15/07/2025: पहलगाम का जिम्मा | सरकार अभी भी कठघरे में | मतदाता सूची का सच बताने वाले अंजुम पर एफआईआर | चीन से रिश्ते सुधारने की कोशिश | क्रिकेट में हारे | खाद की कमी | बीबीसी की साख
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
पहलगाम आतंकी हमले के 82 दिन बाद सुरक्षा चूक की जिम्मेदारी मनोज सिन्हा ने ली
पहलगाम को लेकर सरकार अभी भी कठघरे में है
मतदाता सूची में विदेशी के मामले न के बराबर होते हैं, फिर बिहार के मामले में संदेह क्यों?
देश भर में गहन पुनरीक्षण की इतनी “जल्दी” क्यों, ईसी को सुप्रीम कोर्ट का इंतज़ार करना था
बिहार में वोटर लिस्ट गड़बड़ी उजागर करने वाले पत्रकार अजीत अंजुम पर एफआईआर
अब तक 83% मतदाताओं ने भरे एन्यूमरेशन फॉर्म, चुनाव आयोग का दावा
सिर्फ कांवड़िये नहीं, सरकारी महकमे भी शामिल हैं मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाइयों में
एक साथ चुनाव कराने वाला विधेयक चुनाव आयोग को बेलगाम शक्तियां देता है : पूर्व सीजेआई
चौहान की चिट्ठी खाद की कमी छुपाने की कोशिश
कुन्हो में मादा चीता की मौत, मोदी ने कहा था चीते खुश हैं
कर्नाटक में कांग्रेस के 55 विधायकों को निशाना बना रही भाजपा
असम के गोलपाड़ा में 2700 ढांचे गिराए
उल्फा का दावा, 3 नेता सेना के ड्रोन हमले में मरे
जयशंकर की चीन यात्रा: सीमा पर स्थिरता, एससीओ एकता, संबंधों में नई शुरुआत
दलाई लामा के पुनर्जन्म के बयानों से नाराज़ चीन, भारत को 'ज़िज़ांग कार्ड' खेलने पर दी चेतावनी
क्या जयशंकर की जगह लेंगे श्रृंगला?
डिजिटल घोटाले, फर्जी खातों में करोड़ों रुपये इधर-उधर होते रहे, बैंक देखते रहे
टेलीग्राम ‘पेड टास्क स्कैम’: 11 लाख की ठगी करने वाले गिरोह का भंडाफोड़
बीबीसी ने गाज़ा के डॉक्टरों पर इजरायली हमलों पर बनी डॉक्यूमेंट्री को रोका, पत्रकारों का खुलासा
लॉर्ड्स में जैसे ही चमत्कार की उम्मीद जगी, बशीर की गेंद सिराज का विकेट ले गई
बिमल रॉय की 'दो बीघा ज़मीन' का रिस्टोरेशन
पहलगाम आतंकी हमले के 82 दिन बाद सुरक्षा चूक की जिम्मेदारी मनोज सिन्हा ने ली
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने “टाइम्स ऑफ इंडिया” की भारती जैन को दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि पहलगाम में आतंकवादी हमला सुरक्षा चूक की वजह से हुआ और इसकी जिम्मेदारी वह अपने ऊपर लेते हैं. उन्होंने कहा, “मैं पहलगाम हमले में सुरक्षा चूक की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं, यह एक सुरक्षा विफलता थी.” सिन्हा, जो पांच साल पूरे कर चुके हैं, ने कहा कि पहलगाम आतंकवादी हमला पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित था. "पड़ोसी (पाकिस्तान) का मकसद सांप्रदायिक विभाजन पैदा करना था."
उन्होंने कहा कि एनआईए द्वारा की गई गिरफ्तारियां स्थानीय भागीदारी की पुष्टि करती हैं, लेकिन यह कहना गलत होगा कि जम्मू-कश्मीर का सुरक्षा माहौल पूरी तरह खराब हो गया है. स्थानीय आतंकवादी भर्ती अब बहुत कम हो गई है. इस साल केवल एक मामला सामने आया है, जबकि एक समय था जब यह संख्या 150-200 तक होती थी. लेकिन यह भी सच है कि पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों में बड़ी संख्या में आतंकवादियों के घुसपैठ को सुविधाजनक बनाया है.
जिम्मेदारी लेने का मतलब है, कम से कम इस्तीफा देना...
इस बीच सुरक्षा विफलता की स्वीकारोक्ति और इसकी जिम्मेदारी खुद पर लेने के बाद सिन्हा के इस्तीफे की मांग की जा रही है. पत्रकार और लेखक सुशांत सिंह ने “एक्स” पर लिखा, “जिम्मेदारी लेने का क्या मतलब होता है? कम से कम इस्तीफा देना. जब तक कि उद्देश्य अमित शाह को इस बड़ी असफलता के लिए किसी तरह बचाना न हो. और, जांच में भी बहुत कम प्रगति हुई है.
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने “एक्स” पर पोस्ट किया, “चूंकि सिन्हा ने पहलगाम हमले के दौरान सुरक्षा चूक की पूरी जिम्मेदारी ली है – तो वह कब इस्तीफा दे रहे हैं? एक लोकतंत्र में, जिम्मेदारी लेने के बाद अगला कदम इस्तीफा देना होता है!” सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस के नेता और प्रवक्ता इमरान नबी डार ने भी कहा, “उनके लिए अगला तार्किक कदम यह होना चाहिए कि वे इस्तीफा दें और जम्मू-कश्मीर के लोगों से माफी मांगें, जिनकी जान, आजीविका और गरिमा को उनकी गलतियों के कारण खतरे में डाला गया.”
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता और महासचिव एम.वाई. तारिगामी ने कहा कि उनकी पार्टी हमले के बाद से ही केंद्र सरकार से जवाबदेही की मांग कर रही है. सरकार को उन चूकों का विवरण सामने लाना चाहिए, जिनके कारण 26 नागरिकों की मौत हुई.
