17/06/2025 : सबसे गरीबों का देश कौन? | जनगणना का ऐलान | जंग की फैलती आँच जी 7 से लेकर भारतीय छात्रों तक | मेहुल चौकसी को हरजाना चाहिए | विचार की सजा देती यूनिवर्सिटी
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियां :
सबसे ज्यादा गरीब लोग किस देश में रहते हैं?
भारतीयों में बचत और ऋण की बदलती प्रकृति
इजरायल द्वारा ईरान पर हमले के चार दिन बाद भारत ने ईरान में छात्रों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना शुरू किया; दो कश्मीरी छात्र घायल
धुबरी: सांप्रदायिक तनाव, कर्फ्यू, "देखते ही गोली मारने" के आदेश और रातों-रात कार्रवाई
कनाडा के कैलगरी में मोदी के खिलाफ प्रदर्शन
बीएसएफ ने बांग्लादेश में धकेले पश्चिम बंगाल के तीन निवासी, राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद लौटे भारत
पहलगाम के बाद अस्त-व्यस्त हो गई कश्मीरी छात्रों की शैक्षणिक यात्रा
मेहुल चोकसी ने भारत सरकार से हर्जाना मांगा
मैतेई इलाकों से लगे सात शिविरों को बंद करने पर सहमति
केदारनाथ में आज से फिर हेलिकॉप्टर सेवा
उर्दू पर जम्मू-कश्मीर में विवाद
आजादी या भारत में विलय के लिए लड़ेंगे पाकिस्तान के ये इलाके : इंद्रेश कुमार
जनगणना 2027 के लिए अधिसूचना जारी, जातिगत गणना भी होगी शामिल
पायलट के अंतिम शब्दों की जांच करेगी टीम, ब्लैक बॉक्स से मिली अहम जानकारी
तीन ड्रीमलाइनर रास्ते से लौटे
ईरान की मिसाइलों ने इजरायल में मचाई तबाही, तेहरान भी झुलस रहा है
गाज़ा में खाद्य वितरण केंद्र के पास गोलीबारी में 37 फिलिस्तीनियों की मौत
G7 : यूरोपीय नेता ईरान को फिर से वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश में जुटे, ट्रम्प ने कहा- 'इस मंच पर होने चाहिए रूस और चीन'
G7 : मार्क कार्नी की पहली अग्निपरीक्षा
सबसे ज्यादा गरीब लोग किस देश में रहते हैं?
सुभाष गर्ग : हम चौथी सबसे बड़ी इकोनॉमी का डंका पीटें या फिर दुनिया में सबसे अधिक गरीबों के देश होने पर शर्म करें
‘डेक्कन हेरल्ड’ में पूर्व वित्त और आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने यह दिलचस्प विश्लेषण किया है, जो भारत में आकंड़ों के साथ हो रही उठापटक को दर्शाता है और साथ ही सरकारी दावों की कलई भी खोलता है. गर्ग 'द टेन ट्रिलियन ड्रीम डेंटेड', 'कमेंट्री ऑन बजट 2025-2026', और 'वी ऑल्सो मेक पॉलिसी' के लेखक हैं. और X पर इस हैंडल: @Subhashgarg1960 से पोस्ट करते हैं.
विश्व बैंक हर सात साल में अपनी नियमित वैश्विक गरीबी का लेखा जोखा पेश करता है. 2024 में प्रकाशित अंतिम गरीबी रिपोर्ट में अत्यधिक गरीबों की संख्या (जिनकी प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति समानता (PPP) आय 2017 की कीमतों पर ₹178 प्रति दिन है) भारत में 12.9 करोड़ (कुल 69.2 करोड़ में से) बताई गई थी. वैश्विक कुल का 18.6 प्रतिशत के साथ, भारत में अत्यधिक गरीबों की सबसे बड़ी आबादी थी. इस महीने, विश्व बैंक ने एक अभूतपूर्व अपडेट (2025) प्रकाशित किया, जो मुख्यतः भारत पर केंद्रित है. 2021 PPP आय के ₹249 प्रति व्यक्ति प्रति दिन पर, दुनिया भर में अत्यधिक गरीबों की संख्या बढ़कर 80.8 करोड़ हो गई है. हालांकि, भारत के लिए अत्यधिक गरीबों की संख्या घटाकर 7.52 करोड़ कर दी गई है. एक साल में, विश्व बैंक ने भारत के अत्यधिक गरीबों को 5.38 करोड़ तक कम कर दिया है. विश्व बैंक ने यह जादू कैसे किया?
भारत की नई सर्वेक्षण पद्धति की स्वीकृति: भारत ने 2022-2023 में एक नया उपभोग सर्वेक्षण किया, 2016-2017 के नियमित पांच-वर्षीय सर्वेक्षण को अविश्वसनीय मानकर छोड़ने के बाद. 2024 गरीबी रिपोर्ट प्रकाशित करते समय, विश्व बैंक ने नए उपभोग सर्वेक्षण के निष्कर्षों को स्वीकार नहीं किया था और उस पद्धति का उपयोग करके भारत के गरीबी अनुमान प्रस्तुत किए थे जिसका वह 1990 से उपयोग कर रहा है, जब उसने पहली बार वैश्विक गरीबी अनुमान प्रकाशित किए थे.
पूर्ण बदलाव करते हुए, 2025 अपडेट में, विश्व बैंक ने भारत के 2022-2023 सर्वेक्षण को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है. मुफ्त खाद्यान्न को उनके बाजार मूल्य पर गिनने सहित कुछ समायोजन करके, इसने 2011-2012 के लिए भारत के संशोधित गरीबी अनुमान भी तैयार किए हैं, जब भारत में अंतिम पूर्ण-स्तरीय उपभोग सर्वेक्षण किया गया था. परिणाम आश्चर्यजनक हैं.
आंकड़ों का विश्लेषण: समान स्मृति अवधि (URP) नामक मानक पद्धति का उपयोग करके, विश्व बैंक ने 2011 के लिए ₹178 PPP (2017) पर भारत की गरीबी 28.94 करोड़ (भारत की जनसंख्या का 22.9 प्रतिशत) अनुमानित की थी. उसी पद्धति के अनुसार, विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि 2021 में भारत में 18.21 करोड़ (12.9 प्रतिशत) अत्यधिक गरीब हैं. 2022-2023 सर्वेक्षण में भारत की बदली गई पद्धति को अपनाना, जिसे संशोधित मिश्रित स्मृति अवधि (MMRP) कहा जाता है, ₹178 PPP (2017) पर अत्यधिक गरीबों की संख्या को 2011 में 20.6 करोड़ (16.2 प्रतिशत) और 2022 में 3.37 करोड़ (2.35 प्रतिशत) तक कम कर देता है. वाह, भारत की बदली गई पद्धति ने भारत में अत्यधिक गरीबी को गायब ही कर दिया!
वही सांख्यिकीय जिमनास्टिक ₹249 प्रति दिन प्रति व्यक्ति बेंचमार्क (2021 PPP) में भारत के अत्यधिक गरीबों के बारे में देखा जाता है. इस बेंचमार्क के अनुसार, विश्व बैंक ने पाया कि 2011 में भारत में 34.44 करोड़ (27.12 प्रतिशत) अत्यधिक गरीब थे, जो 2022 में घटकर 7.52 करोड़ (5.25 प्रतिशत) हो गए - लगभग 27 करोड़ की कमी. यही वह संख्या है जिसके बारे में नरेंद्र मोदी सरकार गुणगान कर रही है.
तीन अलग-अलग आंकड़े : वास्तव में, विश्व बैंक 2025 अपडेट में भारत में अत्यधिक गरीबों की तीन संख्याएं हैं - 18.21 करोड़ (URP ₹178 at 2017 PPP), 3.37 करोड़ (MMRP ₹178 at 2017 PPP), और 7.52 करोड़ (MMRP ₹249 at 2021 PPP). यह रेंज 5.4 गुना उतार-चढ़ाव करती है! आप कोई भी गरीबी अनुमान चुन सकते हैं जो आपको अपील करे या उन सभी को फेंक सकते हैं क्योंकि विश्व बैंक यह भी कहता है कि ₹178/₹249 प्रति दिन (2017/2021 PPP) बेंचमार्क के अनुसार अत्यधिक गरीबी का मापदंड भारत जैसे निम्न MIC के लिए अप्रासंगिक है.
भारत में सबसे अधिक गरीब: विश्व बैंक का मानना है कि ₹567 (2017 PPP)/₹688 (2021 PPP) बेंचमार्क MICs और उच्च-आय वाले देशों (HICs) के लिए सही है, जिनमें अब वैश्विक जनसंख्या का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा रहता है. यह बेंचमार्क भोजन और कपड़े की बुनियादी जरूरतों के अलावा बिजली, स्वास्थ्य सेवाओं, डिजिटल पहुंच आदि जैसी मानवीय आवश्यकताओं के उपभोग को भी ध्यान में रखता है, जिस पर ₹178/₹249 अत्यधिक गरीबी बेंचमार्क आधारित है. ₹567/₹688 बेंचमार्क के अनुसार, 2025 अपडेट के अनुसार भारत में 2022 में 117.57 करोड़ गरीब (भारत की जनसंख्या का 82.06 प्रतिशत) हैं, जबकि 2011 में 117.44 करोड़ (92.48 प्रतिशत) थे - जो गरीबों की पूर्ण संख्या में मुश्किल से कोई कमी का संकेत देता है. उसी बेंचमार्क के अनुसार, दुनिया में कुल 383.18 करोड़ गरीब हैं, जो भारत को दुनिया के 30.7 प्रतिशत गरीबों का घर बनाता है. सभी देशों में सबसे अधिक गरीबों की संख्या के साथ, भारत के गरीबों की संख्या पूरे उप-सहारा अफ्रीका (108.66 करोड़) के सभी गरीबों की कुल संख्या से अधिक है.
