16/04/2025 : सोनिया, राहुल पर चार्जशीट | वक़्फ़ पर आज सुनवाई | दिल्ली में 91% कैदी विचाराधीन | रूह अफ़ज़ा की फैक्ट्री से फैक्ट चैक | सरकारी आतंकवाद पर मार्गदर्शिका | सहारा की जमीन अटैच
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आज की सुर्खियां :
“शरबत जिहाद” कहने पर रामदेव के खिलाफ दिग्विजय की शिकायत
बिहार पर सैनी के “इस” बयान ने भाजपा को मुश्किल में डाला, गठजोड़ में हलचल
7 वीं की किताब के जरिए मोदी सरकार का प्रचार
ईडी ने सहारा इंडिया मामले में 1,460 करोड़ रुपये की 707 एकड़ ज़मीन अटैच की
इलाहाबाद हाईकोर्ट को फिर हिदायत
48,000 करोड़ रुपये के पर्ल एग्रो घोटाले में AAP विधायक के घर सहित 15 स्थानों पर छापेमारी
पाकिस्तानी आतंकवादी अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में छोड़े गए हथियारों और उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भी तन कर खड़ी हुई ट्रम्प के खिलाफ
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बीच चीन ने बोइंग जेट की डिलीवरी रोकने का आदेश दिया
गाज़ा के अस्पताल पर इज़राइली हमला
सोनिया, राहुल, पित्रोदा पर ईडी की चार्जशीट
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नेशनल हेराल्ड और एजेएल से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग जांच के मामले में कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे के खिलाफ मंगलवार को चार्जशीट दाखिल कर दी. विशेष पीएमएलए अदालत में 9 अप्रैल को चार्जशीट दाखिल होने के बाद, विशेष न्यायाधीश विशाल गोग्ने ने मंगलवार को इसे संज्ञान के बिंदु पर जांचा और मामले की अगली सुनवाई 25 अप्रैल के लिए तय की. पिछले सप्ताह, ईडी ने 661 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियों (दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में) पर कब्जा करने के लिए नोटिस जारी किए थे. ये संपत्तियां एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) और यंग इंडियन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जांच के तहत अटैच की गई थीं. एजेएल, कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन करती है, जबकि यंग इंडियन इसकी मालिक है.
“द इंडियन एक्सप्रेस” के मुताबिक यह मामला एक ट्रायल कोर्ट के आदेश पर आधारित है, जिसने आयकर विभाग को नेशनल हेराल्ड के मामलों की जांच करने और सोनिया व राहुल गांधी का कर आकलन करने की अनुमति दी थी. यह आदेश 2013 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका के बाद आया था.
वाड्रा से भी 6 घंटे सवाल-जवाब
उधर, मंगलवार को ही ईडी ने सांसद प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा से गुरुग्राम के शिकोहपुर भूमि सौदे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में लगभग 6 घंटे तक पूछताछ की. उन्हें बुधवार सुबह 11 बजे फिर से जांच में शामिल होने के लिए कहा गया है. मंगलवार सुबह वाड्रा अपने समर्थकों के साथ दिल्ली स्थित अपने आवास से एक किमी की दूरी पर स्थित ईडी मुख्यालय पैदल पहुंचे.
सुप्रीम कोर्ट वक़्फ़ संशोधन अधिनियम के खिलाफ 10 याचिकाओं पर आज करेगा सुनवाई
भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ 16 अप्रैल को वक़्फ़ संशोधन अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डाली गई कई याचिकाओं में से 10 पर सुनवाई करने वाली है. ये 10 याचिकाकर्ता हैं : असदुद्दीन ओवैसी, अमानतुल्ला खान, एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर), मौलाना अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, अंजुम कादरी, सैयद खान सलमानी, मोहम्मद शफी, मोहम्मद फजलुर्ररहीम और डॉक्टर मनोज कुमार झा सह फैयाज अहमद. याचिकाकर्ताओं के अनुसार, संशोधन वक़्फ़ के धार्मिक चरित्र को विकृत कर देंगे, साथ ही वक़्फ़ और वक़्फ़ बोर्डों के प्रशासन को नियंत्रित करने वाली लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी अपूरणीय क्षति पहुंचाएंगे.
सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से अधिनियम पर रोक लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की है. याचिकाकर्ताओं में से एक, इस्लामी धर्मगुरुओं की संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने अपनी याचिका में दावा किया कि संशोधन भारत में वक़्फ़ प्रशासन और न्यायशास्त्र को नष्ट करने वाला है और देश में मौजूद वक़्फ़ की प्रकृति को फिर से परिभाषित करने का प्रयास है. दलीलों के समूह ने वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 (अधिनियम) को इस आधार पर चुनौती दी कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता), 29 (अल्पसंख्यक अधिकार) और 300-ए (संपत्ति का अधिकार) के तहत निहित अधिकारों का उल्लंघन करता है. दूसरी तरफ भाजपा शासित छह राज्य हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और असम ने वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 के समर्थन में शीर्ष अदालत का रुख किया है और कहा है इस कानून की संवैधानिकता बरकरार रखी जानी चाहिए.
