु पर दो फ्यूल स्विच तक पहुंचने का कोई कारण नहीं है. उसका जवाब कि "उसने (मैंने) ऐसा नहीं किया" भी एक महत्वपूर्ण सवाल को अनुत्तरित छोड़ देता है - क्या फ्यूल स्विच का RUN से CUTOFF में "संक्रमण" कमांडेड था या अनकमांडेड था. अंतिम मिनट में फिर से इंजन चालू करने का प्रयास भी जानबूझकर बंद करने के विचार के विपरीत है. यह भी उल्लेखनीय है कि पुल-डिटेंट वाला कोई भी गार्डेड स्विच अपने आप पीछे नहीं जाएगा.
यहीं पर जांच का सार निहित है.
सुरक्षा बुलेटिनों पर कार्रवाई नहीं हुई : रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि बोइंग और FAA ने अपनी समझदारी से यह तय किया कि इस तरह के एक महत्वपूर्ण स्विच (जिसके अनजाने में संचालन की संभावना है) को "पुल-डिटेंट" या मैकेनिकल लॉक प्रदान करना एक एयरवर्दीनेस डायरेक्टिव (AD) या अलर्ट सर्विस बुलेटिन (ASB) के बजाय एक विशेष एयरवर्दीनेस सूचना बुलेटिन (SAIB) होना चाहिए. यह अपने आप में संदिग्ध है. एयर इंडिया, जिसने अभी-अभी नए मालिक पाए थे, ने बोइंग के SAIB NM-18-33 को लागू न करने का फैसला किया, जिससे इस आपदा के लिए मंच तैयार हो गया (जैसा कि इस स्तर पर प्रतीत होता है).
रिपोर्ट की एक और पंक्ति, अर्थात् "VT-ANB पर 2023 से फ्यूल कंट्रोल स्विच से संबंधित कोई खराबी रिपोर्ट नहीं की गई है" जवाब देने से ज्यादा सवाल खड़े करती है. जब इस पंक्ति को दिसंबर 2018 के SAIB NM-18-33 के संदर्भ में पढ़ा जाता है, तो फ्यूल स्विच के अनपेक्षित तरीके से संचालन की संभावना का पता चलता है क्योंकि एयर इंडिया ने SAIB का पालन नहीं किया था.
पहली नज़र में, यह B737 मैक्स के रास्ते पर जा रहा है. सामान्य संदिग्ध - बोइंग, FAA, DGCA, और एक बदलती हुई प्रमुख एयरलाइन, सभी इसमें शामिल हैं.
बहुत कुछ सामने आना बाकी है. क्या हम तैयार हैं?
AAIB के पास इस दुर्घटना के साथ बहुत कुछ है. यह इस नवजात संगठन की क्षमता का परीक्षण करेगा जो प्रमुख विभागों को उधार की विशेषज्ञता पर चलाता है. किसी सेवारत वायु सेना अधिकारी को नियुक्त करने से एजेंसी को उस गहरे दलदल से बाहर निकालने की उम्मीद नहीं की जा सकती है जो DGCA और MoCA ने वर्षों से अपने और अपनी संतानों के लिए बनाया है.
AAIB की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, VT-ANB दुर्घटना जांच टीम में "श्री संजय कुमार सिंह जांच-प्रभारी के रूप में, श्री जसबीर सिंह लरगा मुख्य अन्वेषक के रूप में और, श्री विपिन वेणु वरकोथ, श्री वीरराघवन के और श्री वैष्णव विजयकुमार अन्वेषक के रूप में शामिल हैं. अनुभवी पायलट, इंजीनियर, विमानन चिकित्सा विशेषज्ञ, विमानन मनोवैज्ञानिक और उड़ान रिकॉर्डर विशेषज्ञों को उनके डोमेन विशेषज्ञता के क्षेत्र में जांच में सहायता के लिए विषय वस्तु विशेषज्ञ (SMEs) के रूप में शामिल किया गया है".
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कैसे पक्षपाती मीडिया और बोइंग के प्रशंसकों ने 737 मैक्स का दोष लायन एयर और इथियोपियन पायलटों पर डालने की कोशिश की जब तक कि सबूत उनके सामने नहीं आ गए. AI171 के पायलटों को दोष देना बहुत जल्दबाजी होगी, वास्तव में दुर्भावनापूर्ण होगा. AAIB को अपना काम करने दें. भारत सरकार को अपनी ओर से शून्य हस्तक्षेप सुनिश्चित करना चाहिए.
