16/06/2025: जी7 आज से, निगाहें ट्रम्प पर | कनाडा में मोदी | इजरायल- ईरान के बीच हमले | ट्रम्प ने फिर कहा | भारतीय विदेश नीति पर आकार पटेल | पिता की मृत्यु के बाद एआई के जरिये संवाद
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
जी-7 में कुछ हासिल होगा या सब ट्रम्प की तरफ देखेंगे कि नया बखेड़ा कौन सा खड़ा होने वाला है
सिख विरोध के बीच क्या मोदी कनाडा से भारत के रिश्तों की खटास दूर पाएंगे?
इज़रायल ने ईरान के ऊर्जा क्षेत्र और रक्षा मंत्रालय पर किया हमला, युद्ध और तेज़ हुआ
तक-ए-बोस्तान के पास इज़राइली हवाई हमले: ईरान की प्राचीन विरासत पर मंडराया खतरा
ईरान को लेकर पोस्ट में ट्रम्प ने फिर कहा, जैसा मैंने भारत पाकिस्तान में समझौता करवाया…
केदारनाथ में फिर गिरा हेलिकॉप्टर, 7 मरे, दो माह में पांचवी घटना
रूपाणी समेत 45 मृतकों के शवों की पहचान हुई
पुणे में पुल गिरा, 4 मरे, 32 घायल
मिसरी को ट्रोल करने वाले कौन थे, सरकार के पास ‘कोई जानकारी नहीं!’
दस घंटे की दिहाड़ी करने पर आईटी कंपनी में बवाल
एक्स रे और रेडियो सिग्नल मिल रहे हैं आकाशगंगा में एक पिंड से
जी-7 में कुछ हासिल होगा या सब ट्रम्प की तरफ देखेंगे कि नया बखेड़ा कौन सा खड़ा होने वाला है
कनाडा के रॉकी पर्वत श्रृंखला में जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन शुरू हो रहा है, लेकिन इसकी सफलता संयुक्त घोषणापत्र या वैश्विक समस्याओं के समाधान से नहीं, बल्कि इस बात से आंकी जाएगी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कोई नया बखेड़ा या विवाद खड़ा न करें. यह सम्मेलन पूरी तरह से ट्रम्प की शख्सियत, उनकी नीतियों और उनकी अप्रत्याशित कार्यशैली के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया है, जिसने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के इस समूह की गतिशीलता को मौलिक रूप से बदल दिया है. मेजबान कनाडा सहित अन्य सदस्य देश किसी भी तरह के टकराव से बचने की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि 2018 में कनाडा में हुए पिछले सम्मेलन को ट्रम्प ने बीच में ही छोड़कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को "बेईमान और कमजोर" करार दिया था और साझा बयान से अमेरिका का नाम वापस ले लिया था.
इस बार का माहौल और भी तनावपूर्ण है. सम्मेलन की शुरुआत से ठीक पहले इजरायल और ईरान के बीच हुए हमलों ने एक नए संकट को जन्म दे दिया है, जो एजेंडे में सबसे ऊपर रहने की उम्मीद है. जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मेर्ज़ ने स्पष्ट किया है कि उनका लक्ष्य ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकना और क्षेत्र में तनाव बढ़ने से बचाना है. इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध भी एक बड़ा मुद्दा है. ट्रम्प ने 24 घंटे में युद्ध समाप्त करने का वादा किया था, लेकिन कूटनीतिक प्रयास रुके हुए हैं. यूक्रेन की उम्मीदें अब किसी मजबूत समर्थन वाले बयान से घटकर सिर्फ राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और ट्रम्प के बीच एक सौहार्दपूर्ण बैठक तक सीमित हो गई हैं. इन वैश्विक संकटों के साथ-साथ, अमेरिकी टैरिफ, महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला और प्रवासन जैसे मुद्दे भी चर्चा में रहेंगे.
ट्रम्प की केंद्रीयता ने बाकी देशों को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है. मेजबान कनाडा ने किसी भी संभावित विवाद से बचने के लिए पारंपरिक संयुक्त घोषणापत्र जारी करने का विचार त्याग दिया है और इसके बजाय "चेयर समरी" जारी करने का फैसला किया है. शिखर सम्मेलन की अवधि भी बढ़ा दी गई है ताकि ट्रम्प के साथ द्विपक्षीय बैठकों के लिए अधिक समय मिल सके, क्योंकि ट्रम्प बड़े गोलमेज सम्मेलनों की तुलना में आमने-सामने की बातचीत को अधिक पसंद करते हैं. अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी दिलचस्प हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने ट्रम्प को राजकीय यात्रा का निमंत्रण देकर और एक अलग व्यापार समझौते पर काम करके तुष्टीकरण की रणनीति अपनाई है, जिसने उन्हें कनाडा जैसे सहयोगी के सामने अजीब स्थिति में डाल दिया है. वहीं, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ग्रीनलैंड में एक प्रतीकात्मक यात्रा कर संप्रभुता के सिद्धांत पर जोर दिया है, जो ट्रम्प की कनाडा को 51वां राज्य बनाने जैसी धमकियों पर एक अप्रत्यक्ष टिप्पणी है.
इस बदलते समीकरण का नतीजा यह है कि जी-7 अब एकता का प्रदर्शन करने वाले मंच के बजाय द्विपक्षीय वार्ताओं का एक समूह बनता दिख रहा है, जहाँ हर देश ट्रम्प को अपने हितों के लिए साधने की कोशिश कर रहा है. शिखर सम्मेलन में भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और मेक्सिको जैसे गैर-जी7 देशों के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है, लेकिन उनका मुख्य उद्देश्य भी ट्रम्प के साथ अपने मुद्दों पर बात करना ही प्रतीत होता है. हालांकि, इस अतिथि सूची पर भी विवाद है, जैसा कि कनाडा के सिख समुदाय द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर जताई गई नाराजगी से स्पष्ट है. अंततः, यह शिखर सम्मेलन इस बात का एक बड़ा परीक्षण है कि क्या अमेरिका अब भी जी-7 जैसे बहुपक्षीय मंचों के लिए प्रतिबद्ध है. इसकी सफलता या विफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ट्रम्प सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने में रुचि दिखाते हैं या अपने अप्रत्याशित व्यवहार से पूरे आयोजन को बाधित कर देते हैं.
