17/12/2025: नीतीश के हिजाब खींचने के बाद डॉक्टर की नौकरी को ना | मरते बीएलओ, जिम्मेदार कौन? | अडानी के खिलाफ़ अफ्रीका में आवाज़ | मोदी को 31 सम्मान | आईपीएल बोलियों में टीचरों के बेटे | होमबाउंड
‘हरकारा’ यानी हिंदी भाषियों के लिए क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज़्यादा.
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल, फ़लक अफ़शां
आज की सुर्खियां
हिजाब खींचा तो ठुकराई सरकारी नौकरी: नीतीश के बर्ताव पर महिला डॉक्टर का कड़ा फैसला
पुनर्मतगणना की हड़बड़ी, जा रही जान: 33 चुनाव कर्मियों की मौत, सुसाइड नोट में बयां किया दर्द
वोटर लिस्ट से 1 करोड़ नाम गायब: बंगाल में सबसे बड़ी छंटनी, 58 लाख मतदाता सूची से बाहर
बंगाल में दांव उल्टा पड़ा?: ‘घुसपैठिए’ के शोर के बीच हिंदू शरणार्थी ही सूची से बाहर, आंकड़े बता रहे अलग कहानी
कर्ज चुकाने कंबोडिया जाकर बेची किडनी: फिर भी नहीं माने साहूकार, वसूले 48 लाख; रोंगटे खड़े करती किसान की दास्तान
इथियोपिया से मिला सर्वोच्च सम्मान: पीएम मोदी के नाम अब 31 अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड, बना नया रिकॉर्ड
‘हम संकट की ओर नहीं, संकट में हैं’: पराकला प्रभाकर की चेतावनी, कहा- अब चुप रहने का वक्त नहीं
दिल्ली दंगे के 5 आरोपी बरी: कोर्ट ने कहा- सबूत नहीं दे पाई पुलिस, संदेह का लाभ मिला
अफ्रीका में अडाणी की एंट्री पर बवाल: 25 अरब डॉलर के बिजली प्रोजेक्ट पर विरोध, सोशल मीडिया पर फूटा गुस्सा
शिक्षकों के बेटों की आईपीएल लॉटरी: 30 लाख बेस प्राइस, 14 करोड़ में बिके; अनकैप्ड खिलाड़ियों ने तोड़े रिकॉर्ड
गांधी परिवार को बड़ी राहत: कोर्ट ने क्यों खारिज की ईडी की चार्जशीट, पूछा- बिना FIR कैसे हुई जांच?
मनरेगा से गांधी का नाम हटेगा?: काम के ‘अधिकार’ को खत्म करने की तैयारी, नए बिल पर उठे गंभीर सवाल
ट्रंप की नई नीति या ‘सुसाइड नोट’?: अमेरिकी लेखिका की चेतावनी- दुश्मन तानाशाही नहीं, अब लोकतंत्र निशाने पर
ऑस्कर की दौड़ में भारत की ‘होमबाउंड’: नीरज घायवान की फिल्म शॉर्टलिस्ट, करण जौहर बोले- सपना सच हुआ
हिजाब खींचे जाने के बाद आयुष डॉक्टर ने सरकारी नौकरी ठुकराई, नीतीश कुमार पर सवाल
पटना में हुए ‘संवाद’ कार्यक्रम के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा हिजाब खींचे जाने की घटना के बाद आयुष डॉक्टर नुसरत परवीन ने सरकारी नौकरी जॉइन न करने का फ़ैसला किया है. हाल ही में उन्हें नियुक्ति पत्र मिला था और उन्हें 20 दिसंबर को सेवा जॉइन करनी थी.
डॉक्टर नुसरत परवीन के भाई ने “ई न्यूज़रूम” को बताया कि वह नौकरी न लेने के फैसले पर अडिग हैं. उन्होंने कहा कि परिवार के लोग उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि गलती उनकी नहीं है, इसलिए उन्हें नुक़सान नहीं उठाना चाहिए. नुसरत के भाई कोलकाता में एक सरकारी लॉ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. उनके पति एक कॉलेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं.
इस घटना का वीडियो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने अपने आधिकारिक “एक्स’ अकाउंट से साझा किया, जिसके बाद क्लिप तेज़ी से वायरल हुआ. बड़ी संख्या में लोगों, खासकर महिलाओं, ने मुख्यमंत्री के व्यवहार की कड़ी आलोचना की. आरजेडी ने पोस्ट में नीतीश कुमार की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाए.
कांग्रेस ने भी इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी और नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग की. पार्टी ने कहा कि एक महिला डॉक्टर के साथ मुख्यमंत्री का यह व्यवहार बेहद आपत्तिजनक है और इससे राज्य में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े होते हैं. घटना को एक दिन से ज़्यादा समय बीत जाने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उनकी पार्टी या बिहार सरकार की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
चुनाव कर्मियों के बीच आत्महत्या का संकट: पुनर्मतगणना की हड़बड़ी के बीच जा रही हैं जान

चुनाव आयोग द्वारा पिछले महीने शुरू किए गए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के काम के दौरान कम से कम 33 चुनाव अधिकारियों की मौत हो चुकी है. इनमें से कई मौतों की वजह आत्महत्या बताई जा रही है. उल्लेखनीय है कि ‘एसआईआर’ नामक यह विशाल कवायद 4 नवंबर को 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू की गई थी. अल जज़ीरा में सुमैया अली की विस्तृत रिपोर्ट है.
लखनऊ के एक संविदा शिक्षक विजय कुमार वर्मा के 20 वर्षीय बेटे हर्षित का मानना है कि उनके पिता की मौत एक “अमानवीय कार्य” को संभालने के कारण हुई. 50 वर्षीय विजय को बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) के रूप में तैनात किया गया था. उन पर अपने क्षेत्र की मतदाता सूची को अपडेट करने, घर-घर जाकर सत्यापन करने और डेटा ऑनलाइन अपलोड करने की भारी जिम्मेदारी थी. काम का दबाव इतना अधिक था कि 14 नवंबर को देर रात काम करते समय वे गिर पड़े और बाद में ब्रेन हैमरेज से उनकी मृत्यु हो गई. हर्षित ने बताया कि जिला अधिकारियों द्वारा उनके पिता को लगातार संदेश भेजकर काम पूरा करने या “परिणाम भुगतने” और “मुकदमा दर्ज करने” की धमकी दी जाती थी.
स्पेक्ट फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 4 नवंबर के बाद से पूरे भारत में कम से कम 33 बीएलओ की मौत हुई है. इनमें से कम से कम नौ लोगों ने काम के भयानक दबाव का जिक्र करते हुए आत्महत्या कर ली. बीएलओ, जो मुख्य रूप से सरकारी शिक्षक या कनिष्ठ अधिकारी होते हैं, ने शिकायत की है कि उन्हें बिना किसी उचित प्रशिक्षण के यह काम सौंपा गया है. एक छोटी सी गलती होने पर पूरा फॉर्म दोबारा भरना पड़ता है. लखनऊ के बूथ लेवल अधिकारियों ने अपनी पहचान छिपाने की शर्त पर बताया कि वे दिन में बमुश्किल दो घंटे सो पाते हैं और सर्वर की समस्याओं के कारण रात के 4 बजे तक डेटा अपलोड करते हैं.