विश्लेषण
पहलगाम को लेकर सरकार अभी भी कठघरे में है
निधीश त्यागी
कि जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुई आतंकवादी कार्रवाई की जिम्मेदारी 82 दिन बाद 13 जुलाई को जाकर ली है, अपने आप में ज्यादा सवाल पैदा करता है बजाय उस गुत्थी को सुलझाने के, जो उस घटना से पैदा हुई थी, जिसके बाद दो देशों के बीच जंग छिड़ गई थी, पूरे देश में ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर बवंडर खड़ा किया गया था, हमारे एक से अधिक (बहुत महंगे) जंगी जहाज गिराये गये थे, पूरी दुनिया में हम अकेले पड़ गये थे, हमारे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को देश देश जाकर हमारी छवि ठीक और पाकिस्तान की खराब करनी पड़ी थी, डोनाल्ड ट्रम्प को बीस से ज्यादा बाद कहने का मौका मिल गया था कि दो एटमी ताकतों के बीच व्यापार की गाजर लटका कर जंग रुकवाई गई थी, नोएडा फिल्मसिटी के प्राइम टाइम घोंचुओं ने झूठी खबरों का जखीरा खड़ा कर दिया था, और एक रात कराची और अगली रात रावलपिंडी में अखंड भारत का झंडा लहरा दिया था, पाकिस्तान के आर्मी चीफ को व्हाइट हाउस में हलाल लंच परोसा गया था, बहुत सारे पैसे खर्च किये गये, देश के मुसलमानों को जलील किया गया था, कश्मीरियों के साथ बुरा बर्ताव किया गया था, विपक्ष की संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग खारिज की गई थी. चीनी युद्ध विमान कपंनियों के स्टॉक ऊंचे हो गये, राफेल के नीचे गिरे. सरकार ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया, पाकिस्तानी राजनयिकों को देश से निष्कासित किया और सीमाओं को पूरी तरह बंद कर दिया. जवाब में, पाकिस्तान ने शिमला समझौते को निलंबित कर दिया और द्विपक्षीय व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया. यह स्थिति धीरे-धीरे सैन्य संघर्ष में तब्दील हो गई, जिसने भारत-पाकिस्तान संबंधों को और तनावपूर्ण बना दिया. सीमा पर सैनिकों की बढ़ती तैनाती और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संवाद की कमी ने क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल दिया. पाकिस्तान के साथ भारत जिस तरह से खुद को हाइफनेट होने से बचा था, वापस उसी गड्ढे में पंहुच गया. हमें दुनिया को झूठ बोलना पड़ा कि हम सेक्यूलर देश हैं, भले ही हमारे संविधान में ऐसा लिखा है, जिसका सरकार को चलाने वाले विरोध करते हैं. सिंदूर को लेकर सरकार ने देश में जितना सेंटियापा पैदा करना चाहा और उस पर सियासी रोटियां सेंकनी चाही, वह भी ठीक से न हो सका.
यह सब शायद न होता अगर ये जिम्मेदारी पहले ही ले ली जाती. या घटना को होने से रोक लिया जाता. या आतंकवादी पकड़ लिये जाते.
हालांकि अभी भी वे आतंकवादी कौन थे, कहां से आए, कैसे आए, कैसे गायब हो गये, इसका जवाब मनोज सिन्हा की जिम्मेदारी लेने से नहीं मिल रहा. अगर उसका जिम्मा पहले ही तय हो जाता तो इतने रायते न फैलते.
इंटेलिजेंस फेल्यर कैसे हुआ? सिक्योरिटी क्यों चूकी? इसके जवाब सिन्हा साहब की जिम्मेदारी लेने से नहीं मिलते. विपक्ष का यह कहना कि सिन्हा को इस्तीफा देना चाहिए ग़ैरवाजिब मांग है क्योंकि जवाब या तो सरकार के पास नहीं है, या फिर वह देना नहीं चाहती, या फिर वह छिपा रही है कि क्योंकि असलियत सामने आने पर उसकी बची खुची साख पर भी बट्टा लग जाएगा. शायद उसके पास इसके जवाब है भी नहीं. इतने दिनों से उसकी जाँच एजेंसी चप्पे चप्पे पर छापे मारती रही है, कथित आतंकवादियों के रिश्तेदारों के मक़ानों पर बुलडोजर चलाती रही, इतना सर्वेलेंस है, इतनी गारद कश्मीर पर लगी हुई है, उसके बाद भी उनके पास बुनियादी सवालों के जवाब नहीं हैं. विपक्ष को बेहतर सवाल पूछने चाहिए.
सरकार के पास थोड़ी ग़ैरत होती तो वह अपनी नाकामी को स्वीकारती. देश के साथ ईमानदार रहती. पारदर्शिता बरतती. एक आतंकवादी घटना के लिए उसने देश को जंग में झोंक दिया, उसके कारण और हासिल देश और दुनिया को बता पाती. अगर होते तो.
सिन्हा के इस कदम से दरअसल लग यही रहा है कि इसमें छिपाया और बरगलाया ज्यादा जा रहा है, बजाए बताने के. यह भी पता नहीं चलता कि भारत ने बिना सोचे बूझे जंग क्यों शुरू कर दी, जब उन्होंने उसके बारे में ठीक से सोचा परखा ही नहीं था.
इन पूरी गतिविधियों में सिन्हा कहां थे? देशों की मुर्गा लड़ाई में हमारी तरफ से बांग कौन दे रहा था? फैसले कौन ले रहा था? गफलतें किसने की.
जब तक ये सब साफ नहीं होगा, तब तक सिन्हा साहब का ये बयान हवाई है. वे बहुत सारे दावे, वादे, शब्द और वाक्य, जिनके अर्थ दरअसल नहीं होते. वे झुनझुनों की तरह बजते हैं, और जनता की हाथ में पकड़ा दिये जाते हैं.
मतदाता सूची में विदेशी के मामले न के बराबर होते हैं, फिर बिहार के मामले में संदेह क्यों?
भारत में मतदाता सूची से नाम हटाने के सामान्य कारण आमतौर पर मृत्यु, स्थायी रूप से स्थानांतरण या डुप्लीकेट पंजीकरण होते हैं. बहुत ही कम मामलों में विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में पाए जाते हैं. चुनाव आयोग ने संसद को बताया था कि 2018 में केवल तीन ऐसे मामले सामने आए थे. हालांकि, एक दुर्लभ मामले में, अब चुनाव आयोग को संदेह है कि बिहार, विशेष रूप से सीमांचल क्षेत्र में, चुनावों से पहले "बड़ी संख्या में" विदेशी नागरिक मतदाता सूची में शामिल हो सकते हैं.
“द इकोनॉमिक टाइम्स” में अनुभूति विश्नोई के अनुसार, चुनाव आयोग ने कहा है कि बिहार की मतदाता सूची में विदेशी नागरिकों के नाम शामिल होने के मामले बहुत ही कम हैं. आयोग के आंतरिक सूत्रों के अनुसार, असम को छोड़कर कहीं भी बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों के नाम मतदाता सूची में नहीं पाए गए हैं.
आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि जब भी ऐसी शिकायतें मिलती हैं, संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) जांच करते हैं और यदि पुष्टि होती है तो ऐसे लोगों के एपिक कार्ड (मतदाता पहचान पत्र) जब्त कर लिए जाते हैं. एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि नागरिकता संबंधी शिकायतें बहुत कम आती हैं और अधिकतर मामलों में एक-दो व्यक्तियों से ही जुड़ी होती हैं. अधिकांश दावे और आपत्तियां मृत्यु या स्थानांतरण के कारण होती हैं, न कि नागरिकता के कारण.
