17/04/2025 : हिंदू ट्रस्ट में मुस्लिम पर सवाल | उर्दू हिंदुस्तान की ज़ुबान या सिर्फ मुस्लिमों की | स्टेंस के एक हत्यारे को रिहाई | कायदे तोड़ कर बनेगी बिजली | औरत होने की परिभाषा | वाड्रा से पूछताछ
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
फारूक अब्दुल्ला ने पूर्व रॉ प्रमुख के दावे को स्टंट बताया
भाजपा का पुराना काडर हाशिये पर, असम के ‘वीडियो’ ने बताई असलियत
तमिलनाडु में भाजपा गठजोड़ संभावना में पेंच
जस्टिस गवई होंगे नए सीजेआई
वाड्रा आज फिर ईडी के प्रश्नों के उत्तर देंगे, बोले- भाजपा में होता तो स्थिति अलग होती
असम कांग्रेस प्रवक्ता रीतम सिंह की बार-बार गिरफ्तारी
अडानी घोटाले के बाद केन्या सरकार के कान हुए खड़े
‘पुस्तकें अंग्रेजी की, लेकिन नाम हिंदी में’
चीन पर ट्रम्प का टैरिफ अब 245%
दुर्लभ खनिजों की ग्लोबल सप्लाई पर कैसे चीन ने कब्ज़ा कर लिया
यूके सुप्रीम कोर्ट ने महिला की परिभाषा तय की
वक़्फ़
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने के लिए तैयार है?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संकेत दिया कि वह वक़्फ़ संपत्तियों पर स्थिति यथावत रखने का आदेश दे सकता है, जिसमें "वक़्फ़ बाय यूजर" के रूप में घोषित संपत्तियां भी शामिल हैं, जब तक कि वक़्फ़ संशोधन अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता पर निर्णय नहीं हो जाता.
एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की कुछ प्रमुख धाराओं पर रोक लगाने का प्रस्ताव दिया है. इनमें अदालतों द्वारा वक़्फ़ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई (अवर्गीकृत) करने की शक्ति और केंद्रीय वक़्फ़ परिषदों एवं बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान शामिल है, शीर्ष अदालत ने इस आदेश को पारित करने का प्रस्ताव रखा, जिसका केंद्र सरकार ने विरोध किया और किसी भी अंतरिम आदेश से पहले विस्तृत सुनवाई की मांग की.
वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 72 याचिकाओं पर सुनवाई सीजेआई संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की बेंच के समक्ष हुई.
बेंच, जो गुरुवार को भी सुनवाई जारी रखेगी, केंद्रीय वक़्फ़ परिषदों और बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने पर नाराज़ दिखी और केंद्र से पूछा कि क्या वह हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने के लिए तैयार है? केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और मुस्लिम संगठनों एवं व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक सिंघवी, सीयू सिंह की दलीलें सुनने के बाद, सीजेआई ने नोटिस जारी करने और एक अंतरिम आदेश पारित करने का प्रस्ताव रखा, यह कहते हुए कि इससे "संतुलन बना रहेगा."
कुछ प्रावधानों का "गंभीर परिणाम" हो सकता है, विशेष रूप से वे जो न्यायिक रूप से मान्यता प्राप्त वक़्फ़ संपत्तियों को कमजोर कर सकते हैं, इसे देखते हुए सीजेआई ने आदेश का प्रस्ताव रखा. "न्यायालयों द्वारा वक़्फ़ घोषित की गई संपत्तियों को डी-नोटिफाई नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे वक़्फ़-बाय-यूजर हों या वक़्फ़ बाय डीड हों, जबकि न्यायालय वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 की चुनौती पर सुनवाई कर रहा है," सीजेआई ने प्रस्तावित किया.
बेंच ने संशोधित कानून के एक प्रावधान को रोकने का भी संकेत दिया, जिसमें कहा गया है कि जांच के दौरान कलेक्टर द्वारा यह तय करने के लिए कि क्या संपत्ति सरकारी भूमि है, वक़्फ़ संपत्ति को वक़्फ़ के रूप में नहीं माना जाएगा. "वक़्फ़ बोर्डों और केंद्रीय वक़्फ़ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, पदेन सदस्यों को छोड़कर," सीजेआई ने कहा.
बेंच ने अधिनियम के प्रावधान-वार आपत्तियों पर ध्यान दिया और विधान के कई पहलुओं पर आपत्तियां व्यक्त कीं, जिसमें केंद्रीय वक़्फ़ परिषद और राज्य वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना भी शामिल है. कलेक्टरों को वक़्फ़ संपत्तियों से संबंधित विवादों का न्यायनिर्णय करने के लिए अधिकार देने और सक्षम न्यायालयों द्वारा वक़्फ़ घोषित संपत्तियों के डी-नोटिफिकेशन की अनुमति देने वाले प्रावधानों पर भी आपत्ति जताई.
आमतौर पर, जब कोई कानून पारित होता है, तो अदालतें प्रवेश स्तर पर हस्तक्षेप नहीं करतीं. लेकिन यह मामला एक अपवाद हो सकता है. अगर किसी संपत्ति को, जिसे उपयोग के आधार पर वक़्फ़ घोषित किया गया है, अधिसूचित नहीं किया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं," सीजेआई ने कहा. सुनवाई के दौरान बेंच और सॉलिसिटर जनरल के बीच उस वक्त तीखी बहस हुई, जब न्यायाधीशों ने वक़्फ़ प्रशासन में गैर-मुस्लिमों को अनुमति देने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया, जबकि हिंदू धार्मिक संस्थानों के लिए ऐसी पारस्परिकता लागू नहीं होती.
"क्या आप यह सुझाव दे रहे हैं कि मुसलमान अब हिंदू धर्मार्थ बोर्डों का हिस्सा हो सकते हैं? कृपया इसे खुलकर बताएं," बेंच ने मेहता से कहा.
