18/03/2025 : वियतनाम ने कैसे पछाड़ा भारत को, धसकता ज्योतिर्मठ, मारुति और मंहगी, बाज़ार कमजोर, कश्मीर में बढ़ती बेरोजगारी, ट्रम्प-पुतिन बातचीत आज, केले पर संकट
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़्कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
आज की सुर्खियाँ
निरंतर निकासी, कमजोर रुपया, सबसे खराब बिकवाली की ओर यह साल
मारुति की गाड़ियां अप्रैल से और महंगी, फिर बढ़ेंगे दाम
खुले में नमाज पढ़ने पर गिरफ्तार
हड़ताल के लिए तैयार यूनियन
जम्मू-कश्मीर : डिग्री तो मिली, नौकरी नहीं
चंदन तो उगाया पर कामयाबी की गंध नहीं..
क्या ट्रम्प पुतिन को शांति के लिए तैयार कर पाएंगे?
चीन से छिटकने वाले कारोबार भारत की बजाय वियतनाम क्यों गये
जब कंपनियों ने चीन से ग्लोबल सप्लाई लाइन्स को फैलाना शुरू किया, तो भारत ने "मेक इन इंडिया" के ज़रिए दुनिया का कारखाना बनने का दावा किया. परंतु आज भी वियतनाम जैसे छोटे देश अधिक निवेश आकर्षित कर रहे हैं. वाशिंगटन पोस्ट में करिश्मा मेहरोत्रा ने अपने लंबे डिस्पैच में लिखा है कि, भारत नौकरशाही अड़चनों, प्रतिबंधात्मक आयात नीतियों और अप्रत्याशित नियमों के कारण विदेशी कंपनियों को पूरी तरह बाँधने में विफल रहा है.
वियतनाम का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग (126 अरब डॉलर) भारत के उद्योग (भारत से 3 गुना बड़ा) से आगे है, जबकि अमेरिका के साथ व्यापार में वह छठे स्थान पर पहुँच गया है. इसकी केंद्रित नीतियाँ, सस्ता श्रम और चीन के नज़दीकी संबंध इसे भारत पर बढ़त देते हैं. उदाहरण के तौर पर, सैमसंग ने वियतनाम में 23 अरब डॉलर निवेश कर 6 कारखाने स्थापित किए, जबकि भारत में उसकी योजनाएँ धीमी हैं.
एपल अब भी अपने अधिकांश उपकरण चीन में ही बनाता है. भारत में तो सिर्फ 15% उपकरण तैयार किये जाते हैं, जो कंपनी के वर्ष 2024 तक के लक्ष्य 25% से कम है. चीन से घटक आयात पर प्रतिबंध और श्रमिक हड़तालों (जैसे 2021 में फॉक्सकॉन विरोध) ने प्रक्रिया को धीमा किया. सेमीकंडक्टर वाली ताइवानी कंपनियाँ (जैसे पीएसएमसी) भारत में निवेश से कतराईं. फॉक्सकॉन-वेदांता की 19.5 अरब डॉलर की साझेदारी भी टूट गई. जापानी निवेशकों में झिझक बनी रही. केवल 10% जापानी कंपनियाँ भारत आईं. ऑटो कंपनियाँ उच्च आयात शुल्क और नियामक अवरोधों से जूझ रही हैं.
भारत सरकार ने ‘चीन प्लस वन’ रणनीति में सीमित सफलता मानी है. वित्त आयोग के अरविंद पनगढ़िया के अनुसार, "नीतिगत गलतियों ने व्यवसाय को महंगा और जटिल बनाया." दिसंबर 2023 की संसदीय रिपोर्ट ने भी भारत की ‘सकारात्मक धारणा’ बनाने में अक्षमता रेखांकित की है. सरकार नई प्रोत्साहन योजनाओं और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर विचार कर रही है. मोदी ने ‘विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला’ का आश्वासन दिया है, लेकिन निवेशकों को ठोस नीतियों और नौकरशाही सुधारों का इंतज़ार है. फिलहाल, वियतनाम की तुलना में भारत की राह कठिन बनी हुई है.
निरंतर निकासी, कमजोर रुपया, सबसे खराब बिकवाली की ओर यह साल
विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाज़ारों से निकासी का सिलसिला जारी रहने और कमजोर होते रुपये के कारण वित्तीय वर्ष 2025 अब तक की सबसे खराब इक्विटी बिकवाली की ओर बढ़ रहा है.
विदेशी निवेशकों ने वित्त वर्ष 2025 में 1.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य की प्रतिभूतियों की बिक्री की है, जो रुपये के संदर्भ में सबसे खराब वार्षिक बिक्री है. यद्यपि, घरेलू निधियों ने रिकॉर्ड 4.7 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया, जो मजबूत खुदरा भागीदारी से प्रेरित है.
जानकारों का कहना है कि अक्टूबर से सेकंडरी (द्वितीयक) बाज़ार में लगातार जारी पूंजी प्रवाह के कारण विदेशी निवेशकों द्वारा वित्त वर्ष 2025 में अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक बिकवाली दर्ज की जा सकती है.
एफपीआई ने मार्च के पहले दो हफ्तों में प्राइमरी और सेकंडरी बाज़ारों में 30,015 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे चालू वित्त वर्ष में अब तक कुल निकासी 1.5 लाख करोड़ रुपये हो गई है. यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2022 में 1.4 लाख करोड़ रुपये की पिछली उच्चतम निकासी को पार कर गया है.