पिछली बैठक में ट्रम्प वॉक आउट कर गये थे
2018 का जी7 समिट कनाडा के क्यूबेक प्रांत में चार्लेवोइक्स में 8-9 जून को हुआ था. इस समिट में जी7 देशों (अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और जापान) के नेता शामिल थे. ट्रम्प ने 2018 में स्टील और एल्यूमिनियम पर भारी टैरिफ लगाए थे, जिसका असर कनाडा, यूरोपीय संघ, और अन्य जी7 देशों पर पड़ा. जी7 के अन्य नेता इस टैरिफ के खिलाफ थे और उन्होंने समिट में ट्रम्प से इस मुद्दे पर चर्चा की. उनका कहना था कि ये टैरिफ वैश्विक व्यापार और उनके अर्थतंत्रों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. ये विवाद इतना बढ़ा कि डोनाल्ड ट्रम्प, जो उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे, ने इस समिट में हिस्सा लिया, लेकिन समिट के अंत में उन्होंने नाटकीय तरीके से अंतिम संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और समय से पहले समिट छोड़ दिया. इसे मीडिया ने "वॉकआउट" के रूप में रिपोर्ट किया.
मोदी कनाडा में
सिख विरोध के बीच क्या मोदी कनाडा से भारत के रिश्तों की खटास दूर पाएंगे?
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जी7 में भाग लेने को लेकर कनाडा यात्रा को लेकर दो अलग-अलग तस्वीरें उभर रही हैं. एक तरफ इस यात्रा को दोनों देशों के बीच बिगड़े रिश्तों को सुधारने के एक बड़े अवसर के तौर पर देखा जा रहा है. तो दूसरी तरफ कनाडा का सिख समुदाय मोदी के इस दौरे का पुरजोर विरोध कर रहा है. नए कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने भारत के जी7 का सदस्य न होने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी को अलबर्टा में होने वाले शिखर सम्मेलन में बतौर अतिथि आमंत्रित किया है. यह मोदी की एक दशक में पहली कनाडा यात्रा है और इसे कार्नी के लिए एक बड़ी कूटनीतिक परीक्षा माना जा रहा है. इस मुलाकात को दोनों देशों के बीच संबंधों को "रीसेट" करने या एक नई दिशा देने के मौके के रूप में देखा जा रहा है.
भारत और कनाडा के रिश्ते उस वक्त बेहद तनावपूर्ण हो गए थे. जब कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2023 में सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार के शामिल होने का आरोप लगाया था. भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इन्हें बेतुका बताया था और उलटे कनाडा पर सिख अलगाववादियों को पनाह देने का आरोप लगाया था. इस विवाद के चलते दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को भी निष्कासित कर दिया था. अब कार्नी के प्रधानमंत्री बनने के बाद रिश्तों में सुधार की उम्मीद जगी है. भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार. यह यात्रा द्विपक्षीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान और संबंधों को पटरी पर लाने के रास्ते तलाशने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगी.
कनाडा की सरकार आर्थिक नजरिए से इस यात्रा को अहम मान रही है. प्रधानमंत्री कार्नी भारत को दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वैश्विक सप्लाई चेन का केंद्र मानते हुए संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं. विशेषज्ञ इसे कार्नी का एक यथार्थवादी और व्यावहारिक फैसला बता रहे हैं. दोनों देशों के बीच मजबूत व्यापारिक और लोगों के बीच गहरे संबंध हैं. 2023 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 9 बिलियन डॉलर का था और कनाडा के पेंशन फंड ने भारत में लगभग 55 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. कनाडा में लगभग 20 लाख भारतीय मूल के लोग रहते हैं. जो इसे रिश्तों को सुधारने के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है.
हालांकि. इस कूटनीतिक पहल के बीच कनाडा के सिख समुदाय में भारी नाराजगी और गुस्सा है. निज्जर की हत्या और अन्य सिख कार्यकर्ताओं को मिल रही धमकियों के लिए वे भारत सरकार को जिम्मेदार मानते हैं. सिख कार्यकर्ता मोनिंदर सिंह जैसे लोगों को पुलिस ने उनकी जान को खतरा होने की चेतावनी दी है. जिसके बाद उन्हें अपने घर से भी दूर रहना पड़ा. उनका कहना है कि मोदी को दिया गया यह निमंत्रण अपमानजनक है और यह दर्शाता है कि "सिखों की जान दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है". सिख समुदाय ने मोदी की यात्रा के दौरान ओटावा में एक विरोध प्रदर्शन की भी योजना बनाई है. आलोचकों का आरोप है कि कार्नी मानवाधिकारों पर आर्थिक हितों को तरजीह दे रहे हैं. हालांकि. मोदी ने "कानून प्रवर्तन संवाद" पर सहमति जताई है. लेकिन यह देखना बाकी है कि यह यात्रा निज्जर हत्याकांड की अनसुलझी जांच और खालिस्तान आंदोलन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर जमी बर्फ को पिघला पाती है या नहीं.
मिडिल ईस्ट की आग
इज़रायल ने ईरान के ऊर्जा क्षेत्र और रक्षा मंत्रालय पर किया हमला, युद्ध और तेज़ हुआ
(रविवार शाम ईरान का मशहद शहर दो जोरदार धमाकों से दहल उठा.)
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि इज़रायल और ईरान के बीच तीसरे दिन भी जारी तनावपूर्ण संघर्ष में इज़रायल ने ईरान के ऊर्जा उद्योग और रक्षा मंत्रालय को निशाना बनाया. दूसरी ओर, ईरान के कुछ मिसाइल इज़रायली वायु सुरक्षा प्रणाली को चकमा देकर तेल अवीव के दक्षिण में स्थित एक तेल रिफ़ाइनरी और एक बहुमंजिला रिहायशी इमारत पर आकर गिरे. ईरान की राजधानी तेहरान के बाहर ईंधन भंडारों में आग लगी हुई थी, वहीं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वॉशिंगटन में दशकों के सबसे बड़े सैन्य परेड का निरीक्षण किया. ट्रम्प ने चेतावनी दी कि यदि ईरान ने अमेरिकी हितों पर हमला किया, तो अमेरिका की सैन्य शक्ति "इतिहास में कभी न देखे गए स्तर" पर प्रतिक्रिया देगी.
ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर कहा- "अगर हम पर किसी भी प्रकार से हमला हुआ, तो अमेरिका की पूरी ताकत और सैन्य शक्ति तुम पर टूट पड़ेगी." इज़राइली सेना ने बताया कि बट याम (तेल अवीव के दक्षिण में) में ईरानी मिसाइल हमले से रिहायशी इमारतें तबाह हो गईं. मलबे में बचावकर्मी जीवितों की तलाश कर रहे हैं.