हिंदू पक्ष वक़्फ़ अधिनियम 1995 के खिलाफ पहुंचा कोर्ट : वक़्फ़ अधिनियम में हाल ही में किए गए संशोधनों को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई के बीच, कुछ हिंदू पक्षों ने अब वक़्फ़ अधिनियम 1995 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसे वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम 2025 में संशोधित किया गया है. अधिवक्ता हरि शंकर जैन और अन्य द्वारा दायर याचिका को मंगलवार को अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उल्लेख किया था. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस अधिनियम से मुसलमानों को ‘अनुचित लाभ’ पहुंचता है और हिंदुओं के धार्मिक और संपत्ति के अधिकारों को खतरे में डालता है. यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के अनुरूप नहीं हैं, जो कानून के समक्ष समानता और धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं.
वक़्फ़ की जमीनें वापस ली जाएंगी : योगी आदित्यनाथ
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को कहा कि वक्फ की जमीनें वापस ली जाएंगी. इन पर अस्पताल, गरीबों के लिए मकान, स्कूल और विश्वविद्यालय बनेंगे. निवेश के लिए लैंड बैंक तैयार होगा. वक्फ कानून के विरोध में बंगाल में हो रही हिंसा पर योगी ने कहा- लातों के भूत बातों से नहीं मानते. दंगाई डंडे से ही मानेंगे. जिसे बांग्लादेश पसंद है, वह बांग्लादेश चला जाए.
वक़्फ़ पर पाक आलोचना को किया दरकिनार : इस बीच भारत ने मंगलवार को वक़्फ़ संशोधन अधिनियम पर पाकिस्तान की आलोचना को खारिज कर दिया और कहा कि इस्लामाबाद को दूसरों को उपदेश देने के बजाय अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में अपने ‘घिनौने’ रिकॉर्ड को देखना चाहिए. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने वक़्फ़ कानून पर पाकिस्तान की टिप्पणियों को ‘प्रेरित और निराधार’ बताया और कहा कि पाकिस्तान को भारत के आंतरिक मामले पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है.
“शरबत जिहाद” कहने पर रामदेव के खिलाफ दिग्विजय की शिकायत
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बाबा रामदेव के “शरबत जिहाद” वाले बयान पर गहरी आपत्ति दर्ज कराई है. उन्होंने मंगलवार को भोपाल के टीटी नगर पुलिस थाने में बाबा रामदेव के खिलाफ एक शिकायत देकर भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (1) (क) और 299 तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की. उनका आरोप है कि बाबा रामदेव अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए धर्म और नफरत का सहारा ले रहे हैं. देश में सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की जा रही है.
गौरतलब है कि रामदेव ने “एक्स” पर एक वीडियो पोस्ट कर “शरबत जिहाद” शब्द का इस्तेमाल किया था. दिग्विजय ने कहा कि यह बयान न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि देश के संविधान और कानून के खिलाफ भी है. बाबा रामदेव ने पहले भी कोरोना वैक्सीन को लेकर झूठे दावे किए थे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई थी. कांग्रेस नेता ने कहा कि अब ऐसा करने का प्रयास किया जा रहा है कि कोई मुसलमान की दुकान से सामान नहीं खरीदे. रामदेव पूरी तरह से व्यापारी बाबा है और उनके उत्पादों को सेना और नेपाल ने भी खारिज कर दिया है.
बता दें, धारा 196 धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के आधार पर समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाने को प्रतिबंधित करती है, जबकि धारा 299 किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से किए गए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों को संबोधित करती है.
अजीत अंजुम मिल कर आए रूह अफ़ज़ा के फैक्ट्री के कर्मियों से
…और अपने फैक्ट चैक में पाया कि वहां काम करने वाले सिर्फ मुस्लिम नहीं, जैसा आपने अपने व्हाट्स एप फॉरवर्ड और रामदेव के वीडियो में पढ़ा/देखा था.
बिहार पर सैनी के “इस” बयान ने भाजपा को मुश्किल में डाला, गठजोड़ में हलचल
चूंकि इसी वर्ष विधानसभा के चुनाव होना हैं, लिहाजा बिहार को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं. सत्तारूढ़ एनडीए में अभी भी लाख टके का सवाल यही है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा या नहीं? इस सवाल को हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के इस बयान ने और मजबूती दे दी कि “बिहार में सम्राट चौधरी के नेतृत्व में विजय पताका फहरेगी.” उनका संदेश स्पष्ट था—चुनावी अभियान और गठबंधन का नेतृत्व चौधरी करेंगे. जाहिर है, सैनी के गुरुग्राम में दिए गए इस बयान को मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने तुरंत लपका और नीतीश कुमार की घेराबंदी शुरू कर दी. बीजेपी को सफाई देना मुश्किल हो गया. उसने जवाब दिया कि सैनी का बयान "गठबंधन की सामूहिक जीत" का संकेत है. हालांकि, तेजस्वी यादव ने इसका फायदा उठाते हुए जदयू से बीजेपी से स्पष्टीकरण मांगने को कहा.
