15/11/2025: महुआ पर चार्जशीट को हरी झंडी | आरके सिंह ने भाजपा छोड़ी | भाजपा, मुसलमान और ओवैसी | कश्मीर थाने में विस्फोटक हैंडल करते हुए ब्लास्ट | भाजपा नेता बाल यौन शोषण
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
महुआ पर CBI का शिकंजा: ‘कैश फॉर क्वेरी’ में चार्जशीट को लोकपाल की हरी झंडी.
गुरु बना हैवान: बच्ची से रेप पर BJP नेता को आखिरी सांस तक जेल.
बिहार का चुनावी गणित: 11 सीटों पर जीत के अंतर से ज़्यादा वोटर लिस्ट से ‘गायब’.
बिहार में करारी हार पर मंथन: राहुल-खड़गे की मुलाक़ात, ‘वोट चोरी’ का आरोप बरक़रार.
ओवैसी का तीखा सवाल: ‘BJP को रोकने का ज़िम्मा सिर्फ़ मुसलमानों का क्यों?’.
भ्रष्टाचार पर बोलना पड़ा भारी: BJP से निलंबित आर.के. सिंह ने पार्टी छोड़ी.
बिहार में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर चोट: नई विधानसभा में अब तक के सबसे कम सिर्फ़ 10 MLA.
श्रीनगर पुलिस स्टेशन में धमाका: फोरेंसिक जांच बनी काल, 9 की मौत.
लालू परिवार में कलह?: बेटी रोहिणी का राजनीति और परिवार से नाता तोड़ने का ऐलान.
बिहार की नई तस्वीर: हर दूसरा विजेता दागी, सबसे ज़्यादा BJP के.
केरल BJP अध्यक्ष का ‘कबूलनामा’: बिहार में बंपर जीत ‘फर्जी वोटर’ हटाने से हुई.
सीमांचल का सबक: मुस्लिम वोट बंटा, NDA ने मारी बाज़ी.
शिवसेना का हमला: ‘बिहार चुनाव ECI का घोटाला, दिव्यांग नीतीश कैसे चलाएंगे सरकार?’.
अंबेडकर की तस्वीर बनी वजह?: दलित बारातियों पर हमला, पुलिस पर लापरवाही का आरोप.
आपकी निजता पर नई नज़र?: डेटा प्रोटेक्शन कानून लागू, सरकार को मिली खुली छूट.
आपकी ट्रेन लेट क्यों होती है?: रेलवे के दावों और हकीकत का फ़र्क.
महुआ मोइत्रा के खिलाफ़ चार्जशीट दाखिल करने के लिए सीबीआई को लोकपाल की मंज़ूरी
लोकपाल ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को कथित ‘कैश फॉर क्वेरी’ मामले में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ़ चार हफ़्तों के भीतर अदालत में चार्जशीट दाखिल करने की मंज़ूरी दे दी है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, लोकपाल की इस मंज़ूरी के साथ ही CBI ने पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले के कृष्णानगर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद महुआ के खिलाफ़ कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी है.
लोकपाल की पूर्ण पीठ ने 12 नवंबर को एक बैठक की और केंद्रीय जांच एजेंसी को संबंधित अदालत में चार्जशीट जमा करने के लिए हरी झंडी देने का फ़ैसला किया. शनिवार को लोकपाल ने एजेंसी को चार्जशीट की एक प्रति उसे भी जमा करने को कहा.
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ के खिलाफ़ CBI जांच की मांग की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि महुआ ने उद्योगपति गौतम अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने के लिए व्यवसायी दर्शन हीरानंदानी से नकद और उपहारों के बदले में सदन में सवाल पूछे थे. यह भी आरोप लगाया गया कि महुआ ने हीरानंदानी से रिश्वत और अन्य अनुचित लाभ लेकर भ्रष्ट आचरण किया, जिसमें “अपने संसदीय विशेषाधिकारों से समझौता करना और अपनी लोकसभा लॉगिन क्रेडेंशियल्स साझा करके राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करना” शामिल है.
भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल ने महुआ के खिलाफ़ लगाए गए आरोपों की प्रारंभिक जांच के निष्कर्षों को प्राप्त करने के बाद CBI को यह निर्देश जारी किया. एजेंसी ने लोकपाल के संदर्भ पर 21 मार्च, 2024 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत उनके और हीरानंदानी के खिलाफ़ FIR दर्ज की थी. जुलाई के अंत में, CBI ने इस मामले के संबंध में अपनी रिपोर्ट लोकपाल को सौंप दी थी.
तृणमूल कांग्रेस की सांसद को “अनैतिक आचरण” के लिए दिसंबर 2023 में सदन से निष्कासित कर दिया गया था, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा की अमृता रॉय को हराकर कृष्णानगर सीट बरकरार रखी थी.
बाल यौन शोषण मामले में भाजपा नेता के. पद्मराजन को मृत्यु तक आजीवन कारावास
पलाथाई बलात्कार मामले में एक बड़े फ़ैसले में, थलास्सेरी प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन सेक्सुअल ऑफेंसेज (POCSO) फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट ने शनिवार को शिक्षक और भाजपा नेता के. पद्मराजन को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने उन्हें 14 नवंबर को POCSO अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत दोषी पाया था.
पद्मराजन को दो POCSO धाराओं के तहत 40 साल के सख्त कारावास के साथ-साथ IPC के तहत मृत्यु तक आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है. जेल की सज़ा के अलावा, अदालत ने उन पर 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. थलास्सेरी POCSO कोर्ट ने फरवरी 2024 में शुरू हुई सुनवाई के बाद आरोपी को दोषी पाया. उन पर POCSO अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे, और IPC 376 AB भी आरोपी के खिलाफ़ लगाया गया.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, एक शिक्षक के रूप में काम करने वाले पद्मराजन ने जनवरी 2020 में बच्ची को स्कूल के बाथरूम में ले जाकर बार-बार उसका यौन शोषण किया. मामले को मज़बूत बनाने के लिए, अभियोजन पक्ष ने पीड़िता सहित 40 गवाहों की गवाही पेश की और 14 भौतिक सबूतों के साथ 77 दस्तावेज़ जमा किए. इस मामले ने राजनीतिक विवाद भी खड़ा कर दिया था, क्योंकि जांच टीम को पांच बार बदला गया था और अंतरिम चार्जशीट में शुरू में POCSO अधिनियम के तहत आरोप शामिल नहीं थे.
