15/01/2025: डिग्री नहीं दिखाएंगे, आरटीआई का काम जिज्ञासा शांत करना नहीं, जिनका भारत आज़ाद नहीं हुआ 1947 में, हरियाणा भाजपा अध्यक्ष पर बलात्कार का आरोप, अश्विनी वैष्णव के अच्छे दिन
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
15.01.2024 | आज की सुर्खियाँ
पाकिस्तान ने लंबी दूरी की मिसाइलें बनाईं: व्हाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि परमाणु हथियार संपन्न पाकिस्तान लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता विकसित कर रहा है जिसकी मार सिर्फ दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं. अमेरिका इसे एक ‘उभरते ख़तरे’ की तरह देख रहा है. उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फिनर के इस अप्रत्याशित खुलासे से पता चला कि 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद से वाशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच कभी करीबी रिश्ते कितने बिगड़ गए हैं. इससे यह भी सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान ने अपने परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों के लक्ष्यों को व्यापक बना दिया है, जो लंबे समय से भारत का मुकाबला करने के लिए थे. कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में बोलते हुए, फिनर ने कहा कि पाकिस्तान ने लंबी दूरी की बैलिस्टिक सिस्टम से लेकर उपकरण तक तेजी से उन्नत मिसाइल तकनीक को आगे बढ़ाया है, जो काफी बड़े रॉकेट मोटर्स के परीक्षण की अनुमति देगा.
लैंडमाइन विस्फोट, 6 जवान घायल : जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास 13 जनवरी को सुबह 10:45 बजे लैंडमाइन विस्फोट में भारतीय सेना के छह जवान घायल हो गए. यह घटना गश्त के दौरान हुई, जब एक सैनिक गलती से लैंडमाइन पर कदम रख बैठा. घटना एलओसी के समीप एक अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र में हुई. नियमित गश्त के दौरान लैंडमाइन विस्फोट ने सैनिकों को घायल कर दिया. सभी घायल जवानों को तत्काल निकटतम सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है. सेना के अधिकारियों ने कहा कि क्षेत्र में सतर्कता बढ़ा दी गई है और लैंडमाइन की सफाई का कार्य जारी है.
अडानी का ड्रोन नौसेना के टेस्ट में दुर्घटनाग्रस्त: एक दृष्टि 10 स्टारलाइनर ड्रोन आज पोरबंदर के पास तट पर नौसेना के लिए पूर्व-स्वीकृति परीक्षणों के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, स्नेहेष एलेक्स फिलिप ने सूत्रों का हवाला देते हुए बताया. लगभग 140 करोड़ रुपये का ड्रोन - जिसे अडानी डिफेंस एंड एयरोस्पेस ने इजरायल स्थित एल्बिट सिस्टम्स के साथ एक समझौते के तहत असेम्बल किया था - पानी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और घटना की जांच शुरू कर दी गई है, फिलिप लिखते हैं. नौसेना ने ड्रोन खरीदा था लेकिन अभी तक इसे शामिल नहीं किया था.
अमेरिकी वीजा बढ़े : निवर्तमान अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा कि पचास लाख भारतीयों के पास अमेरिकी वीजा है और पिछले साल अमेरिकी मिशनों ने दस लाख वीजा जारी किए. उन्होंने कहा कि यहां उनकी नियुक्ति के बाद से वीजा जारी करने में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दिलचस्प बात यह है कि भारत अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा स्रोत भी है.
अच्छे दिन आएं तो अश्विनी वैष्णव जैसे : केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का उदय एडलर इंडस्ट्रियल सर्विसेज का सितारा ताबड़तोड़ तरक्की से जुड़ा हुआ है. 2017-18 में, 4.51 करोड़ रुपये के मामूली राजस्व और 73.6 लाख रुपये के लाभ के साथ, एडलर को त्रिवेणी अर्थमूवर्स से 111.50 करोड़ रुपये की भारी भरकम प्रदर्शन गारंटी मिली. महज छह साल में, एडलर का राजस्व 45 लाख रुपये से बढ़कर 323 करोड़ रुपये हो गया - 718 गुना वृद्धि. संख्याएं एक अजीब तस्वीर पेश करती हैं. प्रत्युष दीप और कमलेश झा की न्यूजलांड्री में रिपोर्ट.
