16.01.2025 | रुपया 90 से नीचे लुढ़केगा, भागवत पर राष्ट्रद्रोह मामले की मांग, गाजा पर समझौता, भारतीय अफसर और अमेरिकी को मारने की साजिश, नियम बदलने पर चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, मेटा की माफ़ी
हरकारा हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज का ‘न्यूजलेटर’ थोड़ा लम्बा है, क्योंकि खबरें बहुत सारी हैं. आप आगे पढ़ेंगे रुपया कहां तक लुढ़केगा, मोहन भागवत पर राष्ट्रदोह के मुकदमे की मांग, गाजा को लेकर समझौता, भारत सरकार का मानना कि उनका अधिकारी शामिल था अमेरिकी-सिख की हत्या की साजिश में, किसान नेता ढल्लेवाल के अनशन का 51वां दिन और चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस. पर उससे पहले;
16.01.2025 | आज की सुर्खियां
केजरीवाल, सिसोदिया पर मुकदमा चलाने के लिए ईडी को मंजूरी : केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को शराब घोटाला मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग में संलिप्तता के लिए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ मुकदमा शुरू करने के लिए अधिकृत किया है. आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को यह जानकारी दी. आम आदमी पार्टी (आप) के इन नेताओं के खिलाफ मंजूरी आदेश इस महीने की शुरुआत में मिला था, जो 2021-22 के लिए अब रद्द कर दी गई दिल्ली शराब नीति में अनियमितता संबंधी मामले में एक ताजा घटनाक्रम है. यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब दोनों नेता इस मामले में जमानत पर हैं. और सामने दिल्ली के चुनाव हैं. पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले से जुड़े मामलों में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को एक महीने पहले अगस्त में नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था.
ईडी ने कांग्रेस विधायक को किया गिरफ्तार प्रवर्तन निदेशालय ने बुधवार को छत्तीसगढ़ के कांग्रेस विधायक और पूर्व आबकारी मंत्री 71 साल के कवासी लखमा को शराब घोटाले के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. ईडी ने 28 दिसंबर को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत रायपुर, सुकमा और धमतरी जिलों में छह बार के विधायक और उनके बेटे हरीश लखमा के ठिकानों पर छापेमारी की थी. ईडी के अनुसार, राज्य में कथित शराब घोटाला 2019-22 के बीच हुआ था, जब छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का शासन था.
फिर से उठाएंगे भारतीयों को छोड़ने की मांग: विदेश मंत्रालय ने आज रूस में भारतीय नागरिक बिनिल टीबी की युद्ध में मारे जाने और टीके जैन के जख्मी होने की तसदीक करते हुए कहा कि भारत रूस से इस मामले को मजबूती से उठा रहा है और रूसी सेना के लिए काम कर रहे बचे हुए भारतीय नागरिकों को उनके करार के समय से पहले ही छोड़ने की मांग दुहराई गई है. पर ये मांग तो खुद नरेन्द्र मोदी ने भी पिछले साल मॉस्को में व्लादीमिर पुतिन से रखी थी, जिससे कुछ हुआ नहीं.
बलात्कार के आरोप में भाजपा नेता गिरफ्तार: मध्य प्रदेश के सीधी जिले में एक हाई-प्रोफाइल राजनेता से बलात्कार और ब्लैकमेल करने के आरोप में सत्तारूढ़ भाजपा नेता अजीत पाल सिंह चौहान को पुलिस ने मंगलवार को गिरफ्तार कर लिया. महिला ने सत्तारूढ़ पार्टी के नेता पर उससे पैसे ऐंठने का भी आरोप लगाया है. 50 साल के भाजपा नेता एक शक्तिशाली राजनीतिक और पूर्व राजघराने से ताल्लुक रखता है. उन पर बलात्कार के साथ-साथ जबरन वसूली, आपराधिक धमकी और अश्लील हरकत करने का मामला दर्ज किया गया है. इस बीच, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के निर्देश पर पार्टी की सीधी जिला इकाई ने चौहान को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया.
मेटा ने माफ़ी मांगी: भारत में मेटा की पब्लिक पॉलिसी के वाइस प्रेसिडेंट शिवनाथ ठकराल ने मार्क जकरबर्ग की तरफ से माफ़ी मांग ली. जकरबर्ग ने कोविड के बाद हुए चुनावों में दुनिया में जो सरकारें गिर गई थीं, उनमें भारत का नाम भी लिया था. ठुकराल ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, “मार्क का यह नजरिया कि 2024 के चुनावों में कई मौजूदा पार्टियाँ फिर से नहीं चुनी गईं, कई देशों के लिए सच है, लेकिन भारत के लिए नहीं, हम इस अनजाने में हुई गलती के लिए माफ़ी चाहते हैं.”