इधर, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख और दिवंगत रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने घोषणा की कि उनकी पार्टी भाजपा-नेतृत्व वाले एनडीए से अलग हो रही है. उन्होंने इस निर्णय का कारण अपनी पार्टी के साथ हुए "अन्याय" को बताया. जब उनसे भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा गया, तो पारस ने ज्यादा खुलासा नहीं किया. हालांकि, “द हिंदू” में अमरनाथ तिवारी की रिपोर्ट है कि आरएलजेपी बिहार विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय जनता दल-नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के हिस्से के रूप में लड़ेगी.
इस बीच तेजस्वी यादव ने मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से मुलाकात की. इस बैठक में तय हुआ कि महागठबंधन उन गलतियों को नहीं दोहराएगा, जो पिछले चुनाव में उससे हुई थीं. टिकटों का वितरण भी जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर किया जाएगा. हालांकि, तेजस्वी मानते हैं कि 2020 के चुनाव में कांग्रेस को 70 विधानसभा सीटें देना गलत था.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025
एक भी राज्य में पुलिस में आरक्षित महिला कोटे पूरे नहीं, दिल्ली की जेलों में 91% कैदी विचाराधीन
मंगलवार 15 अप्रैल को आई ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025’ में पुलिस और न्यायपालिका की स्थिति के बारे में पेश किये गए निष्कर्ष के अनुसार भारत में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने महिला पुलिस अधिकारियों के लिए अपने स्वयं के कोटे को पूरा नहीं किया है. भारत के 20.3 लाख-मजबूत पुलिस बल में वरिष्ठ पदों पर एक हजार से भी कम महिलाएँ हैं. इसमें अन्य बातों के अलावा यह भी कहा गया है कि लगभग दस में से तीन पुलिस स्टेशनों में महिलाओं के लिए हेल्प डेस्क नहीं हैं. करीब 17% पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं. कानूनी सहायता पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति व्यय मात्र 6 रुपये प्रति वर्ष है (जेलों पर यह 57 रुपये प्रति वर्ष है) और यह कि किसी भी राज्य ने न्यायपालिका पर अपने कुल वार्षिक खर्च का 1% से अधिक खर्च नहीं किया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मात्र कर्नाटक ऐसा राज्य है, जिसने पुलिस और न्यायपालिका दोनों में कोटा पूरा किया है. वहीं बिहार राज्य पुलिस में महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है, लेकिन राज्य की ट्रायल और जिला अदालतों में 71% मामले 3 साल से ज़्यादा समय से लंबित हैं. रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि गुजरात में हाई कोर्ट के जजों और कर्मचारियों के सबसे ज़्यादा पद खाली हैं, जबकि दिल्ली की जेलों में बंद 91% कैदी विचाराधीन हैं.
7वीं की किताब के जरिए मोदी सरकार का प्रचार
एनसीईआरटी की कक्षा 7वीं की अंग्रेजी की किताब छात्रों को केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रेरित करती है, लेकिन शिक्षाविदों ने इसे बच्चों को “सरकारी प्रचार” को आगे बढ़ाने के लिए “पैदल सैनिक” के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयास बताया है.
इस पाठ्यपुस्तक “पूर्वी” में सरकार की "डिजिटल इंडिया" और "मेक इन इंडिया" पहलों की सराहना की गई है. "पुस्तक के बारे में" खंड में, एनसीईआरटी की अकादमिक समन्वयक कीर्ति कपूर ने लिखा है कि प्रत्येक अध्याय में कई गतिविधियों का उल्लेख है, जैसे "आओ सुनें" और "आओ खोजें", जो पाठ से परे सीखने पर आधारित हैं. “द टेलीग्राफ” में बसंत कुमार मोहंती की रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है.
ईडी ने सहारा इंडिया मामले में 1,460 करोड़ रुपये की 707 एकड़ ज़मीन अटैच की
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सहारा इंडिया और इसकी समूह कंपनियों के खिलाफ जांच के तहत महाराष्ट्र के लोनावला स्थित आम्बी वैली सिटी और उसके आसपास की 707 एकड़ ज़मीन को अस्थायी रूप से अटैच किया है. इसकी कीमत लगभग ₹1,460 करोड़ बताई गई है. एजेंसी ने आरोप लगाया है कि यह ज़मीन 'बेनामी' नामों पर खरीदी गई और इसमें सहारा समूह की कंपनियों से फंड डायवर्ट करके निवेश किया गया. ईडी की यह जांच ओडिशा, बिहार और राजस्थान पुलिस द्वारा हमारा इंडिया क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड और अन्य के खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकी पर आधारित है. एक अधिकारी के अनुसार, सहारा समूह और उससे संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ 500 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गई हैं, जिनमें से 300 से अधिक प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत दायर किए गए हैं. इन मामलों में आरोप है कि लोगों को झूठे वादों से निवेश के लिए उकसाया गया, जबरन दोबारा निवेश कराया गया और मैच्योरिटी राशि देने से इनकार कर दिया गया.
