18 दिसंबर 2024 : ढाका के सुर बदले, प्रियंका का झोला जिहाद, एक साथ चुनाव का विधेयक पेश, धर्म संसद के खिलाफ याचिका, बहुत तेज़ी में हुआ था अडानी का करार, रेटिंग फिसल क्यों रही हैं भारत की
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
‘1971’ में भारत की भूमिका नजरंदाज : 5 अगस्त को शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग की सरकार गिरने के बाद से भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में पहले जैसी रवानी दिखाई नहीं पड़ रही है. 52 वर्षों में पहली बार है कि बांग्लादेश ने उसके निर्माण में भारत की भूमिका को नजरंदाज कर दिया है. दोनों देशों के भीतर और सीमा पर लगभग रोजाना ही कुछ न कुछ ऐसा घटित होने की खबरें आ ही रही हैं, जिनसे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि द्विपक्षीय रिश्तों की मौजूदा हालत क्या है. मसलन, सोमवार 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजय दिवस पर 1971 की लड़ाई को लेकर भारतीय सेना के सम्मान में ‘एक्स’ पर एक पोस्ट की. लिखा कि बहादुर सैनिकों के साहस और बलिदान का हम सम्मान करते हैं, जिनकी बदौलत भारत को ऐतिहासिक विजय मिली.
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी 1971 के युद्ध के नायकों को याद किया. ममता ने तो कहा कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में बंगाल और भारत की भूमिका को कोई नहीं भूल सकता, लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत की भूमिका को पूरी तरह नजरंदाज कर दिया. उसके कानूनी सलाहकार आसिफ नज़रुल ने मोदी की पोस्ट के विरोध में तुरंत जवाबी पोस्ट करते हुए लिखा कि 1971 की जीत में भारत की कोई भूमिका नहीं थी.
मोदी की पोस्ट का स्क्रीनशॉट लगाकर नज़रुल ने फ़ेसबुक पर लिखा, ‘हम इसका कड़ा विरोध करते हैं. 16 दिसंबर 1971 बांग्लादेश का विजय दिवस है. भारत इस जीत में सिर्फ एक सहयोगी था, इससे ज्यादा कुछ नहीं.’ अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद युनूस के प्रेस सचिव शफीकउल आलम ने नज़रुल की पोस्ट को शेयर किया. नज़रुल के अलावा अंतरिम सरकार के दीगर ओहदेदारों और शेख हसीना विरोधी आंदोलन में शामिल रहे छात्र संगठनों ने भी यही भावना जाहिर की है.
यह भी गौर करने वाली बात है कि ढाका में ‘विजय दिवस’ पर आयोजित मुख्य कार्यक्रम में मुहम्मद युनूस ने बांग्लादेश के संस्थापक नेता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान का जिक्र तक नहीं किया. 52 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है. मुमकिन है कि नए निजाम के दिमाग में यह बात रही हो कि मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना 5 अगस्त को अपनी सरकार गिरने के बाद देश छोड़कर भारत की शरण में आ गई थीं और तब से आश्रय में हैं. अंतरिम सरकार के सौ दिन पूरे होने पर युनूस ने कहा भी था कि हम भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करेंगे. जहां तक बांग्लादेश की पूर्ववर्ती सरकारों का प्रश्न है, तो बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में भारत की भूमिका को सदैव सराहा और स्वीकार किया जाता रहा है, लेकिन इस बार बांग्लादेश ने भारत की भूमिका को नजरंदाज किया है.
‘द टेलीग्राफ’ के मुताबिक ढाका में पिछले वर्षों में हुए कार्यक्रमों के मुकाबले इस बार का कार्यक्रम “पैबंद” के दर्जे का भी नहीं था. सरकार के लोगों को एक रस्म करनी थी तो कर दी. एक बुजुर्ग पत्रकार का कहना है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार एक बड़ी रणनीति के तहत देश के इतिहास को नए सिरे से लिखना चाहती है, इसीलिए विजय दिवस को ‘मनाने’ जैसे भाव से मुक्त किया जा रहा है. क्योंकि विजय दिवस, जो दोनों देशों में मनाया जाता है, यदि समारोहपूर्वक मनाया जाएगा तो भारत का जिक्र भी आएगा ही. उधर, बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाओं के बाद भारत में सियासत भी हो रही है. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोमवार (16 दिसंबर) को लोकसभा में यह मुद्दा उठाया और केंद्र सरकार से मांग की कि वह बांग्लादेश से बात करे और जो लोग कष्ट में हैं, उनकी मदद करे. प्रियंका ने सेना मुख्यालय से उस ऐतिहासिक फोटो को हटाने पर भी आपत्ति की, जो 1971 में पाक सैनिकों के भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण के वक्त का था. फोटो भी विजय दिवस के दिन हटाया गया.