खालिदा जिया लौटेंगी चुनावी राजनीति में : बांग्लादेश की सियासत फास्ट फॉरवर्ड मोड से चल रही है. शेख हसीना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगने, उनके पासपोर्ट को रद्द करने के बाद अब खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप से बरी कर दिया गया है और इससे उनके अगला चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो गया है. ढाका की अंतरिम सरकार के मुताबिक अगले आम चुनाव वहाँ दिसंबर में होंगे या अगले साल की शुरूआत में. बांग्लादेश की ढाका विशेष न्यायधीश अदालत ने बुधवार को पूर्व सेना प्रमुख हारुनूर रशीद समेत 19 अन्य को गबन और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 12 साल कैद की सजा सुनाई और 4,515 करोड़ टका (करीब 3205 करोड़ रुपये) से अधिक का जुर्माना लगाया. अदालत ने गबन और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में पूर्व सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) रशीद और डेस्टिनी मल्टीपर्पज को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रफीकुल अमीन को 12-12 साल कैद की सजा सुनाई. इन दोनों के अलावा अन्य दोषी फरार हैं. सेना से रिटायर होने के कई साल बाद राशिद को फर्म ने डायरेक्टर नियुक्त किया था. राशिद ने 1996 से 2001 तक प्रधानमंत्री शेख हसीना (अब अपदस्थ) की सरकार में सेनाध्यक्ष रहे हैं.
मनमोहन का स्मारक: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के परिवारजनों ने कहा है कि उन्हें दिवंगत नेता के अर्थपूर्ण स्मारक के निर्माण पर विचार करने के लिए और समय चाहिए. ‘ट्रिब्यून’ के साथ बातचीत में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने सरकार की ओर से जमीन चिन्हित करने की पुष्टि की. दमन ने कहा, सरकार ने राष्ट्रीय स्मृति स्थल के भीतर एक खास जगह निर्धारित की है, जहां हमारा परिवार उपयुक्त स्मारक का निर्माण और प्रबंधन करना चाहेगा. उन्होंने कहा कि परिवार को अभी भी केंद्र के प्रस्ताव की शर्तों को समझने की आवश्यकता है और इस मुद्दे पर केंद्र से स्पष्टता मांगी है. दमन सिंह ने यह भी कहा, परिवार अभी शोक में है. इस बारे में गंभीरता से सोचने के लिए हमें कुछ और समय चाहिए.
एमएलसी सीट के लिए उपचुनाव के नतीजों की घोषणा पर रोक सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 15 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ टिप्पणी के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता सुनील कुमार सिंह को बिहार विधान परिषद से निष्कासित किए जाने से बनी रिक्ति को भरने के लिए हुए उपचुनाव के नतीजों की घोषणा पर रोक लगा दी. नतीजे 16 जनवरी को घोषित होने थे. जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह निर्णय के लिए मामले को समाप्त करने से पहले 16 जनवरी को बिहार विधान परिषद सहित प्रतिवादियों की सुनवाई करेगा. सिंह की तरफ से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सदन में केवल ‘वाक्यांश बदलने’ के आधार पर निष्कासन संसदीय लोकतंत्र के लिए मौत की घंटी होगी. केवल अपमानजनक गाली-गलौज पर ही स्थायी निष्कासन हो सकता है. आचार समिति की ओर से कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश नारायण सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के एक दिन बाद श्री सिंह के निष्कासन का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. सिंह के निष्कासन के अलावा, उसी दिन अभद्र व्यवहार करने वाले एक अन्य राजद एमएलसी मोहम्मद कारी सोहैब को भी दो दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया था. एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने सदन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मिमिक्री की थी.
इस साल रुपया 90 प्रति डॉलर तक गिर सकता है
रुपया अब 86 के स्तर को पार कर चुका है, तो यह और कितना नीचे जा सकता है? विश्लेषक उदित सिकंद और टॉम मिलर का कहना है कि इस साल 90 के स्तर से नीचे जाना काफी संभव है, और डॉलर के मुकाबले 95 तक की गिरावट भी "असंभव नहीं" है. उनका कहना है कि आरबीआई की रणनीति महंगी साबित हुई है - क्योंकि रुपये को सहारा देने वाली विदेशी पूंजी की आवक धीमी हो गई है और शेयर बाजार के मूल्यांकन के साथ-साथ बॉन्ड बाजार में प्रवाह भी ठीक नहीं है. केंद्रीय बैंक ने सितंबर से 50 अरब डॉलर से अधिक के अपने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग कर लिया है. इन परिस्थितियों में आरबीआई के पास "रुपये की लगाम ढीली करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा". उनका कहना है कि "अधिक बाजार-निर्धारित विनिमय दर में बदलाव लगभग निश्चित रूप से विघटनकारी होगा". वे आगे कहते हैं:
"एक बार स्थिति सामान्य होने के बाद, हम उम्मीद करते हैं कि रुपया अपनी 2.5-3.5% की संरचनात्मक वार्षिक अवमूल्यन की प्रवृत्ति को फिर से शुरू करेगा, इस चेतावनी के साथ कि बहुत कुछ अमेरिकी डॉलर की चाल पर निर्भर करता है."
