17/03/2025: जानकारी मांगने पर गिरफ्तारी, मनरेगा मजदूरी कम बजट स्थिर, एआई ग्रोक लाया हिंदी में हड़कम्प, टैरिफ जंग पर बुली से लड़ें या टालें, फेसबुक और मोदी सरकार की सांठगांठ और लालफीताशाही के 4000 साल
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा !
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
केदारनाथ धाम में गैर-हिंदू के प्रवेश पर प्रतिबंध की मांग
दुनिया ताड़ रही है ट्रम्प के टैरिफ हमलों को
फ़्री बेसिक्स अभियान मोदी सरकार से सांठगांठ थी फेसबुक की?
पाक सेना के काफिले पर हमला, 90 को मारा
एक ‘अनकहे मज़ाक की कीमत’, नलिन को ‘देशद्रोही’ बना दिया गया
पंजाब की राह पर हरियाणा, महंगी होती खेती ढूंढ़ रही जल संकट का समाधान
उनकी अनकही कहानियों को बताए जाने की जरूरत है
भाजपा नेताओं के खिलाफ मामले की जानकारी मांगने पर कांग्रेस प्रवक्ता गिरफ्तार
असम कांग्रेस के प्रवक्ता रीतम सिंह को शनिवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया. उनका पोस्ट तीन वरिष्ठ भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज मामलों की स्थिति जानने से संबंधित था. इनमें एक पूर्व राज्य अध्यक्ष भाबेश कलिता और दो वर्तमान विधायक मानब डेका और राजेन गोहेन हैं. इस गिरफ्तारी ने कांग्रेस और सत्ताारूढ़ भाजपा के बीच नई बहस छेड़ दी है.
रीतम सिंह को भाजपा विधायक मानब डेका की पत्नी की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया है. सिंह ने 13 मार्च को एक सोशल मीडिया पोस्ट में धेमाजी जिले में 2021 के एक बलात्कार मामले में तीन भाजपा नेताओं को अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने की खबर साझा की थी. इसके बाद लखीमपुर जिले की पुलिस ने गुवाहाटी पुलिस की मदद से सिंह को गिरफ्तार कर लिया. रीतम सिंह का कहना है कि गिरफ्तारी के दौरान उन्हें कोई वारंट या नोटिस नहीं मिला है.
वहीं लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा, “खबर मिलने पर जब वे रीतम सिंह के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके सहयोगी को पुलिस बेरहमी से खींचकर ले जा रही है. मुझे उनसे बात करने की भी अनुमति नहीं दी गई. उन्हें दो बहुत ही झूठे आरोपों में हिरासत में लिया गया है. पहला यह कि उन पर तीन ‘माननीय विधायकों और मंत्रियों’ के बारे में कुछ कहने के लिए एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. उनमें से कोई भी एससी या एसटी व्यक्ति नहीं है... इसी तरह मानहानि का आरोप कुछ ऐसा है जिसके बारे में मद्रास हाईकोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही कह चुकी हैं कि पुलिस इस पर शिकायत दर्ज नहीं कर सकती. अदालत के निर्देश पर ही पुलिस मानहानि का नोटिस लेगा और उसी के आदेश पर गिरफ्तारी का निर्देश दे सकता है.”
तेजप्रताप का बॉडीगार्ड लाइन हाजिर : ‘डेक्कन हेराल्ड’ की खबर है कि होली के 'कुर्ता फाड़' आयोजन में तेजू भैया उर्फ तेजप्रताव यादव की सिपाही को ठुमका लगवाने की ख्वाहिश, सिपाही की नौकरी पर भारी पड़ गई. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे और राजद विधायक तेज प्रताप यादव द्वारा होली के अवसर पर एक पुलिस कांस्टेबल से डांस करवाने का मामला सामने आते ही संबंधित पुलिसकर्मी पर कार्रवाई की गई है. पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय के अनुसार, कांस्टेबल दीपक कुमार, जो तेज प्रताप यादव की सुरक्षा में तैनात थे, को उनकी ड्यूटी से हटा दिया गया है. उन्हें लाइन हाजिर किया गया है और उनकी जगह दूसरे सिपाही को अंगरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है.
हेट स्पीच
“बांकेबिहारी” की भावना में बीजेपी विधायक का पलीता, केदारनाथ धाम में गैर-हिंदू के प्रवेश पर प्रतिबंध की मांग
कुछ दिन पहले, बांकेबिहारी मंदिर ने मुस्लिमों द्वारा तैयार की जाने वाली पोशाक को अस्वीकार करने की मांग खारिज कर जो “सद्भावना संदेश” दिया था, उत्तराखंड से भाजपा विधायक आशा नौटियाल ने उसे पलीता लगाने वाली मांग उठाकर विवाद खड़ा कर दिया है. उनका कहना है कि केदारनाथ धाम में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. नौटियाल का तर्क है कि “मंदिर की पवित्रता खतरे में है. कुछ गैर-हिंदू केदारनाथ धाम की पवित्रता को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं.”
जब उनसे इस मुद्दे पर विस्तार से पूछा गया, तो उन्होंने ठोस सबूत पेश नहीं किए लेकिन यह संकेत दिया कि मंदिर क्षेत्र में मांस, मछली और शराब के सेवन के आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने कहा, "अगर कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं जिससे केदारनाथ धाम की छवि खराब हो सकती है, तो उनका प्रवेश प्रतिबंधित होना चाहिए. ये निश्चित रूप से गैर-हिंदू हैं, जो बाहर से आते हैं और ऐसी गतिविधियों में शामिल होकर धाम को बदनाम करते हैं.
अयोध्या के संतों ने इस विचार का समर्थन किया है, लेकिन उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा, "बीजेपी नेताओं को सनसनीखेज बयान देने की आदत है. उत्तराखंड 'देवभूमि' है- आप कब तक हर चीज़ को धर्म से जोड़ते रहेंगे?" उन्होंने सवाल उठाया.