प्रियंका मंगलवार (17 दिसंबर) को बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के समर्थन में ऐसा झोला लेकर संसद पहुंचीं जिस पर लिखा था, ‘बांग्लादेश के हिंदुओं और ईसाइयों के साथ खड़े हो.’ एक दिन पहले वह फिलीस्तीन के समर्थन में संदेश वाला झोला लेकर संसद पंहुचीं थी, जिस पर सोशल मीडिया में खासी चर्चा और ट्रोलिंग हुई थी.
‘स्क्रॉल’ में रॉकीबुज़ ज़मान ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में भाजपा किस तरह आक्रामक राजनीति कर रही है. सीमावर्ती इलाकों में कारोबार भी प्रभावित हो रहा है. जो व्यापारी महीने के 50 हजार कमा लेते थे, उनकी आमदनी घटकर 10 हजार पर पहुंच गई है. स्थानीय लोग डरे सहमे हैं. ‘बीबीसी’ हिंदी में सलमान रावी की रिपोर्ट के अनुसार भाजपा बांग्लादेश के नाम पर पश्चिम बंगाल में धार्मिक ध्रुवीकरण कर रही है. हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को कामयाबी नहीं मिलेगी. बांग्लादेश के हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर प्रदेश भाजपा को अपनी केंद्र की सरकार से सवाल पूछना चाहिए, न कि ममता बनर्जी से.
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक लोकसभा में पेश : केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' से संबंधित दो विधेयक पेश किए, जिनमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं तथा केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान है. इस दौरान मत विभाजन में 269 सदस्यों ने इसका समर्थन किया, जबकि 198 ने इसके खिलाफ वोट दिया. विपक्ष के सांसदों ने विधेयकों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई. इस बीच कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसद की स्थायी समिति ने फसलों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने की सिफारिश की है. समिति का मानना है कि एमएसपी को लागू करने से किसानों की आत्महत्याओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है. क्योंकि इससे किसानों की वित्तीय स्थिरता बढ़ेगी, बाजार की अस्थिरता से उनकी सुरक्षा होगी और उन पर ऋण का बोझ कम होगा. कांग्रेस सांसद चरणजीत चन्नी की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशें उस समय आई हैं, जब किसान केंद्र सरकार से एमएसपी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. समिति ने यह भी सिफारिश की है कि केंद्र सरकार को किसानों और कृषि मजदूरों के ऋणों को माफ करने के लिए एक योजना पेश करनी चाहिए. तनाव के कारण किसानों की आत्महत्या के मामलों को देखते हुए ऐसा करना आवश्यक है.
पुलिस पिटाई के बाद सदमे से मरा परभणी का छात्र : 15 दिसंबर को महाराष्ट्र के परभणी में एक 35 वर्षीय अंबेडकरवादी युवक सोमनाथ व्यंकट सूर्यवंशी की न्यायिक हिरासत में मौत हो गई थी. उसकी मौत के कुछ घंटों बाद, फॉरेंसिक विभाग ने पुष्टि की है कि सूर्यवंशी की मौत 'कई चोटों के बाद सदमे' के चलते हुई है. जब वह पुलिस हिरासत में थे तो उन्हें कथित तौर पर प्रताड़ित किया गया था. सूर्यवंशी को पुलिस ने 10 दिसंबर की शाम को परभणी रेलवे स्टेशन के बाहर जिला कलेक्टर कार्यालय में आगजनी और तोड़फोड़ के आरोप में उठाया था. इस बारे में विस्तार से आप ‘हरकारा’ के 16 दिसंबर के अंक में भी पढ़ सकते हैं. सूर्यवंशी कानून का छात्र था.