चाइल्ड लाइन को सबसे पहले यह जानकारी मिली थी कि स्कूल के शौचालय में एक दस साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया गया. बच्ची की मां द्वारा दर्ज़ कराई गई शिकायत के आधार पर पनूर पुलिस ने 17 मार्च, 2020 को मामला दर्ज़ किया था.
बिहार 2025:
11 सीटों पर जीत के अंतर से ज़्यादा थे मतदाता सूची से हटाए गए नाम
द वायर के लिए पवन कोराडा की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव का एक करीबी विश्लेषण एक महत्वपूर्ण विवरण उजागर करता है: 11 सीटों पर, चुनाव-पूर्व विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के दौरान मतदाता सूची से हटाए गए मतदाताओं की संख्या विजेता के जीत के अंतर से अधिक थी.
यह खोज चुनाव-पूर्व एसआईआर प्रक्रिया पर हुई बहस को रेखांकित करती है. राजनीतिक विपक्ष ने चेतावनी दी थी कि हटाए गए नाम करीबी मुक़ाबलों में परिणामों को असमान रूप से प्रभावित कर सकते हैं. अब अंतिम परिणाम उस दावे को आंकड़ों के साथ परखने की अनुमति देते हैं, जिससे उन विशिष्ट चुनावी क्षेत्रों की पहचान होती है जहां हटाए गए मतदाताओं की संख्या विजेता और उपविजेता के बीच के अंतर से अधिक है.
आंकड़ों को समझने के लिए, एसआईआर बहस में दो प्रमुख आंकड़ों के बीच अंतर करना महत्वपूर्ण है. 47 लाख का आंकड़ा मतदाता सूची में की गई पूरी सफ़ाई के पैमाने को दर्शाता है. यह संख्या पूरी संशोधन अवधि के दौरान मतदाता सूची में हुई शुद्ध कमी है और इसमें मृत, डुप्लिकेट या स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नियमित निष्कासन शामिल हैं. वहीं, 3.66 लाख का आंकड़ा सीधे प्रक्रिया की अखंडता से संबंधित है. यह संख्या अंतिम, महत्वपूर्ण चरण में - यानी ड्राफ्ट सूची के प्रकाशन और अंतिम सूची के बीच - किए गए निष्कासनों को अलग करती है. ये वे नाम हैं जिन्हें जनता द्वारा सूची की समीक्षा करने का मौका मिलने के बाद हटाया गया था, जिससे वे लक्षित, अंतिम-मिनट में निष्कासन के आरोपों का केंद्र बन गए.
यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से 3.66 लाख निष्कासनों पर विवरण मांगा था, और उन्हें प्रक्रियात्मक कदाचार के दावों के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक माना था. हालांकि 2025 के चुनाव के भारी जनादेश ने इन संख्याओं को राज्यव्यापी स्तर पर चुनावी रूप से अप्रासंगिक बना दिया, लेकिन इन 11 विशिष्ट निर्वाचन क्षेत्रों पर उनका प्रभाव एक सांख्यिकीय रिकॉर्ड बना हुआ है.
राहुल ने खड़गे से की मुलाक़ात, कांग्रेस ने ‘वोट चोरी’ का आरोप दोहराया
द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाक़ात की. सूत्रों के मुताबिक, यह बैठक बिहार में कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन पर चर्चा के लिए हुई, जहां पार्टी ने लड़ी गई 61 सीटों में से केवल छह पर जीत हासिल की. यह 2010 के बाद राज्य में पार्टी का दूसरा सबसे ख़राब प्रदर्शन था, जब उसने केवल चार सीटें जीती थीं.
बैठक के बाद श्री गांधी ने मीडिया से बात नहीं की, क्योंकि महागठबंधन, जिसका कांग्रेस हिस्सा है, के नेता एनडीए की भारी जीत के बाद अविश्वास की स्थिति में बने हुए हैं. बिहार चुनाव के नतीजों और पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर, कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने पूरा दोष भारतीय चुनाव आयोग (ECI) पर मढ़ने की कोशिश की और आरोप लगाया कि पूरी चुनाव प्रक्रिया सवालों के घेरे में है और इसमें कोई पारदर्शिता नहीं है. उन्होंने कहा कि पार्टी जल्द ही परिणाम का विश्लेषण करेगी और अगले कुछ हफ़्तों में ठोस सबूतों के साथ सामने आएगी.
वेणुगोपाल ने कहा, “बिहार से जो नतीजा आया है, वह हम सभी के लिए अविश्वसनीय है. यह केवल कांग्रेस के लिए नहीं है. बिहार के पूरे लोग और हमारे गठबंधन के साथी भी इस पर विश्वास नहीं कर रहे हैं.” उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “एक राजनीतिक दल के लिए 90% से अधिक का स्ट्राइक रेट - जो भारतीय इतिहास में नहीं हुआ है. हम एक गहन विश्लेषण कर रहे हैं; हम पूरे बिहार से डेटा एकत्र कर रहे हैं. एक या दो हफ़्तों के भीतर, हम ठोस सबूतों के साथ सामने आएंगे.”
कांग्रेस ने यह भी दावा किया कि बिहार में चुनाव परिणाम निस्संदेह “एक बड़े पैमाने पर वोट चोरी को दर्शाते हैं - जिसकी साज़िश पीएम, गृह मंत्री और चुनाव आयोग ने रची है.” राहुल गांधी का भाजपा के खिलाफ़ चुनाव अभियान उनके “वोट चोरी” के आरोपों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा था.
ओवैसी का सवाल ‘भाजपा को रोकने का ज़िम्मा सिर्फ़ मुसलमानों पर क्यों... विपक्ष पर भरोसा नहीं’
बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी AIMIM के शानदार प्रदर्शन पर द हिंदू से बात करते हुए, असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सीमांचल के लोगों को विपक्षी दलों पर कोई भरोसा नहीं है और वे मुसलमानों का उल्लेख करने में भी शर्म महसूस करते हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ मुसलमानों पर क्यों होनी चाहिए.