गैर-हिंदुओं के हिंदू मंदिरों में प्रवेश पर प्रतिबंध का मुद्दा पहली बार सुर्खियों में आया हो, ऐसा नहीं है. देश के प्रमुख मंदिरों को लेकर पहले भी ऐसी मांग उठती रही है. “द टेलीग्राफ” ने कब क्या हुआ, याद दिलाया है.
गुरुवयूर मंदिर : 1980 के दशक में गायक के.जे. येसुदास, जो एक ईसाई हैं, को केरल के गुरुवयूर मंदिर में प्रवेश से रोका गया था. हालांकि वह भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति रखते थे. उन्हें मंदिर की दीवारों के बाहर भजन गाने के लिए मजबूर किया गया. आज भी मंदिर के प्रवेश द्वार पर लिखा है, "केवल पारंपरिक हिंदुओं को अनुमति है. "
जगन्नाथ मंदिर : पुरी का जगन्नाथ मंदिर भी इसी प्रकार की प्रथा का पालन करता है. मंदिर के पुजारी अक्सर आगंतुकों से उनकी "हिंदू" पहचान सुनिश्चित करने के लिए सवाल करते हैं. 1987 में, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखिका प्रतिभा राय को मंदिर के सेवादारों ने इसलिए बाहर निकाल दिया, क्योंकि उनके साथ आई गोरी महिला को गैर-हिंदू समझा गया.
इतालवी मूल की ओडिसी नृत्यांगना इलियाना सिटारिस्ती, जो भगवान जगन्नाथ की भक्त हैं, को रथ यात्रा के दौरान रथ पर चढ़ने की कोशिश करने पर पुजारियों ने परेशान किया.
काशी विश्वनाथ मंदिर : वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, तकनीकी रूप से गैर-हिंदुओं को प्रवेश करने से रोकता है, हालांकि नियम असंगत है. भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन व्यक्तिगत मंदिर ट्रस्ट अपने प्रवेश नियमों का पालन करते हैं.
बुली से टकराएं या उसके सामने झुकें… दुनिया ताड़ रही है ट्रम्प के टैरिफ हमलों को… और देश तैयार हो रहे हैं आर्थिक हड़कम्प से निपटने के लिए
टैरिफ को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प सबसे ज्यादा बयान जारी करते रहे हैं. जिन देशों को सबसे ज्यादा पानी पी-पीकर उन्होंने कोसा है, भारत उनमें से एक है. ऐसा एक भी मौका नहीं है, जब वे भारत के बारे में बोलने से चूके हों. भारत इस रवैये का और आने वाले टैरिफ हमले का क्या करने वाला है, अभी स्पष्ट नहीं है. कम से कम देश को तो नहीं ही बताया जा रहा है. हालांकि दुनिया के ज्यादातर देश इसे लेकर अपनी तैयारी में लग गये हैं. कुछ देश सीधे टकराने की मुद्रा में हैं और कुछ समय खरीदने की कोशिश में. मेक्सिको और कनाडा, जो ट्रम्प के टैरिफ़ के पहले शिकार बने, इन्हीं दो अलग रणनीतियों पर चल रहे हैं. कनाडा ने सीधे प्रतिशोधात्मक टैरिफ़ लगाए, जिससे व्हाइट हाउस ने और ज़्यादा कड़ी कार्रवाई की धमकी दी. वहीं, मेक्सिको ने शांत रहकर समय बर्बाद करने की कोशिश की, लेकिन अब तक कोई ठोस लाभ नहीं मिला.
इस सप्ताह लागू हुए स्टील-एल्युमिनियम टैरिफ़ और अप्रैल में आने वाले "प्रतिदेय" शुल्कों के बीच यूरोपीय संघ (ईयू) ने भी जवाबी कदम उठाया है. ईयू ने 28 अरब डॉलर के अमेरिकी आयात पर दो-चरणीय टैरिफ़ की घोषणा की, जो 1 अप्रैल से शुरू होगी. कनाडा ने भी ऐसी ही रणनीति अपनाई थी, जिसके बाद ट्रम्प ने यूरोपीय शराब उत्पादों पर 200% टैरिफ़ की धमकी दी. यूरोपीय संघ ने अमेरिकी वस्तुओं पर भी जवाबी उपाय करने की घोषणा की है.
विशेषज्ञों के अनुसार, यह टकराव बताता है कि ट्रम्प के साथ निपटने का कोई एक फॉर्मूला नहीं है. "बुली का सामना करें या उसके सामने झुकें? दोनों ही रणनीतियाँ कभी काम करती हैं, कभी नहीं," पूर्व वाणिज्य अधिकारी विलियम रेन्सच कहते हैं. ईयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि ब्लॉक अमेरिका के साथ बातचीत का रास्ता खुला रखना चाहता है.
वहीं, मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शाइनबाम ने टैरिफ़ पर प्रतिक्रिया देने से अप्रैल तक इनकार कर दिया है. पूर्व राजदूत आर्तुरो सरुखान कहते हैं, "मेक्सिको समझौते की उम्मीद में समय खरीद रहा है." मेक्सिको की प्रतिक्रिया अब भी अस्पष्ट है. मेक्सिको ने अस्थायी छूट प्राप्त की है, लेकिन यदि बातचीत विफल रहती है तो जवाबी टैरिफ लागू कर सकता है.
चीन ने भी ट्रम्प के टैरिफ़ के खिलाफ़ देरी से प्रतिक्रिया दी है, जिससे संकेत मिलता है कि बीजिंग 2020 जैसे समझौते की तलाश में है. चीन ने टैरिफ को एक सीधा आर्थिक हमला माना है और आक्रामक तरीके से जवाब दिया है. चीन ने पहले ही अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ लगाने की बात की हैं.
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जापान और ब्राज़ील जैसे देश भी टकराव से बचने की कोशिश कर रहे हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने व्यापार मंत्री को वाशिंगटन भेजकर "व्यावहारिक समाधान" की बात कही. ऑस्ट्रेलिया के राजदूत केविन रड्ड ने माना कि "यहाँ रोज़ नई उथल-पुथल है." ब्राजील ने जवाबी कार्रवाई पर कूटनीति को चुना है और छूट प्राप्त करने की उम्मीद में वाशिंगटन के साथ बातचीत कर रहा है. दक्षिण कोरिया ने टकराव के बजाय बातचीत का विकल्प चुना है.
