14/08/2025: 'मृत मतदाताओं' के साथ चाय पर चर्चा | 'मृत' मिंटू का इंटरव्यू | केंचुआ पर 20 सवाल | अंबानी की दौलत | मोदी का फ़ोन, अमेरिका का बदला लहजा | कैसे पटाया पाकिस्तान ने ट्रम्प को | सिंदूरी केबीसी
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ
‘मृत मतदाताओं के साथ राहुल की चाय’, सुप्रीम कोर्ट में पंचायत जारी
"मेरा नाम काटते समय उन्होंने कोई दस्तावेज नहीं मांगे, लेकिन मेरा नाम जोड़ने के लिए वे इतने सारे दस्तावेज मांग रहे हैं."
चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल
'केंचुआ कांड': चुनाव आयोग पर 20 सवाल
वकील ने कहा, राहुल गांधी को जान का खतरा, पार्टी बोली- बगैर बात किये दिया बयान
यूपी में मक़बरे को मंदिर बताकर पूजा की कोशिश
ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों में डॉपलर राडार नही
अंबानी परिवार के पास अडानी से दोगुना संपत्ति, 28 लाख करोड़, देश की जीडीपी का 12%
ट्रम्प के टैरिफ से भारतीय उद्योग जगत में गहरी चिंता
मोदी की जिस फ़ोन कॉल के बाद अमेरिका का लहजा बदल गया
पाकिस्तान ने कैसे पटाया अमेरिका को, और भारत का पत्ता काटा
भाजपा बनाम भाजपा ; रूडी ने बालियान को हराया
वायुसेना प्रमुख के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर दावे से विवाद, सबूतों और समय पर उठे गंभीर सवाल
‘भारत मानवाधिकार हनन पर न्यूनतम कार्रवाई करता है, पाकिस्तान शायद ही कभी’
आवारा कुत्तों के मसले पर आज सुप्रीम सुनवाई
यू ट्यूब ने भारतीय क्रिएटर्स को 21,000 करोड़ रु. का भुगतान किया
“केबीसी” में सोफ़िया कुरैशी और व्योमिका सिंह, बीजेपी की “वोटों की खातिर एक चाल”
बिहार मतदाता सूची विवाद
‘मृत मतदाताओं के साथ राहुल की चाय’, सुप्रीम कोर्ट में पंचायत जारी
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बिहार की मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर चल रही सुनवाई एक महत्वपूर्ण सवाल पर केंद्रित हो गई है: क्या यह चुनाव आयोग की शक्तियों और एक आम नागरिक के वोट देने के अधिकार के बीच की लड़ाई है. बुधवार, 13 अगस्त, 2025 को हुई सुनवाई के दौरान, अदालत ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए, जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसे नागरिकों को उनके मताधिकार से वंचित करने का एक "आकस्मिक तरीका" बताया. दूसरी ओर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन मतदाताओं से मुलाकात की जिन्हें चुनाव आयोग ने "मृत" घोषित कर दिया था, जिससे इस विवाद को एक नया राजनीतिक आयाम मिल गया.
कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बुधवार को अपने आवास पर बिहार के उन सात मतदाताओं से मुलाकात की, जिन्हें चुनाव आयोग द्वारा "मृत" घोषित कर दिया गया था. इन मतदाताओं ने राहुल गांधी को बताया कि वे अपने मताधिकार वापस पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे.
राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "जीवन में कई दिलचस्प अनुभव हुए हैं, लेकिन 'मृत लोगों' के साथ चाय पीने का मौका कभी नहीं मिला. इस अनोखे अनुभव के लिए, चुनाव आयोग का धन्यवाद!" उन्होंने इस मुलाकात का एक वीडियो भी साझा किया.
कांग्रेस पार्टी ने एक बयान में कहा कि ये सात मतदाता, जो सभी जीवित हैं, तेजस्वी यादव के निर्वाचन क्षेत्र राघोपुर के हैं. पार्टी ने आरोप लगाया कि यह "लिपिकीय त्रुटि नहीं है - यह स्पष्ट रूप से राजनीतिक मताधिकार से वंचित करना है." बयान में कहा गया, "जब जीवित लोगों को मृत बताकर हटा दिया जाता है, तो लोकतंत्र को ही मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाता है."
मरने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मिंटू का इंटरव्यू
"मेरा नाम काटते समय उन्होंने कोई दस्तावेज नहीं मांगे, लेकिन मेरा नाम जोड़ने के लिए वे इतने सारे दस्तावेज मांग रहे हैं."
इस मामले में एक नाटकीय मोड़ तब आया जब बिहार के आरा विधानसभा क्षेत्र के 41 वर्षीय निवासी मिंटू पासवान, जिन्हें चुनाव आयोग ने अपनी मसौदा सूची में 'मृत' घोषित कर दिया था, 12 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में जीवित उपस्थित हुए. पासवान उन दो लोगों में से एक थे जिन्हें याचिकाकर्ताओं में से एक, चुनाव विश्लेषक और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अदालत में पेश किया था.
द वायर से बात करते हुए, पासवान ने कहा कि गणना फॉर्म भरने के बावजूद उनका नाम काट दिया गया और उन्हें 'मृत' घोषित कर दिया गया. उन्होंने कहा, "मेरा नाम काटते समय उन्होंने कोई दस्तावेज नहीं मांगा, लेकिन मेरा नाम जोड़ने के लिए वे इतने सारे दस्तावेज मांग रहे हैं." पासवान उन 65 लाख मतदाताओं में से हैं जिन्हें 1 अगस्त को चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित मसौदा मतदाता सूची से बाहर कर दिया गया है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बाहर किए गए 65 लाख लोगों में से 22 लाख मतदाताओं को मृत घोषित कर दिया गया, 36 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित या नहीं मिले, और सात लाख कई जगहों पर नकली पाए गए.
अदालत में चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पासवान को अदालत में पेश करने को "नाटक" करार दिया. हालांकि, पीठ ने कहा कि यह एक "अनजाने में हुई त्रुटि" हो सकती है, जिसे सुधारा जा सकता है.
चुनाव आयोग की शक्तियों और नागरिकों के मताधिकार के बीच एक लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को बिहार के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई हुई. न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची ने टिप्पणी की कि चुनाव की दहलीज पर खड़ा बिहार संविधान के दो महत्वपूर्ण अनुच्छेदों के बीच एक टकराव देख रहा है. एक तरफ अनुच्छेद 324 है, जो चुनाव आयोग को चुनावों के संचालन पर नियंत्रण की शक्ति देता है, और दूसरी तरफ अनुच्छेद 326 है, जो वयस्क मताधिकार के संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित करता है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं ए.एम. सिंघवी और गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि मतदाताओं को पहले से भरे हुए गणना फॉर्म भेजना और बाद में बिना किसी पूर्व जांच या भौतिक सुनवाई के 65 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटा देना, नागरिकों के वोट देने के अधिकार को खत्म करने का एक "आकस्मिक तरीका" है. यह प्रक्रिया तब अपनाई गई जब नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में केवल दो महीने बचे हैं.
शंकरनारायणन ने कहा, "एक मतदाता का मतलब है कि कोई व्यक्ति जो पहले से ही मतदाता सूची में है. गणना फॉर्म, सांकेतिक दस्तावेज केवल चुनाव आयोग की कल्पना की उपज हैं. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है." उन्होंने जोर देकर कहा कि मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया "बिल्कुल सख्त" होनी चाहिए, जैसा कि संसद का इरादा था. उन्होंने सवाल किया, "चुनाव आयोग को यह सब करने की शक्ति किसने दी, किस कानून और किस अधिकार के तहत?"
इस पर न्यायमूर्ति बागची ने जनप्रतिनिधित्व (आरपी) अधिनियम की धारा 21(3) का उल्लेख किया, जो चुनाव आयोग को "जैसा वह उचित समझे" एक "विशेष पुनरीक्षण" करने के लिए कुछ "गुंजाइश" प्रदान करता है. हालांकि, शंकरनारायणन ने जवाब दिया कि यह प्रावधान केवल "किसी एक निर्वाचन क्षेत्र या किसी निर्वाचन क्षेत्र के हिस्से" के विशेष पुनरीक्षण की अनुमति देता है और इसका इस्तेमाल पूरे देश की मतदाता सूचियों को बदलने के लिए नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति बागची ने总结 करते हुए कहा कि धारा 21(3) आयोग को प्राकृतिक आपदा जैसी असाधारण परिस्थितियों में विशेष पुनरीक्षण के लिए प्रक्रियाएं तैयार करने के लिए अधिकृत करती है, अन्यथा आयोग को निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम, 1960 के नियमों का सख्ती से पालन करना होगा.