ईडी के अनुसार, सहारा समूह ने हमारा इंडिया क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड, सहारा क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड, सहाऱायण यूनिवर्सल मल्टीपर्पज को-ऑपरेटिव सोसायटी, स्टार्स मल्टीपर्पज को-ऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड, सहारा इंडिया कमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड, सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य के ज़रिए पोंज़ी स्कीम चलाई. एजेंसी ने कहा कि समूह ने एजेंटों और निवेशकों को ऊंचे रिटर्न और कमीशन का लालच देकर फंड इकट्ठा किए, और बिना किसी रेगुलेटरी नियंत्रण के उन पैसों का इस्तेमाल अपनी मर्ज़ी से किया. जब भुगतान करना संभव नहीं हुआ, तो लोगों को उनकी राशि दोबारा निवेश करने के लिए मजबूर किया गया, या दूसरे स्कीम में ट्रांसफर कर दिया गया.
ईडी ने कहा कि कंपनी ने बहीखातों में हेरफेर की, जिससे ऐसा दिखाया गया कि एक स्कीम की राशि लौटाई जा रही है, जबकि असल में उसे दूसरी स्कीम में नया निवेश दिखाया गया. वे लगातार नई जमा राशियां लेते रहे, जबकि पुरानी जमा राशि लौटाने की स्थिति में नहीं थे. कुछ फंड ‘बेनामी’ संपत्तियां बनाने और व्यक्तिगत खर्चों के लिए डायवर्ट किए गए. एजेंसी ने यह भी आरोप लगाया कि समूह की संपत्तियों को बेचा गया और प्राप्त राशि का एक हिस्सा नकद में लिया गया, जिससे जमाकर्ताओं को उनके वाजिब हक से वंचित कर दिया गया. ईडी ने सहारा समूह के निवेशकों, एजेंटों और कर्मचारियों के बयान दर्ज किए हैं और छापेमारी में ₹2.98 करोड़ की “अकारण नकदी” जब्त की है.
लड़की बहिन योजना की राशि घटाकर एक तिहाई की : ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के लिए प्रियंका काकोडकर की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने अपने प्रमुख चुनावी वादे ‘लड़की बहिन योजना’ के तहत महिलाओं को जो 1,500 रुपये मासिक आठ लाख महिलाओं को दे रही थी, उसकी राशि घटाकर 500 रुपये कर दी है, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार के अनुसार, ‘नमो शेतकरी योजना’ के तहत उन्हें पहले से ही 1,000 रुपये मिल रहे हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट को फिर हिदायत : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को फिर हिदायत दी है कि उसे किसी भी प्रकरण में विवादित टिप्पणी करने से बचना चाहिए. हाईकोर्ट ने 10 अप्रैल को रेप के आरोपी को जमानत देते वक्त कहा था, “पीड़ित लड़की ने खुद मुसीबत बुलाई, रेप के लिए वही जिम्मेदार है.” सुप्रीम कोर्ट मंगलवार 15 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट की 19 मार्च की इस टिप्पणी पर सुनवाई कर रहा था कि- “स्तन दबाना और पायजामे की डोरी तोड़ना रेप की कोशिश नहीं मानी जा सकती.” इसी दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की 10 अप्रैल की टिप्पणी का भी जिक्र किया. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट जज को जमानत के बारे में फैसला केस से जुड़े तथ्यों के आधार पर करना चाहिए और पीड़िता के खिलाफ अनावश्यक टिप्पणी से बचना चाहिए.
मंगलनाथ मंदिर में विदेश मंत्रालय के अफसर को पीटा : उज्जैन में मंगलनाथ मंदिर के कर्मचारी ने विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी को थप्पड़ मार दिया और हाथ पकड़कर गर्भगृह से बाहर निकाल दिया. अधिकारी के परिवार से भी बदसलूकी की. अपने परिवार के साथ वह मंदिर में भात पूजा कराने आए थे. घटना सोमवार की है, लेकिन इसका वीडियो मंगलवार को सामने आया. पुलिस ने आरोपी कर्मचारी को गिरफ्तार कर लिया है.
निवेशकों ने दो दिन में 18.42 लाख करोड़ जोड़े : भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों ने दो दिनों की तेज बढ़त के दौरान अपनी संपत्ति में ₹18.42 लाख करोड़ जोड़े हैं. ऐसा वैश्विक शेयर बाजारों में तेजी के बाद हुआ है. यह तेजी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर कुछ शुल्कों को कम करने और ऑटोमोबाइल्स के लिए शुल्क संशोधन का संकेत देने के कारण आई.
गाचीबौली में बनेगा ‘दुनिया का सबसे बड़ा इको-पार्क’? : ‘स्क्रोल’ के लिए आरती मेनन की रिपोर्ट है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के बाद, तेलंगाना सरकार का विवादित जंगल की ज़मीन की नीलामी का फैसला फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है. अब सरकार इस ज़मीन पर एक ईको-पार्क बनाने पर विचार कर रही है, हालांकि नागरिकों का विरोध अब भी जारी है. कांचा गाचीबौली फॉरेस्ट (केजीएफ) हैदराबाद के कुछ बचे-खुचे "फेफड़ों" में से एक है. यह क्षेत्र सूखे पर्णपाती, नम पर्णपाती जंगल, सवाना, झाड़-झंखाड़ और चट्टानी इलाके जैसे विविध प्राकृतिक पारिस्थितिकीय तंत्रों का मिश्रण है. पिछले महीने सरकार ने इस इलाके की 400 एकड़ ज़मीन नीलाम कर आईटी पार्क बनाने की घोषणा की, जिसके खिलाफ भारी जन विरोध हुआ. मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी ने विधानसभा में कहा कि “वहां कोई हिरन नहीं, कोई बाघ नहीं, सिर्फ चालाक लोमड़ियां हैं जो विकास में बाधा बन रही हैं.” इस बयान से गुस्साए छात्र, प्रोफेसर और पर्यावरण कार्यकर्ता आंदोलन में उतर आए और सरकार की बुलडोज़र कार्रवाई को रोक दिया. इन्हें हिरासत में लिया गया और अंततः सुप्रीम कोर्ट को इस विषय में हस्तक्षेप करना पड़ा.