अदालत ने अटाला मस्जिद का सर्वे कराने से किया मना : उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की एक स्थानीय अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का हवाला देकर पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ नए मुकदमे दर्ज करने पर रोक लगा दी. सिविल जज सुधा शर्मा ने सोमवार को 14वीं सदी की अटाला मस्जिद का सर्वे करने का आदेश देने से मना कर दिया. दक्षिणपंथी संगठन, स्वराज वाहिनी एसोसिएशन की ओर याचिका दायर की गई थी. इसमें दावा किया गया था कि अटाला मस्जिद मूल रूप से 'अटाला' देवी का मंदिर था. वहीं पिछले सप्ताह संभल में एक बंद पड़े मंदिर को खोले जाने के बाद दक्षिणपंथी समूह सनातन रक्षा दल ने वाराणसी में 70 साल से बंद पड़े एक और मंदिर को खोलने की मांग की है. वाराणसी के मदनपुरा इलाके में स्थित इस मंदिर के बारे में जिला प्रशासन जानकारी जुटा रहा है. कथित तौर पर यह मामला तब प्रकाश में आया जब सोशल मीडिया पर मंदिर के बंद गेट की एक तस्वीर सामने आई. वहीं जिस जगह पर मंदिर है, उसका मालिकाना हक रखने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन ने एबीपी न्यूज़ से कहा कि कोई भी व्यक्ति यहां आकर शांतिपूर्वक पूजा-अर्चना कर सकता है. उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. उन्होंने कहा कि सैकड़ों सालों से इस जमीन पर उनके पूर्वज रह रहे हैं. किसी ने भी यहां आकर पूजा-अर्चना करने पर कभी आपत्ति नहीं जताई. हम गंगा जमुनी तहजीब में विश्वास रखने वाले लोग हैं’. रविवार को उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘यूपी में अगर किसी धार्मिक स्थल/सार्वजनिक स्थान पर इस तरह से अतिक्रमण किया गया है, या उसे बंद किया गया है और लोगों को वहां जाने से रोका जा रहा है तो इसका पता लगाया जाएगा’.
'धर्म संसद' के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका : यति नरसिंहानंद फाउंडेशन की ओर से 17-21 दिसंबर के बीच गाजियाबाद में आयोजित हो रहे 'धर्म संसद' के खिलाफ उत्तर प्रदेश प्रशासन और पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में वकील प्रशांत भूषण और अन्य याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिका दायर कर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया गया है. वकील प्रशांत भूषण सहित याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि 'धर्म संसद' से पहले ‘मुसलमानों के नरसंहार’ का आह्वान किया गया था. इतिहास देखने के बावजूद प्रशासन और पुलिस कोई कदम नहीं उठा रही है. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने सोमवार को मौखिक रूप से याचिका पर सुनवाई की और कहा कि वे इस पर विचार करेंगे.
हबड़-तबड़ में किया आंध्र सरकार ने अडानी से सौदा
आंध्र के नौकरशाह कह रहे थे कि प्रदेश को अतिरिक्त बिजली की आनन फानन में कोई जरूरत नहीं है. इसके बाद भी वाई एस जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने हबड़ तबड़ में सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन के इशारे पर 7000 मेगावाट सोलर बिजली परियोजना को मंजूरी थी. इस सौदे का लाभार्थी अडानी था. रॉयटर्स के लिए सरिता झगंति सिंह और सुदर्शन वर्धन ने करीब 19 सरकारी दस्तावेजों की छानबीन कर यह रिपोर्ट दी है. रिपोर्ट के मुताबिक 15 सितंबर 2021 को सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) ने आंध्र प्रदेश सरकार को प्रस्ताव भेजा. एसईसीआई ने पूछा कि क्या राज्य देश की सबसे बड़ी अक्षय ऊर्जा (रिन्युएबल एनर्जी) डील को साइन करना चाहेगा. हालांकि, दो साल पहले राज्य की ऊर्जा नियामक संस्था ने कहा था कि आंध्र प्रदेश को तत्काल सौर ऊर्जा की जरूरत नहीं है, लेकिन SECI के प्रस्ताव के 24 घंटे के भीतर ही मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने इस डील को ‘सैद्धांतिक मंजूरी’ दे दी. इसके बाद 1 दिसंबर को राज्य सरकार ने एसईसीआई के साथ यह डील साइन कर ली. इस सौदे की कीमत करीब 40,000 करोड़ रुपये सालाना थी और इसका 97% हिस्सा अडानी ग्रीन एनर्जी के लिए था. अडानी ग्रीन एनर्जी, अडानी समूह की अक्षय ऊर्जा इकाई है.