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचने के साथ, मोदी सरकार को मुद्रा को स्थिर करने में विफल रहने के लिए बढ़ती आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. टेलीग्राफ में नैंसी जयसवाल लिखती हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की व्याख्याएं खोखली लग रही हैं क्योंकि अवमूल्यन का आर्थिक प्रभाव गहराता जा रहा है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ रही है, आयात लागत बढ़ रही है और व्यापार संतुलन बिगड़ रहा है. विडंबना यह है कि भाजपा नेताओं ने एक बार इसी तरह के संकटों के दौरान मनमोहन सिंह सरकार की आलोचना की थी. आज, स्थितियां बदल गई हैं. मोदी प्रशासन, जिसने मजबूत आर्थिक प्रबंधन का वादा किया था, रुपये की गिरावट को रोकने या अर्थव्यवस्था को इसके दुष्परिणामों से बचाने के लिए तैयार नहीं दिखता है. "अच्छे दिन" और आर्थिक लचीलापन के बड़े-बड़े दावों का क्या हुआ?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप नीति में बदलाव की अटकलों के बीच, बाजार सूत्रों ने कहा कि संभावना है कि रुख वही रहेगा, केंद्रीय बैंक बिना किसी विशिष्ट स्तर या सीमा को लक्षित किए, अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना जारी रखेगा. जनवरी में भारतीय करंसी में 1.2% की गिरावट आई है, लेकिन यह गिरावट मुख्य रूप से वैश्विक कारकों के कारण हुई, जिसके कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने उभरते बाजार अर्थव्यवस्थाओं से अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया, जिससे संबंधित मुद्राओं पर दबाव पड़ा. बुधवार को शुरुआती कारोबार में रुपये ने अपनी शुरुआती बढ़त खो दी और 2 पैसे गिरकर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.55 पर आ गया.
सकारात्मक शुरुआत के बावजूद, कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों और विदेशी धन की भारी निकासी के कारण रुपये की ऊपर की गति सीमित हो गई. विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने बताया कि एक कमजोर अमेरिकी मुद्रा ने निचले स्तरों पर रुपये को कुछ समर्थन दिया. रुपया 86.50 पर खुला और कुछ समय के लिए डॉलर के मुकाबले 86.45 को छू गया, इससे पहले कि अपनी बढ़त खो देता. कल, रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से उबर गया था और डॉलर के मुकाबले 17 पैसे बढ़कर 86.53 पर बंद हुआ था.
भारत सरकार का आदमी शामिल था अमेरिकी सिख की हत्या की साजिश में
वाशिंगटन द्वारा गुरपतवंत पन्नू हत्या की साजिश में लगाए गए आरोपों की जांच के लिए गठित एक उच्च-स्तरीय समिति द्वारा की गई प्रगति पर एक वर्ष से अधिक समय तक चुप्पी साधने के बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आज समिति के निष्कर्षों पर एक प्रेस विज्ञप्ति में यह स्वीकार किया कि वास्तव में एक मोदी सरकार का अधिकारी साजिश में शामिल था, लेकिन साथ ही खुद को उस अधिकारी से अलग कर लिया, जिस पर अमेरिका ने साजिश रचने का आरोप लगाया है. इसने न तो पन्नू और न ही विकास यादव - अमेरिकी अभियोजकों द्वारा नामित अधिकारी - (या यहां तक कि हरदीप सिंह निज्जर, जिसकी हत्या में ओटावा ने भारतीय सरकार के एजेंटों को शामिल होने का आरोप लगाया था) का नाम लिया और इसके बजाय बस इतना कहा कि समिति ने "एक व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की है, जिसके पहले के आपराधिक संबंध और पृष्ठभूमि भी जांच के दौरान सामने आए." इसने इस व्यक्ति के खिलाफ "त्वरित" कानूनी कार्रवाई की भी सिफारिश की.
इस विचार को बल देने के लिए कि अधिकारी खालिस्तान समर्थक पन्नू को मारने की साजिश रचकर (असम्बद्ध क्षमता में) “रोग एजेंट’’ की तरह काम कर रहा था, गृह मंत्रालय ने कहा कि समिति ने "प्रणालियों और प्रक्रियाओं में कार्यात्मक सुधारों के साथ-साथ ऐसे कदम उठाने की सिफारिश की है जो भारत की प्रतिक्रिया क्षमता को मजबूत कर सकें, व्यवस्थित नियंत्रण सुनिश्चित कर सकें और इस तरह के मामलों से निपटने में समन्वित कार्रवाई कर सकें."
सुप्रीम कोर्ट ने जयराम रमेश की याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 15 जनवरी को कांग्रेस नेता जयराम रमेश की ओर से दायर याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग (ईसीआई) को नोटिस जारी कर 17 मार्च तक जवाब मांगा है. याचिका में चुनाव संचालन नियम, 1961 में हाल ही में किए गए केंद्र सरकार की ओर से किए गए संशोधनों को चुनौती दी गई है. इसके तहत नागरिकों के चुनाव संबंधी रिकॉर्ड तक पहुंचने के अधिकार को सीमित कर दिया गया है. संशोधन में चुनाव प्रक्रिया के दौरान सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्ट फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग आदि भी शामिल हैं. केंद्रीय कानून मंत्रालय ने यह फैसला ईसीआई की सिफारिश पर लिया है.