48,000 करोड़ रुपये के पर्ल एग्रो घोटाले में AAP विधायक के घर सहित 15 स्थानों पर छापेमारी : प्रवर्तन निदेशालय मोहाली में आप नेता कुलवंत सिंह के घर समेत उनके पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के 15 से अधिक कथित ठिकानों पर तलाशी ले रहा है. यह तलाशी पर्ल एग्रो कॉरपोरेशन लिमिटेड (पीएसीएल) मामले से संबंधित है, जो 48,000 करोड़ रुपये की राशि से जुड़े निवेशक धोखाधड़ी से संबंधित है. पीएसीएल और सहयोगी संस्थाओं की संपत्तियों को अवैध रूप से बेचने के आरोप में दिवंगत निर्मल सिंह भंगू के सहयोगियों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है.
पाकिस्तानी आतंकवादी अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में छोड़े गए हथियारों और उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं
‘वॉशिंगटन पोस्ट’ की रिपोर्ट है कि अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा छोड़े गए उन्नत हथियार अब सीमा पार स्थित आतंकवादी समूहों जैसे कि पाकिस्तानी तालिबान और बलूच विद्रोहियों के हाथों में पहुंच गए हैं. हाल ही में क्वेटा के पास एक ट्रेन को हाईजैक करने वाले बलूच विद्रोहियों के पास ऐसे ही हथियार थे. रिपोर्ट के अनुसार, नाइट-विज़न गॉगल्स (रात में देखने वाले चश्मे) जो अमेरिकी सेना पीछे छोड़ गई थी, अब पाकिस्तान में आतंकवादियों के पास देखे जा रहे हैं. एक पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी के अनुसार, आतंकवादियों ने नाइट-विज़न और थर्मल उपकरणों को छोटे ड्रोन के साथ जोड़ लिया है ताकि वे पाकिस्तानी सैनिकों पर अधिक सटीक हमला कर सकें. इस बीच, इस्लामाबाद में अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रम्प प्रशासन अफगानिस्तान में छोड़े गए अमेरिकी हथियारों को वापस पाने के लिए कुछ कदम उठाएगा. हालांकि, तालिबान ने स्पष्ट कर दिया है कि ये सभी हथियार अब "अफगानिस्तान की संपत्ति" हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भी तन कर खड़ी हुई ट्रम्प के खिलाफ
डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि अगर हार्वर्ड विश्वविद्यालय "राजनीतिक, वैचारिक और आतंकवाद प्रेरित/समर्थित बीमारियों" को बढ़ावा देता रहा, तो उसे "राजनीतिक संस्था" के रूप में कर के दायरे में लाया जाना चाहिए और उसकी टैक्स छूट समाप्त कर दी जानी चाहिए. अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रम्प ने लिखा - “हो सकता है हार्वर्ड को अपना टैक्स छूट वाला दर्जा खो देना चाहिए और एक राजनीतिक संस्था के रूप में टैक्स देना चाहिए, अगर वह राजनीतिक, वैचारिक और आतंकवाद-प्रेरित/समर्थित 'बीमारी' को बढ़ावा देता रहा? याद रखिए, टैक्स-फ्री दर्जा पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि संस्था 'जनहित' में काम कर रही है या नहीं!” अधिकांश विश्वविद्यालयों, जिनमें हार्वर्ड भी शामिल है, को संघीय आयकर से छूट मिली हुई है, क्योंकि वे ‘जनता के लिए कल्याणकारी कार्य’ करने वाली संस्थाएं मानी जाती हैं. यह ताजा विवाद तब भड़का जब ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड के करीब $2 अरब (करीब 16,700 करोड़ रुपये) के संघीय अनुदान काटने का फैसला किया, क्योंकि विश्वविद्यालय ने प्रशासन की उन मांगों को ठुकरा दिया, जिन्हें राष्ट्रपति ने कैंपस में "यहूदी-विरोधी प्रवृत्तियों को रोकने की कोशिश" कहा था. हालांकि, कई शिक्षाविदों का मानना है कि प्रशासन की यह सूची अकादमिक स्वतंत्रता को दबाने की एक चाल है. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हार्वर्ड की सराहना करते हुए कहा कि वह अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए एक उदाहरण पेश कर रहा है कि वे संघीय हस्तक्षेप को अपनी स्वायत्तता पर हावी न होने दें.