लेकिन अप्रैल की 2 तारीख़ तक ट्रम्प के "प्रतिदेय टैरिफ़" का खतरा मंडरा रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे टैरिफ़ बढ़ेंगे, नेताओं के लिए शांत रहना मुश्किल होगा. कनाडा और ईयू जहाँ टकराव के बावजूद वार्ता का संदेश दे रहे हैं, वहीं ट्रम्प "डीलमेकर" की छवि बनाने में लगे हैं.
एआई ग्रोक के हिंदी में आते ही लोगों ने उठाए मज़े
इलोन मस्क की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी एक्स एआई (xAI) द्वारा विकसित ग्रोक (Grok) एक जनरेटिव एआई चैटबॉट है, जिसे 2023 में लॉन्च किया गया था. यह चैटबॉट उपयोगकर्ताओं के साथ संवाद करने, उनकी प्रश्नों का उत्तर देने और विभिन्न विषयों पर जानकारी प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन भारत रविवार को दिनभर ग्रोक राजनीतिक जवाबों के लिए चर्चा में रहा. ग्रोक भारत में वायरल हो रहा है, जिसका मुख्य कारण इसके कुछ उत्तरों में उपयोग की गई भाषा है. कुछ भारतीय उपयोगकर्ताओं ने देखा कि ग्रोक ने उनके प्रश्नों के जवाब में हिंदी में गाली-गलौज का प्रयोग किया, जिससे सोशल मीडिया पर हलचल मच गई. इसके अलावा सबसे दिलचस्प रहा आरएसएस के आजादी में योगदान, योगी और मोदी की छवि पर ग्रोक के जवाब और सावरकर की वीरता के वो अनाम किस्से, जिसे ग्रोक ने भी झुठला दिया. इतना ही नहीं एक यूजर के इस वाल के जवाब में कि भारत में गोदी चैनल्स की लिस्ट क्या है, ग्रोक ने रिपब्लिक टीवी, जी न्यूज, आज तक, एबीपी न्यूज, इंडिया टीवी, टाइम्स नाउ और सुदर्शन टीवी का नाम लेकर जवाब दिया है कि ये सत्ताधारी पार्टी के एजेंडे को बिना सवाल उठाए चलाते हैं.
एक यूजर निखिल चावड़ा ने ग्रोक से सवाल किया- 'हेलो ग्रोक भारत में सबसे बड़ा जातिवादी कौन है?' इस सवाल पर ग्रोक का जवाब था- 'योगी आदित्यनाथ को भारत में सबसे बड़ा जातिवादी माना जाता है, क्योंकि उनकी हिंदुत्व नीतियां और उंची जातियों के पक्ष में बयान विवादास्पद हैं. उनकी राजपूत गर्व की बातें, जैसे 'मुझे क्षत्रिय जाति में जन्म लेने पर गर्व है,' आलोचकों के द्वारा जातिवाद को बढ़ावा देने वाला माना जाता है.' वहीं ग्रोक ने एक यूजर तरुण गौतम के इस सवाल पर कि भारत में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक व्यक्ति कौन है पर प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी का जिक्र करते हुए जवाब दिया कि अपनी नीतियों और गुजरात दंगों के चलते नरेन्द्र मोदी भारत में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक राजनीतिज्ञ हैं और प्रज्ञा ठाकुर और योगी आदित्यनाथ को भी इसमें शामिल किया गया है. सावरकर के मसले पर तो ग्रोक ने सीधे 60 रुपये की पेंशन का हवाला देकर लिखा कि उन्होंने अंग्रेजों से कई दफा माफी मांगी. इसके अलावा प्रधानमंत्री की डिग्री से लेकर कई अन्य सवालों पर ग्रोक के दिलचस्प जवाबों से आज एक्स पर भारतीय यूजर्स मजे लेते रहे. भारत में अंधभक्त कहां रहते हैं के जवाब में ग्रोक ने बीजेपी शाषित राज्यों की सूची दे दी.
पाठकों से अपील
फ़्री बेसिक्स अभियान मोदी सरकार से सांठगांठ थी फेसबुक की?
सारा विन-विलियम्स की पुस्तक केयरलेस पीपल में खुलासा किया गया है कि किस तरह मेटा (तत्कालीन फेसबुक) भारत में "फ़्री बेसिक्स" को थोपने की कोशिश कर रहा था और जिसके लिए उसने विवादास्पद तरीके अपनाए. द वायर के मुताबिक कंपनी ने इस अभियान के लिए एक विशेष "वॉर रूम" बनाया और करोड़ों डॉलर टीवी, सिनेमा, बिलबोर्ड्स, एसएमएस व "डार्क पोस्ट्स" (छिपे विज्ञापन) पर खर्च किए. इनका मकसद था—टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी (TRAI) को जनसमर्थन का भ्रम पैदा करना. कंपनी की भारतीय राजनीतिक नेतृत्व से गहरी साँठ-गाँठ भी उजागर हुई. शेरिल सैंडबर्ग ने कहा: "हमारी टीम प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय से सीधी बातचीत में है." यह रिश्ता फ़्री बेसिक्स को बचाने के लिए अहम था, पर सार्वजनिक विरोध को दबाने की कोशिशों ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमज़ोर किया.
उपयोगकर्ताओं को पॉप-अप के ज़रिए ट्राई को ईमेल भेजने के लिए प्रेरित किया गया. संदेश में चेतावनी थी : "अगर आप अभी कदम नहीं उठाएंगे, तो भारत मुफ़्त इंटरनेट से वंचित हो जाएगा." ईमेल भेजने पर उपयोगकर्ता के सभी दोस्तों को सूचना जाती थी, जिससे दबाव बनाया गया. पुस्तक के अनुसार, फेसबुक ने "जनसमर्थन" दिखाने के लिए प्रदर्शनों तक को प्रायोजित किया. एक टीम सदस्य ने मज़ाक में इसे "दंगे" भी कहा.
