15/12/2025 : सिर्फ नाम नहीं बदलेगा मनरेगा, दाम वसूलेगा राज्यों से | नाकामियों की गुड गवर्नेंस पर आकार पटेल | रुपया 90.74 | आलंद की वोट चोरी, चुनाव आयोग के पोर्टल से हुई | मोदी के वोट से मोहभंग तक मनीष
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
मनरेगा पर केंद्र ने झाड़ा पल्ला, ४०% खर्च अब राज्य उठाएंगे
रुपया पस्त, डॉलर मस्त: ९०.७४ के रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढ़का रुपया
व्यापार घाटा घटा: सोने का आयात धड़ाम, अमेरिका को निर्यात में उछाल
सड़क नहीं, खटिया पर सफर: झारखंड में इलाज के अभाव में गर्भवती की मौत
दिल्ली बनी गैस चैंबर: हवा ‘गंभीर’, ५वीं तक स्कूल बंद, ऑनलाइन क्लास शुरू
चुनाव आयोग के पोर्टल में सेंध: आलंद में ६००० वोटरों के नाम गायब, लॉग-इन का ‘खेल’
संपत्ति हड़पने का डर: बासुदेव दास परेशान, मुर्दे और लापता लोग भी वोटर लिस्ट में
डोकलाम और चो-ला में अब ‘रणभूमि दर्शन’, पर्यटक जा सकेंगे
जेल में बंद एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक: के संस्थान को मान्यता देने की संसदीय सिफारिश
हॉन्ग कॉन्ग: मीडिया टाइकून जिमी लाई दोषी करार, लोकतंत्र की आवाज पर उम्रकैद का साया
आर्ट और प्रतिरोध: अबान रज़ा की पेंटिंग्स— कैनवास पर उतर आया शाहीन बाग और किसान आंदोलन
मनरेगा
नए नाम के साथ राज्यों पर भार डालने का इंतेज़ाम
राज्यों को लगभग ₹50,000 करोड़ अतिरिक्त खर्च करने होंगे
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को निरस्त करने और ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (वीबी-जी आरएएम जी) विधेयक, 2025’ नामक एक नया ग्रामीण रोजगार कानून पेश करने के लिए एक विधेयक लोकसभा में पेश किए जाने की तैयारी है. यह विधेयक सोमवार को जारी लोकसभा की पूरक कार्य सूची में सूचीबद्ध किया गया है.
प्रस्तावित कानून का उद्देश्य हर ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के वैधानिक वेतन-रोजगार की गारंटी प्रदान करना है. अब तक यह अवधि 100 दिन थी.
“द टेलीग्राफ” के अनुसार, इस कदम की विपक्ष के नेताओं ने कड़ी आलोचना की है. उनका आरोप है कि प्रस्तावित कानून मनरेगा के अधिकार-आधारित ढांचे को कमजोर करता है, और वित्तीय बोझ राज्यों पर डालता है.
सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने “एक्स” पर लिखा, “महात्मा गांधी को हटाना तो सिर्फ ट्रेलर था. असली नुकसान कहीं अधिक गहरा है.” उन्होंने लिखा, “सरकार ने एक अधिकार-आधारित गारंटी कानून की आत्मा को हटा दिया और इसकी जगह एक सशर्त, केंद्र-नियंत्रित योजना ले आई, जो राज्यों और श्रमिकों के खिलाफ है.”
उन्होंने कहा कि ‘125 दिन’ तो मुख्य शीर्षक है, पर 60:40 बारीकी है. मनरेगा अकुशल मजदूरी के लिए पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्तपोषित था. नया विधेयक इसे राज्यों पर 40% बोझ डालकर निचले स्तर पर ले जाता है. राज्यों को अब लगभग ₹50,000 करोड़ अतिरिक्त खर्च करने होंगे. अकेले केरल को ₹2,000 से 2,500 करोड़ का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा. यह सुधार नहीं, बल्कि चुपके से लागत को स्थानांतरित करना है. यह नई संघवाद व्यवस्था है: राज्य अधिक भुगतान करते हैं, केंद्र इससे दूर हट जाता है, फिर भी श्रेय लेता है.
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया. संसद भवन परिसर में संवाददाताओं के सवालों पर उन्होंने कहा, “जब भी किसी योजना का नाम बदला जाता है, तो कार्यालयों, स्टेशनरी में बहुत सारे बदलाव करने पड़ते हैं... जिस पर पैसा खर्च होता है. तो इसका क्या फायदा है, यह क्यों किया जा रहा है?”
“महात्मा गांधी का नाम क्यों हटाया जा रहा है. महात्मा गांधी को न केवल देश में बल्कि दुनिया में सबसे ऊँचा नेता माना जाता है, इसलिए उनका नाम हटाना, मुझे सच में समझ नहीं आता कि इसका उद्देश्य क्या है? उनकी मंशा क्या है? यहां तक कि जब हम बहस कर रहे होते हैं, तो यह अन्य मुद्दों पर होती है - लोगों के असली मुद्दों पर नहीं. समय बर्बाद हो रहा है, पैसा बर्बाद हो रहा है, वे खुद ही बाधा डाल रहे हैं,” प्रियंका ने जोड़ा.
ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद सप्तगिरि उलाका ने कहा कि पैनल ने ग्रामीण-रोजगार योजना के तहत कार्य दिवसों और मजदूरी की संख्या बढ़ाने सहित कई सिफारिशें की थीं. उलाका ने ‘पीटीआई वीडियोज’ को बताया, “जब वे (भाजपा) सत्ता में आए, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे गड्ढे खोदने की योजना कहा था... उनका हमेशा से मनरेगा को समाप्त करने का इरादा रहा है.”
उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि उन्हें बापू के नाम से क्या दिक्कत है, लेकिन वे इसे खत्म करना चाहते थे, क्योंकि यह कांग्रेस की योजना थी.” “हमने कई सिफारिशें की थीं - दिनों की संख्या बढ़ाकर 150 करने के लिए, मजदूरी बढ़ाने के लिए... राज्यों का बकाया लंबित है, पश्चिम बंगाल को फंड नहीं मिल रहा है. वे एक विधेयक लाए हैं, लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी का नाम क्यों हटा दिया है?”
वरिष्ठ तृणमूल नेता और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने इस कदम को “महात्मा गांधी का अपमान” बताया. उन्होंने कहा, “लेकिन क्या आपको आश्चर्य है! ये वही लोग हैं जिन्होंने महात्मा गांधी को मारने वाले व्यक्ति की पूजा की थी. वे महात्मा गांधी का अपमान करना चाहते हैं और उन्हें इतिहास से हटाना चाहते हैं.”
माकपा के महासचिव एम.ए. बेबी ने दावा किया, “मनरेगा के पूर्ण बदलाव पर केंद्र सरकार का दिखावा इस चौंकाने वाले तथ्य को छिपाने का एक प्रयास है कि जिस बुनियादी अधिकार-आधारित ढांचे के तहत यह संचालित होता था, उसे समाप्त किया जा रहा है, और केंद्रीय हिस्सेदारी को तेजी से कम किया जा रहा है.” बेबी ने कहा, “जिम्मेदारी राज्यों पर डाली जा रही है, और केंद्र अब आवंटन में कटौती करके विपक्ष शासित राज्यों को दंडित कर सकता है. यह उन तकनीकी हस्तक्षेपों को भी कानून में संहिताबद्ध करेगा, जिनके माध्यम से लाखों लोगों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.”
विश्लेषण
आकार पटेल : अपनी नाकामियों को गुड गवर्नेंस बताने की अदा देखनी हो तो कहीं क्या जाना..
गवर्नेंस मुश्किल है और अच्छी गवर्नेंस, यानी कुशल और असरदार गवर्नेंस, और भी मुश्किल है. दिखावा नतीजों का बुरा विकल्प है, लेकिन जब गवर्नेंस के ज़रिए नतीजे हासिल करना मुश्किल हो, तो नाकामी मानने के बजाय दिखावे पर भरोसा किया जा सकता है.
जब एयरलाइन का कारोबार ठप हो जाता है और पूरे हिंदुस्तान में हवाई अड्डे गुस्से की गंदगी बन जाते हैं, तो हल यह है कि एक एयरलाइन सीईओ की तस्वीरें घुमाई जाएं जो मंत्री के सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं. मसला हल हो गया. जब एक ऐसी इमारत में आग लगने से दर्जनों लोग मर जाते हैं जो होनी ही नहीं चाहिए थी, तो हल यह है कि इमारत के बचे हुए हिस्सों को बुलडोज़र से गिरा दिया जाए. बेशक, ऐसी हज़ारों इमारतें बाकी रह जाती हैं.
एक और संतोषजनक हल है नाम बदलना. नए भारत में, मनरेगा को अब पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार गारंटी एक्ट कहा जाएगा और इसका विस्तार किया जाएगा. दस साल पहले, ऑफिस संभालने के कुछ महीने बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में कहा था कि मनरेगा सिर्फ़ इसलिए जारी रखा जाएगा क्योंकि यह दिखाएगा कि मनमोहन सिंह की सरकार ने कितना बुरा काम किया था: ‘मेरी सियासी समझ मुझे बताती है कि मनरेगा को बंद नहीं करना चाहिए,’ उन्होंने विपक्ष की बेंचों का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, ‘क्योंकि यह आपकी नाकामियों का ज़िंदा स्मारक है. इतने बरसों की सत्ता के बाद, आप बस इतना ही दे पाए कि एक ग़रीब आदमी महीने में कुछ दिन गड्ढे खोदे.’
मोदी इसके बजाय स्कीम को अपने आप मरने देंगे क्योंकि उनकी सरकार बेहतर नौकरियां पैदा करेगी और मनरेगा की ज़रूरत नहीं रहेगी. सरकार के सत्ता में आने के बाद, नितिन गडकरी ने इशारा किया कि मनरेगा को हिंदुस्तान के एक तिहाई से भी कम ज़िलों तक सीमित कर दिया जाएगा और फ़ायदा पाने वालों के लिए मज़दूरी कम की जाएगी और देर से दी जाएगी ताकि स्कीम को बेकार बनाया जा सके.
यह सोच थी कि मोदी के तहत रोज़गार मिलने से स्कीम की ज़रूरत नहीं रहेगी. दिसंबर 2014 तक, पांच राज्यों को छोड़कर, बाकी सभी को 2014 में केंद्र से 2013 की तुलना में काफ़ी कम पैसा मिला था. जैसे-जैसे हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था कमज़ोर होने लगी और बेरोज़गारी बढ़ी, मोदी ने उस स्कीम में ज़्यादा से ज़्यादा पैसा लगाना शुरू कर दिया जिसे उन्होंने नाकामी कहा था. 2014–15 में, मनरेगा को 32,000 करोड़ रुपये मिले; 2015–16 में, 37,000 करोड़ रुपये; 2016–17 में, 48,000 करोड़ रुपये; 2017–18 में, 55,000 करोड़ रुपये; 2018–19 में, 61,000 करोड़ रुपये; 2019–20 में, 71,000 करोड़ रुपये और 2020–21 में, 111,000 करोड़ रुपये. मोदी के तहत स्मारक मनमोहन सिंह के तहत की तुलना में लगभग तीन गुना बड़ा हो गया था.
तब से हाथ की सफ़ाई, जिसमें मनरेगा बजट को अंधेरे में रखना और राज्यों को पैसे तक पहुंच से महरूम करना शामिल है, ने यह पक्का किया है कि मांग पर कोई पारदर्शिता नहीं है. नाम बदली गई स्कीम अब बेशक यह सब ठीक कर देगी.