पश्चिम बंगाल में भी स्थिति गंभीर है, जहां कम से कम चार बीएलओ की मौत हुई है. नदिया जिले में 53 वर्षीय शिक्षिका रिंकू तरफदार ने आत्महत्या कर ली. अपने सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा, “मैं किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करती, लेकिन मैं अब इस अमानवीय दबाव को नहीं झेल सकती.”
विपक्ष ने इस कवायद की आलोचना की है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे “लोकतंत्र को नष्ट करने की एक भयावह योजना” कहा है. वहीं, बिहार चुनाव के बाद भाजपा की जीत पर विपक्ष ने “वोट चोरी” का आरोप लगाया था, जिसके जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने पलटवार किया. हालांकि, चुनाव आयोग ने काम के बोझ से मौत के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. आयोग के प्रवक्ता ने ‘अल जज़ीरा’ से कहा कि यह काम “बिल्कुल भी बोझिल नहीं” है और इसे “सामान्य” बताया. आयोग ने हाल ही में बीएलओ का मुआवजा और प्रोत्साहन राशि थोड़ी बढ़ाई है और तनाव कम करने के लिए सोशल मीडिया पर बीएलओ के डांस का वीडियो भी डाला, जिसकी काफी आलोचना हुई. पीड़ित परिवार अब भी सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
पांच राज्यों में 1 करोड़ से अधिक वोटरों के नाम हटाए, बंगाल में सबसे ज्यादा 58 लाख
पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गोवा, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पूरा होने के बाद मंगलवार को जारी प्रारूप मतदाता सूची से मतदाताओं की संख्या में भारी कमी का पता चला है. कुल मिलाकर मतदाताओं में 7.6 प्रतिशत की गिरावट आई है और एक करोड़ से अधिक मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं.
“मकतूब मीडिया” के मुताबिक, पाँच राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, मतदाताओं की कुल संख्या 27 अक्टूबर (जब चुनाव आयोग ने एसआईआर की घोषणा की थी) को 13.35 करोड़ थी, जो अब प्रारूप मतदाता सूची में घटकर 12.33 करोड़ रह गई है.
प्रारूप सूची में केवल उन्हीं मतदाताओं को शामिल किया गया है जिन्होंने 4 नवंबर से शुरू हुए गणना चरण के दौरान अपने फॉर्म जमा किए थे. मुख्य निर्वाचन अधिकारियों के अनुसार, शेष 1.02 करोड़ मतदाताओं को “स्थानांतरित/अनुपस्थित”, “मृत” या “एक से अधिक स्थानों पर नामांकित” के रूप में वर्गीकृत किया गया था.
हटाए गए नामों का यह पैमाना मोटे तौर पर अगस्त में बिहार में किए गए एसआईआर के परिणामों के समान है, जहां लगभग 8 प्रतिशत मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए थे. राजस्थान में लगभग 42 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, जो कुल मतदाताओं का 7.66 प्रतिशत है. गोवा में एक लाख से अधिक नाम हटाए गए हैं. पुडुचेरी में 1.03 लाख से अधिक नाम हटाए गए हैं. पश्चिम बंगाल में 58 लाख 20 हजार 898 वोटरों के नाम प्रारूप सूची में नहीं हैं. इनमें 24 लाख 16 हजार 852 नाम मृत वोटरों के हैं. 19 लाख 88 हजार 76 वोटर ऐसे हैं, जो दूसरी जगह चले गए हैं. जबकि लक्षद्वीप में 1,616 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं.
बंगाल में एसआईआर से सबसे ज्यादा प्रभावित हिंदू शरणार्थी, भाजपा की बयानबाजी हवा-हवाई
इधर, “द वायर” में अपर्णा भट्टाचार्य ने बताया है कि पश्चिम बंगाल में निर्वाचन क्षेत्र-वार विश्लेषण से संकेत मिलता है कि बिना दस्तावेजों वाले ‘बांग्लादेशी’ या रोहिंग्या प्रवासियों द्वारा उत्पन्न बड़े खतरे के बारे में भाजपा की बयानबाजी केवल हवा-हवाई (बेबुनियाद) हो सकती है.
भट्टाचार्य के मुताबिक, जिन जिलों में मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है, वहां दस्तावेज़ीकरण की दर सबसे अधिक रही है. इसके विपरीत, जिन मतुआ बाहुल्य इलाकों में ऐसे लोगों की संख्या काफी है, जो मतदाता सूची में अपनी उपस्थिति को पूर्वजों के प्रमाण से जोड़ने में विफल रहे. वह तर्क देती हैं कि एसआईआर के विरासत लिंक से सबसे अधिक प्रभावित होने वाली आबादी भाजपा के भाषणों में चित्रित ‘बाहरी मुस्लिम घुसपैठिया’ नहीं, बल्कि 1971 के बाद आए हिंदू शरणार्थी हैं.
“द इंडियन एक्सप्रेस” में दामिनी नाथ ने रिपोर्ट दी है कि “बिहार के एसआईआर से निकले एक प्रक्रियात्मक ‘रेड फ्लैग’ (चेतावनी के संकेत) ने चुनाव तंत्र के भीतर चिंता पैदा कर दी है. मामला यह है कि बिहार एसआईआर के दावों और आपत्तियों के चरण से ठीक पहले, निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों (ईआरओ) ने अपने आधिकारिक पोर्टल पर मतदाताओं के डेटा के साथ ‘पहले से भरे हुए’ नोटिस देखे, जबकि उन्होंने उन्हें खुद जेनरेट नहीं किया था. नाथ लिखती हैं कि कई ईआरओ ने इन नोटिसों पर कोई कार्रवाई नहीं की.
कर्ज चुकाने के लिए किसान ने कंबोडिया में बेची किडनी, साहूकारों ने वसूले 48 लाख
महाराष्ट्र के चंद्रपुर में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जहां कर्ज के कुचक्र में फंसे एक डेयरी किसान को अपनी किडनी बेचने और फिर विदेश में बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. पुलिस ने इस मामले में अवैध साहूकारी और जबरन वसूली के आरोप में छह लोगों को गिरफ्तार किया है.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, नागभीड़ निवासी रोशन कुले की मुश्किलें 2021 में शुरू हुईं, जब लम्पी स्किन डिजीज के कारण उनकी 12 गायों की मौत हो गई. इलाज में जमा-पूंजी खत्म होने के बाद उन्होंने फरवरी 2021 में मनीष घटबंधे नामक साहूकार से 20 प्रतिशत ब्याज दर पर 1 लाख रुपये उधार लिए. समय पर पैसा न चुका पाने पर उनके साथ मारपीट की गई और उन पर भारी जुर्माना लगाया गया. दबाव में आकर कुले ने ब्याज चुकाने के लिए अन्य साहूकारों से कर्ज लिया. शिकायत के अनुसार, उन्होंने कुल 12.25 लाख रुपये का मूल कर्ज लिया था, जिसके बदले साहूकारों ने डरा-धमकाकर उनसे कुल 48.53 लाख रुपये वसूल लिए.
पुलिस को दी गई शिकायत में कुले ने बताया कि कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने ऑनलाइन संपर्क कर अक्टूबर 2024 में कंबोडिया जाकर अपनी बायीं किडनी बेच दी. इसके लिए उन्हें पहले कोलकाता और फिर कंबोडिया की राजधानी नोम पेन्ह ले जाया गया. किडनी बेचने के बाद भी उनकी आर्थिक स्थिति नहीं सुधरी, जिसके बाद वह एक एजेंट के जरिए नौकरी के लिए लाओस गए. वहां उन्हें ‘गोल्डन ट्राएंगल’ इलाके में अमानवीय स्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया और उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया.
