15/08/2025: फिर बादल फटा, 45 मौतें | केंचुआ अब लिस्ट भी छापेगा, आधार भी मानेगा | लोकसभा चुनावों और मोदी के जीतने पर भी कांग्रेस ने उंगली उठाई | साथी प्रोफेसर की सुपारी | ट्रम्प अलास्का से कहाँ जाएंगे?
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आज की सुर्खियां
किश्तवाड़ में मचैल माता यात्रा मार्ग पर बादल फटा, 45 मरे, 100 से ज्यादा जख्मी
हटाए 65 लाख नामों की सूची कारण सहित सार्वजनिक करें, आधार को भी अनुमति
बिहार एसआईआर : बूथ और बीएलओ में बदलाव से भ्रम पैदा
"वाराणसी की पेन ड्राइव मिल जाए, तो साबित कर देंगे-प्रधानमंत्री को बूस्टर डोज़ मिली थी"
यूपी के बलरामपुर में मूक-बधिर महिला के साथ सामूहिक बलात्कार
दूसरे समुदाय की लड़की के साथ कैफे में बैठा था युवक, गांव वालों ने पीटा, मौत
बीएचयू में साथी प्रोफ़ेसर ने ही कराया था जानलेवा हमला
महाराष्ट्र में मांस और मांसाहार पर आज प्रतिबंध से महायुति में ही विवाद
एमके वेणु: मोदी की व्यक्तिगत कीमत क्या भारत चुकाएगा?
टिमोथी स्नाइडर : अलास्का के बाद ट्रम्प कहाँ जाएंगे?
गर्मी को मात देते स्कूल: बिना एसी के भी ठंडा रहने की कला
बढ़ता तापमान और गायब होते परिंदे
किश्तवाड़ में मचैल माता यात्रा मार्ग पर बादल फटा, 45 मरे, 100 से ज्यादा जख्मी

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ ज़िले के चिशोति क्षेत्र में गुरुवार को बादल फटने की भीषण घटना हुई, जिससे विनाशकारी बाढ़ आ गई. इस हादसे में कम से कम 45 लोगों की मौत हो गई है, जबकि आशंका है कि मृतकों की संख्या 30 से 40 के बीच और बढ़ सकती है. यह तबाही मचैल माता यात्रा के मार्ग पर हुई, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और लगातार हो रही बारिश ने स्थिति को और गंभीर बना दिया. अधिकारियों के अनुसार, घटना के समय दुर्घटना स्थल पर 250 से अधिक लोग मौजूद थे.
किश्तवाड़ जिला विकास परिषद की अध्यक्ष पूजा ठाकुर ने फ़ैयाज़ वानी को बताया, “राहत दल स्थल पर लगातार काम कर रहे हैं. अब तक 100 से 150 लोग घायल हुए हैं, और हम फंसे हुए लोगों को निकालने और उन्हें चिकित्सा सहायता देने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं.”
बाढ़ का पानी इलाके के पार्किंग स्थल, लंगर और सीआरपीएफ कैंप में घुस गया, जिससे कई लोग मलबे में दब गए. राहत और बचाव अभियान जारी है, लेकिन खराब मौसम और क्षतिग्रस्त सड़कों के कारण काम में दिक्कतें आ रही हैं. राहत एवं बचाव अभियानों में सेना भी शामिल हो गई है.लापता लोगों की तलाश जारी है. राहत सामग्री, चिकित्सा दल और बचाव उपकरण भी घटनास्थल पर भेजे गए हैं. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुनील कुमार शर्मा ने भारी संख्या में तीर्थयात्रियों की उपस्थिति को देखते हुए बड़े पैमाने पर तबाही को लेकर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा,"इस समय मचैल माता यात्रा चल रही है, जिसके कारण भारी भीड़ है. यात्रा के कारण लोगों ने छोटी-छोटी दुकानें लगा रखी हैं, वाहन हैं, लोग हैं और आसपास गांव भी हैं." मचैल माता यात्रा, जो 25 जुलाई को शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी, इस त्रासदी के बाद स्थगित कर दी गई है.
बिहार मतदाता सूची विवाद
केंचुआ अब हटाए गये 65 लाख नामों की सूची कारण सहित सार्वजनिक करेगा, आधार भी चलेगा
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत हटाए गए 65 लाख नामों का विवरण तथा उन्हें शामिल न करने के कारण सार्वजनिक किए जाएं, ताकि पारदर्शिता बढ़ाई जा सके. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की अनुमति भी दी कि जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, वे अपना आधार कार्ड लेकर चुनाव अधिकारियों के पास जा सकते हैं. यानी, आधार कार्ड स्वीकार्य होगा.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने "एसआईआर" को चुनौती देने वाली याचिकाओं की लगातार तीसरे दिन सुनवाई करते हुए अपने आदेश में इस बात पर भी जोर दिया कि इस सूची के उपलब्ध होने के स्थानों की जानकारी जनता तक व्यापक रूप से पहुंचाई जाए. इसके लिए अख़बारों (स्थानीय भाषाओं और अंग्रेज़ी के दैनिक अख़बारों), टीवी समाचार चैनलों और रेडियो के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाए. सूची को पंचायत स्तर के कार्यालय और जिला स्तर के रिटर्निंग अधिकारियों के कार्यालय में भी कारणों सहित प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया, ताकि जो लोग इंटरनेट का उपयोग नहीं करते, उनको भी पूरी जानकारी मिल सके.
बेंच ने मामले को 22 अगस्त के लिए सूचीबद्ध करते हुए चुनाव आयोग को 19 अगस्त तक स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के लिए भी कहा. 1 अगस्त को, चुनाव आयोग द्वारा पहले से पंजीकृत मतदाताओं को (ड्राफ्ट) मतदाता सूची में शामिल न करने के जो कारण बताए गए, उनमें शामिल थे — मृत्यु 22.34 लाख, "स्थायी रूप से स्थानांतरित/अनुपस्थित" 36.28 लाख और "पहले से एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत" 7.01 लाख.
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि आयोग के पास कुछ निर्णय लेने के लिए पर्याप्त अधिकार हैं, लेकिन खेद जताया कि चुनाव आयोग "कड़ी राजनीतिक शत्रुता के माहौल" में काम कर रहा है, जहां उसके अधिकांश निर्णयों को चुनौती दी जाती है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में आयोग "राजनीतिक दलों के संघर्ष के बीच फंसा हुआ" है, जहां पार्टियां हारने पर ईवीएम को "खराब" कहती हैं और जीतने पर "अच्छा" बताती हैं.
द्विवेदी ने कहा कि एक सावधानीपूर्वक अनुमान के अनुसार लगभग 6.5 करोड़ लोगों को बिहार में "एसआईआर" के लिए कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वे या उनके माता-पिता 2003 की मतदाता सूची में पहले से पंजीकृत थे. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह जानना चाहा कि 2003 में बिहार में हुए व्यापक मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान किन दस्तावेजों पर विचार किया गया था. बेंच ने कहा, "हम चाहते हैं कि चुनाव आयोग बताए कि 2003 की इस कवायद में कौन-कौन से दस्तावेज लिए गए थे."
उक्त टिप्पणी तब आई जब एक पक्ष की ओर से पेश हुए वकील निज़ाम पाशा ने अदालत के कथित रूप से यह कहने का उल्लेख किया कि "यदि 1 जनवरी 2003 (पहले वाले एसआईआर की तारीख) की तारीख चली जाती है, तो सब कुछ चला जाता है."
