15/05/2025 : न आतंकी का पता, न जवाबदेही का | मोदी-ट्रम्प ब्रोमांस कथा में मोड़ | भारत लगाएगा जवाबी टैरिफ | मोदी के सारे कॉर्ड खत्म | विजय शाह पर एफआईआर | चीनी नामकरण खारिज | एक ग्लेशियर की मौत
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
भारत हर हमले से पहले अमेरिका को अवगत करवा रहा था
आतंकवादी मसूद अजहर को मिलेगा 14 करोड़ रुपये
बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ भारत वापस
मुख्यमंत्रियों को बुलाया पर सीमा से लगे वालों को नहीं
पाकिस्तान ने कहा सीज फायर के लिए प्रतिबद्ध, पर…
कर्नल सोफिया कुरैशी पर बकवास करने वाले एमपी के मंत्री पर एफआईआर का हुक्म
बलोचिस्तान के आज़ाद होने का हल्ला
आरएसएस नेता के मुताबिक पहलगाम घटना के पीछे सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार
तीन हफ्ते बाद
न तीन आतंकवादियों का पता, न जवाबदेही का
तीन हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले की जांच में अब तक कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है. सरकार द्वारा इस नरसंहार के पीछे ‘खुफिया तंत्र की विफलता’ स्वीकार करने के बावजूद अभी तक किसी की जवाबदेही तय नहीं हुई है. तीन पाकिस्तानी आतंकवादी, जिन्होंने 25 पर्यटकों और एक स्थानीय घोड़े वाले की हत्या की, अब भी फरार हैं. उनका अब तक कुछ पता नहीं है. सरकार ने जगह-जगह उनके पोस्टर चिपकाए हैं और उनकी जानकारी देने वाले को 20 लाख रुपये का इनाम देने का एलान भी किया है. जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से राज्य की पुलिस केंद्र के अधीन है. साफ है कि केंद्र तीनों आतंकियों का सुराग हासिल करने में नाकामयाब रहा है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सफल हो गया, मगर इन तीनों आतंकियों के बारे में कोई अपडेट नहीं दिया जा रहा है. जबकि पहलगाम आतंकी हमले के कारण ही ऑपरेशन सिंदूर करना पड़ा और भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिनों तक संघर्ष चला. याद रहे, तीनों आतंकियों ने 22 अप्रैल को दक्षिण कश्मीर के पहलगाम के घने जंगलों से घिरी लोकप्रिय बैसरन घाटी में पर्यटकों पर अचानक गोलियां चला दी थीं.
“आतंकवादी अब भी आज़ाद घूम रहे हैं और सुरक्षा एजेंसियां अब तक उनका पता नहीं लगा पाई हैं. यह हमारे आंतरिक खुफिया तंत्र की गिरती हालत को दर्शाता है. पीएम मोदी ने हत्यारों को धरती के आखिरी छोर तक पीछा कर सज़ा देने का जो वादा किया था, उसका क्या हुआ?” एक पूर्व सैन्य अधिकारी ने ‘द टेलीग्राफ’ से कहा. उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर में हमारे पास सुरक्षा बलों की भारी तैनाती है, जिसमें इंटेलिजेंस ब्यूरो, सैन्य खुफिया, पुलिस खुफिया के अलावा इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस भी शामिल है. सरकार इस गंभीर सुरक्षा विफलता की जिम्मेदारी कब तय करेगी?”
सीमा सुरक्षा बल के एक पूर्व महानिदेशक ने कहा, “जब तक हम अपनी खुफिया व्यवस्था में मौजूद कमियों और खामियों को तत्काल दूर नहीं करेंगे, तब तक ऐसे घटनाक्रम बार-बार होते रहेंगे.” उन्होंने कहा, “आखिर आतंकवादी सीमा पार कर एक ऐसे क्षेत्र में लोगों की हत्या कैसे कर सकते हैं, जहां इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बल तैनात हैं? हम सभी जानते हैं कि इन आतंकवादियों को पाकिस्तान में पनाह और समर्थन मिलता है, और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान हमारे सशस्त्र बलों द्वारा नौ आतंकी लॉन्चपैड्स पर की गई सटीक कार्रवाई स्वागत योग्य कदम थी. लेकिन हमें अपने घर को भी व्यवस्थित करना होगा.”
27 अप्रैल को बिहार में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि वे आतंकवादियों का ‘धरती के आखिरी छोर तक पीछा करेंगे’ और ‘हर आतंकवादी और उनके मददगारों की पहचान कर, उन्हें खोजकर सजा देंगे’. सर्वदलीय बैठक के दौरान विपक्ष ने सरकार से पहलगाम नरसंहार के पीछे सुरक्षा चूक को लेकर सवाल किए और जांच तथा जवाबदेही तय करने की मांग की. इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने स्वीकार किया कि ‘सुरक्षा में चूक’ हुई है.
मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) यश मोर, जिन्होंने 2001 से 2003 के बीच पहलगाम में एक मेजर के रूप में सेवा दी थी, ने कहा कि "हमें स्वीकार करना चाहिए कि किसी स्तर पर खुफिया तंत्र की विफलता हुई है. यह एक बड़ी समस्या है. जवाबदेही कहां है, चाहे वह कारगिल हो, पुलवामा, उरी या फिर गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ? क्या हमने कभी जवाबदेही तय की है?"
पहलगाम हमले के एक दिन बाद, सुरक्षा एजेंसियों ने तीन संदिग्धों के स्केच जारी किए, जिन पर नरसंहार को अंजाम देने का शक है. इनकी पहचान आसिफ शेख फौजी, सुलेमान शाह और अबू तल्हा के रूप में हुई, जिन्हें पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के प्रॉक्सी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (टीआरएफ) का सदस्य माना जाता है. इनके कोड नाम मूसा, यूनुस और आसिफ थे, और ये पहले भी पुंछ में आतंकी गतिविधियों में शामिल रह चुके हैं तथा क्षेत्र में आतंकी हमलों का इतिहास रखते हैं. इनके स्कैच पीड़ितों के बयानों के आधार पर तैयार किए गए थे. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एएनआई), जिसने जम्मू-कश्मीर पुलिस से जांच अपने हाथ में ली है, ने अब तक जांच की प्रगति पर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है.
विश्लेषण
ट्रम्प और मोदी : ये रिश्ता क्या कहलाता है?
