17 दिसंबर 2024 : सच पर सरकारी लीपापोती का डैशबोर्ड, चुनाव विधेयक टला, अडानी-आंध्र करार पर सवाल, बंगाल में होती आलू तस्करी, धीमी पड़ती मोबाइल इंटरनेट की ग्रोथ, वंदे भारत बनेगी रूस में, ज़ाकिर हुसैन..
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां : रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने नया भंडाफोड़ सरकार के उस ‘वॉर रूम’ के बारे में किया है, जिसका काम दुनिया भर की उन रिपोर्ट्स को धता बताना और उन पर लीपा पोती करना है, जहाँ भारत को लेकर खराब रेटिंग या नकारात्मक टिप्पणियां की जाती है. श्रीगिरीश जलिहाल ने उन सरकारी दस्तावेजों की पड़ताल की है, जिनके मुताबिक लोकतंत्र, भूख, शिक्षा, प्रेस की आजादी औऱ दूसरे जरूरी पहलुओं के 30 सूचकांकों पर भारत की गिरती साख को लेकर नैरेटिव बनाने और बदलने की कोशिश का पता चलता है. 19 मंत्रालयों और विभागों को बाकायदा एक डैशबोर्ड बनाकर दिया गया है, जिससे वह इन सूचकांकों पर नज़र रख सकते हैं. सरकार ने इसके लिए उस फर्म से मदद ली है, जिस पर फेसबुक ने कार्रवाई की थी. कार्रवाई इसलिए की गई थी क्योंकि यह फर्म सार्वजनिक विमर्श भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में करने की कोशिश कर रही थी और इसने विदेशों में स्थित भारत के कूटनीतिक दफ्तरों का इस्तेमाल इन सूचकांकों के लेखकों को भारत के पक्ष में करने का प्रयास भी किया था. ‘मिनिस्ट्री ऑफ ट्रुथ’ नाम की इस सीरीज का अभी पहला हिस्सा आया है.
इस बीच केबिनेट की मंजूरी के बावजूद भाजपा सरकार ने "एक राष्ट्र एक चुनाव" से संबंधित दो महत्वपूर्ण विधेयकों को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालने का निर्णय लिया है. संविधान संशोधन (129वां) विधेयक 2024 और केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) कानून विधेयक 2024 को सोमवार को लोकसभा में पेश किया जाना था, लेकिन इन दोनों विधेयकों को पुनरीक्षित कार्यसूची से हटा दिया गया. बहरहाल, इस फैसले से सरकार की गंभीरता और व्यावहारिकता का पता चलता है. आलोचकों का मानना है कि भाजपा का ध्यान दिखावे पर है और वास्तविक सुधार से कोई संबंध नहीं है. "एक राष्ट्र एक चुनाव" से संघीय व्यवस्था कमजोर होगी और सत्ता के केंद्रीयकरण को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने पीटीआई के हवाले से खबर दी है कि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मंगलवार (17 दिसंबर) को ये दोनों विधेयक लोकसभा में पेश कर सकते हैं. इसके साथ ही वह स्पीकर से इन दोनों विधेयकों को विमर्श के लिए जेपीसी को सौंपने का आग्रह करेंगे.
संविधान पर कांग्रेस भाजपा में बहस : संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा सोमवार को राज्यसभा में भी शुरू हो गई. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसकी शुरूआत की और कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि एक परिवार की मदद करने के लिए संविधान में बेशर्मी के साथ संशोधन किए गए. उन्होंने कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए नहीं, अपितु सत्ता में बैठे लोगों की रक्षा करने के लिए संविधान संशोधन करने का जिम्मेदार ठहराया. इसके जवाब में विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी पर निशाना साधा. कहा कि मोदी ने जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करने के लिए मुख्यमंत्रियों को लिखे उनके पत्र के बारे में तथ्यों को तोड़मरोड़ के पेश किया है. इसके लिए मोदी को माफी मांगनी चाहिए. खड़गे ने कहा, “मोदी अतीत में जीते हैं, वर्तमान में नहीं. बेहतर होता कि वह लोकतंत्र को मजबूत करने वाली मौजूदा उपलब्धियों को गिनाते. पीएम मोदी को एक नंबर का झूठा बताते हुए खड़गे ने कहा, “ कहा गया था कि 15 लाख आएंगे, लेकिन कुछ नहीं आया. ये लोग झूठ बोलकर देश को गुमराह और जनता को धोखा दे रहे हैं. प्रधानमंत्री को बताना चाहिए था कि उन्होंने बीते 11 वर्षों में संविधान की मजबूती के लिए क्या किया है.” उन्होंने मोदी का नाम लिये बगैर कहा कि “धर्म में भक्ति आत्मा के उद्धार का मार्ग हो सकती है, लेकिन राजनीति में नायक पूजा अवनति और अंततः तानाशाही का मार्ग होती है और वह तानाशाह बनने के लिए तैयार हैं.” बता दें, राज्यसभा में संविधान पर मंगलवार को भी चर्चा होगी. इसके पहले दो दिन शुक्रवार और शनिवार को लोकसभा में चर्चा हुई थी.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल अगले कुछ हफ्तों में बतौर भारत के विशेष प्रतिनिधि चीन का दौरा करने वाले हैं. पीटीआई के मुताबिक इस दौरे में भारत चीन सीमा के सवाल पर चर्चा की जाएगी. दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच मुलाकातों का ये 23वां राउंड होगा, जबकि पिछली मुलाकात पाँच साल पहले हुई थी. हाल ही में ब्रिक्स बैठक में चीन के राष्ट्रपति जी जिनपिंग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बैठक में इस सिलसिले को फिर से शुरू करने का फैसला किया गया था.