पाशा ने कहा, “मुझे यह कहना है कि यह तिथि क्यों रखी गई, इसका कोई आधार नहीं दिखाया गया. यह धारणा दी गई कि यह वह पूर्व तिथि है, जब मतदाता सूची के संशोधन के लिए गहन (इंटेंसिव) अभ्यास किया गया था. यह कहा जा रहा है कि उस समय जारी किया गया एपिक (मतदाता) कार्ड, समय-समय पर किए गए संक्षिप्त (समरी) अभ्यास के दौरान जारी किए गए कार्ड से अधिक भरोसेमंद है- यह गलत है.”
चुनाव आयोग हर साल चुनाव से पहले मतदाता सूचियों में नाम जोड़ने और हटाने के लिए संक्षिप्त संशोधन करता है, जबकि व्यापक संशोधन एक राज्य में लंबे समय के बाद मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण के लिए किया जाता है. पाशा ने सवाल किया कि अगर व्यापक और संक्षिप्त संशोधन दोनों में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया समान है, तो संक्षिप्त अभ्यास के दौरान जारी किए गए एपिक कार्ड को कैसे अमान्य किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि 2003 की तिथि अवैध है और यह किसी “समझ में आने वाले अंतर” पर आधारित नहीं है.
उन्होंने कहा, "मेरे नामांकन (एन्यूमरेशन) फॉर्म की रसीद या कोई दस्तावेज़, जो रसीद की प्राप्ति को स्वीकार करता हो, नहीं दिया जा रहा है, और इस कारण सब कुछ बूथ स्तर के अधिकारियों के हाथ में है तथा इन निचले स्तर के अधिकारियों के पास यह तय करने का अत्यधिक विवेकाधिकार है कि फॉर्म लेना है या नहीं."
वरिष्ठ वकील शोएब आलम ने चुनाव आयोग की अधिसूचना में अपर्याप्त कारणों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि यह प्रक्रिया न तो "संक्षिप्त" है और न ही "गहन", बल्कि सिर्फ अधिसूचना की एक रचना है."यह मतदाता पंजीकरण की प्रक्रिया है, इसे अयोग्यता की प्रक्रिया नहीं बनाया जा सकता. यह स्वागत की प्रक्रिया है, इसे अस्वागत में बदलने की प्रक्रिया नहीं होना चाहिए," उन्होंने कहा.
इस मामले में एक याचिकाकर्ता योगेंद्र यादव ने कहा कि "आधार कार्ड उन 65 लाख लोगों के लिए बारहवां दस्तावेज़ होगा, जिनके नाम चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची से हटाए गए हैं.उन्होंने कहा कि यह एक अस्थाई राहत है लेकिन अंततः यह हर किसी पर लागू हो सकती है.
बूथ और बीएलओ में बदलाव से भ्रम पैदा
मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बीच बिहार में, चुनाव आयोग ने पूरे राज्य में पोलिंग स्टेशनों का पुनर्गठन और संगठित करने का कार्य किया है, जिसे राजनीतिक दलों ने ज़मीन पर भ्रम बढ़ाने वाला बताया है. राज्य में पोलिंग स्टेशनों की संख्या अब 77,895 से बढ़कर 90,712 हो गई है. यह कदम 24 जून के एसआईआर आदेश का पालन करने के लिए उठाया गया है, जिसमें प्रत्येक पोलिंग स्टेशन में मतदाताओं की संख्या को पहले की 1,500 की सीमा से घटाकर 1,200 करने का निर्देश था. लेकिन, चुनाव आयोग के इस कदम ने मतदान केंद्रों के स्थानांतरण और बीएलओ के बदलाव को जन्म दिया है.
"द हिंदू" में श्रीपर्णा चक्रबर्ती ने बताया है कि इस बदलाव के चलते मतदाताओं में भ्रम बढ़ गया है, क्योंकि कई मतदाता और स्थानीय अधिकारी अपने नए बूथ और बीएलओ की जानकारी को लेकर उलझन में हैं. मतदाता अपने नामों को खोजने और सही बूथ का पता करने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं. जिससे मतदान प्रक्रिया को सुचारू ढंग से चलाना चुनौतीपूर्ण हो गया है. इस पूरे बदलाव का मकसद मतदान केंद्रों पर भीड़ कम करना, मतदान प्रक्रिया को तेज करना और मतदाता सुविधा बढ़ाना है. चुनाव आयोग ने यह भी सुनिश्चित किया है कि मतदाताओं को अपने बूथ तक पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर से अधिक यात्रा न करना पड़े, लेकिन बदलाव से उत्पन्न भ्रम को दूर करने और मतदाताओं को सही जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता है. इसलिए, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह प्रक्रिया चुनाव आयोजन की तैयारी का अहम हिस्सा है, लेकिन जमीन पर इसे लेकर पोलिंग एजेंटों, अधिकारियों और मतदाताओं के बीच बेहतर संवाद और जानकारी पहुंचाने की जरूरत महसूस की जा रही है.
"वाराणसी की पेन ड्राइव मिल जाए, तो साबित कर देंगे-प्रधानमंत्री को बूस्टर डोज़ मिली थी"
कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर दोहरी नीति अपनाने का आरोप लगाया है. पार्टी के मीडिया और प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने गुरूवार को कहा कि जिस तरह लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से बैंगलोर सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख “फर्जी मतदाताओं” के दावे के लिए शपथपूर्वक सबूत मांगा गया, उसी तरह भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर से सबूत क्यों नहीं मांगे जा रहे?
शेमिन जॉय के अनुसार, खेड़ा ने कहा कि ठाकुर ने अपने मतदाता सूची में हेरफेर के दावों से “भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत” को उजागर कर दिया है, विशेषकर उन सीटों पर जहां से शीर्ष विपक्षी नेता जीते थे. कहा कि कांग्रेस को महादेवपुरा सीट का डेटा इकट्ठा करने और उसका विश्लेषण करने में छह महीने लग गए, क्योंकि मतदाता सूची कागज़ पर थी, लेकिन ठाकुर ने छह दिन में ही छह लोकसभा सीटों के बारे में विश्लेषण पेश कर दिया. इससे साफ़ जाहिर होता है कि भाजपा और चुनाव आयोग के बीच मिलीभगत है. इसी वजह से पार्टी को “इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची” मिल गई, वर्ना छह दिन में 6 लोकसभा सीटों का डेटा दे पाना असंभव कार्य है.
उन्होंने कहा, “इसीलिए आज पूरा देश कह रहा है — ‘वोट चोर, गद्दी छोड़.’ ठाकुर की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने साबित कर दिया है कि पिछला लोकसभा चुनाव फर्जी मतदाता सूची के आधार पर लड़ा गया था, तो क्या इस चुनाव को अवैध नहीं माना जाना चाहिए? क्या इस चुनाव को रद्द नहीं किया जाना चाहिए?”
खेड़ा ने कहा कि वे बीजेपी का धन्यवाद करते हैं कि उसने राहुल द्वारा कही गई उस बात को साबित कर दिया कि इस देश में चुनाव फर्जी मतदाताओं के आधार पर लड़े गए. उनका दावा था कि ठाकुर ने चुनाव आयोग से इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची प्राप्त की और मांग की कि चुनाव आयोग और बीजेपी नेता वाराणसी की इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची का डेटा सार्वजनिक करें.