डॉलर के संदर्भ में एफपीआई ने वित्त वर्ष 2025 में अब तक 17,664 मिलियन डॉलर के शेयर बेचे हैं, जो वित्त वर्ष 2022 में बेचे गए 18,468 मिलियन डॉलर से कम है. लेकिन यह अंतर वित्त वर्ष 2022 और वित्त 2025 के बीच रुपये में 12% की गिरावट के कारण हो सकता है.
मारुति की गाड़ियां अप्रैल से और महंगी, फिर बढ़ेंगे दाम
मारुति सुजुकी इंडिया ने अप्रैल 2025 से अपने वाहनों की कीमतों में 4% तक की वृद्धि करने का फैसला किया है. सोमवार को इसका एलान करते हुए कंपनी ने कहा कि यह निर्णय बढ़ती इनपुट लागत और परिचालन खर्चों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए लिया गया है. कीमतों में यह वृद्धि मॉडल के अनुसार अलग-अलग होगी. हालांकि, याद रहे कि इस साल कंपनी दूसरी बार दामों में बढ़ोतरी कर रही है. इसके पहले जनवरी में भी उसने मारुति के मॉडलों की कीमतें बढ़ाई थीं.
फरवरी में खाद्य उत्पादों, वनस्पति तेलों और पेय पदार्थों के दाम उछले
सोमवार को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फरवरी में थोक मूल्य मुद्रास्फीति (WPI) हल्की बढ़त के साथ 2.38 प्रतिशत तक पहुंच गई, जिसका मुख्य कारण निर्मित खाद्य उत्पादों, विशेष रूप से वनस्पति तेल और पेय पदार्थों की बढ़ती कीमतें रहीं. तुलनात्मक रूप से जनवरी में डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति 2.31% थी, जबकि फरवरी 2024 में यह मात्र 0.2% थी. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने फरवरी 2025 में इस सकारात्मक मुद्रास्फीति दर के लिए खाद्य उत्पादों, खाद्य सामग्रियों, गैर-खाद्य सामग्रियों और वस्त्रों की कीमतों में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, सब्जियों की कीमतों में गिरावट आई, जैसे आलू की कीमत में काफी कमी दर्ज की गई. इसके अलावा, ईंधन और बिजली के दामों में भी गिरावट देखी गई. ईंधन और ऊर्जा क्षेत्र में फरवरी में 0.71% की गिरावट (डिफ्लेशन) रही, जबकि जनवरी में यह गिरावट 2.78% थी.
निर्मित खाद्य उत्पादों में मुद्रास्फीति बढ़कर 11.06
%हो गई.
वनस्पति तेलों की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि हुई, जो 33.59
%तक पहुंच गई.
पेय पदार्थों की कीमतों में हल्की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो 1.66
%रही.
पाठकों से अपील
छावा और औरंगजेब का शोर…!
जब से भारतीय जनता पार्टी भारतीय राजनीति के केंद्र में आई है, मुगल साम्राज्य का कोई न कोई मुख्य किरदार सियासी विमर्श में रहता ही है. बीजेपी चाहे सत्ता में रहे या नहीं, मुगलकाल के किसी न किसी पात्र को चर्चा में रखना पसंद करती ही करती है. ऐसा कथानक तैयार किया जाता है, जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हवा सतत कायम रहे. मसलन, इन दिनों मुगल साम्राज्य का छठवाँ शासक औरंगजेब, जिसकी मौत को 300 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है, के शासनकाल की हक़ीक़त के तमाम फ़साने का जमकर शोर किया जा रहा है. ऐसा शोर-कोलाहल, जिसमें रोशनी है ही नहीं. सिर्फ अंधेरा है. संयोग से एक फिल्म आई हुई है “छावा”, जिसमें भाजपा सरकार में मंत्री रहे विनोद खन्ना के पुत्र अक्षय खन्ना ने औरंगजेब का किरदार निभाया है. भाजपा शासित राज्यों में पार्टी के लोगों के लिए इसके शो रखे जा रहे हैं. मध्यप्रदेश में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है, सत्तारूढ़ भाजपा के विधायकों-मंत्रियों से कहा गया है कि वे “छावा” देखें. राज्य में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया है. यही स्थिति भाजपा की सरकार वाले अन्य राज्यों छतीसगढ़, गोवा की है. महाराष्ट्र में अब तक फिल्म तो टैक्स फ्री नहीं हुई है, लेकिन अचानक औरंगजेब का शोर बढ़ गया है. बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद ने औरंगजेब की कब्र को छत्रपति संभाजीनगर (पुराना औरंगाबाद) से हटाने की मांग कर दी है. लिहाजा सरकार ने कब्र की सुरक्षा के लिए जवान तैनात कर दिए हैं. लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा है, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार को औरंगजेब की कब्र की सुरक्षा करनी पड़ रही है, लेकिन हम उसके महिमामंडन की इजाजत नहीं देंगे.” फड़णवीस ने कहा कि सिर्फ छत्रपति शिवाजी महाराज ही महिमामंडन के पात्र हैं, औरंगजेब की कब्र नहीं. उधर, महाराष्ट्र कांग्रेस ईकाई के अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकल ने फड़णवीस पर पलटवार किया है, यह कहकर कि औरंगजेब की तरह देवेंद्र फड़णवीस भी “क्रूर शासक” हैं. क्योंकि वह धार्मिक मुद्दों का तो हमेशा समर्थन करते हैं, लेकिन सरपंच संतोष देशमुख की हत्या जैसे मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं करते. इस मुद्दे पर राज्य की विधान परिषद में सोमवार को भारी हंगामा हुआ.