अनुभूति की रिपोर्ट कहती है कि बिहार के सीमांचल क्षेत्र के चार जिले—किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार—इस बार विशेष निगरानी में हैं, क्योंकि ये नेपाल और बांग्लादेश की सीमा से लगे हुए हैं. हाल ही में किशनगंज जिले की ‘स्पेशल समरी रिवीजन-2025’ की सूची में सैकड़ों नाम मृत्यु, स्थायी रूप से स्थानांतरित या अनुपस्थित पाए जाने के कारण हटाए गए हैं. पूर्णिया और सुपौल में भी यही स्थिति रही है. किसी भी नाम को नागरिकता या दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता के कारण नहीं हटाया गया है.
देश भर में गहन पुनरीक्षण की इतनी “जल्दी” क्यों, ईसी को सुप्रीम कोर्ट का इंतज़ार करना था
असद रहमान ने “द इंडियन एक्सप्रेस” में लिखा है कि चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को बिहार की तरह विशेष गहन पुनरीक्षण की तैयारी शुरू करने का निर्देश दिया है. इस पर विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की आलोचना की है और बिना राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा किए देशव्यापी पुनरीक्षण की “जल्दी” पर सवाल उठाए हैं. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि आयोग को सुप्रीम कोर्ट में मामला निपटने तक इंतजार करना चाहिए था. कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि ताजा निर्देश दिखाते हैं कि चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट की राय का भी सम्मान नहीं कर रहा…और यह दिखाता है कि वह पूरी तरह से समझौता कर चुका है.
बिहार में वोटर लिस्ट गड़बड़ी उजागर करने वाले पत्रकार अजीत अंजुम पर एफआईआर
पिछले कई दिनों से बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के नाम पर मची गफलत को लेकर ग्राउंड रिपोर्ट कर रहे वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम पर बेगूसराय में एफआईआर दर्ज की गई है. खुद अजीत अंजुम ने इस पर एक वीडियो बनाकर जानकारी दी है. पत्रकार ने बेगूसराय के बलिया प्रखंड में BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) द्वारा अपलोड किए गए अधूरे फॉर्म्स, खाली कॉलम, और नकली दस्तावेजों को कैमरे में रिकॉर्ड कर जनता के सामने रखा था. इन वीडियो को सार्वजनिक करने के बाद प्रशासनिक हलकों में घबराहट और दबाव की स्थिति बन गई. पत्रकार ने बताया कि उसे बार-बार एसडीओ और अन्य अधिकारियों के कॉल आए, जिनमें वीडियो न अपलोड करने का दबाव बनाया गया, लेकिन उन्होंने सच दिखाने की अपनी जिम्मेदारी से समझौता नहीं किया. हैरानी की बात यह है कि अजीत अंजुम पर सांप्रदायिक द्वेष फैलाने का आरोप लगा है. अजीत अंजुम ने इस मसले पर कई रिपोर्ट्स पिछले दिनों जारी की हैं, जिनमें बीएलओ इस पूरी कचवायद की कलई खोल रहे हैं.
अब तक 83% मतदाताओं ने भरे एन्यूमरेशन फॉर्म, चुनाव आयोग का दावा
'द हिन्दू' ने चुनाव आयोग के हवाले से बताया है कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) के तहत अब तक 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 6.6 करोड़ यानी 83.66% मतदाताओं ने अपने एन्यूमरेशन फॉर्म भर दिए हैं. यह जानकारी सोमवार को चुनाव आयोग (ECI) ने दी. चुनाव आयोग ने बताया कि अब केवल 11.82% मतदाता ही ऐसे बचे हैं जिन्होंने अब तक अपने फॉर्म नहीं भरे हैं. इनमें से कई लोगों ने समय की मांग की है और उम्मीद जताई गई है कि वे आगामी दिनों में फॉर्म भर देंगे. फॉर्म भरने की अंतिम तिथि 25 जुलाई तय की गई है. इधर भाकपा (माले) ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि वह बिहार की मतदाता सूची में विदेशी नागरिकों के नाम होने की बात कहकर वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटका रहा है और SIR की प्रक्रिया के लिए “बहाना बना रहा है”.
रिपोर्ट के मुताबिक 1.59% मतदाता मृत घोषित किए गए. 2.2% ने स्थायी रूप से निवास स्थान बदला. 0.73% दो जगहों पर पंजीकृत पाए गए. इस प्रकार, 88.18% मतदाताओं का या तो फॉर्म मिल गया है, या वे मृत/स्थानांतरित/डुप्लिकेट रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज हो चुके हैं.
चुनाव आयोग ने बताया कि अब लगभग 1 लाख बीएलओ तीसरे दौर की डोर-टू-डोर वेरिफिकेशन की शुरुआत करेंगे. उनके साथ 1.5 लाख बीएलए होंगे, जिन्हें प्रत्येक दिन 50 फॉर्म प्रमाणित कर जमा कराने की अनुमति दी गई है. बिहार के सभी 261 नगरीय निकायों के 5,683 वार्डों में यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष शिविर लगाए जा रहे हैं कि कोई भी पात्र शहरी मतदाता छूट न जाए. जो मतदाता बिहार से अस्थायी रूप से बाहर हैं, उनके लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है. वे मोबाइल पर ECINet ऐप, EC की वेबसाइट या WhatsApp जैसी डिजिटल माध्यमों से अपने फॉर्म जमा कर सकते हैं. परिवार के सदस्य भी बीएलओ को ये फॉर्म दे सकते हैं.
सिर्फ कांवड़िये नहीं, सरकारी महकमे भी शामिल हैं मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाइयों में
सुप्रीम कोर्ट में प्रोफेसर अपूर्वानंद द्वारा कावड़ियों से जुड़ी एक याचिका दायर की गई है. इस याचिका में उस क्यूआर कोड प्रणाली को चुनौती दी गई है, जिसे कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों के लिए लागू किया गया है. ऊपरी तौर पर इसका उद्देश्य कावड़ियों को मिलने वाले भोजन की शुद्धता सुनिश्चित करना बताया जा रहा है, लेकिन याचिकाकर्ता का आरोप है कि यह असल में धार्मिक प्रोफाइलिंग का एक जरिया है. यह पिछले वर्ष की घटना का ही विस्तार है, जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों ने दुकानदारों को अपने नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करने का आदेश दिया था, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाई थी. हरकारा डीपडाइव पर उनसे निधीश त्यागी ने लंबी बातचीत की.