ओवैसी ने कहा, “पिछली बार जब हम सीमांचल में जीते थे, तो उन्होंने (महागठबंधन) हमारे चार विधायक तोड़ लिए. उन्हें लगा कि इससे हम ख़त्म हो जाएंगे. लेकिन केवल हम ही सीमांचल के लिए लड़ रहे हैं. बाकी सभी पार्टियों ने इस क्षेत्र को बर्बाद करने में योगदान दिया है. हमने लोगों के दिलों में जगह बनाई है... इसीलिए हमने पांच सीटें जीतीं.”
यह पूछे जाने पर कि मुसलमानों ने बड़े धर्मनिरपेक्ष दलों के बजाय उनके आसपास क्यों एकजुटता दिखाई, ओवैसी ने कहा, “पहली बात, लोगों को उन (विपक्षी दलों) पर कोई भरोसा नहीं है. वे मुसलमानों का ज़िक्र करने में शर्म महसूस करते हैं. वे मुसलमानों की बात तभी करते थे जब उन्हें हमें गाली देनी होती थी. इसीलिए लोगों ने हमारा समर्थन किया.” उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी ने स्थानीय भ्रष्टाचार और सीमांचल के पिछड़ेपन जैसे मुद्दे उठाए, जबकि महागठबंधन के नेता “आकाशवाणी (बड़ी बातें)” कर रहे थे.
उन्होंने मुस्लिम नेतृत्व का मुद्दा भी उठाया. “बिहार में सबसे बड़ी जाति मुसलमान हैं. यदि आप उच्च जाति के मुसलमानों को हटा दें, तो वे 15% हैं. यादव 14% हैं, लेकिन उन्हें आपके 36% टिकट मिलते हैं. मुसलमानों को लॉलीपॉप मिलता है. क्या मुसलमान सिर्फ़ वोटर हैं?” RJD द्वारा AIMIM से गठबंधन न करने पर उन्होंने इसे “नरम हिंदुत्व” करार दिया. उन्होंने सवाल किया, “क्या हम (मुसलमान) बंधुआ मज़दूर हैं? क्या हम पर कोई ज़िम्मेदारी है कि हम अपने घर अंधेरे में रखें, अपने बच्चों का भविष्य बर्बाद करें, और आपके सत्ता का महल बनाएं? और भाजपा के रथ को रोकने की ज़िम्मेदारी मुसलमानों पर ही क्यों है?”
अडानी ठेके पर सवाल करने पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए आर. के. सिंह निलंबित
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बिहार इकाई ने शनिवार (15 नवंबर, 2025) को पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह और दो अन्य नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी ने उन्हें एक हफ़्ते के भीतर जवाब देने को कहा था. इसके तुरंत बाद, सिंह ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया.
भाजपा राज्य मुख्यालय के प्रभारी अरविंद शर्मा द्वारा जारी कारण बताओ पत्र में कहा गया, “आपकी गतिविधियां पार्टी के खिलाफ़ हैं. यह अनुशासन के दायरे में आता है. पार्टी ने इसे गंभीरता से लिया है क्योंकि इससे पार्टी को नुक़सान हुआ है. इसलिए, निर्देशानुसार, आपको पार्टी से निलंबित किया जा रहा है और यह बताने के लिए कहा जा रहा है कि आपको क्यों नहीं निष्कासित किया जाना चाहिए.”
कारण बताओ नोटिस के बाद, सिंह ने भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को पत्र लिखकर पार्टी से अपना इस्तीफ़ा दे दिया. उन्होंने पत्र में कहा, “मुझे मीडिया के कुछ सदस्यों द्वारा भेजा गया एक पत्र मिला है जिसमें कहा गया है कि पार्टी ने मुझे पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित करने का फ़ैसला किया है. पत्र में उन पार्टी विरोधी गतिविधियों का उल्लेख नहीं है जिनका मुझ पर आरोप लगाया गया है. मैं उन आरोपों के खिलाफ़ कारण नहीं बता सकता जो निर्दिष्ट नहीं किए गए हैं.” उन्होंने आगे कहा, “कारण बताओ नोटिस शायद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट वितरण के खिलाफ़ मेरे बयान के कारण है. यह बयान पार्टी विरोधी नहीं है. यह राष्ट्र, समाज और पार्टी के हित में है कि राजनीति का अपराधीकरण रोका जाए और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाए, लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टी में कुछ लोग इससे सहज नहीं हैं. मैं भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा देता हूं.”
एक पूर्व आईएएस अधिकारी, सिंह 2013 में भाजपा में शामिल हुए थे और राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान लगातार भाजपा नेताओं पर हमला कर रहे थे. उन्होंने नीतीश कुमार सरकार पर बिहार में ₹62,000 करोड़ के बिजली घोटाले का भी आरोप लगाया था. उन्होंने लोगों से अपील की थी कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले या भ्रष्ट लोगों को वोट न दें, भले ही वे उनकी जाति के हों.
चुनाव परिणामों के बाद क्यों निलंबित किया गया?
याद रहे, इस महीने की शुरुआत में, पूर्व बिजली मंत्री आर. के. सिंह ने दावा किया था कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ₹62,000 करोड़ के बिजली परियोजना से जुड़े भ्रष्टाचार घोटाले में शामिल है. उन्होंने संबंधित दस्तावेज़ भी अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर पोस्ट किए थे. उल्लेखनीय है कि भागलपुर में अडानी पावर लिमिटेड को थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए एक रुपये में एक हजार एकड़ जमीन आवंटित की गई है. सिंह ने इसी परियोजना में घोटाले का आरोप लगाया था.
सिंह ने चुनाव आयोग से आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करने का भी आग्रह किया था, और स्थिति को चुनाव निकाय और स्थानीय प्रशासन दोनों की ओर से “विफलता” बताया था. उन्होंने चुनाव अवधि के दौरान हथियारों वाले वाहनों के बड़े काफिलों की आवाजाही की निंदा की थी, इसे लोकतांत्रिक मानदंडों का घोर उल्लंघन बताया था और इसमें शामिल अधिकारियों और प्रभावशाली उम्मीदवारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की थी.
इस मामले पर बोलते हुए, उन्होंने कहा था, “चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना चाहिए. यह चुनाव आयोग और जिला प्रशासन दोनों की विफलता है. चुनाव अवधि के दौरान यह बेहद चिंताजनक और अस्वीकार्य है.”