यही हमारी अच्छी गवर्नेंस की कहानी रही है: वे चीज़ें जो करना मुश्किल थीं और जिनमें योजना और अमल की ज़रूरत थी, पहले शुरू की गईं और फिर छोड़ दी गईं. यह तब भी सच था जब प्रोजेक्ट नमामि गंगे जैसा पवित्र था, जिसे चुनाव जीत के फ़ौरन बाद जून 2014 में शुरू किया गया था. इसे ‘प्रदूषण को असरदार तरीके से ख़त्म करने, बचाव और राष्ट्रीय नदी गंगा के कायाकल्प के दोहरे मक़सद को पूरा करने’ के लिए 20,000 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था. गंगा को इतनी सफ़ाई की ज़रूरत नहीं थी—क्योंकि यह लगातार समुंदर में बहती थी—बल्कि यह पक्का करने की ज़रूरत थी कि इसमें और गंदगी न जाए. यह एक बारीक मसला था जिसका ताल्लुक़ सैकड़ों जगहों से था जहां गंदा पानी नदी में छोड़ा जा रहा था. एक बार जब यह पता चला कि सफ़ाई में काफ़ी मेहनत की ज़रूरत है, तो प्रोजेक्ट के लिए जोश कम हो गया.
फरवरी 2017 में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा कि ‘गंगा नदी की एक बूंद भी अभी तक साफ़ नहीं हुई है’, और सरकारी कोशिशें ‘सिर्फ़ जनता का पैसा बर्बाद कर रही हैं’. अगले साल, 86 साल के पर्यावरणविद् जी.डी. अग्रवाल, जो 111 दिनों से मरने तक का अनशन कर रहे थे, की मौत हो गई, उन्होंने पानी भी छोड़ दिया था. आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर जो सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में काम कर चुके थे, अग्रवाल गंगा की हिफ़ाज़त के लिए एक क़ानून की मांग कर रहे थे. अग्रवाल की मौत से एक दिन पहले, गडकरी (जो जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प के केंद्रीय मंत्री थे) ने कहा कि अग्रवाल की तक़रीबन सभी मांगें पूरी हो चुकी हैं.
नमामि गंगे के लिए पैसा 2016–17 में 2,500 करोड़ रुपये से गिरकर 2017–18 में 2,300 करोड़ रुपये और फिर 2018–19 में 687 करोड़ रुपये हो गया. 2019–20 में, तक़रीबन 375 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए. उस साल, प्रोजेक्ट को एक बड़े प्रोजेक्ट में मिला दिया गया जिसे अब जल शक्ति कहा जाता है. जब मार्च 2020 में लॉकडाउन की वजह से प्रदूषण फैलाने वाली फ़ैक्ट्रियां अस्थायी तौर पर बंद हो गईं, तो मोदी सरकार ने दावा किया कि गंगा साफ़ हो गई है. ‘नेशनल मिशन फ़ॉर क्लीन गंगा’ की सरकारी वेबसाइट इसे चलाने वाली काउंसिल की मीटिंग के मिनट्स की लिस्ट देती है. लगता है कि 10 सालों में सिर्फ़ दो मीटिंग्स हुईं, एक 14 दिसंबर 2019 को और दूसरी 30 दिसंबर 2022 को.
10 साल और प्रचार की मोटी धारा के बाद, क्या गंगा साफ़ है? विपक्ष कहता है नहीं. ‘20,000 करोड़ रुपये ख़र्च करने के बावजूद गंगा नदी और गंदी क्यों हो गई: कांग्रेस ने पीएम मोदी से पूछा’ यह 14 मई 2024 से प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया की एक हेडलाइन है.
यही मसला है दो से ज़्यादा टर्म के बाद अच्छी गवर्नेंस के बारे में बात करने का. रिकॉर्ड हमारे सामने है, और रोज़ाना खुलता जा रहा है. कितने हिंदुस्तानी अभी भी दिखावे से आश्वस्त हैं? सबसे ज़्यादा यही संभावना है कि वे लोग हैं जो मानना चाहते हैं कि नए भारत में अच्छी गवर्नेंस भरपूर है.
आकार स्तंभकार के साथ साथ एमनेस्टी इंडिया के प्रमुख हैं.
‘रुपया डॉलर के मुकाबले 90.74 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर; व्यापार घाटा कम हुआ
सोमवार (15 दिसंबर, 2025) को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 90.80 तक गिर गया और अंत में 25 पैसे की गिरावट के साथ 90.74 (अनंतिम) के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और विदेशी फंड की लगातार निकासी के कारण रुपये पर दबाव बना हुआ है.
विदेशी मुद्रा व्यापारियों का कहना है कि जोखिम से बचने की बाजार धारणा और आयातकों की ओर से डॉलर की मजबूत मांग ने निवेशकों की भावनाओं को कमजोर किया है. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने कहा, “भारतीय रुपया एशियाई मुद्राओं में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला बन गया है. बेहतर व्यापार संतुलन के आंकड़ों के बावजूद रुपये को समर्थन नहीं मिल सका.”
वहीं, द हिंदू की एक अन्य रिपोर्ट बताती है कि नवंबर 2025 में भारत के व्यापार घाटे में 61% से अधिक की भारी गिरावट आई है और यह 6.6 अरब डॉलर रह गया है. इसका मुख्य कारण वस्तुओं के निर्यात में मजबूत वृद्धि और आयात में गिरावट है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2025 में भारत का कुल निर्यात 15.5% बढ़कर 74 अरब डॉलर हो गया.
वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने बताया कि भारत और अमेरिका रूपरेखा समझौते (framework deal) के “बहुत करीब” हैं. दिलचस्प बात यह है कि अगस्त 2025 के अंत से अमेरिका द्वारा भारत से आयात पर 50% शुल्क लगाने के बावजूद, नवंबर में अमेरिका को भारत का निर्यात बढ़ा है. निर्यातकों का कहना है कि वे ऊंचे टैरिफ का प्रभाव खुद झेल रहे हैं ताकि अमेरिकी बाजार में अपने ग्राहकों को न खोएं. इस बीच, सोने के आयात में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जो अक्टूबर के मुकाबले नवंबर में करीब 73% कम रहा.
झारखंड में दिल दहलाने वाली घटना: सड़क न होने के कारण गर्भवती आदिवासी महिला और गर्भस्थ शिशु की मौत
दुर्भाग्य है कि सरकार के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलतीं ऐसी घटनाओं पर न तो नेशनल मीडिया की प्राइम टाइम डिबेट में कोई चर्चा होती है, और न ही जवाबदेही के सवाल खड़े किए जाते हैं. रांची से मुकेश रंजन ने झारखंड के गुमला में एक दिल दहला देने वाली घटना का ब्यौरा दिया है, जब सड़क के अभाव के कारण रविवार को एक गर्भवती आदिवासी महिला सुखरी कुमारी, और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की जान चली गई.
चूंकि एम्बुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी, इसलिए उसके परिवार के सदस्यों को उसे पहाड़ी इलाके से होते हुए, उसके घर झलकपत से करसिल्ली गाँव तक, एक किलोमीटर से अधिक दूरी तक कांवड़पर ले जाना पड़ा.
करसिल्ली पहुँचने के बाद, महिला को एक ‘ममता वाहन’ मिला, जिसमें उसे घाघरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. डॉक्टरों ने उसे शुरुआती उपचार देने के बाद, उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए तुरंत गुमला सदर अस्पताल रेफर कर दिया. इलाज के लिए संघर्ष के बीच, बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण, सुखरी कुमारी की सदर अस्पताल पहुँचने के तुरंत बाद मृत्यु हो गई. गुमला के सिविल सर्जन, डॉ. शंभू नाथ चौधरी, ने इस बात को स्वीकार किया कि सुखरी कुमारी की जान चिकित्सीय सहायता तक पहुँचने में हुई देरी के कारण गई.
सिविल सर्जन ने कहा, “अगर उन्हें कुछ घंटे पहले सीएचसी में चिकित्सा सहायता मिल जाती, तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी. पहाड़ी पर स्थित उनके गाँव का इलाका वास्तव में बहुत कठिन है, जहां ममता वाहन नहीं पहुँच सकता.”
सिविल सर्जन ने कहा, “स्थानीय सहिया दीदी को 2:39 बजे कॉल प्राप्त हुई थी, और कॉल सेंटर को 2:44 बजे कॉल प्राप्त हुई. 3:15 बजे ममता वाहन मौके पर पहुँचा. लेकिन महिला को करसिल्ली में इंतजार कर रहे ममता वाहन तक पहुँचने में कई घंटे लग गए, जो उनके गाँव से लगभग एक किलोमीटर दूर था.”
सिविल सर्जन ने यह भी बताया कि सुकरी कुमारी हिमाचल प्रदेश से लौटी थी, जहाँ वह पैसे कमाने गई थी. इससे पंजीकरण प्रक्रिया में देरी हुई. उन्होंने बताया कि वह महज 17 साल की थी और यह उसकी पहली गर्भावस्था थी. ग्रामीणों के अनुसार, स्वतंत्रता के 78 साल बाद भी झलकपत गाँव में सड़क का अभाव है. उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम में स्थिति काफी खराब हो जाती है. सड़क के अभाव के कारण, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाएँ और रोजगार के अवसर ग्रामीणों के लिए लगभग पहुँच से बाहर हैं. ग्रामीणों ने दावा किया कि वे कई सालों से सड़क की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें केवल खोखले वादे ही मिले हैं. मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों द्वारा बसे इस गाँव में, विकास योजनाएं केवल कागजों पर ही रह गई हैं. यहां तक कि बच्चों को भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है.
दिल्ली का दम घुटा, एक्यूआई खतरनाक ‘गंभीर’; कक्षा-5 तक भौतिक कक्षाएं निलंबित, ‘घर’ सबसे सुरक्षित विकल्प
गंभीर वायु प्रदूषण ने सोमवार को दिल्ली सरकार को छोटे छात्रों के लिए भौतिक (फिजिकल) कक्षाएं निलंबित करने के लिए मजबूर कर दिया, जिसमें सभी स्कूलों को नर्सरी से कक्षा 5 तक के बच्चों के लिए अगले आदेश तक पूरी तरह से ऑनलाइन मोड में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया है. जबकि, उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए, स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 13 दिसंबर को जारी निर्देशों के अनुसार, शिक्षण के हाइब्रिड मोड (ऑनलाइन और ऑफलाइन का मिश्रण) जारी रहेंगे.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक, यह कदम तब आया जब दिल्ली की वायु गुणवत्ता खतरनाक “गंभीर” श्रेणी में और गहराई तक चली गई. सोमवार की सुबह शहर का एक्यूआई 498 तक पहुँच गया और शाम तक यह चिंताजनक रूप से उच्च 427 पर बना रहा. राजधानी को घने कोहरे और बहुत कम दृश्यता ने ढक दिया, जो निवासियों के लिए एक और गंभीर दिन था.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली भर के 27 निगरानी स्टेशनों ने “गंभीर” वायु गुणवत्ता स्तर दर्ज किया, जबकि 12 स्टेशन “बहुत खराब” श्रेणी में थे. 40 निगरानी स्टेशनों में से वज़ीरपुर में सबसे खराब वायु गुणवत्ता दर्ज की गई, जिसका एक्यूआई 475 था. सीपीसीबी एक्यूआई रीडिंग को 500 पर सीमित करता है, जिसके आगे के मान रिकॉर्ड नहीं किए जाते हैं. सीपीसीबी मानदंडों के तहत, 401 और 500 के बीच का एक्यूआई “गंभीर” श्रेणी में आता है, जो स्वस्थ व्यक्तियों के लिए भी गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है.