"अगर बीजेपी को पहले ही इलेक्ट्रॉनिक डाटा मिल चुका है, तो हम भी वाराणसी की वोटर लिस्ट की पेन ड्राइव का इंतज़ार कर रहे हैं. अगर हमें यह मिल जाती है, तो सभी को यक़ीन हो जाएगा कि मतगणना के दिन प्रधानमंत्री को फर्जी वोटरों की बूस्टर डोज़ मिली थी... क्योंकि मतगणना में प्रधानमंत्री पीछे चल रहे थे और मीडिया में अपडेट आना अचानक बंद हो गया था. अगर हमें वाराणसी की इलेक्ट्रॉनिक वोटर लिस्ट मिल जाती है, तो हम साबित कर देंगे कि मोदी चुनाव चुराकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं," खेड़ा ने दावा किया.
जब उनसे पूछा गया कि उन्हें देश की संस्थाओं पर कम भरोसा है, तो खेड़ा ने पलटकर पूछा — “क्या ठाकुर कल इन संस्थाओं पर भरोसा कर रहे थे, जब उन्होंने ये दावे किए?”
यूपी के बलरामपुर में मूक-बधिर महिला के साथ सामूहिक बलात्कार
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में एक मूक-बधिर और मानसिक रूप से विकलांग महिला के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया. 22 वर्षीय पीड़िता अपनी मौसी के घर से अपने घर लौट रही थी. रास्ते में बाइक सवार लोगों ने उसका पीछा किया. वह उनसे बचने के लिए भागने लगी. यह पूरा घटनाक्रम एसपी के आवास पर लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया. जब वह एक घंटे बाद घर वापस नहीं आई, तो परिवार ने उसकी तलाश की और उसे बहादुरपुर थाना के पास किसी खेत में संदिग्ध हालत में पाया. महिला को जिला महिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी स्थिति स्थिर बताई गई है, लेकिन वह घटना के कारण मानसिक सदमे में है.पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की मदद से दो आरोपी हर्षित पांडे और अंकुर वर्मा को बलरामपुर पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया गया और प्रारंभिक जांच के दौरान उन्होंने अपराध कबूल कर लिया. सतीश आचार्य का इसपर मार्मिक कार्टून
दूसरे समुदाय की लड़की के साथ कैफे में बैठा था युवक, गांव वालों ने पीटा, मौत
महाराष्ट्र में 21 वर्षीय युवक, जो पुलिस के अनुसार एक अलग समुदाय की 17 वर्षीय लड़की का करीबी था, को जलगांव जिले के एक गांव में कुछ लोगों के झुंड ने सरेआम घुमाकर पीटा और उसकी हत्या कर दी. जब उसके परिवार के लोगों ने उसे बचाने की कोशिश की, तो उन्हें भी पीटा गया.
इस मामले में अभी तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. पुलिस के अनुसार, सुलेमान रहीम खान पठान (21) सोमवार सुबह अपने गांव छोटा बेटावट से 15 किलोमीटर दूर जामनेर के लिए निकला था, जहां वह पुलिस भर्ती के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरने जा रहा था. दोपहर लगभग 3:30 बजे, जब खान एक लड़की के साथ एक कैफ़े में बैठा था, 8-10 लोग वहां पहुंचे और उसके मोबाइल में एक तस्वीर देखने के बाद उसकी पिटाई की. उसे कैफ़े से बाहर घसीटकर बाहर ले गए.
बीएचयू में साथी प्रोफ़ेसर ने ही दी थी सुपारी
उत्तर प्रदेश पुलिस ने बताया कि पिछले महीने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के तेलुगू विभाग के अध्यक्ष पर हुए हमले की साजिश कथित रूप से उसी विभाग के एक प्रोफेसर ने रची थी. बुधवार को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख अजय राय ने बीएचयू ट्रॉमा सेंटर, वाराणसी में प्रोफेसर मूर्ति से मुलाकात की. हालांकि, मुख्य आरोपी, प्रयागराज के सुपारी किलर गणेश पासी, को पुलिस ने वाराणसी के लंका इलाके से गिरफ्तार कर लिया है. बताया गया कि पासी ने दो अन्य अपराधियों के साथ मिलकर पहले रेकी की और फिर पिछले महीने कैंपस की सड़क पर बीएचयू के प्रोफेसर सी. एस. रामचंद्र मूर्ति पर हमला कर दिया था. इस हमले में प्रोफेसर मूर्ति के दोनों हाथ में फ्रेक्चर हो गया था और वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे, लेकिन उनकी जान बच गई. डीसीपी (क्राइम) टी. सर्वन ने कहा, “बीएचयू तेलुगू विभाग के प्रोफेसर बुदाती वेंकटेश्वरलु के निर्देश पर एक पूर्व शोध छात्र ने पासी के साथ मिलकर यह हमला करवाया था.”
महाराष्ट्र में मांस और मांसाहार पर आज प्रतिबंध से महायुति में ही विवाद
महाराष्ट्र में कई नगरीय निकायों द्वारा स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के दिन बूचड़खानों को बंद करने और मांस की बिक्री पर रोक लगाने के निर्णय को लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति में ही विवाद हो गया है. हालांकि, भाजपा ने इस फैसले का बचाव करते हुए कई बार इसे जन्माष्टमी त्योहार से जोड़ा है, जो स्वतंत्रता दिवस के बाद आता है, लेकिन उसकी अपनी सहयोगी पार्टियां जैसे कि एनसीपी और शिव सेना भी इस फैसले से सहमत नहीं हैं और उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया है. विपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भोजन की आजादी को सीमित कर रहे हैं. शुभांगी खापरे के अनुसार, 15 अगस्त के दिन 24 घंटे के लिए नागपुर, कल्याण-डोंबिवली, मालेगांव, और जलगांव जैसे चार से अधिक नगर निगमों ने बूचड़खानों और मांस की दुकानों को बंद करने का आदेश दिया है. कल्याण-डोंबिवली निकाय (जिसने सबसे पहले यह सूचना जारी की) ने कहा कि यह प्रतिबंध सभी लाइसेंस प्राप्त कसाइयों पर लागू होगा जो बकरी, भेड़, मुर्गी और बड़े जानवरों से संबंधित हैं.
विश्लेषण | ट्रम्प के टैरिफ़
एमके वेणु: मोदी की व्यक्तिगत कीमत क्या देश के लोग चुकाएंगे?
द इंडिया केबल में एमके वेणु ने ट्रम्प के टैरिफों की रोशनी में भारत की स्थिति का विश्लेषण किया है. उसके प्रमुख अंश
ट्रम्प के साथ भारत बहुत लंबी व्यापार वार्ता नहीं कर सकता. समय बहुत महत्वपूर्ण है. भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी खपत और निवेश, दोनों घरेलू और विदेशी, के सामने निरंतर अनिश्चितता का सामना नहीं कर सकती.
भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत मार्च 2025 में शुरू की थी, यह भी ट्रम्प द्वारा अप्रैल की शुरुआत में दुनिया पर दंडात्मक टैरिफ की घोषणा करने से पहले हुआ था. चार महीनों में फैले पांच दौर की बातचीत के बाद, भारत एक अंतरिम समझौता भी नहीं कर सका और इसके बजाय उसके सभी निर्यातों पर 50% का टैरिफ लगा दिया गया. अब नए वार्ताकारों को खोजने का एक हताश प्रयास किया जा रहा है जो यह पता लगा सकें कि ट्रम्प के साथ क्या काम कर सकता है. एक रिपोर्ट यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी अगले महीने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान उनसे मिलने की कोशिश करेंगे.