कुले ने बाद में स्थानीय विधायक विजय वडेट्टीवार से संपर्क किया, जिनकी मदद से भारतीय दूतावास के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बचाया जा सका. चंद्रपुर के पुलिस अधीक्षक (SP) मुम्मका सुदर्शन ने बताया कि पुलिस गुर्दे निकालने वाले रैकेट और अवैध साहूकारी के आरोपों की जांच कर रही है. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 387 (जबरन वसूली), 342 (बंधक बनाना), और महाराष्ट्र मनी लेंडिंग एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है. कुले ने आरोप लगाया कि साहूकारों ने उनके पिता की जमीन भी अपने नाम करवा ली थी.
पीएम मोदी को मिले अंतरराष्ट्रीय सम्मानों की संख्या 31 पहुंची
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंतरराष्ट्रीय सम्मानों की बढ़ती सूची में एक और नाम जुड़ गया है. मंगलवार को इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद अली ने पीएम मोदी को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रेट ऑनर निशान ऑफ इथियोपिया’ (Great Honour Nishan of Ethiopia) से नवाजा. विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, यह सम्मान उन्हें भारत-इथियोपिया साझेदारी को मजबूत करने और वैश्विक मंच पर उनके नेतृत्व के लिए दिया गया है.
पीएम मोदी यह पुरस्कार पाने वाले पहले वैश्विक शासनाध्यक्ष हैं. इस सम्मान के साथ ही नरेंद्र मोदी सबसे अधिक अंतरराष्ट्रीय सम्मान पाने वाले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं. उनके कार्यकाल के दौरान विदेशी सरकारों द्वारा दिए गए सम्मानों की कुल संख्या अब 31 हो गई है. सम्मान स्वीकार करते हुए पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि वह इसे भारत के लोगों की ओर से विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हैं.
इससे पहले मार्च 2025 में मॉरीशस और जून 2025 में साइप्रस ने भी उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से नवाजा था. इसके अलावा, उन्हें रूस, फ्रांस, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, यूएई और फिलिस्तीन जैसे देशों से भी शीर्ष सम्मान प्राप्त हो चुके हैं.
पराकला प्रभाकर: ख़तरे में समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, राजनीति और गणतंत्र भी
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और राजनीतिक टिप्पणीकार पराकला प्रभाकर ने भारतीय लोकतंत्र की स्थिति पर कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि देश का गणतंत्र “गहरे और निरंतर संकट” का सामना कर रहा है.
गुवाहाटी में डिजिटल समाचार मंच ‘नॉर्थईस्ट नाउ’ के 8वें स्थापना दिवस पर बोलते हुए प्रभाकर ने कहा कि भारत महज अब “संकट की ओर टकटकी” नहीं लगाए है, बल्कि वह पहले से ही “इससे गुजर रहा” है. “क्या हमारा गणतंत्र संकट में है?” विषय पर व्याख्यान देते हुए प्रभाकर ने कहा कि यह सवाल केवल कहने मात्र के लिए नहीं है. उन्होंने कहा, “स्पष्ट रूप से कहूँ तो, हाँ, गणतंत्र संकट में है. “ उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द ही सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो “बहुत देर हो सकती है.”
‘नॉर्थईस्ट नाउ’ को उसकी वर्षगांठ पर बधाई देते हुए प्रभाकर ने स्वीकार किया कि निमंत्रण स्वीकार करने से पहले वे थोड़े हिचकिचाए थे, अपनी सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि मेजबानों की सुरक्षा के लिए. उन्होंने कहा, “देश का माहौल सत्ता से सच बोलने के अनुकूल नहीं है.” उन्होंने मुख्यधारा के विमर्श को चुनौती देने वालों को होने वाले परिणामों की ओर इशारा किया.
प्रभाकर ने तर्क दिया कि गणतंत्र के संकट को अलग करके नहीं देखा जा सकता. उन्होंने कहा, “हमारी अर्थव्यवस्था संकट में है, हमारा समाज संकट में है, हमारी राजनीति और संस्कृति संकट में है. इन सबको मिला दें, तो गणतंत्र संकट में है.”
मणिपुर में लगभग दो वर्षों से जारी हिंसा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अपने ही नागरिकों की पीड़ा के प्रति देश की उदासीनता नैतिक और राजनीतिक पतन को दर्शाती है. उन्होंने कहा, “मणिपुर भारत की राजनीतिक कल्पना का हिस्सा नहीं है. “ उन्होंने कोर्ट रूम के अंदर भारत के मुख्य न्यायाधीश पर हमले जैसी घटनाओं पर जनता की उदासीनता, बढ़ती बेरोजगारी, ग्रामीण संकट और रुपये के गिरते मूल्य का भी जिक्र किया.
चुनावी प्रथाओं पर चिंता जताते हुए प्रभाकर ने चेतावनी दी कि लोकतांत्रिक मानदंडों को उलट दिया जा रहा है. उन्होंने कहा, “पहले मतदाता सरकार तय करते थे. आज सरकारें तय करती हैं कि मतदाता किसे होना चाहिए.” उन्होंने महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों की अनदेखी कर अन्य विषयों पर संसद में होने वाली लंबी चर्चाओं की भी आलोचना की.
प्रभाकर ने भारतीय गणतंत्र के स्थापना काल को याद करते हुए कहा कि भारत ने शुरू से ही तय किया था कि यहाँ रहने वाला हर व्यक्ति समान है, चाहे उसका धर्म, जाति या भाषा कुछ भी हो. उन्होंने ‘सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार’ को एक क्रांतिकारी प्रयोग बताया, जिसे कई विकसित लोकतंत्रों ने अपनाने में सदियां लगा दी थीं. प्रभाकर ने चेतावनी दी कि आधुनिक लोकतंत्र रातों-रात तख्तापलट से नहीं खत्म होते, बल्कि वे “धीरे-धीरे, एक-एक छोटे घाव से मरते हैं.” उन्होंने ‘उबलते हुए मेढक’ के रूपक का इस्तेमाल करते हुए कहा कि जब तक खतरे का एहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. उन्होंने कहा कि भव्य आयोजनों और प्रायोजित बहसों के जरिए जनता का ध्यान भटकाया जाता है, जबकि लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर की जा रही होती हैं.
उन्होंने धर्म के आधार पर “स्थायी बहुमत” के निर्माण पर चिंता जताई. उन्होंने इशारा किया कि वर्तमान सत्ताधारी दल का मंत्रिमंडल या संसदीय दल में देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक वर्ग का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. उन्होंने चेतावनी दी, “जब राजनीतिक बहुमत की जगह धार्मिक बहुमत ले लेता है, तो लोकतंत्र खोखला हो जाता है.”
अपने व्याख्यान के अंत में प्रभाकर ने कहा कि यह संकट रातों-रात पैदा नहीं हुआ, बल्कि संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करने के “निरंतर और प्रतिबद्ध प्रयासों” का परिणाम है. उन्होंने नागरिकों से मूकदर्शक न बने रहने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “बुराई अपने आप खत्म नहीं होती, इसका बार-बार विरोध करना पड़ता है. हम पहले से ही संकट में हैं, निश्चिंत न रहें.”