नई बिहार विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 10 हुई, जो अब तक की सबसे कम
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, नई बिहार विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 10 रह गई है, जो राज्य के इतिहास में अब तक का सबसे कम प्रतिनिधित्व है. 2022-23 के राज्य जाति सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की 13.07 करोड़ की आबादी में मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 17.7% है. इसके बावजूद, विपक्ष और एनडीए दोनों ने 2020 के विधानसभा चुनावों की तुलना में कम मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिसने मुस्लिम प्रतिनिधित्व को कम करने में योगदान दिया.
महागठबंधन में शामिल होने के प्रस्ताव को राजद द्वारा ठुकराए जाने के बाद, असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM ने लड़ी गई 25 में से पांच सीटें जीतीं. विजेताओं में उसके प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान (अमौर से) भी शामिल हैं. पार्टी ने 2020 में भी मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र में इन पांचों सीटों पर जीत हासिल की थी.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जद(यू) ने चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से केवल निवर्तमान कैबिनेट मंत्री मोहम्मद ज़मा खान चैनपुर से जीते. वहीं, राजद के आसिफ अहमद बिस्फी से और बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहब रघुनाथपुर से जीते. सीमांचल क्षेत्र में, कांग्रेस ने 2020 का अपना प्रदर्शन दोहराया, जहां उसके उम्मीदवार मोहम्मद कामरुल होदा (किशनगंज) और अबिदुर रहमान (अररिया) ने जीत हासिल की.
यह प्रतिनिधित्व पिछले कुछ चुनावों की तुलना में काफ़ी कम है. 2010 में, सदन में मुस्लिम प्रतिनिधित्व 7.81% था, जब समुदाय के 19 विधायक चुने गए थे. 2015 में यह संख्या बढ़कर 24 (9.87%) हो गई थी. 2020 में, समुदाय का प्रतिनिधित्व फिर से घटकर 19 विधायकों पर आ गया था, और निवर्तमान विधानसभा में यह 7.81% था. 2020 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद(यू) ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, और वे सभी हार गए थे.
श्रीनगर के पुलिस स्टेशन में ब्लास्ट, 9 मारे गए, 24 पुलिसकर्मियों समेत 32 घायल
शुक्रवार रात श्रीनगर के बाहरी इलाके में स्थित नौगाम पुलिस स्टेशन में हुए एक विस्फोट में कम से कम 9 लोग मारे गए और 32 घायल हो गए. अधिकारियों ने बताया कि यह विस्फोट उस समय हुआ, जब अधिकारी फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल मामले में जब्त किए गए विस्फोटकों के जखीरे से नमूने निकाल रहे थे. उन्होंने कहा कि विस्फोट रसायनों की अस्थिर प्रकृति के कारण हुआ.
यह सामग्री फरीदाबाद से गिरफ्तार आरोपी डॉ. मुजम्मिल गनाई के किराए के आवास से बरामद हुए 360 किलोग्राम विस्फोटकों का हिस्सा थी, जिसमें अमोनियम नाइट्रेट भी शामिल था, और जिसे पुलिस स्टेशन में रखा गया था.
सूत्रों ने बताया कि विस्फोट एक फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) टीम, स्थानीय पुलिस कर्मियों और राजस्व अधिकारियों की भागीदारी वाली एक नियमित निरीक्षण और नमूनाकरण प्रक्रिया के दौरान हुआ. विस्फोट से इमारत को व्यापक क्षति हुई और परिसर में खड़े कई वाहनों में आग लग गई. आस-पास के घरों के खिड़की के शीशे भी टूट गए, और इसका प्रभाव कुछ किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया.
इस घटना में मारे गए लोगों में फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के तीन कर्मी, एक नायब तहसीलदार सहित राजस्व विभाग के दो अधिकारी, दो पुलिस फोटोग्राफर, स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी का एक सदस्य और एक दर्जी शामिल हैं. अधिकारियों ने बताया कि कम से कम 24 पुलिस कर्मियों और तीन नागरिकों को शहर के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कराया गया है.
जम्मू और कश्मीर के पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात ने शनिवार को कहा कि नौगाम पुलिस स्टेशन में हुआ विस्फोट एक “आकस्मिक विस्फोट” था, और इसके कारण की जांच की जा रही है. प्रभात ने बताया, “9 नवंबर को फरीदाबाद से भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किए गए थे. यह बरामदगी, बाकी की तरह, नौगाम पुलिस स्टेशन के खुले क्षेत्र में सुरक्षित रूप से ले जाकर रखी गई थी. बरामद सामग्री के नमूनों को आगे की फोरेंसिक और रासायनिक जांच के लिए भेजना होता है. यह प्रक्रिया पिछले दो दिनों से चल रही थी. दुर्भाग्यवश कल रात लगभग 11:20 बजे एक आकस्मिक विस्फोट हो गया.”
डीजीपी ने जोर देकर कहा, “इस घटना के कारण को लेकर कोई भी अन्य अटकलें लगाना अनावश्यक है.” उन्होंने बताया कि विस्फोट में नौ लोगों की मौत हुई, जबकि 27 पुलिसकर्मी, दो राजस्व अधिकारी और आस-पास के इलाकों के तीन नागरिक घायल हुए हैं.
मौलवी इरफान अहमद ने डॉक्टरों को कट्टरपंथी बनाया
विस्फोटक उसी पुलिस स्टेशन में रखे गए थे, जहां मध्य अक्टूबर में शुरूआती एफआईआर दर्ज की गई थी, जब बानपुरा, नौगाम में दीवारों पर पुलिस और सुरक्षा बलों को धमकी देने वाले पोस्टर लगे थे. फ़ैयाज़ वानी की रिपोर्ट के अनुसार, इस घटना को एक गंभीर खतरा मानते हुए, श्रीनगर पुलिस ने 19 अक्टूबर को मामला दर्ज कर एक टीम का गठन किया. जांचकर्ताओं को पहले तीन संदिग्धों - आरिफ निसार डार उर्फ साहिल, यासिर-उल-अशरफ और मकसूद अहमद डार उर्फ शाहिद की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने में मदद मिली. इनसे पूछताछ के बाद मौलवी इरफान अहमद की गिरफ्तारी हुई, जो शोपियां से एक पूर्व पैरामेडिक से इमाम (उपदेशक) बन गया था, जिसने पोस्टर की आपूर्ति की थी और माना जाता है कि उसने चिकित्सा समुदाय तक अपनी आसान पहुंच का उपयोग करके डॉक्टरों को कट्टरपंथी बनाया था.