अमेरिका की भूमिका और ईरान की प्रतिक्रिया : इज़रायल चाहता है कि अमेरिका इस संघर्ष में खुलकर उसका साथ दे, क्योंकि फोर्डो जैसे भूमिगत ईरानी परमाणु ठिकानों को केवल अमेरिकी हथियार ही भेद सकते हैं. हालांकि, ईरान ने अमेरिका के साथ परमाणु कार्यक्रम को लेकर जारी वार्ता को रद्द कर दिया है और वॉशिंगटन पर इज़रायल का "साझेदार" होने का आरोप लगाया है, फिर भी उसने अब तक अमेरिकी ठिकानों या दूतावासों पर हमला नहीं किया है. ईरान के कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मारे जा चुके हैं. इज़रायल का दावा है कि उसने तेहरान से लेकर पश्चिमी ईरान तक की हवाई सीमा पर नियंत्रण पा लिया है और कई परमाणु ठिकानों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है.
ईरान की शांति की पेशकश और वैश्विक प्रतिक्रियाएं : ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा कि यदि इज़रायल हमले रोकता है तो "हमारे जवाबी हमले भी बंद हो जाएंगे." ट्रम्प ने एक अन्य पोस्ट में लिखा, "हम ईरान और इज़रायल के बीच आसानी से समझौता कर सकते हैं और इस खूनी संघर्ष को समाप्त कर सकते हैं!!!" कतर, ओमान, रूस और जी7 देश इस संघर्ष को रोकने के प्रयासों में लगे हैं. जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ ने ओमान के सुल्तान से बात की, जहां पहले अमेरिका और ईरान के बीच वार्ता होनी थी.
सबसे खूनखराबे का दिन : शनिवार रात इज़रायल के लिए अब तक की सबसे रक्तरंजित रात रही. ईरानी हमलों में कम से कम 14 लोग मारे गए, जिनमें तीन बच्चे भी शामिल हैं. 200 से अधिक लोग घायल हुए. इज़रायली सेना के एक अधिकारी ने कहा, “जब सैकड़ों मिसाइलें दागी जाती हैं, तो सबसे उन्नत वायु सुरक्षा प्रणाली भी हर मिसाइल को नहीं रोक सकती.” ईरान ने शनिवार रात लगभग 70 मिसाइलें और दर्जनों ड्रोन छोड़े. पिछले दो रातों में उसने 200 से अधिक मिसाइलें इज़राइल पर दागीं, जिनमें से 20 से 24 मिसाइलें बच निकलीं और निशाने पर लगीं. इनमें से एक हाइफ़ा शहर की एक रिफ़ाइनरी पर भी गिरी. इधर, तेहरान समेत ईरान के शहरों में सन्नाटा पसरा रहा. स्टोर्स सामग्री से खत्म हो गए क्योंकि युद्ध की आशंका को देखते हुए लोगों ने कई दिनों का भंडारण कर लिया है.
इज़रायल की जवाबी कार्रवाई : प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि उन्होंने यह पूर्व-आक्रामक हमला इसलिए किया क्योंकि ईरान का परमाणु हथियारों की दिशा में बढ़ता कदम एक गंभीर सुरक्षा खतरा था. इज़रायल ने ईरान में शनिवार रात तेल डिपो, बुशहर प्रांत की रिफ़ाइनरी और अन्य रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाया. लोगों से कहा गया है कि वे हथियार कारखानों के पास के इलाके खाली कर दें. एक इज़राइली सैन्य अधिकारी ने कहा कि आने वाले दिनों में और हमले होंगे, खासकर "द्वैध-उपयोग" वाली ईरानी औद्योगिक सुविधाओं पर, ताकि ईरान के अनुमानित 2,000 मिसाइलों के भंडार को बढ़ने से रोका जा सके.
हाइफा पर हमला पर अडानी का बंदरगाह सलामत
'बिजनेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट है कि ईरान द्वारा शनिवार देर रात इज़राइल के हाइफ़ा पोर्ट और उसके पास स्थित एक तेल रिफाइनरी पर की गई मिसाइल कार्रवाई के बावजूद, अडानी समूह द्वारा संचालित हाइफ़ा पोर्ट को कोई प्रत्यक्ष नुकसान नहीं पहुंचा है. यह जानकारी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (PTI) की रिपोर्ट में दी गई है. ईरान ने यह हमला इज़राइल द्वारा तेहरान और अन्य सैन्य ठिकानों पर की गई ऑपरेशन राइजिंग लायन के जवाब में किया था, जिसमें कई शीर्ष ईरानी सैन्य अधिकारी, वैज्ञानिक और नागरिक मारे गए थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, हाइफ़ा पोर्ट के कैमिकल टर्मिनल में कुछ श्रेपनल (बम के टुकड़े) गिरे और पास की तेल रिफाइनरी को भी निशाना बनाया गया, लेकिन कोई व्यक्ति घायल नहीं हुआ. अडानी समूह के नियंत्रण वाले हिस्से में सभी गतिविधियां सामान्य रूप से चलती रहीं. “पोर्ट पर इस समय आठ जहाज़ मौजूद हैं और सामान लोडिंग/अनलोडिंग सामान्य रूप से हो रही है,” रिपोर्ट में कहा गया. एक इंटरसेप्टर मिसाइल का टुकड़ा पोर्ट के अंदर 'किशन वेस्ट' क्षेत्र में गिरा, लेकिन इससे भी संचालन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. हाइफ़ा पोर्ट, जो इज़राइल के कुल आयात का 30% से अधिक संभालता है, उसमें 70% हिस्सेदारी अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड की है.
तक-ए-बोस्तान के पास इज़राइली हवाई हमले: ईरान की प्राचीन विरासत पर मंडराया खतरा
'तेहरान टाइम्स' की रिपोर्ट है कि शनिवार और रविवार को हुए इज़राइली मिसाइल हमलों ने ईरान की सासानी युग की महान पुरातात्विक धरोहर तक-ए-बोस्तान के तीन किलोमीटर के दायरे में स्थित क्षेत्रों को निशाना बनाया. इन हमलों से उत्पन्न भयानक कंपन ने इस प्राचीन स्थल को हिला दिया, जिससे अपूरणीय क्षति की गंभीर आशंका जताई जा रही है. तक-ए-बोस्तान, जो ईरान की राष्ट्रीय धरोहर सूची में पंजीकृत है और यूनेस्को की संभावित विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है, उसमें चट्टानों पर उकेरी गई भव्य कलाकृतियां हैं. इनमें सासानी राजाओं की स्मृति में बनाए गए दो भव्य मेहराबदार शिलालेख और स्वतंत्र रूप से उकेरे गए चित्र शामिल हैं. इस ऐतिहासिक स्थल के चारों ओर स्थित अन्य महत्वपूर्ण पुरापाषाण कालीन स्थल वारवासी, कोबेह, दो-अश्कफ्ट और मालेवर्द गुफाएं भी अब गंभीर खतरे में हैं. रविवार को हुए ताज़ा हमले में, इमाम रज़ा अस्पताल के पास स्थित 12,000 साल पुराने शिलाचित्र स्थलों — सोरखे लिज़ेह — को सीधे निशाना बनाया गया. इससे पहले से व्यक्त किए जा रहे इन स्थलों की बर्बादी की आशंकाएँ सच साबित हो गई हैं. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि इन स्थलों को और नुकसान पहुंचा तो यह मानवता की वैश्विक सांस्कृतिक विरासत के लिए एक गहरा आघात होगा. उन्होंने तत्काल अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि और विनाश को रोका जा सके.