अदालत ने यह भी कहा कि मतदाताओं को अपनी पहचान साबित करने के लिए 11 दस्तावेजों का विकल्प देना "मतदाता-अनुकूल" है, न कि "मतदाता-बहिष्करण" जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है. पीठ ने कहा कि झारखंड में सारांश पुनरीक्षण में केवल सात दस्तावेजों की अनुमति थी, जबकि बिहार में इसे बढ़ाकर 11 कर दिया गया है. हालांकि, सिंघवी ने इस सूची को "प्रभावशाली, लेकिन खोखला" बताया. उन्होंने कहा कि बिहार में केवल 1% निवासियों के पास पासपोर्ट है और अधिकांश महिलाओं के पास मैट्रिक प्रमाण पत्र नहीं है, जबकि 87% के पास आधार है, जिसे चुनाव आयोग के 11 अनुमोदित दस्तावेजों में शामिल नहीं किया गया है.
वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग की "दुर्भावना" एसआईआर आयोजित करने की जल्दबाजी, आधार या वोटर आईडी कार्ड स्वीकार करने से इनकार, हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम और उनके विलोपन के विशिष्ट कारणों को प्रकाशित करने से इनकार करने से स्पष्ट है.
मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.
कार्टून | राजेन्द्र धोड़पकर
चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल
कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने इस पूरी प्रक्रिया में चुनाव आयोग की पारदर्शिता की कमी पर गंभीर चिंता जताई है. सूचना के अधिकार के लिए राष्ट्रीय अभियान से जुड़े अंजलि भारद्वाज और अमृता जौहरी ने एक लेख में कहा कि लगभग 8 करोड़ मतदाताओं के सत्यापन से जुड़े इस कठोर कदम को बिना किसी पूर्व सार्वजनिक सूचना या परामर्श के गुप्त रूप से उठाया गया.
उन्होंने सवाल उठाया कि लगभग 100 करोड़ मतदाताओं को शामिल करने वाले इस विशाल अभ्यास को अचानक शुरू करने के लिए चुनाव आयोग को किस बात ने प्रेरित किया. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में कहा है कि कई दलों ने मतदाता सूचियों में अशुद्धियों के बारे में चिंता जताई थी, लेकिन उस "स्वतंत्र मूल्यांकन" का कोई विवरण नहीं दिया गया जिसके आधार पर यह निर्णय लिया गया.
चिंता का एक और कारण यह है कि हटाए गए 65 लाख नामों की पूरी सूची कारणों के साथ सार्वजनिक नहीं की गई है, जिससे यह सत्यापित करना असंभव हो जाता है कि विलोपन उचित हैं या नहीं. इस तरह की अपारदर्शिता चुनावी प्रक्रिया में विश्वास को कम करती है और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है.
हरकारा डीपडाइव
'केंचुआ कांड': चुनाव आयोग पर 20 सवाल
हरकारा डीपडाइव में राजेश चतुर्वेदी और निधीश त्यागी ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली, निष्पक्षता और विश्वसनीयता को लेकर लोकतंत्र के पक्ष में 20 सवाल खड़े किये हैं. इस चर्चा में आयोग को "केंचुआ" (केंद्रीय चुनाव आयोग का संक्षिप्त रूप) का नाम दिया गया, जो अब "केंचुआ कांड" के रूप में सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है. यह कांड मतदाता सूची में भारी विसंगतियों, प्रक्रियात्मक पारदर्शिता की कमी और आयोग के सत्ताधारी दल के प्रति कथित झुकाव को लेकर उपजे विवादों की एक श्रृंखला को दर्शाता है.
विवाद का मुख्य केंद्र कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए गए मुद्दे हैं, जिसमें उन्होंने बेंगलुरु में एक ही पते पर 250 से अधिक मतदाता पंजीकृत होने और एक ही व्यक्ति का नाम कई राज्यों की मतदाता सूचियों में होने जैसे ठोस सबूत पेश किए. इसके अतिरिक्त, बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के तहत लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया ने आग में घी डालने का काम किया है. आलोचकों का कहना है कि यह एकतरफा कार्रवाई है, खासकर जब राज्य का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ से जूझ रहा है, जिससे आम नागरिक के लिए आपत्ति दर्ज कराना लगभग असंभव हो गया है.
बातचीत में आयोग की पारदर्शिता पर भी गहरे प्रश्नचिन्ह लगाए गए. ईवीएम की वीवीपैट पर्चियों की 100% गिनती से लगातार इनकार करना और चुनावी प्रक्रिया की महत्वपूर्ण सीसीटीवी फुटेज को नष्ट करने का निर्देश देना, ऐसे कदम हैं जो आयोग को संदेह के घेरे में लाते हैं. आयोग की संरचना पर भी सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि चयन समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर सरकार का बहुमत स्थापित कर दिया गया है, जिससे उसकी स्वायत्तता पर प्रश्न उठता है.
आलोचकों का मानना है कि ये केवल प्रक्रियात्मक खामियां नहीं हैं, बल्कि एक "जन-विरोधी" रवैये का प्रतीक हैं, जहां नागरिकों को उनके मताधिकार से वंचित करने और अपनी ही पात्रता साबित करने का बोझ उन पर डाला जा रहा है. यह स्थिति न केवल चुनावी निष्पक्षता, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक नींव को कमजोर करती है, जिससे देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो रही हैं. इस वीडियो में देखिये वे 20 सवाल और उनपर चर्चा
वकील ने कहा, राहुल गांधी को जान का खतरा, पार्टी बोली- बगैर बात किये दिया बयान
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के वकील ने वीर सावरकर मानहानि केस में बुधवार को पुणे की एक अदालत को बताया कि वह अदालत की कार्यवाही में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि उनके जीवन को खतरा है. उन्होंने इसका कारण वोट चोरी के खुलासे और अपने नारे “वोट चोर सरकार” को बताया. गांधी के वकील, मिलिंद पवार, ने कोर्ट में कहा कि कांग्रेस नेता की सुरक्षा को खतरा है, खासकर चुनावी धांधली के आरोप लगाने के बाद. उन्होंने राज्य से सुरक्षा की मांग भी की. हालांकि, बाद में कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग की हेड सुप्रिया श्रीनेत ने "एक्स" पर स्थिति स्पष्ट करते हुए लिखा, " राहुल गांधी के वकील ने बिना उनसे बात किए या उनकी सहमति लिए कोर्ट में लिखित बयान दाखिल करके उनकी जान पर खतरे का हवाला दिया था. इस बात से राहुल जी की घोर असहमति है. इसलिए कल उनके वकील इस बयान को कोर्ट से वापस लेंगे.
हेट क्राइम
यूपी में मक़बरे को मंदिर बताकर पूजा की कोशिश
उत्तरप्रदेश के फतेहपुर में एक मकबरे पर धावा बोलने के लिए पुलिस ने दस नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. दरअसल, बजरंग दल समेत हिंदू राष्ट्रवादी समूहों की भीड़ ने एक मकबरे पर भव्य पूजा-अर्चना की कोशिश की और वहां कथित रूप से केसरिया झंडे लगा दिए. आरोपियों का दावा था कि यह मकबरा कभी एक मंदिर था. “द हिंदू” में मयंक कुमार के अनुसार, इन अतिवादी समूहों का कहना है कि यह निर्माण 1,000 से अधिक साल पुराना कृष्ण और शिव मंदिर था और इसमें एक शिवलिंग भी था. साथ ही कुछ बीजेपी नेताओं ने इस स्थल पर पूजा करने के उनके आह्वान का समर्थन किया था.
ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों में डॉपलर राडार नही
यह अभी तक ज्ञात नहीं है कि 5 अगस्त को उत्तराखंड के धराली में आई आपदा का असली कारण क्या था. "द वायर" से बातचीत में वैज्ञानिकों ने कहा, जब तक हमें कारण पता नहीं चलेगा, तब तक हम भविष्य में होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को सही ढंग से अनुकूलित नहीं कर पाएंगे. डॉपलर राडार ऐसी प्रणालियों का एक हिस्सा हैं, और उत्तराखंड में तीन डॉपलर राडार अवश्य हैं, लेकिन इनमें से कोई भी धराली जैसे ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों में स्थित नहीं है. इसके अलावा, राज्य के पास ऐसा उपकरण भी नहीं है जो 4,500 मीटर से ऊपर की ऊंचाइयों पर भारी वर्षा की चेतावनी दे सके.
अंबानी परिवार के पास अडानी से दोगुना संपत्ति, 28 लाख करोड़, देश की जीडीपी का 12%
पिछले एक साल में 10% बढ़ने के बाद, मुकेश अंबानी परिवार की संपत्ति अब 28 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है, जो भारत की जीडीपी के लगभग 12% के बराबर है. और यह अडानी परिवार की 14 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति से दोगुनी है. यह जानकारी हाल ही में हुरुन ने बार्कलेज के सहयोग से तैयार की गई एक रिपोर्ट में दी है. पीटीआई के अनुसार, देश के 300 सबसे धनवान भारतीय परिवारों के पास 1.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 140 लाख करोड़ रुपये) से अधिक की संपत्ति है, जो देश की जीडीपी का 40% से अधिक है.
ट्रम्प के टैरिफ से भारतीय उद्योग जगत में गहरी चिंता
भारतीय उद्योगों के एक बड़े हिस्से में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत से कई वस्तुओं पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद "गहरी चिंता की स्थिति" है. "फाइनेंशियल टाइम्स" ने बताया है कि यदि यह टैरिफ कम नहीं किया गया तो महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भारी नुकसान हो सकता है, जिससे नरेंद्र मोदी के "मेक इन इंडिया" अभियान को खतरा होगा, जो देश को चीन के लिए एक विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखला विकल्प बनाने का प्रयास कर रहा है.
गुजरात का हीरा सेक्टर भी खासा प्रभावित : सुतानुका घोषाल की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रम्प के टैरिफ से गुजरात का हीरा सेक्टर भी खासा प्रभावित हुआ है. विशेषकर, छोटे हीरे की कटाई और पालिश का व्यवसाय. अमेरिका और चीन में घटती मांग के दबाव में पहले से ही यह उद्योग संघर्ष कर रहा था. अप्रैल में वॉशिंगटन द्वारा 10% बेसलाइन टैरिफ की घोषणा के बाद से, गुजरात में इस उद्योग में लगभग एक लाख मजदूरों की नौकरियां चली गई हैं. गुजरात डायमंड वर्कर्स यूनियन के अनुसार, भारत पर 50% टैरिफ के बाद नौकरी के नुकसान में तेजी आई है. हालांकि प्राकृतिक हीरे की कटाई और पालिश के क्षेत्र से कई मजदूर लैब में तैयार किये जाने वाले हीरा उद्योग में जा रहे हैं, लेकिन अगर उस क्षेत्र को भी उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ा, तो फिर बहुत सारी समस्याएं होंगी और नौकरी के नुकसान काफी महत्वपूर्ण होंगे.
भाजपा बनाम भाजपा ; रूडी ने बालियान को हराया
राजीव प्रताप रूडी ने दिल्ली के प्रतिष्ठित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के सचिव पद के लिए हुए कड़े मुकाबले में संजीव बालियान को हराकर इस क्लब को चलाने का अधिकार एक बार फिर हासिल कर लिया. यह एक बीजेपी बनाम बीजेपी की जंग थी, जिसमें विपक्ष के सांसद भी रूडी के पक्ष में खड़े हुए. संजीव बालियान को बीजेपी के विवादास्पद सांसद निशिकांत दुबे का प्रतिनिधि माना जा रहा था, लेकिन इसी मान्यता ने बालियान की जीत की संभावनाओं को सीमित कर दिया. सोशल मीडिया पर इस बात की चर्चा भी रही कि बालियान परोक्ष रूप से गृह मंत्री अमित शाह के उम्मीदवार थे. शाह ने मतदान में भी भाग लिया. रूडी ने करीब 100 वोटों से जीत हासिल की. उन्होंने करीब 25 वर्षों से इस क्लब पर अपना दबदबा बनाए रखा है. इस चुनाव में बीजेपी के अलावा अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने भी रूडी का समर्थन किया.
भले ही अपील लंबित हो, पर भारतीयों को डिपोर्ट कर देगा ब्रिटेन
ब्रिटेन ने भारत और 14 अन्य देशों को उन देशों की सूची में शामिल कर लिया है, जिनके नागरिकों को उनकी वापस भेजने (डिपोर्टेशन) के खिलाफ अपील लंबित रहते हुए भी वापस भेजा (डिपोर्ट) जा सकता है. लेकिन, पहले ऐसा नहीं होता था. अपील के प्रक्रिया में रहने पर वे देश में बने रहते थे. "बीबीसी" की खबर के अनुसार, जहां तक इंग्लैंड और वेल्स की जेल प्रणाली का सवाल है तो विदेशी कैदियों में भारतीय नागरिक तीसरे सबसे बड़े समूह हैं (आल्बेनियाई और आयरिश के बाद और पाकिस्तानियों से पहले). विदेशी कैदियों का कुल हिस्सा इंग्लैंड और वेल्स की जेल आबादी का लगभग 12% है. 'डिपोर्ट अभी, बाद में अपील' की सूची में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और इंडोनेशिया जैसे देशों को भी शामिल किया गया है.
कूटनीति
मोदी की जिस फ़ोन कॉल के बाद अमेरिका का लहजा बदल गया
मई में भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम पर सहमति बनने के बाद के हफ़्तों में, नई दिल्ली के अधिकारी डोनाल्ड ट्रम्प के उन दावों से नाराज़ थे कि उन्होंने चार दिनों के सशस्त्र संघर्ष को समाप्त करने में मध्यस्थता की थी. जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने बार-बार इस बारे में बात की कि उन्होंने कैसे एक परमाणु युद्ध को रोका, तो भारतीय राजनयिकों ने सार्वजनिक रूप से उनकी बातों का खंडन करना शुरू कर दिया. यह तनाव 17 जून को नरेंद्र मोदी के साथ एक फ़ोन कॉल में अपने चरम पर पहुंच गया. यह फ़ोन कॉल तब हुई जब ट्रम्प कनाडा में ग्रुप ऑफ़ सेवन शिखर सम्मेलन से जल्दी चले गए और भारतीय नेता से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल सके. ब्लूमबर्ग ने इस पर लम्बी रिपोर्ट छापी है.
35 मिनट की इस बातचीत में, मोदी ने ट्रम्प को बताया कि भारत द्वारा बमबारी के बाद पाकिस्तान के अनुरोध पर दोनों देशों ने सीधे संघर्षविराम पर चर्चा की थी. एक भारतीय रीडआउट के अनुसार, मोदी ने कहा कि भारत "मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता है और न ही कभी करेगा," और यह भी कहा कि ट्रम्प ने "ध्यान से बात सुनी."
नई दिल्ली में इस मामले से परिचित अधिकारियों के अनुसार, मोदी को लगा कि उन्हें फ़ोन पर रिकॉर्ड को सही करने की ज़रूरत है. ऐसा इसलिए था क्योंकि उनके सहयोगियों को पता चला कि ट्रम्प अगले दिन व्हाइट हाउस में पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के लिए एक लंच की मेज़बानी करने की योजना बना रहे थे. अधिकारियों ने गोपनीय चर्चाओं के बारे में बात करने के लिए गुमनाम रहने का अनुरोध किया.
उन्होंने कहा कि अगर ट्रम्प पाकिस्तान के नागरिक नेताओं से मिलते तो भारत को कोई समस्या नहीं थी, लेकिन मुनीर की मेज़बानी करना एक ऐसी सेना को वैधता देने के रूप में देखा गया, जिस पर मोदी सरकार आतंकवादी समूहों का समर्थन करने का आरोप लगाती है. इस बात से सावधान कि ट्रम्प मुनीर और मोदी के बीच एक बैठक आयोजित करने की कोशिश कर सकते हैं, भारतीय नेता ने कनाडा से लौटते समय व्हाइट हाउस में रुकने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने यह भी कहा कि वह क्रोएशिया जाने के लिए भी प्रतिबद्ध थे.