अमेरिकी अभियोजकों ने आरोप लगाया है कि इस सौदे के लिए आंध्र प्रदेश के एक अधिकारी को 1,900 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी, ताकि राज्य की बिजली वितरण कंपनियों को एसईसीआई द्वारा अडानी ग्रीन से बिजली खरीदने का आदेश दिया जाए. एसईसीआई के प्रस्ताव से लेकर आंध्र प्रदेश ऊर्जा नियामक आयोग की मंजूरी के बीच सिर्फ 57 दिन लगे. जबकि इस विभाग से जुड़े मंत्री बालिनेली श्रीनिवास रेड्डी को भी ठीक से सौदे और उसकी जरूरत और शर्तों के बारे में नहीं पता था. रेड्डी ने रॉयटर्स को बताया कि उन्हें बताया गया कि एसईसीआई इस करार के पीछे है, तो वे मान गये. उन्हें नहीं पता था कि इसके पीछे अडानी है.
विशेषज्ञों और पूर्व अधिकारियों ने इसे "असामान्य रूप से तेज" बताया है. ये सौदा 25 साल के लिए लागू रहना था और आंध्र के राजकोष और ऊर्जा विभाग, दोनों ने इस सौदे की वजह और उसकी जल्दबाजी पर सवाल उठाए थे. अब चंद्रबाबू नायडू की सरकार इस करार पर फिर से विचार कर रही है.
इस बीच द हिंदू के मुताबिक भारतीय सौर ऊर्जा निगम ने निविदाओं में रिश्वतखोरी के अमेरिकी आरोपों के बाद भ्रष्टाचार के जोखिम को कम करने के लिए बिजली निविदाएँ जारी करने के तरीके को बदल दिया है. इस मामले की सीधी जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने यह जानकारी दी.
भारतीय सौर ऊर्जा निगम नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को खरीदारों से जोड़ने के लिए कमीशन कमाता है. यह अडानी समूह और कई राज्यों से जुड़े सौर ऊर्जा सौदों में एक मध्यस्थ था, जहाँ अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि 2021 और 2022 के बीच अज्ञात अधिकारियों को रिश्वत दी गई थी.
अंबानी-अडानी की संपत्ति में आई गिरावट
भारत के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी और गौतम अडानी की कुल संपत्ति हाल के महीनों में 8 लाख करोड़ रुपये से नीचे आ गई है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रमुख मुकेश अंबानी और अडानी ग्रुप के संस्थापक गौतम अडानी इन दिनों कई व्यावसायिक चुनौतियों और व्यक्तिगत संपत्ति में गिरावट का सामना कर रहे हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी की संपत्ति में 2.72 अरब डॉलर (लगभग ₹23,390 करोड़) की कमी आई है, जिससे उनकी कुल संपत्ति घटकर 98.8 अरब डॉलर रह गई है.अडानी ग्रुप के प्रमुख गौतम अडानी की संपत्ति में 2.06 अरब डॉलर (लगभग ₹17,332 करोड़) की गिरावट आई है, जिससे उनकी कुल संपत्ति घटकर 92.3 अरब डॉलर रह गई है.
आकार पटेल: सूचकांक जो भी हों, रैंकिंग लुढ़क ही रही है भारत की
2021 में मैंने किताब लिखी थी, ‘प्राइस ऑफ द मोदी इयर्स’. उसके एक अध्याय में मैंने वैश्विक सूचकांकों में भारत की रैंकिंग की तुलना की थी, जिस पर मेरी कई साल से नज़र थी. ये देखने के लिए कि 2014 के बाद से क्या वे बेहतर हुई हैं, जहां की तहां हैं या फिर बदतर हुई हैं. मैं उन तक बार-बार जाता रहा. 2024 जब खत्म होने को है, मैं इस कॉलम में उनमें से कई खास सूचकांकों की तरफ निगाह दौड़ा रहा हूँ.
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का मानव विकास सूचकांक जन्म के समय जीवनानुमान, शिक्षा और राष्ट्रीय आमदनी को मॉनीटर करता है. 2014 में हम 130 वें स्थान पर थे आज चार पायदान गिरकर 134 पर हैं.
इकोनॉमिस्ट पत्रिका की इंटेलिजेंस यूनिट का डेमोक्रेटिक इंडेक्स देशों में नागिरक स्वतंत्रता, बहुलवाद, राजनीतिक माहौल, भागीदारी और चुनावी प्रक्रियाओं को मॉनीटर करती है. 2014 में जो 27 वां स्थान भारत का था, अब 20 स्थान नीचे 47 पर है. भारत को अब ‘दोषपूर्ण लोकतंत्र’ की श्रेणी में रख दिया गया है.