दिलचस्प यह है कि संशोधन पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से ईसीआई को हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान एक मतदान केंद्र में डाले गए वोटों से संबंधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी फुटेज और दस्तावेजों की प्रतियां वकील महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश देने के कुछ दिनों बाद किया गया था. रमेश की याचिका के अनुसार, ईसीआई एक संवैधानिक निकाय है. उसका काम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है. उसे बिना सार्वजनिक परामर्श के इस तरह के महत्वपूर्ण कानून में एकतरफा संशोधन का सुझाव देने की अनुमति नहीं दी जा सकती. रमेश ने आरोप लगाया है कि संशोधन से जनता की उस आवश्यक जानकारी तक पहुंच खत्म हो जाती है, जो चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाती है.
बीमार डल्लेवाल के समर्थन में 111 किसान आमरण अनशन पर बैठे
अपनी मांगों के प्रति ‘उदासीन’ रवैया अपनाने के लिए केंद्र की आलोचना करते हुए 111 किसानों का एक समूह अपने नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बुधवार 15 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठ गया है. जबकि डल्लेवाल का अनिश्चितकालीन अनशन 51वें दिन में प्रवेश कर गया. प्रदर्शनकारी किसानों ने डल्लेवाल के बिगड़ते स्वास्थ्य पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि लंबे समय तक उपवास के कारण 70 वर्षीय डल्लेवाल के ‘कई अंगों के फेल होने’ का खतरा है. संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के संयोजक दल्लेवाल पिछले साल 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के बीच खनौरी सीमा पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर हैं. डल्लेवाल ने अपने उपवास के दौरान किसी भी तरह की चिकित्सा सहायता लेने से इनकार कर रखा है. किसानों के नेता कोहर ने बताया कि अनिश्चितकालीन उपवास के कारण डल्लेवाल की हालत गंभीर है. डॉक्टरों ने कहा है कि उनका शरीर पानी भी नहीं स्वीकार कर रहा है. वे जब भी वे पानी पीते हैं, तो उन्हें उल्टी आ जाती है. डल्लेवाल का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने पहले ही कहा है कि उनका स्वास्थ्य हर दिन बिगड़ता जा रहा है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 15 जनवरी को पंजाब सरकार को डल्लेवाल के रक्त परीक्षणों का तुलनात्मक चार्ट रिकॉर्ड में पेश करने का निर्देश दिया. न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने पंजाब के मुख्य सचिव को 19 दिसंबर, 24 दिसंबर, 30 दिसंबर 2024 और 3 जनवरी, 9 जनवरी तथा 14 जनवरी 2025 को डल्लेवाल के किए गए रक्त मूल्यांकन के परिणामों को संकलित करने का आदेश दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि संकलित परिणाम, शीर्ष अदालत को एक मेडिकल बोर्ड से विशेषज्ञ की राय लेने में सक्षम बनाएंगे. इस वह दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक को गठित करने के लिए प्रस्तावित करते हैं.
अब तक भागवत को गिरफ्तार कर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चल चुका होता: राहुल गाँधी
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि भारत को सच्ची आजादी 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के दिन मिली. बुधवार (15 जनवरी) को नई दिल्ली में कांग्रेस के नए पार्टी मुख्यालय ‘इंदिरा भवन’ के उद्घाटन अवसर पर राहुल ने कहा, “मोहन भागवत ने आजादी के बारे में जो कहा, वह देशद्रोह है. किसी अन्य देश में उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया जाता. भागवत का यह दुस्साहस है कि वह हर दो-तीन दिन में देश को बताएं कि स्वतंत्रता संग्राम और संविधान के बारे में उनके क्या विचार हैं. उनका बयान कहता है कि संविधान अमान्य है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ पूरी लड़ाई अमान्य है, और उन्होंने यह बात सार्वजनिक रूप से कहने का दुस्सहास किया. 1947 में भारत को आजादी नहीं मिलने की बात कहना हर भारतीय का अपमान है.” राहुल गांधी ने कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह कहकर चेताया कि जो लोग यह सोचते हैं कि यह सिर्फ भाजपा या आरएसएस जैसे राजनीतिक संगठन से लड़ाई है, वे देश के मौजूदा हालात की सच्चाई को समझने में विफल हैं. यह मत सोचिए कि हम कोई निष्पक्ष लड़ाई लड़ रहे हैं. इसमें कोई निष्पक्षता है ही नहीं...भाजपा और आरएसएस ने देश की हरेक संस्था पर कब्जा कर लिया है. अब हम भाजपा, आरएसएस और भारतीय राज्य (इंडियन स्टेट) से लड़ रहे हैं. अपनी इस बात के पक्ष में राहुल ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली का जिक्र किया. हमने आयोग से महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोटिंग करने वालों की नाम पते के साथ सूची मांगी, लेकिन उसने देने से इनकार कर दिया. जबकि जानकारी देना उसका कर्तव्य और पवित्र जिम्मेदारी है. हमने जानकारी इसलिए मांगी, क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच लगभग 6 माह में मतदाता सूची में एक करोड़ नाम बढ़ गए.