दिल्ली के लिए वायु गुणवत्ता प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के आंकड़ों से पता चला है कि PM2.5 सांद्रता 154.96 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी, जो राष्ट्रीय मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से लगभग चार गुना अधिक है. PM10 का स्तर 260.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, PM2.5 कण विशेष रूप से खतरनाक होते हैं, क्योंकि वे फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं, जबकि PM10 कण भी श्वसन संबंधी जोखिम पैदा करते हैं.
वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए निर्णय समर्थन प्रणाली ने प्रदूषण के लिए बड़े पैमाने पर परिवहन उत्सर्जन को जिम्मेदार ठहराया, जिसका योगदान 3.079 प्रतिशत था, इसके बाद निर्माण गतिविधियों का 1.732 प्रतिशत और पराली जलाने का 0.218 प्रतिशत था.
घने कोहरे ने पूरे शहर में दैनिक जीवन को बाधित कर दिया, निवासियों ने साँस लेने में कठिनाई और आवागमन की खतरनाक स्थितियों की सूचना दी. दिल्ली के एक निवासी ने कहा कि बिगड़ते प्रदूषण ने लोगों को एहतियात बरतने के लिए मजबूर कर दिया है. निवासी ने कहा, “प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है. मैंने कुछ दिन पहले मास्क पहनना शुरू कर दिया था और अपने फेफड़ों की भी जाँच कराई थी. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.”
सिंगापुर की अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी
इधर, दिल्ली की वायु गुणवत्ता के मद्देनजर सिंगापुर उच्चायोग ने दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले अपने नागरिकों के लिए एक एडवाइजरी जारी की, जिसमें उनसे घर के अंदर रहने और बाहर निकलते समय मास्क पहनने से संबंधित निर्देशों पर “ध्यान देने” के लिए कहा गया है. नई दिल्ली में सिंगापुर उच्चायोग ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर यह एडवाइजरी पोस्ट की.
आलंद वोट चोरी: चुनाव आयोग के पोर्टल का इस्तेमाल कर 5994 वोटरों को गलत तरीके से हटाया, चार्जशीट में खुलासा
कर्नाटक सरकार की एसआईटी द्वारा दायर आरोपपत्र में कहा गया है कि कलबुर्गी की आलंद विधानसभा सीट से संबंधित मतदाता धोखाधड़ी मामले में आरोपियों को चुनाव आयोग (ईसीआई) के पोर्टल का उपयोग करके मतदाता सूची से चयनित नामों को हटाने के तरीके की पूरी समझ थी और वे 6,018 आवेदनों में से 5,994 नामों को मतदाता सूची से हटाने में अंततः सफल रहे. एम.बी. गिरीश की रिपोर्ट है कि चयनित मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाने का उद्देश्य आलंद से 2023 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार सुभाष गुट्टेदार के लिए राजनीतिक लाभ हासिल करना था.
एसआईटी के आरोपपत्र में मतदाता धोखाधड़ी मामले में पूर्व विधायक सुभाष गुट्टेदार को आरोपी 1, उनके बेटे हर्षानंद गुट्टेदार को आरोपी 2, उनके करीबी सहयोगी तिप्परुद्र को आरोपी 3, अकरम पाशा को आरोपी 4, असलाम पाशा को आरोपी 5, मोहम्मद अशफाक को आरोपी 6 और पश्चिम बंगाल के मूल निवासी बापी आद्या को आरोपी 7 के रूप में नामित किया गया है. इनमें से तीन ने मतदाता सूची में चयनित नामों को हटाने के लिए चुनाव आयोग द्वारा विकसित एक ऑनलाइन सेवा, राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल तक बार-बार “अवैध पहुँच” प्राप्त की.
जबकि एक आरोपी ने अवैध रूप से प्राप्त मोबाइल फोन नंबरों और ओटीपी का उपयोग करके राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल पर लॉगिन आईडी बनाने के लिए वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) की आपूर्ति की, जिससे ऑनलाइन तीसरे पक्षों की पहचान और प्रतिरूपण में सुविधा हुई. आरोप पत्र में कहा गया है कि आरोपी अकरम पाशा मतदाता धोखाधड़ी मामले में अन्य आरोपी व्यक्तियों से जुड़ा हुआ है और उसने चुनाव आयोग द्वारा संचालित पोर्टल तक बार-बार पहुंच प्राप्त की और उस पर “अवैध लाभ” प्राप्त करने के विशिष्ट इरादे से कार्य करने का आरोप है, यह जानने के बाद कि राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) का उपयोग करके लॉगिन/पंजीकरण के लिए मोबाइल नंबर स्वीकार करता है. एक बार लॉगिन करने के बाद, केवल लॉगिन आईडी से जुड़े पासवर्ड की आवश्यकता होती है. लॉगिन के बाद, सत्र के लिए कोई समय सीमा नहीं है (कोई स्वचालित लॉगआउट नहीं). एक बार लॉगिन बनने के बाद, असीमित संख्या में आवेदन जमा किए जा सकते हैं. आवेदनों को हटाने के लिए उपयोग किया जाने वाला मोबाइल नंबर कोई भी 10 अंकों का नंबर हो सकता है, भले ही वह मतदाता से असंबंधित हो. फॉर्म 7 में विलोपन (हटाने) का आवेदन जमा किए जाने पर मूल मतदाता को कोई इलेक्ट्रॉनिक सूचना प्राप्त नहीं होती है.