कानून अधिकारी ने कहा कि पदेन सदस्यों के अलावा, वक़्फ़ परिषद में दो से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल नहीं किए जाएंगे, और इसे एक हलफनामे में बताने की पेशकश की. हालांकि, बेंच ने कहा कि नए अधिनियम के तहत, केंद्रीय वक़्फ़ परिषद के 22 सदस्यों में से केवल 8 ही मुसलमान होंगे. "अगर आठ मुसलमान हैं, तो दो जज हो सकते हैं जो मुसलमान न हों. इससे गैर-मुसलमानों का बहुमत हो जाता है. यह संस्था के धार्मिक स्वरूप के साथ कैसे मेल खाता है?" बेंच ने पूछा.
तनाव तब बढ़ गया जब कानून अधिकारी ने सभी हिंदू जजों की बेंच की निष्पक्षता पर सवाल उठाने की कोशिश की. "जब हम यहां बैठते हैं, तो अपनी व्यक्तिगत पहचान छोड़ देते हैं. हमारे लिए, सभी पक्ष कानून के समक्ष समान हैं. यह तुलना पूरी तरह गलत है," बेंच ने कहा.
"तो फिर हिंदू मंदिरों की सलाहकार समितियों में गैर-हिंदुओं को क्यों न शामिल किया जाए?" बेंच ने पूछा.
बेंच ने फिलहाल कोई औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया और कहा कि वह इस स्तर पर कानून पर रोक लगाने पर विचार नहीं करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने मेहता से पूछा कि "यूज़र के आधार पर वक़्फ़" को कैसे अस्वीकार किया जा सकता है, क्योंकि कई लोगों के पास ऐसे वक़्फ़ को पंजीकृत कराने के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं होंगे. "यूज़र के आधार पर वक़्फ़" से तात्पर्य उस प्रथा से है, जिसमें किसी संपत्ति को लंबे समय तक धार्मिक या धर्मार्थ उपयोग के आधार पर वक़्फ़ के रूप में मान्यता दी जाती है, भले ही मालिक द्वारा वक़्फ़ की कोई औपचारिक, लिखित घोषणा न की गई हो.
संशोधित प्रावधान में कहा गया है, "बशर्ते, वक़्फ़ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के प्रारंभ होने से पहले यूज़र के आधार पर पंजीकृत मौजूदा वक़्फ़ संपत्तियां वक़्फ़ संपत्ति बनी रहेंगी, सिवाय इसके कि वह संपत्ति, पूरी या आंशिक रूप से, विवादित है या सरकारी संपत्ति है. "
सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा, "ऐसे वक़्फ़ यूज़र के आधार पर कैसे पंजीकृत किए जाएंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? इससे कुछ चीजें उलट जाएंगी. हां, कुछ दुरुपयोग भी हैं, लेकिन कुछ असली भी हैं. हमने, प्रिवी काउंसिल के फैसले भी देखे हैं. यूज़र के आधार पर वक़्फ़ को मान्यता मिली है. अगर आप इसे खत्म करेंगे तो समस्या होगी. विधायिका किसी फैसले, आदेश या डिक्री को अमान्य घोषित नहीं कर सकती. आप केवल आधार को ले सकते हैं."
मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग है जो वक़्फ़ अधिनियम द्वारा शासित नहीं होना चाहता था.
तब बेंच ने मेहता से पूछा, "क्या आप कह रहे हैं कि अब से आप मुसलमानों को हिंदू धार्मिक न्यासों का हिस्सा बनने की अनुमति देंगे? खुलकर कहिए."
बेंच ने कहा कि जब किसी सार्वजनिक न्यास को 100 या 200 साल पहले वक़्फ़ घोषित किया गया था, तो अचानक से वक़्फ़ बोर्ड द्वारा उसे अधिग्रहित नहीं किया जा सकता और अन्यथा घोषित नहीं किया जा सकता. "आप अतीत को फिर से नहीं लिख सकते," बेंच ने कहा. मेहता ने कहा कि एक संयुक्त संसदीय समिति की 38 बैठकें हुईं और संसद के दोनों सदनों द्वारा कानून पारित करने से पहले 98.2 लाख ज्ञापनों की जांच की गई.
सीजेआई ने पक्षकारों से यह बताने को कहा कि क्या हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई कर सकता है और उनकी प्रार्थनाओं का सार मांगा. "हम यह नहीं कह रहे हैं कि कानून के खिलाफ याचिकाओं की सुनवाई और निर्णय लेने पर सुप्रीम कोर्ट पर कोई रोक है," उन्होंने कहा. इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी, जो कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने कहा कि वक़्फ़ अधिनियम के देश व्यापी प्रभाव होंगे और याचिकाओं को हाईकोर्ट को संदर्भित नहीं किया जाना चाहिए.
उर्दू हिंदुस्तानी तहज़ीब का सबसे बेहतरीन नमूना, इसे मुसलमानों की भाषा मानना गलत : सुप्रीम कोर्ट
महाराष्ट्र में एक नगरपालिका परिषद की इमारत पर उर्दू भाषा के साइनबोर्ड के उपयोग को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि भाषा संस्कृति है और इसे लोगों को बांटने का कारण नहीं बनना चाहिए. उर्दू "गंगा-जमुनी तहज़ीब या हिंदुस्तानी तहज़ीब का सबसे बेहतरीन नमूना है और इसका जन्म भारत में हुआ है." न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और के विनोद चंद्रन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें यह पाया गया था कि महाराष्ट्र लोक प्राधिकरण (आधिकारिक भाषाएँ) अधिनियम, 2022 या किसी अन्य कानून की कोई भी व्यवस्था उर्दू के उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाती.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "भाषा का धर्म नहीं होता और उर्दू को केवल मुसलमानों की भाषा मानना सच्चाई और भारत की विविधता की एक दुर्भाग्यपूर्ण गलतफहमी है. भाषा किसी धर्म की नहीं, बल्कि समुदाय, क्षेत्र और लोगों की होती है. भाषा संस्कृति होती है और समाज की सभ्यतागत यात्रा का मापदंड होती है."
सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि भाषा पर बहस स्वतंत्रता से पहले ही शुरू हो गई थी. यह बड़ी संख्या में भारतीयों द्वारा स्वीकार किया गया था कि वह भाषा, जो हिंदी, उर्दू और पंजाबी जैसी विभिन्न भारतीय भाषाओं के मेल से बनी है, उसे 'हिंदुस्तानी' कहा जाता है, जिसे इस देश की बड़ी आबादी बोलती है. “देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार किया था कि “हिंदुस्तानी” निश्चित रूप से पूरे भारत में संवाद का माध्यम बनेगी, क्योंकि इसे देश में बड़ी संख्या में लोग बोलते हैं. साथ ही, उन्होंने प्रांतीय भाषाओं के महत्व को भी स्वीकार किया और जोर दिया कि हिंदुस्तानी का उद्देश्य प्रांतीय भाषाओं का स्थान लेना नहीं है. इस प्रकार, उन्होंने हिंदुस्तानी को अनिवार्य द्वितीय भाषा के रूप में रखने का विचार प्रस्तुत किया," कोर्ट ने कहा.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “आज भी, देश के आम लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली भाषा उर्दू भाषा के शब्दों से भरी हुई है. भले ही किसी को इसका पता न हो.” “यह कहना गलत नहीं होगा कि उर्दू के शब्दों या उर्दू से उत्पन्न शब्दों का उपयोग किए बिना हिंदी में दैनिक बातचीत नहीं की जा सकती. 'हिंदी' शब्द स्वयं फारसी शब्द 'हिंदवी' से आया है! यह शब्दावली का आदान-प्रदान दोनों तरफ से होता है, क्योंकि उर्दू में भी संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं से उधार लिए गए कई शब्द हैं," अदालत ने टिप्पणी की.
कानूनी शब्दावली में उर्दू के उपयोग पर भी टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा : "उर्दू शब्दों का अदालती शब्दावली पर, आपराधिक और नागरिक कानून दोनों में, भारी प्रभाव है. अदालत से लेकर हलफनामा और पेशी तक, भारतीय अदालतों की भाषा में उर्दू का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. इस मामले में, हालांकि संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है, फिर भी कई उर्दू शब्द आज तक इस अदालत में उपयोग किए जाते हैं. इनमें वकालतनामा, दस्ती, आदि शामिल हैं."
शीर्ष अदालत के फैसले की सोशल मीडिया में भी भारी चर्चा रही. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा, "निर्णय पढ़िए. सुंदर लेखन."
कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व सोशल मीडिया प्रमुख बी.आर. नायडू ने “एक्स” पर लिखा, "भाषा धर्म नहीं है. यह लोगों की होती है, राजनीति की नहीं. यह उन नफरत फैलाने वालों को बड़ा झटका है जो भाषा और धर्म के नाम पर भारत को बांटते हैं." फिल्म निर्माता ओनिर ने लिखा, "छोटी-छोटी कृपाओं के लिए भगवान का शुक्र है. इतने सारे मूर्खों के साथ वे हमारी समृद्ध विविध सांस्कृतिक विरासत को नष्ट कर देंगे."
गीतकार जावेद अख्तर ने उर्दू के खिलाफ ऐतिहासिक पूर्वाग्रह का संदर्भ देते हुए लिखा, "1798 में एक इस्लामिक विद्वान शाह अब्दुल क़ादिर ने पहली बार कुरान का उर्दू में अनुवाद किया. उस समय के लगभग सभी मुफ़्तियों और काज़ियों ने उनके खिलाफ फ़तवे जारी किए, क्योंकि उन्होंने पवित्र पुस्तक का उर्दू जैसी अधर्मी भाषा में अनुवाद करने का साहस किया. कई वर्षों के बाद जिन्ना, जो अपनी जान बचाने के लिए भी उर्दू नहीं बोल सकते थे, ने घोषणा की कि उर्दू मुसलमानों की भाषा है. जो मुझे वास्तव में आश्चर्यचकित करता है, वह यह है कि अब भी कई लोग हैं जो जिन्ना पर विश्वास करते हैं.” फैसले की पीडीएफ कॉपी आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं.
फारूक अब्दुल्ला ने पूर्व रॉ प्रमुख के दावे को स्टंट बताया : पूर्व रॉ और आईबी प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत के इस दावे के बाद विवाद छिड़ गया है कि अगर मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला को विश्वास में लिया होता तो वे अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन करते. दुलत ने करण थापर को दिए साक्षात्कार में यह दावा किया और अपनी ही नवीनतम पुस्तक, ‘द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई’ का हवाला भी दिया. वहीं अब्दुल्ला ने दुलत के दावों को ‘उनकी कल्पना की उपज’ बताया है. उन्होंने कहा कि दुलत ने अपनी आने वाली पुस्तक की बिक्री बढ़ाने के लिए यह ‘सस्ता हथकंडा’ अपनाया है, जो 18 अप्रैल को रिलीज होने वाली है.
ईसाई मिशनरी स्टेंस और उनके दो बेटों के हत्यारों में से एक को अच्छे व्यवहार के आधार पर रिहाई
महेंद्र हेम्ब्रम, जो 1999 के ऑस्ट्रेलियाई ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो नाबालिग बेटों की तिहरे हत्याकांड के दोषियों में से एक थे, को 25 साल जेल में बिताने के बाद बुधवार को ओडिशा की क्योंझर जेल से रिहा कर दिया गया.