AI-171 एक राष्ट्रीय त्रासदी है, लेकिन उम्मीद है कि यह भारत को एक स्वतंत्र परिवहन सुरक्षा बोर्ड स्थापित करने के लिए प्रेरित करेगी.
अंत में, इस स्तर पर उपलब्ध जानकारी के साथ, मैं AAIB इंडिया की प्रशंसा करता हूं कि उन्होंने दबाव में न झुकते हुए, चुपचाप अपना कर्तव्य निभाया और ICAO एनेक्स 13 के निर्धारित ढांचे के भीतर तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत की. मैं अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा करता हूं, उस उम्मीद के साथ जो पूर्व NTSB अध्यक्ष रॉबर्ट सुमवाल्ट ने व्यक्त की थी: "मानवीय भूल किसी भी जांच का अंत नहीं, बल्कि शुरुआती बिंदु होनी चाहिए".
जब छात्र को कलेक्टर साहब ने जड़ दिए थप्पड़...
मध्यप्रदेश के भिंड जिले में कलेक्टर को परीक्षा के दौरान एक छात्र को कई बार थप्पड़ मारते हुए देखा गया. 1 अप्रैल का यह वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है. वीडियो में दिख रहे अधिकारी भिंड के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव हैं, और घटना दीनदयाल डंगरौलिया महाविद्यालय में बीएससी द्वितीय वर्ष गणित परीक्षा के दौरान हुई. वीडियो में श्रीवास्तव एक कागज हाथ में लेकर छात्र से मुखातिब होते हैं, उसे कुर्सी से खींचते हैं और बार-बार थप्पड़ मारते हैं. एक अन्य वीडियो में वे छात्र को एक अन्य कमरे में ले जाते हैं, जो स्टाफ रूम जैसा दिखता है. अधिकारी फिर कमरे में मौजूद एक व्यक्ति को पेपर सौंपते हैं और छात्र की ओर इशारा करते हैं, जिसकी पहचान रोहित राठौर के रूप में हुई है.
श्रीवास्तव फिर राठौर से पूछते हैं, "तुम्हारा पेपर कहाँ है?" और उसे दो बार थप्पड़ मारते हैं. रोहित राठौर ने आरोप लगाया कि पिटाई से उसके कान पर असर पड़ा. उसने कहा, "चूंकि वह आईएएस अधिकारी हैं, इसलिए मैं कुछ कह नहीं सका." वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, यह कॉलेज नारायण डंगरौलिया का है, जो मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष के उपनेता हेमंत कटारे के ससुर हैं.
यह पहली बार नहीं है जब कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव विवादों में आए हैं. कुछ दिन पहले, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने लोक निर्माण विभाग से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान श्रीवास्तव के आचरण पर टिप्पणी करते हुए कहा था, "मुख्य सचिव को तय करना चाहिए कि ऐसे अधिकारी को फील्ड में रहना चाहिए या नहीं."
ट्रम्प एपस्टीन वाले सवालों से बच क्यों रहे हैं?
जैटियो में पत्रकार मेहदी हसन ने डोनाल्ड ट्रम्प और दिवंगत यौन अपराधी व वित्तीय घोटालेबाज जेफरी एपस्टीन के बीच दशकों पुरानी दोस्ती की परतों को खोला है. हाल ही में, ट्रम्प के समर्थक, जिन्हें मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) के नाम से जाना जाता है, ट्रम्प के न्याय विभाग (डीओजे) और अटॉर्नी जनरल पाम बोंडी से इस बात पर नाराज हैं कि वे जेफरी एपस्टीन की कथित "क्लाइंट लिस्ट" के अस्तित्व से इनकार कर रही हैं और उसकी मौत को आत्महत्या बता रही हैं. समर्थकों को लगता है कि यह एक लीपापोती है. लेकिन यहाँ एक बड़ी विडंबना है: ये समर्थक कभी भी खुद डोनाल्ड ट्रम्प से उन सवालों को नहीं पूछते जो एपस्टीन के साथ उनकी अपनी गहरी दोस्ती से जुड़े हैं. वे इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि जब पिछले साल फॉक्स न्यूज पर ट्रम्प से एपस्टीन से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने के बारे में पूछा गया था, तो वे बेहद असहज और टालमटोल करते हुए दिखाई दिए थे.