निधीश त्यागी
जिस अकड़ और धौंस से नरेन्द्र मोदी भारत के लोगों और कैमरे के सामने खुद को पेश करते हैं, डोनाल्ड ट्रम्प के सामने नहीं. डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल के भारत पाक संघर्ष में यह साफ कर दिया कि अपनी इमेज बनाने के चक्कर में वह किसी से भी गुरेज नहीं करने वाले. अपने दोस्त नरेन्द्र मोदी का भी नहीं. नरेन्द्र मोदी जो खुद आगे बढ़कर ट्रम्प के गले लगे. हर फोटो में देखा जा सकता है कि कौन किसके गले लग रहा है, और कौन उसको लेकर असहज है. जितना त्याग, बलिदान, समर्पण मोदी ने ट्रम्प के लिए दिखाया है, उतना कौन कर सकता है. वे अमेरिका जाकर ट्रम्प का चुनाव प्रचार तक कर के आये. चाय की गुमटी पर जैसे लड़के अर्थपूर्ण तरीके से हाथ पर हाथ मार कर हंसते हैं, वैसे हंसे. राष्ट्रपति बनने पर बिना राजकीय अतिथि बने नरेन्द्र मोदी व्हाइट हाउस जाकर बधाई दे आये. इतना कुछ तो किया.
पर ट्रम्प एक व्यापारी है, जो दुनिया को सिर्फ सौदे करने की नजर से देखता है. वह मोदी के सामने भी भारत की टैरिफ पॉलिसी का मजाक बनाता रहा. भारत को अपमानित करता रहा. और मोदी ने फिर भी यह कहा कि ट्रम्प की राह पर चल कर मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) की तरह मोदी भी मीगा (मेक इंडिया ग्रेट अगेन) करना चाहते हैं. हालांकि पिछले दस साल से वे ही भारत पर राज कर रहे हैं और मागा लफंगों की असलियत पूरी दुनिया ने देखी थी, जब उन्होंने अपने ही कैपिटल हिल पर हिंसक हमला बोल दिया था. बाकी देशों की ही तरह भारत ने भी टैरिफ मामले में रियायतें लेने की कोशिशें की और अमेरिकी व्यापार को मजबूत करने की भी. फरवरी 2025 में जब मोदी वाशिंगटन डीसी गये तो भारत ने रक्षा, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्र में 500 बिलियन डॉलर के करार भी किये. जिसमें एफ-15 फाइटर जेट के सौदे भी शामिल थे. इस बार जीतने के बाद मोदी ने तुरंत ट्रम्प के अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफार्म पर एकाउंट खोल लिया था. ये प्लेटफार्म तब बनाया गया था, जब डोनाल्ड ट्रम्प को झूठ पर झूठ बोलते रहने के कारण ट्विटर या एक्स पर से हटा दिया गया था.
जितने पलक पांवड़े बिछा सकते थे, मोदी ने ट्रम्प के लिए बिछाए. हालांकि दोस्ती से ज्यादा उसमें गरज का समीकरण भी था. साफ दिख रहा था किसे किसकी जरूरत है. भारत ने सब्र का रास्ता अपनाया, जबकि चीन, कनाडा, मैक्सिको जैसे देशों ने अमेरिकी धौंस को धता बताते हुए बराबरी का जवाब दिया.
उम्मीद की जानी चाहिए थी, ट्रम्प इस दोस्ती का खयाल रखेंगे. और अपने दोस्त के देश का भी. पर ट्रम्प ने खुले आम और बार-बार यह कहकर कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम उन्होंने और उनके प्रशासन ने करवाया, और वह भी व्यापार की धमकी देकर मोदी से वह श्रेय छीन लिया, जो वह खुद को देना चाहते थे. यह कहकर कि अमेरिका दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर मध्यस्थता करवाना चाहता है वह भी किसी तीसरे देश में, भारत की अब तक की रही विदेश नीति और स्थिति पर भी सवाल खड़े कर दिये. किसे उम्मीद होगी कि जो शख्स खुद इतना उलझा हुआ होगा और जिसने पूरी दुनिया को उलझाया हुआ था, वह अपने दोस्त को इस तरह से फंसा देगा. भारत सरकार ने ट्रम्प के योगदान को बजाय मानने के कहा कि पाकिस्तान की मांग पर सीज़ फायर किया गया है.
मोदी जब देश के सामने बोलने आये तो बजाए विचार और तर्कों के उन्होंने वही किया, जो वे सबसे अच्छा करते हैं. भावनात्मक तौर पर उकसाने वाली बातें. उन्होंने सिंदूर को लेकर भारतीयों को सेंटी करने की कोशिश की, ये दावा किया ये ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है, सिर्फ एक ब्रेक लिया गया है और सरहद के पार आतंकवादियों (सौ) और उनके समर्थकों को भारी नुक्सान पंहुचाया है. फिर उन्होंने यह भी गरजते हुए कहा कि पाकिस्तान सरकार से अब सिर्फ दो ही मुद्दों पर बात होगी एक आतंकवाद पर दूसरा पाकिस्तान नियंत्रित कश्मीर पर. ऐसा कहते हुए उनकी उंगली को कैमरे ने कांपते हुए पकड़ा. तैश इतना अधिक था. अपने भाषण में बुद्ध को भी लपेट कर उन्होंने बिना शक्ति के शांति न होने की भी बात शायद सिर्फ इसलिए कही कि उस रात बुद्ध पूर्णिमा थी. ट्रम्प का जिक्र ही नहीं.
जब ये सब चल रहा था तो डोनाल्ड ट्रम्प लगातार इसी बात को किसी और ही तरीके से पेश कर रहे थे, जिससे मोदी के दावे पंचर होते दिख रहे थे. जहां पाकिस्तान खुले आम अमेरिका को शांति करवाने के लिए धन्यवाद दे रहा था, भारत अमेरिकी भूमिका के बारे में कुछ भी साफ नहीं कह रहा था. मोदी सिंदूर शब्द पर लगे रहे और शांति की बहाली में अपने दोस्त की भूमिका और दावे पर एक भी शब्द नहीं बोले. मोदी को अपनी पार्टी और मतदाताओं की तरह ही शायद अंदाजा था कि सीज़ फायर की बात गले नहीं उतर रही है और इसलिए वे अपने काबिल अफसरों के बचाव में भी नहीं आये, जिनका सोशल मीडिया पर भक्त ब्रिगेड ने जुलूस निकाल रखा था.
भारत काफी लंबे समय से अपनी आर्थिक प्रगति, अपने लोकतंत्र, अपनी धर्मनिरपेक्षता, अपने आईटी उद्योग के कारण पाकिस्तान को काफी पीछे छोड़ चुका था. वह खुद को चीन के मुकाबिल मानना चाह रहा था. पर ट्रम्प ने अपने भाषण में दोनों देशों और उनके प्रधानमंत्रियों को बराबर की तवज्जो देकर न सिर्फ नरेन्द्र मोदी का स्ट्रांगमैन वाला नैरेटिव लगभग ध्वस्त कर दिया, बल्कि उस हाइफन को भी पुनर्प्रतिष्ठित कर दिया, जिसके साथ भारत-पाकिस्तान का नाम एक ही सांस में लिया जाता था.