प्रोफेसर अपूर्वानंद का तर्क है कि भोजन की शुद्धता का संबंध दुकानदार के नाम या धर्म से नहीं हो सकता. असल में यह एक बड़े अभियान का हिस्सा है, जिसका मकसद हिंदुओं को मुसलमानों की दुकानों का आर्थिक बहिष्कार करने के लिए उकसाना है. इस पूरी प्रक्रिया में सरकार और प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. पुलिस अधिकारियों द्वारा कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा करना और मुख्यमंत्रियों द्वारा यात्रा का निरीक्षण करना इसे एक राजकीय संरक्षण प्राप्त आयोजन बना देता है, जो संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विरुद्ध है.
पिछले एक दशक में कांवड़ यात्रा का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है. पहले यह व्यक्तिगत आस्था और भक्ति का प्रदर्शन होती थी, लेकिन अब यह आक्रामकता, हिंसा और शक्ति प्रदर्शन का माध्यम बन गई है. प्रोफेसर के अनुसार, इसका राष्ट्रवादीकरण कर दिया गया है. कावड़ियों के हाथ में तिरंगा झंडा थमाना और इसे राष्ट्रवाद से जोड़ना, इसे एक विशेष प्रकार के 'हिंदू राष्ट्रवाद' के जलाभिषेक का प्रतीक बनाता है. यह एक संगठित प्रयास है, जिसमें धार्मिक यात्रा को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
यह आक्रामकता सिर्फ कांवड़ यात्रा तक सीमित नहीं है, बल्कि रामनवमी और दुर्गा पूजा जैसे त्योहारों में भी दिखती है, जहाँ जुलूस जानबूझकर मुस्लिम इलाकों से निकाले जाते हैं और भड़काऊ संगीत बजाया जाता है. इस अभियान में दलितों और पिछड़ों को यह एहसास दिलाकर शामिल किया जा रहा है कि अब देश और सड़कें उनकी हैं. याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि जिला प्रशासन (डीएम, एसपी) अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से नहीं बच सकता. नागरिकों के व्यवसाय करने, अपनी पसंद का भोजन करने और शांति से रहने के अधिकार की रक्षा करना उनका कर्तव्य है, भले ही राजनीतिक दबाव कुछ भी हो.
एक साथ चुनाव कराने वाला विधेयक चुनाव आयोग को बेलगाम शक्तियां देता है : पूर्व सीजेआई
पूर्व मुख्यन्यायाधीश जे.एस. खेहर और डी.वाई. चंद्रचूड़ ने पिछले सप्ताह के अंत में एक साथ चुनाव संबंधी विधेयकों की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी बात रखी. दोनों पूर्व न्यायाधीशों ने इस बात की ओर इशारा किया कि जब विधेयकों में कहा गया है कि यदि किसी विधानसभा का कार्यकाल बीच में ही समाप्त हो जाता है, तो शेष कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाने चाहिए, तो इसमें “शेष” का स्पष्ट रूप से अर्थ बताया जाना चाहिए, ताकि इसकी विभिन्न व्याख्याओं की संभावना न रहे या सरकार को राष्ट्रपति शासन लगाने का आसान रास्ता न मिल जाए. पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि भले ही ये विधेयक असंवैधानिक नहीं हैं, लेकिन ये चुनाव आयोग की शक्तियों की निगरानी का कोई प्रावधान नहीं करते. “द हिंदू” में सोभना के. नायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दोनों पूर्व सीजेआई का कहना था कि एक साथ चुनाव कराने वाला विधेयक चुनाव आयोग को बेलगाम शक्तियां देता है.
चौहान की चिट्ठी खाद की कमी छुपाने की कोशिश
केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा हाल ही में मुख्यमंत्रियों को भेजे गए पत्र में घटिया उर्वरकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की अपील की गई है. लेकिन, विशेषज्ञों का मानना है कि यह पत्र देशभर में खाद की बढ़ती कमी जैसे गंभीर मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश है. प्रभुदत्त मिश्रा ने सवाल उठाया है कि नकली खाद पर राज्यों को केंद्र का निर्देश क्या इसके संकट को ढंकना है? जवाब में लेखक, पत्रकार सुशांत सिंह ने लिखा, “हां.”
कृषि मंत्री चौहान के पत्र में जहां समस्या को ‘नकली उर्वरक’ और ‘काला बाजारी’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, वहीं यह पंजाब, तेलंगाना और राजस्थान जैसे राज्यों की उर्वरक आपूर्ति बढ़ाने की लगातार मांग को नजरअंदाज करता है. विशेषज्ञों के अनुसार, इन राज्यों से लगातार उर्वरक की मांग बढ़ रही है.
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में प्रमुख उर्वरकों—यूरिया, डीएपी, एमओपी और कॉम्प्लेक्स—की बिक्री में 15.2% की बढ़ोतरी हुई है, जो लगभग 121 लाख टन तक पहुंच गई है. यूरिया की बिक्री में 10% और कॉम्प्लेक्स उर्वरकों में 31% की वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं एमओपी की बिक्री दोगुनी हो गई है. अनुकूल मानसून के कारण मांग में यह उछाल सरकार के रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने और ‘प्राकृतिक’ या ‘जैविक’ खेती को बढ़ावा देने के अभियान के विपरीत है.
समस्या की जड़ आपूर्ति प्रबंधन और वितरण में है. मंत्री का पत्र राज्यों की जिम्मेदारी पर जोर देता है कि वे उर्वरकों की ‘पर्याप्त उपलब्धता’ सुनिश्चित करें, लेकिन इसमें केंद्र की उत्पादन, आयात और आवंटन में भूमिका को नजरअंदाज किया गया है. विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य केवल काला बाजारी से नहीं जूझ रहे, बल्कि मूल रूप से पर्याप्त आपूर्ति की कमी से जूझ रहे हैं.
इस कमी के कई प्रमाण मिलते हैं. हाल ही में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा को पत्र लिखकर जुलाई-अगस्त के लिए यूरिया की निर्बाध आपूर्ति की मांग की. राजस्थान के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने भी मंत्री चौहान से अधिक आपूर्ति की मांग की, साथ ही नकली उर्वरक के बड़े घोटाले का खुलासा किया. उत्तर प्रदेश में भी किसानों की खरीद पर मासिक सीमा जैसी व्यवस्था लागू की जा रही है, जो आपूर्ति की कमी का संकेत है.
कुन्हो में मादा चीता की मौत, मोदी ने कहा था चीते खुश हैं
शनिवार को कुन्हो नेशनल पार्क में नभा नामक मादा चीता, जिसे नामीबिया से लाया गया था, की मौत हो गई. वह एक हफ्ते पहले, शिकार के दौरान घायल हो गई थी और उसके दोनों पैरों में फ्रैक्चर हो गया था. उसकी मौत से सिर्फ तीन दिन पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नभा के देश नामीबिया में थे और उन्होंने कहा था कि विंडहोक से भारत भेजे गए चीते “खुश” हैं और यह संदेश दिया था कि सबकुछ ठीक है.”