अडानी के आंध्र प्रदेश सोलर डील पर सात सवाल
'स्क्रॉल' के लिए एम. राजशेखर की रिपोर्ट है कि अडानी ग्रुप की आंध्र प्रदेश में 7 गीगावाट सोलर प्रोजेक्ट की डील को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. इस डील पर न केवल वाईएसआर कांग्रेस सरकार (जगन मोहन रेड्डी सरकार) बल्कि सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) और ऊर्जा मंत्रालय की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. राजशेखर ने ऐसे ही सात सवालों की सूची तैयार की है. बाकी के चार और महत्वपूर्ण सवालों के लिए 'स्क्रॉल' के मूल लेख का रुख कर सकते हैं, यहां सिर्फ तीन सवालों के नमूने और उनसे जुड़े तथ्य देखिए -
सवाल नंबर 1. एसईसीआई ने सोलर उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग को साथ में क्यों जोड़ा? यह डील सोलर पैनल मैन्युफैक्चरिंग और बिजली उत्पादन को एक साथ जोड़ती है. इसके तहत जो कंपनी सोलर पैनल बनाएगी, उसे उसकी उत्पादन क्षमता के 4 गुना तक सोलर पावर बेचने की अनुमति दी जाएगी.
तथ्य: अडानी को 2 गीगावाट पैनल बनाने पर 8 गीगावाट सोलर पावर बेचने का अधिकार मिला. यह डील ₹ 2.92 प्रति यूनिट के हिसाब से हुई, जो इससे पहले की निविदाओं से महंगी थी. नवंबर 2019 की इस निविदा में सिर्फ तीन कंपनियों ने भाग लिया. अडानी ग्रीन, अज़्योर पावर और नव युग ग्रुप. सवाल यह है कि एसईसीआई ने उत्पादन और बिजली को जोड़ने की रणनीति क्यों अपनाई, जबकि इससे पहले की दो निविदाएं महंगी दरों की वजह से रद्द हो चुकी थीं?
सवाल नंबर 2. साल 2019 में ₹2.92 प्रति यूनिट की दर तय होने के बाद भी डिस्कॉम्स ने इस दर पर बिजली खरीदने से इनकार कर दिया. निविदा रद्द क्यों नहीं की गई जब डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों (डिस्कॉम्स) ने दिलचस्पी नहीं दिखाई?
तथ्य: एसईसीआई ने जून 2020 में अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, लेकिन एक साल तक बिजली खरीद अनुबंध (PSA) पर हस्ताक्षर नहीं हो सके. इसके बावजूद एसईसीआई ने निविदा रद्द नहीं की. सवाल उठता है कि क्या एसईसीआई ने राजनीतिक दबाव में यह निविदा रद्द नहीं की?
सवाल नंबर 3. इस प्रोजेक्ट को विशेष छूट क्यों दी गई? सोलर प्रोजेक्ट के तहत आमतौर पर इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन चार्ज (ISTS) माफ किया जाता है, लेकिन इस प्रोजेक्ट को यह छूट 2025 तक दी गई, जबकि अन्य प्रोजेक्ट्स को 2022 तक की ही छूट थी.
तथ्य: ISTS छूट के कारण आंध्र प्रदेश को ₹1.99 से ₹2 प्रति यूनिट की बचत होनी थी. नवंबर 2021 में, ISTS छूट को बढ़ाकर निजी बिक्री के लिए भी लागू कर दिया गया. यह छूट केवल इस प्रोजेक्ट को क्यों दी गई? क्या एसईसीआई ने अपने अधिकारों से बाहर जाकर यह छूट दी?
पश्चिम बंगाल में आलू की तस्करी: राज्य के जिलों में पुलिस के लिए इन दिनों सबसे बड़ी चुनौती है, उन सैकड़ों छोटे ग्रामीण रास्तों और पगडंडियों की निगरानी रखना, जो तस्कर अपनी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. इन रास्तों में से कई घने जंगलों से होकर गुजरते हैं, जो स्थानीय भौगोलिक स्थिति की वजह से तस्करी को आसान बनाते हैं. 'द टेलिग्राफ' की एक रिपोर्ट है कि आलू की तस्करी में अचानक से ये बढोतरी ममता के फैसले के बाद होने लगी है. असल में यह कहते हुए कि राज्य में आलू की सीमित आपूर्ति है, ममता बनर्जी सरकार ने 28 नवंबर से बंगाल के बाहर आलू की बिक्री पर रोक लगा दी थी. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा था कि आलू की बिक्री केवल राज्य की अपनी मांग पूरी होने के बाद ही अन्य राज्यों को की जाएगी. इस मसले पर अब राज्य के कृषि विपणन मंत्री बचेराम मन्ना ने कहा, 'पुलिस ने बंगाल को झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों से जोड़ने वाले सभी संभावित लिंक रोड्स पर निगरानी बढ़ा दी है, ताकि आलू की तस्करी को रोका जा सके.' तस्करी का खुलासा तब हुआ जब पुलिस ने झारग्राम और बिरभूम के अंतरराज्यीय बॉर्डर से लगभग 3,000 क्विंटल आलू और जाली चालान (रसीदें) जब्त किए. 11 लोग, जिनमें ज्यादातर पश्चिम मिदनापुर के निवासी थे, गिरफ्तार भी किए गए.