अब 50 वर्षीय हेम्ब्रम को कैद के दौरान "अच्छे व्यवहार" के आधार पर रिहा किया गया है. जेलर मानस्विनी नाइक के अनुसार, राज्य सजा समीक्षा बोर्ड के फैसले के बाद यह रिहाई हुई है.
यह घटना 21-22 जनवरी 1999 की रात की है, जब दारा सिंह के नेतृत्व वाली भीड़ ने स्टेंस और उनके बेटों - फिलिप (10) और टिमोथी (6) - पर उस समय हमला किया जब वे अपनी स्टेशन वैगन में सो रहे थे. भीड़ ने वाहन में आग लगा दी और उन्हें भागने से रोका, जिससे उनकी जलकर मौत हो गई.
इस मामले में कुल 14 आरोपी थे. हेम्ब्रम और मुख्य आरोपी बजरंग दल नेता दारा सिंह उर्फ रविंद्र पाल सिंह को दोषी ठहराया गया, जबकि 12 अन्य बरी हो गए. हेम्ब्रम को 2003 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. दारा सिंह को पहले मौत की सजा मिली थी, जिसे बाद में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया. दारा सिंह अब भी जेल में है और उसने रिहाई के लिए दया याचिका दायर की है.
जेल से रिहा होने पर हेम्ब्रम ने कहा कि उन्हें धर्मांतरण से जुड़े एक मामले में झूठा फंसाया गया था. जेल अधिकारियों ने अच्छे आचरण के लिए उन्हें माला पहनाकर विदाई दी और जेल में उनकी कमाई वाली बैंक पासबुक भी सौंपी.
भाजपा का पुराना काडर हाशिये पर, असम के ‘वीडियो’ ने बताई असलियत
भाजपा के भीतर पुराने और नए काडर के बीच अनबन की खबर इस बार असम से आई है, जहां सरकार तो बीजेपी की है, लेकिन राज और दबदबा कांग्रेस से आयातित नेताओं का है. “द इंडियन एक्सप्रेस” में सुकृता बरुआ की रिपोर्ट के अनुसार एक वीडियो ने यह जाहिर कर दिया कि चाल-चलन-चरित्र वाली पार्टी में चल क्या रहा है? वीडियो में दिखाई पड़ रहा है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप सैकिया, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की मौजूदगी में राज्य मंत्री जयंत मल्ला बरुआ पर चिल्ला रहे हैं. यह वीडियो नलबाड़ी जिले के बहजानी में भाजपा मंडल कार्यालय के उद्घाटन का है, जिसमें सैकिया को मल्ला बरुआ, जो नलबाड़ी विधानसभा क्षेत्र के विधायक भी हैं, की ओर बढ़ते हुए और उन पर चिल्लाते हुए दिखाया गया है.
सूत्रों के अनुसार, सैकिया इस बात से नाराज़ थे कि जब मुख्यमंत्री, बरुआ और मंडल अध्यक्ष अंदर थे, तब वे खुद वेन्यू में प्रवेश नहीं कर सके और उन्होंने बरुआ से पूछा कि उनके ही निर्वाचन क्षेत्र में ऐसा कैसे हो सकता है? असम कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा ने इस विवाद को भाजपा में "आरएसएस-समर्थकों" और पार्टी के "नए गार्ड" के बीच दरार निरूपित किया है.
सैकिया, जो दर्रांग-उदलगुरी के सांसद भी हैं, को इस वर्ष की शुरुआत में राज्य भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था और वे लगभग चार दशकों से आरएसएस और भाजपा में सक्रिय रहे हैं. दूसरी ओर, राज्य में भाजपा के कई प्रमुख चेहरे – जिनमें सरमा और बरुआ शामिल हैं – पिछले एक दशक में कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं. “देखिए कैसे मुख्यमंत्री, जो आम लोगों, पत्रकारों और कांग्रेस प्रवक्ताओं को जेल में डालकर अपनी बहादुरी और मर्दानगी दिखाना पसंद करते हैं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के सामने झिझक गए... आपको अपनी आवाज़ खोते देखना अच्छा लगा. आपने हमेशा अपनी कुर्सी को अपने आत्म-सम्मान से ऊपर रखा है. यह उसका ताजा सबूत है,” बोरा ने “एक्स” पर लिखा.
तमिलनाडु में भाजपा गठजोड़ संभावना में पेंच
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) अपने पुराने गठबंधन को अभी ठीक से पुनर्जीवित भी नहीं कर पाए कि उसमें दरारें सतह पर साफ दिखने लगी. 11 अप्रैल को चेन्नई में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह ने दावा किया था कि भाजपा गठबंधन राज्य में सरकार बनाएगी तो इस पर एआईएडीएमके महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी का फौरन जवाब आ गया कि यह महज ‘चुनावी गठबंधन’ है. पलानीस्वामी ने मीडिया से बातचीत में कहा, “हमने कभी गठबंधन सरकार बनाने के बारे में बात नहीं कही है. आपने गलत समझा है. यह पूरी तरह से चुनावी गठबंधन है, गठबंधन सरकार नहीं. अमित शाह ने दिल्ली के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और तमिलनाडु के लिए मेरा नाम लिया है.”