सिविकस मॉनीटर की नेशनल सिविक स्पेस रेटिंग्स लोगों के संगठित होने, शांतिपूर्ण एकत्र होने और अभिव्यक्ति की आजादी पर नज़र रखती है. 2017 में भारत को एक ऐसा देश बताया गया था, जहाँ इन आजादियों में अड़चन (ऑब्सट्रक्टेड) है. और अब भारत में इन आजादियों को दमित बताया गया है, क्योंकि भारत का सिविक स्पेस का खराब होना चौंकाने वाला है.
लोवी इंस्टीट्यूट एशिया पॉवर इंडेक्स देशों के प्रभुत्व और शक्ति को उनकी अर्थ व्यवस्था, कूटनीति, सैन्य क्षमता, लचीलेपन, व्यापार, भविष्य के रुझान, सांस्कृतिक प्रभाव के आधार पर मापता है. विदेश मंत्री एस जयशंकर सिडनी में नवंबर में इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों से मिले थे. भारत ने 2020 में ‘बड़ी ताकत’ का दर्जा खो दिया था, क्योंकि उस वक्त रेटिंग 40 के नीचे चली गई और 2021, 2022 में और नीचे गई. 2024 में भी वह नीचे ही है.
फ्रीडम हाउस अपने फ्रीडम इन द वर्ल्ड इंडेक्स के जरिये कानून के शासन, राजनीतिक बहुलवाद और चुनाव, सरकारी कार्यप्रणाली, नागरिक स्वतंत्रता, संगठन, संबद्धता और अभिव्यक्ति की आजादी पर निगाह रखता है. यह देशों को सौ अंकों पर परखता है. 2014 में भारत 77/100 था और ‘आजाद’ के तौर पर वर्गीकृत था. आज वह 66/100 है और कई सारी वजहों से ‘आंशिक तौर पर आजाद’ के तौर पर वर्गीकृत है.
वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट का रूल ऑफ लॉ इंडेक्स देशों को आपराधिक और सिविल न्याय व्यवस्था, मौलिक अधिकारों, सरकारी सत्ता पर अंकुश, भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति, सरकार की पारदर्शिता, सुरक्षा और व्यवस्था और कायदों को लागू करवाने पर रेट करता है. 2014 में भारत 66 पर था, 2022 में 77 और इस साल 2024 में 79 पर रैंक कर रहा है. भारत का प्रदर्शन बाकी बातों के अलावा मौलिक अधिकारों और आपराधिक न्याय व्यवस्था पर कमजोर रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की सतत समाधान नेटवर्क की विश्व खुशहाली रिपोर्ट देखती है प्रति व्यक्ति जीडीपी, सामाजिक सहयोग, जीवन प्रत्याशा, जीवन में चुन पाने की आजादी, भ्रष्टाचार को लेकर धारणा, दया भाव, बरबादी की आशंका (डिस्टोपिया). 2014 में भारत 111 से 126 पर आ चुका है.
इसके कारणों में ‘जीवन मूल्यांकन में बड़ी और लगातार गिरावट’, निवासियों का कम आशावादी दृष्टिकोण (2020) और "भारतीय जीवन मूल्यांकन में लंबी अवधि की गिरावट" (2021) शामिल थे.
फ्रेजर इंस्टीट्यूट का ग्लोबल इकोनॉमिक फ्रीडम इंडेक्स सरकार के आकार, कानूनी संरचना, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की स्वतंत्रता, क्रेडिट, श्रम और व्यवसाय के विनियमन को देखता है. इस मामले में भारत की रैंकिंग 2014 में 112 से बढ़कर 84 हो गई है.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स मीडिया की स्वतंत्रता, बहुलवाद, स्व-सेंसरशिप, दुर्व्यवहार और पारदर्शिता की निगरानी करता है. भारत 2014 में 140वें वैश्विक रैंक से (जो पहले से ही अच्छा नहीं था) और गिरकर अब 159वें स्थान पर आ गया है.