नई दिल्ली के अधिकारियों के अनुसार, हालांकि अमेरिका ने मोदी से संघर्षविराम में ट्रम्प की भूमिका को स्वीकार करने के लिए कभी सीधा अनुरोध नहीं किया, लेकिन भारत ने उस फ़ोन कॉल के बाद व्हाइट हाउस के लहज़े में बदलाव देखा. उन्होंने कहा कि एक बार जब ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से भारत पर हमला करना शुरू कर दिया, तो यह साफ़ हो गया कि यह घटना व्यापक संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी.
मई और जून की घटनाएं दोनों देशों के बीच तनाव में आश्चर्यजनक वृद्धि को समझाने में मदद करती हैं, जो इस सप्ताह तब चरम पर पहुंच गईं जब ट्रम्प ने कहा कि वह अमेरिका में भारतीय निर्यात पर 50% टैरिफ लगाएंगे — जिसमें से आधा रूसी तेल की खरीद के लिए दंड के रूप में शामिल है. भले ही ट्रम्प ने एक समझौते के लिए कुछ गुंजाइश छोड़ी हो, लेकिन भारत के बारे में उनकी कड़वी टिप्पणियां दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश को चीन के मुकाबले एक शक्ति के रूप में तैयार करने के अमेरिका के दशकों पुराने प्रयास को उलट रही हैं.
ट्रम्प ने इस महीने भारत को "मृत" अर्थव्यवस्था और "आपत्तिजनक" व्यापार बाधाओं वाला देश बताया, जिसे रूस के साथ लड़ाई में मारे गए यूक्रेनियन की कोई चिंता नहीं है. हालांकि उस जून कॉल के बाद से मोदी और ट्रम्प के बीच बातचीत नहीं हुई है, लेकिन भारतीय नेता ने शुक्रवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात की और उन्हें इस साल के अंत में आने का निमंत्रण दिया.
जनवरी तक भारत में अमेरिकी राजदूत रहे एरिक गार्सेटी ने कहा, "लगातार प्रशासनों की सावधानीपूर्वक बनाई गई सहमति ने लगभग तीन दशकों तक दो सबसे बड़े लोकतंत्रों को एक साथ लाया है, और प्रशासन की कार्रवाइयां इस प्रगति को खतरे में डाल सकती हैं यदि इसे जल्दी हल नहीं किया गया." उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि दोनों राजधानियों में ठंडे दिमाग़ से काम लिया जाएगा. बहुत कुछ दांव पर लगा है."
भारत के विदेश मंत्रालय ने और जानकारी मांगने वाले एक ईमेल का जवाब नहीं दिया. व्हाइट हाउस ने इस पर टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया कि अमेरिका-भारत संबंध कैसे बिगड़े हैं और भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम में ट्रम्प की भूमिका के विवरण पर भी कोई जवाब नहीं दिया. गुरुवार को एक ब्रीफिंग के दौरान, विदेश विभाग के उप प्रवक्ता टॉमी पिगॉट ने कहा कि ट्रम्प भारत के साथ व्यापार असंतुलन और देश द्वारा रूसी तेल की खरीद के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए कार्रवाई कर रहे थे.
पिगॉट ने कहा, "भारत एक रणनीतिक साझेदार है जिसके साथ हम एक पूर्ण और स्पष्ट बातचीत में संलग्न हैं जो जारी रहेगी." उन्होंने कहा, "विदेश नीति में किसी भी चीज़ की तरह, आप हर चीज़ पर 100% समय सहमत नहीं होने वाले हैं."
जब ट्रम्प इस साल की शुरुआत में व्हाइट हाउस वापस आए, तो वह अपने पहले कार्यकाल के दौरान मोदी के साथ गर्मजोशी भरे संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए तैयार दिख रहे थे. अमेरिकी नेता ने कहा था कि "दोनों देशों के नेताओं के बीच संबंध अब तक के सबसे अच्छे हैं," जबकि मोदी ने ट्रम्प को "मेरे प्रिय मित्र" कहा था. अप्रैल की शुरुआत में ट्रम्प के "लिबरेशन डे" टैरिफ के बाद, दोनों पक्ष व्यापार वार्ता शुरू करने के लिए दौड़ पड़े. उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कई हफ्तों बाद भारत में मोदी से मुलाकात की, और दोनों पक्षों ने एक समझौते तक पहुंचने की दिशा में प्रगति का बखान किया.
फिर भी, जैसे-जैसे सप्ताह बीतते गए, बातचीत और अधिक विवादास्पद होती गई. चीन के साथ ट्रम्प के सौदे के बाद भारत का रुख़ सख़्त होने लगा, और नई दिल्ली ने स्टील और एल्यूमीनियम पर उच्च शुल्कों के जवाब में अमेरिका पर जवाबी टैरिफ़ लगाने की धमकी दी. आनुवंशिक रूप से संशोधित फ़सलों और कृषि पहुंच जैसे लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों पर भी तनाव उभरा.
फिर भारत-पाकिस्तान संघर्षविराम पर विवाद हुआ और साथ ही पुतिन के प्रति ट्रम्प का सख़्त रुख़ भी, जिन्होंने यूक्रेन के साथ युद्धविराम करने के अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रयासों का विरोध किया था. जुलाई के मध्य में दबाव बनाने के प्रयास में, ट्रम्प ने रूसी तेल आयात करने वाले देशों पर कड़े टैरिफ़ की धमकी दी — जिससे भारत सीधे निशाने पर आ गया.
भारतीय अधिकारी अभी भी एक समझौते पर पहुंचने के लिए आश्वस्त थे, और ट्रम्प की मेज़ पर एक प्रस्ताव भेजा गया था. भारतीय अधिकारियों के अनुसार, इस उम्मीद में कि अमेरिकी नेता किसी भी समय एक सौदे की घोषणा कर सकते हैं, मोदी ने अपनी टीम से समझौते का स्वागत करते हुए एक बयान तैयार करने को कहा.
हालांकि, जैसे ही राष्ट्रपति ने कई अन्य देशों के साथ समझौतों की घोषणा करना शुरू किया, माहौल बिगड़ने लगा. फिर ट्रम्प ने 30 जुलाई को 25% "पारस्परिक" टैरिफ की घोषणा करके भारत को आश्चर्यचकित कर दिया, जिससे रूस को लेकर संबंधों में गिरावट आई और इस सप्ताह उच्च शुल्क लगे.
एक भारतीय अधिकारी ने, जिन्होंने पहचान न बताने का अनुरोध किया, इस प्रक्रिया में कई ग़लतियों का ज़िक्र किया. अधिकारी ने कहा कि वार्ताकारों ने कृषि लॉबी, मिडवेस्टर्न सीनेटरों और डेयरी सहकारी समितियों की शक्ति को कम करके आंका, जबकि एक फ़ॉलबैक विकल्प तैयार करने में भी विफल रहे, जो ट्रम्प के मामला को तूल देने पर एक त्वरित जीत दिला सकता था.
इस सप्ताह ट्रम्प की वृद्धि के बाद मोदी ने अवज्ञाकारी रुख़ अपनाया है, और छोटे पैमाने के किसानों के हितों की रक्षा करने का संकल्प लिया है, जबकि उनकी सरकार ने अमेरिकी टैरिफ़ को "अनुचित, अन्यायपूर्ण और अतार्किक" बताया है. फिर भी, स्थिति से परिचित लोगों ने कहा कि भारत की जवाबी कार्रवाई की कोई योजना नहीं है और अधिकारी यह आकलन कर रहे हैं कि क्या कोई समझौता खोजने के लिए कुछ रियायतें दी जाएं — विशेष रूप से कृषि और डेयरी क्षेत्रों में.
उसी समय, मोदी अमेरिका की ओर हाल के झुकाव का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं. शीत युद्ध के दौरान, भारत ने पाकिस्तान के साथ अमेरिकी गठबंधन का मुक़ाबला करने के लिए सोवियत संघ के साथ एक रणनीतिक संबंध बनाया था. दशकों से, नई दिल्ली रूसी समर्थन पर भरोसा करने में सक्षम रही है, जिसमें पाकिस्तान के साथ 1971 का युद्ध और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल है.