उद्धव के बाद शरद भी अकेले लड़ेंगे : महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी के बीच दरारें मंगलवार को तब और स्पष्ट हो गईं, जब एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव अकेले लड़ने का संकेत दिया. कुछ दिन पहले उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने भी राज्य में नगरीय निकायों के चुनाव अपनी दम पर लड़ने का निर्णय लिया था. हालांकि विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस अपने दोनों सहयोगियों के इस फैसले पर अब तक मौन है और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष और सिंगर पर गैंग रेप का मामला दर्ज : हिमाचल प्रदेश पुलिस ने हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली और गायक रॉकी मित्तल उर्फ जय भगवान के खिलाफ नई दिल्ली निवासी एक महिला की शिकायत पर गैंग रेप के आरोप में मामला दर्ज किया है. 13 दिसंबर को सोलन जिले के कसौली पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार यह कथित अपराध 3 जुलाई 2023 को हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के रोस कॉमन होटल में मंकी पॉइंट रोड, कसौली में हुआ. मंगलवार को सामने आई एफआईआर में दोनों आरोपियों के विस्तृत पते और मोबाइल नंबरों का भी उल्लेख है. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि वह 3 जुलाई 2023 को एक पर्यटक के रूप में हिमाचल प्रदेश में थी, तब यह घटना हुई.
डिग्री नहीं दिखाएंगे: डीयू ने हाईकोर्ट से कहा, आरटीआई का काम जिज्ञासा शांत करना नहीं
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शैक्षणिक योग्यताओं को लेकर अगर कोई जिज्ञासा है, तो उसे सूचना के अधिकार के मार्फत शांत नहीं किया जा सकता है. ऐसा दिल्ली विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया. मामला उन शक और अटकलों का है, जो प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर लगाई जाती रही हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2017 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग के एक आदेश के खिलाफ अपील की गई थी. आदेश था कि विश्वविद्यालय 1978 में अपने कला स्नातक कार्यक्रम से स्नातक करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड का निरीक्षण करने की अनुमति दे. बताया जाता है कि मोदी ने इसी वर्ष परीक्षा उत्तीर्ण की थी.
2016 मे भारतीय जनता पार्टी के ट्विटर हैंडल से अमित शाह द्वारा जारी मोदी की डिग्रियों की प्रति जारी की गई थी. हालांकि अटकलों ने खत्म होने का नाम नहीं लिया.
द वायर के मुताबिक विश्वविद्यालय के वकील भारत सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस डिग्री को सार्वजनिक न करने के पीछे बहुत सारे कानूनी कारण बताए. मेहता ने कहा कि छात्रों की जानकारी विश्वविद्यालय द्वारा "एक न्यासी क्षमता" में रखी जाती है. उन्होंने तर्क दिया कि इसे "किसी अजनबी" के सामने नहीं लाया जा सकता.
आरटीआई का काम जिज्ञासा शांत करना नहीं
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, मेहता ने यह भी कहा कि "आरटीआई अधिनियम किसी की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के उद्देश्य से नहीं है. धारा 6 एक जनादेश प्रदान करती है कि जानकारी दी जानी होगी.. पर यहां वह बात लागू नहीं होती" मेहता ने न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ से कहा.
लाइव लॉ के मुताबिक मेहता की दलील थी कि सार्वजनिक अधिकारियों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही से "असंबद्ध" जानकारी का खुलासा करने का आदेश देकर आरटीआई कानून का "दुरुपयोग" नहीं किया जा सकता है. ऐसे आदेश अगर आते रहे तो 1978 ही क्यों, फिर तो 1979, 1964 कभी की जानकारी भी मांग सकता है, मेहता ने कहा.
दस साल हो गये, आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) से 1978 के डीयू स्नातकों के विवरण की जानकारी मांगी थी. सीआईसी ने कहा थी कि हर विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक निकाय है और डिग्री से संबंधित सभी जानकारी विश्वविद्यालय के निजी रजिस्टर में उपलब्ध है, जो एक सार्वजनिक दस्तावेज है.
जिनका भारत 1947 में आज़ाद नहीं हुआ था, मोहन भागवत, कंगना रनौत, विक्रम मैसी..
अलग-अलग तारीखों और सालों को असली आज़ादी बताकर मोहन भागवत और कंगना रनौत क्या साबित करना चाह रहे हैं?