दोस्ती की शुरुआत और मार-ए-लागो की पार्टियाँ : ट्रम्प और एपस्टीन के रिश्ते की जड़ें बहुत गहरी हैं. ट्रम्प ने खुद 2002 में न्यूयॉर्क मैगज़ीन को बताया था कि उनकी दोस्ती 1987 में शुरू हुई थी. 1990 तक, वे पाम बीच, फ्लोरिडा में पड़ोसी बन गए, जब एपस्टीन ने ट्रम्प के मशहूर मार-ए-लागो क्लब से सिर्फ एक मील की दूरी पर एक हवेली खरीदी. रोजर स्टोन के अनुसार, ट्रम्प ने एक बार एपस्टीन के घर जाने का जिक्र करते हुए कहा था कि उसका पूल "युवा लड़कियों" से भरा हुआ था, और यह देखकर अच्छा लगा कि एपस्टीन "पड़ोस के बच्चों" को अपना पूल इस्तेमाल करने देता है. 1992 में, ट्रम्प और एपस्टीन को मार-ए-लागो में एक साथ पार्टी करते हुए फिल्माया गया था. उसी साल, ट्रम्प ने मार-ए-लागो में एक और भी ज़्यादा निजी पार्टी रखी, जिसे "कैलेंडर गर्ल प्रतियोगिता" कहा गया. इस पार्टी में सिर्फ ट्रम्प, एपस्टीन और लगभग 30 महिलाएं शामिल थीं, जो उनकी निकटता को दर्शाता है.
सबसे करीबी दौर और गंभीर आरोप : 1993 से 1997 के बीच, फ्लाइट लॉग्स के अनुसार, ट्रम्प ने कम से कम सात बार एपस्टीन के निजी जेट, जिसे "लोलिता एक्सप्रेस" भी कहा जाता था, में उड़ान भरी. ये लॉग्स खुद ट्रम्प की अटॉर्नी जनरल पाम बोंडी द्वारा जारी किए गए थे. साल 2000 इस दोस्ती के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष था. इस साल ट्रम्प, उनकी भावी पत्नी मेलानिया, एपस्टीन और एपस्टीन की सहयोगी घिसलीन मैक्सवेल (जिसे बाद में बाल यौन तस्करी के लिए दोषी ठहराया गया) की एक साथ मार-ए-लागो में तस्वीर खींची गई थी. सबसे गंभीर बात यह है कि इसी साल, एपस्टीन की एक प्रमुख पीड़िता, वर्जीनिया गिफ्रे ने आरोप लगाया कि उसे एपस्टीन के सेक्स रैकेट में तब भर्ती किया गया था जब वह मार-ए-लागो में लॉकर रूम अटेंडेंट के रूप में काम कर रही थी. यह सीधा संबंध ट्रम्प की संपत्ति को एपस्टीन के आपराधिक नेटवर्क से जोड़ता है.
ट्रम्प के समर्थक अक्सर यह दावा करते हैं कि उन्हें एपस्टीन के घिनौने कामों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन 2002 के उसी इंटरव्यू में, ट्रम्प ने एपस्टीन को एक "शानदार व्यक्ति" बताया था और कहा था कि उसे भी "खूबसूरत महिलाएं पसंद हैं, खासकर जो 'कम उम्र' की हों." यह बयान इस दावे को पूरी तरह से खोखला साबित करता है.
कानूनी उलझनें और ट्रम्प की भूमिका: 2004 में एक संपत्ति विवाद को लेकर दोनों के बीच अनबन हो गई, लेकिन उनका अतीत जुड़ा रहा. 2008 में, एपस्टीन को पहली बार नाबालिगों से वेश्यावृत्ति कराने के लिए दोषी ठहराया गया. लेकिन उसे फ्लोरिडा के अमेरिकी अटॉर्नी, एलेक्स अकोस्टा द्वारा एक बहुत ही विवादास्पद नॉन-प्रॉसिक्यूशन समझौता दिया गया, जिसने उसे आजीवन कारावास से बचा लिया. विडंबना यह है कि राष्ट्रपति बनने के बाद, ट्रम्प ने इसी एलेक्स अकोस्टा को अपना श्रम सचिव नियुक्त किया था. 2015 में, एपस्टीन की कुख्यात "ब्लैक बुक" सामने आई, जिसमें डोनाल्ड ट्रम्प, उनकी पूर्व पत्नी इवाना, वर्तमान पत्नी मेलानिया और बेटी इवांका सहित कई प्रभावशाली लोगों के नाम और संपर्क नंबर थे.