ईरान को लेकर पोस्ट में ट्रम्प ने फिर कहा, जैसा मैंने भारत पाकिस्तान में समझौता करवाया…
अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर एक जाने-पहचाने आत्म-प्रशंसा वाले अंदाज़ में, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दावा किया कि वह ईरान और इज़राइल के बीच शांति स्थापित कर सकते हैं - जो मध्य पूर्व के दो कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं और इस समय बढ़ते तनाव में उलझे हुए हैं - और यह भी सुझाव दिया कि पर्दे के पीछे बातचीत पहले से ही चल रही है. हालांकि ईरान ने किसी भी बातचीत से इंकार किया है.
ट्रम्प ने रविवार को लिखा, "ईरान और इज़राइल को एक समझौता करना चाहिए, और वे एक समझौता करेंगे," उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह अपने सफल राजनयिक हस्तक्षेपों को दोहराने का इरादा रखते हैं, जैसा कि उन्होंने दावा किया है. "ठीक वैसे ही जैसे मैंने भारत और पाकिस्तान से समझौता करवाया, उस मामले में, दो उत्कृष्ट नेताओं के साथ बातचीत में समझ, एकजुटता और विवेक लाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार (TRADE) का उपयोग किया, जो जल्दी से निर्णय लेने और (इसे) रोकने में सक्षम थे!"
ट्रम्प का इशारा पिछले महीने परमाणु-सशस्त्र पड़ोसियों के बीच एक पूर्ण सैन्य तनाव के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने में संयुक्त राज्य अमेरिका की कथित भूमिका की ओर था. भारत का यही कहना रहा है कि दोनों देशों के बीच युद्धविराम समझौता राजनयिक रूप से हुआ था.
ट्रम्प ने यह भी घोषणा की कि अपने पिछले कार्यकाल के दौरान उनके नेतृत्व ने सर्बिया-कोसोवो — जो गहरे जातीय तनाव वाला क्षेत्र है — में तनाव को बढ़ने से रोका. उन्होंने कहा, "बाइडन ने कुछ बहुत ही मूर्खतापूर्ण फैसलों से लंबी अवधि की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है, लेकिन मैं इसे फिर से ठीक कर दूँगा!"
उन्होंने नील नदी विवाद पर मिस्र और इथियोपिया के बीच शांति समझौता कराने का भी दावा किया. उन्होंने लिखा, "एक और मामला मिस्र और इथियोपिया का है, और एक विशाल बांध को लेकर उनकी लड़ाई, जिसका असर शानदार नील नदी पर पड़ रहा है. मेरे हस्तक्षेप के कारण, कम से कम अभी के लिए, शांति है, और यह ऐसे ही बनी रहेगी!"
उन्होंने यह भी जोड़ा कि इज़राइल और ईरान के बीच बातचीत चल रही है. उन्होंने बिना कोई विवरण दिए कहा, "अब कई कॉल और बैठकें हो रही हैं."
उन्होंने उसी पोस्ट में कहा, "मैं बहुत कुछ करता हूँ, और मुझे कभी किसी बात का श्रेय नहीं मिलता, लेकिन कोई बात नहीं, लोग समझते हैं," जो उनके जाने-पहचाने नारे के एक नए रूप के साथ समाप्त हुई: "मेक द मिडिल ईस्ट ग्रेट अगेन!" (मध्य पूर्व को फिर से महान बनाओ!)
ट्रम्प ने रोकी खामेनेई को मारने की योजना : इस बीच समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने दो अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से बताया कि इज़रायल की योजना, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को मारने की थी, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रयासों से इसे अवरुद्ध कर दिया. रिपोर्ट के मुताबिक, इज़रायलियों ने अमेरिकी पक्ष को बताया था कि उनके पास खामेनेई को मारने का एक मौका था, लेकिन ट्रंप ने पीछे हटने के लिए कह दिया.
केदारनाथ में फिर गिरा हेलिकॉप्टर, 7 मरे, दो माह में पांचवी घटना
उत्तराखंड के केदारनाथ क्षेत्र में रविवार सुबह घने जंगलों में गौरीकुंड के ऊपर आर्यन एविएशन के हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से सात लोगों की मौत हो गई. इनमें पांच तीर्थयात्री शामिल थे. यह हादसा खराब दृश्यता के कारण हुआ. पिछले दो महीनों में यह पांचवीं घटना है, जिससे क्षेत्र में हेलिकॉप्टर सेवाओं की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.
रविवार की दुर्घटना सुबह लगभग 5:30 बजे उस समय हुई, जब हेलिकॉप्टर केदारनाथ हेलीपैड से उड़ान भरने के बाद गुप्तकाशी की ओर जा रहा था. उड़ान के दौरान हेलिकॉप्टर का सिग्नल अचानक बंद हो गया था और फिर वह गौरी माई खर्क के पास, जो गौरीकुंड से लगभग पांच किलोमीटर ऊपर है, दुर्घटनाग्रस्त हो गया. बीते दो माह में कब और कहां दुर्घटना हुई, इसका विवरण “द टेलीग्राफ” में दिया गया है.
रूपाणी समेत 45 मृतकों के शवों की पहचान हुई
गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेलने रविवार को बताया कि अहमदाबाद विमान हादसे में जान गंवाने वाले 45 मृतकों के डीएनए उनके परिजनों से मिलाए जा चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के शव की पहचान भी हो गई है. रूपाणी का अंतिम संस्कार कल सोमवार 16 जून को पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा. उन्होंने इस दुर्घटना में मृतकों की संख्या 274 ही बताई. इस बीच अमेरिका से 10 विशेषज्ञों की एक जांच टीम रविवार को अहमदाबाद पहुंची. जांचकर्ताओं ने जांच के लिए अहम सबूत जुटाने शुरू कर दिए हैं.
पुणे में पुल गिरा, 4 मरे, 32 घायल
महाराष्ट्र के पुणे जिले में इंद्रायणी नदी पर लोहे से बना 30 साल पुराना पुल रविवार दोपहर को गिर गया, जिससे कम से कम 4 लोगों की मौत हो गई. कई लोग पानी में बह गए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने कहा, इस घटना में 32 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से छह की हालत गंभीर है और उन्हें अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया है. यह घटना महाराष्ट्र के मावल तहसील के कुंडमाला इलाके में दोपहर करीब 3:30 बजे हुई, जहां मानसून के कारण सप्ताहांत पर भारी भीड़ थी और पुल पर लगभग 100 पर्यटक जमा थे.