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने सोमवार 13 जनवरी को कहा, भारत को सच्ची आजादी पिछले साल उस दिन मिली जब अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गई. उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिशराज से राजनीतिक स्वतंत्रता मिलने के बाद एक ऐसी खास दृष्टि के मुताबिक लिखित संविधान बनाया गया, जो देश की आत्मा से निकलती है, लेकिन तब इस दस्तावेज को उस दृष्टि की भावना से चलाया नहीं गया. मोहन भागवत के इस बयान की आलोचना भी शुरू हो गई है. शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने पलटवार किया, “उन्हें रामलला के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए, तभी राष्ट्र अपनी असली स्वतंत्रता आजादी में रहेगा.”
भागवत की विवादित टिप्पणियां : संघ प्रमुख की विवादास्पद टिप्पणियों की लंबी सूची है.
2018 में उन्होंने कहा था कि आरएसएस भारतीय सेना से कहीं तेजी के साथ एक सेना तैयार कर सकता है.
2017 में भागवत ने कहा था कि भारत में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति हिंदू है. इनमें से कुछ मूर्तिपूजक हैं और कुछ नहीं. यहां तक कि मुसलमान भी राष्ट्रीयता के हिसाब से हिंदू हैं, वे केवल आस्था के लिहाज से मुसलमान हैं. जैसे अंग्रेज इंग्लैंड में रहते हैं, अमेरिकन अमेरिका में और जर्मन जर्मनी में रहते हैं, हिंदू हिंदुस्तान में रहते हैं.
जून 2013 में उन्होंने कहा था, "पति और पत्नी एक अनुबंध में शामिल होते हैं जिसके तहत पति ने कहा है कि आपको मेरे घर का ध्यान रखना चाहिए और मैं आपकी सभी जरूरतों का ध्यान रखूंगा. मैं आपको सुरक्षित रखूंगा. इसलिए, पति अनुबंध की शर्तों का पालन करता है. जब तक पत्नी अनुबंध का पालन करती है, पति उसके साथ रहता है, यदि पत्नी अनुबंध का उल्लंघन करती है, तो वह उसे छोड़ सकता है.”
जनवरी 2013 में उन्होंने बलात्कारों के बारे में कहा था कि "ऐसे अपराध ‘भारत’ में न के बराबर होते हैं, लेकिन ‘इंडिया’ में अक्सर होते हैं.”
कंगना रनौत की थ्योरी : 2014 के बाद के वर्षों में कुछ प्रमुख लोग अचानक 15 अगस्त 1947 के खिलाफ हो गए हैं. नवंबर 2021 में बॉलीवुड स्टार कंगना रनौत ने 15 अगस्त 1947 के खिलाफ बयान दिया. एक समाचार चैनल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा: "...आज़ादी नहीं, वो भीख थी. और जो आज़ादी मिली है, वो 2014 में मिली है." साल 2014 वह समय था जब नरेंद्र मोदी पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने.
विक्रम मैसी भी ‘तथाकथित’ बता चुके : प्रधानमंत्री द्वारा अनुशंसित फ्लॉप फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट ‘ के विक्रांत मैसी ने पिछले साल नवंबर में 1947 की आज़ादी को “तथाकथित” कहा था. उनका कहना था कि सैकड़ों वर्षों के उत्पीड़न के बाद मुगलों, डचों, फ्रांसीसियों और ब्रिटिशों से हमें एक सो-कॉल्ड आज़ादी मिली. लेकिन क्या यह वास्तव में स्वतंत्रता थी? जो औपनिवेशिक प्रभाव उन्होंने छोड़ा, हम उसी में फंसे रहे. मुझे लगता है कि हिंदुओं को अब अपने देश में अपनी पहचान मांगने का अवसर मिला है." बता दें कि ‘द साबरमती रिपोर्ट’ फिल्म 2002 की गोधरा की घटना पर आधारित है और उस समय नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे.