ऑस्ट्रेलिया में भारत के पूर्व उच्चायुक्त नवदीप सूरी ने कहा, "रूस के साथ संबंध पुराना और समय की कसौटी पर परखा हुआ है." "उन सभी दिनों में जब अमेरिका नई दिल्ली को निराश कर रहा था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र भी शामिल है, मॉस्को एक चट्टान की तरह भारत के पीछे खड़ा था. तेल मौजूदा कहानी का एक छोटा सा हिस्सा है. भारत दबाव में झुकता हुआ नहीं दिखना चाहेगा."
इस सदी की शुरुआत से अमेरिका ने भारत को लुभाने के लिए एक ठोस प्रयास किया, जिसमें लगातार प्रशासनों ने दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के साथ सैन्य और आर्थिक संबंधों को मज़बूत किया. क्वाड समूह — जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं — अब अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति का केंद्र है.
वाशिंगटन में एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की पूर्व वरिष्ठ अमेरिकी व्यापार वार्ताकार वेंडी कटलर ने कहा, "भारत हमेशा एक तरह का स्वतंत्र अभिनेता रहा है और उसने ज़्यादातर देशों के लिए अपने चैनल खुले रखे हैं." "मुझे चिंता है कि हाल के घटनाक्रम उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी का पुनर्मूल्यांकन करने और शायद चीन और अन्य देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए प्रेरित कर सकते हैं."
यह पहले से ही होता दिख रहा है, भले ही भारत और चीन ने 2020 के घातक सीमा संघर्ष के बाद से एक-दूसरे पर सख़्त निवेश और व्यापार प्रतिबंध बनाए रखे हैं. मोदी सरकार ने इस साल चीन के साथ कूटनीति तेज कर दी है, जिसमें भारत के विदेश और रक्षा मंत्रियों सहित कई उच्च-प्रोफ़ाइल अधिकारियों की यात्राएं शामिल हैं.
नई दिल्ली के अधिकारियों के अनुसार, इस महीने के अंत में, मोदी सात साल में पहली बार चीन जाने और एक क्षेत्रीय सुरक्षा शिखर सम्मेलन के मौक़े पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने की योजना बना रहे हैं. भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने बुधवार को टैरिफ़ पर मोदी को नैतिक समर्थन देते हुए एक्स पर लिखा: "धमकाने वाले को एक इंच दो, वह एक मील ले लेगा."
सरकार के अधिक अमेरिका-समर्थक आवाज़ों के लिए भी, ट्रम्प का टैरिफ़ और वैश्विक गठबंधनों पर रुख़ भारत के लिए एक वेक-अप कॉल रहा है, एक अधिकारी ने कहा. अधिकारी ने कहा कि चीन के साथ घनिष्ठ संबंधों में बाधाएं बनी हुई हैं, लेकिन सरकार का मार्गदर्शक दृष्टिकोण यथार्थवादी व्यावहारिकता का है.
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में दक्षिण एशिया के पूर्व वरिष्ठ निदेशक लिंडसे फोर्ड के अनुसार, हालांकि अमेरिका के लिए मोदी सरकार पर संरक्षणवादी नीतियों के लिए दबाव डालना उचित है, लेकिन ट्रम्प की "सख़्त रणनीति" भारत के रूसी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करने के प्रयासों को रोकने का जोखिम उठाती है, साथ ही उसे चीन के क़रीब भी धकेलती है.
उन्होंने कहा, "राष्ट्रपति ट्रम्प की कार्रवाइयों से व्यापार और ऊर्जा खरीद पर निकट भविष्य में लाभ हो सकता है, लेकिन उनकी महत्वपूर्ण दीर्घकालिक लागतें हो सकती हैं." "मौजूदा अमेरिका-भारत व्यापार विवाद में बीजिंग सबसे बड़ा विजेता होगा."
पाकिस्तान ने कैसे पटाया अमेरिका को, और भारत का पत्ता काटा
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर इस सप्ताह के अंत में कैमरे के लिए मुस्कुराए. वे एक शीर्ष अमेरिकी जनरल के साथ बांहों में बांह डाले खड़े थे. यह इस गर्मी में अमेरिकी प्रतिष्ठान के केंद्र में उनका दूसरा गर्मजोशी भरा स्वागत था. मुनीर मध्य-पूर्व में अमेरिकी सैन्य बलों के कमांडर जनरल माइकल कुरिल्ला के रिटायरमेंट के लिए फ्लोरिडा गए थे. कुरिल्ला पहले भी आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई में 'अभूतपूर्व साझेदारी' के लिए पाकिस्तानी सेना प्रमुख की प्रशंसा कर चुके हैं. मुनीर ने अमेरिका के शीर्ष सैन्य अधिकारी जनरल डैन केन को एक पट्टिका और पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया. फाइनेंशियल टाइम्स में हमज़ा जिलानी, जॉन रीड और जेम्स पॉलिटी नें एक विस्तृत रिपोर्ट फाइल की है. इससे भी अधिक उल्लेखनीय बात यह है कि जून में मुनीर ने वाशिंगटन में डोनाल्ड ट्रम्प के साथ दो घंटे का निजी लंच किया था. यह लंच पाकिस्तान और उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारत के बीच दशकों के सबसे खूनी सैन्य टकराव के ठीक एक महीने बाद हुआ.
यह एक ऐसे व्यक्ति के लिए हैरान करने वाला स्वागत था, जो देश के सबसे शक्तिशाली पद पर होने के बावजूद सरकार का प्रमुख नहीं है. और यह पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अधिकारी के लिए तो और भी ज़्यादा हैरान करने वाला था. माना जा रहा था कि ट्रम्प के दोबारा चुने जाने के बाद वाशिंगटन के साथ संबंध खराब हो जाएंगे, जिन्होंने कभी 24 करोड़ की आबादी वाले इस परमाणु-संपन्न देश पर अमेरिका को 'झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं' देने का आरोप लगाया था.
इसके बजाय, ट्रम्प प्रशासन के इस्लामाबाद के साथ संबंध फल-फूल रहे हैं, जबकि भारत—जो मुनीर के व्हाइट हाउस में स्वागत से गुस्से में था—उसे अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ नरेंद्र मोदी के पिछले दोस्ताना संबंधों के बावजूद तिरस्कार का सामना करना पड़ा है.
एशिया पैसिफ़िक फ़ाउंडेशन के एक नॉन-रेज़िडेंट सीनियर फ़ेलो माइकल कुगेलमैन ने कहा, "अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में जो हो रहा है वह एक आश्चर्य है. मैं अब इस रिश्ते को एक ऐसे रिश्ते के रूप में वर्णित करूँगा जो एक अप्रत्याशित पुनरुत्थान, यहाँ तक कि एक पुनर्जागरण का आनंद ले रहा है. पाकिस्तान ने बहुत सफलतापूर्वक यह समझ लिया है कि ऐसे अपरंपरागत राष्ट्रपति के साथ कैसे जुड़ना है."
डोनाल्ड ट्रम्प ने मई में पाकिस्तान और भारत के बीच संघर्ष विराम कराने का श्रेय लिया. भारत और पाकिस्तान की विपरीत राजनयिक क़िस्मत में अस्थिर दक्षिण एशिया में भू-राजनीति को पलटने की क्षमता है और यह पहले से ही व्यापार में दिखाई दे रहा है, जहाँ अमेरिका ने इस्लामाबाद पर अपेक्षाकृत हल्का 19 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया, जबकि नई दिल्ली पर 50 प्रतिशत का दंडात्मक टैरिफ़ लगाया.
ट्रम्प ने पाकिस्तान के 'विशाल तेल भंडार' को विकसित करने के लिए एक सौदे का भी वादा किया, जबकि इस्लामाबाद अपनी बेलआउट-निर्भर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की उम्मीद में अमेरिका को अन्य निवेश के अवसर प्रदान कर रहा है.