दिल्ली दंगे के पांच आरोपी कोर्ट से बरी, पुलिस आरोप साबित करने में विफल रही
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े एक मामले में आगजनी, दंगा और तोड़फोड़ के पांच आरोपियों को बरी कर दिया है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण सिंह दरअसल, अब्दुल सत्तार, मुहम्मद खालिद, हुनैन, तनवीर और आरिफ के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहे थे. इन पर चाँद बाग इलाके में दंगा करने, गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने और तोड़फोड़ करने के आरोप लगाए गए थे.
‘पीटीआई’ के अनुसार, 11 दिसंबर के अपने आदेश में न्यायाधीश ने कहा, “मेरा मानना है कि अभियोजन पक्ष सभी उचित संदेहों से परे अपना मामला साबित करने में विफल रहा है और सभी आरोपी संदेह के लाभ के हकदार हैं. तदनुसार, आरोपियों को उनके खिलाफ तय किए गए सभी आरोपों से बरी किया जाता है.”
अदालत ने गौर किया कि जांच अधिकारी ने दावा किया था कि आरोपियों की तस्वीरें गवाह रामदास गुप्ता को दिखाई गई थीं. रामदास भजनपुरा के एक पेट्रोल पंप का कर्मचारी है, जिसके पास दंगे और आगजनी की घटना हुई थी, लेकिन उन तस्वीरों का स्रोत (वे कहाँ से आईं) स्पष्ट नहीं था.
न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “आरोपियों की ओर से दिया गया यह तर्क कि उनकी गिरफ्तारी के बाद, इस मामले को सुलझाने के लिए उन्हें इसमें झूठा फंसाया गया था, इसे पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता.” अदालत ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि उस पर पेट्रोल पंप पर हमला हुआ था और उसे अस्पताल में ही होश आया, लेकिन इस दावे के विपरीत, उसके पिता ने उसे भजनपुरा चौक पर घायल अवस्था में पाया था.
जालसाजी के मामले में महाराष्ट्र के मंत्री के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट, देना पड़ा इस्तीफा
निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए, नासिक जिला सत्र न्यायालय ने बुधवार को महाराष्ट्र के खेल मंत्री और एनसीपी (एनसीपी) विधायक माणिकराव कोकाटे के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया. उन पर मुख्यमंत्री के 10 प्रतिशत आवास कोटे के तहत दो अपार्टमेंट हासिल करने के लिए धोखाधड़ी और जालसाजी करने का आरोप है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” में सुधीर सूर्यवंशी की रिपोर्ट है कि नासिक सत्र न्यायालय ने मंगलवार को प्रथम श्रेणी अदालत के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें अपार्टमेंट पाने के लिए आय प्रमाण दस्तावेजों में हेराफेरी करने के आरोप में दो साल के कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी.
इस घटनाक्रम के बाद, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को फोन कर इस मामले पर चर्चा की. उन्होंने कोकाटे की गिरफ्तारी के बाद उनके इस्तीफे की स्थिति में संभावित विकल्पों (नए नामों) पर भी बात की. अजीत पवार ने इस विषय पर विचार के लिए समय मांगा है. फिलहाल, कोकाटे को सीने में दर्द और बेचैनी की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया है. हालांकि, बाद में कोकाटे से इस्तीफा ले लिया गया.
अनुपमा गुलाटी हत्याकांड: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दोषी पति की उम्रकैद बरकरार रखी
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की नृशंस हत्या के दोषी सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी को सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है.
“द न्यू इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने बुधवार को गुलाटी की अपील को खारिज कर दिया. अदालत ने निचली अदालत के उस फैसले की पुष्टि की, जिसमें उसे अपनी पत्नी की हत्या करने और उसके बाद उसके शव के 72 टुकड़े करने का दोषी पाया गया था. यह सनसनीखेज मामला साल 2010 का है. राजेश और अनुपमा ने 1999 में प्रेम विवाह किया था, जिसके बाद वे अमेरिका चले गए थे. छह साल बाद भारत लौटने पर यह जोड़ा देहरादून में बस गया, जहां कथित तौर पर उनके वैवाहिक संबंधों में कड़वाहट आ गई और उनके बीच अक्सर झगड़े होने लगे थे.
एच-1बी श्रमिकों के लिए ट्रम्प के शुल्क से आईटी उद्योग प्रभावित होंगे
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा नए एच-1बी श्रमिकों के लिए $100,000 (लगभग 84 लाख रुपये) का शुल्क निर्धारित करने से आईटी आउटसोर्सिंग और स्टाफिंग उद्योग काफी प्रभावित होंगे.
‘ब्लूमबर्ग’ के एक विश्लेषण में पाया गया है कि इस शुल्क का सबसे अधिक प्रभाव उन बहुराष्ट्रीय स्टाफिंग फर्मों पर पड़ेगा, जो एच-1बी श्रमिकों की तलाश करने वाली कंपनियों के लिए बिचौलिये के रूप में कार्य करती हैं, जिनमें इन्फोसिस, कॉग्निजेंट और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) शामिल हैं. मई 2020 से मई 2024 के बीच इन तीन कंपनियों में नियुक्त किए गए लगभग 90 प्रतिशत नए एच-1बी कर्मियों को अमेरिकी दूतावासों के माध्यम से मंजूरी मिली थी. अगर यह शुल्क उस समय प्रभावी होता, तो इनमें से प्रत्येक कंपनी को करोड़ों डॉलर अतिरिक्त खर्च करने पड़ते. ‘ब्लूमबर्ग’ के अनुसार, चूंकि एच-1बी प्रतिभा का एक बड़ा हिस्सा भारत से आता है, इसलिए कंपनियां अब उच्च वीजा खर्चों का भुगतान करने के बजाय भारत में ही अपना परिचालन बढ़ा सकती हैं.
लोकसभा में ‘शांति’ विधेयक पारित: परमाणु क्षेत्र में निजी भागीदारी का रास्ता खुला
लोकसभा ने बुधवार को ‘सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ (शांति) विधेयक पारित कर दिया. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह कानून भारत को 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा. लेकिन विपक्ष ने यह कहकर विधेयक का विरोध किया कि इससे परमाणु क्षेत्र निजी भागीदारी के लिए खुल जाएगा.
डॉ. सिंह का कहना था कि भू-राजनीति में भारत की भूमिका बढ़ रही है. वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरने के लिए हमें वैश्विक मानकों और रणनीतियों का पालन करना होगा. विपक्ष ने विरोध में तर्क दिया कि यह ‘सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010’ के प्रावधानों को कमजोर करता है, जो किसी दुर्घटना की स्थिति में परमाणु उपकरण आपूर्तिकर्ताओं पर उत्तरदायित्व डालते हैं.
“डेक्कन क्रानिकल” की रिपोर्ट है कि कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी हटाना किसी परमाणु घटना की स्थिति में हानिकारक साबित हो सकता है. उन्होंने परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 को निरस्त करने के प्रावधानों का भी विरोध किया और विधेयक को विस्तृत जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की मांग की. कांग्रेस के ही शशि थरूर ने विधेयक को पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना “निजीकृत परमाणु विस्तार की ओर एक खतरनाक छलांग” बताया. उन्होंने कहा कि पूंजी की चाहत जन सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण पर हावी नहीं होनी चाहिए. उनके अनुसार, यह कानून “विवेकाधिकार पर अधिक केंद्रित और जन कल्याण के प्रति उदासीन है.”