यह सुराग अंततः श्रीनगर पुलिस को फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय तक ले गया, जहां उन्होंने डॉ. गनाई और डॉ. शाहीन सईद को गिरफ्तार किया. यहीं से अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर सहित रसायनों का एक बड़ा जखीरा जब्त किया गया.
जांचकर्ताओं का मानना है कि पूरा मॉड्यूल डॉक्टरों की एक मुख्य तिकड़ी द्वारा चलाया जा रहा था – गनाई, डॉ. उमर नबी (विस्फोटक लदी कार का ड्राइवर जो 10 नवंबर को लाल किले के पास फट गई थी) और मुजफ्फर राथर (फरार). आठवें गिरफ्तार व्यक्ति, डॉ. अदील राथर, जो फरार डॉ. मुजफ्फर राथर का भाई है और जिसके पास से एक एके-56 राइफल जब्त की गई थी, की भूमिका अभी भी जांच के अधीन है.
पंजाब के एक सर्जन समेत तीन डॉक्टरों, दो उर्वरक विक्रेताओं को हिरासत में लिया
इधर चंडीगढ़ से हरप्रीत बाजवा की खबर है कि पंजाब के पठानकोट का एक सर्जन, जिसने पहले अल-फलाह विश्वविद्यालय में काम किया था, को दिल्ली लाल किला विस्फोट मामले में हिरासत में लिया गया है. इसके अतिरिक्त, हरियाणा के नूंह से दो डॉक्टर और सोहना से दो उर्वरक और बीज विक्रेताओं को भी पकड़ा गया है. इस बीच, नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने 10 नवंबर के विस्फोट के पीछे आतंकी मॉड्यूल में शामिल चार डॉक्टरों का पंजीकरण रद्द कर दिया है. सूत्रों ने बताया कि 45 वर्षीय डॉ. रईस अहमद भट, जो वर्तमान में पठानकोट के व्हाइट मेडिकल कॉलेज से जुड़े हैं, को केंद्रीय एजेंसियों ने हिरासत में लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है. जांचकर्ताओं को पता चला है कि वह कथित तौर पर दिल्ली लाल किला विस्फोट के मुख्य मास्टरमाइंड डॉ. उमर नबी के संपर्क में थे. डॉ. भट ने 2020 से 2021 तक अल-फलाह विश्वविद्यालय में काम किया था. जांचकर्ताओं ने पाया कि डॉ. भट विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के साथ नियमित संपर्क में थे. उनको तथ्यों को स्थापित करने और यह पता लगाने के लिए हिरासत में लिया गया कि क्या वह उस “व्हाइट कॉलर” आतंकी मॉड्यूल का हिस्सा थे, जिसे कथित तौर पर जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गज़वत-उल-हिंद का समर्थन प्राप्त था. एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “आरोपी में से एक ने उन्हें फोन किया था.” शुक्रवार शाम को, नूंह के दो डॉक्टरों और सोहना के दो उर्वरक और बीज विक्रेताओं को भी पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया.
लालू की बेटी रोहिणी ने पार्टी, परिवार से नाता तोड़ा
इस बीच लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने ‘एक्स’ पर एक रहस्यमय पोस्ट में घोषणा की कि वह राजनीति छोड़ रही हैं. उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, “मैं राजनीति छोड़ रही हूं और अपने परिवार से नाता तोड़ रही हूं... संजय यादव और रमीज़ ने मुझसे यही करने को कहा था... और मैं सारा दोष अपने ऊपर ले रही हूं.” रोहिणी आचार्य ने पिछले साल राजनीति में कदम रखा था और बिहार की सारण लोकसभा सीट से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा था.
सुदेशना घोषाल की रिपोर्ट है कि रोहिणी आचार्य बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की दूसरी बेटी और तेजस्वी यादव की बहन हैं. उनके पास एमबीबीएस की डिग्री है, जबकि उनके पति समरेश सिंह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं – जो सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी राय रणविजय सिंह के बेटे हैं, जो लालू प्रसाद यादव के मित्र हैं.
क्रिमिनल केस वाले सबसे ज्यादा विजेता भाजपा के पास, सुशासन बाबू का नंबर दूसरा
फ्लोरेंटाइन राजनयिक और राजनीतिक दार्शनिक निकोलस मैकियावेली ने अपनी पुस्तक “द प्रिंस” में कहा है, “किसी शासक की बुद्धिमत्ता का अनुमान लगाने का पहला तरीका उन लोगों को देखना है, जो उसके आस-पास हैं.” बिहार विधानसभा चुनावों में, विश्लेषण किए गए 243 विजेता उम्मीदवारों में से 130 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं. इस मामले में सबसे बड़ी संख्या भाजपा के पास है. आपराधिक केसों वाले उसके 43 उम्मीदवार जीते हैं. इनमें से तीन पर हत्या और तीन पर महिलाओं के साथ अपराध के मामले हैं. नीतीश कुमार की जद (यू) दूसरे नंबर पर है और उसके 23 विजेता इस सूची में शामिल हैं.
मौसम झा ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और बिहार इलेक्शन वॉच की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि, सभी 243 विजेता उम्मीदवारों के स्व-घोषित हलफनामों का विश्लेषण करने के बाद, 2025 में जीतने वाले उम्मीदवारों में से 102 ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, छह विजेता उम्मीदवारों ने घोषित किया है कि वे हत्या से संबंधित आरोपों (आईपीसी की धारा 302 के तहत) का सामना कर रहे हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन उम्मीदवारों ने अपने हलफनामों में गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं, उनकी संख्या पार्टी-वार इस प्रकार है:
भाजपा : 89 विजेता उम्मीदवारों में से 43
जेडी(यू) : 85 विजेता उम्मीदवारों में से 23
आरजेडी : 25 विजेता उम्मीदवारों में से 14
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास): 19 विजेता उम्मीदवारों में से 10
आईएनसी : 6 विजेता उम्मीदवारों में से 3
एआईएमआईएम : 5 विजेता उम्मीदवारों में से 4
राष्ट्रीय लोक मोर्चा: 4 विजेता उम्मीदवारों में से 1
सीपीआई(एमएल)(एल) : 2 विजेता उम्मीदवारों में से 1
सीपीआई(एम) , इंडियन इन्क्लूसिव पार्टी, और बसपा (BSP): इन सभी 1-1 विजेता उम्मीदवारों में से सभी 1-1 ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं.