अन्य मापदंड : विश्व बैंक एक और गरीबी बेंचमार्क का उपयोग करता है, जिसे वह सेवानिवृत्त कर रहा है, जो 2017 में MICs के लिए विकसित किया गया था - ₹348 प्रति व्यक्ति प्रति दिन (2021 PPP). इस बेंचमार्क के अनुसार, 2025 में दुनिया में गरीबों की कुल संख्या 160.3 करोड़ है. इनमें से, भारत में 34.23 करोड़ (कुल वैश्विक गरीबों का 21.35 प्रतिशत) हैं.
इस मेट्रिक में भी, भारत में दुनिया में सबसे अधिक गरीब हैं. उप-सहारा अफ्रीका (SSA) में 77.58 करोड़ गरीब (48.4 प्रतिशत) हैं. विश्व बैंक ने अभी तक SSA में गरीबों का देशवार विभाजन प्रकाशित नहीं किया है. चूंकि नाइजीरिया की SSA में सबसे बड़ी जनसंख्या है (लगभग 22.78 करोड़), कोई भी SSA देश में भारत से अधिक गरीब नहीं होंगे. तुलना के लिए, पूरे पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र, जिसमें चीन भी शामिल है, में केवल 14.3 करोड़ हैं - इस ₹348 बेंचमार्क के अनुसार भारत के गरीबों का लगभग 40 प्रतिशत. भारत को इस उपलब्धि पर गर्व नहीं हो सकता, लेकिन इसमें दुनिया में सबसे अधिक गरीब हैं. जबकि हम तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए जापान और जर्मनी के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, गरीबी की दौड़ में बिल्कुल भी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है.

भारतीयों में बचत और ऋण की बदलती प्रकृति
“इंडिया स्पेंड” में विजय जाधव की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों (2023-24 तक) में भारतीय घरों की वित्तीय बचत की संरचना में बदलाव आया है. जमा (डिपोजिट्स) अब भी सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं, लेकिन शेयर, लघु बचत और सरकारी बॉन्ड तथा भविष्य निधि और पेंशन फंड जैसे साधनों की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है. इसी तरह, बैंक भारतीय परिवारों को ऋण देने वाले सबसे बड़े संस्थान बने हुए हैं, लेकिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से लिए गए ऋणों में भी वृद्धि देखी गई है.
कुल मिलाकर, मार्च 2024 तक, भारतीय परिवारों के पास लगभग ₹320 ट्रिलियन (3.7 ट्रिलियन डॉलर) की वित्तीय संपत्ति और ₹121 ट्रिलियन (1.4 ट्रिलियन डॉलर) की देनदारियां थीं.
वर्ष 2022 में, “इंडिया स्पेंड” ने रिपोर्ट किया था कि भारत के सबसे गरीब घर रोजमर्रा के खर्चों के लिए, खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान और बाद में, ऋण पर निर्भरता बढ़ा रहे हैं. इस रिपोर्ट में उधारी के तरीकों में बदलाव का उल्लेख किया गया था- “शहरी गरीब संस्थागत ऋण की ओर बढ़े, जबकि ग्रामीण गरीब अब भी साहूकारों पर निर्भर.”
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों का उपयोग करते हुए यह समझा जा सकता है कि भारतीय परिवार कैसे बचत और उधारी कर रहे हैं. वर्ष 2022-23 में भारतीय परिवारों ने ₹29.7 ट्रिलियन (340 बिलियन डॉलर) की वित्तीय संपत्तियां और ₹15.6 ट्रिलियन (180 बिलियन डॉलर) की देनदारियां जोड़ीं. अनुमानित 29.4 करोड़ परिवारों के हिसाब से, औसतन एक परिवार ने उस वर्ष ₹1 लाख की वित्तीय संपत्ति और ₹53,000 की देनदारियां जोड़ीं.
कुल वित्तीय संपत्तियों, जिन्हें MoSPI के आंकड़ों में सकल वित्तीय बचत के रूप में रिपोर्ट किया जाता है, में नकद, जमा और अन्य वित्तीय निवेश शामिल हैं. देनदारियां बैंकों और गैर-बैंक ऋणदाताओं से लिए गए ऋण को दर्शाती हैं. इन दोनों आंकड़ों के बीच का अंतर उस वर्ष की शुद्ध वित्तीय बचत होती है.
इजरायल द्वारा ईरान पर हमले के चार दिन बाद भारत ने ईरान में छात्रों को सुरक्षित स्थानों पर भेजना शुरू किया; दो कश्मीरी छात्र घायल
ईरान और इजरायल के बीच लगातार चौथे दिन मिसाइल हमलों के बाद, भारत के विदेश मंत्रालय ने सोमवार सुबह घोषणा की कि तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने ईरान में मौजूद कुछ भारतीय छात्रों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है. मंत्रालय ने यह भी बताया कि "अन्य संभावित विकल्पों की भी जांच की जा रही है", हालांकि इन विकल्पों का अभी विस्तार से उल्लेख नहीं किया गया है.
इधर खबर है कि तेहरान में एक होस्टल पर इजरायली मिसाइल हमले की चपेट में आकर दो कश्मीरी छात्र घायल हुए हैं. जानकारी के अनुसार, ईरान के विभिन्न विश्वविद्यालयों में लगभग 1,500 भारतीय छात्र, जिनमें बड़ी संख्या में कश्मीरी छात्र शामिल हैं, पढ़ाई कर रहे हैं. कश्मीर में इन छात्रों की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता जताई जा रही है.
पत्रकार जहांगीर अली की रिपोर्ट के अनुसार, विदेश मंत्रालय की आधिकारिक घोषणा से पहले, तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने ईरानी अधिकारियों को पत्र लिखकर पश्चिमी ईरान के उरमिया शहर में रह रहे भारतीय मूल के कुछ छात्रों को आर्मेनिया में स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी थी. एक छात्र के पिता ने बताया कि उनका बेटा और अन्य छात्र तेहरान से लगभग 150 किलोमीटर दूर क़ोम शहर में स्थानांतरित कर दिए गए हैं.
भारत ने SCO के बयान से बनाई दूरी : इस बीच, भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) द्वारा इजरायल के हमलों की निंदा करने वाले बयान से दूरी बना ली है. भारत ने स्पष्ट किया है कि वह SCO के इस निर्णय में शामिल नहीं था और उसने अपने मौलिक रुख अन्य सदस्य देशों, जिनमें ईरान भी शामिल है, को स्पष्ट रूप से बता दिया है.
विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तीखी प्रतिक्रिया: इजरायल की कार्रवाई को लेकर विपक्ष शासित दो बड़े राज्यों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन तथा केरल के मुख्यमंत्री और सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता पिनराई विजयन ने इसरायली कार्रवाई की तीव्र आलोचना की है. मुख्यमंत्री स्टालिन ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा- “ईरान पर इजरायल के हमले एक लापरवाह आक्रामकता हैं, जो एक बड़े युद्ध को जन्म दे सकते हैं. गाज़ा पर जारी बमबारी और फिलिस्तीनी नागरिकों की पीड़ा के साथ मिलकर यह हिंसात्मक रास्ता निंदनीय है. दुनिया को संयम, न्याय और गंभीर कूटनीति की ओर बढ़ना चाहिए.”
धुबरी: सांप्रदायिक तनाव, कर्फ्यू, "देखते ही गोली मारने" के आदेश और रातों-रात कार्रवाई
'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए सुकृति बरुआ की रिपोर्ट है कि पश्चिमी असम के मुस्लिम-बहुल जिले धुबरी में ईद-उल-अजहा के बाद फैले सांप्रदायिक तनाव के चलते स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गई है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के शुक्रवार को दौरे के बाद रातोंरात छापेमारी कर 38 और लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इससे पहले, 8 और 9 जून को हिंदू मंदिर में कथित गाय के अवशेष मिलने के बाद भड़की हिंसा के चलते पहले ही 22 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका था.
दरअसल, धुबरी के हनुमान मंदिर (वार्ड 3) में पहले दिन गाय का सिर और अगले दिन फिर गाय के अन्य अवशेष मिलने से लोगों की भावनाएं आहत हुईं. इससे पथराव, दुकानों की बंदी और धारा 144 लागू होने जैसे हालात बने. पुलिस ने इस संबंध में तीन अलग-अलग मामलों में पांच एफआईआर दर्ज की हैं, जिनमें असम मवेशी संरक्षण कानून, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना, षड्यंत्र, गंभीर चोट पहुंचाना और सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाना शामिल हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि गोलपाड़ा जिले में एक मंदिर के पास कथित रूप से बीफ फेंकने के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
मुख्यमंत्री सरमा ने शुक्रवार को दौरे में कहा- "धुबरी में सभी अपराधियों की गिरफ्तारी के आदेश दिए गए हैं, जिनमें गैर-जमानती वारंट वाले और आपराधिक इतिहास वाले लोग भी शामिल हैं." उन्होंने यह भी कहा कि "रात में गोली मारने के आदेश" दिए जाएंगे, हालांकि अतिरिक्त एसपी दीपज्योति तालुकदार ने स्पष्ट किया कि ऐसे कोई औपचारिक आदेश अभी तक पुलिस को नहीं मिले हैं. मुख्यमंत्री के दौरे के बाद, राज्य सरकार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए APS अधिकारी लीना डोले को धुबरी का नया एसएसपी नियुक्त किया, जो पहले हैलाकांडी में पदस्थ थीं. स्थानीय विधायक नज़रुल हक़ (AIUDF) ने आरोप लगाया- “मुख्यमंत्री का ‘गोली मारने’ का बयान अत्यधिक था. अब तक जितने लोग गिरफ्तार हुए हैं, वे सभी मुस्लिम हैं, जबकि पत्थरबाज़ी दोनों ओर से हुई थी.”