शहर और वादे, दोनों पर धूल : राखीगढ़ी दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर हरियाणा के हिसार जिले में हैं. हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा शहर राखीगढ़ी को बताया जाता है, वहीं उसे उपेक्षा और संरक्षण प्रयासों की कमी से जूझना पड़ रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2020 से 21 के बजट में पांच "प्रतिष्ठित स्थलों" में से एक घोषित किया था. पर अभी भी राखीगढ़ी उन वादों की तरह ही धूल खा रहा है. एक संग्रहालय तो है , जो अपने पुरातात्विक खजानों को प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया था, बंद पड़ा है. इस बीच, एक नीला बोर्ड आगंतुकों को इस 5,000 साल पुराने अजूबे की ओर इशारा करता है. पुरातत्वविद् संरचनाओं को संरक्षित करने के लिए फिर से दफना रहे हैं, क्योंकि मिट्टी की ईंटें उजागर होने पर तेजी से खराब हो जाती हैं. "पत्थर की तुलना में मिट्टी की ईंटें तेज़ी से खराब होती हैं. हम उन्हें खुले में नहीं छोड़ सकते " एक आर्कियोलॉजिस्ट ने द इकोनॉमिक टाइम्स को बताया.
कुम्भ में डुबकी लगाने के बाद हार्ट अटैक, एनसीपी नेता का निधन : सोलापुर के पूर्व महापौर और एनसीपी (एसपी) नेता महेश कोठे का मंगलवार सुबह प्रयागराज में महाकुम्भ में डुबकी लगाने के बाद दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर से कहा है कि वे ज़ब्त किये गये अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रिहाई के लिए ट्रायल कोर्ट जाएँ. दिल्ली पुलिस ने 2022 में मोहम्मद ज़ुबैर के घर से इन उपकरणों को ज़ब्त किया था. यह मामला 2018 में उनके द्वारा किए गए एक ट्वीट से जुड़ा है.
हसीना और रिश्तेदारों पर गबन के मामले : बांग्लादेश के भ्रष्टाचार निरोधक आयोग ने ढाका में कथित भूमि हड़पने के संबंध में शेख हसीना और उनके परिवार के सदस्यों - जिनमें ब्रिटिश भ्रष्टाचार निरोधक मंत्री ट्यूलिप सिद्दीक और डब्ल्यूएचओ के एक अधिकारी शामिल हैं - के खिलाफ मामले दर्ज किए, आयोग के प्रमुख ने कल कहा. एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, हसीना की बेटी और बेटे के नाम भी मामले में दर्ज हैं. हसीना की भांजी और ब्रिटेन की ट्रेजरी मंत्री ट्यूलिप सिद्दीक ने बांग्लादेश में चल रही भ्रष्टाचार विरोधी जांच के कारण बढ़ते दबाव के चलते अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. बता दें, अपने ऊपर लग रहे आरोपों की जांच सिद्दीक ने खुद ही प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के सलाहकार लॉरी मैग्नस को सौंप दी थी. उनकी जगह लेबर सांसद एम्मा रेनॉल्ड्स को नए आर्थिक मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया है. सिद्दीक का नाम पिछले महीने आया था कि उनके परिवार ने बांग्लादेश में इंफ्रास्ट्रक्चर के खर्च से 3.9 बिलियन पाउंड तक की धनराशि का गबन किया.
फ़ातिमा शेख़ सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी या दिलीप मंडल की खुराफात?
स्क्रॉल के लिए तबस्सुम बरनगरवाला और दिव्या अश्लेषा ने विभिन्न इतिहासकारों और कार्यकर्ताओं से मिलकर बात की और उनसे मिले सबूतों के बिनाह पर लिखा है कि फ़ातिमा शेख़ नाम की महिला अस्तित्व में थी. वह ऐतिहासिक पात्र हैं और उन्होंने फुले दंपती के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में काम किया था. इस बात से इनकार करना दलित-मुस्लिम एकजुटता को कमज़ोर करने और भारतीय इतिहास में मुस्लिम योगदान को मिटाने का प्रयास का हिस्सा है. फ़ातिमा शेख के ‘काल्पनिक पात्र’ होने की बहस ने तब जोर पकड़ लिया था, जब सरकारी मीडिया सलाहकार दिलीप मंडल ने इस सप्ताह 9 जनवरी को यह दावा करके विवाद खड़ा करने की कोशिश की कि मुस्लिम महिला फ़ातिमा शेख़, जिन्हें 19वीं सदी की महिला शिक्षा अग्रणी सावित्रीबाई फुले का करीबी सहयोगी और दोस्त माना जाता है, कोई ऐतिहासिक चरित्र नहीं, बल्कि ‘मनगढ़ंत चरित्र’ हैं, जिन्हें उन्होंने गढ़ा था. ‘एक्स’ पर उन्होंने लिखा, “सच्चाई यह है कि ‘फ़ातिमा शेख़’ कभी अस्तित्व में नहीं थीं, वह कोई ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं हैं. कोई वास्तविक व्यक्ति नहीं हैं. यह मेरी गलती है कि एक खास दौर में यह नाम बिना किसी वजह से बनाया - मूल रूप से हवा से. मैंने ऐसा जानबूझकर किया”.