केरल बीजेपी अध्यक्ष ने कहा, बिहार में ‘एसआईआर’ के कारण बंपर जीत
विपक्षी दलों का आरोप है कि बिहार में एनडीए की बंपर जीत चुनाव आयोग के मतदाता सूचियों के विवादास्पद विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के माध्यम से संभव हुई, ताज्जुब है कि केरल भाजपा के अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने भी इसी बात को दोहराया है, लेकिन अपनी पार्टी के पक्ष में ट्विस्ट देते हुए.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, चंद्रशेखर ने शनिवार को कहा कि बिहार का चुनाव परिणाम एसआईआर और “फर्जी मतदाताओं” को हटाने के प्रभाव को दर्शाता है. इससे अब एसआईआर के कार्यान्वयन के संबंध में स्पष्टता आ गई है. ये “फर्जी मतदाता” पहले कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियों की “राजनीतिक सफलता” में योगदान करते थे. चंद्रशेखर ने पत्रकारों से कहा, “हर कोई अब एसआईआर के माध्यम से फर्जी मतदाताओं को हटाने के प्रभाव को देख सकता है. यही कारण है कि केरल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस सहित कई पार्टियां एसआईआर का विरोध कर रही हैं और इसे रोकने की कोशिश कर रही हैं.”
सीमांचल: मुस्लिम वोट महागठबंधन और एमआईएम के बीच बंट गए, एनडीए को लाभ मिला
“द इंडियन एक्सप्रेस” में विकास पाठक का विश्लेषण बताता है कि बिहार के सीमांचल क्षेत्र की 24 सीटों में से अधिकांश सीटें एनडीए के खाते में गई हैं. यहां मुस्लिम वोट महागठबंधन और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के बीच बंट गए. यह दर्शाता है कि अधिक अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्र भी इस बात की कोई गारंटी नहीं हैं कि विपक्ष अच्छा प्रदर्शन करेगा.
महागठबंधन उन निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिमों के वोटों को एक समूह के रूप में आकर्षित करने में असमर्थ रहा, जहां मुस्लिमों की सघनता अधिक है और इस प्रकार वह सीमांचल में एआईएमआईएम से पिछड़ गया. सीमांचल क्षेत्र में पूर्णिया, अररिया, कटिहार और किशनगंज के चार जिले शामिल हैं. दूसरी ओर, एनडीए जातिगत विभाजन के बावजूद सीमांचल में हिंदू वोटों का बड़ा हिस्सा आकर्षित करने में सफल रहा और एक ऐसे क्षेत्र में भी आगे बढ़ने में कामयाब रहा, जिसे उसके लिए एक जनसांख्यिकीय चुनौती माना जाता था.
एनडीए ने इस क्षेत्र की 24 में से 14 सीटों पर जीत हासिल की, जिसमें बीजेपी ने 7 सीटें जद (यू) ने 5 और चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने 2 सीटें जीतीं. महागठबंधन में, कांग्रेस ने 4 सीटें और आरजेडी ने 1 सीट जीती, जिससे विपक्षी गठबंधन (महागठबंधन) की कुल संख्या केवल पांच रही. एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीतीं, जो उसके 2020 के चुनाव परिणाम के बराबर है.
सीमांचल, जनसांख्यिकीय रूप से कांग्रेस को एक प्रमुख घटक के रूप में शामिल करने वाले आरजेडी-नेतृत्व वाले महागठबंधन के लिए अनुकूल माना जाता है, क्योंकि इसके मुख्य “एम-वाई (मुस्लिम-यादव)” आधार की आबादी यहां अधिक है. हालांकि, वोटों के विभाजन ने यह सुनिश्चित किया कि यह क्षेत्र भी एनडीए के साथ चला गया.
इस क्षेत्र में मुस्लिमों की सबसे अधिक सघनता किशनगंज में 67.89% है, जिसके बाद कटिहार में 44.47%, अररिया में 42.95% और पूर्णिया में 38.46% है. हालांकि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट (जीत का प्रतिशत) समग्र रूप से बहुत खराब रहा, फिर भी उसने सीमांचल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. चुनावी प्रचार के दौरान या देखने को मिला था कि पूरे राज्य में कांग्रेस के लिए बहुत कम समर्थन था, लेकिन सीमांचल के मुस्लिमों में राहुल गांधी और उनकी पार्टी के प्रति कुछ सहानुभूति थी.
एआईएमआईएम— जिसके 2020 में चुने गए चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे— ने किशनगंज जिले में बहादुरगंज और कोचाधामन, पूर्णिया जिले में अमौर और बैसी तथा अररिया जिले में जोकीहाट सीट जीती. जोकीहाट में आरजेडी के शाहनवाज चौथे स्थान पर रहे, जो एआईएमआईएम, जद (यू) और जन सुराज के सरफराज आलम से पीछे थे. सरफराज, शाहनवाज के भाई और इस क्षेत्र के बाहुबली राजनेता और पूर्व सांसद दिवंगत तसलीमुद्दीन के बेटे हैं. 2020 में, सीमांचल में एनडीए ने 12 सीटें, महागठबंधन ने 7 और एआईएमआईएम ने 5 सीटें जीती थीं. दूसरे शब्दों में, जहां एनडीए के प्रदर्शन में सुधार हुआ है, वहीं एआईएमआईएम का प्रदर्शन पहले जैसा ही रहा है और इस क्षेत्र में महागठबंधन का प्रदर्शन, जिसे गठबंधन के लिए एक अच्छा क्षेत्र माना जाता था, घट गया है.