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बीच चीन ने बोइंग जेट की डिलिवरी रोकने का आदेश दिया
'द गार्डियन' के लिए लॉरेन आल्मेडा की रिपोर्ट है कि चीन ने कथित तौर पर अपनी एयरलाइनों को बोइंग जेट की आगे की डिलिवरी लेने से मना कर दिया है. यह अमेरिका के साथ उसके चल रहे व्यापार युद्ध में नवीनतम जवाबी कदम है. ब्लूमबर्ग न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, जो मामले से परिचित लोगों का हवाला देती है, चीन सरकार ने एयरलाइनों से यह भी कहा है कि वे अमेरिकी कंपनियों से विमान से संबंधित उपकरण और पुर्जों की खरीद बंद कर दें. यह आदेश उस समय आया है, जब चीन ने शुक्रवार को अमेरिकी वस्तुओं पर प्रतिशोध स्वरूप टैरिफ बढ़ाकर 125% कर दिया, जबकि डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी आयात पर कुल 145% टैरिफ लगाए थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बीजिंग उन एयरलाइनों को समर्थन देने के उपाय कर रहा है, जो बोइंग जेट लीज़ पर ले रही हैं और अब अधिक लागत झेल रही हैं. करीब 10 बोइंग 737 मैक्स जेट्स को चीनी एयरलाइनों में शामिल होने के लिए तैयार किया जा रहा है. सूत्रों के अनुसार, यदि इन विमानों के डिलिवरी दस्तावेज़ और भुगतान चीन द्वारा लगाए गए "जवाबी" टैरिफ लागू होने से पहले पूरे कर लिए गए हों, तो उन्हें देश में प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है. यह प्रतिबंध बोइंग और अन्य विनिर्माताओं के लिए बड़ा झटका है, जो दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते व्यापार युद्ध के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
विश्लेषण
टिमथी स्नाईडर : सरकारी दहशतगर्दी के बारे में अमेरिकियों के लिए एक संक्षिप्त मार्गदर्शिका
टिमोथी डेविड स्नाइडर एक अमेरिकी इतिहासकार हैं, जो मध्य और पूर्वी यूरोप, सोवियत संघ और होलोकॉस्ट के इतिहास में विशेषज्ञता रखते हैं. उन्होंने अपने सब्सटैक पेज पर उनका यह लेख छापा है. उस लेख के उद्धरण.
कल राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन किया और एक निर्दोष व्यक्ति को, जो गलती से दूसरे देश के गुलाग में भेजा गया था, वापस लाने से इनकार कर दिया. उन्होंने इस व्यक्ति के दुःख का जश्न मनाया और अमेरिकियों को विदेशी कारागारों में भेजने की बात की.
यह अमेरिकी सरकारी आतंक की नीति की शुरुआत है, और इसे रोकने के लिए इसकी पहचान होना आवश्यक है.
आइए शुरुआत भाषा से करें, क्योंकि भाषा खासी महत्वपूर्ण है. जब राज्य अपने लोगों के खिलाफ आपराधिक आतंक फैलाता है, तो वह उन्हें "अपराधी" या "आतंकवादी" कहता है. 1930 के दशक में यह एक आम बात थी. पीछे मुड़कर देखें तो हम स्टालिन के "महान आतंक" की बात करते हैं, लेकिन उस समय भाषा पर स्टालिनवादियों का नियंत्रण था. आज बर्लिन में "टोपोग्राफी ऑफ टेरर" नामक एक महत्वपूर्ण संग्रहालय है. जिस युग का यह रिकॉर्ड करता है, उस दौरान यहूदियों और शासन के चुने हुए दुश्मनों को "आतंकवादी" कहा जाता था. कल व्हाइट हाउस में, अल सल्वाडोर के राष्ट्रपति ने किल्मर अब्रेगो गार्सिया को बिना किसी आधार के "आतंकवादी" कहा. अमेरिकियों ने उसके साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया, हालांकि उस पर कोई आरोप नहीं लगाया गया था.
भाषा को नियंत्रित करने का पहला हिस्सा मतलब को उलटना है : सरकार जो कुछ भी करती है वह अच्छा है, क्योंकि परिभाषा के अनुसार उसके पीड़ित "अपराधी" और "आतंकवादी" हैं. दूसरा हिस्सा प्रेस, या किसी अन्य को, इस विकृति को चुनौती देने से रोकना है, उन्हें अपराध और आतंक से जोड़कर. कल व्हाइट हाउस में स्टीफन मिलर ने यही भूमिका निभाई, जब उन्होंने कहा कि पत्रकार "विदेशी आतंकवादियों को देश में चाहते हैं, जो महिलाओं और बच्चों का अपहरण करते हैं."
कानूनी या संवैधानिक व्यवस्था को कमजोर करने के लिए भाषा का नियंत्रण आवश्यक है. हमारी कानून की व्यवस्था लोगों और उनके अधिकारों की धारणाओं से शुरू होती है. यदि राजनेता ढांचे को "अपराधियों" और "आतंकवाद" की ओर बदलते हैं, तो वे राज्य के उद्देश्य को बदल रहे हैं.
अमेरिका में, हम एक संविधान द्वारा शासित हैं. संविधान के लिए मूल है हैबियस कॉर्पस, यह धारणा कि सरकार बिना किसी कानूनी औचित्य के आपके शरीर को जब्त नहीं कर सकती. यदि यह नहीं होता है, तो कुछ भी नहीं होता है. यदि हमारे पास कानून है, तो नामकरण या मजबूत भावनाओं के आधार पर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे के खिलाफ हिंसा नहीं की जा सकती है. यह सभी पर लागू होता है, राष्ट्रपति पर भी, जिसका संवैधानिक कार्य कानूनों को लागू करना है.