पलानीस्वामी ने कहा, ‘‘सिर्फ चुनाव ही गठबंधन की ताकत तय करेगी. हमने डीएमके के खिलाफ समान विचारधारा वाले दलों के साथ समन्वय करने का प्रयास किया है. भाजपा हमारे गठबंधन में सबसे पहले आई. बहुत जल्द, कई अन्य दल भी हमारे साथ आएंगे.” पलानीस्वामी का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब एआईएडीएमके में एक बार फिर भाजपा के साथ गठबंधन करने को लेकर बेचैनी महसूस की जा रही है. पार्टी सूत्रों ने बताया कि वरिष्ठ नेता गठबंधन से नाखुश हैं. पलानीस्वामी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नैनार नागेंद्रन ने कहा कि भाजपा नेतृत्व एआईएडीएमके के साथ बातचीत कर रहा है और वह इस पर आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे. तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज कुरियन तमिलनाडु की राज्य स्वायत्तता समिति के अध्यक्ष होंगे : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विधानसभा में राज्य की स्वायत्तता से संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने की घोषणा की. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि समिति का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कुरियन जोसेफ करेंगे. उन्होंने बिना पारिश्रमिक के मानद आधार पर इस पद को स्वीकार करने पर अपनी सहमति जता दी है.
जस्टिस गवई होंगे नए सीजेआई : भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस बीआर गवई के नाम की आधिकारिक सिफारिश की है. उनके नाम को मंजूरी के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय को भेज दिया गया है. मौजूदा सीजेआई संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो रहा है. खन्ना के बाद वरिष्ठता सूची में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का नाम है. इसलिए जस्टिस खन्ना ने उनका नाम आगे बढ़ाया है. हालांकि उनका कार्यकाल सिर्फ 7 महीने का होगा. वह 14 मई को देश के 52 वें सीजेआई के रूप में शपथ लेंगे और इस शीर्ष पद पर पहुँचने वाले दूसरे दलित होंगे.
वाड्रा आज फिर ईडी के प्रश्नों के उत्तर देंगे, बोले- भाजपा में होता तो स्थिति अलग होती
रॉबर्ट वाड्रा ने दावा किया कि उन्हें जांच एजेंसियां इसलिए निशाना बना रही हैं, क्योंकि वह गांधी परिवार का हिस्सा हैं. अगर वह बीजेपी में होते तो स्थिति अलग होती. वाड्रा ने कहा कि वह अब लगभग एक “एक्टीविस्ट” बन चुके हैं और जल्द ही राजनीति में शामिल होंगे, क्योंकि वह 1999 से लोगों के साथ काम कर रहे हैं. उधर, ईडी ने गुरुग्राम भूमि सौदे में लगातार दूसरे दिन बुधवार को भी वाड्रा से पूछताछ की. उन्हें ईडी ने गुरुवार को फिर बुलाया है. उनकी पत्नी और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा भी आज उनके साथ ईडी दफ्तर गईं. इस बीच नेशनल हेराल्ड और एजेएल मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ दायर चार्जशीट को लेकर कांग्रेस ने देश भर में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. पार्टी का आरोप है कि विदेश और आर्थिक नीतियों की असफलता को छिपाने के लिए भाजपा सरकार बदले की भावना से काम कर रही है. वहीं भाजपा का कहना है कि कांग्रेस को देश की संपत्तियों का दुरुपयोग करने का अधिकार नहीं है.
कायदे तोड़कर बनेगा महाराष्ट्र में परमाणु बिजलीघर?
इंडिया केबल ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा सीधे विदेशी एजेंसियों से एटमी बिजलीघर बनाने के समझौते पर बड़ा सवाल उठाया है. इस न्यूजलेटर के मुताबिक, ‘यदि विपक्ष द्वारा शासित राज्य सरकारें खुद को घिरा हुआ पाती हैं, तो ऐसा लगता है कि मोदी ने भाजपा शासित राज्य सरकारों को अंतरराष्ट्रीय परमाणु सहयोग जैसे संवेदनशील केंद्र सरकार के विशेषाधिकारों पर अतिक्रमण करने की पूरी स्वतंत्रता दे दी है. पिछले सप्ताह, महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित एक कंपनी, महाजेनको ने रूस के रोसाटॉम के साथ "थोरियम ईंधन के साथ एक छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर के विकास" के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. यह समझौता मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की उपस्थिति में हस्ताक्षरित किया गया. तो इसमें क्या गलत है? लगभग सब कुछ. सबसे पहले, परमाणु ऊर्जा संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत केंद्रीय सूची में है, न कि राज्य या समवर्ती सूची में. दूसरा, कार्य आवंटन नियमों के तहत, "परमाणु ऊर्जा और परमाणु विज्ञान से जुड़े मामलों में अंतरराष्ट्रीय संबंध" परमाणु ऊर्जा विभाग की जिम्मेदारी है, न कि राज्य सरकार के उपक्रमों की. तीसरा, भारत सरकार की कंपनियां परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का स्वामित्व और संचालन कर सकती हैं, लेकिन राज्य सरकार की संस्थाएं नहीं. हां, पिछले दिसंबर में एनपीसीआईएल ने 220 मेगावाट के 'भारत स्मॉल रिएक्टर' स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र से प्रस्ताव का अनुरोध जारी किया था, लेकिन निजी क्षेत्र की भूमिका केवल पैसा लगाने और उत्पन्न बिजली का उपयोग करने तक ही सीमित है. रिएक्टरों का संचालन स्वयं एनपीसीआईएल द्वारा किया जाएगा. अंत में, रोसाटॉम और रूस के पास थोरियम तकनीक भी नहीं है. वास्तव में, थोरियम ईंधन वाले रिएक्टर अभी तक मौजूद नहीं हैं—हालांकि वे दशकों से भारतीय परमाणु प्रतिष्ठान के लिए परम लक्ष्य रहे हैं—और जब तकनीक विकसित होगी, तो यह अधिक संभावना है कि यह महाजेनको की तुलना में डीएई के विशेषज्ञों द्वारा की जाएगी.