अब्दुल्ला की धमकी के बाद भारत ने बांग्लादेशी उच्चायुक्त को तलब किया
भारत के विदेश मंत्रालय ने बुधवार को ढाका में भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा को लेकर उत्पन्न चिंताओं और कथित धमकी के बाद, बांग्लादेश के उच्चायुक्त एम. रियाज हमीदुल्ला को तलब किया.
“एएनआई” की खबर है कि यह कदम नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) के नेता हसनत अब्दुल्ला द्वारा भारत विरोधी बयानबाजी के बाद बढ़े तनाव के बीच उठाया गया है. खबरों के अनुसार, अब्दुल्ला ने एक सार्वजनिक भाषण में धमकी दी थी कि यदि बांग्लादेश को अस्थिर किया गया, तो वे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों (जिन्हें ‘सेवन सिस्टर्स’ के नाम से जाना जाता है) को अलग-थलग कर देंगे और अलगाववादी तत्वों को शरण देंगे. अब्दुल्ला को उनके कड़े भारत विरोधी रुख के लिए जाना जाता है.
दिल्ली की खराब हवा: पुराने वाहनों पर कार्रवाई, टोल प्लाजा के बारे में विचार करें: सुप्रीम कोर्ट; 50% के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’
“पीटीआई” के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के गंभीर स्तर पर कड़ा रुख अपनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और दिल्ली नगर निगम को राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर स्थित नौ टोल प्लाजा को अस्थायी रूप से बंद करने या उन्हें स्थानांतरित करने पर एक सप्ताह के भीतर विचार करने के लिए कहा, ताकि आमतौर पर होने वाले भारी ट्रैफिक जाम को कम किया जा सके.
सुप्रीम कोर्ट ने पुराने वाहनों पर प्रतिबंधों को भी और कड़ा कर दिया. अदालत ने अपने पुराने आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि अब केवल BS-IV और उससे ऊपर के मानकों वाले वाहनों को ही दंडात्मक कार्रवाई से छूट दी जाएगी. उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने इससे पहले 12 अगस्त के अपने आदेश में निर्देश दिया था कि क्षेत्र में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए.
दिल्ली की सरकार ने प्रदूषण के गंभीर स्तर को ध्यान में रखकर सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के 50% कर्मचारियों के लिए गुरुवार से ‘वर्क फ्रॉम होम’ (घर से काम) अनिवार्य कर दिया है. श्रम मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा कि इस कदम का उद्देश्य दैनिक आवाजाही को कम करना और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में कटौती करना है.
भाजपा सरकार में है, लेकिन उसने आप पर फोड़ा ठीकरा
यह तो जवाबदेही से दूर भागना हुआ. दिल्ली में बीजेपी की अब सरकार है, लेकिन वह बजाय काम करके दिखाने के, वही भाषा बोल रही है, जो विपक्ष में रहकर अरविंद केजरिवाल सरकार के लिए बोला करती थी. वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के लगातार ‘गंभीर’ श्रेणी में बने रहने के बीच, दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, “किसी भी निर्वाचित सरकार के लिए 9-10 महीनों में एक्यूआई कम करना असंभव है. प्रदूषण की यह बीमारी हमें आम आदमी पार्टी ने दी है और हम इसे ठीक करने के लिए काम कर रहे हैं.”
मणिपुर: सुरक्षा बलों और उपद्रवियों के बीच गोलीबारी से तनाव
मणिपुर के बिष्णुपुर जिले के तोरबुंग और फौगाकचाओ क्षेत्रों में हाल ही में फिर से बसाए गए आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के बीच मंगलवार रात सुरक्षा बलों और अज्ञात सशस्त्र उपद्रवियों के बीच हुई गोलीबारी के बाद तनाव बना हुआ है.
“हिंदुस्तान टाइम्स” को पुलिस अधिकारियों ने बताया कि तोरबुंग और फौगाकचाओ क्षेत्रों के तीन प्रमुख स्थानों पर राज्य कमांडो सहित अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.
अधिकारियों के अनुसार, चूराचाँदपुर की ओर से आए कुछ अज्ञात सशस्त्र उपद्रवियों ने मंगलवार रात करीब 8:30 बजे तोरबुंग गांव पर कथित तौर पर हमला किया, जिसके बाद सुरक्षा बलों ने तुरंत जवाबी कार्रवाई की. हमलावरों ने बमों का भी इस्तेमाल किया और यह मुठभेड़ लगभग 20 मिनट तक चली. गोलीबारी की इस नई घटना ने इलाके के ग्रामीणों में दहशत पैदा कर दी है.
इधर, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बुधवार को इंफाल में कई स्थानों पर तलाशी ली. यह छापेमारी एक मनी लॉन्ड्रिंग जांच का हिस्सा है, जो उन व्यक्तियों के खिलाफ की जा रही है जिन पर एक कथित निवेश योजना के माध्यम से जनता से ₹50 करोड़ से अधिक एकत्र करने और उन पैसों का उपयोग भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों के लिए करने का आरोप है. कम से कम पाँच परिसरों पर छापेमारी की गई. ये ठिकाने ‘मणिपुर स्टेट काउंसिल’ के स्वयंभू मुख्यमंत्री याम्बेम बीरेन और इसी संगठन के स्वयंभू विदेश एवं रक्षा मंत्री नारेंगबाम समरजीत से जुड़े हुए हैं. इन दोनों का ‘सलाई ग्रुप ऑफ कंपनीज’ से संबंध बताया गया है.
दक्षिण अफ्रीका के 25 अरब डॉलर के बिजली प्रोजेक्ट पर अडानी की बोली को लेकर भारी विरोध
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय ट्रांसमिशन ग्रिड के विस्तार के लिए 26 अरब डॉलर (लगभग 2,150 अरब रुपये) की महत्वकांक्षी परियोजना की बोली प्रक्रिया में भारतीय अरबपति गौतम अडानी की कंपनी के शामिल होने पर वहां भारी जन आक्रोश देखने को मिल रहा है. बिजनेस इनसाइडर अफ्रीका में सेगुन अदेयेमी की रिपोर्ट है कि दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने पुष्टि की है कि अडानी पावर की मध्य पूर्व इकाई उन सात अंतरराष्ट्रीय समूहों में शामिल है जिन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए शॉर्टलिस्ट (pre-qualified) किया गया है. इसमें फ्रांस और चीन की सरकारी कंपनियां भी शामिल हैं.
दक्षिण अफ्रीका वर्षों से बिजली की भारी किल्लत और लोड शेडिंग से जूझ रहा है. बिजली मंत्री कोसिएंत्शो रामोकगोपा ने इस प्रोजेक्ट को देश की ‘एनर्जी रीढ़’ को आधुनिक बनाने और ऊर्जा सुरक्षा बहाल करने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है. हालांकि, जैसे ही यह खबर सार्वजनिक हुई, सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई. जनता का ध्यान तकनीकी सुधार से हटकर विश्वास और स्वामित्व के मुद्दों पर केंद्रित हो गया.