आएगी रूस से, नाम रहेगा वंदे भारत ! ' इंडियन एक्सप्रेस' के लिए धीरज मिश्रा की रिपोर्ट है कि भारत की वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण को रूस का अनुभव मिलने जा रहा है. रूस के ज़ार-युग के कारखानों में अब भारत की आधुनिक ट्रेनो का निर्माण होगा. रिपोर्ट के अनुसार, रूस की ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री के अनुभव का उपयोग भारत की वंदे भारत ट्रेनों के नए लॉन्ग-डिस्टेंस ओवरनाइट स्लीपर ट्रेन संस्करण के निर्माण में किया जा सकता है. रूस के एक प्रमुख रेल कारखाने ने 2,000 करोड़ रुपये की लागत वाली वंदे भारत ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए भारत के साथ साझेदारी करने की संभावना जताई है. रूस ने 1950 के दशक में भारत को पहली बार मेट्रो ट्रेन तकनीक दी थी और यह सहयोग अब नई ऊंचाई छू सकता है. लेख में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि भारत और रूस के बीच तकनीकी ट्रांसफर और इनोवेशन साझेदारी से वंदे भारत ट्रेन प्रोजेक्ट को और तेज़ी मिलेगी. सोवियत-युग के कारखाने, जो कभी ट्रॉम और लोकल ट्रेनों के लिए जाने जाते थे, अब भारत के लिए अति-आधुनिक रेलगाड़ियों के निर्माण की योजना बना रहे हैं. लेख में बताया है कि कैसे सोवियत संघ की आर्थिक और औद्योगिक संरचना ने ट्रेन निर्माण में विशेषज्ञता विकसित की, जो आज भी रूस के कारखानों में दिखाई देती है. यह भारतीय रेलवे के लिए फायदेमंद हो सकता है.
फर्जी दस्तावेजों से ली स्कॉलरशिप: हाल ही में एक भारतीय छात्र ने अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए नकली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया है. अब दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा करने और बाद में रेडिट पर इसके बारे में डींगें हांकने के विवाद से परेशान होकर विश्वविद्यालय ने परिसर में अन्य अंतरराष्ट्रीय छात्रों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों की जांच शुरू कर दी है. 'द इंडियन एक्सप्रेस' के लिए रितिका चोपड़ा की खबर है कि स्नातक प्रवेश के लिए शैक्षणिक प्रतिलेखों का सत्यापन वापस से शुरू किया गया है. फरवरी में, 19 वर्षीय भारतीय छात्र आर्यन आनंद ने रेडिट पर यह दावा करते हुए चर्चा पाई थी कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर पेंसिल्वेनिया के बेथलहम स्थित लीहाई यूनिवर्सिटी में फुल स्कॉलरशिप हासिल की है. दस्तावेज़ों में फर्जी मार्कशीट और यहां तक कि पिता के निधन का फर्जी प्रमाण पत्र भी शामिल था. इस घटना ने न केवल यूनिवर्सिटी प्रशासन बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा समुदाय को झकझोर कर रख दिया. लीहाई यूनिवर्सिटी की डिप्टी प्रोवोस्ट फॉर ग्रेजुएट एजुकेशन, डॉ. सबरीना जेडलिका ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यह घटना यूनिवर्सिटी के लिए 'तबाही' जैसी थी. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी अब अपने आवेदन और सत्यापन प्रक्रिया की समीक्षा कर रही है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके.
इलैया राजा को मंदिर में नहीं मिला प्रवेश : भारतीय संगीत के महानतम संगीतकारों में से एक इलैया राजा को एक मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया . इलैयाराजा, जो स्वयं विष्णुभक्त और अंडाल देवी के अनन्य अनुयायी हैं, मंदिर दर्शन के लिए पहुंचे थे. अब वह आंध्र प्रदेश के श्रीविल्लिपुथुर अंडाल मंदिर में प्रवेश को लेकर विवादों में घिर गए. मंदिर प्रशासन ने उनके मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश पर रोक लगाई, जिसके बाद यह मामला चर्चा का केंद्र बन गया. मंदिर के प्रमुख पुजारियों में से एक सदगोपा रामानुज जियर स्वामीगल ने बयान जारी कर कहा कि मंदिर ने इलैयाराजा का अनादर नहीं किया है. उन्होंने कहा कि गर्भगृह में प्रवेश के लिए 'विशिष्ट प्रोटोकॉल' का पालन करना अनिवार्य है, जिसे किसी के लिए भी तोड़ा नहीं जा सकता. इधर इलैयाराजा के चाहने वालों का मानना है कि इस तरह के प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ अधिक सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए था. इलैयाराजा ने कई बार अंडाल देवी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है और उनके भक्ति संगीत में इस भावना को स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है.
बालिग बेटी को जीने का हक़: पिता की शिकायत के बाद 20 साल की हिंदू बेटी को पुलिस ने उसके पति से अलग करके नारी निकेतन में भेज दिया था. उसने 19 साल के मुस्लिम युवक से शादी कर ली थी. पिता ने बेटी की कस्टडी (अभिरक्षा) की मांग की थी. पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने बेटी को अपने मन से जिंदगी जीने की आजादी देने का हुक्म सुनाया. जस्टिस भारती डांगरे औऱ जस्टिस मंजूषा देशपांडे ने अपने आदेश में कहा, ‘हम उसे सिर्फ आजादी दे सकते हैं. वह जो चाहे कर सकती है.’ इस युवती को पिता की पुलिस की शिकायत के बाद बजरंग दल सदस्यों की प्रताड़ना का सामना भी करना पड़ा था.
हसीना की भूमिका की जाँच होगी: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक आयोग बिठाकर देश में गायब करवाये हुए लोगों की जांच करने का काम सौंपा है. पाँच सदस्यीय समिति ने इसमे पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का हाथ होने की बात कही है. अपने 16 साल के कार्यकाल में ऐसे बहुत से मामले हुए. बांग्लादेश में लोगों को गायब करवाने की 1676 शिकायते हैं और उनमें से 758 की जांच हुई है. ऐसा अनुमान है की बांग्लादेश में जबरन गायब हुए लोगों की संख्या 3500 से आगे निकल जाएगी.