ट्रम्प ने अटॉर्नी जनरल पैम बोंडी से अमेरिकियों का अपहरण करने और उन्हें विदेशी कारागारों में छोड़ने के कानूनी तरीके खोजने के लिए कहा. लेकिन "कानूनी" का मतलब कानून से बचने के तरीके हैं, न कि इसे लागू करना.
सरकारी आतंक में न केवल दमन के राज्य अंगों का दुर्भावनापूर्ण विकास शामिल है, जैसे काले वैन में मास्क वाले पुरुष, बल्कि कानून के रक्षक के रूप में राज्य की भूमिका से वापसी भी शामिल है. आकांक्षी तानाशाह जिसे "ताकत" के रूप में प्रस्तुत करते हैं, निर्दोष लोगों को आतंकित करने की क्षमता, एक अधिक मौलिक कमजोरी पर टिकी है, जो कानून के शासन के सिद्धांत से राज्य की वापसी है.
सरकारी आतंक के इतिहास में, कानून से बचकर जबरदस्ती में जाने के तीन रूप हैं, जो सभी कल व्हाइट हाउस में प्रारंभिक रूप से प्रदर्शित किए गए थे : नेता सिद्धांत; अपवाद की स्थिति; और राज्यविहीनता का क्षेत्र.
नेता सिद्धांत, या जर्मन में फूहररप्रिंज़िप, यह विचार है कि एक अकेला व्यक्ति सीधे लोगों का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए उसके सभी कार्य परिभाषा के अनुसार कानूनी और उचित हैं. ट्रम्प के सलाहकार दावा करते हैं कि जो वह कर रहे हैं वह लोकप्रिय है. अमेरिकियों के अपहरण और उनके विदेशी गुलागों में स्थानांतरण के बारे में फॉक्स न्यूज पर पूछे जाने पर, अटॉर्नी जनरल पैम बोंडी ने कहा कि "ये वे अमेरिकी हैं, जिन्होंने उनके अनुसार हमारे देश में सबसे जघन्य अपराध किए हैं."
कानून से दूसरा बचाव अपवाद की स्थिति है. सिद्धांत रूप में, सोवियत संघ कानून द्वारा शासित था. हालांकि अपने सबसे बड़े आतंक के अभ्यासों से पहले, सोवियत अधिकारियों ने अपने लिए अपवाद की स्थिति घोषित की. इसका मतलब था कि सोवियत संघ के क्षेत्र पर ही, लोगों का अपहरण करना और उन्हें कारागारों में भेजना "कानूनी" था : अधिकारियों ने दावा किया कि कोई खतरा था और इसलिए सुरक्षा वापस ली जा सकती थी और प्रक्रियाओं को अलग रखा जा सकता था.
कानून से बचने का एक सरल तरीका है लोगों को शारीरिक रूप से एक भौतिक अपवाद क्षेत्र में ले जाना, जिसमें कानून (यह दावा किया जाता है) लागू नहीं होता है. अन्य तरीकों में अधिक समय लगता है. ऐसे कानून पारित करना संभव है, जो लोगों को उनके अपने देश में उनके अधिकारों से वंचित करते हैं. अपने ही क्षेत्र पर ऐसे स्थान बनाना संभव है, जहां कानून काम नहीं करता. ये स्थान कारागार हैं.
यह सब कितना भयावह है, यह अब भी रूपरेखा में सरकारी आतंक है, एक परीक्षण कि अमेरिकी कैसे प्रतिक्रिया देंगे. हम इन सबको वह देखकर प्रतिक्रिया दे सकते हैं. वह यह है. और हम इसे नाम से पुकार सकते हैं : ‘सरकारी आतंक की शुरुआत’. हम दूसरों के साथ जुड़कर प्रतिक्रिया दे सकते हैं, जो हमसे पहले दबाए गए हैं. केवल एकजुटता में ही हम कानून की पुष्टि करते हैं. हम सरकार की अन्य शाखाओं को याद दिला सकते हैं कि उनसे वे काम और जिम्मेदारियां ले ली जा रही हैं, जो उनकी थी.
जैसे राष्ट्रपति जब वह आव्रजन नीति, आपराधिक कानून और जबरन प्रत्यर्पण के वित्त-पोषण पर व्यक्तिगत नियंत्रण का दावा करते हैं, तो वह कांग्रेस के अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ उनके काम छीन रहे हैं. कांग्रेस आसानी से कानून पारित कर सकती है, अगर कुछ रिपब्लिकन साहस कर पाएं. राष्ट्रपति मूल न्यायिक कार्यों का दावा कर रहे हैं, जब वह स्वयं को न्यायाधीश, जूरी और अल सल्वाडोर में जबरन प्रत्यर्पण के मामले में, डी फैक्टो जल्लाद के रूप में परिभाषित करते हैं.