पाकिस्तान के प्रति अमेरिका की यह नई प्रशंसा आंशिक रूप से पाकिस्तान के वरिष्ठ जनरलों द्वारा रची गई एक लुभावनी कोशिश का फल है, जिसमें आतंकवाद-रोधी सहयोग, ट्रम्प के क़रीबी व्यवसायियों तक पहुँच और ऊर्जा, महत्वपूर्ण खनिजों और क्रिप्टोकरेंसी को कवर करने वाले सौदों का लाभ उठाया गया—इन सबके साथ व्हाइट हाउस के लिए तारीफ़ों की झड़ी लगा दी गई.
इस्लामाबाद के नेताओं का मानना था कि उन्हें मनमौजी राष्ट्रपति और उनके कुछ सहयोगियों की नज़रों में तुरंत अच्छा बनने की ज़रूरत है, जो अफ़ग़ानिस्तान में नाटो के युद्ध के दौरान तालिबान को कथित समर्थन देने के लिए पाकिस्तान के गहरे आलोचक रहे थे.
प्रोजेक्ट 2025, एक चुनाव-पूर्व ब्लू प्रिंट जिसने ट्रम्प प्रशासन के कई शुरुआती क़दमों को प्रेरित किया है, ने पाकिस्तान के सैन्य-प्रभुत्व वाले शासन को चीन के 'अत्यधिक अमेरिकी-विरोधी और भ्रष्ट' क्लाइंट के रूप में निंदा की थी. राष्ट्रपति के आंतरिक सर्कल के सदस्यों ने भी जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के साथ पाकिस्तान के बढ़ते निरंकुश व्यवहार को निशाना बनाया था. कांग्रेस में एक द्विदलीय समूह ने ख़ान की क़ैद को लेकर मुनीर पर प्रतिबंध लगाने के लिए क़ानून का मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया था.
एक वरिष्ठ पाकिस्तानी राजनयिक ने कहा, "हमें कोई अंदाज़ा नहीं था कि उनके साथ क्या उम्मीद की जाए, लेकिन आम सहमति यह थी कि यह शायद मुश्किल होने वाला है."
पाकिस्तान के इस बदलाव में शुरुआत में एक महत्वपूर्ण गिरफ़्तारी से मदद मिली, जिसे अमेरिका ने अहम माना. मार्च में, पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस जासूसी एजेंसी के प्रमुख आसिम मलिक ने एक उच्च-मूल्य वाले आईएसआईएस-के ऑपरेटिव को सौंपा, जिसके बारे में अमेरिका ने कहा था कि वह 2021 में काबुल में हुए एक बम विस्फोट के पीछे था, जिसमें 13 अमेरिकी सैनिकों सहित 180 से अधिक लोग मारे गए थे. उसकी पकड़ ने पाकिस्तान को ट्रम्प के मार्च स्टेट ऑफ़ द यूनियन संबोधन में प्रशंसा दिलाई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने उच्च टैरिफ़ को लेकर भारत की भी आलोचना की थी.
निर्णायक रूप से, पाकिस्तान ने ट्रम्प के आंतरिक घेरे में अपनी जगह बनाने के लिए एक प्रकार की क्रिप्टो कूटनीति का भी इस्तेमाल किया.
वर्ल्ड लिबर्टी फ़ाइनेंशियल, एक ट्रम्प-समर्थित क्रिप्टोकरेंसी वेंचर, ने अप्रैल में पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल के साथ एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जब उसके सह-संस्थापकों ने पाकिस्तान का दौरा किया. अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ के बेटे ज़ैक विटकॉफ़ ने यात्रा के दौरान कहा कि पाकिस्तान के पास 'खरबों डॉलर' की खनिज संपदा है जो टोकनाइज़ेशन के लिए तैयार है.
तब से, पाकिस्तान के क्रिप्टो और ब्लॉकचेन मंत्री बिलाल बिन साक़िब एक शैडो डिप्लोमैट के रूप में उभरे हैं, जो वाशिंगटन के साथ व्यापार वार्ता में भाग ले रहे हैं और ट्रम्प के परिवार और सलाहकारों के क़रीबी लोगों के सामने पाकिस्तान की क्रिप्टो क्षमता का प्रचार कर रहे हैं.
पाकिस्तानी अधिकारियों ने मई में भारत के साथ संघर्ष के दौरान अपने आचरण की ओर भी इशारा किया, जिसने ट्रम्प के साथ उनकी विश्वसनीयता को मज़बूत किया. उनके अनुसार, पाकिस्तान ने ताक़त और संयम का एक संयोजन दिखाया, कुछ भारतीय जेटों को मार गिराया लेकिन बड़े पैमाने पर तनाव बढ़ाने से परहेज़ किया, जबकि अमेरिका और खाड़ी देशों ने संघर्ष विराम सुनिश्चित करने के लिए फ़ोन पर काम किया.
इस्लामाबाद ने नई दिल्ली के साथ युद्धविराम कराने का श्रेय भी ट्रम्प को दिया—यहाँ तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया. इस सप्ताह के अंत में अपनी ख़ाकी वर्दी को सूट और टाई से बदलते हुए, मुनीर ने टाम्पा में पाकिस्तानी-अमेरिकियों के एक समूह से बात करते हुए फिर से ट्रम्प की जमकर तारीफ़ की.
एक पाकिस्तानी अधिकारी के अनुसार, मुनीर ने कहा कि राष्ट्रपति के 'रणनीतिक नेतृत्व' ने 'दुनिया में कई युद्धों को रोका' है.
वाशिंगटन के एक थिंक-टैंक, हडसन इंस्टीट्यूट में अब अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक़्क़ानी ने कहा, "ट्रम्प को घोषित करने के लिए सफलता की कहानियों की ज़रूरत है और पाकिस्तान उन्हें यह देने में ख़ुश है."
इसके विपरीत, मोदी ने ज़्यादा सख़्त रवैया अपनाया है. जून में मुनीर के साथ लंच से एक दिन पहले, भारतीय नेता की अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ युद्धविराम में उनकी भूमिका को लेकर एक तल्ख़ फ़ोन कॉल हुई थी. मोदी ने फिर सार्वजनिक रूप से ट्रम्प का खंडन करते हुए कहा कि पाकिस्तान के साथ समझौता अमेरिकी हस्तक्षेप के कारण नहीं हुआ, बल्कि यह पाकिस्तान की पहल पर हुआ और दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं के बीच संचार के मौजूदा चैनलों के माध्यम से हुआ.
भारत ने कॉल के सारांश में कहा, "प्रधानमंत्री मोदी ने दृढ़ता से कहा कि भारत मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता है और न ही कभी करेगा."
मुनीर का राष्ट्रपति से मिलने का दौरा, जो तब हुआ जब अमेरिका ईरान पर सैन्य हमले की तैयारी कर रहा था, ने भी पाकिस्तानी सैन्य प्रमुख को उनके रिश्ते के एक और पहलू को प्रचारित करने में मदद की: सैन्य और ख़ुफ़िया सहयोग.
मुनीर ने अनिवार्य रूप से पाकिस्तान को अमेरिका और उसके विरोधी ईरान और चीन के बीच एक विश्वसनीय बैक चैनल के रूप में पेश किया, एक ऐसी रणनीति जो 1970 के दशक के पाकिस्तान की याद दिलाती है जिसने रिचर्ड निक्सन के साम्यवादी चीन के साथ अमेरिकी संबंधों को खोलने की सुविधा प्रदान की थी.
जबकि पाकिस्तान ने ईरान के ख़िलाफ़ हमलों के लिए वाशिंगटन को फटकार लगाई, देश ने ख़ुद को अमेरिका और उसके दुश्मनों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में पेश करने की कोशिश जारी रखी. जुलाई के अंत में, मुनीर बीजिंग गए, जहाँ उन्होंने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के मुख्यालय का दौरा किया और चीन के विदेश मंत्री वांग यी से वादा किया कि वह पाकिस्तान में चीनी श्रमिकों को विद्रोही हमलों से बचाएंगे.
और अमेरिकी सेंटकॉम कमांडर कुरिल्ला, जिन्होंने जुलाई के अंत में पाकिस्तान सरकार से सैन्य सम्मान प्राप्त किया, के साथ गर्मजोशी भरी मुलाक़ातों के बीच, मुनीर ने ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन का भी इस्लामाबाद में स्वागत किया है.