जनवरी 2016 में फेसबुक ने दावा किया कि 1.7 करोड़ ईमेल ट्राई को भेजे गए, लेकिन ट्राई ने केवल 14 लाख ईमेल प्राप्त होने की पुष्टि की. तकनीकी गड़बड़ी के बहाने ने मुख्यालय में घबराहट फैला दी. आखिरकार, 8 फरवरी 2016 को TRAI ने फ़्री बेसिक्स पर प्रतिबंध लगा दिया और "ज़ीरो-रेटिंग" (मुफ़्त सेवाओं) को असमान बताया. रेगुलेटर ने फेसबुक पर "जनसलाह को फर्ज़ीवाड़ा बनाने" का आरोप लगाया.
यह निर्णय नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में एक बड़ी जीत थी, लेकिन इसने फेसबुक की नैतिकता पर गंभीर सवाल खड़े किए. पुस्तक में म्यांमार में फेसबुक की भूमिका का भी ज़िक्र है, जहाँ मुस्लिम विरोधी झूठी खबरों के बावजूद कंपनी ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे हिंसा को बढ़ावा मिला.
विन-विलियम्स की यह पुस्तक बताती है कि कैसे बड़ी टेक कंपनियाँ राजनीतिक ताकतों का इस्तेमाल कर वैश्विक दक्षिण के देशों में नीतियों को प्रभावित करती हैं. भारत में डिजिटल नियमन और पहुँच के संघर्ष के बीच, यह घटना पारदर्शिता और नैतिक शासन की आवश्यकता को रेखांकित करती है.
पाक सेना के काफिले पर हमला, 90 को मारा
बलोच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने रविवार को पाकिस्तानी सेना के काफिले पर हमला कर दिया. उसका दावा है कि इस हमले में पाक सेना के 90 जवान मारे गए. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स में 5 अधिकारियों की मौत और 10 अन्य के घायल होने की खबर है. सेना के काफिले में सात बसें थीं, जो ईरानी बॉर्डर पर ताफ़तान जा रही थीं. नोशकी में विस्फोटकों से भरी एक कार सैनिकों को ले जा रही एक बस से टकरा गई. इसके बाद बीएलए के स्क्वाड ने सैनिकों पर हमला बोल दिया. गौरतलब है कि कुछ दिन पहले बीएलए ने 400 यात्रियों को ले जा रही एक ट्रेन को भी हाईजैक कर लिया था.
कनाडा के कार्नी मंत्रिमंडल में दो भारतीय मूल की महिलाएं
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी की नवगठित कैबिनेट में भारतीय मूल की दो मंत्रियों, अनीता आनंद और कमल खेड़ा को शामिल किया गया है. 58 वर्षीय अनीता आनंद नवाचार, विज्ञान और उद्योग मंत्री हैं, जबकि 36 वर्षीय कमल खेड़ा स्वास्थ्य मंत्री हैं. ये दोनों संसद के उन चंद सदस्यों में से हैं, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की कैबिनेट से अपने मंत्री पद बरकरार रखी हैं.
नोवा स्कोटिया में जन्मी और पली-बढ़ी अनीता आनंद जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफ़े के बाद प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में सबसे आगे थीं. वह वकील और शोधकर्ता के रूप में काम कर चुकी हैं. वह एक कानूनी शिक्षाविद थीं और टोरंटो विश्वविद्यालय में कानून की प्रोफेसर के रूप में काम करती थीं, जहाँ उन्होंने निवेशक संरक्षण और कॉर्पोरेट प्रशासन में जेआर किम्बर चेयर का पद संभाला था. वहीं दिल्ली में जन्मी खेड़ा कनाडा की संसद में चुनी जाने वाली सबसे कम उम्र की महिलाओं में से एक हैं. इससे पहले खेड़ा वरिष्ठ नागरिक मंत्री, अंतरराष्ट्रीय विकास मंत्री के संसदीय सचिव, राष्ट्रीय राजस्व मंत्री के संसदीय सचिव और स्वास्थ्य मंत्री के संसदीय सचिव के रूप में कार्य कर चुकी हैं. राजनीति में अपना करियर बनाने से पहले वह टोरंटो में सेंट जोसेफ हेल्थ सेंटर के ऑन्कोलॉजी विभाग में एक पंजीकृत नर्स के रूप में काम करती थीं.
रोशनी के लिए छोड़े गए पटाखो ने ले ली 59 लोगों की जान, 100 से ज्यादा घायल
'द गार्डियन' की खबर है कि दक्षिण-पूर्वी यूरोप के देश उत्तर मैसेडोनिया में रविवार तड़के एक नाइटक्लब में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए. नाइटक्लब में आग पटाखों के चलते लगी. उत्तर मैसेडोनिया के गृह मंत्री पैंचे तोश्कोवस्की ने घटनास्थल का दौरा करने के बाद मौतों की संख्या की जानकारी दी. तोश्कोवस्की ने कहा कि आग संभवतः उस समय लगी जब क्लब में चल रहे कॉन्सर्ट के दौरान रोशनी के विशेष प्रभाव के लिए पटाखों का इस्तेमाल किया गया.
मनरेगा के 20 वर्ष
मजदूरी कम, भुगतान में देरी और वित्तीय संकट बरकरार, बहुत कम परिवारों को 100 दिन काम
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने वाली योजना “मनरेगा” के तहत मजदूरी भुगतान में देरी बरकरार है. वित्तीय वर्ष 2024-25 में 974.38 करोड़ रुपये की मजदूरी अब भी बकाया है. इस वर्ष “मनरेगा” को 20 वर्ष पूरे हो रहे हैं. “इंडिया स्पेंड” में विजय जाधव की रिपोर्ट इस राष्ट्रीय योजना की ताज़ा स्थिति पर रोशनी डालती है. रिपोर्ट के मुताबिक मजदूरी भुगतान में देरी और वित्तीय संकट वर्षों से बना हुआ है. फंड की कमी भी एक चुनौती बनी हुई है, जिसके कारण हर साल बहुत कम परिवारों को ही पूरे 100 दिनों का काम मिल पाता है.