सूची से चयनित मतदाताओं के नामों को हटाने से पहले, मूल मतदाताओं के नाम, मतदाता सूची की जानकारी और संबंधित डेटा का विवरण एकत्र किया गया था और इस योजना में फर्जी जानकारी वाले इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ बनाना और उन्हें वास्तविक आवेदनों के रूप में जमा करना शामिल था, ताकि चुनाव आयोग आवेदनों को वास्तविक मानकर मतदाता सूची से नाम हटा दे.
चयनित नामों को मतदाता सूची से हटाने के लिए, आलंद के पूर्व विधायक सुभाष गुट्टेदार ने अपने बेटे हर्षानंद गुट्टेदार, करीबी सहयोगी तिप्परुद्र और अकरम पाशा के साथ मिलकर एक साजिश रची थी, जिसमें उन मतदाताओं की पहचान की गई जिन्होंने सुभाष गुट्टेदार को वोट नहीं दिया था और राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए उनके नामों को मतदाता सूची से हटाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें वे सफल रहे.
बंगाल एसआईआर: काकद्वीप के व्यक्ति को तृणमूल का नेता ‘बेटे’ के रूप में मिला, अब संपत्ति को लेकर चिंतित
बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, बासुदेव दास नामक एक व्यक्ति को चिंता सता रही है. लेकिन यह चिंता वोट डालने को लेकर नहीं, बल्कि ज़मीन के छोटे से टुकड़े और घर को लेकर है.
70 वर्षीय मज़दूर बासुदेव, जो दो बेटों और एक बेटी के पिता हैं, कोलकाता से लगभग 87 किलोमीटर दूर दक्षिण 24 परगना के काकद्वीप में पुरबा गोविंदपुर में रहते हैं. जब विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया चल रही थी, तो वह यह जानकर हैरान रह गए कि उनके कम से कम दो और बेटे और शायद एक बेटी भी है.
उनके “नए मिले” बेटों में से एक संजय दास उर्फ संचय दास हैं, जो तृणमूल कांग्रेस के दक्षिण 24 परगना ज़िला परिषद सदस्य हैं और प्रताप आदित्यनगर ग्राम पंचायत से चुने गए हैं, जहां बासुदेव भी मतदाता हैं. 2002 की मतदाता सूची में, जब बंगाल में पिछली बार एसआईआर हुआ था, संजय दास को बासुदेव दास का बेटा बताया गया था.
लोकसभा चुनाव के लिए 2024 की मतदाता सूची भी संचय दास को बासुदेव का बेटा बताती है. संजय और संचय दोनों का वोटर-आईडी कार्ड नंबर एक ही है. बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर अपलोड की गई 2002 की मतदाता सूचियों में नाम, लिंग, आयु, पिता का नाम और वोटर कार्ड नंबर का उल्लेख है. 2024 की सूची में मतदाता की तस्वीर भी है.
बासुदेव ने अपने आधे-अधूरे बने घर के बरामदे पर बैठकर कहा, “मैं अपनी पूरी जिंदगी यहीं रहा हूं. गाँव में हर कोई जानता है कि मेरे दो बेटे और एक बेटी है.” “पड़ोसियों ने मुझे बताया कि ज़िला परिषद सदस्य संजय उर्फ संचय दास के पिता के रूप में मेरा नाम दर्ज है.”
बासुदेव ने चिंता व्यक्त की, “क्या होगा अगर वह मेरी मृत्यु के बाद मेरी संपत्ति पर दावा करता है? यही मेरे पास सब कुछ है. मैं चाहता हूँ कि मेरी मृत्यु से पहले यह मामला सुलझ जाए. वह मेरा बेटा नहीं है. मैं उसका पिता कैसे हो सकता हूँ?”
बासुदेव का सबसे बड़ा बेटा, शिवशंकर, गुजरात की एक फैक्ट्री में काम करता है. छोटा बेटा, गुरुपदा, काकद्वीप में छोटे-मोटे काम करता है. बेटी, चम्पा, गृहिणी है. उन्होंने अब बीडीओ और एसडीओ को शिकायत की है.
अर्नब गांगुली की रिपोर्ट के अनुसार, एसआईआर पूरा होने के बाद, प्रस्तुत गणना फॉर्मों में “तार्किक त्रुटियों” के कारण लगभग 1.67 करोड़ मतदाता निर्वाचन आयोग की निगरानी में आ गए हैं.
8.16 लाख मामलों के साथ, मृत मतदाताओं, लापता मतदाताओं और दोहरे मतदाताओं के अधिकतम मामले बासुदेव के गृह जिले दक्षिण 24 परगना में पाए गए हैं. बंगाल में 2002 की मतदाता सूची के लगभग 24,21,133 मतदाताओं को 2025 की मतदाता सूचियों में छह से अधिक मतदाताओं द्वारा अभिभावक के रूप में टैग किया गया है. बासुदेव के मामले में, अब तक पाँच मतदाताओं ने उन्हें अभिभावक के रूप में टैग किया है.
इस बीच तृणमूल ज़िला परिषद सदस्य संचय दास ने स्वीकार किया कि वह मूल रूप से बांग्लादेश से हैं, लेकिन अन्य सभी बातों से इनकार किया, जिसमें यह भी शामिल है कि उन्हें कभी संजय के नाम से जाना जाता था. उन्होंने टेलीग्राफ को बताया, “मेरा नाम संचय है. संजय कभी मेरा नाम नहीं था. मेरे पिता बासुदेव दास अब नहीं रहे. मैं चार दशक पहले जब एक छोटा लड़का था तब बांग्लादेश से आया था. मैंने यहीं से माध्यमिक, उच्च माध्यमिक और ग्रेजुएशन पूरा किया. मैं भारत का नागरिक हूँ.”