सवाल इस बात का है कि राहुल गांधी ने मोहन भागवत के 15 अगस्त 1947 के बारे में दिए बयान को देशद्रोह क्यों कहा? ‘द वायर’ में इसका जवाब राजनीतिक विश्लेषक संजय के. झा ने दिया है. उनके मुताबिक इस विश्वास से अधिक हास्यास्पद बात क्या हो सकती है कि अयोध्या में एक मंदिर का निर्माण होने तक भारतीय राष्ट्रवाद अपनी सही परिभाषा की प्रतीक्षा कर रहा था? यह धारणा कि भारतीय राष्ट्र-राज्य को भगवान राम के जन्मस्थान पर एक मंदिर के बिना परिकल्पित नहीं किया जा सकता - जबकि देश के हर हिस्से में सैकड़ों भव्य मंदिर मौजूद हैं - राजनीति, राष्ट्रवाद और धर्म की कमजोर समझ को दर्शाता है. एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि क्या 1947 में स्वतंत्रता हासिल किए बिना राम मंदिर का निर्माण भारत की संप्रभुता का जश्न मनाने के लिए संभव था? आरएसएस की नजरों में - उपनिवेशी शासन का अंत या एक मंदिर का निर्माण, कौन सा अधिक महत्वपूर्ण है? इन सवालों के उत्तर यह साबित करेंगे कि कैसे आरएसएस-भाजपा ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर किया और उन महान आत्माओं का अपमान किया जिन्होंने राष्ट्र के भविष्य के लिए सब कुछ बलिदान कर दिया. धर्म पर आधारित राष्ट्रवाद वह भाषा है, जो आईएसआईएस और बोको हराम बोलते हैं. आरएसएस प्रमुख भागवत दरअसल मोहम्मद अली जिन्ना के कट्टरपंथ को न्यायसंगत ठहरा रहे हैं, जिन्होंने धर्म के आधार पर भारत के विभाजन पर जोर दिया. क्या भागवत यह सुझाव दे रहे हैं कि सिख कट्टरपंथियों द्वारा खालिस्तान की मांग उचित है? यदि धर्म सब कुछ है, तो क्या एक नास्तिक अपना एक राष्ट्र नहीं रख सकता?
इस बीच राहुल गांधी पर पूरी भाजपा टूट पड़ी है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण समेत तमाम नेताओं ने पलटवार किया. नड्डा ने कहा कि राहुल गांधी की टिप्पणी से कांग्रेस का घिनौना सच सामने आ गया है. कांग्रेस और उसके तंत्र के डीप स्टेट और अर्बन नक्सलियों से गहरे संबंध हैं, जो भारत को बदनाम, अपमानित और खारिज करना चाहते हैं.
एक मृत भारत रत्न का हवाला
इधर, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हवाले से एक और रहस्योद्घाटन किया है. भागवत ने बताया कि स्व. मुखर्जी ने उनसे कहा था कि अगर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ “घर वापसी” अभियान नहीं चलाता तो देश के आदिवासियों का एक तबका राष्ट्र विरोधी बन जाता. खास बात यह है कि सोमवार को इंदौर के उसी कार्यक्रम में उन्होंने यह जानकारी भी दी, जिसमें कहा था कि भारत को सच्ची आजादी राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन मिली. भागवत ने कहा, “डॉ. प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति थे. तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया. संसद में घर वापसी को लेकर बहुत बड़ा हल्ला चल रहा था. मैं तैयार होके गया था, बहुत पूछेंगे, बहुत बताना पड़ेगा. लेकिन उन्होंने कहा कि क्या आप लोगों ने कुछ लोगों को वापस लाया तो प्रेस कॉन्फ्रेंस...ऐसा कैसे करते हो आप? ऐसा करने से हो हल्ला होता है. क्योंकि वो पॉलिटिक्स है. मैं भी अगर आज कांग्रेस पार्टी में होता तो मैं भी संसद में यही करता. फिर उन्होंने कहा, लेकिन आप लोगों ने ये जो काम किया है, उसके कारण भारत के 30 प्रतिशत आदिवासी...इस लाइन पे आ गए दिख ही रहा था उनकी टोन से तो हमको बड़ा आनंद लगा...मैंने कहा, क्रिश्चियन बन जाता...बोले क्रिश्चियन नहीं, देशद्रोही बन जाता. ऐसा उन्होंने कहा.” भारत रत्न प्रणब मुखर्जी हालांकि अब इस बयान की पुष्टि या खंडन करने के लिए जीवित नहीं हैं.