फेसबुक और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कई उपयोगकर्ताओं ने विदेशी कंपनियों, विशेष रूप से अडानी समूह को इसमें शामिल करने पर तीखे सवाल उठाए. एक यूजर ने लिखा कि यह विकास “देश छोड़ने से पहले सब कुछ नीलाम करने” जैसा लगता है. यह टिप्पणी वहां की सरकार द्वारा रणनीतिक संपत्तियों के निजीकरण को लेकर जनता के डर को दर्शाती है. कई लोगों ने मांग की कि यह परियोजना स्थानीय दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों के पास ही रहनी चाहिए क्योंकि देश में हुनर की कमी नहीं है.
हालांकि, सभी प्रतिक्रियाएं नकारात्मक नहीं थीं. भारत में रहने वाले एक दक्षिण अफ्रीकी नागरिक सागर सिंह ने अडानी की सेवाओं का बचाव करते हुए कहा कि भारत में उनकी सेवा विश्वसनीय है और बिजली के बिल दक्षिण अफ्रीका की तुलना में कम हैं. यह पोस्ट उन लोगों के बीच काफी शेयर की गई जो किसी भी कीमत पर लोड शेडिंग से छुटकारा चाहते हैं.
यह परियोजना दक्षिण अफ्रीका के ऊर्जा परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें 1,100 किलोमीटर से अधिक नई ट्रांसमिशन लाइनों का निर्माण शामिल है. लेकिन भ्रष्टाचार के पुराने मामलों से डरी हुई जनता अब इस बात को लेकर आशंकित है कि “लुटेरे अब पैसे का स्वाद चख रहे हैं.” अब सबसे बड़ी चुनौती न केवल इंजीनियरिंग की होगी, बल्कि हताश जनता को यह भरोसा दिलाने की भी होगी कि इस बार वास्तव में बिजली आएगी और यह केवल एक और बड़ा घोटाला नहीं होगा.
आईपीएल नीलामी: शिक्षकों के बेटों की चमकी किस्मत, दो अनकैप्ड खिलाड़ियों को मिले 14.2 करोड़ रुपये

अबू धाबी में हुई आईपीएल मिनी नीलामी के दौरान जहां कैमरून ग्रीन और मथीशा पथिराना जैसे अंतरराष्ट्रीय सितारों पर धनवर्षा की उम्मीद पहले से थी, वहीं तीन अनकैप्ड (जिन्होंने अभी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेले) भारतीय खिलाड़ियों ने पूरी महफिल लूट ली. इंडियन एक्सप्रेस में देवेंद्र पांडेय बताते हैं कि ये तीनों शिक्षकों के बेटे हैं और इन्होंने अपनी किस्मत खुद लिखी है.
राजस्थान के विकेटकीपर-बल्लेबाज कार्तिक शर्मा और उत्तर प्रदेश के ऑलराउंडर प्रशांत वीर ने आईपीएल नीलामी के इतिहास में सबसे महंगे अनकैप्ड खिलाड़ी बनने का रिकॉर्ड तोड़ दिया. चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) ने इन दोनों को 14.2 करोड़ रुपये (प्रत्येक) की भारी कीमत पर खरीदा. इससे पहले अनकैप्ड खिलाड़ी का रिकॉर्ड आवेश खान (10 करोड़) के नाम था. वहीं, जम्मू-कश्मीर के तेज गेंदबाज आकिब नबी को दिल्ली कैपिटल्स ने 8.4 करोड़ रुपये में अपनी टीम में शामिल किया. इन तीनों का बेस प्राइस महज 30 लाख रुपये था और इन्होंने जैकपॉट हासिल किया.
इन खिलाड़ियों की सफलता के पीछे कड़े संघर्ष की कहानियां हैं. प्रशांत वीर के पिता अमेठी में एक ‘शिक्षा मित्र’ (संविदा शिक्षक) हैं और महीने के मात्र 12,000 रुपये कमाते हैं. प्रशांत, जो बाएं हाथ के स्पिनर और बड़े हिटर हैं, को CSK के फैंस रवींद्र जडेजा के विकल्प के रूप में देख रहे हैं. नीलामी के बाद भावुक प्रशांत ने कहा, “मैंने रिंकू सिंह भाई से कहा कि मुझे चिकोटी काटें, मुझे लगा मैं सपना देख रहा हूं. मेरे परिवार ने अपने जीवन में इतना पैसा कभी नहीं देखा, यह हमारी जिंदगी बदल देगा.”
वहीं, कार्तिक शर्मा के पिता मनोज ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए 10 साल पहले अपनी शिक्षक की नौकरी छोड़ दी थी. घर का खर्च मां की आंगनवाड़ी की नौकरी से चलता था. कार्तिक को राजस्थान में ‘सिक्सर किंग’ कहा जाता है और केकेआर के ट्रोयल्स में उन्होंने 32 गेंदों में 17 छक्कों के साथ 119 रन बनाए थे. आकिब नबी के पिता भी बारामूला के एक सरकारी स्कूल में अंग्रेजी शिक्षक हैं. वे चाहते थे बेटा डॉक्टर बने, लेकिन आकिब का क्रिकेट जुनून जीत गया. 30 लाख के बेस प्राइस से करोड़पति बनने तक का यह सफर इन साधारण परिवारों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है.
दिल्ली की अदालत ने गांधी परिवार के ख़िलाफ़ ईडी की नेशनल हेराल्ड चार्जशीट क्यों ख़ारिज की
आठ महीने पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की थी. एजेंसी ने आरोप लगाया था कि उन्होंने धोखाधड़ी से नेशनल हेराल्ड अख़बार की प्रकाशक कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) पर कब्ज़ा किया. हालांकि, अदालत ने इस चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया. कोर्ट का कहना था कि ईडी का मनी लॉन्ड्रिंग मामला किसी एफआईआर पर आधारित नहीं है, जबकि आम तौर पर ऐसे मामलों में पहले किसी दूसरी जांच एजेंसी की एफआईआर ज़रूरी होती है. इस खबर से संबंधित यह लेख स्क्रॉल द्वारा प्रकाशित किया गया है. इस रिपोर्ट को तैयार करते समय उस लेख के कुछ अंशों और जानकारियों का उपयोग किया गया है.
कांग्रेस के क़ानूनी सलाहकारों का कहना है कि नेशनल हेराल्ड मामला असामान्य है, क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग क़ानून के तहत ईडी तभी जांच शुरू कर सकती है जब किसी “निर्धारित अपराध” में पहले से केस दर्ज हो. उदाहरण के तौर पर, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में ईडी की जांच रांची पुलिस की एफआईआर पर आधारित थी. नेशनल हेराल्ड मामले में न सिर्फ ईडी ने बिना एफआईआर के जांच शुरू की, बल्कि अप्रैल में उसने दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में स्थित अख़बार की 661 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर कब्ज़ा लेने की कोशिश भी की. इसके विरोध में कांग्रेस ने देशभर में प्रदर्शन किए थे.
मंगलवार को अदालत के फ़ैसले के बाद कांग्रेस ने इसे अपनी जीत बताया. पार्टी ने बयान जारी कर कहा कि “सच की जीत हुई है और सच हमेशा जीतेगा.” कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार लगातार गांधी परिवार को निशाना बना रही है. दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ईडी और अन्य एजेंसियों को बीजेपी की “निजी सेना” बताया. ईडी ने अब तक अदालत के फ़ैसले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
नेशनल हेराल्ड विवाद की शुरुआत फरवरी 2013 में हुई थी, जब बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली की एक अदालत में शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने आरोप लगाया कि गांधी परिवार ने हज़ारों करोड़ रुपये की संपत्तियों पर ग़लत तरीक़े से नियंत्रण हासिल किया और इससे एजेएल के शेयरधारकों और कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचा.
एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की स्थापना 1937 में लखनऊ में हुई थी, ताकि जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेस नेता अपने विचारों को जनता तक पहुंचा सकें. कंपनी ने अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड, उर्दू में क़ौमी आवाज़ और हिंदी में नवजीवन प्रकाशित किया. आज़ादी के बाद सरकारों ने इसके संचालन के लिए ज़मीन भी लीज़ पर दी.
समय के साथ कंपनी आर्थिक संकट में आ गई और कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया. तब कांग्रेस ने लगभग 90 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया. इसके बावजूद 2008 में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद करना पड़ा. 2010 में यंग इंडियन नाम की एक गैर-लाभकारी कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल गांधी निदेशक बने. 2011 में इस कंपनी ने कांग्रेस का 90 करोड़ का क़र्ज़ मात्र 50 लाख रुपये में लेकर उसे शेयरों में बदल दिया. इससे यंग इंडियन को एजेएल पर नियंत्रण मिला.
स्वामी का आरोप था कि इस प्रक्रिया में धोखाधड़ी हुई. हालांकि 2021 तक गांधी परिवार के ख़िलाफ़ कोई बड़ी जांच नहीं हुई. इसके बाद ईडी ने मामला संभाला और 2022 में सोनिया और राहुल गांधी से लंबी पूछताछ की. 2023 में 751 करोड़ रुपये की संपत्तियां अटैच की गईं और अप्रैल में चार्जशीट दाखिल की गई.
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि इस पूरे मामले में न तो कोई पैसा इधर-उधर हुआ और न ही संपत्तियां गांधी परिवार को ट्रांसफर की गईं. एजेएल आज भी अपनी संपत्तियों से होने वाली आय से अख़बार चला रहा है और कर्मचारियों को भुगतान कर रहा है. पार्टी का कहना है कि इसका मक़सद केवल एक विरासत संस्थान को पुनर्जीवित करना था.
कांग्रेस ने इस कार्रवाई की तुलना आज़ादी के आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा नेशनल हेराल्ड पर लगाए गए प्रतिबंध से भी की है. राहुल गांधी ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर ईडी की पूछताछ का ज़िक्र किया है. वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि इस मामले में कोई ठोस आधार नहीं है.
हालांकि मामला अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. अदालत ने ईडी को अगली सुनवाई में अपनी दलीलें रखने की अनुमति दी है. कांग्रेस के क़ानूनी विभाग का कहना है कि वह अब केस ख़ारिज कराने की कोशिश करेगा. वहीं, अक्टूबर में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक नई एफआईआर के बाद यह अटकलें भी हैं कि ईडी इसी आधार पर दोबारा जांच शुरू कर सकती है और अदालत के फैसले को चुनौती दे सकती है.
फिलहाल कांग्रेस का दावा है कि अदालत के आदेश से उसका रुख सही साबित हुआ है. मंगलवार को नेशनल हेराल्ड की वेबसाइट पर इस फैसले से जुड़ी कई खबरें छपीं, जिनकी सुर्खी में तीन शब्द खास तौर पर उभरे, “सच की जीत हुई. ”
काम का अधिकार ख़त्म करने की तैयारी? मनरेगा को कमज़ोर करने वाला सरकार का नया बिल
केंद्र सरकार का प्रस्तावित विकसित भारत–गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) बिल, 2025 देश के सबसे अहम अधिकार आधारित क़ानूनों में से एक महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को कमज़ोर करने वाला माना जा रहा है. द वायर के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज़ की प्रोफेसर ज़ोया हसन अपने लेख में लिखती हैं कि मनरेगा के तहत ग्रामीण वयस्कों को क़ानूनी अधिकार है कि वे काम मांग सकें और 15 दिन के भीतर उन्हें रोज़गार मिले. लेकिन नया बिल इस क़ानूनी गारंटी को ख़त्म कर, इसे केंद्र द्वारा नियंत्रित और बजट-सीमित योजना में बदल देता है. साथ ही, इस योजना से महात्मा गांधी का नाम भी हटाया जा रहा है.
यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं है, बल्कि सोच का भी है. महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट एक मांग-आधारित व्यवस्था है, जहां काम की ज़रूरत तय करती है कि रोज़गार मिलेगा या नहीं. नया बिल इसे आपूर्ति-आधारित मॉडल में बदल देता है, जहां काम मिलना सरकार की प्राथमिकताओं और बजट पर निर्भर होगा, न कि मज़दूरों की ज़रूरतों पर.
लेख में कहा गया है कि गांधी का नाम केवल प्रतीक नहीं था, बल्कि योजना की नैतिक नींव था. जब क़ानून का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया था, तो इसका मक़सद रोज़गार के अधिकार को सामाजिक न्याय और ग़रीबों के अधिकार से जोड़ना था. गांधी का नाम हटाने से इस योजना की ऐतिहासिक और नैतिक वैधता कमज़ोर होती है, और इसके साथ ही ज़मीन पर काम की गारंटी भी धीरे-धीर ख़त्म की जा रही है.
नए बिल के तहत रोज़गार सिर्फ उन्हीं इलाकों में मिलेगा जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी. इससे पूरे ग्रामीण भारत में लागू एक सार्वभौमिक अधिकार, सरकार की मर्ज़ी पर चलने वाली योजना बन जाएगा. हालांकि बिल में काम के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 करने की बात कही गई है, लेकिन लेख के मुताबिक़ यह ज़्यादातर दिखावटी है. एमजीएनरेगा में जहां मज़दूरी का ख़र्च केंद्र सरकार उठाती है, वहीं नए बिल में केंद्र पहले से तय करेगा कि किस राज्य को कितना पैसा मिलेगा. इससे ज़्यादा ख़र्च होने पर बोझ राज्यों पर पड़ेगा.
नया वित्तीय ढांचा भी चिंता का विषय है. एमजीएनरेगा में केंद्र और राज्यों के बीच ख़र्च का अनुपात लगभग 90:10 है, जबकि नए बिल में इसे 60:40 करने का प्रस्ताव है. इससे ग़रीब और रोज़गार पर अधिक निर्भर राज्यों पर भारी दबाव पड़ेगा. सीमित बजट के कारण राज्य काम की मांग दर्ज करने से भी बच सकते हैं, जिससे रोज़गार का अधिकार कागज़ों तक सिमट जाएगा.
बिल में यह प्रावधान भी है कि खेती के चरम मौसम में योजना को 60 दिनों तक रोका जा सकता है. इसका मतलब यह है कि ग्रामीण परिवारों को उस समय काम नहीं मिलेगा, जब उन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है. साथ ही, डिजिटल उपस्थिति जैसी शर्तें पहले से ही परेशान ग्रामीण मज़दूरों के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं.
एमजीएनरेगा की एक बड़ी ताकत उसका विकेंद्रीकरण है, जहां ग्राम सभाएं स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से काम तय करती हैं. नया बिल इस व्यवस्था को कमज़ोर कर एक केंद्रीकृत “नेशनल रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक” लाने की बात करता है, जिससे स्थानीय लोकतंत्र और भागीदारी पर असर पड़ेगा.