नागपुर में हिंसा भड़की : इस बीच मध्य नागपुर के कुछ इलाकों में इस अफवाह के बाद हिंसा भड़क उठी कि औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर किये जा रहे प्रदर्शन के दौरान मुसलमानों की पवित्र किताब को जलाया गया. पुलिस के अनुसार 4 लोग घायल हुए हैं. शहर के अन्य इलाकों में भी हिंसा फैलने की खबर है.
खुले में नमाज पढ़ने पर गिरफ्तार : उत्तर प्रदेश पुलिस ने मेरठ में एक निजी विश्वविद्यालय के खुले क्षेत्र में नमाज अदा करने के आरोप में एक मुस्लिम छात्र ख़ालिद मेवाती को हिंदू समूहों के विरोध प्रदर्शन के बाद गिरफ्तार कर लिया है. मेवाती का होली समारोह के दौरान परिसर में नमाज पढ़ते वीडियो सामने आया था. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसके बाद खालिद और तीन सुरक्षाकर्मियों को निलंबित कर दिया था और मुस्लिम छात्र के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. शनिवार को गंगा नगर थाने के एसएचओ अनूप सिंह ने समाचार एजेंसी को बताया कि कार्तिक हिंदू नामक व्यक्ति की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया गया है. ख़ालिद पर धार्मिक विश्वासों का अपमान करने का मामला दर्ज किया गया है.
उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ में नया विशाल सिंकहोल : उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ के रविग्राम में चंडिका मंदिर के पीछे 10 फुट गहरा एक विशाल सिंकहोल दिखाई दिया है, जिसमें बारिश का पानी जमा हो गया है. इससे यहां के निवासियों में एक बार फिर भय व्याप्त हो गया है, क्योंकि इससे भूमि के और अधिक धंसने की आशंका पैदा हो गई है. चिंतित स्थानीय लोगों ने तुरंत अधिकारियों को सूचित किया, जिसके बाद तहसील प्रशासन ने स्थल निरीक्षण किया. पर्यावरण विशेषज्ञों की बार-बार चेतावनी के बावजूद पारिस्थितिक रूप से नाजुक इस क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाएं बेरोकटोक जारी हैं. हिमालय में ‘विकास’ के लिए सरकार का जोर इन्हें आपदाग्रस्त क्षेत्रों में बदल रहा है.
हड़ताल के लिए तैयार यूनियन : द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार लंबे समय से लंबित श्रम कानूनों को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. ऐसे में ट्रेड यूनियनें आम हड़ताल समेत देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की तैयारी कर रही हैं. चार लेबर कोड - वेतन कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड, सामाजिक सुरक्षा कोड और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति कोड के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा बनाने के के लिए मंगलवार को 10 प्रमुख यूनियनें बैठक करेंगी. श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया नियमों के निर्माण में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों के साथ बैठकें कर रहे हैं, लेकिन श्रमिक अब भी इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं. ट्रेड यूनियनों ने घोषणा की है कि नियमों के अधिसूचित होने के बाद देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किये जाएंगे. इनमें लेबर कोड की प्रतियां जलाना भी शामिल होगा.
11 हवाईअड्डों की होगी नीलामी : ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत घाटे में चल रहे हवाईअड्डों को मुनाफे वाले हवाईअड्डों के साथ जोड़कर 11 की नीलामी करने वाला है. नीलामी में अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स और जीएमआर एयरपोर्ट्स लिमिटेड जैसी प्रमुख कंपनियों के आने की संभावना है. तीर्थयात्रियों और पर्यटकों का प्रमुख केंद्र वाराणसी को संघर्षरत कुशीनगर और गया हवाईअड्डों के साथ जोड़ा जाएगा. इसी तरह भुवनेश्वर को हुबली के साथ, अमृतसर को कांगड़ा के साथ और रायपुर को औरंगाबाद के साथ जोड़ा जाएगा.
मध्य प्रदेश में पुलिस द्वारा आदिवासी की हत्या : कांग्रेस ने सोमवार को मध्य प्रदेश सरकार पर भीड़ के हमले में एक पुलिसकर्मी की मौत और नक्सल विरोधी अभियान में एक आदिवासी व्यक्ति की मौत पर भाजपा सरकार पर निशाना साधा. वहीं भाजपा ने कांग्रेस पर केवल आरोप लगाने और जन कल्याण के मुद्दे उठाने में विफल रहने का आरोप लगाया. मध्य प्रदेश में चल रहे बजट सत्र के दौरान, कुछ कांग्रेस नेताओं ने राज्य में कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए. शनिवार को आदिवासियों के एक समूह ने कथित तौर पर सनी द्विवेदी नामक एक व्यक्ति का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी और उसे बचाने की कोशिश कर रही पुलिस टीम पर हमला कर दिया, जिसमें सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) रामचरण गौतम की मौत हो गई. इससे पहले मंडला जिले में नक्सल विरोधी अभियान में बैगा आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले हिरन सिंह परते (38) नामक एक व्यक्ति की मुठभेड़ में मौत हो गई थी. पुलिस ने सफाई में कहा था कि परते जंगल के अंदर नक्सलियों के साथ था. एक अन्य घटना में शनिवार को ही इंदौर में प्रदर्शन के दौरान कुछ वकीलों और पुलिस के बीच झड़प हो गई थी.