कनाडा के कैलगरी में मोदी के खिलाफ प्रदर्शन
'सीबीसी' की रिपोर्ट है कि रविवार को कनाडा के कैलगरी शहर में सैकड़ों लोगों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के G7 समिट में शामिल होने के विरोध में ज़ोरदार प्रदर्शन किया. यह शिखर सम्मेलन अल्बर्टा के कानानास्किस में शुरू होने वाला है, जहां मोदी को कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी द्वारा अंतिम समय में आमंत्रित किया गया था. कैलगरी म्यूनिसिपल प्लाज़ा के बाहर हुए इस प्रदर्शन में करीब 500 प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया. बड़ी संख्या में लोग ड्राइविंग रैली में भी शामिल हुए, जिसमें खालिस्तान समर्थक झंडे और पोस्टर लगे वाहनों ने कैलगरी के डाउंटाउन क्षेत्र में मार्च किया. प्रदर्शनकारियों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मोदी सरकार के मानवाधिकार रिकॉर्ड और भारतीय सिख समुदाय के साथ कथित व्यवहार की जांच की मांग की.
बीएसएफ ने बांग्लादेश में धकेले पश्चिम बंगाल के तीन निवासी, राज्य सरकार के हस्तक्षेप के बाद लौटे भारत
'द हिंदू' के लिए शिव सहाय सिंह की रिपोर्ट है कि मुंबई में कार्यरत पश्चिम बंगाल के तीन मजदूरों को इस सप्ताह की शुरुआत में कथित रूप से सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा बांग्लादेश में धकेल दिया गया था. रविवार को ये तीनों मजदूर राज्य के कूचबिहार ज़िले से भारत लौट आए. मुर्शिदाबाद ज़िले के बेलडांगा के निवासी मीनाजुल शेख ने 'द हिंदू' को बताया कि उनका भाई मीनारुल शेख मुंबई में काम कर रहा था, जहां से उसे पुलिस ने उठाया और बाद में बांग्लादेश में धकेल दिया गया. उन्होंने कहा, “हमें समूह के एक व्यक्ति का फोन आया, जिसने बताया कि मीनारुल बांग्लादेश में है. हमने बेलडांगा थाने में शिकायत की और पुलिस ने हमें आश्वासन दिया कि वे जल्द ही वापस लौटेंगे.”
पहलगाम के बाद अस्त-व्यस्त हो गई कश्मीरी छात्रों की शैक्षणिक यात्रा
पहलगाम आतंकी हमले के बाद धमकियों, उत्पीड़न और हिंसा ने कश्मीरी छात्रों की शैक्षणिक यात्रा को बाधित कर दिया है. “आर्टिकल-14” ने चार छात्रों से बात की, जिनमें से तीन आईआईटी में पीएचडी प्रोग्राम के लिए आवेदन कर रहे थे. वे अपने इंटरव्यू और परीक्षाएं नहीं दे पाए और उन्होंने बताया कि संस्थानों की ओर से उन्हें कोई सहायता नहीं मिली. दो छात्रों को ऑनलाइन इंटरव्यू में भी शामिल होने नहीं दिया गया.
बांदीपोरा, जम्मू और कश्मीर : श्रीनगर से 55 किलोमीटर उत्तर में स्थित बांदीपोरा जिले के हाजिन कस्बे की संकरी गलियों में एक युवा मोहम्मद अज़हर, बचपन से भारत के शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक, यानी आईआईटी में दाखिला लेने का सपना संजोए हुए था.
बारहवीं कक्षा के बाद जब अज़हर को आईआईटी में प्रवेश नहीं मिला, तो उसने कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय में भौतिकी की पढ़ाई शुरू की और वहीं से स्नातक और परास्नातक दोनों की डिग्री पूरी की. लेकिन, आईआईटी का उसका सपना जिंदा रहा.
शोधकर्ता के रूप में आईआईटी पहुंचने की चाहत के साथ भौतिकी को अपना अकादमिक विषय चुनना उसके इस सपने को और मजबूत करता गया. वर्ष 2024 में उसने गेट (ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग) परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 1800 हासिल की और इसके बाद सारा ध्यान आईआईटी जोधपुर में पीएचडी की तैयारी में लगा दिया. करीब एक साल तक पूरी लगन से मेहनत की. फिर, वह क्षण आया जिसका उसे बेसब्री से इंतजार था- आईआईटी जोधपुर से एक ईमेल आया. जिसमें सूचित किया गया कि उसको भौतिकी विभाग में पीएचडी प्रोग्राम के लिए 2 मई 2025 को इंटरव्यू के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया है.
अज़हर ने कहा, “यह मेरी जिंदगी का सबसे खुशी का पल था. मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. मैं हमेशा जानता था कि सबसे मुश्किल हिस्सा शॉर्टलिस्ट होना है. इंटरव्यू तो मैं संभाल लूंगा. मैंने पूरे साल इसी दिन के लिए तैयारी की थी.”
आईआईटी जोधपुर हमेशा उसकी पहली पसंद रहा. उसे वहां के फैकल्टी पसंद थे और उसकी शोध रुचियां भी उनसे मेल खाती थीं. उसके सभी सहपाठियों में से सिर्फ दो को ही आईआईटी जोधपुर से इंटरव्यू कॉल आया- अज़हर और उसके सबसे अच्छे दोस्त. “हम दोनों बहुत खुश थे,” अज़हर ने कहा. लेकिन यह खुशी ज्यादा देर टिक नहीं पाई. आगे क्या हुआ, मोहम्मद आतिफ अम्माद कांथ की इस रिपोर्ट में विस्तार से है.
मेहुल चोकसी ने भारत सरकार से हर्जाना मांगा
सोमवार (16 जून) को लंदन की हाईकोर्ट में एक सिविल मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई, जिसमें भारत सरकार के खिलाफ ‘अपहरण, यातना और जबरन देश निकाला’ के लिए हर्जाने की मांग की गई. यह आरोप मेहुल चोकसी द्वारा लगाया गया है, जो कभी अरबपति हीरा व्यापारी और भारतीय नागरिक था, लेकिन अब कैरिबियाई देश एंटीगुआ और बारबुडा का नागरिक है. चोकसी को भारतीय अधिकारियों द्वारा भगोड़ा घोषित किया गया है. उस पर भारत में पंजाब नेशनल बैंक से 1.3 बिलियन पाउंड की धोखाधड़ी के मामले में संलिप्तता का आरोप है.
अदालत में अभियोजन पक्ष की दलील थी कि भारत में चोकसी के खिलाफ चाहे जो भी आरोप हों, वे भारत सरकार को उसके अपहरण, यातना और जबरन देश निकाले की साजिश में शामिल होने का औचित्य नहीं दे सकते. इसीलिए चोकसी हर्जाने की मांग कर रहा है. पांच अन्य लोगों पर भी आरोप है कि उन्होंने भारत सरकार के एजेंट के तौर पर ये अपराध किए. इस बीच, चोकसी 12 अप्रैल से पड़ोसी बेल्जियम में गिरफ्तार हैं, जहां उसको भारत प्रत्यर्पित करने की कानूनी प्रक्रिया चल रही है. लंदन के मामले में भारत सरकार ने राजनयिक छूट का हवाला दिया है और अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है.
पटना में जल मेट्रो सेवा शुरू होगी
बिहार में कुछ महीनों बाद राज्य विधानसभा के चुनाव हैं, लिहाजा शिपिंग मंत्री सरबानंद सोनोवाल ने सोमवार को घोषणा की कि पटना में जल मेट्रो सेवा जल्द ही शुरू होगी. उन्होंने कहा कि यह शहर गंगा नदी पर अंतर्देशीय जल परिवहन प्रणाली का केंद्र बन जाएगा.
उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में अंतर्देशीय जल परिवहन के विकास पर एक परामर्श बैठक को संबोधित करते हुए सोनोवाल ने कहा कि मोदी सरकार माल ढुलाई, पर्यटन और स्थानीय आजीविका के लिए नदी प्रणालियों की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा, "जल मेट्रो प्रणाली नदी के दोनों किनारों को जोड़ेगी और पटना के लिए एक स्वच्छ, प्रभावशाली और आधुनिक शहरी परिवहन समाधान प्रदान करेगी. राष्ट्रीय अंतर्देशीय नौवहन संस्थान को नए निवेश के साथ उत्कृष्टता केंद्र के रूप में उन्नत किया जा रहा है."
मैतेई इलाकों से लगे सात शिविरों को बंद करने पर सहमति
कुकी-ज़ो उग्रवादी समूहों और गृह मंत्रालय (एमएचए) के अधिकारियों के बीच सोमवार (16 जून, 2025) को हुई बैठक में मणिपुर में इन समूहों द्वारा चलाए जा रहे कुछ शिविरों के पुनर्वास और उनको बंद करने पर सहमति बन गई है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्रालय ने लूटे गए हथियारों की बरामदगी और राष्ट्रीय राजमार्गों को खोलने पर जोर दिया. सुरक्षा एजेंसियों ने मौजूदा 14 शिविरों में से सात शिविरों को बंद करने का प्रस्ताव दिया है, जो पहाड़ी इलाकों में मैतेई आबादी वाले क्षेत्रों के नजदीक हैं. बैठक में समूहों के साथ एसओओ समझौते के विस्तार पर कोई निर्णय नहीं हुआ. एसओओ प्रतिनिधि का कहना है कि उन्होंने सुरक्षा बलों से जुड़ी कुछ योजनाएं भी प्रस्तावित की हैं.