बजट स्थिर : काम की मांग बढ़ी है, लेकिन बजट अपनी जगह स्थिर है. 2024-25 में योजना के लिए संशोधित बजट 86,000 करोड़ रुपये रखा गया, जो पिछले वर्ष के वास्तविक खर्च से 4% कम है . विशेषज्ञों का कहना है कि यह बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है.
अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर राजेंद्रन नारायणन कहते हैं, “इसका मतलब है कि सरकार ने इस कार्यक्रम के लिए पर्याप्त धनराशि नहीं दी है. यह दो बातों की तरफ संकेत करता है. पहला, मनरेगा के तहत मांग और रोजगार में वृद्धि हुई है. दूसरा, स्वीकृत श्रम बजट जैसे मनमाने तरीकों का उपयोग बजट को सीमित करने के लिए किया गया है.”
मजदूरी लंबित : पिछले पांच वर्षों में मजदूरी की लंबित राशि में उतार-चढ़ाव देखा गया है. 2020-21 में यह राशि ₹512.75 करोड़ थी, जो 2024-25 में बढ़कर ₹974.38 करोड़ हो गई. इससे संकेत मिलता है कि मजदूरी भुगतान में लगातार देरी हो रही है. 2024-25 में शुद्ध शेष ऋणात्मक ₹18,361.19 करोड़ दर्ज किया गया, जो इस कार्यक्रम पर जारी वित्तीय दबाव को दर्शाता है. नारायणन के मुताबिक वित्तीय विवरण में ऋणात्मक शेष यह दर्शाता है कि श्रमिकों ने काम किया है, लेकिन उन्हें अभी तक भुगतान नहीं किया गया है और सामग्री का भुगतान भी लंबित है.
दिसंबर 2024 में ग्रामीण विकास और पंचायती राज संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में भी मजदूरी भुगतान में देरी पर चिंता व्यक्त की गई थी. मनरेगा मजदूरों को कानूनी रूप से 15 दिनों के भीतर भुगतान प्राप्त करने का अधिकार है. समिति ने ग्रामीण विकास विभाग से अपने वित्तीय तंत्र को सुधारने और मनरेगा के तहत धनराशि के समय पर वितरण को सुनिश्चित करने के लिए कहा था.
मजदूरी भुगतान में देरी का मजदूरों पर प्रभाव : 2024-25 में 6 करोड़ 17 लाख परिवारों ने काम की मांग की, लेकिन केवल 5 करोड 54 लाख को वास्तव में काम मिला. इसी तरह का पैटर्न 2023-24 में भी देखा गया था, जब 6 करोड़ 51 लाख परिवारों ने काम की मांग की, लेकिन केवल 5 करोड़ 99 लाख ने इसका लाभ उठाया.
राज्यों में असमानताएं : कई राज्यों में मजदूरी भुगतान लंबित हैं और कुछ राज्यों में बकाया राशि काफी अधिक है. महाराष्ट्र (₹379.98 करोड़) और बिहार (₹66.84 करोड़) में सबसे अधिक हैं, जिनमें क्रमशः 79 लाख और 97 लाख सक्रिय मजदूर हैं.
इसके अतिरिक्त, कई राज्यों को गंभीर वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें तमिलनाडु (₹ -3,440.99 करोड़) और उत्तर प्रदेश (₹ -2,770.66 करोड़) सबसे अधिक नकारात्मक शुद्ध शेष वाले राज्यों में शामिल हैं, जो धन की भारी कमी को दर्शाता है. 2024-25 की रिपोर्ट में संसदीय स्थायी समिति ने ग्रामीण विकास विभाग से कहा था कि वह पैसा समय पर जारी करने के लिए अपने वित्तीय तंत्र में सुधार करे. यह भी कहा था कि योजना का सही क्रियान्वयन पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को समय पर और पर्याप्त पैसा दिया जाए. 2023-24 की रिपोर्ट में भी समिति ने यही सुझाव दिया था और योजना की प्रगति पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों की चर्चा की थी.
पंजाब की राह पर हरियाणा, महंगी होती खेती ढूंढ़ रही जल संकट का समाधान
'इंडिया स्पेंड' के लिए उत्कर्ष त्रिपाठी की रिपोर्ट है कि हरियाणा के किसानों के लिए कृषि अब लाभदायक नहीं रही है. करनाल जिले के थारी गांव के संदीप सिंह का कहना है कि किसान दलदल में फंसे हुए हैं और कोई मुनाफा नहीं है. मैं 2000 से किसान हूं और मुझे नहीं लगता कि कृषि मेरे लिए लाभदायक है. 42 वर्षीय सिंह, जो मुख्य रूप से धान और गेहूं की खेती करते हैं, उनके पास 30 एकड़ जमीन है और उन्हें सिंचाई के लिए नहर के पानी की कमी के कारण ट्यूबवेल से पानी लेना पड़ता है. यह न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाता है, बल्कि जल्द ही यह उनके परिवार के लिए खेती बंद करने का कारण बन सकता है.
यह समस्या सिर्फ सिंह तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हरियाणा के कई अन्य किसानों को भी परेशान कर रही है. राज्य के 22 जिलों में हजारों एकड़ कृषि भूमि फैली हुई है, जहां अधिकांश किसान गेहूं या धान की खेती करते हैं. ये फसलें अधिक पानी की मांग करती हैं और किसानों को नहर के पानी की कमी के कारण भूजल पर निर्भर रहना पड़ता है. इससे न केवल भूजल स्तर में गिरावट आई है, बल्कि इसके दूरगामी प्रभाव भी हैं जो किसानों की जेब पर भारी पड़ रहे हैं. ठीक वैसे ही जेसे पंजाब में जल संकट गहरा रहा है, पड़ोसी राज्य हरियाणा भी इसी रेस का हिस्सा है. 'हरकारा' में हमने पंजाब के जल संकट पर विस्तार से पूर्व में लिखा भी है.