किताब : आंबेडकर के भाषणों से अपने लिए लाभकारी उद्धरण चुनते हैं दक्षिणपंथी
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की सबसे प्रतिष्ठित छवि उन्हें संविधान की एक प्रति पकड़े हुए दर्शाती है. हम जानते हैं कि ऐसा क्यों है. लेकिन 1953 में राज्यसभा में एक बहस के दौरान जब किसी ने टिप्पणी की कि वह संविधान के वास्तुकार हैं तो बाबासाहेब फट पड़े थे, “मैं तो एक ‘वेतनभोगी’ था. जो मुझसे करने के लिए कहा गया, मैंने अपनी इच्छा के विपरीत किया... सर, मेरे दोस्त मुझे बताते हैं कि मैंने संविधान बनाया है. लेकिन मैं यह कहने के लिए तैयार हूं कि मैं इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति बनूंगा. मैं इसको नहीं चाहता हूं.” क्या यह एक तरह का आवेग था, एक विसंगति थी? कतई नहीं. उन्होंने अपनी मृत्यु से कुछ महीने पहले 1956 में फिर से यही कहा. सवाल इस बात का है कि जिस व्यक्ति को भारत के संविधान का जनक माना जाता है, वह इसे सार्वजनिक रूप से अस्वीकार करने के लिए क्यों इतना विवश महसूस कर रहा था? और यदि आंबेडकर केवल एक "वेतनभोगी" थे, तो संविधान के असली निर्माता कौन थे? आनंद तेलतुंबडे, जो आंबेडकर और दलित आंदोलन पर एक प्रमुख विशेषज्ञ हैं, "आइकोनोक्लास्ट" नामक "प्रतिबिंबात्मक जीवनी" में कई ऐसे असहज प्रश्न उठाते हैं. पत्रकार जी. संपत ने ‘द हिंदू’ में तेलतुंबडे की पुस्तक की समीक्षा की है. संपथ के अनुसार तेलतुंबडे की दिलचस्पी नए तथ्यों को प्रस्तुत करने का दिखावा करने में नहीं है. बल्कि उनका उद्देश्य आंबेडकर के जीवन की कहानी को "विवेक की चलनी" से छानना है, ताकि लोग "भक्ति के नशे" से जागरूक हो सकें. वास्तव में आंबेडकर के इर्द गिर्द पंथवाद का विस्फोट ही लेखक की “टिप्पणियों, सवालों और विमर्श" की प्रेरक शक्ति है, जो इस जीवनी के प्रतिबिंबित आयाम का निर्माण करता है. आंबेडकर की छवि का सबसे बड़ा घटक संविधान के निर्माता के रूप में उनकी मिथकीय भूमिका है. तेलतुंबडे इस विषय पर बहुत कुछ कहते हैं कि आंबेडकर ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष कैसे बने. यह गांधी और कांग्रेस के कारण था, जो उनके कई तीखे हमलों का सामना करने वाले दो विरोधी थे. “सिर्फ गांधी ही थे जो आंबेडकर के रणनीतिक महत्व को समझ सके... भविष्य के संवैधानिक राज्य की दीर्घकालिकता सुनिश्चित करने के लिए यदि बहुत सारे लोग, खासकर वे जो संविधान के संभावित शिकार होते, संविधान का विशेषतौर पर समर्थन करते हैं तो इसका बीमा हो जाएगा... यदि आंबेडकर, जो पहले से ही दलितों के लिए एक अवतार थे, को संविधान का निर्माता बताया जाता है, तो दलित और संभावित रूप से संपूर्ण निम्न वर्ग इसका भावनात्मक रूप से बचाव करेगा. यह आश्चर्यजनक नहीं है कि आंबेडकर को ड्राफ्टिंग समिति के अध्यक्ष के रूप में बहुत आजादी नहीं मिली. तेलतुंबडे इतिहासकार ग्रैनविल ऑस्टिन के काम का हवाला देते हैं ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि ड्राफ्टिंग समिति कभी स्वतंत्र एजेंसी नहीं थी और संविधान में शामिल होने वाले हर शब्द को उस कांग्रेस द्वारा नियंत्रित किया गया, जिसका नेतृत्व नेहरू, राजेंद्र प्रसाद और मौलाना आजाद जैसा “अभिजात्य वर्ग” करता था.” यह एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि टिप्पणीकार विशेष रूप से दक्षिणपंथी, धर्मनिरपेक्षता जैसे विषयों के लिए संविधान सभा में दिए गए आंबेडकर के भाषणों से अपने लिए लाभकारी उद्धरण चुनते हैं. तेलतुंबडे के अनुसार संविधान सभा की बहसों में आंबेडकर अपनी व्यक्तिगत राय व्यक्त नहीं कर रहे थे, बल्कि कांग्रेस-नियंत्रित मसौदा संशोधनों के पक्ष में 'वकील' की भूमिका निभा रहे थे, जो यह बताता है कि क्यों उन्होंने खुद के लिए “वेतनभोगी” जैसी टिप्पणी की थी.