केदारनाथ में आज से फिर हेलिकॉप्टर सेवा
केदारनाथ घाटी में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में सात लोगों की मौत के एक दिन बाद उत्तराखंड सरकार ने चार धाम यात्रा के लिए हेलिकॉप्टर सेवा मंगलवार (17 जून, 2025) से फिर से शुरू करने का फैसला किया है. उत्तराखंड नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण की सीईओ ने सोमवार शाम को हेलिकॉप्टर सेवाएं फिर से शुरू करने की घोषणा की. हालांकि, उन्होंने कहा कि सेवाएं तभी संचालित होंगी जब मौसम की स्थिति अनुकूल होगी.
उर्दू पर जम्मू-कश्मीर में विवाद
जम्मू-कश्मीर में उर्दू को लेकर राजनीतिक दलों के बीच नया विवाद खड़ा हो गया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भाजपा की उस मांग का विरोध किया है, जिसमें उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से नायब तहसीलदार पद के लिए उर्दू ज्ञान को अनिवार्य न रखने की अपील की गई है. वर्ष 2020 तक जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषा केवल उर्दू थी, लेकिन भाजपा ने इसके साथ डोगरी, कश्मीरी, हिंदी और अंग्रेज़ी को भी जोड़ दिया था. इसलिए उसका कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश की पांच में से केवल एक भाषा को अनिवार्य बनाना अनुचित है. एनसी और पीडीपी का तर्क है कि भाजपा की यह मांग सांप्रदायिक मंशा से प्रेरित है और अगर इसे मंजूरी दी गई तो प्रशासनिक भ्रम पैदा होगा. इन दलों का कहना है कि उर्दू का जम्मू-कश्मीर के राजस्व, न्यायिक और प्रशासनिक तंत्र में ऐतिहासिक महत्व है और इसे कमतर आंकना न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से गलत है, बल्कि इससे प्रशासनिक और कानूनी अव्यवस्था भी पैदा हो सकती है.
पीडीपी नेता वहीद-उर-रहमान पारा ने कहा कि उर्दू सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि क्षेत्र की विरासत का अभिन्न हिस्सा है और इसे कमजोर करना समुदायों के बीच विभाजन और सांस्कृतिक स्मृति को फिर से लिखने जैसा है.
आजादी या भारत में विलय के लिए लड़ेंगे पाकिस्तान के ये इलाके : इंद्रेश कुमार
आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने दक्षिण एशिया का एक ऐसा नक्शा पेश किया है, जो कईयों को कल्पना लोक की सैर करा सकता है. रविवार को शिमला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुमार ने कहा, “यह संभव है कि भारत-पाकिस्तान की सीमा 100-150 किलोमीटर पाकिस्तान के भीतर चली जाए.” उन्होंने कहा कि पीओके, बलूचिस्तान, सिंध, पश्तूनिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान, पाकिस्तान से आज़ादी और भारत में विलय के लिए लड़ेंगे. “आज आप यहां (शिमला) प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं और एक दिन आप लाहौर में भी कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं,” इंद्रेश ने कहा. सरकार, जनता, भारतीय सेना और इस क्षेत्र की इच्छा का हवाला देते हुए कुमार ने दावा किया कि ये इलाके एक दिन विद्रोह करेंगे और भारत में विलय चाहेंगे या स्वतंत्रता की राह चुनेंगे.
जनगणना 2027 के लिए अधिसूचना जारी, जातिगत गणना भी होगी शामिल
'द हिंदू' की रिपोर्ट है कि भारत की अगली जनगणना वर्ष 2027 में आयोजित की जाएगी, इसकी अधिसूचना केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने सोमवार को जारी कर दी है. जनगणना प्रक्रिया अब औपचारिक रूप से प्रारंभ हो चुकी है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने 'द हिंदू' को बताया कि अधिसूचना जारी होने के साथ ही देशभर की प्रशासनिक सीमाओं को फ्रीज कर दिया गया है. यानी अब राज्य सरकारें जिलों, पुलिस थानों और तहसीलों की सीमाओं में कोई बदलाव नहीं कर सकेंगी, क्योंकि जनगणना ब्लॉक इन्हीं पर आधारित होते हैं.
गृह मंत्रालय के अनुसार, 2027 की जनगणना डिजिटल माध्यम से की जाएगी. इसके लिए एक विशेष मोबाइल एप का प्रयोग किया जाएगा और नागरिकों को स्व-गणना का विकल्प भी दिया जाएगा. डेटा की सुरक्षा को लेकर मंत्रालय ने कहा है कि “डेटा संग्रहण, ट्रांसमिशन और भंडारण के दौरान सख्त सुरक्षा उपाय लागू किए जाएंगे.”
सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को निर्णय लिया था कि इस बार की जनगणना में जातिगत गणना भी की जाएगी. मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि हालांकि कुछ लोग इस विषय पर गलत सूचना फैला रहे हैं, लेकिन 30 अप्रैल, 4 जून और 15 जून की प्रेस विज्ञप्तियों में इस बात की पुष्टि की जा चुकी है. अधिकारियों के अनुसार, आने वाले दिनों में पूर्व-परीक्षण और हाउस लिस्टिंग ऑपरेशन की अधिसूचनाएं जारी की जाएंगी. 2019 में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 76 जिलों में पूर्व-परीक्षण किया गया था, जिसमें 26 लाख से अधिक की जनसंख्या को शामिल किया गया. 2019 में जनगणना 2021 के लिए एनपीआर को अपडेट करने की अधिसूचना जारी की गई थी, लेकिन इस बार अब तक एनपीआर को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है.
संविधान के अनुसार, 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना का प्रयोग लोकसभा सीटों के पुनर्निर्धारण के लिए किया जा सकता है. अगला आम चुनाव 2029 में अपेक्षित है. करीब 34 लाख गणनाकर्ता और पर्यवेक्षक, और 1.3 लाख अन्य अधिकारी इस जनगणना कार्य में लगाए जाएंगे.
कांग्रेस के आरोप पर सरकार बोली, जाति गणना भी होगी : केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को स्पष्ट किया कि 2027 की जनगणना में जाति गणना भी शामिल होगी. मंत्रालय ने कहा कि भ्रामक जानकारी फैलाई जा रही है कि गजट अधिसूचना में जाति गणना का कोई उल्लेख नहीं है. मंत्रालय का यह बयान कांग्रेस के उस आरोप के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि सोमवार को जारी गजट अधिसूचना में जाति को शामिल करने पर चुप्पी साधी गई है और पूछा गया कि क्या यह सरकार का एक और "यू-टर्न" है? कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कहा कि 16वीं जनगणना के लिए जारी की गई बहुप्रतीक्षित गजट अधिसूचना "फीका पकवान" है. इसमें जनगणना में जाति को शामिल करने पर चुप्पी है.
एक्सप्लेनर
जनगणना का क्या महत्व है?
पहली जनगणना कब हुई थी? वर्तमान जनगणना अभ्यास के दो चरण क्या हैं? आगामी जनगणना में जाति की गणना क्यों की जाने वाली है? दक्षिणी राज्य और कुछ छोटे राज्य जनगणना अभ्यास को लेकर आशंकित क्यों हैं?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने घोषणा की है कि अगली जनगणना दो चरणों में आयोजित की जाएगी और जनगणना के लिए संदर्भ तिथि 1 मार्च, 2027 होगी.. जनगणना देश की जनसंख्या के आंकड़े एकत्र करने, संकलित करने और उनका विश्लेषण करने की प्रक्रिया है.. कौटिल्य के 'अर्थशास्त्र' से लेकर मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान की प्रशासनिक रिपोर्ट 'आइन-ए-अकबरी' तक, जनसंख्या जनगणना के संदर्भ मिलते हैं.. द हिंदू ने इस पर एक एक्सप्लेनर प्रकाशित किया है, जिसे तैयार किया है पूर्व आईएएस अधिकारी आर रंगराजन ने.
समकालिक जनगणना (synchronous census) वह होती है जिसमें पूरे देश में एक साथ जनसंख्या के आंकड़े एकत्र किए जाते हैं.. इस तरह की जनगणना 1881 में ब्रिटिश काल के दौरान शुरू हुई थी, जिसमें डब्ल्यू. सी. प्लोडेन (W. C. Plowden) भारत के पहले जनगणना आयुक्त थे.. स्वतंत्रता तक विवरण जनगणना अनुसूचियों में एकत्र किए जाते थे.. अनुसूची में प्रश्न प्रत्येक जनगणना के साथ बदलते रहे, लेकिन मोटे तौर पर इसमें उम्र, लिंग, मातृभाषा, साक्षरता की स्थिति, धर्म, जाति आदि से संबंधित प्रश्न शामिल थे.. आखिरी जनगणना जिसमें हिंदुओं के लिए जाति की गणना की गई थी, 1931 में हुई थी..
जनगणना कैसे की जाती है?
जनगणना एक संघ सूची का विषय है, जबकि जनगणना अधिनियम, 1948 जनगणना प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है.. यह केंद्र सरकार को जनगणना कार्य करने और पूरे अभ्यास की निगरानी के लिए एक जनगणना आयुक्त नियुक्त करने के लिए अधिकृत करता है.. केंद्र कई राज्यों के भीतर जनगणना की निगरानी के लिए जनगणना संचालन निदेशकों की भी नियुक्ति करता है, जबकि राज्य सरकारें जनगणना अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती हैं.. जनगणना करने के लिए कर्मचारी राज्य के स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रदान किए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से शिक्षक शामिल होते हैं..
1971 से, जनगणना कार्य दो चरणों में किया जाता रहा है.. पहला चरण 'मकान सूचीकरण' (house listing) चरण है जो आवास डेटा पर जानकारी एकत्र करता है.. यह आमतौर पर 5-6 महीने की अवधि में फैला होता है.. 2011 की अंतिम जनगणना में, मकान सूचीकरण अनुसूची में 35 प्रश्न थे जिनमें घर का प्रकार, पीने के पानी का मुख्य स्रोत, शौचालय की सुविधा का प्रकार, रसोई की उपलब्धता और खाना पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले ईंधन, क्या घर में टेलीविजन/कंप्यूटर/टेलीफोन है, उपलब्ध वाहन का प्रकार आदि जैसे विवरण शामिल थे..