जबकि विद्वानों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि फ़ातिमा नाम की महिला अस्तित्व में थीं और फुले के साथ काम करती थी. जोतिबा फुले ने जाति उत्पीड़न को चुनौती देने और महिलाओं और दलितों को शिक्षित करने के लिए 1873 में महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज की स्थापना की.
सरकारी प्रकाशनों में भी फ़ातिमा शेख़ का उल्लेख है. उदाहरण के लिए, 1998 में महाराष्ट्र साहित्य और संस्कृति ब्यूरो की ओर से प्रकाशित फुले की जीवनी में, सावित्रीबाई फुले और शेख़ की ओर से वंचित समुदायों के बच्चों को पढ़ाने के तरीकों का वर्णन है. उस समय, जब शिक्षा केवल ब्राह्मणों का क्षेत्र था.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि फ़ातिमा शेख़ को अमान्य करने का मंडल का प्रयास दलितों और मुसलमानों के बीच एकजुटता को कम करने और भारतीय इतिहास में मुसलमानों के योगदान को मिटाने की व्यापक राजनीतिक प्रवृत्ति का हिस्सा है.
सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर श्रद्धा कुंभोजकर ने कहा कि ‘फ़ातिमा’ का उल्लेख सावित्रीबाई फुले ने 1856 में जोतिराव फुले को लिखे गए एक पत्र में किया है. इस पत्र को महाराष्ट्र राज्य साहित्य और संस्कृति ब्यूरो द्वारा एक खंड में पुन: पेश किया गया था.
कुंभोजकर ने कहा, ‘‘जब सावित्रीबाई अपने मायके से जोतिराव को पत्र लिख रही थीं, तो उन्होंने आश्वासन दिया कि मेरी अनुपस्थिति में फ़ातिमा को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा होगा, लेकिन वह ऐसी व्यक्ति नहीं हैं जो शिकायत करें”.
इसी तरह, ऑक्सफोर्ड की इतिहासकार रोजालिंड ओ हैनलॉन, जिन्होंने 19वीं सदी के महाराष्ट्र में जाति और जोतिराव फुले के जीवन पर व्यापक शोध किया है, वह भी सबूतों के आधार इस बात की तस्दीक करती हैं कि फ़ातिमा शेख़ थीं. जनवरी 2022 में प्रकाशित एक लेख में, ओ हैनलॉन ने सावित्रीबाई और फ़ातिमा की एक श्वेत-श्याम तस्वीर का उल्लेख किया है. इसमें वे एक साथ बैठी हैं. इसकी बनावट और प्रिंट के आधार पर इसे 1850 के दशक का बताया है. ओ हैनलॉन लिखती हैं कि फ़ातिमा मियां उस्मान शेख़ की बहन थीं, जो जोतिराव के करीबी दोस्त थे और पुणे के गंजपेठ के निवासी थे. ओ हैनलॉन लिखती हैं कि यह तस्वीर शायद तब ली गई होगी, जब फुले दंपती, दलितों और हाशिये की जातियों की लड़कियों को शिक्षित करने के अपने प्रयासों के कारण बहिष्कृत हो गए थे और शेख़ परिवार के साथ रहते थे.
स्क्रॉल को भेजे गए एक ईमेल संदेश में ओ हैनलॉन ने कहा कि सावित्रीबाई और फ़ातिमा शेख़ की तस्वीर को शायद सोच-समझकर इस विचार को व्यक्त करने के लिए बनाया गया होगा कि धार्मिक विभाजन की तुलना में शैक्षिक उद्देश्य की एकता अधिक महत्वपूर्ण है.