कर्नाटक में कांग्रेस के 55 विधायकों को निशाना बना रही भाजपा
कांग्रेस विधायक विजयानंद कशप्पानावर ने भाजपा पर उनकी पार्टी के विधायकों को तोड़ने और कर्नाटक सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. आरोप है कि भाजपा केंद्रीय एजेंसियों – प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर (आईटी) – का इस्तेमाल कर रही है, ताकि 55 कांग्रेस विधायकों, जिनमें वह खुद भी शामिल हैं, को निशाना बनाया जा सके. उनका यह बयान केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी के हालिया दावे के जवाब में आया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस भाजपा के विधायकों को “खरीद” रही है.
असम के गोलपाड़ा में 2700 ढांचे गिराए
असम सरकार ने गोलपाड़ा में, बेदखली अभियान के तहत 2,700 ढांचों को गिरा दिया है, जिससे 1,080 से अधिक परिवार विस्थापित हो गए हैं, जिनमें अधिकांश बंगाली मूल के मुस्लिम हैं. “स्क्रॉल” में रोकीबुज ज़मान ने अपनी रिपोर्ट में मौके का हाल विस्तार से बताया है. पिछले एक महीने में कम से कम पांच बेदखली अभियान चलाए गए हैं, जिनसे लगभग 3,500 परिवार विस्थापित हुए हैं.
उल्फा का दावा, 3 नेता सेना के ड्रोन हमले में मरे
असम संयुक्त मुक्ति मोर्चा (उल्फा) ने आरोप लगाया है कि उसके तीन वरिष्ठ नेताओं की म्यांमार में एक ड्रोन हमले में कथित तौर पर मौत हो गई है. प्रतिबंधित सशस्त्र अलगाववादी समूह का दावा है कि यह हमला भारतीय सेना द्वारा किया गया था. हालांकि, सेना ने ऐसे किसी अभियान की जानकारी से इनकार किया है. उल्फा-आई ने एक कथित बयान में दावा किया कि स्वयंभू लेफ्टिनेंट जनरल नयन असम, "ब्रिगेडियर" गणेश असम और "कर्नल" प्रदीप असम इस हमले में मारे गए और 19 लोग घायल हुए. “द इंडियन एक्सप्रेस” ने गुवाहाटी स्थित रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत के हवाले से कहा, "भारतीय सेना के पास ऐसे किसी अभियान की कोई जानकारी नहीं है." असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी कहा कि उनके पास इस घटना की कोई जानकारी नहीं है.
दुष्यंत दवे ने वकालत पेशा छोड़ा
सुप्रीम कोर्ट के जानेमाने वकील दुष्यंत दवे ने 48 वर्षों की सेवा के बाद वकालत पेशा छोड़ दिया है. उन्होंने कहा कि उनके इस फैसले के पीछे कोई विशेष कारण नहीं है, लेकिन वे चाहते हैं कि अधिक युवा लोग इसमें बड़ी भूमिका निभाएं. “बार एंड बेंच” में उद्धृत उनके व्हाट्सएप बयान में लिखा है- “बार में 48 शानदार वर्ष बिताने और अभी-अभी अपना 70वां शानदार जन्मदिन मनाने के बाद, मैंने कानून के पेशे को छोड़ने का निर्णय लिया है." “लाइव लॉ” ने उनके साथ एक साक्षात्कार का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा था कि वह 'कार्यपालिका की अनियमितताओं' के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है. और, भारत में न्यायपालिका आधुनिक इतिहास में सबसे कमजोर स्थिति में है.
जयशंकर की चीन यात्रा: सीमा पर स्थिरता, एससीओ एकता, संबंधों में नई शुरुआत
'द ट्रिब्यून' की रिपोर्ट है कि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सोमवार को बीजिंग में चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की. दोनों नेताओं ने भारत-चीन संबंधों में स्थिरता और द्विपक्षीय सहयोग को गहराने की आवश्यकता पर बल दिया. यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब भारत और चीन हालिया तनावों के बाद अपने संबंधों को स्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं. चीनी सरकारी मीडिया शिन्हुआ के अनुसार, हान झेंग ने कहा कि अक्टूबर 2024 में कज़ान में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद, दोनों देशों के रिश्ते "एक नए मोड़" पर पहुंचे हैं.
जयशंकर ने इस दौरान कहा कि भारत, दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी सहमति के आधार पर आपसी बातचीत और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने यह भी कहा कि पिछले नौ महीनों में सीमा विवाद को लेकर जो प्रगति हुई है, वह द्विपक्षीय संबंधों के सामान्यीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है. “हमारी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सीमाओं पर शांति बनी रहे, क्योंकि यही रणनीतिक विश्वास और स्वस्थ संबंधों की नींव है.”
एससीओ में भारत-चीन सहयोग
जयशंकर की यह यात्रा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले हो रही है. उन्होंने चीन को एससीओ की अध्यक्षता के लिए शुभकामनाएं दीं और कहा कि भारत संगठन में सकारात्मक और ठोस निर्णयों के लिए प्रतिबद्ध है. बीजिंग में उन्होंने एससीओ महासचिव नुर्लान यर्मेकबायेव से भी मुलाकात की और संगठन के आधुनिकीकरण और योगदान पर चर्चा की.
जयशंकर ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के अंतरराष्ट्रीय विभाग के मंत्री लियू जियानचाओ से भी मुलाकात की और कहा — "दुनिया बहुध्रुवीय हो रही है। इस वैश्विक संदर्भ में भारत-चीन संबंधों को रचनात्मक और दूरदर्शी दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है."
चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ जयशंकर की बातचीत में, दोनों नेताओं ने सीमा मुद्दों के समाधान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और विन-विन सहयोग की भावना पर जोर दिया. वांग यी ने कहा कि "भारत-चीन संबंधों में जो सुधार और विकास हुआ है, वह आसानी से नहीं आया है और इसे संजो कर रखना चाहिए."
दलाई लामा के पुनर्जन्म के बयानों से नाराज़ चीन, भारत को 'ज़िज़ांग कार्ड' खेलने पर दी चेतावनी
भारत में कुछ पूर्व राजनयिकों और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों द्वारा दलाई लामा के पुनर्जन्म से जुड़ी टिप्पणियों ने चीन को झुंझला दिया है. चीन के दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर एक कड़ी प्रतिक्रिया जारी की है, जिसमें उन्होंने भारतीय रणनीतिक समुदाय को भारत सरकार के रुख के विपरीत बयानबाज़ी से बचने की सलाह दी है.
प्रवक्ता यू जिंग ने पोस्ट में लिखा है कि “कुछ लोगों ने दलाई लामा के पुनर्जन्म को लेकर अनुचित टिप्पणियां की हैं, जो भारत सरकार की सार्वजनिक नीति से मेल नहीं खाती. रणनीतिक और विदेश नीति समुदाय से जुड़े पेशेवरों को इस मुद्दे की संवेदनशीलता भलीभांति समझनी चाहिए.”