दूसरा चरण 'जनसंख्या गणना' (population enumeration) चरण है जो आमतौर पर जनगणना वर्ष के फरवरी महीने के दौरान आयोजित की जाती है क्योंकि जनसंख्या गणना के लिए सामान्य संदर्भ तिथि जनगणना वर्ष की 1 मार्च तय की गई है.. इसमें नाम, लिंग, आयु, धर्म, क्या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति (SC या ST) से संबंधित है, मातृभाषा, साक्षरता की स्थिति, शैक्षिक योग्यता, व्यवसाय आदि जैसे व्यक्तिगत विवरण दर्ज किए जाते हैं.. फिर इन विवरणों को संकलित किया जाता है और जनगणना से अनंतिम (provisional) आंकड़े जारी किए जाते हैं.. 2011 में, यह डेटा मार्च के अंत तक जारी कर दिया गया था.. जनसांख्यिकीय, धार्मिक, भाषाई प्रोफाइल आदि के विस्तृत विश्लेषण के साथ अंतिम रिपोर्ट अप्रैल 2013 में जारी की गई थी..
भारत में 1881 से 2011 तक दशकीय जनगणना बिना किसी रुकावट के हुई थी.. हालांकि, COVID-19 महामारी के कारण, 2021 की जनगणना स्थगित कर दी गई थी.. हालांकि यह अभ्यास 2022 के बाद कभी भी किया जा सकता था, लेकिन इसे लगातार स्थगित किया जाता रहा है.. वर्तमान जनगणना को स्वतंत्र भारतीय इतिहास में तीन कारणों से सबसे महत्वपूर्ण माना जा सकता है.. पहला, केंद्र सरकार ने सभी हिंदुओं के जाति विवरण की गणना करने का निर्णय लिया है.. स्वतंत्रता के बाद की सभी जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विवरण ही दर्ज किए गए हैं.. यह निर्णय विपक्षी दलों और नागरिक समाज समूहों की जनगणना में जाति विवरण शामिल करने की व्यापक मांग के बाद आया है.. जनगणना को 2027 तक स्थगित करने का एक कारण जाति गणना के लिए प्रारंभिक कार्य करना है.. दूसरा, चूंकि यह जनगणना 2026 के बाद पहली होगी, इसलिए इसका उपयोग लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में संशोधित सीटों की संख्या निर्धारित करने के लिए परिसीमन (delimitation) अभ्यास के लिए किया जा सकता है..
तीसरा, यह जनगणना लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का आधार भी बनेगी..
जातिगत विवरणों की गणना व्यवस्थित और त्रुटिहीन तरीके से की जानी चाहिए.. इस डेटा का उपयोग पिछड़े वर्गों के संबंध में सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action) पर निर्णय लेने के लिए करना होगा.. इसलिए, इसके प्रारंभिक कार्य के लिए पर्याप्त समय आवश्यक है.. हालांकि, दक्षिणी राज्यों, उत्तर भारत के कुछ छोटे राज्यों और पूर्वोत्तर के राज्यों की इस वास्तविक आशंका पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि 2027 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या के आधार पर प्रस्तावित परिसीमन और उसके परिणामस्वरूप लोकसभा में सीटों की संख्या का संशोधन किया जाता है, तो वे अपना राजनीतिक महत्व खो देंगे.. इनमें से कई राज्यों ने लोकसभा सीटों को मौजूदा स्तर पर स्थिर करने (freeze) की मांग की है.. लोकसभा सीटों में आनुपातिक वृद्धि के फार्मूले पर सभी राज्यों के बीच एक व्यापक सहमति होनी चाहिए.. इसलिए, 2029 के आम चुनावों से पहले परिसीमन के इस अभ्यास में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए.. इस जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों का आरक्षण 2029 के चुनावों से लागू किया जाना चाहिए..
वैकल्पिक मीडिया
कांग्रेस नेता पर जाति पूछकर जानलेवा हमला
'द मूकनायक' की रिपोर्ट है कि मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में एक चौंकाने वाली और शर्मनाक घटना सामने आई है, जहां जाति पूछकर कांग्रेस नेता और अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व सदस्य प्रदीप अहिरवार पर जानलेवा हमला किया गया. यह घटना रविवार देर रात करीब 11:30 बजे की है, जब प्रदीप अहिरवार गंजबासौदा से भोपाल की ओर लौट रहे थे. प्राप्त जानकारी के अनुसार, सैकड़ों की संख्या में अज्ञात हमलावरों ने उनकी स्कॉर्पियो गाड़ी को रोक लिया और पहले उनका नाम पूछा, फिर जाति जानने के बाद तलवारों से हमला कर दिया. प्रदीप अहिरवार ने समझदारी दिखाते हुए किसी तरह गाड़ी को मौके से निकालकर पुलिस को सूचना दी, और रात में ही गंजबासौदा थाने पहुंचकर एफआईआर दर्ज कराई. हालांकि इस घटना में उन्हें कोई चोट नहीं आई है.
एयर इंडिया विमान हादसा
पायलट के अंतिम शब्दों की जांच करेगी टीम, ब्लैक बॉक्स से मिली अहम जानकारी
(मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को श्रद्धांजलि दी.)
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि पिछले सप्ताह अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे की जांच कर रही टीम अब पायलट के अंतिम शब्दों की रिकॉर्डिंग का विश्लेषण करेगी, ताकि दुर्घटना के कारणों का सुराग लगाया जा सके. यह रिकॉर्डिंग विमान के कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर में मिली, जिसे रविवार को मलबे से बरामद किया गया. यह रिकॉर्डर बोइंग 787 विमान के दूसरे ब्लैक बॉक्स में था. अधिकारियों ने बताया कि पहला ब्लैक बॉक्स, जिसमें फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर था, हादसे के 28 घंटे के भीतर ही बरामद कर लिया गया था.
अभी तक जांच दल जिसमें भारत के साथ-साथ ब्रिटेन और अमेरिका के विशेषज्ञ भी शामिल हैं, उन्होंने कोई ठोस सबूत या कारण सार्वजनिक नहीं किया है. प्रारंभिक जांच में इंजन फेल होने, विंग फ्लैप और लैंडिंग गियर में खराबी की संभावनाओं को खंगाला जा रहा है.
पीड़ित परिवारों की प्रतीक्षा : सोमवार तक 279 मृतकों में से करीब 80 की पहचान हो चुकी थी. अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के डॉक्टर रजनीश पटेल ने बताया, "यह एक जटिल और धीमी प्रक्रिया है, इसलिए इसे पूरी सावधानी से करना आवश्यक है." अधिकांश परिवार DNA जांच के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने परिजनों का शव सौंपा जा सके. कई पीड़ितों के परिजन अब भी अंतिम संस्कार नहीं कर पाए हैं. 23 वर्षीय रिनाल क्रिश्चियन, जिनके भाई की मौत इस हादसे में हुई, ने AFP से कहा, “उन्होंने कहा था कि 48 घंटे में जानकारी देंगे, लेकिन अब चार दिन हो गए और कोई जवाब नहीं मिला. मेरा भाई ही परिवार का इकलौता कमाने वाला था. अब आगे क्या होगा?”गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के शव को भारतीय ध्वज में लपेट कर सैनिक सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई.
एयर इंडिया ने अपने शेष 33 ड्रीमलाइनर विमानों पर अतिरिक्त जांच और मरम्मत के आदेश दिए गए हैं. हालांकि दुनियाभर की अन्य बड़ी एयरलाइंस अभी भी इस मॉडल का सामान्य संचालन कर रही हैं. सोमवार को हांगकांग से नई दिल्ली जा रही एयर इंडिया फ्लाइट AI315 को पायलट को तकनीकी समस्या की आशंका के चलते बीच रास्ते से लौटना पड़ा. स्थानीय समयानुसार दोपहर 1:15 बजे विमान सुरक्षित रूप से हांगकांग लौट आया और उसकी जांच की जा रही है.
बोइंग की प्रतिक्रिया : विमान निर्माता बोइंग ने पेरिस एयरशो में अपनी भागीदारी सीमित कर दी है और सोमवार को होने वाला मीडिया रिसेप्शन रद्द कर दिया गया. इसके CEO केली ऑर्टबर्ग पहले ही कार्यक्रम से हट चुके हैं. बोइंग की एक विशेषज्ञ टीम को जांच में मदद के लिए अहमदाबाद भेजा गया है.
अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की उड़ान के दुर्घटनाग्रस्त होने से विमानन सुरक्षा पर फिर से ध्यान केंद्रित हो गया है. इस साल मार्च में संसद में पेश की गई एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट ने "फंडिंग में विसंगति" को उजागर किया था, जो "सुरक्षा के बुनियादी ढांचे और दुर्घटना जांच क्षमताओं पर नियामक अनुपालन को प्राथमिकता देने" को लेकर महत्वपूर्ण सवाल उठाती है. इसके अलावा, रिपोर्ट ने प्रमुख विमानन नियामक और परिचालन निकायों, विशेष रूप से नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA), नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS), और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) में बड़ी संख्या में खाली पदों पर भी चिंता जताई थी. समिति ने बताया कि प्रमुख विमानन निकायों के लिए 2025-26 का फंड आवंटन असंतुलित है, जिसमें नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS) और विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (AAIB) की तुलना में नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) को बजट का सबसे बड़ा हिस्सा मिल रहा है.