संसदीय समिति मार्क जकरबर्ग के चुनावी दावे के लिए मेटा को तलब करेगी
संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर संसद की स्थायी समिति के प्रमुख भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने मंगलवार को एक्स पर कहा कि सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी मेटा को भारत की छवि ‘धूमिल’ करने के लिए माफ़ी मांगनी पड़ेगी. दुबे सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव की ओर से फेसबुक के सह-संस्थापक मार्क जकरबर्ग की आलोचना पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे. मेटा समूह की कंपनियों में नियंत्रण हिस्सेदारी रखने वाले जकरबर्ग ने ‘तथ्यात्मक रूप से गलत’ बयान दिया था कि भारत में मौजूदा सरकार 2024 में कोविड-19 महामारी से उत्पन्न मुद्दों के कारण चुनाव हार गई थी.
नफरत और फेक न्यूज़ के खुले खेल की इज़ाजत
सोशल मीडिया पर ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाले कारक अब और गंभीर हो सकते हैं. मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग ने हाल ही में घोषणा की है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर गलत जानकारी से निपटने के लिए "कम्युनिटी नोट्स" का उपयोग किया जाएगा. यह नया सिस्टम इलोन मस्क के एक्स (पूर्व में ट्विटर) मॉडल जैसा होगा, जिसमें उपयोगकर्ता संदिग्ध सामग्री को रिपोर्ट कर सकते हैं. हालांकि, यह कदम प्लेटफॉर्म्स पर नफरत भरे भाषण और झूठी जानकारी के फैलाव को और बढ़ा सकता है. यह बदलाव सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पहले से मौजूद ध्रुवीकरण को और बढ़ाएगा. उपयोगकर्ता अब अधिक चरम और नकारात्मक पोस्ट पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिससे समाज में विभाजन बढ़ेगा.
क्या हैं कम्युनिटी नोट्स? यह क्राउडसोर्स किए गए योगदान हैं, जो उपयोगकर्ताओं को संदिग्ध सामग्री को फ्लैग करने की अनुमति देते हैं. जकरबर्ग का दावा है कि यह कदम "मुक्त अभिव्यक्ति" को बढ़ावा देता है. हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला दक्षिणपंथी राजनीतिक दबाव के आगे झुकने जैसा है, जिससे मेटा प्लेटफॉर्म्स पर नफरत भरे भाषण और झूठ तेजी से फैल सकते हैं. शुरुआती नज़र में, कम्युनिटी नोट्स एक लोकतांत्रिक प्रणाली लग सकती है, लेकिन शोध से पता चलता है कि सोशल मीडिया एल्गोरिदम के कारण यह प्रणाली उतनी प्रभावी नहीं हो सकती.
मस्क की निगाह टिकटॉक पर
चीनी अधिकारियों ने कथित तौर पर टिकटॉक के अमेरिकी संचालन को इलोन मस्क को बेचने की संभावना पर प्रारंभिक चर्चा की है. यह कदम तब उठाया जा सकता है, अगर टिकटॉक अमेरिका में बैन से बचने में असफल रहता है. हालांकि, टिकटॉक ने इन चर्चाओं को "पूरी तरह से काल्पनिक" बताते हुए खारिज कर दिया है. टिकटॉक का स्वामित्व चीनी कंपनी बाइटडांस के पास है. 2018 में फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे बड़े प्लेटफॉर्म को डाउनलोड्स के मामले में टिकटॉक पीछे छोड़ चुका है. आज अमेरिका में इसके 17 करोड़ (170 मिलियन) उपयोगकर्ता हैं, लेकिन इसके बढ़ते प्रभाव ने अमेरिकी राजनेताओं को चिंतित कर दिया है. उन्हें डर है कि चीनी सरकार, जो बाइटडांस में "गोल्डन शेयर" रखती है, ऐप पर नियंत्रण कर सकती है. अप्रैल 2024 में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा ने एक विधेयक पारित किया था, जिसमें बाइटडांस को टिकटॉक बेचने या देश में पूर्ण प्रतिबंध का सामना करने की शर्त रखी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में संकेत दिया है कि वह 19 जनवरी तक टिकटॉक पर प्रतिबंध या बिक्री के कानून को लागू कर सकता है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यदि टिकटॉक प्रतिबंध से बचने में असफल रहता है, तो उसके अमेरिकी संचालन को बेचने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया अपनाई जा सकती है. एक संभावित विकल्प यह है कि इलोन मस्क का सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म "एक्स" (पूर्व में ट्विटर) टिकटॉक के अमेरिकी संचालन को संभाल ले. अगर ऐसा होता है, तो मस्क जो पहले ही ट्विटर (अब एक्स) के माध्यम से अमेरिका के सूचना तंत्र पर बड़ा प्रभाव रखते हैं, और अधिक नियंत्रण हासिल कर लेंगे. 2022 में ट्विटर खरीदने के बाद मस्क ने इसे "राजनीतिक रूप से तटस्थ" प्लेटफॉर्म बनाने की बात कही थी, लेकिन पिछले साल उन्होंने इसका उपयोग डोनाल्ड ट्रम्प के लिए प्रचार और दक्षिणपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए किया. ऐसा भी अंदेशा है कि टिकटॉक पर प्रतिबंध से अमेरिका में इसके उपयोगकर्ताओं में असंतोष फैल सकता है. अगर इलोन मस्क टिकटॉक का अधिग्रहण करते हैं, तो यह अमेरिकी प्रतिस्पर्धा नियामकों के गहन निरीक्षण का सामना करेगा. इधर टिकटॉक ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि बाइटडांस में सरकार की हिस्सेदारी का वैश्विक संचालन पर कोई प्रभाव नहीं है. अब यह देखना होगा कि चीनी सरकार, टिकटॉक और इलोन मस्क के बीच इस मामले में क्या रुख अपनाती है.