असम कांग्रेस प्रवक्ता रीतम सिंह की बार-बार गिरफ्तारी
असम कांग्रेस प्रवक्ता रीतम सिंह, जो मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के मुखर आलोचक हैं, को राज्य पुलिस ने एक महीने में तीसरी बार गिरफ्तार किया है. सरमा राज्य के गृह मंत्री भी हैं, जिनके अधीन पुलिस आती है. सिंह को पहली बार 15 मार्च को एक भाजपा विधायक की पत्नी की शिकायत पर एससी/एसटी एक्ट और मानहानि के तहत गिरफ्तार किया गया था. 28 मार्च को गुवाहाटी हाई कोर्ट ने प्रक्रियात्मक खामियां बताते हुए उन्हें जमानत दे दी. हालांकि, 12 अप्रैल को उन्हें फिर एक स्थानीय भाजपा नेता की शिकायत पर उसी एक्ट में गिरफ्तार कर लिया गया. सिंह ने इसे अपने खिलाफ राजनीतिक साजिश बताया. मोरीगांव की स्थानीय अदालत से जमानत मिलते ही, जागीरोड पुलिस ने उन्हें तुरंत फिर से हिरासत में ले लिया. एक वायरल वीडियो में सिंह के पिता को उनसे मिलने से रोके जाते और पुलिस वैन के सामने लेटते देखा गया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन और सीएम सरमा द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास बताया. उन्होंने कहा कि सिंह को केवल सोशल मीडिया पोस्ट के लिए निशाना बनाया जा रहा है. हाल ही में, एक पत्रकार को भी इसी एक्ट में गिरफ्तार किया गया था.
अडानी घोटाले के बाद केन्या सरकार के कान हुए खड़े
केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने अडानी समूह से जुड़े घोटाले के बाद मोंबासा और लामु बंदरगाहों के निजीकरण को लेकर सतर्क रुख अपनाया है. रिपोर्ट के अनुसार, अडानी समूह के साथ संभावित सौदों पर पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग के चलते सरकार ने बंदरगाह से जुड़े प्रस्तावों की दोबारा समीक्षा शुरू कर दी है. इन बंदरगाहों के संचालन के लिए निजी कंपनियों को शामिल करने की प्रक्रिया को अब धीमा कर दिया गया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अनुचित या पक्षपाती लाभ न मिले. केन्याई सरकार पर स्थानीय ट्रेड यूनियनों और विपक्षी नेताओं का दबाव भी बढ़ा है, जो चाहते हैं कि विदेशी कंपनियों को बंदरगाहों की कुंजी न सौंपी जाए, खासकर तब जब पहले से ही अडानी समूह पर वैश्विक स्तर पर जांच चल रही है. अडानी समूह पर अमेरिका में 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत देने के आरोप लगे हैं, जिसके चलते केन्या सरकार ने नैरोबी के जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रबंधन और विस्तार से संबंधित प्रस्तावित समझौते को रद्द कर दिया है. राष्ट्रपति रुटो ने स्पष्ट किया है कि मोंबासा और लामु बंदरगाहों का पूर्ण निजीकरण नहीं किया जाएगा, बल्कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से इन बंदरगाहों की दक्षता बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने की योजना है.
शिक्षा
‘पुस्तकें अंग्रेजी की, लेकिन नाम हिंदी में’
स्कूली किताबों के नए नामकरण से भाषा विवाद और उभरा, केरल की आपत्ति
केंद्र के साथ भाषा विवाद में तमिलनाडु के बाद अब केरल ने भी आपत्ति दर्ज कराई है. राज्य के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने केंद्र सरकार पर "सांस्कृतिक अधिरोपण" और "देश की भाषाई विविधता को कमजोर करने" का आरोप लगाया है. इसकी वजह एनसीईआरटी है, जिसने अंग्रेज़ी माध्यम की पाठ्यपुस्तकों को हिंदी शीर्षक देकर भाषा विवाद को और उभार दिया है. शिवनकुट्टी ने कहा कि अंग्रेजी की किताबों को हिंदी शीर्षक देने का फैसला गंभीर रूप से तर्कहीन है. क्योंकि यह अन्य गैर-हिंदीभाषी राज्यों की भाषाई विविधता की रक्षा और क्षेत्रीय सांस्कृतिक स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता के खिलाफ है. संघीय सिद्धांतों और संवैधानिक मूल्यों के भी विरुद्ध है. उन्होंने कहा, "पाठ्यपुस्तकों में शीर्षक केवल नाम नहीं हैं; वे बच्चों की धारणा और कल्पना को आकार देते हैं. अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को अंग्रेजी शीर्षक मिलने चाहिए.”
उल्लेखनीय है कि एनसीईआरटी ने विभिन्न कक्षाओं के लिए पुस्तकों के नए नाम जारी किए हैं. कक्षा 1 और कक्षा 2 की पुस्तकों का नाम अब 'मृदंग' और कक्षा 3 की एक पुस्तक का नाम 'संतूर' रखा गया है. कक्षा 6 की अंग्रेजी पुस्तक का नाम 'हनीसकल' से बदलकर 'पूर्वी' कर दिया गया है.
बता दें कि केरल और तमिलनाडु सहित विभिन्न राज्यों के कई मंत्रियों ने केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) के माध्यम से स्कूली छात्रों पर "हिंदी थोपने" की कोशिश का आरोप लगाया है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी "हिंदी थोपने" को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की थी. उनका दावा है कि केंद्र ने एनईपी में तीन-भाषा फॉर्मूला लागू न करने के कारण राज्य के स्कूलों को फंड देने से इनकार कर दिया है. इधर, “द इंडियन एक्सप्रेस” में अभिनय हरगोविंद के अनुसार शिवनकुट्टी की आलोचनाओं के जवाब में एनसीईआरटी ने कहा है कि भारतीय संगीत विरासत के तत्वों के नाम पर पाठ्यपुस्तकों का नामकरण किया गया है, क्योंकि भारत की समृद्ध संगीत विरासत देश की सभी भाषाई और सांस्कृतिक परंपराओं में समान है. इसीलिए, पाठ्यपुस्तकों के नाम भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों और शास्त्रीय रागों जैसे बांसुरी, मल्हार, सारंगी, मृदंग, वीणा, संतूर, पूर्वी, ख़याल और दीपकम के नाम पर रखे गए हैं.