तेलतुंबडे इस बात पर अफसोस करते हैं कि आज के आंबेडकरवादियों का पहचानावादी विरोध "ब्राह्मणवादी कट्टरपंथियों से नहीं... बल्कि मार्क्सवादियों और कम्युनिस्टों" के खिलाफ है. वह आश्चर्यचकित होते हैं कि आंबेडकर की हिंदुत्व की राजनीति की नैतिक बीमारियों की चेतावनियों के बावजूद तथाकथित आंबेडकरवादी “संघ परिवार” में भी हैं. इस पर उनका तर्क क्या है? “उन्होंने व्यावहारिक आंबेडकर को अपनाया, जिन्होंने दलितों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस से अपने जीवन भर के विरोध को छोड़ दिया.” आंबेडकर की विरासत का निष्पक्ष मूल्यांकन कैसा होगा? निश्चित रूप से खुद आंबेडकर के सिवा कोई मूल्यांकन कठोर नहीं हो सकता, क्योंकि उनका मानना था कि वह राजनीतिक भविष्य (पृथक मतदाता) और दलितों के लिए सामाजिक गारंटियां सुरक्षित करने का लक्ष्य हासिल करने में विफल रहे. हालांकि, तेलतुंबडे की नजर में यह उनका मूर्तिकरण (आइकोनाइजेशन) है, जो उनकी विरासत का सबसे समस्याग्रस्त तत्व है. क्योंकि इसने न केवल उन्हें “कट्टर” बना दिया है, बल्कि सभी राजनीतिक दलों द्वारा आंबेडकर आइकॉन को छद्म के रूप में इस्तेमाल किए जाने से दलितों के प्रतिस्पर्धी प्रलोभन को भी बढ़ावा मिला है...इतना ही नहीं यह दलित जनता को एक पहचानवादी दलदल में भटका रहा है.” ऐसे राजनीतिक परिदृश्य में आंबेडकर के जीवन से प्रेरित एक कट्टरपंथी व्यवहार (‘आंबेडकरवाद’ के विपरीत) दरअसल मूर्तिकरण को तोड़कर मांस और रक्त के आंबेडकर, जंजीरों को तोड़ने वाले, परंपराओं का उपहास करने वाले, मूर्तिभंजक के साथ जुड़ने की मांग करता है. ऐसे बौद्धिक और राजनीतिक प्रोजेक्ट में रुचि रखने वालों के लिए यह पुस्तक एक अमूल्य संसाधन है.
युद्ध के चलते वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर हुए डॉक्टर और नर्स : म्यांमार में जारी संघर्ष ने न केवल लोगों के घर और सपनों को तहस-नहस किया है, बल्कि उन्हें ऐसी परिस्थितियों में डाल दिया है, जहां उनके पास अपनी गरिमा और पेशेवर पहचान के बावजूद जीविका चलाने के सीमित साधन बचे हैं. 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट है कि डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी, अब जीवित रहने के लिए ऐसे पेशों की ओर मजबूर हो रहे हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. वो अब गुजर-बसर के लिए वेश्यावृति में उतर रहे हैं. इस मानवीय संकट का मुख्य कारण सैन्य शासन और उसके खिलाफ चल रहे नागरिक संघर्ष हैं. अस्पताल और क्लीनिक युद्ध के मैदानों में तब्दील हो चुके हैं. दवाओं की भारी कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता, और अस्थिरता ने पेशेवरों को उनके काम से वंचित कर दिया है. ऐसे में जब घर चलाने और परिवार को बचाने का सवाल आता है, तो लोग मजबूरी में वेश्यावृति का रास्ता अपना रहे हैं.
पेड़ पर चढ़े फैन्स, दोसांझ ने बदला प्रोग्राम : दिलजीत दोसांझ ने अपने दिल-लुमिनाती टूर के तहत चंडीगढ़ में म्यूजिक कॉन्सर्ट किया और इसकी तस्वीरें तथा वीडियो इपने इंस्टाग्राम पर साझा किए. दिलजीत की फिल्म ‘चमकीला’ के निर्देशक इम्तियाज अली ने भी कुछ क्लिप्स साझा की है. इनमें स्टेडियम के बाहर बड़ी संख्या में लोग दिलजीत के गाने का आनंद लेते दिख रहे हैं. उनकी एक झलक के लिए प्रशंसक पेड़ों पर भी चढ़े दिख रहे हैं. कॉन्सर्ट के दौरान कॉन्सर्ट के लिए भारत के खराब बुनियादी ढांचे को इंगित करते हुए कहा कि ये जब तक बेहतर नहीं होता, तब तक वह देश में परफॉर्म नहीं करेंगे.
हेल्दी नहीं हैं रेडी-टू-ईट स्नैक्स : शोध : रेडी टू इट स्नैक्स इन दिनों काफी पॉपुलर हो गया है. और एक बड़ी आबादी ने इसे नियमित खान-पान में शामिल कर लिया है. मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन की शोध की मानें तो पांच में से चार रेडी-टू-ईट स्नैक्स अपने लेबल पर दिए गए न्यूट्रीशन के दावे को पूरा करने के बावजूद हेल्दी नहीं हैं. इसकी वजह है कि इनमें कार्बोहाइड्रेट और फैट की मात्रा अधिक होती है, जबकि उस अनुपात में प्रोटीन कम. एक और शोध में पाया गया कि शाकाहारी मांसाहारियों के मुकाबले अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड ज्यादा खाते हैं. शाकाहारियों के भोजन में अक्सर संतृप्त वसा, नमक और चीनी और एडिटिव्स का स्तर ज्यादा होता है. इससे पौष्टिक आहार के लिए कम जगह बचती है. नतीजा वह अधिक मोटे हो सकते हैं.
मोबाइल इंटरनेट की बढ़ोतरी अब पहले जैसी नहीं
दुनियाभर में मोबाइल इंटरनेट से जुड़ने वाले लोगों की संख्या में पिछले कुछ सालों पहले भारी इजाफा हुआ, लेकिन अब ये गति अपनी ढलान पर है. 2012 में फेसबुक के सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग ने कहा था कि जैसे-जैसे फोन, स्मार्टफोन बनते जाएंगे, यह एक बड़ी संभावना पैदा करेगा. यह भविष्यवाणी सटीक साबित हुई, लेकिन इसकी भी एक सीमा थी. ‘स्क्रॉल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशंस एसोसिएशन (GSMA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में 4.6 अरब लोग अब मोबाइल इंटरनेट से जुड़े हैं, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग 57% है. 2015 से 2021 तक हर साल तकरीबन 20 करोड़ लोग मोबाइल इंटरनेट से जुड़ रहे थे, जबकि पिछले दो वर्षों में यह संख्या घटकर 16 करोड़ प्रति वर्ष हो गई है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और मेक्सिको जैसे देशों में मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या स्थिर हो रही है. इसका कारण है कि ये देश अब उन उपयोगकर्ताओं तक पहुंच चुके हैं, जो आसानी से जुड़ सकते थे. शेष जनसंख्या तक पहुंचने में लागत सबसे बड़ी बाधा है. मोबाइल इंटरनेट अपनाने में रुकावट का मुख्य कारण डेटा की उच्च कीमत है. मसलन अफ्रीका में ही डेटा की कीमत अमेरिका की तुलना में दोगुनी है. चीन, अमेरिका और सिंगापुर में मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का प्रतिशत क्रमशः 80%, 81%, और 93% है. हालांकि, भारत में रिलायंस जियो के 2016 के मुफ्त डेटा प्लान ने मोबाइल इंटरनेट को सस्ता और सुलभ बनाया. साल 2016 में रिलायंस जियो ने 4GB प्रतिदिन मुफ्त डेटा की पेशकश की, जिससे मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ता 58% तक बढ़ गए. हालांकि, अब भारत में भी मोबाइल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की वृद्धि दर धीमी हो गई है. अक्टूबर 2024 तक, भारत की 46% जनसंख्या भी मोबाइल इंटरनेट से जुड़ी नहीं थी. ऐसे ही चीन में 28 करोड़ लोग अभी भी मोबाइल इंटरनेट से वंचित हैं.