राष्ट्रपति पद, एपस्टीन की मौत और सवाल : 2019 में, जब ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति थे, एपस्टीन को यौन तस्करी के गंभीर आरोपों में फिर से गिरफ्तार किया गया. लेकिन मुकदमा चलने से पहले ही, वह मैनहट्टन की एक संघीय जेल में मृत पाया गया और मौत का कारण आत्महत्या बताया गया. एपस्टीन की मौत ने साजिश के सिद्धांतों को जन्म दिया, और ट्रम्प ने इन सिद्धांतों को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने इसका दोष अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बिल क्लिंटन पर डालने की कोशिश की, यह दावा करते हुए कि क्लिंटन एपस्टीन के विमान में कई बार थे. लेकिन जैसा कि ट्रांसक्रिप्ट में सवाल उठाया गया है, अगर एपस्टीन को एक संघीय जेल के अंदर मारा गया, तो ऐसा करने की शक्ति एक पूर्व राष्ट्रपति के पास अधिक होगी या उस व्यक्ति के पास जो उस समय देश का राष्ट्रपति था? 2020 में, ट्रम्प ने एपस्टीन की साथी घिसलीन मैक्सवेल को सार्वजनिक रूप से शुभकामनाएं दीं. एक रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि ट्रम्प मैक्सवेल को माफ़ करने पर विचार कर रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि वह मुकदमे के दौरान कुछ राज़ खोल सकती है.
अंततः, हसन के मुताबिक मीडिया और मागा समर्थक पाम बोंडी से सवाल पूछकर असली मुद्दे से ध्यान भटका रहे हैं. असली सवाल डोनाल्ड ट्रम्प से पूछे जाने चाहिए. उनकी न केवल एक सजायाफ्ता यौन अपराधी के साथ दशकों लंबी दोस्ती थी, बल्कि वह उस समय देश के सर्वोच्च पद पर भी थे जब उसी अपराधी की संघीय हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई.
डोनाल्ड ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य हैं?
'द कन्वर्सेशन' ने इस सवाल को लेकर दुनिया और उसकी राजनीति को समझने वाले विशेषज्ञाों के सामने यह सवाल रखा और जवाब का लब्बोलुआब था — "यह शांति के मूल्यों का अपमान होगा". पाकिस्तान के बाद इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए औपचारिक रूप से नामित किए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय बहस तेज़ हो गई है. नेतन्याहू का तर्क है कि ट्रम्प "एक देश, एक क्षेत्र के बाद दूसरे क्षेत्र में शांति स्थापित कर रहे हैं" और उन्हें इस योगदान के लिए वैश्विक मान्यता मिलनी चाहिए.
ट्रम्प लंबे समय से नोबेल की दौड़ में शामिल होने की कोशिश करते रहे हैं. उनका दावा है कि उन्होंने इज़राइल-ईरान से लेकर रवांडा और कांगो तक कई विवादों में "निर्णायक भूमिका" निभाई है. लेकिन क्या इन दावों में वाकई दम है? प्रमुख विशेषज्ञों से जब यह सवाल पूछा गया, तो उनका जवाब सीधा और स्पष्ट था — “नहीं, ट्रम्प को नोबेल नहीं मिलना चाहिए.”
एमा शॉर्टिस, सीनियर फेलो, ऑस्ट्रेलिया इंस्टिट्यूट, का मानना है कि ट्रम्प की विदेश नीति में स्थायित्व का अभाव है. "ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकालना, गाजा संकट पर चुप्पी और वैश्विक संस्थानों की लगातार अनदेखी — ये सब दर्शाते हैं कि ट्रम्प की नीतियां शांति की नहीं, बल्कि टकराव और सनक की उपज हैं.”
अली मामूरी, मध्य पूर्व मामलों के विशेषज्ञ, डीकिन यूनिवर्सिटी, के अनुसार ट्रम्प की 'अधिकतम दबाव' नीति ने ईरान और उसके पड़ोसियों के बीच असंतुलन को और बढ़ाया.
"उन्होंने क्षेत्रीय अस्थिरता को गहराया और सांप्रदायिक तनावों को हवा दी. इसे शांति नहीं कहा जा सकता.”