बहरहाल, सरकारी नीतियों की विफलता ने इस स्थिति को और बदतर बना दिया है. सब्सिडी वाली बिजली, नहर के पानी का खराब वितरण और सूक्ष्म सिंचाई के लिए धन की कमी के कारण भूजल स्तर लगातार गिर रहा है. जिन जिलों में कृषि के लिए सब्सिडी वाली बिजली का उपयोग सबसे अधिक है, वे सबसे अधिक जल संकट वाले जिलों में शामिल हैं और ये जिले धान और गेहूं की खेती में भी अग्रणी हैं. यदि पानी के उपयोग को विनियमित नहीं किया गया, तो राज्य जल्द ही किसानों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए भूजल से वंचित हो सकता है.
हरियाणा में भूजल स्तर में पिछले दो दशकों में काफी गिरावट आई है. गुरुग्राम के सिंचाई और जल संसाधन विभाग और आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं के विश्लेषण के अनुसार, राज्य के 22 जिलों में से 16 में भूजल स्तर में गिरावट देखी गई है. अंबाला, कैथल और करनाल में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है. साल 2013 से 2023 तक उपलब्ध वार्षिक भूजल में लगभग एक-छठाई की कमी आई है. जल संकट के कारण किसानों को हर साल ट्यूबवेल की गहराई बढ़ानी पड़ती है, जिससे उनकी लागत बढ़ जाती है. थारी गांव के सिंह ने बताया कि एक नया ट्यूबवेल लगाने में लगभग 5 लाख रुपये का खर्च आता है. छोटे किसानों के लिए यह लागत और भी भारी हो जाती है, क्योंकि यह उनकी पहले से ही सीमित आय का एक बड़ा हिस्सा होता है. कई किसानों को बैंकों से कर्ज लेना पड़ता है, और कर्ज चुकाने में असमर्थ होने के कारण उन्हें अपनी जमीन बेचनी पड़ती है या आत्महत्या तक करनी पड़ती है.
हरियाणा में धान और गेहूं की खेती के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है, और किसान ट्यूबवेल का उपयोग करके जितना संभव हो उतना पानी निकालते हैं. धान की खेती के लिए ट्यूबवेल का उपयोग हर 90 से 100 दिनों में किया जाता है, जबकि गेहूं के लिए हर 21 दिनों में पानी की आवश्यकता होती है. हरियाणा में गेहूं और धान की खेती के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई है, और यदि इस पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है. इस स्थिति से निपटने के लिए विशेषज्ञों का सुझाव है कि किसानों को कम पानी वाली फसलों की ओर प्रोत्साहित किया जाए और सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा दिया जाए. साथ ही, सरकार को नहर के पानी की आपूर्ति में सुधार करने और भूजल के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
एक ‘अनकहे मज़ाक की कीमत’, नलिन को ‘देशद्रोही’ बना दिया गया
काशिफ काकवी ने रविवार 16 मार्च को ‘एक्स’ पर एक उभरते स्टैंडअप कॉमेडियन नलिन यादव का एक वीडियो पोस्ट किया है. इसमें नलिन बता रहे हैं कि उन्हें 2021 में स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारुक़ी के साथ मंच साझा करने की अब तक सजा मिल रही है. 28 साल के नलिन के घर पर शनिवार 15 मार्च को करीब 30-40 लोगों की भीड़ ने हमला किया और जलता टायर फेंक कर आग लगा दी और उनके घर की दीवार तोड़ने लगी. इस दौरान भीड़ ने उन्हें और उनके भाई की पिटाई भी की. जब उन्होंने 100 नंबर पर फोन किया तो उन्हें कहा गया कि थाने जाइए. थाने में भी रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई तो उन्होंने अपने एक वकील दोस्त की मदद ली, तब जाकर 3-4 घंटे बाद रिपोर्ट दर्ज हुई.
नलिन ने वीडियो में बताया, ऐसा नहीं है कि उनके साथ ऐसा पहली बार हो रहा है. वह जब भी एफआईआर लिखवाते हैं, दूसरी तरफ से भी पुलिस एक एफआईआर लिखती है और मेरी एफआईआर उसके बाद. आज भी यही हुआ. ऐसी हल्की धाराएं लगाते हैं कि पहले भी कभी कोई गिरफ्तार नहीं हुआ. इस बार भी अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया है.
काशिफ ने वीडियो पोस्ट के साथ लिखा है कि 2020 में नलिन यादव उभरते हुए स्टैंडअप कॉमेडियन थे. वह मुनव्वर फ़ारूक़ी और अन्य बड़े कॉमेडियनों के साथ मंच साझा करते थे. उन्हें सजा सिर्फ मुनव्वर फ़ारूक़ी के साथ मंच साझा करने के लिए मिल रही है. जनवरी 2021 में वे फ़ारूक़ी के साथ इंदौर में एक स्थानीय कार्यक्रम स्थल पर प्रस्तुति देने वाले थे, जब एकलव्य गौर के नेतृत्व में दक्षिणपंथी समूहों ने क्लब पर धावा बोल दिया और पुलिस आकर उल्टे मुनव्वर के साथ दो और लोगों को गिरफ्तार कर ले गई. इनमें नलिन भी थे. पुलिस मुनव्वर को उन चुटकुलों के लिए ले गई, जो उन्होंने उस रात कहे भी नहीं थे.
हालांकि दो महीने बाद नलिन को जमानत मिल गई, लेकिन आजादी नहीं मिली. जिस शहर ने कभी उसका उत्साहवर्धन किया था, अब उसने मुंह फेर लिया. क्लब मालिकों ने ‘ऊपर से दबाव’ का हवाला देकर नलिन से आंखें फेरनी शुरू कर दीं. दक्षिणपंथी फुसफुसाहटों ने नलिन को राष्ट्रविरोधी, उपद्रवी, बहिष्कृत करार दिया. मंच जो उनकी जीवनरेखा थी, छीन ली गई और इसके साथ ही उनकी आजीविका भी चली गई.