चीन का कहना है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म और उत्तराधिकार पूरी तरह से चीन का आंतरिक मामला है और इसमें बाहरी शक्तियों की कोई दखलअंदाजी स्वीकार नहीं की जाएगी.
भारत पर भी उठाए सवाल : यू जिंग ने यह भी याद दिलाया कि भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीनी क्षेत्रीय अखंडता को मान्यता दी है, जिसमें तिब्बत (अब ज़िज़ांग स्वायत्त क्षेत्र) को चीन का अभिन्न हिस्सा माना गया है. उन्होंने यह भी दोहराया कि भारत ने तिब्बती शरणार्थियों को अपने यहां राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति न देने की राजनीतिक प्रतिबद्धता की है. उनकी पोस्ट में साफ तौर पर कहा गया कि “भारत ने राजनीतिक तौर पर यह स्वीकार किया है कि ज़िज़ांग चीन का हिस्सा है और भारत में तिब्बतियों को चीन विरोधी राजनीतिक गतिविधियों की अनुमति नहीं है.”
“ज़िज़ांग कार्ड” खेलने की चेतावनी : यू जिंग ने भारत में दलाई लामा और तिब्बत से जुड़े विषयों पर हो रही चर्चा को लेकर यह भी कहा कि यह मुद्दा भारत-चीन संबंधों में एक ‘कांटे’ की तरह बन गया है. उनके शब्दों में “ज़िज़ांग से जुड़े मुद्दे भारत-चीन संबंधों में बोझ बनते जा रहे हैं. ‘ज़िज़ांग कार्ड’ खेलना अंततः खुद को ही नुकसान पहुंचाना है.”
चीन ने तिब्बती संस्कृति की 'संरक्षा' का दावा भी किया : प्रवक्ता ने दावा किया कि तिब्बती संस्कृति को चीन में पूरी स्वतंत्रता और संरक्षण मिला हुआ है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि वहां के लोगों को पारंपरिक परिधान, खानपान, स्थापत्य शैली जैसी सांस्कृतिक गतिविधियों को खुलकर निभाने की आज़ादी है.
क्या जयशंकर की जगह लेंगे श्रृंगला?
“इंडिया केबल” के मुताबिक, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, जिन्हें मोदी का पसंदीदा माना जाता है, को राज्यसभा में 12 नामित प्रतिष्ठित सदस्यों में शामिल किए जाने से एक बार फिर अटकलें तेज हो गई हैं. श्रृंगला 2024 में दार्जिलिंग से भाजपा का टिकट लगभग हासिल कर ही चुके थे, लेकिन स्थानीय मजबूरियों के कारण पार्टी उन्हें चुनाव लड़वा नहीं पाई. इसलिए शायद उन्हें राज्यसभा में लाना क्षेत्र को महत्व देने के लिए है. लेकिन मौजूदा विदेश मंत्री एस. जयशंकर पर, हाल के कई कूटनीतिक झटकों, खासकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद, दबाव बढ़ गया है. क्या यह भी संभव है कि श्रृंगला जयशंकर के पद के लिए भी दौड़ में हैं? महीने के अंत में कैबिनेट विस्तार की भी चर्चा है. सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) में भी कुछ बदलाव हो सकते हैं. 2024 में मोदी ने सब कुछ जस का तस रखने को मास्टरस्ट्रोक समझा था, ताकि यह भ्रम बना रहे कि कुछ नहीं बदला, भले ही भाजपा अब अल्पमत में हो. लेकिन एक उथल-पुथल भरे साल और विदेश नीति की विफलता के कारण मोदी पर गंभीर दबाव के बाद, सरकार शशि थरूर के साथ भी समीकरण बनाने की कोशिश कर रही है. अब श्रृंगला भी सांसद हैं और उपलब्ध हैं, जिससे विदेश मंत्रालय में हलचल तेज हो गई है.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विशेषज्ञ कोटे के तहत जिन चार व्यक्तियों को राज्यसभा के लिए नामित किया है, उनमें हर्षवर्धन श्रृंगला के अलावा उज्ज्वल निकम, मीनाक्षी जैन और सी. सदानंदन मास्टर का नाम भी है. निकम एक पूर्व अभियोजक हैं, जिन्होंने अजमल कसाब के खिलाफ मामला चलाया था, जैन एक इतिहासकार हैं जिन्हें मोदी सरकार के करीबी के रूप में देखा जाता है; और मास्टर भाजपा नेता हैं, जो आरएसएस से जुड़े हुए हैं.
डिजिटल घोटाले, फर्जी खातों में करोड़ों रुपये इधर-उधर होते रहे, बैंक देखते रहे
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक आलीशान परिसर से, हरियाणा के एक गांव के छोटे से तीन कमरों के घर तक, फिर हैदराबाद के उपनगरों में एक छत पर किराए के कमरे से होते हुए 15 और राज्यों तक—सिर्फ कुछ ही मिनटों में लगभग 6 करोड़ रुपये की रकम देश भर में फैले 28 बैंक खातों के जरिए, और बाद में 141 और खातों में, घुमाते हुए गायब कर दी गई.
और यह तो सिर्फ 2024 में दर्ज हुए 1.23 लाख मामलों में से एक है, जिनमें कुल 1,935 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई—यह आंकड़ा 2022 के मुकाबले लगभग तीन गुना है. इन मामलों में डिजिटल अरेस्ट शामिल है, जहां ठग वीडियो कॉल पर फर्जी पूछताछ के जरिए लोगों को डरा-धमका कर उनके बैंक खातों से पैसे निकाल लेते हैं.
देश भर की राज्य पुलिस और साइबर फ्रॉड यूनिट्स द्वारा रिपोर्ट किए जा रहे ट्रेंड्स को ट्रैक करते हुए, “द इंडियन एक्सप्रेस” ने उदाहरणस्वरूप गुरुग्राम के 44 वर्षीय एक विज्ञापन कार्यकारी के मामले को चुना.
एक्सप्रेस में रितु सरीन की रिपोर्ट के अनुसार, कम आय वाले खाताधारकों के खातों का इस्तेमाल करके, एक पल में ही 2 लाख रुपये से 81 लाख रुपये तक की रकम इधर-उधर की गई. जिन बैंक अधिकारियों का काम इस पैसे के प्रवाह पर नजर रखना था, वे या तो अनदेखा करते रहे या अपराध में शामिल थे. वहीं बैंक खुद को बचाने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे.
गुरुग्राम की एक पीड़िता ने कहा, “हर कोई, यहां तक कि जांचकर्ता भी मुझसे पूछते हैं कि एक पढ़ी-लिखी महिला होकर आपसे ऐसी गलती कैसे हो गई? हर पीड़ित को शर्म और अपराधबोध के बोझ से लाद दिया जाता है, जिससे हम चुप हो जाते हैं. अपराधियों को यही सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाता है.”