जवाब देना मुश्किल होता जा रहा है. सीज़ फायर के खिलाफ भक्तों की सोशल मीडिया आर्मी भन्ना कर भारत सरकार के विदेश सचिव और भारतीय सेना की अफसर के खिलाफ अपनी उल्टी करने लगी थी, जिसमें पार्टी के मंत्री, संत्री और बाकी गणमान्य भी शामिल रहे. उधर मीडिया हर रात कराची, रावलपिंडी और लाहौर पर कब्जा किये जा रहा था. सीज फायर उस वीडियो गेम के बीच बिजली जाने जैसा था. अब पार्टी सरकार के खिलाफ हो रही थी, और इतनी बिफरी हुई थी, कि मोदी जी के भाषण में उन लोगों का जिक्र भी नहीं था, जो अपनी ड्यूटी बजाते हुए ख़ामख्वाह इन बदतमीजियों के शिकार बनाए जा रहे थे. मोदी और उनके मंत्री सरकारी अफसरों की शील्ड बनाकर पीछे छिप रहे थे. सर्वदलीय बैठक में भी न जाने का कारण इसके अलावा और क्या हो सकता था, कि सवाल किये जाते और जवाब देते नहीं बनता.
अपनी सरकार, अपनी विदेश नीति, अपने दोस्त के बड़बोले बयान, कश्मीर के लोगों के योगदान को संपादित कर मोदी का भाषण उन बातों के कारण महत्वपूर्ण रहा, जो उन्हें कहनी थी. उनके भाषण देते ही उनकी पार्टी हाथों में सिंदूर, कंधे में तिरंगा लेकर इस मोहभंग को मैनेज करने निकल पड़ी. जो जंग देश की थी, उसके भाव पर कब्जा करने की भयानक जल्दी थी. दोस्त ने जो किया सो किया, अब अपने वोटर खोने का ख़तरा वे नहीं उठा सकते थे.
भले ही उसके लिए सच की बगल से बार-बार निकलना पड़े. इन सवालों को ‘हरकारा’ पहले ही पूछ चुका है. पहलगाम का इंटेलिजेंस और सिक्योरिटी फेल्यर, उन चार आतंकवादियों के सुराग और सुबूत, दुनिया को ये तसल्लीबख्श तरीके से पाकिस्तान की भूमिका स्थापित न कर पाना, सर्वदलीय बैठक से कन्नी काटना. और अब ट्रम्प के बयानों का सच पचा नहीं पाना और अगर वह झूठ है तो उसे उजागर न कर पाना.
मोदी ने देश के सामने जिस जीत का एलान किया, ट्रम्प ने कहा कि ड्रॉ करवा दिया मैच. और सीज़ फायर के अगले ही दिन अमेरिका ने चीन से अपने टैरिफ वार को भी विराम देकर समझौता कर लिया. क्या इसकी वजह भारत-पाकिस्तान के सैन्य संघर्ष में चीनी हथियारों का प्रदर्शन था, जिसे लेकर भारत अभी तक चुप है, पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया और स्टाक मार्केट नहीं.
इंडिया केबल के मुताबिक भारतीय मूल के अमेरिकी पत्रकार फरीद जकारिया ऐसे तीन उदाहरण गिनाते हैं जब मोदी ने ट्रम्प की आलोचना करने का साहस नहीं दिखाया. 1. निर्वासित भारतीयों को हथकड़ी पहनाना. 2. टैरिफ में वृद्धि. 3. भारत को पाकिस्तान से जोड़ना और खुद को मध्यस्थ के रूप में पेश करना. वे आगे पूछते हैं कि भारत कनाडा से सीख लेकर ट्रम्प को उसी की भाषा में जवाब क्यों नहीं देता?
ट्रम्प टैरिफ पर भारत जवाबी कार्रवाई करेगा
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को कुछ चुनिंदा अमेरिकी निर्मित वस्तुओं पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाने के अपने प्रस्ताव के बारे में सूचित किया है. इसका उद्देश्य भारतीय इस्पात और एल्युमिनियम निर्यात पर वाशिंगटन द्वारा लगाए जा रहे लगातार शुल्कों का जवाब देना है. गोयल दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत में भाग लेंगे, नई दिल्ली ने कहा कि इस कदम का रूप रियायतों को निलंबित करने और विशिष्ट अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने जैसा होगा. बयान में कहा गया है, "रियायतों या अन्य दायित्वों का प्रस्तावित निलंबन संयुक्त राज्य अमेरिका से उत्पन्न होने वाले चयनित उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने के रूप में होगा."
भारत हर हमले से पहले अमेरिका को अवगत करवा रहा था
न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट है कि अमेरिकी और भारतीय दोनों राजनयिक ब्योरों के अनुसार, भारत द्वारा पाकिस्तानी सैन्य मुख्यालय और उस इकाई के 15 मील के भीतर एक हवाई क्षेत्र पर हमला करने के बाद चिंता बढ़ गई थी जो देश के परमाणु हथियार भंडार की देखरेख और सुरक्षा करती है. एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान पर हमला करने से पहले, ऐसा करने के अपने इरादे के बारे में ट्रम्प प्रशासन के साथ संपर्क में था, और उसने शुरुआती हमलों के बाद मिस्टर ट्रम्प के सलाहकारों को जानकारी दी थी. अधिकारी ने कहा कि एक बार संघर्ष बढ़ने के बाद, वेंस ने मोदी को फोन कर "हिंसा में नाटकीय वृद्धि की उच्च संभावना" के बारे में अमेरिकी चिंता साझा की. अधिकारी ने कहा कि मिस्टर मोदी ने सुना, लेकिन भारत ने लड़ाई खत्म करने का अपना फैसला खुद किया, झड़पों की एक और रात के बाद जिसमें भारतीय सेना ने कई पाकिस्तानी ठिकानों पर हमला किया. अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान ने युद्धविराम की व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए सीधे फोन करने का अनुरोध किया.
दोनों डीजीएमओ तनाव कम करने पर कर सकते हें चर्चा
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे के बावजूद कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ अब भी सक्रिय है और युद्धविराम लागू नहीं है, भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने की योजनाओं पर चर्चा होने की उम्मीद है. इस कदम में सैनिकों, उपकरणों और प्लेटफॉर्म को मोर्चे से हटाकर अप्रैल से पहले के स्थानों पर ले जाना शामिल है. तनाव कम करने की दिशा में उठाया गया यह शांत कदम भारत सरकार के सार्वजनिक रुख से बिल्कुल अलग है, जिससे सैन्य अभियानों की वास्तविक स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं. वहीं आधिकारिक बयानबाजी तत्परता का संकेत देती है.
भारत और पाकिस्तान दोनों ने उच्चायोग के अधिकारी को देश छोड़ने को कहा : भारत ने मंगलवार को नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग के एक अधिकारी को जासूसी रैकेट में संलिप्तता के कारण निष्कासित कर दिया. अधिकारी को 24 घंटे के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है. इसके बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग के एक कर्मचारी को ‘असंगत’ गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप लगाकर 24 घंटे के भीतर पाकिस्तान छोड़ने का निर्देश दे दिया.