जानकारी के अनुसार कक्षा 6 की अंग्रेज़ी पाठ्यपुस्तक (जो पिछले वर्ष शुरू हुई थी) और अब बाज़ार में उपलब्ध कक्षा 7 की नई किताब का नाम 'पूर्वी' है. पहले कक्षा 7 की अंग्रेज़ी किताब का नाम 'हनीकॉम्ब' था, जबकि पुरानी कक्षा 6 की किताब का नाम 'हनीसकल' था.
चीन पर अब ट्रम्प का टैरिफ अब 245%
डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने घोषणा की है कि अब चीन को अमेरिका से किए जाने वाले आयात पर 245% टैरिफ का सामना करना पड़ेगा. यह फैसला चीन की ओर से व्यापार युद्ध में जवाबी कार्रवाई के चलते लिया गया है, जिससे वैश्विक बाजारों और निवेशकों की भावनाओं पर असर पड़ा है. व्हाइट हाउस द्वारा मंगलवार देर रात जारी एक तथ्य पत्र में कहा गया कि "लिबरेशन डे" के दिन राष्ट्रपति ट्रम्प ने उन सभी देशों पर 10% टैरिफ लगाया था, जो अमेरिका पर अधिक कर लगाते हैं. हालांकि, जैसे ही 75 से अधिक देशों ने अमेरिका से नए व्यापार समझौते के लिए संपर्क किया, इन टैरिफ को अस्थायी रूप से रोक दिया गया - सिर्फ चीन को छोड़कर. बयान में कहा गया, "चीन ने जवाबी कार्रवाई की, जिसके चलते अब चीन पर अमेरिका में आयात पर 245% तक का टैरिफ लगाया जा रहा है." इससे पहले अमेरिका ने चीन पर 145% टैरिफ लगाया था, जिसके बाद चीन ने भी 125% टैरिफ लगाकर पलटवार किया. इसके साथ ही बीजिंग ने कुछ प्रमुख एयरोस्पेस और रक्षा उपकरणों के निर्यात पर भी रोक लगा दी थी. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि उनकी सरकार टैरिफ को लेकर अपनी "गंभीर स्थिति" बनाए रखेगी और यह व्यापार युद्ध अमेरिका द्वारा शुरू किया गया था. वहीं, व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प चीन से व्यापार समझौते के लिए तैयार हैं, लेकिन अब पहल बीजिंग को करनी होगी.
भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए टेंशन : अमेरिका द्वारा अधिकतम 245% टैरिफ लगाए जाने की आशंका के चलते, चीन खरीदारों से लागत की भरपाई करने के लिए दाम बढ़ा सकता है. यह भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए चिंता की बात है, क्योंकि चीन भारत के फार्मा उत्पादों के आयात में सबसे बड़ा हिस्सा रखता है और पिछले कुछ वर्षों में भारतीय उद्योग ने चीनी एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (API) की खरीद को लगातार बढ़ाया है. पहले से ही भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 99.2 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है.
दुर्लभ खनिजों की ग्लोबल सप्लाई पर कैसे चीन ने कब्ज़ा कर लिया
'द न्यूयॉर्क टाइम्स' के लिए केथ ब्रैडशर की रिपोर्ट है कि 2010 में जब चीन ने जापान को दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, तब दुनिया हिल गई. जापानी उद्योगपति टीवी पर आए और चेतावनी दी कि उनके पास ये आवश्यक कच्चे पदार्थ खत्म हो रहे हैं. यह प्रतिबंध केवल सात हफ्तों तक चला, लेकिन इसने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को हमेशा के लिए बदल दिया. इसके बाद चीन ने इस उद्योग पर आक्रामक नियंत्रण करना शुरू किया. भ्रष्टाचार मिटाया, तस्करी को कुचला और पूरी व्यवस्था को एक राज्य-नियंत्रित कंपनी के अधीन कर दिया.
जापान ने सीखा, अमेरिका चूका : जापान ने इस संकट से सबक लिया और ऑस्ट्रेलिया में निवेश कर अपने लिए विकल्प बनाए, लेकिन अमेरिका ने बहुत कम कदम उठाए. आज, 15 साल बाद भी, अमेरिका दुर्लभ खनिजों के प्रोसेसिंग के लिए चीन पर लगभग पूरी तरह निर्भर है. इसके कारण अमेरिकी ऑटो, रक्षा और एयरोस्पेस कंपनियां असुरक्षित हैं. चीन ने ट्रम्प के टैरिफ के विरोध में अब कुछ दुर्लभ खनिजों और उनके बने मैग्नेट्स के निर्यात पर रोक लगा दी है.
ये छोटे मैग्नेट, बड़ी ताकत : दुर्लभ खनिजों से बने छोटे-से मैग्नेट जो एक अंगूठी जितने होते हैं, सामान्य लोहे के मैग्नेट से 15 गुना ताकतवर होते हैं. इनका उपयोग इलेक्ट्रिक कारों, ड्रोन, रोबोट, पवन टरबाइनों, मिसाइलों और जेट्स में होता है.