लेख के मुताबिक़, इन सभी बदलावों का कुल नतीजा यह होगा कि रोज़गार को एक क़ानूनी अधिकार से घटाकर बजट और निगरानी पर आधारित सशर्त सुविधा बना दिया जाएगा. यह न सिर्फ ग्रामीण संकट को गहराएगा, बल्कि संविधान में निहित सामाजिक और आर्थिक न्याय की भावना पर भी चोट करेगा.
सबसे चिंता की बात यह है कि इतना बड़ा बदलाव बिना मज़दूरों, उनके संगठनों और व्यापक जन-परामर्श के लाया जा रहा है. ज़ोया हसन लिखती हैं कि एमजीएनरेगा को कमज़ोर करना सिर्फ एक क़ानून को बदलना नहीं, बल्कि गरिमा, रोज़गार और न्याय की संवैधानिक गारंटी पर हमला है, जिसका विरोध किया जाना ज़रूरी है.
विश्लेषण
अमेरिकी इतिहास का सबसे लंबा ‘सुसाइड नोट’: ट्रंप की नई सुरक्षा रणनीति लोकतंत्र के लिए खतरा
ट्रंप प्रशासन द्वारा हाल ही में जारी की गई नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को मशहूर लेखिका ऐन एपलबॉम ने अमेरिकी विदेश नीति का “सुसाइड नोट” करार दिया है. लेखिका का तर्क है कि यह दस्तावेज़ अमेरिका के दुश्मनों से ज्यादा “उदारवादी लोकतंत्र” को अपना निशाना बनाता है.
रिपोर्ट की शुरुआत एक चौंकाने वाली घटना से होती है: ट्रंप प्रशासन ने रूस, चीन या ईरान से उत्पन्न होने वाले दुष्प्रचार अभियानों का मुकाबला करने के लिए दो दर्जन देशों के साथ किए गए समझौतों को रद्द कर दिया है. स्टेट डिपार्टमेंट के ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर के पूर्व प्रमुख ने इसे “एकतरफा निरस्त्रीकरण” कहा है. इसका अर्थ है कि अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर घोषणा कर दी है कि वह अब रूसी प्रभाव या चीनी हेरफेर का विरोध नहीं करेगा.
नई सुरक्षा रणनीति की सबसे खास और खतरनाक बात यह है कि इसमें अमेरिका के किसी भी “दुश्मन” का नाम लेने से साफ इनकार किया गया है. यह पिछले ट्रंप प्रशासन की 2017 की रणनीति से बिल्कुल उलट है. इस नए दस्तावेज़ में:
रूस द्वारा अमेरिका के भीतर एक दशक से चलाए जा रहे साइबर युद्ध, राजनीतिक हस्तक्षेप और दुष्प्रचार का कोई जिक्र नहीं है. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को केवल “यूरोपियों की चिंता” बताकर खारिज कर दिया गया है.
चीन को एक भू-राजनीतिक खतरे के बजाय केवल एक “व्यापारिक प्रतिद्वंद्वी” के रूप में दिखाया गया है. चीनी हैकिंग और जासूसी को नजरअंदाज कर दिया गया है.
उत्तर कोरिया, ईरान और इस्लामी आतंकवाद जैसे खतरों को भी गायब कर दिया गया है.
लेखिका के अनुसार, जब अमेरिका के पास कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं है, तो एफबीआई, सीआईए या सेना को रक्षा की तैयारी करने की क्या ज़रूरत है? इसके बजाय, दस्तावेज़ का पूरा फोकस सीमा नियंत्रण, व्यापार घाटे और “सांस्कृतिक तोड़फोड़” पर है.
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इस प्रशासन का असली दुश्मन विदेशी तानाशाही नहीं, बल्कि “यूरोपीय उदारवादी लोकतंत्र” है. रणनीति बनाने वाला गुट उन लोगों से नफरत करता है जो पारदर्शिता, नागरिक अधिकारों और कानून के शासन की बात करते हैं. रिपोर्ट बताती है कि ट्रंप प्रशासन हंगरी, पोलैंड, इटली और ऑस्ट्रिया में अनुदारवादी ताकतों का समर्थन करने की योजना बना रहा है ताकि उन्हें यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए मनाया जा सके. यह न केवल आर्थिक तबाही होगी, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी विनाशकारी होगी क्योंकि एक टूटा हुआ यूरोप रूस और चीन का मुकाबला नहीं कर पाएगा.
यह रणनीति इस झूठी और साजिशी धारणा पर आधारित है कि यूरोप “सभ्यता के मिटने” के कगार पर है और वहां गैर-यूरोपीय लोगों की बहुलता होने वाली है. लेखिका इस डर को खारिज करते हुए बताती हैं कि वास्तव में यूरोपीय लोग अमेरिकियों की तुलना में अधिक स्वस्थ, खुशहाल और सुरक्षित जीवन जीते हैं.
लेखिका चेतावनी देती हैं कि यह दस्तावेज़ एक “काल्पनिक दुनिया” में रहने वाले लोगों द्वारा लिखा गया है जो इंटरनेट की अफवाहों पर यकीन करते हैं. जैसे एलन मस्क ने गलत सूचनाओं के आधार पर यूएसएड जैसी संस्था को नष्ट कर दिया, वैसे ही यह नई रणनीति वास्तविक दुनिया के खतरों को नजरअंदाज कर अपनी ही घरेलू सनक को पूरी दुनिया पर थोप रही है. अगर इस “सुसाइड नोट” के आधार पर नीतियां बनाई गईं, तो अमेरिका और उसके सहयोगियों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है और अमेरिका का वैश्विक प्रभाव तेजी से खत्म हो जाएगा.
ऑस्कर 2026: नीरज घायवान की ‘होमबाउंड’ बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्मों में शॉर्टलिस्ट
फिल्म निर्माता नीरज घायवान की दूसरी फीचर फिल्म ‘होमबाउंड’ को 98वें अकादमी पुरस्कारों (ऑस्कर) के लिए बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म श्रेणी में शॉर्टलिस्ट किया गया है. ‘द एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज’ ने मंगलवार, 16 दिसंबर को शॉर्टलिस्ट की गई फिल्मों की घोषणा की.
करण जौहर द्वारा निर्मित इस फिल्म में ईशान खट्टर, विशाल जेठवा और जान्हवी कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं. यह फिल्म अब 15 अन्य वैश्विक फिल्मों के साथ नॉमिनेशन राउंड में आगे बढ़ेगी. हॉलीवुड के दिग्गज निर्देशक मार्टिन स्कोर्सेस इस फिल्म के कार्यकारी निर्माता (Executive Producer) हैं.
फिल्म की कहानी बशारत पीर के 2020 के न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख ‘टेकिंग अमृत होम’ पर आधारित है. यह दो बचपन के दोस्तों, शोएब और चंदन की कहानी है, जो पुलिस की नौकरी पाने के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन भारत की कठोर सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकता में फंस जाते हैं. इस खबर पर खुशी जाहिर करते हुए करण जौहर ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कान्स फिल्म फेस्टिवल से लेकर ऑस्कर शॉर्टलिस्ट तक का सफर बेहद भावुक करने वाला रहा है.
अपील :
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, फेसबुक पर, यूट्यूब पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.