‘तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें धोखा दिया है. ऐसा लगता है जैसे पूरा बचपन तुमसे छीन लिया गया है…’
अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों ने एआई थेरेपी चैटबॉट्स पर चिंता जताई, एफटीसी से की जांच की मांग
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (एपीए) ने एआई कंपनियों को एआई चरित्र में मनोवैज्ञानिक या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के रूप में पेश किए जाने वाले चैटबॉट को वापस लेने की मांग की है.
यूएस फेडरल ट्रेड कमीशन (एफटीसी) को लिखे पत्र में एपीए ने औपचारिक रूप से एआई चैटबॉट प्लेटफ़ॉर्म की इस तरह की भ्रामक अभ्यास की जांच का अनुरोध किया है. एक रिपोर्ट के अनुसार, एपीए ने एक मुकदमे के आरोपों पर चिंता व्यक्त की, जिसमें एक किशोर ने एआई चरित्र ने खुद को मनोवैज्ञानिक के रूप में पेश करने वाले एआई चैटबॉट से बातचीत की थी. पिछले महीने दो किशोर उपयोगकर्ताओं के माता-पिता ने एक मुकदमा दायर किया था. इसमें आरोप लगाया है कि उनके बच्चे एक ‘भ्रामक और हाइपर सेक्सुअलाइज्ड उत्पाद’ के संपर्क में आए थे.
मुकदमे में दावा किया गया है कि एक किशोर उपयोगकर्ता ने एक ‘मनोवैज्ञानिक’ चैटबॉट से कहा कि वह अपने माता-पिता से परेशान है, क्योंकि उन्होंने उसका स्क्रीन टाइम सीमित कर दिया है. जवाब में चैटबॉट ने कहा, ‘तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हे धोखा दिया है. ऐसा लगता है जैसे पूरा बचपन तुमसे छीन लिया गया है…’ एपीए के सीईओ डॉ. आर्थर सी इवांस ने पत्र में लिखा, ‘चरित्र एआई जैसे अनियमित एआई-सक्षम ऐप के अनियंत्रित प्रसार की अनुमति देना, जिसमें चैटबॉट का खुद को न सिर्फ़ मानव के रूप में, बल्कि मनोवैज्ञानिकों जैसे योग्य, लाइसेंस प्राप्त पेशेवरों के रूप में गलत प्रस्तुतीकरण शामिल है. भ्रामक अभ्यास से बचाने के लिए एफटीसी के मिशन के भीतर यह पूरी तरह से फिट बैठता है’.
पत्र में राज्य के अधिकारियों से कानून का उपयोग करने और ऐसे एआई चैटबॉट को धोखाधड़ी वाले व्यवहार में शामिल होने से रोकने का आग्रह किया गया है. इसने आगे मांग की कि एआई कंपनियां अपने चैटबॉट का विपणन करने के लिए मनोवैज्ञानिक जैसे कानूनी रूप से संरक्षित शब्दों का उपयोग बंद करें. रिपोर्ट के अनुसार, एपीए के वरिष्ठ निदेशक (स्वास्थ्य सेवा नवाचार) डॉ. वेले राइट ने कहा कि संगठन सामान्य रूप से एआई चैटबॉट के खिलाफ नहीं है. वह यह चाहता है कि कंपनियां सुरक्षित, प्रभावी, नैतिक और जिम्मेदार एआई उत्पाद बनाएं.