अच्छे दिन
जम्मू-कश्मीर : डिग्री तो मिली, नौकरी नहीं
अनुच्छेद 370 हटने के बाद मोदी सरकार ने नगाड़े बजा-बजाकर प्रचार किया कि कश्मीर तो अब बस भारत का स्वर्ग ही बनने वाला है, लेकिन जमीन पर हिन्दुस्तान के बेरोजगारों की बेबसी जन्नत में आज भी धूप सेंकती हुई पसरी हुई ही है. 'स्क्रोल' के लिए सफवत जरगर की रिपोर्ट है कि जम्मू-कश्मीर में विकास और रोजगार के नए अवसरों का वादा किया गया था, लेकिन वास्तविकता यह है कि यहां के शिक्षित युवा आज भी नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं. बेरोजगारी ने न केवल राज्य की आर्थिक स्थिति बिगाड़ी है, बल्कि लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है. साल 2019 में जब नई दिल्ली ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया और उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया, तब से यहां बेरोजगारी दर में तेज़ी से वृद्धि हुई है. साल 2016 में अहमद ने श्रीनगर में एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में काम करना शुरू किया था, लेकिन उसी साल हिज़बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में हिंसा भड़क उठी. इस उथल-पुथल में उनकी कंपनी बंद हो गई. "कुछ महीनों बाद, कंपनी ने हमें बताया कि काम नहीं है और हमें इस्तीफा दे देना चाहिए," अहमद ने याद किया- “2017 की शुरुआत में उन्होंने एक सीसीटीवी उपकरण वितरक कंपनी में काम किया, लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद इंटरनेट पर प्रतिबंध लग गया, जिससे उनका काम रुक गया और उन्हें फिर नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इसके बाद दो साल कोरोना महामारी के साए में बीते, जब वह ज्यादातर बेरोजगार रहे. 2022 में उन्होंने एक मल्टीनेशनल आईटी कंपनी के लिए काम करने वाली फर्म में नौकरी पाई, जहां उन्हें 25,000 रुपये मासिक वेतन मिलता था. 2024 में उन्होंने एक अन्य कंपनी में काम शुरू किया, लेकिन वहां का माहौल उन्हें इतना खराब लगा कि पांच महीने में ही नौकरी छोड़ दी. तब से, यानी अगस्त 2024 से, वह बेरोजगार हैं.”
अहमद अकेले नहीं हैं. जम्मू के 32 वर्षीय दिनेश कुमार ने जम्मू विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में डॉक्टरेट की है, लेकिन आजकल वह घर-घर जाकर केसर बेचते हैं, जिससे महीने में मुश्किल से 15,000 रुपये कमाते हैं. दिनेश ने कहा, "मैंने अपने परिवार से कहा है कि मैं एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में पढ़ाता हूं, लेकिन सच्चाई यह है कि नौकरी न मिलने के कारण मुझे यह सब करना पड़ रहा है." 32 वर्षीय रंजीत सिंह, जो भद्रवाह, जम्मू के रहने वाले हैं, ने होटल मैनेजमेंट, इतिहास और हॉस्पिटैलिटी व टूरिज्म मैनेजमेंट में मास्टर्स किया है और नेट परीक्षा भी पास की है. वह वर्तमान में योग सिखाकर अपनी जीविका चलाते हैं. सिंह ने बताया, "इतनी पढ़ाई के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही है. अगर कहीं नौकरी के लिए आवेदन करो, तो हजारों लोग लाइन में लगे होते हैं."
हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने युवाओं के लिए नए अवसरों की बात की थी. लेकिन सरकारी आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं. सरकार के अनुसार, 3.7 लाख युवा आधिकारिक रूप से बेरोजगार पंजीकृत हैं. 2020 से 2022 के बीच बेरोजगारी के कारण 78 लोगों ने आत्महत्या कर ली. दिसंबर 2023 में, जम्मू-कश्मीर पुलिस के 4,002 कांस्टेबल पदों के लिए 5.5 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी.
2023-24 में जम्मू-कश्मीर में 15-29 आयु वर्ग की बेरोजगारी दर 17.4% थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 10.2% था. जुलाई-सितंबर 2024 की तिमाही में इस आयु वर्ग के 32% लोग बेरोजगार थे, जो पूरे देश में सबसे अधिक है. पोस्टग्रेजुएट्स के बीच बेरोजगारी दर 23.9% थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 12.4% था.
अन्नामलाई की गिरफ्तारी : ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए अरुण जनार्दनन की रिपोर्ट है कि तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई को सोमवार सुबह चेन्नई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उनकी गिरफ्तारी उस वक्त हुई जब वह राज्य संचालित शराब विक्रेता, तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (TASMAC) में कथित वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले थे. अन्नामलाई को उनके अक्काराई स्थित निवास के पास उस समय हिरासत में लिया गया, जब वह प्रदर्शन स्थल पर जाने की कोशिश कर रहे थे. भाजपा के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी विभिन्न स्थानों से गिरफ्तार किया गया, जिनमें पूर्व तेलंगाना राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन, महिला मोर्चा प्रमुख और कोयंबटूर दक्षिण से विधायक वनथी श्रीनिवासन, और भाजपा विधायक सरस्वती शामिल हैं.
अमृतपाल सिंह के 7 सहयोगियों पर एनएसए नहीं : पंजाब सरकार ने रविवार को कहा कि वह अमृतपाल सिंह के सात सहयोगियों पर तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) नहीं लगाएगी. पंजाब सरकार ने वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह और उनके नौ सहयोगियों पर 2023 में एक साल के लिए एनएसए लगाया था. 2024 में पहला कार्यकाल समाप्त होते ही एक और साल के लिए एनएसए फिर से लगा दिया गया था. खबर की पुष्टि करते हुए अमृतसर ग्रामीण के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मनिंदर सिंह ने कहा कि अमृतपाल सिंह, उनके चाचा हरजीत सिंह और पपलप्रीत सिंह को छोड़कर सभी को असम की डिब्रूगढ़ जेल से वापस लाया जाएगा और अजनाला मामले में फिर से गिरफ्तार किया जाएगा. अमृतपाल सिंह और उनके समर्थकों ने अपहरण के एक मामले में न्यायिक हिरासत में बंद लवप्रीत सिंह तोफान की रिहाई की मांग को लेकर 23 फरवरी, 2023 को अजनाला पुलिस स्टेशन पर कथित तौर पर धावा बोल दिया था.