जैसमिन-किम वेस्टनडॉर्फ़, यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न की शांति विशेषज्ञ, कहती हैं कि
"सच्ची शांति के लिए न्याय, समावेश और स्थायित्व ज़रूरी हैं — ये सब ट्रम्प की विदेश नीति से गायब थे. उनकी ‘शांति पहल’ एकतरफा और अल्पकालिक रही.”
शाहराम अकबरज़ादेह, डीन, मिडल ईस्ट स्टडीज़ फोरम, कहते हैं कि गाज़ा में जारी मानवीय संकट पर ट्रम्प की चुप्पी और इज़राइल के प्रति पक्षपात ने उनकी साख को और गिरा दिया. “वे दुनिया में शांति के नहीं, बल्कि ध्रुवीकरण और टकराव के प्रतीक बन चुके हैं.”
विशेषज्ञों की राय साफ है कि नोबेल शांति पुरस्कार केवल कूटनीतिक दस्तावेजों या मंचीय घोषणाओं के लिए नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण, समावेशी और टिकाऊ शांति के लिए दिया जाना चाहिए — और ट्रम्प उस कसौटी पर खरे नहीं उतरते.
कैलिफोर्निया में प्रतिबंधित संगठन बीकेआई से जुड़े वांछित भगोड़े पवित्तर सिंह बटाला की गिरफ्तारी
‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट है कि अमेरिका के कैलिफोर्निया में एफबीआई ने भारत के मोस्ट वांटेड भगोड़े और बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) से जुड़े आतंकी पवित्तर सिंह बटाला को गिरफ्तार कर लिया है. यह कार्रवाई संगठित आपराधिक गिरोहों पर कड़ी कार्रवाई के तहत की गई. बटाला के खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस जारी था और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने हाल ही में उसे खालिस्तान समर्थक नेटवर्क और आईएसआई समर्थित आतंकियों से जोड़ते हुए चार्जशीट में नामजद किया था.
किसके साथ हुई गिरफ्तारी? सैन जोक्विन काउंटी शेरिफ कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 11 जुलाई 2025 को की गई छापेमारी में बटाला सहित कुल 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया.
गिरफ्तार किए गए अन्य आरोपियों में दिलप्रीत सिंह, अर्शप्रीत सिंह, अमरजीत सिंह, विशाल, गुरताज सिंह, मनप्रीत रंधावा, और सरबजीत सिंह शामिल हैं. इन सभी को सैन जोक्विन काउंटी जेल में बंद किया गया है और उन पर कई गंभीर धाराएं लगाई गई हैं, जिनमें अपहरण, यातना, झूठे आरोप में बंदी बनाना, आपराधिक साजिश, गवाहों को डराना, अर्धस्वचालित हथियार से हमला, आतंक फैलाने की धमकी देना शामिल हैं.
भारत में चल रहे केस और ISI कनेक्शन : NIA की जून 2025 की चार्जशीट में बटाला को जतिंदर जोती और घोषित आतंकी लखबीर लांडा के साथ नामजद किया गया था. जोती पर पंजाब के गैंगस्टरों को हथियारों की सप्लाई में शामिल होने का आरोप है, वहीं बटाला पर ग्राउंड ऑपरेटिव्स के जरिए नेटवर्क चलाने का शक है. यह गिरोह वर्चुअल नंबरों और एन्क्रिप्टेड ऐप्स के जरिए भारत में खालिस्तान समर्थक प्रोपेगैंडा फैला रहा था और इसका संचालन ISI से जुड़े आतंकी रिंदा संधू के इशारों पर हो रहा था. रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय एजेंसियां अमेरिकी अधिकारियों के साथ संपर्क में हैं और बटाला के भारत प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.
चलते-चलते
ऐसी महिलाएं जो तलाक के बाद पार्टी करती हैं
'द नॉड' की रिपोर्ट है कि पिछले महीने, केरल भर से 15 महिलाएं बारिश की परवाह किए बिना रेनकोट पहनकर एर्नाकुलम के चेल्लनम फिशिंग हार्बर पहुँचीं. वे गा रही थीं, हँस रही थीं, और V-साइन दिखा रही थीं. देखने वालों को शायद वे गहरे दोस्त लगी हों, लेकिन सच यह है कि वे एक-दूसरे को मुश्किल से जानती थीं. ये महिलाएं कालीकट की कंटेंट क्रिएटर राफिया आफी की नई पहल 'ब्रेक फ्री स्टोरीज़' द्वारा आयोजित ‘तलाकशुदा कैंप’ का हिस्सा थीं — यह उन महिलाओं के लिए है जो तलाकशुदा, अलग रह रही हैं या विधवा हैं. राफिया आफी कहती हैं — “मैं बस यही दिखाना चाहती हूं, तलाक एक फुल स्टॉप नहीं, सिर्फ एक कॉमा है.”