मिसरी को ट्रोल करने वाले कौन थे, सरकार के पास ‘कोई जानकारी नहीं!’
‘द वायर’ के मुताबिक सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए सवालों से पता चला है कि केंद्र सरकार के पास उन सोशल मीडिया हैंडल्स के बारे में कोई जानकारी नहीं है जिन्होंने पिछले महीने पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिसरी और उनकी बेटी पर शातिर तरीके से ट्रोल हमले किए थे. जिस देश में छोटी छोटी बातों पर नेताओं के बारे में कहने पर गिरफ्तारियां हो जाती है, और दूसरी तरफ हत्या, बलात्कार और अन्य क्रूरताओं भरे संदेशों के लिए हरकत नहीं होती, इसमें एक और मिसाल ये जुड़ी है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर सहित केंद्र सरकार में से किसी ने भी अब तक इस ट्रोलिंग की निंदा नहीं की है और न ही कोई उनके समर्थन में सामने आया है. 'ऑपरेशन सिंदूर' शुरू होने के बाद पाकिस्तान के साथ चार दिवसीय सैन्य संघर्ष के दौरान विदेश सचिव के रूप में मिसरी ने विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग का नेतृत्व किया था.
द वायर ने रिपोर्ट किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच घोषित संघर्ष विराम के बाद सोशल मीडिया पर शातिर तरीके से ट्रोल किए जाने के बाद मिसरी ने 11 मई को अपना एक्स (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट लॉक कर दिया था.
उन्होंने अपना अकाउंट लॉक करने का कदम तब उठाया जब दक्षिणपंथी एक्स अकाउंट्स ने उन्हें 'देशद्रोही' कहा. संघर्ष विराम के लिए उन्हें दोषी ठहराया. उनके परिवार की पुरानी तस्वीरें खोजीं और उनकी बेटी को विदेश में पढ़ाई करने और 'म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों को कानूनी सहायता प्रदान करने' के लिए निशाना बनाया. कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के निदेशक वेंकटेश नायक ने विदेश मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में अलग-अलग आरटीआई आवेदन दायर किए थे. इसमें उन सोशल मीडिया अकाउंट्स की सूची मांगी गई थी, जिनकी पहचान दोनों मंत्रालयों की सक्षम एजेंसी द्वारा मिसरी और उनके परिवार की ट्रोलिंग और ऑनलाइन दुर्व्यवहार शुरू करने और उसमें भाग लेने वालों के रूप में की गई है.
दोनों मंत्रालयों ने एक जैसा जवाब देते हुए कहा कि इस विषय पर ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. विदेश मंत्रालय के जवाब के बाद दायर अपनी अपील में नायक ने लिखा कि सरकार ने 'अतीत में सोशल मीडिया और अन्य डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म से अन्य प्रकार की आपत्तिजनक सामग्री को हटाने' के लिए कार्रवाई की है.
उन्होंने अपनी अपील में लिखा, 'यह अविश्वसनीय है कि इस मंत्रालय ने विदेश सचिव की हालिया ट्रोलिंग के संबंध में इसी तरह से कार्रवाई नहीं की है'. 'सीपीआईओ [केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी] का बेतुका और टालमटोल भरा जवाब यह मानने के बराबर है कि इस सरकार ने उन सोशल मीडिया अकाउंट्स और उनके आपत्तिजनक ऑपरेटरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. जिन्होंने विदेश सचिव पर अत्यधिक पूर्वाग्रह और बहुत आपत्तिजनक भाषा का उपयोग करके हमला किया'.
'यह हम नागरिकों के मन में इस सरकार की अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हमलों से बचाने की क्षमता के बारे में किसी भी तरह का विश्वास पैदा नहीं करता है. यह बाहरी दुश्मनों और उनके स्थानीय एजेंटों द्वारा भारतीय नागरिकों और उनकी संपत्ति के खिलाफ हिंसा किए जाने पर चुप न बैठने की इस सरकार की नीति के अनुरूप भी नहीं है'. हालांकि, उनकी अपील के जवाब में नायक को विदेश मंत्रालय से वही जवाब मिला: 'यह जानकारी इस कार्यालय में उपलब्ध नहीं है'. इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भी कहा है कि उसके पास इस विषय पर कोई जानकारी नहीं है, लेकिन नायक को अभी वहां अपील दायर करनी है.
दस घंटे की दिहाड़ी करने पर आईटी कंपनी में बवाल
टेक्नोलॉजी और सर्विसेज क्षेत्र की प्रमुख कंपनी जेनपैक्ट के रोजाना काम के घंटों को 9 से बढ़ाकर 10 करने के फैसले ने कर्मचारियों और मानव संसाधन (एचआर) विशेषज्ञों के बीच तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम प्रगतिशील कार्यस्थल मूल्यों को कमजोर करता है. बड़ी संख्या में कर्मचारियों ने इस फैसले की आलोचना करते हुए सोशल मीडिया का सहारा लिया है.
“द हिंदू” में लवप्रीत कौर की रिपोर्ट के अनुसार, आंतरिक रूप से 20 दिन पहले की गई इस बदलाव की घोषणा ने कई कर्मचारियों को असहज कर दिया है. कंपनी के हैदराबाद स्थित कार्यालय के एक कर्मचारी ने माहौल को तनावपूर्ण बताया. “मैं पहले दोपहर 12 बजे लॉगइन करता था और रात 9 बजे तक काम खत्म कर लेता था, हालांकि यह भी काफी थकाऊ था. अब, नई नीति के तहत तो मुझे सुबह 11 बजे से काम शुरू करना होगा,” कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा. कर्मचारियों का कहना है कि इस नई प्रणाली में, 'उत्पादकता' की निगरानी एक आंतरिक पोर्टल के माध्यम से की जाती है, जो रोजाना काम के घंटों को ट्रैक करता है. एक कर्मचारी ने कहा कि “अगर मैं निर्धारित समय पूरा करता हूं, तो मुझे हर महीने 500 अंक मिलते हैं, जिनकी कीमत 3,000 रुपये है. हमें बताया गया है कि इसका 5 प्रतिशत, यानी मेरे मामले में 150 रुपये, अतिरिक्त समय के लिए दिया जाएगा. लेकिन, यह बिल्कुल भी प्रोत्साहन जैसा महसूस नहीं होता. नियुक्ति से जुड़े एक वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया, “काम का दबाव बहुत ज्यादा है और कर्मचारी छोड़कर जा रहे हैं. मैं रोज़ाना अनुभवी कर्मचारियों को जाते और नए चेहरों को आते देख रहा हूं. सबसे बुरी बात यह है कि यह 10 घंटे की नीति आधिकारिक भी नहीं है. इसे प्रबंधकों और एजेंटों के माध्यम से लागू किया गया है. अगर आप सवाल करते हैं, तो आपको ‘व्यवहार संबंधी समस्याओं’ के टैग के साथ निकाल दिया जाता है. पहले, एचआर भर्ती के आंकड़ों में पारदर्शिता रखता था. अब वह भी पूरी तरह प्रबंधन के नियंत्रण में है.