मुख्य मुद्दे पर वापस आते हैं, क्या भारत के पास समय की विलासिता है? भारत पर सबसे दंडात्मक टैरिफ की घोषणा करने के बाद, ट्रम्प ने सभी लंबित व्यापार मुद्दों को हल करने के लिए 21 दिन का समय दिया है. उसके बाद, टैरिफ लागू हो जाएगा. भारत को किसी न किसी तरह से एक राजनीतिक निर्णय लेना होगा.
स्पष्ट रूप से, केवल दो विकल्प हैं. एक विकल्प यह है कि भारत पांच दौर की बातचीत के दौरान अपनाई गई अपनी दृढ़ स्थिति को नरम करे, खासकर कृषि और डेयरी क्षेत्र को खोलने पर. मोदी अब मामलों को और नहीं उलझा सकते. ट्रम्प ने एक तरह से उन्हें कुछ हद तक घेर लिया है. यदि मोदी कुछ क्षेत्रों में भारत की स्थिति को नरम करते हैं तो उन्हें इसे अपने घरेलू मतदाताओं को पारदर्शी रूप से बताना होगा. भले ही भारत ने रूसी तेल खरीदने से अमेरिकी ऊर्जा की ओर रुख करने का फैसला किया हो, इसे खुले तौर पर करना होगा. अब छिपने की कोई जगह नहीं है.
दूसरा विकल्प यह है कि अपनी स्थिति पर दृढ़ता से टिके रहें और देश को विश्वास में लें कि बहुत अधिक पर अल्पकालिक दर्द होगा जिसे भारतीयों को सामूहिक रूप से सहना होगा. उस तरह के दर्द से निपटने के लिए एक अलग तरह के नीतिगत उपायों की आवश्यकता होगी. मोदी की अब तक की प्रवृत्ति बातचीत में पहले से निर्धारित लाल रेखाओं को पार नहीं करने की रही है. उनका सार्वजनिक बयान कि वह किसानों की रक्षा के लिए 'व्यक्तिगत कीमत चुकाने' को तैयार हैं, इस बात का संकेत है कि वह बहुत दबाव में हैं.
सच तो यह है कि भारत के गरीब और निम्न मध्यम वर्ग अब तक के आर्थिक कुप्रबंधन की वास्तविक कीमत चुका रहे हैं. ट्रम्प का टैरिफ, भले ही यह केवल 25% हो, केवल चीजों को और खराब करने की संभावना है.
इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत के लोग - श्रमिक, व्यापारी, उत्पादक और उपभोक्ता - जल्द से जल्द जानें कि वे वास्तव में कहां खड़े हैं ताकि वे अपनी अपेक्षाओं का निर्धारण कर सकें. अर्थव्यवस्था मोदी और ट्रम्प के बीच खेले जा रहे लुका-छिपी के खेल के लिए बहुत लंबा इंतजार नहीं कर सकती.
अधिकांश स्वतंत्र आर्थिक अनुसंधान संगठनों ने यह घोषित किया है कि मौजूदा टैरिफ पर भारत को सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 से 1 प्रतिशत अंक का नुकसान हो सकता है. इससे भी अधिक, वे क्षेत्र जो अमेरिका को पर्याप्त मात्रा में निर्यात करते हैं - गारमेंट्स, परिधान और वस्त्र और रत्न, आभूषण और कीमती पत्थर - काफी श्रम प्रधान हैं और पहले से ही छोटे निर्माताओं को नए ऑर्डर के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. साथ में, ये दोनों क्षेत्र लगभग 17 बिलियन डॉलर का योगदान करते हैं और आपूर्ति ज्यादातर छोटे क्षेत्र से आती है जो बहुत कम मार्जिन पर काम करते हैं. टाटा, अंबानी या अडानी जैसे बड़े कॉर्पोरेट समूह अभी भी अपनी विशाल बैलेंस शीट में कम मार्जिन और घाटे को अवशोषित कर सकते हैं. लेकिन एमएसएमई क्षेत्र नहीं कर सकता. सबसे पहले वे बंद होंगे.
कुछ विशेषज्ञ यहां तक सुझाव देते हैं कि एक बार फिर से ग्रामीण क्षेत्रों में एक मिनी कोविड-लॉकडाउन जैसा श्रम प्रवास हो सकता है. ये ऐसी चीजें हैं जिनके लिए सरकार को नीतिगत विकल्पों पर विचार करते समय तैयारी करनी होगी.
यदि मोदी कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने के लिए सहमत होते हैं, तो एक अलग तरह की प्रतिक्रिया होगी. इसलिए ट्रम्प ने वास्तव में अपने दोस्त मोदी को दो कठोर विकल्पों के बीच डाल दिया है.
इससे भी बदतर, यह सब ऐसे समय में आ रहा है जब अर्थव्यवस्था 7% जीडीपी विकास पथ पर वापस आने के लिए संघर्ष कर रही है. इस साल के केंद्रीय बजट के बाद, उम्मीदें बढ़ गई थीं कि सरकारी खर्च और आयकर कटौती द्वारा समर्थित निजी खपत विकास को फिर से 7% से अधिक तक बढ़ा देगी. लेकिन वह उम्मीद झूठी साबित हुई.
अप्रैल में ट्रम्प के टैरिफ ने वास्तव में उन सभी सकारात्मकताओं को रद्द कर दिया जो बजट में हो सकती थीं. ऑटो बिक्री, स्टील की खपत और बिजली की मांग जैसे उच्च-आवृत्ति संकेतक अब धीमी वृद्धि दिखाते हैं, जो मांग-पक्ष के दबावों की ओर इशारा करते हैं. बैंक ऋण वृद्धि जून 2025 में तेजी से घटकर 9% हो गई, जो एक साल पहले 16% थी, जो कमजोर निवेश मांग का संकेत है. शहरी उपभोग की मांग, विशेष रूप से, उच्च किराये की मुद्रास्फीति और धीमी मजदूरी वृद्धि के कारण चुनौतियों का सामना करती है, इस वर्ष मंदी के बने रहने की उम्मीद है.
ऑनलाइन प्रकाशन, मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट द्वारा लाए गए परेशान करने वाले यूपीआई भुगतान डेटा भी हैं, जिसमें कहा गया है कि सबसे अधिक वृद्धि पुराने कर्जों को चुकाने के लिए लिए गये कर्जों में दर्ज की जा रही है. भुगतान डेटा - जो विशाल निम्न मध्यम वर्ग द्वारा खर्च को दर्शाने वाला रीयलटाइम डेटा है - यह भी धीमी खपत दिखाता है, दोनों विवेकाधीन और गैर-विवेकाधीन. यह भी सर्वविदित है कि औसत मध्यम वर्ग के भारतीय खपत के लिए अपनी बचत निकाल रहे हैं क्योंकि मजदूरी और वेतन स्थिर हो गए हैं. यह आईटी जैसे क्षेत्रों में भी स्थिर है जहां कुछ साल पहले तक चीजें बेहतर थीं.
पिछले कुछ वर्षों में खपत के लिए ऋण लेने के लिए सोने की रिकॉर्ड गिरवी भी देखी गई है. एक अनुमान के अनुसार, 2027 तक सोने के बदले कुल बकाया ऋण 14 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. यह 2018 तक 3 लाख करोड़ रुपये से कम था.