वाशिंगटन में मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के एक सीनियर फ़ेलो मार्विन वेनबाम ने कहा, "पाकिस्तान एक दुर्लभ देश है जो चीन, ईरान, खाड़ी देशों, कुछ हद तक रूस और अब फिर से अमेरिका का दोस्त है. अमेरिका मुनीर को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जो एक उपयोगी रणनीतिक भूमिका निभा सकता है, और पाकिस्तानी अपनी लाइनें सभी के लिए खुली रखते हैं, लेकिन यह जानते हैं कि जब एक रिश्ता दूसरे से टकरा रहा हो तो पीछे हटना है."
नई दिल्ली के लिए, ट्रम्प और उसके कट्टर-प्रतिद्वंद्वी के बीच बढ़ते संबंधों ने गहरी नाराज़गी पैदा की है, जो अपनी कहीं बड़ी अर्थव्यवस्था पर भारी टैरिफ़ से बचाव में अपनी विफलता से और बढ़ गई है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहले भारत पर 25 प्रतिशत का टैरिफ़ लगाया, फिर रूसी तेल की ख़रीद के कारण इसे दोगुना कर 50 प्रतिशत कर दिया. घटनाओं की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा, "यहाँ विश्वास की कमी को दूर करने में कुछ समय लगेगा."
भारतीय अधिकारी सैन्य-शासित पाकिस्तान को व्यापारिक सौदों से वाशिंगटन को लुभाने के बाद पुरस्कृत होते देख भी नाराज़ हैं. उस व्यक्ति ने कहा, "निष्क्रिय प्रणालियों से निपटना बहुत आसान है"—यह इस बात का संदर्भ है कि पाकिस्तान ने ट्रम्प के कार्यकाल की शुरुआत में कमज़ोर दिखने वाली स्थिति को कितनी आसानी से जीत में बदल दिया.
वर्तमान और पूर्व पाकिस्तानी अधिकारियों और विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर इस्लामाबाद वादे पूरे करने में विफल रहता है तो ट्रम्प अभी भी उसके ख़िलाफ़ हो सकते हैं. पाकिस्तान के अधिकांश प्राकृतिक संसाधन या तो अप्रमाणित हैं या अस्थिर प्रांतों में स्थित हैं जो विद्रोह से ग्रस्त हैं, जिसके कारण पिछले साल 2,000 मौतें हुईं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 7 अरब डॉलर के आईएमएफ़ बेलआउट और चीन और खाड़ी सहयोगियों से क़र्ज़ रोलओवर पर निर्भर करती है.
अगर ट्रम्प फिर से भारत के साथ संबंध सुधारने का फ़ैसला करते हैं, तो वे मोदी को ख़ुश करने के लिए पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हमला कर सकते हैं, वे कहते हैं. दो राजनयिकों ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति को उम्मीद है, उदाहरण के लिए, कि इस्लामाबाद इज़राइल को मान्यता देगा—यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इस तरह के क़दम का जनता में कड़ा विरोध है.
हडसन इंस्टीट्यूट के हक़्क़ानी ने कहा: "ट्रम्प भारत के साथ अधिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश करने, भारतीयों को नाराज़ करने और यह देखने के लिए कि क्या इससे वे उनसे बात करेंगे और उनकी शर्तों को स्वीकार करेंगे, पाकिस्तान कार्ड खेल रहे हैं. यह एक लेन-देन पर आधारित सुधार है."
पाकिस्तान में एक पूर्व नीति सलाहकार हुसैन नदीम, जो अब मुनीर के शासन के वाशिंगटन स्थित आलोचक हैं, ने कहा: "अनिर्वाचित नेता और सैन्य अधिकारी यह अपील करने के लिए ज़्यादा वादा करने को तैयार हैं कि वे ट्रम्प के अहंकार को क्या समझते हैं. ट्रम्प और उनके सलाहकार अंततः धैर्य खो सकते हैं जब वे देखेंगे कि पाकिस्तान वादे पूरे नहीं कर रहा है."
सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ पार्टी के लिए 2017 से 2018 तक पूर्व प्रधानमंत्री रहे शाहिद खाक़ान अब्बासी, जिन्होंने अपनी पार्टी शुरू करने के लिए पार्टी छोड़ दी, ने सहमति व्यक्त की कि पाकिस्तान को "ट्रम्प प्रशासन की अस्थिरता से सावधान रहना चाहिए". उन्होंने कहा, "मोदी कभी अच्छे आदमी थे, अब उनकी पिटाई हो रही है. ज़ेलेंस्की को सार्वजनिक रूप से फटकार मिली. पाकिस्तान को अपने हितों और अपनी गरिमा दोनों की रक्षा करने की ज़रूरत है."
वायुसेना प्रमुख के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर दावे से विवाद, सबूतों और समय पर उठे गंभीर सवाल
भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह द्वारा 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर किए गए एक सनसनीखेज दावे ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. बेंगलुरु में एक भाषण के दौरान उन्होंने दावा किया कि भारतीय वायुसेना ने अभियान के दौरान पाकिस्तान के पांच लड़ाकू विमानों, एक इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर विमान को मार गिराया और हैंगरों में भी कुछ विमानों को नष्ट किया. हालांकि, इस दावे के लगभग तीन महीने बाद सामने आने, सबूतों की भारी कमी और इसमें मौजूद अंतर्विरोधों के कारण रक्षा विशेषज्ञों ने इसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए हैं.
द वायर के लिए एक विश्लेषण में, रक्षा विशेषज्ञ सुशांत सिंह ने द वायर के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजने से बात करते हुए दावे को कई पैमानों पर परखा. सबसे बड़ा सवाल सबूतों को लेकर उठाया गया है. जहां भारत में गिरे भारतीय विमानों का मलबा और वीडियो फुटेज सामने आए थे, वहीं पाकिस्तान में कथित तौर पर गिराए गए छह विमानों का कोई मलबा, सैटेलाइट तस्वीर या कोई ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस सबूत पेश नहीं किया गया है. यह भी सवाल उठाया गया है कि अगर यह इतनी बड़ी कामयाबी थी तो सरकार ने संसद में बहस के दौरान विपक्ष को जवाब देने के लिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया?
इस दावे में एक बड़ा अंतर्विरोध भी उजागर किया गया है. एयर चीफ मार्शल ने एक ओर कहा कि उन्हें सरकार से पूरी 'खुली छूट' मिली थी, वहीं दूसरी ओर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनका लक्ष्य केवल 'आतंकवादी ठिकानों' पर हमला करना था, न कि पाकिस्तानी सेना पर. इसे अपने आप में एक बड़ा 'पॉलिटिकल कंस्ट्रेंट' या राजनीतिक बंधन माना जा रहा है.
इस दावे पर संदेह इसलिए भी गहराता है क्योंकि सरकार की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति (PIB) में एयर चीफ के भाषण की जानकारी देते हुए इस सबसे विस्फोटक दावे का कोई जिक्र नहीं किया गया. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान वायुसेना का मनोबल बढ़ाने और मौजूदा सरकार को राजनीतिक कवच पहनाने के एक प्रयास के तहत दिया गया हो सकता है. लेकिन बिना ठोस सबूतों के इस तरह के दावे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय वायुसेना और भारत सरकार की विश्वसनीयता को कम कर सकते हैं.
‘भारत मानवाधिकार हनन पर न्यूनतम कार्रवाई करता है, पाकिस्तान शायद ही कभी’
अमेरिकी सरकार ने मंगलवार को जारी एक संक्षिप्त मानवाधिकार रिपोर्ट में भारत और पाकिस्तान में हुए हनन को नोट किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने इन दुर्व्यवहारों से निपटने के लिए "न्यूनतम विश्वसनीय कदम उठाए" जबकि पाकिस्तान ने "शायद ही कभी विश्वसनीय कदम उठाए".
ट्रम्प प्रशासन ने दुनिया भर में मानवाधिकारों पर वार्षिक अमेरिकी सरकारी रिपोर्ट के दायरे को कम कर दिया है, जिससे कुछ सहयोगियों और उन देशों की आलोचना में काफी नरमी आई है जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भागीदार रहे हैं. इस साल भारत और पाकिस्तान के लिए स्टेट डिपार्टमेंट के मानवाधिकार दस्तावेज़ भी बहुत छोटे और कम विस्तृत थे. हाल के वर्षों में चीन के उदय का मुकाबला करने के वाशिंगटन के प्रयास में भारत एक महत्वपूर्ण अमेरिकी भागीदार रहा है, हालांकि श्री ट्रम्प द्वारा भारत से आने वाले सामानों पर 50% टैरिफ लगाने को लेकर संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. पाकिस्तान अमेरिका का एक गैर-नाटो सहयोगी है.