शराब के इन्फ्लुएंस में इन्फ्लुएंसर : जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सोमवार को ओरी के नाम से मशहूर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ओरहान अवात्रमणि और सात अन्य लोगों के खिलाफ कटरा शहर में शराब के सेवन के आरोप में मामला दर्ज किया. कटरा शहर माता वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए बेस कैम्प के रूप में कार्य करता है. कटरा पुलिस स्टेशन में बीएनएस की धारा 223 के तहत एफआईआर दर्ज की गई. केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने मंदिर की निकटता के कारण कटरा शहर में शराब के सेवन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है. पुलिस ने बताया कि आरोपियों ने शनिवार को होटल परिसर के भीतर शराब का सेवन किया, बावजूद इसके कि उन्हें बताया गया था कि वहां शराब की अनुमति नहीं है.
तमिलनाडु जाति प्रमाणपत्रों की जांच के आदेश : 'इंडियन एक्सप्रेस' के लिए अनंतकृष्णन जी की खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जाति प्रमाणपत्रों की जांच के आदेश दिए हैं. अदालत ने कहा, "हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ये प्रमाणपत्र असली हैं या नहीं. हम यह भी जानना चाहेंगे कि क्षेत्र में हजारों लोगों द्वारा ऐसे जाति प्रमाणपत्र किस प्रकार प्राप्त किए गए हैं." न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने 25 फरवरी 2025 के अपने अंतरिम आदेश में कहा, "तमिलनाडु राज्य में जाति प्रमाणपत्र एक बड़ी समस्या प्रतीत होती है. ऐसा लगता है कि हजारों ऐसे प्रमाणपत्र जारी किए गए हैं, जिनमें लोगों को हिंदू कोंडा रेड्डिस समुदाय का सदस्य बताया गया है, जो अनुसूचित जनजाति में आता है. फिलहाल हम कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं, लेकिन प्रथम दृष्टया यह एक बड़ा रैकेट लगता है. यह बेहद खतरनाक मामला है." पीठ ने कहा, "राज्य स्तरीय जांच समिति इस मुद्दे की गहराई से जांच करे और छह सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे, ताकि हम मामले में आगे बढ़ सकें."
अमृतसर मंदिर विस्फोट का एक संदिग्ध मुठभेड़ में मारा गया, दूसरा फरार : अमृतसर में 15 मार्च को ठाकुर द्वार मंदिर के बाहर हुए विस्फोट की घटना का एक संदिग्ध पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. वहीं एक अन्य संदिग्ध भागने में सफल रहा. पंजाब पुलिस प्रमुख गौरव यादव ने बताया कि आत्मरक्षा में की गई कार्रवाई में एचसी गुरप्रीत सिंह घायल हो गए और इंस्पेक्टर अमोलक सिंह की पगड़ी टूट गई.
वैकल्पिक मीडिया
चंदन तो उगाया पर कामयाबी की गंध नहीं…
'डाउन टू अर्थ' के लिए हिमांशु नितनवारे ने चंदन की खेती कर रहे किसानों की कथा निकाली है. 2009 में जब के शरणप्पा ने अपनी 2.8 हेक्टेयर (ha) की ज़मीन पर 1,000 चंदन के पौधे लगाए थे, तब वह सिर्फ़ पेड़ नहीं उगा रहे थे, बल्कि वह अपना भविष्य दांव पर लगा रहे थे. भारतीय चंदन देश की सबसे व्यावसायिक रूप से मूल्यवान वृक्ष प्रजातियों में से एक है, जिसकी कीमत सोने के बराबर मानी जाती है. उच्च गुणवत्ता वाला भारतीय चंदन अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक टन (1,000 किलोग्राम) तक के लिए 78 लाख रुपये तक की क़ीमत पाता है, जिससे इसे "डॉलर कमाने वाला परजीवी" कहा जाता है. कर्नाटक के कोप्पल ज़िले के अदपुरा गांव के निवासी शरणप्पा के लिए योजना सीधी सी थी. 15 वर्षों में उनके पेड़ परिपक्व हो जाएंगे और उन्हें अनुमानित रूप से 4 करोड़ रुपये मिलेंगे. यह राशि राज्य सरकार के साथ पुलिस अधिकारी के रूप में उनकी मामूली तनख्वाह की तुलना में सैकड़ों गुना अधिक थी. वे कहते हैं, “मैंने इसे अपनी 2023 की सेवानिवृत्ति के साथ जोड़ा था. मैं आर्थिक रूप से सुरक्षित हो जाता और मेरे बेटों को एक समृद्ध व्यापार विरासत में मिलता, लेकिन अब यह बोझ बन गया है.” उनकी आवाज़, जो कभी आशा से भरी थी, अब मोहभंग के बोझ से दब गई है.