आतंकवादी मसूद अजहर को मिलेगा 14 करोड़ रुपये : पाक के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हमले में मारे गए लोगों के कानूनी उत्तराधिकारियों को प्रति मृतक एक-एक करोड़ पाकिस्तानी रुपये (लगभग 30 लाख भारतीय रुपये) का मुआवजे देने की घोषणा की है, साथ ही भारत के हमलों में नष्ट हुए घरों के पुनर्निर्माण के लिए भी प्रतिबद्धता जताई है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के प्रमुख मसूद अजहर को 14 करोड़ रुपये मिल सकता है, क्योंकि हाल ही में भारतीय हवाई हमलों में उसके 14 करीबी लोगों की कथित तौर पर मौत हो गई थी.
उरी के ग्रामीण 3 बेघर परिवारों को आश्रय देने के लिए एकजुट हुए
भारत सरकार ने अब तक सीमा पर रहने वाले उन लोगों को राहत राशि नहीं दी है, जिनके घर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तानी सेना द्वारा मोर्टार और तोपखाने की गोलाबारी में क्षतिग्रस्त हो गए थे. ऐसे में, जिन परिवारों ने पाक गोलाबारी में अपने घर खो दिए हैं, उन्हें खुद ही अपना जीवन-यापन करना पड़ रहा है. अनिश्चितता के माहौल के बीच उरी के सलामाबाद गांव के निवासियों ने निराशा के बजाय एकजुटता को चुना है. वे एक साथ मिलकर तीन परिवारों के लिए अस्थायी शेड का निर्माण कर रहे हैं, जिनके घर नियंत्रण रेखा के पार से गोलाबारी में नष्ट हो गए थे. सलामाबाद के निवासी शौकत चेक ने कहा कि गांव में दो घर पूरी तरह से नष्ट हो गए, जबकि तीन अन्य आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए. तीन भाई - तालिब हुसैन नाइक, यूनिस नाइक और फिरोज दीन नाइक - उनके परिवार बेघर हो गए हैं. शौकत ने बताया, “वे मजदूर हैं. उन्होंने अपने जीवन की कमाई घर बनाने में खर्च कर दी थी, जो अब जर्जर हो चुका है. इसे अब शायद ही आश्रय स्थल कहा जा सकता है. इसके अलावा उन्होंने अपनी आजीविका भी खो दी है, क्योंकि पूरा गांव और उरी में नियंत्रण रेखा से सटे अन्य गांव भारी गोलाबारी के कारण सुरक्षित स्थानों पर भाग गए हैं.” उन्होंने कहा, "चूंकि सरकार अब तक उनकी मदद को आगे नहीं आई है, ग्रामीणों ने सरकार द्वारा राहत वितरित किए जाने तक तीनों परिवारों के लिए अस्थायी आश्रय के रूप में एक शेड बनाने का फैसला किया है.
जीवन दुःस्वप्न सा हो गया है : द वायर के लिए जहांगीर अली ने रिपोर्ट की है कि जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा से सटे गांवों के निवासी न केवल अब भी स्कूलों, मस्जिदों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर रह रहे हैं, जिन्हें घर में अप्रयुक्त गोला-बारूद के डर से सार्वजनिक आश्रयों में बदल दिया गया है, बल्कि उन्होंने भूमिगत बंकरों की कमी या यहां तक कि पूरी तरह से अनुपस्थिति भी महसूस की है, जिनके बारे में उनका कहना है कि पाकिस्तानी गोलाबारी के दौरान हताहतों की संख्या कम हो सकती थी. अली ने पुंछ के नब्बे वर्षीय मूल निवासी सईद हुसैन से भी बात की, जिन्होंने कहा : “भारत और पाकिस्तान ने तीन युद्ध लड़े, लेकिन आतंकवाद की समस्या बनी हुई है. जान-माल के नुकसान के अलावा क्या हासिल हुआ है?”
राकेश कायस्थ
क्या मोदी के सारे कॉर्ड खत्म हो गये?
तथ्य और तर्क भावनाओं से परे होते हैं और सच्चाई अक्सर तल्ख होती है. सीमा पर ड्रोन उड़े और मिसाइले दगीं, लेकिन इसके साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक झटके में अपने सारे पत्ते एक साथ फेंक दिये. उनके पास अब कुछ भी ऐसा नहीं बचा, जो आनेवाले दिनों में उन्हें राजनीतिक रूप से मजबूत कर पाये या राजनीतिक ढलान पर उनकी फिसलन को रोक सके. ऐसा मैं क्यों कह रहा हूं, आइये बिंदुवार समझते हैं;
प्रधानमंत्री मोदी ने एक महीने भीतर अपने राजनीतिक जीवन के तीन सबसे बड़े फैसले लिये हैं और वो भी ताबड़तोड़. ये तीनों फैसले उनके लिए मेक ऑर ब्रेक हैं. शुरुआत पहले फैसले से. 1 अप्रैल 2025 से केंद्र सरकार की इनकम टैक्स कटौती लागू हो गई. जब बजट में इसकी घोषणा हुई थी तो कुछ लोगों को यकीन नहीं हुआ था. कहां ये सरकार डीटीसी (डायरेक्ट टैक्ट कोड) लाकर टैक्स वसूली और ज्यादा बढ़ाने वाली थी, फिर ये यू टर्न क्यों? 2014 के बाद से केंद्र सरकार का हर कदम मिडिल क्लास और छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ने वाला रहा है. चाहे वो शार्ट टर्म और लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स को, डिविडेंड टैक्स या फिर नोटबंदी. तो फिर ऐसा क्या हो गया कि सरकार को इनकम टैक्स में ऐतिहासिक कटौती करनी पड़ी? ऐसा इसलिए हुआ कि क्योंकि इकॉनमी की हालत बेहद खराब है. जनता की क्रय-शक्ति घटती जा रही है और बाजार में खरीदार नहीं है. जो लोग घुमा-फिराकर यह कहते थे कि सरकार की ओर से पेश किये जाने वाला जीडीपी का आंकड़ा वास्तविकता से मेल नहीं खाता, उनमें से कुछ लोग खुलकर कहने लगे कि आंकड़े फर्जी है और अर्थव्यस्था महंगाई जनित दीर्घकालिक मंदी (Stagflation) के लंबे कुच्रक में फंसने वाली है. ऐसे में सरकार को मजबूरन टैक्स कटौती करनी पड़ी, ताकि बाजार में डिमांड लौटे और इसका असर कंपनियों के वित्तीय नतीजों पर दिखाई दे.