पहला तलाकशुदा कैंप मई में इडुक्की ज़िले के वागामोन की वर्षा-स्नात पहाड़ियों में दो दिवसीय यात्रा के रूप में हुआ. 17 महिलाओं ने एर्नाकुलम से केएसआरटीसी बस पकड़ी. चाय बगानों में बने टेंट्स में उनका ठहराव था. यात्रा सिर्फ 102 किलोमीटर की थी, लेकिन कई महिलाओं के लिए यह उनकी ज़िंदगी का नया अध्याय था — पहली बार वे बिना पिता, पति या बच्चों के अकेले यात्रा कर रही थीं.
त्रिशूर की रहने वाली सोफिया की शादी 17 साल की उम्र में कर दी गई क्योंकि उसके माता-पिता को लगता था कि उसकी 'काली रंगत' उसकी शादी में बाधा बनेगी. शादी असहनीय रही और 2023 में उन्होंने तलाक की अर्जी दी. शादी से पहले वह एक जिंदादिल लड़की थीं, जो पढ़ना, हँसना और बातें करना पसंद करती थीं — लेकिन शादी ने ये सब छीन लिया. तलाक के बाद वह इतनी टूट गईं कि खाना, सोना, नहाना और काम पर जाना भी बंद कर दिया. डॉक्टर ने उन्हें 6 महीने के लिए एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दीं. "मैं किसी शादी या कार्यक्रम में नहीं जाती थी, क्योंकि लोग पूछते थे — तुम इतनी खुश क्यों दिख रही हो?"
लेकिन कैंप में सब कुछ बदल गया. “हम सबने अपना परिचय दिया और जल्दी ही दोस्त बन गए. एक लड़की बहुत अच्छा नाचती थी, तो उसने हमें सिखाया — और हम सब, यहाँ तक कि एक दादी भी, मिलकर नाचे. ऐसा लगा जैसे स्कूल ट्रिप पर आए हों. 18 साल बाद मैं खुद को ज़िंदा महसूस कर रही थी,” वह कहती हैं.
कैंप में अंताक्षरी, डम्ब शराड्स, ट्रैकिंग, खाना और फायरसाइड चैट्स के अलावा, ब्लाइंडफोल्ड सेशन भी होता है, जिसमें महिलाएं आंखें बंद कर अपने जीवन की कहानियां साझा करती हैं. कैंप की फीस ₹2,500 है.
संस्थान की संस्थापक राफिया आफी खुद तलाकशुदा हैं. उनके दोस्तों और परिवार ने उनका साथ दिया, जो केरल जैसे जगह में अपवाद की तरह है — जहां आधुनिकता और पितृसत्ता साथ-साथ चलती हैं. जब लोग उनसे उनकी शादी के बारे में पूछते, तो वह स्पष्ट रूप से कहतीं, "मैं तलाकशुदा हूँ" और जवाब में अकसर उन्हें 'अय्यो' सुनने को मिलता — एक ऐसा शब्द जिसमें हैरानी, सहानुभूति या अफ़सोस छिपा होता है. “ये मेरी मर्ज़ी थी, इसमें दुख की क्या बात है?” — आफी कहती हैं.
दूसरे कैंप में संगीतकार और वकील ज़ाकी जे, जो आफी की दोस्त भी हैं, बतौर कानूनी सलाहकार आईं. उन्होंने देखा कि बहुत सी महिलाएं तलाक से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं से अनजान थीं. “एक महिला 6 साल से केस लड़ रही थी, लेकिन सही जानकारी से वह केस जीत सकती थी.” ज़ाकी ने बताया कि उनकी माँ घरेलू हिंसा की शिकार हुई थीं और पिता को तुरंत ज़मानत मिल गई थी. यहीं से उन्होंने कानून पढ़ने का फैसला किया.
यहाँ पीएचडी होल्डर, नर्सें, बिजनेसवुमन और अब तेलंगाना जैसी जगहों से भी महिलाएं शामिल हो रही हैं. तीसरा कैंप अभी हाल में कालीकट में हुआ. अगला कैंप 19-20 जुलाई को होने वाला है.
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