गाजा: चरणबद्ध समझौते पर सहमति
‘रायटर्स’ की खबर है कि इज़राइल और हमास के बीच 15 महीने तक चले गाजा युद्ध को समाप्त करने के लिए बुधवार को एक चरणबद्ध समझौते पर सहमति बन गई है. तीन चरणों में युद्धविराम होगा. इस युद्ध के चलते हजारों फिलिस्तीनियों की जान गई और मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया था. गाजा में इस युद्ध के चलते बुनियादी ढांचा भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है और लाखों लोग शरणार्थी बनने को मजबूर हुए हैं.
पहला चरण में छह सप्ताह का प्रारंभिक संघर्षविराम होगा. इज़राइली सेना गाजा से धीरे-धीरे वापस जाएगी. हमास द्वारा बंधक बनाए गए 33 इज़राइली नागरिकों (महिलाओं, बच्चों और 50 वर्ष से ऊपर के पुरुषों) को रिहा किया जाएगा और इसके बदले इज़राइल फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा. इसके बाद दूसरे चरण में पहले चरण के 16वें दिन से चर्चा शुरू होगी.
शेष बंधकों की रिहाई, स्थायी संघर्षविराम और इज़राइली सेना की पूरी तरह वापसी की योजना बनाई जाएगी. और अंत में तीसरे चरण के दौरान शेष शवों की वापसी होगी. गाजा के पुनर्निर्माण की शुरुआत होगी, जिसकी निगरानी मिस्र, कतर और संयुक्त राष्ट्र मिलकर करेंगे.
यह समझौता मिस्र और कतर के मध्यस्थों द्वारा महीनों तक चली बातचीत के बाद हुआ, जिसमें अमेरिका का समर्थन था. हमास ने इस समझौते पर सहमति जताई है, लेकिन अंतिम लिखित मंजूरी की प्रतीक्षा अभी की जा रही है. बता दें कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने भी इस युद्ध को निर्णायक मोड़ पर जल्द ले जाने की बात कही थी. इस युद्ध के चलते गाजा में 46,000 से अधिक लोगों की मौत अब तक हो चुकी है. 2.3 मिलियन की आबादी वाले गाजा के अधिकांश निवासी विस्थापित हो चुके हैं. गाजा का अधिकांश हिस्सा खंडहर में तब्दील हो गया है. संघर्ष ने मध्य पूर्व में लेबनान, सीरिया, यमन और इराक तक अशांति फैलाई. ईरान समर्थित समूहों ने इज़राइल के खिलाफ हमले किए.
इसके बाद से समाचार एजेंसियां और अंतराष्ट्रीय चैनल इस समझौते को अलग अलग तरह से कवर कर रहे हैं. आप गाज़ा के हालात यहां और इजराइल का माहौल यहां देख सकते हैं.
आगे की चुनौतियां:
गाजा में युद्ध के बाद शासन कौन करेगा, यह एक बड़ा सवाल है. इज़राइल ने हमास और फिलिस्तीनी ऑथारिटी दोनों की भूमिका को खारिज किया है. गाजा के पुनर्निर्माण के लिए सुरक्षा और अरब देशों से आर्थिक सहायता की आवश्यकता होगी. यह समझौता गाजा में शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह लागू करने और स्थायी समाधान तक पहुंचने में अभी भी कई बाधाएं हैं. हालांकि, इजराइलियों की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं.
दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति यून सुक-योल गिरफ्तार
दक्षिण कोरिया के महाभियोग झेल रहे राष्ट्रपति यून सुक-योल को बुधवार को आपराधिक विद्रोह की जांच के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया और घंटों तक पूछताछ की गई. हालांकि ये सब आसान नहीं रहा. करीब 3000 पुलिसकर्मियों को जाकर राष्ट्रपति यून सुक-योल को गिरफ्तार करना पड़ा है. यह घटना अधिकारियों के साथ सप्ताहों से चल रहे गतिरोध के बाद हुई. यह दक्षिण कोरिया में किसी भी वर्तमान राष्ट्रपति की पहली गिरफ्तारी है, जिसने देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. देश में पहले भी पूर्व नेताओं को अभियोग लगाकर जेल में डालने का इतिहास रहा है.
यूक्रेन का रूस के भीतर "सबसे बड़ा" हमला
इधर बीबीसी की खबर है कि यूक्रेन ने भी मंगलवार को रूस के अंदर कई लक्ष्यों पर हमले किए, जिसे उसने अब तक के सबसे बड़े हमले के रूप में पेश किया है. इसके तहत गोला-बारूद डिपो और रासायनिक संयंत्रों को निशाना बनाया गया, जो रूस के सीमा से सैकड़ों किलोमीटर दूर थे. यूक्रेन की सशस्त्र सेनाओं के जनरल स्टाफ के अनुसार, ये हमले रूस की युद्ध क्षमता पर एक "दर्दनाक प्रहार" साबित हो सकते हैं. यूक्रेन के सुरक्षा सेवा (एसबीयू) के सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि यह हमला रूस की युद्ध क्षमता को कमजोर करने के लिए एक बड़ा कदम था. रूस ने दावा किया कि उसने अमेरिकी-आधारित एटैकम्स मिसाइलों और ब्रिटेन में निर्मित स्टॉर्म शैडो क्रूज मिसाइलों को मार गिराया और हमले का जवाब देने की चेतावनी दी. इस दौरान, रूस के मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में कम से कम नौ हवाई अड्डों ने अस्थायी रूप से परिचालन रोक दिया, जबकि सारातोव क्षेत्र में स्कूलों को बंद करना पड़ा. यूक्रेन ने रूस के ब्रायंस्क क्षेत्र में स्थित एक रिफाइनरी, गोला-बारूद डिपो और एक रासायनिक संयंत्र पर हमले किए थे. साथ ही, यूक्रेन ने रूस के पश्चिमी सारातोव क्षेत्र में भी हमले किए, जहां दो औद्योगिक संयंत्रों को नुकसान हुआ.
यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा कि उनका देश युद्ध के मैदान पर अपने 100 से अधिक ब्रिगेडों के साथ संघर्ष कर रहा है और उन्हें नियमित रूप से हथियारों की आवश्यकता है. यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगी देशों द्वारा हथियारों की आपूर्ति में धीमी गति को लेकर भी चिंता जताई गई है. वहीं, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज ने कहा कि यूक्रेन को अपने सैनिकों की संख्या बढ़ानी होगी और उसे लोकतंत्र के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध होना होगा, अगर वह चाहता है कि अमेरिका भी उसकी पूरी मदद करे.
व्लादिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि उनकी सेना में अब कुल 8,80,000 सैनिक शामिल हैं, जो रूस की सेना के 6,00,000 सैनिकों का सामना कर रहे हैं. यह बयान उन्होंने एक उच्च स्तरीय सैन्य बैठक के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने यूक्रेन की सैन्य स्थिति पर चर्चा की. ज़ेलेनस्की ने कहा कि यूक्रेन की सेना ने पिछले कुछ महीनों में महत्वपूर्ण वृद्धि की है और अब वह रूस के सैनिकों का मुकाबला करने के लिए तैयार
रूस ने यूक्रेन में बिजली संकट को कई गुना बढ़ाया: ‘अलजजीरा’ की खबर है कि रूस ने यूक्रेन के ऊर्जा ग्रिड पर लगातार हवाई हमले किए हैं, जिससे देश में व्यापक बिजली कटौती हो रही है. इन हमलों के बीच रूसी जमीनी बल भी युद्ध के मोर्चे पर अपनी रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. यूक्रेन के कई इलाकों में बुनियादी सेवाएं बाधित हो गई हैं, जिससे लाखों लोग ठंड के मौसम में बिजली और गर्मी के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं. ऊर्जा ग्रिड को निशाना बनाकर रूस ने यूक्रेन की आर्थिक और नागरिक जीवन को बुरी तरह प्रभावित करने की कोशिश की है. यूक्रेनी अधिकारियों ने दावा किया है कि उनकी वायु रक्षा प्रणाली ने कई हमलों को नाकाम किया है, लेकिन कुछ मिसाइलें और ड्रोन हमले ग्रिड के महत्वपूर्ण हिस्सों को नुकसान पहुंचाने में सफल रहे हैं.
जेल में सहानुभूति मिली, सम्मान भी: बिनायक सेन
नीता कोल्हटकर ने 'स्क्रॉल' में डॉ. बिनायक सेन के बारे में विस्तार से लिखा है. डॉ. बिनायक सेन ने जेल के दिनों को याद करते हुए बताया था— "जेल का अनुभव पूरी तरह नकारात्मक नहीं था. वहां के कैदियों ने मेरी स्थिति को समझा और मेरी मदद की. पुलिस की तुलना में जेल स्टाफ ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया. हालांकि, मुझे एकांत कारावास में रखा गया, लेकिन सामान्य वार्ड में लोग सहानुभूति और सम्मान के साथ पेश आए."
उन्होंने यह भी बताया कि जेल में एक युवा कैदी ने उनकी बहुत मदद की. "उस युवा ने मेरी देखभाल की और मेरे लिए खाना बनाया. उसने मुझे बताया कि उसने अपने पिता की हत्या इसलिए की थी क्योंकि उसके पिता ने उसकी माँ का गला घोंटने की कोशिश की थी. उसके दिल में मेरे लिए दया और समर्थन था, जो मुझे हमेशा याद रहेगा."
नीता कोल्हटकर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है डॉ. सेन ने कहा- "हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मुझे जमानत दी है, लेकिन मैं अब भी पूरी तरह से निर्दोष साबित नहीं हुआ हूं. मुझे हमेशा डर रहता है कि अगर मुझे फिर से गिरफ्तार किया गया, तो मैं जेल से जिंदा बाहर नहीं आ पाऊंगा." डॉ. सेन की कहानी न केवल मानव अधिकारों और न्याय की लड़ाई की गवाही देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी मानवता और करुणा कैसे जीवित रहती है.