इनकम टैक्स कटौती से सरकार पर लगभग सवा लाख करोड़ का बोझ पड़ेगा. लगभग इतना ही बोझ सॉवेरन गोल्ड बांड के भुगतान का है. भारत जैसी अर्थव्यवस्था में ढाई-तीन लाख करोड़ रुपये बहुत होते हैं. अर्थशास्त्रियों का एक तबका इस बात को लेकर सशंकित है कि अगर मार्केट में डिमांड पूरी तरह वापस आएगा इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती है, क्योंकि मध्यमवर्ग अपने भविष्य को लेकर डरा हुआ है और वो खर्च करने के बदले बुरे वक्त के लिए पैसे बचा रहा है. अगर अर्थव्यस्था का पहिया घूमना शुरू नहीं हुआ, तो इस साल के अंत तक देश गंभीर संकट में होगा. आर्थिक मोर्चे पर उठाये गये अपनी तरह के इस पहले प्रो-एक्टिव कदम के लाभ सीमित हैं, क्योंकि इकॉनमी का मसला सिर्फ डिमांड की कमी नहीं है. उत्पादन संतोषजनक ढंग से नहीं बढ़ रहा है. नये रोजगार सृजित नहीं हो रहे हैं. अंतराष्ट्रीय व्यापर की चुनौतियां हैं. ऐसे में उपाय के फायदे तो सीमित हैं, लेकिन इसके विफल होने के खतरे बहुत बड़े हैं. ऐसा हुआ तो चीजें और ज्यादा बिगड़ेंगी.
टैक्स कटौती के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जीवन का दूसरा सबसे बड़ा फैसला पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव के रूप में लिया. प्रतिरक्षा मामले में मोदी की बंद मुट्ठी लाख की थी. उनके कोर वोटर यही मानते थे कि जिस दिन भी पाकिस्तान से आमना-सामना हुआ, मोदी का न्यू इंडिया चंद दिनों में दुश्मन को धूल चटा देगा. लेकिन इस सैन्य टकराव के नतीजों ने मोदी के लिए अप्रिय सवालों का पिटारा खोल दिया.
1962 के बाद संभवत: यह सीमा पर पहला ऐसा सैन्य अभियान है, जिसमें देश को पर्याप्त नुकसान उठाकर वापस लौटना पड़ा. सैनिक कार्रवाई किस उदेश्य से की गई और इसे अमेरिकी दबाव में एक झटके में खत्म क्यों किया गया, इससे जुड़े ज्यादातर सवालों के जवाब सरकार के पास नहीं हैं.
मजबूत और सुरक्षित भारत के नरेंद्र मोदी के दावे की अधिकतम परीक्षा हो गई. गलवान में चीन के अनधिकृत कब्जे पर सरकार की चुप्पी के बाद पाकिस्तान के साथ अपमानजनक सीजफायर ने देश को बता दिया कि प्रतिरक्षा मामले में मोदी भारत के लिए अधिकतम क्या हासिल कर सकते हैं.
अब दुश्मन को मिटाने और दुनिया भर में डंका बजाने की कोई और नई कहानी बेच पाना प्रधानमंत्री मोदी के लिए लगभग असंभव होगा. मोदी के कोर वोटर भी कश्मीर के मामले में अमेरिकी दखलंदाजी की उस कोशिश को स्वीकार नहीं करेंगे, जिसकी आशंका ऑपरेशन सिंदूर के बाद पैदा हुई है.
नरेंद्र मोदी ने अपने वोटरों को लिए एक स्थायी फॉर्मूला बनाया है, जो पाकिस्तान = मुसलमान = देशद्रोही = विपक्ष है. मोदी जब भी पाकिस्तान का नाम लेते हैं उनके वोटरों के जेहन में आम भारतीय मुसलमान की छवि उभरती है. लेकिन पहलगाम हमले के बाद से जिस तरह पूरे देश ने एकजुटता दिखाई और इस मामले के सांप्रदायिक बनाने की कोशिशों को विफल कर दिया, उससे मोदी की राजनीति को बहुत बड़ा धक्का लगा है.
पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव के दौरान इस देश के मुसलमानों ने अपना अल्ट्रा नेशनलिस्ट चेहरा दिखाया है. हर शहर मस्जिदों से भारत की जीत की प्रार्थना की गई और मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर उतरे. सीमा पर मुसलमानों ने भी शहादत दी. ऐसे में आने वाले चुनावों में अपने कथित राष्ट्रवाद की आड़ में मोदी के लिए छिपा हुआ सांप्रदायिक कार्ड खेलना काफी मुश्किल होगा.
अगर मोदी 2024 के चुनाव की तरह खुलकर मुसलमानों के खिलाफ बयानबाजी करते हैं, तब भी संदेश यही जाएगा कि वो आंतरिक सुरक्षा में विफल रहने और उसके बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने में मिली नाकामी से ध्यान बंटाने के लिए ऐसा कर रहे हैं.
अब आते हैं, नरेंद्र मोदी के आखिरी पत्ते पर, जो बेहद चौकाने वाला था. जिस वक्त देश पहलगाम हमले का शोक मना रहा था, उसी दौरान सरकार ने अचानक जातिगत जनगणना कराने की घोषणा की. विपक्ष के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान यह सबसे बड़ी मांग थी. दूसरी तरफ मोदी इसे अर्बन नक्सलों का एजेंडा बता रहे थे और रैलियों में अपने वोटरों को यह कहकर डरा रहे थे कि ये उनका आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने की साजिश है.
फिर रातो-रात ऐसा क्या हो गया कि प्रधानमंत्री मोदी को जातिगत जनगणना की मांग स्वीकार करनी पड़ी और वो भी पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की तैयारियों के बीचो-बीच. सारा खेल यही हैं और प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक करियर का आखिरी दांव भी यही है. आरएसएस भारत के वंचित समूहों में प्रतिनिधित्व को लेकर चल रही बेचैनी ठीक से समझ रहा है. संघ इस बात को लेकर भयभीत है कि अगर प्रतिनिधित्व के सवाल ने सिर उठाया और निचली हिंदू जातियां अंबेडकर के दिखाये गये आधुनिकता के रास्ते पर चलीं तो फिर हिंदू राष्ट्र के खंभे पूरी तरह उखड़ जाएंगे.
इसलिए नरेंद्र मोदी अब अपना आखिरी दांव खेलते हुए कट्टर ओबीसी बनकर वोटरों के बीच जाएंगे, उन्हें यकीन है कि जिस तरह विपक्ष के वेलफेयर स्कीम को रेवड़ी बताते-बताते उन्होंने डायरेक्ट सब्सिडी को कामयाबी के साथ अपना हथियार बना लिया, उसी तरह सामाजिक न्याय के चैंपियन बन जाएंगे. खुद मोदी ही नहीं, बल्कि बीजेपी-आरएसएस का राजनीतिक भविष्य भी इसी दांव पर निर्भर है. आगे क्या होगा इस बारे में कोई दावा करना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि मोदी के पास अब कोई नया पत्ता नहीं बचा है. अगर आपको लगता हो तो जरूर बताइये.