विश्व बैंक का महिला, व्यवसाय और कानून सूचकांक उन कानूनों और विनियमों की निगरानी करता है, जो महिलाओं के आर्थिक अवसरों को गतिशीलता, कार्यस्थल, वेतन, विवाह, पितृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन जैसे संकेतकों पर सीमित करते हैं. भारत 2014 में 111वें स्थान से गिरकर 113वें स्थान पर आ गया.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का ग्लोबल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स राष्ट्रों के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को देखता है. भारत 2014 में 85वें वैश्विक रैंक से गिरकर 93वें स्थान पर आ गया है.
हेरिटेज फाउंडेशन का ग्लोबल इकोनॉमिक फ्रीडम इंडेक्स कानून के शासन, सरकार के आकार, नियामक दक्षता और खुले बाजारों की निगरानी करता है.
2014 में भारत को 120वां स्थान दिया गया था और तब से यह गिरकर 126वें स्थान पर आ गया है. इसके कारणों में "बड़े पैमाने पर राजनीतिक भ्रष्टाचार"; "यह साबित करने के लिए बहुत कम सबूत हैं कि भ्रष्टाचार विरोधी कानून प्रभावी हैं"; "कुशलतापूर्वक काम करने वाले कानूनी ढांचे के बिना दीर्घकालिक आर्थिक विकास की नींव कमजोर बनी हुई है"; "भारत में कानून का शासन समग्र रूप से कमजोर है" शामिल है.
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान का वैश्विक भूख सूचकांक भूख, बच्चों में स्टंटिंग और अल्पपोषण की निगरानी करता है. यहां भारत को 2014 में 76 देशों में से 55वां स्थान दिया गया था और अब 127 देशों में से 105वां स्थान दिया गया है. 13 प्रतिशत से अधिक भारतीय अल्पपोषित हैं, 5 साल से कम उम्र के 37 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई) और 18 प्रतिशत बच्चे वेस्टिंग (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन) से पीड़ित हैं.
भारत ने भूख सूचकांक के निष्कर्षों को त्रुटिपूर्ण बताते हुए खारिज कर दिया है, यह कहते हुए कि यह देश की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता है. लेकिन वास्तविक स्थिति यह भी है कि सरकार द्वारा यह माना जाता है कि 60 प्रतिशत भारतीयों को हर महीने मुफ्त राशन की आवश्यकता है.
इसी तरह, सरकार ने अन्य सूचकांकों में गिरावट को प्रेरित या पक्षपातपूर्ण या त्रुटिपूर्ण डेटा या किसी अन्य चीज पर आधारित बताते हुए खारिज कर दिया है. कुछ सूचकांकों के लिए इसने पूरी तरह से प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है. यह तब नहीं था, जब इस सरकार ने पहली बार पदभार ग्रहण किया था और यह मान लिया था कि वह चीजों को बेहतर करेगी.
जब भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में विश्व बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में ऊपर आया, तो इसे सुशासन की उपलब्धि के रूप में मनाया गया. इस सूचकांक को 2018 में यह पाए जाने के बाद बंद कर दिया गया था कि देश रैंकिंग में ऊपर आने के लिए प्रणाली को गेम कर रहे थे.
मैं कहना चाह रहा हूँ कि जो लोग एक दशक या उससे अधिक समय से आंकड़ों को देख रहे हैं, वे केवल यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि जिन प्रमुख संकेतकों में भारत नीचे फिसला है, वे सभी शासन (गवर्नेंस) से जुड़े हैं.
(आकार पटेल एमनेस्टी इंडिया के अध्यक्ष हैं और स्तंभकार भी..डेक्कन हेराल्ड से साभार)
एमपी गज़ब है! 100 में से 101 नम्बर : मध्यप्रदेश की एक सरकारी भर्ती परीक्षा में ‘सामान्यीकरण’ प्रक्रिया अपनाने से एक उम्मीदवार को कुल 100 में से 101.66 अंक मिले. इस पर सवाल उठाते हुए बेरोजगार युवाओं ने इंदौर में सोमवार को इस प्रक्रिया का विरोध किया और भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े का आरोप लगाते हुए निष्पक्ष जांच की मांग भी की. जिलाधिकारी कार्यालय के सामने जुटे युवाओं ने एक प्रशासनिक अधिकारी को राज्य के मुख्यमंत्री मोहन यादव के नाम संबोधित ज्ञापन सौंपा. मामला वन और जेल विभागों की संयुक्त भर्ती परीक्षा 2023 का है. इसका नतीजा 13 दिसंबर को घोषित किया गया. ऐसा होने का कारण स्पष्ट करते हुए कर्मचारी चयन मंडल ने कहा कि भर्ती परीक्षा में नियमानुसार ‘सामान्यीकरण’ की प्रक्रिया अपनाई गई है. इसके फलस्वरूप उम्मीदवारों को पूर्णांक (100) से अधिक अंक और शून्य से भी कम हो सकते हैं.