ग्रामीण मांग में सुधार भी सुस्त रहा है, जो मानसून पर बहुत अधिक निर्भर है. कुछ वैश्विक शोध फर्मों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि खपत की मांग में एक संरचनात्मक गिरावट अब एक वास्तविकता है, जो कमजोर निवेश दरों, स्थिर वास्तविक मजदूरी द्वारा चिह्नित है. स्विस आधारित यूबीएस समूह ने पिछले जनवरी में चेतावनी दी थी कि भारत की अर्थव्यवस्था एक "संरचनात्मक मंदी" में प्रवेश कर चुकी है, जो ऋण वृद्धि, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, निर्यात प्रतिस्पर्धा और कॉर्पोरेट आय में दीर्घकालिक नरमी से प्रेरित है - न कि केवल अल्पकालिक चक्रीय उतार-चढ़ाव से.
कठोर ट्रम्प टैरिफ और चल रही बातचीत भारत के लिए इस कमजोर मोड़ पर ले आई है.
विश्लेषण | ट्रम्प पुतिन वार्ता
टिमोथी स्नाइडर : अलास्का के बाद ट्रम्प कहाँ जाएंगे?
टिमोथी स्नाइडर एक अमेरिकी इतिहासकार हैं जो मध्य और पूर्वी यूरोप, सोवियत संघ और होलोकॉस्ट के इतिहास के विशेषज्ञ हैं. वे येल विश्वविद्यालय में इतिहास के रिचर्ड सी. लेविन प्रोफेसर और वियना में मानव विज्ञान संस्थान में एक स्थायी फेलो हैं. स्नाइडर पाँच यूरोपीय भाषाएँ बोलते हैं और दस पढ़ सकते हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें "ब्लडलैंड्स: यूरोप बिटवीन हिटलर एंड स्टालिन" और "ऑन टायरनी: ट्वेंटी लेसन्स फ्रॉम द ट्वेंटिएथ सेंचुरी" शामिल हैं. उनके काम का चालीस भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. स्नाइडर यूक्रेन, अमेरिकी राजनीति और अधिनायकवाद को रोकने की रणनीतियों जैसे विषयों पर अंतरराष्ट्रीय प्रेस में लिखते और बोलते हैं. सब्सटैक पर यहां लिखते हैं.

प्राचीन दुनिया में, लोग "अल्टीमा थुले" की बात करते थे, जो सुदूर उत्तर में एक पौराणिक भूमि थी, जिसे पृथ्वी का अंत माना जाता था. व्लादिमीर पुतिन से मिलने के लिए अलास्का जाकर, डोनाल्ड ट्रम्प अपने स्वयं के अल्टीमा थुले तक पहुँचते हैं, जो उनकी विदेश नीति की सपनों की दुनिया का आर्कटिक अंतिम बिंदु है.
ट्रम्प के विदेशी संबंधों का आधार यह है कि विदेशी नेताओं के साथ भी अमेरिकियों की तरह ही शानदार वादों और घिनौनी धमकियों से निपटा जा सकता है. लेकिन ये कल्पनाएँ अमेरिका की सीमाओं के बाहर काम नहीं करती हैं. "सुंदर" भविष्य का खोखला प्रस्ताव उन तानाशाहों को प्रभावित नहीं करता जो अपने स्वयं के सपनों के लिए अपराध करते हैं, या उन लोगों को प्रभावित नहीं करता जो एक आपराधिक आक्रमण से अपने परिवारों की रक्षा कर रहे हैं.
यूक्रेन साढ़े तीन साल से रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण का विरोध कर रहा है. यूक्रेनी इसलिए लड़ते हैं क्योंकि रूसी उनकी भूमि पर आक्रमण करते हैं, उनकी संपत्ति चुराते हैं, उनके बच्चों का अपहरण करते हैं और उन्हें रूसी बनाकर पालते हैं, तहखानों में नागरिकों को यातना देते हैं, राजनीति या नागरिक समाज से किसी भी तरह का संबंध रखने वाले लोगों की हत्या करते हैं, और उनकी संप्रभुता को नष्ट करते हैं.
इस मामले में, पुतिन का भी एक सुंदर भविष्य का अपना दृष्टिकोण है, और उनके पास ट्रम्प के बजाय अपने दृष्टिकोण को प्राथमिकता देने का कोई कारण नहीं है. पुतिन का आदर्शलोक एक ऐसी यूक्रेन की कल्पना है जहाँ कोई सरकार न हो, जहाँ की आबादी यातना से डरी हुई हो, जहाँ बच्चों को चुराकर उनका ब्रेनवॉश किया गया हो, जहाँ देशभक्तों की हत्या कर उन्हें सामूहिक कब्रों में दफ़ना दिया गया हो, और जहाँ के संसाधन रूसियों के हाथों में हों.
ट्रम्प की कल्पनाओं की तरह, उनकी धमकियाँ भी विदेशों में काम नहीं करती हैं. यह सच है कि कई अमेरिकी ट्रम्प से डरते हैं. उन्होंने अपनी ही राजनीतिक पार्टी को हिंसा के माध्यम से साफ़ कर दिया है. वह अमेरिकी सेना को एक पुलिस बल के रूप में तैनात कर रहे हैं, पहले कैलिफ़ॉर्निया में और फिर वाशिंगटन डीसी में.
लेकिन विदेशी दुश्मन इन डराने-धमकाने की तरकीबों को अलग तरह से समझते हैं. मॉस्को में, संयुक्त राज्य अमेरिका के अंदर सैनिकों की तैनाती कमज़ोरी के रूप में देखी जाती है. ट्रम्प यह संकेत दे रहे हैं कि वह अमेरिकी सेना का काम निहत्थे अमेरिकियों पर ज़ुल्म करना मानते हैं. यही कदम जो अमेरिकियों को चौंकाता है, अमेरिका के दुश्मनों को प्रसन्न करता है.
कड़ी बातें अमेरिका में गूंज सकती हैं, जहाँ हम शब्दों को कार्रवाई समझने की भूल करते हैं. लेकिन रूसी नेताओं के लिए यह एक कमज़ोर विदेश नीति को छुपाता है. ट्रम्प ने रूस को बिना किसी चीज़ के बदले में असाधारण रियायतें दी हैं. रूस ने इसका बदला युद्ध जारी रखकर और उसे जीतने की कोशिश करके दिया है - और सरकार-नियंत्रित टेलीविजन पर ट्रम्प पर हँसकर.
वे रियायतें क्या हैं? केवल अलास्का में पुतिन से मिलकर, ट्रम्प रूसी तानाशाह को यूक्रेन पर अपने आक्रमण की कहानी फैलाने का मौका देते हैं, दोनों ट्रम्प के आसपास के अमेरिकियों और अमेरिकी प्रेस को. एक आरोपित युद्ध अपराधी से हाथ मिलाकर, ट्रम्प यह संकेत देते हैं कि हत्याएं, यातनाएं, और अपहरण कोई मायने नहीं रखते.
यहाँ तक कि अलास्का का चुनाव भी एक रियायत है, और एक अजीब रियायत. रूसी, जिनमें रूसी-मीडिया के प्रमुख व्यक्ति भी शामिल हैं, नियमित रूप से अलास्का पर रूस का दावा करते हैं. जैसा कि पुतिन के एक विशेष दूत ने कहा, पुतिन की अलास्का यात्रा एक "घरेलू उड़ान" है.