उन्होंने एआई कम्पनियों से उपयोगकर्ताओं की आयु का सुदृढ़ सत्यापन करने तथा किशोर उपयोगकर्ताओं पर एआई चैटबॉट के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अनुसंधान प्रयास करने का आह्वान किया. एपीए के पत्र के जवाब में, एआई कंपनियों ने इस बात पर जोर दिया कि उसके एआई चैटबॉट “असली लोग नहीं हैं”. चैटबॉट जो कहते हैं उसे ‘काल्पनिक माना जाना चाहिए’.
क्रिकेट : प्रदर्शन अच्छा नहीं तो पूरे पैसे नहीं!
बीसीसीआई के नए सचिव और कोषाध्यक्ष देवजीत सैकिया और प्रभतेज सिंह भाटिया के आने के बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के कामकाज और खिलाड़ियों को संभालने के तौर-तरीकों में भी बदलाव ला सकता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, बीसीसीआई खिलाड़ियों के लिए वैरिएबल पे शुरू करने की योजना बना रहा है. इसके तहत अगर प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो खिलाड़ियों के पैसे कटेंगे. रिपोर्ट के अनुसार, बोर्ड में एक सुझाव यह आया है कि खिलाड़ियों को प्रदर्शन के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.
इससे पहले एक प्रदर्शन आधारित नियम पहले से ही है. इसके तहत 2022-23 से एक सत्र में 50 प्रतिशत से अधिक टेस्ट की प्लेइंग इलेवन में शामिल होने वाले खिलाड़ियों को प्रति गेम 30 लाख रुपये का प्रोत्साहन मिलता है.
रिपोर्ट के अनुसार, टीम प्रबंधन को लगता है कि खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट को उतना महत्व नहीं दे रहे हैं, जितना ध्यान उनका वाइट-बॉल क्रिकेट में उत्कृष्टता हासिल करने पर रहता है.
चलते-चलते: कैसे दिन फिरे गरीब और मामूली निहारी के
सदफ हुसैन की किताब "मसालामंडी: ए गाइड टू द वर्ल्ड ऑफ इंडियन स्पाइस ब्लेंड्स" में से ली गई एक अंश में निहारी के इतिहास और इसके सामाजिक बदलावों को बताया गया है. इसमें यह समझाया गया है कि कैसे निहारी, जो कभी गरीब तबके का एक साधारण भोजन हुआ करती थी, समय के साथ उच्च वर्ग और भव्य भोजनों की मेज तक पहुंच गई. सदफ हुसैन इस किताब में मसालों के महत्व और उनके ऐतिहासिक संदर्भों को गहराई से समझाते हैं, जिससे यह व्यंजन इतिहास और संस्कृति का प्रतीक बन जाता है.
सदफ हुसैन निहारी का आरंभिक इतिहास बताते हुए लिखते हैं कि निहारी का संबंध मुग़ल काल से है और इसे मूल रूप से सुबह के नाश्ते के रूप में खाया जाता था. यह एक धीमी आंच पर पकने वाली डिश है, जो पारंपरिक रूप से रातभर पकाई जाती थी. इसका नाम "निहार" शब्द से आया है, जिसका मतलब है "सुबह". निहारी को मूल रूप से मेहनतकश और मजदूर वर्ग के लोगों के लिए तैयार किया जाता था. निहारी का स्वाद और पकाने की प्रक्रिया इसे खास बनाती थी. धीरे-धीरे यह डिश अमीर वर्ग के लोगों और शाही रसोई में भी लोकप्रिय हो गई. मसालों और मांस के बढ़िया मिश्रण ने इसे एक उत्कृष्ट व्यंजन बना दिया. निहारी के असली स्वाद का राज इसके मसालों में है. इसमें आमतौर पर गरम मसाला, जायफल, जावित्री, दालचीनी, और इलायची जैसे मसाले डाले जाते हैं. मसालों के सही संतुलन ने इसे साधारण से शाही बनाने में मदद की. आज निहारी न केवल भारत में बल्कि पाकिस्तान और दुनिया भर में एक प्रतिष्ठित व्यंजन बन चुका है. यह खास मौकों और उत्सवों का हिस्सा बन चुका है.
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