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी चिंता जताई गई है. एक “रेडिट” यूजर ने लिखा, “यह ज्यादती है. कंपनी ने काम के घंटे 10 कर दिए हैं, लेकिन वेतन नहीं बढ़ाया. सिर्फ इतना ही नहीं, आपको ‘WAM’ पूरा करना होता है, जो एक अपमानजनक टूल है और कीस्ट्रोक्स को लॉग करता है. अब आपको 10 में से 9 घंटे पूरे करने होते हैं, वर्ना चेतावनी मेल मिलती है. तीन-चार ऐसी मेल मिलने पर आपका बोनस काट लिया जाता है और मूल्यांकन भी रुक जाता है. दो दशक पहले, जेनपैक्ट में अपना करियर शुरू करने वाले आईटी इनेबल्ड सर्विसेज सेक्टर के एक अनुभवी व्यक्ति ने कहा कि यह निर्णय कंपनी के मूल्यों के खिलाफ है. मुझे चिंता है कि इसका असर अन्य कंपनियों, खासकर स्थानीय कंपनियों पर पड़ेगा.
एक्जीक्यूटिव सर्च कंसल्टेंट अच्युत मेनन ने कहा कि यह नीति कोरोना महामारी के बाद की कॉर्पोरेट रणनीति में व्यापक बदलाव को दर्शाती है. महामारी के दौरान बड़ी वेतन वृद्धि देने के बाद, कंपनियों को अब लगता है कि उन्होंने ज़्यादा भुगतान कर दिया. इसलिए, वे कठोर नीतियां ला रही हैं. जैसे कि बढ़े हुए घंटे और सख्त ऑफिस नियम, ताकि कर्मचारी खुद छोड़ दें और सस्ते विकल्पों को रखा जा सके. मेनन ने यह भी कहा कि ऑटोमेशन इस प्रवृत्ति को तेज कर रहा है. अधिक घंटे समाधान नहीं हैं.
विश्लेषण
आकार पटेल : हमारी बदली हुई विदेश नीति को दुनिया में कितनी अहमियत मिल रही है?
12 जून को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गाजा में तत्काल, बिना शर्त और स्थायी युद्धविराम की मांग करने वाला एक प्रस्ताव अपनाया. इसमें इजराइल द्वारा भुखमरी को युद्ध के हथियार के रूप में उपयोग करने को समाप्त करने की बात कही गई. कुल 149 देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि अमेरिका और इजराइल ने विरोध किया. भारत ने मतदान से परहेज किया, जो मोदी युग में अपनाए गए एक पैटर्न को दोहराता है. इससे कुछ भारतीय परेशान हैं क्योंकि यह फिलिस्तीन और फिलिस्तीनियों पर भारत की लंबे समय से चली आ रही स्थिति से बदला हुआ है, लेकिन साथ ही यह भाजपा की हिंदुत्व विचारधारा के आग्रहों के अनुकूल है.
दूसरी ओर, सरकार के समर्थक पाकिस्तान के साथ हमारे हाल के संघर्ष के प्रति दुनिया द्वारा अपनाए गए संतुलित दृष्टिकोण से परेशान हैं. हम राष्ट्रों को अपना पक्ष लेने के लिए जबरदस्ती नहीं कर सकते.
यह कॉलम नरेंद्र मोदी के तहत भारत की विदेश नीति की आलोचना नहीं है; यह इसे समझाने का एक प्रयास है. 1950 के दशक में अपने जन संघ अवतार से लेकर अब तक के भाजपा के घोषणापत्रों में विदेश नीति सिद्धांत के मामले में बताने के लिए बहुत कुछ नहीं है. हालांकि, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने लेखन में अपनी स्थापना (थीसिस) रखी है जिससे हमें यह समझने में मदद मिलेगी कि भारत दुनिया में क्या करने की कोशिश कर रहा है. जयशंकर का मानना है कि हमारे समय में अमेरिका और यूरोप अंतर्मुखी होंगे (उनकी निबंधों की पहली पुस्तक 2020 में ट्रम्प के हारने से ठीक पहले प्रकाशित हुई थी), जबकि चीन का उदय जारी रहेगा. यह भारत जैसे देशों के लिए दुनिया के साथ अपनी व्यस्तताओं में अपने लिए मौके तलाशने की जगह खोलेगा और इसके लिए उन्हें उसूलों पर कायम रहने की जरूरत नहीं थी.
भारत का अरमान एक ऐसा 'बहुध्रुवीय एशिया' था जिसमें भारत चीन के साथ समानता का दावा कर सके. जयशंकर लिखते हैं कि इसके लिए हमें कई गेंदों को हवा में रखना होगा और भारत उन्हें निपुणता के साथ संभालेगा. यह मौका परस्ती थी लेकिन वह ठीक था क्योंकि अवसरवाद, वे हमें बताते हैं, भारत की संस्कृति में हमेशा से था. इजराइल द्वारा बच्चों की नरसंहार और भुखमरी के खिलाफ मतदान से हमारे परहेज को इस प्रकाश में हमें समझना चाहिए.
जयशंकर कहते हैं कि महाभारत हमें सिखाता है कि छल और अनैतिकता का मतलब यही कि आप 'नियमों के अनुसार नहीं खेल' रहे है. द्रोण का एकलव्य के अंगूठे की मांग करना, इंद्र का कर्ण के कवच का अपहरण, अर्जुन का शिखंडी को मानव ढाल के रूप में उपयोग करना, 'प्रथाओं और परंपराओं' की मिसालें हैं.
अस्थिर और असंगत नीति का होना न सिर्फ सही थी बल्कि जरूरी भी थी क्योंकि 'नीतियों की निरंतरता के बारे में जुनूनी होना' बदलती परिस्थितियों में बहुत मतलब और काम की चीज़ नहीं रह गई थी. तो ऐसे सिद्धांत या डॉक्ट्रिन को क्या कहा जाना था? एक भाषण में जहां उन्होंने पहली बार अवसरवाद और असंगति के इस डॉक्ट्रिन या सिद्धांत को रखा, जयशंकर ने कहा कि इसके लिए कोई एक नाम सोचना कठिन है. वे वाक्यांशों को लेते और छोड़ते हैं — 'मल्टी अलाइनमेंट या बहु-संरेखण' ('बहुत अवसरवादी लगता है') और 'इंडिया फर्स्ट या सबसे पहले भारत' ('स्वकेंद्रित लगता है'). वे 'समृद्धि और रसूख को आगे बढ़ाने' पर ठहरते हैं, जो उनके मुताबिक सटीक है लेकिन मानते हैं कि आकर्षक नहीं है. उनका मानना है कि अगर इसे काफी लंबे समय तक अपनाया जाए तो अंततः इसके लिए कोई नाम आएगा, क्योंकि यह चुनौती का हिस्सा है कि हम अभी भी एक बड़े बदलाव के प्रारंभिक चरण में हैं.