सामना: ऐसा दिव्यांग व्यक्ति बिहार को कैसे आगे ले जाएगा?, बिहार चुनाव ईसीआई का ‘घोटाला’
शिवसेना (यूबीटी) ने शनिवार को दावा किया कि बिहार चुनाव, ईसीआई (भारतीय निर्वाचन आयोग) द्वारा सुगम बनाया गया “एक घोटाला” है. उसने सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए पर वोट चोरी के माध्यम से चुनाव जीतने का आरोप लगाया. सत्तारूढ़ एनडीए की अभूतपूर्व जीत के एक दिन बाद, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पार्टी ने कहा कि भाजपा मुख्यमंत्री पद के लिए जद (यू) पर कब्जा करने से नहीं हिचकेगी. पार्टी ने दावा किया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्मृति हानि (मेमोरी लॉस) से जूझ रहे हैं और सवाल किया कि ऐसी चुनौतियों वाला व्यक्ति बिहार का नेतृत्व कैसे कर सकता है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की ऑनलाइन डेस्क के अनुसार, पार्टी के मुखपत्र “सामना” के एक संपादकीय में, शिवसेना (यूबीटी) ने दावा किया कि भाजपा की जीत का फॉर्मूला बिहार में भी ठीक वैसे ही तय किया गया, जैसे महाराष्ट्र में विपक्ष महा विकास अघाड़ी को 50 सीटें भी जीतने नहीं दी गई थीं.
पार्टी ने कहा कि बिहार चुनाव का परिणाम आश्चर्यजनक नहीं है और आरोप लगाया कि चुनाव आयोग और भाजपा, वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए मिलकर काम कर रहे थे. संपादकीय में कहा गया, “बिहार चुनाव भारतीय लोकतंत्र में एक घोटाला है. वोट फिर से चुराए गए, जिसके आधार पर भाजपा और (बिहार के मुख्यमंत्री) नीतीश कुमार ने चुनाव जीता.”
पार्टी ने पूछा कि अगर चुनाव प्रक्रिया के रखवाले ही चोरों की मदद करेंगे तो लोग किस पर भरोसा करेंगे? सेना (यूबीटी) ने आगे दावा किया कि राहुल गांधी और राजद के तेजस्वी यादव द्वारा बिहार में निकाली गई “वोट अधिकार यात्रा” को अपार समर्थन मिला था.
नीतीश कुमार को निशाना बनाते हुए, लिखा कि बिहार के मुख्यमंत्री स्मृति हानि से पीड़ित हैं, जो सार्वजनिक रूप से उनके अनियमित व्यवहार में स्पष्ट है. सवाल किया, “ऐसा दिव्यांग व्यक्ति बिहार को कैसे आगे ले जाएगा?” बिहार में भाजपा के दो उपमुख्यमंत्री हैं, लेकिन वह पूर्वी राज्य में अपना मुख्यमंत्री स्थापित नहीं कर पाई. अब वह मुख्यमंत्री पद के लिए जद (यू) पर नियंत्रण करने से नहीं हिचकेगी.
कार पर अंबेडकर की फ़ोटो देख जातिसूचक शब्द कहे, दलित बारातियों पर हमले का आरोप
उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में दलित बारातियों के साथ बदसलूकी और हमले के मामले में पुलिस पर लापरवाही का आरोप लगा है. पीड़ित परिवार का कहना है कि आरोपियों के पास हथियार थे और उन्होंने जातिसूचक गालियां दीं. शिकायत के बावजूद पुलिस ने एससी/एसटी एक्ट में मामला दर्ज नहीं किया, बल्कि इसे केवल शांतिभंग की धाराओं में दर्ज किया.
“द मूकनायक” की रिपोर्ट के अनुसार, घटना 12 नवंबर की रात हुई. उघैती थाना क्षेत्र के मेवली गांव के धर्मपाल सिंह अपने परिवार के साथ कार से शादी में जा रहे थे. रास्ते में दो अज्ञात लोगों ने उनकी कार ओवरटेक कर रोकी. धर्मपाल सिंह ने बताया कि उनकी गाड़ी पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की तस्वीर लगी है. इसे देखते ही आरोपियों ने जातिसूचक शब्द कहे और चाकू से हमला करने की कोशिश की. घटना का वीडियो भी सामने आया है.
परिवार का आरोप है कि पुलिस ने दो दिन तक कोई कार्रवाई नहीं की. 13 नवंबर को जब वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तब जाकर पुलिस हरकत में आई.
सरकार को मिली खुली ताक़त, पारदर्शिता अब और कमज़ोर
केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने, 14 नवंबर को विवादास्पद डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) अधिनियम, 2025 के नियम लागू कर दिए हैं. आलोचकों का कहना है कि इन नए नियमों से पारदर्शिता और लोगों की व्यक्तिगत आज़ादी पर नए तरह की रुकावटें पैदा होंगी.
“द वायर” के अनुसार, इंटरनेट फ्रीडम फ़ाउंडेशन (आईएफएफ) ने अपने बयान में कहा कि डीपीडीपी एक्ट 2023 और इसके नियम 2025 लोगों के डेटा की सुरक्षा करने के बजाय पारदर्शिता और व्यक्तिगत आज़ादी के लिए नई मुश्किलें पैदा करेगा. यह कानून लोगों पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ डालता है और कई बड़े अपवाद देता है, जो उनकी निजता के अधिकार को कमज़ोर बना देगा. मंत्रालय का कहना है कि डीपीडीपी एक्ट के कुछ नियम अभी से लागू होंगे और बाकी नियम अगले 18 महीनों में धीरे-धीरे लागू किए जाएंगे.
लेकिन आईएफएफ का कहना है कि उसने सरकार से निवेदन किया था कि इतना लंबा इंतज़ार न रखा जाए और छोटे, साफ़ समय-सीमा तय की जाए, ताकि लोग लंबे समय तक बिना किसी सुरक्षा या समाधान के न रहें, जबकि डेटा सुरक्षा की व्यवस्था बनाई जा रही हो. सरकार ने डीपीडीपी एक्ट की धारा 44(3) को भी तुरंत लागू कर दिया है, जिसका सीधा असर सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की धारा 8(1)(जे) पर पड़ेगा. दंड से जुड़ी धाराएँ भी तुरंत लागू हो रही हैं.
आईएफएफ ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ‘डीपीडीपी रूल्स 2025 सरकार को बहुत कम निगरानी में लोगों का निजी डेटा इकट्ठा करने की अनुमति दे देते हैं. इससे सरकार का लोगों के डेटा पर नियंत्रण और बढ़ सकता है’. आईएफएफ ने कहा कि नियम 23 सरकार को इस बात की खुली छूट देती है कि वह जनता की सहमति के बग़ैर है उनका निजी डाटा ले सकती है और सरकार मनमाने तरीक़े से इसके लिए “राष्ट्रीय सुरक्षा” जैसे अस्पष्ट कारणों का इस्तेमाल कर सकती है.