जिन लोगों ने आपके क्षेत्र पर दावा किया है, उन्हें उसी क्षेत्र पर आपके मुख्य सैन्य अड्डे के अंदर उस आक्रामक युद्ध पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित करना, जिसे उन्होंने बिना उस देश की भागीदारी के शुरू किया था जिस पर उन्होंने आक्रमण किया था - यह कल्पना के एक निश्चित तर्क की पराकाष्ठा है. यह अल्टीमा थुले है.
यह अल्टीमा थुले है, बिल्कुल अंत, क्योंकि ट्रम्प पहले ही अधिक मौलिक मुद्दों पर रियायत दे चुके हैं. वह रूसी युद्ध अपराधियों के लिए न्याय की आवश्यकता या रूस द्वारा मुआवज़ा देने की आवश्यकता की बात नहीं करते हैं. ट्रम्प प्रशासन यह मानता है कि रूस नाटो सदस्यता के महत्वपूर्ण बिंदु पर यूक्रेन और अमेरिका की विदेश नीति का निर्धारण कर सकता है. उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि रूस के आक्रमणों से न केवल वास्तविक बल्कि कानूनी रूप से भी क्षेत्र पर संप्रभु नियंत्रण में बदलाव होना चाहिए.
यह समझाने के लिए एक लंबा निबंध लगेगा कि ये रियायतें कितनी मूर्खतापूर्ण हैं. यह स्वीकार करना कि आक्रमण कानूनी रूप से सीमाओं को बदल सकता है, विश्व व्यवस्था को समाप्त कर देता है. रूस को दूसरों की विदेश नीति तय करने का अधिकार देना रूस द्वारा और आक्रामकता को प्रोत्साहित करता है. आपराधिक आक्रामक युद्धों के प्रति स्पष्ट कानूनी और ऐतिहासिक प्रतिक्रियाओं - मुआवज़ा और मुकदमे - को छोड़ना सामान्य रूप से युद्ध को प्रोत्साहित करता है.
ट्रम्प ज़ोर से बोलते हैं और एक छोटी छड़ी लेकर चलते हैं. यह धारणा कि केवल शब्द ही काम कर सकते हैं, ट्रम्प को इस स्थिति में ले आई है कि पुतिन के शब्द मायने रखते हैं, और इसलिए उन्हें "सुनने के अभ्यास" के लिए अलास्का जाना चाहिए. ट्रम्प का करियर पुतिन को सुनने और फिर पुतिन जो कहते हैं उसे दोहराने से भरा रहा है.
ट्रम्प और पुतिन अपनी महानता की भविष्य की धारणा से प्रेरित हैं. पुतिन का मानना है कि यह युद्ध द्वारा हासिल किया जा सकता है, और इस युद्ध का एक तत्व अमेरिकी राष्ट्रपति का हेरफेर है. ट्रम्प का मानना है कि यह शांति के साथ जुड़कर हासिल किया जा सकता है, जो, जब तक वह खुद नीति बनाने के लिए तैयार नहीं होते, उन्हें युद्ध करने वाले की शक्ति में डाल देता है.
पुतिन युद्ध समाप्त करने के लिए प्रेरित नहीं होते जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा उनके अपने प्रचार को दोहराया जाता है. उन्हें एक बेहतर दुनिया के अस्पष्ट दृष्टिकोण से फुसलाया नहीं जा सकता, क्योंकि उनके मन में अपना बहुत ही विशिष्ट अत्याचार है.
अलास्का में, ट्रम्प अपने व्यक्तिगत अल्टीमा थुले तक पहुँचते हैं, जो जादुई बातों की उनकी अपनी व्यक्तिगत दुनिया की सीमा है.
उन्हें एक बहुत ही सरल मुद्दे का सामना करना पड़ता है: क्या पुतिन बिना शर्त युद्धविराम स्वीकार करेंगे या नहीं.
पुतिन ने ऐसी किसी भी चीज़ से इनकार कर दिया है. रूसी एक स्पष्ट रूप से हास्यास्पद और उत्तेजक जवाबी प्रस्ताव देते हैं: कि यूक्रेन को अब औपचारिक रूप से रूस को वह क्षेत्र सौंप देना चाहिए जिस पर रूस का कब्ज़ा भी नहीं है, वे ज़मीनें जिन पर यूक्रेन ने अपनी रक्षाएँ बनाई हैं. और फिर रूस निश्चित रूप से, एक बहुत बेहतर स्थिति से फिर से हमला कर सकता है.
पुतिन जानते हैं कि ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार चाहते हैं. और इसलिए पुतिन का स्पष्ट कदम ट्रम्प को यह सुझाव देना है कि युद्ध किसी दिन समाप्त हो जाएगा, और ट्रम्प को इसका श्रेय मिलेगा, अगर वे दोनों बस बात करते रहें (और जब तक रूस बमबारी करता रहे).
यदि ट्रम्प अलास्का से बिना पुतिन के बिना शर्त युद्धविराम के लिए सहमत हुए बिना चले जाते हैं, तो ट्रम्प दो रास्ते अपना सकते हैं. वह कल्पना को जारी रख सकते हैं, हालाँकि यह उनके दोस्तों और समर्थकों के लिए भी और अधिक स्पष्ट हो जाएगा कि कल्पना पुतिन की है.
या ट्रम्प वह नीति बना सकते हैं जो पुतिन के लिए युद्ध को और कठिन बना देगी, और इस तरह इसके अंत को करीब लाएगी.
संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस को दी गई अपनी विचित्र रियायतों को औपचारिक रूप नहीं दिया है, और उन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में वापस ले सकता है. संयुक्त राज्य अमेरिका के पास यूक्रेन में युद्ध की दिशा बदलने के लिए नीतिगत उपकरण हैं, और वह उन्हें नियोजित कर सकता है.
ट्रम्प ने "गंभीर परिणाम" की धमकी दी है यदि पुतिन बिना शर्त युद्धविराम स्वीकार नहीं करते हैं. वे शब्द हैं, और अब तक ट्रम्प के शब्दों के परिणाम, रूस के लिए, और शब्द ही रहे हैं. यह सब अब अल्टीमा थुले पर स्पष्ट हो जाता है, सभी के लिए स्पष्ट.
जब ट्रम्प अपनी कल्पना की दुनिया की सीमा पर पहुँचते हैं, तो उनका अगला कदम क्या होता है? वह अल्टीमा थुले के बाद कहाँ जाएँगे?
गर्मी को मात देते स्कूल:
बिना एसी के भी इमारतों को ठंडा रखने का इंतजाम
एम्मा बाथा ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन न्यूज़ रूम के कॉन्टेक्स्ट सीरीज में दुनिया के उन वास्तुशिल्पियों के बारे में लिखा है जो ऊंचे तापमानों पर स्कूलों को बिना एसी के ठंडा रखने का डिजाइन बना रहे हैं.
जब पुरस्कार विजेता आर्किटेक्ट फ्रांसिस केरे बुर्किना फासो में बड़े हो रहे थे, तो वे एक ऐसे अंधेरे क्लासरूम में पढ़ते थे जो इतना दमघोंटू था कि उनके अनुसार वह बच्चों को पढ़ाने के बजाय ब्रेड पकाने के लिए ज़्यादा उपयुक्त होता. सालों बाद, विदेश में पढ़ाई के दौरान, केरे अपने गांव वापस आए और एक ऐसा हवादार और रोशन स्कूल बनाया जहां बच्चे 45 डिग्री सेल्सियस (113 फारेनहाइट) तक पहुंचने वाले तापमान के बावजूद आराम से पढ़ सकते थे.