विरोधी कहेंगे कि ये तो कोई वास्तविक विदेश नीति नहीं है. यह पहले से चल रहे काम के ही ऊपर एक लबादा था. मोदी के हिसाब से जो दिलचस्प था, और जो असंगत था और सिर्फ दिखावे और समारोह के लिए बना था, अब उसे कुछ इस तरह पेश किया जा रहा था कि गहरा और अर्थपूर्ण लगे. विरोधी यह भी पूछेंगे कि जयशंकर का सिद्धांत भाजपा की परोसी गई बयानबाजी से अलग क्यों है. नेहरू से लेकर भाजपा तक के राष्ट्रवादी भारत की जिस तरह से सभ्यतागत पहचान की इसमें कोई भूमिका नहीं है. यहां कोई वसुधैव कुटुम्बकम-शैली का रोमांटिकवाद या विश्वगुरु-प्रकार का दिखावा नहीं है, और जयशंकर का नामरहित सिद्धांत सभी प्रकार की नैतिकता और कायदों से मुक्त है. यह भारतीय बहुलवाद की ताकत पर दुनिया के साथ रिश्ते बनाने की कोशिश नहीं है. दुनिया एक लेन-देन की जगह है और भारत को इसका फायदा उठाने में सक्षम होने के लिए पर्याप्त रूप से निपुण होना चाहिए. इस विचारधारा का एक महत्वपूर्ण तत्व यूक्रेन में युद्ध का फायदा उठाना और सस्ता रूसी तेल खरीदना था. ऊर्जा के लिए रूसी गैस पर निर्भर यूरोप शायद ही अन्य राष्ट्रों को रूस से खरीदारी के लिए दबा सकता था. भारत ने चीन के साथ ऐसा किया. यह कितना सस्ता था? अप्रैल–दिसंबर 2022 के लिए आयातित कच्चे तेल की औसत लैंडेड कीमत $99.2 प्रति बैरल थी. यदि रूस से तेल को बाहर रखा जाता, तो औसत कीमत $101.2 होती, यानी $2 प्रति बैरल की बचत. और यह पैसा भारतीय नागरिक के पास वापस नहीं आया जैसा कि हमने ईंधन की कीमतों में देखा है; बल्कि इसने निजी रिफाइनरों को समृद्ध किया.
लगता नहीं है कि जयशंकर को यह अंदाजा था कि उनका यह सिद्धांत दोनों तरफ से काम करता था. ऐसी दुनिया में जैसी उन्होंने भारत के लिए कल्पना की थी, अन्य भी भारत का उसी तरह फायदा उठाने की कोशिश करेंगे, और इसके साथ अवसरवादी फैशन में व्यवहार करेंगे. यह समझाने में मदद कर सकता है कि हमारी वैश्विक आउटरीच को इतनी फीकी प्रतिक्रिया क्यों मिली है. लेन-देन के रिश्ते का चुनाव हमने दुनिया के साथ किया है, जैसा कि हमारे संयुक्त राष्ट्र में वोट से पता चलता है. बड़ी ताकतें इसे समझती और स्वीकार करती हैं और वे बदले में हमारे साथ वैसा ही लेन-देन करेंगी. यह अच्छी, बुरी या अप्रभावी विदेश नीति है या नहीं, पाठक तय कर सकते हैं.
(आकार पटेल पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखक हैं. उन्होंने 2015 से 2019 तक एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक के रूप में काम किया और वर्तमान में (2023 तक) वे एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बोर्ड के अध्यक्ष हैं.)
एक्स रे और रेडियो सिग्नल मिल रहे हैं आकाशगंगा में एक पिंड से
खगोलविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने हमारी मिल्की वे आकाशगंगा में एक रहस्यमयी और अनोखी खगोलीय वस्तु की खोज की है. यह वस्तु शायद एक तारा, तारों की जोड़ी, या कुछ पूरी तरह नया, हर 44 मिनट में रेडियो तरंगों के साथ-साथ एक्स-रे विकिरण भी उत्सर्जित करती है. यह चक्र विशेष रूप से तब दोहराया जाता है जब यह वस्तु अत्यधिक सक्रिय होती है.
यह खगोलीय पिंड धरती से 15,000 प्रकाश वर्ष दूर, तारों, गैस और धूल से भरे मिल्की वे के एक क्षेत्र में स्थित है. ऑस्ट्रेलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और प्रमुख लेखक ज़ितेंग एंडी वांग के अनुसार, यह वस्तु संभवतः एक अत्यधिक चुंबकीय मृत तारा - जैसे न्यूट्रॉन तारा या श्वेत बौना हो सकती है, लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि यह “कुछ पूरी तरह अलग और अज्ञात भी हो सकता है.”
यह खोज नासा के चंद्रा एक्स-रे ऑब्जर्वेटरी ने संयोगवश की, जब वह एक सुपरनोवा के अवशेषों (धमाके से नष्ट तारे के बचे हिस्से) का निरीक्षण कर रहा था. इस वस्तु को ASKAP J1832−091 नाम दिया गया है. यह पहली बार है जब किसी लॉन्ग-पिरियड रेडियो ट्रांज़िएंट (यानि ऐसी वस्तु जो रेडियो संकेतों को मिनटों में दोहराती है) से एक्स-रे विकिरण उत्सर्जन देखा गया है.
वास्तविक दूरी स्पष्ट न होने के कारण वैज्ञानिक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि यह वस्तु सुपरनोवा अवशेषों से जुड़ी हुई है या नहीं. एक प्रकाश वर्ष लगभग 5.8 ट्रिलियन मील होता है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, इस वस्तु की अत्यधिक सक्रियता का चरण लगभग एक महीने तक चला. इस अवधि के बाहर यह कोई एक्स-रे उत्सर्जन नहीं कर रही थी. इससे संकेत मिलता है कि इस तरह की और भी वस्तुएं ब्रह्मांड में छिपी हो सकती हैं. वांग के अनुसार, “हालांकि यह खोज अभी इन रहस्यमयी वस्तुओं की गुत्थी को नहीं सुलझाती. शायद यह उसे और उलझा देती है, लेकिन इसका अध्ययन हमें दो संभावनाओं के करीब लाता है. या तो हम कोई पूरी तरह नई खगोलीय श्रेणी खोज रहे हैं, या फिर हम किसी पहले से ज्ञात वस्तु को एक अभूतपूर्व तरीके से रेडियो और एक्स-रे विकिरण उत्सर्जित करते देख रहे हैं.”