विष्णु नागर का सत्यहिंदी में प्रकाशित व्यंग्य : मैं क्या क्या हूँ..
“मैं वह रुपया हूं, जो डालर के सामने रोज लुढ़क जाता है और मैं ही हूं,जो कहता है भारत 2047 में विकसित बन जाएगा. मैं ही वह छद्म शंकराचार्य हूं,जिसने कहा कि प्रयागराज के कुंभ मेले में दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का नाम मिटा दिया जाएगा और मैं ही हूं,जिसने कहा कि सकल ब्रह्मांड में मेरे दो ही मित्र हैं, भगवान श्रीकृष्ण और नरेन्द्र मोदी. मैं ही 'बंटेंगे तो कटेंगे ' हूं और मैं ही 'एक हैं तो सेफ हैं', हूं. मैंने प्रतिज्ञा ली है,जब तक मैं हूं किसी गरीब, किसी दलित, किसी अल्पसंख्यक को 'सेफ ' नहीं रहने दूंगा।और बताए देता हूं मेरी नज़र इतनी तेज है कि मेरी ईडी ने उस छोटे कारोबारी को भी धर दबोचा, जो विचार से कांग्रेसी था और उसके बच्चों ने राहुल गांधी को भारत यात्रा के दौरान अपनी गुल्लक भेंट की थी. ईडी ने उसकी हालत यह कर दी कि बाद में उसे और उसकी पत्नी को आत्महत्या करनी पड़ी. मुझसे सावधान रहना।कल विपक्ष के उम्मीदवारों को वोट देनेवाले भी बच न पाएं तो दोष मुझे मत देना!”
किताब : यूपी में 1967 के बाद से कांग्रेस ने कोई सबक नहीं सीखा!
‘सत्य हिंदी’ के लिए सुदीप ठाकुर ने श्याम लाल यादव की किताब 'एट द हार्ट ऑफ पावर: द चीफ मिनिस्टर्स ऑफ उत्तर प्रदेश' की समीक्षा करते हुए लिखा- 'यह किताब 1980-90 के दशक के बाद से आज तक यूपी की सियासत के तीन अहम दौर, कांग्रेस; सपा तथा बसपा; और फिर भाजपा के उभार वाले दौर पर नई रोशनी डालती है, जिससे देश की सियासत को समझने में मदद मिलती है.' किताब में जिक्र है कि कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपनी कमजोरियों और गलतियों से सबक नहीं लिया, जिसके चलते उसे लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहना पड़ा है.
आलोचना से बेपरवाह जाकिर हुसैन ने विश्व और भारतीय संगीत का मिटाया फर्क
‘ज़ाकिर हुसैन : ए लाइफ इन म्यूज़िक, इन कन्वर्सेशन विद नसरीन मुन्नी कबीर’ पुस्तक हार्पर कॉलिन्स से छपी हे. इसका एक अंश स्क्रॉल ने छापा है. इसमें उस्ताद जाकिर हुसैन साहब ने वाद्य कला के विभिन्न विषयों पर बात की है. साथ में रोचक प्रसंग भी हैं. सुनिए उस्ताद क्या कहते हैं.
ज़ाकिर हुसैन हुसैन ने नसरीन को बताया, ‘पारंपरिक संगीत की दुनिया में अपने वाद्ययंत्र के साथ आत्मीय रिश्ता बनाना होता है और इसके लिए समय चाहिए. वाद्ययंत्र की आत्मा को आपके साथ प्रतिक्रिया देनी होती है. फिर चीजें होती हैं.’
वह कहते हैं- ‘मैं तबले में क्या लेकर आता हूं? मुझे लगता है कि खुलापन और स्पष्टता. यही हम दर्शकों के सामने लाते हैं. मैं जो प्रस्तुत करता हूं, वह समझ में आना चाहिए. वाद्ययंत्र और संगीतकार के बीच दिल से दिल की बातचीत हो, या विचार प्रक्रिया में शून्य हिचकिचाहट हो, या मापदंडों के बारे में चिंता न करना हो, आपका संगीत कथन जितना मुमकिन हो सके साफगोई के साथ बनाया जाना चाहिए.
उस्ताद ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- ‘मुझे एक प्यारी घटना याद आती है. किशन महाराजजी मंच पर जाने वाले थे, तभी किसी ने कहा- ‘महाराजजी, शानदार संगीत कार्यक्रम हो.’ उन्होंने जवाब दिया- ‘देखेंगे भैया, आज तबला क्या कहता है.’
आपको वाद्ययंत्र के साथ एक रिश्ता बनाने की ज़रूरत है, क्योंकि आप चाहते हैं कि वह आपकी आज्ञा का पालन करे. उसे आपको स्वीकार करना होगा. आपको दिखाना होगा कि वह आपके साथ विश्वास की छलांग लगाने के लिए तैयार है.