उन्होंने लिखा है सेन ने वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस में डिग्री प्राप्त की, वह भी डिस्टिंक्शन के साथ. उनके पिता उन्हें यूनाइटेड किंगडम भेजना चाहते थे, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहकर समाज के लिए कुछ करने का फैसला किया. उन्होंने वेल्लोर से बाल चिकित्सा (MD) की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एसोसिएट फेलो के रूप में शामिल हो गए. वहां उनका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में पीएचडी करना था.
हालांकि, उन्होंने अपनी अकादमिक पोजिशन को छोड़ दिया और मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में फ्रेंड्स रूरल सेंटर द्वारा संचालित टीबी रिसर्च सेंटर और हॉस्पिटल में काम करना शुरू किया. इसके बाद, वह छत्तीसगढ़ गए, जहां उन्होंने ट्रेड यूनियन नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ मिलकर काम किया. डॉ. सेन ने भिलाई स्टील प्लांट के डल्लीराजहरा और नंदिनी में खदान मजदूरों और उनके परिवारों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर काम किया. उन्होंने मजदूरों के लिए एक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने में मदद की, जिसे बाद में “शहीद अस्पताल” कहा गया. यह अस्पताल मजदूरों द्वारा ही संचालित था और एक 25-बेड का अस्पताल बन गया. डॉ. सेन ने अपनी पत्नी डॉ. इलिना सेन के साथ मिलकर रायपुर में एक एनजीओ “रूपांतर” शुरू किया.
13 अप्रैल, 2006 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को भारत की "सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती" बताया. इसके तहत सरकार ने नक्सलियों और उनके कथित समर्थकों पर कार्रवाई तेज कर दी. डॉ. सेन को 14 मई, 2007 को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया. उन पर आरोप लगाया गया कि वह जेल में बंद नक्सली नेता नारायण सान्याल और व्यवसायी पीयूष गुप्ता के बीच कूरियर का काम कर रहे थे. उनके खिलाफ राजद्रोह (धारा 124ए) और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया.
24 दिसंबर, 2010 को रायपुर के जिला और सत्र न्यायालय ने डॉ. सेन को दोषी ठहराते हुए जेल भेज दिया। इस निर्णय की देश-विदेश में तीखी आलोचना हुई. अंततः, 15 अप्रैल, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी.
चलते-चलते | ओलिवियेरो तोस्कानी: आर्टिस्ट जिसने हड़कम्प मचाया विज्ञापनों की दुनिया में
(Preservativi (1991): एचआईवी/एड्स के कारण हो रही अभूतपूर्व मौतों के समय, सुरक्षित यौन संबंध का प्रतीक बनी कंडोम की तस्वीर.)
बेनेतोन का यह विचलित करने करने वाला विज्ञापन अकेला नहीं है. एक काली औरत एक गोरे बच्चे को दूध पिला रही है. एक नन पादरी को चूम रही है. एक चित्र में बाराक ओबामा वेनेजुएला के राष्ट्रपति हुगो शावेज के मुंह को चूम रहे है. एक गोरी और काली औरत के बीच एक ओरियंटल बच्चा है. विज्ञापन अक्सर लोगों को अच्छा महसूस करवाने के लिए होते हैं. पर ओलिवियेरो तोस्कानी रेस, रंग, एड्स, जंग, धर्म की विभाजन रेखाओं को बड़ी सी तस्वीर में बदलकर अपने ब्रांड को दुनिया में बिल्कुल अनूठी तरह से सामने रखते थे. जिसे देख पहले ग्राहक विचलित हो, सोच में पड़ जाए. उनके विज्ञापन सिर्फ अपने उत्पाद के दलाल नहीं थे. तोस्कानी अपनी लंबे समय तक इटैलियन फैशन ब्रांड बेनेटन के साथ जुड़ाव के लिए जाने जाते थे, जहां उन्होंने दो अलग-अलग कार्यकालों के दौरान 20 से अधिक वर्षों तक आर्ट डायरेक्टर के रूप में काम किया. साल 1942 में जन्में तोस्कानी ने फैशन फोटोग्राफी की पारंपरिक परिभाषाओं से परे जाकर अपनी कला का उपयोग राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों जैसे नस्लवाद, होमोफोबिया, युद्ध, मृत्युदंड और धर्म जैसे विषयों पर जागरूकता लाने के लिए किया. उनकी तस्वीरें दर्शकों को असहज सच्चाइयों का सामना करने पर मजबूर करती थीं और वैश्विक स्तर पर बातचीत के लिए प्रेरित करती थी. वो चर्चा पैदा करते थे, अपनी कला से. ओलिवियेरो तोस्कानी ने अपनी कला को केवल तस्वीरों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें सामाजिक बदलाव और जागरूकता का माध्यम बनाया. उनके कार्य हमें साहस, सहानुभूति और संवाद की शक्ति की याद दिलाते हैं. इस इतालवी फोटोग्राफर और आर्ट डायरेक्टर ओलिवियेरो तोस्कानी का 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. भारतीय ब्रांड रॉ मैंगो ने अपने तरीके से इस विलक्षण एडमैन को अपनी श्रद्धांजलि दी है.
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