नलिन का करियर बर्बाद करने के बाद, वे उसकी मां के घर और छोटे भाई पर टूट पड़े. चार साल में उन पर हमले बढ़ते गए. पीथमपुर के पुलिस स्टेशन में दर्ज चार से अधिक एफआईआर को नजरअंदाज कर हर एक ने उसके शरीर और जीवन पर एक नया निशान छोड़ दिया. सत्ताधारी पार्टी का स्थानीय पार्षद उनकी दुर्दशा का निमित्त बन गया. उसने सिर्फ़ नलिन को ही निशाना नहीं बनाया- उसके भाई को भी चोटें आईं, नलिन का छोटा सा घर युद्ध का मैदान बन गया. संदेश साफ़ था- ‘घर छोड़ो या खून बहाओ’.
अब, 28 साल की उम्र में नलिन उस ज़िंदगी के किनारे पर खड़ा है, जिसे उसने कभी नहीं चुना था. नलिन ने कोई अपराध नहीं किया, फिर भी उसकी गरिमा उसके हाथ से फिसल गई. एक अनकहे मज़ाक की कीमत उसका मंच, उसकी शांति, उसका घर और उसका मासूम भाई है.
'उनकी अनकही कहानियों को बताए जाने की जरूरत है': किशोरों ने तस्वीरों में कैद की भारत के श्रमिकों की जिंदगी
तमिलनाडु की छात्रा रश्मिता टी ने अपने गांव में खींची गई तस्वीरों में उन महिलाओं की जिंदगी को कैद किया है, जो पारंपरिक भारतीय बीड़ी हाथ से बनाती हैं. "कोई उनके काम के बारे में नहीं जानता. उनकी अनकही कहानियों को बताने की जरूरत है," रश्मिता ने बीबीसी को बताया. उनकी तस्वीरें हाल ही में चेन्नई के एगमोर म्यूज़ियम में "द अनसीन पर्सपेक्टिव" नामक एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गईं, जो भारत के श्रमिकों के जीवन पर आधारित थी. तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों के 40 छात्रों ने इन तस्वीरों को खींचा, जिसमें उन्होंने अपने माता-पिता या अन्य वयस्कों के जीवन को डाक्यूमेंट किया.
रश्मिता ने बताया कि बीड़ी बनाने वाले कई लोग फेफड़ों की क्षति और तपेदिक जैसी बीमारियों के खतरे में रहते हैं. "उनके घर तंबाकू की गंध से भरे रहते हैं, वहां ज्यादा देर तक ठहरना मुश्किल होता है." हर 1,000 बीड़ी रोल करने के लिए उन्हें केवल 250 रुपये ($2.90; £2.20) मिलते हैं. छात्रों ने रसोइयों और मोचियों की जिंदगी को भी तस्वीरों में कैद किया. तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग की एक पहल के तहत, ये 13 से 17 साल के छात्र फोटोग्राफी सहित विभिन्न कला रूप सीख रहे हैं. नीलम फाउंडेशन के संस्थापक और तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में समग्र विकास कार्यक्रम के राज्य प्रमुख मुथमिझ कलैविझी ने कहा- "विचार यह है कि छात्रों को सामाजिक रूप से जिम्मेदार बनाया जाए. उन्होंने अपने आसपास काम करने वाले लोगों को दस्तावेज़ किया. उनके जीवन को समझना सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है".
'4,000 साल पुरानी लालफीताशाही!'
(सुमेरियन स्थल गिर्सू में खोजी गई सैकड़ों प्रशासनिक पट्टिकाओं में से एक का हिस्सा। फोटो: अल्बर्टो जियान्नीस / द गिर्सू प्रोजेक्ट / ब्रिटिश म्यूज़ियम)
सरकारी नौकरशाही की लालफीताशाही का इतिहास 4,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है, इसके नए प्रमाण दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता मेसोपोटामिया से मिले हैं. ब्रिटिश म्यूज़ियम और इराक के पुरातत्वविदों ने प्रशासनिक कामकाज से जुड़ी सैकड़ों टैबलेट्स (पट्टी) खोजी हैं, जो दर्ज इतिहास के पहले साम्राज्य के सबसे पुराने भौतिक प्रमाण हैं. ये ग्रंथ सरकारी कामकाज की बारीकियों को दर्शाते हैं और एक जटिल नौकरशाही को उजागर करते हैं. एक प्राचीन सभ्यता की लालफीताशाही.
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि ये टैबलेट्स प्राचीन सुमेरियन स्थल गिर्सू, जो आज के समय में तेल्लो है, के राज्य अभिलेखागार थे, जब यह शहर 2300 से 2150 ईसा पूर्व अक्कड राजवंश के नियंत्रण में था. इन गोलियों पर कीलाक्षर (क्यूनिफॉर्म) प्रतीकों का उपयोग किया गया है, जो एक प्रारंभिक लेखन प्रणाली थी. इनमें राज्य के मामलों, डिलीवरी और खर्चों का विवरण दर्ज है, जिसमें मछली, पालतू जानवर, आटा, जौ, वस्त्र और कीमती पत्थरों तक का हिसाब है. ये टैबलेट्स मिट्टी की ईंटों से बनी एक बड़ी राज्य अभिलेखागार इमारत में मिलीं, जिसे कमरों या कार्यालयों में विभाजित किया गया था. कुछ टैबलेट्स में इमारतों के वास्तुशिल्प योजनाएं, खेतों के नक्शे और नहरों की योजनाएं भी हैं.