लेकिन बर्लिन स्थित इस आर्किटेक्ट ने एयर कंडीशनर का इस्तेमाल नहीं किया. इसके बजाय, उन्होंने गांडो प्राइमरी स्कूल में ठंडक देने वाली कई विशेषताओं को शामिल किया, जिन्हें वे तब से पूरे अफ़्रीका में अपनी परियोजनाओं में लागू कर रहे हैं. केरे, जिन्हें 2022 में वास्तुकला का सर्वोच्च सम्मान प्रित्ज़कर पुरस्कार मिला, उन आर्किटेक्ट्स में से हैं जो गर्म होती धरती के लिए टिकाऊ स्कूल डिजाइन में अग्रणी हैं.
उन्होंने कॉन्टेक्स्ट को बताया, "मेरा अपना स्कूल इतना गर्म था कि ध्यान लगाना मुश्किल था. इसलिए मैं एक ऐसा स्कूल बनाना चाहता था जो बच्चों के लिए आरामदायक और प्रेरणादायक हो."
ब्राज़ील से लेकर वियतनाम तक के अध्ययनों से पता चलता है कि गर्मी सीखने की क्षमता को बहुत प्रभावित करती है. पिछले साल अपनी एक रिपोर्ट में विश्व बैंक ने चेतावनी दी थी कि जलवायु परिवर्तन शैक्षिक उपलब्धियों के लिए खतरा बन रहा है, जिससे एक "आर्थिक टाइम-बम" बन रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि क्लासरूम 26 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा गर्म नहीं होने चाहिए.
गांडो में, गांव वाले शुरू में चौंक गए जब केरे ने घोषणा की कि वे स्कूल मिट्टी से बनाएंगे, लेकिन यह सामग्री तापमान की एक प्राकृतिक नियामक है, जो दिन में गर्मी सोखती है और रात में उसे छोड़ती है. केरे ने कहा कि कंक्रीट और प्लेट-ग्लास आधुनिक दिख सकते हैं, लेकिन वे इमारतों को गर्म बनाते हैं, जिससे एयर कंडीशनर की ज़रूरत पड़ती है.
यह एक दुष्चक्र बनाता है. ऊर्जा की ज़्यादा खपत करने वाले एयर कंडीशनर, जो गर्म हवा बाहर फेंकते हैं, ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करते हैं, जो फिर और एयर कंडीशनिंग की मांग को बढ़ावा देता है. इसके बजाय, केरे पैसिव कूलिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं. गांडो के क्लासरूम में दोनों सिरों पर खुली जगह है, जिससे क्रॉस-वेंटिलेशन होता है. एक छिद्रित निचली छत के ऊपर उठी हुई एक बड़ी छत हवा के संचार में सुधार करती है और दीवारों को छाया देती है.
केन्या में, एक कॉलेज कैंपस के लिए केरे का डिज़ाइन दीमक के टीलों से प्रेरित था, जो अंदर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक वेंटिलेशन का उपयोग करते हैं. इमारतों पर नीचे की ओर बनी खुली जगह ताज़ी हवा अंदर खींचती है, जबकि टेराकोटा रंग के टावर गर्म हवा को बाहर निकलने देते हैं.
लगभग 8,000 किलोमीटर (5,000 मील) दूर, उत्तर-पश्चिम भारत के थार रेगिस्तान में, इस साल तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया. यहां वनस्पति बहुत कम है, और धूल भरी आंधियां आम हैं. राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल, राजस्थान के रेगिस्तान से उठती एक बड़ी अंडाकार बलुआ पत्थर की इमारत है, जिसे न्यूयॉर्क की आर्किटेक्ट डायना केलॉग ने डिज़ाइन किया है. इमारत की दिशा और आकार प्रचलित हवाओं को स्कूल के चारों ओर बहने देते हैं, जबकि भीतरी दीवारों पर चूने का प्लास्टर अतिरिक्त ठंडक देता है. पारंपरिक भारतीय जाली स्क्रीन से प्रेरित जालीदार दीवारें, वेंटुरी प्रभाव नामक एक घटना के कारण हवा के प्रवाह को तेज़ करती हैं. स्कूल सौर ऊर्जा से भी चलता है और अपनी ज़रूरतों के लिए पर्याप्त वर्षा जल का संचयन करता है.
केलॉग ने कहा कि अंदर का तापमान बाहर की तुलना में 10 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा रहता है, जिससे स्कूल में उपस्थिति अच्छी रहती है.[6] केरे की तरह, वह भी मानती हैं कि अच्छी वास्तुकला सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित कर सकती है.
राजस्थान में भारत में महिला साक्षरता दर सबसे कम है, लेकिन केलॉग ने कहा कि स्कूल का विशाल पैमाना लड़कियों के महत्व के बारे में एक मज़बूत संदेश देता है.[4] उन्होंने कहा, "इसने समुदाय में उनकी हैसियत को बढ़ाया है. लड़कियां इसमें शामिल होने पर गर्व महसूस करती हैं और इसे 'द कॉलेज' कहती हैं. जब मैं जाती हूं, तो लड़के कहते हैं, 'हमारे लिए भी एक बनाओ'."
समशीतोष्ण देश भी इस पर विचार कर रहे हैं कि स्कूलों को कैसे ठंडा किया जाए क्योंकि जलवायु परिवर्तन लगातार हीटवेव ला रहा है. ब्रिटेन ने कहा है कि नई स्कूल इमारतों को 4 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के लिए भविष्य के लिए तैयार किया जाना चाहिए.
इसके हवादार विक्टोरियन-युग के स्कूल, जिनकी बड़ी खिड़कियां और ऊंची छतें हैं, गर्मी बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किए गए नए स्कूलों की तुलना में हीटवेव के लिए बेहतर अनुकूल हैं. लेकिन शिक्षा सिर्फ चार दीवारों के अंदर नहीं होती. खेल के मैदान भी बच्चों के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं, और कई शहर उन्हें हरा-भरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 4 से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो सकते हैं, लेकिन पेड़ लगाने से छाया और जल वाष्प के निकलने से तापमान कम होता है. पेरिस का लक्ष्य 2050 तक सभी डामर वाले स्कूल के आंगनों को हरे नखलिस्तान में बदलना है.
एक और समाधान में कूल पेंट शामिल है. जबकि ग्रीस जैसे देशों ने लंबे समय से इमारतों की छतों को सफेद रंग में रंगा है, वैज्ञानिक अब हाई-टेक कोटिंग्स पर काम कर रहे हैं जो संभावित रूप से एयर कंडीशनर से बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं.
जर्मन आर्किटेक्ट अन्ना हेरिंगर ने कहा कि टिकाऊ वास्तुकला का मतलब स्थानीय सामग्रियों के साथ काम करना है. हेरिंगर, जिन्होंने बांग्लादेश से लेकर घाना तक स्कूल डिजाइन किए हैं, मिट्टी से निर्माण के लिए जानी जाती हैं - "एक कम-तकनीकी सामग्री जिसमें उच्च-तकनीकी प्रदर्शन है."
हेरिंगर ने कहा, "अगर आप किसानों से पूछें, तो वे आपको बताएंगे कि मिट्टी का घर गर्मियों में ठंडा रहता है." उन्होंने कहा कि मिट्टी नमी को संतुलित करती है, जो अत्यधिक गर्मी और ठंड में शारीरिक परेशानी को बढ़ाती है.