आईएफएफ ने कहा कि इस नियम में न तो कोई सुरक्षा उपाय है, न निगरानी, न ही इसे चुनौती देने का तरीक़ा मौजूद है. इससे ख़तरा है कि सरकार ज़रुरत से ज़्यादा आपकी जानकारी ले सकती है और लोगों की निजता प्रभावित हो सकती है. इसका मतलब यह भी है कि सरकार किसी भी इंटरनेट या टेलीकॉम कंपनी से “राष्ट्रीय हित” जैसे कारण बताकर बड़े पैमाने पर यूज़र डेटा मांग सकती है.
आईएफएफ ने यह भी कहा कि जिन श्रेणियों के आधार पर डेटा मांगा जा सकता है, वे इतनी व्यापक हैं कि उनका दुरुपयोग हो सकता है. आईएफएफ ने कहा कि समस्या यह है कि डीपीडीपी रूल्स 2025 कंपनियों को यह भी मना करते हैं कि वे उपयोगकर्ताओं को बताएं कि सरकार ने उनका डेटा मांगा है, अगर मामला “राष्ट्रीय सुरक्षा” से जुड़ा हो. इससे पारदर्शिता खत्म हो जाती है. ऐसे नियमों से जनता कभी नहीं जान पाएगी कि सरकार कितनी निगरानी कर रही है.
विपक्षी सांसदों और निजता से जुड़े संगठनों और पत्रकारों ने भी धारा 44(3) हटाने की मांग की है. उनका कहना है कि इससे आरटीआई की धारा 8(1)(जे) बदल जाती है, जिसके तहत पहले कुछ व्यक्तिगत जानकारी भी सार्वजनिक की जा सकती थी. वहीं सरकार इस बदलाव का बचाव कर रही है. आईएफएफ ने मांग की है कि एक डेटा प्रोटेक्शन संशोधन बिल लाया जाए, जिसमें आरटीआई को मज़बूत किया जाए. डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड को स्वतंत्र बनाया जाए और सरकार की छूट व निगरानी शक्तियां सीमित की जाएं.
आपकी ट्रेन आख़िर तयशुदा समय से लेट क्यों होती है?
भारतीय रेलवे की समयपालन व्यवस्था पर अब सवाल उठ रहे हैं. मार्च 2025 में रेल मंत्रालय ने दावा किया था कि उसके ज़्यादातर मंडल 90% से ज़्यादा ट्रेनों को समय पर चला रहे हैं. लेकिन इंडियास्पेंड की रिपोर्ट बताती है कि ज़मीन पर स्थिति इससे उलट है. यात्रियों को रोज़ाना देरी का सामना करना पड़ रहा है और रेलवे का पंक्चुअलिटी इंडेक्स लगातार गिर रहा है.
2020 में 94.17 से घटकर 2023 में यह सिर्फ 73.62 रह गया. 2023-24 के दरमियान तक़रीबन
6.9 अरब यात्रियों ने ट्रैन से सफर किया यानी रोज़ाना लगभग 1.9 करोड़ यात्री ट्रैन से यात्रा करते हैं, फिर भी देरी के मामलों में कोई ठोस सुधार नहीं दिखता.
अप्रैल 2023 से अब तक डीज़ल लोकोमोटिव की वजह से 4,400 से ज़्यादा बार देरी हुई है. यानी रोज़ाना औसतन पाँच बार ट्रेनें अपने तयशुदा समय से देर से प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचती हैं. डीज़ल इंजन फेल होने पर ट्रेन वहीं रुक जाती है और पूरी लाइन ब्लॉक हो जाती है.
रेलवे के पूर्व अधिकारी सुशील लूथरा बताते हैं कि वंदे भारत जैसी ट्रेनों में वितरित पावर होती है, जिससे एक यूनिट फेल होने पर भी ट्रेन चलती रहती है, लेकिन डीज़ल ट्रेनों में यह संभव नहीं है. इसके अलावा ट्रैन के देर होने की अन्य वजहें भी हैं, जैसे सिग्नल फेलियर, ट्रैक डैमेज, भीड़भाड़, और रोलिंग स्टॉक की समस्याएँ. 2019 में रेल मंत्री ने लोकसभा में माना था कि उपकरण खराबी, ओवरहेड वायर, ट्रैक और सिग्नल की दिक़्क़तें, और लाइन क्षमता की कमी पंक्चुअलिटी को प्रभावित कर रही हैं.
भारतीय रेलवे आज भी ब्रिटिश काल की कई संरचनाओं पर निर्भर है और नए ट्रैक पर्याप्त मात्रा में नहीं जुड़े हैं. देश के 80% हाई-डेंसिटी रूट ओवरकैपेसिटी पर चल रहे हैं और 22% रूट 150% से अधिक बोझ झेल रहे हैं. कई जंक्शन इतने भीड़भाड़ वाले हैं कि 30 किलोमीटर का सफर तय करने में दो घंटे तक लग जाते हैं.
डाटा बताते हैं कि इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव की संख्या 2023-24 में 26% तो बढ़ी, लेकिन डीज़ल इंजनों में सिर्फ 7% ही कमी हुई. अक्टूबर 2025 तक 99.1% ब्रॉडगेज लाइनें इलेक्ट्रिक हो चुकी हैं, फिर भी यात्री ट्रेनों में 15% और मालगाड़ियों में 20% ट्रेनें अब भी डीज़ल पर चल रही हैं.
2024 की सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, रेल लाइनों के पूरा न जुड़ने, बीच के लिंक टूटे रहने और तकनीकी सुविधाएँ न होने की वजह से, विद्युतीकरण बढ़ने के बाद भी डीज़ल का इस्तेमाल कम नहीं हो पाया. विशेषज्ञ आलोक वर्मा कहते हैं कि डीज़ल इंजनों को हटाने की प्रक्रिया बहुत धीमी है और इसमें लंबी योजना की कमी दिखती है. रेलवे मंत्रालय अभी भी 2,500 डीज़ल इंजन आपात स्थिति, बिजली कटौती और रक्षा ज़रूरतों के लिए रिज़र्व में रख रहा है.
अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.