हुसैन इसे स्पष्ट करते हैं- ‘उदाहरण के लिए, मुझे तबले की त्वचा में एक निश्चित मात्रा में लचीलापन चाहिए. ताकि यह एक निश्चित तरीके से प्रतिक्रिया और प्रतिध्वनि करे. स्वर में ब्रॉस, ट्रेबल और मिड-रेंज की एक निश्चित मात्रा होनी चाहिए. मेरे हाथ का दबाव किसी और के हाथ के दबाव से अलग है, इसलिए यह त्वचा की मोटाई को प्रभावित करता है.
नसरीन ने जब उस्ताद से कहा- 1970 के दशक के मध्य में आप शक्ति से जुड़े थे.
तो जाकिर हुसैन ने कहा- ‘शक्ति का प्रभाव बहुत बड़ा था और उसने निश्चित रूप से विश्व संगीत की आवाज को आगे बढ़ाने में मदद की. इसमें न केवल पूर्व और पश्चिम के संगीत प्रभाव थे, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत के भी संगीत प्रभाव थे. मुझे एल्बम ‘ए हैंडफुल ऑफ ब्यूटी’ (1976) याद है. इसका शीर्षक संगीत का बहुत सटीक वर्णन करता है. शक्ति एक वास्तविक मील का पत्थर है. और मेरे लिए निजी तौर पर अहम. इसकी वजह यह है कि इसने विश्व संगीत की अवधारणा के द्वार खोले. यह दोगुना मधुर था, क्योंकि शक्ति की नींव प्लेनेट ड्रम के साथ ही रखी गई थी.’
उस्ताद ने कहा- ‘शक्ति संगीत की दुनिया में अद्वितीय और बेमिसाल है. यह शायद अपनी तरह का पहला समूह था, जिसने बिना किसी सीमा के भारतीय संगीत और जैज में समान और मुख्य विशेषता का पता लगाया- और वह है इम्प्रोवाइजेशन. पहले भी ऐसे प्रयास हुए थे, जिसमें दोनों प्रणालियों को मिलाया गया था, लेकिन जहां तक मुझे पता है- 1975 में रिलीज अली अकबर खानसाहब, जॉन हैंडी और मेरे द्वारा बनाया गया एलपी करुणा सुप्रीम के अलावा सभी प्रयासों में ऐसे एकल शामिल थे, जो बिना किसी सहज इम्प्रोवाइजेशन के लिखे गए थे.
उस्ताद ने कहा- ‘किशोरावस्था में हिंदी फिल्म संगीतकारों के साथ बड़े पैमाने पर काम करने की वजह से मुझे काफी मदद मिली, जो सभी प्रकार के भारतीय और गैर-भारतीय वाद्ययंत्र बजाते थे. मुझे जैज और रॉक की दुनिया के बारे में भी मेरे अब्बा ने ही जानकारी दी थी. मुझे याद है कि अब्बा ने मुझे पियानो की कुछ तालीम भी दिलवाई थी.
सबसे अहम यह कि हम, शक्ति टीम, संगीत के 'नापाकीजगी' को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त युवा थे.’
वह बताते हैं- ‘इसी तरह, उस समय के पारखी दक्षिण और उत्तर भारतीय संगीतकारों के बीच बातचीत को नापसंद करते थे, लेकिन टीएच विनायकराम, जिन्हें प्यार से ‘विक्कू’ के नाम से जाना जाता था, मैंने उनके साथ काम किया. मेरे लिए यह लाभ था कि लय सार्वभौमिक हैं. इसके अलावा, मुझे कभी-कभी महान उस्ताद पालघाट रघुजी के साथ काम करने का सौभाग्य मिला और भारतीय फिल्म संगीत में काम करने वाले दक्षिण भारतीय संगीतकारों से भी मिला. हम काफी युवा थे और सौभाग्य से भारत और आलोचकों या तथाकथित शुभचिंतकों से दूर थे, जो हमें नकारात्मक सलाह देने में खुश होते. इसलिए हम ताल के रास्ते पर पूरी तरह से सहज थे (मुस्कुराते हुए) .
उस्ताद ने कहा- ‘वहां हम थे. अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए चार संगीतकार भारतीय शैली में एक मंच पर बैठे थे. पूरे विश्वास के साथ, ऐसा संगीत बजा रहे थे, जो पहले कभी नहीं सुना गया था. यह पूरी तरह से सकारात्मक पेशकश थी. हमें पूरा भरोसा था कि हमारा संगीतमय कथन मान्य होगा और इसे एक मार्ग के रूप में स्वीकार किया जाएगा और यह अंततः उस मार्ग की ओर ले जाएगा, जिसे अब विश्व संगीत के रूप में जाना जाता है.
ज़ाकिर हुसैन: जिनकी ताल और थाप बातें करती थीं दुनिया भर में
गौरव नौड़ियाल
तबले से जाक़िर हुसैन सब कुछ कह सकते थे. हंसना, रोना, प्यार, भक्ति, रस, नाटक, कविता, भाव.. और शायद वो उन गिने-चुने लोगों में थे, जहां तबला सिर्फ किसी संगीत की शाम या प्रदर्शन का सिर्फ साजिंदा नहीं था. वह उसे मुख्य पात्र की तरह केंद्र में ला पाए थे. लोकप्रियता के भी. उनका तबला भारतीय संस्कृति को बोलता था, उसके लंबे, सतरंगे और गंगा-जमुनी सफर के साथ. वह अकेले समा बांध सकते थे.