बिहार में पेपर लीक को लेकर आक्रोश : पटना में एक प्रतियोगी परीक्षा में प्रश्नपत्रों के वितरण में 40-45 मिनट की देरी को लेकर छात्रों ने विरोध किया था और आरोप लगाया था कि पेपर लीक हुआ है. उसी दिन उस परीक्षा केंद्र के केंद्राधीक्षक राम इकबाल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. प्रदर्शन के तीन दिन बाद सोमवार को बापू भवन परीक्षा केंद्र पर एक बार फिर तब अराजकता फैल गई, जब बिहार लोक सेवा आयोग ने यहां हुई परीक्षा रद्द कर दी. दुबारा परीक्षा की तिथि बाद में घोषित की जाएगी. इस बीच उनके बेटे सनी कुमार ने पिता की मौत के लिए माहौल को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हंगामेदार माहौल में परीक्षाएं न आयोजित की जाए. परीक्षा केंद्र पर बहुत ज्यादा तनाव था, जिसे मेरे पिता बरदाश्त नहीं कर पाए.
एनटीए अब भर्ती परीक्षा नहीं करेगा आयोजित : केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को कहा कि राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) 2025 से कोई भर्ती परीक्षा आयोजित नहीं करेगी. वह सिर्फ उच्च शिक्षा प्रवेश परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करेगी. यह कदम मेडिकल प्रवेश नीट परीक्षा के ‘लीक’ प्रकरण और अन्य गड़बड़ियों के कारण अन्य कई परीक्षाओं को रद्द करने के बाद उठाया गया है.
जॉर्जिया में 11 भारतीय समेत 12 की मौत : भारतीय मिशन ने जानकारी दी कि जॉर्जिया की पहाड़ी रिसॉर्ट गुडौरी के एक रेस्तरां में 11 भारतीय नागरिक समेत कुल 12 लोग मरे पाए गए. जॉर्जिया के आंतरिक मामलों के मंत्रालय के बयान के अनुसार, प्रारंभिक जांच में चोट या हिंसा के निशान नहीं मिले हैं. स्थानीय मीडिया ने पुलिस के हवाले से खबर की है कि सभी व्यक्ति कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता की वजह से मरे हैं.
'वनों की विश्वकोश' पद्मश्री तुलसी गौड़ा का निधन : प्रकृति संरक्षण के लिए जीवन समर्पित कर देने वाली कर्नाटक की पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा का सोमवार शाम निधन हो गया. वह 86 वर्ष की थीं. हलाक्की वोक्कालिगा आदिवासी समुदाय से आने वाली पद्मश्री गौड़ा को कर्नाटक भर में 1 लाख से अधिक पेड़ लगाने और उनका पालन-पोषण करने का श्रेय जाता है. अशिक्षित होने के बावजूद, जंगलों के बारे में उनकी जानकारी असाधारण थी.
‘कैरेवन’ की जतिंदर कौर तूर ने पिछले साल पुंछ में भारतीय सेना द्वारा लोगों को टॉर्चर करने पर रिपोर्ताज लिखा था, जिसे केंद्र सरकार के हुक्म के बाद पत्रिका को हटाना पड़ा था. तूर को इस साल फेटिसोव जर्नलिज्म अवार्ड्स द्वारा 'शांति में उत्कृष्ट योगदान' श्रेणी के लिए शॉर्टलिस्ट किया गया है.
यूक्रेन ने मारा रूस के रासायनिक हथियार प्रमुख को
यूक्रेन ने मॉस्को में घुसकर रूसी रासायनिक हथियार प्रमुख इगोर किरिलोव की हत्या कर दी है. 'रायटर्स' की एक खबर के मुताबिक इगोर किरिलोव रूस की सेना में रेडिएशन, केमिकल और बायोलॉजिकल डिफेंस फोर्सेज़ का प्रमुख था. यह हत्या मंगलवार सुबह मॉस्को में यूक्रेन की एसबीयू खुफिया सेवा ने करवाई है. ये अपनी तरह की सबसे हाई-प्रोफाइल हत्या है और इंटरनेशनल मीडिया में इसकी व्यापक चर्चा हो रही है. रूस की ओर से कहा गया है कि लेफ्टिनेंट जनरल इगोर किरिलोव, जो रूस के परमाणु, जैविक और रासायनिक सुरक्षा सैनिकों के प्रमुख थे, एक अपार्टमेंट इमारत के बाहर अपने सहायक के साथ एक इलेक्ट्रिक स्कूटर में छिपाए गए बम के फटने से मारे गए. 54 वर्षीय किरिलोव, यूक्रेन द्वारा रूस के अंदर हत्या किए जाने वाले सबसे वरिष्ठ रूसी सैन्य अधिकारी हैं.