(लेखक के फेसबुक पोस्ट से)
अरुणाचल में नाम बदलने के प्रयास खारिज
भारत ने अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम बदलने के चीन के "निरर्थक और हास्यास्पद प्रयासों" को खारिज कर दिया है तथा चीन से सटे पूर्वोत्तर के इस राज्य को अपना "अभिन्न और अविभाज्य" हिस्सा बताया है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने मीडिया से बातचीत में कहा, "हमने देखा है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम रखने के अपने निरर्थक और हास्यास्पद प्रयास जारी रखे हैं. अपने सिद्धांत आधारित रुख के अनुरूप, हम ऐसे प्रयासों को पूरी तरह से खारिज करते हैं. नामकरण इस अटल सच्चाई को नहीं बदल सकता कि अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा था, है और रहेगा. "
भारत का यह बयान चीन के उस हालिया कदम के बाद आया है, जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश के 27 स्थानों के लिए नए नाम घोषित किए हैं. चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना क्षेत्र मानता है और उसे 'जंगनान' या 'दक्षिण तिब्बत' कहता है. चीन अक्सर भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश दौरे और वहां पर होने वाले विकास कार्यों का भी विरोध करता रहा है.
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने बुधवार को रिपोर्ट किया कि अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के लिए नवीनतम नाम चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रकाशित किए गए हैं. चीनी नागरिक मामलों के मंत्रालय ने पहली बार 2017 में अरुणाचल प्रदेश के छह स्थानों के लिए मानकीकृत नामों की सूची जारी की थी. इसके बाद 2021 में 15 स्थानों के नाम और 2023 में 11 और नामों की दूसरी और तीसरी सूची जारी की गई. पिछले वर्ष अप्रैल में भारत ने 2023 की सूची का कड़ा विरोध किया था. पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद के कारण द्विपक्षीय संबंध सामान्य करने के प्रयासों के बावजूद, चीन ने 2024 में नामों की एक और सूची जारी की, जिससे भारत ने एक बार फिर विरोध दर्ज कराया था.
बीएसएफ जवान पूर्णम कुमार शॉ भारत वापस
पाकिस्तान ने बुधवार हुगली के रिशरा निवासी और 182वीं बटालियन के हेड कांस्टेबल 37 वर्षीय शॉ को भारत को सौंप दिया. वह 23 अप्रैल को फिरोजपुर के पास ‘गलती से’ सीमा पार कर गए थे, तब से पाकिस्तान रेंजर्स की हिरासत में थे. बीएसएफ के एक सूत्र ने बताया, “हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से और स्थापित प्रोटोकॉल के अनुसार किया गया.” ऑपरेशन सिंदूर से पहले कई बैठकों के बावजूद जवान को रिहा नहीं किया गया, जिससे बंगाल में उनका परिवार संकट में था. उनकी तीन महीने की गर्भवती पत्नी रजनी शॉ अपने पति की रिहाई में मदद के लिए बीएसएफ अधिकारियों से अनुरोध करने के लिए खुद पठानकोट गई थीं. टाइम्स ऑफ इंडिया के युद्धवीर राणा और अजय सूरा के अनुसार, सामान्य परिस्थितियों में उन्हें उसी दिन या अगले दिन वापस कर दिया जाता, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने इस प्रक्रिया को रोक दिया.
अन्य बीएसएफ जवानों के साथ बीच में पूर्णम कुमार शॉ. पीटीआई
मुख्यमंत्रियों को बुलाया पर सीमा से लगे वालों को नहीं : एक ऐसे कदम के तहत, जिससे राजनीतिक हलकों में हैरानी हुई है, अगले हफ्ते 25 मई को दिल्ली में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर केवल एनडीए-शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उप-मुख्यमंत्रियों को ब्रीफ किए जाने की उम्मीद है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि ब्रीफिंग सूची में पंजाब, जम्मू और कश्मीर, और हिमाचल प्रदेश जैसे सीमावर्ती राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के नेता शामिल नहीं हैं – ये ऐसे क्षेत्र हैं, जो सीमा पार शत्रुता से सीधे प्रभावित होते हैं. उन्हें बाहर रखा जाना राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों के परेशान करने वाले राजनीतिकरण का संकेत देता है, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों को दरकिनार कर चुनाव वाले राज्यों जैसे बिहार के सहयोगियों का पक्ष लिया गया है. जब सीमावर्ती राज्य सबसे ज्यादा मार झेलते हैं, लेकिन चर्चा से दूर रहते हैं, तो इससे साफ पता चलता है कि इस प्रशासन में किसकी सुरक्षा वास्तव में मायने रखती है.
पाकिस्तान ने कहा सीज फायर के लिए प्रतिबद्ध, पर…
पाकिस्तान ने मंगलवार को कहा कि वह पिछले हफ्ते भारत के साथ हुई भीषण लड़ाई के बाद हुए संघर्षविराम (सीजफायर) के प्रति प्रतिबद्ध है, लेकिन उसने चेतावनी दी कि नई दिल्ली की ओर से भविष्य में किसी भी आक्रामकता का पूरी ताकत से जवाब दिया जाएगा. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस्लामाबाद मोदी के भाषण में की गई 'उकसाने वाली और भड़काऊ बातों' को सिरे से खारिज करता है. बयान में कहा गया, "ऐसे समय में जब क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयास किए जा रहे हैं, यह बयान एक खतरनाक वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है." मंगलवार को इस्लामाबाद की ये टिप्पणियां एक दिन पहले भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के जवाब में आई हैं. मोदी ने कहा था कि अगर भारत पर नए हमले होते हैं, तो दिल्ली 'परमाणु ब्लैकमेल' से न डरते हुए सीमा पार 'आतंकवादी ठिकानों' को फिर से निशाना बनाएगी.
जस्टिस गवई सीजेआई बने : जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस गवई को सीजेआई पद की शपथ दिलाई. गवई देश के दूसरे दलित और पहले बौद्ध चीफ जस्टिस हैं. जस्टिस गवई के रिटायरमेंट की तारीख 23 नवंबर 2025 है.
कर्नल सोफिया कुरैशी पर बकवास करने वाले एमपी के मंत्री पर एफआईआर का हुक्म
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में विवादास्पद बयान देने के लिए राज्य के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. बुधवार को जबलपुर हाईकोर्ट ने स्वतः इस मामले का संज्ञान लिया. जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की बेंच ने आदेश पारित करते हुए डीजीपी को निर्देशित किया- मंत्री शाह के खिलाफ भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता को खतरे में डालने का अपराध दर्ज करें. कोर्ट ने आदेश में कहा कि यह काम हर हाल में आज शाम तक अवश्य किया जाना चाहिए. यदि एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो कोर्ट डीजीपी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही पर विचार कर सकता है. हाईकोर्ट ने मंत्री विजय शाह की टिप्पणी को "कैंसर जैसी और खतरनाक" बताते हुए कहा कि मंत्री का यह बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि कर्नल कुरैशी वही हैं, जिनके भाइयों ने पहलगाम हमला किया, अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देता है और इससे भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरा है. कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्नल कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सशस्त्र बलों का चेहरा थीं और मंत्री द्वारा की गई टिप्पणी ‘माफ़ी के योग्य नहीं’ है, क्योंकि यह स्पष्ट रूप से कर्नल कुरैशी पर ही लक्षित थी.