भाजपा की काकद्वीप विधानसभा सीट के संयोजक अभिजीत मंडल ने कहा, “एक व्यक्ति के रूप में हमें संचय दास से कोई आपत्ति नहीं है. बांग्लादेश के एक हिंदू के रूप में उनका भारत में स्वागत है. हमने यहां सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) शिविर आयोजित किया है. वह आवेदन कर सकते हैं और नागरिक बन सकते हैं. हम पूरी मदद देंगे.”
हरकारा डीपडाइव
मोदी को वोट से मोहभंग तक
रिबॉर्न मनीष उन लोगों में से हैं जो ज़मीन पर उतर कर लोगों की आँखों में आँख डालकर तर्क, तथ्य के आधार पर बात करते हैं, जिसमें हमारा हिंदी समाज, हमारे लिबरल, हमारे राजनेता अपनी बात कहने और पहुँचाने में असफल रहा है. उस प्रोपोगंडा के ख़िलाफ़, जिसमें नफ़रत, हिंसा, छुआ-छूत, और अदरिंग की प्रवृत्ति अपना नंगा नाच हर तरफ़ करती दिखलाई दे रही है. वे धुआँ उड़ा देते हैं उन सबका. मनीष के वाक्य उनकी बातों की तरह धारदार हैं, और इसलिए बहुत से लोग उनकी तरफ़ देखते हैं. कुछ फ़ॉलो करने के लिए, कुछ उनके ख़िलाफ़ बोलने के लिए. उनसे बचना मुश्किल है. हरकारा डीपडाइव में उन्होंने मुझसे बात की इस चिंता के साथ कि हिंदी पट्टी की भैंस पानी से कैसे बाहर निकलेगी?
बाबरी मस्जिद के ध्वंस के समय वह पांच साल का था, और अब वह लिखता है मुस्लिम होने के बारे में
6 दिसंबर 1992 से लेकर आज तक, हिंदुस्तान ने 33 साल का लंबा और कठिन सफ़र तय किया है. हरकारा डीप डाइव के इस एपिसोड में निधीश त्यागी ने बातचीत की वरिष्ठ पत्रकार असद अशरफ से, जो इस सफ़र को किसी आंकड़े या नारे की तरह नहीं, बल्कि अपनी ज़िंदगी के अनुभवों के ज़रिए सामने रखते हैं. असद अशरफ उस दिन सिर्फ़ पाँच साल के थे, जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई. टीवी पर ढांचा गिरते देखना, पिता की आंखों में आंसू, और घर में पसरा सन्नाटा, वह स्मृति आज भी उनके साथ है. इसके बाद गया, पटना, पंचकूला, दिल्ली और जामिया तक का सफ़र उनके लिए सिर्फ़ जगहों का नहीं, बल्कि डर, पहचान, सवाल और उम्मीदों का सफ़र रहा. क्विंट में अशरफ ने लंबा ब्यौरा भी लिखा इस सफर का.
इस बातचीत में स्कूलों में बढ़ती इस्लामोफोबिया, 2002 के गुजरात दंगे, 2008 का बाटला हाउस एनकाउंटर, पुलिस की चेकिंग, नाम और दाढ़ी से पैदा होने वाला डर, और वंदे भारत ट्रेन जैसी हाल की घटनाओं तक का ज़िक्र है. साथ ही यह भी कि कैसे छात्र राजनीति, लेफ्ट आंदोलन और जर्नलिज़्म ने उन्हें बोलने और लिखने की भाषा दी. यह एपिसोड सिर्फ़ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, यह उस भारत की कहानी है, जो धीरे-धीरे बदला, सख़्त हुआ, और कई बार अपने ही नागरिकों के लिए अनजान बन गया. लेकिन इसके साथ एक सवाल भी है: क्या उम्मीद अब भी ज़िंदा है?
सिक्किम में भारत-चीन संघर्ष स्थल अब पर्यटकों के लिए खुले, ‘भारत रणभूमि दर्शन’ की शुरुआत
भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध के आठ साल बाद, सिक्किम के डोकलाम को सोमवार (15 दिसंबर, 2025) को केंद्र सरकार की ‘भारत रणभूमि दर्शन’ पहल के तहत औपचारिक रूप से पर्यटकों के लिए खोल दिया गया. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, डोकलाम के साथ-साथ चो-ला (Cho-La), जो 1967 में दोनों देशों के बीच संघर्ष का स्थल रहा था, को भी पर्यटन के लिए खोला गया है.
सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने गंगठोक से 25 मोटरसाइकिलों और वाहनों को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. उन्होंने कहा, “चो-ला और डोक-ला का खुलना वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्यटन को मजबूत करना और स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करना है.” यह पहल ‘बैटलफील्ड टूरिज्म’ (रणभूमि पर्यटन) की अवधारणा के तहत की गई है, ताकि आगंतुकों में देशभक्ति की भावना जगाई जा सके और सशस्त्र बलों के बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके.
डोकलाम, जो 13,780 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, भूटान, चीन और भारत के ट्राइ-जंक्शन पर चुंबी घाटी में एक पठार है. जून 2017 में यह क्षेत्र एक बड़ा फ्लैशपॉइंट बन गया था जब चीन ने यहां सड़क बनाने का प्रयास किया था. वहीं, चो-ला 17,780 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. सिक्किम के अतिरिक्त मुख्य सचिव (पर्यटन) सी. सुधाकर राव ने बताया कि सेना के साथ मिलकर यहां कैफेटेरिया, पार्किंग और अन्य सुविधाएं विकसित की गई हैं.
संसदीय समिति ने जेल में बंद सोनम वांगचुक के संस्थान को मान्यता देने की सिफारिश की
राज्यसभा की एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) लद्दाख के शिक्षाविद और कार्यकर्ता सोनम वांगचुक द्वारा स्थापित ‘हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑल्टर्नेटिव्स, लद्दाख’ (HIAL) को मान्यता देने पर विचार करे. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली शिक्षा संबंधी स्थायी समिति ने सोमवार (8 दिसंबर, 2025) को अपनी रिपोर्ट पेश की.
समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के “अनुकरणीय” कार्यान्वयन के लिए HIAL की सराहना की. रिपोर्ट में कहा गया है कि लद्दाख दौरे के दौरान समिति संस्थान के शैक्षणिक, अनुसंधान और उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र से प्रभावित हुई, विशेष रूप से अनुभवात्मक शिक्षा (experiential learning) में इसकी सफलता से. समिति ने इस बात पर चिंता जताई कि कई वर्षों से मामला लंबित होने के बावजूद यूजीसी ने संस्थान को मान्यता नहीं दी है.
गौरतलब है कि सोनम वांगचुक को इसी साल सितंबर में लद्दाख को आदिवासी दर्जा देने की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया था. समिति ने सुझाव दिया है कि HIAL मॉडल का बारीकी से अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि इसे अन्य स्थानों पर भी दोहराया जा सके.
वांगचुक की हिरासत के खिलाफ याचिका पर सुनवाई फिर टाली
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोनम वांगचुक की एनएसए के तहत हिरासत के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई 7 जनवरी, 2026 तक के लिए स्थगित कर दी. यह याचिका वांगचुक की पत्नी गीतांजलि जे. आंगमो ने दायर की है. “पीटीआई” के अनुसार, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने समय की कमी के कारण इसे आज टाल दिया. याचिका में दावा किया गया है कि हिरासत अवैध है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला एक मनमाना कृत्य है. शीर्ष अदालत ने इसके पहले 24 नवंबर को भी इस मामले को टाल दिया था.
हॉन्ग कॉन्ग के मीडिया टाइकून जिमी लाई राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत दोषी करार
हॉन्ग कॉन्ग के लोकतंत्र समर्थक मीडिया टाइकून जिमी लाई को शहर के विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत विदेशी ताकतों के साथ मिलीभगत का दोषी पाया गया है. बीबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट (केली एनजी द्वारा) के अनुसार, 78 वर्षीय लाई को उम्रकैद की सजा हो सकती है. वह 2020 में चीन द्वारा पेश किए गए इस कानून के तहत आरोपित होने वाले सबसे प्रमुख व्यक्ति हैं.
जिमी लाई का जीवन एक फिल्म की कहानी जैसा है. वह 12 साल की उम्र में चीन के ग्वांगझू से एक मछली पकड़ने वाली नाव पर छिपकर हॉन्ग कॉन्ग पहुंचे थे. कपड़ों की दुकान में काम करते हुए उन्होंने अंग्रेजी सीखी और बाद में ‘जियोर्डानो’ (Giordano) जैसे अंतरराष्ट्रीय कपड़ों के ब्रांड की स्थापना की. 1989 के तियानमेन स्क्वायर नरसंहार के बाद उनका झुकाव लोकतंत्र समर्थक सक्रियता की ओर हुआ और उन्होंने ‘एप्पल डेली’ (Apple Daily) अखबार की स्थापना की, जो बीजिंग का मुखर आलोचक बन गया.
बीजिंग उन्हें “गद्दार” मानता है, जबकि हॉन्ग कॉन्ग के कई लोग उन्हें लोकतंत्र का “नायक” मानते हैं. दिसंबर 2020 से हिरासत में चल रहे लाई के बेटे सेबेस्टियन ने बीबीसी को बताया था कि उनके पिता की बिगड़ती सेहत को देखते हुए पांच साल की सजा भी “मौत की सजा” के समान होगी. जिमी लाई ने एक बार कहा था, “मैं खाली हाथ यहां आया था, इस जगह की आजादी ने मुझे सब कुछ दिया है. शायद अब उस आजादी के लिए लड़कर कर्ज चुकाने का समय है.”
अबान रज़ा की पेंटिंग्स में जीवंत होते विरोध प्रदर्शन
कलाकार अबान रज़ा के कैनवास पर विरोध प्रदर्शन सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक जीती-जागती सच्चाई के रूप में उभरते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रज़ा की पेंटिंग्स में जर्मन अभिव्यक्तिवाद (German expressionism) की झलक मिलती है, जो प्रदर्शनों से पहले की प्रत्याशा और उसके बाद की थकान को बेहद मार्मिक ढंग से दर्शाती हैं.
Bhim Bus Stand, Rajsthan (2025)
रज़ा का 2025 का एक काम, जिसमें एक रंगीन शामियाने के नीचे लोग जमा हैं, कोई मंचन नहीं बल्कि एक वास्तविक विरोध स्थल का चित्रण है. 36 वर्षीय कलाकार कहती हैं, “मेरे लिए यह एक वास्तविक स्थल है. लोग असली हैं.” रज़ा अक्सर विषयों को चित्रित करने से पहले उन स्थलों का दौरा करती हैं और कभी-कभी विरोध प्रदर्शनों में भाग भी लेती हैं, चाहे वह 2020-21 का किसान आंदोलन हो या 2019 का शाहीन बाग. उनकी प्रदर्शनी में मारुति के बर्खास्त कर्मचारियों के संघर्ष और फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों को भी जगह मिली है.
उनकी पेंटिंग ‘भीम बस स्टैंड’ (2025) में बस का इंतजार करती सात महिलाएं दिखाई गई हैं, जो विरोध स्थल की ओर जाने या वहां से लौटने के बीच के उस क्षण को कैद करती हैं. वहीं, ‘सोर्खी, हिसार जिला’ (2025) में तीन महिलाएं दिन भर प्रचार करने के बाद आराम करती हुई दिखाई देती हैं. रज़ा का कहना है, “अगर मैं कलाकार नहीं भी होती, तब भी मैं उन जगहों पर जाती. क्योंकि मैं एक कलाकार हूं, मुझे लगता है कि मैं इस तरह से विमर्श में योगदान दे सकती हूं.”
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