बीजिंग की सख्ती और नियंत्रण : 2010 के प्रतिबंध के बाद, बीजिंग ने तस्करी और माफियाओं पर शिकंजा कसा. खासकर जियांग्शी प्रांत के लोंगनान इलाके में, जहां से भारी दुर्लभ खनिज निकाले जाते थे, वहां सरकारी दस्तों ने हजारों लोगों को गिरफ़्तार किया और खनिज खदानें जब्त कर लीं. इन खदानों को बाद में चाइना रेयर अर्थ ग्रुप नामक एक राज्य-नियंत्रित कंपनी के अंतर्गत ला दिया गया. अब चीन दुनिया के 90% मैग्नेट बनाता है. गानझोउ शहर में दो विशाल मैग्नेट फैक्ट्रियों का निर्माण अभी भी जारी है. 2020 में शी जिनपिंग ने सप्लाई चेन को चीन पर निर्भर बनाए रखने को "राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा" बताया था और कहा था कि "विदेशी आपूर्ति कटौती को रोकने की चीन की क्षमता" को मज़बूत किया जाना चाहिए.
जापान ने विकल्प बनाए, अमेरिका पिछड़ा : जापान ने 2010 के बाद अपने उद्योगों को 2 साल तक की दुर्लभ खनिजों की भंडारण क्षमता देने की योजना बनाई. जापानी सरकार ने सुमितोमो ग्रुप के जरिए ऑस्ट्रेलिया की लायनास कंपनी में निवेश किया, जो अब जापान को 60% दुर्लभ खनिज मुहैया कराती है. जापानी मैग्नेट कंपनियां जैसे प्रोतेरियल, शिन-एत्सू और टीडीके ने चीन और वियतनाम में उत्पादन सुविधाएं शुरू कीं, लेकिन अपने देश में भी उत्पादन बनाए रखा.
अमेरिका की लड़खड़ाती कहानी : अमेरिका में रेयर अर्थ उद्योग की शुरुआत 1980 के दशक में जीएम की एक सहायक कंपनी से हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे ये कारखाने चीन और सिंगापुर चले गए. ओबामा प्रशासन के समय, हिटाची मेटल्स ने उत्तरी कैरोलिना में 2011 से 2013 के बीच एक मैग्नेट फैक्ट्री बनाई, लेकिन लागत अधिक होने के कारण कंपनियां फिर से चीन की सस्ती आपूर्ति पर लौट गईं. 2020 में फैक्ट्री बंद हो गई. आज अमेरिका की एकमात्र सक्रिय खदान कैलिफोर्निया के माउंटेन पास में है, जिसे एमपी मैटेरियल्स चलाती है. टेक्सास में एक फैक्ट्री भी बन रही है, जो चीन की एक दिन की उत्पादन क्षमता के बराबर ही सालाना उत्पादन कर सकेगी. अमेरिका में एक खदान को चालू करने में 29 साल तक लग सकते हैं. यह पर्यावरणीय नियमों और ज़ोनिंग कानूनों की वजह से है. वहीं चीन में खदानें जल्दी शुरू की जाती हैं और नियम अपेक्षाकृत ढीले होते हैं. इसके अलावा, वैश्विक बाजार में दुर्लभ खनिजों की मांग बहुत कम है, इसलिए अमेरिकी कंपनियां जोखिम लेने से बचती हैं. विशेषज्ञ डेविड सैंडालो कहते हैं, “अमेरिकी कंपनियां जोखिम नहीं लेना चाहतीं, क्योंकि वे जानती हैं कि ग्राहक अंत में सस्ते चीनी उत्पाद ही खरीदेंगे.”
चलते-चलते
यूके सुप्रीम कोर्ट ने महिला की परिभाषा तय की
यूके सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वसम्मति से यह निर्णय दिया है कि समानता कानून के तहत महिला की परिभाषा बायोलॉजी पर आधारित है. यह फैसला "फॉर वीमेन स्कॉटलैंड" नामक अभियान समूह द्वारा स्कॉटिश सरकार के खिलाफ दायर किए गए मुकदमे का परिणाम है. यह फैसला एकल-लिंग स्थानों और सेवाओं, जैसे अस्पताल के वार्ड, जेल, शरणस्थल और सहायता समूहों के संचालन के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है.
न्यायाधीश लॉर्ड होज ने कहा, "इस अदालत का सर्वसम्मत निर्णय है कि समानता अधिनियम 2010 में 'महिला' और जेंडर शब्द एक जैविक महिला और जैविक जेंडर को संदर्भित करते हैं." उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले को समाज के एक समूह की दूसरे पर जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
अदालत ने इस बात पर फैसला सुनाया कि 2010 के समानता अधिनियम में "जेंडर" का अर्थ जैविक जेंडर है, न कि 2004 के जेंडर रिकग्निशन एक्ट के तहत प्रमाणित कानूनी जेंडर. स्कॉटिश सरकार ने तर्क दिया था कि जेंडर रिकग्निशन सर्टिफिकेट (GRC) वाले ट्रांसजेंडर लोग जैविक महिलाओं के समान लिंग-आधारित सुरक्षा के हकदार हैं. "फॉर वीमेन स्कॉटलैंड" की सह-संस्थापक सुसान स्मिथ ने कहा, "आज न्यायाधीशों ने वही कहा जो हम हमेशा से मानते थे, कि महिलाओं को उनके जैविक लिंग द्वारा संरक्षित किया जाता है." स्कॉटलैंड के प्रथम मंत्री जॉन स्विनी ने कहा कि स्कॉटिश सरकार फैसले को स्वीकार करती है और फैसले के निहितार्थों पर चर्चा करेगी. हालांकि, स्कॉटिश ग्रीन पार्टी की सांसद मैगी चैपमैन ने फैसले को "मानवाधिकारों के लिए गहरा चिंताजनक" बताया और कहा कि यह "हमारे समाज के सबसे हाशिए पर पड़े लोगों के लिए एक बड़ा झटका है." स्कॉटिश ट्रांस के प्रबंधक विक वैलेंटाइन ने कहा कि वे फैसले से "स्तब्ध" हैं और यह "जेंडर रिकग्निशन सर्टिफिकेट वाले ट्रांस पुरुषों और महिलाओं को कानून किस प्रकार मान्यता देता है, इसके 20 वर्षों की समझ को उलट देता है."
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