झारखंड में हाथी और मानव क्यों हैं आमने-सामने?
हिमांशी दहिया ने 'इंडियास्पेंड' के लिए झारखंड में मानव हाथी संघर्ष के मामलों की गहराई से पड़ताल की है. रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, जंगलों का कटान और नए विकास परियोजनाओं (जैसे चांडिल बांध) के कारण हाथी अपने पारंपरिक मार्गों से भटकने लगे हैं, जिसके चलते वे गांवों और खेतों में प्रवेश कर रहे हैं. रिपोर्ट में हाथियों के हमलों में हुई मौतों, फसलों और घरों के नुकसान, वन विभाग की भूमिका, और प्रभावित ग्रामीणों के संघर्ष पर विस्तार से चर्चा की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक -
पिछले पांच सालों में झारखंड में हाथियों के कारण 474 लोगों की मौत हो चुकी है.
करंट लगने और अन्य मानवीय कारणों से हाथियों की संख्या में गिरावट आई है. हाथियों की अप्राकृतिक मौतें हो रही हैं.
वन विभाग 'हमार हाथी' नामक एप और खाइयों जैसी योजनाओं के जरिए समाधान लाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.
गांववाले मशालों और पटाखों के सहारे हाथियों को भगाने का प्रयास करते हैं. कई परिवार अपने घर छोड़कर स्कूलों में शरण लेते हैं. मुआवजा अक्सर पर्याप्त नहीं होता और वन विभाग की सहायता देर से पहुंचती है.
प्रोजेक्ट एलीफेंट जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य हाथियों और उनके गलियारों की रक्षा करना है. बावजूद इसके, झारखंड में 2017 से 2022 के बीच हाथियों की संख्या में 68% की गिरावट दर्ज की गई है.
चलते चलते: जब निशानी के नाम पर आधार कार्ड नहीं था, गोदना था..
‘पीपुल्स आर्काइव्ज ऑफ इंडिया’ के लिए अश्विनी शुक्ला ने विस्तार से गोदना करने वाली कलाकार पर फीचर लिखा है. यह कलाकार राजपति बताती हैं..
प्लास्टिक की थैली से एक काग़ज़ निकालते हुए, राजपति अपने बनाए डिज़ाइन के बारे में बताती हैं. “इसको पोथी कहते हैं, और इसको डंका फूल,” राजपति एक डिज़ाइन की ओर इशारा करती हैं, जिसमें गमले में खिला फूल नज़र आता है, जिसे उन्होंने अपनी बांह पर बनवाया हुआ है. “इसको हसुली कहते हैं, ये गले में बनता है,” राजपति आधे चांद सा डिज़ाइन दिखाते हुए कहती हैं.
राजपति आमतौर पर शरीर के पांच हिस्सों पर गोदना गोदती हैं: हाथ, पांव, टखना, गर्दन और माथा. और हर एक के लिए ख़ास डिज़ाइन होता है. हाथ में अमूमन फूल, पंछी और मछलियां गोदी जाती हैं, जबकि गर्दन पर घुमावदार रेखाओं और बिंदुओं के सहारे गोलाकार पैटर्न बनाया जाता है. माथे का गोदना जनजाति के हिसाब से अलग होता है.
“हर आदिवासी समुदाय की अपनी अलग गोदना परंपरा है. उरांव लोग महादेव जट्ट [स्थानीय फूल] और अन्य फूल बनवाते हैं; खड़िया लोगों के गोदने में तीन सीधी रेखाएं नज़र आती हैं और मुंडा बिंदुओं वाला गोदना गुदवाते हैं,” राजपति बताती हैं. उनके अनुसार, बीते ज़माने में लोगों को उनके माथे पर गुदे गोदने से पहचाना जाता था. पढ़िये पूरा फीचर यहां..
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