इस घटना के बाद, उन्होंने अपनी "जिंदगी की कमाई" वापस पाने के लिए कई दरवाजे खटखटाए, यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी लिखा. उनके मामले की जांच अब गुरुग्राम पुलिस की एक एसआईटी कर रही है, जिसे इस साल अप्रैल में गठित किया गया था. अब तक एसआईटी ने हैदराबाद में एक को-ऑपरेटिव बैंक के निदेशक और उसके दो सहयोगियों को गिरफ्तार किया है, जिनसे करीब 58 लाख रुपये बरामद किए हैं.
भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय की साइबर फ्रॉड इकाई है, ने एसआईटी को सतर्क किया है कि हैदराबाद में उसकी जांच से जुड़े 11 "म्यूल" खातों का संबंध 181 ऐसी अन्य शिकायतों से है. जांचकर्ताओं के अनुसार, इन 11 खातों से तीन महीनों में कुल 21 करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ. इन पैसों का कुछ हिस्सा क्रिप्टोकरेंसी खरीदने में इस्तेमाल किया गया, जिस कारण प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को भी जांच में शामिल किया गया है.
टेलीग्राम ‘पेड टास्क स्कैम’: 11 लाख की ठगी करने वाले गिरोह का भंडाफोड़
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट है कि दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम शाखा ने एक टेलीग्राम ‘पेड टास्क स्कैम’ का भंडाफोड़ किया है, जिसमें एक महिला से ₹11 लाख की ठगी की गई. इस गिरोह को एक रूस में पढ़ रहे भारतीय मेडिकल छात्र द्वारा संचालित किया जा रहा था. पुलिस ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के मेरठ और मुज़फ्फरनगर से पांच लोगों को गिरफ्तार किया है और बड़ी मात्रा में डिजिटल साक्ष्य एकत्र किए हैं. उत्तर दिल्ली के शास्त्री नगर की रहने वाली एक महिला ने नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) पर शिकायत दर्ज कराई कि उन्होंने टेलीग्राम पर “पेड टास्क” के ज़रिए ₹11 लाख गवां दिए. पुलिस उपायुक्त (उत्तर) राजा बंथिया के अनुसार, महिला को यूट्यूब वीडियो लाइक करने और रिव्यू लिखने जैसे काम के लिए भुगतान का वादा किया गया था, लेकिन भुगतान पाने के लिए पहले अलग-अलग खातों में रकम भेजने को कहा गया, जिससे वह ठगी की शिकार हो गईं.
‘बीबीसी’ ने गाज़ा के डॉक्टरों पर इजरायली हमलों पर बनी डॉक्यूमेंट्री को रोका, पत्रकारों का खुलासा
'ऑब्जर्वर' की रिपोर्ट है कि एक साल की पड़ताल, दर्जनों साक्षात्कार, अस्पतालों पर हमले, मारे गए डॉक्टरों और विध्वंश स्वास्थ्य व्यवस्था की झकझोर देने वाली कहानी, लेकिन यह सब 'बीबीसी' पर नहीं दिखाया गया. ब्रिटेन के प्रतिष्ठित सार्वजनिक प्रसारणकर्ता 'बीबीसी' ने गाज़ा पर बनी एक गंभीर और प्रमाणिक डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित करने से इनकार कर दिया. इस फैसले के पीछे राजनीति, पक्षपात और डर की लंबी कहानी है, जिसे अब इस डॉक्यूमेंट्री के निर्माता और पत्रकारों ने खुद उजागर किया है.
इस फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे इजरायली सेना ने गाज़ा पट्टी में न सिर्फ आम नागरिकों को बल्कि डॉक्टरों, पैरामेडिक्स और अस्पतालों को भी निशाना बनाया. डॉक्यूमेंट्री की रिपोर्टर थीं रामिता नवाई, एक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त खोजी पत्रकार. इसका निर्देशन किया था करीम शाह ने और कार्यकारी निर्माता थे बेन डी पियर. 'बीबीसी' ने छह बार फिल्म का प्रसारण रोक दिया. फिल्म पूरी हो चुकी थी, संपादन और कानूनी मंज़ूरी मिल चुकी थी, तारीख भी तय थी लेकिन आखिरी समय में 'बीबीसी' ने हर बार प्रसारण से इनकार कर दिया. 'बीबीसी' की एक अन्य फिल्म 'हाउ टू सर्वाइव वॉरजोन' विवादों में घिर गई थी, क्योंकि उसका नैरेटर एक हमास अधिकारी का बेटा था. इससे 'बीबीसी' प्रबंधन गाज़ा विषय को लेकर बेहद सतर्क हो गया. बीबीसी ने सुझाव दिया कि रामिता को "संवाददाता" से घटाकर केवल "योगदानकर्ता" बना दिया जाए, ताकि उन पर उठने वाले सवालों से बचा जा सके. बीबीसी के भीतर कुछ अधिकारियों को उनके सोशल मीडिया पोस्ट 'पक्षपाती' लगे, क्योंकि उन्होंने फलस्तीनियों के पक्ष में अधिक पोस्ट साझा किए थे. इतना ही नहीं 'बीबीसी' की संपादकीय बैठकों में संयुक्त राष्ट्र और एमनेस्टी इंटरनेशनल को "अविश्वसनीय स्रोत" बताया गया, जिससे उनके रिपोर्ट्स को हटाने का दबाव पड़ा. कैमरा (एक प्रॉ-इज़राइल मीडिया मॉनिटरिंग संस्था) और डेविड कॉलियर जैसे सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स की आशंकाओं के आधार पर फिल्म के कंटेंट में बदलाव की मांग की गई. जब डॉक्यूमेंट्री को पूरी तरह से प्रसारित न करने का निर्णय हुआ, तब बीबीसी ने इसे निर्माता को लौटा दिया, लेकिन एक "गैगिंग क्लॉज़" (मौन शपथ) के साथ. इसमें कहा गया कि फिल्म को कोई भी "बीबीसी डॉक्यूमेंट्री" न कहे और न यह कहे कि इसे 'बीबीसी' ने रोका. बेन डी पियर ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि बीबीसी के डायरेक्टर जनरल "पत्रकारिता को नहीं, बल्कि पीआर को समझते हैं".