बेंच ने यह भी कहा- प्रिंट और डिजिटल मीडिया में प्रकाशित खबरों ने इस न्यायालय को इस मामले पर स्वतः संज्ञान लेने को मजबूर किया है. क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार के एक वर्तमान मंत्री, जिनका नाम विजय शाह है, ने भारतीय सेना की एक वरिष्ठ अधिकारी के विरुद्ध अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है. कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बल, जो शायद इस देश की अंतिम संस्था है, जो ईमानदारी, परिश्रम, अनुशासन, बलिदान, निःस्वार्थता, चरित्र, सम्मान और अटूट साहस का प्रतीक है. जिससे इस देश का कोई भी नागरिक, जो इन मूल्यों को मानता है, स्वयं को जोड़ सकता है, उसे विजय शाह द्वारा निशाना बनाया गया है, जिन्होंने कर्नल सोफिया कुरैशी के विरुद्ध ‘गटर’ की भाषा का प्रयोग किया. न्यायमूर्ति श्रीधरन ने यह भी टिप्पणी की कि कर्नल कुरैशी "मुस्लिम धर्म की अनुयायी हैं" और उन्हें आतंकवादियों की बहन कहकर संबोधित करने वाला बयान "इस भावना को जन्म देने की प्रवृत्ति रखता है कि भारत के प्रति निःस्वार्थ कर्तव्यों के बावजूद, किसी व्यक्ति को केवल इसलिए अपमानित किया जा सकता है, क्योंकि वह मुस्लिम धर्म से संबंधित है." अदालत ने कहा कि मंत्री द्वारा दिया गया बयान प्रथम दृष्टया "मुस्लिम धर्म के सदस्यों और अन्य धर्मों के लोगों के बीच वैमनस्य, घृणा या दुर्भावना की भावना पैदा करने की प्रवृत्ति रखता है."
उल्लेखनीय है कि कर्नल सोफिया कुरैशी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ, हमारी सशस्त्र सेनाओं द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ शुरू किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की प्रगति के बारे में मीडिया और देश को जानकारी दे रही थीं.
ये कहा था विजय शाह ने : उन्होंने कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा. अब मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते. इसलिए उनकी समाज की बहन को भेजा कि तुमने हमारी बहनों को विधवा किया है, तो तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा करके छोड़ेगी. देश का मान-सम्मान और हमारी बहनों के सुहाग का बदला तुम्हारी जाति, समाज की बहनों को पाकिस्तान भेजकर ले सकते हैं. मोदी जी ने कहा था कि घर में घुसकर मारूंगा. जमीन के अंदर कर दूंगा. आतंकवादी तीन मंजिला घर में बैठे थे. बड़े बम से छत उड़ाई, फिर बीच की छत उड़ाई और अंदर जाकर उनके परिवार की ऐसी की तैसी कर दी. यह 56 इंच का सीना वाला ही कर सकता है.
चीनी और तुर्की मीडिया हैंडल पहले ब्लॉक, फिर बहाल
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच मोदी सरकार ने “एक्स” पर वैश्विक मीडिया के कई अकाउंट्स को ब्लॉक किया, जिनमें चीन के ग्लोबल टाइम्स और शिन्हुआ न्यूज के साथ ही तुर्की का TRT वर्ल्ड शामिल हैं. भारतीय दूतावास ने आरोप लगाया था कि ग्लोबल टाइम्स ने भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान भ्रामक जानकारी फैलाई थी. दूतावास ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर कहा था, "डियर ग्लोबल टाइम्स न्यूज, इससे पहले कि आप गलत जानकारी फैलाएं, हम आपको सलाह देंगे कि आप तथ्यों की पुष्टि करें और स्रोतों की जांच करें." यह टिप्पणी तब आई जब ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया था कि पाकिस्तान ने एक राफेल जेट को मार गिराया है, जिसे भारत ने झूठा बताया.
सरकार के अनुसार, इन मीडिया संस्थानों पर पाकिस्तान समर्थित दुष्प्रचार और गलत जानकारी फैलाने का आरोप है. TRT वर्ल्ड ने भी भारत-पाकिस्तान के बीच हिंसा और तनाव पर रिपोर्टिंग की थी, लेकिन तुर्की के पाकिस्तान के समर्थन के चलते भारत में इसके खिलाफ नाराजगी देखी गई.
हालांकि, कुछ समय बाद ग्लोबल टाइम्स और TRT वर्ल्ड के “एक्स” अकाउंट्स को भारत में फिर से बहाल कर दिया गया. लेकिन इस तरह की सेंसरशिप से नागरिकों को बहस, संदर्भ और असहमति के अवसर कम मिलते हैं, और सरकार एकतरफा तौर पर तय करती है कि जनता क्या देखे या पढ़े.
बलोचिस्तान के आज़ाद होने का हल्ला
बलोच नेता मीर यार बलोच ने ‘एक्स’ पोस्ट डालकर कहा है कि बलोचिस्तान के लोगों ने अपना राष्ट्रीय फैसला ले लिया है और अब दुनिया को भी चुप नहीं रहना चाहिए. उन्होंने भारत समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील की है. भारतीय मीडिया, यूट्यूबर्स और बुद्धिजीवियों से आग्रह किया कि वे बलोचों को पाकिस्तान के अपने लोग कहना बंद करें. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को दी जाने वाली अंतरराष्ट्रीय सहायता और कर्ज पैसे की बर्बादी थी. वह इन पैसों का इस्तेमाल जिहादी समूहों के समर्थन में करता है, साथ ही उन्होंने पीओके पर भारत के रुख का भी समर्थन किया. बलोच के इस पोस्ट के आधार पर भारत के कई मीडिया समूहों- फर्स्ट पोस्ट, एएनआई, टाइम्स ऑफ इंडिया, इकोनोमिक टाइम्स, आजतक, एबीपी आदि ने खबर की है. मगर पाकिस्तान के किसी न्यूज आउटलेट्स - बीबीसी उर्दू, जंग, एआरआई न्यूज - समेत दिग्गज अंतरराष्ट्रीय मीडिया घरानों (अलजजीरा, न्यूयॉर्क टाइम्स आदि) ने इस ‘एक्स’ पोस्ट को कोई महत्व नहीं दिया है. द गार्डियन ने जरूर इस पर खबर बनाई थी, लेकिन उसने भी इसे हटा देना ही उचित समझा.