इसके अलावा, मंत्रालय ने एक लिखित जवाब के माध्यम से समिति को सूचित किया कि DGCA में कुल 1633 पदों में से 879 पद खाली थे. BCAS में कुल 598 पदों में से 208 पद खाली थे, जबकि AAI में कुल 19,269 स्वीकृत पदों में से 3,265 पद खाली थे.
तीन ड्रीमलाइनर रास्ते से लौटे
गोवा से लखनऊ आ रही इंडिगो की फ्लाइट 6E6811 सोमवार शाम टेक ऑफ के बाद ऊपर-नीचे हुई तो यात्रियों की चीख निकल गई. विमान को गोवा एयरपोर्ट से टेक ऑफ करते ही एयर टर्बुलेंस का सामना करना पड़ा. जिससे वह हवा में ऊपर नीचे होने लगा और यात्री घबराहट में चिल्लाने लगे. एक यात्री अलहमरा खान ने “एक्स” पर इस घटना की जानकारी साझा की. उन्होंने डीजीसीए, पीएमओ और इंडिगो को टैग करते हुए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की.
इस बीच हॉन्गकॉन्ग से दिल्ली आ रही एअर इंडिया की फ्लाइट AI315 सोमवार को वापस लौट गई. बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर की इस उड़ान में तकनीकी खराबी की बात सामने आई है. इसके पहले रविवार को भारत आ रहे बोइंग के दो ड्रीमलाइनर प्लेन भी बीच रास्ते से लौट गए थे. इनमें से एक फ्लाइट लंदन से चेन्नई और दूसरी जर्मनी के फ्रैंकफर्ट से हैदराबाद आ रही थी. दोनों की सोमवार को लैंडिंग होनी थी.
ईरान की मिसाइलों ने इजरायल में मचाई तबाही, तेहरान भी झुलस रहा है
(सोमवार को ईरानी मिसाइलों की एक नई बौछार के बाद हाइफ़ा शहर में एक स्थान से धुआं उठता हुआ. फोटो साभार: अहमद घराबली / एएफपी / गेटी इमेजेज़)
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि इजरायली सेना ने तेहरान के बड़े हिस्से में रहने वाले लोगों को तत्काल क्षेत्र खाली करने का आदेश दिया है. इस चेतावनी में कहा गया है कि उस क्षेत्र में "सैन्य बुनियादी ढांचे" पर बमबारी की जाएगी. यह चेतावनी सोशल मीडिया पर जारी की गई और उसका स्वरूप हूबहू वैसा ही है जैसा गाजा के निवासियों को भेजी गई चेतावनियों में होता रहा है.
'तेहरान टाइम्स' की रिपोर्ट है कि पिछले 65 घंटों में इजरायली हमलों में कुल 224 लोगों के मारे गए हैं, दूसरी ओर इसरायल में भी भारी तबाही मची है. 1,277 लोगों को देश के विश्वविद्यालय-संबद्ध चिकित्सा केंद्रों में भर्ती कराया गया है, जिनमें से 90% से अधिक पीड़ित आम नागरिक हैं. ईरान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ज़ोर देकर कहा कि इन हमलों की मानवीय कीमत तथाकथित “सटीक लक्ष्यभेदन” के दावे को झूठा साबित करती है और यह इजरायली आक्रोश की अंधाधुंध प्रकृति को उजागर करती है. इस दौराान तेीरान से बाहर जाने वाली सड़कों पर भी लोगों की भीड़ दिखी. लोग राजधानी को छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर जा रहे हैं. ईरान ने धमकी दी है कि यदि इजरायल के बमबारी अभियान ऐसे ही जारी रहे तो वह परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से हट जाएगा, इस बयान ने इस संघर्ष के और गहराने और एक बड़े युद्ध में तब्दील होने की आशंका को और प्रबल कर दिया है. इसके साथ ही यह संकेत भी मिला है कि तेहरान तेज़ी से परमाणु हथियार बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
(ड्रोन से ली गई तस्वीर में तेल अवीव के रिहायशी इलाकों में हुए भारी नुकसान को देखा जा सकता है.)
दूसरी ओर इजरायल के शहरों में भी सायरन गूंजते रहे और जीवन अस्त-व्यस्त नजर आया. इजरायली अधिकारियों द्वारा भारी सेंसरशिप के बावजूद, ऑनलाइन प्रसारित हो रहे वीडियो में हाइफ़ा के एक बड़े पावर प्लांट को आग की लपटों में घिरा हुआ देखा गया. इसके बाद पूरे कब्ज़े वाले क्षेत्रों में व्यापक बिजली कटौती की खबरें सामने आईं. तेल अवीव के कई स्थानों पर भी हालिया मिसाइल हमलों के दौरान हमले हुए और कई वीडियो में बड़ी संख्या में एम्बुलेंसों को एक प्रभावित स्थान पर शवों को ले जाते हुए दिखाया गया. मध्यरात्रि से पहले, ईरान ने नेगेव रेगिस्तान और किर्यात गाट सहित हाइफ़ा के अन्य क्षेत्रों में रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाकर हमला किया, जिससे सैन्य और आर्थिक बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचने की भी खबरें हैं. पिछले दिनों में, ईरान ने इजरायल की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी और कब्ज़े वाले क्षेत्रों में फैले 150 से अधिक सैन्य व खुफिया ठिकानों पर हमले किए हैं.
(तेहरान, ईरान के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक तेल रिफाइनरी से धुआं उठता हुआ दिखाई देता है. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की तेल और गैस सुविधाओं को निशाना बनाया है, जिससे पर्यावरणीय आपदा का खतरा और बढ़ गया है. फोटो साभार: आबेदीन तहरेकनारेह / ईपीए)
ईरानी मिसाइलों ने इजरायल के शहरों तेल अवीव और हाइफ़ा को निशाना बनाया, जिससे कई घर नष्ट हो गए और इस हफ्ते कनाडा में होने वाली G7 बैठक में यह चिंता गहरा गई कि पश्चिम एशिया में जारी यह संघर्ष कहीं व्यापक युद्ध का रूप न ले ले. इजरायल की आपातकालीन सेवा मगन डेविड एडोम (MDA) ने सोमवार को बताया कि मध्य इजरायल के चार अलग-अलग स्थानों पर हुए हमलों में चार लोगों की मौत हो गई है और 87 लोग घायल हुए हैं. मृतकों में दो महिलाएं और दो पुरुष शामिल हैं, जिनकी उम्र लगभग 70 वर्ष थी. उत्तरी बंदरगाह शहर हाइफ़ा में भी खोज और बचाव कार्य जारी है. आपातकालीन अधिकारियों ने बताया कि वहां करीब 30 लोग घायल हुए हैं. स्ट्राइक ज़ोन में दर्जनों राहतकर्मी भेजे गए हैं. बंदरगाह के पास स्थित एक पावर प्लांट में आग लगी हुई देखी गई, जिसकी पुष्टि मीडिया रिपोर्ट्स ने की है.
तेहरान में बमबारी और लाइव प्रसारण बंद : सोमवार शाम को ईरान के सरकारी टेलीविज़न ने घोषणा की कि वे "हमले की चपेट में हैं" और उन्हें लाइव प्रसारण बंद करना पड़ा. प्रसारण के दौरान एक विस्फोट की आवाज़ सुनी गई, न्यूज एंकर कैमरे से हट गई और स्टूडियो में धूल और मलबा भर गया. बैकग्राउंड में "अल्लाहु अकबर" की आवाज़ें सुनाई दीं और चैनल ने प्री-रिकॉर्डेड कार्यक्रम चला दिया.
तेहरान के निवासियों से IDF की अपील : IDF (इजरायल डिफेंस फोर्सेज़) के अरबी प्रवक्ता कर्नल अविचाय अडरेई ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर फारसी में पोस्ट किया— "प्रिय नागरिकों, अपनी सुरक्षा के लिए कृपया तेहरान के तीसरे जिले के इस क्षेत्र को तुरंत खाली करें. आने वाले घंटों में इजरायली सेना इस क्षेत्र में ईरानी शासन के सैन्य ढांचे पर हमला करेगी."
इसरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा - “हम तेहरान के आसमान पर नियंत्रण रखते हैं. इसका मतलब है कि अब हम शासन के सैन्य ठिकानों को निशाना बना सकते हैं, जबकि ईरान हमारे नागरिकों को निशाना बनाता है.”
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध तब शुरू हुआ जब शुक्रवार तड़के इजरायल ने तेहरान के रिहायशी इलाकों और परमाणु स्थलों पर व्यापक हमले शुरू किए. इसके बाद के इजरायली हमले मुख्य रूप से नागरिक बुनियादी ढांचे को निशाना बना रहे हैं. अब तक, इजरायली हमलों में ईरान के 7 सैन्य अधिकारियों, 9 परमाणु वैज्ञानिकों और 224 नागरिक जान गंवा चुके हैं.
गाज़ा में खाद्य वितरण केंद्र के पास गोलीबारी में 37 फिलिस्तीनियों की मौत
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि गाज़ा पट्टी में सोमवार सुबह कम से कम 37 फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हो गई, जब वे भोजन पाने के लिए गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF) के वितरण केंद्रों पर जमा हुए थे. यह गोलीबारी कथित तौर पर इसरायली सैनिकों द्वारा की गई जो इन केंद्रों की सुरक्षा कर रहे थे. स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, यह अब तक की सबसे घातक घटना है जब से अमेरिकी समर्थन प्राप्त इस निजी संस्था ने तीन सप्ताह पहले गाज़ा में काम शुरू किया है. घटनास्थल पर मौजूद चश्मदीदों ने बताया कि सुबह करीब 4 बजे रफ़ा शहर के पास 'फ्लैग राउंडअबाउट' नामक स्थान पर भीड़ पर गोलियां चलाई गईं. रफ़ा शहर इसरायली सैन्य हमलों में पहले ही बर्बाद हो चुका है. केंद्रीय गाज़ा में स्थित एक अन्य केंद्र पर भी ऐसा ही हमला हुआ. रेड क्रॉस के फील्ड अस्पताल ने सोमवार को 200 से अधिक घायल मरीजों का इलाज किया. यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी. इसरायली सेना की ओर से इस घटना पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. जिनेवा से संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टुर्क ने कहा कि इसरायल का लगभग 20 महीने लंबा अभियान "भयावह और अकल्पनीय पीड़ा" का कारण बन रहा है. उन्होंने कहा- “जो कुछ हो रहा है, उससे सभी सरकारों को अब जाग जाना चाहिए। प्रभावशाली देशों को इस मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए इसरायल और हमास दोनों पर दबाव बनाना चाहिए.”