'बीबीसी' के इनकार के बाद, फिल्म को चैनल 4 ने प्रसारित किया. फिल्म को आलोचकों ने सराहा, दर्शकों ने सराहा और बीबीसी के कई अंदरूनी कर्मचारियों ने व्यक्तिगत रूप से समर्थन किया. रामिता और बेन को बीबीसी के अंदर से भी संदेश मिले: “आप इतिहास के सही पक्ष पर हैं.” 'बीबीसी' ने बयान में कहा - “हमने डॉक्टरों की कहानियां बताने की बहुत कोशिश की, लेकिन रामिता नवाई की रेडियो उपस्थिति, जिसमें उन्होंने इज़राइल को ‘वार क्राइम और नस्लीय सफ़ाए’ का दोषी बताया, उसके बाद हमारे लिए फिल्म प्रसारित करना तटस्थता के लिहाज़ से असंभव था.” लेकिन हकीकत यह थी कि फिल्म को उस घटना से पहले ही रोका जा चुका था. रामिता और बेन का कहना है कि वे "इतिहास के सही पक्ष" पर नहीं, बल्कि "वर्तमान के सही पक्ष" पर रहना चाहते हैं - सच के साथ, न्याय के साथ.
क्रिकेट
लॉर्ड्स में जैसे ही चमत्कार की उम्मीद जगी, बशीर की गेंद सिराज का विकेट ले गई
जैसे ही इंग्लैंड के ऑफ़-स्पिनर शोएब बशीर, जो बाएं हाथ पर पट्टी बांधे हुए गेंदबाजी कर रहे थे, ने मोहम्मद सिराज (जो ताजा चोटिल कंधे के साथ बल्लेबाजी कर रहे थे) का विकेट लिया, क्रिकेट के सबसे बड़े अखाड़े में पांच दिन तक चले रोमांचक मुकाबले का अंत हो गया. इंग्लैंड ने यह टेस्ट 22 रन से जीतकर पांच मैचों की सीरीज़ में 2-1 की बढ़त ले ली, लेकिन यह जीत दोनों टीमों के कई साहसी कारनामों के बाद ही आई.
यह वही टेस्ट था जो किताबों और क्रिकेट प्रेमियों के बीच घंटों चर्चा का विषय बन जाता है. अगर केएल राहुल एलबीडब्ल्यू से बच जाते? अगर जसप्रीत बुमराह ने वह जोखिम भरा पुल शॉट न खेला होता? अगर मोहम्मद सिराज क्रीज पर थोड़ा और टिक जाते? इन 'अगर-मगर' की चर्चा अगले कुछ दिनों तक होती रहेगी, लेकिन इतिहास इंग्लैंड की जीत और रवींद्र जडेजा व इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स के बीच हुई जबरदस्त बल्लेबाज़ी-गेंदबाज़ी की जंग को याद रखेगा.
टॉप ऑर्डर के ढहने के बावजूद, जडेजा ने हार नहीं मानी. भारत को जीत के लिए 193 रन चाहिए थे और टीम ने रात का स्कोर 58/4 से शुरू किया, लेकिन जल्दी-जल्दी विकेट गिरते गए. जडेजा ने निचले क्रम के बल्लेबाजों के साथ बल्लेबाज़ी करते हुए टीम को जीत के करीब पहुंचाया. उन्होंने जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज के साथ 22 ओवर तक खेलते हुए स्कोर 147/9 तक पहुंचाया. सिराज के साथ मिलकर स्कोर 170/9 तक ले गए. लेकिन जैसे ही चमत्कार की उम्मीद जगी, बशीर की गेंद सिराज की डिफेंस में घुस गई और भारत की पारी 170 पर सिमट गई — जीत से 22 रन दूर.
चलते-चलते
बिमल रॉय की 'दो बीघा ज़मीन' का रिस्टोरेशन
फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन (एफएचएफ) ने ऐलान किया है कि बिमल रॉय की कालजयी फिल्म 'दो बीघा ज़मीन' के रिस्टोर्ड वर्जन का वर्ल्ड प्रीमियर प्रतिष्ठित वेनिस फिल्म फेस्टिवल में होने जा रहा है. यह फिल्म भारतीय सिनेमा की एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे बिमल रॉय ने 1953 में निर्देशित किया था. सामाजिक यथार्थवाद और किसान की पीड़ा को मार्मिक ढंग से दर्शाने वाली यह फिल्म आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है. ‘दो बीघा ज़मीन’ भारतीय फिल्म इतिहास की पहली फिल्मों में से एक थी, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया था. अब इसका पुनरुद्धार कर, उसे दुनिया के सबसे पुराने और सम्मानित फिल्म फेस्टिवल में दिखाना, भारतीय फिल्म विरासत को सम्मानित करने जैसा है. यह पुनरुद्धार एफएचएफ की उन कोशिशों का हिस्सा है जो भारत की क्लासिक फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संरक्षित, बहाल और प्रस्तुत करने के उद्देश्य से की जा रही हैं.
भारतीय सिनेमा की कालजयी कृति 'दो बीघा ज़मीन' अब नए रंग और स्पष्टता के साथ दुनिया के सामने पेश होगी. वेनिस फिल्म फेस्टिवल ने महान फिल्मकार बिमल रॉय की 116वीं जयंती के मौके पर यह ऐतिहासिक घोषणा की कि इस प्रतिष्ठित फिल्म के 4K पुनःसंस्करण का विश्व प्रीमियर समारोह में किया जाएगा. 1953 में बनी यह फिल्म भारतीय यथार्थवादी सिनेमा की नींव मानी जाती है. इसका रिस्टोरेशन द क्राइटेरियन कलेक्शन और जानस फ़िल्म्स ने फिल्म हेरिटेज फांउडेशन (एफएचएफ) के साथ मिलकर किया है.
बिमल रॉय के परिवार के सदस्य – उनकी दो बेटियाँ रिंकी रॉय भट्टाचार्य और अपराजिता रॉय सिन्हा, बेटे जॉय बिमल रॉय, और एफएचएफ के निदेशक शिवेंद्र सिंह डुंगरपुर वेनिस में इस फिल्म को प्रस्तुत करेंगे. यह फिल्म न सिर्फ अपने समय में बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा रही है. सत्यजीत रे ने 'दो बीघा ज़मीन' के बारे में कहा था — "अपनी पहली ही फिल्म 'उदयेर पथे' (हिंदी में 'हमराही') से बिमल रॉय ने पुराने सिनेमा की धूल झाड़ दी थी और एक ऐसा यथार्थवाद और सूक्ष्मता लाई जो सिनेमा के लिए अत्यंत उपयुक्त थी. ‘दो बीघा ज़मीन’ उनका शिखर है — एक ऐसी फिल्म जो आज भी उन दर्शकों के दिलों में गूंजती है जिन्होंने इसे पहली बार देखा था. यह भारतीय सिनेमा की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है."
‘दो बीघा ज़मीन’ एक किसान के शहरी संघर्ष की कहानी है, जो पूंजीवादी अन्याय, विस्थापन और मानव गरिमा की गाथा को अत्यंत मार्मिकता के साथ दर्शाती है.
पाठकों से अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर,यूट्यूबपर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.