शरणप्पा कर्नाटक में चंदन उगाने वाले पहले समूह में से एक हैं, जो भारत के चंदन के प्राकृतिक विस्तार के लगभग 60% हिस्से का घर है, जैसा कि नवंबर 2024 में प्रकाशित डिस्कवर पर्यावरणीय एप्लाइड साइंसेज के एक अध्ययन में बताया गया है. उन्होंने खेती तब शुरू की, जब कर्नाटक ने दो दशक पहले इस लकड़ी के व्यापार पर अपनी सख़्त पकड़ को ढीला किया.
"शाही वृक्ष" से किसान के खेत तक साल 1792 में तत्कालीन मैसूर राज्य ने इसे "शाही वृक्ष" घोषित किया. तब से चंदन की कटाई और बिक्री सरकार का एकाधिकार रही. भले ही कोई पेड़ निजी भूमि पर स्वाभाविक रूप से उग जाए, मालिक को उस पर कोई अधिकार नहीं था, फिर भी उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसी की थी. इसके बाद साल 2001 में कर्नाटक वन (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया, जिससे निजी व्यक्तियों को चंदन की खेती की अनुमति मिली. हालांकि इसमें एक पेंच था. व्यापार पर सरकार का नियंत्रण बरक़रार रहा. 2008 में एक छोटी सफलता मिली, जब कर्नाटक ने दो राज्य समर्थित एजेंसियों, कर्नाटक सोप्स एंड डिटर्जेंट्स लिमिटेड (KSDL) और कर्नाटक राज्य हस्तशिल्प विकास निगम (KSHDC) को निजी किसानों से सीधे चंदन खरीदने की अनुमति दी.
इसके बाद साल 2022 में एक बड़ा बदलाव आया, जब कर्नाटक वन (संशोधन) नियमों ने किसानों को अपना उत्पाद किसी भी “राज्य सरकार या किसी राज्य सरकार के उपक्रम के अलावा किसी भी इकाई को बेचने” की अनुमति दी.
चोरी से किसानों की नींद हराम : यल्लापुरा गांव के किसान जय गौड़ा की 8,000 पेड़ों की चंदन की फसल, चोरी की वजह से खतरे में है. पिछले साल उन्होंने 40,000 रुपये मूल्य के परिपक्व पेड़ खो दिए. उन्होंने अपनी बगान की सुरक्षा के लिए 2.5 लाख रुपये खर्च करके 10 सीसीटीवी कैमरे लगाए, फिर भी चोरियां जारी हैं. कर्नाटक सरकार ने चंदन की स्मगलिंग पर रोक लगाने और इसकी घटती आबादी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबंधों में ढील दी थी, लेकिन चोरी अब भी किसानों के लिए सिरदर्द बनी हुई है.
कम होता मुनाफा : शरणप्पा के लगाए 1,000 पौधों में से सिर्फ़ 650 ही बच पाए. इससे भी बुरी बात यह रही कि 2024 में हुई एक जांच में पता चला कि पेड़ों में दिल की लकड़ी (हार्टवुड) का विकास नहीं हुआ था. वह घना कोर, जिससे चंदन की व्यावसायिक कीमत तय होती है. एक आईडब्ल्यूएसटी वैज्ञानिक ने 'डाउन टू अर्थ' को नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हार्टवुड को पूरी तरह विकसित होने में कम से कम 20-25 साल लगते हैं. जितनी अधिक हार्टवुड की घनता होती है, उसकी सुगंध और कीमत उतनी ही अधिक होती है. शरणप्पा का सपना था कि चंदन की खेती से उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता मिलेगी. लेकिन आज, वह निराश हैं. वह कहते हैं, “मैंने इसे अपनी रिटायरमेंट के बाद के भविष्य के लिए लगाया था, लेकिन अब यह सिर्फ़ चिंता और घाटे की वजह बन गया है.” चंदन की महक कम हो रही है और इसके साथ ही किसानों की उम्मीदें भी.
क्या ट्रम्प पुतिन को शांति के लिए तैयार कर पाएंगे?
'द गार्डियन' की खबर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने पर चर्चा करने की योजना बना रहे हैं और वार्ताकार पहले ही "कुछ संपत्तियों के विभाजन" पर चर्चा कर चुके हैं. ट्रम्प ने फ्लोरिडा से वॉशिंगटन क्षेत्र की देर रात वापसी उड़ान के दौरान एयर फोर्स वन में पत्रकारों से कहा- "मैं मंगलवार को राष्ट्रपति पुतिन से बात करूंगा. सप्ताहांत में बहुत काम किया गया है. हम देखना चाहते हैं कि क्या हम उस युद्ध को समाप्त कर सकते हैं. शायद हम कर सकते हैं, शायद नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि हमारे पास एक बहुत अच्छा मौका है". ट्रम्प यूक्रेन द्वारा पिछले सप्ताह स्वीकार किए गए 30-दिनों के युद्धविराम प्रस्ताव के लिए पुतिन का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि दोनों ओर से सप्ताहांत में भारी हवाई हमले एक-दूसरे के इलाकों पर किए गए हैं. इस बीच रूस ने यूक्रेनी बलों को पश्चिमी रूसी क्षेत्र कर्स्क से बाहर निकालने की ओर कदम बढ़ाया है.