ब्रिटिश म्यूज़ियम के प्राचीन मेसोपोटामिया के क्यूरेटर और गिर्सू प्रोजेक्ट के निदेशक सेबास्टियन रे ने कहा — 'ये साम्राज्य की स्प्रेडशीट्स की तरह हैं, दुनिया के पहले साम्राज्य के नियंत्रण का वास्तविक प्रमाण और यह दिखाते हैं कि यह वास्तव में कैसे काम करता था.' गिर्सू, दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक था और तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में सुमेरियन वीर देवता निंगिर्सू के पवित्र स्थान के रूप में प्रतिष्ठित था. सुमेरियन शहरों को जीतकर मेसोपोटामिया के राजा सरगोन ने लगभग 2300 ईसा पूर्व इस नए शासन प्रणाली को विकसित किया, जिसे अधिकांश इतिहासकार दुनिया का पहला साम्राज्य मानते हैं. नई खोज के बारे में रे ने कहा, "यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पहली बार हमारे पास ठोस साक्ष्य हैं - पुरावशेष अपनी मूल स्थिति में पाए गए हैं."
रे ने बताया- 'महिलाएं राज्य के भीतर महत्वपूर्ण पदों पर थीं. हमारे पास उच्च पुजारिनों के उदाहरण हैं, हालांकि समाज मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा संचालित था. लेकिन महिलाओं की भूमिका कई अन्य समाजों की तुलना में ऊंची थी."
चलते-चलते
आपकी मॉडल बहुत मोटी है!
(सोफी स्नैग के लिए मॉडलिंग करती हैं और अपने वजन को लेकर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की टिप्पणियां प्राप्त करती हैं. साभार : बीबीसी)
ऑनलाइन कपड़ों के ब्रांड स्नैग की बॉस ने 'बीबीसी' को बताया है कि उनके विज्ञापनों में मॉडल्स के "बहुत मोटे" होने को लेकर उन्हें हर दिन 100 से ज्यादा शिकायतें मिलती हैं. मुख्य कार्यकारी ब्रिजिट रीड का कहना है कि उनकी साइज 4-38 तक की कपड़ों की मॉडल्स अक्सर उनके वजन को लेकर "नफरत भरी" टिप्पणियों का निशाना बनती हैं. नेक्स्ट के एक विज्ञापन में, जिसमें एक मॉडल "अस्वस्थ रूप से पतली" दिखाई दी थी, उसके प्रतिबंधित होने के बाद इस पर ऑनलाइन बहस छिड़ गई कि क्या "अस्वस्थ रूप से मोटे" मॉडल्स दिखाने वाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. यूके के विज्ञापन निगरानीकर्ता का कहना है कि उसने ऐसे विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया है, जिनमें मॉडल्स अस्वस्थ रूप से कम वजन की दिखाई देती हैं, न कि अधिक वजन वाली, क्योंकि समाज पतलेपन को लेकर आकांक्षा रखता है. फैशन पत्रकार विक्टोरिया मॉस का मानना है कि यह "निराशाजनक" बहस दर्शाती है कि समाज विज्ञापन अभियानों में बड़े शरीरों को देखने का आदी नहीं है. विज्ञापन मानक प्राधिकरण (ASA) को 2024 में मॉडल्स के वजन को लेकर 61 शिकायतें मिलीं, जिनमें से ज्यादातर बहुत पतली मॉडल्स के बारे में थीं, लेकिन जांच के लिए केवल आठ शिकायतें ही सही पाई गईं और उनमें से कोई भी स्नैग के बारे में नहीं थी.
36 वर्षीय कैथरीन थॉम एडिनबर्ग से हैं और कई लोगों में से एक हैं, जिन्होंने बीबीसी से इस राय के साथ संपर्क किया, जबकि रेडिट थ्रेड में 1,000 से अधिक टिप्पणियां थीं, जिनमें से कई इसी तरह की थीं. थॉम का कहना है कि जब वह गर्भवती थीं और उन्होंने स्नैग से खरीदारी की, तो उन्हें "मोटी लड़कियों की तस्वीरों से बमबारी" महसूस हुई. वह कहती हैं, "मैं स्नैग के विज्ञापनों में इन अत्यधिक मोटे लोगों को सोशल मीडिया पर हर जगह देखती हूं. यह कैसे स्वीकार्य है जब नेक्स्ट मॉडल की फोटो नहीं है? इसमें निष्पक्षता होनी चाहिए, न कि राजनीतिक रूप से सही बॉडी पॉजिटिविटी. विज्ञापनों को अत्यधिक वजन कम या ज्यादा दोनों को सामान्य नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि वे समान रूप से हानिकारक हैं."
हालांकि स्नैग की संस्थापक रीड कहती हैं- "मोटे लोगों को शर्मिंदा करने से उनका वजन कम करने में कोई मदद नहीं मिलती, बल्कि यह उनके मानसिक स्वास्थ्य और इसलिए उनके शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है." उनका मानना है कि बड़े शरीर वाले मॉडल्स को दिखाने वाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने का विचार समाज के "फैट फोबिया" का लक्षण है. उनके 100 कर्मचारियों में से 12 केवल "नकारात्मक टिप्पणियों को हटाने और बॉडी पॉजिटिविटी को बढ़ावा देने वाले लोगों की हौसला अफज़ाई करने" के लिए समर्पित हैं. वह कहती हैं, "मोटे लोग मौजूद हैं, वे पतले लोगों के समान ही मान्य हैं, वे कपड़े खरीदते हैं और उन्हें यह देखने की जरूरत है कि वे उनके जैसे लोगों पर कैसे दिखेंगे. "आप बड़े होने के कारण कम योग्य नहीं हैं. सभी आकार, रूप, जातीयताओं और क्षमताओं के मॉडल वैध हैं और उन्हें प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए." स्नैग के लिए मॉडलिंग करने वाली 27 वर्षीय सोफी स्कॉट कहती हैं कि अगर वह एक व्यक्ति को अपने शरीर को स्वीकार करने में मदद कर सकती हैं, तो नफरत भरी टिप्पणियां उन्हें परेशान नहीं करतीं. वह कहती हैं, "जब मुझे कोई संदेश मिलता है कि 'हम दोनों की बॉडी टाइप समान है और आपने मुझे वह पहनने के लिए प्रेरित किया जो मैं चाहती हूं', तो यह मुझे मिलने वाली हर नफरत भरी टिप्पणी को मिटा देता है."
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