ऑपरेशन सिंदूर : अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को हरियाणा महिला आयोग का नोटिस
अशोका यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख अली खान महमूदाबाद को हरियाणा राज्य महिला आयोग से नोटिस मिला है. इसमें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर अपनी टिप्पणी में सशस्त्र बलों में महिलाओं का अपमान करने और सांप्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है. अली खान ने कर्नल कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा मीडिया ब्रीफिंग को ‘दिखावटी’ बताया था. उन्होंने कहा, ‘लेकिन दिखावटीपन को जमीनी हकीकत में बदलना चाहिए, नहीं तो यह सिर्फ पाखंड है.’ आयोग के अनुसार, ये टिप्पणियां तथ्यों को गलत तरीके से पेश करती हैं, जिसमें बार-बार ‘नरसंहार’, ‘अमानवीयकरण’ और ‘पाखंड’ का संकेत मिलता है. इसमें सरकार और सशस्त्र बलों को दुर्भावनापूर्ण सांप्रदायिक इरादे का श्रेय दिया गया है और आंतरिक सद्भाव को बिगाड़ने का प्रयास करते हुए सांप्रदायिक संकट को भड़काया गया है.
आरएसएस नेता के मुताबिक पहलगाम घटना के पीछे सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार
भाजपा नेता निशिकांत दुबे के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता जे नंदकुमार ने सुप्रीम कोर्ट पर अमर्यादित टिप्पणी की है. उसने यह आरोप लगाकर विवाद खड़ा कर दिया है कि पहलगाम हमले और जम्मू-कश्मीर में बिगड़ते हालात में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका है. कुमार ने कहा, “राज्य में चुनाव कराने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को केंद्र सरकार को लागू करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप स्थिति स्थिर होने से पहले ही कश्मीर में चुनाव हो गए. इसके परिणामस्वरूप, आतंकवादियों का समर्थन करने वाली और उन्हें पहुँच प्रदान करने वाली सरकार को सत्ता में आने का मौका मिला." नंदकुमार ने सुप्रीम कोर्ट के जजों का भी मज़ाक उड़ाया और उन्हें ‘कॉलेजियम सम्राट’ और ‘कॉलेजियम लॉर्ड्स’ कहा. इससे पहले निशिकांत दुबे ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट अगर कानून बनाएगा तो संसद क्या करेगा. इसके साथ ही तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना पर गृहयुद्ध भड़काने का भी आरोप लगाया था.
ईपीआईसी नंबरों के दोहराव का मुद्दा सुलझा : चुनाव आयोग
कल चुनाव आयोग ने घोषणा की कि उसने अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों के पास एक ही मतदाता फोटो पहचान पत्र या ईपीआईसी नंबर होने की समस्या का समाधान कर दिया गया है. उसने ऐसे मामलों में सभी मतदाताओं को विशिष्ट नंबर जारी किए हैं. द हिंदू के लिए श्रीपर्णा चक्रवर्ती ने सूत्रों के हवाले से बताया कि आयोग ने पाया कि औसतन 4,000 मतदाताओं में से 1 को इस समस्या का सामना करना पड़ा और ‘क्षेत्र-स्तरीय सत्यापन के दौरान यह पाया गया कि ऐसे समान ईपीआईसी नंबरों के धारक अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों और अलग-अलग मतदान केंद्रों के वास्तविक मतदाता थे’.
चलते-चलते
एक ग्लेशियर का मृत घोषित किया जाना
नेपाल का याला ग्लेशियर आधिकारिक तौर पर 'मृत घोषित' कर दिया गया है. यह एशिया में दर्ज हुई पहली ऐसी घटना है और वैश्विक स्तर पर आइसलैंड के ओके ग्लेशियर और मेक्सिको के आयोलोको ग्लेशियर के बाद यह तीसरा मामला है. कभी हिमालयी बर्फ का एक अहम हिस्सा रहा याला ग्लेशियर 1970 के दशक से अब तक 66 प्रतिशत तक सिकुड़ गया है और लगभग 784 मीटर पीछे खिसक गया है, जो पृथ्वी के जलवायु संकट में एक विनाशकारी नया अध्याय जोड़ता है. नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र - जो 54,000 ग्लेशियरों का घर है - तेजी से बढ़ते तापमान के कारण विनाशकारी नुकसान का सामना कर रहा है. इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की दर अब 2000 के दशक की शुरुआत की तुलना में 65 प्रतिशत तेज हो गई है. 3,500 किलोमीटर के विशाल विस्तार के बावजूद, एचकेएच में केवल सात ग्लेशियरों की सालाना निगरानी की जाती है, जो हमारे पर्यावरणीय निरीक्षण में बड़ी खामियों को उजागर करता है. याला ग्लेशियर पर एक स्मारक पत्थर स्थापित किया गया है, जिस पर मानव इतिहास में दर्ज उच्चतम कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता में से एक - 426 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) अंकित है, जिसकी तारीख मई 2025 है. यह सिर्फ एक ग्लेशियर की कब्र का पत्थर नहीं है, बल्कि पत्थर में उकेरी गई एक चेतावनी है. 1961 से, पृथ्वी ने अनुमानित 9.6 ट्रिलियन टन ग्लेशियर बर्फ खो दी है, जिसने कुल वैश्विक समुद्र-स्तर वृद्धि में 21 प्रतिशत का योगदान दिया है. इसके निहितार्थ गहरे हैं, खासकर दक्षिण एशिया के लिए. गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु सहित 10 प्रमुख नदियों के लिए हिमालयी ग्लेशियर जीवनधारा हैं, जो दो अरब से अधिक लोगों को जीवन प्रदान करते हैं. जैसे-जैसे ग्लेशियर पीछे हटते हैं, वे क्षेत्र भर में पानी की आपूर्ति, सिंचाई और पनबिजली को खतरे में डालते हैं. संकट को और बढ़ाते हुए, 1990 के दशक से हिमालय में हिमनद झीलें 50 प्रतिशत बढ़ गई हैं. इसने विनाशकारी हिमनद झील विस्फोट बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है, जैसा कि 2017 में भूटान और हाल ही में 2023 में सिक्किम में देखा गया.
दुनिया भर में, समुदायों ने प्रतीकात्मक ग्लेशियर अंत्येष्टि के साथ अपनी लुप्त होती बर्फ का शोक मनाना शुरू कर दिया है. 2019 में आइसलैंड के ओके ग्लेशियर से लेकर स्विट्जरलैंड के पिज़ोल और बासोडिनो ग्लेशियरों तक, और अमेरिका में क्लार्क ग्लेशियर तक, प्रत्येक विदाई एक और अपरिवर्तनीय क्षति का संकेत देती है.
पाठकों से अपील-
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