यहां तक कि ये सबसे बुनियादी संस्थाएं, जिन्हें हमारे संविधान द्वारा परिभाषित किया गया है, अपने आप कार्य नहीं करतीं. एक बहुत ही दुखद डिग्री तक सुप्रीम कोर्ट के जज और कांग्रेस के सदस्य पहले से ही सरकारी आतंक के इस प्रयोग में सहभागी हैं. वे एक ऐसे अमेरिका में अपना रास्ता खोज सकते हैं, जिसमें उनके कार्यालयों का मतलब तो है, लेकिन केवल हम लोगों की मदद से.
गाज़ा के अस्पताल पर इज़राइली हमला
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि गाज़ा के एक अस्पताल पर इज़राइली मिसाइल हमले में एक मेडिकल कर्मी की मौत हो गई और नौ अन्य घायल हो गए. यह हमला ऐसे समय हुआ जब इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू युद्धग्रस्त गाज़ा पट्टी के दौरे पर थे. यह हमला मंगलवार को हुआ, जबकि दो दिन पहले एक अन्य प्रमुख अस्पताल को भी निशाना बनाया गया था. संयुक्त राष्ट्र ने चेताया है कि गाज़ा में मानवीय संकट अब संघर्ष की शुरुआत के बाद से सबसे गंभीर स्थिति में है. चिकित्साकर्मियों के अनुसार, यह हमला खान यूनिस के पास अल-मुवासी में स्थित कु़वैत फील्ड अस्पताल के प्रवेश द्वार पर हुआ. घायल हुए नौ लोगों में कई डॉक्टर और पैरामेडिक शामिल हैं.
पिछले 18 महीनों से इज़राइल ने बार-बार गाज़ा के अस्पतालों को निशाना बनाया है, यह दावा करते हुए कि हमास उनका उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए करता है. इज़राइली सेना ने आरोप लगाया कि अल-अहली अस्पताल “कमांड एंड कंट्रोल” केंद्र के रूप में इस्तेमाल हो रहा था, जिसे हमास ने नकारा है. गाज़ा में काम कर रहे डॉक्टरों ने चेताया कि स्वास्थ्य व्यवस्था अब पूरी तरह टूटने के कगार पर है. अल-अहली अस्पताल के आपातकाल विभाग के प्रमुख डॉ. मोअतज़ हरारा ने कहा, “स्वास्थ्य प्रणाली पर बार-बार किए गए हमलों ने चिकित्सा टीमों को भयभीत और हतोत्साहित कर दिया है. अब और नहीं.”
चलते-चलते
क्या सेंचुरी पूरी कर पाएगा लंदन का पहला भारतीय रेस्तरां
मुमकिन है, लंदन का सबसे पुराना भारतीय रेस्तरां, “वीरस्वामी” अपनी सेंचुरी न पूरी कर सके. 99वीं वर्षगांठ पर उसके बंद होने का खतरा है. उसकी शताब्दी होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं.
2016 में मिशेलिन स्टार जीतने वाले इस रेस्तरां का मेनू हैदराबादी और मुगल इतिहास की झलक दिखाता है, साथ ही आधुनिक पाक-कला का उपयोग करता है. यह रेस्तरां लंदन के प्रसिद्ध रीजेंट स्ट्रीट पर स्थित है, लेकिन इसे संचालित करने वाले मालिकों को जून तक नई जगह ढूंढ़ने के लिए कह दिया गया है. क्योंकि क्राउन एस्टेट, जो विक्टरी हाउस का मालिक है, ने लीज़ को रिन्यू करने से इनकार कर दिया है.
वीरस्वामी की स्थापना 1926 में एक एंग्लो-इंडियन पूर्व सेना अधिकारी एडवर्ड पामर ने की थी, जो एक ब्रिटिश जनरल और भारतीय राजकुमारी के वंशज थे. शुरुआती वर्षों में यह रेस्तरां एंग्लो-इंडियन व्यंजन परोसता था. 1997 से इसे एमडब्ल्यू ईट्स द्वारा संचालित किया जा रहा है, जो अन्य पुरस्कार विजेता रेस्तरां जैसे ‘चटनी मैरी’ और ‘अमाया’ का मालिक भी है.
भारतीय रेस्तरां व्यवसाय 1920 के दशक से काफी अलग है, जब वीरस्वामी लगभग अकेला ऐसा रेस्तरां था, जो उच्च वर्ग के ग्राहकों को सेवा प्रदान करता था.
आज अनुमान है कि केवल लंदन में लगभग 3,600 भारतीय रेस्तरां हैं. पूरे ब्रिटेन में लगभग 8,000 भारतीय रेस्तरां फैले हुए हैं. 1950 और 1960 के दशक में लंदन के लगभग सभी भारतीय रेस्तरां परिवार द्वारा संचालित, मध्यम वर्गीय प्रतिष्ठान थे. लेकिन 1990 के दशक में एक नए प्रकार के उच्च वर्गीय रेस्तरां उभरे, जो अधिक संपन्न ग्राहकों को सेवा देते थे.
वीरस्वामी के भारतीय शाही व्यंजनों में प्रिंसेस नूरानी लैम्ब चॉप्स और पटियाला शाही रान जैसे व्यंजन शामिल हैं. लंदन का पहला भारतीय रेस्तरां 1810 में सेक दीन महोमद द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन यह दो साल बाद ही बंद हो गया था.
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