तंजानिया में, ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि वे हैसियत के लिए कंक्रीट के घर बनाते हैं, लेकिन रात में सोने के लिए मिट्टी की झोपड़ियों में जाते हैं. हेरिंगर ने कहा कि लोकप्रिय धारणा के विपरीत, मिट्टी की दीवारें बारिश में घुलती नहीं हैं. कटाव को रोकने के लिए सरल तकनीकें हैं, और एक प्राकृतिक क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया समय के साथ दीवारों को मज़बूत बनाती है.
हेरिंगर ने कहा, "मिट्टी को एक कमज़ोर सामग्री के रूप में ब्रांड किया गया है, लेकिन हर संस्कृति और जलवायु में हमारे पास सैकड़ों साल पुरानी मिट्टी की इमारतें हैं." उन्होंने कहा कि 20 साल पहले बनाए गए स्कूलों में बहुत कम रखरखाव की ज़रूरत पड़ी है.
केरे - जिनके अंतरराष्ट्रीय कामों में बेनिन की नई संसद भवन और आगामी लास वेगास म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट शामिल हैं - ने कहा कि उनके स्टूडियो को मिट्टी से निर्माण और पैसिव कूलिंग के बारे में कई पूछताछ मिलती हैं. उन्होंने कहा, "एक बड़ा बदलाव आ रहा है. यह कुछ साल पहले कभी नहीं हुआ होता."
जलवायु परिवर्तन
बढ़ता तापमान और गायब होते परिंदे

द कन्वर्सेशन में जेम्स वॉटसन का उन परिंदों के बारे में एक शोधपरक लेख है, जो तापमान बढ़ने के साथ गायब होने लगे हैं. उसके प्रमुख अंश.
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन कई प्रजातियों के लिए खतरा है, जिसमें पक्षी भी शामिल हैं. इस विषय पर अधिकांश अध्ययन दीर्घकालिक जलवायु प्रवृत्तियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे औसत तापमान में क्रमिक वृद्धि या वर्षा के पैटर्न में बदलाव. लेकिन चरम मौसम की घटनाएं अधिक सामान्य और तीव्र होती जा रही हैं, इसलिए उन पर और ध्यान देने की ज़रूरत है.
हमारे नए शोध से पता चलता है कि भीषण गर्मी का उष्णकटिबंधीय पक्षियों पर विशेष रूप से गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. हमने पाया कि भीषण गर्मी के बढ़ते जोखिम ने 1950 से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पक्षियों की आबादी को 25-38% तक कम कर दिया है. यह सिर्फ एक अस्थायी गिरावट नहीं है - यह एक दीर्घकालिक, संचयी प्रभाव है जो ग्रह के गर्म होने के साथ-साथ बढ़ता जा रहा है.
हमारा शोध यह समझाने में मदद करता है कि मनुष्यों द्वारा अपेक्षाकृत अछूते जंगली स्थानों, जैसे कि कुछ बहुत दूर-दराज़ के संरक्षित उष्णकटिबंधीय जंगलों में भी पक्षियों की संख्या क्यों गिर रही है. यह शेष जैव विविधता के संरक्षण के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है.
हमने 1950 और 2020 के बीच दुनिया भर में 3,000 से अधिक पक्षी आबादी की दीर्घकालिक निगरानी के डेटा का विश्लेषण किया. इस डेटासेट में 90,000 से अधिक वैज्ञानिक अवलोकन शामिल हैं. हमने इस पक्षी डेटा का मिलान 1940 तक के एक वैश्विक जलवायु डेटाबेस के विस्तृत दैनिक मौसम रिकॉर्ड से किया. इसने हमें यह ट्रैक करने की अनुमति दी कि पक्षी आबादी ने दैनिक तापमान और वर्षा में विशिष्ट परिवर्तनों पर कैसे प्रतिक्रिया दी, जिसमें भीषण गर्मी भी शामिल है.
हमारे शोध ने अन्य जलवायु वैज्ञानिकों के काम की पुष्टि की है जो दिखाते हैं कि पिछले 70 वर्षों में, विशेष रूप से भूमध्य रेखा के पास, भीषण गर्मी की घटनाओं में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है.उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पक्षी अब अतीत की तुलना में लगभग दस गुना अधिक खतरनाक रूप से गर्म दिनों का अनुभव कर रहे हैं.[8]
जबकि औसत तापमान और वर्षा में परिवर्तन पक्षियों को प्रभावित करते हैं, हमने पाया कि खतरनाक रूप से गर्म दिनों की बढ़ती संख्या का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा - विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में. यह एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि उष्णकटिबंधीय पक्षियों की सहनशीलता की एक छोटी सी सीमा होती है.
एक पक्षी की सहनशक्ति की सीमा से अधिक तापमान पर, वे हाइपरथर्मिया में चले जाते हैं, जहां उनके शरीर का तापमान अनियंत्रित रूप से बढ़ जाता है. इस अवस्था में, पक्षी गर्मी कम करने के लिए पंख झुका सकते हैं, अपनी चोंच खुली रख सकते हैं और तेज़ी से हांफ सकते हैं. गंभीर मामलों में, वे समन्वय खो देते हैं, बसेरों से गिर जाते हैं, या बेहोश भी हो सकते हैं.
यदि वे इस अनुभव से बच भी जाते हैं, तो उन्हें दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है जैसे गर्मी से प्रेरित अंगों की विफलता और प्रजनन क्षमता में कमी.गर्मी के संपर्क में आने से प्रजनन सफलता कम हो जाती है क्योंकि पक्षियों को सबसे गर्म घंटों के दौरान आराम करना पड़ता है या छाया तलाशनी पड़ती है. यह अंडों और चूजों में भी गर्मी का तनाव पैदा करता है. गर्मी से पक्षी के पानी की मांग भी बढ़ जाती है क्योंकि वे हांफने के माध्यम से तेजी से पानी खो देते हैं.
हमारे अध्ययन में पाया गया कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, पक्षियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब शायद प्रत्यक्ष मानवीय गतिविधियों जैसे कि कटाई, खनन या खेती के प्रभाव से भी अधिक है. इसका मतलब यह नहीं है कि इन गतिविधियों के कारण आवास विनाश एक गंभीर मुद्दा नहीं है - यह स्पष्ट रूप से उष्णकटिबंधीय जैव विविधता के लिए एक बड़ी चिंता है. लेकिन हमारा अध्ययन उन चुनौतियों पर प्रकाश डालता है जो जलवायु परिवर्तन पहले से ही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पक्षियों के लिए ला रहा है.
हमारा शोध न केवल औसत जलवायु प्रवृत्तियों पर, बल्कि चरम घटनाओं पर भी ध्यान केंद्रित करने के महत्व पर प्रकाश डालता है. यदि जलवायु परिवर्तन अनियंत्रित रूप से जारी रहता है, तो उष्णकटिबंधीय पक्षियों - और संभवतः कई अन्य जानवरों और पौधों - को अपने अस्तित्व के लिए बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ेगा.
संरक्षण रणनीतियों को इसे ध्यान में रखना चाहिए. मानव औद्योगिक विकास से आवासों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है, लेकिन यह अब अपने आप में पर्याप्त नहीं है. अंततः यदि हमें वैश्विक जैव विविधता को संरक्षित करना है, तो जलवायु परिवर्तन को धीमा करना और अंततः उलटना आवश्यक है. इसका मतलब है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करना और उन नीतियों का समर्थन करना जो ग्रह पर हमारे प्रभाव को कम करती हैं. उष्णकटिबंधीय पक्षियों - और अनगिनत अन्य प्रजातियों - का भाग्य इसी पर निर्भर करता है.
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