जाकिर के बाद भी उनकी थाप अपनी रिकार्डिंग्स के जरिये बोलती रहेंगी. संगीत रह जाता है उसे गाने बजाने वाले के जाने के बाद भी. जब उनकी उंगलियां कायदा, रिला या तिहाई बजातीं, तो लगता कि एक जादुई तिलिस्म बुना चला जा रहा है… ताल के गणित से.. और हर बार अचम्भित करने के लिए नहीं.. बहुत बार तसल्ली देने के लिए भी. आज उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को याद करने का दिन है,
गोयाकि उन्होंने धरती पर अपने छोटे और बड़े तबले - 'दांया' और 'बांया' को अनाथ छोड़ दिया है. उस्ताद वो जो तबले हैं न, जो आपकी उंगलियों के स्पर्श से बोलते थे- 'राधे कृष्णा...राधे कृष्णा...राधे कृष्णा...राधे...', जो आपकी सांसों के साथ गाते थे और घुल जाते थे, हिन्दुस्तान के संगीत में...जो जातीय और धर्मों की पहचान से कई ऊपर सुर लगाते थे, आज उन्हें कोई दुलार भी रहा होगा? या वो किसी कोने से चुपचाप इस शून्य को महसूसते होंगे, जो उनके इर्द-गिर्द अब आ गया और जहां उस्ताद की उंगलियां उन्हें अब कभी आदेशित नहीं कर पाएंगी, मुहब्बत की धुन को बजाने के लिए! उस्ताद आज बुरा हाल होगा वैसे - 'दांया' और 'बांया' का!
‘पक्का मुसलमान’ सचमुच चला गया, जिसने 'नमाज' से पहले अल्लाह के नमुाइंदों की महफिल में मान लो कि उसके ही भेजे तोहफे, संगीत को पेश किया. ...जैसै ‘इकलौती प्रेमिका’ चली गई! इसी साल की बरसात में....हां वही, जिसने मुझे इस ‘पक्के मुसलमान’ से मुहब्बत की पहचान ताज के दालान में एक रोज सर्दियों में बैठकर करवाई. वहीं सुना था मैंने उस्ताद के तबले 'दाया' और 'बाया' का पहली दफा साक्षात कमाल, उनकी लहराती घुंघराली जुल्फों के साथ- 'राधे कृष्णा... राधे कृष्णा..' का तबले संग ब्रज की जमीन पर निरंतर बहता जप-अलाप! तारीख थी 15 जनवरी, साल 2014.
Roopak Taal Zakirji Live at Taj
ताज के साए में उस्ताद की एक और रात का जिक्र यहां करना चाहूंगा. 1976 की वह रात कौन भूल सकता है, जब ज़ाकिर हुसैन ने ताजमहल के साये में अपनी पहली प्रस्तुति दी थी. चांदनी रात, यमुना का ठहरा हुआ पानी और उनके तबले की थाप- 'धा-धिन-धा ता तिरकिट ता धा'... उफ्फ, मानों जैसे पूरा माहौल जादुई हो गया था. उसकी रिकॉर्डिंग कहीं मिले तो निकाल कर सुनिएगा. महफिल में बैठे हर श्रोता को ऐसा महसूस हो रहा था कि संगीत के सुरों ने ताजमहल की दीवारों पर भी दस्तक दी हो और मुमताज की आत्मा से कहा हो कि निकल आओ... लाल किले में कैद, बूढ़ा शाहजहां तुम्हें ढूंढता है.
किस्से हैं कि एक बार उनकी महफ़िल सुनने के बाद इंदिरा गांधी ने उनसे कहा था, 'ज़ाकिर, आपके तबले में सिर्फ़ आवाज़ नहीं, पूरी आत्मा गूंजती है. आपकी उंगलियां सिर्फ़ ताल नहीं, बल्कि सृष्टि रचती हैं.' मद्धम 'धुमाली' या फिर गंभी झपताल- 'धा-धा-धिन-ता, तिरकिट-धा-धा-गिना' बजाते हुए ज़ाकिर हुसैन का तबला संगीत का स्पंदन था. 9 मार्च 1951 को जन्मे ज़ाकिर हुसैन, सिर्फ़ एक नाम नहीं थे, वह 'तिहाई' की तरह संपूर्ण और संतुलित थे. उनके पिता, उस्ताद अल्लाह रखा, ख़ुद तबले के जादूगर थे.
ज़ाकिर हुसैन ने भारतीय संगीत को वैश्विक मंचों पर वह पहचान दिलाई, जो चिरकाल तक याद की जाएगी. उनके तबले ने रवि शंकर से लेकर जॉन मैकलॉफलिन तक, हर कलाकार के संगीत को नई परवाज़ दी. 'शक्ति' बैंड के साथ उनकी प्रस्तुतियाँ याद दिलाती हैं कि संगीत की कोई सरहद नहीं होती. रातभर गफलत रही. पहले खबर आई कि ज़ाकिर नहीं रहे..फिर खबर आई अभी जिंदा हैं और सुबह होते-होते तो खैर ये पक्का ही हो गया कि उस्ताद जा चुके. हमने कुछ खास पल इकट्ठा किये हैं उनके प्रदर्शन के.
Ustad Zakir Hussain at Bengal Classical Music Festival 2015
Ustad Zakir Hussain Tabla Solo- Guru Pournima 2016
Zakir Hussain & Rakesh Chaurasia | EtnoKraków/Rozstaje 2015 | Crossroads Festival & Euroradio EBU
PATRI SATISH KUMAR WITH USTAD ZAKIR HUSSAIN
Zakir Hussain and Sivamani Jugalbandi in 1990's - most fabulous gathering of Indian classical doyens
Ustad Zakir Hussain and Rahul sharma - #Tabla and #Santoor
Zakir Hussain and Sivamani Jugalbandi in 1990's - most fabulous gathering of Indian classical doyens
Ustad Zakir Hussain Pt.Yogesh Samsi Jugalbandi Old Video(Part 1)
Zakir Hussain & Rakesh Chaurasia
Radha & Krishna Sawaal Jawaab by Ustad Zakir Hussain on Tabla
Ustad Zakir Hussain ~ 1985 Doordarshan Recital ~ HD
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