G7 : यूरोपीय नेता ईरान को फिर से वार्ता की मेज पर लाने की कोशिश में जुटे, ट्रम्प ने कहा- 'इस मंच पर होने चाहिए रूस और चीन'
(फ्रेडरिक मर्ज़, कीर स्टारमर, इमैनुएल मैक्रों, जॉर्जिया मेलोनी, मार्क कार्नी और एंटोनियो कोस्टा G7 शिखर सम्मेलन में. फोटो साभार: साइमन डॉसन / नंबर 10 डाउनिंग स्ट्रीट)
कनाडा के मार्क कार्नी ने G7 शिखर सम्मेलन की शुरुआत एकता की अपील के साथ की. G7 शिखर सम्मेलन की शुरुआत करते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा कि विश्व एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है. उन्होंने चेताया कि दुनिया पहले से अधिक खतरनाक और विभाजित होती जा रही है, ऐसे में वैश्विक नेताओं को आपसी सहयोग को और मज़बूत करने की ज़रूरत है. कार्नी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, "यह वह क्षण है जब हमें एक साथ आना होगा, क्योंकि बिखराव का मतलब है अस्थिरता." उन्होंने जलवायु संकट, भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक असमानता जैसे मुद्दों पर साझा रणनीति अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया.
इधर, ‘फायनेंशियल टाइम्स’ की रिपोर्ट है कि G7 शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस को इस मंच से बाहर रखने को "एक बड़ी गलती" बताया. सम्मेलन की शुरुआत में ही ट्रम्प ने कैनेडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के साथ मंच साझा करते हुए कहा कि रूस के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए था. ट्रम्प का यह बयान ऐसे समय में आया है जब सम्मेलन में मध्य पूर्व युद्ध, व्यापार तनाव और यूक्रेन संकट जैसे मुद्दे हावी हैं. ट्रम्प ने कहा— "यह एक बहुत बड़ी गलती थी. अगर रूस को बाहर नहीं किया गया होता तो यूक्रेन युद्ध नहीं होता. [रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर] पुतिन मुझसे बात करते हैं, किसी और से नहीं. उन्हें G8 से निकाले जाने का अपमान महसूस हुआ." गौरतलब है कि 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे के बाद G8 को G7 में बदलते हुए रूस को बाहर कर दिया गया था.
ट्रम्प ने चीन को G7 में शामिल करने के विचार को भी "बुरा नहीं" बताया. उन्होंने कहा— "चीन को इस समूह में लाने का विचार गलत नहीं है." G7 में अब तक दुनिया की सात प्रमुख औद्योगिक और लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं, जबकि चीन और रूस G20 समूह का हिस्सा हैं, जो वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं का बड़ा मंच है. ट्रंप के इस बयान से सम्मेलन की शुरुआत ही एक असहज माहौल में हुई, जिससे पश्चिमी देशों के बीच रूस और चीन को लेकर मतभेद उजागर हो गए हैं.
'द गार्डियन' की रिपोर्ट है कि कनाडा में हो रहे G7 शिखर सम्मेलन में यूरोपीय नेता खाड़ी देशों के नेताओं को मध्यस्थ बनाकर ईरान को फिर से बातचीत की मेज़ पर लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ईरान की मांग है कि इजरायल के साथ एक संयुक्त युद्धविराम किया जाए, जबकि इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस कदम का विरोध कर रहे हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अब तक अपनी स्पष्ट भूमिका नहीं दिखाई है.
ईरान का मानना है कि अमेरिका इजरायल पर दबाव डालने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है, लेकिन ट्रम्प चाहते हैं कि ईरान यूरेनियम संवर्धन के अधिकार को बनाए रखने की ज़िद छोड़े. यदि ज़रूरत पड़ी, तो वे इजरायली हमलों का उपयोग सौदेबाज़ी के उपकरण के रूप में करने को तैयार हैं. जब ट्रम्प से पूछा गया कि क्या उन्हें ईरान से कोई ऐसा संदेश मिला है, जो संकेत देता हो कि वे तनाव कम करना चाहते हैं, तो उन्होंने संकेत देते हुए कहा, “वे बात करना चाहते हैं.” अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान इस युद्ध में जीत नहीं रहा है और उसे "इससे पहले कि बहुत देर हो जाए" दोबारा बातचीत में लौटना चाहिए. “उन्हें एक समझौता करना ही होगा, यह दोनों पक्षों के लिए पीड़ादायक है, लेकिन मैं कहूंगा कि ईरान यह युद्ध नहीं जीत रहा है, और उन्हें बात करनी चाहिए — तुरंत बात करनी चाहिए, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए,” ट्रम्प ने शिखर सम्मेलन में पत्रकारों से कहा. “अगर ईरान वार्ता करना चाहता है, तो यही समय है,” ट्रम्प ने आगे कहा.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने ट्रंप से नेतन्याहू से अलग रास्ता अपनाने की अपील की और कहा कि इजरायली प्रधानमंत्री उन्हें एक ऐसे समझौते को पटरी से उतारने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे ईरान और अमेरिका अंतिम रूप देने की कगार पर थे.
अराघची ने कहा— “हर संकेत से यह स्पष्ट है कि नेतन्याहू का ईरान पर यह आपराधिक हमला, जिसमें सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. अमेरिका और ईरान के बीच हो रहे समझौते को नष्ट करने के लिए किया गया है. नेतन्याहू एक और अमेरिकी राष्ट्रपति को मूर्ख बना रहा है, और अमेरिकी करदाताओं को भी. अगर राष्ट्रपति ट्रम्प वास्तव में कूटनीति के इच्छुक हैं और इस युद्ध को रोकना चाहते हैं, तो अब निर्णायक कदम उठाने होंगे. इजरायल को अपनी आक्रामकता रोकनी होगी और अगर हम पर सैन्य हमले पूरी तरह नहीं रुके, तो हमारी प्रतिक्रिया भी जारी रहेगी. वॉशिंगटन से एक फोन कॉल नेतन्याहू जैसे व्यक्ति को शांत कर सकता है और वही कूटनीति की वापसी का रास्ता खोल सकता है.”
संयुक्त अरब अमीरात, जिसने ईरान तक ट्रम्प का पहला प्रस्ताव पहुंचाया था, ओमान, कतर और सऊदी अरब के साथ मिलकर मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है. ओमान के विदेश मंत्री बद्र अल-बुसैदी, जो पहले भी अमेरिका-ईरान वार्ता के मध्यस्थ रह चुके हैं, ने तेहरान को समझाने की कोशिश की है कि सैन्य ताकत का अनुपात उनके खिलाफ है और उन्हें बातचीत में लौटना चाहिए. ईरानी समाचार एजेंसियों के अनुसार, ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने ओमान के सुल्तान को चेतावनी दी कि “अगर अमेरिका ने इजरायल को नहीं रोका, तो ईरान को और भी अधिक तीव्र और दर्दनाक जवाब देना पड़ेगा.”
यूके के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों दोनों यूएई नेतृत्व से संपर्क में हैं. स्टारमर ने कहा कि सभी पक्ष युद्धविराम की दिशा में एकमत हो रहे हैं— “यह बेहद ज़रूरी है कि हम तनाव कम करने पर ध्यान दें, क्योंकि इस संघर्ष के फैलने के खतरे पूरे क्षेत्र और उससे बाहर तक हैं. इसका असर ग़ाज़ा पर भी पड़ेगा, जो पहले ही एक बारूद का ढेर है, और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी. इसी कारण G7 इस पर ज़ोर दे रहा है. यह हमारी वार्ताओं का एक मुख्य विषय होगा.”
सीधे तौर पर और खाड़ी देशों के ज़रिये G7 में यूरोपीय नेताओं ने ईरान को चेताया है कि अगर ईरान ने बातचीत में रियायतें नहीं दीं, तो इजरायल अपनी सैन्य बढ़त को इतनी दूर तक ले जाएगा कि 1979 की क्रांति के बाद बना ईरानी शासन समाप्त हो सकता है. अब तक इजरायली हवाई हमलों और टारगेटेड हत्याओं में ईरान के ज़्यादातर सैन्य और खुफिया नेतृत्व को मार दिया गया है, जिससे तेहरान की निर्णय प्रक्रिया चरमरा गई है. यहां तक कि ईरान के विदेश मंत्रालय के कुछ हिस्सों पर भी बमबारी हुई है.
यूरोपीय नेताओं को चिंता है कि अगर ईरान की सरकार गिरती है, तो उसके बाद कौन शासन करेगा, देश का विघटन हो सकता है और यह संघर्ष वैश्विक व्यापार को प्रभावित कर सकता है. ख़ासकर अगर ईरान हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने की कोशिश करता है, जिससे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं.