गौरतलब है कि नासा का चंद्रा एक्स-रे ऑब्जर्वेटरी, जिसे 1999 में लॉन्च किया गया था, पृथ्वी की कक्षा से हजारों मील ऊपर घूमता है और ब्रह्मांड की सबसे गर्म और ऊर्जा से भरपूर वस्तुओं का अवलोकन करता है.
चलते-चलते
अपने पिता के एआई अवतार के साथ रहना चाहेंगे?
जब मौत की छाया मंडराने लगी, तो एक बेटे ने अपने पिता को हमेशा के लिए जिंदा रखने का फैसला किया. लेकिन क्या तकनीक वाकई मृत्यु पर विजय दिला सकती है? रविवार को फादर्स डे था और न्यूयॉर्क टाइम्स मैगजीन ने इस पर एक दिलचस्प फ़ीचर लिखा है.
39 वर्षीय मैट के लिए यह एहसास बेहद कष्टकारी था कि उसके पिता पीटर लिस्ट्रो की मौत नजदीक है. सीने में एक अजीब सा दर्द था, जो उस अंतिम अलविदा की याद दिला रहा था. मैट हमेशा सोचता था कि उसकी शादी में पिता की मुस्कान कैसी होगी, वे कैसे दादाजी बनेंगे - व्यंग्यप्रिय लेकिन समझदार और संवेदनशील. इसी दुख को कम करने के लिए मैट ने पिता को एक अनोखे प्रयोग के लिए राजी किया. स्टोरीफाइल नाम की कंपनी के साथ मिलकर वे पीटर की यादों को हमेशा के लिए संजो रहे थे. यह "ग्रीफ टेक" का हिस्सा है - एक ऐसी तकनीक जो मृत व्यक्ति के संदेशों पर आधारित चैटबॉट्स से लेकर वर्चुअल रियलिटी में तैयार किए गए 3डी अवतार तक का विस्तार है. लिस्ट्रो परिवार ने कुछ अलग चुना - पीटर का एक वीडियो अवतार, जिससे वे जूम कॉल की तरह बात कर सकें.
अंतिम साक्षात्कार शूटिंग के दिन पीटर अपने लिविंग रूम की कुर्सी पर बैठे थे. उनके पैर क्रॉस थे और काले-सफेद पोल्का डॉट मोजे दिख रहे थे. कैंसर के इलाज के दौरान अस्पताल में 72 दिन बिताने के बाद उनका वजन 18 पाउंड कम हो गया था. पतली काया में भी वे शालीन लग रहे थे, लेकिन पत्नी जोन और बेटे मैट को वे कमजोर दिखाई दे रहे थे.
जोन ने उनकी बेल्ट ठीक करते हुए कहा, "यह बहुत अच्छी बेल्ट है." पीटर ने मुस्कराते हुए मैट से कहा, "इसे अच्छे से पहनना." मौत पर उसका यह डार्क ह्यूमर सुनकर जोन ने कहा, "मैं इसे मार डालूंगी." पीटर यह काम अपने लिए नहीं, बल्कि मैट और जोन के लिए कर रहे थे. शायद उसकी मौत के बाद यह उन्हें कुछ सांत्वना दे सके.
तकनीक की सीमाएं पहले पीटर को कुछ मानक वाक्य बोलने पड़े - "हैलो", "हाई", "मेरे पास अभी इसका जवाब नहीं है", "मैं भी तुमसे प्यार करता हूं". फिर मैट द्वारा तैयार की गई सूची के सवाल आए - बचपन की पसंदीदा याद क्या है? मैट की शादी के दिन क्या कहेंगे? पहले बच्चे के जन्म पर क्या संदेश होगा?
जब पीटर ने बताया कि बचपन में मैट ने पूछा था कि वह उससे क्यों प्यार करता है, तो वह रो पड़ा. "वह सबसे अच्छा बेटा है," उसने कहा. कुछ सवालों के जवाब के दौरान मैट कमरे से बाहर चला गया - वह उन्हें जिंदगी के सही समय पर सुनना चाहता था. पांच घंटे तक पीटर ने सवालों के जवाब दिए. क्वींस में मामूली परिस्थितियों में पैदा हुए पीटर ने बेबी मॉनिटर्स का व्यवसाय खड़ा किया था. उसने अपनी मानसिक रूप से अक्षम बहन की बात भी की, जिसे अस्पताल में रखना पड़ा था.
भावनात्मक द्वंद्व एक हफ्ते बाद मैट ने अपने ब्रुकलिन के अपार्टमेंट में लैपटॉप खोला. वहां था उसका पिता - वही पोजीशन, वही मोजे, वही बेल्ट. अवतार हल्का सा हिलता था और बात करने का इशारा करता था. "आप अक्सर 'आगे बढ़ते रहो' क्यों कहते हैं?" मैट ने पूछा. "मुझे लगता है कि लोगों का अटक जाना बहुत खतरनाक है," पीटर ने जवाब दिया. "अगर आप बढ़ना चाहते हैं, आगे निकलना चाहते हैं, तो यह जरूरी है." लेकिन जब मैट ने कोई ऐसा सवाल पूछा जो रिकॉर्डिंग में नहीं था, तो मिला रटा-रटाया जवाब - "मेरे पास अभी इसका जवाब नहीं है." यह सुनकर मैट को झटका लगा. उसे एहसास हुआ कि पिता की मौत के बाद वह कभी भी कोई नया सवाल नहीं पूछ सकेगा.
सच्चाई का सामना मैट को लगता था कि वह पिता को पानी का गिलास देना चाहता है, जब वे प्यासे दिखलाई देते थे. जब पिता रोते थे, तो वह सांत्वना देना चाहता था. "रोते हुए देखना बहुत कष्टकारी था," मैट ने बताया. "यह याद दिलाता था कि यह एक इंसान है जिनसे मैं प्यार करता हूं और जिन्हें मैं सांत्वना देना चाहता हूं. लेकिन आप एक वीडियो क्लिप को सांत्वना नहीं दे सकते." मैट ने लैपटॉप बंद किया, इस बात से खुश कि अगले दिन वह अपने पिता से असल में मिल सकेगा.
पाठकों से अपील :
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इन दिनों सुबह की शुरुआत हरकारा से होती हैं। शोर से दूर, रोशनी के करीब। लंबे समय बाद हिन्दी पत्रकारिता चलताऊ भाषा और विमर्श से दूर स्तरीय नज़र आ रही हैं।