ट्रम्प ने रियायतों के बारे में पूछे जाने पर कहा- "हम ज़मीन के बारे में बात करेंगे. हम पावर प्लांट्स के बारे में बात करेंगे. मुझे लगता है कि हमने पहले ही बहुत कुछ यूक्रेन और रूस दोनों पक्षों से विस्तार से चर्चा कर ली है. हम पहले ही इसके बारे में बात कर रहे हैं, कुछ संपत्तियों के विभाजन की बात हो रही है." ट्रम्प की ये टिप्पणियां उनके विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के उस बयान के कुछ घंटे बाद आईं, जिसमें उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति ने ट्रम्प के युद्धविराम और शांति शर्तों के "दर्शन" को स्वीकार कर लिया है. विटकॉफ ने सीएनएन को बताया कि पिछले हफ्ते पुतिन के साथ कई घंटों की चर्चाएं "सकारात्मक" और "समाधान-आधारित" थीं. हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या पुतिन की मांगों में कर्स्क में यूक्रेनी बलों के आत्मसमर्पण, रूस द्वारा कब्जाए गए यूक्रेनी क्षेत्र की अंतरराष्ट्रीय मान्यता, यूक्रेन की सैन्य लामबंदी की सीमाएं, पश्चिमी सैन्य सहायता पर रोक और विदेशी शांति सैनिकों पर प्रतिबंध शामिल हैं, तो उन्होंने पुष्टि करने से इनकार कर दिया. गौरतलब है कि मॉस्को ने अन्य बातों के अलावा, संघर्षविराम के बाद यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी प्रदान करने के लिए यूरोपीय सैनिकों की तैनाती का पुरजोर विरोध किया है. हाल ही में पुतिन ने कहा है कि यूक्रेन में उनका सैन्य हस्तक्षेप इसलिए था क्योंकि नाटो के लगातार विस्तार से रूस की सुरक्षा खतरे में पड़ गई थी. उन्होंने मांग की है कि यूक्रेन अपनी नाटो महत्वाकांक्षाओं को छोड़ दे, रूस द्वारा जब्त किए गए सभी यूक्रेनी क्षेत्रों पर नियंत्रण बनाए रखे और यूक्रेनी सेना के आकार को सीमित किया जाए.
बढ़ता ताप
बदलते जलवायु से केले के अस्तित्व को ख़तरा
जलवायु परिवर्तन का असर केले पर पड़ रहा है. कम से कम लैटिन अमेरिका और कैरिबियन इलाके में हुए एक अध्ययन ने तो भारत के केला उत्पादकों के भविष्य पर भी गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है. ‘कार्बन ब्रीफ’ की रिपोर्ट है कि एक नए अध्ययन के अनुसार साल 2080 आते-आते लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में बड़े पैमाने पर केले की खेती उजाड़ हो चुकी होगी. 21,700 करोड़ रुपये के केले उद्योग में दुनिया भर में 10 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. लैटिन अमेरिका और कैरिबियन दुनिया का 80% केला निर्यात करते हैं. नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन दुनिया के सबसे बड़े केले निर्यातक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की जांच करता है. अध्ययन में पाया गया कि तापमान में वृद्धि के कारण 2080 तक इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर केले की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का क्षेत्रफल 60% तक कम हो सकता है. जैसे-जैसे केले की खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र सिकुड़ता जाएगा, किसानों को सिंचाई सुविधाओं को लागू करने, सूखे के प्रति सहनशील केले की किस्मों को अपनाने और अपने खेती के क्षेत्रों को बदलने जैसे उपायों के माध्यम से अनुकूलन करने की आवश्यकता पड़ने वाली है. केले दुनिया में सबसे अधिक निर्यात और खपत वाले फलों में से एक हैं और 40 लाख से अधिक लोगों के लिए पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं. केले का उद्योग एक बढ़ता हुआ उद्योग है. नीचे दिया गया मानचित्र 2022 में प्रति देश केले के उत्पादन को टन में दर्शाता है.
एशिया दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक है, बावजूद इसके लैटिन अमेरिका और कैरिबियन दुनिया का लगभग 80% केला निर्यात करते हैं. खासकर इक्वाडोर और कोस्टा रिका इस मामले में आगे हैं. दुनिया भर में केले की 1,000 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें से मीठे पीले कैवेंडिश केले का वैश्विक उत्पादन में लगभग आधा हिस्सा है. यह किस्म आमतौर पर लैटिन अमेरिका में बड़े पैमाने पर एकल-फसल वाले बागानों में उगाई जाती है, जहां व्यापक सिंचाई और जल निकासी सुविधाओं का उपयोग किया जाता है. बड़े निर्यात बागान 5,000 हेक्टेयर (50 वर्ग किलोमीटर) तक के हो सकते हैं.
शोधकर्ताओं ने कुल मिलाकर 3,60,000 से अधिक बागानों की पहचान और सत्यापन किया. उन्होंने केले के बागानों के वितरण मानचित्र को तापमान, वर्षा, ऊंचाई, मिट्टी की अम्लता, अक्षांश, सिंचाई बुनियादी ढांचे, मानव जनसंख्या घनत्व और निकटतम बंदरगाह की दूरी जैसे जलवायु और सामाजिक-आर्थिक डेटा के साथ जोड़ा. भारत और एशिया के संदर्भ में, यह अध्ययन प्रासंगिक है, क्योंकि एशिया दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक है. भारत, चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों में केले की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यदि लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में केले का उत्पादन प्रभावित होता है, तो इससे वैश्विक बाजार में केले की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, जिससे कीमतों में वृद्धि हो सकती है. भारत में केले की खेती मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात में की जाती है. ऐसे में जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, भारत में भी केले की खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र सिकुड़ सकता है.
दुनिया से गायब हो रही है ठंड?