G7 : मार्क कार्नी की पहली अग्निपरीक्षा
कनाडा के रॉकी पर्वतों की गोद में बसे एक आलीशान लॉज में इस वर्ष का G7 शिखर सम्मेलन आयोजित हो रहा है. 'बीबीसी' की रिपोर्ट है कि यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब पश्चिमी देशों को तीन महाद्वीपों में युद्ध, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और राजनीतिक टकराव जैसी कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
इस वर्ष G7 की अध्यक्षता कनाडा कर रहा है और इटली, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और जापान के नेताओं को अल्बर्टा के कानानास्किस में आमंत्रित किया गया है. प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर केंद्रित एजेंडा तैयार किया था, लेकिन इसरायल-ईरान टकराव ने समूचा कार्यक्रम उलट-पुलट कर दिया है.
यह सम्मेलन कार्नी के लिए एक बड़ी अग्निपरीक्षा है, जिसमें उन्हें तीन प्रमुख लक्ष्यों— वैश्विक नेतृत्व की भूमिका, सबसे मजबूत G7 अर्थव्यवस्था बनना और अमेरिका पर निर्भरता से मुक्ति—को साबित करना था. अब ईरान मुद्दा सबसे ऊपर आ गया है, जिस पर आम सहमति बनाना कठिन होगा. इसके अलावा, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ उनका व्यवहार भी वैश्विक निगरानी में रहेगा.
G7 सम्मेलन पर हावी रहेगा ईरान मुद्दा : यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो स्थित G7 रिसर्च ग्रुप के निदेशक जॉन किर्टन का कहना है कि सम्मेलन की शुरुआत से ही यह देखा जाएगा कि कार्नी ट्रम्प के साथ समानता और संतुलन कैसे बनाए रखते हैं. हालांकि ट्रम्प और कार्नी के बीच एक संभावित व्यापार एवं सुरक्षा समझौते की उम्मीद जताई जा रही है. कार्नी पहले ही यूके, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं और अब ट्रम्प के साथ भी व्यक्तिगत बैठक तय है.
व्यापार युद्ध और तीखी बयानबाजी : सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब ट्रम्प की शुरू की गई वैश्विक व्यापार युद्ध की नीति का असर विश्व अर्थव्यवस्था पर साफ दिखाई दे रहा है. विश्व बैंक के मुताबिक, 1960 के दशक के बाद यह दशक आर्थिक वृद्धि के लिहाज़ से सबसे कमजोर रहने वाला है. ट्रम्प ने कई बार अमेरिका को "लूटा गया, लुटा-पिटा" देश बताया है, जिससे सम्मेलन के दौरान कड़े और "स्पष्ट" (राजनयिक भाषा में) संवाद की उम्मीद है.
2018 जैसी गड़बड़ी से बचने की कोशिश : यह ट्रम्प का कनाडा में बतौर राष्ट्रपति दूसरा दौरा है. पिछली बार 2018 में क्यूबेक के शार्लवॉ में हुए G7 सम्मेलन में उन्होंने कनाडा, मैक्सिको और यूरोप पर टैरिफ लगा दिए थे और सम्मेलन को बीच में छोड़कर किम जोंग-उन से मिलने सिंगापुर चले गए थे. जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की उस मशहूर तस्वीर को आज भी याद किया जाता है, जिसमें वह ट्रम्प से तीखी बात करती नजर आईं थी. इस बार कार्नी स्पष्ट रूप से कह चुके हैं— “सम्मेलन के दौरान, पहले और बाद में एक जैसी बात कहनी चाहिए.” कनाडा ने इस बार साझा घोषणा-पत्र (communiqué) से परहेज़ किया है और इसकी जगह छह छोटे संयुक्त बयानों की योजना बनाई है, जिनमें जंगल की आग, महत्वपूर्ण खनिज और एआई (AI) पर ध्यान केंद्रित होगा.
प्राथमिकताएं: जंगल की आग, एआई, खनिज और यूक्रेन : कनाडा इस बार मुख्यतः वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर केंद्रित है. विशेषकर एआई और महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं की मज़बूती पर. जलवायु परिवर्तन पर कोई व्यापक प्रतिबद्धता नहीं दी गई है, लेकिन यह एजेंडे में शामिल है, खासकर जंगल की आग के संदर्भ में. 2023 कनाडा के इतिहास की सबसे भयंकर वनों की आग का वर्ष था और 2025 भी गंभीर साबित हो रहा है. इसके धुएं ने अमेरिका और यूरोप को भी प्रभावित किया है. यह संकट सम्मेलन स्थल पर उपस्थित नेताओं को जलवायु की भयावहता का सीधा एहसास करा सकता है. यूक्रेन भी एजेंडे में एक प्रमुख मुद्दा है. राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की मौजूद रहेंगे और रूस के खिलाफ अधिक प्रतिबंध तथा पुनर्निर्माण वित्त के लिए समर्थन की मांग करेंगे.
भूराजनीतिक विस्फोटक मुद्दे: भारत और अन्य मेहमान : G7 मेज़बान देश होने के नाते कनाडा ने गैर-G7 देशों को भी आमंत्रित किया है. प्रधानमंत्री मोदी को भी निमंत्रण मिला है. मोदी की मौजूदगी भारत-कनाडा संबंधों में जमी बर्फ को पिघलाने का संकेत है, लेकिन यह एक विवादास्पद कदम भी है क्योंकि कनाडा ने दो साल पहले खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारत को ज़िम्मेदार ठहराया था. कनाडा में कई सिख संगठनों ने मोदी को बुलाने का विरोध किया है.
इसके अलावा मैक्सिको की नई राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाउम भी उपस्थित होंगी, और ट्रम्प के साथ उनकी पहली बैठक संभावित है. इससे उत्तर अमेरिकी व्यापार को लेकर नए विचार-विमर्श की उम्मीद है. कार्नी ने ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, इंडोनेशिया और नाटो नेताओं को भी आमंत्रित किया है. इससे सम्मेलन के दायरे और विविधता दोनों में वृद्धि हुई है.
एक विश्वविद्यालय जो असहमति की सज़ा देता है
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की सेवानिवृत्त इतिहास प्रोफेसर जानकी नायर ने जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित और पूर्व कुलपति एम. जगदीश कुमार को एक तीखा, लेकिन सधे हुए शब्दों में लिखा खुला पत्र भेजा है. 'द वायर' ने इसे छापा है. प्रोफसर नायर ने इसमें लिखा है- "प्रोफेसर पंडित, क्या आप नये भारत में जवाबदेही की मिसाल कायम करेंगे?" पत्र में उन्होंने उन गैरकानूनी और बदले की भावना से भरी कार्रवाइयों की ओर इशारा किया है, जिनका सामना उन्हें और उनके जैसे कई अन्य शिक्षकों को विश्वविद्यालय प्रशासन से करना पड़ा.
क्या है पत्र में खास:
पेंशन और ग्रेच्युटी रोकी गई: नायर ने बताया कि उनकी ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट जैसे सेवानिवृत्ति लाभ प्रशासन ने गैरकानूनी रूप से रोक दिए थे. दिल्ली हाईकोर्ट को हस्तक्षेप कर न सिर्फ ये राशि दिलानी पड़ी बल्कि जेएनयू को ब्याज सहित भुगतान का आदेश भी देना पड़ा.
कारण? एक शांतिपूर्ण मार्च: 2018 में जेएनयू शिक्षकों द्वारा निकाले गए एक शांतिपूर्ण मार्च को "दुर्व्यवहार" बताकर उनके खिलाफ चार्जशीट दायर की गई. इस कार्रवाई का कोई कानूनी आधार नहीं था और न ही विश्वविद्यालय के सेवा अनुबंध में सीसीएस/सीसीए नियमों का उल्लेख है.
शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला: नायर ने बताया कि 2016 के बाद जेएनयू प्रशासन ने लगातार शिक्षकों को धमकाने, वरिष्ठता की उपेक्षा कर पद बांटने, और स्वतंत्र विचारों पर हमला करने का काम किया. केंद्रों के चेयरपर्सन की मनमाने ढंग से नियुक्तियां की गईं और जो लोग विरोध में थे, उन्हें पूछताछ और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.
'प्रक्रिया ही सज़ा' बन गई: कई मामलों में अदालत ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन तब तक महीनों और वर्षों का समय निकल चुका था. पत्र में कहा गया है कि "नए भारत" में जब अपराध सिद्ध नहीं होता, तब प्रक्रिया को ही सज़ा बना दिया जाता है.
जेएनयू की साख को क्षति: नायर ने यह भी लिखा कि कैसे जेएनयू की प्रतिष्ठा को योजनाबद्ध रूप से ध्वस्त किया गया—शिक्षण पर नहीं, मार्केटिंग पर ध्यान दिया गया. बिना संकाय और आधारभूत ढांचे के इंजीनियरिंग और प्रबंधन विभाग खोले गए.
5 जनवरी 2020 की हिंसा: नायर ने उस भयावह दिन की याद दिलाई जब नकाबपोश गुंडों ने जेएनयू परिसर में छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया. आज तक न प्रशासन ने रिपोर्ट सौंपी, न पुलिस ने कार्रवाई की.
मानवीय गरिमा की बात: पत्र के अंत में नायर ने याद दिलाया कि किस तरह उन्होंने बिना किसी मानदेय के अपने छात्रों को पढ़ाया और पीएचडी गाइडेंस देना जारी रखा. जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें अकेला छोड़ दिया.
नैतिक जिम्मेदारी की मांग: पत्र का सबसे तीखा कटाक्ष अंत में आता है, जब नायर सुझाव देती हैं कि शांतिश्री पंडित और एम. जगदीश कुमार को व्यक्तिगत रूप से वह पैसा लौटाना चाहिए जो ब्याज और वकीलों की फीस में विश्वविद्यालय को देना पड़ा—क्योंकि ये खर्च उनके गैरकानूनी फैसलों की देन हैं.
पाठकों से अपील :
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