भारत के बारे में, रिपोर्ट में कहा गया है, "सरकार ने मानवाधिकारों का हनन करने वाले अधिकारियों की पहचान करने और उन्हें दंडित करने के लिए न्यूनतम विश्वसनीय कदम या कार्रवाई की." पाकिस्तान पर, इसमें कहा गया, "सरकार ने मानवाधिकारों का हनन करने वाले अधिकारियों की पहचान करने और उन्हें दंडित करने के लिए शायद ही कभी विश्वसनीय कदम उठाए." वाशिंगटन में भारतीय और पाकिस्तानी दूतावासों ने मंगलवार को जारी इस रिपोर्ट पर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की, जिसमें 2024 की घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना की है. वे बढ़ते हेट स्पीच, एक धर्म-आधारित नागरिकता कानून जिसे संयुक्त राष्ट्र "मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण" कहता है, धर्मांतरण विरोधी कानून जो विश्वास की स्वतंत्रता को चुनौती देता है, 2019 में मुस्लिम-बहुल कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाना, और मुसलमानों के स्वामित्व वाली संपत्तियों के विध्वंस की ओर इशारा करते हैं. श्री मोदी भेदभाव से इनकार करते हैं और कहते हैं कि उनकी नीतियां, जैसे कि खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम और विद्युतीकरण अभियान, सभी को लाभान्वित करती हैं.
पाकिस्तान में, एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि सरकारी अधिकारी ईसाइयों सहित अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में विफल रहते हैं, और नागरिक समाज की आवाज़ों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ "अत्यधिक और अनावश्यक बल" का उपयोग करते हैं. विशेष रूप से, अधिकार समूहों, संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी सरकारों ने 2024 के पाकिस्तानी चुनावों पर चिंता जताई. संयुक्त राष्ट्र के एक कार्य समूह ने पिछले साल कहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की हिरासत अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है. खान अब भी जेल में हैं.
आवारा कुत्तों के मसले पर आज सुप्रीम सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों से संबंधित एक मामले को 14 अगस्त को जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. यह निर्णय 11 अगस्त को जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली एकल बेंच के आदेश के संदर्भ में आया है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर के अधिकारियों को आदेश दिया गया था कि राजधानी की सड़कों से आवारा कुत्तों को पकड़कर छह से आठ हफ़्तों के भीतर आश्रयों (शेल्टर्स) में रखा जाए और उन्हें दोबारा कभी सार्वजनिक स्थानों पर न छोड़ा जाए.
यू ट्यूब ने भारतीय क्रिएटर्स को 21,000 करोड़ रु. का भुगतान किया
यू ट्यूब ने पिछले तीन वर्षों में भारतीय क्रिएटर्स, कलाकारों और मीडिया कंपनियों को 21,000 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया है. आगे आने वाले दो वर्षों में, कंपनी भारत की तेजी से बढ़ती क्रिएटर इकॉनमी को प्रोत्साहित करने के लिए 850 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करने जा रही है. यह जानकारी यू ट्यूब के सीईओ नील मोहन ने मुंबई में आयोजित पहले विश्व ऑडियो विजुअल एवं मनोरंजन शिखर सम्मेलन (वेव्स) में दी.
नील मोहन ने भारत को एक "क्रिएटर नेशन" के रूप में वर्णित करते हुए कहा कि भारत न केवल फिल्म और संगीत का विश्व नेतृत्व करता है, बल्कि डिजिटल कंटेंट और क्रिएटर इनोवेशन के क्षेत्र में भी विश्व के सबसे गतिशील केंद्रों में से एक है. उन्होंने बताया कि पिछले साल भारत में 100 मिलियन से अधिक चैनल ने सामग्री अपलोड की है, जिनमें से 15,000 से अधिक चैनलों के एक मिलियन से ऊपर सब्सक्राइबर हैं.
नील मोहन ने यह भी बताया कि भारत में निर्मित वीडियो ने पिछले वर्ष विदेशों में 45 अरब घंटे की कुल वॉच टाइम प्राप्त किया है, जो दर्शाता है कि भारतीय कंटेंट ग्लोबली तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. 850 करोड़ रुपये का आगामी निवेश मुख्य रूप से भारतीय क्रिएटर्स की पहुंच बढ़ाने, उनके व्यवसाय को स्थिर बनाने और उनकी सामग्री को वैश्विक स्तर पर फैलाने के लिए आवश्यक उपकरण, प्रशिक्षण और विभिन्न पहलों में किया जाएगा.
“केबीसी” में सोफ़िया कुरैशी और व्योमिका सिंह, बीजेपी की “वोटों की खातिर एक चाल”
"कौन बनेगा करोड़पति" के नवीनतम प्रोमो में "ऑपरेशन सिंदूर" से जुड़ीं तीन महिला सैन्य कर्मियों की उपस्थिति ने एक बहस छेड़ दी है, जिसमें कई लोगों ने इसकी आलोचना करते हुए इसे सत्ता पक्ष बीजेपी की "पीआर रणनीति" और "वोटों की खातिर एक चाल" बताया है.
“द टेलीग्राफ” के अनुसार, कर्नल सोफिया कुरैशी (भारतीय सेना) और विंग कमांडर व्योमिका सिंह (भारतीय वायु सेना), जो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ब्रिफिंग देती थीं, अमिताभ बच्चन के होस्ट किए गए इस शो के स्वतंत्रता दिवस विशेष एपिसोड में कमांडर प्रेरणा देवस्थली (भारतीय नौसेना) के साथ दिखाई देंगी. सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन द्वारा मंगलवार को जारी वीडियो में, त्रि-मूर्ति यह समझा रही हैं कि ऑपरेशन सिंदूर, जो भारत का पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादी ढांचों पर जवाबी हवाई हमला था, पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद क्यों आवश्यक था.
इस मुद्दे पर पूर्व सेना अधिकारी प्रवीण डावर ने कहा, "यह कभी भी स्वीकार्य नहीं होगा. यह संविधान और सैन्य नैतिकता के खिलाफ है." एक सोशल मीडिया यूज़र ने "एक्स" पर लिखा, "यह अविश्वसनीय है. ऑपरेशन सिंदूर के नायक टीवी शो "केबीसी" में क्यों आ रहे हैं? केवल इसलिए कि एक 'राष्ट्रवादी' पार्टी कुछ वोट जुटाना चाहती है?" वहीं अन्य आलोचकों ने कहा कि सेना को राजनीति से ऊपर रहना चाहिए, लेकिन आज मोदी सरकार सेना का उपयोग अपनी छवि निर्माण के लिए कर रही है. उन्होंने कहा कि हमारे सशस्त्र बल राष्ट्र की रक्षा के लिए हैं, न कि किसी राजनेता के ब्रांड के लिए.
सोशल मीडिया कुछ के कुछ अन्य यूजर्स ने भी यह सवाल उठाया है कि क्या सेना के जवानों का वर्दी में इस तरह टेलीविजन पर आना भारतीय सेना के प्रोटोकॉल के अनुसार था. भारतीय सेना के प्रोटोकॉल के अनुसार, रेस्तरां, होटल और सामाजिक आयोजनों में वर्दी पहनना आमतौर पर हतोत्साहित किया जाता है. अधिकारी केवल ऑफिसर्स मेस में आयोजित सामाजिक समारोहों में ही वर्दी पहन सकते हैं. राजनीतिक कार्यक्रमों और विरोध रैलियों में सेना की वर्दी पहनना भी प्रतिबंधित है." संबंधित अधिकारियों को इस तरह वर्दी में परेड होने से मना करना चाहिए था. उन्होंने मना नहीं किया. बात यहीं खत्म होती है. बाकी सब आपकी राजनीति है," भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत्त पायलट और सैन्य विश्लेषक विजयिंदर के ठाकुर ने कहा.
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