'कार्बन ब्रीफ' की रिपोर्ट है कि दुनिया से ठंड गायब हो रही है. पिछले 50 वर्षों में दुनिया भर में ठंड की चरम घटनाएं कम हुई हैं और भविष्य में इनके और दुर्लभ होने की संभावना है. वैज्ञानिकों के बीच इस बात पर बहस जारी है कि क्या आर्कटिक के तेजी से गर्म होने और समुद्री बर्फ के घटने से वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलाव आ सकता है, जिससे मध्य-अक्षांश क्षेत्रों में ठंड बढ़ सकती है. हालांकि, अधिकतर शोध बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के चलते सर्दियों में कुल मिलाकर तापमान बढ़ रहा है, जिससे ठंडी चरम घटनाएं कम हो रही हैं. हालांकि ज़्यादातर हिस्सों में ठंड घट रही है, कुछ क्षेत्रों में इसके उलट रुझान देखने को मिले हैं. भारत के कुछ हिस्सों में ठंडे दिनों में वृद्धि हुई है, जिसका कारण तेज़ी से बढ़ता वायु प्रदूषण (विशेषकर सल्फेट एरोसोल) माना जा रहा है.
दक्षिण अफ्रीका और अंटार्कटिका के क्षेत्रों में भी चरम ठंडी की घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, हालांकि इसके पीछे के कारण अभी स्पष्ट नहीं हैं. 1970 से 2024 के बीच दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों में ठंडे दिनों की संख्या घटी है, खासकर उत्तरी गोलार्ध के ऊपरी अक्षांशों में, जहां तापमान में सबसे तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है. हिमालय, पूर्वी यूरोप, कनाडा और अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों में सालाना करीब एक महीने कम बर्फीले दिन देखे गए हैं. मौसम में बदलाव के चलते अब पहले के मुकाबले ठंडे दिन कम हो गए हैं और जब होते हैं, तो उनकी तीव्रता भी घटी है.
चलते-चलते
इंस्टा पर जारी रही चीनी छोड़ने की कहानी
"हर चीज का स्वाद चीनी जैसा नहीं होता. मुझे नहीं पता था कि कॉफी का स्वाद इतना अच्छा हो सकता है," सुमुखी सुरेश ने कहा. अभिनेत्री और कॉमेडियन सुमुखी सुरेश ने हाल ही में 14 दिनों तक चीनी न खाने की चुनौती ली और इस दौरान अपने अनुभव को इंस्टाग्राम पर एक वीडियो के माध्यम से साझा किए हैं. 37 वर्षीय सुमुखी ने कहा, "चीनी आपके पूर्व प्रेमी/प्रेमिका की तरह है. जब आप व्यस्त होते हैं, तो कहते हैं कि आप इससे दूर हो गए हैं. लेकिन रात 10 बजे के बाद, आप उन्हें फोन करना चाहते हैं. ठीक उसी तरह, चीनी की तलब लगती है." इस चुनौती के दौरान उन्होंने बिना चीनी वाले उत्पाद खरीदने के लिए सुपरमार्केट का दौरा किया और साथ ही दिन भर में चीनी की तलब को नियंत्रित करने के लिए स्क्वैट्स या बर्पीज करने की चुनौती भी ली. चुनौती के आधे रास्ते में उन्होंने स्वीकार किया, "मेरी तलब कम हो गई है. मैं चीजों का स्वाद ले सकती हूं. हर चीज का स्वाद चीनी जैसा नहीं होता. मुझे नहीं पता था कि कॉफी का स्वाद इतना अच्छा हो सकता है." चुनौती के आखिरी दिन, उन्होंने कहा, "मैं समय पर उठती हूं. मैं बेहतर व्यायाम करती हूं. अब चीनी की तलब नहीं है. मैं चीनी की इच्छा से मुक्त हो गई हूं." चीनी छोड़ने के शुरुआती दिनों में सिरदर्द, थकान या चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण हो सकते हैं, क्योंकि शरीर को इस बदलाव के अनुकूल होने में समय लगता है. हालांकि, ये लक्षण आमतौर पर कुछ दिनों में कम हो जाते हैं.
सुमुखी ने बताया ज़ांड्रा हेल्थकेयर के मधुमेह विभाग के प्रमुख और रंग दे नीला पहल के सह-संस्थापक डॉ. राजीव कोविल ने चीनी को दुनिया की सबसे बड़ी लत बताया. उन्होंने कहा, "दो सप्ताह तक चीनी छोड़ने से आपके शरीर और समग्र स्वास्थ्य में स्पष्ट बदलाव देखने को मिल सकते हैं." डॉ. कोविल ने जोर देकर कहा कि चीनी छोड़ना शुरू में चुनौतीपूर्ण लग सकता है, लेकिन दो सप्ताह के भीतर स्वास्थ्य लाभ स्पष्ट हो जाते हैं. कुछ दिनों के भीतर, आपका रक्त शर्करा स्तर स्थिर हो जाता है, जिससे ऊर्जा में गिरावट और चीनी की तलब कम होती है. इंसुलिन का स्तर कम होता है, जिससे वसा जलने और ऊर्जा के स्तर में सुधार होता है. चीनी के उतार-चढ़ाव के बिना, आपकी ऊर्जा स्थिर रहती है और मूड स्विंग कम होते हैं. कई लोग अधिक सतर्क और केंद्रित महसूस करते हैं. चीनी कम करने से सूजन काफी कम हो सकती है, जिससे जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है और मुंहासे जैसी त्वचा समस्याओं में सुधार होता है. अतिरिक्त चीनी के बिना आपका शरीर अधिक वसा जलाता है, खासकर पेट के आसपास. साथ ही, पानी की अवधारण कम होती है, जिससे सूजन कम होती है. चीनी का सेवन कम करने से आंतों के माइक्रोबायोम में सुधार होता है, जिससे सूजन और पाचन संबंधी परेशानियां कम होती हैं.
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